रागिनी को मार कर प्रिंस को क्या मिला – भाग 2

पुलिस ने मामले की जांच की तो पता चला कि ग्रामप्रधान कृपाशंकर का बेटा प्रिंस सालों से रागिनी को तंग किया करता था. वह रागिनी से एकतरफा प्यार करता था. कई बार वह रागिनी से अपने प्यार का इजहार कर चुका था लेकिन रागिनी न तो उस से प्यार करती थी और न ही उस ने उस के प्रेम पर अपनी स्वीकृति की मोहर ही लगाई थी.

पहले तो रागिनी उस की हरकतों को नजरअंदाज करती रही. लेकिन जब पानी सिर के ऊपर जाने लगा तो उस ने अपने घर वालों को प्रिंस की हरकतों के बारे में बता दिया.

बेटी की परेशान जान कर जितेंद्र को दुख भी हुआ और गुस्सा भी आया. बात बेटी के मानसम्मान से जुड़ी हुई थी, भला वह इसे कैसे सहन कर सकते थे. वह उसी समय शिकायत ले कर ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी के घर जा पहुंचे. संयोग से कृपाशंकर घर पर ही मिल गए. जितेंद्र ने उन के बेटे की हरकतों का पिटारा उन के सामने खोल दिया. लेकिन कृपाशंकर ने उन की शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया. प्रधानी के घमंड में चूर कृपाशंकर तिवारी ने जितेंद्र को डांटडपट कर भगा दिया.

जितेंद्र दुबे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि प्रधान से उस के बेटे की शिकायत करनी उन्हें भारी पड़ जाएगी. अगर उन्हें इस बात का खयाल होता तो वह शिकायत कभी नहीं करते.

बाप ने दी बेटे को शह

शिकायत का परिणाम उल्टा यह हुआ कि शाम के समय जब प्रिंस कहीं से घूम कर घर लौटा तो कृपाशंकर ने उस से पूछा, ‘‘बांसडीह के पंडित जितेंद्र तुम्हारी शिकायत ले कर यहां आए थे. वे कह रहे थे कि उन की बेटी को आतेजाते तंग करते हो, क्या बात है?’’

इस पर प्रिंस ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘पापा, यह सब गलत है, झूठ है. मैं ने उस की बेटी के साथ कभी बदसलूकी नहीं की. मैं तो उस की बेटी को जानता तक नहीं, छेड़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. मुझे बदनाम करने के लिए पंडितजी झूठ बोल रहे होंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं जानता हूं बेटा. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है कि तू ऐसावैसा कोई काम नहीं करेगा. वैसे मैं ने पंडितजी को डांट कर भगा दिया है.’’

‘‘ठीक किया पापा,’’ प्रिंस के होंठों पर जहरीली मुसकान उभर आई.

प्रिंस ने उस समय तो पिता की आंखों में धूल झोंक कर खुद को बचा लिया. पुत्रमोह में अंधे कृपाशंकर को भी बेटे की करतूत दिखाई नहीं दी. नतीजा यह हुआ कि प्रिंस की आंखों में दुबे की बेटी रागिनी के लिए नफरत और गुस्से का लावा फूट पड़ा. उसे लगा कि पंडित की हिम्मत कैसे हुई कि उस के घर शिकायत करने आ गया. प्रिंस ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. आखिर उस ने वही किया, जो उस ने मन में ठान लिया था.

दिनदहाड़े रागिनी की हत्या के बाद आसपास के इलाके में दहशत फैल गई थी. मामला बेहद गंभीर था, इसलिए एसपी सुजाता सिंह ने अपराधियों को गिरफ्तार करने के सख्त आदेश दिए. कप्तान का आदेश पाते ही एसआई बृजेश शुक्ल अपनी पुलिस टीम के साथ आरोपियों को तलाशने में जुट गए.

8 अगस्त, 2017 को पुलिस ने जिले से बाहर जाने वाले सभी रास्तों को सील कर दिया. पुलिस को इस का लाभ भी मिला. बलिया से हो कर गोरखपुर जाने वाली रोड पर 2 आरोपी प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी और दीपू यादव उस समय पुलिस के हत्थे चढ़ गए जब वह जिला छोड़ कर गोरखपुर जा रहे थे.

दोनों को गिरफ्तार कर के पुलिस उन्हें थाना बांसडीह रोड ले आई. दोनों आरोपियों से रागिनी दुबे की हत्या के बारे में गहनता से पूछताछ की गई. पहले तो प्रिंस ने पुलिस को अपने पिता की ताकत की धौंस दिखाई लेकिन कानून के सामने उस की अकड़ ढीली पड़ गई. आखिर दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेकने में ही भलाई समझी. उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया. बाकी के 3 आरोपी मौके से फरार हो गए थे.

दोनों आरोपियों से की गई पूछताछ और बयानों के आधार पर दिल दहला देने वाली जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

55 वर्षीय जितेंद्र दुबे मूलत: बलिया जिले के बांसडीह में 6 सदस्यों के परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 1 बेटा अमन था. निजी व्यवसाय से वह अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. उन का परिवार संस्कारी था.

बेटियों पर गर्व था दुबेजी को

उन की तीनों बेटियां गांव में मिसाल के तौर पर गिनी जाती थीं, क्योंकि तीनों ही अपने काम से काम रखती थीं. वे न तो अनर्गल किसी दूसरे के घर उठतीबैठती थीं और न ही फालतू की गप्पें लड़ाती थीं. वे पढ़ाई के साथ घर के काम में भी हाथ बंटाती थीं. दुबेजी बेटियों को बेटे से कम नहीं आंकते थे. तभी तो उन की पढ़ाई पर पानी की तरह पैसा बहाते थे. बेटियां भी पिता के विश्वास पर हमेशा खरा उतरने की कोशिश करती थीं.

तीनों बेटियों में नेहा बीए में पढ़ती थी, रागिनी 11वीं पास कर के 12वीं में गई थी जबकि सिया 11वीं में थी. स्वभाव में रागिनी नेहा और सिया दोनों से बिलकुल अलग थी. रागिनी पढ़ाईलिखाई से ले कर घर के कामकाज तक सब में अव्वल रहती थीं. वह शरमीली और भावुक किस्म की लड़की थी. जरा सी डांट पर उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकलती थी.

बात 2015 के करीब की है. रागिनी और सिया दोनों सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. उस समय रागिनी 10वीं में थी और सिया 9वीं में. दोनों बहनें घर से रोजाना बजहां गांव हो कर पैदल ही स्कूल के लिए जातीआती थीं. बजहां गांव के ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य उन्हें स्कूल आतेजाते बड़े गौर से देखा करता था.

प्रिंस पहली ही नजर में रागिनी पर फिदा हो गया था. थी तो रागिनी साधारण शक्लसूरत की, मगर उस में गजब का आकर्षण था. रागिनी और सिया जब भी स्कूल जाया करती, वह उन के इंतजार में गांव के बाहर 2-3 दोस्तों के साथ खड़ा रहता था.

वह उन्हें तब तक निहारता रहता था जब तक रागिनी और सिया उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थीं. जबकि दोनों बहनें उस की बातों को नजरअंदाज कर के बिना कोई प्रतिक्रिया किए स्कूल के लिए निकल जाती थीं.

ऐसा नहीं था कि दोनों बहनें उन के इरादों से अंजान थीं, वे उन के मकसद को भलीभांति जान गई थीं. रागिनी प्रिंस से जितनी दूर भागती थी, प्रिंस उतना ही उस की मोहब्बत में पागल हुआ जा रहा था.

17 वर्षीय आदित्य उर्फ प्रिंस उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के बजहां गांव का रहने वाला था. उस का पिता कृपाशंकर तिवारी गांव का प्रधान था. प्रधान तिवारी की इलाके में तूती बोलती थी. उस से टकराने की कोई हिमाकत नहीं करता था. जो उस से टकराने की जुर्रत करता भी था, वह उसे अपनी पौवर का अहसास करा देता था. उस की सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुंच थी. ऊंची पहुंच ने प्रधान तिवारी को घमंडी बना दिया था.

ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस भी उसी के नक्शेकदम पर चल रहा था. पिता की ही तरह प्रिंस भी अभिमानी स्वभाव का था. जिसे चाहे वह उस से उलझ जाता था और मारपीट पर आमादा हो जाता था. वह जब भी चलता था उस के साथ 5-7 लड़कों की टोली चलती थी.

उस की टोली में नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव खासमखास थे. ये तीनों प्रिंस के लिए किसी भी हद तक जाने को हमेशा तैयार रहते  थे. इसीलिए वह इन पर पानी की तरह पैसा बहाता था.

घातक बनी एकतरफा मोहब्बत

प्रिंस रागिनी से एकतरफा मोहब्बत करता था. उसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था जबकि रागिनी उस से प्यार करना तो दूर उस से बात तक करना उचित नहीं समझती थी.

रागिनी के प्यार में प्रिंस इस कदर पागल था कि उस ने खुद को कमरे में कैद कर लिया था. न तो यारदोस्तों से पहले की तरह ज्यादा मिलता था और न ही उन से बातें करता था. प्रिंस की हालत देख कर उस के दोस्त नीरज और दीपू परेशान रहने लगे थे. यार की जिंदगी की सलामती के खातिर तीनों दोस्तों ने फैसला किया कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, वह उस का प्यार यार के कदमों में ला कर डालेंगे.

