पिता को रास ना आया बेटी का प्यार – भाग 1

कालेज पहुंचने के लिए अभी पर्याप्त समय था, इसलिए कंधे पर बैग लटकाए प्राची मस्ती से चली जा रही थी.  घर से निकल कर अभी वह थोड़ी दूर गई थी कि उस ने महसूस किया कि उसे 2 आंखें लगातार घूर रही हैं. लड़कियों के लिए यह कोई खास बात नहीं है, इसलिए ध्यान दिए बगैर वह अपनी राह चली गई. एक दिन की बात होती तो शायद वह इस बात को भूल जाती, लेकिन जब वे 2 आंखें उसे रोज घूरने लगीं तो उसे उन में उत्सुकता हुई.

एक दिन जब प्राची ने उन आंखों में झांका तो आंखें मिलते ही उस के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई. उस ने झट अपनी आंखें फेर लीं. लेकिन उस ने उन आंखों में ऐसा न जाने कौन सा सम्मोहन देखा कि उस से रहा नहीं गया और उस ने एक बार फिर पलट कर उन आंखों में अपनी आंखें डाल दीं. वे आंखें अपलक उसे ही ताक रही थीं. इसलिए दोबारा आंखें मिलीं तो उस के दिल की धड़कन बढ़ गई.

उन आंखों में प्राची के लिए चाहत का समंदर लहरा रहा था. यह देख कर उस का दिल बेचैन हो उठा. न चाहते हुए भी उस की आंखों ने एक बार फिर उन आंखों में झांकना चाहा. इस बार आंखें मिलीं तो अपने आप ही उस के होंठ मुसकरा उठे. शरम से उस के गाल लाल हो गए और मन बेचैन हो उठा. वह तेजी से कालेज की ओर बढ़ गई.

कहते हैं, लड़कियों को लड़कों की आंखों की भाषा पढ़ने में जरा भी देर नहीं लगती. प्राची ने भी उस लड़के की आंखों की भाषा पढ़ ली थी. वह कालेज तो चली गई, लेकिन उस दिन पढ़ाई में उस का मन नहीं लगा. बारबार वही आंखें उस के सामने आ जातीं. नोटबुक और किताबों में भी उसे वही आंखें दिखाई देतीं. उस का मन बेचैन हो उठता. सिर झटक कर वह पढ़ाई में मन लगाना चाहती, लेकिन मन अपने वश में होता तब तो पढ़ाई में लगता. वह खोईखोई रही.

कालेज की छुट्टी हुई तो प्राची घर के लिए चल पड़ी. रोज की अपेक्षा उस दिन वह कुछ ज्यादा ही तेज चल रही थी. वह जल्दी ही उस जगह पर पहुंच गई, जहां उसे वे आंखें घूर रही थीं. लेकिन उस समय वहां कोई नहीं था. वह उदास हो गई. बेचैनी में वह घर की ओर चल पड़ी. प्राची को घूरने वाली उन आंखों के चेहरे की तलाश थी. घूरने वाली वे आंखें किसी और की नहीं, उस के घर से थोड़ी दूर रहने वाले आयुष्मान त्रिपाठी उर्फ मोनू की थीं.

प्राची इधर काफी दिनों से उसे अपने मोहल्ले में देख रही थी. वह उसे अच्छी तरह जानती भी थी, लेकिन कभी उस से उस की बात नहीं हुई थी. इधर उस ने महसूस किया था कि आयुष्मान अकसर उस से टकरा जाता था. लेकिन उस से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाता था. प्राची ने कालेज जाते समय उस की आंखों में झांका था तो उस ने आंखें झुका ली थीं. फिर जैसे ही उस ने मुंह फेरा था, वह फिर उसे ताकने लगा था.

प्राची ने उस दिन आयुष्मान में बहुत बड़ा और हैरान करने वाला बदलाव देखा था. सिर झुकाए रहने वाला आयुष्मान उसे प्यार से अपलक ताक रहा था. कई बार उन आंखों से प्राची की आंखें मिलीं तो उस के दिल में तूफान सा उमड़ पड़ा था.  उस के होंठों पर बरबस मुसकान उभर आई थी. दिल की धड़कन एकाएक बढ़ गई थी. विचलित मन से वह घर पहुंची थी. इस के बाद उस के ख्यालों में आयुष्मान ही आयुष्मान छा गया था.

घर पहुंच कर प्राची ने बैग रखा और बिना कपड़े बदले ही सीधे छत पर जा पहुंची. उस ने आयुष्मान के घर की ओर देखा. लेकिन आयुष्मान उसे दिखाई नहीं दिया. वह उदास हो गई. उस का मन एक बार फिर उन आंखों में झांकने को बेचैन था. लेकिन उस समय वे आंखें दिखाई नहीं दे रही थीं. वह उन्हीं के बारे में सोच रही थी कि नीचे से मां की आवाज आई, ‘‘प्राची, आज तुझे क्या हो गया कि आते ही छत पर चली गई? कपड़े भी नहीं बदले और खाना भी नहीं खाया. चल जल्दी नीचे आ जा. मुझे अभी बहुत काम करने हैं.’’

मां की बातें सुन कर ऊपर से ही प्राची बोली, ‘‘आई मां, थोड़ा टहलने का मन था, इसलिए छत पर आ गई थी.’’

प्राची ने एक बार फिर आयुष्मान की छत की ओर देखा. वह दिखाई नहीं दिया तो उदास हो कर प्राची नीचे आ गई. रात को खाना खाने की इच्छा नहीं थी, पर मां से क्या बहाना बनाती, इसलिए 2-4 कौर किसी तरह पानी से उतार कर प्राची बेड पर लेट गई. लेकिन आंखों में नींद नहीं थी. आंखें बंद करती तो उसे आयुष्मान की घूरती आंखें दिखाई देने लगतीं. करवट बदलते हुए जब किसी तरह नींद आई तो उस ने सपने में भी उन 2 आंखों को प्यार से निहारते देखा.

दूसरी ओर आयुष्मान भी कम बेचैन नहीं था. सुबह तो समय निकाल कर उस ने प्राची को देख लिया था, लेकिन शाम को देर हो जाने की वजह वह प्राची को नहीं देख पाया था, इसलिए अगले दिन की सुबह के इंतजार में समय कट ही नहीं रहा था. वैसे भी इंतजार की घडि़यां काफी लंबी होती हैं.

अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर प्राची कालेज जाने की तैयारी करने लगी थी. लेकिन उस दिन ऐसा लग रहा था, जैसे समय बीत ही नहीं रहा है. आखिर इंतजार करतेकरते कालेज जाने का समय हुआ तो प्राची उस दिन कुछ ज्यादा ही सजधज कर घर से निकली. वह उस जगह जल्दी से जल्दी पहुंच जाना चाहती थी, जहां बैठ कर आयुष्मान उस के आने का इंतजार करता था.

पंख होते तो शायद वह उड़ कर पहुंच जाती, लेकिन उसे तो वहां पैरों से चल कर पहुंचना था. वह दौड़ कर भी नहीं जा सकत थी. कोई देख लेता तो क्या कहता. जैसेजैसे वह जगह नजदीक आती जा रही थी, उस के दिल की धड़कन बढ़ने के साथ मन बेचैन होता जा रहा था.

वह उस जगह पर पहुंची तो देखा कि आयुष्मान अपलक उसे ताक रहा था. उस ने उस की आंखों में अपनी आंखें डाल दीं. आंखें मिलीं तो होंठ अपने आप ही मुसकरा उठे. उस का आंखें हटाने का मन नहीं हो रहा था, लेकिन राह चलते यह सब ठीक नहीं था. ऐसी बातें लोग ताड़ते भी बहुत जल्दी हैं. वह उसे पलटपलट कर भी नहीं देख सकती थी. फिर भी शरमसंकोच के बीच उस से जितनी बार हो सका, उस ने उसे तब तक देखा, जब तक वह उसे दिखाई देता रहा.

साफ था, दोनों ही आंखों के रास्ते एकदूसरे के दिल में उतर चुके थे. उस रात दोनों को ही नींद नहीं आई. बेड पर लेटेलेटे बेचैनी बढ़ने लगी तो प्राची बेड से उठ कर छत पर आ गई. खुले वातावरण में गहरी सांस ले कर उस ने इधरउधर देखा. आसमान में तारे चमक रहे थे. उस ने उन तारों की ओर देखा तो उसे लगा कि हर तारे से आयुष्मान मुसकराता हुआ उसे ताक रहा है.

                                                                                                                                              क्रमशः

सुहाग की कातिल : देवर के प्यार में किया पति का क़त्ल – भाग 1

दोपहर का वक्त था. रेनू नहा कर बाथरूम से निकली तभी ‘भाभी…भाभी’ कहता हुआ मोहित उस के घर आ पहुंचा. उस समय रेनू के शरीर पर मात्र पेटीकोट और ब्लाउज था. उस की जुल्फों से पानी की बूंदें टपक रही थीं. मोहित की निगाहें रेनू के मखमली बदन पर जैसे पानी की बूंदों की तरह चिपक कर रह गई थीं.

मोहित की इस हरकत को रेनू समझ रही थी. वह न तो शरमाई और न ही वहां से भाग कर दूसरे कमरे में गई. बल्कि वह नजाकत से चलते हुए उस के और करीब आ गई. मोहित रिश्ते में उस का चचेरा देवर लगता था. उन के बीच अकसर मजाक भी होता रहता था. रेनू उस के एकदम करीब आ कर बोली, “मोहित, खड़े क्यों हो, बैठ जाओ न.”

रेनू के कहने के बावजूद मोहित चारपाई पर नहीं बैठा, बल्कि खड़ेखड़े उसे अपलक निहारता रहा. उस के मन में कोई तूफान मचल रहा था. रेनू मादक मुसकान बिखेरती हुई मुड़ी और अंदर वाले कमरे में चली गई. मोहित तब भी अपनी जगह जमा रहा.

रेनू कुछ देर बाद बाहर आई तो मोहित की आंखें फिर उस के चेहरे पर टिक गईं. आखिर रेनू से रहा नहीं गया तो उस ने पूछ ही लिया, “मोहित, तुम मुझे आज इस तरह से क्यों देख रहे हो?”

“बता दूं?” मोहित ने रेनू की आंखों में झांकते हुए कहा, “भाभी, तुम मुझे बहुत खूबसूरत लगती हो. तुम्हारी अदाएं मेरे अंदर बेचैनी पैदा कर रही हैं.”

शुरू हो गया देवरभाभी का प्यार

मोहित की बात सुन कर रेनू के मन में भी हलचल मच गई. वह आगे बढ़ी और मोहित का हाथ थाम कर बोली, “सच कहूं मोहित, तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो. मैं तो तुम्हारे लिए ही सजतीसंवरती हूं. तुम्हारे भैया को तो मेरी कद्र ही नहीं.”

रेनू के इतना कहने पर मोहित मन ही मन खुश हुआ. लेकिन वह वहां रुका नहीं और खेतों की ओर चला गया. रेनू दरवाजे पर खड़ी उसे एकटक देखती रही. मोहित खेतों पर चला तो गया था, लेकिन उस का मन काम में नहीं लग रहा था. वह थोड़ी देर बाद ही लौट आया. उसे देखते ही रेनू से रहा नहीं गया. उस ने आखिर पूछ ही लिया, “क्या बात है, काम में मन नहीं लगा क्या?”

“नहीं भाभी, शरीर तप रहा है.” मोहित ने कहा.

रेनू ने देखा, मोहित का शरीर वाकई पूरी तरह से तप रहा था. उस के हाथ का स्पर्श पाते ही मोहित रेनू से लिपट गया. तब तो रेनू से भी रहा न गया. उस का पूरा शरीर नीचे से ले कर ऊपर तक सनसना उठा. जैसे किसी ने रागिनी छेड़ दी हो और वीणा के सारे तार एक साथ झनझना उठे हों.

