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जहां कालिंदी और चांदनी काम करती थीं, वहां रामकुमार सुपरवाइजर था. 25 वर्षीय रामकुमार बघेल का काम था बिल्डिंग निर्माण में लगे मजदूरों पर नजर रखना और इस्तेमाल होने वाले सामान का खयाल रखना. रामकुमार की नजर जवान औरतों पर रहती थी. चांदनी उस की गिरफ्त में थी जबकि कालिंदी पर उस की नजरें जमी हुई थीं. चांदनी से रामकुमार ने कहा था कि वह कालिंदी को उस के करीब ले आएगी तो वह उसे इनाम देगा. वैसे भी वह कालिंदी का खास खयाल रखता था.

कालिंदी जवान थी. पुरुष सान्निध्य की चाह उस के मन में भी थी. चांदनी के उकसाने पर वह भी धीरेधीरे रामकुमार की ओर आकर्षित होने लगी. जल्दी ही रामकुमार समझ गया कि वह समर्पण के लिए तैयार है. उस ने थोड़ा प्रयास किया तो वह उस की बांहों में सिमट गई.

रामकुमार बघेल का घर कालिंदी के घर से महज एक किलोमीटर दूर भनपुरी इलाके में था. उस के परिवार में पत्नी पूनम के अलावा 2 बच्चे थे. 4 साल का बेटा जीतू और 2 साल की बेटी जूली.

रामकुमार की कालिंदी से नजदीकी बढ़ी तो वह उसे शहर घुमाने ले जाने लगा. कालिंदी ने भी उसे अपने घर बुलाना शुरू कर दिया. वह जिस तरह से उस की खातिरदारी करती थी और जैसे उस से हंसीठिठोली करती थी उस से दिलीप को समझते देर नहीं लगी कि कालिंदी के पांव बहक गए हैं. चूंकि घर का खर्च कालिंदी की कमाई से ही चल रहा था. इसलिए शुरू शुरू में दिलीप जानबूझ कर चुप रहा.

उस की इस चुप्पी का कालिंदी ने नाजायज फायदा उठाया और रामकुमार के साथ घर में ही रास रचाने लगी. रामकुमार आता तो वह कभी बेटे बबलू को घुमाने के बहाने तो कभी कोई सामान लाने के बहाने दिलीप को घर से बाहर भेज देती थी और रामकुमार को ले कर अंदर से कमरा बंद कर के मस्ती में डूब जाती थी. ऐसा नहीं था कि दिलीप कालिंदी की इस चाल को समझता नहीं था. लेकिन मुहल्ले वालों और पड़ोसियों के बीच तमाशा न बने इसलिए चुप रह जाता था.

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