नीरज, सोनू और दीपू तीनों ने मिल कर एक दिन रागिनी और सिया को स्कूल जाते समय रास्ते में रोक लिया. तीनों के अचानक से रास्ता रोकने से दोनों बहनें बुरी तरह से डर गईं, ‘‘ये क्या बदतमीजी है? तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका? हटो हमें स्कूल जाने दो.’’ रागिनी हिम्मत जुटा कर बोली.

‘‘हम तुम्हारे रास्ते से भी हट जाएंगे और तुम्हें स्कूल भी जाने देंगे, बस तुम्हें हमारी कुछ बातें माननी होंगी.’’ नीरज बोला.

‘‘न तो मैं तुम्हारी कोई बात मानूंगी और न ही सुनूंगी. बस तुम हमारा रास्ता छोड़ दो. हमें स्कूल के लिए देर हो रही है.’’ रागिनी नाराजगी भरे लहजे में बोली.

‘‘देखो रागिनी, ये किसी की जिंदगी और मौत की सवाल है. मेरी बात सुन लो, फिर चली जाना.’’ नीरज ने कहा.

‘‘मैं ने कहा न, मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनने वाली. क्या मुझे ऐसीवैसी लड़की समझ रखा है. जो राह चलते आवारा किस्म के लड़के के मुंह लगे.’’ रागिनी बोली.

‘‘देखो रागिनी, तुम्हारा गुस्सा अपनी जगह जायज है. मैं जानता हूं कि तुम ऐसीवैसी लड़की नहीं, खानदानी लड़की हो. लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं सुनी तो मेरा भाई जो तुम से प्यार करता है, मर जाएगा. तुम उसे बचा लो.’’ नीरज रागिनी के सामेन गिड़गिड़ाया.

‘‘तुम्हारा भाई मरता है तो मेरी बला से. मैं उसे प्यार नहीं करती. एक बात कान खोल कर सुन लो कि आज के बाद इस तरह की वाहियात बात फिर मेरे सामने मत दोहराना, वरना इन का परिणाम बहुत बुरा होगा, समझे.’’ नीरज को खरीखोटी सुनाती हुई रागिनी और सिया चली गईं.

लाली मेरे प्यार की : प्यार की राह में मिली मौत – भाग 2

घटना की सूचना मिलते ही एसएचओ हिमांशु कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. थोड़ी देर बाद वह मौके पर पहुंच कर जांचपड़ताल में जुट गए और इस की जानकारी एसपी योगेंद्र कुमार और एसडीपीओ चंदन कुमार को भी दे दी.

उधर मृतका के पिता नंदकिशोर को बुलवाने के लिए उस के घर एक कांस्टेबल को भेज दिया.

अदावत नहीं थी तो क्यों हुई हत्या

सूचना मिलने के कुछ देर बाद एसपी योगेंद्र कुमार और एसडीपीओ चंदन कुमार भी मौके पर पहुंच चुके थे. उस के थोड़ी देर बाद फोरैंसिक टीम भी वहां पहुंच कर अपनी आवश्यक काररवाई में जुट गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने पैनी नजरों से लाश का मुआयना किया. पड़ताल के दौरान पता चला कि बड़ी बेरहमी से हत्यारों ने किसी तेज धारदार हथियार से उस की गला रेत कर हत्या की थी. मौत से पहले मृतका ने हत्यारों के चंगुल से बचने के लिए काफी हद तक अपना बचाव करने की कोशिश की थी.

मौके से एक चाकू रखने वाला खोखा बरामद हुआ. सबूत के तौर पर पुलिस ने उसे अपने कब्जे में ले लिया. इस के बाद एसएसपी एसएचओ को आवश्यक काररवाई करने का निर्देश दे कर रवाना हो गए.

खैर, एसएचओ हिमांशु कुमार सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दी और नंदकिशोर से तहरीर ले कर थाने आ गए. उन्होंने तहरीर के आधार पर आईपीसी की धारा 302, 201, 120बी, 34 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर विवेचना शुरू कर दी.

एसएचओ हिमांशु कुमार ने विवेचना शुरू करने के बाद कुछ जरूरी जानकारी लेने के लिए नंदकिशोर को थाने बुलवाया और उन से पूछताछ की कि उन की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं है. इस के अलावा उन्हें किसी पर शक हो तो बता दें.

इस पर नंदकिशोर ने बताया कि उन की न तो किसी से कोई दुश्मनी थी और न विवाद. उन्हें किसी पर शक भी नहीं है. हां, इतना जरूर है कि लाली के पास मोबाइल था, वह मौके से नहीं मिला और न ही वह घर पर है.

नंदकिशोर के इस बयान ने एसएचओ हिमांशु सिंह को सोचने पर विवश कर दिया. उन्होंने यह बात एसपी योगेंद्र कुमार और एसडीपीओ चंदन कुमार को बताई. यह जान कर वे भी सोचने पर विवश हो गए.

हत्यारों का मृतका का फोन अपने साथ ले जाना इस बात की ओर इशारा कर रहा था कि उस में हत्या से जुड़ा कोई गहरा राज छिपा था, तभी वे मोबाइल फोन अपने साथ ले गए. या यह भी हो सकता है कि हत्यारा नंदकिशोर के जानपहचान वाला कोई हो और हत्या का राज छिपाने के लिए अपने साथ ले गया हो.

हत्या का नहीं मिल रहा था सुराग

यह सब करतेकरते एक सप्ताह बीत चुका था. पुलिस जांच जहां से चली थी, वहीं आ कर रुक गई. लाली हत्याकांड की गुत्थी की कोई कड़ी पुलिस के हाथ लग ही नहीं रही थी. जिस नंबर को बातचीत के लिए लाली उपयोग करती थी, वह नंबर घर वालों के पास ही नहीं था इसलिए पुलिस को हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ रहे थे. बड़ी मुश्किल से मृतका का फोन नंबर पुलिस के हाथ लगा.

इस के बाद उस नंबर की काल डिटेल्स पुलिस ने निकलवाई और उस की जांच में जुट गई. मृतका के मोबाइल पर आखिरी बार साढ़े 7 बजे काल आई थी. उस के बाद उस के मोबाइल पर कोई काल नहीं आई और फोन स्विच्ड औफ हो गया था.

जिस नंबर से लाली को फोन आया था, नंदकिशोर को थाने बुलवा कर एसएचओ ने उस नंबर को ट्रेस कराया. नंदकिशोर ने बता दिया कि उन्हें नहीं पता कि वह नंबर किस का है.

भले ही नंदकिशोर उस नंबर को नहीं पहचान सके, लेकिन पुलिस उस संदिग्ध नंबर की तलाश में जुट गई. पुलिस की यह कोशिश रंग लाई. 4-5 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद उस नंबर की पूरी कुंडली तैयार हो चुकी थी.

वह नंबर अहमदपुर (घाघरा) निवासी विकेश कुमार महतो के नाम था. पुलिस अब इस गुत्थी को सुलझाने में जुटी थी कि विकेश का नंबर लाली की काल डिटेल्स में कैसे आया? विकेश और लाली एकदूसरे को कैसे जानते थे?

पुलिस ने जल्द ही इस गुत्थी को भी सुलझा लिया. पता चला कि लाली की हत्या त्रिकोण प्रेम प्रसंग के चलते हुई थी. इस घटना को अकेले विकेश ने अंजाम नहीं दिया बल्कि लाली के पहले प्रेमी बिट्टू ने भी उस का साथ दिया था.

विकेश और बिट्टू दोनों भाइयों ने स्वीकारा जुर्म

प्रेम प्रसंग में असफल 2 चचेरे भाई बिट्टू और विकेश ने मिल कर लाली की हत्या की थी. पुलिस ने दोनों के खिलाफ वैज्ञानिक साक्ष्य जुटा लिए थे ताकि अदालत में आरोपियों के खिलफ मजबूत केस बन सके और उन्हें इस की सजा मिल सके.

विकेश और बिट्टू के खिलाफ पुलिस के पास पर्याप्त साक्ष्य जमा हो चुके थे. 27 अगस्त, 2022 को सुबहसुबह पुलिस ने दोनों के घर दबिश दे कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया और थाने ले आई. थाने में दोनों से जब सख्ती से पूछताछ शुरू हुई तो जल्द ही दोनों ने घुटने टेक दिए और अपने जुर्म कुबूल कर लिए.

आरोपियों विकेश और बिट्टू के इकरार ए जुर्म के बाद पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के स्थान पर विकेश और बिट्टू को नामजद कर दिया था और दोनों को अदालत के सामने पेश कर उन्हें जेल भेज दिया था. पुलिस पूछताछ के बाद लक्की उर्फ लाली हत्याकांड की जो दिलचस्प कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

नंदकिशोर साद की सब से बड़ी बेटी थी लक्की उर्फ लाली. सुंदर और चंचल. चंचलता उस के रगरग में समाई थी. उस की आंखों से ले कर उस के सुर्ख होंठों तक चंचलता के पैमाने छलकते थे. उसे पीने वाले आशिकों की कमी भी नहीं थी.

बात उन दिनों की है जब लाली 16 साल की अल्हड़ थी. अपनी ही गलियों में खोई लाली को पता ही नहीं था कि एक युवक की आंखें उस के हुस्न के पैमाने को कब से ताड़ रही थीं. उस युवक का नाम बिट्टू महतो था.

