लेस्बियन मां ने की बेटे की हत्या – भाग 1

पुलिस की शुरुआती जांच में हैवानियत का पता चला. 10 वर्षीय स्नेहांशु के सिर को भारी चीज से कुचला गया था. उस के हाथों की  नसें काट दी गई थीं. सब्जी काटने वाली छुरी से उस के शरीर पर अनगिनत जख्म किए गए थे. घटनास्थल पर ही एक टेढ़ी छुरी पड़ी थी. घर में रखे गए सारे सामान सुरक्षित थे. इसे देख कर कोई भी आसानी से समझ सकता था कि घटना लूट को अंजाम देने के लिए नहीं की गई थी.

पुलिस की फोरैंसिक टीम ने लाश और घटनास्थल की जांच के बाद पाया कि हत्यारा बच्चे के साथ बड़ी बेरहमी से पेश आया होगा.

जिस तरह से बच्चे की हत्या की गई थी, उस से यह भी जाहिर हो रहा था कि हो न हो जिस ने भी मारा, उसे इस बच्चे से बेहद नफरत रही होगी. इतना ही नहीं, जख्मों से यह भी साफ पता चला कि कातिल किसी भी सूरत में बच्चे को जीवित बचने नहीं देना चाहता था.

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से करीब 17 किलोमीटर दूर हुगली जिला काफी चहलपहल वाले क्षेत्रों में से एक है. यहां के ऐतिहासिक, धार्मिक और कारोबारी महत्त्व वाले घनी आबादी के शहर कोन्नगर के आदर्शनगर मोहल्ले में 18 फरवरी, 2024 की शाम के वक्त अचानक चिल्लपों मच गई थी. कई लोग स्नेहांशु के घर की ओर दौड़ पड़े थे, जबकि कुछ लोग अपनेअपने घरों के दरवाजे पर आ कर कानाफूसी करने लगे थे.

”अरी ओ सोनू की मां, सुना है स्नेहांशु को किसी ने मार दिया? अभी तो एक घंटा पहले इधर साइकल चला रहा था. क्या हुआ उसे? जा… जा कर पता करो तो क्या बात है?’’ एक वृद्धा पड़ोसी महिला से बोली.

”हां चाची, मैं ने भी थोड़ी देर पहले उस के घर से चीखने चिल्लाने की आवाजें सुनी थीं. उस के घर से टीवी की बहुत तेज आवाज आ रही थी, पता नहीं चल पाया कि कोई चीख रहा है या कोई मारपीट वाली फिल्म चल रही है.’’ 10 साल के स्नेहांशु के स्कूल में पढऩे वाले सोनू की मां बोली.

”अरे, मैं तो चली जाती शांता के घर… मेरे घुटने में दर्द है न! ज्यादा चल नहीं सकती मैं. आज सुबह से शांता भी नहीं दिखाई दी. लगता है, उस की सहेली आई हुई है.’’ वृद्धा बोली.

”हां चाची, शांता बहन की सहेली को तो मैं ने दोपहर में ही उस के घर जाते देखा था, लेकिन स्नेहांशु को क्या हुआ. सोनू को भेजती हूं पता करने.’’

”अरे नहीं वह बच्चा है, तू ही चली जा.’’ वृद्धा बोली.

”जी चाची,’’ कहती हुई सोनू की मां स्नेहांशु के घर की ओर जाने लगी.

उसी वक्त उस ओर तेजी से पुलिस की एक गाड़ी भी गुजरी. वृद्धा हैरानी से देखती हुई बुदबुदाई, ”लगता है, मैं ने सही सुना…पता नहीं क्या हो गया इस मोहल्ले में!’’

स्नेहांशु के बारे में बात कर रही औरतों के घर से करीब 200 मीटर की दूरी पर दाईं ओर गली में मुड़ते ही पंकज शर्मा पूरे परिवार के साथ रहते थे. परिवार में पत्नी शांता शर्मा के अलावा उन का 10 साल का बेटा स्नेहांशु था. हां, साथ में प्यारा सा पालतू कुत्ता और पड़ोस में उन के भाई का परिवार भी रहता था.

शांता अपने ससुर ओमप्रकाश शर्मा, सास प्रेमलता शर्मा, देवर प्रभात शर्मा और जय के साथ रहती थी. पति पंकज और बेटा स्नेहांशु भी साथ थे. एक अन्य देवर प्रवीर अपने परिवार के साथ सिलीगुड़ी में रहता था.

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चाकू से गोद कर किस ने की बच्चे की हत्या

पंकज शर्मा के घर में कोहराम मचा हुआ था. वहां उत्तरपारा थाने से आई पुलिस मौजूद थी. शाम होने के चलते गली में लोगों का आवागमन अधिक था. पड़ोसियों के अलावा आतेजाते लोगों की अच्छीखासी भीड़ लग चुकी थी.

घर में हत्या की वारदात हुई थी. हत्या एक बच्चे की थी. मरने वाला चौथी कक्षा में पढऩे वाला 10 साल का स्नेहांशु था. गोलमटोल चेहरे वाला वह बहुत ही प्यारा बच्चा था. घर में उसी बच्चे की रक्तरंजित लाश पड़ी हुई थी. लाश की हालत ऐसी कि वह देखी नहीं जा रही थी. मौजूद लोग उस की मासूमियत और स्वभाव की चर्चा कर रहे थे.

कहें तो लोगों को भरोसा ही नहीं हो पा रहा था कि कुछ समय पहले गली में साइकल चलाने वाला स्नेहांशु अब इस दुनिया में नहीं रहा. सभी के दिमाग में कई सवाल कौंध रहे थे कि आखिर उसे किस ने मारा होगा? क्यों मारा होगा? एक बच्चे से किसी की भला क्या दुश्मनी हो सकती है? क्या वह घर में अकेला था?…लेकिन उन का कुत्ता तो बहुत वफादार था!

पास बैठी मां शांता का रोरोकर बुरा हाल था. इस घटना के बारे में पहली जानकारी स्नेहांशु की हमउम्र चचेरी बहन को तब हुई थी, जब वह किसी काम से उस के घर आई थी.

उस से पुलिस ने शुरुआती पूछताछ की. उस ने बताया कि मृत भाई की हालत देख कर वह काफी डर गई थी. उस वक्त घर में और कोई नहीं था. वह भाग कर सीधे अपने घर आ गई थी. उस ने अपने मम्मीपापा को उस बारे में बताया. उन्होंने ही पहले पुलिस को, फिर पंकज शर्मा को फोन कर दिया था.

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                    स्नेहांशु शर्मा

स्नेहांशु शर्मा एक जानेमाने अंगरेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ता था. उस के मम्मीपापा दोनों कामकाजी थे. पंकज शर्मा कोलकाता की एक निजी कंपनी में काम करते थे, जबकि मां शांता शर्मा एक कौस्मेटिक की दुकान में काम करती थी.

इत्तफाक ही था कि वारदात के वक्त दोनों घर से बाहर थे, जबकि घर के दूसरे सदस्य भी बस कुछ देर के लिए बाहर गए थे. इसी बीच कातिल ने घर में घुस कर स्नेहांशु की जान ले ली.

साथ ही पुलिस कुछ ऐसी बातों पर गौर किया, जिन से बच्चे की हत्या का सुराग मिल सकता था. पुलिस ने पाया कि घर का पालतू कुत्ता वारदात के वक्त खामोश था. वहां मौजूद मोहल्ले के अन्य लोगों का कहना था कि वह किसी भी अजनबी को देखते ही भौकने लगता था.

इसी बात को ले कर पुलिस के लिए हैरानी की बात यह थी कि घर में स्नेहांशु  का कत्ल हो गया और कुत्ते को एक बार भी किसी ने भौकते नहीं सुना. उस की मां ने बताया कि वह कुछ समय के लिए बाजार गई थी. पुलिस के गले यह बात नहीं उतरी थी कि बच्चे को छोड़ कर वह अकेली बाजार गई थी, जबकि सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता है.

शक और कुंठा की शिकार बनी कौमुदी

दैविक ट्यूशन पढ़ रहा था तभी शाम 5 बजे उस के मोबाइल पर उस के पापा हेमंत चतुर्वेदी का फोन आया, ‘‘बेटा, तुम्हारी मम्मी नाराज हो कर कहीं चली गई हैं. मैं उन्हें ढूंढने जा रहा हूं. ट्यूशन के बाद तुम घर पर ही रहना. मैं भी कुछ देर में घर आ जाऊंगा.’’

दैविक के मम्मीपापा के बीच रोजाना झगड़ा होना आम बात थी इसलिए पापा की इस बात पर उसे कोई आश्चर्य नहीं हुआ और वह ट्यूशन के काम में बिजी हो गया.

ट्यूशन पढ़ने के बाद 13 साल का दैविक जब घर लौटा तो दरवाजे पर ताला बंद मिला. वह घर का पुराना ताला नहीं था बल्कि हाल ही में खरीदा हुआ एकदम नया दिख रहा था. घर के ताले की एक चाबी उस के पास रहती थी. लेकिन नया ताला लगा होने की वजह से वह उस चाबी से नहीं खुल सकता था.

मम्मीपापा कितनी देर में घर लौटेंगे, यह जानने के लिए दैविक ने सब से पहले मम्मी कौमुदी को फोन लगाया तो उन का फोन बंद मिला. इस के बाद उस ने पापा को फोन किया. उन का फोन लग गया.

दैविक ने जब उन से पूछा कि उन्हें घर लौटने में कितनी देर लगेगी. इस पर हेमंत ने कहा कि उन्हें घर आने में अभी टाइम लग सकता है. हेमंत ने कहा कि इस समय वह सेक्टर-18 रोहिणी में रेडलाइट के पास खड़ा है. फ्लैट की चाबी लेने के लिए उस ने दैविक से रोहिणी सैक्टर-18 पहुंचने को कहा.

दैविक उस समय रोहिणी सेक्टर-23 स्थित अपने फ्लैट के बाहर था. पापा से बात होने के बाद वह सेक्टर-18 पहुंच गया लेकिन निर्धारित जगह पर उसे पापा नहीं मिले तो उस ने फिर से फोन लगाया. तब हेमंत का फोन स्विच्ड औफ मिला. उस ने कई बार फोन मिलाया, हर बार स्विच्ड औफ ही मिला. परेशान हो कर दैविक फ्लैट पर लौट आया और मम्मीपापा के लौटने का इंतजार करने लगा.

काफी देर बाद तक जब उन में से कोई भी नहीं आया तो उस ने फिर दोनों के नंबर मिलाए. उन के फोन स्विच्ड औफ ही मिले. दैविक परेशान हो रहा था कि अब क्या करे? दैविक के मामा विपुल नौटियाल अंगरेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में उपसंपादक हैं. उस ने परेशानी की इस हालत में विपुल मामा को फोन किया और उन से जल्द आने को कहा.

