UP Crime : 5 बीवियों वाला नूरी बाबा मदरसे में छापता था नकली नोट

UP Crime : पुलिस ने जब मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को पकड़ा तो यह देख कर दंग रह गई कि दिन में तो वह मदरसे में बच्चों को मजहब की तालीम देता था, जबकि रात को उसी मदरसे में नकली नोट छापे जाते थे. 5 बीवियों के शौहर नूरी बाबा ने आखिर मदरसे को ही क्यों बनाया जुर्म का अड्डा?  

उत्तर प्रदेश के जनपद श्रावस्ती के थाना हरदत्त नगर गिरंट के एसएचओ शैलकांत उपाध्याय दोपहर को अपने कार्यालय में आवश्यक कार्यों में व्यस्त थे, तभी उन का मोबाइल फोन की घंटी बजी. एसएचओ ने मोबाइल स्क्रीन पर नंबर देखा तो उन्होंने तुरंत काल रिसीव कर ली. वह काल उन के एक खास मुखबिर की थी.

”कहो सुरेश (काल्पनिक नाम) क्या खास खबर है. कई महीनों से तो तुम चुपचाप बैठे थे. मैं ने तो सोचा कि कहीं तुम साइलेंट मोड में तो नहीं चले गए हो.’’ एसएचओ ने कहा.

”साहबजी, ऐसी खबर है कि जिस के लिए मैं ने पूरे 7 महीने खर्च किए हैं. देखो साहब, मेरा इस काम में बहुत पैसा भी खर्च हो चुका है. मुझे मेरी मेहनत का पैसा मिल जाए, मेरे लिए तो वही बहुत है.’’ सुरेश ने कहा.

”सुरेश, तुम मुझे यह बताओ कि तुम ने मुझे आज तक जो भी खबर दी है, मैं ने अपने ऊपर के अधिकारियों से कह कर तुम्हारा पूरा हक दिलवाया है न! ऐसी बात तो मत कहो,’’ एसएचओ ने कहा.

”साहब, आप के ऊपर विश्वास है, इसीलिए तो आप को यह खबर मैं दे रहा हूं.’’ सुरेश बोला.

”देखो सुरेश, अब पहेलियां बिलकुल भी मत बुझाओ, खबर क्या है बस मुझे तुरंत बता दो.’’ एसएचओ ने कहा.

मुखबिर ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर तो एकबारगी एसएचओ शैलकांत उपाध्याय भी चौंक गए. सचमुच बात ही कुछ ऐसी थी. शैलकांत उपाध्याय ने मुखबिर को उस संदिग्ध व्यक्ति और उस की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए कहा और इस विशेष खबर की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को तुरंत दे दी.

मदरसे में ही क्यों छापता था नकली नोट

मुखबिर द्वारा मिली सूचना पर एसपी घनश्याम चौरसिया के निर्देश पर एएसपी प्रवीण कुमार यादव व सीओ (भिनगा) संतोष कुमार की देखरेख में एसओजी प्रभारी नितिन यादव, एसएचओ शैलकांत उपाध्याय, एसआई विशाल शुक्ला, अंकुर वर्मा, छैल बिहारी, अनीष गोड़, हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार यादव, भोला सिंह, कांस्टेबल विवेक सिंह, संजीत कुमार, प्रवीण पांडेय, अभिषेक सिंह, अवनीश, विक्रम सिंह, वीरेंद्र यादव आदि को शामिल किया.

यह टीम पहली जनवरी, 2025 को लक्ष्मणपुर के मदरसे में पहुंची तो वहां पर काम कर रहे लोगों में अफरातफरी मच गई और वे सब वहां से बाहर की ओर भागने लगे. लेकिन दूसरी तरफ पूरी पुलिस टीम चौकन्नी थी. उन्होंने मदरसे को चारों ओर से घेर रखा था, इसलिए पुलिस ने उन्हें दबोच लिया.

पुलिस टीम ने मदरसे से 5 लोगों को हिरासत में ले लिया. गिरफ्तार लोगों ने अपने नाम रामसेवक, धर्मराज शुक्ला, जलील अहमद निवासी बहराइच, अवधेश कुमार, मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा निवासी श्रावस्ती बताया.

मौके से पुलिस को नकली नोट बनाने के उपकरण सहित 1 प्रिंटर, 2 लैपटाप, 4 इंक बोतल, 35,400 रुपए के नकली नोट, 14,500 रुपए के असली नोट, एक देसी तमंचा .315 बोर व एक जिंदा कारतूस .315 बोर, एक कैंची, एक स्केल, 3 असली नोट चिपके हुए फर्मा, एक बाइक, 5 मोबाइल फोन आदि सामान मिला. पुलिस सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर थाने ले आई.

