
घटना मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले की है. 17 अप्रैल, 2019 को दिन के यही कोई 3 बजे थे. उसी समय जीवाजीगंज थाना क्षेत्र के पीपलीनाका इलाके की महावीर सोसायटी में स्थित पंडित रमेश व्यास के मकान से गोलियां चलने की आवाज आईं. एक के बाद एक 2 गोलियों की आवाज सुन कर रमेश व्यास की पत्नी गीताबाई डर गई.
उस समय वह अपने 3 मंजिला मकान में भूतल पर थी. गोलियों की आवाज सुन कर गीताबाई भागीभागी ऊपर की मंजिल पर पहुंची, जहां उस का 37 वर्षीय बेटा देवकरण अपनी 27 वर्षीया पत्नी अंतिमा के साथ रहता था.
गीताबाई ने जैसे ही बेटे और बहू को देखा तो उस की चीख निकल गई. क्योंकि बहूबेटा दोनों खून से लथपथ पड़े थे. गीताबाई के चीखने और रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी आ गए. उन्होंने जब देवकरण और उस की पत्नी को देखा तो वे भी हैरान रह गए कि ऐसा कैसे हो गया.
उन दोनों की मौत हो चुकी थी. थोड़ी देर में मोहल्ले के तमाम लोग इकट्ठे हो गए. उसी दौरान किसी ने थाना जीवाजीगंज में फोन कर के सूचना दे दी.
घटना की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी शांतिलाल मीणा एसआई कैलाश भारती आदि के साथ मौके पर पहुंच गए. मकान की ऊपर वाली मंजिल के एक कमरे में उन्होंने पलंग पर देवकरण व उस की पत्नी अंतिमा के शव देखे. दोनों ही शव खून से लथपथ थे. पास ही एक पिस्टल पड़ी थी.
निरीक्षण में पता चला कि अंतिमा के सिर में गोली काफी नजदीक से मारी गई थी. लग रहा था कि देवकरण ने पहले अंतिमा की हत्या की फिर खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली. थानाप्रभारी को लगा कि शायद पतिपत्नी के बीच किसी विवाद के कारण यह घटना हुई है पर पुलिस जांच के दौरान अलमारी से जो सुसाइड नोट मिला, उस से पूरी कहानी ही बदल गई.
सुसाइड नोट में देवकरण ने रेखा और सुमन नाम की 2 युवतियों का उल्लेख करते हुए लिखा था कि वह उन्हें ब्लैकमेल कर रही थीं. उन की ब्लैकमेलिंग से परेशान हो कर वह आत्महत्या कर रहे हैं.
घटना की जानकारी मिलने पर आईजी राकेश गुप्ता व एसपी (उज्जैन) सचिन अतुलका और एडीशनल एसपी नीरज भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.
पुलिस ने देवकरण के मातापिता से इस बारे में पूछताछ की तो वे भी उन दोनों के बारे में ऐसी कोई जानकारी नहीं दे सके, जिन का जिक्र सुसाइड नोट में था. इस के बाद थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. फिर केस दर्ज कर के एसपी के निर्देश पर थानाप्रभारी शांतिलाल मीणा ने जांच शुरू कर दी.
थानाप्रभारी ने सब से पहले मृतक देवकरण के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से यह बात सामने आई कि देवकरण की अकसर एकमपुरा सोसायटी में रहने वाली रेखा, इंदौर के पलासिया में रहने वाली उस की छोटी बहन सुमन और एक युवक लाखन से बात होती थी. इस में खास बात यह थी कि देवकरण को इन तीनों की तरफ से ही काल की जाती थी.
देवकरण अपनी तरफ से उन्हें कोई फोन नहीं करता था. देवकरण ने अपने सुसाइड नोट में 2 युवतियों द्वारा ब्लैकमेलिंग की बात भी लिखी थी, इसलिए थानाप्रभारी ने शक के आधार पर रेखा व सुमन को हिरासत में लेकर उन से पूछताछ की. लेकिन दोनों युवतियों ने देवकरण को पहचानने से इनकार कर दिया.
बाद में रेखा ने चौंकाने वाली बात यह बताई कि लगभग ढाई साल पहले देवकरण ने उस से गंधर्व विवाह किया था. इसलिए पत्नी होने के नाते वह देवकरण से खर्च के लिए पैसा मांगती थी. लेकिन ब्लैकमेल करने की बात से उस ने इनकार कर दिया. अब तक पुलिस लाखन को भी हिरासत में ले कर थाने लौट आई थी.
थानाप्रभारी मीणा को युवतियों की बात झूठी लगी. लिहाजा उन्होंने रेखा, सुमन व लाखन को अलगअलग रूम में बैठा कर पूछताछ की. उन के द्वारा विरोधाभासी बयान देने पर पता चल गया कि वे तीनों झूठ बोल रहे हैं.
अंतत: उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वे देवकरण को काफी दिनों से ब्लैकमेल करते आ रहे थे. थानाप्रभारी की पूछताछ में देवकरण को ब्लैकमेल करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—
उज्जैन के पीपलीनाका क्षेत्र की महावीर सोसायटी में रहने वाले पंडित रमेश शंकर व्यास छोटा सर्राफा स्थित नरसिंह मंदिर के पुजारी थे. उन्होंने अपने बेटे देवकरण को भी पूजापाठ, ज्योतिष की शिक्षा दी थी. इस के बाद देवकरण भी पिता के साथ मंदिर में रह कर पूजापाठ के काम में उन की मदद करने लगा था..
रेखा सिकरवार से देवकरण की मुलाकात सन 2016 में हुई थी. हुआ यह कि रेखा को उस के पति ने छोड़ दिया था. इस के लिए रेखा अपने ग्रह नक्षत्र दिखाने के लिए पंडित रमेशचंद्र व्यास के पास आई थी. रमेशचंद्र व्यास ने रेखा को अपनी कुंडली के बारे में देवकरण से सलाह लेने को कहा. देवकरण ने कुंडली देख कर उस की परेशानियां तो बता दीं, लेकिन खुद परेशानी में फंस गया.
हुआ यह कि सलाह के सिलसिले में रेखा ने देवकरण से उस का मोबाइल नंबर ले लिया और फिर अकसर उस से फोन पर अपनी समस्याओं के बारे में बातचीत करने लगी.
मंदिरों में पूजापाठ का काम सुबह काफी जल्द शुरू हो कर देर रात तक चलता था. मंदिर में पूजा के अलावा देवकरण कई यजमानों के घर विभिन्न तरह के अनुष्ठान करवाने के लिए जाता था, इसलिए रेखा से उस की बात अकसर रात में ही हो पाती थी.
इसी बातचीत के दौरान रेखा का देवकरण की तरफ झुकाव हो गया. रेखा काफी शातिर थी. वह जानती थी कि देवकरण के पास काफी पैसा है, इसलिए उस ने उसे शीशे में उतारने की योजना बनाई. उस ने एक रोज पूजापाठ के बहाने देवकरण को अपने घर बुलाया.
देवकरण जब वहां पहुंचा तो उस के घर पूजापाठ की कोई तैयारी नहीं थी. यह देख वह कुछ देर रुक कर वापस लौटने लगा तो रेखा ने उसे रोक कर कहा, ‘‘क्या सिर्फ पूजा करना ही अनुष्ठान है? स्त्रीपुरुष का प्यार भी तो अनुष्ठान ही होता है.’’
