नाबालिग मोहब्बत का तीखा जहर

रोमिला अपनी बेटी सलोनी के साथ लखनऊ के इंदिरा नगर मोहल्ले में रहती थी. उस का 3 मंजिल का मकान था. पहली दोनों मंजिलों पर रहने के लिए कमरे थे और तीसरी मंजिल पर गोदाम बना था, जहां कबाड़ और पुरानी चीजें रखी रहती थीं.

ईसाई समुदाय की रोमिला मूलत: सुल्तानपुर जिले की रहने वाली थी. उस ने जौन स्विंग से प्रेम विवाह किया था. सलोनी के जन्म के बाद रोमिला और जौन स्विंग के संबंध खराब हो गए. रोमिला ने घुटघुट कर जीने के बजाय अपने पति जौन स्विंग से तलाक ले लिया. इसी बीच रोमिला को लखनऊ के सरकारी अस्पताल में टैक्नीशियन की नौकरी मिल गई. वेतन ठीकठाक था. इसलिए वह अपनी आगे की जिंदगी अपने खुद के बूते पर गुजारना चाहती थी.

स्विंग से प्यार, शादी और फिर तलाक ने रोमिला की जिंदगी को बहुत बोझिल बना दिया था. कम उम्र की तलाकशुदा महिला का समाज में अकेले रहना सरल नहीं होता, इस बात को ध्यान में रखते हुए रोमिला ने अपने को धर्मकर्म की बंदिशों में उलझा लिया.

समय गुजर रहा था, बेटी बड़ी हो रही थी. रोमिला अपनी बेटी को पढ़ालिखा कर बड़ा बनाना चाहती थी. क्योंकि अब उस का भविष्य वही थी. सलोनी कावेंट स्कूल में पढ़ती थी, पढ़ने में होशियार. रोमिला ने लाड़प्यार से उस की परवरिश लड़कों की तरह की थी.

सलोनी भी खुद को लड़कों की तरह समझने लगी थी. वह जिद्दी स्वभाव की तो थी ही गुस्सा भी खूब करती थी. जन्म के समय ही कुछ परेशानियों के कारण सलोनी के शरीर के दाएं हिस्से में पैरालिसिस का अटैक पड़ा था, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उस का असर करीब करीब खत्म हो गया था.

सलोनी बौबकट बाल रखती थी. उस की उम्र हालांकि 15 साल थी पर वह अपनी उम्र से बड़ी दिखाई देती थी. वह लड़कों की तरह टीशर्ट पैंट पहनती थी. सलोनी के साथ पढ़ने वाले लड़के लड़कियां स्मार्टफोन इस्तेमाल करते थे. सलोनी ने भी मां से जिद कर के स्मार्टफोन खरीदवा लिया.

रोमिला जानती थी कि आजकल के बच्चे मोबाइल पर इंटरनेट लगा कर फेसबुक और वाट्सएप जैसी साइटों का इस्तेमाल करते हैं जो सलोनी जैसी कम उम्र लड़की के लिए ठीक नहीं है. लेकिन एकलौती बेटी की जिद के सामने उसे झुकना पड़ा.

रोमिला सुबह 8 बजे अस्पताल जाती थी और शाम को 4 बजे लौटती थी. सलोनी भी सुबह 8 बजे स्कूल चली जाती थी और 2 बजे वापस आती थी. कठिन जीवन जीने के लिए रोमिला ने बेड की जगह घर में सीमेंट के चबूतरे बनवा रखे थे. मांबेटी बिस्तर डाल कर इन्हीं चबूतरों पर सोती थीं.

रोमिला को अस्पताल से 45 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था. इस के बावजूद मांबेटी का खर्च बहुत कम था. रोमिला जो खाना बनाती थी वह कई दिन तक चलता था.

मोबाइल फोन लेने के बाद सलोनी ने इंटरनेट के जरीए अपना फेसबुक पेज बना लिया था. वह अकसर अपने दोस्तों से चैटिंग करती रहती थी. इसी के चलते उस के कई नए दोस्त बन गए थे. उस के इन्हीं दोस्तों में से एक था पश्चिम बंगाल के मालदा का रहने वाला सुदीप दास. 19 साल का सुदीप एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करता था.

