गुड़गांव के अनाथालय में किआरा का एक और दोस्त था गुलफाम. गुलफाम उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर का रहने वाला था. वह 4 साल का था तभी उस के अब्बू की मौत हो गई थी. अब्बू की मौत के बाद मां हमीदा बेसहारा हो गई.
हमीदा ने फिर दूसरा निकाह कर लिया. दूसरे पति से उसे 4 बच्चे हुए. हमीदा दूसरे पति के साथ दिल्ली के आयानगर में रहने लगी. फिर सन 2004 में हमीदा की मौत हो जाने के बाद सौतेले पिता ने गुलफाम को गुड़गांव के अनाथालय में भरती करा दिया.
गुलफाम और रफीक अनाथालय में अच्छे दोस्त थे. करीब एक साल पहले गुलफाम किसी तरह अनाथालय से भाग गया. किआरा ने किसी तरह गुलफाम से संपर्क साध लिया.
10 मार्च, 2014 को उन दोनों ने गुड़गांव के एमजी रोड मेट्रो स्टेशन पर मुलाकात की. वहीं पर किआरा का एक दोस्त पवन आ गया. पवन द्वारका सेक्टर-3 में रहता था. फिर तीनों रफीक के कमरे पर पहुंच गए. कमरे पर 2 दिन रुक कर पवन तो चला गया. लेकिन गुलफाम वहीं रुका रहा. रफीक ने किआरा से जब पूछा कि ये गुलफाम यहां कब तक रहेगा तो किआरा ने कहा कि जब तक मैं यहां रहूंगी, ये भी रहेगा.
जब किआरा को रफीक अपनी बहन मान चुका था तो उसे अपने कमरे से जाने को भी नहीं कह सकता था, इसलिए न चाहते हुए भी किआरा को कमरे पर रखने के लिए उसे मजबूर होना पड़ा.
उधर आगरा में रहने वाले रोहित को जब पता चला कि किआरा गुड़गांव में रह रही है तो वह उस के पास आ गया और उसे अपने साथ आगरा ले जाने की जिद करने लगा. लेकिन किआरा ने उस के साथ जाने से मना ही नहीं किया बल्कि लड़ कर उसे कमरे से भगा भी दिया.
रफीक के कमरे पर आनेजाने वालों का तांता लगना शुरू हो गया तो मकान मालिक को शक हुआ. तब उस ने रफीक से कमरे पर आनेजाने वालों के बारे में पूछा और उस से अपना कमरा खाली करा लिया. तब ये तीनों दिल्ली चले आए.
गुलफाम की दिल्ली स्थित एक काल सेंटर में नौकरी लग गई तो उस ने अलग कमरा ले लिया तो वहीं किआरा ने दक्षिणपश्चिमी दिल्ली के थाना बिंदापुर के तहत सुखराम पार्क में रहने वाले अशोक कुमार सेठ के यहां ग्राउंड फ्लोर पर 3 हजार रुपए महीना किराए पर एक कमरा ले लिया. मकान मालिक से रफीक को उस ने अपना भाई बताया था. यह बात 4 अप्रैल, 2014 की है.
कुछ दिनों बाद उत्तम नगर क्षेत्र स्थित एक फोन कंपनी के शोरूम में किआरा की भी नौकरी लग गई. कुछ दिनों बाद गुलफाम ने भी किआरा के पास आना शुरू कर दिया. चूंकि किआरा और गुलफाम के बीच पहले से अवैध संबंध थे, इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी.
ऐसा भी नहीं था कि उस के संबंध केवल गुलफाम से ही हों बल्कि पड़ोस में रहने वाले एक अन्य युवक से भी उस के नाजायज संबंध हो गए थे.
इतना ही नहीं, जिस शोरूम में वह नौकरी करती थी, वहां भी 2 लड़कों को उस ने अपने रूपजाल में फांस रखा था. दरअसल अब वह इस क्षेत्र की इतनी माहिर खिलाड़ी हो चुकी थी कि लड़कों को अपने रूपजाल में फांसना उस के बाएं हाथ का खेल बन चुका था. वह होटलों और क्लबों में भी जाने लगी.
यह केवल उस का शौक ही नहीं था बल्कि बदले में वह उन से अपनी जरूरत की चीजें या पैसे भी ऐंठ लेती थी. देर रात को शराब के नशे में कमरे पर लौटना जैसे उस का रूटीन बन चुका था.