इस संबंध में उन के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 02/2025 धारा 178, 179, 180, 181, 3 (5) बीएनएस व 3/25 आयुध अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस द्वारा जब सभी पांचों अभियुक्तों से सख्ती से पूछताछ की गई तो आरोपियों ने बताया कि उन्होंने यूट्यूब देख कर नकली नोट छापने के तरीके सीखे थे, जिस में उन्हें समय तो लगा, मगर वे अपने मकसद में कामयाब हो गए, जिस के बाद वे नकली नोटों को मशीन से प्रिंट करने लगे और फिर स्कैनर से नोटों की अन्य रूपरेखाओं को असली नोट की तरह तैयार करने लगे.

इस के बाद तैयार किए गए नकली नोटों को वह जनपदों और विभिन्न ग्रामीण इलाकों में जगहजगह असली नोटों में मिला कर चलाने लगे. इस के अलावा वह लोगों में रकम दुगनी करने का लालच दे कर उन के असली नोटों के बदले में दुगने नकली नोटों का धंधा भी करने लगे थे. इस गैंग का सरगना मदरसा संचालक मुबारक अली उर्फ बाबा था.

गिरफ्तार करने के बाद जब पुलिस ने आरोपियों की हिस्ट्री खंगाली तो और भी चौंकाने वाले खुलासे हुए.

क्या है आरोपियों का काला इतिहास

जब पुलिस ने आरोपियों के आपराधिक इतिहास की गहनता से जांचपड़ताल की तो कुछ आरोपियों का काफी काला और रहस्यमयी इतिहास सामने आया.

आरोपी जलील अहमद निवासी काशीजीत जनपद बहराइच पर 2 गंभीर केस पहले से ही दर्ज हैं. जिन में पहला मुकदमा अपराध संख्या 220/2021 भादंवि की धारा 325, 323, 504 के तहत थाना पयागपुर में चल रहा है. जबकि उस के ऊपर दूसरा केस मुकदमा अपराध संख्या 829/2014 भादंवि की धारा 308, 323 और 504 के तहत थाना पयागपुर में चल रहा है. आरोपी रामसेवक निवासी गांव बेगमपुर रामगांव जनपद बहराइच पर 3 आपराधिक केस दर्ज हैं.

तीसरे आरोपी अवधेश कुमार पांडेय निवासी गांव ककंधू जनपद श्रावस्ती पर एक मुकदमा अपराध संख्या 32/2019 धारा 3/25 आयुध अधिनियम थाना सोनवा जनपद श्रावस्ती में दर्ज पाया गया.

जबकि इस नकली नोटों के गिरोह के सरगना मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा पुत्र असगर अली निवासी लक्ष्मणपुर, श्रावस्ती के खिलाफ 3 आपराधिक मुकदमे दर्ज पाए गए. पूछताछ के बाद मदरसे में नूरी बाबा के नकली नोट छापने की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

कैसे बना कबाड़ी से मदरसा संचालक

उत्तर प्रदेश की मशहूर नदी राप्ती के किनारे पर बसे लक्ष्मणपुर गंगापुर जनपद श्रावस्ती से निकला मुबारक अली पहले कबाड़ी बना, फिर मौलाना बना और उस के बाद फैजुर नबी मदरसा का संचालक भी बन गया. इतना ही नहीं, दीनी तालीम और झाडफ़ूंक की आड़ में इस ने काफी अय्याशियां भी की. पकड़े जाने पर निकाह कर बचने का प्रयास भी खूब किया. यह भी कहा जाता है कि नकली नोटों से नहीं बल्कि मदरसे की फंडिंग ने मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को रातोंरात करोड़पति बना डाला था.

श्रावस्ती जनपद के मल्हीपुर थाना क्षेत्र लक्ष्मणपुर गंगापुर गांव एवं गांव में मौजूद आवासीय मदरसा दारुल उलूम फैजुर्रनबी आज उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में एक चर्चा का विषय बन चुका है. इसे इतनी सुर्खियों में लाने वाले मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा की पूरी स्टोरी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा ने अपने अब्बू की मौत के बाद अपने और परिवार के जीवनयापन के लिए सब से पहले गांवगली, मोहल्ले जा कर कबाड़ खरीदने से शुरुआत की थी. कबाड़ खरीदने के बाद मुबारक अली ने मल्हीपुर के वीरगंज बाजार में एक कबाड़ की दुकान खरीद ली, जहां पर वह चोरी से लोहे की पोल काट कर लाते समय पुलिस द्वारा पकड़ा गया.

