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विदिशा के हाजी बली तालाब मोहल्ले में रहने वाले प्रेम नारायण सोनी 28 जनवरी, 2023 को रोज की तरह टीवी मरम्मत करने के लिए अपनी दुकान पर चले गए थे. जबकि उन की पत्नी सुबहसुबह ही बागेश्वर धाम के लिए रवाना हो चुकी थी. उस दिन शनिवार था. दोपहर तक अपना काम निपटा कर घर लौटे तो बेटी की गाड़ी बाहर खड़ी देख कर चौंक गए, ‘‘इतनी जल्द ड्यूटी से आ गई निशा! शनिवार है… शायद छुट्टी हो!’’ अपने आप से बोलते हुए वह नहाने चले गए. खाना खाया और घर के बाहर धूप में जा कर बैठ गए. कुछ देर बाद डा. सुरेंद्र आया और सीधे ऊपर चला गया. वहीं निशा का कमरा था, जहां वह अपने 3 बच्चों के साथ रहती थी. उस का पति से तलाक हो चुका था, इसलिए वह अपने मायके में ही रह रही थी.

डा. सुरेंद्र को बेटी के कमरे की तरफ जाते देख कर प्रेम नारायण एक बार फिर चौंक पड़े. उस से बात करने से पहले उन्होंने अपने आप से सवाल किया, ‘‘एक महीने बाद ये (डा. सुरेंद्र) मेरे घर फिर से क्यों आया है?’’ तब तक सुरेंद्र तेजी से सीढिय़ां चढ़ता हुआ ऊपर चला गया. लेकिन तुरंत वापस भी उतनी ही तेजी से लौट आया और कुछ कहे बगैर वहां से चला गया. सुरेंद्र का इस तरह से आना और बगैर कुछ बोले, बात किए चले जाना, प्रेम नारायण को कुछ अच्छा नहीं लगा. उन के मन में शंका हुई. वह थोड़ी देर बाद ऊपर गए, जहां निशा का कमरा था. उस का कमरा भीतर से लौक था. उन्होंने आवाज लगाई,

‘‘निशा, ओ निशा, दरवाजा खोलो. डाक्टर साहब आए थे.’’

सुर्खियों में आ गया निशा हैंगिंग केस…

प्रेम नारायण की 2-3 आवाजों के बाद भी निशा ने कोई जवाब नहीं दिया था. उन्होंने फिर से आवाज लगाई, ‘‘अरी ओ निशा, डाक्टर साहब आए थे, वह तुरंत क्यों चले गए? क्या बात हो गई?’’ तभी भीतर मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी थी. फोन लगातार बज रहा था, भीतर कमरे में निशा न तो फोन रिसीव कर रही थी और न ही दरवाजा खोल रही थी.

प्रेम नारायण के दिल की धडक़नें बढ़ती जा रही थीं. मोबाइल पर कई बार रिंग बज कर बंद हो चुकी थी. वह बाहर से आवाज भी लगा रहे थे. इस बीच 3-4 बार नीचे भी उतर कर दोबारा निशा के कमरे के बाहर भी जा चुके थे. करीब आधे घंटे तक परेशान होने के बाद उन्होंने अपने नाती को आवाज लगाई. वह तुरंत नीचे से ऊपर आ गया. नाती ने कहा, ‘‘नानाजी, मैं दरवाजा खोलता हूं. मुझे भीतर से बंद दरवाजा खोलने की तरकीब मालूम है.’’

यह कहते हुए निशा के बेटे ने खिडक़ी से हाथ डाल कर भीतर से बंद दरवाजा खोल दिया और भीतर चला गया. भीतर पहुंचते ही वह जोर से चीखा, ‘‘मां टंगी है… मां टंगी है नाना…’’ नाती की चीख सुनते ही प्रेम नारायण का दिल बैठ गया. घबराए हुए वह कमरे में गए. देखा, बेटी निशा पंखे से लटक रही थी. वह यह दृश्य देख कर हैरान रह गए. किसी तरह खुद को संभाला और बेटी के पैरों को पकड़ कर ऊपर की ओर उठाने की कोशिश करने लगे. सोचा, शायद उस की सांसें अभी उखड़ी न हों, किंतु बेटी के हाथपैर कडक़ हो चुके थे.

