Emotional Story : 6 दिन से लापता कैप्टन का शव झील से कैसे मिला

Emotional Story : पैरा स्पैशल फोर्सेज का कमांडो बनना आसान नहीं है. 3 साल की ट्रैनिंग के बाद मिलती है कामयाबी, वह भी सब को नहीं. कैप्टन अंकित गुप्ता ने कामयाबी तो हासिल कर ली थी, लेकिन…

राजस्थान में सूर्यनगरी के नाम से विख्यात जोधपुर शहर के पश्चिम में एक कृत्रिम झील है, जिस का नाम कायलाना है. इस झील को तखतसागर झील के नाम से ज्यादा जानते हैं. लगभग 84 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाली कायलाना झील को सन 1872 में राजा प्रतापसिंह ने बनवाया था. उस समय इस झील को बनाने के लिए जोधपुर के 2 राजाओं भीमसिंह और तखतसिंह के बाग और महलों की जमीन भी काम में ले ली गई थी. इसीलिए इस झील को राजा तखतसिंह के नाम पर तखतसागर के नाम से ज्यादा जानते हैं. इस झील के कुछ हिस्से में चट्टानें भी हैं. झील की औसत गहराई तकरीबन 45 से 50 फुट है. झील में हाथी नहर से पानी आता है.

हाथी नहर राजस्थान की जीवनदायिनी इंदिरा गांधी नहर से जुड़ी है. कायलाना और तखतसागर झील से जोधपुर शहर और आसपास के उपनगरों को पीने के पानी की सप्लाई होती है. इस साल 7 जनवरी को भारतीय थल सेना की स्पैशल फोर्स 10 पैरा को देश की बेस्ट यूनिट चुना गया था. इस यूनिट के कमांडो स्पैशल औपरेशन ड्रिल हेलिकास्टिंग ट्रैनिंग करने के लिए जोधपुर की तखतसागर झील पर आए थे. हेलिकास्टिंग में कमांडोज को हेलिकौप्टर से पानी में कूदना, बोट में सवार होना और दुश्मन पर हमले का अभ्यास करना था. दोपहर में ट्रैनिंग ड्रिल के दौरान 4 कमांडो हथियारों के साथ स्वदेशी हेलिकौप्टर धु्रव से झील के पानी में कूदे.

इन में से 3 कमांडो तो बिजली की तेजी से हथियारों के साथ झील के पानी से बाहर निकल आए और हेलिकौप्टर से पहले ही फेंकी गई बोट में फुरती से सवार हो गए, लेकिन उन्हीं के साथ कूदे 28 साल के कैप्टन अंकित गुप्ता पानी से बाहर नहीं आए. कैप्टन अंकित के साथ कूदे बाकी तीनों कमांडो 2-4 मिनट इंतजार करते रहे, लेकिन पानी में कोई हलचल नजर नहीं आई, तो उन के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. ट्रैनिंग ड्रिल की मौनिटरिंग कर रहे वहां मौजूद सेना के अधिकारियों के चेहरों पर भी सलवटें पड़ने लगीं. पैरा कमांडो ने तत्काल ड्रिल रोक दी और रेस्क्यू औपरेशन शुरू कर दिया. पूरे इलाके को सील कर दिया गया. पानी में कूदे कैप्टन की तलाश में गोताखोर झील में उतारे गए. सेना के बचाव दलों ने झील में कैप्टन की खोज शुरू कर दी.

हेलिकौप्टर से विशेषज्ञों को भी बुला लिया गया. रात तक कैप्टन का कुछ पता नहीं चला, तो अभियान रोक दिया गया. भारतीय सेना में 10 पैरा स्पैशल फोर्स ऐसी यूनिट है, जिस के नाम कई कीर्तिमान हैं. सन 1971 के भारतपाक युद्ध में इस यूनिट ने छाछरी जीता था. इसी यूनिट ने पिछले साल फील्ड औपरेशन और कश्मीर में आतंकवाद निरोधी अभियान में बहुत अच्छा काम किया था. इसी की बदौलत सेना मुख्यालय ने 7 जनवरी को ही इसे चीफ औफ आर्मी स्टाफ साइटेशन यूनिट के तौर पर चुना था. पूरी यूनिट में इस की खुशियां छाई हुई थीं, लेकिन खुशी के उसी दिन दोपहर में कैप्टन के पानी में लापता होने से सारी खुशियां मातम में बदल गईं.

सेना में अफसर बनने के बाद कैप्टन अंकित कड़ी मेहनत और जज्बे की बदौलत देश की श्रेष्ठ यूनिट में से 10 पैरा के हिस्सा बने थे. मूलत: हरियाणा के गुड़गांव के रहने वाले कैप्टन अंकित आतंकवाद निरोधी अभियान में एलओसी पर रहे थे. पिछले साल 23 नवंबर को ही उन की शादी हुई थी. शादी के 45 दिन बाद ही यह हादसा हो गया. दूसरे दिन 8 जनवरी को सुबह ही कैप्टन अंकित की तलाश में नए सिरे से अभियान चलाया गया. हेलिकास्टिंग ट्रैनिंग के दौरान कैप्टन अंकित झील में स्थित सिद्धनाथ महादेव के नीचे अपने साथी कमांडो के साथ पानी में कूदे थे. उस जगह के 100 मीटर से ज्यादा दायरे में एक दरजन से अधिक बोट में सेना के अलावा आपदा राहत दल के लोग कैप्टन की दिन भर तलाश करते रहे.

