MP News : कामुक तांत्रिक और शातिर बेगम की खौफनाक कहानी

MP News : मध्य प्रदेश के जिला देवास की एक तहसील है खातेगांव, जहां से 5-7 किलोमीटर दूर स्थित है गांव सिराल्या. इसी गांव में रूप सिंह पत्नी मीराबाई और एकलौती बेटी सत्यवती के साथ झोपड़ी बना कर रहता था. रूप सिंह को कैंसर होने की वजह से उस के इलाज से ले कर पेट भरने और तन ढकने तक की जिम्मेदारी मीराबाई उठा रही थी.

आदमी कितना भी गरीब क्यों न हो, जान पर बन आती है तो सब कुछ दांव पर लगा कर जान बचाने की कोशिश करता है. मीराबाई भी खानेपहनने से जो बच रहा था, पति रूप सिंह के इलाज पर खर्च कर रही थी. लेकिन उस की बीमारी मीराबाई की कमाई लील कर भी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही थी.

जब सारी जमापूंजी खर्च हो गई और कोई फायदा नहीं हुआ तो रूप सिंह दवा बंद कर के तंत्रमंत्र से अपनी जीवन की बुझती ज्योति को जलाने की कोशिश करने लगा. वह एक मुसीबत से जूझ ही रहा था कि अचानक एक और मुसीबत उस समय आ खड़ी हुई, जब जुलाई, 2016 के आखिरी सप्ताह में एक दिन उस की 16 साल की बेटी सत्यवती अचानक गायब हो गई. एकलौती होने की वजह से सत्यवती ही मीराबाई और रूप सिंह के लिए सब कुछ थी.

उस के अलावा पतिपत्नी के पास और कुछ नहीं था. इसलिए बेटी के गायब होने से दोनों परेशान हो उठे. रूप सिंह बीमारी की वजह से लाचार था, इसलिए मीराबाई अकेली ही बेटी की तलाश में भटकने लगी. जब बेटी का कहीं कुछ पता नहीं चला तो आधी रात के आसपास वह रोतीबिलखती थाना खातेगांव जा पहुंची.

मीराबाई ने पूरी बात ड्यूटी अफसर को बताई तो उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी थानाप्रभारी तहजीब काजी को दे दी. वह तुरंत थाने आ पहुंचे और मीराबाई को शांत करा कर पूरी बात बताने को कहा.

मीराबाई ने जवानी की दहलीज पर खड़ी अपनी बेटी सत्यवती के लापता होने की पूरी बात तहजीब काजी को बताई तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि सत्यवती भले ही नाबालिग थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि उस के गायब होने के पीछे किसी बुरी घटना की आशंका न हो, जबकि आजकल तो लोग दूधपीती बच्चियों को भी नहीं छोड़ रहे हैं.

तहजीब काजी को प्रेमप्रसंग को ले कर सत्यवती के भाग जाने की आंशका थी. लेकिन जब इस बारे में उन्होंने मीराबाई से पूछताछ की तो उन की यह आशंका निराधार साबित हुई, क्योंकि मीराबाई का कहना था कि सत्यवती की न तो गांव के किसी लड़के से दोस्ती थी और न ही किसी लड़के का उस के घर आनाजाना था.

बस, एक MP News राशिद बाबा का उस के घर आनाजाना था. यही वजह थी कि गांव वालों ने उस के परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर रखा था. लेकिन नेमावर के रहने वाले राशिद बाबा पांचों वक्त नमाजी और पक्के मजहबी हैं, इसलिए उन पर शंका नहीं की जा सकती. फिर वह सत्यवती के दादा की उम्र के भी हैं. इसलिए मासूम बच्ची पर नीयत खराब कर के वह अपना बुढ़ापा क्यों बेकार करेंगे.

बहरहाल, सत्यवती की उम्र को देखते हुए उस की तलाश करना जरूरी था. इसलिए तहजीब काजी पूछताछ करने के लिए रात में ही मीराबाई के गांव जा पहुंचे, जहां उन्हें चौकाने वाली बात यह पता चली कि राशिद बाबा के आनेजाने से लगभग पूरा गांव रूप सिंह से नाराज था. इस की वजह यह थी कि एक तो वह दूसरे मजहब का था, जो गांव वालों को पसंद नहीं था, इस के अलावा वह तंत्रमंत्र करता था, जिस से गांव वाले उस से डरते थे.

राशिद के तांत्रिक होने की जानकारी होते ही तहजीब काजी को उसी पर शक हुआ. क्योंकि पुलिस की अब तक की नौकरी से उन्हें यह अच्छी तरह पता चल चुका था कि तंत्रमंत्र कुछ नहीं है, सिर्फ मन का वहम है. इसलिए जो लोग खुद को तांत्रिक होने का दावा करते हैं, सीधी सी बात है कि वे बहुत ही शातिर किस्म के होते हैं.

तांत्रिकों द्वारा महिलाओं और मासूम लड़कियों के यौनशोषण की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं. यही सब सोच कर तहजीब काजी को राशिद बाबा पर शक हुआ. उन्होंने तुरंत एसपी शशिकांत शुक्ला और एएसपी राजेश रघुवंशी को घटना के बारे में बता कर दिशानिर्देश मांगे.

अधिकारियों के आदेश पर समय गंवाए बगैर वह 15 किलोमीटर दूर स्थित राशिद के घर जा पहुंचे, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस से उन का शक और बढ़ गया. घर वालों से पूछताछ कर के वह वापस आ गए.

तहजीब काजी सत्यवती की तलाश में तत्परता से जुट गए थे. उन्होंने अपने मुखबिरों को भी राशिद बाबा की तलाश में लगा दिया था. उन की इस सक्रियता का ही नतीजा था कि अगले दिन नेमावर की ही रहने वाली कमला सत्यवती को ले कर थाने आ पहुंची.

कमला ने बताया कि किसी बात को ले कर कल मीराबाई ने सत्यवती को डांट दिया था, जिस से नाराज हो कर यह उस के पास आ गई थी. सुबह उसे पता चला कि इसे पुलिस खोज रही है तो वह इसे ले कर इस के घर पहुंचाने आ गई.

बेटी को देख कर मीराबाई तो सब भूल गई, लेकिन तहजीब काजी को याद था कि पूछताछ में मीराबाई ने सत्यवती के साथ डांटडपट वाली बात से मना करते हुए कहा था कि वही तो उस की सब कुछ है, इसलिए उस ने या उस के पति ने इसे डांटनेडपटने की कौन कहे, इस की तरफ कभी अंगुली तक उठा कर बात नहीं की.

इसीलिए तहजीब काजी को लगा कि कमला सत्यवती को ले कर आई है, यह तो ठीक है, लेकिन जो बता रही है, वह झूठ है. क्योंकि कमला जिस अंदाज में बात कर रही थी, उस से उन्होंने अनुमान लगाया कि यह काफी शातिर किस्म की औरत है. वह समझ गए कि मामला कुछ और ही है.

तहजीब काजी जानते थे कि यह औरत सच्चाई बता नहीं सकती, इसलिए उन्होंने सत्यवती से सच्चाई जानने की जिम्मेदारी एसआई रविता चौधरी को सौंप दी.

एसआई रविता चौधरी थानाप्रभारी के मकसद को भली प्रकार समझ रही थीं, इसलिए उन्होंने जल्दी ही बातों ही बातों में सत्यवती का विश्वास जीत कर उस से सचसच बताने को कहा तो उस ने कमला और राशिद बाबा की जो सच्चाई बताई, उसे सुन कर सभी हक्केबक्के रह गए.