विपुल उस समय दिल्ली के कस्तूरबा गांधी रोड पर स्थित अपने औफिस में थे. अपनी बहन बहनोई के बीच रोज रोज होने वाले झगड़े से 48 वर्षीय विपुल वाकिफ थे इसलिए भांजे की बात सुनने के बाद वह औफिस से छुट्टी ले कर उस के पास रोहिणी चले गए. वहां उन्हें दैविक रोता हुआ मिला. विपुल ने उसे चुप कराया और उन्होंने भी अपनी बहन और जीजा को फोन मिलाया. दोनों के फोन अब भी स्विच्ड औफ मिले.

पेशे से पत्रकार विपुल नौटियाल का माथा ठनका. उन्होंने सोचा कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है. इसलिए उन्होंने उसी समय पुलिस कंट्रोलरूम के 100 नंबर पर फोन कर दिया. काल करने के कुछ समय बाद थाना बेगमपुर के थानाप्रभारी राजेश कुमार सहरावत एसआई मनदीप सिंह, कांस्टेबल विनोद कुमार आदि को ले कर रोहिणी सेक्टर-23 स्थित सप्तऋषि अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 110 पर पहुंच गए.

पुलिस ने दैविक और विपुल नौटियाल से बात की. उन से बात करने के बाद थानाप्रभारी को भी मामला संदिग्ध लगा. पुलिस ने सब से पहले फ्लैट से छानबीन शुरू करने के लिए दरवाजे पर लगे ताले को तोड़ा.

दरवाजा खोल कर पुलिस फ्लैट में गई तो डबलबेड पर कंबल ओढ़े कोई सोता हुआ दिखा. विपुल ने जैसे ही कंबल हटाया, उन की चीख निकल गई. वहां उन की छोटी बहन कौमुदी की लाश पड़ी थी. कौमुदी का गला कटा हुआ था और सिर भी फटा हुआ था.

बिस्तर भी खून से सना हुआ था. किसी ने कौमुदी का कत्ल करने के बाद उस की लाश को तसल्ली से ढक दिया था. चूंकि कौमुदी का पति हेमंत चतुर्वेदी फरार था और उस का फोन भी बंद आ रहा था, इसलिए विपुल ने अंदेशा जताया कि हेमंत ने ही वारदात को अंजाम दिया होगा.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और जिले के आला अधिकारियों को सूचना देने के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. पता चला कि हत्यारे का मकसद केवल कौमुदी की हत्या करना ही था क्योंकि घर के कीमती सामान अपनीअपनी जगह रखे हुए थे.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम ने भी मौके पर पहुंच कर कई सुबूत कब्जे में लिए. मौके की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद थानाप्रभारी ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. यह बात 25 फरवरी, 2014 की है.

चूंकि मामला एक वरिष्ठ पत्रकार के परिवार से था इसलिए रिपोर्ट दर्ज होने के बाद मामले की जांच थानाप्रभारी राजेश कुमार सहरावत ने करनी शुरू कर दी. इस के अलावा क्राइम ब्रांच भी संभावित हत्यारे हेमंत चतुर्वेदी की खोज में जुट गई.

क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त आयुक्त अशोक चांद ने स्पैशल यूनिट के एसीपी के.पी.एस. मल्होत्रा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई जिस में इंसपेक्टर पवन कुमार, सबइंसपेक्टर मनदीप सांगवान, हेडकांस्टेबल पृथ्वी सिंह, मुरलीधर, कांस्टेबल रोहित सोलंकी, विनोद कुमार, संजीव, अंकित, प्रदीप, राजेश आदि को शामिल किया गया.

क्राइम ब्रांच और थाना पुलिस की टीम हेमंत चतुर्वेदी को सरगर्मी से तलाशने लगीं. पुलिस अपने स्तर से उसे ढूंढती रही लेकिन उस का पता नहीं चला. इसी तरह दो-ढाई महीने बीत गए, दिल्ली में उस का कहीं सुराग नहीं मिला.

क्राइम ब्रांच के एसआई मनदीप सांगवान के दिमाग में विचार आया कि हेमंत चतुर्वेदी जब दिल्ली में नहीं मिल रहा तो वह कहीं अपने गृह प्रदेश उत्तराखंड में तो नहीं छिप गया है. क्योंकि वह मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल का रहने वाला था.

मनदीप सांगवान और कांस्टेबल विनोद कुमार ने उत्तराखंड में मौजूद अपने सूत्रों और उत्तराखंड पुलिस के सहयोग से हेमंत को खोजना शुरू किया. उन की यह कोशिश रंग लाई. पता चला कि वह कोटद्वार में वेश बदल कर रह रहा है.

इस खुफिया खबर के बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच ने 24 मई, 2014 को कोटद्वार, उत्तराखंड पहुंच कर हेमंत चतुर्वेदी को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तो उस के बदले हुए रूप को देख कर वह खुद अचंभित रह गई. स्थानीय कोर्ट में पेश करने के बाद पुलिस ट्रांजिट रिमांड पर उसे दिल्ली ले आई.

हेमंत से उस की पत्नी कौमुदी की हत्या की बाबत पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि पत्नी की हत्या उस ने खुद की थी. उस की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह दिमाग में पैदा हुए शक से उपजी हुई निकली.

कौमुदी मूलरूप से उत्तराखंड के गढ़वाल के रहने वाले बी.पी. नौटियाल की बेटी थी. बी.पी. नौटियाल बिक्रीकर विभाग में अधिकारी थे. उन की पोस्टिंग दिल्ली में थी. इसलिए दिल्ली के गुलाबी बाग स्थित मंदाकिनी अपार्टमेंट में परिवार के साथ रहते थे. यह सरकारी फ्लैट उन्हें सरकार की ओर से मिला हुआ था. बेटी कौमुदी के अलावा उन का एक बड़ा बेटा था विपुल नौटियाल.

बी.पी. नौटियाल एक अधिकारी थे, इसलिए उन्होंने दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई. कौमुदी की इच्छा टीचर बनने की थी. उस ने सन 1997 में ग्रैजुएशन करने के बाद टीचिंग कोर्स किया. कोर्स करने के बाद उसे रोहिणी सैक्टर-25 स्थित रेयान इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल में नौकरी मिल गई. एक बड़े स्कूल में टीचर बनने के बाद वह बहुत खुश थी. वहां उसे 35 हजार रुपए प्रति महीना सैलरी मिलती थी.

बेटी सयानी होने के बाद अपने पैरों पर खड़ी हो गई तो पिता उस के लिए उपयुक्त लड़का खोजने लगे. किसी परिचित ने उन्हें हेमंत चतुर्वेदी के बारे में बताया. हेमंत चतुर्वेदी उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के बगौली गांव के रहने वाले जगदीश चतुर्वेदी का बेटा था जिन की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी.

हेमंत नोएडा स्थित एक प्राइवेट कंपनी में सेल्समैन था. उसे 15 हजार रुपए प्रति महीना सैलरी मिलती थी. वह अपने भाईबहनों, मां के साथ दिल्ली के पीतमपुरा में मंदाकिनी इन्क्लेव में रहता था.

बी.पी. नौटियाल ने जब हेमंत व उस का परिवार देखा तो उन्हें लड़का पसंद आ गया. हेमंत की सैलरी भले ही कौमुदी की सैलरी से आधी से भी कम थी, इस के बावजूद भी उन्होंने हेमंत को पसंद कर लिया.

कौमुदी को जब इस का पता चला कि जिस लड़के के साथ उस की शादी की बात चल रही है, उस की सैलरी कम है. इस के बावजूद भी उस ने शादी का विरोध नहीं किया. कौमुदी को विश्वास था कि उस के पिता ने जो फैसला लिया है वह किसी न किसी रूप में सही ही होगा.

दोनों तरफ से बात होने के बाद 30 जनवरी, 1998 को कौमुदी का विवाह हेमंत के साथ कर दिया गया. शादी के बाद कौमुदी चतुर्वेदियों के परिवार में रहने लगी. उन के साथ रहने के कुछ दिनों बाद ही उसे महसूस हो गया कि जिस हेमंत से उस की शादी हुई है, वह उस के लायक नहीं है. लेकिन अब हो भी क्या सकता था. उसे जिंदगी उसी के साथ बितानी थी. लिहाजा वह खुद को वहां एडजस्ट करने की कोशिश करने लगी.

हेमंत की एक सब से बड़ी कमी यह थी कि वह रोज शराब पीता और कौमुदी से झगड़ता था. कौमुदी ने उस से शराब पीने को मना किया लेकिन हेमंत ने उस की एक नहीं सुनी. इस का नतीजा यह निकला कि इसी बात पर उन दोनों के बीच रोजरोज कलह होने लगी. हेमंत संयुक्त परिवार में रहता था. घर के और लोगों ने भी हेमंत को समझाने की कोशिश की लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा.

हेमंत के दोस्त यह बात जानते थे कि उस की पत्नी की सैलरी उस की सैलरी से दोगुने से भी ज्यादा है. वे उसे उलाहना देते कि वह पत्नी का गुलाम बन कर रहता होगा. और तो और रात को बीवी के पैर भी दबाने पड़ते होंगे. दोस्तों की ये बातें हेमंत के दिल में तीर की तरह चुभती चली जाती थीं. तब वह घर जा कर सारा गुस्सा कौमुदी पर उतारता था.

इसी बीच कौमुदी ने एक बेटे को जन्म दिया जिस का नाम दैविक रखा. बेटा पैदा होने के बाद वह उसी के पालनपोषण में व्यस्त रहने लगी. उस ने हेमंत द्वारा दी जाने वाली टेंशन को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया. उस की इस सहनशीलता को हेमंत ने गलत समझा. इसी का फायदा उठाते हुए उस ने कौमुदी को और ज्यादा टेंशन देनी शुरू कर दी.

हेमंत का एक चचेरा भाई था उमेश. वह कुछ दिनों तक तो यह सोच कर चुप रहा कि हेमंत अपने आप सुधर जाएगा लेकिन हेमंत ने परिवार में जब ज्यादा ही कलह करनी शुरू कर दी तो बड़ा भाई होने के नाते उस ने एक दिन हेमंत को समझाया और गृहस्थी में शांति बनाए रखने की बात कही. वह जानता था कि उन दोनों के बीच झगड़े की मुख्य वजह शराब है, इसलिए उस से शराब छोड़ने को कहा.

