सुधा का एक आपराधिक प्रवृत्ति का दोस्त था उमेश चौधरी. वह हरिद्वार के थाना कनखल के रहने वाले मदनपाल का बेटा था. उस के खिलाफ अलगअलग जिलों में हत्या के 4 मुकदमे दर्ज थे. उमेश की दोस्ती सुधा से भी थी और हरिओम से भी. बात कर के सुधा ने युद्धवीर को खत्म करने के लिए उमेश को 5 लाख रुपए की सुपारी दे दी. रकम काम होने के बाद देना था.
उमेश तैयार हो गया तो सुधा ने कहा, ‘‘तुम्हें हरिओम के साथ ही देहरादून आना है, लेकिन तुम इस बारे में उसे कुछ नहीं बताओगे.’’
‘‘सुपारी ली है मैडम तो बात भी मानूंगा.’’ उमेश ने कहा.
इस के बाद सुधा ने हरिओम को फोन किया, ‘‘1 अगस्त को तुम देहरादून आ जाना. इंतजाम कर के तुम्हारे पैसे दे दूंगी.’’
सुधा की इस बात से खुश हो कर हरिओम ने कहा, ‘‘इस बार मुझे मेरे पूरे पैसे देने होंगे.’’
‘‘ठीक है, हरिओम मैं खुद ही तुम्हारे पैसे दे देना चाहती हूं. लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरियां हैं. और हां, तुम एक काम करना.’’
‘‘क्या?’’
‘‘आते समय अपने साथ उमेश को भी लेते आना.’’
‘‘ठीक है.’’ इस के बाद फोन काट दिया गया.
1 अगस्त को हरिओम अपनी स्कार्पियो से पहले हरिद्वार पहुंचा और वहां से उमेश को ले कर देहरादून पहुंच गया. वह उमेश के साथ त्यागी रोड स्थित एक होटल में ठहरा. सुधा हरिओम से मिलने आई तो 3-4 दिनों में उस ने रुपए देने की बात कही. इस के बाद भी सुधा की हरिओम से मोबाइल पर तो बात होती ही रहती थी, वह उस से मिलने भी आती रही. वह हरिओम को एकएक दिन कर के टाल रही थी.
8 अगस्त को हरिओम ने हरिद्वार के रहने वाले अपने दोस्त संजीव को फोन कर के बुला लिया. उसी दिन सुधा ने हरिओम को बताया कि उसे युद्धवीर की हत्या करनी है, क्योंकि युद्धवीर को 14 लाख रुपए वापस करने हैं. अगर उस ने उस के पैसे नहीं लौटाए तो वह उस की हत्या करा देगा. इस काम में उसे उस का साथ देना होगा. इस के बाद वह उस के बाकी पैसे वापस कर देगी.
उसी बीच उमेश ने सुधा का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘क्या फर्क पड़ता है यार हरिओम. मुझे इस काम के लिए मैडम ने 5 लाख रुपए देने को कहा है. काम होने पर उस में से मैं आधे तुम्हें दे दूंगा. इस के अलावा तुम्हें अपनी डूबी रकम भी मिल जाएगी. इसलिए तुम्हें मैडम का साथ देना चाहिए.’’
हरिओम इस बात से बेखबर था कि युद्धवीर की हत्या का उमेश से पहले ही सौदा हो चुका है. आखिर कुछ देर की बातचीत के बाद हरिओम साथ देने को तैयार हो गया. सुधा का सोचना था कि युद्धवीर की हत्या के बाद उसे 14 लाख रुपए वापस नहीं करने पड़ेंगे. इस के अलावा अगर युद्धवीर का लाया एडमिशन हो गया तो 60 लाख में से बाकी के 46 लाख रुपए भी उसे मिल जाएंगे. इस के बाद वह हरिओम को भी ब्लैकमेल करतेहुए उस के रुपए देने से मना कर देगी.