गहरे पानी में सर्च औपरेशन करने वाली टीम भी दिल्ली से जोधपुर आ गई. हुक और एंकर डाल कर लगभग 46 फुट की गहराई तक कैप्टन की तलाश की गई, लेकिन कुछ पता नहीं चला. सर्च औपरेशन से जुटे विशेषज्ञों को तखतसागर झील के पेंदे में जमी चिकनी मिट्टी, दलदल और मछलियों के जाल के कारण भी काफी परेशानी आई. इन विशेषज्ञों ने आशंका जताई कि कैप्टन अंकित पानी में उगी झाडि़यों के बीच कहीं फंस गए होंगे, इसी कारण नहीं मिल पा रहे हैं. रात तक कोई परिणाम नहीं निकलने पर विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई कि तीसरे दिन शव फूलने के कारण पानी की सतह पर आ जाएगा. अभियान में जोधपुर के 71 साल के दाऊलाल मालवीय भी अपनी टीम के साथ लगातार जुटे रहे.

दाऊलाल जोधपुर के प्रमुख जलाशयों कायलाना और तखतसागर से अब तक 800 से ज्यादा शव निकाल चुके हैं. उन का कहना था कि यह पहला मौका है, जब किसी डूबे हुए आदमी को पानी से बाहर निकालने में इतना समय लग रहा है. तखतसागर और कायलाना के चप्पेचप्पे से वाकिफ दाऊलाल का मानना था कि नीचे की पथरीली सतह और चिकनी मिट्टी होने के कारण कैप्टन को तलाश करने में समय लग रहा है. पानी में कूदते समय कैप्टन अंकित ने एक जैकेट पहन रखी थी. हो सकता है उन की जैकेट किसी झाड़ी में फंस गई हो और वे बाहर नहीं निकल सके हों. कैप्टन के लापता होने से उन की पूरी यूनिट के कमांडो और बाकी अधिकारियों के चेहरों पर निराशा के भाव बढ़ते गए.

पूरी यूनिट और अधिकारियों ने दूसरे दिन भी खाना नहीं खाया. इस हादसे को ले कर सेना ने कोर्ट औफ इनक्वायरी के आदेश दे दिए. सेना के अधिकारियों की सूचना पर कैप्टन अंकित के घरवाले भी गुड़गांव से जोधपुर आ गए. तीसरे दिन 9 जनवरी को उम्मीदों का सूरज फिर उगा, लेकिन दिनभर की मशक्कत के बाद भी कैप्टन अंकित का कुछ पता नहीं चला. सेना के सब से बड़े सर्च औपरेशन में दिल्ली और मुंबई से बुलाए नेवी के मार्कोस यानी मरीन कमांडो भी जुट गए. 61 फुट भराव क्षमता वाले तखतसागर में उस समय 46 फुट पानी भरा था. 8 मरीन मार्कोस की टीमें अलगअलग बंट कर झील के निश्चित दायरे में गहराई तक चप्पेचप्पे की तलाश में जुटी रहीं.

गरुड़ कमांडो के अलावा सेना के जवान, गोताखोर, आपदा राहत दल और मालवीय बंधु दिनभर जुटे रहे, लेकिन कोई परिणाम सामने नहीं आया. विशेषज्ञों की यह थ्योरी भी फेल हो गई कि तीसरे दिन बौडी स्वत: ही पानी की सतह पर आ जाएगी. तखतसागर झील का तल समतल न हो कर पहाड़ी क्षेत्र है. साथ ही झील के अंदर गहराई में बड़ी तादाद में कंटीली झाडि़यां भी उगी हुई हैं. इसलिए विशेषज्ञों ने माना कि हेलिकौप्टर से कूद कर पानी की गहराई में जाने के दौरान कैप्टन अंकित किसी गहरी झाड़ी के बीच फंस गए होंगे. इस बात को ध्यान में रख कर गोताखोरों ने गहराई में उगी झाडि़यों में नए सिरे से कैप्टन की तलाश की, लेकिन पता नहीं लग सका.

उम्मीदें लगातार कम होती जा रही थीं, लेकिन सेना के अधिकारियों और जवानों के हौसले कमजोर नहीं पड़े थे. 3 दिन से उन के हलक से रोटी का निवाला नहीं उतरा था, फिर भी वे रोजाना दोगुने जोश से कैप्टन की तलाश में जुटे हुए थे. कैप्टन के परिवार वाले भी टकटकी लगाए दिनभर सर्च औपरेशन को देखते रहे. उन की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. वे तो क्या सेना के अधिकारी भी यह मानने को तैयार नहीं थे कि कैप्टन वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं. वैसे भी सेना में नियमानुसार शव मिलने के बाद ही आधिकारिक तौर पर इस की घोषणा की जाती है. 10 जनवरी को कैप्टन अंकित को पानी में डूबे चौथा दिन हो गया. सुबह से ही सर्च अभियान शुरू कर दिया गया.

मार्कोस कमांडो, गोताखोर, आपदा राहत दल के लोग अलगअलग टीमों में बंट कर कैप्टन की तलाश में जुटे रहे, लेकिन शाम तक तमाम कोशिशों का कोई मतलब नहीं निकला. 11 जनवरी को गोताखोरों ने पूरा तखतसागर छान मारा. दाऊलाल मालवीय के सुझाव पर सेना ने नया तरीका अपनाते हुए बड़े एयर कंप्रेशर मंगवाए. इन के पाइप को तल तक पहुंचाया गया. इस के बाद तखतसागर के ठहरे हुए पानी में एयर कंप्रेशर से तेज हवा का प्रेशर दिया गया. इस से पानी में तेज हिलोरें उठने लगीं. उम्मीद थी कि तेज हवा के प्रेशर से नीचे का पानी ऊपर आएगा और कैप्टन का शव पानी की सतह पर आ जाएगा, लेकिन इस का भी कोई परिणाम नहीं निकला.