उमेश के समझाने के 2-4 दिन बाद तक तो हेमंत ठीक रहा, बाद में वह अपने पुराने ढर्रे पर आ गया. उमेश ने उसे फिर से समझाया. हेमंत भी बड़ा ढीठ निकला. उस ने उस की बातों को हवा में उड़ाना शुरू कर दिया बल्कि वह कौमुदी को और ज्यादा मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताडि़त करने लगा. यह बात उमेश से देखी नहीं जाती थी इसलिए वह हेमंत को डांट देता.

हेमंत शक्की किस्म का था. उमेश के ज्यादा दखल देने पर उसे शक हो गया कि कौमुदी का उमेश के साथ कोई चक्कर है तभी तो वह उस का ज्यादा पक्ष ले रहा है. अब हेमंत ने उमेश की बात माननी तो दूर उस का लिहाज करना भी बंद कर दिया. इस बात को ले कर हेमंत पत्नी को ताने भी देता.

उमेश ने कभी भी कौमुदी को गलत नजरों से नहीं देखा. कौमुदी भी उमेश को बड़ा भाई मानती थी इसलिए हेमंत के तानों ने दोनों के दिलों को ठेस पहुंचाई. इस आरोप ने उमेश को इतना आहत कर दिया कि वह अपने संयुक्त परिवार को छोड़ कर रोहिणी के ही सेक्टर-16 में किराए पर रहने लगा.

ससुराल में कौमुदी का पक्ष लेने वाला एक ही व्यक्ति था, वह भी वहां से चला गया तो कौमुदी की आंखों में आंसू भर आए. तब हमदर्दी का फाहा रखने के बजाय हेमंत ने शब्दों की छुरी से उस का जिगर छील दिया. जब बात बरदाश्त से बाहर होने लगी तो कौमुदी ने सारी बातें मायके वालों से कहीं.

पिता बी.पी. नौटियाल बहुत शरीफ थे. उन्होंने सोचा कि घरगृहस्थी में छोटीमोटी बातें चलती ही रहती हैं, वह कुछ दिनों में सामान्य हो जाएंगी. बेटी की गृहस्थी में उन्होंने दखल देना उचित नहीं समझा.

पहले तो हेमंत ही पत्नी पर चरित्रहीनता का आरोप लगाता था, बाद में उस के परिवार वाले भी उस पर कलंक लगाने की मुहिम में शामिल हो गए. घर वालों का साथ मिलने पर हेमंत के हौसले बुलंद हो गए. कौमुदी के पिता ने शादी में 6 लाख रुपए से अधिक खर्च किए थे. वैसे तो उन्होंने जरूरत का सभी सामान दिया था, लेकिन कार नहीं दी थी.

हेमंत और उस के घर वाले अब कौमुदी से कार की डिमांड करने लगे. कौमुदी ने यह बात पिता से कही. बी.पी. नौटियाल चाहते थे कि किसी भी तरह उन की बेटी खुश रहे. उन के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह दामाद को नई कार खरीद कर दे सकें. पुरानी कार खरीदने के लिए उन्होंने 50 हजार रुपए जैसेतैसे इकट्ठे कर के हेमंत को दे दिए.

हेमंत ने उन पैसों से कार नहीं खरीदी बल्कि उन से वह अपने दूसरे शौक पूरे करने लगा. इस के बाद भी हेमंत का पत्नी के प्रति व्यवहार नहीं बदला. वह पहले की तरह उसे ताने देता रहा. इतना ही नहीं, उस ने सन 2003 में कौमुदी को मारपीट कर घर से निकाल दिया और कहा कि यदि उसे यहां रहना है तो मायके से 5 लाख रुपए नकद लाए.

कौमुदी बेटे को ले कर मायके चली गई. इस के बाद कौमुदी ने ठान लिया था कि जिस घर में उस के लिए इज्जत नहीं, वहां रहने से क्या फायदा. वह अब ससुराल नहीं जाएगी लेकिन अत्याचार करने वालों को वह सबक सिखा कर रहेगी.

मायके वालों से मशविरा करने के बाद वह 16 दिसंबर, 2003 को उत्तरी दिल्ली के थाना सराय रोहिल्ला पहुंच गई और हेमंत व उस के घर वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज करा दिया. उस की प्राथमिकी पर पुलिस ने काररवाई नहीं की बल्कि नामजद आरोपियों ने कोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली.

पुलिस से कौमुदी को जो उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हो सकी थी. उस पर जुल्म करने वाले अब खुलेआम सीना चौड़ा कर के घूम रहे थे. उस ने ससुराल पक्ष के नामजद लोगों के खिलाफ कोर्ट में दहेज उत्पीड़न का वाद प्रस्तुत कर दिया.

कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ एक्शन लेते हुए सम्मन जारी कर दिए और मुकदमे की काररवाई शुरू हो गई. इसी दौरान इस पूरे मामले में एक नया मोड़ आ गया. हेमंत ने भी कोर्ट में एक मामला दायर कर दिया. उस ने बताया कि नोएडा की जिस कंपनी में वह नौकरी करता था, वहां से उस की नौकरी छूट गई है. अब वह बेरोजगार है. आजीविका चलाने के लिए उस के पास कोई साधन नहीं है. उस ने कोर्ट से दरख्वास्त की कि पत्नी से उसे गुजारा भत्ता दिलाया जाए.

कई साल तक मुकदमा चलने के बाद जीत हेमंत की ही हुई. कोर्ट ने हेमंत चतुर्वेदी को बेरोजगार मानते हुए 30 अक्तूबर, 2012 को फैसला सुनाया कि कौमुदी पति को 15 हजार रुपए प्रतिमाह देगी. कोर्ट के आदेश पर कौमुदी कर भी क्या सकती थी. उसे अपनी लगभग आधी सैलरी निकम्मे पति को देनी पड़ती. वह परेशान थी कि क्या करे. 15 हजार रुपए बचाने के लिए कौमुदी ने हेमंत से समझौता करना मुनासिब समझा.

उसे पति से समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद हेमंत पत्नी और बेटे के साथ रोहिणी सेक्टर-23 में सप्तऋषि अपार्टमेंट में रहने लगा. उधर कौमुदी के बड़े भाई विपुल नौटियाल दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अंगरेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में उपसंपादक हो गए थे. पिता बी.पी. नौटियाल भी रिटायर हो चुके थे जिस से उन्हें अपना सरकारी आवास छोड़ना पड़ा. विपुल ने वसुंधरा इनक्लेव में फ्लैट ले लिया था. वह बेटे के साथ ही रहने लगे.

हेमंत कुछ दिनों तो ठीक रहा. इस के बाद उस ने पुराना रवैया अख्तियार कर लिया. उस ने कौमुदी और उमेश के संबंधों को ले कर फिर से अंगुली उठानी शुरू कर दी. यानी उन के बीच फिर से कलह शुरू हो गई. 25 फरवरी, 2014 को भी इसी मुद्दे पर दोनों के बीच बहस छिड़ गई. हेमंत गुस्से में आगबबूला हो गया और उस ने पास में पड़ा हथौड़ा उठा कर कौमुदी के सिर पर दे मारा.

एक ही वार में कौमुदी का सिर फट गया. वह बेड पर गिर गई और सिर से तेजी से खून निकलने लगा. यह देख कर हेमंत घबरा गया. उसे लगा यदि पत्नी को इस हाल में छोड़ देगा तो जीवित बचने पर वह उसे जेल भिजवा देगी. खुद को बचाने के लिए वह किचन में गया और वहां से तेज धार वाला चाकू ले आया.

कौमुदी बेड पर बेहोश सी पड़ी थी. तभी हेमंत ने उस का गला काट दिया. इस के बाद उस की मौत हो गई. हेमंत का इरादा लाश को ठिकाने लगाना था. लिहाजा वह अंधेरा होने का इंतजार करने लगा. तब तक फ्लैट में कोई न आए, इसलिए वह बाजार से नया ताला खरीद लाया और दरवाजे पर लगा कर वहां से चला गया.

घर का पुराना ताला उस ने इसलिए नहीं लगाया क्योंकि पुराने ताले की एक चाबी बेटे दैविक के पास थी. उस ने बेटे को कौमुदी के कहीं चले जाने का इसलिए फोन किया था कि वह फ्लैट पर देर से आए. लेकिन वह ट्यूशन पढ़ कर शाम 6 बजे के करीब ही फ्लैट पर पहुंच गया था और बाद में भेद खुल गया.

हेमंत चतुर्वेदी से पूछताछ करने के बाद क्राइम ब्रांच ने उसे थाना बेगमपुर पुलिस के हवाले कर दिया क्योंकि मामला उसी थाने का था. थाना पुलिस ने भी हेमंत चतुर्वेदी से विस्तार से पूछताछ की और उसे कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक हेमंत चतुर्वेदी जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बाल्टी में लाश : हादसा या हत्या?

बाल्टी में बच्चा पड़ा था. अगले पल जब बाल्टी पर नजर गई तब उगमराज की चीख निकल गई. असल में 7 महीने का गुन्नू (Gunnu) बाल्टी के पानी में ही (Balti Me Mili Lash) औंधे मुंह उलटा पड़ा था.

उसे तुरंत बाहर निकाला गया. उगमराज चीखते हुए बोले, ”किस ने किया ऐसा. गुन्नू बाल्टी के पानी में कैसे आ गया?…और बाल्टी यहां कहां से आई? कौन लाया इसे यहां..?’’

एक तरफ शोभा अपने बेटे की मौत के गम को नहीं झेल पा रही थी, दूसरी तरफ घर के सभी लोग इस बात को ले कर परेशान थे कि वह कौन निर्दयी कौन हो सकता है, जिस ने मासूम बच्चे को इतनी बेरहमी से मारा होगा? पुलिस भी इस का कोई कारण नहीं तलाश पाई थी.

राजस्थान (Rajasthan) के पाली (Pali) जिले का एक कस्बा है बर. यहां की न्यू कालोनी में रहने वाले चंपालाल चौहान के घर सुबह से ही गहमागहमी थी. उन के यहां एक घरेलू आयोजन चल रहा था. वहां आसपास के लोगों के साथ पड़ोसी भीकमचंद चौहान भी आमंत्रित थे. भीकमचंद के खुशहाल परिवार में 2 बेटे थे उत्तम चंद और उगमराज.

उत्तम चंद के परिवार में 2 बेटे और एक बेटी थी, जबकि उगमराज के घर 10 साल की बेटी के बाद 7 माह पहले ही एक बेटा पैदा हुआ था. उसे पूरा परिवार प्यार से गुन्नू बुलाता था. गुन्नू अपनी मां शोभा की तो आंखों का तारा था. वह उसे पलभर के लिए भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देती थी. दरअसल, बेटी के जन्म के बाद बड़ी मुश्किल से गुन्नू का जन्म हुआ था. इस से पहले वह 4 बार गर्भपात की पीड़ा भी झेल चुकी थी.

