औनर किलिंग के जरिए प्यार की बलि – भाग 1

गर्म और उमस भरी रात थी. रात के एक बजे थे. मोनू चौहान बिस्तर पर करवटें बदल रहा था. आंखों से नींद गायब थी. उसे बस रीना की चिंता खाए जा रही थी. बारबार रीना का चेहरा उस की आंखों के सामने घूम रहा था. सोच रहा था, ‘‘पता नहीं किस हाल में होगी वह? उस पर क्या बीत रही होगी?’’

उस का चिंतित होना स्वाभाविक था. खुद को कोस रहा था, क्योंकि उस ने ही उसे घर से भागने के लिए उकसाया था. भाग कर अलग दुनिया बसाने की उसी ने सलाह दी थी और रीना थी कि उस की बातों में तुरंत आ गई थी. बगैर आगेपीछे सोचेविचारे 2-3 जोड़ी कपड़े और मां के कुछ गहने ले कर उस के साथ घर से भाग गई थी.

रीना और मोनू बचपन से ही साथ खेलेकूदे और एक ही कक्षा में पढ़ाई करते हुए जवान हुए थे. एक वक्त ऐसा भी आया, जब जवां दिलों की धड़कनें उन्हें काफी करीब ले आई थीं. उन की धड़कनें एक साथ धड़कने को बेताब थीं. वे शादी करना चाहते थे.

यह कहें कि प्रेम संबंध को परिणय सूत्र से बांध लेना चाहते थे, लेकिन उन के घर वालों को यह मंजूर नहीं था. खासकर रीना के घर वाले इस के विरोधी थे. सामाजिक कारण था उन के परिवारों के गोत्र का एक होना, जबकि वे एक ही बिरादरी के थे.

मोनू ने जिस 17 वर्षीय रीना के साथ शादी के सपने देखे थे, वह विगत 3 दिनों से गायब थी. उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. रीना से उस के प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता 8 महीने पहले और अधिक आ गई थी. उन के मधुर संबंध उस के और रीना के घर वालों को भी पसंद नहीं थे. दोनों एक ही गोत्र के थे. इस कारण उन के घर वालों और समाज की निगाह में वे भाईबहन थे.

जब रीना और मोनू को पक्का विश्वास हो गया कि उन के घर वाले उन की किसी भी सूरत में शादी नहीं होने देंगे, तब वे घर से भाग कर देहरादून चले गए थे. हालांकि उन्हें देहरादून पहुंचते ही इस बात का तुरंत अहसास भी हो गया था कि रीना को शादी के लिए बालिग होने में अभी 3 माह बचे हुए थे.

इस कारण वे बैरंग लिफाफे  की तरह अपनेअपने घर लौट आए. उन के लौटने के बाद से मोनू की रीना से 3 दिनों तक कोई बात नहीं हो पाई थी. इसी चिंता में मोनू उस रात करवटें बदलता हुआ सुबह होने का इंतजार कर रहा था.

रीना का परिवार उत्तराखंड के हरिद्वार जिले की लक्सर कोतवाली के अंतर्गत स्थित रामपुर रायघटी गांव का रहने वाला है. यह गांव हरिद्वार से बिजनौर की ओर बहती गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है. इस क्षेत्र के अधिकतर लोग खेतीकिसानी करते हैं. उन का मुख्य कार्य खेती के अलावा गंगा की तलहटी से रेत निकालने का भी है. रीना और मोनू के घर वालों का भी मुख्य पेशा खनन के कारोबार का था.

रीना और मोनू की दोस्ती बीते 6 साल पहले तब हुई थी, जब वे गांव के ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते थे. मोनू पहले तो अकसर रीना को केवल निहारा करता था, लेकिन जल्द ही उन के बीच दोस्ती भी हो गई थी.

कुछ सालों तक उन के बीच हायहैलो और स्कूली किताबों एवं पढ़ाईलिखाई के संबंध में सीमित बातचीत की दोस्ती चलती रही. लेकिन उन की वही दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला.

फिर तो वे एकदूसरे के गजब के दीवाने बन गए. जिस दिन वे आपस में बातें नहीं कर लेते, उस दिन उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. साथसाथ उठनाबैठना, खानापीना, घंटों बैठ कर इधरउधर की बातें करना आम बात हो गई थी. उन के बीच जिंदगी की फिलास्फी के साथसाथ घरपरिवार, गांव, खेतखलिहान, सिनेमा, फैशन हीरोहीरोइनों आदि की बातें होने लगी थीं.

फिर तो दोनों की हालत ऐसी हो गई थी कि वे एक दिन भी एकदूसरे को देखे बगैर नहीं रह पाते थे. दोनों एकदूसरे के साथ शादी करने के सपने देखने लगे थे, किंतु तब कोरोना का दौर था. उन का स्कूल जाना बंद हो चुका था और प्यार के पंख लगने के बावजूद उड़ान नहीं भर पा रहे थे.

पाबंदियों और परेशानियों से भरा यह दौर 2021 का अंत आतेआते तब खत्म हुआ, जब एक रोज रीना ने ही मोनू से फोन पर कहा, ‘‘हम लोग कब तक मिलने की आस लगाए लौकडाउन में कैद बने रहेंगे?’’

‘‘थोड़ा और धैर्य रखो, कोई न कोई रास्ता निकल आएगा,’’ मोनू ने फोन पर ही उसे आश्वासन दिया था.

किंतु रीना ने बताया कि उस ने अगर जल्द कोई कदम नहीं उठाया, तब उस के खिलाफ घर वाले कुछ भी कदम उठा सकते हैं.

यह बात मोनू के दिमाग में घर कर गई और उस ने रीना को साथ ले कर देहरादून चले जाने की योजना बना ली थी. वे सुनियोजित कार्यक्रम के अनुसार देहरादून चले तो गए थे, लेकिन अगले ही रोज लौट भी आए थे.

रीना की चिंता में मोनू को कब नींद लग गई, पता ही नहीं चला. सुबह जब आंखें खुलीं, तब उस का सिर भारीभारी लग रहा था. उस के अनापशनाप अनहोनी जैसे विचार दिमाग में कौंध रहे थे. उसे सपने में रीना बेहाल दिखी थी. सपने के दृश्य किसी हौरर मूवी की तरह अभी भी उस के दिमाग में गड्डमड्ड हो गए थे.

वह उसे एकदूसरे से जोड़ कर उस का अर्थ समझने की कोशिश करने लगा. उस ने सपने में रीना को बेतहाशा दौड़तेभागते देखा था. वह ऐसे भाग रही थी मानो कोई उसे भगा रहा हो, भगाने वाले कोई नहीं दिखे थे. वह पानी की लहर पर भागती जा रही थी.

मोनू समझ गया कि इसी सपने की वजह से उस का सिर भारी लग रहा है. दिन का सूरज भी निकल आया था. बिस्तर से उठने के बाद वह सीधा बाथरूम गया. फ्रैश हो कर नाश्ता किया और हिम्मत जुटा कर लक्सर कोतवाली की ओर चल पड़ा.

करीब 15 मिनट में वह कोतवाली पहुंचा. वहां उसे कोतवाल यशपाल सिंह बिष्ट और एसएसआई अंकुर शर्मा मिले. उन्होंने मोनू से आने का कारण पूछा. सकपकाया और थोड़ा डरा हुआ मोनू कुछ समय तक उन के सामने नि:शब्द खड़ा रहा.

दो प्रेमियों की बेरहम जुदाई : जब प्यार बन गया जहर

हसनप्रीत सिंह लाइब्रेरी में अपने सामने अखबार फैलाए बैठा था. फिर भी उस का सारा ध्यान सीढि़यों की तरफ ही लगा हुआ था. सीढि़यों पर जैसे ही किसी के आने की आहट होती, वह चौकन्ना हो कर उधर देखने लगता. उसे पूरी उम्मीद थी कि रमनदीप कौर जरूर आएगी. दरअसल वह खुद ही तयशुदा वक्त से 15-20 मिनट पहले आ गया था.

कस्बे में उन दोनों की मुलाकातें न के बराबर ही हो पाती थीं. सारा दिन एकदूसरे के लिए तड़पते रहने के बावजूद वे 10-15 दिनों में एकाध बार, बस 3-4 मिनट के लिए ही मिल पाते थे. इस छोटी सी मुलाकात के दौरान भी आमतौर पर उन में आपस में कोई बात नहीं हो पाती थी.

उन की बातचीत का माध्यम वे पर्चियां ही रह गई थीं, जो एकदूसरे को लिखा करते थे. इन्हीं पर्चियों में वे अपनी सब भावनाएं, अपने सब दर्द उड़ेल दिया करते थे. इन्हीं पर्चियों में उन की अगली मुलाकात की जगह और उस का वक्त तय होता था.

दरअसल, खेमकरण जैसे छोटे से उस कस्बे में लड़केलड़की का आपस में बात करना इतना आसान नहीं था. फिर बात जब एक ही गांव और एक ही बिरादरी की हो तो और भी मुश्किलें पैदा हो जाती हैं.

बात तो कहीं न कहीं की जा सकती थी, पर बात करने की खबर पूरे कस्बे में फैलते देर नहीं लगती थी. कम उम्र होने के बावजूद लड़केलड़की में इतनी समझ थी कि वे न तो अपनी और न अपने घर वालों की बदनामी होने देना चाहते थे.

इसलिए जब भी वे मिलते तो यही कोशिश करते कि बात न की जाए. हां, कभीकभार मौका मिल जाने पर एकाध वाक्य का आदानप्रदान हो जाया करता था. बावजूद इतनी सावधानी के आखिर एक दिन उन की चोरी पकड़ी गई और उस दिन दोनों के घर में जो तूफान उठा, वह बड़ा भयानक था. दरअसल, उन के मोहल्ले के किसी आदमी ने दोनों को एक साथ देख कर उन के घर शिकायत कर दी थी.

हसनप्रीत सिंह के पिता परविंदर सिंह भारतपाक सीमा पर बसे कस्बा खेमकरण सेक्टर के वार्ड-2 में रहते थे. परविंदर सिंह के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा अर्शदीप सिंह जो शादीशुदा था और छोटा बेटा 21 वर्षीय हसनप्रीत, जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता के साथ खेतीबाड़ी करता था.

जाट परिवार से संबंधित परविंदर सिंह के पास कई एकड़ उपजाऊ भूमि है और उन की गिनती बड़े किसानों में होती थी. उन के पास धनदौलत, ऐश्वर्य किसी चीज की कमी नहीं थी.

