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अपने कारनामों से विरंची राजपूत बिरादरी की आंखों का किरकिरी बन गया. इस वजह से उस की हत्या कर दी गई. उस समय अनंत सिंह की उम्र मात्र 9 साल थी. वह पांचवीं में पढ़ रहा था. भाई की हत्या ने उस के मन पर गहरा असर डाला.

विरंची की हत्या के बाद विरोधियों ने बालक अनंत सिंह को चोरी के आरोप में बाल सुधार गृह भिजवा दिया. डेढ़ साल की सजा काट कर बाहर आया तो अनंत सिंह टूट चुका था. उस ने सोचा कि अगर बिना जुर्म किए सजा हो सकती है तो क्यों न जुर्म कर के सजा काटी जाए.

आगे स्कूल जाने के बजाय अनंत सिंह अपराध की डगर पर चल पड़ा. हाथों ने कलम के बजाय आग उगलने वाले खतरनाक हथियार थाम लिए. अपने कारनामों की वजह से वजह बाहुबली बन कर विधायक ही नहीं बने, बल्कि प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते भी बन गए. उन्हें छोटे सरकार कहा जाने लगा.

बाढ़ की राजनीति राजपूतों और भूमिहारों, 2 खेमों में बंटी थी. राजपूतों और भूमिहारों के बीच 36 का आंकड़ा था. इस की नींव साल 1990 में तब पड़ी थी, जब बाढ़ से राष्ट्रीय जनता दल के प्रत्याशी विजयकृष्ण और जनता दल (युनाइटेड) से अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह मैदान में उतरे थे. दिलीप सिंह को बाढ़ के भूमिहारों ने अपना नेता मान लिया था. दोनों के बीच कांटे की टक्कर थी. अंतत: विजयकृष्ण ने बाजी मार ली. हार के बाद दिलीप सिंह विधायक विजयकृष्ण के खून के प्यासे हो गए.

अब तक अनंत सिंह की मोकामा में तूती बोलने लगी थी. राजनीति का ककहरा तक न जानने वाले अनंत सिंह ताकत के बल पर मोकामा और बाढ़ में राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाडऩे की ताकत रखने लगे थे. भाई की हार के बाद अनंत सिंह की राजनीति में जाने की इच्छा जाग उठी. राजनीति के अखाड़े में अपना सितारा बुलंद करने के लिए उन्होंने लालूप्रसाद यादव की पार्टी जनता दल का दामन थाम लिया. तब जनता दल एक ही पार्टी थी. लालूप्रसाद यादव और शरद यादव उस के खेवनहार थे.

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