कैप्टन पानी में जिस क्षेत्र में डूबे थे, उस के सौ मीटर से ज्यादा के दायरे में पानी में कैमरे डाल कर 200 से ज्यादा लोगों की टीम सर्च औपरेशन में जुटी रहीं. नेवी के कमांडो के अलावा विशेषज्ञ और गोताखोर भी तलाश में जुटे रहे, लेकिन सूरज अस्त होने तक कोई सफलता नहीं मिली. 5 दिन बाद भी कैप्टन अंकित का शव नहीं मिलना एक चुनौती बनता जा रहा था. अभियान में जुटे सेना के अधिकारी, कमांडो और गोताखोर नहीं समझ पा रहे थे कि क्या करें. कैप्टन के घरवालों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. सब से ज्यादा वज्रपात कैप्टन अंकित की पत्नी पर हुआ था, जिस की शादी की मेहंदी का रंग भी नहीं उतरा था. उस ने तो 45 दिन के अपने वैवाहिक जीवन में जी भर के पति का चेहरा भी नहीं देखा था.

12 जनवरी को छठे दिन भी सूरज निकलते ही सेना की टीमें आधुनिक संसाधनों से लैस हो कर कैप्टन की तलाश में पानी में उतरी. दोपहर करीब साढ़े 3 बजे कैप्टन का शव पत्थरों के बीच उसी जगह के पास मिला, जहां वे हेलिकौप्टर से कूदे थे. पानी में डाले गए एंकर में उन के कपड़े फंस गए. नाव में सवार जवानों ने काफी मशक्कत के बाद उन्हें खींच कर बाहर निकाला. 6 दिन में करीब 70 घंटे तक चले अब तक के सब से बड़े सर्च औपरेशन के बाद कैप्टन का शव देख कर वहां मौजूद लोगों की आंखों से आंसू बह निकले. पता लगने पर कैप्टन की पत्नी पछाड़ खा कर गिर गई. अंकित के मातापिता और ससुर ने उसे संभाला. सेना के अधिकारियों ने उसे ढांढस बंधाया. कैप्टन की पार्थिव देह को एंबुलैंस

से जोधपुर के मिलिट्री अस्पताल भेजा गया. 13 जनवरी को जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल में कैप्टन अंकित के शव का पोस्टमार्टम किया गया. लेकिन प्रथमदृष्टया मौत का कोई कारण सामने नहीं आया. हालांकि पोस्टमार्टम करने वाले मैडिकल ज्यूरिस्ट ने अपनी अंतिम राय नहीं दी. विसरा जांच की रिपोर्ट आने के बाद ही कैप्टन की मौत के सही कारणों का पता लगने की उम्मीद है. यह विडंबना रही कि कैप्टन मौत के कारण पानी से बाहर नहीं निकल सके. यही वजह थी कि 6 दिन तक पानी में रहने के बावजूद कैप्टन का शरीर गला नहीं था. उन के सिर, हाथपैर या शरीर के अन्य किसी हिस्से पर भी चोट का कोई निशान नहीं मिला. पानी में डूबने से मौत होने के बावजूद उन के फेफड़ों और श्वांस नली में भी पानी नहीं मिला.

दिल का दौरा पड़ने की भी पुष्टि नहीं हुई. आखिर कैप्टन की मौत की वजह क्या रही, यह पता नहीं चला. पोस्टमार्टम के बाद कैप्टन की पार्थिव देह सेना के 10 पैरा के मुख्यालय ले जाई गई. वहां उन के साथी जवानों और अधिकारियों ने उन्हें अंतिम सलामी दे कर विदा किया. जोधपुर के सैन्य क्षेत्र से सटे डिगाड़ी गांव में उसी दिन कैप्टन अंकित का सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. अंकित के भाई ने मुखाग्नि दी. अंकित की पत्नी तो अपने पति के कैप्टन और देश की सब से बेस्ट आर्मी यूनिट का कमांडो होने पर गर्व करती थी, उसे क्या पता था कि भारतीय सेना की स्पैशल फोर्सेज का कमांडो बनना बेहद मुश्किल काम है. हजारों सैनिकों में से किसी एक को ही इस का मौका मिल पाता है. इस के लिए अपनी इच्छाएं, भावनाएं और घरपरिवार सब कुछ छोड़ना पड़ता है.

सेना की भाषा में स्पैशल फोर्सेज का मतलब है-नो कैजुअल्टी. स्पैशल फोर्सेज के 20 जवान अगर लड़ने जाते हैं, तो माना जाता है कि ये सभी वापस लौट कर आएंगे. इन पैरा कमांडो का चयन दुनिया की सब से कठिन प्रतियोगिताओं में से एक है. इस का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि सेना में करीब 3 हजार स्पैशल पैरा कमांडो ही हैं. स्पैशल फोर्सेज की ट्रैनिंग करीब साढ़े 3 साल तक चलती है. इन ट्रैनिंगों में तप कर ये कमांडो इतने दक्ष हो जाते हैं कि केवल 0.27 सैकेंड के रिएक्शन टाइम में जवाबी हमला करने में सक्षम होते हैं. ये किसी भी परिस्थिति में फायर कर सकते हैं. इन का उपयोग सर्जिकल स्ट्राइक जैसे हमले करने में किया जाता है.