8 अगस्त को बलराज अपने पैसे लेने आया तो युद्धवीर ने सुधा को फोन किया. सुधा ने उसे गुरुद्वारा साहिब पहुंचने को कहा. प्रदीप चौहान ने उसे गुरुद्वारा साहिब छोड़ दिया. इस के बाद सुधा ने उसे चकराता रोड आने को कहा. उस ने हरिओम को भी वहीं बुला लिया था. हरिओम अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से था, जबकि सुधा अपनी स्कूटी से आई थी. उस ने हरिओम का परिचय छद्म नाम से कराते हुए युद्धवीर से कहा, ‘‘यह अनिल श्रीवास्तव हैं.यही कालेज के एडमिशन हेड हैं. इन्हीं को मैं ने 14 लाख रुपए दिए थे. हमें राजपुर रोड चलना होगा. वहीं यह हमें पैसे देंगे.’’
युद्धवीर को क्या पता था कि उसे जाल में उलझाया जा रहा है. पैसों के लिए वह साथ चलने को तैयार हो गया. सुधा युद्धवीर को स्कूटी से ले कर आगेआगे चलने लगी तो उस के पीछेपीछे हरिओम भी अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से चल पड़ा. राजपुर रोड पर आ कर सभी रुक गए.
सुधा ने अपनी स्कूटी वहीं खड़ी कर दी और गाड़ी चला रहे हरिओम के बगल वाली सीट पर बैठ गई. युद्धवीर पिछली सीट पर उमेश और संजीव के साथ बैठ गया. स्कार्पियो एक बार फिर चल पड़ी. उन लोगों के मन में क्या है, युद्धवीर को पता नहीं था. चलते हुए ही युद्धवीर ने रुपए लौटाने की बात शुरू की तो सुधा का चेहरा तमतमा उठा.
सुधा के इस अंदाज और अंजान लोगों के साथ होने से युद्धवीर को उस पर शक हुआ तो उस ने भागना चाहा. लेकिन स्कार्पियो के दरवाजे से सिर टकरा जाने की वजह से वह गाड़ी के अंदर ही गिर गया. तभी उमेश ने उस के गले में रस्सी डाल कर एकदम से कस दिया. युद्धवीर जान बचाने के लिए छटपटाया, लेकिन उन की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह कुछ नहीं कर सका. अंतत: उस की मौत हो गई.
युद्धवीर की हत्या कर के वे उस की लाश को सहस्रधारा नदी की उफनती धारा में फेंकना चाहते थे. युद्धवीर की लाश को उन्होंने बाएं दरवाजे की ओर इस तरह बैठा दिया कि देखने वाले को लगे कि वह सो रहा है. युद्धवीर के मोबाइल फोन जेब से निकाल कर स्विच औफ कर दिए.
रास्ते में एक जगह पुलिस वाहनों की चैकिंग कर रही थी, जिसे देख कर हरिओम घबरा गया और आगे जाने से मना कर दिया. सुधा और उमेश ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना और गाड़ी घुमा ली. लौटते हुए ही उन्होंने लाश आनंदमयी आश्रम के पास सड़क के किनारे फेंक दी. सुधा अपनी स्कूटी ले कर अपने घर चली गई, जबकि हरिओम, उमेश और संजीव स्कार्पियो से हरिद्वार चले गए.
युद्धवीर की हत्या कर सुधा निश्चिंत हो गई कि अब उसे किसी के पैसे नहीं देने पड़ेंगे. उसे विश्वास था कि अगर उस का नाम सामने आया भी तो अपने प्रभाव से वह छूट जाएगी. लेकिन उस के मंसूबों पर पानी फिर गया. हरिओम और सुधा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी बरामद कर ली. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
इस के बाद पुलिस ने उमेश को भी गिरफ्तार कर लिया. जबकि संजीव हरिद्वार में अपने खिलाफ पहले से दर्ज छेड़छाड़ के एक मामले की जमानत रद्द करवा कर जेल चला गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. सुधा ने महत्त्वाकांक्षाओं में जिंदगी को न उलझाया होता और युद्धवीर ने उस पर विश्वास न किया होता तो शायद यह नौबत न आती.