उस के बाद इस कबाड़ के कारोबार से उस का मोहभंग हो गया. फिर अपने आप को एक पत्रकार व मंडलीय ब्यूरो का परिचय दे कर गांव वालों व आसपास के लोगों में अपना रौब गांठने लगा था.

ताज्जुब की बात तो यह है कि इस के निजी वाहनों पर आज भी मीडिया लिखा हुआ है. इस बीच मुबारक अली मदरसे का कामकाज भी देखता रहा. वह इस मदरसे में पढऩे व पढ़ाने के लिए आने वाली युवतियों को भी तरहतरह से प्रताडि़त कर उन का यौनशोषण भी करने लगा था. इस का खुलासा तब हुआ, जब 2 जनवरी, 2025 को एसएसपी की जांच में मदरसे के अंदर काफी संख्या में कामोत्तेजक दवाएं बरामद की गईं.

उसी जांच के दौरान गांव के एक व्यक्ति ने पुलिस को यह भी बताया कि कुछ समय पहले मदरसे में रह रही गोंडा निवासी एक युवती के पिता ने थाने में मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा पर अपनी बेटी के यौनशोषण का आरोप भी लगाया था. मगर जेल जाने से बचने के लिए मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा ने उस युवती के साथ निकाह कर लिया, जोकि मौजूदा समय में गोंडा में है.

इसी बीच नेपाल सीमा क्षेत्र से सटे मुबारक अली के एक गांव निवासी रिश्तेदार ने मुबारक अली की पहचान बहराइच के पयागपुर थाना क्षेत्र के काशीजोत जलील अहमद उर्फ जलील बाबा से करा दी, जिसे नूरी बाबा ने मदरसे में नौकरी देने के बहाने अपने खास आदमियों में रख कर नकली नोट छापने का कारोबार शुरू कर दिया.

मुबारक अली को बचपन से ही थी करोड़पति बनने की ख्वाहिश

लक्ष्मणपुर गंगापुर निवासी मुबारक अली बचपन से ही करोड़पति बनने की ख्वाहिश रखता था. इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए हमेशा तैयार भी रहता था. मदरसा चलाना तो उस का बस एक बहाना भर ही था. उस का असली मकसद तो विदेशी फंडिंग जुटाने का था.

नूरी बाबा ने सब से पहले अपना कामधंधा कबाड़ से शुरू किया था. उस के घर के बाहर खड़ी 2 ठेलियां आज भी इस की गवाही दे रही हैं. इस के बाद इस शातिर बदमाश ने धर्म अथवा मजहब का रास्ता चुना और इस ने मदरसा खोलने की तैयारी शुरू कर दी. वह अपने इस खेल में भी आसानी से कामयाब हो गया. इस अपराधी ने मदरसे के नाम पर मोटा चंदा भी इकट्ठा कर लिया था और उस के बाद का सारा खेल मदरसे के भीतर ही रचा गया.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को जब पुलिस ने गिरफ्तार किया तो इस के तथाकथित मदरसे से पुलिस को कई सैक्सवर्धक दवाइयां भी मिलीं. इस सब को देख कर तो एकबारगी पुलिस की टीम भी हैरान रह गई थी. मुबारक अली की 5 बीवियों की जानकारी भी पुलिस को मिली है, जिन में से एक पत्नी मदरसा संभालती है.

वैसे आमतौर पर मदरसे में महिलाएं नहीं होती हैं, लेकिन मुबारक अली के इस मदरसे में उस की पांचों बीवियों के अतिरिक्त अन्य कई युवतियों का आनाजाना भी लगा रहता था.

इन का नकली नोट छापने का यह मकसद था कि मजहब के नाम पर नौजवानों को जोडऩा और उस के बाद उन का कनैक्शन पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ जोडऩा था.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा कभी फकीर बन कर जकात मांगता तो कमी रमजान के महीने में मसजिद व मदरसा के लिए चंदा वसूलता था. कभी नेपाल तो कभी पश्चिम बंगाल में जा कर तकरीर करता था. लोगों से खुद को जोडऩे के लिए वह अपने कट्टर मुसलमान होने का भी प्रमाण देता था.