स्पैशल कमांडो के लिए 3 महीने का पैरा जंपिंग कोर्स जरूरी होता है. इस के बाद स्पैशल कमांडो के चयन की प्रक्रिया शुरू होती है. इस में 6 महीने तक विशेष ट्रैनिंग चलती है. इस में 10 फीसदी से भी कम जवान ही अंतिम चरण तक पहुंच पाते हैं. पैरा स्पैशल फोर्स को जंगल और डेजर्ट वारफेयर की विशेष ट्रैनिंग दी जाती है. इस में भी चयनित कई कमांडो बाहर हो जाते हैं. बचे हुए कमांडो की अगले चरण की ट्रैनिंग होती है. यह ट्रैनिंग पूरी होने पर पैरा विंग व मैरून ब्रेट प्रदान किया जाता है. सेना में मैरून ब्रेट चुनिंदा लोगों के पास ही है.

 

Delhi News : बच्चों की हत्या कर पत्नी व प्रेमिका संग इमारत से कूदा कपड़ा व्यापारी

Delhi News : गुलशन वासुदेवा एक अच्छे व्यवसाई थे. दिल्ली की गांधीनगर मार्केट में उन का जींस का कारोबार था. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ, जो उन्हें अपने 2 बच्चों की हत्या करने के बाद अपनी पत्नी और प्रेमिका संजना के साथ 8वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या करनी पड़ी…

गुलशन वासुदेवा उर्फ हरीश यूं तो मूलरूप से पूर्वी दिल्ली की झिलमिल कालोनी के रहने वाले थे. लेकिन अक्तूबर 2019 से वे इंदिरापुरम की कृष्णा अपरा सफायर सोसायटी की आठवीं मंजिल पर स्थित फ्लैट संख्या ए-806 में किराए पर आ कर रहने लगे थे. उन के साथ उन का बेटा रितिक (13), बेटी कृतिका (18), पत्नी परमीना (43) और उन की मैनेजर संजना (26) भी साथ रहती थी. गुलशन का दिल्ली के गांधीनगर की रेडीमेड कपड़ों की मार्केट में जींस का कारोबार था. कृतिका और रितिक दिल्ली के श्रेष्ठ विहार स्थित डीएवी पब्लिक स्कूल में क्रमश: 12वीं और 9वीं कक्षा में पढते थे. कृतिका की फैशन में बहुत रुचि थी. इसलिए वह 12वीं के बाद फैशन इंस्टीट्यूट में एडमिशन लेने की की भी तैयारी कर रही थी.

उस का सपना एक कामयाब फैशन डिजाइनर बनने का था. इस के लिए वह काफी मेहनत भी करती थी. गुलशन को भी अपने दोनों बच्चोें से बेहद प्यार था. इसलिए वह उन की हर ख्वाहिश पूरी करते थे. जींस के कारोबार के साथ गुलशन के कई और भी कारोबार थे. उन्होंने प्रौपर्टी के काम में काफी पैसा निवेश किया हुआ था. कोलकाता में एक बड़े बिजनेसमैन के साथ भी उन्होंने लाखों का निवेश किया हुआ था. लेकिन पिछले कुछ समय से उन का करीब 2 करोड़ से अधिक का ये निवेश बुरी तरह फंस गया था. देश में जब से नोटबंदी हुई थी उन का पैसा वापस मिलना बंद हो गया था. लेकिन इस के बावजूद गुलशन के परिवार में सब एकदूसरे से बहुत ज्यादा प्यार करते थे. गुलशन को जब भी फुरसत मिलती तो परिवार को ले कर अकसर घूमने निकल जाते थे.

जिस अपरा सफायर सोसाइटी में गुलशन 2 महीने पहले रहने के लिए आए थे, उस से पहले वह करीब 4 सालों तक पास की ही एटीएस सोसायटी में रहे थे. उस वक्त उन के साथ में 80 वर्षीय पिता नारायण दास वासुदेवा भी रहते थे. गुलशन की पत्नी परमीना बहुत समझदार महिला थीं. वह अपने बीमार ससुर की बहुत सेवा करती थीं. नारायण दास अपने बेटे से ज्यादा बहू परमीना को मानते थे. लेकिन अचानक खराब होती आर्थिक परिस्थितियों के कारण गुलशन ने जब मकान बदला तो उन्होंने पिता को बड़े भाई सतपाल के घर रहने के लिए छोड़ दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उन की आर्थिक बदहाली से पिता की सेहत पर बुरा असर पड़े.

गुलशन वासुदेवा 3 भाई व एक बहन में सब से छोटे थे. सब से बड़ी बहन विधवा है और अपने बच्चों के साथ रहती है. जबकि उन के दोनों बड़े भाई देवेंद्र और सतपाल भी विवाहित हैं. दोनों भाई अपने परिवार के साथ दिल्ली की झिलमिल कालोनी में ही रहते हैं. उन का भी गांधीनगर में रेडीमेड गारमेंट का कारोबार है. पिता नारायण दास रेलवे से सेवानिवृत्त  हुए थे. चूंकि पिता की देखभाल गुलशन ही करता था, लिहाजा पिता अपनी सारी पेंशन विधवा बेटी को भेज देते थे. हालांकि उन के दोनों बड़े भाई काफी समृद्ध हैं. इधर कई सालों से कारोबार में घाटे के बाद दोनों भाइयों ने शुरूशुरू में तो गुलशन व उस के परिवार की काफी मदद की, लेकिन बाद में अपनी खुद की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने भी सहयोग देना बंद कर दिया. यही कारण रहा कि परिवार के लोगों से गुलशन की दूरी बनने लगी थी.