मीराबाई को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था कि जिस राशिद बाबा को वह भला आदमी समझ कर पूज रही थी, वही उस की बेटी को गंदा कर रहा था. सत्यवती के बयान से साफ हो गया था कि राशिद बाबा के जुर्म में कमला भी बराबर की हकदार थी, इसलिए पुलिस ने उसे तो गिरफ्तार कर ही लिया, उस की निशानदेही पर राशिद बाबा को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

पकड़े जाने के बाद राशिद ने दीनईमान की बातों में उलझा कर तहजीब काजी को प्रभावित करने की काफी कोशिश की, लेकिन उन्होंने राशिद और कमला के खिलाफ दुष्कर्म एवं धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

राशिद, उस की सहयोगी कमला और सत्यवती के बयान के आधार पर तंत्रमंत्र के नाम पर सत्यवती के यौनशोषण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

नेमावर के अपने घर में साइकिल सुधारने और छोटीमोटी जरूरत के सामानों की दुकान चलाने वाला राशिद बाबा जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही कामुक और शातिर प्रवृत्ति का हो गया था. उस का निकाह जल्दी हो गया था, परंतु बीवी के आ जाने के बाद भी उस की आदत में कोई सुधार नहीं हुआ था.

कहा जाता है कि राशिद के मन में किशोर उम्र की लड़कियों के प्रति अजीब सी चाहत थी, इसलिए उम्र बढ़ने पर भी वह लड़कियों को हसरत भरी नजरों से देखता रहता था. दुकान पर आने वाली लड़कियों से भी वह छेड़छाड़ करता रहता था. यही वजह थी कि गांव की कुछ आवारा किस्म की औरतों से उस के संबंध बन गए थे. उन्हीं में एक कमला भी थी.

कमला राशिद के पड़ोस में ही रहती थी. कहा जाता है कि राशिद के संबंध कमला से तो थे ही, उस के माध्यम से उस ने कई अन्य औरतों से भी संबंध बनाए थे. लेकिन बढ़ती उम्र की वजह से अब औरतें उस के पास आने से कतराने लगी थीं.

इस से परेशान राशिद को अखबारों से ऐसे तांत्रिकों के बारे में पता चला, जो तंत्रमंत्र की ओट में महिलाओं का यौनशोषण करते थे. उस ने वही तरीका अपनाने की ठान कर कमला से बात की तो वह उस का साथ देने को राजी हो गई. राशिद जानता था कि तांत्रिक बनने में डबल फायदा है. एक तो नईनई औरतें अय्याशी के लिए मिलेंगी, दूसरे कमाई भी होगी.

इस के बाद पूरी योजना बना कर उस ने दाढ़ी बढ़ा ली और पांचों वक्त का नमाजी बन गया. इस के अलावा यहांवहां से कुछ तंत्रमंत्र सीख कर वह तांत्रिक बन गया. इस में कमला ने उस का पूरा साथ दिया. अगर वह मदद न करती तो शायद राशिद की तंत्रमंत्र की दुकान इतनी जल्दी न जम पाती.

दरअसल, कमला ने ही गांव की औरतों में यह बात फैला दी कि राशिद बाबा को रूहानी ताकत ने तंत्रमंत्र की शक्ति दी है, इसलिए उन की झाड़फूंक से बड़ी से बड़ी समस्या और बड़ी से बड़ी बीमारी दूर हो जाती है. अगर इस तरह की बातें फैलानी हों तो औरतों की मदद ले लो, फिर देखो इस तरह की बात फैलते देर नहीं लगेंगी.

राशिद के मामले में भी यही हुआ था. कमला ने नमकमिर्च लगा कर देखतेदेखते राशिद को आसपास के गांवों में बड़ा तांत्रिक के रूप में घोषित कर दिया. फिर क्या था, राशिद बाबा के यहां अपनी समस्याओं के हल और बीमारियों के इलाज के लिए औरतों की भीड़ लगने लगी.

राशिद ने तो योजना बना कर ही काम शुरू किया था. उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान कुछ इस तरह जमाई कि उस के पास समस्या ले कर आने वाली महिलाओं से पहले कमला बात करती थी, उस के बाद कमला उस की पूरी बात राशिद बाबा को बता देती थी.

समस्या ले कर आई महिला राशिद बाबा के सामने जाती थी तो वह उस के बिना कुछ कहे ही उस की समस्या के बारे में बता देता था. गांव की भोलीभाली औरतें समझ नहीं पातीं कि बाबा को यह बात कमला ने बताई होगी. वे तो बाबा को अंतरयामी मान कर उन के चरणों में गिर जाती थीं.

बाबा उन की पीठ पर हाथ फेर कर उन्हें ढेरों आशीर्वाद देता. जबकि असलियत में शातिर राशिद आशीर्वाद देने के बहाने वह अपनी ठरक मिटा रहा होता था.

इस दौरान वह महिला के हावभाव पर पूरी नजर रखता था. इसी पहले स्पर्श में वह समझ जाता था कि किस महिला के साथ कैसे पेश आना है. जो महिला उस के चंगुल में फंस सकती थी, उस के लिए वह कमला को इशारा कर देता था. कमला उस औरत को धीरेधीरे बाबा की विशेष सेवा के लिए राजी कर लेती थी. इस तरह कमला की मदद से राशिद बाबा की दुकानदारी बढि़या चल रही थी, साथ ही उसे अय्याशी के लिए नईनई औरतें भी मिल रही थीं.

राशिद पैसा भी कमा रहा था और मौज भी कर रहा था. कमला को भी इस का फायदा मिल रहा था, इसलिए वह आसपास के गांवों में ऐसी महिलाओं पर नजर रखती थी, जो किसी न किसी परेशानी में होती थीं. वह ऐसी औरतों को पकड़ती थी, जो बाबा पर पैसा भी लुटा सकें और जरूरत पड़ने पर बाबा को मौज भी करा सकें.

कमला को जब मीराबाई के पति रूप सिंह की बीमारी के बारे में पता चलने के साथ यह भी पता चला कि उस के घर युवा हो रही बेटी भी है तो वह मीराबाई से मिली और उसे राशिद बाबा के बारे में खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया.

मीराबाई परेशान तो थी ही, उस ने कमला के पैर पकड़ कर कहा कि अगर वह उस के पति की बीमारी ठीक करवा दे तो वह जिंदगी भर उस का एहसान मानेगी. कमला ने उसे भरोसा दिलाया कि वह बाबा से रूप सिंह की बीमारी ठीक करवा देगी.

इस के बाद कमला बाबा को ले कर अगले ही दिन मीराबाई के घर आ पहुंची. दुर्भाग्य से जिस समय राशिद मीराबाई के घर पहुंचा, सत्यवती सजीधजी कहीं जाने को तैयार थी. उसे देखते ही राशिद की नीयत डोल गई. उस ने मीराबाई और रूप सिंह से मीठीमीठी बातें कर के तंत्रमंत्र का नाटक करते हुए कहा कि साल भर में वह उस की बीमारी ठीक कर देगा. लेकिन इस के लिए उसे उस के यहां से दवा ला कर खानी होगी.

रूप सिंह तो चलफिर नहीं सकता था, मीराबाई उस की देखाभाल में लगी रहती थी, इसलिए तय हुआ कि सत्यवती हर सप्ताह बाबा के यहां दवा लेने जाएगी. इस के अलावा जरूरत पड़ने पर बाबा खुद आ कर रूप सिंह की झाड़फूंक कर देगा.

सत्यवती हर सप्ताह दवा के लिए नेमावर जाने लगी. राशिद बाबा ने कमला की मदद से सत्यवती पर जाल फेंकना शुरू कर दिया. उस ने सत्यवती से कहा कि उस की सरकारी अफसरों से अच्छी जानपहचान है. अगर वह चाहे तो वह उस की सरकारी नौकरी ही नहीं लगवा सकता, बल्कि अच्छे लड़के से उस की शादी भी करवा सकता है. शादी की बात सुन कर सत्यवती लजाई तो बाबा ने हंस कर उसे सीने से लगा लिया और आशीर्वाद देने के बहाने कभी पीठ तो कभी कंधे पर हाथ फेरने लगा.

