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सुरेंद्र राणा दिल्ली पुलिस में हैडकांस्टेबल है. वह सन 2012 में भरती हुआ था. उस की तैनाती पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर) यूनिट में थी. वह बाहरी दिल्ली के अलीपुर गांव में पत्नी सहित रहता था. वहां से मुखर्जी नगर अपनी बाइक द्वारा ड्यूटी पर आनाजाना करता था.

एक दिन उस का पत्नी से किसी बात पर झगड़ा हो गया था, इसलिए वह घर से बगैर खाना लिए ड्यूटी पर आ गया था. दोपहर तक वह पीसीआर वैन में रहा, फिर भूख लगने पर थाने की कैंटीन में खाना खाने आ गया. थाने की कैंटीन में उस ने अपनी पसंद का खाना प्लेट में लगवाया और टेबल की ओर आ गया. प्लेट टेबल पर रख कर सुरेंद्र राणा ने कुरसी खींची और बैठ गया. तभी उसे खयाल आया कि उस ने हाथ नहीं धोए हैं. वह हाथ धोने के लिए वाश बेसिन की ओर चला आया.

वहां हाथ धोने के बाद रुमाल से हाथों को पोंछता हुआ टेबल की तरफ बढ़ा, जिस पर उस ने खाने की प्लेट छोड़ी थी. वह हैरान रह गया, उस टेबल पर एक युवती बैठी हुई उस की प्लेट का खाना खा रही थी.

वह लपक कर उस टेबल के पास आ गया और रौब से बोला, “यह क्या बदतमीजी है मैडम, यह खाने की प्लेट मेरी है, जिस पर आप आराम से हाथ साफ कर रही हैं.”

युवती घबरा कर खड़ी हो गई. उस के हाथ सब्जी में सने हुए थे. वह मुसकराते हुए बोली, “सौरी सर, मुझे जोरों की भूख लगी थी और कैंटीन में मुझे रसोइया दिखा नहीं, इसलिए टेबल पर खाने की प्लेट देख कर मैं खाने पर टूट पड़ी.”

युवती की उम्र 24-25 साल की होगी. वह बेहद खूबसूरत थी. उस ने मेकअप नहीं किया था, फिर भी उस के गालों पर सेब जैसी लालिमा और होंठों पर गुलाब के फूलों वाला रंग बिखरा हुआ था. युवती की आंखों में अजीब सा नशा भरा दिखाई देता था. वह लाल रंग की सलवारकमीज पहने हुए थी. गले में लाल रंग की चुन्नी थी.

सुरेंद्र राणा उस की खूबसूरती और भरेपूरे यौवन पर मोहित हो गया. वह कुछ कहने की स्थिति में नहीं रह गया, बस ठगा सा उस युवती को देखता रहा.

“आप ने मुझे माफ कर दिया न.” युवती सुरेंद्र राणा को खामोश, ठगा सा खड़ा देख कर बोली, “मैं फिर से सौरी बोल देती हूं.”

सुरेंद्र राणा की मदहोशी उस युवती की कोयल जैसी सुरीली आवाज सुन कर और बढ़ गई.

पहली मुलाकात में दिल में बसा लिया मोनिका को

युवती हैरान थी कि यह पुलिस वाला कुछ बोल क्यों नहीं रहा है, उसे ही ताकने में लगा है. वह झुंझला गई. भूख से वह बेहाल थी. सुरेंद्र सोचने लगा कि पुलिस कैंटीन में कोई बाहरी व्यक्ति तो खाने के लिए आ नहीं सकता, जरूर यह भी पुलिस विभाग में ही होगी. लेकिन इस से पहले उस ने उस युवती को कभी देखा नहीं था. इसी सोच में वह बेसुध था.

तभी उस युवती ने सुरेंद्र राणा का हाथ पकड़ कर हिलाया, “ऐ जनाब, कहां खो गए आप?”

“तुम्हारी मोहिनी सूरत में…” सुरेंद्र राणा के मुंह से निकल गया. फिर वह तुरंत संभल गया, “क…क्या कहा तुम ने?”

“मैं ने आप की प्लेट से खाना खाया, इस के लिए सौरी बोल रही हूं. आप ध्यान ही नहीं दे रहे थे, इसलिए आप का हाथ भी पकड़ लिया.”

