Emotional Story : पैरा स्पैशल फोर्सेज का कमांडो बनना आसान नहीं है. 3 साल की ट्रैनिंग के बाद मिलती है कामयाबी, वह भी सब को नहीं. कैप्टन अंकित गुप्ता ने कामयाबी तो हासिल कर ली थी, लेकिन…
राजस्थान में सूर्यनगरी के नाम से विख्यात जोधपुर शहर के पश्चिम में एक कृत्रिम झील है, जिस का नाम कायलाना है. इस झील को तखतसागर झील के नाम से ज्यादा जानते हैं. लगभग 84 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाली कायलाना झील को सन 1872 में राजा प्रतापसिंह ने बनवाया था. उस समय इस झील को बनाने के लिए जोधपुर के 2 राजाओं भीमसिंह और तखतसिंह के बाग और महलों की जमीन भी काम में ले ली गई थी. इसीलिए इस झील को राजा तखतसिंह के नाम पर तखतसागर के नाम से ज्यादा जानते हैं. इस झील के कुछ हिस्से में चट्टानें भी हैं. झील की औसत गहराई तकरीबन 45 से 50 फुट है. झील में हाथी नहर से पानी आता है.
हाथी नहर राजस्थान की जीवनदायिनी इंदिरा गांधी नहर से जुड़ी है. कायलाना और तखतसागर झील से जोधपुर शहर और आसपास के उपनगरों को पीने के पानी की सप्लाई होती है. इस साल 7 जनवरी को भारतीय थल सेना की स्पैशल फोर्स 10 पैरा को देश की बेस्ट यूनिट चुना गया था. इस यूनिट के कमांडो स्पैशल औपरेशन ड्रिल हेलिकास्टिंग ट्रैनिंग करने के लिए जोधपुर की तखतसागर झील पर आए थे. हेलिकास्टिंग में कमांडोज को हेलिकौप्टर से पानी में कूदना, बोट में सवार होना और दुश्मन पर हमले का अभ्यास करना था. दोपहर में ट्रैनिंग ड्रिल के दौरान 4 कमांडो हथियारों के साथ स्वदेशी हेलिकौप्टर धु्रव से झील के पानी में कूदे.
इन में से 3 कमांडो तो बिजली की तेजी से हथियारों के साथ झील के पानी से बाहर निकल आए और हेलिकौप्टर से पहले ही फेंकी गई बोट में फुरती से सवार हो गए, लेकिन उन्हीं के साथ कूदे 28 साल के कैप्टन अंकित गुप्ता पानी से बाहर नहीं आए. कैप्टन अंकित के साथ कूदे बाकी तीनों कमांडो 2-4 मिनट इंतजार करते रहे, लेकिन पानी में कोई हलचल नजर नहीं आई, तो उन के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. ट्रैनिंग ड्रिल की मौनिटरिंग कर रहे वहां मौजूद सेना के अधिकारियों के चेहरों पर भी सलवटें पड़ने लगीं. पैरा कमांडो ने तत्काल ड्रिल रोक दी और रेस्क्यू औपरेशन शुरू कर दिया. पूरे इलाके को सील कर दिया गया. पानी में कूदे कैप्टन की तलाश में गोताखोर झील में उतारे गए. सेना के बचाव दलों ने झील में कैप्टन की खोज शुरू कर दी.
हेलिकौप्टर से विशेषज्ञों को भी बुला लिया गया. रात तक कैप्टन का कुछ पता नहीं चला, तो अभियान रोक दिया गया. भारतीय सेना में 10 पैरा स्पैशल फोर्स ऐसी यूनिट है, जिस के नाम कई कीर्तिमान हैं. सन 1971 के भारतपाक युद्ध में इस यूनिट ने छाछरी जीता था. इसी यूनिट ने पिछले साल फील्ड औपरेशन और कश्मीर में आतंकवाद निरोधी अभियान में बहुत अच्छा काम किया था. इसी की बदौलत सेना मुख्यालय ने 7 जनवरी को ही इसे चीफ औफ आर्मी स्टाफ साइटेशन यूनिट के तौर पर चुना था. पूरी यूनिट में इस की खुशियां छाई हुई थीं, लेकिन खुशी के उसी दिन दोपहर में कैप्टन के पानी में लापता होने से सारी खुशियां मातम में बदल गईं.