सत्यवती के कंधे से सरक कर राशिद बाबा का हाथ कब नीचे आ गया, सत्यवती को पता ही नहीं चला. इसी तरह एक दिन उस ने पूजा के नाम पर उसे निर्वस्त्र कर के उस के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बना डाला. वह रोने लगी तो राशिद ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने इस बारे में किसी को कुछ बताया या दवा लेने नहीं आई तो वह अपने तंत्रमंत्र से न केवल उस के पिता की जान ले लेगा, बल्कि उस के शरीर में कोढ़ भी पैदा कर देगा.

मासूम सत्यवती को राशिद ने तो डराया ही, कमला ने भी कसर नहीं छोड़ी. उस ने सत्यवती से कहा कि बाबा ने उस के साथ जो किया है, उस से उस की किस्मत खुल गई है. बाबा जल्दी ही उस की सरकारी नौकरी लगवा देगा. उस के पिता भी एकदम ठीक हो जाएंगे. उस ने भी यह बात किसी को बताने से मना किया.

पिता की मौत और खुद को कोढ़ हो जाने के डर से सत्यवती ने बाबा के पाप को मां से छिपा लिया तो राशिद बाबा की हिम्मत बढ़ गई. सत्यवती जब भी उस के यहां दवा लेने आती, कमला की मदद से वह उस से अपनी हवस मिटाता.

बाबा की यह पाप लीला न जाने कब तक चलती रहती. लेकिन बरसात में बाबा का रंगीन मन कुछ ज्यादा ही मचल उठा. कमला को भेज कर उस ने चुपचाप सत्यवती को बुला लिया. सत्यवती घर में बता कर नहीं आई थी, इसलिए मांबाप परेशान हो उठे.

इधरउधर तलाशने पर सत्यवती नहीं मिली तो मीराबाई पुलिस तक पहुंच गई. उस के बाद तांत्रिक राशिद बाबा की पोल खुल गई. राशिद बाबा की सारी हकीकत सामने आने के बाद थानाप्रभारी तहजीब काजी ने उसे और उस की सहयोगी कमला को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. MP News

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. सत्यवती बदला हुआ नाम है.

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सुषमा की पूरी रात आंखोंआंखों में कट गई, पलभर को भी नहीं सोई वह. कभी घर के भीतर चहलकदमी करने लगतीं तो कभी सोचने लगतीं कि मुश्किल की इस घड़ी में क्या करें, किस की मदद लें. उन की आंखों के सामने बारबार पति का चेहरा घूमने लगता. क्योंकि जो मुसीबत उन के सामने आ खड़ी हुई थी, उस में जरा सी लापरवाही उस की मांग का सिंदूर लील सकती थी, मन में यह खयाल आते ही डर के कारण सुषमा का पूरा शरीर सिहर उठता था.

आखिरकार बहुत सोचने के बाद सुषमा ने कठोर फैसला लिया और अपने पति के बौस को फोन कर के पूरी बात बताई. 37 वर्षीय अजय प्रताप सिंह अपनी पत्नी सुषमा के साथ नोएडा के सेक्टर-77 की सुपरटेक केपटाउन सोसाइटी में रहते थे. वह डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) दिल्ली में बतौर रिसर्च साइंटिस्ट तैनात थे. मूलत: उन्नाव के रहने वाले अजय प्रताप 26 सितंबर, 2020 की शाम करीब साढ़े 5 बजे अपनी पत्नी से यह कह कर घर से निकले थे कि घर की जरूरतों का कुछ सामान लेने के लिए मार्किट जा रहे हैं और कुछ देर में वापस लौट आऐंगे.

अजय घर से अपनी होंडा सिटी कार यूपी 14 बीएस 5232 ले कर निकले थे. डेढ़दो घंटे बीत जाने पर सुषमा को चिंता होने लगी कि आखिर अजय ऐसी कौन सी शौपिंग करने के लिए गए हैं कि 2 घंटे से ज्यादा का वक्त बीतने पर भी नहीं लौटे. सुषमा ने अजय का फोन लगाया तो फोन स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद उन की चिंता बढ़ गई. सुषमा बारबार पति का नंबर मिलाती रहीं, मगर फोन स्विच्ड औफ बताता रहा. इसी तरह करीब ढाई घंटे बीत गए. सुषमा सोच ही रही थी कि ऐसे में क्या करें. अचानक सुषमा के फोन पर एक अंजान नंबर से काल आई तो उस ने यह सोच कर फोन उठा लिया कि हो सकता है अजय का फोन खराब हो गया हो या उस की बैटरी चली गई हो. संभव है वह किसी का फोन ले कर काल कर रहे हों.

फोन उठाते ही उम्मीद के मुताबिक दूसरी तरफ से अजय की आवाज सुनाई दी, जैसे ही अजय ने ‘हैलो मैं अजय बोल रहा हूं’ कहा तो उस के बाद पूरी बात बिना सुने ही सुषमा ने गुस्से में एक ही सांस में कई सवाल कर डाले, ‘‘अजय, तुम कहां हो… तुम्हारा फोन क्यों बंद है… ऐसी कौन सी शौपिंग करने चले गए कि ढाई घंटे होने को हैं और अब फोन कर रहे हो?’’

‘‘अरे मेरी बात तो सुनो, मैं बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं.’’ दूसरी तरफ से अजय ने सुषमा के सवालों का जवाब देने के बजाए बीच में उस की बात काट कर कहा तो सुषमा के होश उड़ गए. उस ने अटकती सांसों से पूछा, ‘‘मुसीबत…कैसी मुसीबत?’’

‘‘सुषमा मुझे कुछ लोगों ने पकड़ लिया है और एक कमरे में बंद कर रखा है. वे मुझ से बहुत बड़ी रकम की मांग कर रहे हैं.’’

‘‘कौन लोग हैं वे और उन्होंने तुम्हें क्यों पकड़ा…किस बात के पैसे मांग रहे हैं?’’

घबराहट के कारण सुषमा ने पूरी बात सुने बिना ही सवालजवाब शुरू कर दिए तो अजय ने फिर उस की बात काटी, ‘‘मुझे नहीं पता ये लोग कौन हैं, किसलिए पैसे मांग रहे हैं लेकिन इतना जानता हूं कि ये लोग बहुत खतरनाक हैं और अगर हम ने इन की बात नहीं मानी तो ये लोग मुझे मार देंगे… हो सकता है ये तुम से बात करें. इन की बात सुन लेना बेबी और अगर हो सके तो पूरा कर देना वरना शायद हम दोबारा ना मिल सकें.’’

दूसरी तरफ से फोन कट गया. इस फोन के बाद तो सुषमा को पूरा ब्रह्मांड घूमता नजर आने लगा. उसे सुझाई नहीं दे रहा था कि वह करे तो क्या करे. सुषमा ने उसी नंबर पर कई बार फोन किया, जिस से अजय ने फोन किया था, लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. सुषमा समझ गई कि किसी मुसीबत में फंसने की वजह से ही अजय घर नहीं पहुंचे. अजय की रूआंसी और परेशानी भरी आवाज सुन कर उसे समझ आ गया था कि वह जिन लोगों के चंगुल में हैं, वे सचमुच खतरनाक लोग रहे होंगे. लेकिन मुश्किल यह थी कि अभी तक उसे पूरा मामला समझ नहीं आया था कि उन्होंने अजय को किसलिए बंधक बनाया हुआ है. पैसे क्यों मांग रहे हैं और उन्होंने कितनी रकम मांगी है.