सुरेंद्र राणा मन ही मन बुदबुदाया, ‘यह हाथ जीवन भर के लिए पकड़ लो सुंदरी… मैं एक ही नजर में तुम्हारा दीवाना हो गया हूं.’

वह संभल कर बोला, “कोई बात नहीं, मैं दूसरी प्लेट ले आता हूं.”

वह कैंटीन में गया और अपने लिए दूसरी प्लेट ले आया और उसी टेबल पर खाने लगा. वह युवती अब इत्मीनान से खाना खा रही थी.

“क्या नाम है तुम्हारा?” सुरेंद्र राणा ने बात का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा.

“मोनिका यादव.”

“दिल्ली में ही रहती हो?”

“हां, मैं दिल्ली में ही रहती हूं और दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल हूं. कल से मेरी इसी थाने में ड्यूटी लगाई गई है. वैसे मूलरूप से मैं गुलावठी (बुलंदशहर) की रहने वाली हूं.” युवती ने बताया.

“अरे, आप ने बताया क्यों नहीं कि आप भी डीपी में हैं. वैसे आप दिल्ली में कहां रहती हैं?” सुरेंद्र ने पूछा.

“यहीं मुखर्जी नगर में एक पीजी में रहती हूं. वहां रह कर सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी भी कर रही हूं.”

“अरे वाह!” सुन कर सुरेंद्र राणा खुशी से उछल पड़ा, “मैं भी इसी थाने में तो मैं हैडकांस्टेबल हूं.”

“ओह,” मोनिका मुसकराई, “फिर तो आप की और मेरी मुलाकात रोज होगी.”

“बेशक होगी.” सुरेंद्र जल्दी से बोला, “अगर तुम्हें ड्यूटी के दौरान किसी किस्म की परेशानी आए तो बताना, मेरी ऊपर तक जानपहचान है.”

सुरेंद्र राणा मुसकराया, “अच्छा, चलता हूं, मुझे अभी पीसीआर वैन पर निकलना है. तुम से फिर मुलाकात करूंगा.” कहने के बाद सुरेंद्र राणा लंबेलंबे डग भरता हुआ कैंटीन से बाहर निकल गया. वह खुश था कि पहली मुलाकात में ही वह खूबसूरत मोनिका को इंप्रैस कर के उस के दिल में अपने लिए जगह बना आया है.

मोनिका ने अगले दिन ही मुखर्जी नगर थाने में अपनी आमद दर्ज करा ली. इस का पता सुरेंद्र राणा को हुआ तो वह फूला नहीं समाया.

मोनिका को प्यार के जाल में फांसने की कोशिश में जुटा सुरेंद्र

पहली मुलाकात में मोनिका के हुस्न का जो जादू उस पर चला था, वह अभी भी कायम था. सुरेंद्र शादीशुदा और एक बेटे का बाप होने के बाद भी मोनिका को अपनी जिंदगी में लाने के लिए मचल रहा था, जबकि मोनिका यादव उसे केवल अपना सच्चा हमदर्द दोस्त मान कर उस की इज्जत कर रही थी. इस की वजह थी कि सुरेंद्र राणा और अपनी उम्र में करीब 15 साल का अंतर होना.

मोनिका के मन में कभी भी यह विचार नहीं आया कि सुरेंद्र राणा को अपनी जिंदगी का हमसफर बनाए. उस के साथ प्यार के सुनहरे ख्वाब देखे. सुरेंद्र राणा को अपना सच्चा हितैषी समझ कर मोनिका उस से हंसतीबोलती थी. उस की इज्जत करती थी. जबकि सुरेंद्र की कोशिश थी कि वह मोनिका के बहुत करीब आ जाए. उस का दिल केवल मोनिका के लिए ही धडक़ने लगा था.

उस ने अब अपने घर अलीपुर भी जाना कम कर दिया था. पत्नी से उस ने झूठ बोला कि काम का बोझ अधिक होने की वजह से उसे थाने में ही रुकना पड़ता है. इतना वक्त नहीं होता कि वह घर आएजाए. पत्नी सीधीसादी थी. पुलिस वालों की नौकरी ऐसी ही होती है. इस नौकरी में रातदिन नहीं देखा जाता. उस ने संतोष करने की आदत डाल ली.

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