प्यार का मतलब सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं- भाग 2

अंकुश ने पुलिस को बताया कि पूनम की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है. वह तो पूनम से बहुत प्यार करता था. वह उसे लेने जाने ही वाला था कि उस की मौत की खबर मिल गई.

अंकुश ने पुलिस टीम को एक चौंकाने वाली जानकारी भी दी. उस ने बताया कि पूनम जब ससुराल में थी, तब उस के मोबाइल पर अकसर गोलू नाम के किसी युवक का फोन आता था. देर रात भी वह उस से बातें किया करती थी. पूछने पर पूनम ने बताया था कि गोलू उस का मौसेरा भाई है.

पुलिस टीम ने गोलू के संबंध में शिवशंकर से पूछताछ की तो यह बात गलत निकली कि गोलू पूनम का मौसेरा भाई है. पुलिस टीम ने पूनम के मोबाइल के संबंध में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह मोबाइल चोरी का है, लेकिन सिम कार्ड नीरज के नाम का है, जो नयापुरवा हिंगूपुर का रहने वाला है. पुलिस ने रात में छापा मार कर नीरज उर्फ गोलू को हिरासत में ले लिया.

थाना बिठूर ला कर जब नीरज उर्फ गोलू से पूनम की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने साफसाफ कहा कि पूनम की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है. लेकिन जब उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की गई तो वह जल्दी ही टूट गया और उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया.

नीरज ने बताया कि पूनम ने उस के साथ बेवफाई की थी इसीलिए उस ने उसे मौत की नींद सुला दिया. पुलिस टीम ने नीरज की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल दुपट्टा, पूनम का मोबाइल, मय लौकेट के मंगलसूत्र, सोने की अंगूठी, टौप्स, पायल, बिछिया वगैरह बरामद कर लिए.

चूंकि नीरज उर्फ गोलू ने पूनम की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. अत: पुलिस ने नीरज को हत्या के जुर्म में नामजद कर गिरफ्तार कर लिया. नीरज के बयानों के आधार पर प्रेमिका की बेवफाई की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस तरह थी.

कानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर है ऐतिहासिक कस्बा बिठूर. इस कस्बे से 2 किलोमीटर दूर एक गांव बैकुंठपुर है. मिलीजुली आबादी वाले इस गांव में शिवशंकर मौर्या अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शिवकांती के अलावा 2 बेटियां पूनम, प्रियंका तथा एक बेटा अमन था. शिवशंकर लोडर चालक था. मिलने वाले वेतन से ही वह अपने परिवार के भरण पोषण करता था.

भाईबहनों में पूनम सब से बड़ी थी. वह खूबसूरत तो थी ही पर जैसेजैसे जवानी चढ़ी वह उस के बदन को सजाती गई. पूनम की खूबसूरती और निखरती गई. यौवन के फूल खिलते हैं तो उन की मादक महक फिजा में फैलती ही है. ऐसे में भंवरों का फूलों के इर्दगिर्द मंडराना स्वाभाविक है. मनचले भंवरे पूनम के इर्दगिर्द मंडराते तो उसे अच्छा लगता.

पूनम जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली थी और आगे पढ़ना चाहती थी. लेकिन मातापिता के विरोध की वजह से आगे न पढ़ सकी और मां के घरेलू कामों में हाथ बंटाने लगी. हालांकि पूनम को चौकाचूल्हा पसंद न था, लेकिन मां के दबाव में उसे सब करना पड़ता था.

एक रोज पूनम की मुलाकात सरिता से हुई. सरिता उस की दूर की रिश्तेदार थी और किसी काम से उस के घर आई थी. सरिता सिंहपुर स्थित आस्था नर्सिंग होम में काम करती थी. बातचीत के दौरान पूनम ने सरिता से नौकरी करने की इच्छा जाहिर की तो सरिता उसे नौकरी दिलाने के लिए राजी हो गई.

लेकिन मां ने पूनम को नौकरी करने के लिए साफ मना कर दिया. कुछ माह तक पूनम अपनी मां शिवकांती को नौकरी के लिए मनाती रही लेकिन जब वह नहीं मानी तो पूनम ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘मां, तुम राजी हो या न हो, अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए मैं नौकरी करूंगी.’’

पूनम के निर्णय के आगे शिवकांती को झुकना पड़ा. इस के बाद पूनम आस्था नर्सिंग होम में काम करने लगी. पूनम के गांव से सिंहपुर ज्यादा दूर नहीं था. वहां आनेजाने के साधन भी थे. अत: उसे नर्सिंग होम आनेजाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी. कभीकभी अस्पताल में ज्यादा महिला मरीज होती या प्रसव कराने का मामला होता तो पूनम को रात में भी रुकना पड़ता था. रुकने की खबर वह मोबाइल से घर वालों को दे देती थी.

पूनम को नौकरी करते हुए 2 महीने बीत गए तो उस ने कुछ पैसा बचाने की सोची. इस के लिए बैंक खाता जरूरी था. इसलिए वह बैंक में खाता खुलवाने का प्रयास करने लगी. पूनम जिस आस्था नर्र्सिंग होम में काम करती थी उस के ठीक सामने रोड के उस पार भारतीय स्टेट बैंक की सिंहपुर शाखा थी.

एक रोज वह बैंक पहुंची तो वहां उस की मुलाकात एक हृष्टपुष्ट युवक नीरज उर्फ गोलू से हुई, पहली ही नजर में खूबसूरत पूनम, नीरज के दिल में रच बस गई.

नादान मोहब्बत का नतीजा – भाग 1

उत्तर प्रदेश के शहर  के थाना छत्ता की गली कचहरी घाट में रामअवतार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की वह शादी कर चुका था, मंझली के लिए लड़का ढूंढ रहा था. सब से छोटी शिल्पी हाईस्कूल में पढ़ रही थी.

शिल्पी की उम्र  भले ही कम थी, पर उस की शोखी और चंचलता से रामअवतार और उस की पत्नी चिंतित रहते थे. पतिपत्नी उसे समझाते रहते थे, पर 15 साल की शिल्पी कभीकभी बेबाक हो जाती थी. इस के बावजूद रामअवतार ने कभी यह नहीं सोचा था कि उन की यह बेटी एक दिन ऐसा काम करेगी कि वह समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

कचहरी घाट से कुछ दूरी पर जिमखाना गली है. वहीं रहता था शब्बीर. उस का बेटा था इरफान, जो एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. इरफान के अलावा शब्बीर के 2 बेटे और थे.

शिल्पी जिमखाना हो कर ही स्कूल आतीजाती थी. वह जब स्कूल जाती तो इरफान अकसर उसे गली में मिल जाता. आतेजाते दोनों की निगाहें टकरातीं तो इरफान के चेहरे पर चमक सी आ जाती. इस से शिल्पी को लगने लगा कि इरफान शायद उसी के लिए गली में खड़ा रहता है.

शिल्पी का सोचना सही भी था. दरअसल शिल्पी इरफान को अच्छी लगने लगी थी. यही वजह थी, वह उसे देखने के लिए गली में खड़ा रहता था. कुछ दिनों बाद वह शिल्पी से बात करने का बहाना तलाशने लगा. इस के लिए वह कभीकभी उस के पीछेपीछे कालोनी के गेट तक चला जाता, पर उस से बात करने की हिम्मत नहीं कर पाता. जब उसे लगा कि इस तरह काम नहीं चलेगा तो एक दिन उस के सामने जा कर उस ने कहा, ‘‘मैं कोई गुंडालफंगा नहीं हूं. मैं तुम्हारा पीछा किसी गलत नीयत से नहीं करता. मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

CRIME

‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो?’’ शिल्पी ने पूछा.

‘‘बात सिर्फ इतनी है कि मैं तुम से दोस्ती करना चाहता हूं.’’ इरफान ने कहा.

‘‘लेकिन मैं तुम से दोस्ती नहीं करना चाहती. मम्मीपापा कहते हैं कि लड़कों से दोस्ती ठीक नहीं.’’ शिल्पी ने कहा और मुसकरा कर आगे बढ़ गई.

इरफान उस की मुसकराहट का मतलब समझ गया. हिम्मत कर के उस ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘कोई जल्दी नहीं है, तुम सोचसमझ लेना. मैं तुम्हें सोचने का समय दे रहा हूं.’’

‘‘कोई देख लेगा.’’ कह कर शिल्पी ने अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई. किसी लड़के ने उसे पहली बार ऐसे छुआ था. उस के शरीर में बिजली सी दौड़ गई थी. शिल्पी उम्र की उस दहलीज पर खड़ी थी जहां आसानी से फिसलने का डर रहता है. इरफान पहला लड़का था, जिस ने उस से दोस्ती की बात कही थी, पर मांबाप और समाज का डर आड़े आ रहा था.

इरफान के बारे में शिल्पी ज्यादा कुछ नहीं जानती थी. बस इतना जानती थी कि वह जिमखाना गली में रहता है. उसे उस का नाम भी पता नहीं था. धीरेधीरे इरफान ने उस के दिल में जगह बना ली. मिलने पर इरफान उस से थोड़ीबहुत बात भी कर लेता. पर उसे प्यार के इजहार का मौका नहीं मिल रहा था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘चलो, ताजमहल देखने चलते हैं. वहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’

शिल्पी ने हां कर दी तो दोनों औटो से ताजमहल पहुंच गए. वहां शिल्पी को जब पता चला कि उस का नाम इरफान है तो उस ने कहा, ‘‘ओह तो तुम मुसलमान हो?’’