सेना में अफसर बनने के बाद कैप्टन अंकित कड़ी मेहनत और जज्बे की बदौलत देश की श्रेष्ठ यूनिट में से 10 पैरा के हिस्सा बने थे. मूलत: हरियाणा के गुड़गांव के रहने वाले कैप्टन अंकित आतंकवाद निरोधी अभियान में एलओसी पर रहे थे. पिछले साल 23 नवंबर को ही उन की शादी हुई थी. शादी के 45 दिन बाद ही यह हादसा हो गया. दूसरे दिन 8 जनवरी को सुबह ही कैप्टन अंकित की तलाश में नए सिरे से अभियान चलाया गया. हेलिकास्टिंग ट्रैनिंग के दौरान कैप्टन अंकित झील में स्थित सिद्धनाथ महादेव के नीचे अपने साथी कमांडो के साथ पानी में कूदे थे. उस जगह के 100 मीटर से ज्यादा दायरे में एक दरजन से अधिक बोट में सेना के अलावा आपदा राहत दल के लोग कैप्टन की दिन भर तलाश करते रहे.
गहरे पानी में सर्च औपरेशन करने वाली टीम भी दिल्ली से जोधपुर आ गई. हुक और एंकर डाल कर लगभग 46 फुट की गहराई तक कैप्टन की तलाश की गई, लेकिन कुछ पता नहीं चला. सर्च औपरेशन से जुटे विशेषज्ञों को तखतसागर झील के पेंदे में जमी चिकनी मिट्टी, दलदल और मछलियों के जाल के कारण भी काफी परेशानी आई. इन विशेषज्ञों ने आशंका जताई कि कैप्टन अंकित पानी में उगी झाडि़यों के बीच कहीं फंस गए होंगे, इसी कारण नहीं मिल पा रहे हैं. रात तक कोई परिणाम नहीं निकलने पर विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई कि तीसरे दिन शव फूलने के कारण पानी की सतह पर आ जाएगा. अभियान में जोधपुर के 71 साल के दाऊलाल मालवीय भी अपनी टीम के साथ लगातार जुटे रहे.
दाऊलाल जोधपुर के प्रमुख जलाशयों कायलाना और तखतसागर से अब तक 800 से ज्यादा शव निकाल चुके हैं. उन का कहना था कि यह पहला मौका है, जब किसी डूबे हुए आदमी को पानी से बाहर निकालने में इतना समय लग रहा है. तखतसागर और कायलाना के चप्पेचप्पे से वाकिफ दाऊलाल का मानना था कि नीचे की पथरीली सतह और चिकनी मिट्टी होने के कारण कैप्टन को तलाश करने में समय लग रहा है. पानी में कूदते समय कैप्टन अंकित ने एक जैकेट पहन रखी थी. हो सकता है उन की जैकेट किसी झाड़ी में फंस गई हो और वे बाहर नहीं निकल सके हों. कैप्टन के लापता होने से उन की पूरी यूनिट के कमांडो और बाकी अधिकारियों के चेहरों पर निराशा के भाव बढ़ते गए.
पूरी यूनिट और अधिकारियों ने दूसरे दिन भी खाना नहीं खाया. इस हादसे को ले कर सेना ने कोर्ट औफ इनक्वायरी के आदेश दे दिए. सेना के अधिकारियों की सूचना पर कैप्टन अंकित के घरवाले भी गुड़गांव से जोधपुर आ गए. तीसरे दिन 9 जनवरी को उम्मीदों का सूरज फिर उगा, लेकिन दिनभर की मशक्कत के बाद भी कैप्टन अंकित का कुछ पता नहीं चला. सेना के सब से बड़े सर्च औपरेशन में दिल्ली और मुंबई से बुलाए नेवी के मार्कोस यानी मरीन कमांडो भी जुट गए. 61 फुट भराव क्षमता वाले तखतसागर में उस समय 46 फुट पानी भरा था. 8 मरीन मार्कोस की टीमें अलगअलग बंट कर झील के निश्चित दायरे में गहराई तक चप्पेचप्पे की तलाश में जुटी रहीं.