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दोनों भाइयों की खुशहाल जिंदगी संयुक्त परिवार में बीत रही थी. आपसी मेलजोल बना हुआ था. उन के परिवार के लोग चंपालाल परिवार के बुलावे पर दिन में करीब 3 बजे उन के घर गए थे. संयोग से उस वक्त गुन्नू सो रहा था. उस की मां शोभा ने अपने कमरे में लगे झूले में सुला कर दरवाजे की कुंडी बाहर से लगा दी थी. उस वक्त भीकमचंद के मकान में मरम्मत का काम भी चल रहा था. वहां 6 मजदूर काम पर लगे हुए थे.

शोभा को गुन्नू के सोने के समय का पता था. इस कारण वह उसे सोता छोड़ कर पड़ोस में चली गई थी. 2 जुलाई, 2023 की शाम के करीब पौने 5 बजे शोभा का पति उगमराज मजदूरों के काम को देखने के लिए अपने घर गया. मजदूरों से मिल कर वह अपने कमरे में भी गया. वहां झूले पर गुन्नू को नहीं पाया तो उसे थोड़ी चिंता हुई. कारण, शोभा ने उसे बताया था कि वह गुन्नू को झूले पर सुला कर आई है.

उगमराज को न जाने क्या सूझी तुरंत चंपालाल के घर चला गया. वहां शोभा की गोद में गुन्नू को नहीं पा कर पूछ बैठा, ”गुन्नू कहां है?’’

शोभा गुन्नू के बारे में अचानक पूछे जाने पर हैरान हो गई. वह बोली, ”गुन्नू कहां है! झूले पर सो रहा होगा.’’

”…लेकिन वह तो झूले में नहीं है.’’

”नहीं है… क्या मतलब है तुम्हारा? उसे तो मैं अपने कमरे में झूले पर सुला आई थी. मैं ने बताया तो था तुम्हें.’’ शोभा आश्चर्य से बोली.

”वो वहां नहीं है.’’

”तो फिर उसे झूले से कौन ले गया? कहीं उस झूले से जमीन पर तो नहीं गिर गया?’’ बोलती हुई शोभा तुरंत अपने घर गई. उन की बातें उगमराज की भाभी गुड़िया  ने भी सुनी. वह भी शोभा और उगमराज के साथ अपने देवर के कमरे में आ गई. सभी ने देखा झूला खाली था. नीचे जमीन पर या आसपास भी गुन्नू नहीं दिख रहा था.

घर में सभी गुन्नू के नहीं मिलने पर चिंतित हो गए. वे इधर उधर ढूंढने लगे. उसे तलाशते हुए उगमराज घर के स्टोर रूम में चला गया. वहां रखी बाल्टी से उस के पैर टकरा गए. उस में रखा पानी छलक कर उस के पैर पर जा गिरा.

उगमराज खीझता हुआ बोला, ”स्टोररूम में बाल्टी, वह भी पानी से भरी हुई? यह मजदूरों का ही काम होगा. शोभा की नजर बाल्टी पर गई तो उस में उस का बेटा गुन्नू पड़ा था.

”पानी की बाल्टी में यह कैसे आ गया?’’ कहते हुए शोभा ने झट से गुन्नू को अपने सीने लगा लिया. लेकिन यह क्या, उस ने पाया कि उस की सांसें और दिल की धड़कनें सभी बंद हैं. वह रोने लगी. चीखने लगी. बिफरने लगी. बोली, ”चलो, जल्द ले चलो इसे डाक्टर के पास!’’

उगमराज और दूसरे लोगों ने बच्चे की नाक के पास हाथ ले जा कर चैक किया, उस की सांसें जरा भी नहीं चल रही थी. उस की मौत हो चुकी थी.

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इस की सूचना पुलिस को भी दे दी गई. बर थाने के एसएचओ सुखदेव सिंह उगमराज के घर आ गए. उन्होंने बच्चे के मातापिता और घर के अन्य सदस्यों से किसी पर शक होने की जानकारी लेनी चाही. किसी ने इस बारे में कुछ नहीं बताया. कुछ लोगों ने वहां काम करने वाले मजदूरों पर संदेह जताया, लेकिन उन से पूछताछ पर कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई.

थोड़ी देर के लिए बच्चे की हत्या का आरोप घर में काम करने वाले मजदूरों पर भी लगा, लेकिन उन से पूछताछ के बाद कोई नतीजा नहीं निकला.

घटना के अगले दिन 3 जुलाई, 2023 को बच्चे के मातापिता और दूसरे परिजनों ने सरपंच महेंद्र चौहान के साथ अस्पताल में काफी हंगामा किया और हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग करने लगे.

इस हंगामे की सूचना पा कर जेतारण की सीओ सीमा चोपड़ा अस्पताल पहुंच गईं. उन्होंने किसी तरह धरना प्रदर्शन को शांत करवाया और गुन्नू की हत्या का मामला बर थाने में दर्ज करवा दिया. रिपोर्ट में संदेह के आधार पर 2 लोगों पर हत्या का आरोप लगाया गया.

इस वारदात की जांच के सिलसिले में सीओ सीमा ने घटनास्थल की जांच की. उन्होंने पाया कि भीकमचंद के मकान की पहली मंजिल पर निर्माण का कार्य चल रहा था. वहां मजदूरों के अलावा राजमिस्त्री भी थे. मरम्मती का काम भीकमचंद और उन की पत्नी की देखरेख में ही चल रहा था. जांच के दौरान परिजनों का पूरा विवरण जुटाया गया.

पुलिस की पूछताछ 2 दिनों तक लगातार हुई. परिवार, रिश्तेदार, मजदूर और पासपड़ोस के दोस्त आदि से भी गहन पूछताछ हुई. उन से निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर शक की सुई परिवार के ही एक सदस्य पर जा टिकी. वह और कोई नहीं मृतक की चाची गुड़िया  थी.

पुलिस ने पाया कि गुन्नू की मौत से सब से ज्यादा दुखी गुड़िया   थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. रोने से उस की भी तबीयत खराब हो गई थी, जिस से उसे अस्पताल में भरती करवाना पड़ा था.

पानी भरी उस बाल्टी की भी जांच की गई, उस में सुनहरे रंग के सितारे नजर आ रहे थे. उसे देखते ही जांच अधिकारी का माथा ठनका, क्योंकि उसी तरह के कुछ सितारे गुड़िया  के चेहरे पर भी चिपके हुए थे और उस ने जो चुन्नी ओढ़ रखी थी, उस पर भी वैसे ही गोल्डन रंग के सितारे लगे हुए थे. जांच की इस जानकारी के बाद पुलिस का गुड़िया  पर शक होना स्वाभाविक था. अब जरूरत इस की पुष्टि होने की थी.

हालांकि इस बारे में जांच टीम आश्वस्त थी कि गुन्नू की हत्या में गुड़िया  का हाथ हो सकता है. उस की स्थिति में सुधार होने पर सुखेदव सिंह ने पूछताछ के लिए उसे थाने बुलवाया. पूछताछ के लिए जांच टीम ने काफी समझदारी से काम लिया. उस से मनोवैज्ञानिक तरीके सवाल पूछे गए.

पहले तो गुड़िया  ने खुद को निर्दोष बताया, लेकिन जल्द ही वह सीओ सीमा चोपड़ा के उलझे हुए सवालों में फंस गई. उसे बाल्टी में मिले गोल्डन सितारों के बारे में बताया गया और उसे झूठ बोलने वाली मशीन से पूछताछ करवाने की बात कही.

सीमा ने उस से पूछा, ”सचसच बताना, तुम 2 जुलाई को उस वक्त मजदूरों के लिए चाय बनाने के लिए घर आई थी न, जिस समय गुन्नू की मां चंपालाल के यहां खाना खा रही थी?’’

”हां, आई थी.’’ गुड़िया  बोली.

”तुम ने चाय बनाई थी?’’

”नहीं, मैं ने चाय नहीं बनाई थी.’’ गुड़िया  तुरंत बोली.

”तब तुम ने चंपालाल के घर पर महिलाओं से क्यों बोला कि मजदूरों को चाय पिला कर आ रही है?’’

इस क्रौस सवाल पर गुड़िया  उलझ गई. जवाब देने के बजाए ‘हां’ ‘न’ करने लगी. उस की सकपकाहट को देख कर सीमा चौधरी ने एक जबरदस्त डांट लगाई और झापड़ मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि गुड़िया  घबराहट के साथ बोल पड़ी, ”जी…जी मैडम! में बताती हूं…सब कुछ बताती हूं…’’ बोलते बोलते गुड़िया  रोने लगी.

कुछ सेकेंड बाद दुपट्टे से आंसू पोंछती हुई बोलने लगी, ”मुझ से बहुत बड़ा अपराध हो गया, मैं ने गुन्नू की हत्या का अपराध किया है. मुझे जो सजा देनी है, दे दीजिए, लेकिन उस से गुन्नू वापस तो नहीं आ जाएगा न!’’

”तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई एक दुधमुंहे बच्चे को मारने की? उसे तुम ने बेरहमी से पानी में डुबो कर मार डाला… तुम तो बड़ी निर्दयी हो.’’ सीओ डपटती हुई बोली.

”मैडमजी, यही तो मुझे समझ में नहीं आया… मैं ने यह सब संपत्ति के लालच में किया. मैं चाहती थी कि हमारी पुश्तैनी संपत्ति मेरे बेटों को ही मिले… मैं लालच में अंधी हो गई थी.’’

गुड़िया  द्वारा फैमिली क्राइम (Family Crime) करने की बात स्वीकार लिए जाने के बाद उसे न्यायिक हिरासत में ले लिया गया. उस के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

थाना बर के अंतर्गत न्यू कालोनी में रहने वाले भीकमचंद ने दोनों बेटों उत्तमचंद और उगमराज को अलगअलग कपड़े की दुकान खुलवा दी थी. उत्तमचंद की दुकान बालुंदा गांव में थी, जबकि उगमराज की दुकान बर में ही थी.

दोनों सुबह होते ही अपनीअपनी दुकानों के लिए निकल पड़ते थे. दिन भर दुकान संभालने के बाद शाम को घर वापस लौट आते थे. दोनों संयुक्त परिवार में ही रह रहे थे. परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा था, सिर्फ गुड़िया  के मन में ही खलबली मची रहती थी.

