पुलिस ने रूपा के मकान मालिक से भी पूछताछ की. उस ने एक ऐसी बात बताई जिस से पुलिस के शक को और भी बल मिला. रूपा ने मकान मालिक को एक दिन पहले बताया था कि उस का मंगेतर उस से मिलने के लिए आएगा.
यह जानने के बाद पुलिस ने राहुल के नंबर की सभी डिटेल्स हासिल कर लीं. उस से पता चला कि 1 मई की दोपहर से ले कर रात तक राहुल की लोकेशन बुलंदशहर में ही थी. इस के बाद उस ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर दिया था. शक को मजबूत आधार मिला, तो पुलिस ने रूपा के घर वालों की तरफ से राहुल के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस उस की तलाश में जुट गई.
एक पुलिस टीम राहुल की तलाश में पटना रवाना कर दी गई. 14 मई को पुलिस राहुल को हिरासत में ले कर बुलंदशहर लौट आई. पुलिस की इस तरह की काररवाई से वह हक्का बक्का था. पुलिस ने उस से सीधा सवाल किया, ‘‘तुम ने रूपा की हत्या क्यों की?’’
‘‘मैं भला उस की हत्या क्यों करूंगा सर, वह मेरी मंगेतर थी. हम दोनों तो अपनी शादी से खूब खुश थे.’’ राहुल ने संक्षिप्त शब्दों में सीधा जवाब दिया.
‘‘तुम्हारा मोबाइल क्यों बंद था?’’
पूछने पर राहुल बोला, ‘‘मेरा मोबाइल खराब हो गया था. मुझे आप से ही पता चला है कि रूपा की हत्या हो गई है.’’
‘‘तुम्हारी रूपा से आखिरी मुलाकात कब हुई थी?’’
‘‘सगाई के बाद हम लोग एक बार मिले थे. वैसे मोबाइल पर हम बराबर बातें करते रहते थे.’’ राहुल के जवाबों से पुलिस समझ गई कि वह हद से ज्यादा चालाक भी है और झूठ बोलने में माहिर भी. लेकिन जब पुलिस ने उस के साथ सख्ती की तो वह टूट गया.
पहले वह खामोश हो कर शून्य को ताकता रहा, फिर उस ने कुबूल कर लिया कि रूपा की हत्या उस ने ही की थी और यह आइडिया उसे शाहरूख खान की फिल्म बाजीगर देख कर आया था. रूपा की हत्या की उस ने जो वजह बताई वह एक युवा लड़की के विश्वास व भावनाओं के साथ खिलवाड़ के बाद बेरहमी से हुए कत्ल की कहानी थी.
किसान परिवार में जन्मी रूपा होनहार युवती थी. उस की ख्वाहिश थी कि वह बड़ी हो कर पुलिस विभाग में नौकरी करे. यह सर्वविदित है कि उद्देश्य अगर पहले ही साफ हो जाए तो मंजिल तक पहुंचने की राहें आसान हो जाती हैं. रूपा के साथ भी ऐसा ही कुछ था. रूपा का परिवार आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा सक्षम नहीं था. वह चाहती थी कि बड़ी हो कर परिवार के लिए कुछ करे.
इंसान की जिंदगी कई तरह की राहों से हो कर गुजरती है. इन राहों में बहुत से लोग मिलते बिछड़ते हैं. इन लोगों में किस से करीबी रिश्ते बन जाएं कोई पता नहीं होता. कालेज के दिनों में ही रूपा की मुलाकात विशेष कुमार से हुई. विशेष कुमार जिला मेरठ के खेखड़ा थाना क्षेत्र के गांव का रहने वाला था.
रूपा सुंदर व हंसमुख स्वभाव की थी. विशेष उसे पसंद करता था. वह पढ़ने में भी मेहनती था. विचार मिले तो दोनों के बीच दोस्ती हो गई. विशेष की पारिवारिक हालत काफी खराब थी. वह किसी भी तरह अपनी पढ़ाई पूरी कर के नौकरी करना चाहता था.
रूपा उन युवतियों में से थी जो दूसरों की पीड़ा को अपनी समझते हैं. एक दिन विशेष को परेशान देख रूपा ने उस से पूछा तो उस ने बताया कि वह फीस का इंतजाम नहीं कर पा रहा है. हो सकता है, फीस न भर पाने के कारण उसे पढ़ाई छोड़नी पड़े.