उस के घर की हालत ठीक नहीं थी. उस का पिता सुधीरदास मालदा में मिठाई की एक दुकान पर काम करता था. जबकि मां कावेरी घरेलू महिला थी. उस का छोटा भाई राजदीप कोई काम नहीं करता था. सुदीप और उस के पिता की कमाई से ही घर का खर्च चलता था.

सुदीप और सलोनी के बीच चैटिंग के माध्यम से जो दोस्ती हुई धीरेधीरे प्यार तक जा पहुंची. नासमझी भरी कम उम्र का तकाजा था. चैटिंग करतेकरते सुदीप और सलोनी एकदूसरे के प्यार में पागल से हो गए. स्थिति यह आ गई कि सुदीप सलोनी से मिलने के लिए बेचैन रहने लगा.

दोनों के पास एकदूसरे के मोबाइल नंबर थे. सो दोनों खूब बातें करते थे. मोबाइल पर ही दोनों की मिलने की बात तय हुई. सितंबर 2013 में सुदीप सलोनी से मिलने लखनऊ आ गया. सलोनी ने सुदीप को अपनी मां से मिलवाया. रोमिला बेटी को इतना प्यार करती थी कि उस की हर बात मानने को तैयार रहती थी. 2 दिन लखनऊ में रोमिला के घर पर रह कर सुदीप वापस चला गया.

अक्तूबर में सलोनी का बर्थडे था. उस के बर्थडे पर सुदीप फिर लखनऊ आया. अब तक सलोनी ने सुदीप से अपने प्यार की बात मां से छिपा कर रखी थी. लेकिन इस बार उस ने अपने और सुदीप के प्यार की बात रोमिला को बता दी.

सलोनी और सुदीप दोनों की ही उम्र ऐसी नहीं थी कि शादी जैसे फैसले कर सकें. इसलिए रोमिला ने दोनों को समझाने की कोशिश की. ऊंचनीच दुनियादारी के बारे में बताया. लेकिन सुदीप और सलोनी पर तो प्यार का भूत चढ़ा था.

रोमिला को इनकार करते देख सुदीप बड़े आत्मविश्वास से बोला, ‘‘आंटी, आप चिंता न करें. मैं सलोनी का खयाल रख सकता हूं. मैं खुद भी नौकरी करता हूं और मेरे पिताजी भी. हमारे घर में भी कोई कुछ नहीं कहेगा.’’

बातचीत के दौरान रोमिला सुदीप के बारे में सब कुछ जान गई थी. इसलिए सोचविचार कर बोली, ‘‘देखो बेटा, तुम्हारी सारी बातें अपनी जगह सही हैं. मुझे इस रिश्ते से भी कोई ऐतराज नहीं है. पर मैं यह रिश्ता तभी स्वीकार करूंगी जब तुम कोई अच्छी नौकरी करने लगोगे. आजकल 10-5 हजार की नौकरी में घरपरिवार नहीं चलते. अभी तुम दोनों में बचपना है.’’

‘‘ठीक है आंटी, मैं आप की बात मान लेता हूं. लेकिन आप वादा करिए कि आप उसे मुझ से दूर नहीं करेंगी. जब मैं कुछ बन जाऊंगा तो सलोनी को अपनी बनाने आऊंगा.’’ सुदीप ने फिल्मी हीरो वाले अंदाज में रोमिला से अपनी बात कही.

इस बार सुदीप सलोनी के घर पर एक सप्ताह तक रहा. इसी बीच रोमिला ने सुदीप से स्टांप पेपर पर लिखवा लिया कि वह किसी लायक बन जाने के बाद ही सलोनी से शादी करेगा. इस के बाद सुदीप अपने घर मालदा चला गया. लेकिन लखनऊ से लौटने के बाद उस का मन नहीं लग रहा था.