उसे बेटे की कमी खलती थी. जब भी वह शोभा के छोटे बेटे गुन्नू को देखती थी, उस के दिल में एक टीस उभरती थी, किंतु मन मसोस कर रह जाती थी. गुन्नू के जन्म के बाद से ही उस के व्यवहार में बदलाव आ गया था. इस के जन्म से पहले गुड़िया  चाहती थी कि देवर उगमराज उस के 2 बेटों में से एक को गोद ले ले.

इस के पीछे उस की मानसिकता संपत्ति का बंटवारा होने से रोकने की थी. उसे पता था कि संपत्ति का आधा भाग गोद दिए बेटे को मिल जाएगा. किंतु गुन्नू के पैदा होने पर उस की सोच पर पानी फिर गया. उस के बाद उस के दिमाग को संपत्ति के एक और हकदार की बात कचोटने लगी.

गुड़िया  को संपत्ति के बंटवारे का डर सताने लगा. वह देवरानी शोभा से जलने लगी. क्योंकि उस की हरसत पर पानी फिर गया था. उस के बाद ही उस ने गुन्नू की हत्या की योजना बना ली थी. उसे सिर्फ मौके की तलाश थी, जो उसे चंपालाल के यहां घरेलू आयोजन के मौके पर 2 जुलाई को मिल गया था.

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उस रोज गुड़िया  भी चंपालाल के यहां कार्यक्रम में शामिल थी. कार्यक्रम के दौरान जब भोजन की तैयार होने लगी, तब गुड़िया  मजदूरों को चाय देने के बहाने से अपने घर आ गई. वहां उस ने गुन्नू को झूले में सोया देखा. उस की आंखों में तब तक चमक आ चुकी थी. वह स्टोर में रखी बाल्टी बाहर ले आई. उस में मटके का पानी भर दिया. पानी भरी बाल्टी दोबारा स्टोर में रख आई.

गुड़िया  ने गहरी नींद में सो रहे गुन्नू को उल्टा कर के पानी भरी बाल्टी में डाल दिया. वह पानी में छटपटाने लगा. कुछ देर तक उस की छटपटाहट वह देखती रही. जब उस की सांस रुकने के बाद पानी के बुलबुले आने बंद हो गए, तब गुड़िया  चुपके से चंपालाल के यहां कार्यक्रम में चली आई.

गुन्नू के पानी में छटपटाने के दरम्यान गुड़िया  की सितारों लगी चुन्नी पानी में गिर कर गुन्नू की देह पर लिपट गई थी. जिस से उस के कुछ सितारे बाल्टी के तले और गुन्नू के शरीर पर भी चिपक गए थे.

गुड़िया  द्वारा अपना जुर्म स्वीकारे जाने के बाद उस के बयान को कलमबद्ध कर लिया गया था. पूरे मामले की जांच के बाद गुड़िया  5 जुलाई, 2023 को कोर्ट में पेश कर दी गई थी. वहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

देवर को बचाने के लिए ननद की हत्या

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गैनी गांव में छोटेलाल कश्यप अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में उन की पत्नी रामवती के अलावा 2 बेटे नरेश व तालेवर, 2 बेटियां सुनीता व विनीता थीं. छोटेलाल खेती किसानी का काम करते थे. इसी की आमदनी से उन्होंने बच्चों की परवरिश की. बच्चे शादी लायक हो गए तो उन्होंने बड़े बेटे नरेश का विवाह नन्ही देवी नाम की युवती से करा दिया.

कालांतर में नन्ही ने एक बेटे शिवम व एक बेटी सीमा को जन्म दिया. बाद में उन्होंने बड़ी बेटी सुनीता का भी विवाह कर दिया. अब 2 बच्चे शादी के लिए रह गए थे. छोटेलाल उन दोनों की शादी की भी तैयारी कर रहे थे.

इसी बीच दूसरे बेटे तालेवर ने ऐसा काम कर दिया, जिस से उन की गांव में बहुत बदनामी हुई. तालेवर ने सन 2014 में अपने ही पड़ोस में रहने वाली एक महिला के साथ रेप कर दिया था. जिस के आरोप में उस को जेल जाना पड़ा था.

उधर छोटेलाल की छोटी बेटी विनीता भी 20 साल की हो चुकी थी. यौवन की चमक से उस का रूपरंग दमकने लगा था. वह ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी, पर उसे फिल्म देखना, फैशन के अनुसार कपड़े पहनना अच्छा लगता था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे ही विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो फिल्मों की और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही होती थी. यह उम्र का तकाजा भी था.

विनीता के खयालों में भी एक अपने दीवाने की तसवीर थी, लेकिन यह तसवीर कुछ धुंधली सी थी. खयालों की तसवीर के दीवाने को उस की आंखें हरदम तलाशती थीं. वैसे उस के आगेपीछे चक्कर लगाने वाले युवक कम नहीं थे, लेकिन उन में से एक भी ऐसा न था, जो उस के खयालों की तसवीर में फिट बैठता हो.

बात करीब 2 साल पहले की है. विनीता अपने पिता के साथ एक रिश्तेदारी में बरेली के कस्बा आंवला गई, जो उस के यहां से करीब 13 किलोमीटर दूर था. वहां से वापसी में वह आंवला बसअड्डे पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी तभी एक नवयुवक जोकि वेंडर था, पानी की बोतल बेचते हुए उस के पास से गुजरा.

उस युवक को देख कर विनीता का दिल एकाएक तेजी से धड़कने लगा. निगाहें तो जैसे उस पर ही टिक कर रह गई थीं. उस के दिल से यही आवाज आई कि विनीता यही है तेरा दीवाना, जिसे तू तलाश रही थी. उस युवक को देखते ही उस के खयालों में बनी धुंधली तसवीर बिलकुल साफ हो गई.

वह उसे एकटक निहारती रही. उसे इस तरह निहारता देख कर वह युवक भी बारबार उसी पर नजर टिका देता. जब उन की निगाहें आपस में मिल जातीं तो दोनों के होंठों पर मुसकराहट तैरने लगती.

उसी समय बस आ गई और विनीता अपने पिता के साथ बस में बैठ गई. वह पिता के साथ बस में बैठ जरूर गई थी, पर पूरे रास्ते उस की आंखों के सामने उस युवक का चेहरा ही घूमता रहा. विनीता उस युवक के बारे में पता कर के उस से संपर्क करने का मन बना चुकी थी.

अगले ही दिन सहेली के यहां जाने का बहाना बना कर विनीता आंवला के लिए निकल गई. बसअड्डे पर खड़े हो कर उस की आंखें उसे तलाशने लगीं. कुछ ही देर में वह युवक विनीता को दिख गया. पर उस युवक ने विनीता को नहीं देखा था.

विनीता उस पर नजर रख कर उस का पीछा कर के उस के बारे में जानने की कोशिश में लग गई. कुछ देर में ही उस ने उस युवक के बारे में किसी से जानकारी हासिल कर उस का नाम व मोबाइल नंबर पता कर लिया. उस युवक का नाम हरि था और वह अपने परिवार के साथ आंवला में ही रहता था.

एक दिन हरि सुबह के समय अपनी छत पर बैठा था, तभी उस का मोबाइल बज उठा. हरि ने स्क्रीन पर बिना नंबर देखे ही काल रिसीव करते हुए हैलो बोला.

‘‘जी, आप कौन बोल रहे हैं?’’ दूसरी ओर से किसी युवती की मधुर आवाज सुनाई दी तो हरि चौंक पड़ा.

वह बोला, ‘‘आप कौन बोल रही हैं और आप को किस से बात करनी है?’’

‘‘मैं विनीता बोल रही हूं. मुझे अपनी दोस्त से बात करनी थी, लेकिन लगता है नंबर गलत डायल हो गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, आप को अपनी दोस्त का नंबर सेव कर के रखना चाहिए. ऐसा होगा तो दोबारा गलती नहीं होगी.’’

‘‘आप पुलिस में हैं क्या?’’

‘‘जी नहीं, आम आदमी हूं.’’

‘‘किसी के लिए तो खास होंगे?’’

‘‘आप बहुत बातें करती हैं.’’

‘‘अच्छी या बुरी?’’

‘‘अच्छी.’’

‘‘क्या अच्छा है, मेरी बातों में?’’

अब हंसने की बारी थी हरि की. वह जोर से हंसा, फिर बोला, ‘‘माफ करना, मैं आप से नहीं जीत सकता.’’

‘‘और मैं माफ न करूं तो?’’

‘‘तो आप ही बताइए, मैं क्या करूं?’’ हरि ने हथियार डाल दिए.

‘‘अच्छा जाओ, माफ किया.’’

दरअसल विनीता को हरि का मोबाइल नंबर तो मिल गया था. लेकिन विनीता के पास खुद का मोबाइल नहीं था, इसलिए उस ने अपनी सहेली का मोबाइल फोन ले कर बात की थी. पहली ही बातचीत में दोनों काफी घुलमिल गए थे. दोनों के बीच कुछ ऐसी बातें हुईं कि दोनों एकदूसरे के प्रति अपनापन महसूस करने लगे.

फिर उन के बीच बराबर बातें होने लगीं.  विनीता ने हरि को बता दिया था कि उस दिन अनजाने में उस के पास काल नहीं लगी थी बल्कि उस ने खुद उस का नंबर हासिल कर के उसे काल की थी और उन की मुलाकात भी हो चुकी है.

जब हरि ने मुलाकात के बारे में पूछा तो विनीता ने आंवला बसअड्डे पर हुई मुलाकात का जिक्र कर दिया. हरि यह जान कर बहुत खुश हुआ क्योंकि उस दिन विनीता का खूबसूरत चेहरा आंखों के जरिए उस के दिल में उतर गया था.

इस के बाद दोनों एकदूसरे से रूबरू मिलने लगे. इसी बीच एक मुलाकात में दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया. दिनप्रतिदिन उन का प्यार प्रगाढ़ होता जा रहा था. विनीता तो दीवानगी की हद तक दिल की गहराइयों से हरि को चाहने लगी थी.

धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. प्रेम दीवानों के प्यार की खुशबू जब जमाने को लगती है तो वह उन दीवानों पर तरहतरह की बंदिशें लगाने लगता है. यही विनीता के परिजनों ने किया. विनीता के घर वालों को पता चल गया कि वह जिस लड़के से मिलती है, वह बदमाश टाइप का है.

इसलिए उन्होंने विनीता पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए. लेकिन तमाम बंदिशों के बाद भी विनीता हरि से मिलने का मौका निकाल ही लेती थी.

धीरेधीरे दोनों के इश्क के चर्चे गांव में होने लगे. गांव के लोगों ने कई बार विनीता को हरि के साथ देखा. इस पर वह तरहतरह की बातें बनाने लगे. गांव वालों के बीच विनीता के इश्क के चर्चे होने लगे. इस से छोटेलाल की गांव में बदनामी हो रही थी.