‘‘हां, मुसलमान हूं तो क्या हुआ? क्या मुसलमान प्यार नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, ठीकठाक कमाता भी हूं. और मैं वादा करता हूं कि जीवन भर तुम्हारा बनकर रहूंगा. तुम्हें हर तरह से खुश रखूंगा.’’

इरफान देखने में अच्छाखासा था और ठीकठाक कमाई भी कर रहा था, केवल एक ही बात थी कि वह मुसलमान था. पर आज के जमाने में तमाम अंतरजातीय विवाह होते हैं. यह सब सोच कर शिल्पी ने इरफान की मोहब्बत स्वीकार कर ली. उस दिन के बाद वह अकसर उस के साथ घूमनेफिरने लगी.

मोहल्ले वालों ने जब शिल्पी को इरफान के साथ देखा तो तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने रामअवतार को बताया कि वह अपनी बेटी को संभाले. वह एक मुसलमान लड़के के साथ घूमतीफिरती है. कहीं उस की वजह से कोई बवाल न हो जाए.

बेटी के बारे में सुन कर रामअवतार के कान खड़े हो गए. दोपहर में जब वह घर पहुंचा तो पता चला कि शिल्पी अभी तक घर नहीं आई है. पत्नी ने बताया कि वह रोज देर से आती है. कहती है कि एक्स्ट्रा क्लास चल रही है.

रामअवतार दुकान पर लौट गया. कुछ देर बाद पत्नी का फोन आया कि शिल्पी आ गई है तो वह घर आ गया. उस ने शिल्पी से पूछताछ की तो उस ने कहा कि वह किसी लड़के से नहीं मिलती. छुट्टी के बाद मैडम क्लास लेती हैं. इसलिए देर हो जाती है.

रामअवतार जानता था कि शिल्पी झूठ बोल रही है. वह खुद उसे पकड़ना चाहता था, इसलिए उस ने उस से कुछ नहीं कहा. कुछ दिनों तक शिल्पी से कोई टोकाटाकी नहीं हुई तो वह निश्ंिचत हो गई. वह इरफान के साथ घूमनेफिरने लगी. फिर एक दिन रामअवतार ने उसे इरफान के साथ देख लिया. उस ने शिल्पी को डांटाफटकारा ही नहीं, उस का स्कूल जाना भी बंद करा दिया.

रागिनी को मार कर प्रिंस को क्या मिला – भाग 1

खुशमिजाज रागिनी दुबे सुबह तैयार हो कर अपनी छोटी बहन सिया के साथ घर से पैदल ही स्कूल के लिए निकली थी. वह बलिया जिले के बांसडीह की रहने वाली थी. दोनों बहनें सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. रागिनी 12वीं कक्षा में थी तो सिया 11वीं में.

उस दिन रागिनी महीनों बाद स्कूल जा रही थी. स्कूल जा कर उसे अपने बोर्ड परीक्षा फार्म के बारे में पता करना था कि परीक्षा फार्म कब भरा जाएगा. वह कुछ दिनों से स्कूल नहीं जा पाई थी, इसलिए परीक्षा फार्म के बारे में उसे सही जानकारी नहीं थी.

दोनों बहनें पड़ोस के गांव बजहां के काली मंदिर के रास्ते हो कर स्कूल जाती थीं. उस दिन भी वे बातें करते हुए जा रही थीं, जब दोनों काली मंदिर के पास पहुंची तभी अचानक उन के सामने 2 बाइकें आ कर रुक गईं. दोनों बाइकों पर 4 लड़के सवार थे. अचानक सामने बाइक देख रागिनी और सिया सकपका गईं, वे बाइक से टकरातेटकराते बचीं.

‘‘ये क्या बदतमीजी है, तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका?’’ रागिनी लड़कों पर गुर्राई.

‘‘एक बार नहीं, हजार बार रोकूंगा.’’ उन चारों में से एक लड़का बाइक से नीचे उतरते हुए बोला. उस का नाम प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी था. प्रिंस आगे बोला, ‘‘जाओ, तुम्हें जो करना हो कर लेना. तुम्हारी गीदड़भभकी से मैं डरने वाला नहीं, समझी.’’

‘‘देखो, मैं शराफत से कह रही हूं, हमारा रास्ता छोड़ो और स्कूल जाने दो.’’ रागिनी बोली.

‘‘अगर रास्ता नहीं छोड़ा तो तुम क्या करोगी?’’ प्रिंस ने अकड़ते हुए कहा.

‘‘दीदी, छोड़ो इन लड़कों को. मां ने क्या कहा था कि इन के मुंह मत लगना. इन के मुंह लगोगी तो कीचड़ के छींटे हम पर ही पड़ेंगे. चलो हम ही अपना रास्ता बदल देते हैं.’’ सिया ने रागिनी को समझाया.

‘‘नहीं सिया नहीं, हम बहुत सह चुके इन के जुल्म. अब और बरदाश्त नहीं करेंगे. इन दुष्टों ने हमारा जीना हराम कर रखा है. इन से जितना डरोगी, उतना ही ये हमारे सिर पर चढ़ कर तांडव करेंगे. इन्हें इन की औकात दिखानी ही पड़ेगी.’’

‘‘ओ झांसी की रानी,’’ प्रिंस गुर्राया,  ‘‘किसे औकात दिखाएगी तू, मुझे. तुझे पता भी है कि तू किस से पंगा ले रही है. प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा हूं, मिनट में छठी का दूध याद दिला दूंगा. तेरी औकात ही क्या है. मैं ने तुझे स्कूल जाने से मना किया था ना, पर तू नहीं मानी.’’

‘‘हां, तो.’’ रागिनी डरने के बजाए प्रिंस के सामने तन कर खड़ी हो गई. ‘‘तुम मुझे स्कूल जाने से रोकोगे, ऐसा करने वाले तुम होते कौन हो?’’

‘‘दीदी, क्यों बेकार की बहस किए जा रही हो,’’ सिया बोली, ‘‘चलो यहां से.’’

‘‘नहीं सिया, तुम चुप रहो.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई, ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी यहां से. रोजरोज मर के जीने से तो अच्छा होगा कि एक ही दिन मर जाएं. कम से कम जिल्लत की जिंदगी तो नहीं जिएंगे. इन दुष्टों को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई.

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‘‘तूने किसे दुष्ट कहा?’’ प्रिंस गुस्से से बोला.

‘‘तुझे और किसे…’’ रागिनी भी आंखें दिखाते हुए बोली.

आतंक पहुंचा हत्या तक

इस तरह दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. विवाद बढ़ता देख कर प्रिंस के सभी दोस्त अपनी बाइक से नीचे उतर कर उस के पास जा खड़े हुए. सिया रागिनी को समझाने लगी कि लड़कों से पंगा मत लो, यहां से चलो. लेकिन उस ने बहन की एक नहीं सुनी. गुस्से से लाल हुए प्रिंस ने आव देखा न ताव उस ने रागिनी को जोरदार धक्का मारा.

रागिनी लड़खड़ाती हुई जमीन पर जा गिरी. अभी वह संभलने की कोशिश कर ही रही थी कि वह उस पर टूट पड़ा. पहले से कमर में खोंस कर रखे चाकू से उस ने रागिनी के गले पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ देर तड़पने के बाद रागिनी की मौत हो गई. उस की हत्या कर वे चारों वहां से फरार हो गए.

घटना इतने अप्रत्याशित तरीके से घटी थी कि न तो रागिनी ही कुछ समझ पाई थी और न ही सिया. आंखों के सामने बहन की हत्या होते देख सिया के मुंह से दर्दनाक चीख निकल पड़ी. उस की चीख इतनी तेज थी कि गांव वाले अपनेअपने घरों से बाहर निकल आए और जहां से चीखने की आवाज आ रही थी, वहां पहुंच गए. उन्होंने मौके पर पहुंच कर देखा तो रागिनी खून से सनी जमीन पर पड़ी थी. वहीं उस की बहन उस के पास बैठी दहाड़ें मार कर रो रही थी.

दिनदहाड़े हुई दिन दहला देने वाली इस घटना से सभी सन्न रह गए. लोग आपस में चर्चा कर रहे थे कि समाज में कानून नाम की कोई चीज नहीं रह गई है. बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि राह चलती बहूबेटियों का जीना तक मुश्किल हो गया है. इस बीच किसी ने फोन द्वारा घटना की सूचना बांसडीह रोड थानाप्रभारी बृजेश शुक्ल को दे दी थी.

गांव वाले रागिनी को पहचानते थे. वह पास के गांव बांसडीह के रहने वाले जितेंद्र दुबे की बेटी थी, इसलिए उन्होंने जितेंद्र दुबे को भी सूचना दे दी. बेटी की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. उन्हें जिस अनहोनी की चिंता सता रही थी आखिरकार वो हो गई.

जितेंद्र दुबे जिस हालत में थे, उसी हालत में घटनास्थल की तरफ दौडे़. वह बजहां गांव के काली मंदिर के पास पहुंचे तो वहां उन की बेटी की लाश पड़ी थी.

लाश के पास ही छोटी बेटी सिया दहाड़े मार कर रो रही थी. बेटी की रक्तरंजित लाश देख कर जितेंद्र भी फफकफफक कर रोने लगे. उन्हें 2-3 दिन पहले ही कुछ शरारती तत्व घर पर धमकी दे कर गए थे कि रागिनी स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. आखिरकार वे अपने मंसूबों में कामयाब हो गए.

