डा. डी. विजया राजकुमारी की देखरेख में चल रहा किडनी गैंग गरीब लोगों की किडनी 4-5 लाख में खरीद कर 35-40 लाख रुपए में बेचता था. आप भी जानें कि गैंग के सदस्य भारत के ही नहीं, बल्कि बांग्लादेश के लोगों को किस तरह अपने जाल में फांस कर अपने काम को अंजाम देते थे.

रात के 9 बजे का समय होगा. दक्षिणपूर्वी दिल्ली के जसोला क्षेत्र में स्थित एक मुसलिम ढाबे पर 3 लोग आए. तीनों शक्लसूरत और पहनावे से बांग्लादेशी मुसलमान लग रहे थे.  तीनों सांवले रंग के और 30 से 40 की उम्र  के लपेटे में थे. इन के पहनावे और शक्लसूरत से लग रहा था कि यह बहुत गरीब तबके के हैं. तीनों आ कर खुले आसमान के नीचे लगी टेबल के इर्दगिर्द बिछी कुरसियों पर बैठ गए. इन तीनों में से एक व्यक्ति काफी परेशान दिखाई दे रहा था. उस के चेहरे पर चिंता के भाव थे. वह गुमसुम भी था, जबकि उस के साथी के चेहरे खिले हुए नजर आ रहे थे. उन के बैठते ही एक वेटर उन के पास आ कर अदब से बोला, ''क्या खाएंगे जनाब?’’

''3 हाफहाफ प्लेट कोरमा और रूमाली रोटी ले आओ,’’ उन में से एक व्यक्ति ने और्डर दिया. वेटर वहां से चला गया तो परेशान सा दिखने वाला व्यक्ति फंसे स्वर में बोला, ''मैं कोरमा नहीं दाल खाऊंगा. कोरमा मेरे गले से इस हालत में नीचे नहीं उतरेगा.’’ ''क्यों?’’ और्डर देने वाला व्यक्ति उसे घूरते हुए बोला, ''क्या तेरे गले का सुराख बंद हो गया है?’’ ''ऐसी बात नहीं है इकबाल, बस मेरी इच्छा नहीं हो रही है.’’ 

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