वहीं रमनदीप कौर के पिता जस्सा सिंह की गिनती भी बड़े किसानों में होती थी. उन के पास भी कई एकड़ उपजाऊ भूमि और सुखसुविधाओं का सभी सामान था. जस्सा सिंह का परिवार परविंदर के घर से कुछ दूरी पर वार्ड नंबर-2 में ही रहता था. दोनों परिवारों में अच्छा मेलमिलाप था पर वर्चस्व को ले कर कभीकभार कहासुनी हो जाती थी.

बहरहाल, हसनप्रीत अखबार सामने रखे अपने आसपास बैठे लोगों पर भी नजर रखे हुए था. यह ध्यान रखना बेहद जरूरी था कि उन लोगों में से कोई उस की जानपहचान का न हो. साथ ही इस बात का भी खयाल रखना जरूरी था कि वहां बैठे किसी आदमी को उस पर यह शक न हो जाए कि वह वहां अखबार पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि किसी और इरादे से आया है.

society

एक समस्या और भी थी. सामने के किताबों से भरी अलमारियों वाले कमरे में लाइब्रेरियन के अलावा कई लोग मौजूद थे. उस कमरे में लोगों का आनाजाना भी लगा रहता था.

हसन और रमनदीप की मुलाकात करीब 2 साल पहले एक शादी में हुई थी. 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद हसन एग्रीकल्चर का डिप्लोमा कर के पिता के साथ अपने खेतों में आधुनिक तरीके से खेती का काम करने लगा था.

रमनदीप कौर सामान्य कद की गोरी लेकिन साधारण सी लड़की थी. उस की यही साधारणता उस के आकर्षण का कारण थी, जिस पर हसनप्रीत पूरी तरह कुरबान था.

शहर में 2 लाइब्रेरियां थीं. एक तो बहुत छोटी थी, जिस में मात्र 4-6 लोग बड़ी मुश्किल से बैठ पाते थे. वहां मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था. हां, यह दूसरी लाइब्रेरी काफी बड़ी थी.

वे लोग इसी लाइब्रेरी में मिला करते थे. अब दोनों कोडवर्ड के जरिए मिलने की जगह, तारीख और समय तय कर लेते और इस तरह 10-15 दिनों में एक बार मिला करते.

इन्हीं मुलाकातों में वे भावनाओं से लबालब अपनीअपनी पर्चियां किसी न किसी तरीके से एकदूसरे को पकड़ा दिया करते थे. उस दिन उन का मिलना भी इसी तरह एक चिट्ठी के जरिए तय हुआ था.

हसनप्रीत की नजरें बारबार अपनी कलाई घड़ी से टकरातीं. तय वक्त से पूरे 7 मिनट ऊपर हो चुके थे. वह मायूस हो चुका था. उसे लगने लगा था कि अब रमन नहीं आएगी.

तभी हाथ में एक छोटा सा लिफाफा पकड़े रमन सीढि़यों पर नजर आई. बेंच पर संयोगवश हसनप्रीत के पास वाली जगह खाली थी, जहां आ कर रमन बैठ गई. आसपास इतने लोग बैठे थे कि बात करना बिलकुल असंभव लग रहा था. हसनप्रीत के दिल में तूफान सा मचल रहा था.

लाइब्रेरी में जमे तल्लीनता से अखबार पढ़ रहे लोगों के बीच पसरी चुप्पी के बावजूद बात करना कतई संभव नहीं लग रहा था. हसन ने कनखियों से रमन की ओर देखा. वह भी अखबार सामने रखे हुए उसे पढ़ने का नाटक करने लगी. इसी उधेड़बुन में कई मिनट बीत गए.

हसनप्रीत बड़ी बेचैनी सी महसूस कर रहा था. इस से पहले ऐसे कई मौके आए थे, जब वे इस तरह लाइब्रेरी में मिले थे और आपस में उन की कोई बात नहीं हो पाई थी. पर उन के लिए आज का दिन तो विशेष था.

रमन ने कोई खास बात करने के लिए हसन को बुलाया था. आखिर अपने चारों ओर देखने के बाद रमन ने चौकन्ने हो कर धीमे स्वर में कहा, ‘‘हसन, मेरे पिताजी किसी भी सूरत में हमारी शादी के लिए तैयार नहीं होंगे, इसलिए तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘अपने प्यार को भूलना क्या इतना आसान होता है? तुम भी पागलों जैसी बातें करती हो.’’ हसन ने रोआंसे हो कर कहा, ‘‘देखो मेरे पिता को देखो, वह मेरी खुशी की खातिर तुम्हें अपनी बहू बनाने को तैयार हो गए हैं. क्या तुम्हारे पिताजी मुझे अपना दामाद स्वीकार नहीं कर सकते?’’

‘‘यही तो विडंबना है मेरे भाग्य की. तुम्हारी जुदाई शायद मेरा नसीब है.’’

‘‘तुम भी बेकार की बातें करती हो. इंसान को अपनी कोशिश तब तक जारी रखनी चाहिए जब तक उस की समस्या का समाधान नहीं हो जाता.’’ हसनप्रीत ने रमन को हौसला बंधाते हुए कहा.

‘‘तुम पुरुष हो और तुम्हारे लिए ऐसी बातें करना सहज है, लेकिन मैं लड़की हूं. मैं इस समाज का और अपने परिवार का सामना नहीं कर सकती.’’

रमन के ये वाक्य उस के टूटे हृदय की वेदना और उस की हार की निशानी थे, जिसे हसनप्रीत ने स्पष्ट महसूस किया. इसलिए उस ने ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘एक काम करो, तुम सारी बातें उस वाहेगुरु पर छोड़ दो. अगर हमारा प्यार सच्चा है और इरादा पक्का है तो मुझे पूरा विश्वास है कि सच्चे पातशाह हमारी मदद जरूर करेंगे. वही कोई न कोई रास्ता निकालेंगे. बस तुम विश्वास रखना.’’

बातचीत के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए.

जस्सा सिंह और उस के भाइयों को जिस दिन से यह खबर लगी थी कि परविंदर का छोटा बेटा हसनप्रीत उन की बेटी रमनदीप में दिलचस्पी ले रहा है, उन्होंने उसी दिन से रमन पर नजर रखनी शुरू कर दी थी. यहां तक कि उसे किसी काम से अपने घर के सामने रहने वाले अपने चाचा के घर भी अकेले जाने की इजाजत नहीं थी.

ऐसे में हसन से मिलना तो बिलकुल संभव ही नहीं था, इसीलिए अपनी आखिरी मुलाकात में वह हसन को स्पष्ट कह आई थी कि शायद अब दोबारा मिलना कभी संभव न हो.

हसनप्रीत के कहने पर रमनदीप ने अपने जीवन की बागडोर वाहेगुरु के हाथों में सौंप दी थी और आने वाले समय का बड़ी बेसब्री से इंतजार करने लगी थी. हसन ने भी अपने आप को वाहेगुरु की मरजी के हवाले कर दिया था. अब उन की मुलाकातें लगभग समाप्त हो गई थीं.

दूसरी ओर जस्सा सिंह और उन के परिवार के दिमाग में यह फितूर अभी तक बना हुआ था. उन्हें हर समय यह संदेह घेरे रहता था कि हसन अब भी उन की लड़की से मिलताजुलता है. वह किसी न किसी बहाने से हसन और उस के परिवार को सबक सिखाने के लिए उतावले रहते थे.

13 मई, 2018 की बात है. शाम के लगभग 4 बजे का समय होगा. परविंदर ने अपने बेटे हसन से कहा कि वह बाड़े में जा कर पशुओं को चारा डाल आए. परविंदर के पास कई दुधारू पशु थे. उस ने पशुओं के लिए अपने घर के बाहर एक बाड़ा बना रखा था.

वह बाड़ा जस्सा सिंह के घर की तरफ था और पशुओं को प्रतिदिन चारा डालने की जिम्मेदारी हसन की थी. 13 तारीख रविवार की शाम 4 बजे भी वह रोज की तरह पशुओं को चारा डालने बाड़े में गया.

पशुओं को चारा डाल कर हसन लगभग 2 घंटे में लौट आता था, लेकिन उस दिन देर रात गए जब वह वापस नहीं लौटा तो परविंदर को उस की चिंता हुई. उन्होंने अपने बड़े बेटे अर्शदीप के साथ जा कर बाड़े में देखा तो हैरान रह गए. पशु चारे के बिना भूख से बिलबिला रहे थे.

इस का मतलब हसन बाड़े में आया ही नहीं था. परविंदर ने मन ही मन कुढ़ते हुए अर्शदीप से कहा, ‘‘बहुत लापरवाह लड़का है, भूखे पशुओं को छोड़ कर न जाने कहां आवारागर्दी कर रहा है. आज इस की खबर लेनी पड़ेगी.’’

इस के बाद दोनों बापबेटे ने मिल कर पशुओं को चारा खिलाया और हसन की तलाश शुरू कर दी. परविंदर के भाइयों को इस बात का पता चला तो वे भी हसन की तलाश में जुट गए.

सब को इस बात का आश्चर्य था कि आज से पहले हसन ने इस तरह की हरकत कभी नहीं की थी, फिर ऐसा क्या हुआ कि जो वह बिना कुछ बताए घर से लापता हो गया था. बहरहाल, रात भर हसन की तलाश की जाती रही पर उस की कहीं कोई खोजखबर नहीं मिली.

अगले दिन सुबह परविंदर सिंह को उन की रिश्तेदारी में लगते भाई दया सिंह ने आ कर बताया कि उस के लड़के हसन को जस्सा सिंह का परिवार पकड़ कर अपने घर ले गया है. उसे यह खबर किसी ने बताई थी. बताने वाले ने कहा था कि जिस समय हसन पशुओं को चारा डालने बाड़े की ओर जा रहा था तो उस ने देखा, जस्सा सिंह और उस के भाई हसन को अपने साथ अपने घर की ओर ले जा रहे थे.

यह पता चलते ही परविंदर, उस का बेटा अर्शदीप और उन के रिश्तेदार जस्सा सिंह के घर पहुंचे पर जस्सा सिंह ने हसन के वहां होने से साफ इनकार कर दिया. इतना ही नहीं, उस ने परविंदर और उन के साथ आए लोगों की बेइज्जती कर के अपने घर से भगा दिया.

