4 लाख में खरीदी मौत – भाग 2

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, जयप्रकाश की हत्या रविवार की रात को हुई थी. उसे 315 बोर के तमंचे से गोली मारी गई थी. जब इस पूछताछ से पुलिस हत्यारों तक पहुंचने में नाकाम रही तो जांच को आगे बढ़ाने के लिए पुलिस ने मोबाइल को आधार बनाया.

पुलिस ने मृतक जयप्रकाश और नामजद अभियुक्तों के काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई. इस काल डिटेल्स और लोकेशन से पता चला कि जिस रात जयप्रकाश की हत्या हुई थी, चारों अभियुक्तों की लोकेशन जसपुर थी. चारों में से किसी की मृतक से कोई बात भी नहीं हुई थी. जबकि जयप्रकाश के मोबाइल फोन की लोकेशन काशीपुर की थी. उस की काल डिटेल्स में 2 नंबर ऐसे मिले थे, जिन की लोकेशन काशीपुर की थी और उन नंबरों से जयप्रकाश की कई बार बात भी हुई थी. पुलिस ने उन नंबरों के बारे में पता किया तो दोनों नंबर काशीपुर के निकले.

पुलिस को पता ही था कि मृतक इधर कई दिनों से काशीपुर में अपनी बहन के घर रह रहा था. पुलिस केला देवी से पूछताछ कर ही चुकी थी. उस ने बताया था कि करवा चौथ की बात कह कर जयप्रकाश अपने घर चला गया था. लेकिन जब मृतक के फोन की लोकेशन काशीपुर की ही मिली तो पुलिस ने एक बार फिर उस से पूछताछ करने पहुंची. पुलिस ने उस से उन दोनों नंबरों के बारे में पूछा, जो जयप्रकाश की काल डिटेल्स में मिले थे.

केला देवी से पता चला कि उन दोनों नंबरों में से एक नंबर उस के भतीजे पंकज का है. पुलिस पंकज को हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए कोतवाली जसपुर ले आई. उसे हिरासत में लेने की वजह यह थी कि उस रात उस के नंबर की लोकेशन जसपुर की पाई गई थी.

कोतवाली में पंकज से पूछताछ शुरू हुई तो पुलिस के सवालों के आगे वह ज्यादा देर तक टिक नहीं सका. दरअसल पंकज शरीर से भले ही जवान लगता था, लेकिन उम्र के हिसाब से अभी बच्चा था. इसीलिए पुलिस की सख्ती के आगे उस की हिम्मत जवाब दे गई और उस ने सच उगल दिया. पंकज ने पुलिस को बताया कि अपने 3 साथियों के साथ मिल कर उसी ने जयप्रकाश की हत्या की थी.

पूछताछ में पंकज ने जयप्रकाश की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह हैरान करने वाली थी. इस की वजह यह थी कि उस ने पत्नी, बेटे और पत्नी के प्रेमी को मारने की सुपारी दी थी, लेकिन मारा गया खुद. यह पूरी कहानी कुछ इस तरह थी.

जसपुर के बीएसबी इंटर कालेज में एक चपरासी था गंगाराम. कई सालों पहले जानलेवा बीमारी की वजह से उस की मौत हो गई थी. मृतक जयप्रकाश गंगाराम का बड़ा बेटा था. जवान होने पर गंगाराम ने सुनीता से उस की शादी कर दी थी. उस का परिवार पहले शहर के बीचोबीच सब्जी मंडी के पास रहता था. युवा होते ही जयप्रकाश नीरा बेचने लगा था. उसी की आय से उस के परिवार का गुजरबसर हो रहा था.

जयप्रकाश के 4 बच्चे हो गए तो उस पुराने मकान में रहने में उसे परेशानी होने लगी. तब जयप्रकाश ने अपने उस पुराने मकान को बेच दिया और बीएसबी इंटर कालेज के पास गांगूवाला मोहल्ले में भाई के साथ जमीन खरीद कर नया मकान बना कर उसी में परिवार के साथ रहने लगा.

पिता के समय से ही जयप्रकाश के बीएसबी इंटर कालेज के कई टीचरों से अच्छे संबंध थे, जो गंगाराम के मरने के बाद भी उस के घर आतेजाते रहते थे. उन्हीं अध्यापकों में एक हरजीत सिंह भी था. आनेजाने में ही हरजीत की नजर जयप्रकाश की पत्नी सुनीता पर पड़ी तो उस का मन मचल उठा. इस की वजह यह थी कि वह थोड़ा मनचले किस्म का था. शायद इसीलिए शादीशुदा होने के बावजूद खूबसूरत सुनीता पर उस की नीयत खराब हो गई थी.

मन के मचलते ही हरजीत सुनीता के पीछे पड़ गया. वह कभी सुनीता की सुंदरता की तारीफ करता तो कभी उस के नाश्तेपानी की. सुनीता को उस की ये तारीफें अच्छी लगतीं. जब हरजीत तारीफें कुछ ज्यादा ही करने लगा तो सुनीता का ध्यान उस पर गया. इस के बाद उस की भी समझ में आ गया कि हरजीत चाहता क्या है.

सुनीता की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. लेकिन हरजीत की चाहत के आगे वह झुक गई. उस ने नजरों से ही बता दिया कि वह जो चाहता है, उसे वह मंजूर है. इस के बाद सुनीता की नजदीकी पाने के लिए हरजीत ने उसे गर्ल्स इंटर कालेज में मिड डे मील बनाने का काम दिला दिया. उसी के सहारे सुनीता ने वहीं एक छोटी सी चाय की दुकान खोल ली. अब हरजीत और सुनीता पूरा दिन एकदूसरे की आंखों के सामने रहने लगे.

जयप्रकाश का मकान बस्ती से दूर ऐसी जगह था, जहां कौन आताजाता है, कोई देखने वाला नहीं था. जयप्रकाश नीरा बेचने सुबह ही निकल जाता था. बच्चे भी स्कूल चले जाते थे. उस के बाद घर में सुनीता अकेली रह जाती थी. ऐसे में हरजीत को सुनीता से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. हरजीत जब भी सुनीता के यहां आता था, खानेपीने की तरहतरह की चीजें ले आता था, इसलिए सुनीता के बच्चों को भी वह अच्छा लगने लगा था. बच्चे पिता से ज्यादा उसे प्रेम करने लगे थे.

संबंध बनने के बाद हरजीत सुनीता के घर ज्यादा ही आनेजाने लगा तो यह जयप्रकाश को खलने लगा. जयप्रकाश ने दोनों को किसी दिन अश्लील हरकतें करते देख लिया तो हरजीत के आने का विरोध करने लगा. सुनीता अब उस की बात मानने को तैयार नहीं थी. जिस की वजह से हरजीत को ले कर घर में कलह रहने लगी.