रेनू होश खोती जा रही थी. मोहित ने उसे मदहोश होते हुए देखा तो धीरे से उसे अपनी बांहों का सहारा दे कर अपने ऊपर गिरा लिया. अब दोनों का चेहरा आमनेसामने था. सांसें गर्म हो उठीं. मोहित की आंखों में वासना के लाल डोरे तैरने लगे. लग रहा था, जैसे बोतल भर का नशा हो आया हो. रेनू के अधर भी तप रहे थे. मोहित ने अचानक उन तपते होंठों को अपने दांतों के नीचे भींच लिया.

रेनू की सिसकारी फूट पड़ी. मोहित ने इस के बाद उसे और जोर से अपनी बांहों में समेट लिया. उस के हाथ रेनू के नाजुक अंगों पर रेंगने लगे. रेनू का हलक सूखने लगा. उस ने अपना चेहरा उस की चौड़ी छाती में छिपा लिया. तब तो मोहित से रहा नहीं गया. क्षण भर में ही सारे नातेरिश्ते ढह गए. मानमर्यादा टूट गई और दोनों एकदूसरे में समा गए. देवरभाभी के अवैध संबंध इसी तरह चलते रहे.

बृजेश पाल की मिली लाश

28 जनवरी, 2023 की सुबह उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के बिछुआ थाने के गांव नगला पृथ्वी का रहने वाला अनुज पाल अपने सरसों के खेत पर पहुंचा तो वहां खेत में उस ने एक लाश देखी. वह उलटे पैर गांव की ओर भागा और खेत में पड़ी लाश की सूचना गांव वालों को दी. फिर तो जंगल की आग की तरह यह खबर पूरे गांव में फैल गई. लोग खेत की ओर दौड़ पड़े.

सरसों के खेत में लाश पड़ी होने की खबर जब राजेश पाल के कानों में पड़ी तो उस का माथा ठनका. क्योंकि 2 दिन से उस का छोटा भाई बृजेश पाल गुम था. उस का कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था. वह बिछुआ थाने में उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा चुका था . राजेश अपने मन में तमाम आशंकाओं का बवंडर लिए नंगे पांव ही खेत की ओर भागा. ख्ेात पर पहुंच कर जब उस ने लाश देखी तो वह फफक पड़ा. वह लाश उस के भाई बृजेश पाल की ही थी.

इसी बीच किसी ने लाश मिलने की सूचना थाना बिछुआ पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही एसएचओ अमित सिंह पुलिस बल के साथ नगला पृथ्वी गांव की ओर रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचना दे दी थी. थाना बिछुआ से नगला पृथ्वी गांव 5 किलोमीटर दूर था. पुलिस को वहां पहुंचने में लगभग आधा घंटे का समय लगा.

उस समय गांव के बाहर सरसों के खेत के पास ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटाते अमित सिंह उस स्थान पर पहुंचे, जहां लाश पड़ी थी. लाश युवक की थी. जिस की उम्र यही कोई 30-32 साल थी. उस के सिर पर गहरी चोट थी. इसलिए लग रहा था कि उस की हत्या किसी ठोस वस्तु से सिर पर प्रहार कर की गई थी. मृतक जींसकमीज व गुलाबी कलर का स्वेटर पहने था. लाश के पास मोबाइल फोन भी पड़ा था. पुलिस ने मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया. मौके पर मौजूद राजेश नामक युवक ने पुलिस को बताया कि लाश उस के भाई बृजेश की है.

एसएचओ अमित सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी विनोद कुमार, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ चंद्रकेश सिंह मौकाएवारदात आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतक के भाई राजेश तथा मौके पर मौजूद कुछ अन्य लोगों से पूछताछ की.

इसी समय एक महिला एक बूढ़े व्यक्ति के साथ लंबा घूंघट निकाल कर आई और लाश देख कर फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस अधिकारियों ने उसे धैर्य बंधा कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का नाम रेनू पाल है और लाश उस के पति बृजेश पाल की है. साथ आया बूढ़ा व्यक्ति उस का ससुर बेचेलाल है. बेचेलाल की आंखों से भी आंसू टपक रहे थे. वह लाश को टुकुरटुकुर देख रहा था.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 5

इतनी पूछताछ के बाद बेचैन हुए आनंद ने प्रकाश राय से पूछा, “आप रोहिणी के बारे में इतनी पूछताछ क्यों कर रहे है?”

गंभीर स्वर में प्रकाश राय ने कहा, “लोग हम से सत्य को छिपाते हैं, लेकिन हमारा काम ही है लोगों को सच बताना. परसों सवेरे 6 से 7 बजे के बीच किसी ने छुरा घोंप कर रोहिणी की हत्या कर दी है.”

“नहीं..,” आनंदी चीख पड़ी. लगभग 10 मिनट तक आनंदी हिचकियां लेले कर रोती रही. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. आनंदी के शांत होने पर प्रकाश राय ने पूरी घटना सुनाई और अफसोस जाहिर करते हुए कहा, “अभी तक हमें कोई भी सूत्र नहीं मिला है. हमारी जांच जारी है, इसलिए रोहिणी के सभी परिचितों से मिल कर हम पूछताछ कर रहे हैं. कल उस का अंतिम संस्कार भी हो गया है.”

“लेकिन सर, किसी ने भी हमें इस घटना की सूचना क्यों नहीं दी?” आनंद ने पूछा.

“मैं भी यही सोच रहा हूं मिस्टर आनंद, तुम्हारी पत्नी और रोहिणी में बहुत अच्छी मित्रता थी. फिर भी धनंजय ने तुम्हें खबर क्यों नहीं दी, जबकि उस ने कर्नल सक्सेना को तमाम लोगों के फोन नंबर दे कर इस घटना की खबर देने को कहा था. है न आश्चर्य की बात?”

“मैं क्या कह सकता हूं?”

“मैं भी कुछ नहीं कह सकता मिस्टर आनंद. कारण मैं धनंजय से पूछ नहीं सकता. पूछने से लाभ भी नहीं, क्योंकि धनंजय कह देगा, मैं तो गम का मारा था, मुझे यह होश ही कहां था? अच्छा आनंदी, मैं तुम से एक सवाल का उत्तर चाहता हूं. रोहिणी ने कभी अपने पति के बारे में कोई ऐसीवैसी बात या शिकायत की थी तुम से?”

“नहीं, कभी नहीं. वह तो अपने वैवाहिक जीवन में बहुत खुश थी.”

प्रकाश राय का प्रश्न और आनंदी का उत्तर सुन कर आनंद ने जरा घबराते हुए पूछा, “आप धनंजय पर ही तो शक नहीं कर रहे हैं?”

“नहीं, उस पर मैं शक कैसे कर सकता हूं, अच्छा, अब हम चलते हैं. जरूरत पडऩे पर मैं फिर मिलूंगा.”

प्रकाश राय सोच रहे थे कि पूरे सफर के दौरान आनंद और धनंजय ने एकदूसरे से ज्यादा बात क्यों नहीं की? यहां भी वे एकदूसरे से क्यों नहीं मिलते थे?

मंगलवार, 5 मई. रोहिणी कांड की गुत्थी ज्यों की त्यों बरकरार थी. प्रकाश राय को कई लोगों पर शक था, पर प्रमाण नही थे. सिर्फ शक के आधार पर किसी को पकड़ कर बंद करना प्रकाश राय का तरीका नहीं था. दोपहर बाद प्रकाश राय के औफिस पहुंचने से पहले ही उन की मेज पर फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो की रिपोर्ट रखी थी. रिपोर्ट देखतेदेखते उन के मुंह से निकला, “अरे यह…तो.” घंटी बजा कर इन्होंने राजेंद्र सिंह को बुलाया.

“राजेंद्र सिंह, रोहिणी मर्डर केस का अपराधी नजर आ गया है.” कह कर प्रकाश राय ने उन्हें एक नहीं, अनेक हिदायतें दीं.

राजेंद्र सिंह और उन के स्टाफ को महत्पूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर योजनाबद्ध तरीके से समझा कर बोले, “जांच को अब नया मोड़ मिल गया है. भाग्य ने साथ दिया तो 2-3 दिनों में ही अपराधी पूरे सबूत सहित अपने शिकंजे में होगा. समझ लो, इस केस की गुत्थी सुलझ गई है. बाकी काम तुम देखो. मैं अब जरा अपने दूसरे केस देखता हूं.”

उत्साहित हो कर राजेंद्र सिंह निकल पड़े उन के आदेशों का पालन करने. 7 मई की सुबह 9 बजे दयाशंकर अपने स्टाफ के साथ औफिस पहुंचे. पिछली रात प्रकाश राय के निर्देश के अनुसार राजेंद्र सिंह पूरी तरह मुस्तैद थे. थोड़ी देर बाद प्रकाश राय के गाड़ी में बैठते ही गाड़ी सेक्टर-15 की ओर चल पड़ी.

करीब साढ़े 9 बजे प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह अलकनंदा स्थित धनंजय के घर पहुंचे. प्रकाश राय को देख कर धनंजय जरा अचरज में पड़ गया. उस के पिता भी हौल में ही बैठे थे. उस की मां और बहन अंदर कुछ काम में व्यस्त थीं. ज्यादा समय गंवाए बगैर प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “विश्वास, तुम जरा मेरे साथ बाहर चलो. रोहिणी के केस में हमें कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं. हम तुम्हें दूर से ही एक व्यक्ति को दिखाएंगे. तुम ने अगर उसे पहचान लिया तो समझो इस हत्या में उस का जरूर हाथ है. उस के पास से तुम्हारी संपत्ति भी मिल जाएगी. अब उसे पहचानने के लिए हमे तुम्हारी मदद की जरूरत है.”

“ठीक है, आप बैठिए. मैं 10 मिनट में तैयार हो कर आता हूं.” कह कर धनंजय अंदर चला गया और प्रकाश राय उस के पिता के साथ गप्पें मारने लगे. गप्पें मारतेमारते उन्होंने बड़े ही सहज ढंग से पास रखी टेलिफोन डायरी उठाई, उस के कुछ पन्ने पलटे और यथास्थान रख दिया. फिर वह टहलते हुए शो केस के पास गए. उस में रखा चाबी का गुच्छा उन्हें दिखाई दिया. शो केस में रखी कुछ चीजों को देख कर वह फिर सोफे पर आ बैठे.

15-20 मिनट में धनंजय तैयार हो गया. प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह के साथ निकलने से पहले उस ने शो केस में से सिगरेट का पैकेट, लाइटर, पर्स, चाबी और रूमाल लिया. अब प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह धनंजय को साथ ले कर निरुला होटल की ओर चल पड़े. लगभग 10 मिनट बाद उन की गाड़ी होटल के निकट स्थित बैंक के सामने जा कर रुकी.

गाड़ी रुकते ही प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “विश्वास, हम ने तुम्हारी सोसायटी के वाचमैन नारायण को गिरफ्तार कर लिया है. इस समय वह हमारे कब्जे में है. इस बैंक के सेफ डिपौजिट लौकर डिपार्टमेंट में 2 चौकीदार काम करते हैं. इन में से हमें एक पर शक है. मुझे विश्वास है कि उस ने नारायण के साथ मिल कर चोरी और हत्या की है. हम उसे दरवाजे पर ला कर तुम्हें दिखाएंगे. देखना है कि तुम उसे पहचानते हो या नहीं?”

धनंजय को ले कर प्रकाश राय बैंक में दखिल हुए और बैंक के लौकर डिपार्टमेंट में पहुंचे. वहां मौजूद 2-4 लोगों में से प्रकाश राय ने एक व्यक्ति से पूछा, “आप…?”

“मैं बैंक मैनेजर हूं.”

“आप इन्हें जानते हैं?”

“हां, यह धनंजय विश्वास हैं.”

“इन का खाता है आप के बैंक में?”