पति के लिए परेशान पत्नी

सुषमा यह सब सोच ही रही थी कि कुछ देर बाद उस के फोन पर फिर से एक अंजान नंबर से काल आई. इस बार नंबर वह नहीं था, जिस से अजय ने बात की थी. सुषमा ने यह सोच कर फोन उठा लिया कि हो सकता है अजय को बंधक बनाने वाले लोग ही दूसरे नंबर से बात कर रहे हों. सुषमा की शंका सच निकली. फोन पर एक पुरुष ने कड़कती हुई आवाज में कहा कि अजय उन के कब्जे में है और अपने पति से बात करने के बाद वह ये तो समझ ही गई होंगी कि वह जिंदा और सहीसलामत हैं.

दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने धमकी दी कि अगर अगले 24 घंटे में उस ने 10 लाख रुपए का इंतजाम कर के रकम नहीं दी तो शायद उसे उस का पति जिंदा नहीं मिलेगा. फोन करने वाले ने जल्द से जल्द 10 लाख रुपए का इंतजाम करने के लिए कहा, साथ ही धमकी भी दी कि अगर इस बारे में पुलिस को सूचना दी या कोई और चालाकी की तो उस तक अजय की लाश ही पहुंचेगी. फोन करने वाले ने जब यह कहा कि उन के आदमी हर जगह नजर रख रहे हैं कोई भी चालाकी की तो तुरंत यह खबर उस तक पहुंच जाएगी. यह सुन कर सुषमा का कलेजा मुंह को आ गया. फोन सुनते ही उस ने सुनसान घर में इधरउधर देखा कि कोई आदमी उन के घर में तो नहीं छिपा है.

‘‘देखो भैया, मैं आप की सारी मांग पूरी कर दूंगी लेकिन यह तो बता दो, आप पैसे किस बात के मांग रहे हो… आखिर मेरे हसबैंड ने कौन सी गलती की है? क्या आप का उन से कोई उधार का लेनदेन है?’’

सुषमा ने फोन करने वाले की बात को बीच में काटते हुए हिम्मत जुटा कर सहमते हुए सवाल किया तो दूसरी तरफ से कहा गया, ‘‘मैडम ये नोएडा में रहने का टैक्स है और तुम्हारे पति की ठरक का जुरमाना भी…

‘‘अब ज्यादा सवाल न कर के पैसे का इंतजाम करो… टाइम कम है हमारे पास… रकम कैसे और कहां लेनी है इस के लिए तुम्हें कल फोन करेंगे लेकिन याद रखना हमारे लोग तुम पर नजर रख रहे हैं.’’ कहते हुए दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया.

रात को करीब 10 बजे अजय का अपहरण करने वालों से सुषमा की ये आखिरी बात थी. इसी के बाद से सुषमा की जान गले में अटकी थी और वह पूरी रात बेचैनी से घर के भीतर टहलती रही. उसे बारबार लग रहा था कि कहीं कोई वाकई उस की एकएक गतिविधि पर नजर तो नहीं रख रहा. सोचते-सोचते रात आंखोंआंखों में बीत गई. आखिरकार सुषमा ने सुबह अपने पति के बौस को फोन कर के सारी बात बताई. उन्होंने कहा कि वह घर में रहें, कुछ ही देर में पुलिस पहुंच जाएगी.

ठीक वैसा ही हुआ, जैसा अजय के बौस ने कहा था. सुषमा का घर जिस इलाके में है, वह सैंट्रल नोएडा पुलिस के अंडर में आता है. कुछ ही देर में उस के घर की डोरबैल बजी, उस ने दरवाजा खोला तो सादे लिबास में नोएडा पुलिस के एडीशनल कमिश्नर लव कुमार, सैंट्रल नोएडा पुलिस डीसीपी राजेश कुमार सिंह, एडीशनल कमिश्नर रणविजय सिंह, एसीपी विमल कुमार सिंह और सेक्टर 49 थाने के एसओ सुधीर कुमार सिंह सामने खड़े थे.

दरअसल, सुषमा ने जब अपने पति के बौस को अजय के किडनैप होने की जानकारी और इस की एवज में फिरौती मांगने की बात बताई तो डीआरडीओ की तरफ से नोएडा के कमिश्नर आलोक सिंह को फोन कर के इस मामले में गोपनीय ढंग से काम कर के जल्द से जल्द अजय प्रताप सिंह को अपहर्त्ताओं के कब्जे से मुक्त कराने को कहा गया.

डीआरडीओ का एक्शन

डीआरडीओ देश के सुरक्षा उपकरणों व प्रतिष्ठानों से जुड़ा ऐसा संगठन है जो रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करता है. अजय प्रताप सिंह इसी संस्था से जुड़े वैज्ञानिक थे. उन के पास संस्था से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां भी रहती थीं. इसलिए जैसे ही पुलिस कमिश्नर को यह जानकारी मिली, उन्होंने एडिशनल कमिश्नर लव कुमार को सारी जानकारी दे कर बेहद गोपनीय ढंग से अजय प्रताप को अपहर्त्ताओं के कब्जे से मुक्त कराने का औपरेशन शुरू करने का आदेश दिया. इस के बाद लव कुमार ने तड़के ही तमाम अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई और सभी अफसरों को सादे कपड़ों में अजय प्रताप के घर पहुंचने को कहा.

अधिकारियों ने अपना परिचय देने के बाद जब सुषमा से अजय प्रताप सिंह के अपहरण से जुड़ी सारी जानकारियां मांगी तो उन्होंने वह पूरा घटनाक्रम बयान कर दिया, जो अब तक हुआ था. पुलिस ने सुषमा से वे दोनों नंबर हासिल कर लिए, जिन पर पहले पति अजय प्रताप से बात हुई थी और दूसरी बार अपहर्त्ता ने फोन कर के रकम की मांग की थी. सुषमा वर्मा से पुलिस ने एक लिखित शिकायत भी ले ली. सादे लिबास में पुलिस के कुछ लोगों और महिला पुलिस की कुछ तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को सुषमा के पास छोड़ कर पुलिस टीम वापस लौट गई.

सुषमा की शिकायत पर उसी दिन थाना 49 पर भादंसं की धारा 364ए के तहत फिरौती के लिए अपहरण का मामला दर्ज कर लिया गया. डीसीपी राजेश कुमार सिंह ने एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह की निगरानी में एक विशेष टीम का गठन कर दिया. एसीपी विमल कुमार सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में थाना सेक्टर 49 के थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह के अलावा एसआई विकास कुमार, महिला एसआई प्रीति मलिक, हैड कांस्टेबल प्रभात कुमार, जय विजय, कांस्टेबल सुबोध कुमार, सुदीप कुमार,अंकित पंवार और महिला कांस्टेबल रेनू यादव को शामिल किया गया.

इस के अलावा दूसरी स्टार टू टीम के एसआई शावेज खान तथा जोन फर्स्ट की सर्विलांस टीम के एसआई नवशीष कुमार को शामिल किया गया. सभी टीमों को बता दिया गया था कि मामला बेहद संवेदनशील है, इसलिए बिना विलंब किए और बिना किसी को भनक लगे सावधानी से औपरेशन को अंजाम देना है. गठित की गई टीमों में काम का बंटवारा कर दिया गया कि किसे इस औपरेशन में क्या भूमिका निभानी है. एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह ने गठित की गई टीमों के साथ कोऔर्डिनेशन का जिम्मा खुद संभाला लिया. सर्विलांस टीम ने सुषमा वर्मा से मिले दोनों मोबाइल नंबरों के साथ अजय प्रताप सिंह के नंबर की काल डिटेल्स निकाली और तीनों नंबरों को सर्विलांस पर लगा कर निगरानी शुरू कर दी.