रफीक और गुलफाम को पता लग चुका था कि किआरा अब होटलों और क्लबों में भी जाने लगी है. उन्होंने उसे समझाया और कमरे पर जल्दी लौटने की बात कही तो उस ने साफ कह दिया, ‘‘जब मेरी मरजी होगी, घर आऊंगी. मेरी निजी जिंदगी में कोई भी दखल देने की कोशिश न करे.’’
‘‘जब तुझे ऐसा ही करना है तो अलग कमरा ले ले.’’ रफीक बोला.
‘‘मैं हरगिज अलग कमरा नहीं लूंगी. यहीं पर रहूंगी और तुम लोग आइंदा इस बारे में कुछ मत कहना.’’
‘‘तू हमारे ही साथ रह रही है और हमें ही घुड़की दे रही है. कम से कम इतनी शरम तो कर कि हम तुझे खिलाते पिलाते हैं, तेरे कपड़े धोते हैं और सारा खर्चा हम ही उठा रहे हैं. यदि तूने हमारी बात नहीं मानी तो कहीं दूसरा कमरा ले ले.’’ रफीक ने कहा.
‘‘मैं कहीं कमरा नहीं लूंगी, यहीं रहूंगी. और अगर ज्यादा बात की तो तुम्हारे खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करा कर जेल भिजवा दूंगी. इसलिए ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करो.’’ किआरा ने धमकी दी.
रफीक को किआरा की यह बात बहुत बुरी लगी, क्योंकि उस ने किआरा को उस समय सहारा दिया था जब वह बहुत परेशान हालत में थी. उसे मुंहबोली बहन मान कर उस की सेवा भी की और आज वही उसे बलात्कार के केस में फंसाने की धमकी दे रही है.
बहरहाल, उस की धमकी पर रफीक और गुलफाम डर गए कि किआरा उन्हें वास्तव में जेल भिजवा सकती है. इस तरह वे चाहते हुए भी अपने कमरे से उसे निकाल नहीं सके.
एक दिन ये दोनों दोस्त उत्तम नगर किसी काम से गए हुए थे. घर पर किआरा रह गई थी. जब वे लौट कर आए तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. गुलफाम ने दरवाजे पर जोर से 2-3 धक्के दिए तो सिटकनी खुल गई. कमरे में किआरा और एक युवक अपने अपने कपड़े पहनते दिखे. बंद कमरे में किआरा को दूसरे लड़के साथ देख कर रफीक और गुलफाम हक्केबक्के रह गए.
उधर जब किआरा ने अचानक रफीक और गुलफाम को कमरे में आया देखा तो उस ने उन दोनों को जम कर फटकार लगाई.
रफीक और गुलफाम के लिए किआरा गले की एक ऐसी हड्डी बन चुकी थी जिसे न तो वे निगल सकते थे और न ही उगल सकते थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि उस से कैसे निजात पाएं. दोनों ही उस से निजात पाने के उपाय खोजने लगे. काफी सोचविचार के बाद उन्होंने उस का काम तमाम करने का फैसला कर लिया कि न रहेगा बांस, न बजेबी बांसुरी.
30 अप्रैल, 2014 को आधी रात के करीब किआरा पारकर नशे की हालत में कमरे पर लौटी. थोड़ी देर बाद ही वह सो गई. तभी रात सवा 2 बजे के करीब उन दोनों ने किआरा की गला घोंट कर हत्या कर दी. उस की हत्या करने के बाद दोनों ने राहत की सांस ली. फिर दोनों ने ही उस की लाश के साथ बारीबारी से अपनी हवस पूरी की.
रफीक और गुलफाम ने उस की हत्या तो कर दी लेकिन अब उन के सामने लाश को ठिकाने लगाने की समस्या थी. लाश को घर से बाहर ले जाने की उन की हिम्मत नहीं हो रही थी. तभी उन्हें कमरे की दीवार में बनी अलमारी का ध्यान आया. उस अलमारी को उन्होंने एक बार खोल कर देखा तो उस का बीच का खाना इतना बड़ा था कि उस में उस की लाश रखी जा सकती थी.
फिर दोनों ने उस की लाश उठा कर अलमारी के बीच वाले खाने में रख कर अलमारी के दरवाजे को सिटकनी से बंद कर दिया. फिर सुबह होने से पहले ही बैगों में अपने जरूरी सामान भर कर, कमरे का ताला बंद कर के चले गए.