एटीएस सोसाइटी में गुलशन के पास 2 बैडरूम वाला फ्लैट था, जबकि कृष्णा अपरा सोसाइटी में उन्होंने 3 बैडरूम का फ्लैट लिया था. इसी कारण उन की मैनेजर संजना भी उन के साथ आ कर रहने लगी थी. 3 दिसंबर, 2019 की सुबह के करीब पौने 5 बजे का वक्त था. कृष्णा अपरा सोसाइटी के गेट पर तैनात तीनों सुरक्षा गार्ड कुर्सियों पर बैठे अलाव से हाथ सेंकते हुए ठंड दूर करने का प्रयास कर रहे थे. अचानक उन्हें सोसाइटी के टावर-ए के पास से धड़ाम की ऐसी आवाज आई जैसे ऊपर की किसी मंजिल से कोई भारी चीज सड़क पर आ कर गिरी हो.

एक सिक्योरिटी गार्ड वहीं रुक गया, बाकी 2 गार्ड देखने के लिए उस तरफ चले गए, जहां से आवाज आई थी. दोनों गार्ड जैसे ही टावर-ए के पास पहुंचे तो बिजली की रोशनी में उन्होंने देखा कि सड़क पर 3 लोग खून से लथपथ पडे़ हैं. उन में एक पुरुष व 2 महिलाएं थीं. ऐसा लगता था जैसे ऊपर की मंजिल के किसी फ्लैट से या तो वे गिर पड़े थे या किसी ने उन्हें धक्का दिया था. गिरने के कारण आसपास काफी खून फैल चुका था. एक पुरुष व एक महिला के शरीर लगभग निर्जीव हो चुके थे, जबकि एक महिला के मुंह से दर्दभरी आह सुनाई पड़ रही थी और शरीर में हल्की हरकत भी थी. दोनों गार्डों ने तत्काल आवाज दे कर तीसरे गार्ड को भी अपने पास बुला लिया.

तीनों गार्डों ने सड़क पर खून से लथपथ तीनों लोगों को जब गौर से देखा तो वे देखते ही पहचान गए कि खून से लथपथ पडे़ वे तीनों लोग गुलशन वासुदेवा, उन की पत्नी परमीना और उन के साथ रहने वाली संजना थी. गार्डों ने दी सूचना सोसाइटी के तीनों गार्डों ने तत्काल सोसाइटी के प्रेसीडेंट व सेक्रेटरी को सूचना दी तो वे भी मौके पर आ गए. चंद मिनटों में ही सोसाइटी के अन्य लोग भी इस घटना की एकदूसरे से मिली जानकारी पा कर वहां पहुंच गए थे. दयानंद नाम के एक गार्ड ने तब तक पुलिस कंट्रोल रूम को इस हादसे की जानकारी दे दी थी.

पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना उसी समय स्थानीय इंदिरापुरम थाने को दी गई. एसएचओ इंदिरापुरम इंसपेक्टर महेंद्र सिंह पूरी रात गश्त के बाद थाने में अपने कार्यालय में आ कर बैठे थे और थकान उतारने के लिए चाय की चुस्की ले ही रहे थे कि उसी वक्त मुंशी ने आ कर उन्हें कंट्रोलरूम से अपरा सोसाइटी में हुई घटना के बारे में बताया. खबर ऐसी थी जिसे सुन कर चाय का घूंट इंसपेक्टर महेंद्र सिंह के गले से नीचे उतरना भारी हो गया उन्होंने एसआई शिशुपाल सिंह, धीरेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल धर्मेंद्र कुमार, कांस्टेबल विकासवीर, श्यामलाल को साथ लिया और अगले 10 मिनट के भीतर कृष्णा अपरा सोसाइटी पुहंच गए.

पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही सोसाइटी के लोगों ने समीप के शांति गोपाल अस्पताल में फोन कर के एंबुलेंस बुलवा ली थी. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह जब घटनास्थल पर पहुंचे तो खून से लथपथ तीनों लोगों की नब्ज टटोलने के बाद उन के सामने ये बात साफ हो चुकी थी कि गुलशन सचदेवा और उन की पत्नी परमीना दम तोड़ चुके हैं. जबकि उन के परिवार की एक दूसरी महिला सदस्य संजना की सांसें चल रही थीं. लिहाजा एंबुलेंस आने के बाद पुलिस ने आननफानन में उसे शांतिगोपाल अस्पताल भिजवा दिया. साथ में एसआई शिशुपाल सिंह भी अस्पताल पहुंचे थे. इधर, घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने का काम शुरू कर दिया. मौके पर मौजूद लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि छत से गिरने वाले गुलशन वासुदेवा और उन के घर के तीनों सदस्य थे.

सोसाइटी के लोगों से पूछताछ करने पर यह भी पता चल गया कि गुलशन टावर-ए की 8वीं मंजिल के फ्लैट संख्या 806 में अपने परिवार के साथ रहते हैं. सोसाइटी के पदाधिकारियों और व अपने सहयोगियों को ले कर इंसपेक्टर महेंद्र सिंह जब 8वीं मंजिल के उस फ्लैट पर पहुंचे तो वहां दरवाजा भीतर से लौक मिला. गार्डों की मदद से दरवाजे की कुंडी को तोड़ क र पुलिस ने भीतर प्रवेश किया. 2 लाशें और मिलीं कमरे में ड्राइंगरूम की दीवारों पर कई जगह परिवार की तसवीरें फ्रेम में लगी हुई थीं, जिस में परिवार के सदस्यों की बचपन से लेकर अभी तक की लगभग सभी तसवीरें थीं. पुलिस ने एकएक कर सभी कमरों का निरीक्षण किया, जिस के बाद पता चला कि घर के सिर्फ 3 सदस्यों की ही मौत नहीं हुई थी, बल्कि घर के भीतर भी 2 लाशें और पड़ी थीं, जिस में एक लाश लड़की व दूसरी लड़के की थी.