नूरी बाबा का पाकिस्तान प्रेम भी आया सामने

बताया जाता है कि नूरी बाबा ने केवल 10 सालों में नकली नोटों की अवैध कमाई और विदेशों से मिल रही अवैध फंडिंग से करीब 60 बीघा जमीन नेपाल सीमा में खरीदी थी.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा के सोशल मीडिया प्लेटफार्म और फेसबुक पर 7 अक्तूबर, 2017 को उस के द्वारा डाली गई पोस्ट भी उस के पाकिस्तान प्रेम को उजागर कर रही है. इस पोस्ट में मुबारक अली ने पाकिस्तानी ध्वज के साथ अपनी फोटो भी पोस्ट की थी, जोकि आज भी उस के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मौजूद है. ऐसे में अब यह अंदाजा भी लगाया जा रहा कि कहीं मुबारक अली का संबंध आईएसआई के साथ तो नहीं है.

आखिरकार नूरी बाबा ये सब क्यों और किस के लिए और किस की शह पर कर रहा था? इस का मंसूबा आखिर क्या था? आखिर कौन था इस शातिर के निशाने पर?

सब से बड़ी बात तो यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस इस केस को बाकी केसों से अलग एक संदिग्ध केस समझ कर इस की विस्तृत जांचपड़ताल में लगी है. इस कहानी में आखिर ऐसा क्या है, जिस का अंदाजा लगाना उत्तर प्रदेश पुलिस के बस का भी नहीं था.

इस केस की जांच में कई सिंघम आईपीएस पुलिस अधिकारी और कई इंसपेक्टरों को लगा दिया. पुलिस कर्मचारी इस नूरी बाबा के पीछे क्यों पड़े थे? आखिर मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा ने ऐसा क्या किया था कि उस की तलाश नेपाल से ले कर महाराष्ट्र तक होने लगी और फिर पुलिस को पता चला है कि यह नूरी बाबा तो दिल्ली में है.

उस के बाद नूरी बाबा का कनेक्शन प्रयागराज से मिला. आखिरकार इस की सही और एग्जेक्ट लोकेशन पुलिस को मिली तो उसे दबोच लिया गया. इस शातिर अपराधी की गिरफ्तारी के बाद का सच ऐसा था कि इस शातिर अपराधी की जानकारी उत्तर प्रदेश के एटीएस चीफ अमिताभ यश तक पहुंचाई गई.

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा को अब सूली पर चढ़ाने की तैयारी उत्तर प्रदेश पुलिस कर रही है. इस की बाकी बुरके वाली बीवियां कहां हैं, इन सब की तलाश अभी भी जारी है. मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा के फोन से पाकिस्तानी संगठनों के साथ बातचीत के ठोस सबूत भी पुलिस के हाथ लगे हैं.

उत्तर प्रदेश व देश के अन्य राज्यों में कोई न कोई मौलवी या बाबा आए दिन पकड़ा जाता है. लेकिन इन सब के बीच में मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा का मंसूबा काफी खतरनाक था. यह शातिर अपनी ही तरह और लोगों को ट्रेंड कर रहा था. उस का असली मकसद क्या था, यह तो अब पुलिस पूछताछ में पता चलेगा.

बीवी और बहन के पुलिस पर आरोप

मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा का पहला निकाह राबिका से हुआ था, जिस से उस की 4 बेटियां और 3 बेटे हैं. इस के साथ वह गांव में ही रहता है, जबकि दूसरी बीवी बहराइच के मदरसा जामिया नूरिया मसजिद में टीचर है. वहीं अन्य 3 बीवियां अलगअलग स्थानों पर रहती हैं, जिस की जानकारी गांव वालों को भी नहीं है.

नूरी बाबा की बीवी राबिका ने मीडिया से कहा कि मेरे पति मुबारक अली पर जो भी आरोप लगाए गए हैं, वे सारे गलत हैं. मैं उन के साथ इतने सालों से रह रही हूं, मैं ने तो उन्हें कभी नोट छापते हुए नहीं देखा. अब जो कुछ भी मदरसे में हुआ है, मैं ने अपनी आंखों से तो नहीं देखा है तो इस के बारे में क्या बता

सकती हूं.