देवकरण कोई बच्चा नहीं था जो रेखा के कहने का मतलब न समझता. रेखा के प्रति उस के मन में भी आकर्षण था, लेकिन अपने परिवार की इज्जत एवं पेशे की पवित्रता को ध्यान में रख कर वह खुद आगे नहीं बढ़ा था. लेकिन जब रेखा ने खुला प्रेम प्रस्ताव दिया तो वह खुद को रोक नहीं सका, अंतत: दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. इस के बाद आए दिन दोनों की एकांत में मुलाकातें होने लगीं. रेखा के पास रोजीरोटी का कोई सहारा नहीं था, सो देवकरण से वह देहसुख के बदले पैसे वसूलने लगी.
इसी दौरान रेखा की छोटी बहन सुमन सिकरवार को भी उस के पति ने छोड़ दिया, जिस से वह भी मायके आ कर रहने लगी थी. खर्च बढ़ा तो रेखा की देवकरण से मांग भी बढ़ने लगी. लेकिन देवकरण ने इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया. इसी बीच पिता रमेशचंद्र व्यास ने देवकरण का रिश्ता उज्जैन में ही फ्रीगंज निवासी अंतिमा के साथ तय कर दिया.
यह बात रेखा को पता चली तो वह समझ गई कि पत्नी के आने के बाद देवकरण उस के कब्जे में ज्यादा दिन नहीं रहेगा. इसलिए देवकरण जब उसे अपनी शादी का निमंत्रण पत्र देने गया तो रेखा ने उसे खूब लताड़ा. रेखा ने कहा कि उस ने वादा किया था कि वह शादी के बाद भी उस का खर्च उठाता रहेगा.
अप्रैल, 2017 में अंतिमा से देवकरण का विवाह हो गया. वह बहुत सुंदर थी. अंतिमा के मधुर व्यवहार से ससुराल में सब खुश थे. पत्नी के प्यार ने देवकरण को रेखा से दूर कर दिया. लेकिन रेखा, उस की मां और बहन सुमन को यह मंजूर नहीं था. देवकरण उन के लिए वह खजाना था, जिस में हाथ डाल कर वे जब चाहे पैसा निकाल सकती थीं.
इसलिए रेखा, उस की बहन सुमन और मां भागवंती देवकरण को धमकाने लगीं. उन्होंने धमकी दी कि अगर उस ने पैसा नहीं दिया तो वे उसे बलात्कार के आरोप में जेल पहुंचा देंगी.
इसी दौरान रेखा की छोटी बहन सुमन एक साड़ी शोरूम में नौकरी करने लगी थी, जहां पहले से वहां काम कर रहे लाखन के साथ उस के अवैध संबंध बन गए. लाखन भी शातिर था, इसलिए कुछ ही दिन में उस ने सुमन की बहन रेखा को अपने प्रेमजाल में फांस लिया.
कुछ दिनों में यह जानकारी सुमन को भी मिल गई. लाखन और रेखा के संबंधों पर सुमन ने भी कोई ऐतराज नहीं जताया. इस बीच जब रेखा और देवकरण का मामला लाखन की जानकारी में आया तो मां और दोनों बेटियों के साथ वह भी देवकरण को पैसों के लिए धमकाने लगा.
देवकरण के पिता रमेशचंद्र की समाज में काफी इज्जत थी. लोग उन का बहुत सम्मान करते थे, इसलिए देवकरण परेशान रहने लगा. साथ ही उसे पत्नी अंतिमा की भी चिंता थी. उसे लगता था कि यदि अंतिमा को रेखा के बारे में पता चलेगा तो वह उस के बारे में क्या सोचेगी.
दूसरी तरफ 2 सालों में 5 लाख से भी ज्यादा रुपए और ज्वैलरी हड़पने के बाद भी रेखा, सुमन, दोनों बहनों के प्रेमी लाखन और मां भागवंती की मांग लगातार बढ़ती जा रही थी.
घटना के एक दिन पहले देवकरण उदयपुर में एक यजमान के घर बड़ा अनुष्ठान करवाने गया हुआ था. यह बात रेखा को पता चली तो वह उस पर दबाव बनाने लगी कि अनुष्ठान की दक्षिणा में मिली धनराशि वह सीधे ला कर उसे सौंप दे.
देवकरण ऐसा करता तो घर पर पिता को क्या जवाब देता, इसलिए उस ने रेखा की बात नहीं मानी, जिस से रेखा की मां भागवंती ने उसे फोन पर धमकी दी कि वह उस के हाथपैर तुड़वा देगी.
लाखन ने भी देवकरण को धमकाया कि यदि उस ने पैसे नहीं दिए तो अंजाम भुगतने को तैयार रहे. इस से देवकरण को लगने लगा कि अब उस की इज्जत को कोई नहीं बचा सकता.
इस से उस ने परिवार की इज्जत बचाने के लिए खुद की जान देने का निर्णय कर लिया. लेकिन खुद की जान देने से पहले उस ने अपनी गलती के लिए पत्नी अंतिमा से क्षमा मांगने की सोच कर अपनी परेशानी बता दी.
इस पर अंतिमा ने कहा कि जब वह नहीं रहेगा तो वह अकेली जीवित रह कर क्या करेगी.
इसलिए उस ने भी साथ मरने का फैसला कर लिया. जिस के बाद 17 अप्रैल को मंदिर से घर वापस आ कर देवकरण ने अपने कमरे में अपनी लाइसेंसी पिस्टल से पहले अंतिमा के सिर में गोली मारी, फिर खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली.
पूछताछ करने के बाद देवकरण को ब्लैकमेल करने वाली दोनों बहनों रेखा, सुमन उन की मां भागवंती और प्रेमी लाखन को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.
मानने वाले प्रेमीप्रेमिका और पतिपत्नी का रिश्ता सब से अजीम मानते हैं. लेकिन जबजब ये रिश्ते आंतरिक संबंधों की महीन रेखा को पार करते हैं, तबतब कोई न कोई संगीन जुर्म सामने आता है.
हरिओम तोमर मेहनतकश इंसान था. उस की शादी थाना सैंया के शाहपुरा निवासी निहाल सिंह की बेटी बबली से हुई थी. हरिओम के परिवार में उस की पत्नी बबली के अलावा 4 बच्चे थे. हरिओम अपनी पत्नी बबली और बच्चों से बेपनाह मोहब्बत करता था.
बेटी ज्योति और बेटा नमन बाबा राजवीर के पास एत्मादपुर थानांतर्गत गांव अगवार में रहते थे, जबकि 2 बेटियां राशि और गुड्डो हरिओम के पास थीं. राजवीर के 2 बेटों में बड़ा बेटा राजू बीमारी की वजह से काम नहीं कर पाता था. बस हरिओम ही घर का सहारा था, वह चांदी का कारीगर था.
हरिओम और बबली की शादी को 15 साल हो चुके थे. हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी, जिस से पूरे परिवार में मातम छा गया.
3 नवंबर, 2019 की रात में हरिओम अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ घर से लापता हो गया. पिछले 12 साल से वह आगरा में रह रहा था. 36 वर्षीय हरिओम आगरा स्थित चांदी के एक कारखाने में चेन का कारीगर था.
पहले वह बोदला में किराए पर रहता था. लापता होने से 20 दिन पहले ही वह पत्नी बबली व दोनों बच्चियों राशि व गुड्डो के साथ आगरा के थानांतर्गत सिकंदरा के राधानगर इलाके में किराए के मकान में रहने लगा था.
आगरा में ही रहने वाली हरिओम की साली चित्रा सिंह 5 नवंबर को अपनी बहन बबली से मिलने उस के घर गई. वहां ताला लगा देख उस ने फोन से संपर्क किया, लेकिन दोनों के फोन स्विच्ड औफ थे.
चित्रा ने पता करने के लिए जीजा हरिओम के पिता राजबीर को फोन कर पूछा, ‘‘दीदी और जीजाजी गांव में हैं क्या?’’