उन्हें कुछ समझ में नहीं आया. वहीं सिर पकड़े बैठ गए. पास में ही नाती भी मां को इस हालत में देख कर रोने लगा था. उन्होंने उस के आंसू पोंछे, चुप करवाया और फोन लाने को कहा. फिर छोटी बेटी लक्ष्मी और उस के पति को फोन कर पूरी बात बताई. दोनों उसी शहर में रहते थे. वे भागेभागे आ गए और पुलिस को सूचना दी. कुछ देर बाद पुलिस भी दलबल के साथ आ गई. पुलिस ने निशा को पंखे से उतार कर पंचनामा तैयार किया और पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया.

पति को छोड़ मायके में रहने लगी निशा…

निशा प्रेम नरायण सोनी की बड़ी बेटी थी. 1999 में मध्य प्रदेश के सागर शहर के रहने वाले योगेश सोनी के साथ उस की शादी हुई थी. जबकि छोटी बेटी लक्ष्मी का विवाह विदिशा में ही हुआ था. निशा की ससुराल में सब कुछ अच्छा था. सुखीसंपन्न परिवार पा कर निशा जितनी खुश थी, उतने ही संतुष्ट और खुश प्रेम नारायण और उन की पत्नी थी. ससुराल में निशा की सास एक स्कूल चलाती थीं. पढ़ाई में रुचि रखने वाली निशा के मन की मुराद पूरी हो गई थी. ससुराल में उस ने सास के साथ स्कूल के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था. इस काम में उस का पति योगेश भी सहयोग करने लगा था.

समय बीतने के साथ निशा 2 बेटियों और एक बेटे की मां बन गई. इसी दरम्यान उस की सास का निधन हो गया. घरेलू कामकाज बढ़ जाने के कारण स्कूल की देखरेख में बाधा आ खड़ी हो गई. अकेली निशा उसे संभाल नहीं पाई, जिस से स्कूल बंद हो गया. दूसरी तरफ पति योगेश की कोई नियमित आय नहीं थी. वह एक तरह से बेरोजगार था. इस कारण बच्चों की परवरिश की पूरी जिम्मेदारी निशा पर आ गई थी. आय का कोई ठोस साधन नहीं होने के कारण निशा अपने पति योगेश और बच्चों के साथ विदिशा आ गई. वहीं रह कर उन्होंने कोई कामधंधा करने की योजना बनाई.

प्रेम नारायण ने उन्हें अपने ही घर के ऊपर वाले कमरे में रहने को जगह दे दी. निशा का परिवार वहीं शिफ्ट हो गया. परिवार पालने के लिए निशा ने इंदु जैन हौस्पिटल में नर्स की नौकरी कर ली. इस के विपरीत योगेश बेरोजगार बना रहा. नौकरी तलाश करता रहा, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पाई थी. वह निठल्ले की तरह घर पर पड़ा रहता था. सुबहशाम खाना और घूमनाफिरना, यही उस की दिनचर्या बन चुकी थी. घरेलू खर्च के लिए गाहेबगाहे निशा के पिता ही उस की मदद करते रहते थे.

एक दिन प्रेम नारायण ने योगेश को कोई कामधंधा करने की सलाह दी. उन्होंने प्राइवेट नौकरी के लिए कहीं बात करने के बारे में भी कहा. इस पर योगेश बोला कि वह कोई ऐसावैसा काम नहीं करेगा. क्योंकि वह जीवन में कुछ बड़ा करना चाहता है. योगेश की बातें दिन में देखे गए सपने जैसे ही थीं. जबकि निशा नौकरी करने के साथसाथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी करने लगी थी. उस ने 2-3 परीक्षाएं भी दीं, लेकिन उस में सफल नहीं हो पाई. फिर भी वह तैयारी करती रही.

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