जब उस से यह सवाल किया गया कि गांव वाले तो कहते हैं कि आप मदरसे में काफी आतीजाती रहा करती थीं, तब राबिका ने कहा कि मैं अपने छोटे बच्चे को मदरसे में छोडऩे और लाने के लिए आती थी. जब यह पूछा गया कि मदरसे में बाहरी महिलाओं का भी तो बहुत आनाजाना लगा रहता था तो राबिका ने बताया कि जिन बच्चों के दाखिले मदरसे में होते थे, वही महिलाएं यहां आतीजाती थीं.

उस ने यह भी बताया कि रमजान के महीने में मुबारक अली मुंबई जाते थे. नेपाल आतेजाते रहते थे, इस बात का उसे कुछ पता नहीं था. वहीं दूसरी ओर मुबारक अली की बहन समीरा ने तो पुलिस टीम पर ही आरोप लगा दिए.

समीरा ने मीडिया से बातचीत में बताया कि पुलिस मेरे भाई मुबारक अली को फरजी बाबा कह कर फंसा रही है. हमारा गांव में एक आदमी से 10-12 साल से विवाद चल रहा है. वही आदमी मेरे भाई को फंसा रहा है.

पुलिस के अनुसार मुबारक अली उर्फ नूरी बाबा का इतिहास और चरित्र शुरू से ही संदिग्ध रहा है. कबाड़ी नूरी बाबा रमजान माह में मुंबई में रह कर चंदा वसूल करता था. कभी पश्चिम बंगाल तो कभी नेपाल जाता था. कबाड़ी से शुरू हुआ उस का यह सफर नकली नोट छापने तक पहुंच गया.

अपने काले कारनामों को छिपाने के लिए ही मुबारक अली मदरसा संचालक बना था, ताकि उस के कारनामे कभी भी उजागर न हो सकें. इस के लिए उस ने गांव के ही 5 भाइयों से उन के हिस्से की जमीन ले कर 8 साल पहले मदरसा खोला. जिस की आड़ में वह हर गलत काम करता था, जो उसे तथा उस के काले कारनामों से बचाने का माध्यम बना.

आतंक के ग्लैमर में फंसा सैफुल्ला

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से मध्य प्रदेश पुलिस की सूचना पर लखनऊ में आतंकी सैफुल्ला मारा गया, उसे राजनीतिक नफानुकसान से जोड़ कर देखना ठीक नहीं है. सैफुल्ला की कहानी से पता चलता है कि हद से अधिक धार्मिक दिखने वाले लोगों के पीछे कुछ न कुछ राज अवश्य हो सकता है. धर्म के नाम पर लोग दूसरों पर आंख मूंद कर भरोसा कर लेते हैं. ऐसे में धर्म की आड़ में आतंक को फैलाना आसान हो गया है. अगर बच्चा आक्रामक लड़ाईझगड़े वाले वीडियो गेम्स और फिल्मों को देखने में रुचि ले रहा है तो घर वालों को सचेत हो जाना चाहिए. यह किसी बीमार मानसिकता की वजह से हो सकता है.

मातापिता बच्चों को पढ़ालिखा कर अपने बुढ़ापे का सहारा बनाना चाहते हैं. अगर बच्चे गलत राह पर चल पड़ते हैं तो यही कहा जाता है कि मातापिता ने सही शिक्षा नहीं दी. जबकि कोई मांबाप नहीं चाहता कि उस का बेटा गलत राह पर जाए. हालात और मजबूरियां सैफुल्ला जैसे युवाओं को आतंक के ग्लैमर से जोड़ देती हैं.

धर्म की शिक्षा इस में सब से बड़ा रोल अदा करती है. धर्म के नाम पर अगले जन्म, स्वर्ग और नरक का भ्रम किसी को भी गुमराह कर सकता है. सैफुल्ला आतंकवाद और धर्म के फेर में कुछ इस कदर उलझ गया था कि मौत ही उस से पीछा छुड़ा पाई. कानपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार का सैफुल्ला भी अन्य युवाओं जैसा ही था.

सैफुल्ला का परिवार उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर की जाजमऊ कालोनी के मनोहरनगर में रहता था. उस के पिता सरताज कानपुर की एक टेनरी (चमड़े की फैक्ट्री) में नौकरी करते थे. उन के 2 बेटे खालिद और मुजाहिद भी यही काम करते थे. उन की एक बेटी भी थी. 4 बच्चों में सैफुल्ला तीसरे नंबर पर था.

सैफुल्ला के पिता सरताज 6 भाई हैं, जिन में नूर अहमद, ममनून, सरताज और मंसूर मनोहरनगर में ही रहते थे. बाकी 2 भाई नसीम और इकबाल तिवारीपुर में रहते है. सैफुल्ला बचपन से ही पढ़ने में अच्छा था. जाजमऊ के जेपीआरएन इंटरकालेज से उस ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी. इंटर में उस ने 80 प्रतिशत नंबर हासिल किए थे.