इस पर हरिओम के पिता ने कहा कि कई दिन से हरिओम का फोन नहीं मिल रहा है. उस की कोई खबर भी नहीं मिल पा रही. चित्रा ने बताया कि मकान पर ताला लगा है. आसपास के लोगों को भी नहीं पता कि वे लोग कहां गए हैं.
किसी अनहोनी की आशंका की सोच कर राजबीर गांव से राधानगर आ गए. उन्होंने बेटे और बहू की तलाश की, लेकिन उन की कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर पिता राजबीर ने 6 नवंबर, 2019 को थाना सिकंदरा में हरिओम, उस की पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी.
जांच के दौरान हरिओम के पिता राजबीर ने थाना सिकंदरा के इंसपेक्टर अरविंद कुमार को बताया कि उस की बहू बबली का चालचलन ठीक नहीं था. उस के संबंध कमल नाम के एक व्यक्ति के साथ थे, जिस के चलते हरिओम और बबली के बीच आए दिन विवाद होता था. पुलिस ने कमल की तलाश की तो पता चला कि वह भी उसी दिन से लापता है, जब से हरिओम का परिवार लापता है.
पुलिस सरगरमी से तीनों की तलाश में लग गई. इस कवायद में पुलिस को पता चला कि बबली सिकंदरा थानांतर्गत दहतोरा निवासी कमल के साथ दिल्ली गई है. उन्हें ढूंढने के लिए पुलिस की एक टीम दिल्ली के लिए रवाना हो गई.
शनिवार 16 नवंबर, 2019 को बबली और उस के प्रेमी कमल को पुलिस ने दिल्ली में पकड़ लिया. दोनों बच्चियां भी उन के साथ थीं, पुलिस सब को ले कर आगरा आ गई. आगरा ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो मामला खुलता चला गया.
पता चला कि 3 नवंबर की रात हरिओम रहस्यमय ढंग से लापता हो गया था. पत्नी और दोनों बच्चे भी गायब थे. कमल उर्फ करन के साथ बबली के अवैध संबंध थे. वह प्रेमी कमल के साथ रहना चाहती थी. इस की जानकारी हरिओम को भी थी. वह उन दोनों के प्रेम संबंधों का विरोध करता था. इसी के चलते दोनों ने हरिओम का गला दबा कर हत्या कर दी थी.
बबली की बेहयाई यहीं खत्म नहीं हुई. उस ने कमल के साथ मिल कर पति की गला दबा कर हत्या दी थी. बाद में दोनों ने शव एक संदूक में बंद कर यमुना नदी में फेंक दिया था.
पूछताछ और जांच के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—
फरवरी, 2019 में बबली के संबंध दहतोरा निवासी कमल उर्फ करन से हो गए थे. कमल बोदला के एक साड़ी शोरूम में सेल्समैन का काम करता था. बबली वहां साड़ी खरीदने जाया करती थी. सेल्समैन कमल बबली को बड़े प्यार से तरहतरह के डिजाइन और रंगों की साडि़यां दिखाता था. वह उस की सुंदरता की तारीफ किया करता था.
उसे बताता था कि उस पर कौन सा रंग अच्छा लगेगा. कमल बबली की चंचलता पर रीझ गया. बबली भी उस से इतनी प्रभावित हुई कि उस की कोई बात नहीं टालती थी. इसी के चलते दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे.
अब जब भी बबली उस दुकान पर जाती, तो कमल अन्य ग्राहकों को छोड़ कर बबली के पास आ जाता. वह मुसकराते हुए उस का स्वागत करता फिर इधरउधर की बातें करते हुए उसे साड़ी दिखाता. कमल आशिकमिजाज था, उस ने पहली मुलाकात में ही बबली को अपने दिल में बसा लिया था. नजदीकियां बढ़ाने के लिए उस ने बबली से फोन पर बात करनी शुरू कर दी.
जब दोनों तरफ से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां बढ़ती गईं. फोन पर दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. फिर उन की चाहत एकदूसरे से गले मिलने लगी. बातोंबातों में बबली ने कमल को बताया कि वह बोदला में ही रहती है.
इस के बाद कमल बबली के घर आनेजाने लगा. जब एक बार दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूटी तो फिर यह सिलसिला सा बन गया. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते थे.
हरिओम की अनुपस्थिति में बबली और कमल के बीच यह खेल काफी दिनों तक चलता रहा. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं, एक दिन हरिओम को भी भनक लग गई. उस ने बबली को कमल से दूर रहने और फोन पर बात न करने की चेतावनी दे दी.
दूसरी ओर बबली कमल के साथ रहना चाहती थी. उस के न मानने पर वह घटना से 20 दिन पहले बोदला वाला घर छोड़ कर सपरिवार सिकंदरा के राधानगर में रहने लगा. 3 नवंबर, 2019 को हरिओम शराब पी कर घर आया. उस समय बबली मोबाइल पर कमल से बातें कर रही थी. यह देख कर हरिओम के तनबदन में आग लग गई. इसी को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ तो हरिओम ने बबली की पिटाई कर दी.
बबली ने इस की जानकारी कमल को दे दी. कमल ने यह बात 100 नंबर पर पुलिस को बता दी. पुलिस आई और रात में ही पतिपत्नी को समझाबुझा कर चली गई. पुलिस के जाने के बाद भी दोनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ, दोनों झगड़ा करते रहे.
रात साढे़ 11 बजे बबली ने कमल को दोबारा फोन कर के घर आने को कहा. जब वह उस के घर पहुंचा तो हरिओम उस से भिड़ गया. इसी दौरान कमल ने गुस्से में हरिओम का सिर दीवार पर दे मारा. नशे के चलते वह कमल का विरोध नहीं कर सका.
उस के गिरते ही बबली उस के पैरों पर बैठ गई और कमल ने उस का गला दबा दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद हरिओम की मौत हो गई. उस समय दोनों बच्चियां सो रही थीं. कमल और बबली ने शव को ठिकाने लगाने के लिए योजना तैयार कर ली. दोनों ने शव को एक संदूक में बंद कर उसे फेंकने का फैसला कर लिया, ताकि हत्या के सारे सबूत नष्ट हो जाएं.
योजना के तहत दोनों ने हरिओम की लाश एक संदूक में बंद कर दी. रात ढाई बजे कमल टूंडला स्टेशन जाने की बात कह कर आटो ले आया.
आटो से दोनों यमुना के जवाहर पुल पर पहुंचे. लाश वाला संदूक उन के साथ था. इन लोगों ने आटो को वहीं छोड़ दिया. सड़क पर सन्नाटा था, कमल और बबली यू टर्न ले कर कानपुर से आगरा की तरफ आने वाले पुल पर पहुंचे और संदूक उठा कर यमुना में फेंक दिया. इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. दूसरे दिन 4 नवंबर को सुबह कमल बबली और उस की दोनों बच्चियों को साथ ले कर दिल्ली भाग गया.
बबली की बेवफाई ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया था. उस ने पति के रहते गैरमर्द के साथ रिश्ते बनाए. यह नाजायज रिश्ता उस के लिए इतना अजीज हो गया कि उस ने अपने पति की मौत की साजिश रच डाली.
पुलिस 16 नवंबर को ही कमल व बबली को ले कर यमुना किनारे पहुंची. उन की निशानदेही पर पीएसी के गोताखोरों को बुला कर कई घंटे तक यमुना में लाश की तलाश कराई गई, लेकिन लाश नहीं मिली. अंधेरा होने के कारण लाश ढूंढने का कार्य रोकना पड़ा.