सूचना पा कर एसआई बृजेश शुक्ल फोर्स के साथ मौके पे पहुंच चुके थे. उन्होंने शव का मुआयना किया. मृतका के गले पर अनेक घाव थे. चूंकि पूरी वारदात मृतका की छोटी बहन सिया के सामने घटित हुई थी, इसलिए उस ने एसआई बृजेश शुक्ल को सारी बातें बता दीं. उस ने बताया कि बजहां गांव के रहने वाले ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी, प्रधान का ही भतीजा सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव ने दीदी की हत्या की है.

मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस ने जितेंद्र दुबे की तहरीर पर ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी, उस के बेटे आदित्य उर्फ प्रिंस, सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव के खिलाफ हत्या और छेड़छाड़ की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.

जब चढ़ा प्यार का नशा : नाजायज संबंधों की फिसलन भरी राह – भाग 1

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी के भलस्वा गांव के रहने वाले सोहताश की बेटी की शादी थी. उन के यहां शादी में एक रस्म के अनुसार, लड़की की मां को सुबहसुबह कई घरों से पानी लाना होता है. रस्म के अनुसार पानी लाने के लिए सोहताश की पत्नी कुसुम सुबह साढ़े 5 बजे के करीब घर से निकलीं. यह 20 जून, 2017 की बात है.

पानी लेने के लिए कुसुम पड़ोस में रहने वाली नारायणी देवी के यहां पहुंचीं. नारायणी देवी उन की रिश्तेदार भी थीं. नारायणी के घर का दरवाजा खुला था, इसलिए वह उस की बहू मीनाक्षी को आवाज देते हुए सीधे अंदर चली गईं. वह जैसे ही ड्राइंगरूम में पहुंची, उन्हें नारायणी का 40 साल का बेटा अनूप फर्श पर पड़ा दिखाई दिया. उस का गला कटा हुआ था. फर्श पर खून फैला था. वहीं बैड पर नारायणी लेटी थी, उस का भी गला कटा हुआ था.

दोनों को उस हालत में देख कर कुसुम पानी लेना भूल कर चीखती हुई घर से बाहर आ गईं, उस की आवाज सुन कर पड़ोसी आ गए. उस ने आंखों देखी बात उन्हें बताई तो कुछ लोग नारायणी के घर के अंदर पहुंचे. नारायणी और उस का बेटा अनूप लहूलुहान हालत में पड़े मिले.

अनूप की पत्नी मीनाक्षी, उस की 17 साल की बेटी कनिका, 15 साल का बेटा रजत बैडरूम में बेहोश पड़े थे. दूसरे कमरे में नारायणी की छोटी बहू अंजू और उस की 12 साल की बेटी भी बेहोश पड़ी थी. नारायणी का छोटा बेटा राज सिंह बालकनी में बिछे पलंग पर बेहोश पड़ा था.

मामला गंभीर था, इसलिए पहले तो घटना की सूचना पुलिस को दी गई. उस के बाद सभी को जहांगीरपुरी में ही स्थित बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया. सूचना मिलते ही एएसआई अंशु एक सिपाही के साथ मौके पर पहुंच गए थे. वहां उन्हें पता चला कि सभी को बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया है तो सिपाही को वहां छोड़ कर वह अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल में डाक्टरों से बात करने के बाद उन्होंने घटना की जानकारी थानाप्रभारी महावीर सिंह को दे दी.

घटना की सूचना डीसीपी मिलिंद डुंबरे को दे कर थानाप्रभारी महावीर सिंह भी घटनास्थल पर जा पहुंचे. उस इलाके के एसीपी प्रशांत गौतम उस दिन छुट्टी पर थे, इसलिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे के निर्देश पर मौडल टाउन इलाके के एसीपी हुकमाराम घटनास्थल पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया गया था. पुलिस ने अनूप के घर का निरीक्षण किया तो वहां पर खून के धब्बों के अलावा कुछ नहीं मिला. घर का सारा सामान अपनीअपनी जगह व्यवस्थित रखा था, जिस से लूट की संभावना नजर नहीं आ रही थी.

कुसुम ने पुलिस को बताया कि जब वह अनूप के यहां गई तो दरवाजे खुले थे. पुलिस ने दरवाजों को चैक किया तो ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से लगता कि घर में कोई जबरदस्ती घुसा हो. घटनास्थल का निरीक्षण कर पुलिस अधिकारी जगजीवनराम अस्पताल पहुंचे. डाक्टरों ने बताया कि अनूप और उस की मां के गले किसी तेजधार वाले हथियार से काटे गए थे. इस के बावजूद उन की सांसें चल रही थीं. परिवार के बाकी लोग बेहोश थे, जिन में से 2-3 लोगों की हालत ठीक नहीं थी.

कनिका, रजत और राज सिंह की बेटी की हालत सामान्य हुई तो डाक्टरों ने उन्हें छुट्टी दे दी. पुलिस ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रात उन्होंने कढ़ी खाई थी. खाने के बाद उन्हें ऐसी नींद आई कि उन्हें अस्पताल में ही होश आया.

इस से पुलिस अधिकारियों को शक हुआ कि किसी ने सभी के खाने में कोई नशीला पदार्थ मिला दिया था. अब सवाल यह था कि ऐसा किस ने किया था? अब तक राज सिंह को भी होश आ चुका था. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि खाना खाने के बाद उसे गहरी नींद आ गई थी. यह सब किस ने किया, उसे भी नहीं पता.

पुलिस को राज सिंह पर ही शक हो रहा था कि करोड़ों की संपत्ति के लिए यह सब उस ने तो नहीं किया? पुलिस ने उस से खूब घुमाफिरा कर पूछताछ की, लेकिन उस से काम की कोई बात सामने नहीं आई.

मामले के खुलासे के लिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे ने थानाप्रभारी महावीर सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी, जिस में अतिरिक्त थानाप्रभारी राधेश्याम, एसआई देवीलाल, महिला एसआई सुमेधा, एएसआई अंशु, महिला सिपाही गीता आदि को शामिल किया गया.

नारायणी और उस के बेटे अनूप की हालत स्थिर बनी हुई थी. अंजू और उस की जेठानी मीनाक्षी अभी तक पूरी तरह होश में नहीं आई थीं. पुलिस ने राज सिंह को छोड़ तो दिया था, पर घूमफिर कर पुलिस को उसी पर शक हो रहा था. उस के और उस के भाई अनूप सिंह के पास 2-2 मोबाइल फोन थे.

शक दूर करने के लिए पुलिस ने दोनों भाइयों के मोबाइल फोनों की कालडिटेल्स निकलवाई. इस से भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. अनूप का एक भाई अशोक गुड़गांव में रहता था. उस का वहां ट्रांसपोर्ट का काम था. पुलिस ने उस से भी बात की. वह भी हैरान था कि आखिर ऐसा कौन आदमी है, जो उस के भाई और मां को मारना चाहता था?

21 जून को मीनाक्षी को अस्पताल से छुट्टी मिली तो एसआई सुमेधा कांस्टेबल गीता के साथ उस से पूछताछ करने उस के घर पहुंच गईं. पूछताछ में उस ने बताया कि सभी लोगों को खाना खिला कर वह भी खा कर सो गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उसे पता नहीं. पुलिस को मीनाक्षी से भी कोई सुराग नहीं मिला.

अस्पताल में अब राज सिंह की पत्नी अंजू, अनूप और उस की मां नारायणी ही बचे थे. अंजू से अस्पताल में पूछताछ की गई तो उस ने भी कहा कि खाना खाने के कुछ देर बाद ही उसे भी गहरी नींद आ गई थी.

जब घर वालों से काम की कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने गांव के कुछ लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा मुखबिरों को लगा दिया. पुलिस की यह कोशिश रंग लाई. पुलिस को मोहल्ले के कुछ लोगों ने बताया कि अनूप की पत्नी मीनाक्षी के अब्दुल से अवैध संबंध थे. अब्दुल का भलस्वा गांव में जिम था, वह उस में ट्रेनर था. पुलिस ने अब्दुल के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह जहांगीरपुरी के सी ब्लौक में रहता था.

प्यार का मतलब सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं – भाग 1

सिंहपुर निवासी अनीता द्विवेदी सुबह को कुछ महिलाओं के साथ गंगा बैराज  रोड पर मार्निंग वाक पर निकलीं. महिलाओं के साथ वाक करते हुए जब वह हरी चौराहे पर पहुंचीं तो उन्होंने रोड किनारे की झाडि़यों में एक युवती का शव पड़ा देखा. वहीं ठिठक कर उन्होंने साथी महिलाओं को भी बुला लिया.

थोड़ी ही देर में शव देखने वालों की भीड़ जुटने लगी. इसी बीच अनीता द्विवेदी ने मोबाइल फोन से इस की सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. यह बात 8 मार्च, 2018 की थी.

सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी तुलसी राम पांडेय पुलिस टीम के साथ सिंहपुर स्थित हरी चौराहा पहुंच गए. उस समय वहां भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटा कर वह उस जगह पहुंचे, जहां युवती की लाश पड़ी थी. लाश किसी नवविवाहिता की थी. उस के दोनों हाथों में मेंहदी रची थी और कलाइयों में सुहाग चूडि़यां थीं.

उस की उम्र 25 वर्ष के आसपास थी और वह गुलाबी रंग का सूट पहने थी. देखने से ऐसा लग रहा था कि युवती की हत्या कहीं और की गई थी, जिस के बाद शव को गंगा बैराज रोड किनारे फेंक दिया गया था.