सन 2015 में उस ने मनोहरलाल डिग्री कालेज में बीकौम में दाखिला लिया. इसी बीच उस की मां सरताज बेगम का निधन हो गया तो वह पूरी तरह से आजाद हो गया. घरपरिवार के साथ उस के संबंध खत्म से हो गए. उसे एक लड़की से प्रेम हो गया, जिसे ले कर घर में लड़ाईझगड़ा होने लगा.

सैफुल्ला के पिता चाहते थे कि वह नौकरी करे, जिस से घरपरिवार को कुछ मदद मिल सके. पिता की बात का असर सैफुल्ला पर बिलकुल नहीं हो रहा था. जब तक वह पढ़ रहा था, घर वालों को कोई चिंता नहीं थी. लेकिन उस के पढ़ाई छोड़ते ही घर वाले उस से नौकरी करने के लिए कहने लगे थे. जबकि सैफुल्ला को पिता और भाइयों की तरह काम करना पसंद नहीं था.

वह कुछ अलग करना चाहता था. अब तक वह पूरी तरह से स्वच्छंद हो चुका था. सोशल मीडिया पर सक्रिय होने के साथ वह आतंकवाद से जुड़ने लगा था. फेसबुक और तमाम अन्य साइटों के जरिए आतंकवाद की खबरें, उस की विचारधारा को पढ़ता था.

यहीं से सैफुल्ला धर्म के कट्टरवाद से जुड़ने लगा. ऐसे में आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन के कारनामे उसे प्रेरित करने लगे. टीवी और इंटरनेट पर उसे वीडियो गेम्स खेलना पसंद था. इन में लड़ाईझगड़े और मारपीट वाले गेम्स उसे बहुत पसंद थे.शार्ट कौंबैट यानी नजदीकी लड़ाई वाले गेम्स उसे खास पसंद थे. वह यूट्यूब पर ऐसे गेम्स खूब देखता था. इस तरह की अमेरिकी फिल्में भी उसे खूब पसंद थीं. यूट्यूब के जरिए ही उस ने पिस्टल खोलना और जोड़ना सीखा.

कानपुर में रहते हुए सैफुल्ला कई लोगों से मिल चुका था, जो आतंकवाद को जेहाद और आजादी की लड़ाई से जोड़ कर देखते थे. वह आतंक फैलाने वालों की एक टीम तैयार करने के मिशन पर लग गया. फेसबुक पर तमाम तरह के पेज बना कर वह ऐसे युवाओं को खुद से जोड़ने लगा, जो आर्थिक रूप से कमजोर थे. सैफुल्ला ऐसे लोगों के मन में नफरत के भाव भी पैदा करने लगा था. उस का मकसद था युवाओं को खुद से जोड़ना और आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन की राह पर चलते हुए भारत में भी उसी तरह का संगठन खड़ा करना. युवाओं को वह सुविधाजनक लग्जरी लाइफ और मोटी कमाई का झांसा दे कर खुद से जोड़ने लगा था.

कानपुर में लोग सैफुल्ला का पहचानते थे, इसलिए इस तरह के काम के लिए उस का कानपुर से बाहर जाना जरूरी था. आखिर एक दिन वह घर छोड़ कर भाग गया. घर वालों ने भी उस के बारे में पता नहीं किया. उस ने इस के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को चुना. वहां मुसलिम आबादी भी ठीकठाक है और प्रदेश तथा शहरों से सीधा जुड़ा हुआ भी है. इन सब खूबियों के कारण लखनऊ उस के निशाने पर आ गया.

नवंबर 2016 में सैफुल्ला लखनऊ के काकोरी थाने की हाजी कालोनी में बादशाह खान का मकान 3 हजार रुपए प्रति महीने के किराए पर ले लिया. यह जगह शहर के ठाकुरगंज इलाके से पूरी तरह से सटी हुई है, जिस से वह शहर और गांव दोनों के बीच रह सकता था. यहां से कहीं भी भागना आसान था.

बादशाह खान का मकान सैफुल्ला को किराए पर पड़ोस में रहने वाले कयूम ने दिलाया था. वह मदरसा चलाता था. बादशाह खान दुबई में नौकरी करता था. उस की पत्नी आयशा और परिवार मलिहाबाद में रहता था. मकान को किराए पर लेते समय उस ने खुद को खुद्दार और कौम के प्रति वफादार बताया था.