स्टार टू की टीम ने फिरौती के लिए अपहरण करने वाले बदमाशों की धरपकड़ और उन के ठिकानों पर छापेमारी का काम शुरू कर दिया. जबकि इस मामले के जांच अधिकारी थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह ने अपने थाने की टीम के साथ सर्विलांस टीम से मिल रही जानकारी के आधार पर धरपकड़ शुरू कर दी. सर्विलांस टीम को पता चला कि शाम को 5 बजे के बाद जब अजय प्रताप सिंह का फोन बंद हुआ था, तो उस से पहले उन्होंने आखिरी बार 3 नंबरों पर बात की थी. उन सभी नंबरों की लोकेशन सेक्टर 41 में आगाहपुर के पास बने ओयो होटल की पाई गई. इतना ही नहीं, फोन बंद होते समय अजय प्रताप के फोन की लोकेशन भी पुलिस को इसी होटल की मिली.

पुलिस को मिली राह

जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी, लेकिन इस पर ठोस काररवाई करने से पहले अधिकारी यह पुष्टि कर लेना चाहते थे कि उक्त होटल से अपहरण करने वालों का कोई वास्ता है या नहीं. क्योंकि अगर सर्विलांस के आधार पर वहां छापा मारा जाता और अजय प्रताप नहीं मिलते तो उन की जान को खतरा हो सकता था. लिहाजा अधिकारियों ने एसओ सुधीर कुमार की टीम के एक तेजतर्रार हैड कांस्टेबल जय विजय सिंह को फरजी ग्राहक बना कर ओयो होटल भेजा. जय विजय सिंह ने सेक्टर 41 के ओयो होटल में पहुंच कर वहां एक कमरा बुक कराया और खुद को काम के सिलसिले में पूर्वी उत्तर प्रदेश से आया हुआ बताया.

कमरा बुक करने के बाद जब जय विजय ने होटल में चल रही गतिविधियों की निगरानी शुरू की तो दूसरी मंजिल पर बने 2 कमरों के आसपास कुछ संदिग्ध गतिविधियां दिखीं. जय विजय ने होटल की पार्किंग की छानबीन की तो वहां अजय प्रताप सिंह की वह होंडा सिटी कार भी खड़ी दिखाई दी, जिस का नंबर सुषमा वर्मा से मिला था. जय विजय को जब यकीन हो गया कि हो न हो अजय प्रताप को ओयो होटल के अंदर ही छिपाकर रखा गया है तो उस ने अधिकारियों को सूचना दे दी. इस पर पुलिस की तीनों टीमों ने 27 सितंबर की रात को सेक्टर 41 के आई ब्लौक में प्लौट नंबर 64 पर बने ओयो होटल को चारों तरफ से घेर कर छापा मारा. एकएक कमरे की तलाशी ली गई तो पुलिस कमरा नंबर 203 में बंधक बना कर रखे गए अजय प्रताप तक पहुंच गई.

उन के कमरे में 3 लोग मिले, जिन में से एक राकेश कुमार उर्फ रिंकू फौजी निवासी गांव चेहडका, जिला भिवाड़ी, राजस्थान था. दूसरा युवक दीपक पुत्र राजेश कुमार भी इसी गांव का रहने वाला था, जबकि इसी कमरे में एक महिला सुनीता गुर्जर उर्फ बबली मिली जो आगाहपुर गांव में सेक्टर 41 की ही रहने वाली थी. पुलिस ने अचानक उस कमरे में धड़ाधड़ प्रवेश किया और अजय प्रताप को अपने कब्जे में ले लिया. साथ ही कमरे में मौजूद तीनों लोगों को हिरासत में लिया तो सुनीता गुर्जर उर्फ बबली भड़क उठी. उस ने पुलिस को हड़काना शुरू कर दिया, ‘‘औफिसर, इस बदतमीजी की वजह जान सकती हूं?’’

‘‘मैडम, बदतमीजी की वजह आप को पता होगी, फिर भी हम थाने चल कर इस की असली वजह बताएंगे.’’ रणविजय सिंह ने जवाब दिया. जब पुलिस ने उन्हें बताया कि उन्हें अजय प्रताप का अपहरण कर फिरौती मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया जा रहा है तो सुनीता गुर्जर फिर भड़क उठी. उस ने अधिकारियों को धमकाते हुए बताया कि वह बीजेपी की नेता और सोशल वर्कर है. उन की इस गलती की सजा अभी दिलवाएगी. इस के बाद उस ने कुछ लोगों को फोन किया और फोन करने के बाद धमकी दी कि अभी देखो, थोड़ी देर में तुम को तुम्हारे बाप लोग फोन करेंगे तो देखना तुम कैसे छोड़ोगे.

एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह ने अपनी पुलिस की नौकरी में ऐसे बहुत से छुटभैए नेता देखे थे जो किसी अपराध में पकडे़ जाने पर पुलिस को ऐसी गीदड़भभकियां देते हैं. उन्हें इस बात का भी इल्म था कि कई बार पुलिस ऐसी धमकियों के प्रभाव में आ कर ऐसे लोगों को छोड़ देती है. लेकिन यह मामला जिस तरह का था, उसे देखने के बाद रणविजय सिंह किसी धमकी में नहीं आए और सभी को हिरासत में ले कर पुलिस थाना सेक्टर 49 लौट आए.

पुलिस टीम अपहृत अजय प्रताप सिंह की होंडा सिटी कार के साथ होटल के रजिस्टर तथा होटल के सीसीटीवी कैमरों की डीवीआर भी साथ ले आए.

कैसे फंसे अजय

जब पुलिस ने थाने आ कर थोड़ी सी सख्ती बरती और आरोपियों को सुषमा वर्मा से की गई बातचीत की काल रिकार्डिंग तथा उन के फोन की काल डिटेल्स दिखा कर पुख्ता सबूत सामने रखे तो आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और खुलासा किया कि उन्होंने अपने 2 फरार साथियों के साथ मिल कर अजय प्रताप को हनीट्रैप में फंसाया था और उन से मोटी फिरौती वसूलने की योजना थी. अजय प्रताप ने बताया कि उन्होंने गूगल पर मसाज कराने वाले किसी पार्लर का नंबर सर्च किया था, जिस के बाद उन्हें जस्ट डायल पर नोएडा में मसाज कराने वाला एक नंबर हासिल हुआ. उन्होंने उस नंबर पर फोन किया था.

26 सितंबर को शाम 4 बजे अजय ने जब मसाज सेवा देने वाले उस पार्लर के नंबर पर बात की तो दूसरी तरफ से बात करने वाले ने बताया कि उन के पास एक से एक खूबसूरत लड़कियां है जो सिर्फ मसाज ही नहीं करती बल्कि जिस्म की भूख भी मिटाती हैं. फोन करने वाले ने इतना प्रलोभन दिया कि अजय प्रताप का मन मचलने लगा. उन्होंने उसी वक्त मसाज कराने का इरादा कर लिया, जब फोन करने वाले ने उन्हें वाट्सऐप पर उन लड़कियों की फोटो भेजीं, जिन में से किसी से भी वे मसाज करा सकते थे.

बस उन्हीं लडकियों की खूबसूरत और मादक तसवीरें देख कर अजय प्रताप घर का सामान लाने के बहाने कार ले घर से निकल पडे़. लेकिन घर से निकल कर जब उन्होंने मसाज वाले नंबर पर फोन कर के पूछा कि कहां आना है तो उन्हें लौजिक्स सिटी सेंटर बुलाया गया. वहां उन्हें दीपक नाम का शख्स मिला जो उन्हें सेक्टर 41 के आई ब्लाक में ओयो होटल पर ले आया. शाम को 6 बजे जब वे होटल पहुंचे तो वहां उन की गाड़ी पार्किंग में खड़ी करवा कर इसी होटल के रूम नंबर 203 में ले जाया गया, जहां पहले से ही राकेश फौजी उर्फ रिंकू और बरौला नोएडा के 48बी में रहने वाला अनिल शर्मा और सेक्टर 27 के मकान नंबर 618 में रहने वाला आदित्य मौजूद थे.