गरुड़ कमांडो के अलावा सेना के जवान, गोताखोर, आपदा राहत दल और मालवीय बंधु दिनभर जुटे रहे, लेकिन कोई परिणाम सामने नहीं आया. विशेषज्ञों की यह थ्योरी भी फेल हो गई कि तीसरे दिन बौडी स्वत: ही पानी की सतह पर आ जाएगी. तखतसागर झील का तल समतल न हो कर पहाड़ी क्षेत्र है. साथ ही झील के अंदर गहराई में बड़ी तादाद में कंटीली झाडि़यां भी उगी हुई हैं. इसलिए विशेषज्ञों ने माना कि हेलिकौप्टर से कूद कर पानी की गहराई में जाने के दौरान कैप्टन अंकित किसी गहरी झाड़ी के बीच फंस गए होंगे. इस बात को ध्यान में रख कर गोताखोरों ने गहराई में उगी झाडि़यों में नए सिरे से कैप्टन की तलाश की, लेकिन पता नहीं लग सका.
उम्मीदें लगातार कम होती जा रही थीं, लेकिन सेना के अधिकारियों और जवानों के हौसले कमजोर नहीं पड़े थे. 3 दिन से उन के हलक से रोटी का निवाला नहीं उतरा था, फिर भी वे रोजाना दोगुने जोश से कैप्टन की तलाश में जुटे हुए थे. कैप्टन के परिवार वाले भी टकटकी लगाए दिनभर सर्च औपरेशन को देखते रहे. उन की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. वे तो क्या सेना के अधिकारी भी यह मानने को तैयार नहीं थे कि कैप्टन वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं. वैसे भी सेना में नियमानुसार शव मिलने के बाद ही आधिकारिक तौर पर इस की घोषणा की जाती है. 10 जनवरी को कैप्टन अंकित को पानी में डूबे चौथा दिन हो गया. सुबह से ही सर्च अभियान शुरू कर दिया गया.
मार्कोस कमांडो, गोताखोर, आपदा राहत दल के लोग अलगअलग टीमों में बंट कर कैप्टन की तलाश में जुटे रहे, लेकिन शाम तक तमाम कोशिशों का कोई मतलब नहीं निकला. 11 जनवरी को गोताखोरों ने पूरा तखतसागर छान मारा. दाऊलाल मालवीय के सुझाव पर सेना ने नया तरीका अपनाते हुए बड़े एयर कंप्रेशर मंगवाए. इन के पाइप को तल तक पहुंचाया गया. इस के बाद तखतसागर के ठहरे हुए पानी में एयर कंप्रेशर से तेज हवा का प्रेशर दिया गया. इस से पानी में तेज हिलोरें उठने लगीं. उम्मीद थी कि तेज हवा के प्रेशर से नीचे का पानी ऊपर आएगा और कैप्टन का शव पानी की सतह पर आ जाएगा, लेकिन इस का भी कोई परिणाम नहीं निकला.
कैप्टन पानी में जिस क्षेत्र में डूबे थे, उस के सौ मीटर से ज्यादा के दायरे में पानी में कैमरे डाल कर 200 से ज्यादा लोगों की टीम सर्च औपरेशन में जुटी रहीं. नेवी के कमांडो के अलावा विशेषज्ञ और गोताखोर भी तलाश में जुटे रहे, लेकिन सूरज अस्त होने तक कोई सफलता नहीं मिली. 5 दिन बाद भी कैप्टन अंकित का शव नहीं मिलना एक चुनौती बनता जा रहा था. अभियान में जुटे सेना के अधिकारी, कमांडो और गोताखोर नहीं समझ पा रहे थे कि क्या करें. कैप्टन के घरवालों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. सब से ज्यादा वज्रपात कैप्टन अंकित की पत्नी पर हुआ था, जिस की शादी की मेहंदी का रंग भी नहीं उतरा था. उस ने तो 45 दिन के अपने वैवाहिक जीवन में जी भर के पति का चेहरा भी नहीं देखा था.