“खाता तो नहीं है, लेकिन कल दोपहर 3 बजे इन्होंने लौकर नंबर 106 किराए पर लिया है.”

“आप जरा वह लौकर खोलने का कष्ट करेंगे?”

बैंक मैनेजर सुरेशचंद्र वर्मा ने लौकर के छेद में चाबी डाल कर 2 बार घुमाई, पर लौकर एक चाबी से खुलने वाला नहीं था, क्योंकि दूसरी चाबी धनंजय के पास थी. प्रकाश राय धनंजय से बोले, “मिस्टर विश्वास, तुम्हारी जेब में चाबी का जो गुच्छा है, उस में लौकर नंबर 106 की दूसरी चाबी है. उस से इस लौकर को खोलो.”

धनंजय घबरा गया. उस ने चाबी निकाल कर कांपते हाथों से लौकर खोल दिया. प्रकाश राय ने लौकर में झांक कर देखा और फिर धनंजय से पूछा, “यह क्या है मिस्टर विश्वास?”

धनंजय ने गरदन झुका ली. प्रकाश राय ने लौकर से कपड़े की एक थैली बाहर निकाली. उस थैली में धनंजय के फ्लैट से चोरी हुए सारे जेवरात और 5 सौ रुपए के नोटों का एक बंडल भी था, जिस पर रोहिणी के पंजाब नेशनल बैंक की मोहर लगी थी. इस के अलावा एक और चीज थी उस में, एक रामपुरी छुरा.

“मिस्टर विश्वास, यह सब क्या है?” प्रकाश राय ने दांत भींच कर पूछा.

एक शब्द कहे बिना धनंजय ने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक कर रोते हुए कहा, “साहब, मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं. रोहिणी का खून मैं ने ही किया था.”

दरअसल, हुआ यह था कि मंगलवार को औफिस में आते ही प्रकाश राय को जो फिंगरप्रिंट्स रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार फ्लैट में केवल रोहिणी और धनंजय के ही फिंगरप्रिंट्स मिले थे. किसी तीसरे व्यक्ति की अंगुलियों के निशान थे ही नहीं. इसलिए प्रकाश राय की नजरें धनंजय पर जम गई थीं.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 4

प्रकाश राय स्वयं राजेंद्र सिंह को ले कर चल पड़े. रास्ते में प्रकाश राय ने राजेंद्र सिंह को आनंदी के बारे में जो कुछ सुना था, बता दिया. रोहिणी के बैंक के मैनेजर रोहित बिष्ट से मिल कर प्रकाश राय ने अपना परिचय दिया और वहां आने का कारण बताते हुए कहा, “जो कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ. हमें तो दुख इस बात का है कि हत्यारे का हमें कोई सुराग तक नहीं मिल रहा है.”

“हम तो आसमान से गिर पड़े. सवेरे 10 बजे आते ही फोन पर रोहिणी की हत्या की खबर मिली.”

“तुम्हें फोन किस ने किया था?”

“सक्सेना नाम के किसी व्यक्ति ने. पर एकाएक हमें विश्वास ही नहीं हुआ. हम ने मिसेज विश्वास के घर फोन किया. तब पता चला कि रोहिणी वाकई अब इस दुनिया में नहीं रही. हम कुछ लोग अलकनंदा गए थे. मैं दाह संस्कार में जा नहीं पाया. हां, मेरे कुछ साथी जरूर गए थे.”

“आप जरा बुलाएंगे उन्हें?”

कुछ क्षणों बाद ही 5-6 बैंक कर्मचारी मैनेजर के कमरे में आ गए. उन्होंने प्रकाश राय से उन का परिचय कराया. बातचीत के दौरान प्रकाश राय ने वहां उपस्थित हेड कैशियर सोलंकी से पूछा, “शनिवार को मिसेज विश्वास ने कुछ रुपए निकाले थे क्या?”

“हां, 40 हजार…”

“खाता किस के नाम था?”

“मिस्टर और मिमेज विश्वास का जौइंट एकाउंट है.”

“आप ने मिसेज विश्वास को जो रकम दी थी, वह किस रूप में थी?”

“5 सौ के नए कोरे नोटों के रूप में दिया था. उन नोटों के नंबर भी हैं मेरे पास.”

प्रकाश राय ने राजेंद्र सिंह से नोटों के नंबर लेने और उस चेक को कब्जे में लेने को कहा.

कुछ क्षण रुक कर उन्होंने अपना अंदाज बदलते हुए कहा, “अरे क्या खूब याद आया बिष्ïट साहब, विश्वास के यहां हमें बारबार ‘बैंक, आनंदी, कल फोन किया था’- ऐसा सुनाई पड़ रहा था. आप के यहां कोई आनंदी काम..?”

“नहीं,” वहां मौजूद एक अधिकारी ने कहा, “वह आनंदी गौड़ है. रोहिणी की फास्टफ्रैंड. वह यहां काम नहीं करती.”

“अच्छा, यह बात है. बारबार आनंदी का नाम सुनने पर मुझे लगा कि वह यहीं काम करती होगी. आप को मालूम है, यह आनंदी कहां रहती है?”

“निश्चित रूप से तो मालूम नहीं, पर वह दिल्ली में कहीं रहती है. 2-3 बार वह बैंक में भी आई थी. शनिवार को उस का फोन भी आया था. शायद एक, डेढ़ महीना पहले ही उन की जानपहचान हुई थी. मिसेज विश्वास ने ही मुझे बताया था.”

“एक विवाह में शामिल होने के लिए अप्रैल महीने के अंत में गई थीं और 3 मई को ड्यूटी पर आ गई थीं.”

“यहां किसी ने मिसेज आनंदी को रोहिणी की हत्या के बारे में बताया तो नहीं है. अगर नहीं तो अब कोई नहीं बताएगा. क्या किसी के पास उस का नंबर है. अगर नहीं है तो रोहिणी के काल डिटेल्स से तलाशना पड़ेगा.”

मैनेजर ने बैंक की औपरेटर से इंटरकौम पर बात की तो प्रकाश राय को आनंदी का फोन नंबर मिल गया. इस के बाद उन्होंने उस नंबर से आनंदी के घर का पता मालूम कर लिया.

“पता कहां का है?” मैनेजर से पूछे बिना नहीं रहा गया.

“साउथ एक्स का. अच्छा मिसेज गौड़ ने किसलिए फोन किया था?”

“औपरेटर ने बताया है कि किसी वजह से मोबाइल पर फोन नहीं मिला तो मिसेज गौड़ ने लैंडलाइन पर फोन किया था. वह रविवार को मिसेज विश्वास को शौपिंग के लिए साथ ले जाना चाहती थीं. पर रोहिणी ने कहा था कि उस के यहां कुछ मेहमान खाना खाने आ रहे हैं, इसलिए वह नहीं आ सकेगी.”

इतने में ही राजेंद्र सिंह और मिश्रा वहां आ पहुंचे. राजेंद्र सिंह अपना काम पूरा कर चुके थे. प्रकाश राय ने रोहिणी का बियरर चेक ले कर उसे देखा और बड़े ही सहज ढंग से पूछा, “मिस्टर बिष्ट, आप के बैंक में सेफ डिपौजिट वाल्ट की सुविधा है?”

“हां, है. आप को कुछ…?”

“नहीं, नहीं, मैं ने यों ही पूछा. अब हम चलते हैं.”

प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह बैंक से निकल कर साउथ एक्स में जहां आनंदी रहती थी, वहां पहुंचे. प्रकाश राय ने ऊपर पहुंच कर एक फ्लैट के दरवाजे की घंटी बजाई. फ्लैट के दरवाजे पर लिखा ‘आनंद गौड़’ नाम वह पहले ही पढ़ चुके थे. कुछ क्षणों बाद दरवाजा खुला. प्रकाश राय को समझते देर नहीं लगी कि उन के सामने आनंदी और उस के पति आनंद गौड़ खड़े हैं और दोनों बाहर जाने की तैयारी में हैं.

मिस्टर गौड़ ने आश्चर्य से प्रकाश राय को देखा. प्रकाश राय ने शांत भाव से कहा, “मुझे आनंद गौड़ से मिलना है.”

आनंद ने आनंदी को और आनंदी ने आनंद को देखा. 2 अपरिचितों को देख कर वे हड़बड़ा गए थे.

“मैं ही आनंद गौड़ हूं, आप…?”

“हम दोनों नोएडा पुलिस से हैं. एक जरूरी काम से आप के पास आए हैं. घबराने की कोई बात नहीं है. मुझे आप से थोड़ी जानकारी चाहिए.”

“आइए, अंदर आइए.”

प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह ने घर में प्रवेश किया. ड्राइंगरूम में बैठते हुए प्रकाश राय बोले, “मिस्टर आनंद, जिन लोगों का पुलिस से कभी सामना नहीं होता, उन का आप की तरह घबरा जाना स्वाभाविक है. मैं आप से एक बार फिर कहता हूं, आप घबराइए मत. बस, आप मेरी मदद कीजिए.”

बातचीत के दौरान आनंद से प्रकाश राय को मालूम हुआ कि आनंद के परिवार में मातापिता, भाईबहन और पत्नी, सभी थे. 2 साल पहले आनंद और आनंदी का विवाह हुआ था. करोलबाग में आनंद के पिता की करोलबाग शौङ्क्षपग सेंटर नामक एक शानदार दुकान थी . टीवी, डीवीडी प्लेयर, फ्रिज, पंखा आदि कीमती सामानों की यह दुकान काफी प्रसिद्ध थी. मंगलवार को दुकान बंद रहती थी. इसलिए मिस्टर आनंद घर पर मिल गए थे. पतिपत्नी अपने किसी रिश्तेदार के यहां पूजा में जा रहे थे कि वे वहां पहुंच गए थे.

आनंद ने अपने निजी जीवन के बारे में सब कुछ बता दिया तो आनंदी ने प्रकाश राय से कहा, “अब तो बताइए कि आप हमारे घर कौन सी जानकारी हासिल करने आए हैं?”

“मिसेज आनंदी, आप यह बताइए कि आप मिसेज रोहिणी विश्वास को जानती हैं?” प्रकाश राय के मुंह से रोहिणी का नाम सुन कर आनंद और आनंदी भौचक्के रह गए.

“हां, वह मेरी सहेली है. क्यों, क्या हुआ उसे?”

“आप की और रोहिणी की मुलाकात कब और कहां हुई थी?”

“हमारी जानपहचान हुए लगभग एक महीना हुआ होगा. अप्रैल के अंतिम सप्ताह में हम दोनों घूमने आगरा गए थे. 3 मई को आगरा से दिल्ली आते समय शताब्दी एक्सप्रेस में हमारी मुलाकात हुई थी.”

“लेकिन जानपहचान कैसे हुई?”

“हम आगरा स्टेशन से गाड़ी में बैठे थे. रोहिणी और उस के पति भी वहीं से गाड़ी में बैठे थे. उन की सीट हमारे सामने थी. बांतचीत के दौरान हमारी जानपहचान हुई. हम दोनों के पति गाड़ी चलते ही सो गए थे. हम एकदूसरे से बातें करने लगी थीं. फिर हम बचपन की सहेलियों की तरह घुलमिल गईं.”

“सारे रास्ते तुम दोनों के पति सोते ही रहे?”

“अरे नहीं, दोनों जाग गए थे. फिर हम ने एकदूसरे का परिचय कराया. रोहिणी को हजरत निजामुद्ïदीन उतरना था, हमें नई दिल्ली. उतरने से पहले हम दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर का पता और फोन तथा मोबाइल नंबर दे दिया था.”

“तुम अपने पति के साथ रोहिणी के घर जाती थी?”

“नहीं.”

“रोहिणी के पति तुम्हारे घर आया करते थे?”

“नहीं.”

“इस का कारण?” प्रकाश राय ने आनंद की ओर देखते हुए पूछा.