जस्सा सिंह के ऐसे व्यवहार से परविंदर सिंह का शक विश्वास में बदल गया. किसी अनहोनी के डर से उन का तनमन बुरी तरह कांप उठा. वह वहीं से सभी लोगों के साथ थाना खेमकरण पहुंचे और थानाप्रभारी बलविंदर सिंह को हसनप्रीत के लापता होने की पूरी घटना बता कर जस्सा सिंह और उस के परिवार पर संदेह जताया.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने परविंदर की पूरी शिकायत सुनने के बाद उन के लिखित बयान दर्ज किए और एएसआई चरण सिंह, दर्शन सिंह, हैडकांस्टेबल दिलबाग सिंह, बलविंदर सिंह, इंदरजीत सिंह, मेजर सिंह, तरलोक सिंह और दलविंदर सिंह को साथ ले कर जस्सा सिंह के घर जा पहुंचे.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह द्वारा हसन के बारे में पूछने पर जस्सा सिंह ने बताया कि उन्होंने तो कई दिनों से हसन को नहीं देखा. इस के बाद थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने रमनदीप कौर के बारे में पूछा तो जस्सा सिंह ने बताया कि वह रिश्तेदारी में गई हुई है.

कहां गई है, यह पूछने पर वह बगलें झांकने लगा. इस से थानाप्रभारी बलविंदर सिंह का संदेह गहरा गया. उन्होंने परिवार के हर सदस्य से जब अलगअलग पूछताछ की तो सब के बयान एकदूसरे से भिन्न थे.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने अब वहां ठहरना उचित नहीं समझा और पूछताछ के लिए सब को हिरासत में ले कर थाने आ गए. थाने पहुंच कर जब सब से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन लोगों ने मिल कर हसनप्रीत और रमनदीप कौर की हत्या कर के उन दोनों की लाशों को छिपा दिया है.

अपराध स्वीकृति के बाद थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने एसएसपी (तरनतारन) दर्शन सिंह मान को इस हत्याकांड की सूचना दे दी. उन के निर्देश पर जस्सा सिंह, उस की पत्नी मंजीत कौर और बेटा आकाश, उस के भाई हरपाल सिंह, शेर सिंह, मनप्रीत कौर, शेर सिंह के बेटे राणा और एक रिश्तेदार धुला सिंह को गिरफ्तार कर लिया.

इन सभी के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 364, 201, 148, 149 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. हसनप्रीत सिंह और रमनदीप कौर की हत्या के अपराध में पुलिस ने इन सभी को सक्षम अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

पूछताछ के दौरान अभियुक्तों ने बताया कि दोनों की हत्या करने के बाद रमनदीप कौर का शव जस्सा सिंह के घर के सामने रहने वाले उस के भाई हरपाल सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपा दिया है, जबकि हसन की लाश को उन्होंने जस्सा सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपा दी ाि.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर एसएसपी दर्शन सिंह मान और पट्टी के एसडीएम सुरिंदर सिंह की मौजूदगी में दोनों घरों से हसन और रमनदीप की लाशें बरामद कर के उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह 2 प्रेमियों को जुदा करने की क्रूरता भरी दास्तां थी.

हसनप्रीत सिंह और रमनदीप कौर दोनों एकदूसरे से बेहद प्रेम करते थे और शादी करना चाहते थे. लेकिन जस्सा सिंह को यह बात किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं थी. उस ने अपनी बेटी पर पहरा बैठा दिया था. उस का घर से बाहर तक निकलना बंद करवा दिया गया था.

पर इस के बावजूद जस्सा के मन में यह बात कहीं घर कर गई थी कि एक न एक दिन हसन उस की बेटी को भगा ले जाएगा या उस की बेटी घर वालों को धोखा दे कर हसन के साथ भाग कर शादी कर लेगी.

जस्सा को अपनी मूंछों पर बड़ा गर्व था, वह नहीं चाहता था कि बेटी को ले कर कभी उसे अपनी मूंछें नीची करनी पड़ें. इसलिए वह इस किस्से को ही जड़ से खत्म करना चाहता था.

उस का सोचना था कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी, इसलिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. अपने भाइयों के साथ मिल कर हसन की हत्या की योजना वह बहुत पहले ही बना चुका था.

सो 13 मई की शाम जब हसन अपने पशुओं को चारा डालने बाड़े की ओर जा रहा था तो जस्सा सिंह और उस के भाई हरपाल ने उसे रास्ते में रोक लिया और कोई बात करने का बहाना बना कर अपने घर ले गए.

उन के घर पहुंचने पर घर की औरतों मंजीत कौर और मनप्रीत कौर ने घर का मुख्यद्वार बंद कर दिया और हसन से बिना कोई बात किए, बिना कोई मौका दिए ट्रैक्टर की लोहे की रौड उठा कर उस के सिर पर दे मारी.

अचानक हुए इस हमले से हसन चक्कर खा कर जमीन पर गिर गया. रमनदीप कौर अपने कमरे से यह सब देख रही थी. अपने प्रेमी की यह हालत देख वह उस का बचाव करने के लिए भागती हुई आई तो जस्सा सिंह ने उसी रौड का एक जोरदार वार उस के सिर पर भी कर दिया और चीखते हुए बोला, ‘‘अपने यार को बचाने आई है, अब तू भी मर.’’

इस के बाद सब ने मिल कर हसन और रमन पर रौड से तब तक प्रहार किए, जब तक उन के प्राण नहीं निकल गए.

2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद रमनदीप कौर का शव जस्सा सिंह के घर के सामने रहने वाले उस के भाई हरपाल सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपाया गया और हसन की लाश को जस्सा सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में.

पुलिस रिमांड के दौरान अभियुक्तों की निशानदेही पर वह लोहे की रौड भी बरामद कर ली गई, जिस से दोनों प्रेमियों की हत्या की गई थी. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने इस हत्याकांड से जुड़े सभी आठों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जिला जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भौजाई से प्यार, पत्नी सहे वार

19 जनवरी, 2017 को उत्तर प्रदेश के जिला सिद्धार्थनगर के थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह औफिस में बैठे मामलों की फाइलें देख रहे थे, तभी उन की नजर करीब 4 महीने पहले सोनिया नाम की एक नवविवाहिता की संदिग्ध परिस्थितियों में ससुराल में हुई मौत की फाइल पर पड़ी. सोनिया की मां निर्मला देवी ने उस के पति अर्जुन और उस की जेठानी कौशल्या के खिलाफ उस की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. घटना के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. उन की तलाश में पुलिस जगहजगह छापे मार रही थी. लेकिन कहीं से भी उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी.

आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर एसपी राकेश शंकर का शमशेर बहादुर सिंह पर काफी दबाव था, इसीलिए वह इस केस की फाइल का बारीकी से अध्ययन कर आरोपियों तक पहुंचने की संभावनाएं तलाश रहे थे. संयोग से उसी समय एक मुखबिर ने उन के कक्ष में आ कर कहा, ‘‘सरजी, एक गुड न्यूज है. अभी बताऊं या बाद में?’’

‘‘अभी बताओ न कि क्या गुड न्यूज है,ज्यादा उलझाओ मत. वैसे ही मैं एक केस में उलझा हूं.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘जो भी गुड न्यूज है, जल्दी बताओ.’’

इस के बाद मुखबिर ने थानाप्रभारी के पास जा कर उन के कान में जो न्यूज दी, उसे सुन कर थानाप्रभारी का चेहरा खिल उठा. उन्होंने तुरंत हमराहियों को आवाज देने के साथ जीप चालक को फौरन जीप तैयार करने को कहा. इस के बाद वह खुद भी औफिस से बाहर आ गए. 5 मिनट में ही वह टीम के साथ, जिस में एसआई दिनेश तिवारी, सिपाही जय सिंह चौरसिया, लक्ष्मण यादव और श्वेता शर्मा शामिल थीं, को ले कर कुछ ही देर में मुखबिर द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. वहां उन्हें एक औरत और एक आदमी खड़ा मिला.

पुलिस की गाड़ी देख कर दोनों नजरें चुराने लगे. पुलिस जैसे ही उन के करीब पहुंची, उन के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं. शमशेर बहादुर सिंह ने उन से नाम और वहां खड़े होने का कारण पूछा तो वे हकलाते हुए बोले, ‘‘साहब, बस का इंतजार कर रहे थे.’’

‘‘क्यों, अब और कहीं भागने का इरादा है क्या?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, आप क्या कह रहे हैं, हम समझे नहीं, हम क्यों भागेंगे?’’ आदमी ने कहा.

‘‘थाने चलो, वहां हम सब समझा देंगे.’’ कह कर शमशेर बहादुर सिंह दोनों को जीप में बैठा कर थाने लौट आए. थाने में जब दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अर्जुन और कौशल्या देवी बताए. उन का आपस में देवरभाभी का रिश्ता था.

अर्जुन अपनी पत्नी सोनिया की हत्या का आरोपी था. उस की हत्या में कौशल्या भी शामिल थी. हत्या के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. थानाप्रभारी ने सीओ महिपाल पाठक के सामने दोनों से सोनिया की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने सारी सच्चाई उगल दी. सोनिया की जितनी शातिराना तरीके से उन्होंने हत्या की थी, वह सारा राज उन्होंने बता दिया. नवविवाहिता सोनिया की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले का एक थाना है जोगिया उदयपुर. इसी थाने के अंतर्गत मनोहारी गांव के रहने वाले जगदीश ने अपने छोटे बेटे अर्जुन की शादी 4 जुलाई, 2013 को पड़ोस के गांव मेहदिया के रहने वाले रामकरन की बेटी सोनिया से की थी. शादी के करीब 3 सालों बाद 25 अप्रैल, 2016 को गौने के बाद सोनिया ससुराल आई थी.

पति और ससुराल वालों का प्यार पा कर सोनिया बहुत खुश थी. अपने काम और व्यवहार से सोनिया घर में सभी की चहेती बन गई. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक सोनिया ने पति अर्जुन में कुछ बदलाव महसूस किया. उस ने गौर करना शुरू किया तो पता चला कि अर्जुन पहले उसे जितना समय देता था, अब वह उसे उतना समय नहीं देता.

पहले तो उस ने यही सोचा कि परिवार और काम की वजह से वह ऐसा कर रहा होगा. लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई. उस ने महसूस किया कि अर्जुन अपनी भाभी कौशल्या के आगेपीछे कुछ ज्यादा ही मंडराता रहता है. वह भाभी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताता है.