चूंकि मामला एक नवविवाहिता की हत्या का था, इसलिए इंसपेक्टर तुलसीराम पांडे ने कत्ल की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही एसपी (पश्चिम) गौरव ग्रोवर, एसपी (पूर्व) अनुराग आर्या तथा सीओ भगवान सिंह भी वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

इस के बाद मौके पर आई फोरेंसिक टीम ने जांच की. युवती के गले पर कपड़े से कसे जाने के साथसाथ उंगलियों के निशान भी थे, जिस से टीम ने संभावना जताई कि युवती की हत्या गला घोंट कर की गई थी. युवती के सिर में दाईं ओर चोट का निशान तथा शरीर पर आधा दरजन खरोंच के निशान थे. टीम ने फिंगरप्रिंट लिए तथा अन्य साक्ष्य भी जुटाए.

काफी कोशिश के बाद भी युवती के शव की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. पुलिस शिनाख्त के लिए लोगों से पूछताछ कर रही थी. इसी बीच भीड़ में से एक युवक आगे आया और शव को झुक कर गौर से देखने लगा. इत्मीनान हो जाने के बाद वह एसपी अनुराग आर्या से बोला, ‘‘साहब यह लाश पूनम की है.’’

‘‘कौन पूनम, पूरी बात बताओ?’’

‘‘साहब, मेरा नाम श्याम मिश्रा है. मैं बैकुंठपुर गांव का रहने वाला हूं. हमारे गांव में शिवशंकर मौर्या रहते हैं. पूनम उन्हीं की बेटी थी.’’

श्याम मिश्रा की बात सुन कर एसपी अनुराग आर्या ने तत्काल पुलिस भेज कर शिवशंकर व उन के घर वालों को बुला लिया. शिवशंकर व उस की पत्नी शिवकांती ने जब बेटी का शव देखा तो वह बिलख पड़े. प्रियंका भी बड़ी बहन पूनम का शव देख कर रोने लगी. पुलिस अधिकारियों ने उन सभी को धैर्य बंधाया और आश्वासन दिया कि पूनम के हत्यारों को बख्शा नहीं जाएगा.

शव की शिनाख्त हो जाने के बाद एसपी (पश्चिम) गौरव ग्रोवर ने मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में पूनम के शव का पंचनामा भरवा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से 2 सिपाहियों और एक दरोगा की ड्यूटी पोस्टमार्टम हाउस पर लगा दी.

इस के बाद इंसपेक्टर तुलसी राम पांडे ने शिवशंकर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गांव में उस की किसी से कोई  दुश्मनी नहीं है. न ही जमीन जायदाद का झगड़ा है. उसे नहीं मालूम कि पूनम की हत्या किस ने और क्यों कर दी. चूंकि शिवशंकर ने किसी पर शक नहीं जताया था, इसलिए तुलसीराम पांडे ने शिवशंकर को वादी बना कर धारा 302 आईपीसी के तहत अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर दी.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एसपी (पश्चिम) गौरव ग्रोवर ने सीओ भगवान सिंह के निर्देशन में पूनम की हत्या का राज खोलने के लिए एक सशक्त पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में बिठूर इंसपेक्टर तुलसी राम पांडे, सबइंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, संजय मौर्या, राजेश सिंह, सिपाही रघुराज सिंह, देवीशरण सिंह तथा मोहम्मद खालिद को शामिल किया गया.

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पुलिस टीम ने अपनी जांच मृतका के पिता शिवशंकर मौर्या से शुरू की. पुलिस ने मृतका के पिता का विधिवत बयान दर्ज किया. अपने बयान में शिवशंकर ने बताया कि उस ने पूनम की शादी 17 फरवरी, 2018 को सामूहिक विवाह समारोह में उन्नाव जिले के गांव परागी खेड़ा निवसी अंकुश मौर्या के साथ की थी.

20 फरवरी को वह पूनम की चौथी ले आया था, तब से वह मायके में ही थी. 7 मार्च को पूनम दोपहर बाद दवा लेने आस्था नर्सिंगहोम सिंहपुर गई थी. जाते समय वह अपना मोबाइल फोन घर पर ही भूल गई थी. अलबत्ता उस के पास दूसरा मोबाइल था. शाम 6 बजे तक जब वह वापस नहीं आई तो चिंता हुई. उस का मोबाइल भी बंद था.

शादी के पहले पूनम आस्था नर्सिंग होम में काम करती थी, इसलिए हम ने सोचा कि शायद वह वहीं रुक गई होगी, सुबह तक आ जाएगी. लेकिन सुबह उस की मौत की खबर मिली. पूनम घर से जाते वक्त पूरे जेवर पहने हुए थी, जो गायब थे.

शिवशंकर के बयान से पुलिस टीम को शक हुआ कि कहीं पूनम के पति अंकुश ने जेवर हड़प कर उस की हत्या तो नहीं कर दी. पुलिस टीम ने घर में रखा पूनम का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और परागी खेड़ा निवासी पूनम के पति अंकुश को हिरासत में ले कर पूछताछ की.

लाली मेरे प्यार की : प्यार की राह में मिली मौत – भाग 1

‘‘भैया, मैं लाली के बिना नहीं जी सकता,’’ विकेश रुंधे गले से बोला. उस की सुर्ख आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे, ‘‘कुछ करो न भैया.’’

‘‘तू रो मत विकेश,’’ तसल्ली देता हुआ बिट्टू सामने खड़े विकेश को समझा रहा था, ‘‘अरे, पगले पहले तू ये मोती जैसे बहते आंसुओं को पोंछ, फिर देखता हूं हमें क्या करना है. मुझ से तेरी ये हालत देखी नहीं जाती भाई.’’

‘‘पर…पर वो भैया मेरे दिल से निकलती ही नहीं. दिल को समझाता हूं तो उस की भोली सूरत आंखों के सामने आ जाती है. भाई, तुम्हीं बताओ कि ऐसी हालत में मैं क्या करूं? दिल से उस की यादों को कैसे भुलाऊं? कैसे निकालूं?’’

‘‘वक्त बड़ेबड़े जख्मों को समय का मरहम लगा कर भर देता है मेरे भाई. तेरे भी जख्म जख्म जरूर भर जाएंगे. बस, थोड़ा सब्र करना होगा.’’

‘‘सब्र ही तो नहीं होता अब मुझ से. जब से उस की शादी की बात मैं ने सुनी है, जलन के मारे मेरा दिल भुनता ही जा रहा है.’’

‘‘तेरा ही नहीं भाई, मेरा भी दिल जल रहा है. मेरे से भी प्यार किया था उस ने. जितना तेरे दिल को चोट पहुंची है, उतनी ही चोट मेरे दिल को भी पहुंची है. कैसे भुला सकता हूं मैं उस की बेवफाई को. कभी नहीं. न तो उस की यादों को मैं अपने दिल से जुदा कर सकता हूं और न करूंगा.’’

‘‘मैं तो कहता हूं भाई, जैसे हमें धोखा दे कर वह तीसरे की बाहों में सिमट रही है…’’ कहतेकहते विकेश बीच में रुक गया.

‘‘ठीक है, सिमट जाने दो उसे.’’ उस की अधूरी बात बिट्टू ने पूरी की, ‘‘सिमट गई तो क्या हुआ? उसे हम इतनी आसानी से नहीं भूलने देंगे. तू चिंता क्यों करता है?’’ इस के बाद विकेश और बिट्टू घंटों बातें करते रहे. गुस्से के मारे दोनों के चेहरे तमतमा उठे थे.

दरअसल, विकेश और बिट्टू रिश्ते में दोनों चचेरे भाई थे. दोनों ही बिहार के बेगूसराय जिले के अहमदपुर (घाघरा) के रहने वाले थे. वे दोनों ही एक ही लड़की लाली से प्यार करते थे. फिर अचानक न जाने उन के बीच में ऐसा क्या हुआ कि लाली ने दोनों को छोड़ कर तीसरे से ब्याह रचा लिया. इसी बात को ले कर दोनों परेशान थे और उन के मन में कोई खतरनाक योजना खाका बना रही थी.

20 वर्षीय लक्की उर्फ लाली नंदकिशोर साद की बेटी थी. उस से 3 छोटे और भी भाईबहन थे. नंदकिशोर मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. उन के बच्चों में लाली वास्तव में कीचड़ में खिले कमल जैसी थी, जिसे पाने के लिए इश्क के बाजार में दीवानों की कतारें लगी थीं.

हर कोई उस के दिल के कोरे पन्नों पर अपने प्रेम की अमर दास्तान लिखने के लिए बेताब हुआ जा रहा था. मगर, उस ने अपने दिल को परांदे के पीछे छिपा रखा था.

बात 6 अगस्त, 2022 की है. शाम के कोई साढ़े 7 बजे थे. लाली अपनी मां सुशीला से दिशा मैदान के लिए कह कर घर से अकेली निकली थी. उस के घर शौचालय नहीं था. गांव के अधिकतर पुरुष और महिलाएं खुले मैदान में जाते थे. सो लाली भी बाहर गई थी.

उसे गए काफी देर हो गई, मगर वह घर वापस नहीं लौटी थी तो मां को बेटी की चिंता सताने लगी और वह बेटी के लौटने की राह ताकने लगी थी.