सोसाइटी के लोगों ने बताया कि वे गुलशन के बच्चे कृतिका व रितिक थे. उन की हत्या गला रेत कर की गई थी. उसी कमरे में एक खरगोश का शव भी मिला, ऐसा लग रहा था कि पालतू खरगोश को गरदन मरोड़ कर मारा गया था. इस बीच भोर का उजाला पूरी तरह अपने पांव पसार चुका था. 5 लोगों की मौत की खबर पूरी सोसाइटी में जंगल की आग की तरह फैल गई. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने अपने क्षेत्र के एएसपी केशव कुमार के साथ एसपी (सिटी) मनीष मिश्रा और एसएसपी सुधीर कुमार सिंह को फोन कर के पूरे हादसे की इत्तिला दे दी. मामला इतना बड़ा था कि सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद जिले के सभी आला अधिकारी मौके पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम के अलावा मीडिया के लोग भी जानकारी पा कर घटनास्थल पर पहुंच चुके थे. एक तरह से कृष्णा अपरा सोसाइटी के भीतरबाहर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई. हर कोई माजरा जानना चाहता था कि इतने बड़े हादसे की वजह आखिर क्या थी.

पुलिस के तमाम आला अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल के अलगअलग जगह से फोटो और फिंगरप्रिंट एकत्र किए. उन तमाम सबूतों को अपने कब्जे में लिया, जिस से वारदात का खुलासा करने में मदद मिल सकती थी. इस बीच वारदात की सूचना गुलशन के कुछ नजदीकी मित्रों और झिलमिल कालोनी में रहने वाले उस के परिजनों के पास भी पहुंच गई थी. सुबह होतेहोते वे भी घटनास्थल पर पहुंच गए. सभी से इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने पूछताछ की, उन के बयान दर्ज किए. करीब 11 बजतेबजते पुलिस ने पांचों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए.

इस दौरान पुलिस की जांच में पाया गया कि गुलशन वासुदेवा ने बच्चों की हत्या करने के बाद खुद भी फांसी का फंदा लगा कर आत्महत्या करने का प्रयास किया था. क्योंकि पुलिस को एक कमरे में पंखे से लगा एक फंदा भी मिला. ऐसा प्रतीत होता था शायद एक कमरे में ही 3 फंदे लगाने की जगह न होने पर उस ने आत्महत्या करने का तरीका बदला. गुलशन उस की पत्नी व साथ में ही खुदकुशी करने वाली संजना ने बालकनी में लाइन से कुर्सियां लगाईं और फिर तीनों एक साथ नीचे कूद गए. कूदते समय उस कमरे को चुना, जिस की बालकनी में जाली नहीं लगी थी. ड्राइंगरूम वाले कमरे में दीवार पर एक बड़ा प्रोजेक्टर लगाया था. बड़ा होम थिएटर भी लगा था, जिस से लग रहा था कि पूरा परिवार डिजिटल उपकरणों का काफी प्रयोग करता था.

पुलिस को एक कमरे से आला कत्ल चाकू व रस्सी बरामद हुई. संभवत: उसी से दोनों बच्चों की गला रेत कर हत्या की गई थी. कमरे से 5-5 सौ के 18 नोट और 100 के नोट भी मिले. जो कुल रकम करीब 10 हजार थी. कालोनी के लोगों से पूछताछ में पता चला कि जिस रात पूरे परिवार ने बच्चों की हत्या कर खुदकुशी की, उसी दिन उन्होंने गार्ड, मेड व सोसायटी के अन्य कर्मचारियों को जैकेट व कंबल बांटे. शाम को घर में बने मंदिर में परिवार के साथ पूजाअर्चना की थी. पूरी घटना का विश्लेषण करने के बाद एक बात स्पष्ट हो रही थी कि गुलशन नहीं चाहता था कि परिवार का कोई भी सदस्य जिंदा बचे. इस के लिए शायद उस ने मौत को गले लगाने के कई तरीके सोचे थे.

रसोई में मिली सल्फास और 3 गिलास, बाथरूम में मिली सिरींज तथा बैडरूम में मिले चाकू व रस्सी इस बात की गवाही दे रहे थे कि गुलशन हर हाल में बच्चों की हत्या करना चाहता था, ताकि उस के मरने के बाद किसी को कोई तकलीफ भरी जिंदगी न गुजारनी पड़े. ऐसा लगता था कि गुलशन ने पहले बेटाबेटी को खाने में नशीला पदार्थ मिला कर बेहोश किया, फिर सोने के बाद उन का पहले गला दबाया फिर गला काट कर हत्या कर दी. जिस के बाद गुलशन ने परमीना और संजना के साथ 8वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली.

वारदात की पहले ही कर ली थी प्लानिंग पूरे हालात को देखने के बाद ये भी स्पष्ट था कि गुलशन व दोनों महिलाओं ने सहमति से कूदने का फैसला लिया था. हो सकता है कि दोनों बच्चों को उन की मौत के बारे में पता न चले, इसलिए दोनों को पहले भारी नशे की डोज दी गई हो. अगर नशे की डोज नहीं दी होती और सहमति नहीं होती तो मारने के दौरान बच्चों के चीखनेचिल्लाने की आवाज जरूर आती. कालोनी के लोगों से पूछताछ में यह भी पता चला कि गुलशन ने काफी दिन पहले ही शायद इस हादसे को अंजाम देने का मन बना लिया था, क्योंकि उस के घर पर एक मेड कुंती काम करती थी. कुंती की मौसी गीता ने पुलिस को बताया कि गुलशन के घर पर कुंती ने एक महीने काम किया था. 27 नवंबर को गुलशन ने उस का हिसाब कर दिया. इस के बाद कहा कि वह कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं.