सैफुल्ला ने कहा था कि वह मेहनत से अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ अपनी कौम के बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा देना चाहता है. अपने खर्च के बारे में उस ने बताया था कि वह कम फीस पर बच्चों को कंप्यूटर के जरिए आत्मनिर्भर बनाने का काम करता है.इसी से सैफुल्ला ने अपना खर्च चलाने की बात कही थी.

उस की दिनचर्या ऐसी थी कि कोई भी उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था. अपनी दिनचर्या का पूरा चार्ट बना कर उस ने कमरे की दीवारों पर लगा रखा था. वह सुबह 4 बजे उठ जाता था खुद को फिट रखने के लिए. वह पांचों वक्त नमाज पढ़ता था. कुरआन के अनुवाद तफ्सीर पढ़ता था. वह पूरी तरह से धर्म में रचबस गया था. हजरत मोहम्मद साहब के वचनों हदीस पर अमल करता था. अपना खाना वह खुद पकाता था. दोपहर 3 बजे उस का लंच होता था. शरीयत से जुड़ी किताबें पढ़ता था. रात 10 बजे तक सो जाता था.

रमजान के दिनों में वह पूरी तरह से उस में डूब जाता था. वह बिना देखे कुरआन की हिब्ज पढ़ता था. वह खुद को पूरी तरह से मोहम्मद साहब के वचनों पर चलने वाला मानता था. उसे करीब से देखने वाला समझता था कि इस से अच्छा लड़का कोई दुनिया में नहीं हो सकता. हाजी कालोनी के जिस मकान में सैफुल्ला रहता था, उस में कुल 4 कमरे थे. मकान के दाएं हिस्से में महबूब नामक एक और किराएदार अपने परिवार के साथ रहता था. बाईं ओर के कमरे में महबूब का एक और साथी रहता था. इस के आगे दोनों के किचन थे. दाईं ओर का कमरा खाली पड़ा था और उस के आगे भी बाथरूम और किचन बने थे.

असल में बादशाह खान ने अपने इस मकान को कुछ इस तरह से बनवाया था कि कई परिवार एक साथ किराए पर रह सकें. कोई किसी से परेशान न हो, ऐसे में सब के रास्ते, स्टोररूम और बाथरूम अलगअलग थे. मकान खुली जगह पर था, इसलिए चोरीडकैती से बचने के लिए सुरक्षा के पूरे उपाय किए गए थे. सैफुल्ला ने किराए पर लेते समय इन खूबियों को ध्यान में रखा था और उसे यह जगह भा गई थी.

सैफुल्ला को यह जगह काफी मुफीद लगी थी. जैसे यह उसी के लिए ही तैयार की गई हो. वह समय पर किराया देता था. अपने आसपास वालों से वह कम ही बातचीत करता था. ज्यादा समय वह अपने कंप्यूटर पर देता था. इस में वह सब से ज्यादा यूट्यूब देखता था, जिस में आईएसआईएस से जुड़ी जानकारियों पर ज्यादा ध्यान देता था.

7 मार्च, 2017 को भोपाल-उज्जैन पैसेंजर रेलगाड़ी में बम धमाका हुआ. वहां पुलिस को बम धमाके से जुड़े कुछ परचे मिले, जिस में लिखा था, ‘हम भारत आ चुके हैं—आईएस’. यह संदेश पढ़ने के बाद भारत की सभी सुरक्षा एजेंसियां और पुलिस सक्रिय हो गई. ट्रेन में हुआ बम धमाका बहुत शक्तिशाली नहीं था, जिस से बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था.

पर यह संदेश सुरक्षा एजेंसियों और सरकार की नींद उड़ाने वाला था. पुलिस जांच में पता चला कि यह काम भारत में काम करने वाले किसी खुरासान ग्रुप का है, जो सीधे तौर पर आईएस की गतिविधियों से जुड़ा हुआ नहीं है, पर उस से प्रभावित हो कर उसी तरह के काम कर रहा है. यह खुरासान ग्रुप तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का एक हिस्सा है, जो आईएस से जुड़ा है.