जंगल में खून से लथपथ मिली लाली की लाश

रात के करीब 10 बज गए और लाली तक घर नहीं लौटी थी. यह देख कर लाली के मांबाप और घर के सभी लोग परेशान हो गए कि वह कहां गायब हो गई. उस के साथ कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. यह सोच कर मां का कलेजा जोरों से धड़कने लगा.

इधर पिता नंदकिशोर भी परेशान थे. पूरे गांव में बेटी को ढूंढ लिया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. और रात भी गहराती जा रही थी. ऐसे में नंदकिशोर को यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. कहां जाए? आखिर बेटी किस हाल में होगी.

उस ने मन ही मन प्रार्थना की कि बेटी जहां कहीं भी हो, सहीसलामत और सुरक्षित हो. सुबह होते उसे ढूंढ ही लेंगे.

रात जैसेतैसे पतिपत्नी की आंखों में कटी. दोनों ही बेटी के आने की आस में रात भर सोए नहीं थे. जब भी दरवाजा खटकने की आवाज होती, वे चौंक जाते थे. उन्हें ऐसा लगता था जैसे उन की बेटी लाली वापस घर लौट आई हो, लेकिन पलभर बाद यह भ्रम कांच के समान टूट जाता था. जब वे दरवाजे की ओर सूनी आंखों से देखते थे. हवा के तेज झोकों से दरवाजा खटकता था.

बहरहाल, नंदकिशोर और उन की पत्नी सुशीला पूरी रात बेटी की सलामती के लिए प्रार्थना करते रहे.

अगली सुबह 7 अगस्त होते ही नंदकिशोर गांव के अपने कुछ लोगों को साथ ले कर गांव के बाहर स्थित खलीफा बाबा मंदिर वाले घने और बड़े बगीचे की ओर बेटी की तलाश में निकल पड़े. बेटी की तलाश करते हुए सभी बगीचे में छिटक गए थे और उस की तलाश में जुट गए थे.

बेटी की तलाश करते हुए गांव वाले जैसे ही मंदिर से 20 कदम आगे बढ़े होंगे कि वहां का दिल दहला देने वाला दृश्य देख कर बुरी तरह चौंक गए. सहसा उन्हें अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि जो उन की आंखें देख रही हैं, वह सच भी हो सकता है.

10 गज की दूरी पर लाली की लाश पड़ी थी. नजदीक जा कर देखा तो पता चला कि किसी ने तेज धारदार हथियार से गला रेत कर उस की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी थी. लाश देख कर गांव वालों के मुंह से इतनी दर्दनाक चीख निकली थी कि पूरा बगीचा गूंज गया.

चीख सुन कर नंदकिशोर दौड़ कर जब वहां पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर घबरा गए. आखिरकार वही हुआ, जिस की उन्हें आशंका थी.

बेटी की खून से तरबतर लाश देख कर वह सिर पर हाथ रख कर जमीन पर जा बैठे और रोने लगे. नंदकिशोर को रोता देख गांव वाले भी वहां पहुंच गए.

नेक, हंसमुख और चंचल प्रवृत्ति की लाली थी कि अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से सामने खड़े रोते हुए को भी पलभर में हंसा देती थी और हत्यारों ने ऐसी लड़की की जिंदगी ही छीन ली.

बहरहाल, गांव वाले नंदकिशोर को सहारा देते हुए वहां से घर वापस ले आए. थोड़ी ही देर में लाली की हत्या की खबर समूचे गांव में फैल गई. उस की हत्या की खबर मिलते ही सभी गांव वाले बगीचे में पहुंच गए. घटना की सूचना बखरी थाने को भी मिल चुकी थी.

विधवा का करवाचौथ : अंजलि का नया रूप

वह कोई दैवीय शक्तियों का मालिक नहीं था, लेकिन महज तजुर्बे से औरतों की बौडी लैंग्वेज का विशेषज्ञ बन गया था. वह औरतों के हावभाव देख कर ही ताड़ लेता था कि कहां कामयाबी की गुंजाइश ज्यादा है. जहां भी उसे संभावनाएं दिखतीं, वहां वह तनमनधन से जुट जाता था और जल्द ही अपने मकसद में कामयाब भी हो जाता था.

उस ने कितनी औरतों से उन की सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे, यह बताने को अब रामचरण जिंदा नहीं रहा, लेकिन कटनी के उस के जानने वाले बेहिचक बताते हैं कि ऐसी औरतों की तादाद किसी भी सूरत में दर्जन भर से कम नहीं हो सकती.

कटनी के एक प्राइवेट स्कूल में ड्राइवर की नौकरी कर रहे रंगीनमिजाज रामचरण की एकलौती कमजोरी औरतें थीं. जवानी से ही उसे तरहतरह की औरतों से संबंध बनाने का शौक या रोग कुछ भी कह लें, लग गया था. हालांकि घर में उस की पत्नी थी, जो जीजान से उसे चाहती थी और उस की इस फितरत से वाकिफ भी थी.

लेकिन घरगृहस्थी न उजड़े और बच्चों पर कलह का बुरा असर न पड़े, यह सोच कर उस ने खामोश रहने में ही भलाई समझी.

रामचरण की इन हरकतों का चूंकि घरगृहस्थी की सुखशांति पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, इसलिए गाड़ी ठीकठाक चल रही थी. रामचरण की एक और खूबी यह थी कि वह कभी किसी प्रेमिका से जोरजबरदस्ती नहीं करता था. कम पढ़ेलिखे इस शख्स को यह ज्ञान जाने कहां से मिल गया था कि 2 बालिग अगर सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं तो उन्हें नाजायज करार देने वाले खुद गलत हैं.

मरजी के सौदे में यकीन करने वाले रामचरण को बीते कुछ सालों से लगने लगा था कि उस की जिस्मानी ताकत और यौनोत्तेजना में कमी आ रही है, लिहाजा उस ने कुछ आयुर्वेदिक और मर्दाना ताकत बढ़ाने वाली इश्तहारी दवाओं के बाद स्थाई रूप से वियाग्रा का सेवन शुरू कर दिया था, जो वाकई असरकारक दवा साबित हुई थी.

स्कूल की जिंदगी में रम चुके रामचरण की ड्राइवरी का हर कोई कायल था और वक्त की पाबंदी व ईमानदारी के मामले में भी उस की मिसाल दी जाती थी. इन सब खूबियों और बातों से परे रामचरण की खोजी निगाहें हर वक्त नए शिकार यानी ऐसी औरतों की तलाश करती रहती थीं, जिन्हें शीशे में उतार कर अपनी हवस मिटा सके.

इसी तलाश में एक दिन उस ने स्कूल की नई बाई (चपरासी) अंजलि बर्मन को देखा तो देखता ही रह गया. सांवली रंगत वाली अंजलि की उम्र 29 साल थी और वह खासी खूबसूरत और गठीले बदन की मालकिन थी. अंजलि को देखते ही इस अधेड़ बहेलिए ने जैसे मन ही मन संकल्प कर लिया कि जैसे भी हो, इस चिडि़या का शिकार करना है.

इस बाबत जब उस ने अंजलि को अपने स्तर पर टटोला तो नतीजा उस के हक में आया. लेकिन इस बात का भी अंदाजा हुआ कि स्कूल की यह नईनवेली बाई आसानी से उस के काबू में नहीं आने वाली. इस के लिए उसे थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. इस चुनौती को स्वीकार करते हुए उस ने अपने नए मकसद की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया.

विधवा अंजलि 2 बच्चों की मां थी और कटनी की एक बस्ती में रह रही थी. ये दोनों बातें रामचरण को सुकून देने वाली थीं. अपने स्तर की छानबीन में उसे यह भी पता चला कि विधवा होने के बावजूद अंजलि का कोई प्रेमी या आशिक नहीं है तो उस की बांछें और भी खिल उठीं.

स्कूल में रोज अंजलि से उस का सामना होता था. रामचरण ने जब अपने स्टाइल में उस से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कीं तो अंजलि चौंकी. इस की वजह यह थी कि रामचरण उस से उम्र में लगभग दोगुना था. साथ ही घरगृहस्थी तथा बालबच्चेदार भी. इस के बाद भी वह उस पर डोरे डाल रहा था.

लेकिन जल्दी ही कुछ बातें उसे अपने हक की लगने लगीं. अंजलि को भी सुरक्षित ढंग से मर्द की और जिस्मानी सुख की जरूरत थी, यह बात स्त्री मनोविज्ञान का ज्ञाता हो चुका रामचरण पहली बार में ही ताड़ गया था. इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए वह यही अहसास अंजलि को भी करा रहा था.

जाहिर है, किसी बाहरी नौजवान से अंजलि का नाम जुड़ता तो उस की बदनामी होती और स्कूल वाले उसे नौकरी से बाहर करने में एक मिनट भी न लगाते. एक तरह से रामचरण की बड़ी उम्र और सहकर्मी होना किसी भी तरह का शक पैदा न करने वाली बातें थीं.

तजुर्बा और हालात दोनों काम आए तो जल्द ही रामचरण की रातें अंजलि के घर गुजरने लगीं. वह जानता था कि जितना ज्यादा वह अंजलि को बिस्तर में संतुष्टि देगा, वह उतनी ही उस की दीवानी और मुरीद होती जाएगी. ऐसा करने के लिए उस ने वियाग्रा की खुराक बढ़ा दी थी.