एक सब से अहम बात यह थी कि ड्राइंगरूम में कमरे की दीवार पर पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला, जिस में गुलशन ने लिखा था कि उन सभी की मौत के लिए उस का साढ़ू राकेश वर्मा जिम्मेदार है. साथ ही उस ने अपनी अंतिम इच्छाभी दीवार पर लिखी थी कि उन सभी के शव का एक साथ एक ही जगह पर अंतिम संस्कार किया जाए. इंसपेक्टर महेंद्र सिंह ने उच्चाधिकारियों से मशविरा करने के बाद उसी दिन इंदिरापुरम थाने में अपराध भादंसं की धारा 302 का मुकदमा पंजीकृत कर लिया. चूंकि जांच में सामने आ चुका था कि गुलशन के साढ़ू राकेश वर्मा ने उस के लाखों रुपए हड़प लिए थे और वापस नहीं किए थे, जिस के कारण आर्थिक तंगी और अवसाद में आ कर गुलशन को बच्चों की हत्या कर मौत को गले लगाना पड़ा.

जांच अधिकारी महेंद्र सिंह ने इस मामले में धारा 306 भी जोड़ दी. मौके से बरामद हुए सीरींज, सल्फास और तीनों गिलासों से बरामद हुए पेय पदार्थ, चाकू व रस्सी को जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया. गुलशन के परिजनों से बातचीत करने के बाद पुलिस को राकेश वर्मा से गुलशन के सारे लेनदेन की बात भी पता चल चुकी थी. मामला बड़ा होने से पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल ने किया. जिलाधिकारी से रात में पोस्टमार्टम की अनुमति मांगी गई. अगली सुबह तक सभी का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हुआ खुलासा इधर पांचों शवों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को प्राप्त हो गई. सामने आया कि कृतिका की मौत फंदे पर लटकाने के कारण हुई थी. जबकि बेटे रितिक की मौत चाकू से गला रेतने के कारण हुई. गुलशन, परमीना और संजना की मौत हैमरेज से हुई. यानी गुलशन ने पहले बेटी कृतिका को फंदे पर लटकाया, उस के बाद उस का गला रेता था. यानी उस का गला रेतने से पहले ही उस की मौत हो चुकी थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक गुलशन के शरीर पर 4 जगहों पर चोट आईं, जबकि परमीना और संजना के शरीर पर करीब 6-6 जगहों पर चोट आई थीं. मृतकों ने विषैला पदार्थ खाया था या नहीं, इस का खुलासा विसरा की उस रिपोर्ट के बाद ही पता चल सकेगा, जिसे पुलिस ने फोरैंसिक जांच के लिए भेजा है. इस के अलावा यह बात भी साफ हो गई कि सभी लोगों की मौत 4 घंटे के अंदर हुई थी. इसी बीच पुलिस ने अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद पांचों शव गुलशन के परिजनों को सौंप दिए. चूंकि गुलशन, उस की पत्नी परमीना व दोनों बच्चे एक ही परिवार के सदस्य थे, इसलिए परिजनों ने उन के शव की सुपुर्दगी ले कर उसी दिन हिंडन घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया. जबकि संजना जो कि गुलशन की मैनेजर थी, उस का शव लेने के लिए उस की मां नूरजहां व भाई फिरोज वहां पहुंच गए थे, इसलिए वे उस का शव ले कर गए और उसे सुपुर्दे खाक कर दिया गया.

दूसरे धर्म की थी संजना 5 लोगों की मौत के मामले में सब से अधिक चर्चा संजना पर छिड़ी हुई थी. दूसरे समुदाय की संजना गुलशन वासुदेवा परिवार के साथ जान देने को कैसे तैयार हो गई, इस पर चर्चाओं में सवाल उठाए जाने लगे. सवाल था कि संजना के साथ गुलशन के रिश्ते का नाम क्या था? हालांकि संजना की मां और भाई ने पुलिस को जो बयान दिए उस से स्थिति काफी हद तक साफ हो गई. यह बात साफ हो गई कि दिल्ली के वेलकम इलाके की रहने वाली संजना करीब 7 सालों से गुलशन के साथ थी. शुरुआत में तो वह फैक्ट्री में काम देखती थी लेकिन धीरेधीरे उस का गुलशन के घर में आनाजाना शुरू हो गया. डेढ़ महीने पहले गुलशन परिवार के साथ एटीएस सोसायटी से कृष्णा अपरा सफायर सोसायटी में शिफ्ट हुए. तब से संजना उन के साथ ही रह रही थी. लेकिन संजना का गुलशन से क्या रिश्ता था, यह किसी को नहीं पता.

संजना मुसलिम समुदाय से थी. उस का असली नाम गुलशन था. 3 साल पहले उस ने अपना नाम संजना कर लिया था. 26 वर्षीय संजना करीब 7 साल से गुलशन वासुदेवा की फैक्ट्री में बतौर सुपरवाइजर काम कर रही थी. इसी दौरान दोनों एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए. दोनों के बीच बेहद करीबी रिश्ते कायम हो गए. करीब डेढ़ साल पहले संजना घर छोड़ कर गई तो यह कह कर गई थी कि वह गुलशन वासुदेवा से शादी करने जा रही है. उस के कुछ दिन बाद वह घर आई और अपने कपड़े व अन्य सामान ले कर चली गई. संजना अब गुलशन के कारोबार में पूरी तरह से उस की मदद करने लगी थी.