“कारण…?” आनंद गड़बड़ा गया, “एक तो दुकान के कारण मुझे समय नहीं मिलता था, दूसरे न जाने क्यों मुझे मिस्टर विश्वास से मिलने की इच्छा नहीं होती थी.”

“रोहिणी से आखिरी बार तुम कब मिली थीं?” प्रकाश राय ने आनंदी से पूछा.

“पिछले हफ्ते मैं रोहिणी के बैंक गई थी.”

“अच्छा रोहिणी को तुम ने आखिरी बार फोन कब किया था और क्यों?”

“पिछले शनिवार को. लाजपतनगर में शौपिंग के लिए मैं ने उसे बुलाया था. पर उस ने मुझे बताया कि रविवार को उस के यहां कुछ लोग खाने पर आने वाले थे.”

अब तक आनंद दंपति ने जो कुछ बताया था, वह सब सही था. प्रकाश राय थोड़ा सा घबराए हुए थे. एक प्रश्न का उत्तर उन्हें नहीं मिल रहा था.

बीवी की आशनाई लायी बर्बादी – भाग 3

रमाकांती ने भले ही पति के शक को झूठा करार दिया था, लेकिन उस के मन में यह बात हमेशा घूमती रहती थी. एक दिन रामचंद्र थोड़ा जल्दी घर आ गया. उसे बच्चे रास्ते में खेलते मिले तो उस ने सोचा कि रमाकांती बाजार गई होगी. उस ने बच्चों से पूछा, ‘‘मम्मी कहीं गई है क्या?’’

‘‘नहीं, घर में हैं.’’ बेटे ने जवाब दिया.

रामचंद्र कमरे पर पहुंचा. उसे यह देख कर ताज्जुब हुआ कि उस के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है. उसने दस्तक दी तो कुछ देर बाद दरवाजा सूरज ने खोला. उस समय वह सिर्फ लुंगी पहने था. अचानक रामचंद्र को देख कर उस की घिग्घी बंध गई. रामंचद्र फुर्ती से कमरे में घुसा तो रमाकांती को जिस हालत में देखा, उस का खून खौल उठा.

रमाकांती बिस्तर पर चादर लपेटे पड़ी थी. रामचंद्र ने आगे बढ़ कर चादर खींची तो उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. रामचंद्र उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोला, ‘‘बदजात औरत, मुझे धोखा दे कर तू यह गुल खिला रही है?’’

रंगेहाथों से पकड़े जाने पर रमाकांती और सूरज का चेहरा सफेद पड़ गया. रमाकांती ने फटाफट कपड़े पहने और अपने किए की माफी मांगने लगी, जबकि सूरज मौका देख कर भाग गया. रामचंद्र ने उसे माफ करने के बजाय उस की जम कर पिटाई की. इस के बाद

रमाकांती और सूरज कुछ दिन तो शांत रहे लेकिन जब उन से दूरियां बर्दाश्त नहीं हुई तो वे पहले की ही तरह फिर चोरीछिपे मिलने लगे. अब रामचंद्र को पत्नी पर भरोसा नहीं रह गया था, इसलिए आए दिन दोनों में लड़ाईझगड़ा होने लगा.

रामचंद्र ने चुपचाप अंबाला के बल्लूपुर में दूसरा कमरा किराए पर ले लिया और परिवार के साथ उसी में रहने चला गया. लेकिन रमाकांती ने अपने आशिक सूरज को अपना वह ठिकाना भी बता दिया था, इसलिए सूरज वहां भी उस से मिलने जाने पहुंचने लगा.

रमाकांती पूरी तरह सूरज के रंग में रंग चुकी थी. वह उसी के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगी थी. उसे इस की भी फिक्र नहीं थी कि उस के जाने के बाद उस के बच्चों का क्या होगा? वह अपने इस नाजायज संबंध में डूब कर इस कदर अंधी हो चुकी थी कि उस के अलावा उसे कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा था.

वह सूरज के साथ भागने के चक्कर में रहने लगी. उस के व्यवहार और हरकतों से रामचंद्र को उस के मन की बात का पता चल गया, इसलिए उस ने फैक्ट्री जाना बंद कर दिया. वह हर समय रमाकांती को अपनी नजरों के सामने रखने लगा. जब कई दिन बीत गए और रामचंद्र फैक्ट्री नहीं गया तो एक दिन रमाकांती ने कहा, ‘‘तुम फैक्ट्री जाओ, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. क्यों मेरी वजह से अपनी रोज की दिहाड़ी को लात मार रहे हो?’’

रामचंद्र किसी भी हाल में फैक्ट्री जाने को तैयार नहीं था. रमाकांती भी कम नहीं थी, इसलिए उस ने किसी तरह रामचंद्र को विश्वास में ले कर फैक्ट्री जाने को राजी कर लिया. रामचंद्र फैक्ट्री चला गया तो रमाकांती ने सूरज को उस के जाने की खबर दे दी.

थोड़ी देर में सूरज किसी की मोटरसाइकिल ले कर रमाकांती के कमरे पर पहुंच गया. रमाकांती अपने सामान का बैग ले कर उस की मोटरसाइकिल पर बैठने लगी तो उस के बच्चे उसे घेर कर शोर मचाने लगे, ‘‘सूरज अंकल, हमारी मम्मी को भगा कर ले जा रहे हैं.’’

बच्चों का शोर सुन कर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए. सूरज और रमाकांती को देख कर ही वे सारा माजरा समझ गए. उन्होंने रमाकांती को मोटरसाइकिल से उतार कर कमरे के अंदर भेज दिया और सूरज को भगा दिया. इस के बाद रामचंद्र को इस बात की सूचना दे दी.

कुछ देर में रामचंद्र आ गया. पड़ोसियों ने उसे समझाया कि वह अपनी पत्नी को ले कर यहां से चला जाए अन्यथा किसी दिन बेमौत मारा जाएगा. इस के बाद रामचंद्र ने सारा सामान पैक किया और रमाकांती तथा बच्चों को ले कर रेलवे स्टेशन पर आ गया. वहां से वह ट्रेन से चंडीगढ़ गया, जहां से वह चंडीगढ़लखनऊ सुपरफास्ट ट्रेन से हरदोई आ गया.

22 अगस्त की सुबह 7 बजे वह हरदोई स्टेशन पर उतरा. वहां से उस ने आटो किया और परिवार के साथ बिलग्राम चुंगी पर पहुंचा. वहां उस ने एक कबाड़ी की दुकान से डेढ़ सौ रुपए का बांका खरीदा, जिसे उस ने अपनी पीठ पर बनियान के नीचे छिपा लिया. उस के ऊपर उस ने अपना बैग टांग लिया, जिस से वह किसी को नजर नहीं आया. वहीं से एक दुकान से उस ने मीठी गटियां खरीदी और बस से अपने गांव हैबतपुर आ गया.

मकान का दरवाजा खोल कर सब अंदर पहुंचे. कुछ देर बाद बच्चे बाहर खेलने चले गए तो रमाकांती घर की साफसफाई करने लगी. उस समय लगभग 12 बज रहे थे. रामचंद्र ने रमाकांती को बुलाया और चारपाई पर बगल में बैठा कर गटियां खाने को दीं. इसी के साथ वह उस से हंसहंस कर बातें करने लगा.

रात भर जागने की वजह से रमाकांती को नींद आ गई. वह चारपाई पर लेट कर सो गई. उस के सोते ही रामचंद्र ने पीठ पर छिपा कर रखा बांका आहिस्ता से निकाला और पूरी ताकत से रमाकांती की गर्दन पर वार कर दिया. एक ही वार में उस का सिर धड़ से अलग हो गया.

रमाकांती को मौत के घाट उतार कर रामचंद्र एक हाथ में रमाकांती का सिर और दूसरे हाथ में रक्तरंजित बांका ले कर थाना बिलग्राम की ओर पैदल ही चल पड़ा. उस के घर से निकलते वक्त गांव वालों की नजर उस पर पड़ी तो पूरे गांव में हड़कंप मच गया. गांव वालों ने यह बात चौकीदार कमलेश को बताई तो उस ने इस की सूचना फोन द्वारा थानाकोतवाली बिलग्राम को दे दी.

रामचंद्र 2 किलोमीटर दूर पुंसेड़ा गांव तक ही पहुंचा था कि सीओ बिलग्राम विजय त्रिपाठी वहां पहुंच गए. उन्होंने रामचंद्र से सिर और बांका देने को कहा तो उस ने कहा कि वह दोनों चीजें सिर्फ कोतवाल को ही देगा.

कुछ देर में इंसपेक्टर श्याम बहादुर सिंह भी वहां पहुंच गए. रामचंद्र ने रमाकांती का सिर और हत्या में प्रयुक्त रक्तरंजित बांका उन के हवाले कर दिया. इस के बाद रामचंद्र को हिरासत में ले लिया गया.  कोतवाली ला कर रामचंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने रमाकांती की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. इस के बाद चौकीदार कमलेश की ओर से रामचंद्र के खिलाफ उस की पत्नी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

23 अगस्त को रामचंद्र को सीजेएम की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. 30 अगस्त को रामचंद्र ने दोपहर 12 बजे के करीब जिला कारागार की अपनी बैरक के बाहर अंगौछे से फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.

इस तरह एक औरत की चरित्रहीनता की वजह से एक भरापूरा परिवार बरबाद हो गया. उसी की वजह से बच्चे अनाथों की तरह जिंदगी बिताने को मजबूर हैं.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 3

निरीक्षण का काम लगभग पूरा हो गया था. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “धनंजय, हमारे एक्सपर्ट को अंगुलियों के कुछ निशान मिले हैं. वे निशान तुम्हारे और तुम्हारी पत्नी के भी हो सकते हैं. तुम दोनों के निशान छोड़ कर अन्य निशानों की जांच एक्सपर्ट को करनी पड़ेगी. तुम्हारी अंगुलियों के निशान हमें अभी नहीं चाहिए. हमारे सिपाही के आने पर तुम अपनी अंगुलियों के निशान दे देना. रोहिणी के निशान हम पोस्टमार्टम के समय ले लेंगे.”

अधिकारियों ने आपस में सलाहमशविरा किया और अन्य सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद एसएसपी और एसपी तो चले गए, लेकिन सीओ और इंसपेक्टर प्रकाश राय सहयोगियों के साथ कोतवाली आ गए. सभी चाय पीतेपीते रोहिणी मर्डर केस के बारे में विचारविमर्श करने लगे.

प्रकाश राय अपने ही विचारों में खोए थे. ठीक से वह कुछ कह नहीं सकते थे, इसलिए वह चुपचाप सभी की बातें सुन रहे थे. बातचीत के दौरान सहज ही सबइंसपेक्टर दयाशंकर बोले, “एक साल पहले ऐसी ही एक घटना दिल्ली में घटी थी. पर अपराधी को उसी समय पकड़ लिया गया था.”

“जी,” एएसआई राजेंद्र सिंह ने कहा, “उस घटना में एक इमारत में अपराधी घुसा था. डुप्लीकेट चाबी से वह फ्लैट का दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था कि पड़ोसी ने उसे देख लिया और वह पकड़ा गया. वह बंगलादेश का रहने वाला था. रफीक नाम था उस का.”

“घर में कौनकौन था?”

“घर की मालकिन और उस के 2 बच्चे.”

“और उस का पति कहां गया था?”

“वह सुबह सब्जी लाने मंडी गया था.”

“सब्जी लाने?” प्रकाश राय आश्चर्य से थोड़ा तेज आवाज में बोले, “और वह रविवार का दिन था क्या?”

“जी सर, रविवार ही था.”

“दयाशंकर, वह आदमी अंदर है या बाहर, पता करो.”

दिल्ली पुलिस से पता चला कि वह बाहर है. उसे 4 महीने की सजा हुई थी. इस समय वह नोएडा में ही रह रहा है और सेक्टर-62 की किसी फैक्ट्री में नौकरी करता है.