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
पुलिस को उस पर शक हुआ तो उस के मोबाइल फोन की लोकेशन और काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि उस के मोबाइल की लोकेशन चकराता रोड और लाश मिलने के स्थान की भी थी. इस के साथ एक और मोबाइल की लोकेशन मिल रही थी, जिस से सुधा की लगातार बात होती रहती थी.
उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर हरिओम वशिष्ठ उर्फ बिट्टू का निकला. वह उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना नौचंदी के शास्त्रीनगर के रहने वाले बृजपाल का बेटा था. उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा कर एक पुलिस टीम उस की गिरफ्तारी के लिए निकल पड़ी. आखिर सर्विलांस से मिल रही लोकेशन के आधार पर पुलिस ने सुधा और हरिओम को हिरासत में ले लिया.
पहले तो सुधा ने अपने राजनीतिक संपर्कों की धौंस दिखा कर पुलिस को रौब में लेने कोशिश की थी. लेकिन पुलिस के पास ऐसे सुबूत थे कि उस की यह धौंस जरा भी नहीं चली. फिर तो पूछताछ में उस ने पुलिस के सामने जो खुलासा किया, सुन कर पुलिस दंग रह गई. दरअसल युद्धवीर की हत्या की साजिश सुधा ने ही रची थी. उस ने शातिर चाल चल कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की थी.
सुधा और हरिओम से की गई पूछताछ में युद्धवीर की हत्या की चौंकाने वाली जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी.
मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की रहने वाली सुधा का परिवार कई साल पहले मेरठ में आ कर बस गया था. मेरठ आने के बाद सुधा ने देहरादून के रहने वाले देवराज पटवाल से विवाह कर लिया था. देवराज कंप्यूटर इंस्टिट्यूट तो चलाता ही था, साथ ही कंप्यूटर का बिजनेस भी करता था. वह बड़ेबड़े व्यापारिक और सरकारी संस्थानों में कंप्यूटर सप्लाई करता था.
सुधा बेहद महत्त्वाकांक्षी और शातिर दिमाग महिला थी. अंगे्रजी के अलावा फे्रंच पर भी उस की अच्छी पकड़ थी. जिंदगी को जीने का उस का अपना एक अलग ही अंदाज था. उसे रसूख भी पसंद था और ऊंचे ओहदे वाले लोगों से रिश्ता भी. इस के लिए वह कांगे्रस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर के रसूख वाले लोगों से संपर्क बनाने लगी.
पैसे कमाने के लिए सुधा पार्टटाइम प्रौपर्टी डीलिंग के साथसाथ छात्रछात्राओं के बड़े कालेजों में एडमिशन कराने लगी. करीब 4 साल पहले सुधा के पति देवराज को लकवा मार गया, जिस से वह चलनेफिरने में लाचार हो गया. इस का असर उस के बिजनेस पर पड़ा. घटतेघटते एक दिन ऐसा आया कि उस का बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया.
पति के बिस्तर पर पड़ने के बाद सुधा आजाद हो गई. दौड़धूप कर के उस ने तमाम छोटेबड़े नेताओं से संबंध बना लिए. इस का उसे लाभ भी मिलने लगा. संपर्कों की ही वजह से उस का दलाली का काम बढि़या चल निकला. अब सब कुछ सुधा के हाथ में था. उस की एक बेटी थी, जो दिल्ली से बीटेक कर रही थी. वह बेटी को पढ़ाई के लिए विदेश भेजना चाहती थी.
सुधा की पकड़ मोहल्ले से ले कर सत्ता के गलियारों तक हो गई थी. दलाली की कमाई से वह ठाठबाट से रह रही थी. इंदिरानगर की वह जिस कोठी में रहती थी, उस का किराया 20 हजार रुपए महीने था. ऐशोआराम की जिंदगी के लिए वह पैसा पानी की तरह बहाती थी. लोगों पर रौब गांठने के लिए वह नेताओं से अपने संबंधों की धमकी देती थी.