परमीना के परिजनों ने पुलिस को बताया कि गुलशन वासुदेवा और संजना पहले कुछ समय तक लिवइन रिलेशन में रहे. उन्होंने शायद चोरी से शादी भी कर ली थी, इस का पता परमीना को भी हो गया था. पतिपत्नी के बीच जब इस मुद्दे पर बात हुई तो परमीना ने पति की खुशी के लिए संजना को पत्नी के तौर पर साथ में रहने की अनुमति दे दी थी. इसलिए जब गुलशन अपरा सोसाइटी में आए तो उन्होंने संजना से किराए का फ्लैट छुड़वा दिया और अपने परिवार के साथ फ्लैट में ले आए. साढ़ू पर लगाया आरोप इस बात की पुष्टि किसी ने नहीं की कि संजना वाकई गुलशन की पत्नी थी या प्रेमिका. लेकिन यह बात स्पष्ट थी कि पूरे परिवार में संजना व गुलशन के रिश्ते को मान्यता मिली हुई थी. इस से भी बड़ी बात यह थी कि संजना पूरे परिवार से इस तरह जुड़ी थी कि गुलशन के साथ उस ने भी खुशीखुशी मौत को गले लगाया था.

लेकिन सब से बड़ी बात यह थी कि आखिर गुलशन ने इतना बड़ा कदम क्यों  उठाया? जांच में यह बात भी स्पष्ट हो गई. परमीना की बड़ी बहन संगीता का पति राकेश वर्मा जो साहिबाबाद के शालीमार गार्डन में रहता है, उस ने कुछ समय पहले गुलशन से प्रौपर्टी के कारोबार में निवेश करने को कहा था. गुलशन ने उसे सवा करोड़ रुपए दिए थे. बदले में राकेश वर्मा ने 2015 में अपनी मां फूला वर्मा से शालीमार गार्डन स्थित कोठी का एग्रीमेंट गुलशन के करीबी सीए प्रवीण बख्शी के नाम करा दिया. लेकिन 2018  में उक्त कोठी 1.49 करोड़ रुपये में किसी और को बेच दी. राकेश ने खुद ही पैसा निवेश नहीं किया था बल्कि अपने कुछ दोस्तों से भी उधार पैसे ले कर निवेश करा दिया था.

इस पर गुलशन ने पैसे मांगे तो राकेश ने चैक दिए जो बाउंस हो गए. तगादा करने के बावजूद राकेश द्वारा पैसे नहीं लौटाने से गुलशन व उस का पूरा परिवार तनाव में आ गया. जिस के बाद कई बार मांगने पर भी राकेश वर्मा ने पैसे वापस नहीं लौटाए. उस का साफ कहना था कि जिन प्रौपर्टी में उस ने राकेश व उस के जरिए मिले दूसरे लोगों को पैसा निवेश किया था, उन सभी प्रौपर्टी के दाम नोटबंदी और रियल एस्टेट में आई मंदी के कारण भाव काफी गिर गए हैं. निराश हो कर गुलशन ने राकेश वर्मा और उस की मां के खिलाफ साहिबाबाद थाने में धोखाधड़ी, चेक बाउंस होने व अमानत में खयानत का मामला दर्ज कराया, जिस के आधार पर साहिबाबाद पुलिस ने मामला दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. बाद में दोनों की उच्च न्यायालय से जमानत हो गई थी.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर महेंद्र सिंह को जांचपड़ताल करने पर पता चला कि राकेश वर्मा प्रौपर्टी कारोबारी तो है ही, वह पंजाब में होटल भी चलाता था. आर्थिक तंगी के कारण वहां भी घाटा उठाना पड़ रहा था. झूठ और फरेब पर चल रहा था कारोबार उस का कारोबार झूठ और फरेब के आधार पर कई राज्यों में पसरा था. पुलिस को अभी तक कोलकाता, दिल्ली और नोएडा में उस के कारोबार की पुख्ता जानकारी मिली है. राकेश वर्मा ने पटना, उत्तराखंड और झारखंड तक में संपत्तियां बनाईं. इन संपत्तियों को बनाने के लिए उस ने केवल गुलशन वासुदेव को ही नहीं, कई अन्य जानकारों और रिश्तेदारों को मोहरा बनाया था. राकेश वर्मा ने कई जगह होटल कारोबार में भी अपने हाथ डाले थे.

गोवा जैसे कुछेक स्थानों पर होटल किराए पर ले कर संचालन किया, लेकिन हर जगह उसे घाटा उठाना पड़ा. इसलिए वह गुलशन का पैसा लौटाने में नाकामयाब रहा. एक तरफ राकेश के ऊपर कर्ज का दबाव बढ़ गया था, वहीं दूसरी ओर खरीदी या विकसित की गई प्रौपर्टी निकल नहीं पा रही थी. बीते 4-5 सालों से वह खुद भी आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था. इधर करोड़ों के नुकसान तले दबा गुलशन पहले कई सालों तक तो घाटे से उबरने की जद्दोजेहद में जुटा रहा. लेकिन अपने लेनदारों का दबाव गुलशन की सहनशक्ति से अब बाहर हो चुका था. कुछ दिन पहले कोलकाता की कंपनी में करीब 60 लाख रुपए डूबने का पता लगने पर वह बुरी तरह टूट गया और आखिरकार परिवार के खात्मे का फैसला ले लिया.

इंदिरापुरम पुलिस ने सभी तथ्य सामने आने के बाद गुलशन के साढ़ू राकेश वर्मा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. हालांकि राकेश की मां फूला देवी इस से पहले ही फरार हो गई.  इस लोमहर्षक हत्या व आत्महत्या कांड के बाद पुलिस मामले की पड़ताल कर आरोप पत्र तैयार करने के काम में लगी थी.

(कथा पुलिस व परिजनों से पूछताछ पर आधारित)