प्रकाश राय उत्साहित हो कर बोले, “अरे उसे पकड़ कर लाओ यहां, इस केस में उस का हाथ हो सकता है.”

फिर दयाशंकर की ओर देख कर बोले, “मुझे पूरा विश्वास है कि इस केस में किसी न किसी ने अपराधी को इनफौर्मेशन दी होगी. रविवार को धनंजय सेक्टर-2 की मार्केट मीटमछली लाने जाता है और रोहिणी घर में अकेली होती है, यह बात जरूर किसी न किसी ने उसे बताई होगी. इन में उस इमारत का नारायण, भास्कर रणधीर, उस की औरत देविका, पेपरवाला, दूधवाला, कोई भी हो सकता है. कोई न कोई उस जैसे लोगों को खबर देता होगा, उस के बारे में पता करो.”

“ठीक है सर, हम पता करते हैं.”

“दयाशंकर, तुम अभी उस की तलाश में लग जाओ. इस केस में अगर उस का हाथ हुआ तो उस के पास बहुत माल है. तुम अपना स्टाफ ले कर निकल पड़ो. उस के हाथ लगते ही मुझे सूचित करो.”

दयाशंकर उसी वक्त सहयोगियों के साथ निकल पड़े. सीओ साहब भी चले गए. इस के बाद प्रकाश राय ने राजेंद्र सिंह से कहा, “अगर वह आदमी इस मामले में शामिल हुआ तो कोई बात नहीं. पर वह इस मामले में शायद ही शामिल हो.”

“सर,” राजेंद्र सिंह ने कहा, “आप यह किस उम्मीद पर कह रहे हैं?”

“मान लो, वह सस्पेक्ट है और उस ने ही यह जुर्म किया है तो सवाल यह उठता है कि वह अंदर घुसा कैसे? गेट पर नारायण था. मान लो, नारायण थोड़ी देर को इधरउधर हो गया और वह अंदर हो गया तो भी पांचवें माले पर जा कर लौक खोल कर हत्या करने, अलमारी खोल कर सारा सामान समेटने और नीचे आने में उसे कम से कम आधा घंटा तो लगा ही होगा. इतनी देर उस का वहां ठहरना संभव ही नहीं था.

दूसरी दृष्टि से विचार करो तो धनंजय जब नीचे आया, तब नारायण मौजूद था. धनंजय सवा 6 बजे नीचे आया था. उस के जाने के तुरंत बाद वह अंदर घुस नहीं सकता था, क्योंकि नारायण वहीं था. मान लो, वह 5-10 मिनट बाद अंदर घुसा और अपना काम किया तो धनंजय और उस का आमनासामना अवश्य होता, क्योंकि धनंजय 7 बजे के लगभग वापस आ गया था. उस वक्त भी नारायण नीचे ही मौजूद था. मगर न उस ने और न सीढ़ी साफ करने गए रणधीर ने उसे देखा. हत्यारा नया है, शातिर होता तो डीवीडी प्लेयर और रोहिणी का कीमती मोबाइल और लैपटौप न छोड़ता.”

इतने में फोन की घंटी बज उठी. प्रकाश राय ने फोन रिसीव किया, “हैलो, हां मैं प्रकाश राय. बोलो, शाबाश. किधर टकरा गया वह तुम से? कुछ मिला? ठीक है, तुम उसे सस्पेक्ट मान कर बंद कर दो. मैं तुम्हें फोन करता हूं बाद में.” प्रकाश राय ने फोन काट दिया. राजेंद्र सिंह ने अंदाजा लगाते हुए कहा, “रफीक को पकड़ लिया शायद?”

“हां,” प्रकाश राय ने शांत स्वर में कहा, “पुलिस ने उसे उस की फैक्ट्री के बाहर से पकड़ लिया है. सोचने वाली बात यह है कि जिस के पास इतने रुपए होंगे, वह नौकरी पर क्यों जाएगा?”

“लेकिन सर,” राजेंद्र सिंह ने अक्ल लगाई, “हत्यारा जो भी हो, वह नारायण के रहते अंदर गया कैसे?”

“2 ही बातें हो सकती हैं. अपराधी पाइप के सहारे छत पर चढ़ कर छिपा रहा हो या फिर अंदर का ही कोई व्यक्ति हो.”

प्रकाश राय ने कुछ सोचते हुए कहा, “कुछ भी हो, हमें नारायण और रणधीर पर नजर रखनी है. ये मुजरिम हो सकते हैं या खबर देने वाले. यह भी एक संभावना है कि हत्या का उद्देश्य चोरी न रहा हो, यानी जेवरात और नकदी उड़ा कर एक बहाना बनाया गया हो. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि रोहिणी के गले में सोने का मंगलसूत्र, हाथ में 4 सोने की चूडिय़ां, कानों में झुमके और डे्रसिंग टेबल पर उस की कीमती कलाई घड़ी, कीमती मोबाइल फोन और लैपटौप अपराधी ज्यों का त्यों छोड़ गया था. नारायण या रणधीर ने किसी की मदद से यह कृत्य किया होता तो रोहिणी के शरीर के गहने और घर का सारा सामान चला गया होता. इतनी बड़ी इमारत में रहने वाला भी तो कोई हत्या कर सकता है.”

प्रकाश राय के मुंह से यह सुन कर राजेंद्र सिंह गंभीर हो गए, क्योंकि ऐसी स्थिति में हत्यारे को अंदरबाहर आनेजाने की जरूरत ही नहीं थी. अभी यह बातचीत चल ही रही थी कि सिपाही नरेश शर्मा प्रकाश राय के कमरे में घुसा. उसे देख कर प्रकाश राय ने पूछा,

“क्यों नरेश, कोई खास खबर?”

नरेश को प्रकाश राय ने धनंजय के घर में ही रणधीर पर नजर रखने की हिदायत दे दी थी. उसी क्षण से नरेश उस के पीछे लग गया था. दूसरे सिपाही देवनाथ को नारायण के पीछे प्रकाश राय पहले ही लगा चुके थे.

“साहब, खास कुछ भी नहीं है. आप के चले आने के बाद हाथ में एक बर्तन लिए वह बाहर निकला. मैकडोनाल्ड की गली से पीछे जा कर देशी दारू के ठेके पर उस ने एक गिलास चढ़ाई और फिर अपने घर आ कर सोया पड़ा है.”

“तुम खुद ठेके में गए थे?”

“नहीं साहब, मेरी जानपहचान का एक फेरीवाला अंदर गया था. अब भी वह रणधीर के घर पर नजर रखे हुए है. मैं आप को यही खबर देने आया था.”

“नरेश, तुम रणधीर पर कड़ी नजर रखो. मुझे उस पर पूरा शक है. मेरा अनुमान है कि रणधीर और नारायण आज शाम को किसी स्थान पर जरूर मिलेंगे.”

“ठीक है साहब.” कह कर नरेश चला गया. राजेंद्र सिंह को संबोधित करते हुए प्रकाश राय बोले, “आज रात उस बिल्डिंग पर कड़ी नजर रखनी है. अपने 4-5 सिपाही तैयार रखना. नारायण और रणधीर, दोनों साथी हुए तो रणधीर आज रात को सामान ठिकाने लगाने की कोशिश…”

प्रकाश राय अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि फोन की घंटी बज उठी. उन्होंने रिसीवर उठाया. दूसरी ओर से आवाज आई, “सर, मैं मिश्रा बोल रहा हूं.”

“हां, बोलो मिश्रा, क्या खबर है?”

“साहब, वह व्यापारी अभी तक घर में ही है और उस का औफिस नीचे ही है. उसे जो बिल्डिंग बेचनी है, उस के ग्राउंड फ्लोर पर ही उस का औफिस है.”

मिश्रा ने जिन सांकेतिक शब्दों का प्रयोग किया था, उन्हें प्रकाश राय समझ गए. व्यापारी का मतलब था नारायण, औफिस यानी घर और ग्राउंड फ्लोर औफिस का मतलब था नारायण ग्राउंड फ्लोर पर ही रहता था. मिश्रा की भाषा से ही प्रकाश राय समझ गए कि मिश्रा कई लोगों के सामने से बोल रहा था.

उन्होंने मिश्रा से कहा, “तुम वहीं ठहरो और अपने आदमियों केवहां पहुंचने तक रोके रहो. संभव हुआ तो मैं भी आऊंगा. कोई विशेष बात होने पर मुझे फोन करना.”

इस के बाद वह राजेंद्र सिंह से बोले, “तुम पोस्टमार्टम के बाद रोहिणी का शव विश्वास को जल्दी से जल्दी दिलाने की कोशिश करो.”

“यस सर.” कह कर राजेंद्र सिंह अपने स्टाफ के साथ निकल पड़े. अब प्रकाश राय अकेले थे और नए सिरे से रोहिणी मर्डर केस के बारे में सोचने लगे. एक सूत्र से दूसरा सूत्र जोड़ कर वह अपना जाल बिछाना चाहते थे. उन्होंने अपनी डायरी निकाली. उन्हें अपने कुछ महत्त्वपूर्ण आदमियों को फोन करने थे. वे समाज के जिम्मेदार लोग थे और इन से प्रकाश राय की अच्छी जानपहचान थी.

इन्हें प्रकाश राय ने विशेष मतलब से बुलाया था और एक जरूरी काम सौप दिया था.  इन्हें रोहिणी के दाहसंस्कार के समय शोकसंतप्त चेहरा बना कर लोगों की बातों को चुपचाप सुन कर उस की रिपोर्ट प्रकाश राय को देनी थी. मजे की बात यह थी कि ये लोग एकदूसरे को नहीं जानते थे.

अंतिम निवास विद्युत शवदाहगृह में 2 व्यक्तियों की बातचीत सुन कर आशीष तनेजा के कान खड़े हो गए, “कमाल की बात है. आनंदी दिखाई नहीं दी?”

“सचमुच हैरानी की बात है भई, वह तो रोहिणी की बहुत पक्की सहेली थी. लगता है, उसे किसी ने खबर नहीं दी. रोहिणी के पास तो उस का फोन नंबर भी था.”

“आनंदी दिखाई देती तो मिस्टर आनंद के भी दर्शन हो जाते.”

“शनिवार को तो बैंक में आनंदी का फोन भी आया था?”

आनंदी को ले कर कुछ ऐसी ही बातें देवेश तिवारी से भी सुनीं. उधर मेहता ने जो कुछ सुना, वह इस प्रकार था.

“विवाह आगरा में था, इसीलिए दोनों आगरा गए थे.”

“आगरा तो वे हमेशा आतेजाते रहते थे.”

“वैसे विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ.”

ऐसा ही कुछ नागर ने भी सुना था. इन लोगों ने अपने कानों सुनी बातें फोन पर प्रकाश राय को बता दीं. यह पता नहीं चल रहा था कि आगरा में किस का विवाह था. प्रकाश राय के लिए यह जानना जरूरी भी नहीं था. एक विचार जो जरूर उन्हें सता रहा था, वह यह कि रोहिणी की पक्की सहेली होने के बावजूद आनंदी उस के अंतिम दर्शन करने भी नहीं आई थी. और तो और आनंदी का पति भी दाहसंस्कार में शामिल नहीं हुआ था. इन दोनों का न होना लोगों को हैरान क्यों कर रहा था? अब इस आनंदी को कहां ढूंढ़ा जाए?

कंजूस पिता की ज़िद का नतीजा – भाग 3

बताया जाता है कि बाद में पारसराम ने अपनी दुकान बेच दी और दिन भर घर पर ही रहने लगे. वह घर में तनाव वाला माहौल रखते थे. इस से घर वाले और ज्यादा परेशान हो गए. पिता की आदतों को देखते हुए लाल कमल पत्नी को ले कर परेशान रहने लगा. घर में रोजाना होने वाली कलह से परेशान हो कर लाल कमल अपने भाई और पत्नी को ले कर पानीपत चला गया और इधरउधर से पैसों का इंतजाम कर के उस ने वहीं पर इनवेर्टर, बैटरी बेचने और मोबाइल रिजार्च करने की दुकान खोल ली. अब पारसराम के साथ पत्नी अनीता और बेटी निष्ठा ही रह गई थी.

