सुबह के 4 बजे थे. बाहर रात का अंधेरा अभी तक दामन फैलाए हुए था, लेकिन मेरठ के लाला लाजपतराय मैडिकल कालेज स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल चिकित्सालय के इमरजेंसी वार्ड में जलती ट्यूब लाइटों की रोशनी फैली थी. हल्की रोशनी के बावजूद कई मरीज नींद में थे. तभी अचानक वहां अफरातफरी मच गई. दरअसल हुआ यह कि एक मरीज का तीमारदार रविंद्र अपनी मरीज को देखने के लिए उठा तो उस ने बेड नंबर 12 के मरीज की गरदन से खून बहते देखा. वह तड़पते हुए हाथपैर पटक रहा था.
बीते दिन जब उस मरीज को लाया गया था तो वह बेहोश था. उसे काफी चोटें लगी थीं. बाद में पता चला कि उस के पैर में फै्रक्चर है. डाक्टरों ने उस की मरहमपट्टी कर के उस के पैर पर प्लास्टर चढ़ा दिया था. उस की गरदन से खून बहता देख रविंद्र चिल्लाया, ‘‘डाक्टर साहब… डाक्टर साहब…’’
‘‘क्या हुआ, क्यों चिल्ला रहे हो?’’ वहां से कुछ दूर बैठे वार्ड बौय दीपक ने चौंक कर पूछा, तो रविंद्र ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘जल्दी आइए, किसी ने इस की गरदन काट दी है.’’ यह सुन कर दीपक सन्न रह गया. उस ने यह बात ड्यूटी पर मौजूद स्टाफ को बताई. खबर मिलते ही डा. हर्षवर्धन व अन्य स्टाफ वहां आ गया. बेड पर खून से लथपथ पड़े उस युवक की हालत देख सभी सन्न रह गए. उस की गरदन को धारदार हथियार से रेता गया था. खून लगातार बह रहा था, बिस्तर खून से तरबतर हो चुका था. उस की हालत बहुत चिंताजनक थी.
डा. हर्षवर्धन ने उस की गरदन को देखने के बाद खून रोकने के लिए रुई रख कर पट्टी लपेट दी. उन्होंने कांपते हाथों से उसे कुछ इंजेक्शन भी दिए. निस्संदेह वह मौत के बेहद करीब था. उपचार के बावजूद उस ने कुछ ही देर में लंबीलंबी सांसें लेते हुए दम तोड़ दिया. तब तक वहां अन्य मरीजों के तीमारदार भी जमा हो गए थे. सभी सहमे हुए थे. जाहिर तौर पर यह हत्या का मामला था. इमरजेंसी वार्ड में एक मरीज की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी और किसी को पता तक नहीं चला था, यह हैरत की बात थी.
इमरजेंसी वार्ड में रात की ड्यूटी पर डा. हर्षवर्धन के अलावा स्टाफ नर्स महिमा सिंह और नर्सिंग छात्रा अंजलि सिंह सहित 8 लोगों का स्टाफ था. इन लोगों के अलावा वार्ड में दरजनों मरीज और उन के तीमारदार भी थे. वार्ड में एंट्री करते ही अल्युमिनियम के फ्रेम में जड़े शीशों वाला स्टाफ रूम था. जिस में आरपार दिखाई देता था. उस रूम से ही अटैच इमरजेंसी वार्ड था जिस में दोनों साइडों में 21 बेड लगे हुए थे.
यह चूंकि मेरठ का एकलौता बड़ा सरकारी अस्पताल था इसलिए वहां चौबीसों घंटे आनेजाने वालों का सिलसिला लगा रहता था. इस के अलावा स्टाफ भी ड्यूटी पर रहता था. बाहर से आने वाले सभी मरीजों को सब से पहले इमरजेंसी में ही लाया जाता था. तत्कालिक चिकित्सा के बाद में उन्हें अलगअलग वार्डों में शिफ्ट कर दिया जाता था.
जिस युवक का इमरजेंसी वार्ड में कत्ल किया गया था उसे पिछले दिन ही वहां भरती कराया गया था. हुआ यह था कि कैंट रेलवे स्टेशन के माल गोदाम के सामने लगभग साढ़े 11 बजे सफाईकर्मी रामफल व राजेंद्र ने उस युवक को 2 रेलवे ट्रैक के बीच बेहोश पड़े देखा था. उस वक्त वह बुरी तरह घायल था. कुछ ही देर पहले वहां से जालंधर एक्सप्रेस व एक अन्य टे्रन एकदूसरे को क्रौस करते हुए अलगअलग ट्रैक से गुजरी थीं.