जवानी में, खास कर चढ़ती उम्र में महबूबा से बड़ा दूसरा कोई दिखाई नहीं देता. कामधाम, भूखप्यास, घरपरिवार सब बेकार लगने लगते हैं. सुदीप का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उस की आंखों के सामने सलोनी का गोलगोल सुंदर चेहरा और बोलती हुई आंखें घूमती रहती थीं. वह किसी भी सूरत में उसे खोने के लिए तैयार नहीं था.

जब नहीं रहा गया तो 10 दिसंबर, 2013 को सुदीप वापस लखनऊ आया और रोमिला को बहका फुसला कर सलोनी को मालदा घुमाने के लिए साथ ले गया. हालांकि सलोनी की मां रोमिला इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. लेकिन सलोनी ने उसे मजबूर कर दिया.

दरअसल मां के प्यार ने उसे इतना जिद्दी बना दिया था कि वह कोई बात सुनने को तैयार नहीं होती थी. रोमिला के लिए बेटी ही जीने का सहारा थी. वह उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. इस लिए वह सलोनी की जिद के आगे झुक गई. करीब ढाई माह तक सलोनी सुदीप के साथ मालदा में रही.

मार्च, 2014 में सलोनी वापस आ गई. सुदीप भी उस के साथ आया था. बेटी का बदला हुआ स्वभाव देख कर रोमिला को झटका लगा. सलोनी उस की कोई बात सुनने को तैयार नहीं थी. पति से अलग होने के बाद रोमिला ने सोचा था कि वह बेटी के सहारे अपना पूरा जीवन काट लेगी. अब वह बेटी के दूर जाने की कल्पना मात्र से बुरी तरह घबरा गई थी.

लेकिन हकीकत वह नहीं थी जो रोमिला देख या समझ रही थी. सच यह था कि सलोनी का मन सुदीप से उचट गया था. उस का झुकाव यश नाम के एक अन्य लड़के की ओर होने लगा था. जबकि सुदीप हर हाल में सलोनी को पाना चाहता था. वह कई बार उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर चुका था. यह बात मांबेटी दोनों को नागवार गुजरने लगी थी.

रोमिला ने अस्पताल से 1 मार्च, 2014 से 31 मार्च तक की छुट्टी ले रखी थी. उस ने अस्पताल में छुट्टी लेने की वजह बेटी की परीक्षाएं बताई थीं.

7 अप्रैल, 2014 की सुबह रोमिला के मकान के पड़ोस में रहने वाले रणजीत सिंह ने थाना गाजीपुर आ कर सूचना दी कि बगल के मकान में बहुत तेज बदबू आ रही है. उन्होंने यह भी बताया कि मकान मालकिन रोमिला काफी दिनों से घर पर नहीं है. सूचना पा कर एसओ गाजीपुर नोवेंद्र सिंह सिरोही, सीनियर इंसपेक्टर रामराज कुशवाहा और सिपाही अरूण कुमार सिंह रोमिला के मकान पर पहुंच गए.

देखने पर पता चला कि मकान के ऊपर के हिस्से में बदबू आ रही थी. पुलिस ने फोन कर के मकान मालकिन रोमिला को बुला लिया. वहां उस के सामने ही मकान खोल कर देखा गया तो पूरा मकान गंदा और रहस्यमय सा नजर आया. सिपाही अरूण कुमार और एसएसआई रामराज कुशवाहा तलाशी लेने ऊपर वाले कमरे में पहुंचे तो कबाड़ रखने वाले कमरे में एक युवक की सड़ीगली लाश मिली.

पुलिस ने रोमिला से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह लाश मालदा, पश्चिम बंगाल के रहने वाले सुदीप दास की है. वह उस की बेटी सलोनी का प्रेमी था और उस से शादी करना चाहता था. जब सलोनी ने इनकार कर दिया तो सुदीप ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. रोमिला ने आगे बताया कि इस घटना से वह बुरी तरह डर गई थी. उसे लग रहा था कि हत्या के इल्जाम में फंस जाएगी. इसलिए वह घर को बंद कर के फरार हो गई थी.