वहां पहुंचने के कुछ देर तक तो अजय प्रताप उन चारों से बात करते रहे. जब काफी वक्त गुजर गया और मसाज करने वाली लड़कियां नहीं आईं तो उन्होंने उन लड़कियों को बुलाने को कहा, जिन के फोटो उन्हें भेजे गए थे. उस के बाद अचानक उन चारों का गिरगिट की तरह रंग बदल गया. उन लोगों ने अजय प्रताप को कुरसी से बांध दिया और धमकी देने लगे कि परिवार के होते हुए वह लड़कियों से मसाज के नाम पर अय्याशी करता है तो अजय प्रताप के होश उड़ गए. क्योंकि उन्हें सपने में गुमान नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है. होटल के कमरे में मौजूद चारों लोगों ने उन्हें धमकाना शुरू कर दिया कि वे थाने में फोन कर के पुलिस को बुलाएंगे और उसे पुलिस के हवाले कर देंगे.

उन्होंने अजय प्रताप की काल रिकौर्डिंग सुनवाई तो वे और ज्यादा डर गए. अपने ओहदे की संवेदनशीलता और पारिवारिक बदनामी के कारण वह उन के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे. उसी वक्त उन में से किसी एक के फोन करने पर एक महिला ने आई, जिसे देख कर वे सभी मैम… मैम कह कर बात करने लगे. उस महिला के बारे में चारों ने बताया कि वह नोएडा क्राइम ब्रांच की इंसपेक्टर हैं और उसे पकड़ने के लिए आई हैं. सुनीता ने खुद को इंसपेक्टर बता कर अजय प्रताप को धमकाना शुरू कर दिया और उन्हें आतंकित करने लगी कि जब वह गिरफ्तार हो कर अय्याशी के जुर्म में जेल जाएगा तो उस की ऐसी बदनामी होगी कि न उस का परिवार रहेगा, न ही नौकरी.

अजय प्रताप को तब तक पता नहीं था कि वह किस ट्रैप में फंस गए हैं, इसलिए उन्होंने किसी भी तरह इस मामले को निबटाने के लिए हाथपांव जोड़ने शुरू कर दिए. सुनीता ने कहा कि ठीक है वह इस मामले को अपने अधिकारियों के नोटिस में नहीं लाएगी, लेकिन उसे जल्द से जल्द 10 लाख रुपए का इंतजाम कर उन्हें देने होंगे. सुनीता ने उन्हें बताया कि वह अपनी पत्नी को यह कह कर फोन करें कि उन्हें बदमाशों ने पकड़ लिया है और 10 लाख रुपए मांग रहे हैं क्योंकि उसे लड़की से मसाज की बात पता चल गई तो वह पैसा नहीं देगी, उलटे पत्नी की नजर में उन की इज्जत चली जाएगी.

सुनीता के दबाव में आ कर अजय ने उसी के नंबर से अपनी पत्नी सुषमा को फोन किया था. इस के बाद रात में कई बार अजय प्रताप की पिटाई की गई. इस के साथ ही वे लोग छोड़ने के लिए उन से मोलभाव करते रहे. आरोपियों ने अजय प्रताप की पिटाई कर के उन का ऐसा वीडियो भी बना लिया था जिस में वह मसाज कराने के लिए लड़की की मांग कर रहे थे. बंधक बनाने वालों ने अजय को धमकी दी कि अगर उन्हें पैसे नहीं मिले तो वे यह वीडियो उस के परिवार वालों को भेज कर, फिर सोशल मीडिया पर वायरल कर देंगे.

लेकिन इस से पहले सुनीता और उस के साथी अजय प्रताप की पत्नी को अपने नंबर से फोन कर के एक बड़ी चूक कर गए थे. उन्हें शायद अजय की हैसियत तो पता चल गई थी लेकिन उन की पहुंच के बारे में पूरी तरह अंजान थे.

आइडिया सुनीता का था

दरअसल, सेक्टर-41 के जिस ओयो होटल में अजय प्रताप सिंह को अगवा कर रखा गया था, उस में 16 कमरे बने हुए हैं. होटल का संचालन सन 2017 से किया जा रहा था. राकेश उर्फ रिंकू फौजी ने यह होटल 1.60 लाख रुपए प्रतिमाह के किराए पर ले रखा था. रिंकू की सुनीता के साथ जानपहचान थी, इसलिए उस का होटल में आनाजाना था. रिंकू का होटल वैसे तो ज्यादा नहीं चलता था, लेकिन सुनीता ने ही रिंकू को आइडिया दिया कि नोएडा में अय्याशी करने वाले लोग सुरक्षित जगह की तलाश में होटलों और गेस्टहाउसों का आसरा लेते हैं. इसलिए उस ने कुछ लोगों को अय्याशी के लिए होटल में कमरे देने शुरू किए.

इसी दौरान उसे आइडिया आया कि क्यों न जिस्मफरोशी का धंधा करने वाली लड़कियों को होटल में रख कर उन से मसाज कराने का काम शुरू कराया जाए. इस काम के लिए रिंकू ने दीपक, आदित्य और अनिल को भी अपने साथ जोड़ लिया. अगाहपुर की रहने वाली सुनीता उर्फ बबली को इलाके में लोग भाजपा नेत्री के रूप में जानते थे. वह अकसर रिंकू के होटल में आतीजाती थी. उस का बड़ेबड़े लोगों में बैठनाउठना था. उस ने आइडिया दिया कि अगर मोटा पैसा कमाना है तो लड़कियों से मसाज कराने आने वाले लोगों को समाज में बदनाम करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल किया जा सकता है. फिर वे आसानी से मोटी रकम दे देंगे.

रिंकू ने मसाज करने के लिए जस्ट डायल पर अपने कुछ मोबाइल नंबर रजिस्टर करवा रखे थे. लोग गूगल पर सर्च कर के जब बात करते तो वे उसे अपने ओयो होटल में बुला लेते थे. उन्होंने मसाज और जिस्मफरोशी का धंधा करने वाली कुछ लड़कियों की फोटो अपने पास रखी हुई थीं, ग्राहक के मांगने पर वे मसाज बाला की फोटो वाट्सऐप पर सेंड कर देते थे. खूबसूरत लड़कियों की फोटो देख कर ग्राहक उसी तरह उन के जाल में फंस जाते थे, जिस तरह अजय प्रताप सिंह उन के जाल में फंसे थे.

बिगबौस 10 कंटेस्टेंट मनवीर गुर्जर को बताया रिश्तेदार

सुनीता गुर्जर ने पुलिस की पकड़ में आने के बाद यह भी बताया कि वह बिग बौस के एक बहुचर्चित कंटेस्टेंट मनवीर गुर्जर की भाभी है. उस ने पुलिस को मनवीर गुर्जर के परिवार के साथ अपनी फोटो और बिग बौस के दसवें सीजन में सलमान खान के साथ ली गई फोटो दिखाई तो पुलिस भी चकरा गई. लेकिन पुलिस की एक टीम ने जब अगाहपुर में मनवीर गुर्जर के घर जा कर इस बात की छानबीन की तो पता चला कि गांव और एक ही बिरादरी होने के कारण मनवीर गुर्जर सुनीता को भाभी कहता था. उस का मनवीर के परिवार में आनाजाना भी था लेकिन मनवीर गुर्जर के परिवार से उस की कोई रिश्तेदारी या दूर का नाता तक नहीं था.