रविवार की सुबह पुलिस ने गोताखोरों और स्टीमर की मदद से लाश को तलाशने की कोशिश की. लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.
बहरहाल, पुलिस हरिओम का शव बरामद नहीं कर सकी. शायद बह कर आगे निकल गया होगा. पुलिस ने बबली और उस के प्रेमी कमल को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.
उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना सिरसागंज का एक गांव है नगला नाथू. 23 अप्रैल, 2018 की रात 11 बजे गांव का ही एक आदमी गांव में आयोजित एक कार्यक्रम से दावत खा कर अपने घर जा रहा था.
जब वह मुन्नीलाल झा के घर के पास से गुजर रहा था तो उसे झाडि़यों में किसी लड़की के कराहने की आवाज सुनाई दी. उस ने पास जा कर देखा तो खून से लथपथ एक युवती कराह रही थी. उस व्यक्ति ने पूछा कौन है, लेकिन युवती की ओर से कोई जवाब नहीं आया.
उस व्यक्ति ने आसपास के लोगों को जानकारी दी, तो लोग अपनेअपने घरों से निकल आए. उन्होंने जब झाडि़यों में देखा तो वे उस लड़की को पहचान गए. वह मुन्नीलाल की 19 वर्षीय बेटी किरन थी.
जब लोगों ने मुन्नीलाल को यह सूचना देनी चाही तो देखा मुन्नीलाल के दरवाजे पर ताला लगा था. सभी परेशान थे कि किरन की यह हालत किस ने की है? उसी दौरान किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी सिरसागंज रविंद्र कुमार दुबे पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.
पुलिस को किरन अपने घर के बाहर चबूतरे के कोने पर झाडि़यों में लहूलुहान अवस्था में तड़पती मिली. पुलिस किरन को उपचार के लिए सरकारी ट्रामा सेंटर फिरोजाबाद ले गई.
उस समय उस के परिवार का कोई भी व्यक्ति साथ नहीं था. केवल पड़ोस की एक महिला साथ थी. उस की हालत गंभीर थी, इसलिए डाक्टरों ने उसे आगरा के लिए रेफर कर दिया. लेकिन आगरा ले जाते समय रास्ते में ही किरन ने दम तोड़ दिया.
पुलिस ने चौकीदार राजकुमार की तरफ से भादंवि की धारा 302, 120बी के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी. पुलिस को यह मामला औनर किलिंग का लग रहा था. थानाप्रभारी ने मामले की जानकारी एसएसपी डा. मनोज कुमार को दी तो वह भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी को मृतका के घर वालों का पता लगाने के निर्देश दिए.
पुलिस ने किरन की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. उस समय रिश्तेदारों की बात तो छोडि़ए, मोहल्ले का कोई भी व्यक्ति शव के पास नहीं था. लावारिस हालत में शव ऐसे ही पड़ा था.
काफी समय बाद मृतका की बड़ी बहन सीमा, जोकि विधवा है, के ससुराल वाले वहां आ गए. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव उन के हवाले कर दिया. उन्होंने अपने गांव वरनाहल ले जा कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया.
मुन्नीलाल और परिवार वालों को तलाशने के लिए एसएसपी मनोज कुमार ने पुलिस की 3 टीमों का गठन किया. एसपी (देहात) महेंद्र सिंह के नेतृत्व में पुलिस टीमों ने संभावित स्थानों पर दबिश दी लेकिन उन का पता नहीं चला.
घटना के तीसरे दिन पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर मुन्नीलाल को करहल रोड पर स्थित दिहुली चौराहे के निकट से सीओ अजय चौहान और थानाप्रभारी रविंद्र कुमार दुबे ने हिरासत में ले लिया. वह फरार होने के लिए वहां किसी वाहन का इंतजार कर रहा था.
थाने ला कर जब उस से उस की बेटी किरन की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने कहा कि बेटी ने उस का जीना हराम कर दिया था. ऐसे हालात में उस के सामने यह कदम उठाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. अपनी बेटी की हत्या करने की उस ने जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली.
गांव नगला नाथ निवासी मुन्नीलाल अहमदाबाद में प्राइवेट नौकरी करता था. उस की पत्नी की कई साल पहले मौत हो चुकी थी. मुन्नीलाल के 2 बेटियां सीमा व किरन और 3 बेटे गौरव, आकाश व राज थे. बड़े बेटे गौरव की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी.
उस की विधवा पत्नी भी गांव में ही परिवार के साथ रहती है. बड़ी बेटी सीमा की शादी जिला मैनपुरी के गांव बरनाहल में हो गई थी. जब उस के बेटे बड़े हुए तो वह भी मजदूरी करने लगे. बेटों के काम करने पर घर का खर्चा आसानी से चलने लगा.
किरन जब जवान हुई तो उस के घर से कुछ दूर रहने वाले अवनीश से उसे प्यार हो गया. दोनों जब तक एकदूसरे को देख नहीं लेते, उन्हें चैन नहीं मिलता था. धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा.
वे चोरीछिपे मुलाकात भी करने लगे. हालांकि दोनों की जाति अलगअलग थी. इस के बावजूद उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया था. एक बार किरन ने उस से पूछा भी लिया, ‘‘अवनीश, वैसे मैं जातपांत में विश्वास नहीं करती, पर समाज से डर कर तुम मुझे कहीं भूल तो नहीं जाओगे?’’
इस पर अवनीश ने उस के होंठों पर हाथ रख कर उसे चुप कराते हुए कहा, ‘‘किरन, दो सच्चे प्रेमियों को मिलने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. हमारे प्यार के बीच चाहे कितने भी व्यवधान आएं, मैं वादा करता हूं कि तुम्हारा हर तरह से साथ दूंगा. मैं जिंदगी भर तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूंगा.’’
किरन और अवनीश अपने भावी जीवन के सपने देखते. जमाने से बेखबर वे अपने प्यार में मस्त रहते थे. पर गांवदेहात में प्यारमोहब्बत की बातें ज्यादा दिनों तक नहीं छिप पातीं. यदि किसी एक व्यक्ति को भी इस की भनक लग जाती है तो कानाफूसी से बात पूरे मोहल्ले में ही नहीं बल्कि गांव भर में फैल जाती है.
किसी तरह किरन के घर वालों को भी पता चल गया कि उस का अवनीश के साथ चक्कर चल रहा है. लिहाजा उस के पिता ने उसे समझाया कि वह उस लड़के से मिलनाजुलना बंद कर दे. पर उस के सिर पर तो प्यार का भूत सवार था. ऐसे में पिता के समझाने का उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
उधर अवनीश के घर वालों ने भी उसे समझाया पर उस पर भी कोई असर नहीं हुआ. यानी दोनों की मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा. वह पहले से अब ज्यादा सतर्क जरूर हो गए थे. मुन्नीलाल तो अहमदाबाद में काम करता था. वह कभीकभार घर आता था. किरन अपनी विधवा भाभी, भाई आकाश व राज के साथ रहती थी.
घर वालों की बंदिशें लगाने के बाद भी प्रेमी युगल छिपछिप कर मिलते रहे. उन के मिलने का यह सिलसिला निरंतर चलता रहा. इस के चलते दोनों परिवारों में तल्खी बढ़ती गई. 22 मार्च, 2018 को मुन्नीलाल गांव आया हुआ था. उस ने जब अवनीश को अपने घर के पास चक्कर काटते देखा तो उस का खून खौल उठा.