पुलिस ने रोमिला से नंबर ले कर फोन से सुदीप के घर संपर्क किया और इस मामले की पूरी जानकारी उस के पिता को दे दी. लेकिन उस के घर वाले लखनऊ आ कर मुकदमा कराने को तैयार नहीं थे. कारण यह कि वे लोग इतने गरीब थे कि उन के पास लखनऊ आने के लिए पैसा नहीं था. इस पर एसओ गाजीपुर ने अपनी ओर से मुकदमा दर्ज कर के इस मामले की जांच शुरू कर दी. प्राथमिक काररवाई के बाद सुदीप की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

8 अप्रैल 2014 को सुदीप की लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद जो सच सामने आया, वह चौंका देने वाला था. इस बीच सलोनी भी आ गई थी. रोमिला और उस की बेटी सलोनी ने अपने बयानों में कई बातें छिपाने की कोशिश की थी. लेकिन उन के अलगअलग बयानों ने उन की पोल खोल दी. एसपी ट्रांस गोमती हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय पुलिस विवेचना पर नजर रख रहे थे जिस से इस पूरे मामले का बहुत जल्दी पर्दाफाश हो गया.

मांबेटी से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी.

13 मार्च, 2014 की रात को सलोनी अपने कमरे में किसी से फोन पर बात कर रही थी. इसी बीच सुदीप उस से झगड़ने लगा. वह गुस्से में बोला, ‘‘मैं ने मांबेटी दोनों को कितनी बार समझाया है कि मुझे खीर में इलायची डाल कर खाना पसंद नहीं है. लेकिन तुम लोगों पर मेरी बात का कोई असर नहीं होता.’’

उस की इस बात पर सलोनी को गुस्सा आ गया. उस ने सुदीप को लताड़ा, ‘‘तुम मां से झगड़ने के बहाने तलाश करते रहते हो. बेहतर होगा, तुम यहां से चले जाओ. मैं तुम से किसी तरह की दोस्ती नहीं रखना चाहती.’’

‘‘ऐसे कैसे चला जाऊं? मैं ने स्टांपपेपर पर लिख कर दिया है, तुम्हें मेरे साथ ही शादी करनी होगी. बस तुम 18 साल की हो जाओ. तब तक मैं कोई अच्छी नौकरी कर लूंगा और फिर तुम से शादी कर के तुम्हें साथ ले जाऊंगा. अब तुम्हारी मां चाहे भी तो तुम्हारी शादी किसी और से नहीं करा सकती.’’ सुदीप ने भी गुस्से में जवाब दिया.

‘‘मेरी ही मति मारी गई थी जो तुम्हें इतना मुंह लगा लिया.’’ कह कर सलोनी ऊपर चली गई. वहां उस की मां पहले से दोनों का लड़ाईझगड़ा देख रही थी.

‘‘सुदीप, तुम मेरे घर से चले जाओ.’’ रोमिला ने बेटी का पक्ष लेते हुए चेतावनी भरे शब्दों में कहा तो सुदीप उस से भी लड़नेझगड़ने लगा. यह देख मांबेटी को गुस्सा आ गया. सुदीप भी गुस्से में था. उस ने मांबेटी के साथ मारपीट शुरू कर दी. जल्दी ही वह दोनों पर भरी पड़ने लगा. तभी रोमिला की निगाह वहां रखी हौकी स्टिक पर पड़ी.

रोमिला ने हौकी उठा कर पूरी ताकत से सुदीप के सिर पर वार किया. एक दो नहीं कई वार. एक साथ कई वार होने से सुदीप की वहीं गिर कर मौत हो गई. सुदीप की मृत्यु के बाद मांबेटी दोनों ने मिल कर उस की लाश को बोरे में भर कर कबाड़ वाले कमरे में बंद कर दिया. इस के बाद अगली सुबह दोनों घर पर ताला लगा कर गायब हो गईं.

पुलिस को उलझाने के लिए रोमिला ने बताया कि वह यह सोच कर डर गई थी कि सुदीप का भूत उसे परेशान कर सकता है. इसलिए, वे दोनों हवन कराने के लिए हरिद्वार चली गई थीं.