पुलिस पूछताछ में पता चला कि आरोपित दीपक और राकेश चचेरे भाई हैं. जबकि अनिल शर्मा उर्फ सौरभ तथा आदित्य उन के दोस्त हैं. उन्होंने सुनीता के बहकावे में आ कर शार्टकट से पैसा कमाने के चक्कर में मसाज की आड़ में लोगों को हनीट्रैप में फंसा कर उन्हें ब्लैकमेल कराने का काम शुरू किया था. लोग बदनामी के डर से 2-4 लाख दे कर अपनी जान छुड़ा लेते थे. जब वे शिकार को फंसा कर लाते तो सुनीता क्राइम ब्रांच की इंसपेक्टर बन कर पहुंच जाती थी और जेल जाने तथा बदनामी का ऐसा भय दिखाती थी कि शिकार कुछ न कुछ दे कर अपनी जान छुड़ाता था.

पुलिस ने उन के होटल से जो रजिस्टर व दस्तावेज बरामद किए, उस में 800 से ज्यादा लोगों के नामपते दर्ज हैं. आंशका है कि उन में से कुछ ऐसे जरूर रहे होंगे, जिन्हें मसाज के नाम पर जाल में फंसा कर ब्लैकमेल किया गया होगा. पुलिस उन सभी लोगों की छानबीन कर रही है. पुलिस का दावा है कि यह गिरोह नोएडा व एनसीआर में हनीट्रैप की कई वारदात कर चुका है. आरोपियों के पास से अजय प्रताप की कार, घटना में प्रयुक्त मोबाइल समेत अन्य दस्तावेज बरामद हुए हैं. एक आरोपी बरौला निवासी अनिल कुमार शर्मा को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि कथा लिखे जाने तक सेक्टर-27 निवासी आदित्य कुमार फरार था.

उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ने आरोपियों को पकड़ने वाली टीम को 5 लाख नकद पुरस्कार देने की घोषणा की है.

डेढ़ करोड़ का विश्वास

घटना 14 जुलाई, 2020 की है. उस रोज राम गोयल सो कर उठे तो घर का अस्तव्यस्त हाल देख कर उन के होश उड़ गए. कमरे में तिजोरी खुली पड़ी थी, जिस में रखी कई किलोग्राम सोनाचांदी व नकदी सब गायब थी. यह देख कर घर में हड़कंप मच गया.

राम गोयल को पता चला कि घर से 3 किलो सोने और चांदी के आभूषण, नकदी और अन्य कीमती सामान गायब है. इस के अलावा परिवार के साथ रह रही बेटी की नौकरानी अनुष्का, जो दिल्ली से आई थी, वह भी गायब थी. अनुष्का राम गोयल की बेटीदामाद की नौकरानी थी. वह उन के बच्चों की देखभाल करती थी.

जून, 2020 महीने में राम गोयल की बेटी एक समारोह में शामिल होने के लिए दिल्ली से राजगढ़ अपने पिता के यहां आई थी. बेटी के बच्चों की देखभाल के लिए अनुष्का भी उस के साथ आ गई थी. इसलिए पिछले एक महीने से वह राम गोयल के घर पर ही रह रही थी.

वह एक नेपाली लड़की थी. नेपाली अपनी बहादुरी और ईमानदारी के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं. राम गोयल की भी अनुष्का के प्रति यही सोच थी. लेकिन कुछ ही समय में अनुष्का अपना असली रंग दिखा कर करोड़ों का माल साफ कर के भाग चुकी थी.

घटना की रात अनुष्का ने अपने हाथ से कढ़ी और खिचड़ी बना कर पूरे परिवार को खिलाई थी. खाने के बाद पूरा परिवार गहरी नींद में सो गया. जाहिर था, खाने में कोई नशीली चीज मिलाई गई थी, जिस के असर से घर में हलचल होने के बावजूद किसी सदस्य की आंख नहीं खुली.

इस बात की खबर मिलते ही थाना पचोर के टीआई डी.पी. लोहिया तुरंत पुलिस टीम के साथ राम गोयल के यहां पहुंचे तथा उन्होंने मौकामुआयना कर सारी घटना की जानकारी एसपी प्रदीप शर्मा को दी. कुछ ही देर में एसपी शर्मा भी मौके पर पहुंच गए.

घटनास्थल की जांच करने के बाद एसपी प्रदीप शर्मा ने आरोपियों को पकड़ने के लिए एडिशनल एसपी नवलसिंह सिसोदिया के निर्देशन में एक टीम गठित कर दी.

टीम में एसडीपीओ पदमसिंह बघेल, टीआई डी.पी. लोहिया, एसआई धर्मेंद्र शर्मा, शैलेंद्र सिंह, साइबर सैल टीम प्रभारी रामकुमार रघुवंशी, एसआई जितेंद्र अजनारे, आरक्षक मोइन खान, दिनेश किरार, शशांक यादव, रवि कुशवाह एवं आरक्षक राजकिशोर गुर्जर, राजवीर बघेल, दुबे अर्जुन राजपूत, अजय राजपूत, सुदामा, कैलाश और पल्लवी सोलंकी को शामिल किया गया.

इधर लौकडाउन के चलते पुलिस का एक काम आसान हो गया था. टीआई लोहिया जानते थे कि लौकडाउन के दिनों में ट्रेन, बस बंद हैं इसलिए लुटेरी नौकरानी अनुष्का ने पचोर से भागने के लिए किसी प्राइवेट वाहन का उपयोग किया होगा.

क्योंकि इतनी बड़ी चोरी एक अकेली लड़की नहीं कर सकती, इसलिए उस के कुछ साथी भी जरूर रहे होंगे. अनुष्का कुछ समय पहले ही दिल्ली से आई थी. टीआई लोहिया ने अनुष्का का मोबाइल नंबर हासिल कर उसे सर्विलांस पर लगा दिया. इस के अलावा उस के फोन की काल डिटेल्स भी निकलवाई.

काल डिटेल्स से पता चला कि अनुष्का एक फोन नंबर पर लगातार बातें करती थी और ताज्जुब की बात यह थी कि वारदात वाले दिन उस फोन नंबर की लोकेशन पचोर टावर क्षेत्र में थी. जाहिर था कि वह मोबाइल वाला व्यक्ति अनुष्का का कोई साथी रहा होगा, जो उस के बुलाने पर ही घटना को अंजाम देने राजगढ़ आया होगा.

एसपी प्रदीप शर्मा के निर्देश पर टीआई लोहिया की टीम पचोर क्षेत्र में हर चौराहे, हर पौइंट, हर क्रौसिंग पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने में जुट गई. इसी कवायद में एक संदिग्ध कार पुलिस की नजर में आई, जिस का रजिस्ट्रेशन नंबर यूपी-14एफ-टी2355 था.

टीआई लोहिया समझ गए कि चोर शायद इसी गाड़ी में सवार हो कर पचोर आए और घटना को अंजाम दे कर फरार हो गए. इसलिए पुलिस की एक टीम ने पचोर से व्यावह हो कर गुना और ग्वालियर तक के रास्ते में पड़ने वाले टोल नाकों के कैमरे चैक कर उस गाड़ी के आनेजाने का रूट पता कर लिया.

जांच में पता चला कि उक्त नंबर की कार दिल्ली के उत्तम नगर के रहने वाले मनोज कालरा के नाम से रजिस्टर्ड थी, इसलिए तुरंत एक टीम दिल्ली भेजी गई. टीम ने मनोज कालरा को तलाश कर उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह किराए पर गाडि़यां देने का काम करता है. उक्त नंबर की कार उस ने एक नौकर पवन उर्फ पद्म नेपाली के माध्यम से 12 जुलाई को इंदौर के लिए बुक की थी.

जबकि इस कार के ड्राइवर से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि 13 जुलाई, 2020 को 3 युवक उसे शादी में जाने की बात बोल कर पचोर ले गए थे. दिल्ली पहुंची पुलिस टीम सारी जानकारी एसपी प्रदीप शर्मा से शेयर कर रही थी. इस से एसपी प्रदीप शर्मा समझ गए कि उन की टीम सही दिशा में आगे बढ़ रही है.