वह अवनीश को सबक सिखाना चाहता था, इसलिए उस ने किरन पर दबाव डाल कर थाना सिरसागंज में अवनीश, उस के 2 भाइयों चिंटू व धर्मवीर, जगदीश और मनीष के खिलाफ किरन के साथ छेड़छाड़ की रिपोर्ट दर्ज करा दी. घर वालों के दबाव में किरन ने रिपोर्ट तो लिखा दी, लेकिन उस ने आरोपियों के खिलाफ बयान नहीं दिया.
गांव वालों ने दोनों पक्षों में समझौता कराने का भरसक प्रयास किया, लेकिन मुन्नीलाल ने समझौता करने से साफ मना कर दिया. एक दिन किरन ने अवनीश से मुलाकात कर बता दिया कि उस के पिता ने रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए उसे मजबूर कर दिया था, पर वह अभी भी उस से प्यार करती है और करती रहेगी. यानी किरन का अपने प्रेमी से मिलना बंद नहीं हुआ.
किरन अवनीश से मिलती तो उस पर जल्दी शादी करने के लिए दबाव डालती. अवनीश ने कहा कि वह उस से शादी को तैयार है लेकिन जो मुकदमा लिखा दिया है, उसे वापस ले लो. इस के बाद किरन ने अपने घर वालों पर अवनीश के साथ शादी कराने का दबाव बनाना शुरू कर दिया.
चूंकि अवनीश दूसरी बिरादरी का था, इसलिए किरन के घर वालों ने साफ कह दिया कि उस के साथ शादी नहीं हो सकती. पर किरन अपनी जिद पर अड़ी रही. उस ने साफ कह दिया कि वह छेड़खानी के मुकदमे में अवनीश और उस के भाइयों के खिलाफ गवाही नहीं देगी और अगर अवनीश के साथ उस की शादी नहीं की तो वह अपनी जान दे देगी.
इस बात ने आग में घी का काम किया. मुन्नीलाल समझ गया कि किरन की जिद से मोहल्ले में उन की बदनामी हो रही है. तब उस ने अपने बेटे आकाश के साथ योजना बना कर एक खौफनाक निर्णय ले लिया. इसी बात को ले कर किरन का घटना की रात को पिता व भाई आकाश से काफी झगड़ा हुआ.
उस झगड़े में इश्क का जुनून किरन के सिर चढ़ कर बोलने लगा. उस ने इस बात की भी चिंता नहीं की कि उस का अंजाम क्या होगा. किरन के तेवर देख कर बापबेटे गुस्से में भर गए लेकिन उन्होंने उस समय उस से कुछ नहीं कहा.
रात को किरन जब चारपाई पर गहरी नींद में सो गई तो मुन्नीलाल ने उस पर कुल्हाड़ी से प्रहार किया. वह चीखी तो आकाश ने उसे ईंट से मारना शुरू किया.
कुल्हाड़ी और ईंट के वार से वह बेहोश हो गई. वह उसे चारपाई पर ही जलाना चाहते थे पर वह फिर से चीख पड़ी. कहीं पड़ोसी न आ जाएं, इसलिए उन्होंने उसे उठा कर बाहर चबूतरे के पास झाडि़यों में फेंक दिया और घर के सभी लोग ताला लगा कर फरार हो गए.
रात में गांव वालों ने किरन की चीखपुकार की आवाज सुनी तो उन्होंने सोचा कि मुन्नीलाल शायद किरन को पीट रहा है. क्योंकि किरन के किस्से की पूरे मोहल्ले को जानकारी थी. इस के कुछ देर बाद आवाज आनी बंद हो गई तो लगा कि उन का झगड़ा अब बंद हो गया है.
पुलिस ने मुन्नीलाल से पूछताछ के बाद उस के घर से खून सनी चारपाई व ईंट भी कब्जे में ले ली. बाद में मुन्नीलाल की निशानदेही पर कुल्हाड़ी भी बरामद हो गई. हत्या में शामिल उस के बेटे आकाश के बारे में जानकारी नहीं मिल सकी. पुलिस ने मुन्नीलाल से विस्तार से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.
अवनीश की भाभी कविता ने बताया कि किरन शादी करने के लिए अवनीश पर दबाव डाल रही थी. उस से कहा गया कि हम शादी के लिए तैयार हैं, लेकिन पहले मामले में राजीनामा कर ले. लेकिन किरन का पिता राजीनामा नहीं होने दे रहा था. घटना वाले दिन अवनीश के घर वाले राजीनामे के लिए जब किरन को थाने ले जाने लगे तो मुन्नीलाल व उस का बेटा आकाश तैयार नहीं हुए.
कविता ने बताया कि घटना वाले दिन मुन्नीलाल दोपहर को यही कोई बारहएक बजे पटिया पर कुल्हाड़ी पैनी कर रहा था. इसे गांव के कई लोगों ने देखा था. लोग समझे कि लकड़ी काटने के लिए धार लगा रहा है. लेकिन क्या पता था कि वह अपनी बेटी को मारने के लिए धार लगा रहा था.
बहरहाल, झूठी शान दिखाने के चक्कर में मुन्नीलाल बेटी के कत्ल के आरोप में जेल चला गया और एक प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत हो गया. कथा लिखे जाने तक आकाश को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी थी.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
फोरैंसिक लैब की जांच में पता चला कि बाथरूम में मिले 3 मोबाइलों में एक वाटरप्रूफ था, लेकिन उस पर पैटर्न लौक था, जिस से वह खुल नहीं सका. पुलिस को दूसरे दिन डा. प्रकाश के घर से 2 मोबाइल और मिले. ये मोबाइल भी बंद थे. इन को भी साइबर एक्सपर्ट के पास भेजा गया. उन के फ्लैट से मिले लैपटौप और आईपैड को जांच के लिए सीआईडी की साइबर लैब भेजा गया.
पुलिस ने अदिति के दोस्तों से भी अलगअलग पूछताछ की. उन्होंने बताया कि अदिति ने उन से नौकरी छूटने की वजह से पापा के तनाव में होने की चर्चा की थी. अदिति के दोस्तों से पुलिस को ऐसी कोई ठोस वजह पता नहीं चली जिस से इस मामले की गुत्थी सुलझने में मदद मिलती.
सन फार्मा कंपनी में पूछताछ में पता चला कि डा. प्रकाश ने स्वेच्छा से नौकरी छोड़ी थी. कंपनी में उन का पद और सैलरी पैकेज काफी अच्छा था. कंपनी में किसी से उन का कोई विवाद भी सामने नहीं आया.
डा. सोनू सिंह के बारे में पुलिस को पता चला कि उन का बौद्ध धर्म से जुड़ाव था. उन्होंने अपनी सोसायटी में बौद्ध धर्म के अनुयाइयों की कम्युनिटी भी बनाई हुई थी. इस कम्युनिटी की वह ग्रुप लीडर थीं. सोसायटी में सोनू सिंह को बोल्ड महिला माना जाता था जबकि प्रकाश सिंह सौम्य स्वभाव के थे.
तीसरे दिन भी काफी माथापच्ची और जांचपड़ताल के बावजूद पुलिस को इस मामले में कोई तथ्य हाथ नहीं लगा. यह जरूर पता चला कि सोनू सिंह, अदिति और आदित्य की हत्या में जिस चाकू का उपयोग किया गया था, वह करीब एक साल पहले डा. प्रकाश सिंह द्वारा ही खरीदा गया था.
अदिति ने उस समय सोप डायनामिक्स स्टार्टअप शुरू किया था. वह घर में कौस्मेटिक व कुछ विशेष साबुन बनाती थी. अदिति ने साबुन व अन्य सामान के टुकड़े करने के लिए यह चाकू पिता से मंगवाया था.