सलोनी ने भी 14 मार्च को अपनी डायरी में लिखा था, ‘आत्माओं ने सुदीप को मार डाला. हम फेसबुक पर एकदूसरे से मिले थे. आत्माओं के पास लेजर जैसी किरणें हैं. वह हमें नष्ट कर देंगी. आत्माएं हमें फंसा देंगी.’ सलोनी ने इस तरह की और भी तमाम अनापशनाप बातें डायरी में लिखी थीं. रोमिला भी इसी तरह की बातें कर रही थी.

पुलिस ने अपनी जांच में पाया कि मांबेटी हरिद्वार वगैरह कहीं नहीं गई थी बल्कि दोनों लखनऊ में इधरउधर भटक कर अपना समय गुजारती रही थीं. वे समझ नहीं पा रही थीं कि इस मामले को कैसे सुलझाएं, क्योंकि सुदीप की लाश घर में पड़ी थी.

बहरहाल, उस की लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद इस बात का खुलासा हो गया था कि मामला आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का था. गाजीपुर पुलिस ने महिला दारोगा नीतू सिंह, सिपाही मंजू द्विवेदी और उषा वर्मा को इन मांबेटी से राज कबूलवाने पर लगाया.

जब उन्हें बताया गया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सुदीप की मौत का का कारण सिर पर लगी चोट को बताया गया है, तो वे टूट गईं. दोनों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. रोमिला की निशानदेही पर हौकी स्टिक भी बरामद हो गई.

8 अप्रैल, 2014 को पुलिस ने मां रोमिला को जेल और उस की नाबालिग बेटी सलोनी को बालसुधार गृह भेज दिया. जो भी जैसे भी हुआ हो, लेकिन सच यह है कि फेसबुक की दोस्ती की वजह से सुदीप का परिवार बेसहारा हो गया है.

पुलिस उस के परिवार को बारबार फोन कर के लखनऊ आ कर बेटे का दाह संस्कार कराने के लिए कह रही थी. लेकिन वे लोग आने को तैयार नहीं थे. सुदीप की लाश लखनऊ मेडिकल कालेज के शवगृह में रखी थी. एसओ गाजीपुर नोवेंद्र सिंह सिरोही ने सुदीप के पिता सुधीर दास को समझाया और भरोसा दिलाया कि वह लखनऊ आएं, वे उन की पूरी मदद करेंगे. पुलिस का भरोसा पा कर सुदीप का पिता सुधीर दास लखनऊ आया. बेटे की असमय मौत ने उस का कलेजा चीर दिया था.

सुधीर दास पूरे परिवार के साथ लखनऊ आना चाहता था लेकिन उस के पास पैसा नहीं था. इसलिए परिवार का कोई सदस्य उस के साथ नहीं आ सका. वह खुद भी पैसा उधार ले कर आया था. सुधीर दास की हालत यह थी कि बेटे के दाह संस्कार के लिए भी उस के पास पैसा नहीं था. जवान बेटे की मौत से टूट चुका सुधीर दास पूरी तरह से बेबस और लाचार नजर आ रहा था.

उन की हालत देख कर गाजीपुर पुलिस ने अपने स्तर पर पैसों का इंतजाम किया और सुदीप का क्रियाकर्म भैंसाकुंड के इलेक्ट्रिक शवदाह गृह पर किया. सुदीप की अभागी मां कावेरी और भाई राजदीप तो उसे अंतिम बार देख भी नहीं सके.

क्रियाकर्म के बाद पुलिस ने ही सुधीर के वापस मालदा जाने का इंतजाम कराया. गरीबी से लाचार यह पिता बेटे की हत्या करने वाली मांबेटी को सजा दिलाने के लिए मुकदमा भी नहीं लड़ना चाहता. अनजान से मोहब्बत और उस से शादी की जिद ने सुदीप की जान ले ली. सुदीप अपने परिवार का एकलौता कमाऊ बेटा था. उस के जाने से पूरा परिवार पूरी तरह से टूट गया है. सलोनी और सुदीप की एक गलती ने 2 परिवारों को तबाह कर दिया है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में आरोपी सलोनी का नाम परिवर्तित है.