घरपरिवार के सभी लोगों ने विनीता को खूब समझाया लेकिन प्यार में आकंठ डूबी विनीता पर इस का कोई असर नहीं हुआ. पूरा परिवार गांव में हो रही बदनामी से परेशान था. रोज घर में कलह होती लेकिन हो कुछ नहीं पाता था.

29 सितंबर की सुबह करीब 8 बजे विनीता अपनी भाभी नन्ही देवी के साथ दिशामैदान के लिए खेतों की तरफ गई थी. कुछ समय बाद नन्ही देवी घर लौटी तो विनीता उस के साथ नहीं थी. घर वालों ने उस से विनीता के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि जब वह दिशामैदान के बाद बाजरे के खेत से बाहर निकली तो उसे विनीता नहीं दिखी.

उस ने सोचा कि विनीता शायद अकेली घर चली गई होगी. लेकिन यहां आ कर पता चला कि वह यहां पहुंची ही नहीं है. नन्ही ने कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि विनीता अपनी किसी सहेली के यहां चली गई हो.

कुछ ही देर में गांव के एक किसान चंद्रपाल ने विनीता के घर पहुंच कर बताया कि रामानंद शर्मा के बाजरे के खेत में विनीता की लाश पड़ी है. उस समय छोटेलाल पत्नी के साथ डाक्टर के पास दवा लेने गए थे. छोटेलाल के धान के खेत के बराबर में ही रामानंद का बाजरे का खेत था.

यह खबर सुन कर सभी घर वाले लगभग दौड़ते हुए घटनास्थल पर पहुंचे. विनीता की लाश देख कर सब बिलखबिलख कर रोने लगे. इसी बीच वहां गांव के काफी लोग पहुंच गए थे. ग्रामप्रधान भी मौके पर थे. उन्होंने घटना की सूचना स्थानीय थाना अलीगंज को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. विनीता के पेट में गोली लगने के निशान थे. निशान देख कर ऐसा लग रहा था कि किसी ने काफी नजदीक से गोली मारी है. इस का मतलब था कि हत्यारे को विनीता काफी अच्छी तरह से जानती थी. इसी बीच रोतेबिलखते छोटेलाल और उन की पत्नी भी वहां पहुंच गए.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही और बाकी घर वालों से आवश्यक पूछताछ की. फिर विनीता की लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने वापस आ कर उन्होंने छोटेलाल कश्यप की लिखित तहरीर पर गांव के ही इंद्रपाल, हरपाल, उमाशंकर और धनपाल के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. तहरीर में हत्या का कारण इन लोगों से रंजिश बताया गया था.

थानाप्रभारी सिंह ने केस की जांच शुरू की तो पता चला कि विनीता का भाई तालेवर अपने मकान के पीछे रहने वाली युवती से दुष्कर्म के मामले में 2014 से जेल में बंद है. पुलिस को पता चला कि जिस युवती ने रेप का आरोप लगाया था, छोटेलाल ने उस युवती के पिता को भी विनीता की हत्या में आरोपी बनाया गया था.

साथ ही विनीता के किसी हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात पता चली. बेटी की इस हरकत से घर वाले काफी परेशान थे. इस से पुलिस का शक विनीता के परिवार पर केंद्रित हो गया.

थानाप्रभारी ने सोचा कि कहीं एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश तो नहीं की गई. विनीता से छुटकारा तो मिलता ही साथ ही तालेवर को जेल भेजने वाले को भी जेल की चारदीवारी में कैद कराने में सफल हो जाते.

पूरी घटना की जांच में यही निष्कर्ष निकला कि परिवार का ही कोई सदस्य इस घटना में शामिल है. लेकिन मांबाप तो थे नहीं, उन का बेटा नरेश गांव में नहीं था. बची बेटे की पत्नी नन्ही जो विनीता के साथ ही गई थी और अकेली वापस लौटी थी. नन्ही पर ही हत्या का शक गहराया. थानाप्रभारी ने गांव के लोगों से पूछताछ की तो ऐसे में एक व्यक्ति ऐसा मिल गया, जिस ने ऐसा कुछ बताया कि थानप्रभारी की आंखों में चमक आ गई.

इस के बाद 2 अक्तूबर को उन्होंने नन्ही देवी को घर से पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. जब महिला आरक्षी की उपस्थिति में नन्ही से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गई. उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम के साथ मिल कर किए जाने की बात स्वीकार कर ली और पूरी कहानी बयान कर दी.

विनीता के हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात से घर का हर कोई नाराज था. समझाने के बावजूद भी विनीता नहीं मान रही थी. गांव में हो रही बदनामी से घर वालों का जीना मुहाल हो गया था.

नन्ही अपनी ननद विनीता की कारगुजारियों से कुछ ज्यादा ही खफा थी. वह अपने परिवार को बदनामी से बचाना चाहती थी. इसलिए उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम से कराने का फैसला कर लिया.

इस हत्या में उस इंसान को भी फंसा कर  जेल भेजने की योजना बना ली, जिस की बेटी से दुष्कर्म के मामले में उस का देवर तालेवर जेल में बंद था. उस इंसान के जेल जाने पर उस से समझौते का दबाव बना कर वह देवर तालेवर को जेल से छुड़ा सकती थी. घर में एक .315 बोर का तमंचा पहले से ही रखा हुआ था. नन्ही ने शिवम के साथ मिल कर विनीता की हत्या की पूरी योजना बना ली.

29 सितंबर की सुबह 8 बजे नन्ही ने बेटे शिवम को तमंचा ले कर घर से पहले ही भेज दिया. फिर विनीता को साथ ले कर दिशामैदान के लिए खुद घर से निकल पड़ी. विनीता को ले कर नन्ही अपने धान के खेत के बराबर में बाजरे के खेत में पहुंची. शिवम वहां पहले से मौजूद था.

विनीता के वहां पहुंचने पर शिवम ने तमंचे से विनीता पर फायर कर दिया. गोली सीधे विनीता के पेट में जा कर लगी. विनीता जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पी, फिर शांत हो गई.

विनीता की लीला समाप्त करने के बाद शिवम ने अपने धान के खेत में तमंचा छिपाया और वहां से छिपते हुए निकल गया. नन्ही भी वहां से घर लौट गई. लेकिन पुलिस के शिकंजे से वह न अपने आप को बचा सकी और न ही अपने बेटे को.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही को मुकदमे में 120बी का अभियुक्त बना दिया. शिवम की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी पुलिस ने बरामद कर लिया.

आवश्यक लिखापढ़ी के बाद नन्ही को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया, और शिवम को बाल सुधार गृह.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में शिवम नाम परिवर्तित है.

सुहागरात के बाद खुल कर नाची मौत

एसडीएम पत्नी का हत्यारा बना पति

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या

सुहागरात के बाद खुल कर नाची मौत – भाग 4

22 जून, 2023 को गाजेबाजे के साथ निकासी हुई और शाम 4 बजे बारात गंगापुरा के लिए रवाना हुई. रात 8 बजे वेदराम व उस के परिजनों ने बारात का स्वागत किया. बारात में शिववीर ने जम कर डांस किया. डीजे की धुन पर दूल्हा दुलहन भी खूब थिरके.

शिववीर वैसे तो खुश था, लेकिन छोटीछोटी बातों को ले कर वह लड़की पक्ष के लोगों से भिड़ जा रहा था. कभी लाइट को ले कर तो कभी पानी को ले कर वह नाराज हो रहा था. घर वालों के समझाने पर वह चुप हो जाता. डीजे बंद होने पर तो वह इतना नाराज हुआ कि वह रात में ही मोटरसाइकिल से घर वापस आ गया.

23 जून की सुबह वेदराम व उस की पत्नी सुषमा ने अपनी लाडो को लाल जोड़े में आंसुओं के बीच विदा किया. दोपहर बाद बारात गोकुलपुरा गांव वापस आ गई. उस के बाद ज्यादातर रिश्तेदार तो चले गए, लेकिन सोनू की बहन प्रियंका, जीजा सौरभ, मामी सुषमा तथा दोस्त दीपक उपाध्याय रुक गए. शाम तक मुंहदिखाई व अन्य रस्मेें होती रहीं.

ढोलक की थाप पर नाचगाना भी हुआ. फिर देर रात तक डीजे पर डांस होता रहा. सोनू, सोनी भी खूब थिरके. दीपक, सौरभ व शिववीर ने भी खूब डांस किया.

क्या हुआ था नशीली कोल्ड ड्रिंक पीने के बाद

रात 12 बजे कर्ज से परेशान शिववीर कोल्ड ड्रिंक लाया. बस यहीं से उस ने अपने मंसूबों को अंजाम देना शुरू कर दिया. उस ने चालाकी से कोल्ड ड्रिंक में नशीली गोलियों का पाउडर मिला दिया. फिर एकएक गिलास सभी को थमा दिया. सभी कोल्ड ड्रिंक पीने लगे. कोल्ड ड्रिंक पीने के दौरान ही सोनी की मां सुषमा की काल आई. सोनी ने काल रिसीव की और बताया कि ससुराल में सब ठीक है. अभी चंद मिनट पहले ही डांस बंद हुआ है. जेठजी (शिववीर) कोल्ड ड्रिंक ले कर आए हैं, हम सभी पी रहे हैं.

इधर कोल्ड ड्रिंक पीने के बाद सौरभ, भुल्लन व दोस्त दीपक उपाध्याय आंगन में जा कर लेट गए तथा सोनू की मामी सुषमा, भाभी डौली, बहन प्रियंका तथा मां शारदा देवी बरामदे में सो गईं. बरामदे के पास ही सुभाषचंद्र खटिया पर लेट गए. सोनू व उस की पत्नी सोनी सुहागरात मनाने छत पर बने कमरे में जा कर लेट गए. उन्होंने जीने का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

नशीली कोल्ड ड्रिंक पी कर कुछ देर बाद सभी सो गए. लेकिन शिववीर की आंखों से नींद कोसों दूर थी. रात 3 बजे के बाद वह कमरे में आया. उस ने छिपा कर रखा तमंचा निकाला, फिर लोड कर कमर में खोंस लिया.

इस के बाद फरसा ले कर कमरे से बाहर आया. चूंकि जीने का दरवाजा बंद था, अत: वह दीवार के सहारे सीढ़ी लगा कर छत पर पहुंचा. कमरे के अंदर सोनू व सोनी अस्तव्यस्त हालत में लेटे थे. शायद वे सुहागरात मनाने के बाद सुख की नींद सो रहे थे. शिववीर ने एक घृणाभरी नजर दोनों पर डाली फिर फरसे से गले पर वार कर दोनों को मार डाला.