जल्दी ही सोनिया को इस की वजह का भी पता चल गया. अर्जुन के अपनी भाभी से अवैध संबंध थे. भाभी से संबंध होने की वजह से वह सोनिया की उपेक्षा कर रहा था. कमाई का ज्यादा हिस्सा भी वह भाभी पर खर्च कर रहा था. यह सब जान कर सोनिया सन्न रह गई.

कोई भी औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन यह हरगिज नहीं चाहती कि उस का पति किसी दूसरी औरत के बिस्तर का साझीदार बने. भला नवविवाहिता सोनिया ही इस बात को कैसे बरदाश्त करती. उस ने इस बारे में अर्जुन से बात की तो वह बौखला उठा और सोनिया की पिटाई कर दी. उस दिन के बाद दोनों में कलह शुरू हो गई.

सोनिया ने इस बात की जानकारी अपने मायके वालों को फोन कर के दे दी. उस ने मायके वालों से साफसाफ कह दिया था कि अर्जुन का संबंध उस की भाभी से है. शिकायत करने पर वह उसे मारतापीटता है. यही नहीं, उस से दहेज की भी मांग की जाती है. सोनिया की परेशानी जानते हुए भी मायके वाले उसे ही समझाते रहे.

वे हमेशा उस के और अर्जुन के संबंध को सामान्य करने की कोशिश करते रहे, पर अर्जुन ने भाभी से दूरी नहीं बनाई, जिस से सोनिया की उस से कहासुनी होती रही, पत्नी की रोजरोज की किचकिच से अर्जुन परेशान रहने लगा. उसे लगने लगा कि सोनिया उस के रास्ते का रोड़ा बन रही है. लिहाजा उस ने भाभी कौशल्या के साथ मिल कर एक खौफनाक योजना बना डाली.

24-25 सितंबर, 2016 की रात अर्जुन और कौशल्या ने साजिश रच कर सोनिया के खाने में जहरीला पदार्थ मिला दिया. अगले दिन यानी 25 सितंबर की सुबह जब सोनिया की हालत बिगड़ने लगी तो अर्जुन उसे जिला अस्पताल ले गया.

उसी दिन सुबह सोनिया के पिता रामकरन को मनोहारी गांव के किसी आदमी ने बताया कि सोनिया की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, वह जिला अस्पताल में भरती है. यह खबर सुन कर वह घर वालों के साथ सिद्धार्थनगर स्थित जिला अस्पताल पहुंचा. तब तक सोनिया की हालत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी थी. डाक्टरों ने उसे कहीं और ले जाने को कह दिया था.

26 सितंबर की सुबह 4 बजे पता चला कि सोनिया की मौत हो चुकी है. बेटी की मौत की खबर मिलते ही रामकरन अपने गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बेटी की ससुराल मनोहारी गांव पहुंचा तो देखा सोनिया के मुंह से झाग निकला था. कान और नाक पर खून के धब्बे थे. हाथ की चूडि़यां भी टूटी हुई थीं. लाश देख कर ही लग रहा था कि उस के साथ मारपीट कर के उसे कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था.

बेटी की लाश देख कर रामकरन की हालत बिगड़ गई. उन के साथ आए गांव वालों ने पुलिस कंट्रोल रूम को हत्या की सूचना दे दी. सूचना पा कर कुछ ही देर में थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सोनिया के शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

बेटी की मौत से रामकरन को गहरा सदमा लगा था, जिस से उन की तबीयत खराब हो गई थी. उन्हें आननफानन में इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया. इस के बाद पुलिस ने सोनिया की मां निर्मला की तहरीर पर अर्जुन और उस की भाभी कौशल्या के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 3/4 डीपी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.

2 दिनों बाद जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि सोनिया के साथ मारपीट कर के उसे खाने में जहर दिया गया था. घटना के तुरंत बाद अर्जुन और कौशल्या फरार हो गए थे. लेकिन पुलिस उन के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. उन दोनों की गिरफ्तारी न होने से लोगों में आक्रोश बढ़ रहा था.

आखिर 4 महीने बाद मुखबिर की सूचना पर अर्जुन और कौशल्या गिरफ्तार कर लिए गए थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे तक दोनों की जमानतें नहीं हो सकी थीं.

पुलिस अधीक्षक राकेश शंकर ने घटना का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की हौसलाअफजाई करते हुए 2 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

भाभी के चक्कर में अर्जुन ने अपना घर तो बरबाद किया ही, भाई का भी घर बरबाद किया. इसी तरह कौशल्या ने देह की आग को शांत करने के लिए देवर के साथ मिल कर एक निर्दोष की जान ले ली.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

माशूका की खातिर : अपनी ही गृहस्थी को क्यों उजाड़ा – भाग 3

राजेंद्र काफी समझदार और सुलझे हुए इंसान थे. इस बात को वह अच्छी तरह से समझ रहे थे कि दामाद ने जो किया है, वह उचित नहीं है. लेकिन गलतियां इंसान से ही होती हैं.

उस से भी एक भूल हुई है. निश्चय ही उस की यह पहली गलती है, अपनी भूल को सुधारने के लिए उसे एक मौका देना चाहिए. उन्होंने बेटी को समझाया. जमाने भर की उसे नसीहत दी, तब जा कर वह पति के पास लौट जाने को तैयार हुई.

माफी मांगने के बाद भी मिलता रहा प्रेमिका से

उस के बाद राजेंद्र ने इस संबंध में दामाद से बात की. उसे समझाया कि उस ने जो किया है, वह गलत है. फिर कहा, ‘‘तुम्हारा भरपूरा परिवार है. पत्नी और 2 बच्चे हैं. उन मासूम बच्चों का तनिक भी खयाल नहीं आया.’’

ससुर की बात सुन कर भैरव काफी शर्मिंदा हुआ. उस ने ससुर से वादा किया कि उस से दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी. यह जून, 2017 की बात है.

एक महीने अनुपमा मायके में रही. पिता के समझाने के बाद वह बच्चों को ले कर पति के पास धनबाद लौट आई. भैरवनाथ ने पत्नी को भरोसा दिया कि दोबारा ऐसा नहीं होगा. लेकिन कुछ दिनों बाद भैरव फिर पुरानी हरकतें करने लगा. लेकिन इस बार सजग हो कर और पत्नी से छिप कर प्रेमिका रूपा से बातें करता था. फिर भी अनुपमा को पति पर शक हो गया कि वह अभी भी रूपा से बातें करता है.

इस बार अनुपमा ने हजारीबाग के रेवाली के रहने वाले अपने ममेरे भाई विवेक राय से बात की. वह भी धनबाद में ही रहता था. विवेक ने किसी तरह उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि भैरव किसी एक नंबर पर ज्यादा बातें करता है. उस नंबर पर विवेक ने काल की तो उसे एक महिला ने रिसीव किया. यह बात विवेक ने अनुपमा को बता दी. अब अनुपमा का शक यकीन में बदल गया कि भैरव के अभी भी रूपा से संबंध बने हुए हैं.

इस के बाद रूपा को ले कर अनुपमा का पति से रोज झगड़ा होने लगा. घर की सारी बातें भैरव रूपा से बता देता था. उसे रूपा दिलोजान से मोहब्बत करती थी. उस से अलग रहने की बात वह सोच भी नहीं सकती थी. ऐसा ही हाल भैरव का भी था. वह रूपा के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था.

एक दिन रूपा भैरव के साथ रहने की जिद पर अड़ गई लेकिन पत्नी अनुपमा इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. भैरव भारी दबाव में था. इस कारण वह तनाव में रहने लगा. वह किसी भी हालत में रूपा को नहीं छोड़ना चाहता था.

अपनी पत्नी और बच्चे उसे रास्ते का कांटा दिखने लगे क्योंकि उन के होते हुए वह रूपा को घर नहीं ला सकता था. अंत में उस ने पत्नी और बच्चों को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उसे बेटे अभय के जन्मदिन का मौका सब से अच्छा लगा.

3 अक्तूबर, 2017 को भैरव के बेटे अभय का जन्मदिन था. उस ने एक पार्टी का आयोजन किया. पार्टी में उस के मांबाप, मकान में रह रहे अन्य किराएदार, कुछ रिश्तेदारों, मोहल्ले वालों के अलावा रूपा भी आई थी. रूपा को जैसे ही अनुपमा ने देखा, उस का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. तब पार्टी का मजा किरकिरा हो गया. अनुपमा आगबबूला हो गई और रूपा से उलझ गई. दोनों में काफी झगड़ा हुआ.

वह कभी नहीं चाहती थी कि उस की सौतन बनी रूपा उस के पति के गले की हड्डी बन जाए. रूपा समझ गई थी कि अनुपमा उसे देख कर खुश नहीं है. लेकिन उसे इस से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था.

वह अपनी राह के रोड़े को जल्द से जल्द हटा हुआ देखना चाहती थी. रूपा पार्टी के दौरान भैरव को बारबार उकसाती रही कि मौका अच्छा है, हाथ से जाना नहीं चाहिए. बहरहाल, रात साढ़े 9 बजे केक कटा और खुशी का माहौल था. पार्टी के बाद बाहर के आए लोग अपने घरों को चले गए. रात साढ़े 12 बजे बिजली गुल हो गई, जो करीब 2 बजे आई. तब तक घर के लोग जागे हुए थे. बिजली आने के बाद परिवार के सभी लोग अपनेअपने कमरों में सो गए.

आभा और अभय दादी गायत्री देवी के कमरे में सो रहे थे. भैरव ने दादी के पास सो रहे बच्चों को अपने बैडरूम में पत्नी के पास ला कर सुला दिया. क्योंकि उसे अपनी योजना को अंजाम जो देना था. उधर रूपा के आने से नाखुश अनुपमा पहले ही कमरे में आ कर सो गई थी. बिजली आने के बाद रूपा अपने दूसरे रिश्तेदार के यहां चली गई ताकि उस पर कोई संदेह न करे.

ऐसे दिया वारदात को अंजाम

योजना के अनुसार, तड़के 3 बजे के करीब भैरवनाथ दबेपांव बिस्तर से नीचे उतरा. कमरे से निकल कर बाहर आया. दूसरे कमरे में सो रहे मांबाप के दरवाजे पर उस ने सिटकनी चढ़ा दी. फिर लौट कर वह अपने कमरे में आया, जहां पत्नी और बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे. उस ने जूते के फीते से पत्नी का गला उस वक्त तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. फिर बाजार से खरीद कर लाए चाकू से पहले बेटी आभा फिर अभय का गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया.

उस नराधम का ऐसा करते हुए एक बार भी हाथ नहीं कांपा. फिर साक्ष्य छिपाने और खुद को बचाने के लिए अपने हाथों से लिखे 3 पन्नों के लेटर को बैड के पास ऐसे मोड़ कर रखा ताकि किसी की भी नजर उस पर आसानी से पड़ जाए.

घटना को अंजाम देने के बाद भैरवनाथ भोर में 4 बजे के करीब भाग कर धनबाद रेलवे स्टेशन पहुंचा. वहां से होते हुए रांची चला गया. वहां से पटना होते हुए मुंबई चला गया. मुंबई में ठिकाना नहीं मिलने पर फ्लाइट से फिर पटना लौटा और पटना से रांची होते हुए 14 अक्तूबर को बोकारो के जैनामोड़ पहुंचा.

उस के पास के सारे पैसे खत्म हो चुके थे, इसलिए वहां के एक दुकानदार के पास अपना मोबाइल गिरवी रख दिया. उस ने खुदकुशी के इरादे से जैनामोड़ में ही सल्फास की 4 गोलियां खा लीं और अपने घर पहुंचा. घर पहुंचते ही तबीयत बिगड़ने पर परिजनों ने उसे बीजीएच हौस्पिटल में भरती करा दिया, जहां से धनबाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उस से सल्फास की गोलियों के बारे मे पूछताछ की तो उस ने मोबाइल गिरवी रख कर सल्फास खरीदे जाने की बात बताई. पुलिस उसे ले कर उस दुकान पर पहुची, जहां उस ने अपना फोन गिरवी रखा था. भैरवनाथ की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त जूते का फीता और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने हत्या के लिए उकसाने के आरोप में रूपा देवी को उस की ससुराल भाटडीह, मुदहा से 24 अक्तूबर, 2017 को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. केस की जांच थानाप्रभारी मनोज कुमार कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों और सोशल मीडिया पर आधारित

इज्जत की खातिर चुना गलत रास्ता – भाग 3

आतेजाते, मिलतेजुलते और बात करतेकराते दोनों के बीच बहनभाई का रिश्ता कब प्यार में बदल गया, न किरन जान सकी और न विवेक. उन्हें तब होश आया जब दोनों एक दूसरे के बिना तड़पने लगे. बिना एकदूसरे को देखे, बिना बात किए दोनों को चैन नहीं मिलता था. जल्दी ही दोनों समझ गए कि उन्हें एक दूसरे से प्यार हो गया है.

विवेक का हाल भी कुछ ऐसा ही था. वह मोबाइल स्क्रीन पर किरन की तसवीर देखदेख कर जीता था. उस की तसवीरों से बात कर के अपना मन बहलाता था.

नजदीकियों के चलते जल्दी ही दोनों ने एकदूसरे के साथ जीनेमरने की कसमें खा लीं और शादी करने के सपने भी बुनने लगे. दोनों यह भी भूल गए कि रिश्तों की वजह से उन के सपने कभी हकीकत का रूप नहीं ले सकते.

वे दोनों पारिवारिक रिश्तों की जिस डोर में बंधे थे, उस डोर को न तो परिवार टूटने दे सकता था और न समाज. विजयपाल तो वैसे ही मानसम्मान के मामले में और भी ज्यादा कट्टर था. वह इस रिश्ते को किसी भी हालत में कबूल नहीं कर सकता था. क्योंकि विवेक विजयपाल के लिए बेटे जैसा था.

दोनों तरफ मोहब्बत की आग बराबर लगी हुई थी. जब से विवेक को किरन से मोहब्बत हुई थी. उस का मूड़ाघाट जानाआना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था. विजयपाल और उस के दोनों बेटों ने भी इस बात को महसूस किया था. ये बात उन की समझ से परे थी कि विवेक इतनी जल्दीजल्दी क्यों आता है. जब भी वह आता था किरन से चिपका रहता था. दोनों आपस में धीरेधीरे बातचीत करते रहते थे.

विजयपाल को अपनी बेटी किरन और साढ़ू के बेटे विवेक के रिश्तों को ले कर कुछ संदेह हो गया था. वह दोनों की बात छिपछिप कर सुनने लगा. जल्दी ही उस का संदेह यकीन में बदल गया. पता चला दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए हैं. हकीकत जान कर विजयपाल और उस के दोनों बेटों का खून खौल उठा.

विजयपाल ने पत्नी को अप्रत्यक्ष तरीके से समझाया कि विवेक से कह दे यहां न आया करे. उस की नीयत में खोट आ गया है. इसी के साथ उस ने ये भी कहा कि वह बेटी पर ध्यान दे. उस के पांव बहक रहे हैं. हाथ से निकल गई या कोई ऊंचनीच कर बैठी तो समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. इसलिए उसे विवेक के करीब जाने से मना कर दे.

किरन की मां शर्मिली ने समझदारी का परिचय देते हुए यह बात बेटी को सीधे तरीके से न कह कर अप्रत्यक्ष ढंग से समझाई. वह जानती थी कि बेटी सयानी हो चुकी है, सीधेसीधे बात करने से उसे बुरा लग सकता है. वैसे भी किरन जिद्दी किस्म की लड़की थी, जो ठान लेती थी वही करती थी.

किरन मां की बात समझ गई थी कि वह क्या कहना चाहती हैं. लेकिन उस के सिर पर तो विवेक के इश्क का भूत सवार था. उसे विवेक के अलावा किसी और की बात समझ में नहीं आती थी. उस के अलावा कुछ नहीं सूझता था. किरन ने मां से साफसाफ कह दिया कि वह विवेक से प्यार करती है और उसी से शादी भी करेगी. चाहे कुछ हो जाए, वह अपना कदम पीछे नहीं हटाएगी.

किरन किसी भी तरह अपने मांबाप की बात मानने को तैयार नहीं हुई. बात जब हद से आगे निकलने लगी तो शर्मिली ने अपनी बहन सुमन को फोन कर के पूरी बात बता दी. सुमन बेटे की करतूत सुन कर हैरान रह गई, लज्जित भी हुई. सुमन ने विवेक को समझाया कि ऐसा घिनौना काम कर के तो वह उन्हें जिंदा ही मार डालेगा. जो हुआ सो हुआ, अब आगे किरन से कोई बात नहीं होनी चाहिए.

विवेक और किरन जान चुके थे कि उन के प्यार के बारे में दोनों के घर वालों को पता लग चुका है. दोनों परिवार इस रिश्ते को किसी भी तरह स्वीकार नहीं करेंगे, इस बात को ले कर विवेक काफी परेशान रहने लगा था.

9 मार्च, 2018 की बात है. विवेक घर में बिना किसी को बताए किरन से मिलने बस्ती मूड़ाघाट पहुंच गया. विवेक को देख कर किरन की जान में जान आ गई. लेकिन उस के आने से न तो उस की मौसी शर्मिली खुश थी, न मौसा विजयपाल और न ही उन के दोनों बेटे. वे उसे दरवाजे से भगा भी नहीं सकते थे. लेकिन वे उसे ले कर सतर्क जरूर हो गए. उन की नजर किरन पर जमी थी. यह बात किरन और विवेक जान चुके थे, इसलिए वे खुद भी सतर्क हो गए  थे. दोनों किसी भी तरह की गलती नहीं करना चाहते थे.

बात 9 मार्च की रात 10 बजे की है. किरन को विवेक उर्फ रामू ने फोन कर के घर के पिछवाड़े खेत में बुलाया था. घर के सभी लोग खाना खा कर अपनेअपने कमरे में सोने चले गए थे. घर में चारों ओर सन्नाटा फैला था. बरामदे में कोई दिखाई नहीं दिया तो उसे विश्वास हो गया कि सब लोग सो गए है.

विवेक को घर से गए काफी समय हो गया था. वह किरन के आने का इंतजार कर रहा था. किरन भी विवेक के पास जाने के लिए व्याकुल थी. दबे पांव वह घर से खेत की ओर निकल गई. उस का छोटा भाई गुलाब अभी सोया नहीं  था. जैसे ही किरन घर से निकली, छोटे भाई गुलाब ने उसे बाहर जाते देख लिया और यह बात पिता विजयपाल को बता दी.

बेटे के मुंह से हकीकत सुन कर विजयपाल का खून खौल उठा. उस ने बड़े बेटे गोलू और छोटे भाई जनार्दन को उठाया. विजयपाल ने हाथ में टौर्च ले ली और तीनों किरन की तलाश में निकल पड़े. वे लोग यह देखना चाहते थे कि इतनी रात गए किरन अकेले कहां जा रही है.

किरन को ढूंढतेढूढंते वे मूड़ाघाट बाईपास स्थित पट्टीदार के खेत पर जा पहुंचे. उस समय रात के 12 बजे होंगे. किरन और विवेक दोनों आपत्तिजनक स्थिति में मिले. ये देखते ही तीनों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

गुस्साए विजयपाल ने विवेक को पकड़ लिया और उन लोगों ने बगल में रखी ईंट से विवेक के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर के उसे मौत की नींद सुला दिया.

इसी दौरान किरन अपने प्रेमी विवेक की जान बचाने के लिए उन से उलझ गई. इस से उन का क्रोध और बढ़ गया. बाद में उन्होंने किरन के सिर पर ईंट से वार करकर के उसे भी मार डाला.

दोनों को मौत के घाट उतारने के बाद जब वे लोग होश में आए तो अंजाम से डर गए. सोचविचार कर तीनों ने मिल कर विवेक की हत्या को हादसा बनाने के लिए उसी रात फ्लाईओवर के पास उस की लाश खेत में फेंक कर लौट आए. उन्होंने किरन की लाश खींच कर सरसों के खेत में डाल दी थी.

इन लोगों ने कानून की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की, लेकिन उन की चालाकी धरी रह गई. आखिरकार पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड का राजफाश कर ही दिया. कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी जेल में बंद थे. पुलिस ने तीनों के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इज्जत की खातिर चुना गलत रास्ता – भाग 2

मौकाएवारदात पर पुलिस को जो सूचना मिली थी, वह उस ने गोपनीय रखी ताकि घटना के असल कारणों का पता लगा कर मुलजिमों को आसानी से सलाखों के पीछे पहुंचाया जा सके. थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह ने विजयपाल को कानोंकान भनक नहीं लगने दी कि वे घटना की तह तक पहुंच गए हैं.

अगले दिन पुलिस को विवेक चौहान की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट में मौत की वजह हैड इंजरी बताया गया था. हत्यारों ने किसी नुकीली और वजनदार चीज से वार कर के उसे मौत के घाट उतारा था. यही नहीं हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए विवेक की लाश को फ्लाईओवर के पास फेंक दिया था, ताकि पुलिस इसे दुर्घटना मान ले और हत्यारे साफ बच निकलें.

विवेक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और किरन की हत्या को ले कर सीओ (सदर) पवन कुमार गौतम काफी सक्रिय थे. दोहरे हत्याकांड की निगरानी सीओ गौतम ही कर रहे थे. पुलिस ने हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए किरन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकवाई.

काल डिटेल्स से पता चला कि उस ने सब से ज्यादा फोन एक ही नंबर पर किए थे. उसी नंबर पर 9 मार्च, 2018 की रात 10 बजे के करीब भी किरन की बात हुई थी.

वह नंबर विवेक का निकला. जांच में यह भी पता चला कि विवेक विजयपाल के साढ़ू का बेटा था. विवेक और किरन मौसेरे भाईबहन थे. फिर भी उन के बीच सालों से प्रेमसंबंध था.

9 मार्च की रात विवेक चौहान को मूड़ाघाट गांव में देखा गया था. वह अपने मौसा के घर आया था. उस के बाद से वह गायब था. अगले दिन उस की लाश बरामद हुई थी. पुलिस के लिए यह सूचना पर्याप्त थी. इस से पुलिस का यह शक यकीन में तब्दील हो गया कि इस घटना में विजयपाल चौहान और उस के परिवार का ही हाथ है.

विजयेंद्र सिंह ने किरन की हत्या के संबंध में पूछताछ के लिए विजयपाल, उस के बेटे गोलू उर्फ शंभू और छोटे भाई जनार्दन को थाने बुलवा लिया.

सीओ (सदर) पवन कुमार गौतम थाने में पहले से मौजूद थे. थानाप्रभारी ने विजयपाल से सवाल किया, ‘‘क्या बता सकते हो कि कल फ्लाईओवर के पास जो लाश बरामद हुई थी, किस की थी?’’

‘‘साहब, मुझे क्या पता वो किस की लाश थी?’’ विजयपाल चौहान ने गंभीरता से जवाब दिया.

‘‘सच कहते हो तुम, भला तुम्हें कैसे पता होगा कि वह लाश किस की थी. तुम्हें तो उस के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है.’’

‘‘हां साहब, सचमुच मुझे उस लाश के बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही मैं उसे पहचानता हूं.’’ विजयपाल ने उत्तर दिया.

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं चलो मैं ही तुम्हारी कुछ मदद कर देता हूं.’’ विजयेंद्र सिंह ने व्यंग्य कसते हुए कहा, ‘‘किसी विवेक चौहान उर्फ रामू को जानते हो?’’ विजयपाल से सवाल कर के उन्होंने उस के चेहरे पर अपनी तीखीं नजरें गड़ा दीं. उन की सवालिया नजरों को देख कर विजयपाल एकदम से सकपका गया.

‘‘साहब, आप तो मुझे ऐसे देख रहे हैं, जैसे मैं ने ही उस की हत्या की है.’’ विजयपाल बोला.

‘‘हम ने कब कहा कि तुम ने उस की हत्या नहीं की है.’’ इस बार सीओ गौतम बोले, ‘‘भलाई इसी में है कि तुम अपना जुर्म कबूल कर लो और सचसच बता दो कि तुम ने विवेक की हत्या क्यों की? वादा करता हूं, मैं सरकार से सिफारिश करूंगा कि तुम्हें कम से कम सजा हो.’’

‘‘हां, साहब. मैं ने ही रामू की हत्या की है.’’ विजयपाल सीओ (सदर) के पैरों को पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘साहब मुझे माफ कर दीजिए, मुझे बचा लीजिए, मैं ऐसा नहीं करना चाहता था, लेकिन हालात से मजबूर हो कर मुझे यह कदम उठाना पड़ा. रामू ने मेरी इज्जत की बखिया उधेड़ कर रख दी थी. लाख समझाने के बावजूद भी वह मेरी बेटी का पीछा नहीं छोड़ रहा था. उस दिन तो उस ने हद ही कर दी और…’’ भावावेश में आ कर विजयपाल चौहान पूरी कहानी सुनाता चला गया.

विजयपाल चौहान द्वारा अपना जुर्म कबूल कर लेने के बाद उस के बेटे गोलू उर्फ शंभू और भाई जनार्दन ने भी अपनाअपना गुनाह कबूल कर लिया. दोनों ने स्वीकार किया कि विवेक और किरन की हत्या में उन्होंने विजयपाल का साथ दिया था. 36 घंटे के भीतर जिले को दहला देने वाली 2-2 सनसनीखेज हत्याओं का पर्दाफाश हो चुका था.

विवेक किरन हत्याकांड के परदाफाश पर पुलिस कप्तान नरेंद्र कुमार सिंह ने पुलिस टीम को 5 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की. पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत के सामने पेश कर के उन्हें जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई पूछताछ के आधार पर कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

विजयपाल के परिवार में कुल 5 सदस्य थे. पतिपत्नी और 3 बच्चे. 3 बच्चों में 2 बेटे थे गोलू उर्फ शंभू और गुलाब तथा एक बेटी थी किरन, जिस की उम्र 20 वर्ष थी. विजयपाल प्राइवेट नौकरी करता था. तीनों संतानों में किरन दूसरे नंबर की औलाद थी. किरन चंचल और हंसमुख स्वभाव की युवती थी. वह बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी. गांव से कालेज वह साइकिल से जाती थी.

किरन की मौसी परिवार सहित गोरखपुर के बड़हलगंज के चिल्लुपार विधानसभा के बरगदवा में रहती थी. उस का एक ही एकलौता बेटा रामू उर्फ विवेक था. विवेक 21-22 साल का गबरू जवान था. साढ़े 5 फीट लंबा और स्मार्ट.

विवेक की अपनी कोई बहन नहीं थी. रक्षाबंधन के अवसर पर उसे बहन की कमी काफी खलती थी. विवेक की मां से बेटे की मायूसी देखी नहीं जाती थी. इसलिए विवेक की मां सुमन अपनी बड़ी बहन की बेटी किरन को रक्षाबंधन पर अपने यहां बुला लेती थी. किरन विवेक की कलाई पर राखी बांध कर अपने घर लौट आती थी. ऐसा हर साल होता था.

किरन और विवेक करीबकरीब हमउम्र थे. भाईबहन के रिश्ते के नाते दोनों के बीच काफी नजदीकियां थीं, विवेक जब भी किरन को देखता था, ख्ुशी के मारे उस का दिल बागबाग हो उठता था. किरन भी विवेक को देख कर खुश हो जाती थी.

गतवर्ष रक्षाबंधन के मौके पर विवेक ने मौसेरी बहन किरन को तोहफे में एक मोबाइल फोन दिया था. जब भी विवेक का मन किरन से बात करने का होता था, वह फोन कर लेता था और जब देखने की इच्छा होती तो बस्ती जा कर किरन से मिल आता था.

माशूका की खातिर : अपनी ही गृहस्थी को क्यों उजाड़ा – भाग 2

तीनों लाशों का पोस्टमार्टम कराने के बाद लाशें उन के घर वालों को सौंप दी गईं. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. रिपोर्ट में बताया कि किसी पतले तार से अनुपमा का गला घोंटा गया था.

जबकि दोनों बच्चों अभय कुमार व आभा कुमारी का गला किसी धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से उन की श्वांस नली कट गई थी. आगे की जांच के लिए तीनों का विसरा भी सुरक्षित रख लिया गया था.

राजेंद्र प्रसाद की तहरीर पर थानाप्रभारी मनोज कुमार ने फरार उन्हीं के बेटे भैरवनाथ शर्मा के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उस की तलाश शुरू कर दी. उसे तलाश करने के लिए पुलिस की 2 टीमें गठित की गईं.

पुलिस ने अनुपमा के परिजनों से पूछताछ की तो उस के पिता राजेंद्र राय ने चौंका देने वाली बात बताई, ‘‘दामाद भैरवनाथ से बेटी के संबंध कुछ अच्छे नहीं थे. बेटी के साथ वह अकसर मारपीट करता था.’’

अफेयर बना कलह की वजह

‘‘मारपीट करता था, क्यों?’’ इंसपेक्टर मनोज कुमार ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘मारपीट करने के पीछे कोई खास वजह थी क्या?’’

‘‘जी सर, एक युवती से दामाद का अफेयर थे. अनुपमा पति की करतूत को जान चुकी थी. वह ऐसा करने से मना करती थी. इसी बात से चिढ़ कर वह उसे मारतापीटता था.’’

‘‘वह युवती कौन है? उस का नामपता वगैरह कुछ है?’’ मनोज कुमार ने पूछा.

‘‘हां है, सब कुछ है. युवती का नाम रूपा देवी है और उस का मोबाइल नंबर ये है..’’ कहते हुए राजेंद्र राय ने पौकेट डायरी निकाल कर उस में से रूपा का नंबर उन्हें बता दिया. थानाप्रभारी ने उसी समय अपने फोन से वह नंबर डायल किया तो वह नंबर बंद मिला.

पुलिस टीम ने भैरवनाथ को पकड़ने के लिए उस के खासखास ठिकानों पर दबिश दी. मुखबिरों को भी लगा दिया. पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. घटना हुए 9 दिन बीत गए, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. पुलिस मायूस नहीं हुई. वह उस की तलाश में जुटी रही.

10वें दिन यानी 14 अक्तूबर 2017 को मुखबिर ने पुलिस को एक खास सूचना दी.  उस ने पुलिस को बताया कि आरोपी भैरवनाथ ने जहर खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की है. वह बोकारो के एक प्राइवेट अस्पताल की आईसीयू में भरती है.

पुलिस टीम बिना समय गंवाए बोकारो रवाना हो गई. सब से पहले बोकारो के उस अस्पताल पहुंची, जहां भैरवनाथ का इलाज चल रहा था. वह वहीं मिल गया. उस की हालत गंभीर बनी हुई थी, इसलिए डाक्टरों की सलाह मानते हुए पुलिस ने उसे उसी अस्पताल में भरती रहने दिया और खुद उस की निगरानी में लगी रही.

3 दिन बाद जब भैरव की हालत सामान्य हुई तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर धनबाद ले आई. पूछताछ में उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने पुलिस को पत्नी और बच्चों की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली –

34 वर्षीय अनुपमा मूलरूप से झारखंड के हजारीबाग के गैडाबरकट्ठा की रहने वाली थी. उस के पिता राजेंद्र राय ने सन 2013 में बड़ी धूमधाम से उस की शादी बोकारो के पुडरू गांव के रहने वाले भैरवनाथ शर्मा से की थी. भैरव के साथ अनुपमा हंसीखुशी से रह रही थी. बाद में वह एक बेटी और एक बेटे की मां भी बनी.

जीविका चलाने के लिए भैरवनाथ पत्नी और बच्चों को ले कर बोकारो से धनबाद आ गया था और वहां न्यू कालोनी में किराए के 2 कमरे ले कर रहने लगा. उस ने एक कारखाने में नौकरी कर ली.

जब दो पैसे की बचत होने लगी तो उस ने मातापिता को अपने पास बुला लिया. मातापिता कुछ दिनों उस के पास और कुछ दिनों गांव में रहने लगे. बड़ी हंसीखुशी के साथ परिवार के दिन कटने लगे. यह बात सन 2015 के करीब की है.

साल भर बाद भैरवनाथ और अनुपमा की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया, जिस ने दोनों की जिंदगी तिनके के समान बिखेर कर रख दी. घर की खुशियों में आग लगाने वाली उस तूफान का नाम था रूपा देवी.

दरअसल रूपा देवी भैरवनाथ की चचेरी भाभी थी. उस का परिवार बोकारो के भाटडीह मुदहा में रहता है. 2 साल पहले उस के पति की लीवर कैंसर से मौत हो गई थी. उस दौरान भैरव ने चचेरे भाई की तीमारदारी में तनमन और धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया था. भाई को बचाने के लिए उस ने दिनरात एक कर दिया था.

भाई की मौत के बाद भैरव भाभी रूपा देवी का दुख देख कर टूट गया. उसे उस समय बड़ा दुख होता था, जब वह जवान भाभी के तन पर सफेद साड़ी देखता था. सफेद साड़ी के बीच लिपटी रूपा का मन उसे रंगीन दिखता था. दरअसल, पति की तीमारदारी के दौरान रूपा का झुकाव भैरव की ओर हो गया था. रंगीनमिजाज भैरव ने भाभी के निमंत्रण को कबूल कर लिया था.

एक दिन दोनों ने मौका देख कर एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. ड्यूटी से लौट कर आने के बाद भैरव सारा काम छोड़ मोबाइल ले कर घंटों तक रूपा से प्यारभरी बातें करने बैठ जाता था. पत्नी जब पूछती कि किस से बातें कर रहे हो तो वह इधरउधर की बातें कह कर टाल देता था. उस के दबाव बनाने पर वह उस पर चिल्ला पड़ता था.

जब पत्नी के सामने खुली भैरव की पोल

बात 1-2 बार की होती तो समझ में आती, लेकिन मोबाइल पर लंबीलंबी बातें करना तो भैरव की दिनचर्या में ही शामिल हो गई थी. ड्यूटी से घर आने के बाद बच्चों का हालचाल लेना तो दूर की बात, उन की ओर देखता भी नहीं था और घंटों मोबाइल से चिपका रहता था.

पति की इस हरकत ने अनुपमा को उस पर संदेह करने के लिए विवश कर दिया था. लेकिन वह इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ थी कि उस का पति उस के पीठ पीछे क्या गुल खिला रहा है. ये बातें ज्यादा दिनों तक कहां छिपती हैं. जल्द ही भैरव की सच्चाई खुल कर अनुपमा के सामने आ गई.

इस के बाद अनुपमा ने घर में विद्रोह कर दिया. कलई खुलते ही भैरवनाथ के सिर से इश्क का भूत उतर गया. अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए पत्नी के सामने हाथ जोड़ गिड़गिड़ाने लगा कि अब ऐसा नहीं करेगा, गलती हो गई. पति के लाख सफाई देने के बावजूद अनुपमा ने पति की बातों पर यकीन नहीं किया. बच्चों को ले कर वह मायके चली गई. उस ने मांबाप से पति की करतूत बता दी.

उस वक्त अनुपमा के पिता राजेंद्र राय ने भैरवनाथ से तो कुछ नहीं कहा, वह बेटी को ही समझाते रहे कि अगर पति को ऐसे ही छोड़ दोगी तो मामला बनने की बजाय और बिगड़ जाएगा. अपना गुस्सा थूक दो और पति के पास लौट जाओ पर अनुपमा ने पति के पास लौटने से साफ इनकार कर दिया.

अगले भाग में पढ़ें- ऐसे दिया वारदात को अंजाम

इज्जत की खातिर चुना गलत रास्ता – भाग 1

बस्ती-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित बस्ती जिले के थाना कोतवाली क्षेत्र के बड़ेवन फ्लाईओवर पर भारी वाहनों का आनाजाना जारी था. इसी फ्लाईओवर से पश्चिम में अमहट पुल के पास सैकड़ों तमाशबीन एकत्र थे. सड़क के दूसरी ओर एक 21-22 साल के युवक की लाश पड़ी हुई थी, जिसे देख कर लग रहा था कि शायद किसी वाहन से टकराने से दुर्घटना हुई है.

मौके पर जुटी भीड़ मृतक की शिनाख्त करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान पा रहा था. भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी.

पुलिस कंट्रोलरूम से वायरलेस के जरिए घटना की सूचना प्रसारित कर दी गई. वह इलाका थाना कोतवाली में पड़ता था. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे थे.

पुलिस ने घटनास्थल पर जुटी भीड़ से शव की शिनाख्त कराई, लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका. पुलिस ने लाश का गौर से मुआयना किया. लाश की दशा देख कर थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह को ऐसा नहीं लगा कि उस युवक की मौत मार्ग दुर्घटना में हुई है.

क्योंकि मृतक के शरीर पर कहीं भी खरोंच के निशान तक नहीं थे, जबकि दुर्घटना में लाश की स्थिति भयावह हो जाती है. यही बात संदेह पैदा कर रही थी. मृतक के सिर के पीछे चोट लगी थी, जिसे देख कर ऐसा लग रहा था कि मृतक की हत्या कहीं और कर के हत्यारों ने लाश यहां फेंकी हो.

लाश की जामातलाशी लेने पर उस की पैंट की जेब से आधार कार्ड बरामद हुआ. आधार कार्ड मृतक का ही था, उस पर उस का नाम विवेक चौहान पुत्र शिव गोविंद चौहान निवासी बरगदवां, चिल्लुपार, गोरखपुर लिखा था.

शव की शिनाख्त हो जाने से पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली. लेकिन पुलिस ने यह बात पक्की कर ली थी कि युवक की हत्या कहीं और कर के हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए लाश यहां फेंक दी थी.

पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. उस के बाद थाना लौट कर विजयेंद्र सिंह ने कागजी काररवाई कराई. तब तक आधा दिन बीत गया था. यह घटना 10 मार्च, 2018 की सुबह की थी.

थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह को काम से जैसे ही थोड़ी फुरसत मिली, वैसे ही एक फरियादी आ गया. फरियादी का नाम विजयपाल चौहान था. विजयपाल के साथ 2 अन्य लोग भी आए थे. वे इसी थाने के मूड़ाघाट गांव के रहने वाले थे. बातचीत में पता चला कि विजयपाल की बेटी किरन, बीती रात से रहस्यमय तरीके से गायब थी.

10 मार्च की सुबह जब किरन घर में कहीं दिखाई नहीं दी तो सब परेशान हो गए. पूरा घर छान मारा गया. पड़ोसियों के घर जा कर पता लगाया गया, लेकिन किरन का कहीं पता नहीं चला.

जवान बेटी के इस तरह अचानक रहस्यमय ढंग से गायब हो जाने से पूरा परिवार परेशान था. विजयपाल चौहान बडे़ बेटे गोलू उर्फ शंभू और छोटे भाई जनार्दन के साथ बेटी की गुमशुदगी की फरियाद ले कर कोतवाली थाना पहुंचा.

विजयपाल चौहान की बात सुन कर थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह चौंके. उन्होंने विजयपाल चौहान से गुमशुदगी की तहरीर ले कर उसे घर भेज दिया. पुलिस ने किरन की गुमशुदगी दर्ज कर के आगे की काररवाई शुरू कर दी.

शाम को कोतवाली पुलिस को हाइवे से सटे पुराने आरटीओ कार्यालय के पास खेत में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. उस की हत्या ईंट मारमार कर की गई थी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. 2-2 लाशें मिलने से शहर में सनसनीफैल गई थी.

युवती की लाश के पास काफी लोग एकत्र थे. देखने से युवती 19-20 साल की लग रही थी. लाश की स्थिति से ऐसा लगता था जैसे युवती की हत्या कहीं और कर के हत्यारों ने लाश ठिकाने लगाने के लिए यहां ला कर फेंकी हो. फ्लाईओवर के पास सुबह मिली लाश की दशा जैसी ही हालत इस लाश की भी थी.

पुलिस ने लाश का मुआयना किया. मृतका के दोनों पैरों की चप्पलें लाश से थोड़ी दूरी पर इधरउधर पड़ी थीं. हत्यारों ने सिर पर ईंट मारमार कर उसे मौत के घाट उतारा था. ऐसी ही चोट सुबह मिली युवक की लाश के सिर पर मौजूद थी. पुलिस सोच रही थी कि कहीं दोनों लाशों का आपस में कोई संबंध तो नहीं है.

चप्पलें मृतका की ही थीं. पुलिस ने बतौर साक्ष्य चप्पलों को कब्जे में ले लिया. इस के बाद पुलिस और सबूत ढूंढने में जुट गई. इसी बीच भीड़ में से एक युवक ने लाश को पहचान लिया. उस ने बताया कि लाश मूड़ाघाट के रहने वाले विजयपाल चौहान की बेटी किरन की है.

इतना ही नहीं उस युवक ने कोतवाल विजयेंद्र सिंह को एक ऐसी जानकारी दी, जिसे सुनते ही वे उछल पडे़. युवक ने बताया कि सुबह के समय फ्लाईओवर के पास जिस विवेक चौहान की लाश बरामद हुई थी, वह मृतका किरण का प्रेमी था.

यह सुन कर विजयेंद्र सिंह को समझते देर नहीं लगी कि दोनों हत्याओं के पीछे जरूर विजयपाल चौहान का ही हाथ रहा होगा. वह यह भी समझ गए कि यह मामला प्रेमप्रसंग से जुड़ा हुआ है और विजयपाल को पूरे मामले की जानकारी होगी.

विजयेंद्र सिंह ने 2 सिपाहियों को मूड़ाघाट भेज कर लाश की शिनाख्त कराने के लिए विजयपाल को मौके पर बुलवा लिया. विजयपाल के साथ उन का बेटा और छोटा भाई भी साथसाथ आए थे. विजयपाल युवती को देख कर पहचान गए, वह उन की बेटी किरन चौहान थी जो बीती रात रहस्यमय तरीके से गायब थी.

लाश देख कर विजयपाल चौहान, उन का बेटा और छोटा भाई दहाड़ मार कर रोने लगे. पुलिस ने उन्हें किसी तरह शांत कराया. लाश का पंचनामा भर कर पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. विजयेंद्र सिंह अपनी टीम के साथ थाने लौट आए. पुलिस ने किरन की गुमशुदगी को हत्या की धारा (302) में तरमीम कर दिया, जिस में अज्ञात हत्यारों को आरोपी बनाया गया.

माशूका की खातिर : अपनी ही गृहस्थी को क्यों उजाड़ा – भाग 1

3 अक्तूबर, 2017 को भैरवनाथ के छोटे बेटे अभय का जन्मदिन था. उस ने इस अवसर पर घर पर एक पार्टी का आयोजन किया था. उस पार्टी में भैरवनाथ ने बोकारो से अपने पिता राजेंद्र प्रसाद और मां गायत्री देवी को भी धनबाद में अपने कमरे पर बुला लिया था. पार्टी में भैरवनाथ ने कालोनी में रहने वाले अपने कुछ जानने वालों को भी बुलाया था. देर रात तक चली पार्टी में भैरवनाथ के बच्चों ने भी खूब मजे किए. बच्चों के साथ बड़ों ने भी इस मौके पर खूब डांस किया था.

कुल मिला कर पार्टी सब के लिए यादगार रही. पार्टी एंजौय से घर के सभी लोग थक गए थे. उन की टांगों ने जवाब देना शुरू कर दिया था, इसलिए वे अपनेअपने कमरों में सोने के लिए चले गए. थकान की वजह से उन्हें जल्द ही नींद भी आ गई.

अगली सुबह रोजमर्रा की तरह घर में सब से पहले राजेंद्र प्रसाद उठे. देखा घर में सन्नाटा पसरा था. उन्होंने सोचा कि रात काफी देर तक बच्चों ने पार्टी का आनंद लिया था, उस की थकान की वजह से देर तक सो रहे हैं.

यही सोचते हुए वह घर से वह बाहर टहलने के लिए निकल गए. थोड़ी देर बाद जब वह वापस घर लौटे तो घर में वैसा ही सन्नाटा था, जैसा जाने से पहले था. यह देख कर उन का माथा ठनका. ऐसा पहली बार हुआ था कि जब बहू अनुपमा और बच्चे इतनी देर तक सो रहे हैं. वह बच्चों को उठाना चाहते थे.

राजेंद्र प्रसाद पहले बेटे भैरवनाथ के कमरे तक गए तो उस के कमरे पर बाहर से सिटकनी बंद मिली. यह देख कर वे चौंक गए कि सुबहसुबह बेटा और बहू बच्चों को ले कर कहां चले गए, जबकि बाहर जाते हुए वह उन्हें दिखाई भी नहीं दिए थे. सिटकनी खोल कर जैसे ही उन्होंने दरवाजे से भीतर झांका तो बुरी तरह चौंके. बैड पर बहू अनुपमा और दोनों बच्चों की रक्तरंजित लाशें पड़ी थीं. वे चीखते हुए उल्टे पांव वहां से भाग खड़े हुए.

चीखने की आवाज सुन कर उन की पत्नी गायत्री देवी की नींद टूट गई. वह तेजी से उस ओर लपकीं, जिस तरफ से आवाज आई थी. उन्होंने देखा कि आंगन के पास उन के पति खड़े थरथर कांप रहे थे. अभी भी गायत्री ये नहीं समझ पा रही थीं कि उन्होंने ऐसा क्या देख लिया जो कांप रहे हैं. उन्होंने पति को झकझोरते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘अरे भैरव की मां, गजब हो गया. किसी ने बहू और दोनों बच्चों का कत्ल कर दिया है. बिस्तर पर तीनों की लाशें पड़ी हैं.’’ कह कर राजेंद्र प्रसाद जोरजोर से रोने लगे.

इतना सुनना था कि गायत्री भी रोनेबिलखने लगीं. वह रोती हुई बोलीं, ‘‘अरे भैरव को बुलाओ, देखो कहां है?’’

‘‘घर में वह कहीं दिखाई नहीं दे रहा. पता नहीं सुबहसुबह कहां चला गया.’’ राजेंद्र प्रसाद ने कहा.

भैरवनाथ के घर में सुबहसुबह रोने की आवाज पड़ोसियों ने सुनी तो वे भी परेशान हो गए. इंसानियत के नाते कुछ लोग भैरवनाथ के घर जा पहुंचे. कमरे में 3-3 लाशें देख कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. इस के बाद तो देखतेदेखते वहां मोहल्ले के काफी लोग जमा हो गए.

दिल दहला देने वाली घटना को देख कर लोगों का कलेजा कांप उठा. उसी दौरान किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. धनबाद की न्यू कालोनी जहां यह घटना घटी थी, वह क्षेत्र बरवा अड्डा के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना थाना बरवा अड्डा को प्रसारित कर दी गई.

तिहरे हत्याकांड की सूचना मिलते ही बरवा अड्डा के थानाप्रभारी मनोज कुमार एसआई दिनेश कुमार और अन्य पुलिस वालों के साथ न्यू कालोनी पहुंच गए. यह जानकारी उन्होंने एसपी पीयूष कुमार पांडेय और डीएसपी मुकेश कुमार महतो को भी दे दी. सूचना दे कर उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की जांच शुरू कर दी थी. छानबीन के दौरान सब से पहले थानाप्रभारी मनोज कुमार ने राजेंद्र प्रसाद और उन की पत्नी गायत्री देवी से पूछताछ की. उन से पता चला कि भैरवनाथ सुबह से ही गायब है. वह कहीं दिखाई नहीं दिया. यह सुन कर थानाप्रभारी का माथा ठनका.

लाश के पास धमकी भरा पत्र भी मिला

छानबीन के दौरान घटनास्थल से आधार कार्ड की फोटोकौपी पर लाल स्याही से लिखा धमकी भरा 3 पन्नों का खत मिला. खत सिरहाने दूध की बोतल के नीचे दबा कर रखा गया था. लिखने वाले ने अपना नाम नहीं लिखा था. इस में अज्ञात ने राजेंद्र प्रसाद को धमकी दी थी, ‘‘गवाही देने के चलते तुम्हारे बेटे भैरवनाथ का अपहरण कर के ले जा रहे हैं. उस की भी लाश मिल जाएगी. तुम्हारे बेटे ने एक लाख दिया है. 2 लाख रुपए दे कर इसे ले जाना. पुलिस को इस की सूचना नहीं देना वरना अंजाम और भयानक हो सकता है.’’

पत्र पढ़ कर पुलिस को किसी साजिश की आशंका होने लगी.

पुलिस को शक था कि भैरवनाथ ने ही हत्या की वारदात को अंजाम देने के बाद जांच को गुमराह करने के लिए यह पत्र लिखा है. पुलिस कई बिंदुओं पर छानबीन करने लगी.

राजेंद्र प्रसाद से पुलिस ने भैरवनाथ का मोबाइल नंबर लिया. पुलिस ने जब उस नंबर पर काल की तो उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. पुलिस ने मौके से बरामद पत्र को अपने कब्जे में ले लिया ताकि उसे जांच के लिए भेजा जा सके.

लाशों का मुआयना करने पर पता चला कि तीनों की हत्याएं अलगअलग तरीके से की गई थीं. अनुपमा का किसी चीज से गला घोंटा गया था, जबकि दोनों बच्चों की हत्या गला रेत कर की गई थी. दूसरे कमरे में अनुपमा के कपड़े फर्श पर बिखरे पड़े मिले थे. अलमारी भी खुली हुई थी. लग रहा था जैसे उस में कुछ ढूंढा गया हो.

सीआईएसएफ की डौग स्क्वायड टीम ने घटनास्थल की जांच की. खोजी कुत्ता शव को सूंघने के बाद घर की सीढ़ी से छत के ऊपर गया और फिर नीचे उतर कर घर से करीब ढाई सौ मीटर दूर एक जुए के अड्डे तक पहुंचा. वहां शराब की बोतल और ग्लास मिले. टीम को शक हुआ कि हत्या के बाद हत्यारों ने यहां आ कर शराब पी होगी.

सूचना पा कर अनुपमा के पिता राजेंद्र राय परिवार के अन्य लोगों के साथ हजारीबाग के गैडाबरकट्ठा से मौके पर पहुंच गए. उन्होंने आरोप लगाया कि बेटी और उस के बच्चों को भैरवनाथ, उस के पिता राजेंद्र प्रसाद और मां गायत्री ने मिल कर मारा है.

उन से बातचीत करने के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के जब लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी की, तभी अनुपमा के घर वालों ने पुलिस का विरोध करते हुए मांग की कि पहले आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए. घटना की सूचना पर विधायक फूलचंद मंडल, जिला पंचायत सदस्य दुर्योधन प्रसाद चौधरी, कांग्रेस नेता उमाचरण महतो आदि ने मौके पर पहुंच कर पीडि़त परिवार के लोगों को ढांढस बंधाया और एसपी पीयूष कुमार पांडेय से हत्या में शामिल लोगों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

एसपी ने आश्वासन दिया कि जल्द ही केस का खुलासा कर हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. उन के आश्वासन के बाद ही घर वालों ने शव उठाने दिए.

अगले भाग में पढ़ें- अफेयर बना कलह की वजह