12 जनवरी को छठे दिन भी सूरज निकलते ही सेना की टीमें आधुनिक संसाधनों से लैस हो कर कैप्टन की तलाश में पानी में उतरी. दोपहर करीब साढ़े 3 बजे कैप्टन का शव पत्थरों के बीच उसी जगह के पास मिला, जहां वे हेलिकौप्टर से कूदे थे. पानी में डाले गए एंकर में उन के कपड़े फंस गए. नाव में सवार जवानों ने काफी मशक्कत के बाद उन्हें खींच कर बाहर निकाला. 6 दिन में करीब 70 घंटे तक चले अब तक के सब से बड़े सर्च औपरेशन के बाद कैप्टन का शव देख कर वहां मौजूद लोगों की आंखों से आंसू बह निकले. पता लगने पर कैप्टन की पत्नी पछाड़ खा कर गिर गई. अंकित के मातापिता और ससुर ने उसे संभाला. सेना के अधिकारियों ने उसे ढांढस बंधाया. कैप्टन की पार्थिव देह को एंबुलैंस
से जोधपुर के मिलिट्री अस्पताल भेजा गया. 13 जनवरी को जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल में कैप्टन अंकित के शव का पोस्टमार्टम किया गया. लेकिन प्रथमदृष्टया मौत का कोई कारण सामने नहीं आया. हालांकि पोस्टमार्टम करने वाले मैडिकल ज्यूरिस्ट ने अपनी अंतिम राय नहीं दी. विसरा जांच की रिपोर्ट आने के बाद ही कैप्टन की मौत के सही कारणों का पता लगने की उम्मीद है. यह विडंबना रही कि कैप्टन मौत के कारण पानी से बाहर नहीं निकल सके. यही वजह थी कि 6 दिन तक पानी में रहने के बावजूद कैप्टन का शरीर गला नहीं था. उन के सिर, हाथपैर या शरीर के अन्य किसी हिस्से पर भी चोट का कोई निशान नहीं मिला. पानी में डूबने से मौत होने के बावजूद उन के फेफड़ों और श्वांस नली में भी पानी नहीं मिला.
दिल का दौरा पड़ने की भी पुष्टि नहीं हुई. आखिर कैप्टन की मौत की वजह क्या रही, यह पता नहीं चला. पोस्टमार्टम के बाद कैप्टन की पार्थिव देह सेना के 10 पैरा के मुख्यालय ले जाई गई. वहां उन के साथी जवानों और अधिकारियों ने उन्हें अंतिम सलामी दे कर विदा किया. जोधपुर के सैन्य क्षेत्र से सटे डिगाड़ी गांव में उसी दिन कैप्टन अंकित का सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. अंकित के भाई ने मुखाग्नि दी. अंकित की पत्नी तो अपने पति के कैप्टन और देश की सब से बेस्ट आर्मी यूनिट का कमांडो होने पर गर्व करती थी, उसे क्या पता था कि भारतीय सेना की स्पैशल फोर्सेज का कमांडो बनना बेहद मुश्किल काम है. हजारों सैनिकों में से किसी एक को ही इस का मौका मिल पाता है. इस के लिए अपनी इच्छाएं, भावनाएं और घरपरिवार सब कुछ छोड़ना पड़ता है.
सेना की भाषा में स्पैशल फोर्सेज का मतलब है-नो कैजुअल्टी. स्पैशल फोर्सेज के 20 जवान अगर लड़ने जाते हैं, तो माना जाता है कि ये सभी वापस लौट कर आएंगे. इन पैरा कमांडो का चयन दुनिया की सब से कठिन प्रतियोगिताओं में से एक है. इस का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि सेना में करीब 3 हजार स्पैशल पैरा कमांडो ही हैं. स्पैशल फोर्सेज की ट्रैनिंग करीब साढ़े 3 साल तक चलती है. इन ट्रैनिंगों में तप कर ये कमांडो इतने दक्ष हो जाते हैं कि केवल 0.27 सैकेंड के रिएक्शन टाइम में जवाबी हमला करने में सक्षम होते हैं. ये किसी भी परिस्थिति में फायर कर सकते हैं. इन का उपयोग सर्जिकल स्ट्राइक जैसे हमले करने में किया जाता है.
स्पैशल कमांडो के लिए 3 महीने का पैरा जंपिंग कोर्स जरूरी होता है. इस के बाद स्पैशल कमांडो के चयन की प्रक्रिया शुरू होती है. इस में 6 महीने तक विशेष ट्रैनिंग चलती है. इस में 10 फीसदी से भी कम जवान ही अंतिम चरण तक पहुंच पाते हैं. पैरा स्पैशल फोर्स को जंगल और डेजर्ट वारफेयर की विशेष ट्रैनिंग दी जाती है. इस में भी चयनित कई कमांडो बाहर हो जाते हैं. बचे हुए कमांडो की अगले चरण की ट्रैनिंग होती है. यह ट्रैनिंग पूरी होने पर पैरा विंग व मैरून ब्रेट प्रदान किया जाता है. सेना में मैरून ब्रेट चुनिंदा लोगों के पास ही है.