मध्य प्रदेश पुलिस ने जब पकड़े गए 3 आतंकवादियों से पूछताछ की तो कानपुर की केडीए कालोनी में रहने वाले दानिश अख्तर उर्फ जफर, अलीगढ़ के इंदिरानगर निवासी सैयद मीर हुसैन हमजा और कानपुर के जाजमऊ के रहने वाले आतिश ने माना कि वे 3 साल से सैफुल्ला को जानते हैं. वह उन्हें वीडियो दिखा कर कहता था, ‘एक वे हैं और एक हम. कौम के लिए हमें भी कुछ करना होगा.’

उन्होंने बताया था कि सैफुल्ला का इरादा भारत में कई जगह बम विस्फोट करने का है. इस जानकारी के बाद पुलिस को सैफुल्ला की जानकारी और लोकेशन दोनों ही मिल गई थी. इस के बाद पुलिस ने दोपहर करीब ढाई बजे सैफुल्ला के घर पर दस्तक दी. लखनऊ की पुलिस पूरी तरह से अलर्ट थी. उस के साथ एटीएस के साथ एसटीएफ भी थी.

सैकड़ों की संख्या में पुलिस और दूसरे सुरक्षा बलों ने घर को घेर लिया था. आसपास रहने वालों को जब पता चला कि सैफुल्ला आतंकवादी है और मध्य प्रदेश में हुए बम विस्फोट में उस का हाथ है तो सभी दंग रह गए. सुरक्षा बलों ने पूरे 10 घंटे तक घर को घेरे रखा. वे सैफुल्ला को आत्मसमर्पण के लिए कहते रहे, पर वह नहीं माना.

घर के अंदर से सैफुल्ला पुलिस पर गोलियां चलाता रहा. ऐसे में रात करीब 2 बजे पुलिस ने लोहे के गेट को फाड़ कर उस पर गोलियां चलाईं. तब जा कर वह मरा. पुलिस को उस के कमरे के पास से .32 बोर की 8 पिस्तौलें, 630 जिंदा कारतूस, 45 ग्राम सोना और 4 सिमकार्ड मिले.

इस के साथ डेढ़ लाख रुपए नकद, एटीएम कार्ड, किताबें, काला झंडा, विदेशी मुद्रा रियाल, आतिफ के नाम का पैनकार्ड और यूपी78 सीपी 9704 नंबर की डिसकवर मोटरसाइकिल मिली. इस के अलावा बम बनाने का सामान, वाकीटाकी फोन के 2 सेट और अन्य सामग्री भी मिली.

पुलिस को उस के कमरे से 3 पासपोर्ट भी मिले, जो सैफुल्ला, दानिश और आतिफ के नाम के थे. आतिफ सऊदी अरब हो आया था. बाकी दोनों ने कोई यात्रा इन पासपोर्ट से नहीं की थी. सैफुल्ला का ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट मनोहरनगर के पते पर ही बने थे, जहां उस का परिवार रहता था.

सैफुल्ला के आतंकी होने और पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे जाने की खबर जब उस के पिता सरताज अहमद को मिली, तब वह समझ पाए कि उन का बेटा क्या कर रहा था. पुलिस ने जब उन से शव लेने और उसे दफनाने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि सैफुल्ला ने ऐसा कोई काम नहीं किया कि उस का जनाजा निकले.

वह गद्दार था. उस के शव को ले कर वह अपना ईमान खराब नहीं करेंगे.  इस के बाद पुलिस ने सैफुल्ला को लखनऊ के ही ऐशबाग कब्रगाह में दफना दिया था.

सैफुल्ला की कहानी किसी भी ऐसे युवक के लिए सीख देने वाली हो सकती है कि आतंक की पाठशाला में पढ़ाई करना किस अंजाम तक पहुंचा सकता है. ऐसे शहरी या गांव के लोगों के लिए भी सीख देने वाली हो सकती है, जिन के आसपास रहने वाला इस तरह धार्मिक प्रवृत्ति का हो.

आतंकवाद का ग्लैमर दूर से देखने में अच्छा लग सकता है, पर उस का करीबी होना बदबूदार गंदगी की तरह होता है. धर्म के नाम पर दुकान चलाने वाले लोग मासूम युवाओं को गुमराह करते हैं. सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले लोगों को प्रभावित करना आसान होता है.

ऐसे में जरूरत इस बात की है कि युवा और उन के घर वाले होशियार रहें, जिस से उन के घर में कोई सैफुल्ला न बन सके. बच्चे आतंकवादी नहीं होते, उन्हें धर्म पर काम करने वाले कट्टरपंथी लोग आतंक से जोड़ देते हैं. पैसे कमाने और बाहुबली बनने का शौक बच्चों को आतंक के राह पर ले जाता है.