कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पहली दिसंबर 2022 की सुबह जब चटक धूप खिली तो पश्चिमी दिल्ली के थाना तिलक नगर क्षेत्र में स्थित गणेश नगर में रहने वाली नीतू की आंखें खुलीं. उसे अपने सिर में भारीपन और हलका दर्द महसूस हुआ तो उस ने कस कर आंखें बंद कर लीं. इस से उसे थोड़ी राहत मिली. वह उठ कर पलंग पर बैठ गई. नजर सामने दीवार घड़ी पर गई तो चौंक पड़ी, घड़ी में साढ़े 8 बज रहे थे.

उसे हैरानी हुई. इतना समय हो गया था, आज मां ने उसे चायनाश्ते के लिए नहीं जगाया था. रोज तो मां साढ़े 6-7 बजे के बीच उसे उठा कर चायनाश्ता करवा देती थीं. आज मां को क्या हुआ, कहीं बीमार तो नहीं हो गईं. उसे याद आया, कल शाम को मां को हरारत थी. मां ने खुद कहा था कि आज उसे अच्छा नहीं लग रहा है.

नीतू पलंग से नीचे उतरी तो उसे चक्कर आ गया. उस ने अगर जल्दी से पलंग न पकड़ा होता तो गिर ही पड़ती. सिर में अभी भी भारीपन था. ऐसा रोज ही होता था लेकिन आज कुछ ज्यादा ही महसूस हो रहा था.

कुछ देर तक नीतू पलंग पकड़ कर खड़ी रही. फिर धीरेधीरे कदम रखती हुई वह बाहर आ गई. जिस कमरे में मां सोती थीं, वह बंद था. कमरे के दरवाजे पर उस का अंकल मनप्रीत कुरसी पर अधलेटा पड़ा ऊंघ रहा था.

आहट सुन कर वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. नीतू को सामने देख कर उस की आंखों में गुस्सा भर आया, ‘‘तुम बाहर क्यों आई, क्या तुम्हें नहीं मालूम कि डाक्टर ने तुम्हें आराम करने की हिदायत दे रखी है. जाओ, जा कर सो जाओ.’’ मनप्रीत अंकल की आवाज में तीखापन था.

‘‘मां कहां है अंकल?’’ अंकल की बात को अनसुना करते हुए नीतू ने पूछा.

‘‘बाजार गई है, तुम जा कर सो जाओ.’’ मनप्रीत उसे डांटते हुए बोला, ‘‘जाओ अंदर.’’

नीतू के चेहरे पर डर की परछाइयां उभर आईं. वह जल्दी से पलटी और अपने पलंग पर आ कर लेट गई. उस ने आंखें बंद कर लीं लेकिन जेहन में मां का ही खयाल रखा. मां इतनी सुबह बाजार क्यों गईं? आज मां ने उसे उठा कर नाश्ता भी नहीं करवाया. खयालों में उलझी हुई नीतू को नींद ने फिर से अपने आगोश में समेट लिया.

दरअसल, वह मानसिक रोगी थी. उस का इलाज एक मनोरोग चिकित्सक से चल रहा था. डाक्टर की दी हुई दवाई कल रात को अंकल ने अपने हाथों से उसे खिलाई थी. दवा खा लेने के बाद वह कब सोई, उसे होश नहीं था. सुबह भी शायद दवा का ही असर था कि वह फिर से सो गई.

करीब 11 बजे उस की दोबारा से आंखें खुलीं. अब सिर का भारीपन न के बराबर था. मां बाजार से आ गई होंगी. यह सोच कर वह पलंग से उतरी और दबेपांव दरवाजे की तरफ बढ़ गई. वह मनप्रीत अंकल से डरती थी. अगर मनप्रीत अभी भी बाहर बैठा होगा तो उसे फिर डांटेगा. वह डरतेडरते दरवाजे पर आई और गरदन बाहर निकाल कर उस ने मनप्रीत अंकल की टोह ली. मनप्रीत अब कुरसी पर नहीं था.

मां के कमरे का दरवाजा अभी भी बंद था. वह बाहर निकल आई. अंकल मनप्रीत बालकनी में भी नहीं था. मनप्रीत का डर नीतू के दिमाग से जाता रहा. वह मां के कमरे के दरवाजे पर आई तो उसे दरवाजे पर ताला लगा दिखाई दिया.

मां ताला लगा कर तो नहीं जातीं, साढ़े 8 बजे वह उठी थी तब से अब तक ढाई घंटे बीत गए थे. मां का अतापता नहीं था. अगर मां सुबहसुबह बाजार गईं तो अब तक उन्हें लौट आना चाहिए था.

मां के लिए परेशान नीतू दरवाजे के पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई. उस के हाथ कुरसी के हत्थे से टकराए तो हाथ में कुछ चिपचिपा सा लगा. उस ने हाथ को हत्थे से उठा कर देखा तो उस पर खून लगा था. नीतू घबरा गई. उस ने देखा कुरसी का हत्था खून से सना हुआ था. इसी कुरसी पर अंकल मनप्रीत बैठा हुआ था.

‘क्या यह खून उस के द्वारा कुरसी के हत्थे पर लगा है? अगर हां तो यह खून किस का है.’ यह विचार आने के बाद नीतू की घबराहट बढ़ती गई. मन में आशंकाएं उमड़ने लगीं. वह तेजी से अपने मकान से निकली और किसी जानने वाले के फोन से अपने चचेरे भाई राकेश को फोन किया. उस ने भाई से कहा कि वह तुरंत यहां गणेश नगर आ गया.

चचेरा भाई राकेश आधे घंटे में ही गणेश नगर आ गया. नीतू मकान के बाहर ही उसे मिल गई.

‘‘क्या हुआ नीतू, मुझे तुरंत आने को क्यों कहा? घर में तो सब ठीक है न?’’ राकेश ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘कुछ ठीक नहीं है भाई, मां सुबह से नजर नहीं आ रही हैं. मैं सुबह साढ़े 8 बजे सो कर उठी थी, तब मनप्रीत अंकल कुरसी पर बैठा था. उस ने मुझे डांटा और सो जाने को कहा. मैं अपने कमरे में आ कर लेटी तो सो गई. जब आंखें खुलीं तो मनप्रीत अंकल को गायब पाया, वह जिस कुरसी पर बैठा था, उस का हत्था खून से सना है.’’

‘‘मांजी कहां जा सकती हैं,’’ राकेश बड़बड़ाया. फिर नीतू से पूछा, ‘‘वह कुरसी कहां है जिस पर खून लगा हुआ है?’’

नीतू उसे घर के अंदर ले आई. वह 2 कमरों का सैट था. एक कमरा नीतू के लिए था, दूसरे में नीतू की मां रेखा, मनप्रीत के साथ रहती थी. कमरे के दरवाजे पर ताला और कुरसी पर लगा खून देख कर राकेश को समझते देर नहीं लगी कि कुछ न कुछ गड़बड़ है.

उस ने मकान मालकिन और 2-3 पड़ोसियों को यह बात बताई तो उन्होंने पुलिस को फोन करने की सलाह दी. राकेश ने अपने मोबाइल फोन से पीसीआर का नंबर मिला कर उन्हें सारी बात बताई और गणेश नगर आने की प्रार्थना की.

पुलिस के आने तक आसपास इस बात की खबर फैल गई थी कि रेखा रानी सुबह से लापता है, उस के दरवाजे पर ताला लगा है और दरवाजे पर रखी कुरसी का हत्था खून से सना है. रेखा का पति मनप्रीत भी कहीं नजर नहीं आ रहा था, इसलिए अनेक प्रकार की आशंकाएं वहां चर्चा का विषय बनी हुई थीं.

पुलिस जब गणेश नगर के ए-651 मकान के सामने पहुंची तो मकान के बाहर अच्छीखासी भीड़ जमा हो चुकी थी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...