राजेंद्र और रामफल ने घायल युवक को देखने के बाद इस की सूचना रेलवे पुलिस को दी. पुलिस ने उसे उठा कर प्यारे लाल शर्मा जिला चिकित्सालय में भरती करा दिया था. उस की हालत चूंकि गंभीर थी इसलिए प्राथमिक उपचार के बाद उसे सरकारी एंबुलेंस से मैडिकल कालेज स्थित अस्पताल में रेफर कर दिया गया था. युवक के शरीर पर काफी चोटें थीं और उस का एक पैर रेल की चपेट में आ कर टूट चुका था. डाक्टरों का अनुमान था कि उस के साथ यह हादसा रेल से गिरने की वजह से हुआ होगा.
पुलिस ने भी उस युवक के रेल से गिरने की वजह जानने की कोशिश नहीं की थी क्योंकि प्रथम दृष्टया यह हादसा लग रहा था. इसीलिए पुलिस ने न तो इस बाबत कोई मामला दर्ज किया था और न यह जानने की कोशिश की थी कि हादसा कैसे हुआ? एक परेशानी यह भी थी कि घटना का प्रत्यक्षदर्शी कोई भी नहीं था. युवक चूंकि बेहोश था इसलिए यह भी पता नहीं लग सका था कि वह कौन है. पहचान के लिए पुलिस ने उस की तलाशी भी ली, लेकिन उस के पास कोई पहचान पत्र या मोबाइल नंबर वगैरह नहीं मिला था.
बहरहाल, डाक्टरों ने उस की मरहमपट्टी की और एक्सरे के बाद पैर पर प्लास्टर चढ़ा दिया. इस के बाद उसे इमरजेंसी वार्ड के बेड नंबर-12 पर शिफ्ट कर दिया गया. इस के बाद भी युवक की बेहोशी नहीं टूटी थी. डाक्टरों को उम्मीद थी कि उसे सुबह तक होश आ जाएगा. लेकिन वह होश में आ कर अपनी पहचान और हादसे के बारे में कुछ बता पाता इस से पहले ही अलसुबह उस की हत्या कर दी गई थी.
वार्ड में हत्या के मामले में स्टाफ के लोग फंस सकते थे इसलिए तुरंत अस्पताल अधीक्षक डा. सुभाष सिंह को इस मामले की जानकारी दी गई. खबर मिलते ही वह आ गए. जरूरी पूछताछ के बाद उन्होंने इस की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना पा कर थाना मैडिकल प्रभारी राकेश सिसौदिया घटनास्थल पर आ गए. दिन निकलते ही इस वारदात ने सनसनी फैला दी. चौंकाने वाली बात यह थी कि वारदात अस्पताल के अंदर हुई थी. अस्पताल में हत्या की खबर मिली तो डीआईजी के. सत्यनारायण, एसएसपी ओंकार सिंह, एसपी सिटी ओमप्रकाश सिंह और सीओ सिविल लाइंस विकास त्रिपाठी भी घटनास्थल पर आ गए.
पुलिस अधिकारियों ने इस मामले की हर नजरिए से जांचपड़ताल शुरू की. पूछताछ में पता चला कि वार्ड में मरीजों के नामपते की तो एंट्री होती थी, लेकिन उन से मिलने कौन आताजाता है इस का कोई ब्यौरा नहीं रखा जाता था. वार्ड में सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगे थे. पुलिस अधिकारी अस्पताल कर्मियों पर इसलिए नाराज थे क्योंकि हत्या जैसा गंभीर अपराध हो गया था और उन्हें पता तक नहीं चला था.
अधीक्षक डा. सुभाष सिंह ने मरीजों और उन्हें भरती कराने वालों की सूची पुलिस को उपलब्ध करा दी. सीओ विकास त्रिपाठी ने उस एंबुलेंस चालक राहुल से पूछताछ की जिस ने उस युवक को जिला अस्पताल ला कर भरती कराया था. उस से काम की एक बात यह पता चली कि जब उस युवक को अस्पताल लाया जा रहा था तो वहां एक युवक मौजूद था जो उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई प्राइवेट वाहन लाने की बात कर रहा था. लेकिन जब उस से प्राइवेट वाहन लाने की वजह पूछी गई तो वह टालमटोल करने लगा.