दिल्ली से वे सीधे छत्तीसगढ़ पहुंचे. वहां पर गुलफाम का एक दोस्त राजू रहता था. वे उस के पास ही रुक गए. 4-5 दिन छत्तीसगढ़ में रहने के बाद जब दोनों उत्कल एक्सप्रैस से दिल्ली पहुंचे तो वे पुलिस के शिकंजे में आ गए.
पुलिस ने रफीक और गुलफाम को किआरा पारकर की हत्या करने और लाश छिपाने (आईपीसी की धारा 302, 201) के तहत गिरफ्तार कर के 10 मई, 2014 को द्वारका कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी श्री विक्रम के समक्ष पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन से किआरा की पर्सनल डायरी आदि सामान बरामद किया.
12 मई को पुन: न्यायालय में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर सत्यवीर जनौला कर रहे थे.
—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित
पुलिस मान कर चल रही थी कि यदि वह दिल्ली आ रहा होगा तो या तो बस से आएगा या फिर ट्रेन से. छत्तीसगढ़ से आने वाली बसें सराय कालेखां अंतरराज्यीय बस टर्मिनल पर आती हैं और ट्रेनें हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन. इसलिए 9 मई, 2014 को 2 पुलिस टीमें हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन और सराय कालेखां बस टर्मिनल पर लगा दीं.
चूंकि सुखराम पार्क में रहने वाले अशोक कुमार सेठ और उन का बेटा अंकुश रफीक और गुलफाम को जानते थे इसलिए उन दोनों को भी पुलिस ने अपने साथ ले लिया था.
एक पुलिस टीम सर्विलांस के जरिए उस फोन नंबर पर नजर रखे हुई थी. सर्विलांस टीम को जो नई जानकारी मिल रही थी, टीम उस जानकारी को दोनों पुलिस टीमों को शेयर करा रही थी. इसी आधार पर पुलिस ने रफीक और गुलफाम को हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से हिरासत में ले लिया.
थाने ला कर उन दोनों से किआरा पारकर की हत्या की बाबत पूछताछ की तो उन्होंने बड़ी आसानी से किआरा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उस की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.
किआरा दिल्ली के रहने वाले विनोद कुमार की बेटी थी. विनोद कुमार एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. उस के 2 बेटियां और एक बेटा था. किआरा दूसरे नंबर की थी. किआरा की मां रेखा को कैंसर था. विनोद ने पत्नी का काफी इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हो सकी.
एक दिन डाक्टरों ने विनोद को बता दिया कि रेखा का कैंसर ठीक होने वाला नहीं है, यह अब आखिरी स्टेज पर हैं. डाक्टरों से यह जानकारी मिलने के बाद विनोद ने पत्नी की तीमारदारी करनी बंद कर दी.
बताया जाता है कि विनोद का उस समय किसी महिला के साथ चक्कर चल रहा था. उसे यह तो पता चल ही गया था कि उस की पत्नी अब ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहेगी इसलिए उस ने पत्नी के जीतेजी उस महिला से शादी कर ली जिस के साथ उस का चक्कर चल रहा था.
रेखा को पति द्वारा दूसरी शादी करने का ज्यादा दुख नहीं हुआ, बल्कि पति की आदतों को देखते हुए उसे इस बात की आशंका थी कि उस के मरने के बाद उस के तीनों बच्चों की दुर्दशा होगी. क्योंकि सौतन उस के बच्चों को तवज्जो नहीं देगी और उस के नातेरिश्तेदार भी ऐसे नहीं हैं जो बच्चों को पालपोस सकें.
बच्चों के भविष्य के बारे में उस ने अपने मिलने वालों से सलाह ली तो उन्होंने बच्चों को किसी अनाथालय में भरती करने की बात कही. इस बीच विनोद रेखा और बच्चों को दिल्ली में छोड़ कर अपनी दूसरी बीवी को ले कर मुंबई चला गया, जो आज तक नहीं लौटा.
पति द्वारा बच्चों को बेसहारा छोड़ जाने पर रेखा को बड़ा दुख हुआ. तब रेखा दक्षिणी दिल्ली के घिटोरनी गांव में रहने वाली अपनी मां के पास चली गई. रेखा नहीं चाहती थी कि उस के मरने के बाद बच्चे दरदर की ठोकरें खाएं इसलिए वह तीनों बच्चों को गुड़गांव के सेक्टर-10 स्थित शांति भवन ट्रस्ट औफ इंडिया नाम के अनाथालय में भरती करा आई.