डा. प्रकाश के घर मिले 4 कुत्तों को ले कर भी विवाद हो गया. ये कुत्ते अदिति का दोस्त उस की याद के रूप में सहेज कर अपने पास रखना चाहता था जबकि दूसरी तरफ अदिति की मौसी सीमा अरोड़ा इन कुत्तों को अपने साथ ले जाना चाहती थीं.
विवाद बढ़ने पर यह मामला पीपुल फौर एनिमल संस्था के जरिए सांसद मेनका गांधी तक पहुंच गया. मेनका गांधी के हस्तक्षेप से चारों कुत्तों को पुलिस की निगरानी में नैशनल डौग शेल्टर होम भेज दिया गया.
चौथे दिन नौकरानी जूली से पूछताछ में सामने आया कि सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद डा. प्रकाश अधिकांश समय घर पर रहते और यूट्यूब पर वीडियो देखते थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि डा. प्रकाश ने शायद यूट्यूब देख कर हत्याकांड की योजना बनाई होगी.
नौकरानी ने बताया कि कुछ दिन पहले फ्लैट में फरनीचर का काम हुआ था. उस दौरान कारपेंटर अपना एक हथौड़ा इसी घर में छोड़ गया था. संभवत: उसी हथौड़े से डा. प्रकाश ने परिवार के 3 सदस्यों की जान ली.
पांचवें दिन पुलिस ने दोनों पक्षों के रिश्तेदारों की मौजूदगी में डा. प्रकाश के घर की तलाशी ली. इस की वीडियोग्राफी भी कराई गई. घर की अलमारियों और लौकरों में रखे दस्तावेजों की भी जांच की गई. हालांकि पुलिस को तलाशी और जांचपड़ताल में ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला, जिस से डा. प्रकाश की परेशानी और इस हत्याकांड के पीछे के कारणों का पता चलता.
छठे दिन पुलिस को मोबाइल फोनों की जांच रिपोर्ट मिली. इस में बताया गया कि डा. सोनू व अदिति के मोबाइल में डेटा नहीं मिला. वाट्सऐप चैट व गैलरी से फोटो, वीडियो डिलीट थे. इस से यह नया सवाल खड़ा हो गया कि क्या डा. प्रकाश ने हत्या के बाद पत्नी व बेटी के मोबाइल का डेटा डिलीट किया था. अगर उन्होंने डेटा डिलीट किया था तो उस में ऐसे क्या मैसेज व फोटो थे. रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने इन मोबाइल फोनों के डेटा रिकवर करने के लिए साइबर एक्सपर्ट की मदद ली.
बाद में की गई जांच में पुलिस को ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला, जिन से इस मामले में रहस्य की कोई परत उजागर हो पाती. इस बीच 8 जुलाई को डा. प्रकाश के परिजनों ने पुलिस उपायुक्त (पूर्व) सुलोचना गजराज को एक पत्र दे कर इस पूरे मामले को एक साजिश का परिणाम बताया और इस की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. परिजनों ने सुसाइड नोट की हस्तलिपि पर भी सवाल उठाए.
डा. प्रकाश की बड़ी बहन के दामाद कौशल का कहना था कि इस वारदात के पीछे जमीन का विवाद भी हो सकता है. इस का कारण है कि उन की मामीजी यानी सोनू सिंह के पिता की वाराणसी की जमीन को ले कर सोनू सिंह और उन की बहन के बीच विवाद था.
पलवल वाले स्कूल की जमीन को ले कर भी कुछ विवाद चल रहे थे. यह जमीन डा. प्रकाश ने अपनी बहन शकुंतला से पैसे उधार ले कर खरीदी बताई गई. परिजनों का यह भी कहना था कि डा. प्रकाश का 2 साल पहले मेदांता अस्पताल में बाइपास औपरेशन हुआ था. औपरेशन से उन की जिंदगी तो बच गई थी, लेकिन वे अंदर से पूरी तरह खोखले हो गए थे.
कौशल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री को इस मामले में पत्र लिख कर सुसाइड नोट की हस्तलिपि और दस्तखतों पर भी सवाल उठाए. इस के लिए उन्होंने डा. प्रकाश की ओर से कुछ दिन पहले दिए गए एक चैक की फोटोप्रति भी संलग्न की.
कौशल के अनुसार, सुसाइड नोट पर किए हस्ताक्षर पर डा. प्रकाश के जैसे हस्ताक्षर बनाने का प्रयास किया गया है जबकि वे असली हस्ताक्षर नहीं हैं.
यह बात भी सामने आई कि डा. प्रकाश अपनी ससुराल वालों की वाराणसी की जमीन एकडेढ़ करोड़ रुपए में बेचना चाहते थे. इस जमीन पर सोनू सिंह की बहन भी दावा जता रही थीं. जमीन बेचने के सिलसिले में डा. प्रकाश जल्दी ही बनारस भी जाने वाले थे.
चर्चा यह भी है कि डा. प्रकाश पर बैंकों और रिश्तेदारों का काफी कर्ज था. इस कर्ज को ले कर वह तनाव में थे. गुरुग्राम के मकान की किस्तें भी समय पर नहीं चुकाने की बात सामने आई थी.
सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद वह अलग से तनाव में थे. हालांकि कहा यही जा रहा है कि उन की हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नई नौकरी की बात हो गई थी. इस के लिए वह 3 जुलाई को फ्लाइट से हैदराबाद भी जाने वाले थे, लेकिन इस से पहले ही यह मामला हो गया.
डा. प्रकाश की मौत के बाद उन की संपत्तियों को ले कर अलगअलग दावे जताने की चर्चा भी शुरू हो गई थी. हालांकि औपचारिक रूप से तो किसी पक्ष ने दावे नहीं किए थे, लेकिन दोनों ही पक्षों के लोग अपनेअपने तरीकों से डा. प्रकाश और उन की पत्नी की संपत्तियों और कर्ज के बारे में पता लगा रहे थे.
कहा जा रहा है कि डा. प्रकाश की अधिकांश संपत्तियां उन की पत्नी सोनू सिंह के नाम से हैं. सोनू की बहन सीमा अरोड़ा ने डा. प्रकाश के कुछ स्कूल खोलने के लिए स्टाफ को कह दिया है.
बहरहाल, डा. प्रकाश सिंह का हंसताखेलता खुशहाल परिवार उजड़ गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस को इस मामले में कोई ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस के जरिए रहस्य का परदा उठ पाता. डा. प्रकाश ने अपनी जान से ज्यादा प्यारी बेटी और बेटे के अलावा पत्नी को मौत के घाट उतारने के बाद खुद आत्महत्या क्यों कर ली, यह रहस्य सा बन कर रह गया है.
पुलिस को कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं मिला. डा. प्रकाश के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों से भी पुलिस कोई सुराग नहीं लगा सकी. ऐसे भी कोई साक्ष्य नहीं मिले कि इस वारदात में किसी बाहरी व्यक्ति का हाथ हो. इन सभी कारणों से वैज्ञानिक प्रकाश के परिवार की हत्या और आत्महत्या का मामला फिलहाल मिस्ट्री बन कर रह गया.
सौजन्य: मनोहर कहानियां
आतेजाते, मिलतेजुलते और बात करतेकराते दोनों के बीच बहनभाई का रिश्ता कब प्यार में बदल गया, न किरन जान सकी और न विवेक. उन्हें तब होश आया जब दोनों एक दूसरे के बिना तड़पने लगे. बिना एकदूसरे को देखे, बिना बात किए दोनों को चैन नहीं मिलता था. जल्दी ही दोनों समझ गए कि उन्हें एक दूसरे से प्यार हो गया है.
विवेक का हाल भी कुछ ऐसा ही था. वह मोबाइल स्क्रीन पर किरन की तसवीर देखदेख कर जीता था. उस की तसवीरों से बात कर के अपना मन बहलाता था.
