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पुनीत तिवारी के इस तरह प्यार का इजहार करने से अंजू ने कुछ न कहते हुए मुसकरा दिया. इस से पुनीत का हौसला बढ़ गया. उस ने दोस्तों से सुन रखा था कि लड़की हंसी तो समझो फंसी. पुनीत ने धीरे से उस का हाथ पकड़ा और मंडप के पीछे ले जा कर बोला, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘अंजू नाम है मेरा और तुम्हारा?’’ शरमाते हुए अंजू बोली.

‘‘मेरा नाम पुनीत है. मैं आंचलखेड़ा गांव में रहता हूं. मैं अपने दोस्त की बारात में आया हूं,’’ पुनीत बोला.

‘‘मैं सोहागपुर से मौसी की लड़की की शादी में यहां आई हूं,’’ अंजू ने भी अपने बारे में बताया.

लोग वरमाला मंडप में फोटोग्राफी में लगे हुए थे, उधर पुनीत और अंजू के दिलों में प्यार के बीज अंकुरित हो रहे थे.

प्रेम की आग एक बार लग जाए तो बुझाए नहीं बुझती. पुनीत और अंजू के साथ भी यही हुआ. पुनीत अंजू से मिलने सोहागपुर आने लगा. इधर अंजू के पिता राजाराम गोस्वामी उस के लिए लड़का तलाश रहे थे.

एक दिन मुलाकात के दौरान जब अंजू ने पुनीत को यह बात बताई कि उस के घर वाले शादी के लिए लड़का खोज रहे हैं तो पुनीत ने उस से कहा, ‘‘अंजू, कोई तुम्हें मुझ से नहीं छीन सकता, तुम से तो शादी मैं ही करूंगा.’’

‘‘पर पुनीत हम दोनों एक ही जातिबिरादरी के नहीं है, घरपरिवार के लोग हमारी शादी को राजी कैसे होंगे?’’ अंजू ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘तुम घरपरिवार के लोगों की चिंता मत करो, यदि मुझ से सच्चा प्यार करती हो तो मेरे संग चलने को तैयार हो जाओ, मैं तुम्हें पलकों पर बिठा कर रखूंगा.’’ पुनीत ने उस के सिर पर हाथ रखते हुए कहा.

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