बताया जाता है कि किआरा का घर का नाम कल्पना था. अनाथालय में उस का नाम किआरा पारकर रखा गया. बच्चों को अनाथालय में भरती कराने के कुछ दिनों बाद रेखा की मौत हो गई. यह करीब 8 साल पहले की बात है. उस समय किआरा करीब 10 साल की थी. अनाथालय में ही तीनों बच्चों की परवरिश होती रही. वहीं पर उन की पढ़ाई चलती रही. किआरा थोड़ी चंचल स्वभाव की थी. जब वह जवान हुई तो अनाथालय में ही रहने वाले कई लड़कों से उस की दोस्ती हो गई.
अधिकांशत: देखा गया है कि ऐसे जवान लड़के और लड़कियां जो आपस में सगेसंबंधी न हों उन की दोस्ती लंबे समय तक पाकसाफ नहीं रह पाती. एकांत में मिलने का मौका पाते ही वह खुद पर संयम नहीं रख पाते और उन के बीच जिस्मानी ताल्लुकात कायम हो जाते हैं. यही किआरा के साथ भी हुआ.
अनाथालय में ही रहने वाले एक नजदीकी दोस्त के साथ किआरा के अवैध संबंध कायम हो गए. काफी दिनों तक वह मौजमस्ती करती रही. इसी दौरान उस ने अपने और भी कई दोस्तों से नाजायज ताल्लुकात बना लिए. इस के बाद तो अनाथालय के तमाम लड़के किआरा के नजदीक आने की कोशिश करने लगे.
अवैध संबंधों को छिपाने के लिए कोई चाहे कितनी भी सावधानी क्यों न बरते, एक न एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. यानी किआरा के संबंधों की जानकारी भी अनाथालय के संचालकों तक पहुंच गई.
संचालकों ने किआरा को बहुत समझाया लेकिन उस ने अपनी आदत नहीं बदली तो उन के लिए यह बड़ी ही चिंता की बात हो गई. खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है. उस की देखादेखी अनाथालय के अन्य बच्चे न बिगड़ जाएं, संचालकों को इस बात की आशंका थी.
काफी सोचनेसमझने के बाद संचालकों ने किआरा को उस अनाथालय से किसी दूसरी जगह भेजने का फैसला ले लिया. करीब 1 साल पहले अनाथालय की तरफ से किआरा को पढ़ाई के लिए आगरा भेज दिया गया. वहां के एक हौस्टल में रह कर वह पढ़ने लगी.
चूंकि किआरा के कदम पहले ही बहक चुके थे इसलिए आगरा में उस के रोहित नाम के लड़के से अवैध संबंध हो गए. रोहित का एक दोस्त था विवेक चौहान जो दिल्ली में रहता था. वह भी आगरा आताजाता रहता था. किआरा ने उसे भी अपने जाल में फांस लिया. इसी दौरान किआरा गर्भवती हो गई. यह बात उस ने जब रोहित को बताई तो उस के हाथपैर फूल गए.
किआरा ने जब रोहित से शादी करने को कहा तो वह उस से कन्नी काटने लगा. उस समय किआरा के पेट में 2 माह का गर्भ था. जब किआरा को लगा कि उस का साथ देने वाला कोई नहीं है तो उस ने दवा खा कर गर्भ गिरा दिया.
किआरा का एक दोस्त था रफीक, जो गुड़गांव के अनाथालय में उस के साथ ही था. उस की उम्र जब 18 साल हो गई तो वह अनाथालय से बाहर आ गया. अनाथालय से निकलने के बाद रफीक ने गुड़गांव स्थित साउथ इंडियन होटल में नौकरी कर ली और में कादीपुर गांव में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगा.
किआरा को किसी तरह रफीक के बारे में जानकारी मिली. तब वह इस साल होली से पहले आगरा से भाग कर गुड़गांव चली आई. वह उस होटल पर पहुंच गई जहां रफीक नौकरी कर रहा था. किआरा को देख कर रफीक खुश हुआ. फिर किआरा ने रफीक को अपना गर्भ गिराने तक की पूरी कहानी बता दी.
उस ने आराम करने के लिए कुछ दिनों उस के यहां रुकने की इजाजत मांगी. रफीक उसे मुंहबोली बहन मानता था इसलिए उस ने उसे हर तरह का सहयोग करने का भरोसा दिया. वह उसे अपने कमरे पर ले गया. फिर वह वहीं रहने लगी. रफीक अपने काम पर निकल जाता तो किआरा घर पर ही रहती थी.