नजदीकियों के चलते जल्दी ही दोनों ने एकदूसरे के साथ जीनेमरने की कसमें खा लीं और शादी करने के सपने भी बुनने लगे. दोनों यह भी भूल गए कि रिश्तों की वजह से उन के सपने कभी हकीकत का रूप नहीं ले सकते.
वे दोनों पारिवारिक रिश्तों की जिस डोर में बंधे थे, उस डोर को न तो परिवार टूटने दे सकता था और न समाज. विजयपाल तो वैसे ही मानसम्मान के मामले में और भी ज्यादा कट्टर था. वह इस रिश्ते को किसी भी हालत में कबूल नहीं कर सकता था. क्योंकि विवेक विजयपाल के लिए बेटे जैसा था.
दोनों तरफ मोहब्बत की आग बराबर लगी हुई थी. जब से विवेक को किरन से मोहब्बत हुई थी. उस का मूड़ाघाट जानाआना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था. विजयपाल और उस के दोनों बेटों ने भी इस बात को महसूस किया था. ये बात उन की समझ से परे थी कि विवेक इतनी जल्दीजल्दी क्यों आता है. जब भी वह आता था किरन से चिपका रहता था. दोनों आपस में धीरेधीरे बातचीत करते रहते थे.
विजयपाल को अपनी बेटी किरन और साढ़ू के बेटे विवेक के रिश्तों को ले कर कुछ संदेह हो गया था. वह दोनों की बात छिपछिप कर सुनने लगा. जल्दी ही उस का संदेह यकीन में बदल गया. पता चला दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए हैं. हकीकत जान कर विजयपाल और उस के दोनों बेटों का खून खौल उठा.
विजयपाल ने पत्नी को अप्रत्यक्ष तरीके से समझाया कि विवेक से कह दे यहां न आया करे. उस की नीयत में खोट आ गया है. इसी के साथ उस ने ये भी कहा कि वह बेटी पर ध्यान दे. उस के पांव बहक रहे हैं. हाथ से निकल गई या कोई ऊंचनीच कर बैठी तो समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. इसलिए उसे विवेक के करीब जाने से मना कर दे.
किरन की मां शर्मिली ने समझदारी का परिचय देते हुए यह बात बेटी को सीधे तरीके से न कह कर अप्रत्यक्ष ढंग से समझाई. वह जानती थी कि बेटी सयानी हो चुकी है, सीधेसीधे बात करने से उसे बुरा लग सकता है. वैसे भी किरन जिद्दी किस्म की लड़की थी, जो ठान लेती थी वही करती थी.
किरन मां की बात समझ गई थी कि वह क्या कहना चाहती हैं. लेकिन उस के सिर पर तो विवेक के इश्क का भूत सवार था. उसे विवेक के अलावा किसी और की बात समझ में नहीं आती थी. उस के अलावा कुछ नहीं सूझता था. किरन ने मां से साफसाफ कह दिया कि वह विवेक से प्यार करती है और उसी से शादी भी करेगी. चाहे कुछ हो जाए, वह अपना कदम पीछे नहीं हटाएगी.
किरन किसी भी तरह अपने मांबाप की बात मानने को तैयार नहीं हुई. बात जब हद से आगे निकलने लगी तो शर्मिली ने अपनी बहन सुमन को फोन कर के पूरी बात बता दी. सुमन बेटे की करतूत सुन कर हैरान रह गई, लज्जित भी हुई. सुमन ने विवेक को समझाया कि ऐसा घिनौना काम कर के तो वह उन्हें जिंदा ही मार डालेगा. जो हुआ सो हुआ, अब आगे किरन से कोई बात नहीं होनी चाहिए.
विवेक और किरन जान चुके थे कि उन के प्यार के बारे में दोनों के घर वालों को पता लग चुका है. दोनों परिवार इस रिश्ते को किसी भी तरह स्वीकार नहीं करेंगे, इस बात को ले कर विवेक काफी परेशान रहने लगा था.
9 मार्च, 2018 की बात है. विवेक घर में बिना किसी को बताए किरन से मिलने बस्ती मूड़ाघाट पहुंच गया. विवेक को देख कर किरन की जान में जान आ गई. लेकिन उस के आने से न तो उस की मौसी शर्मिली खुश थी, न मौसा विजयपाल और न ही उन के दोनों बेटे. वे उसे दरवाजे से भगा भी नहीं सकते थे. लेकिन वे उसे ले कर सतर्क जरूर हो गए. उन की नजर किरन पर जमी थी. यह बात किरन और विवेक जान चुके थे, इसलिए वे खुद भी सतर्क हो गए थे. दोनों किसी भी तरह की गलती नहीं करना चाहते थे.
बात 9 मार्च की रात 10 बजे की है. किरन को विवेक उर्फ रामू ने फोन कर के घर के पिछवाड़े खेत में बुलाया था. घर के सभी लोग खाना खा कर अपनेअपने कमरे में सोने चले गए थे. घर में चारों ओर सन्नाटा फैला था. बरामदे में कोई दिखाई नहीं दिया तो उसे विश्वास हो गया कि सब लोग सो गए है.
विवेक को घर से गए काफी समय हो गया था. वह किरन के आने का इंतजार कर रहा था. किरन भी विवेक के पास जाने के लिए व्याकुल थी. दबे पांव वह घर से खेत की ओर निकल गई. उस का छोटा भाई गुलाब अभी सोया नहीं था. जैसे ही किरन घर से निकली, छोटे भाई गुलाब ने उसे बाहर जाते देख लिया और यह बात पिता विजयपाल को बता दी.
बेटे के मुंह से हकीकत सुन कर विजयपाल का खून खौल उठा. उस ने बड़े बेटे गोलू और छोटे भाई जनार्दन को उठाया. विजयपाल ने हाथ में टौर्च ले ली और तीनों किरन की तलाश में निकल पड़े. वे लोग यह देखना चाहते थे कि इतनी रात गए किरन अकेले कहां जा रही है.
किरन को ढूंढतेढूढंते वे मूड़ाघाट बाईपास स्थित पट्टीदार के खेत पर जा पहुंचे. उस समय रात के 12 बजे होंगे. किरन और विवेक दोनों आपत्तिजनक स्थिति में मिले. ये देखते ही तीनों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.
गुस्साए विजयपाल ने विवेक को पकड़ लिया और उन लोगों ने बगल में रखी ईंट से विवेक के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर के उसे मौत की नींद सुला दिया.
इसी दौरान किरन अपने प्रेमी विवेक की जान बचाने के लिए उन से उलझ गई. इस से उन का क्रोध और बढ़ गया. बाद में उन्होंने किरन के सिर पर ईंट से वार करकर के उसे भी मार डाला.
दोनों को मौत के घाट उतारने के बाद जब वे लोग होश में आए तो अंजाम से डर गए. सोचविचार कर तीनों ने मिल कर विवेक की हत्या को हादसा बनाने के लिए उसी रात फ्लाईओवर के पास उस की लाश खेत में फेंक कर लौट आए. उन्होंने किरन की लाश खींच कर सरसों के खेत में डाल दी थी.
इन लोगों ने कानून की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की, लेकिन उन की चालाकी धरी रह गई. आखिरकार पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड का राजफाश कर ही दिया. कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी जेल में बंद थे. पुलिस ने तीनों के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि सोनू के सिर व गले पर तेज धारदार हथियार से 20 से ज्यादा वार किए गए थे. बेटे व बेटी के सिर पर भी धारदार हथियार के 12 से 15 निशान मिले.