पारसराम के पास करीब 2 करोड़ रुपए की संपत्ति थी. इस के बावजूद वह बेटों को फूटी कौड़ी देने को तैयार नहीं थे. घर में अकसर तनाव का माहौल रहने की वजह से निष्ठा को भी माइग्रेन का दर्द रहने लगा था. पारसराम ने बेटी का इलाज भी नहीं कराया. जब भी वह दर्द से कराहती तो वह उसे मेडिकल स्टोर से दर्द निवारक दवा ला कर दे देते थे.

दिल्ली के पंजाबी बाग इलाके में एक संत का आश्रम है. अनीता उस आश्रम में जाती थी. वहां उसे मानसिक शांति मिलती थी. आश्रम में ही वह सेवा करती, वहीं चलने वाले भंडारे में बखाना खाती और शाम को घर जाते समय पति और बेटी के लिए भी आश्रम से खाना ले जाती थी. पूरे दिन आश्रम में रहने के बाद वह शाम को करीब 9 बजे घर लौटती थी. पारसराम ने उस से कह दिया था कि शाम का खाना वह आश्रम से ही लाया करे. इसलिए वह वहां से बेटी और पति के लिए खाना लाती थी.

उधर लाल कमल चाहता था कि पिता उसे कोई अच्छी सी दुकान खुलवा दें, लेकिन उन के जीते जी ऐसा संभव नहीं था. जब वह बेटी का इलाज तक नहीं करा रहे थे तो उनसे बिजनैस के लिए पैसे देने की उम्मीद कैसे की जा सकती थी. लाल कमल की दुकान के पास ही पानीपत की नागपाल कालोनी में दिनेश मणिक उर्फ दीपू की मोबिल आयल और स्पेयर पार्टस की दुकान थी. लाल कमल की उस से दोस्ती थी. वह उस से हमेशा पिता की बुराई करता रहता था.

लाल कमल कभीकभी दिल्ली जा कर निष्ठा और आश्रम में मां से मिलता रहता था. निष्ठा उसे अपनी माइग्रेन बीमारी के बारे में बताया करती थी. निष्ठा का इलाज न कराने पर लाल कमल को पिता पर गुस्सा आता था. लाल कमल को लगता था कि उसे पिता की मौत के बाद ही उन की प्रौपर्टी मिल सकती है इसलिए उस ने पिता को ठिकाने लगाने की ठान ली. यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने दोस्त दिनेश मणिक उर्फ दीपू से बात की. लाल कमल ने दिनेश से कहा कि अगर वह उस के पिता की हत्या कर देगा तो वह उसे उन की प्रौपर्टी का 25 प्रतिशत दे देगा.

यह बात उस ने पहले ही बता दी थी कि प्रौपर्टी की कीमत करीब 2 करोड़ रुपए है. इसी लालच में दिनेश उस का साथ देने को तैयार हो गया.

इस के बाद वह दोनों पारसराम को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे. इस बीच लाल कमल ने निष्ठा से फोन कर के जानकारी ले ली कि मां आश्रम के लिए कितने बजे घर से निकलती है और कितने बजे घर लौटती है. दिनेश ने लाल कमल के साथ जा कर कई बार उस के घर और इलाके की रेकी भी की. हत्यारे के लिए उन्होंने पानीपत से एक चाकू भी खरीद लिया था.

पूरी योजना बनाने के बाद लाल कमल  21 अक्तूबर, 2013 को अपनी पैशन मोटरसाइकिल नंबर एचआर 60 डी 7511 से दिनेश को साथ ले कर दिल्ली के लिए रवाना हुआ. वह जानता था कि अगर वह फोन अपने साथ दिल्ली ले जाएगा तो फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस उस तक पहुंच सकती है. इसलिए उस ने अपना ही नहीं, बल्कि दिनेश का फोन भी पानीपत दिल्ली रोड से चांदनी बाग की तरफ जाने वाली सड़क पर एक जगह छिपा दिया. ये दोनों शाम 8 बजे के करीब मोतीनगर के सुदर्शन पार्क की मार्केट में पहुंच गए.

दोनों ने तय कर लिया था कि वारदात को घर में ही अंजाम देंगे. इत्तफाक से लाल कमल ने बाजार में खरीदारी करते हुए अपने पिता को देख लिया. वह उस समय पत्नी के करवा चौथ व्रत का सामान खरीद रहे थे. उन्हें क्या पता था कि पत्नी के व्रत रखने से पहले ही मौत उन्हें आगोश में ले लेगी. लाल कमल एक ओर छिप कर उन पर निगाहें रखने लगा.

सामान ले कर जैसे ही पारसराम घर की तरफ चले, लालकमल भी बाइक से धीरेधीरे उन के पीछे चल दिया. उस ने हेलमेट लगा रखा था. उस के पीछे वाली सीट पर दिनेश बैठा था. लाल कमल ने दिनेश को शिकार दिखा दिया था. जैसे ही पारसराम अपने घर के दरवाजे पर पहुंचे तो दिनेश ने बाइक से उतर कर पारसराम पर चाकू से कई वार किए.

लाल कमल ने कुछ आगे जा कर बाइक खड़ी कर ली थी. अचानक हमला होने से वह घबरा गए. वह चिल्लाए तो दिनेश तेजी से भाग कर मोटरसाइकिल पर बैठ गया और वे वहां से नौदो ग्यारह हो गए.

हत्या करने के बाद वे सीधे पानीपत गए. सब से पहले उन्होंने चांदनी बाग रोड पर छिपाए गए अपने मोबाइल फोन उठाए. फिर गोहाना रोड से पहले गऊशाला की प्याऊ पर दिनेश ने खून से सने हाथ धोए. फिर देवी माता रोड पर नाले के पास वह चाकू फेंक दिया, जिस से मर्डर किया था.

पुलिस ने लाल कमल और दिनेश मणिक उर्फ दीपू से पूछताछ करने के बाद उन्हें 9 नवंबर, 2013 को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर उन्हें उसी दिन तीस हजारी कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी सुनील कुमार शर्मा के समक्ष पेश कर के उन का 2 दिन का पुलिस रिमांड लिया.

रिमांड अवधि में लाल कमल और दिनेश की निशानदेही पर पुलिस ने नाले के पास से चाकू खून से सने कपड़े, मोटरसाइकिल, हेलमेट आदि बरामद कर लिए. रिमांड अवधि में पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 11 नवंबर, 2013 को लाल कमल पुंज उर्फ सोनू और निदेश मणिक उर्फ दीपू को पुन: न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्त जेल में बंद थे.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

बीवी की आशनाई लायी बर्बादी – भाग 2

एक दिन सूरज रमाकांती के कमरे पर पहुंचा तो उस समय वह अकेली थी. कमरे के बाहर से ही उस ने पूछा, ‘‘भाभी, भाई साहब घर पर नहीं हैं क्या?’’

‘‘तुम अच्छी तरह जानते हो कि इस समय वह घर पर नहीं होते, फिर भी पूछ रहे हो?’’ रमाकांती ने सूरज की आंखों में आंखें डाल कर कहा तो वह इस तरह झेंप गया, जैसे उस की कोई चोरी पकड़ी गई हो. सच भी यही था. वह जानबूझ कर ऐसे समय में आया था. उस ने झेंप मिटाते हुए कहा, ‘‘तुम तो बहुत पारखी हो भाभी.’’

‘‘औरत की नजरें मर्द के मन को बड़ी जल्दी पहचान लेती हैं देवरजी.’’ रमाकांती ने इठलाते हुए कहा, ‘‘अंदर आ कर बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

सूरज पलंग पर बैठते हुए बोला, ‘‘भाभीजी, तुम ने मेरी चोरी पकड़ ली, लेकिन यह तो बताओ कि मेरा इस तरह आना तुम्हें बुरा तो नहीं लगा?’’

‘‘अगर बुरा लगा होता तो तुम्हें अंदर बुला कर चाय क्यों पिलाती?’’ रमाकांती ने एक आंख दबा कर मुसकराते हुए कहा.

‘‘बुरा न मानो तो एक बात कहूं भाभी?’’ सूरज ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा.

‘‘कहो,’’ रमाकांती तिरछी नजरों से उसे घूरते हुए बोली, ‘‘अपनों की बात का भी कोई बुरा मानता है.’’

‘‘भाभी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. इसीलिए मेरा मन तुम्हें बारबार देखने को मचलता रहता है.’’

‘‘भला मुझ में ऐसी कौन सी बात है, जो तुम्हारा मन मुझे बारबार देखने को मचलता है.’’ रमाकांती ने तिरछी चितवन का तीर चलाते हुए कहा.

‘‘यह पूछो कि तुम में क्या नहीं है. हिरनी जैसी चंचल आंखें, उन में थोड़ी उदासी, गठा हुआ बदन और होंठों पर अप्सराओं जैसी मादक मुसकान,’’ सूरज ने मस्का लगाते हुए कहा, ‘‘काश, तुम मेरी किस्मत में लिखी होती तो मैं तुम्हें रानी बना कर रखता.’’

‘‘यह सब कहने की बातें हैं देवरजी. पहले ‘वह’ भी ऐसा ही कहते थे. सारे मर्द एक जैसे होते हैं. बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और.’’ रमाकांती ने ताना मारा.

‘‘मैं भाई साहब की तरह नहीं हूं. उन्हें तुम्हारी कद्र करना ही नहीं आता,’’ सूरज ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा, ‘‘उन्हें तुम्हारे सुख की जरा भी परवाह नहीं रहती. वह सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ रमाकांती ने भौंहें सिकोड़ कर कहा.

‘‘भाभी, इंसान की आंखों से ही उस के दिल की बात का पता चल जाता है. मुझे तुम्हारी आंखों से ही तुम्हारे दिल के दर्द का पता चल गया है.’’

सूरज की इन बातों से रमाकांती को मजा आने लगा था. इसी चक्कर में वह चाय भी बनाना भूल गई. अचानक खयाल आया तो बोली, ‘‘तुम्हारी बातों में पड़ कर मैं तो चाय बनाना ही भूल गई.’’

‘‘रहने दो भाभी, बस तुम्हें देख लिया, आत्मा तृप्त हो गई. अब मैं चलता हूं.’’ कह कर सूरज चला तो गया, लेकिन रमाकांती की हसरतों को हवा दे गया.

रमाकांती अब सूरज की चढ़ती जवानी के सपने देखने लगी. दूसरी ओर सूरज भी उसे अपनी कल्पनाओं की रानी बनाने लगा. इस के बाद सूरज और रमाकांती के बीच होने वाला हंसीमजाक छेड़छाड़ तक पहुंच गया. सूरज जब भी रमाकांती के कमरे पर आता, उस के बच्चों के लिए कुछ न कुछ ले कर आता. ऐसे में एक दिन रमाकांती ने उसे टोका, ‘‘तुम्हें बच्चों की खुशी का तो इतना खयाल रहता है, कभी भाभी की खुशी के बारे में भी सोचते हो?’’

अपनी बात कह कर रमाकांती एक आंख दबा कर मुसकराई तो सूरज उस का इशारा समझ गया कि वह क्या चाहती है. बात यहां तक पहुंच गई तो वह उचित मौके की तलाश में रहने लगा.

एक दिन सूरज ऐसे समय पर रमाकांती के कमरे पर पहुंचा, जब उस के बच्चे कमरे पर नहीं थे. आसपास के कमरों में रहने वाले भी इधरउधर थे. उस के कमरे में आते ही रमाकांती ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज यह मत पूछना कि भाई साहब हैं या नहीं? मुझे पता है कि तुम यहां क्यों आए हो.’’

‘‘तुम्हीं ने तो बुलाया था?’’ सूरज हंस कर बोला.