क्यों मजबूर हो गए थे वो दोनों किआरा की हत्या करने पर? जानेंगें कहानी के अंतिम भाग में.
2 मई, 2014 को दोपहर 11 बजे दक्षिण पश्चिमी दिल्ली के थाना बिंदापुर के ड्यूटी औफिसर को पुलिस कंट्रोलरूम द्वारा वायरलैस से एक मैसेज मिला. मैसेज यह था कि मटियाला इलाके के सुखराम पार्क स्थित मकान नंबर आरजेड-54, 55 के बंद कमरे से बदबू आ रही है. ड्यूटी औफिसर ने यह सूचना थानाप्रभारी किशोर कुमार को बताई तो वह समझ गए कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.
उन का अनुभव था कि बंद कमरों से बदबू आने के ज्यादातर मामलों में कमरे से लाश ही मिलती है. इसलिए यह खबर मिलते ही वह एसआई सुरेंद्र सिंह को साथ ले कर सूचना में दिए पते पर रवाना हो गए. इस के कुछ देर बाद इंसपेक्टर सत्यवीर जनौला भी सुखराम पार्क की तरफ निकल गए.
पुलिस अधिकारी जब उपरोक्त पते पर पहुंचे तो वहां अशोक कुमार सेठ नाम का आदमी मिला. वही उस मकान का मालिक था. अशोक कुमार अपने मकान में एक जनरल स्टोर चलाता था. पुलिस को फोन उस के बेटे अंकुश ने किया था. अशोक पुलिस को अपने मकान के उस कमरे के पास ले गया, जहां से तेज बदबू आ रही थी. पुलिस ने भी कमरे के पास पहुंच कर बदबू महसूस की. उस कमरे के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था.
थानाप्रभारी ने अशोक कुमार सेठ से पूछा, ‘‘इस कमरे में कौन रहता था?’’
‘‘सर, इस कमरे में एक लड़की और 2 लड़के रहते थे. 2 दिन से ये दिखाई नहीं दे रहे. आज हमें कमरे से बदबू आती महसूस हुई तो शक हुआ. फिर 100 नंबर पर फोन कर दिया.’’ अशोक ने बताया.
थानाप्रभारी ने ताला तोड़ने से पहले क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी वहां बुला लिया. टीम और वहां मौजूद लोगों के सामने पुलिस ने उस कमरे का ताला तोड़ा तो गंध और तेज महसूस हुई. पुलिस की निगाह फर्श पर बहते काले रंग के द्रव पर गई. वह द्रव कमरे में बनी हुई अलमारी से आ रहा था.
पुलिस को लगा कि अलमारी में ही कुछ रखा है, जहां से यह द्रव रिस कर आ रहा है. अलमारी पर लकड़ी का दरवाजा लगा था और वह बाहर लगी सिटकनी से बंद था. मन में आशंका रखते हुए थानाप्रभारी ने वह अलमारी खुलवाई. अलमारी खुलते ही बदबू का भभका आया और जब सामने देखा तो सब की आंखें खुली की खुली रह गईं.
अलमारी के बीच वाले खाने में एक लड़की की लाश रखी थी. लाश देखते ही मकान मालिक अशोक कुमार बोल पड़ा, ‘‘सर, यह लाश तो उसी लड़की की है जो इस कमरे में रहती थी.’’
उन्होंने लड़की का नाम किआरा पारकर बताया.
क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम द्वारा अपना काम निपटाने के बाद थानाप्रभारी किशोर कुमार ने अलमारी से लाश निकलवा कर उस का निरीक्षण किया. लाश सड़ी हुई अवस्था में थी. इस से लग रहा था कि उस की हत्या कई दिन पहले की गई है.
उस के शरीर पर कोई घाव का निशान भी नहीं दिखा तो अनुमान लगाया कि उस की हत्या गला दबा कर की होगी या फिर उसे कोई जहरीला पदार्थ दिया होगा. मकान मालिक से पुलिस को यह पता लग ही गया था कि लाश 18 वर्षीया किआरा पारकर की है. तब पुलिस ने लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल, हरिनगर भेज दिया.
यह काररवाई करने के बाद पुलिस ने अशोक कुमार से बात की तो उस ने बताया कि कमरा किराए पर लेते समय किआरा ने उसे अपने आधार कार्ड की कौपी दी थी. उस लड़की द्वारा दी गई आधार कार्ड की कौपी अपने कमरे से ला कर उस ने थानाप्रभारी को दे दी.