शव सौंपे जाने पर अंत्येष्टि को ले कर डा. प्रकाश सिंह और उन की पत्नी के पक्ष के बीच विवाद हो गया. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ने कहा कि वह सोनू और दोनों बच्चों के शवों की अंत्येष्टि दिल्ली ले जा कर करेंगी. इस पर डा. प्रकाश के परिजन बिफर गए. उन की बहन शकुंतला ने कहा कि अंत्येष्टि कहीं भी करो, लेकिन चारों की एक साथ ही होनी चाहिए.
बाद में अन्य लोगों के दखल पर यह तय हुआ कि चारों की अंत्येष्टि गुरुग्राम में सेक्टर-32 के श्मशान घाट में की जाए. बाद में जब मुखाग्नि देने की बात आई तो इस बात को ले कर भी विवाद होतेहोते बचा. आपसी सहमति से सोनू, अदिति व आदित्य के शव को मुखाग्नि सीमा अरोड़ा के परिवार वालों ने दी. जबकि डा. प्रकाश के शव को उन की बहन के परिवार वालों ने मुखाग्नि दी.
उत्तर प्रदेश में वाराणसी के रघुनाथपुर गांव के रहने वाले डा. प्रकाश सिंह के पिता रामप्रसाद सिंह उर्फ रामू पटेल एक किसान थे. प्रकाश ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की थी. सोनू सिंह भी उन के साथ ही पढ़ती थीं, इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई. फिर वे एकदूसरे से प्यार करने लगे.
बाद में दोनों ने ही रसायन विज्ञान में एम.एससी. की. एम.एससी. में दोनों ने गोल्ड मैडल हासिल किए थे. इस के बाद दोनों ने डाक्टरेट की डिग्री हासिल की. डाक्टरेट की पढ़ाई के दौरान दोनों ने अपनेअपने घर वालों की इच्छा के खिलाफ 1996 में शादी कर ली.
दोनों ने भले ही शादी कर ली, लेकिन इस के बाद दोनों के ही परिवारों के बीच गांठ बन गई, जो नाराजगी के रूप में शवों की अंत्येष्टि के दौरान नजर आई.
विवाह के बाद डा. प्रकाश की पत्नी डा. सोनू ने पहले बेटी अदिति को जन्म दिया. इस के करीब 6 साल बाद बेटा हुआ. उस का नाम आदित्य रखा. डा. प्रकाश सिंह ने सब से पहले बेंगलुरु में नौकरी की थी. इस के बाद से ही उन का पैतृक गांव रघुनाथपुर में आनाजाना कम हो गया था.
करीब 12 साल पहले डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह नौकरी के सिलसिले में दिल्ली आ गए. दिल्ली में डा. प्रकाश ने रैनबैक्सी फार्मा कंपनी में नौकरी शुरू की. कुछ समय बाद वे गुरुग्राम आ कर बस गए और डा. प्रकाश सिंह सन फार्मा में नौकरी करने लगे. गुरुग्राम में उन्होंने ‘उप्पल साउथ एंड’ नाम की सोसायटी में फ्लैट ले लिया.
डा. प्रकाश की अच्छीखासी नौकरी थी. घर में सुखसुविधाओं और पैसे की कोई कमी नहीं थी. पतिपत्नी दोनों ही उच्चशिक्षित थे, इसलिए कोई परेशानी भी नहीं थी. डा. सोनू सिंह ऐशोआराम की जिंदगी जीने के बजाए सामाजिक कार्यों में रुचि लेती थीं. इसलिए एक एनजीओ बना कर उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने और उन का जीवनस्तर ऊंचा उठाने का बीड़ा उठाया.
सोनू सिंह ने करीब 8 साल पहले गुरुग्राम के फाजिलपुर में किराए का भवन ले कर गरीब बच्चों के लिए क्रिएटिव माइंड स्कूल खोला था. बाद में उन्होंने सेक्टर-49 में ‘दीप प्ले हाउस’ नाम से दूसरा स्कूल खोल लिया. सोनू सिंह के एनजीओ के माध्यम से इन दोनों स्कूलों का संचालन केवल गरीब बच्चों के उत्थान के लिए किया जाता था.
रसायन वैज्ञानिक होने के बावजूद डा. प्रकाश सिंह भी बच्चों को पढ़ाने का शौक रखते थे, इसलिए उन्होंने सोहना में ‘क्रिएटिव माइंड स्कूल’ खोला. यह स्कूल बिना लाभहानि के चलाया जाता था. डा. प्रकाश ने अप्रैल 2018 में पलवल में व्यावसायिक नजरिए से एन.एस. पब्लिक स्कूल खोल लिया. पहले यह स्कूल एग्रीमेंट पर लिया गया और बाद में दिसंबर, 2018 में इसे रजिस्ट्री करवा कर खरीद लिया गया.
डा. प्रकाश सिंह की बेटी अदिति जामिया हमदर्द से बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी. इस साल वह अंतिम वर्ष की छात्रा थी. उस ने पढ़ाई के साथ सन फार्मा कंपनी में इंटर्नशिप भी शुरू कर दी थी. अदिति ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर पिछले साल सोप डायनामिक्स नाम से स्टार्टअप शुरू किया था. डा. दंपति का सब से छोटा बेटा गुरुग्राम के ही डीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 9 में पढ़ रहा था.
डा. प्रकाश और उन की पत्नी सहित परिवार के चारों सदस्यों की मौत हो जाने से चारों स्कूलों के संचालन पर सवालिया निशान लग गए हैं. चारों स्कूलों में डेढ़ सौ से अधिक शैक्षणिक और गैरशैक्षणिक स्टाफ है. इन कर्मचारियों को वेतन और भविष्य की चिंता है. इस क ा मुख्य कारण यह है कि इन में 2 स्कूलों में खर्चे जितनी भी आमदनी नहीं होती.
पुलिस को जांचपड़ताल में पता चला कि डा. प्रकाश के घर उन के रिश्तेदारों का बहुत कम आनाजाना था. ज्यादातर सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ही आती थीं. घटना से 10 दिन पहले भी वह परिवार के साथ यहां आई थीं. सीमा अरोड़ा के मुताबिक उस समय ऐसी कोई बात नजर नहीं आई थी, जिस का इतना भयावह परिणाम सामने आता.
डा. प्रकाश के परिवार से बहुत कम लोग कभीकभार ही यहां आते थे. डा. प्रकाश की मां अपने अंतिम समय में कुछ दिन उन के पास रही थीं. डा. प्रकाश 5 भाईबहनों में तीसरे नंबर के थे. 2 बहनें उन से बड़ी थीं और 2 छोटी. इन में एक बड़ी बहन का निधन हो चुका है. एक बहन परिवार के साथ नोएडा में और 2 बहनें बनारस में रहती हैं. डा. प्रकाश के मातापिता का निधन हो चुका है.
पुलिस दूसरे दिन भी वैज्ञानिक के परिवार की मौत की गुत्थी सुलझाने में जुटी रही. हालांकि मौके के हालात और सुसाइड नोट से साफ था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या के बाद खुद आत्महत्या की थी. लेकिन फिर भी पुलिस यह सोच कर हर एंगल से जांच करती रही कि कहीं यह कोई साजिशपूर्ण तरीके से किसी बाहरी व्यक्ति की ओर से की गई वारदात तो नहीं है.
मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस को डा. प्रकाश के घर में बाथरूम में मिले 3 मोबाइल फोन से मदद मिलने की उम्मीद थी, इसलिए इन मोबाइलों की काल डिटेल्स निकलवाई गई. इस के अलावा इन मोबाइलों का डेटा रिकवर करने का प्रयास भी किया गया.