‘‘अरे, मैं ने तुम्हें कब बुलाया?’’

सूरज आगे बढ़ कर बोला, ‘‘अच्छा भाभी, सचसच बताना, जब भी मैं तुम से बात करता हूं, तुम्हारी आंखों की चाहत मुझे बुलाती है या नहीं?’’

इतना कह कर सूरज ने रमाकांती का हाथ पकड़ लिया और अपना मुंह उस के मंह के पास ले जा कर बोला, ‘‘उन्हीं के बुलाने पर आया हूं.’’

‘‘दिल की बात कहने का अंदाज तो तुम्हारा बहुत अच्छा है,’’ रमाकांती ने प्यार से उस के गाल पर चपत लगा कर कहा, ‘‘हाथ छोड़ो तो चाय बना कर लाऊं.’’

‘‘इस तनहाई में चाय पीने का नहीं, कुछ और ही पीने का मन हो रहा है. बोलो पिलाओगी न?’’

‘‘मैं ने कब मना किया है,’’ रमाकांती ने अपना सिर उस के सीने पर रख कर कहा, ‘‘पहले दरवाजा तो बंद कर लो.’’

रमाकांती का खुला आमंत्रण पा कर सूरज की बांछें खिल उठीं. इस के बाद वहां जो हुआ, वह किसी भी लिहाज से सही नहीं था. रमाकांती की जिस्म की आग ने सारी मर्यादाओं को जला कर राख कर दिया.

उस दिन के बाद इस का सिलसिला सा चल निकला. जब भी मौका मिलता, सूरज और रमाकांती एकदूसरे की बांहों में समा जाते. लेकिन इस के लिए सूरज को रमाकांती के कमरे पर आना पड़ता था.

रामचंद्र की गैरमौजूदगी में सूरज का रमाकांती के कमरे पर बारबार आना आसपड़ोस वालों को अखरने लगा. उन की समझ में आ गया कि सूरज और रमकांती के बीच गलत संबंध है. इन दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी तो उड़तेउड़ते यह बात रामचंद्र के कानों तक भी पहुंची. लेकिन उसे इस बात पर यकीन नहीं हुआ.

जब लोग रामचंद्र पर ताने कसने लगे तो एक दिन उस ने रमाकांती से पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि मेरी गैरमौजूदगी में सूरज यहां आता है?’’

‘‘हां, कभीकभी आ जाता है बच्चों से मिलने के लिए.’’ रमाकांती ने कहा.

‘‘तुम्हें पता होना चाहिए कि मोहल्ले वाले तुम दोनों को ले कर तरहतरह की बातें कर हैं?’’

‘‘लोगों का क्या, वे किसी को खुश थोड़े ही देख सकते हैं, इसीलिए मनगढ़ंत कहानी रचते रहते हैं. तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा नीच काम कर सकती हूं?’’ रमाकांती ने सवाल किया तो रामचंद्र शर्मिंदा हो गया. उसे लगा कि उसने पत्नी पर शक कर के ठीक नहीं किया.

लेकिन सच्चाई को कितना भी छिपाया जाए, वह छिपती नहीं. रामचंद्र को शक तो हो ही गया था, एकदो बार उस ने पत्नी की पिटाई भी की, लेकिन रमाकांती हमेशा यह सिद्ध करने में सफल रही कि उस का शक झूठा है.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 2

इमारत के चारों और घूमते हुए पीछे एक जगह रुक कर प्रकाश राय ने खन्ना से पूछा, “ये कमरे किस के है?”

“सफाई कर्मचारियों और वाचमैन के .”

“कितने वाचमैन हैं?”

“2 हैं. इन की ड्यूटी 2 शिफ्टों में है. सुबह 8 बजे से रात 8 बजे और रात 8 बजे से सवेरे 8 बजे तक.”

“इन के खाने की छुट्टी?”

“वो तो सर, ये अपनी सुविधा के अनुसार खाने जाते हैं. वैसे भी यह समस्या पहली शिफ्ट में आती है. ज्यादातर ये अपना खाना साथ लाते हैं. इसी कमरे में वे खाना खाते हैं. तब तक हम यहां के स्वीपर को गेट पर बैठा देते हैं.”

“दोनों के नाम क्या हैं और इन के घर कहां है?”

“कल नाइट शिफ्ट पर नारायण था. वह सेक्टर-10 में रहता है. मौर्निंग शिफ्ट में जो अभी पौने 8 बजे आया है, उस का नाम भास्कर है, वह खोड़ा में रहता है.”

“अच्छा, यहां स्वीपर कितने हैं?”

“एक ही है साहब, रणधीर और उस की पत्नी देविका. ये दोनों अपने दोनों बच्चों के साथ यहीं रहते हैं. बाहर का काम रणधीर और टायलेट वगैरह साफ करने का काम देविका करती है.”

खन्ना से बात करतेकरते प्रकाश राय इमारत के गेट पर आ गए. तभी एसएसपी, एसपी और सीओ भी आ गए. इन्हीं अधिकारियों के साथ डौग स्क्वायड की टीम भी आई थी. ऊपर जांच चल रही थी. प्रकाश राय एक सिपाही के साथ नीचे रुक गए, बाकी सभी अधिकारी ऊपर चले गए.

प्रकाश राय देविका के बारे में सोच रहे थे. वह सभी के घर में आजा सकती थी. वाचमैन जरूरी काम के बिना किसी फ्लैट में जा नहीं सकते थे. नारायण जो रात की ड्यूटी पर था, उसी के रहते हत्या हुई थी. लेकिन उस से पूछताछ करने पर प्रकाश राय के हाथ कोई सूत्र नहीं लगा. उस ने धनंजय को मीट ले आने जाते और लौटते देखा था बस.

“अच्छा नारायण, धनंजय साहब के जाने के बाद तुम यहीं थे क्या? यहां से कहीं नहीं गए?”

“साहब, मैं यहां से वहां राउंड मार रहा था और नीचे की लाइन बंद कर रहा था. रणधीर ने पंप चालू किया या नहीं, यह

देखने भी गया था.”

“यानी इस दौरान कोई ऊपर जा सकता था?”

“साहब, आप जो कह रहे हैं, वह संभव है.”

“अच्छा नारायण, सुबह तुम ने किसी अनजान आदमी को बाहर जाते तो नहीं देखा?”

“साहब, मेरे रहते कोई अंदर गया ही नहीं तो बाहर कैसे…?”

“सुनो नारायण, रात को ही कोई अंदर आ गया होगा या किसी के यहां मेहमान के रूप में आया होगा तो…?”

नारायण चुप हो गया. उसे अपनी बुद्धि पर तरस आने लगा. कुछ सोच कर बोला, “साहब, दूध वाला और पेपर वाला, ये दोनों आए थे. गनपत दूध वाला जब आया था, धनंजय साहब घर में ही थे. उन्होंने ही दूध लिया होगा. उस के जाने के बाद ही वह मीट लेने चले गए थे. वह ‘ए’ विंग के 7 फ्लैटों में दूध सप्लाई करता है, बाकी के सभी लोग 9 बजे डेयरी की गाड़ी से दूध लेते हैं.”

“पेपरवाला नरेश धनंजय साहब के जाने के बाद आया था. 2-3 मिनट में ही वह लौट गया था. सिर्फ एक व्यक्ति मुझे याद है रणधीर. धनंजय साहब के जाने के बाद रणधीर सफाईवाला झाडू और प्लास्टिक की बाल्टी ले कर सीढिय़ां साफ करने गया था. धनंजय साहब के लौटने से पहले नीचे आ कर वह ‘बी’ इमारत मे चला गया था.”

“ठीक है नारायण.” कह कर प्रकाश राय ने इशारे से सिपाही को पास बुला कर कहा, “तुम किसी बहाने से बाहर जाओ और थोड़ी देर बाद लौट कर नारायण से गप्पें मारते हुए रणधीर के बारे में कुछ पता लगाने की कोशिश करो.”

प्रकाश राय के ऊपर पहुंचते ही दयाशंकर ने धनंजय से उन का परिचय कराया. धनंजय के कंधे पर हाथ रखते हुए और सहानुभूति जताते हुए प्रकाश राय ने कहा, “धनंजय, तुम्हारे साथ जो हुआ, उस का मुझे बेहद अफसोस है. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि अगर तुम्हारा सहयोग मिलेगा तो मैं खूनी को कानून के शिकंजे में जकड़ कर ही रहूंगा. आओ, अंदर चलते हैं.”

अंदर फिंगरप्रिंट्स वाले प्रिंट्स की तलाश में लगे थे और फोटोग्राफर फोटो खींच रहा था. प्रकाश राय ने खून से लथपथ रोहिणी की लाश देखी. फिर वह कमरे का निरीक्षण करने लगे. वह सिर्फ एक ही बात सोच रहे थे कि हत्यारा मुख्य द्वार से आया था या दरवाजे से लग कर जो पैसेज है उस में से किचन पार कर के आया था? पैसेज की जांच के लिए वह किचन के दरवाजे पर आए तो किचन टेबल पर ढेर सारा मीट और मछलियां देख कर चौंके. खाने वाले सिर्फ 2 और सामान इतना.

प्रकाश राय बैडरूम में लौट आए. सबइंसपेक्टर दयाशंकर और एएसआई राजेंद्र सिंह अलमारी को सील कर रहे थे. आश्चर्य की बात यह थी कि अलमारी का लौकर खुला था. उस में चाबियां लटक रही थीं. अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था, जो इस बात का प्रमाण था कि हत्यारे ने सिर्फ लौकर का माल साफ किया था.

बैडरूम में दूसरी अलमारी भी थी. उसे हाथ नहीं लगाया गया था. दयाशंकर ने प्रकाश राय की ओर प्रश्नभरी नजरों से देखा और फिर धनंजय से कहा, “मिस्टर विश्वास, आप जरा यह अलमारी खोलने की मेहरबानी करेंगे?”

धनंजय ने एक बार प्रकाश राय को और फिर दयाशंकर की ओर देखते हुए पूछा, “मैं इन चाबियों को हाथ लगा सकता हूं?”

प्रकाश राय ने फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट को प्रश्नभरी नजरों से देखा. एक्सपर्ट ने गर्दन हिलाते हुए अनुमति दे दी. धनंजय ने पहली अलमारी से चाबी निकाल कर दूसरी अलमारी खोली. प्रकाश राय ने गौर से देखा, अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था. कहीं कोई उलटपुलट नहीं की गई थी.

पहली अलमारी के लौकर से चोरी गए सामान के बारे में धनंजय से पूछा, “धनंजय, तुम्हारे अंदाज से कितना सामान चोरी गया होगा?”

“रोहिणी के जेवरात ही लगभग 30-40 लाख रुपए के थे. 40-42 हजार नकदी भी थी.”

“इतनी नकदी तुम घर में रखते हो?”

“नहीं साहब, कल शनिवार था, रोहिणी ने 40 हजार रुपए बैंक से निकाले थे. बैंक में हम दोनों का जौइंट एकाउंट है. कल सवेरे यह रकम मैं एक टूरिस्ट कंपनी में जमा कराने वाला था.”

“कारण?”

“अगले महीने मैं और रोहिणी घूमने के लिए जाने वाले थे.” कहते हुए उस ने प्रकाश राय को चेकबुक थमा दी. उन्होंने चेकबुक देखा. धनंजय सही कह रहा था. राजेंद्र सिंह को चेकबुक देते हुए उन्होंने कहा, “राजेंद्र सिंह, इस चेकबुक को भी कब्जे में ले लो और ‘एवन ट्रैवेल्स’ के एजेंट का स्टेटमेंट भी ले लो. रकम बरामद होने पर प्रमाण के रूप में यह सब काम आएगा.”