आधार कार्ड की उस फोटोकौपी पर उस का पता मकान नंबर 93, सेक्टर-10, बराई रोड, गुड़गांव, हरियाणा लिखा था. अशोक ने बताया कि किआरा के साथ जो 2 लड़के रहते थे, उन के नाम गुलफाम और रफीक थे. दोनों की ही उम्र 18 साल के आसपास थी.
अशोक से बात करने के बाद पुलिस ने उस कमरे की तलाशी ली. वहां से एक छोटी पौकेट डायरी मिली. उस डायरी में गुलफाम और रफीक के फोन नंबर लिखे थे. थानाप्रभारी ने उन दोनों नंबरों को उसी समय मिलाया तो वे दोनों ही बंद मिले.
घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस थाने लौट गई और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी ने 18 वर्षीय लड़की की लाश बरामद करने की जानकारी डीसीपी को भी दे दी.
डीसीपी सुमन गोयल ने हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी किशोर कुमार की देखरेख में एक पुलिस टीम बनाई. पुलिस टीम में इंसपेक्टर सत्यवीर जनौला, सबइंसपेक्टर शक्ति सिंह, सुरेंद्र सिंह, हेडकांस्टेबल भूपसिंह, नरेश, विजयपाल, कांस्टेबल अनिल कुमार, दिनेश, अरविंद आदि को शामिल किया गया.
पुलिस मरने वाली युवती की शिनाख्त कर ही चुकी थी और यह आशंका भी हो रही थी कि उस के साथ रहने वाले लड़कों ने ही उस की हत्या की होगी क्योंकि वे कमरे से फरार थे और उन के फोन भी स्विच्ड औफ आ रहे थे. पुलिस को मरने वाली युवती किआरा का पता मिल चुका था जबकि उस के साथ रहने वाले रफीक और गुलफाम के बारे में जानकारी नहीं मिल पाई थी कि वे कहां के रहने वाले हैं.
एसआई शक्ति सिंह के नेतृत्व में एक टीम किआरा के पते पर सेक्टर-10, गुड़गांव भेज दी गई. इस पते पर शांति भवन ट्रस्ट औफ इंडिया नाम का एक अनाथालय चल रहा था. शक्ति सिंह ने अनाथालय के संचालकों को किआरा पारकर के आधार कार्ड की कौपी दिखाते हुए उन से उस के बारे में पूछा.
वह फोटोकौपी देखते ही संचालकों ने बताया कि किआरा पारकर इसी अनाथालय में रहती थी जो अब यहां से चली गई है. यहां उस का चालचलन अच्छा नहीं था. उसे हम ने आगरा भेजा था. वहां से वह भाग गई. उसे उस की मां ने इस अनाथालय में भरती कराया था, लेकिन अब मां भी गुजर चुकी है. इतना पता है कि दिल्ली के घिटोरनी गांव में उस की नानी रहती हैं. वही उस से कभीकभी मिलने आती थीं.
पुलिस ने संचालकों से रफीक और गुलफाम के बारे में पूछा तो बताया गया कि ये दोनों भी इसी अनाथालय में रहते थे. किआरा हत्याकांड की जो धुंधली तसवीर पुलिस के दिमाग में बनी हुई थी, अनाथालय से मिली जानकारी के बाद वह तसवीर साफ नजर आने लगी थी. यानी किआरा की उन दोनों लड़कों से जानपहचान पुरानी थी.
एसआई शक्ति सिंह को यह पता चल ही चुका था कि किआरा की नानी घिटोरनी गांव में रहती हैं. उन से बात करने के लिए वह घिटोरनी चले गए. थोड़ी मशक्कत के बाद उन्होंने किआरा की नानी का पता लगा ही लिया. उन से बातचीत करने के बाद भी उन्हें किआरा के बारे में कोई बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिल सकी.
थाने लौट कर शक्ति सिंह ने सारी जानकारी थानाप्रभारी को दे दी. उधर इंसपेक्टर सत्यवीर जनौला ने फरार युवकों रफीक और गुलफाम के फोन नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया था. दोनों ही फोन बंद थे. लेकिन मई के पहले हफ्ते में उन में से एक फोन औन हो गया. तभी पता चल गया कि उस की लोकेशन छत्तीसगढ़ में है. वह लोकेशन स्थिर नहीं आ रही थी. बदलती लोकेशन से ऐसा लग रहा था कि जैसे वह दिल्ली की तरफ आ रहा है.
क्या सच में किआरा की हत्या रफीक और गुलफाम ने ही की थी? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.