रूपा उस की बात सुन कर गंभीर हो गई. उस ने विशेष को समझा कर आश्वासन दिया कि वह उस की मदद करेगी. उस ने किसी तरह इंतजाम कर के विशेष को फीस के रुपए दे दिए. इस से वह बहुत खुश हुआ.
बीए करने के दौरान ही 2011 में उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद के लिए वैकेंसी निकलीं तो रूपा और विशेष ने तय किया कि वह इस के लिए प्रयास करेंगे. दोनों ने एकसाथ पंजीकरण फार्म भरा. चयन के लिए प्रतियोगी टेस्ट हुए, तो रूपा का चयन हो गया जबकि विशेष रह गया. इस से रूपा को तो दुख पहुंचा ही विशेष भी मन मार कर रह गया. रूपा का परिवार बेटी के पुलिस में जाने से खुश था. कुछ महीनों के प्रशिक्षण के बाद रूपा को तैनाती मिल गई.
2013 में रूपा का स्थानांतरण बुलंदशहर जनपद में हो गया. विशेष चूंकि अब तक कहीं नौकरी नहीं कर पाया था इसलिए वह परेशान रहता था. वक्त वक्त पर रूपा उस की आर्थिक मदद करती रहती थी. दोनों की इच्छा विवाह करने की थी, लेकिन रूपा का परिवार उस के परिवार की माली हालत की वजह से इस के लिए तैयार नहीं हुआ.
विशेष ने सोचा था कि उसे कमाऊ पत्नी मिलेगी तो उस के आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे. रिश्ता नहीं होने से वह निराश हो गया. नतीजतन उस के दिल में प्रतिशोध की चिंगारी भड़कने लगी. उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह रूपा को किसी और की भी नहीं होने देगा. लेकिन उस ने अपने इरादे कभी जाहिर नहीं होने दिए. यह अलग बात थी कि मांगने पर रूपा उसे पैसे भेज देती थी.
रूपा की तैनाती देहात के थाने में थी. वहां उसे काफी दिक्कत होती थी. इसलिए वह शहर में आना चाहती थी. इसी दौरान उस की मुलाकात सिपाही सुशील जावला से हो गई. सुशील अपराध शाखा में तैनात था और मूल रूप से नव सृजित जिला शामली के थाना कांधला क्षेत्र के गांव भभीसा का रहने वाला था. वह काफी तेज तर्रार था. अधिकारियों के संपर्क में रहने से डिपार्टमेंट में उस की अच्छी पकड़ थी.
रूपा पहली ही नजर में सुशील के दिल में उतर गई. भावनात्मक स्वभाव की रूपा पुलिस की नौकरी में भले ही आ गई थी, लेकिन उस में न तो पुलिस जैसी तेजी थी और न ही उसे जमाने का तजुर्बा था. सुशील ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो रूपा भी इनकार नहीं कर सकीं.
रूपा ने अपनी समस्या सुशील को बता दी थी. सुशील चाहता था कि रूपा पूरी तरह उस के जाल में फंस जाए, इसलिए उस ने अधिकारियों से अपने संबंधों का फायदा उठा कर रूपा को शहर लाने के प्रयास शुरू कर दिए. इस प्रयास में उसे सफलता मिली, जिस की बदौलत रूपा को शहर कोतवाली में तैनाती मिल गई.
दोनों के बीच मुलाकातों बातों का सिलसिला बढ़ा तो सुशील ने प्रेम का इजहार कर के रूपा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. एक तो सुशील अपनी ही जाति का था. दूसरे था भी मेरठ की तरफ का रहने वाला. इसलिए रूपा को यह ठीक लगा. उस ने सोचा कि सुशील भी चूंकि सरकारी नौकरी में है इसलिए दोनों का जीवन सुखमय रहेगा. शादी की बात करते समय सुशील ने एक बात साफ कर दी थी कि वह शादी 2 साल से पहले नहीं करेगा. उस ने चूंकि रूपा को खूब सपने दिखाए थे, इसलिए वह 2 साल बाद भी शादी करने को तैयार थी.