इस के बाद गैलरी में आ कर प्रकाश राय ने इशारे से एक सिपाही को बुला कर दबी आवाज में कहा, “तुम नीचे जा कर रणधीर से बातें करो और किसी बहाने से उस के घर में जा कर देखो, कहीं कुछ सामान दिखाई देता है क्या? रणधीर संदिग्ध है. बात करतेकरते उस से कहो कि साहब को नारायण पर शक है. वह जरूर कुछ न कुछ बताएगा.”

सिपाही के रवाना होते ही प्रकाश राय किचन में आए. एसआई दयाशंकर और एएसआई राजेंद्र सिंह किचन का निरीक्षण कर रहे थे. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “धनंजय साहब, बुरा मत मानिएगा. मैं एक बात जानना चाहता हूं. तुम और रोहिणी, सिर्फ 2 लोग हो, इस के बावजूद इतना सारा गोश्त और मछली?”

“साहब, आज मेरे घर पार्टी थी. मेरे औफिस के 2 अधिकारी आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी बीवियों के साथ खाना खाने आने वाले थे. बारीबारी से हम तीनों एकदूसरे के घर अपनी पत्नियों सहित जमा होते हैं और खातेपीते हैं. इस रविवार को मेरे यहां इकट्ठा होना था.”

“तुम हमेशा फाइन चिकन एंड मीट शौप से ही मीट लाते हो?”

“जी सर.”

इतने में सचमुच आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी पत्नियों के साथ धनंजय के घर आ पहुंचे. रोहिणी की हत्या के बारे में सुन कर वे कांप उठे. सक्सेना उन्हें अपने फ्लैट में ले गए. सवेरे 9 बजे धनंजय के मातापिता भी अलकनंदा आ पहुंचे थे. सक्सेना ने फोन कर के उन से कहा था कि रोहिणी सीरियस है. सक्सेना ने दिल्ली में रह रहे रोहिणी के मातापिता को भी खबर कर दी थी.

कंजूस पिता की ज़िद का नतीजा – भाग 2

पुलिस को यह बात पहले ही पता लग चुकी थी कि हमलावर जिस मोटरसाइकिल से आए थे वह हरियाणा की थी. लाल कमल भी हरियाणा में ही रह रहा था. इस से पुलिस को शक होने लगा कि कहीं लाल कमल ने ही तो पिता को ठिकाने नहीं लगवा दिया. उस के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि घटना वाले दिन उस के फोन की लोकेशन पानीपत में ही थी.

फिर भी पुलिस टीम लाल कमल पुंज से पूछताछ करने के लिए पानीपत पहुंच गई. पुलिस ने जब उस से उस के पिता की हत्या के बारे में मालूमात की तो उस ने बताया कि उन के मर्डर की सूचना निष्ठा ने दी थी. उस के बाद ही वह दिल्ली गया था.

‘‘क्या तुम्हारे पास कोई मोटरसाइकिल है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां सर, मेरे पास हीरो की पैशन बाइक है.’’ लाल कमल ने बताया.

पारसराम पर हमला करने के बाद हमलावर लाल रंग की पैशन बाइक से फरार हुए थे इसलिए पुलिस को लाल कमल पर शक होने लगा. पुलिस ने उस से कुछ कहने के बजाए उस के दोस्तों से पूछताछ की तो पता चला कि कमल अपने पिता से  नाराज रहता था. उन्होंने उसे अपनी प्रौपर्टी से हिस्सा देने से मना कर दिया था.

इस जानकारी के बाद पुलिस का शक विश्वास में बदलने लगा. बिना किसी सुबूत के पुलिस लाल कमल को टच करना ठीक नहीं समझ रही थी. इसलिए वह सुबूत जुटाने में लग गईर्. पुलिस को लाल कमल की बाइक का नंबर भी मिल गया था. अब पुलिस यह जानने की कोशिश करने लगी कि 21 अक्तूबर को कमल की बाइक दिल्ली आई थी या नहीं.

पारसराम पुंज की हत्या 21 अक्तूबर को हुई थी. इसलिए पुलिस ने पानीपत से दिल्ली वाले रोड पर जितने भी पेट्रौल थे, सब के सीसीटीवी कैमरों की घटना से 2 हफ्ते पहले तक की फुटेज देखी कि कहीं कमल ने किसी पेट्रोल पंप पर पैट्रोल तो नहीं भराया था. इस काम में कई दिन लगे लेकिन कोई सफलता नहीं मिली.

दिल्ली पुलिस ने करनाल हाइवे पर कई सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं. उन कैमरों की मानिटरिंग अलीपुर थाने में होती है और वहीं पर उन कैमरों की डिजिटल वीडियो रिकौर्डिंग होती है. थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर रमेश कलसन और हेड कांस्टेबल सत्यप्रकाश ने थाना अलीपुर जा कर 21 अक्तूबर 2013 की फुटेज देखी. उस हाईवे पर रोजाना हजारों की संख्या में वाहन गुजरते हैं, इसलिए 2-3 दिनों तक फुटेज देखने की वजह से उन की आंखें भी सूज गई. लेकिन सफलता की उम्मीद में उन्होंने इस की परवाह नहीं की. वह अपने मिशन में लगे रहे.

उन की कोशिश रंग लाई. फुटेज में लाल कमल पुंज की पैशन मोटरसाइकिल नंबर एचआर 60 डी 7511 दिखाई दे गई. बाइक चलाने वाले के अलावा उस पर एक युवक और बैठा था. कपड़ों और कदकाठी से लग रहा था कि बाइक लाल कमल चला रहा था. रिकौर्डिंग में उस बाइक की दिल्ली आते समय और रात को दिल्ली से जाते समय की फुटेज मौजूद थी. यह सुबूत मिलने के बाद पुलिस ने लाल कमल पुंज से फिर पूछताछ की तो उस ने बताया कि 21 अक्तूबर को वह अपने दोस्त दिनेश मणिक के साथ दिल्ली गया था लेकिन वह सुदर्शन पार्क नहीं गया था.

पुलिस को लगा कि वह झूठ बोल रहा है इसलिए पुलिस उसे और दिनेश माणिक को पूछताछ के लिए पानीपत से दिल्ली ले आई. पुलिस ने दोनों से अलगअलग पूछताछ करनी शुरू कर दी. वे दोनों सच्चाई को ज्यादा देर तक नहीं छिपा सके. उन्होंने स्वीकार कर लिया कि पूर्व कैप्टन पारस राम पुंज की हत्या उन्होने ही की थी. दोनों से पूछताछ के बाद उन की हत्या की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार थी.

पश्चिमी दिल्ली के मोतीनगर क्षेत्र स्थित सुदर्शन पार्क के मकान नंबर बी-462 में रहने वाले पारसराम पुंज सेना में कैप्टन थे. उन की शादी ऊषा से हुई थी, जो मूल रूप से उड़ीसा की रहने वाली थी. बाद में ऊषा 2 बेटों लाल कमल उर्फ सोनू और दीपक उर्फ बाबू के अलावा एक बेटी की मां बनी. 3 बच्चों के साथ ऊषा हंसीखुशी से रह रही थी. लेकिन कैप्टन पारसराम का स्वभाव कुछ अलग था. वह आर्मी की तरह अपने घर में भी डिक्टेटरशिप चलाते थे. और छोटीछोटी बातों पर पत्नी और बच्चों को गलती की सजा देते थे.

जब तक कप्तान साहब ड्यूटी पर रहते थे, घर के सभी लोग अमनचैन से रहते थे, लेकिन उन के छुट्टियों पर घर आते ही घर में एकदम से खामोशी छा जाती थी. घर के सभी सदस्य भीगीबिल्ली बन कर रह जाते थे. उन के डर की वजह से घर वाले ज्यादा नहीं बोलते थे. वह सोचते थे कि पता नहीं किस बात पर उन्हें सजा मिल जाए. कप्तान पारसराम परिवार के सदस्यों को सेना के जवानों की तरह कड़े अनुशासन में रखना चाहते थे. वह यह बात नहीं समझते थे कि सेना और समाज के नियम कायदों में जमीनआसमान का अंतर होता है.

सेना से रिटायर होने के बाद पारसराम ने चांदनी चौक इलाके में सर्जिकल सामान बेचने की दुकान खोल ली. उन के तीनों बच्चे पढ़ रहे थे. शाम को दुकान से घर लौटने के बाद वह किसी न किसी बात को ले कर पत्नी से झगड़ने लगते थे. कभीकभी वह उस की पिटाई भी कर देते थे.

पारसराम स्वभाव से बेहद कंजूस थे. पत्नी को खर्चे के लिए जो भी पैसे देते थे, एकएक पैसे का हिसाब लेते थे. उन की इजाजत के बिना वह एक भी पैसा खर्चे करने से डरती थी. इस तरह पति के रिटायर होने के बाद ऊषा अंदर ही अंदर घुटती जा रही थी. फिर एक दिन वह किसी को भी बिना बताए बेटी को ले कर कहीं चली गई, जिस का आज तक कोई पता नहीं चला. यह करीब 20 साल पहले की बात है.

पारसराम ने पत्नी को संभावित जगहों पर तलाशा, लेकिन वह नहीं मिली. बाद में सन 1995 में पारसराम ने अनीता नाम की महिला से शादी कर ली. करनाल के एक गांव की रहने वाली अनीता की पहली शादी यमुनानगर हरियाणा में हुई थी. लेकिन पति की मौत हो जाने की वजह से उस की जिंदगी में अंधेरा छा गया था. पारसराम से शादी कर के वह मोतीनगर के सुदर्शन पार्क स्थित उन के घर में रहने लगी. 3 मंजिला मकान में उस का परिवार ही रहता था. उस ने मकान का कोई भी फ्लोर किराए पर नहीं उठाया था.

पारसराम ने चांदनी चौक में दुकान खरीदने के अलावा रोहिणी सेक्टर-23 में भी 200 वर्ग गज का एक प्लौट खरीद कर डाल दिया था. इसी बीच अनीता एक बेटी की मां बन गई जिस का नाम निष्ठा रखा गया. पारसराम ने बड़े बेटे लाल कमल को भी अपने साथ सर्जिकल सामान की दुकान पर बैठाना शुरू कर दिया था. उस ने पत्राचार से ही बीकाम किया.

लाल कमल पारसराम के साथ दुकान पर बैठता जरूर था लेकिन उस की मजाल नहीं थी कि वह वहां के पैसों से अपने शौक पूरे कर सके. जवान बच्चों का अपना भी कुछ खर्च होता है इस बात को पारसराम नहीं समझते थे. वह चाहते तो बच्चों का दाखिला किसी अच्छे स्कूल में करा सकते थे लेकिन कंजूस होने की वजह से उन्होंने ऐसा नहीं किया. बेटी निष्ठा का दाखिला भी उन्होंने नजदीक के ही एक सरकारी स्कूल में करा दिया था.

पारसराम घमंडी स्वभाव के थे. वह मोहल्ले वालों से भी उसी अंदाज में बात करते थे. तानाशाही रवैये की वजह से मोहल्ले वालों से उन की अकसर नोकझोंक होती रहती थी. कभीकभी तो वह गली में रेहड़ी पर सब्जी बेचने वालों से भी झगड़ बैठते थे. उन की पत्नी और बच्चे उन की इस आदत से परेशान थे.

सन 2006 में पारसराम ने लाल कमल की शादी पानीपत की ज्योति से करा दी. शादी होने के बाद लाल कमल का खर्च बढ़ गया, लेकिन पिता उसे खर्च के लिए पैसे नहीं देते थे. पारसराम अपनी पेंशन और दुकान की कमाई अपने पास ही रखते थे. इस से लाल कमल काफी परेशान रहता था. इस के अलावा अपनी बहू के प्रति भी उन की नीयत खराब हो चुकी थी. ज्योति ससुर की नीयत भांप चुकी थी. उस ने यह बात पति को बताई तो लाल कमल ने अपनी मां अनीता से शिकायत की. अनीता ने पति से डरते हुए यह बात पूछी तो उन्होंने उल्टे पत्नी को ही डांट दिया.