Ghatna Sthan Par Pada Nav-Dampati Ke Shav

घटनास्थल पर पड़े नव दंपति के शव

नवदंपति की हत्या करने के बाद शिववीर जीने का दरवाजा खोल कर आंगन में आया. यहां भाई भुल्लन, बहनोई सौरभ व भाई का दोस्त दीपक सो रहा था. शिववीर ने फरसे से गरदन व चेहरे पर बारीबारी से वार कर तीनों को मौत की नींद सुला दिया.

5 हत्याएं करने के बाद शिववीर आंगन से बरामदे में आया. यहां उस ने फावड़े से अपनी पत्नी डौली व मामी सुषमा पर वार किया. डौली का पैर तथा सुषमा का हाथ जख्मी हो गया. वे दोनों चीखीं तो सुभाष, उस की पत्नी शारदा तथा बेटी प्रियंका जाग गईं.

उन तीनों ने शिववीर का रौद्र रूप देखा तो वे कांप उठीं. फिर भी वह उसे पकडऩे दौड़ीं. इसी बीच शिववीर ने फरसे से पिता पर वार कर दिया. लेकिन फरसा घूम जाने से उस की जान बच गई. केवल हाथ में ही मामूली चोट आई.

हिम्मत जुटा कर सुभाष, शारदा व प्रियंका ने शिववीर को पकडऩे का प्रयास किया तो वह मकान के पीछे की ओर भागा. परिवार का कत्ल करने के बाद शिववीर ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और कनपटी से सटा कर फायर कर दिया. फायर की आवाज सुन कर प्रियंका व शारदा वहां पहुंचीं तो शिववीर की मौत हो चुकी थी. मांबेटी तब चीखनेचिल्लाने लगीं.

शारदा व प्रियंका की चीखपुकार सुन कर आसपड़ोस के लोग आ गए. उन्होंने घर के अंदर का खौफनाक मंजर देखा तो सभी की रूह कांप उठी. उस के बाद तो गांव में सनसनी फैल गई. गोकुलपुरा ही नहीं, बल्कि आसपास के गांव के लोग उमड़ पड़े.

पुलिस को सूचना मिली तो आला अधिकारी भी मौके पर आ गए और जांच में जुट गए. प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया के पत्रकारों का जमावड़ा भी शुरू हो गया.

Deepak Kumar (I.G.)

आईजी दीपक कुमार

पुलिस अधिकारियों ने सब से पहले घायलों को अस्पताल भेजा, फिर जरूरी काररवाई पूरी कर शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाया. उस के बाद घटना के संबंध में घर के मुखिया सुभाष से जानकारी हासिल की.

Rajesh Kumar (A.S.P.)

एएसपी राजेश कुमार

पूछताछ के बाद किशनी थाने के एसएचओ अनिल कुमार ने घर के मुखिया सुभाषचंद्र यादव की तहरीर पर बड़े शिववीर के खिलाफ हत्या का मुकदमा तो दर्ज किया, लेकिन आरोपी द्वारा भी आत्महत्या कर लेने से उन्होंने फाइल बंद कर दी.

कथा संकलन तक डौली और सुषमा का इलाज सैफई के अस्पताल में चल रहा था. उन की जान तो बच गई, लेकिन दिल के जख्म शायद ही जीवन में भर सकें.

प्रियंका का सुहाग भाई ने ही उजाड़ दिया. उस के जीवन में अब शायद ही कभी बहार आए. सुभाष यादव व उन की पत्नी शारदा भी पश्चाताप के आंसू बहा रहे थे. उन का कहना था कि जब परिवार ही नष्ट हो गया तो वह जिंदा रह कर क्या करेंगे?

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मौसी के हुस्न का शिकारी

नय अपने दोस्त पिंटू के साथ होटल खोलना चाहता था, इसलिए उसे 15 हजार रुपयों की सख्त जरूरत थी. उस ने पिंटू को पूरा भरोसा दिलाया था कि रुपयों  की व्यवस्था कर लेगा. क्योंकि उसे विश्वास था कि उस की मौसी इंद्रा उसे रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने तो रुपए देने से साफ मना कर दिया था. यह बात विनय को बड़ी नागवार लगी थी, क्योंकि मौसी के इस तरह मना कर देने से दोस्त के सामने उस की बड़ी बेइज्जती हुई थी.

इस बात को ले कर पिंटू अकसर उस की हंसी उड़ाने लगा था. मजबूरी में विनय खून का घूंट पी कर रह जाता था. तब उसे मौसी पर बहुत गुस्सा आता था. धीरेधीरे उस का यह गुस्सा इस कदर बढ़ता गया कि उस ने धोखा देने वाली मौसी को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. वह उस की हत्या कर के उस के घर में रखी नकदी और गहने लूट लेना चाहता था.

हमेशा की तरह 27 जनवरी को जब पिंटू ने विनय को चिढ़ाने के लिए रुपयों के बारे में पूछा तो उस ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘चिंता मत करो दोस्त, अब बहुत जल्द रुपयों की व्यवस्था हो जाएगी.’’

‘‘वह कैसे, मौसी रुपए देने को तैयार हो गई क्या? पहले तो उस ने मना कर दिया था, अब कैसे राजी हो गई?’’ पिंटू ने उसे जलाने के लिए मुसकराते हुए कहा.

‘‘भई सीधी अंगुली से घी न निकले तो अंगुली टेढ़ी कर देनी चाहिए. मौसी सीधे रुपए नहीं दे रही न, देखो अब मैं कैसे उस से रुपए लेता हूं.’’ विनय ने कहा.

‘‘भई, जरा हमें भी तो बता मौसी से कैसे रुपए लेगा?’’ पिंटू ने हैरानी से पूछा.

‘‘मौसी के पास काफी गहने हैं. घर खर्च के लिए 10-5 हजार रुपए हमेशा घर में रखे ही रहते हैं. इस के अलावा आलोक भैया बिजनैस करते हैं, उन के भी कुछ न कुछ रुपए रखे ही रहते होंगे. मैं सोच रहा हूं मौसी की हत्या कर के उन के गहने और रुपए हथिया लूं.’’ विनय ने कहा, ‘‘अब तू बता, तेरा क्या इरादा है? इस मामले में तू मेरा साथ देगा या नहीं?’’

‘‘यार जिंदगी का सवाल है. इसलिए मैं तेरा साथ देने को तैयरा हूं. लेकिन पकड़े गए तो जिंदगी बनने के बजाय बिगड़ जाएगी.’’ पिंटू ने चिंता व्यक्त की.

‘‘मैं ने ऐसी योजना बना रखी है कि किसी को पता ही नहीं चलेगा. फिर मौसी पूरे दिन घर में अकेली ही रहती हैं. हम अपना काम कर के आराम से चुपचाप चले जाएंगे. बस इतना ध्यान रखना होगा कि कोई पड़ोसी न देखने पाए.’’ विनय ने कहा.

पिंटू ने हामी भर दी तो विनय ने उसे अपनी योजना समझा कर अगले दिन यानी 28 जनवरी को ही उसे अंजाम देने की तैयारी कर ली. अगले दिन सुबह ही पिंटू विनय के घर पहुंच गया. दोनों ट्रक से उन्नाव के लिए रवाना हो गए. विनय की मौसी का घर उन्नाव बाईपास के पूरननगर में था. इसलिए दोनों बाईपास पर ही उतर गए. वहां से दोनों पैदल ही चल पड़े.

जिस समय विनय पिंटू के साथ अपनी मौसी इंद्रा के घर पहुंचा, उस के मौसा प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव अपनी ड्यूटी पर राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय जा चुके थे तो मौसेरा भाई आलोक लुकइयाखेड़ा स्थित अपनी कंप्यूटर की दुकान पर. इंद्रा घर में अकेली ही थी. विनय ने घंटी बजाई तो उन्होंने झट दरवाजा खोल दिया.

विनय और पिंटू को देख कर इंद्रा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, अंदर आओ. आज बहुत दिनों बाद आए हो?’’

‘‘हां, आप से मिले बहुत दिन हो गए थे, इसीलिए सोचा कि चलो आज मौसी से मिल आते हैं.’’ कहते हुए विनय अंदर आ गया.

‘‘बहुत अच्छा किया. इधर कई दिनों से तुम्हारी याद आ रही थी.’’ इंद्रा ने विनय के कंधे पर हाथ रख कर सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

इतना कह कर इंद्रा रसोई में चाय बनाने चली गई तो विनय और पिंटू अपनी योजना को अंजाम देने के बारे में खुसुरफुसुर करने लगे. विनय ने टीवी की आवाज तेज कर दी, जिस से हत्या करते समय मौसी चीखे भी तो उस की आवाज उसी में दब जाए. इंद्रा ने चाय और नमकीन ला कर रखी तो सभी खानेपीने लगे.

चाय पीते हुए विनय ने कहा, ‘‘मौसी, मैं आप से होटल खोलने के लिए 15 हजार रुपए कब से मांग रहा हूं. लेकिन आप दे नहीं रहीं हैं. आप के अलावा कोई दूसरा मेरी मदद नहीं कर सकता, इसलिए आप कैसे भी रुपयों की व्यवस्था कर दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें न जाने कितने रुपए दे चुकी हूं, इस का तुम्हारे पास कोई हिसाब है. जब देखो, तब तुम रुपए लेने आ जाते हो,’’ इंद्रा ने नाराज हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आदत पड़ गई है, मुझ से रुपए ऐंठने की. लेकिन अब मैं तुम्हें एक कौड़ी नहीं दूंगी. अगर तुम ने ज्यादा परेशान किया तो तुम्हारी शिकायत तुम्हारे मौसा से कर दूंगी.’’

मौसी की बातें सुन कर विनय गुस्से से पागल हो उठा. वह तो पिंटू के साथ उस की हत्या की योजना बना कर ही आया था, इसलिए फुरती से उठा और सामने बैठी मौसी को दबोच कर बोला, ‘‘तू मौसा से मेरी शिकायत करेगी, शिकायत तो तब करेगी, जब जिंदा रहेगी. मैं अभी तुझे जान से मारे देता हूं.’’

कह कर विनय ने अपने गले में लिपटा मफलर निकाला और मौसी के गले में लपेट कर कसने लगा. दबाव से इंद्रा की सांस रुकने लगी तो वह छटपटाने लगी. उस ने बचाव के लिए हाथपैर बहुत मारे, लेकिन गुस्से में पागल विनय फंदे को कसता गया. कुछ देर छटपटाने के बाद इंद्रा का शरीर शिथिल पड़ गया.