हरक सिंह रावत के यहां भी सुधा का आनाजाना था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात युद्धवीर से हुई तो बातचीत में पता चला कि वह भी एडमिशन कराता है. दोनों की राह एक थी, इसलिए उन में अच्छी पटने लगी. जुलाई में युद्धवीर ने मैडिकल कालेज में एडमिशन कराने की बात की तो उस ने 60 लाख रुपए मांगे.
युद्धवीर ने एडमिशन कराने के लिए 14 लाख रुपए एडवांस के रूप में सुधा को दे दिए. लेकिन दिक्कत तब आई, जब एडमिशन नहीं हुआ. ये 14 लाख रुपए बलराज के थे. वह अपने रुपए वापस मांगने लगा तो युद्धवीर सुधा को टोकने लगा.
सुधा इस पेशे की खिलाड़ी थी. ऐसे लोगों को टरकाना उसे अच्छी तरह आता था. इसी तरह के एक मामले में उस पर थाना पिलखुआ में ठगी का एक मुकदमा भी दर्ज हो चुका था. लौबिस्ट के रूप में उस की पहचान बन चुकी थी, इसलिए तमाम लोग उस के पास एडमिशन के लिए आते रहते थे. ऐसे में इस तरह की बातें उस के लिए आम थीं.
हरिओम वशिष्ठ भी उस का ऐसा ही शिकार था. सुधा से उस की मुलाकात मेरठ में हुई थी. बातचीत में उस ने हरिओम से देहरादून में प्रौपर्टी में पैसा लगाने को कहा. सुधा की बातचीत और ठाठबाट से हरिओम समझ गया कि यह बेहद प्रभावशाली महिला है. कुछ महीने पहले देहरादून के झाझरा इलाके में 4 बीघा जमीन दिलाने के नाम पर सुधा ने हरिओम से 8 लाख रुपए ले लिए.
बाद में जमीन के कागज फर्जी निकले तो हरिओम को अपने ठगे जाने का भान हुआ. उस ने सुधा से रुपए मांगे तो वह उसे टरकाने लगी. लेकिन हरिओम भी कमाजेर नहीं था. वह उस के पीछे पड़ गया. मजबूर हो कर सुधा ने गहने बेच कर उस के 3 लाख रुपए लौटाए, बाकी रुपए देने का वादा कर लिया.
हरिओम को सुधा झेल ही रही थी. अब युद्धवीर वाला मामला भी फंस गया था. दोनों ही पैसे वापस करने के लिए उस पर दबाव बना रहे थे. हरिओम रकम डूबने से काफी खफा था. वैसे तो इस तरह के मामले सुधा अपने रसूख के बल पर दबा देती थी, लेकिन युद्धवीर और हरिओम का मामला ऐसा था, जिस में उस का रसूख काम नहीं कर रहा था. उस की परेशानी तब और बढ़ गई, जब जुलाई के अंतिम सप्ताह में हरिओम ने उसे फोन कर के पैसे वापस करने के लिए धमकी दे दी.
हरिओम की धमकी से सुधा की चिंता बढ़ गई. वह समझ गई कि अगर उस ने हरिओम के पैसे नहीं लौटाए तो वह कुछ भी कर सकता है. आदमी के दिमाग में कब क्या आ जाए, कोई नहीं जानता. परेशानी में दिमाग बचाव के लिए तरहतरह के रास्ते खोजता है.
सुधा भी बचाव के लिए दिमाग दौड़ाने लगी. फिर उस के दिमाग में जो आया, उस से उसे लगा कि इस से वह सुकून से रह सकेगी. इंसान की फितरत भी है कि वह अपने हिसाब से सिर्फ अपने पक्ष में ही सोचता है. ऐसे में उसे गलत रास्ता भी सही नजर आता है. सुधा के साथ भी ठीक ऐसा ही हो रहा था.
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से पहाड़ों की रानी मंसूरी जाने वाले राजपुर रोड पर आनंदमयी आश्रम के पास पड़ी लाश पर सुबहसुबह किसी की नजर पड़ी तो धीरेधीरे वहां भीड़ लग गई. एकदूसरे को देख कर उत्सुकतावश लोग वहां रुकने लगे थे. लाश देख कर सभी के चेहरों पर दहशत थी.
इस की वजह यह थी कि लाश देख कर ही लग रहा था कि उस की हत्या की गई थी. किसी ने लाश पड़ी होने की सूचना थाना राजपुर को दी तो थानाप्रभारी अमरजीत सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण शुरू हुआ. मृतक की उम्र 50 साल के आसपास थी. उस के गले पर दबाए जाने का निशान साफ झलक रहा था. इस का मतलब था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस की कनपटी पर भी चोट का निशान था.
मामला हत्या का था और यह भी साफ था कि हत्यारों ने कहीं और हत्या कर के शव को यहां ला कर फेंका था. क्योंकि वहां संघर्ष का कोई निशान नहीं था. फिर उस व्यस्त मार्ग पर किसी की हत्या करना भी आसान नहीं था.
कब कौन सा मामला पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण बन जाए, इस बात को खुद पुलिस भी नहीं जानती. हत्या की वारदात में जांच को आगे बढ़ाने के लिए मृतक की पहचान जरूरी होती है. इसलिए सब से पहले पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन जब कोई उस की पहचान नहीं कर सका तो पुलिस ने इस आशय से उस की जेबों की तलाशी ली कि शायद ऐसा कुछ मिल जाए, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.
पुलिस की यह युक्ति काम कर गई. तलाशी में उस के पास से 2 मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड और कुछ कागजात के साथ 5 लाख रुपए का एक डिमांड ड्राफ्ट मिला. इस सब से मृतक की पहचान हुई तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया, क्योंकि मृतक राज्य के रसूखदार कृषि मंत्री हरक सिंह रावत का निजी सचिव रहा था. वैसे तो वह जिला रुद्रप्रयाग के जखोली ब्लाक का रहने वाला था, लेकिन देहरादून में वह यमुना कालोनी स्थित हरक सिंह रावत के सरकारी आवास में रहता था.
घटना की सूचना पा कर एसएसपी केवल खुराना, एसपी (सिटी) डा. जगदीशचंद्र और सीओ (मंसूरी) जया बलूनी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. घटनास्थल से पुलिस को ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारों तक पहुंचा जा सकता. पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मृतक का नाम युद्धवीर था. चूंकि वह एक मंत्री से जुड़ा था, इसलिए राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैल गई. यह 1 अगस्त, 2013 की घटना थी.
मामला राजनीतिक व्यक्ति से जुड़ा था, इसलिए पुलिस की जवाबदेही बढ़ गई थी. पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू और आईजी (कानून व्यवस्था) राम सिंह मीणा ने इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए. डीआईजी अमित कुमार सिन्हा ने अधीनस्थ अधिकारियों से बातचीत कर के जांच में थाना पुलिस की मदद के लिए स्पेशल औपरेशन गु्रप के प्रभारी रवि सैना को भी टीम के साथ लगा दिया था. सूचना पा कर मृतक युद्धवीर का भाई प्रदीप रावत देहरादून आ गया था. जिस की ओर से थाना राजपुर में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.
अब तक की जांच में पता चला था कि युद्धवीर 2 मोबाइल नंबरों का उपयोग करता था. ये दोनों ही नंबर ड्यूअल सिम वाले मोबाइल में उपयोग में लाए जाते थे. पुलिस ने दोनों ही नंबरों की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवा ली. पूछताछ में पता चला था कि 9 अगस्त को वह सुबह ही घर से निकल गए थे. चलते समय उन्होंने कोठी के माली का मोबाइल फोन मांग लिया था. ऐसा उन्होंने पहली बार किया था.
पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू की, जिन की युद्धवीर से 8 अगस्त को बात हुई थी. उन्हीं में से एक बलराज था. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में बलराज ने पुलिस को बताया था कि उस ने एसजीआरआर मैडिकल कालेज में अपनी भांजी का एडमिशन कराने के लिए युद्धवीर से बात की थी. इस के लिए उस ने उस से 60 लाख रुपए मांगे थे. उस ने उन्हें 5 लाख रुपए का ड्राफ्ट और 14 लाख रुपए नकद दे भी दिए थे. बाकी रकम एडमिशन होने के बाद देनी थी. लेकिन एडमिशन नहीं हुआ तो वह अपने 14 लाख रुपए वापस मांगने लगा था.
उन्हीं पैसों के लिए बलराज भी सुबह उस के पास गया था. तब उस ने उस से कहा था कि वह उस का इंतजार करे. आज वह एडमिशन करा कर आएगा या फिर पैसे वापस ले कर आएगा. कई घंटे तक वह उस का इंतजार करता रहा. जब वह नहीं आया तो उस ने उसे कई बार फोन किया. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. तब वह लौट गया था. रात में उस के मोबाइल फोन का स्विच औफ हो गया था.
आवास पर रहने वाले अन्य लोगों ने भी पुलिस को बताया था कि बलराज वहां आया था. उन्हीं लोगों से पूछताछ में पता चला था कि युद्धवीर दोपहर 2 बजे तक कृषि मंत्री हरक सिंह रावत के पीएसओ प्रदीप चौहान के साथ था. उस ने कहीं जाने की बात कही थी तो प्रदीप चौहान ने उसे 3 बजे के आसपास दरबार साहिब पर छोड़ा था. अंतिम लोकेशन और पूछताछ से पता चला था कि युद्धवीर शाम 6 बजे चकराता रोड स्थित नटराज सिनेमा के बाहर दिखाई दिया था.
मृतक राजनीतिक आदमी से तो जुड़ा ही था, उस का अपना भी राजनीतिक वजूद था. वह रुद्रप्रयाग के अगस्त्य मुनि क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य और जखोली ब्लाक का ज्येष्ठ प्रमुख भी रह चुका था. मंत्री हरक सिंह रावत ने भी उस के परिजनों को सांत्वना दे कर घटना का शीघ्र से शीघ्र खुलासे का आश्वासन दिया था. हत्या को ले कर रंजिश, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और प्रेमप्रसंग को ले कर चर्चाएं हो रही थीं. पुलिस को लूटपाट की भी संभावना लग रही थी. लेकिन यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि वह माली का मोबाइल फोन मांग कर क्यों ले गया था.
पुलिस ने अपना सारा ध्यान इसी बात पर केंद्रित कर दिया. जांच में यह भी पता चला था कि युद्धवीर छात्र छात्राओं के एडमिशन कराने का काम करता था. ऐसे में यह भी संभावना थी कि एडमिशन न होने से खफा हो कर किसी व्यक्ति ने उस की हत्या कर दी हो. तरहतरह के सवाल उठ रहे थे, जिन का माकूल जवाब पुलिस के पास नहीं था.
जांच कर रही पुलिस टीम के हाथ एक सुबूत यह लगा था कि युद्धवीर को चकराता रोड पर जब अंतिम बार देखा गया था, तब उस के साथ एक महिला थी. अब पुलिस को यह पता लगाना था कि वह महिला कौन थी? पुलिस ने काल डिटेल्स की बारीकी से जांच की तो उस में देहरादून के ही पौश इलाके इंदिरानगर की रहने वाली सुधा पटवाल का नंबर सामने आया.
पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो मिली जानकारी चौंकाने वाली थी. सुधा प्रौपर्टी डीलिंग से ले कर मैडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में एडमिशन कराने वाली शहर की जानीमानी रसूखदार लौबिस्ट थी. कई राजनैतिक लोगों से भी उस के घनिष्ठ रिश्ते थे.