जयप्रकाश ने देखा कि पत्नी उस का कहना नहीं मान रही है और बच्चे भी उसी का साथ दे रहे हैं तो बीवी बच्चों से उसे नफरत हो गई. इस के बाद वह बीवी बच्चों से अलग रहने के बारे में सोचने लगा. वह अपना मकान बेच कर पत्नीबच्चों को छोड़ कर अकेला रहना चाहता था. इस के बाद छोटे भाई से सांठगांठ कर के उस ने मकान बेचने की योजना बना डाली.

दरअसल यह मकान दोनों भाई ने मिल कर बनवाया था. आखिर दोनों भाइयों ने 30 सितंबर, 2014 को सुनीता की चोरी से 17 लाख रुपए में मकान का सौदा कर डाला. इस रकम से जो 9 लाख रुपए जयप्रकाश को मिले थे, उसे ले जा कर उस ने अपनी बहन केला देवी के यहां रख दिए थे.

कौन था जयप्रकाश की हत्या के पीछे? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर – भाग 4

8 जून, 2014 को भी ओमप्रकाश ने नीतू को नोएडा में फिल्म देखने आने के लिए फोन किया. पति के बदले व्यवहार से नीतू खुश थी. नोएडा जाने की बात उस ने अपनी मां विजम से बता दी थी. दोपहर करीब 11 बजे वह घर से नोएडा जाने के लिए निकल गई और मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन से मैट्रो द्वारा वह नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच गई.

ओमप्रकाश को दहेज में डीएल 8सी-एई 1782 नंबर जो सैंट्रो कार नंबर की मिली थी उस से वह नोएडा-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच गया. कार मैट्रो की पाकिंग में खड़ा कर के वह स्टेशन पर पत्नी के आने का इंतजार करने लगा. करीब साढ़े 11 बजे नीतू नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंची तो वह उस से बड़ी गर्मजोशी से मिला.

फिर कार से दोनों अट्टा मार्केट पहुंचे. वहां दोनों ने स्नेक्स खाए. नीतू को इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि जो पति आज उस की इतनी खातिर तवज्जो कर रहा है, उस का काल बनने जा रहा है.

ओमप्रकाश ने यह पहले से सोच रखा था कि पत्नी की हत्या कहां करनी है और  लाश कहां ठिकाने लगानी है. लाश ठिकाने लगाने के लिए उस ने एक बड़ा सा ट्राली बैग पहले ही खरीद कर कार में रख लिया था. नीतू ने जब उस से उस ट्राली बैग के बारे में पूछा तो ओमप्रकाश ने झूठ बोलते हुए कहा था कि औफिस के एक जने ने उस से बैग खरीद कर लाने को कहा था.

अट्टा मार्केट में स्नैक्स खाने के बाद ओमप्रकाश पत्नी को अपने औफिस परी चौक की तरफ ले गया. नोएडा, गे्रटर नोएडा के कुछ इलाकों को नीतू भी पहचानती थी. उस ने कार दूसरे रास्ते पर जाते देखी तो वह बोली, ‘‘यह तुम कहां जा रहे हो, पिक्चर तो हमें शिप्रा में देखनी थी?’’

‘‘हां, हम शिप्रा आ जाएंगे. मुझे औफिस में थोड़ा काम है. काम निपटा कर हम शिप्रा आ जाएंगे.’’ ओमप्रकाश ने उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन नीतू उस पर भड़क गई. उन के बीच तकरार बढ़ गई. झट्टा गांव के पास ओमप्रकाश ने कार रोक दी. वह इलाका सुनसान सा रहता है. मौका देखते ही उस ने दोनों हाथों से पत्नी का गला दबा दिया. कुछ देर बाद नीतू की गरदन एक ओर लुढ़क गई.

पत्नी की हत्या करने के बाद ओमप्रकाश ने उस की लाश पहले से खरीदे हुए ट्राली बैग में रख कर चैन बंद कर दी. वह कार को मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन के पास ले आया और वहां से कुछ दूर यमुना खादर की झाडि़यों में वह बैग डाल दिया. नीतू का फोन स्विच्ड औफ कर के वहां से कुछ दूर रास्ते में फेंक दिया था. इस के बाद वह अपने औफिस चला गया.

मयूर विहार के पास यमुना खादर में उस ने लाश इसलिए फेंकी कि लाश बरामद होने के बाद भी पुलिस का शक उस पर न हो. लाश बरामद होने पर पुलिस उस से पूछती तो वह पुलिस को बता देता कि उस ने नीतू को नोएडा सेक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन पर छोड़ दिया था.

खुद को सेफ रखने के लिए ओमप्रकाश ने अपने औफिस से पत्नी के मोबाइल पर कई फोन किए. बाद में अपने साले संजय को फोन कर के कहा कि नीतू का फोन नहीं मिल रहा है उस से बात करा दे.

ओमप्रकाश ने पत्नी को ठिकाने लगाने की फूलप्रूफ योजना बनाई थी. पूरी योजना को उस ने अकेले ही अंजाम दिया था. अपने ससुराल वालों को भी उस ने विश्वास में ले लिया था तभी तो वह दामाद को पुलिस के पास से ले आए थे.

एक बात तो सच है कि कोई भी व्यक्ति अपराध करने के बाद कितनी भी चालाकी से झूठ बोले, पुलिस के जाल में फंस ही जाता है. ओमप्रकाश ने भी पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सका.

पुलिस ने ओमप्रकाश की निशानदेही पर वह सैंट्रो कार भी बरामद कर ली जिस से उस ने लाश ठिकाने लगाई थी. काफी खोजबीन के बाद भी नीतू का मोबाइल फोन नहीं मिल पाया. विस्तार से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर सी.एम. मीणा कर रहे थे. द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और प्रिया परिवर्तित नाम है.

नफरत की गोली – भाग 1

रात के करीब पौने 8 बज रहे थे. जनवरी की कड़ाके की ठंड में ज्यादातर लोग रजाइयों में दुबके  पड़े थे. जोदसिंह भी अपने पड़ोस में रहने वाले एक बुजुर्ग के पास बैठा हुआ अलाव पर हाथ सेंक रहा था.

उसे उन से बात करते हुए करीब 10-15 मिनट ही हुए होंगे कि एक तेज आवाज आई. वह आवाज किसी बम धमाके की नहीं बल्कि गोली चलने जैसी थी. आवाज सुनते ही वह चौंक गया क्योंकि यह आवाज उस के घर की तरफ से ही आई थी. उस के अलावा आसपास रहने वाले जिन लोगों ने भी वह आवाज सुनी, घरों के बाहर निकल आए और उस के घर की तरफ चल दिए. जोदसिंह भी बुजुर्ग के पास से उठ कर अपने घर पहुंच गया.

जोदसिंह जब घर पर पहुंचा तो बरामदे में उस के पिता प्रेमचंद, भाई टीटू, टिंकू आदि बैठे थे लेकिन पत्नी हेमलता व छोटे भाई बंटू की पत्नी मिथिलेश वहां पर नजर नहीं आ रही थी. आवाज जोदसिंह के घर वालों ने भी सुनी थी लेकिन उन्होंने इस बात पर गौर नहीं किया था कि आवाज उन के घर से ही आई है. बल्कि वे सोच रहे थे कि किसी बच्चे ने पटाखा फोड़ा होगा.

जोदसिंह के 2 मामा व बच्चे कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. आवाज सुन कर वह भी बाहर निकल आए थे परंतु जब उन्हें यह पता नहीं लग सका कि आवाज कहां से आई है तो वे फिर से टीवी देखने में मशगूल हो गए.

जोदसिंह पत्नी को आवाज लगाता हुआ कमरे में पहुंचा. उसी दौरान उस की नजर जीने के दरवाजे पर गई. वह दरवाजा बंद नजर आया. दरवाजा अंदर की तरफ से नहीं बल्कि छत की तरफ से बंद था. वह यह नहीं समझ पा रहा था कि छत पर कौन है, जिस ने दरवाजा बंद कर रखा है. उस ने अपने भाइयों को आवाज लगाई. टिंकू और टीटू दौड़ेदौडे़ उस के पास आए. उन को भी कुछ शक हुआ.

तीनों ने जीने के दरवाजे को खटखटाते हुए आवाज लगाई. जब कोई जवाब नहीं आया तो टीटू और टिंकू ने वह दरवाजा तोड़ दिया. दरवाजा टूटते ही तीनों छत पर पहुंच गए. छत पर बल्ब जल रहा था. बल्ब की रोशनी में उन्होंने जो कुछ देखा, उन के रोंगटे खड़े हो गए.

छत पर खून फैला पड़ा था और वहां जोदसिंह की पत्नी हेमलता लहूलुहान पड़ी थी जबकि हेमलता की देवरानी मिथिलेश छत पर ही दीवार से टेक लगाए बैठी थी. उस के सामने ही एक तमंचा पड़ा था. जोदसिंह लपक कर पत्नी के पास गया.

उस ने लहूलुहान पत्नी को हिलायाडुलाया लेकिन वह मर चुकी थी. पत्नी को इस हालत मे देख कर वह जोरजोर से रोने लगा. टीटू और टिंकू यह बात समझ गए कि भाभी की हत्या मिथिलेश ने ही की होगी. वे उसे घूर कर देखने लगे. इस से पहले कि दोनों भाई कुछ कहते मिथिलेश ने झट से सामने पड़ा हुआ तमंचा उठा लिया.

उस में दूसरी गोली भर कर धमकाते हुए बोली, ‘‘मेरे पास मत आना वरना गोली मार दूंगी.’’

उस के डर की वजह से उन दोनों की हिम्मत उस पास जाने की नहीं हुई. जोदसिंह की रोने की आवाज सुन कर उस के घर के बाहर खड़े पड़ोसी भी छत पर आ गए.

उन्होंने भी हेमलता की लाश देखी तो वे भी हैरान रह गए. मगर उन्हें इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था कि हाथ में तमंचा लिए जो मिथिलेश खड़ी है उस ने यह हत्या की होगी. इसी बीच किसी ने फोन कर के सूचना थाना शमसाबाद में भी दे दी. यह बात 20 जनवरी, 2014 की है.

करीब 10 मिनट बाद गश्त पर घूम रहे 2 पुलिसकर्मियों ने जोदसिंह के घर के बाहर भीड़ लगी देखी तो वे भी पूछताछ करते हुए छत पर पहुंच गए. जबकि मिथिलेश के डर की वजह से मोहल्ले का कोई भी आदमी छत पर जाने की हिम्मत नहीं कर रहा था.

छत पर पहुंच कर पुलिस वालों को लगा कि मिथिलेश नाम की एक महिला ने अपनी ही जेठानी की गोली मार कर हत्या कर दी है. तो उन्होंने तुरंत फोन द्वारा यह सूचना थानाप्रभारी अरुण कुमार यादव को दे दी.

मिथिलेश के हाथ में तमंचा था. उस से वह किसी और के ऊपर गोली न चला दे, इसलिए उन की कोशिश उस से तमंचा हासिल करने की थी. उन्होंने मिथिलेश को समझाया और तमंचा फेंकने को कहा. लेकिन उस ने तमंचा नहीं फेंका बल्कि वह अपनी जेठानी की लाश को ही टकटकी लगाए देख रही थी. फिर हिम्मत कर के धीरेधीरे वे उस की ओर बढ़ने लगे.

उन्हें देख कर मिथिलेश बिलकुल भी नहीं डरी, जबकि पुलिसवालों को इसी बात का डर लग रहा था कि कहीं वह उन के ऊपर गोली न चला दे. फिर लपक कर उन्होंने मिथिलेश का वो हाथ पकड़ लिया जिस में वह तमंचा पकड़े हुए थी. जल्दी से तमंचा कब्जे में ले कर उन्होंने मिथिलेश को भी हिरासत में ले लिया. उन्होंने तमंचा चैक किया तो उस में कारतूस भरा हुआ था.

उसी समय शमसाबाद के थानाप्रभारी अरुण कुमार यादव सबइंसपेक्टर दयाराम, विनोद कुमार, कांस्टेबल कृष्ण, सतेंद्र, हरिओम आदि के साथ वहां पहुंच गए. अब तक घर में हेमलता की मौत को ले कर कोहराम सा मच गया था.

थानाप्रभारी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो देखा कि उस का सिर फटा हुआ था साथ ही सिर में गोली लगने का निशान भी साफ नजर आ रहा था. इस से साफ लग रहा था कि उस की हत्या गोली मार कर की होगी.मरने से पहले हेमलता ने कोई विरोध किया हो, ऐसे कोई सुबूत भी वहां नहीं मिले. छत पर ही बने चूल्हे में एक हथौड़ा भी मिला. उस पर खून लगा हुआ था. पुलिस ने हथौड़ा भी बरामद कर लिया.

पुलिस क्या वहां मौजूद सभी लोगों के मन में बस एक ही सवाल उठ रहा था कि आखिर मिथिलेश ने अपनी जेठानी का कत्ल क्यों किया और वो भी गोली मार कर.

सूचना मिलने पर आगरा के एसएसपी शलभ माथुर और एसपी (देहात) के.पी.एस. यादव भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर मौका मुआयना किया. उन्होंने मिथिलेश और परिवार के अन्य लोगों से भी बात की. इस के बाद वे थानाप्रभारी को कुछ निर्देश देने के बाद चले गए. उन के जाने के बाद थानाप्रभारी ने रात में ही लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

पुलिस ने मिथिलेश को पहले ही हिरासत में ले रखा था. उसे थाने ले जा कर जब उस से जेठानी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी डर के स्वीकार कर लिया कि उस की जेठानी हेमलता की हत्या कर के अपने पति की हत्या का बदला लिया है. फिर उस ने हेमलता की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली.

उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के मलपुरा क्षेत्र का एक गांव है नगल प्रताप. यहां के रहने वाले एक किसान निब्बोराम के 4 बच्चों में मिथिलेश सब से बड़ी बेटी थी. निब्बोराम की आर्थिक हालत इस लायक नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ालिखा सके. जैसेतैसे कर के वह परिवार को पाल रहा था.

मिथिलेश जब सयानी हुई तो उन्होंने ज्यादा जांचपड़ताल किए बिना शमसाबाद थाने के शंकरपुर गांव में रहने वाले प्रेमसिंह के बेटे बंटू के साथ उस की शादी कर दी. जिस बिचौलिए ने यह शादी कराई थी, उस ने निब्बोराम को बंटू के बारे में सही जानकारी नहीं दी थी.

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ

4 लाख में खरीदी मौत – भाग 1

सुबह खेतों की ओर जाते हुए कुछ लोगों ने एक आदमी को पड़े देखा तो उन्हें लगा, शायद कोई शराब पी कर पड़ा है. लेकिन जब उन्होंने नजदीक जा कर देखा तो पता चला कि वह तो मरा पड़ा है. वह खून से लथपथ था, इस से लोगों ने अंदाजा लगाया कि यह हत्या का मामला है.

हत्या का अंदाजा होते ही वहां मौजूद लोगों में से किसी ने इस बात की जानकारी ग्रामप्रधान निर्मल सिंह को दे दी. कुछ ही देर में वहां अच्छीखासी भीड़ लग गई. लाश जसपुर कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव अहमदनगर के पास खेतों में पड़ी थी. ग्रामप्रधान निर्मल सिंह की सूचना पर जसपुर कोतवाली के एसएसआई संजीव कुमार पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

निरीक्षण में पुलिस ने देखा कि मृतक के शरीर पर किसी भी तरह का चोट का कोई निशान नहीं था. उस की हत्या गोली मार कर की गई थी. गोली आंख के पास लगी थी, जो छेद कर उस पार गले के पास से निकल गई थी.

मृतक की शिनाख्त के लिए पुलिस को किसी तरह की जहमत नहीं उठानी पड़ी. क्योंकि उसे वहां लगभग हर कोई जानता था. मृतक जसपुर के मोहल्ला गांगूवाला का रहने वाला जयप्रकाश था, जो घूमघूम पूरे दिन ठेले पर नीरा (खजूर के पेड़ का पानी) बेचता था. यही वजह थी कि अधिकांश लोग उसे जानतेपहचानते थे. हत्या की सूचना पा कर सीओ प्रकाशचंद आर्य भी घटनास्थल पर आ गए थे.

मृतक के कपड़ों की तलाशी में पुलिस को उस की जेब से पहचान पत्र, फोटो और 4 हजार रुपए नकद मिले थे. इस से यह साफ हो गया था कि मृतक की हत्या लूटपाट के लिए नही की गई थी.

साथ आई फोरेंसिक टीम अपना काम करने लगी तो एसएसआई संजीव कुमार ने जयप्रकाश की हत्या की सूचना उस के घर वालों को दिलवा कर वहीं बुला लिया. हत्या की सूचना पा कर घर वाले रोतेबिलखते वहां आ पहुंचे. पूछताछ में पता चला कि मृतक इधर कई दिनों से काशीपुर में रहने वाली अपनी बहन केला देवी के यहां रह रहा था. इस के बाद पुलिस के सामने यह सवाल खड़ा हो गया कि मृतक जब काशीपुर में रह रहा था तो इस की हत्या यहां कैसे हुई?

इसी पूछताछ में मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता ने बताया था कि कुछ दिनों पहले मृतक ने अपना मकान 9 लाख रुपए में बेचा था. मकान बेचने के बाद से ही वह अपनी बहन के यहां रह रहा था. 9 लाख रुपए एक मोटी रकम होती है. उस के लिए भी उस की हत्या हो सकती थी. यह सब जांच के बाद ही पता चल सकता था. पुलिस घटना की काररवाई निपटाते हुए लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी कर रही थी कि तभी मृतक जयप्रकाश की बहन केला देवी आ गई.

आते ही केला देवी भाई की लाश से लिपट कर जोरजोर से रोने लगी. पुलिस को जब पता चला कि यही उस की बहन केला देवी है, जिस के यहां जयप्रकाश अपने मकान के रुपए ले कर रहा था तो पुलिस ने उस से भी पूछताछ करना उचित समझा.

सांत्वना दे कर पुलिस ने केला देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि 11 अक्तूबर को करवा चौथ होने की वजह से जयप्रकाश अपने घर जाने की बात कह कर उस के घर से चला आया था. इस के बाद वह कहां गया, उस के साथ क्या हुआ, उसे कोई जानकारी नहीं थी.

पुलिस केला देवी से पूछताछ कर रही थी कि तभी मृतक जयप्रकाश की मां बिरमो देवी आ गई. वह बहू की ओर इशारा कर के रोते हुए कहने लगी, ‘‘अपने यार के साथ मिल कर तू ने ही मेरे बेटे को मरवाया है. तू हत्यारिन है. मेरे बेटे को मरवा कर तेरा कलेजा ठंडा हो गया न, अब मौज कर अपने यार के साथ.’’

बिरमो देवी की बातें सुन कर पुलिस के कान खड़े हो गए. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह अवैध संबंधों में हुई हत्या का मामला है. पुलिस को लगा, अब जल्दी ही इस मामले का खुलासा हो जाएगा. इस के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

बिरमो देवी की बातों से पुलिस ने इसे अवैध संबंध में हुई हत्या का मामला माना था, इसलिए अंतिम संस्कार होने के तुरंत बाद पुलिस मृतक जयप्रकाश के घर पूछताछ के लिए पहुंच गई. मृतक की मां बिरमो देवी घर में नहीं थी, इसलिए पुलिस उस की पत्नी सुनीता और बच्चों से पूछताछ करने लगी.

सुनीता और बच्चों ने बताया कि करवा चौथ को जयप्रकाश घर नहीं आया था. उसे किस ने, कब और क्यों मारा, उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. पत्नी और बच्चों के खिलाफ पुलिस को अब तक की जांच में कोई सुबूत नहीं मिला था, इसलिए पुलिस इस बात पर भी विचार करने लगी कि कहीं रुपयों की वजह से तो जयप्रकाश की हत्या नहीं हुई.

इस के बाद पुलिस ने मकान खरीदने वाले से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मकान का सौदा होते ही उस ने पूरी रकम अदा कर दी थी. उस के बाद जयप्रकाश ने पैसों का क्या किया, उसे कोई जानकारी नहीं थी.

पुलिस जयप्रकाश की मां बिरमो देवी से पूछताछ करना चाहती थी, इसलिए एक बार फिर उस के घर गई. इस बार की पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि उस की बहू सुनीता का चमनबाग के रहने वाले मास्टर हरजीत सिंह से प्रेमसंबंध है. जब देखो, तब वह उसी के घर में पड़ा रहता था.

जयप्रकाश ने कई बार सुनीता को समझाया था, लेकिन सुनीता मास्टर के प्यार में इस कदर पागल थी कि मास्टर के लिए वह पति से लड़ने लगती थी. सुनीता का मास्टर हरजीत सिंह से चक्कर था, इसलिए वह उस की तरफदारी करती थी. उस का बड़ा बेटा विशाल भी उस के साथ उस की तरफदारी करता था.

बिरमो देवी ने पूरे विश्वास के साथ पुलिस से कहा था कि सुनीता ने ही मास्टर हरजीत सिंह के साथ मिल कर जयप्रकाश की हत्या की है. बिरमो देवी के इसी बयान को आधार बना कर पुलिस ने उस की ओर से मास्टर हरजीत सिंह, उस के बेटे दीपक, मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता और बेटे विशाल के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

नामजद मुकदमा दर्ज होने के बाद जसपुर कोतवाली पुलिस ने मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता और मास्टर हरजीत सिंह को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी. काफी पूछताछ के बाद भी जब दोनों ने स्वीकार नहीं किया कि उन्होंने हत्या की है तो पुलिस चक्कर में पड़ गई. क्योंकि पुलिस इस मामले को बड़े हलके में ले रही थी. जब सुनीता और हरजीत ने हत्या करने से साफ मना कर दिया और पुलिस को उन के हत्या में शामिल होने का कोई सुबूत नहीं मिला तो पुलिस के लिए परेशानी बढ़ गई.

कहानी के अगले अंक में पढ़ें.. जयप्रकाश ने क्यों दी अपनी ही पत्नी और बेटे की सुपारी?

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर – भाग 3

नीतू की लाश 3 दिन पहले जंगल में यमुना किनारे डाल दी थी. ऐसे में आशंका इस बात की थी कि कहीं लाश किसी जानवर ने क्षतिग्रस्त न कर दी हो. इसलिए पुलिस सब से पहले ओमप्रकाश को उसी जगह ले कर गई जहां उस ने लाश फेंकी थी.

ओमप्रकाश की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों के बीच से एक ट्राली बैग बरामद किया. उस ने बताया कि इसी बैग में नीतू की लाश है. बैग खोलने से पहले इंसपेक्टर सी.एम. मीणा ने सूचना क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और जिला मुख्यालय को दे दी थी. फोन करने पर पूर्वी जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम भी वहां पहुंच गई.

उन सभी के सामने जब उस बैग की चैन खोली गई तो उस में एक महिला की लाश निकली लाश देखते ही पास में खड़े दिनेश कुमार की चीख निकल गई. वह जोरजोर से रोने लगे. उन्हें रोता देख पुलिस समझ गई कि लाश उन की बेटी नीतू की ही है. लाश की शिनाख्त हो जाने पर पुलिस ने पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल भेज दिया.

ओमप्रकाश ने अपनी नवविवाहिता पत्नी की हत्या क्यों की? इस बारे में पुलिस ने उस से पूछताछ की तो इस की वजह उन के दांपत्य जीवन में आई कड़वाहट निकली.

पूर्वी दिल्ली के कल्याणपुरी में रहने वाले दिनेश कुमार ललित कला अकादमी में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी विजम के अलावा 2 बेटे और एक बेटी नीतू थी. छोटे से परिवार में वह हंसीखुशी से रहते थे. नीतू बच्चों में सब से छोटी थी. दूसरे वह 2 भाइयों के बीच अकेली बहन थी इसलिए वह सभी की दुलारी थी. इस वजह से वह जिद्दी स्वभाव की हो गई थी.

नीतू के 12वीं पास करने के बाद दिनेश उस के लिए कोई उचित लड़का ढूंढने लगे. किसी परिचित ने उन्हें ओमप्रकाश नाम का लड़का बताया. ओमप्रकाश गाजियाबाद के छपरौला में स्थित अरुणा इन्क्लेव में अपने बड़े भाई और छोटे भाई के साथ रहता था. एमबीए करने के बाद वह एयरटेल कंपनी में नौकरी करता था. उस का औफिस ग्रेटर नोएडा में परी चौक के पास था. वैसे ओमप्रकाश मूल रूप से गौतमबुद्ध नगर के दनकौर कस्बे के रहने वाले बीरपाल का बेटा था.

दिनेश ने ओमप्रकाश को देखा तो वह नीतू के लिए उचित लगा. फिर उन्होंने ओमप्रकाश के घर वालों से बात की. दोनों तरफ से बातचीत होने के बाद नीतू और ओमप्रकाश की शादी तय हो गई और 13 नवंबर, 2013 को सामाजिक रीतिरिवाज से उन का विवाह हो गया.

शादी के बाद नीतू अरुणा इन्क्लेव में ही रहने लगी. नीतू कुछ दिनों तक तो ठीक रही लेकिन बाद में वह पति से घर की छोटीछोटी बातों को ले कर शिकायतें करने लगी. दरअसल जिस फ्लैट में ओमप्रकाश रहता था, उस में उस के 2 भाई और भाभी भी रहती थी. नीतू को उन सब के साथ रहना अच्छा नहीं लगता था. वह उन सब से अलग पति के साथ रहना चाहती थी.

ओमप्रकाश घर वालों से अलग रहना नहीं चाहता था. इसी बात पर उन के बीच मनमुटाव रहने लगा. ओमप्रकाश के औफिस के पास ही आईसीआईसीआई बैंक की शाखा है. किसी काम से वह अकसर उस शाखा में जाता रहता था. शाखा में काम करने वाली प्रिया नाम की लड़की से उस की जानपहचान हुई जो पुणे की रहने वाली थी. बाद में वह जानपहचान दोस्ती में बदल गई थी.

प्रिया की उस से जबतब फोन पर भी बात होती रहती थी. पत्नी की मौजूदगी में भी वह उस से बात करता था. नीतू के पूछने पर उस ने बता भी दिया कि एक बैंक में नौकरी करने वाली प्रिया नाम की लड़की से दोस्ती है वह उसी से बात करता है.

ओमप्रकाश के प्रिया के साथ किस तरह के संबंध थे इस बात को प्रिया या ओमप्रकाश ही बेहतर जानते थे लेकिन नीतू को पति का प्रिया से बतियाना जरा भी अच्छा नहीं लगता था. नीतू ही क्या अधिकांश महिलाएं नहीं चाहतीं कि उन का पति उन के अलावा किसी और महिला या लड़की से बात करे. यानी नीतू की पति से इस बात की शिकायत करनी जायज थी.

लेकिन ओमप्रकाश पत्नी की शिकायत पर तवज्जो नहीं देता वह बात को एक कान से सुनता, दूसरे से निकाल देता था. इस बात पर नीतू को शक हो गया कि वह प्रिया से बात करना बंद क्यों नहीं कर रहा. शक की फांस बहुत खतरनाक होती है. यदि इस फांस को जल्द ही दूर न किया जाए तो यह मजबूत से मजबूत दांपत्य जीवन में भी दरार पैदा कर देती है.

ओमप्रकाश अपने दांपत्य में लगी इस फांस को गंभीरता से नहीं ले रहा था जिस का नतीजा यह निकला कि इस बात को ले कर नीतू की उस से अकसर ही नोकझोंक होने लगी.

ऐसी बात नहीं थी कि नीतू को ही पति पर शक हो, ओमप्रकाश को भी नीतू पर शक होने लगा. इस की वजह यह थी कि ओमप्रकाश ने कई बार औफिस से नीतू के मोबाइल पर फोन किया तो उस का फोन बिजी आया. ऐसा कई बार होने पर ओमप्रकाश के मन में भी शक बैठ गया कि वह जरूर अपने किसी बौयफ्रेंड से बतियाती होगी. बात में घर लौट कर जब वह उस से फोन बिजी होने की वजह पूछता तो वह कह देती कि मम्मी से बात कर रही थी.

नीतू और ओमप्रकाश के मन में शक की जो फांस लगी थी दोनों की जिद से वह नासूर बनती जा रही थी.

नीतू गुस्से में कई बार मायके भी चली गई थी. उस ने अपनी मां को भी बता दिया था कि ओमप्रकाश का किसी प्रिया नाम की लड़की के साथ चक्कर चल रहा है. वह उसी के साथ बतियाते रहते हैं. तब विजम ने भी दामाद को समझाया था. और बेटी को समझाबुझा कर ससुराल भेज दिया था.

21 जून, 2014 को भी नीतू और ओमप्रकाश के बीच कहासुनी हुई तो नीतू गुस्से में मायके आ गई थी. ओमप्रकाश ने उसे वापस आने को कहा तो वह नहीं आई. हां 2-4 दिनों बाद उन दोनों की फोन पर अकसर बातचीत जरूर होती रहती थी.

नीतू की तुनकबाजी और घर में रहने वाले क्लेश से ओमप्रकाश आजिज आ चुका था. सुकून से रहने के लिए उस ने पत्नी को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. योजना को सही अंजाम देने के लिए पत्नी को विश्वास में लेना जरूरी था, इसलिए उस ने फोन पर चिकनीचुपड़ी बातें करनी शुरू कर दी. उस ने नीतू को 2 बार मिलने के लिए नोएडा भी बुलाया.

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर – भाग 2

2 दिन बीत चुके थे. पुलिस को नीतू के बारे में कोई क्लू नहीं मिल रहा था. उस का पति, मातापिता चिंतित और परेशान थे. वह बारबार थाने के चक्कर लगा रहे थे. मामला जवान महिला के गायब होने का था. दिल्ली में वैसे भी महिलाओं के साथ होने वाली आपराधिक वारदातें बढ़ती जा रही हैं. नीतू भी कहीं किसी वारदात का शिकार न हो जाए इसलिए पूर्वी दिल्ली के डीसीपी अजय कुमार ने एसीपी संजय सहरावत के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई जिस में इंसपेक्टर सी.एम. मीणा, एसआई संदीप कुमार, हेडकांस्टेबल सुशील कुमार, कर्मवीर, कांस्टेबल जितेंद्र कुमार, सुरजीत, देशपाल आदि को शामिल किया.

पुलिस टीम सब से पहले यही पता लगाने में जुट गई कि नीतू पति की बताई गई जगह सेक्टर-18, नोएडा पहुंची थी या नहीं और गई भी होगी तो कल्याणपुरी से नोएडा जाने के 2 ही तरीके हैं या तो वह बस, कार, बाइक से गई होगी या फिर मैट्रो द्वारा.

कल्याणपुरी के नजदीक में मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन है. अगर वह मैट्रो से गई होगी तो मैट्रो स्टेशन पर लगे कैमरों में उस की तसवीर जरूर रिकौर्ड हो गई होगी. यह जानने के लिए टीम 23 जून को मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन पहुंची और 21 जून को दोपहर 11 बजे के बाद की रिकौर्ड की गई सीसीटीवी फूटेज देखनी शुरू कर दी. पुलिस के साथ नीतू के पिता दिनेश कुमार भी थे. ओमप्रकाश को पुलिस ने स्टेशन के नीचे खड़ी कार में बैठा रखा था. सभी फूटेज को बड़ी गौर से देख रहे थे.

तभी गेट नंबर 1 से नीतू मैट्रो स्टेशन पर चढ़ती दिखी. वह काले रंग की पेंट व मैरून कलर का टाप पहने हुई थी. उस समय वह काफी खुश दिख रही थी. दिनेश ने तुरंत अपनी बेटी को पहचान लिया. यह तसवीर सवा 11 बजे रिकौर्ड की गई थी.

इस तसवीर से यह पता लगा कि वह नोएडा के लिए निकली थी. इस के बाद पुलिस ने नोएडा सेक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन की सीसीटीवी फुटेज देखी. वहां करीब साढ़े 11 बजे नीतू स्टेशन से बाहर निकलती दिखी. उस के साथ उस का पति ओमप्रकाश भी था. दोनों खुश थे और बतियाते हुए नीचे उतर रहे थे.

नोएडा सेक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन के सीसीटीवी कैमरे की फूटेज देख कर पुलिस समझ गई कि ओमप्रकाश झूठ बोल रहा है. उस ने पुलिस को बताया था कि नीतू उस से नहीं मिली थी जबकि फूटेज देख कर पता चलता है कि वह मैट्रो स्टेशन पर पत्नी को खुद रिसीव कर के ले गया था. इस से पुलिस को ओमप्रकाश पर ही शक होने लगा.

थाने ला कर पुलिस ने ओमप्रकाश से पूछताछ की तो वह बोला, ‘‘नीतू को मैं ने फिल्म देखने के लिए नोएडा बुलाया था. सैक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंचने से पहले उस ने मुझे फोन कर दिया था. मैं भी मैट्रो स्टेशन पहुंच गया था. फिर बाद में उस ने फिल्म देखने का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया. कह रही थी कि उसे जल्दी घर लौटना है. अट्टा मार्केट में एक दुकान से हम ने स्नैक्स खाए. कुछ देर बात करने के बाद नीतू को सैक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन पर छोड़ कर मैं अपने औफिस चला गया था. चाहें तो आप औफिस में मेरी हाजिरी चैक कर सकते हैं.’’

‘‘जब तुम नीतू से मिले थे, तो झूठ क्यों बोले कि वो तुम्हारे पास नहीं आई थी?’’ इंसपेक्टर सी.एम. मीणा ने पूछा.

इस बात का ओमप्रकाश जवाब नहीं दे पाया तो उन्होंने उस से सख्ती से पूछताछ की. तभी ओमप्रकाश के ससुर दिनेश ने दामाद से सख्ती करने को मना कर दिया. उन्होंने पुलिस से कहा कि हमें अपने दामाद पर भरोसा है. वह हमारी बेटी के साथ बुरा नहीं कर सकता.

पुलिस को लग रहा था कि नीतू के गायब होने में ओमप्रकाश का हाथ रहा होगा. थोड़ी सख्ती करने पर वह सारा मामला उगल देता मगर दिनेश के मना करने पर पुलिस उस से पूछताछ नहीं कर सकी.

पुलिस ने दिनेश को काफी समझाने की कोशिश की लेकिन दामाद पर जमे विश्वास के आगे वह पुलिस की बात मानने को तैयार ही नहीं था. अंत में पुलिस ने यह कहते हुए ओमप्रकाश को दिनेश के हवाले कर दिया कि जांच में ओमप्रकाश से पूछताछ करने की जब भी जरूरत पड़ेगी, वही उसे थाने ले कर आएंगे.

पुलिस की इस शर्त पर दिनेश ने हामी भर ली और वह दामाद को अपने साथ घर ले गया. उन दोनों के थाने से जाने के बाद पुलिस टीम मशविरा करने लगी कि अब क्या किया जाए? क्योंकि पुलिस जांच जिस रास्ते पर आगे बढ़ रही थी, वह वहीं रुक गई थी.

मामला एक महिला से संबंधित था इसलिए पुलिस भी चुप नहीं बैठी. पुलिस टीम अब अपने मुखबिरों से नीतू के चालचलन आदि का पता लगाने लगी. यानी उस का कल्याणपुरी में किसी लड़के के साथ कोई चक्कर वगैरह तो नहीं चल रहा था.

दिनेश 23 जून की शाम को ओमप्रकाश को अपने साथ घर ले गया था. अगले दिन 24 जून की सुबह तकरीबन 4 बजे वह उसे ले कर फिर थाने आ गया. इंसपेक्टर सी.एम. मीणा और एसआई संदीप कुमार उस समय रात्रि गश्त कर के थाने लौटे थे. उन्होंने सुबहसुबह ससुरदामाद को थाने में देखा तो वे चौंके.

इस से पहले कि वह उन से थाने आने की वजह पूछते दिनेश ओमप्रकाश की तरफ इशारे करते हुए बोला, ‘‘सर, इस पर आप जो शक कर रहे थे वह सही था. अब हमें भी यकीन हो गया है कि नीतू को गायब कराने में इसी का हाथ होगा. इसे सब पता है कि इस समय मेरी बेटी कहां है? लेकिन यह हमें भी नहीं बता रहा. मैं इसी के खिलाफ नीतू का अपहरण करने की रिपोर्ट लिखाना चाहता हूं.’’

दिनेश की इस बात पर इंसपेक्टर सी.एम. मीणा को हैरानी हुई क्योंकि जो व्यक्ति कल तक अपने दामाद पर आंखें मूंद कर भरोसा कर रहा था, रात बीच में ऐसा क्या हो गया कि वह दामाद के खिलाफ हो गया. उन्होंने दिनेश से कहा, ‘‘हमें तो इस पर पहले से ही शक हो रहा था. कल जो इस से पूछताछ की जा रही थी, उसी में बता देता कि नीतू कहां है? मगर आपने इस से पूछताछ नहीं करने दी. यदि इसे अपने साथ नहीं ले गए होते तो अब तक सारी हकीकत सामने आ गई होती. मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही कि अब आप इस के खिलाफ अपहरण का केस क्यों दर्ज करा रहे हैं?’’

‘‘सर, हम इस पर बहुत विश्वास करते थे तभी तो जब आप ने इस से सख्ती की तो हम ने आप से मना कर दिया था. हमें यह लग रहा था कि आप इस के ऊपर दबाव डाल कर कुछ कुबूलवाना चाहते हैं तभी तो हम इसे थाने से ले गए थे. घर ले जा कर हम ने इस से नीतू के बारे में पूछताछ की थी. इसने उस के बारे में कुछ भी नहीं बताया. लेकिन उस समय यह बहुत घबरा रहा था और बारबार हमारे यहां से जाने की बात कह रहा था. इन्हीं बातों पर हमें इस पर शक हो रहा है.’’ दिनेश ने बताया.

दिनेश के कहने पर पुलिस ने ओमप्रकाश को हिरासत में ले लिया और दिनेश कुमार की तरफ से ओमप्रकाश के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस ने ओमप्रकाश से उस की पत्नी नीतू की बाबत सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जो राज खोला, उसे जानकर सभी सन्न रह गए. उस ने बताया कि 21 जून को ही वह नीतू की हत्या कर चुका है और लाश एक बैग में बंद कर के यमुना खादर में डाल दी थी.

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर – भाग 1

दोपहर के पौने 2 बजे के करीब ओमप्रकाश ने अपने साले संजय के मोबाइल पर फोन किया, ‘‘संजय नीतू कहां है? मैं बहुत देर से उस का नंबर मिला रहा हूं लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा है. पता नहीं उस ने अपना फोन बंद क्यों कर रखा है. तुम देखो तो वो कहां है? और उस से मेरी बात भी करा देना.’’

नीतू ओमप्रकाश की पत्नी थी, जो उस समय अपने मायके में रह रही थी, यह बात 21 जून, 2014 की है.’’

संजय उस समय अपने घर पर नहीं था. उस ने उसी समय अपनी बहन नीतू का फोन नंबर मिलाया तो वास्तव में वह बंद था. नीतू के पास जो मोबाइल फोन था उस में वोडाफोन और आइडिया कंपनी के सिम थे. संजय ने उस के दोनों फोन नंबरों को कई बार मिलाया. लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ बताया गया. इस बात को वह भी नहीं समझ पाया कि नीतू ने फोन बंद क्यों कर रखा है?

फिर संजय ने अपनी मां विजम को फोन किया, ‘‘मम्मी, नीतू कहां है? उस का फोन नहीं मिल रहा. जीजाजी उस से बात करना चाहते हैं. उस से कह देना कि वह जीजाजी से बात कर ले.’’

‘‘वो तो सुबह 11 बजे के करीब घर से नोएडा में उन के जाने के लिए निकली थी. कह रही थी कि ओमप्रकाश ने उसे पिक्चर दिखाने के लिए बुलाया है. क्या 3 घंटे में वो उन के पास पहुंची नहीं तो कहां चली गई?’’ विजम चिंतित होते हुए बोलीं.

विजम ने भी बेटी के दोनों नंबर अपने फोन से मिलाए तो वे बंद आ रहे थे. फिर उन्होंने अपने दामाद ओमप्रकाश से फोन पर बात की. ओमप्रकाश ने अपनी सास को बताया कि नीतू को उस ने पिक्चर देखने के लिए बुलाया जरूर था लेकिन वह उस के पास नहीं पहुंची.

नीतू और ओमप्रकाश की शादी करीब 6 महीने पहले ही हुई थी. फोन पर बात करते समय ओमप्रकाश समझ रहा था कि नीतू को ले कर सास बहुत परेशान हो रही है. वह उन्हें समझाते हुए बोला, ‘‘मम्मी आप परेशान मत होइए. ऐसा भी हो सकता है कि वह अपनी किसी सहेली के साथ पिक्चर देखने चली गई हो. एक दो घंटे में शायद वह घर पहुंच ही जाएगी. जब वह घर पहुंच जाए तो मेरी बात जरूर करा देना. इस समय मैं औफिस में हूं. औफिस की छुट्टी के बाद मैं भी आप से मिलने आ रहा हूं.’’

‘‘ठीक है, वो घर आ जाएगी तो तुम्हारी बात करा दूंगी.’’ विजम बोली.

शाम हो गई. न तो नीतू ही घर लौटी और न ही उस का फोन मिला. विजम परेशान हुए जा रही थीं. उन्होंने यह बात पति दिनेश कुमार को भी बता दी. घर वालों ने नीतू की सहेलियों आदि से भी पूछताछ की लेकिन उस का पता नहीं चला. ओमप्रकाश ग्रेटर नोएडा में परी चौक के पास स्थित एक टेलीकौम कंपनी में काम करता था. औफिस की ड्यूटी पूरी करने के बाद वह कल्याणपुरी में स्थित अपनी ससुराल पहुंच गया.

तब तक नीतू घर नहीं लौटी थी. जिस की वजह से घर वाले परेशान थे. सभी इस बात से हैरान थे कि अपने फोन को कभी भी बंद न करने वाली नीतू ने आज अपना फोन बंद क्यों कर रखा है? वह बिना बताए इतनी देर तक गायब भी नहीं रही, फिर आज ऐसी कौन सी जगह पर है जहां उस ने अपना फोन तक बंद कर रखा है. सभी लोग बीचबीच में नीतू का फोन मिलाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन स्विच्ड औफ होने की वजह से उस का फोन नहीं मिल पाया.

आपस में सलाहमशविरा करने के बाद ओमप्रकाश अपने ससुर दिनेश कुमार को ले कर थाना कल्याणपुरी चला गया और थानाप्रभारी अरविंद कुमार को नीतू के लापता होने की जानकारी दी. दिनेश की सूचना पर थानाप्रभारी ने नवविवाहिता नीतू की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इस की जांच सबइंसपेक्टर संदीप कुमार को सौंपी गई.

एसआई संदीप कुमार ने काररवाई करते हुए सब से पहले वायरलैस से दिल्ली के समस्त थानों में नीतू का हुलिया आदि बताते हुए, उस के गायब होने की सूचना प्रसारित करा दी. नीतू के पास जो फोन था उस से भी कोई सुराग मिलने की संभावना थी, इसलिए उस के फोन में पड़े हुए वोडाफोन और आइडिया के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाने की काररवाई की.

अगले दिन एसआई संदीप कुमार ने नीतू की मां विजम से बात की तो उन्होंने बताया, ‘‘नीतू 8 जून को अपनी ससुराल से यहां आई थी. कल सुबह तकरीबन 11 बजे घर से निकलते समय उस ने बताया था कि ओमप्रकाश ने उसे नोएडा में पिक्चर देखने के लिए बुलाया है. वह उस के पास जा रही है.

‘‘मैं तो यही सोच रही थी कि वह ओमप्रकाश के पास ही होगी लेकिन दोपहर बाद जब ओमप्रकाश ने नीतू से बात कराने के लिए फोन किया तो पता चला कि वह उस के पास पहुंची ही नहीं है.’’

ओमप्रकाश उस समय ससुराल में ही था. एसआई संदीप ने ओमप्रकाश से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘सर, मैं ने नीतू को फोन कर के नोएडा आने को कहा था उस के पहुंचने के बाद हम लोग कोई मूवी वगैरह देखने जाते. उस ने मुझ से कहा भी था कि मैट्रो से नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच जाएगी.

‘‘मैं उस का सैक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन पर इंतजार करता रहा लेकिन वह वहां नहीं पहुंची तो मैं ने उसे फोन करने की कोशिश की, लेकिन उस का फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो सकी. फिर मैं अपने औफिस चला गया. मैं ने फिर संजय को फोन कर के नीतू का फोन बंद होने की बात बताई.’’

दोनों से बात करने के बाद एसआई संदीप यह समझ गए कि ओमप्रकाश ने नीतू को फिल्म देखने के लिए नोएडा बुलाया था. पति के पास जाने के लिए नीतू घर से निकली भी थी लेकिन वह पति के पास पहुंची थी या नहीं, इस बात पर संदेह था. उस समय वह विजम के घर से चले आए. और अपने स्तर से मामले की छानबीन में लग गए.  उन्होंने आसपास के लोगों से पूछा तो कुछ लोगों ने बता दिया कि उन्होंने नीतू को रिक्शे पर बैठे जाते देखा था.

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