विनय को लगा कि मौसी का खेल खत्म हो गया है तो उस ने मफलर छोड़ दिया. उस के मफलर छोड़ते ही इंद्रा लुढ़क गई. विनय के साथ आए पिंटू को लगा कि अगर इंद्रा जिंदा रह गई तो उन का भेद खुल जाएगा. उस के बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी. यह सोच कर पिंटू ने घर में रखी सिल उठा कर इंद्रा के सिर पर पटक दिया, जिस से उस का सिर फट गया.

इंद्रा की हत्या करने के बाद विनय और पिंटू अलमारी की चाबी ढूंढ़ने लगे. जल्दी ही उन्हें चाबी मिल गई. विनय ने अलमारी खोल कर उस के लौकर में रखे सोने के एक जोड़ी झुमके, सोने की एक जंजीर, अंगूठी, 1 जोड़ी चांदी की पायल निकाल लिए. विनय को अलमारी में उतने रुपए नहीं मिले, जितने कि उसे उम्मीद थी. अलमारी से उसे मात्र 15 सौ रुपए ही मिले. चलते समय उस ने मौसी का मोबाइल भी ले लिया था. घर से निकल कर उन्होंने बाहर से दरवाजे की कुंडी बंद कर दी और भाग गए. घर से बाहर आते ही विनय ने मौसी के मोबाइल का स्विच औफ कर दिया था.

दोपहर को आलोक को कोई काम पड़ा तो उस ने अपनी मम्मी इंद्रा को फोन किया. लेकिन मम्मी के फोन का स्विच औफ था. काफी देर यही हाल रहा तो परेशान हो कर वह घर आ गया. उस ने दरवाजे पर बाहर से कुंडी लगी देखी तो सकते में आ गया. उसे लगा कि शायद मम्मी घर पर नहीं हैं. दरवाजा खोल कर वह घर के अंदर दाखिल हुआ तो खून से सनी मम्मी की लाश देख कर वह चीखने लगा. उस का चीखना सुन कर आसपड़ोस वाले आ गए.

इंद्रा की खून से सनी लाश देख कर पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि कोई उस की हत्या कर गया है. सूचना पा कर प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव भी आ गए. अलमारी खुली थी और उस में रखे गहने, नकदी और उन की पत्नी का मोबाइल गायब था. लूट और हत्या के इस मामले की जानकारी थाना कोतवाली को दी गई.

एक महिला की हत्या और लूट की सूचना मिलते ही प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया था. सारी काररवाई निपटाने के बाद कोतवाली प्रभारी धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी मृतका इंद्रा के बेटे आलोक कुमार श्रीवास्तव को साथ ले कर कोतवाली आ गए, जहां उस की तहरीर पर हत्या और लूट का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

अभियुक्तों तक पहुंचने का पुलिस के पास एक ही सूत्र था, मृतका का मोबाइल. पुलिस ने उसे सर्विलांस पर लगवा दिया. लेकिन मोबाइल का स्विच औफ था, इसलिए उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. पुलिस ने इंद्रा के हत्यारों तक पहुंचने के लिए बहुत हाथपैर मारे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

इस मामले का खुलासा न होते देख पुलिस अधीक्षक रतन कुमार श्रीवास्तव ने अपर पुलिस अधीक्षक रामकिशन यादव और क्षेत्राधिकारी (सदर) मनोज अवस्थी की देखरेख में एक पुलिस टीम गठित की, जिस का नेतृत्व प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी को ही सौंपा गया.

टीम का गठन होते ही संयोग से घटना के लगभग महीने भर बाद इंद्रा के मोबाइल की लोकेशन कानपुर के नौबस्ता की मिल गई. उस नंबर का भी पता चल गया, जो नंबर उस में उपयोग में लाया जा रहा था.

पुलिस टीम ने लोकेशन और नंबर के आधार पर उस आदमी को पकड़ लिया, जिस के पास वह मोबाइल फोन था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह मोबाइल फोन उस ने सपई गांव के रहने वाले पिंटू सिंह चंदेल से खरीदा था.

पुलिस को उस आदमी से पिंटू का पता मिल गया था. छापा मार कर पुलिस ने 3 मार्च को पिंटू सिंह चंदेल को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने कोतवाली ला कर जब उस से इंद्रा की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के स्वीकार कर लिया कि मृतका की बहन के बेटे विनय के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था.

पिंटू से पूछताछ के बाद पुलिस ने विनय की तलाश में उस के घर छापा मारा. लेकिन वह नहीं मिला. तब पुलिस ने पिंटू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस विनय श्रीवातस्तव की तलाश में पूरे जोरशोर से लग गई थी, लेकिन पुलिस से बचने के लिए वह छिप गया था. आखिर 13 मार्च को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर विनय को भी गिरफ्तार कर लिया.

जब उस का दोस्त पकड़ा जा चुका था तो विनय के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं था. इसलिए उस ने मौसी की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस पूछताछ में उस ने जो कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली थी. क्योंकि विनय के अपनी मां समान ही नहीं, उम्र में दोगुनी से भी ज्यादा मौसी से अवैध संबंध थे. इस तरह अवैध संबंधों की नींव पर टिकी लूट और हत्या की यह कहानी कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना कोतवाली के मोहल्ला पूरननगर में रहते थे प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव. वह राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय में वार्डब्वाय थे. उन के परिवार में पत्नी इंद्रा के अलावा बेटा आलोक और बेटी ज्योति थी. पढ़ाई पूरी कर के आलोक ने लुकइयाखेड़ा में कंप्यूटर की दुकान खोल ली थी. ज्योति की भी पढ़ाई पूरी हो गई तो प्रकाशचंद्र ने उस की शादी कर दी थी.

इंद्रा की बड़ी बहन मंजूलता की शादी कानपुर के थाना नौबस्ता के सरस्वतीनगर के रहने वाले अरुणकुमार श्रीवास्तव के साथ हुई थी. अरुण कुमार लोहिया फैक्ट्री में नौकरी करते थे. उन के कुल 3 बेटे थे, विकास, विनय और विनीत. पढ़ाई पूरी होने के बाद विकास ने लिटिल स्टार एंजल स्कूल में नौकरी कर ली थी, तो बीकौम करने के बाद विनय जूते का काम करने लगा था. सब से छोटे विनीत ने बीकौम कर के लैपटौप रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया था. 6 साल पहले अरुण कुमार की मौत हो गई तो घर की सारी जिम्मेदारी मंजूलता पर आ गई थी.

विनय का मन जूते के काम में कम, क्रिकेट खेलने में ज्यादा लगता था. मैच खेलने के चक्कर में ही वह इधरउधर घूमता रहता था. खाली होने की वजह से वह अकसर अपनी मौसी इंद्रा के घर भी चला जाता था, जहां वह कईकई दिनों तक रुका रहता था. इंद्रा उस का बहुत खयाल रखती थी.

एक तो प्रकाशचंद्र की उम्र हो गई थी, दूसरे बच्चे सयाने हो गए थे, इसलिए वह पत्नी में कम ही रुचि लेते थे जबकि इंद्रा चाहती थी कि पति रोजाना उस के पास आए और उसे संतुष्ट करे. पति से इच्छा पूरी न होने से इंद्रा का मन भटकने लगा तो वह, किसी युवक की तलाश में रहने लगी. लेकिन उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि किसी युवक से संबंध बनाने पर अगर बात खुल गई तो बड़ी बदनामी होगी.

तब वह किसी ऐसे युवक की तलाश में लग गई, जिस से संबंध बनाने पर किसी को पता न चल सके. ऐसा युवक वही हो सकता था, जिस से उस के घरेलू संबंध हों यानी जिस के घर आनेजाने पर किसी को संदेह न हो. इस बारे में उस ने काफी सोचाविचारा तो उस की नजर अपनी बहन के बेटे विनय पर टिक गई. क्योंकि विनय उस के घर में ही रहता था. दूसरे बहन का बेटा होने की वजह से जल्दी उस पर कोई संदेह भी नहीं कर सकता था.

विनय उस उम्र में था, जिस उम्र में स्त्री देह कुछ ज्यादा ही आकर्षित करती है. तब रिश्तेनाते का भी खयाल नहीं रहता. विनय की शादी भी नहीं हुई थी. ऐसे में इंद्रा ने रिश्ते नाते, लाजशरम त्याग कर अपनी देह को उस के सामने परोसा तो जवानी की दहलीज पर खड़े विनय को फिसलते देर नहीं लगी. मौसी की देह तो उस के लिए अंधे सियार को पीपल ही मेवा की तरह लगा. वह निश्चिंत हो कर मौसी के साथ मौज करने लगा.

इंद्रा ने विनय को हिदायत दे रखी थी कि यह बात वह अपने दोस्तों तक को भी नहीं बताएगा. इसलिए विनय ने यह बात कभी किसी को नहीं बताई. उस का जब भी मन होता, वह मौसी के यहां आ जाता और जितने दिन मन होता, आराम से रहता. मौसा और मौसेरे भाई के जाने के बाद वही दोनों घर पर रह जाते थे, इसलिए उन का जो मन होता, आराम से करते.

इंद्रा विनय को न सिर्फ शारीरिक सुख देती थी, बल्कि उसे अपने आकर्षण में बांधे रहने के लिए उस की छोटीमोटी जरूरतें भी पूरी करती थी. वह उसे जेब खर्च के लिए रुपए भी देती थी. विनय को दोहरा लाभ था, इसलिए वह मौसी से खूब खुश रहता था.

क्रिकेट खेलने में ही विनय की दोस्ती कानपुर के थाना बिधनू के गांव सपई के रहने वाले वीरेंद्र सिंह चंदेल के बेटे पिंटू से हो गई थी. पिंटू नौबस्ता में चाय की दुकान चलाता था. विनय का जूते के काम में मन नहीं लगता था, इसलिए उस ने पिंटू के साथ होटल खोलने की योजना बनाई. होटल खोलने के लिए उसे 15 हजार रुपयों की जरूरत थी.

विनय को पूरा यकीन था कि मौसी इंद्रा उसे ये रुपए दे देंगी. इसीलिए उस ने बड़े ही विश्वास के साथ पिंटू से कह दिया था कि उस की मौसी एक बार मांगने पर रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने रुपए नहीं दिए. उसी का नतीजा था कि नाराज हो कर विनय ने पिंटू के साथ मिल कर उन के यहां लूट के इरादे से उन की हत्या कर दी थी.

पूछताछ के बाद प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने विनय को पत्रकारों के सामने भी पेश किया. प्रेसवार्त्ता करा कर उन्होंने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक विनय और पिंटू की जमानत नहीं हुई थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई?