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या‘कांटा बुरा करैत का और भादों की घाम, सौत बुरी हो चून की और साझे का काम’.

कहावत सौ फीसदी सच है लेकिन 36 वर्षीय हनीफा बेगम पर यह कहावत लागू नहीं हुई. उस के पति अंसार शाह ने जब वंदना सोनी के बारे में उसे बताया कि उस से उस के शारीरिक संबंध हैं और वह भी बीवी जैसी ही है तो न जाने क्यों हनीफा उस पर भड़की नहीं थी, न ही उस ने मर्द जात को कोसा था. और न ही उस के सुहाग पर डाका डालने वाली वंदना को भलाबुरा कहा था. भोपाल इंदौर हाइवे के बीचोबीच बसे छोटे से कस्बे आष्टा को देख गंगाजमुनी तहजीब की यादें ताजा हो जाती हैं. इस कस्बे के हिंदू मुसलिम बड़े सद्भाव से रहते हैं और आमतौर पर दंगेफसाद और धार्मिक विवादों से उन का कोई लेनादेना नहीं है.

मारुपुरा आष्टा का पुराना घना मोहल्ला है. अन्नू शाह यहां के पुराने बाशिंदे हैं, जिन्हें इस कस्बे में हर कोई जानता है. उन का बेटा अंसार शाह बस कंडक्टर है. अंसार बहुत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक है. 3 बच्चों के पिता अंसार की जिंदगी में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन करीब 3 साल पहले वंदना उस की जिंदगी में आई तो जिंदगी के साथसाथ दिल में भी तूफान मचा गई.

34 वर्षीय वंदना भरेपूरे बदन की मालकिन होने के साथ सादगी भरे सौंदर्य की भी मिसाल थी. मूलरूप से भोपाल के नजदीक मंडीदीप की रहने वाली वंदना ने इस उम्र में आ कर भी शादी नहीं की थी. वह अभी घरगृहस्थी के झंझट में इसलिए भी नहीं पड़ना चाहती थी ताकि घर वालों की मदद कर सके. उस के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. दोनों बड़ी बहनों की शादियों में मांबाप का जमा किया हुआ सारा पैसा लग गया था.

पढ़लिख कर वंदना ने नौकरी के लिए हाथपांव मारे तो उसे स्वास्थ्य विभाग में अपनी मां की तरह एएनएम के पद पर नौकरी मिल गई. एएनएम गैरतकनीकी पद है जिसे आम लोग नर्स ही कहते और समझते हैं. आजकल सरकारी नौकरी चाहे जो भी हो, किसी भी बेरोजगार के लिए किसी वरदान से कम नहीं होती. नौकरी लग गई तो वंदना जिंदगी भर के लिए बेफिक्र हो गई. एएनएम की नौकरी हालांकि बहुत आसान नहीं है, क्योंकि इस में अपने क्षेत्र के गांवगांव जा कर काम करना पड़ता है.

वंदना को इस में कोई खास कठिनाई नहीं हुई क्योंकि उसे इस नौकरी के बारे में बहुत कुछ पहले से ही मालूम था. कठिनाई तब पेश आई जब उस का तबादला आष्टा हो गया. चूंकि मंडीदीप में रह कर कोई 75 किलोमीटर दूर आष्टा में नौकरी करना मुश्किल था, इसलिए वंदना ने आष्टा में ही किराए का मकान ले लिया. कुछ ही दिनों में उसे आष्टा के सरकारी अस्पताल और शहर की आबोहवा समझ आ गई.

सरकारी योजनाओं के प्रचारप्रसार और ग्रामीणों को स्वास्थ्य जागरुकता के लिए प्रेरित करने के लिए उसे आसपास के गांवों में भी जाना पड़ता था. कई गांव ऐसे थे, जहां वह अपनी स्कूटी से नहीं जा सकती थी, इसलिए उस ने बस से आनाजाना शुरू कर दिया.

फील्ड की नौकरी करने वाली अधिकांश लड़कियां बस से ही सफर करती हैं, यही वंदना भी करने लगी. यह भी इत्तफाक की बात थी कि जिन गांवों की जिम्मेदारी उसे मिली थी, वहां वही बस जाती थी, जिस में अंसार कंडक्टर था. बस से अपडाउन करने वाली लड़कियों की एक बड़ी परेशानी सीट और जगह का न मिलना होती है, जिसे उस के लिए अंसार ने आसान कर दिया.

जब भी वंदना बस में चढ़ती थी तो अंसार बड़े सम्मान और नम्रता से उस के लिए सीट मुहैया करा देता था. इतना ही नहीं, बस स्टैंड के अलावा सफर के दौरान भी वह वंदना का पूरा खयाल रखता था कि उसे किसी किस्म की दिक्कत न हो. चायपानी वगैरह का इंतजाम वह दौड़ कर करता था, जिस से वंदना का दिल खुश हो जाता था. जैसा कि आमतौर पर होता है, साथ चलते और वक्त गुजारते दोनों में बातचीत होने लगी.

एक अविवाहित युवती जिस ने पहले कभी प्यार न किया हो, वह पुरुष के जिन गुणों पर रीझ सकती है वे सब अंसार में थे. धीरेधीरे कैसे और कब वह उस की तरफ आकर्षित होने लगी, इस का अहसास भी उसे नहीं हुआ. प्यार शायद इसीलिए अजीब चीज कही जाती है कि इस के होने का अहसास अकसर होने के बाद ही होता है. इधर अंसार भी देख रहा था कि वंदना मैडम का झुकाव उस की तरफ बढ़ रहा है तो पहले वह हिचकिचाया.

कम पढ़ेलिखे अंसार की हिचकिचाहट की वजहें भी वाजिब थीं. पहली वजह तो यह कि वह मुसलमान था, दूसरी यह कि वह शादीशुदा और 3 बच्चों का बाप था और तीसरी यह कि सरकारी नौकरी वाली लड़की का इश्क की हद तक झुकाव ही उस के लिए ख्वाब सरीखा था. शायद उस के बारे में जान कर अपने पांव पीछे खींच ले, इसलिए उस ने वंदना को पहले ही अपने बारे में सब कुछ बता दिया था.

अंसार के प्यार में अंधी हो चली वंदना अपनीजिंदगी के पहले और अनूठे अहसास की हत्या शायद नहीं होने देना चाहती थी, इसलिए उस ने सब कुछ कबूल कर लिया.

आग दोनों तरफ बराबरी से लगी हो तो इश्क की आंधी में अच्छेअच्छे उड़ जाते हैं. यही वंदना और अंसार के साथ हो रहा था. दोनों अब बेतकल्लुफ हो कर एकदूसरे से हर तरह की बातें करने लगे थे. मिलने की तो कोई दिक्कत थी ही नहीं. दोनों बसस्टैंड और बस में साथ रहते थे.

चाहत जब बातचीत, हंसीमजाक और कसमों वादों से आगे बढ़ते हुए शरीर की जरूरत तक आ पहुंची तो दोनों को लगा कि मोहब्बत का अलिफ बे तो बहुत पढ़ लिया, लेकिन अब मोहब्बत को उस के मुकम्मल सफर तक पहुंचा दिया जाए.

लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए एकांत का होना जरूरी था, जिस से दोनों पूरी तरह एकदूसरे के हो सकें यानी एकदूसरे में समा सकें. छोटे घने कस्बे में एकांत मिलना आसान काम भी नहीं था, लेकिन छटपटाते इन आशिकों ने उस का भी रास्ता निकाल लिया.

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