अंजलि की संगत में आ कर खुद को जवान महसूस करने वाले रामचरण के सिलेबस में त्रियाचरित्र का यह पाठ नहीं था कि जवान औरत को बातें भी रोमांटिक और जवानों जैसी चाहिए. मर्द कितनी ही शारीरिक संतुष्टि दे दे, पर उम्र का फर्क कहीं न कहीं झलक ही जाता है. एक वक्त ऐसा भी आता है जब ताकत बढ़ाने वाली दवाइयां भी एक हद के बाद असर दिखाना बंद कर देती हैं.

अंजलि की तरफ से बेफिक्र और अभिसार में डूबे रामचरण को कतई अहसास नहीं था कि उस का अनुभव उसे धोखा दे रहा है और मौत दबेपांव उस की तरफ बढ़ी चली आ रही है. वह 10 अक्तूबर की सुबह थी, जब दमोह जिले के हिंडोरिया थाने के थानाप्रभारी पी.डी. मिंज को खबर मिली कि दमोह कटनी रेलवे लाइन के गेट नंबर 3 पर एक लाश पड़ी है. यह सूचना उन्हें रेलवे गेट के चौकीदार दीपक मंडल ने दी थी.

मामला संगीन था, इसलिए पी.डी. मिंज तुरंत अपनी टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. चलने से पहले उन्होंने वारदात की खबर दमोह के एसपी विवेक अग्रवाल को देने की अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली थी.

लाश देख कर ही उन की समझ में आ गया था कि इस में शक की कोई गुंजाइश नहीं कि मामला बेरहमी से की गई हत्या का है. रेलवे पुलिया के नीचे पड़े मृतक की उम्र 50-55 साल थी. लाश के आसपास जानकारी देने वाला कोई सुराग नहीं मिला था, पर मृतक की तलाशी में उस की जेब से 2 चीजें बरामद हुईं, जिस में एक था मोबाइल फोन और दूसरी चौंका देने वाली चीज थी वियाग्रा का पूरा पत्ता.

इस चौंका देने वाली चीज से एक बात साफ जाहिर हो रही थी कि मामला जायज या फिर नाजायज संबंधों का था. तय था कि इस में कोई औरत भी शामिल थी. लेकिन जो भी था, सच जानना जरूरी था. इस के लिए मृतक की शिनाख्त जरूरी थी.

यह काम बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं था. लाश की जेब से मिले मोबाइल फोन के नंबरों ने मिनटों में साफ कर दिया कि मृतक का नाम रामचरण बर्मन है और वह इंद्रा ज्योतिनगर कटनी का रहने वाला है.

रामचरण के फोन में मिले नंबरों पर बात करने से उस की शिनाख्त तो हो गई, पर यह कोई नहीं बता सका कि वह कटनी से दमोह कैसे पहुंच गया था. उस की पत्नी और घर वाले भी यह बात नहीं बता सके थे.

मामला जल्द सुलझाने की गरज से एसपी विवेक अग्रवाल ने पी.डी. मिंज के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी, जिस में थाना पटेरी के थानाप्रभारी रमा उदेनिया के साथ बांदकपुर चौकी के इंचार्ज पी.डी. दुबे को भी शामिल किया गया.

मामला हाथ में आते ही इस टीम ने सब से पहले रामचरण की काल डिटेल्स खंगाली तो पता चला कि उस की सब से ज्यादा बातें अंजलि बर्मन से हुई थीं. दिलचस्प और मामला लगभग सुलझा देने वाली एक बात यह भी थी कि 9 अक्तूबर को अंजलि के मोबाइल फोन की लोकेशन आनू गांव की मिल रही थी, जो घटनास्थल के नजदीक था.

शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि हत्या की इस वारदात में अंजलि का हाथ न हो या वह इस कत्ल के बारे में न जानती हो. इसलिए जब उस से पूछताछ की गई तो शुरुआती नानुकुर के बाद उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. इस के बाद उस ने जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

अपने और रामचरण के संबंधों की बात तो अंजलि ने नहीं स्वीकारी, लेकिन ईमानदारी से यह जरूर बता दिया कि हत्या में उस का साथ 28 साल के सूरज पटेल के अलावा उस के दोस्तों 24 साल के संतोष पटेल और 26 साल के जगत पटेल ने दिया था.

अंजलि के मुताबिक रामचरण उस पर बुरी नजर रखता था और उस से नाजायज संबंध बनाने के लिए दबाव डाल रहा था. स्कूल में जानपहचान होने के बाद रामचरण ने सीधे शारीरिक संबंध बनाने की मांग कर डाली थी, अंजलि इनकार करने के साथ उस से दूरी बना कर रहने लगी थी.

तजुर्बेकार रामचरण ने आदत के मुताबिक इस इनकार को इकरार समझा और उस के पीछे पड़ गया. अकसर आधी रात को वह फोन कर के उस से सैक्सी बातें करते हुए शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहता.

पिछले कुछ दिनों से अंजलि की दोस्ती सूरज से हो गई थी. जब उस ने अपनी यह परेशानी उसे बताई तो वह रामचरण को रास्ते से हटाने को तैयार हो गया. इस बाबत उस ने अपने दोस्तों संतोष और जगत से बात की तो वे उस का साथ देने को तैयार हो गए.

इस के बाद चारों ने मिल कर रामचरण की हत्या की योजना बनाई और फिर उस पर अमल कर डाला. इन का सोचना यह था कि रामचरण को कटनी से दूर ले जा कर मारा जाए तो लाश की शिनाख्त नहीं हो सकेगी और वे बच जाएंगे.

योजना के मुताबिक, हादसे के कुछ दिन पहले जब रामचरण ने अंजलि से जिस्मानी ताल्लुक बनाने की मांग की तो इस बार उस ने मना करने के बजाय उसे उकसाने वाली यानी सैक्सी बातें कीं. रामचरण को मेहनत रंग लाती दिखी. फोन पर अंजलि ने कहा था कि वाकई उस ने उस जैसा दीवाना नहीं देखा, पर यहां कटनी में ऐसा करने से बदनामी हो सकती है, इसलिए इच्छा पूरी करने के लिए कहीं बाहर चलना पड़ेगा.

रामचरण की हालत तो अंधा क्या चाहे 2 आंखें वाली थी, इसलिए वह अंजलि के कहे अनुसार बांदकपुर चलने को तैयार हो गया. तय हुआ कि सैक्स करने से पहले दोनों बांदकपुर के मंदिर में दर्शन करेंगे.

पहले अंजलि ने उसे करवाचौथ वाले दिन चलने को कहा था, पर औरतों के रसिया रामचरण को अपनी पत्नी की भावनाओं और व्रत का पूरा खयाल था, इसलिए 9 अक्तूबर का दिन तय हुआ. त्रियाचरित्र तो अपना रंग दिखा ही रहा था, पुरुष चरित्र भी उन्नीस नहीं था, जो यह कह रहा था कि करवाचौथ के दिन पत्नी का व्रत खुलवाना है, इसलिए अगले दिन चलेंगे.

9 अक्तूबर को तय वक्त पर रामचरण ने अंजलि को अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाया और बांदकपुर की तरफ चल पड़ा. जाने से पहले उस ने वियाग्रा का पूरा पत्ता खरीद कर जेब में रख लिया था.

बांदकपुर जाने के बाद दोनों अंधेरा होने का इंतजार करने लगे, जिस से संबंध बनाने में सहूलियत हो. अंधेरा होते ही इस इलाके से वाकिफ रामचरण अंजलि को आनू गांव की रेलवे पुलिया के नीचे ले गया, जहां आमतौर पर सुनसान रहता है. इस के पहले उस ने वियाग्रा की दो गोलियां खा ली थीं.

रामचरण को जरा भी अहसास नहीं था कि प्रेयसी भले ही पहलू में है, पर मौत भी उस के पीछे दौड़ रही है. सूरज और उस के दोस्त अंजलि के इशारे पर उन का पीछा कर रहे थे. जैसे ही रामचरण पुलिया के नीचे सहवास के लिए अंजलि के ऊपर झुका, सूरज और उस के दोस्तों ने उसे खींच लिया.

इस के बाद तीनों ने रामचरण के साथ मारपीट कर के उस का गला दबा दिया. फिर उस के सिर पर पत्थर से वार कर के उस की हत्या कर दी.

हत्या कर के चारों कटनी आ गए, पर मोबाइल फोन की लोकेशन ने इन्हें पकड़वा दिया. अंजलि का कहना था कि रामचरण उसे धमकी देता रहता था कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह सूरज और उस के प्रेमप्रसंग को आम कर देगा. अंजलि इस धमकी से डर गई थी, क्योंकि एक विधवा के प्रेमप्रसंग और नाजायज संबंधों से बदनामी होती तो उस की नौकरी जानी तय थी.

कटनी में किसी ने अंजलि के पुलिस को दिए बयान से इत्तफाक नहीं रखा. उलटे यह चर्चा आम रही कि रामचरण से ऊब जाने के बाद उस ने सूरज से पींगे बढ़ानी शुरू कर दी थीं, इस से रामचरण नाराज था. एक दिन रामचरण ने उसे सूरज के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ भी लिया था. इस पर दोनों में खूब झगड़ा भी हुआ था.

सच जो भी हो, पर अब अंजलि अपने आशिक सहित जेल में है, जिस ने हत्या जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देने से पहले अपनी मासूम बच्चियों के भविष्य के बारे में बिलकुल नहीं सोचा, जिन की कोई गलती नहीं थी.