लेकिन वे जल्द से जल्द चोरों को पकड़ना चाहते थे, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि देर होने पर आरोपी माल सहित नेपाल भाग सकते हैं. ड्राइवर ने यह भी बताया कि वापसी में सभी लोगों को उस ने दिल्ली में बदरपुर बौर्डर पर बस स्टैंड के पास छोड़ा था.

अब पुलिस को जरूरत थी उन तीनों नेपाली लड़कों की पहचान कराने की, जो दिल्ली से गाड़ी ले कर पचोर आए थे.

इस के लिए पुलिस ने दिल्ली में रहने वाले सैकड़ों नेपाली परिवारों से संपर्क किया. शक के आधार पर 16 लोगों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. जिस में एक नया नाम सामने आया बिलाल अहमद का, जो लोगों को घरेलू नौकर उपलब्ध कराने के लिए एशियन मेड सर्विस की एजेंसी चलाता था.

बिलाल ने पुलिस को बताया कि अनुष्का उस के पास आई थी, उस की सिफारिश सरिता पति नवराज शर्मा ने की थी. जिसे उस ने दिल्ली में एक बच्ची की देखभाल के लिए नौकरी पर लगवा दिया था.

जांच के दौरान पुलिस टीम को पवन थापा के बारे में जानकारी मिली. पता चला कि पवन ही वह आदमी है जो उन तीनों लोगों को दिल्ली से पचोर ले कर आया था. पवन भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस ने पूछताछ में बताया कि उत्तम नगर के सम्राट उर्फ वीरामान ने टैक्सी बुक की थी, जिस के लिए उसे15 हजार रुपए एडवांस भी दिए थे.

इस से पुलिस को पूरा शक हो गया कि इस मामले में सम्राट की खास भूमिका हो सकती है. दूसरी बात यह पुलिस समझ चुकी थी कि इस बड़ी चोरी के सभी आरोपी उत्तम नगर के आसपास के हो सकते हैं. इसलिए न केवल पुलिस सतर्क हो गई, बल्कि अन्य आरोपियों की रैकी भी करने लगी.

आरोपी लगातार अपना ठिकाना बदल रहे थे, इसलिए तकनीकी टीम के प्रभारी एसआई रामकुमार रघुवंशी और आरक्षक मोइन खान ने चाय व समोसे वाला बन कर उन की रैकी करनी शुरू कर दी, जिस से जल्द ही जानकारी हासिल कर सम्राट उर्फ वीरामान धामी को गिरफ्तार कर लिया गया.

पूछताछ में वीरामान पहले तो कुछ भी बताने की राजी नहीं था. लेकिन जब उस ने मुंह खोला तो चौंकाने वाला सच सामने आया.

वास्तव में वीरामान खुद वारदात करने के लिए पचोर जाने वाली टीम में शामिल था. अन्य 2 पुरुषों और महिला के बारे में पूछताछ की तो सम्राट ने बताया कि अनुष्का अपने प्रेमी तेज के साथ नई दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहती है.

पुलिस ने बदरपुर इलाके में छापेमारी कर के दोनों को वहां से गिरफ्तार कर उन के पास से चोरी का माल बरामद कर लिया. यहां तेज रोक्यो और अनुष्का उर्फ आशु उर्फ कुशलता भूखेल के साथ उन का तीसरा साथी भरतलाल थापा भी पुलिस गिरफ्त में आ गए.

मौके पर की गई पूछताछ के बाद दिल्ली गई पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस की मदद से मामले के मुख्य आरोपी वीरामान उर्फ सम्राट मूल निवासी धनगढ़ी, नेपाल, अनुष्का उर्फ आशु उर्फ कुशलता भूखेल निवासी जनकपुर, तेज रोक्यो मूल निवासी जिला अछम, नेपाल, भरतलाल थापा को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की थी.

इस के अलावा आरोपियों को पचोर तक कार बुक करने वाला पवन थापा निवासी उत्तम नगर नई दिल्ली, बेहोशी की दवा उपलब्ध कराने वाला कमल सिंह ठाकुर निवासी जिला बजरा नेपाल, चोरी के जेवरात खरीदने वाला मोहम्मद हुसैन निवासी जैन कालोनी उत्तम नगर, जेवरात को गलाने में सहायता करने वाला विक्रांत निवासी उत्तम नगर भी पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

अनुष्का को कंपनी में काम पर लगवाने वाली सरिता शर्मा निवासी किशनपुरा, नोएडा तथा अनुष्का को नौकरानी के काम पर लगाने वाला बिलाल अहमद उर्फ सोनू निवासी जामिया नगर, नई दिल्ली को गिरफ्तार कर के बरामद माल सहित पचोर लौट आई. जहां एसपी श्री शर्मा ने पत्रकार वार्ता में महज 7 दिनों के अंदर जिले में हुई चोरी की सब से बड़ी घटना का राज उजागर कर दिया.

अनुष्का ने बताया कि राम गोयल का पूरा परिवार उस पर विश्वास करता था. इसलिए परिवार के अन्य लोगों की तरह अनुष्का भी घर में हर जगह आतीजाती थी. एक दिन उस के सामने घर की तिजोरी खोली गई तो उस में रखी ज्वैलरी और नकदी देख कर उस की आंखें चौंधिया गईं और उस के मन में लालच आ गया. यह बात जब उस ने दिल्ली में बैठे अपने प्रेमी तेज रोक्यो को बताई तो उसी ने उसे तिजोरी पर हाथ साफ करने की सलाह दी.

योजना को अंजाम देने के लिए उस का प्रेमी तेज रोक्यो ही दिल्ली से बेहोशी की दवा ले कर पचोर आया था. वह दवा उस ने रात में खिचड़ी में मिला कर पूरे परिवार को खिला दी. जिस से खिचड़ी खाते ही पूरा परिवार गहरी नींद में सो गया. तब अनुष्का अलमारी में भरा सारा माल ले कर पे्रमी के संग चंपत हो गई. पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर एक करोड़ 53 लाख रुपए का चोरी का सामान और नकदी बरामद कर ली.

पुलिस ने सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की जांच टीआई डी.पी. लोहिया कर रहे थे.

अंधविश्वासी वकील की बलि

प्रयागराज में गंगा नदी के किनारे साधु आशीष दीक्षित अपने शिष्य नीतीश सैनी के साथ धीमे कदमों से चला जा रहा था. सर्दी की सुबह थी. धूप निकल चुकी थी,

फिर भी दोनों गेरूआ चादर ओढ़े सर्दी से बचते हुए बढ़ रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं थी.

आशीष के हाथ में स्मार्टफोन था. उस पर एक वीडियो चल रही थी, जिसे दोनों गौर से देख रहे थे. अचानक शिष्य बोल पड़ा, ‘‘गुरुजी, जब बर्बरीक इतना ताकतवर था तब उस ने महाभारत के युद्ध में हिस्सा क्यों नहीं लिया?’’

‘‘क्योंकि श्रीकृष्ण जानते थे कि वह शिव का अवतार है और उसे दिव्य शक्ति प्राप्त है. उस के एक बाण से युद्ध का अंत हो सकता है.’’ गुरु आशीष ने बताया.

‘‘तब तो और अच्छी बात थी. भीम का पोता था, पांडव की तरफ से ही युद्ध लड़ता. और उस की जीत तुरंत हो जाती,’’ शिष्य नीतीश बोला.

‘‘ऐसा नहीं होता. उस की मां ने उस से वचन लिया था कि वह युद्ध में हमेशा कमजोर का साथ देगा. और उस वक्त कौरवों की सेना हार रही थी. इस कारण कृष्ण को पता था कि वह पांडवों की तरफ से युद्ध नहीं लड़ेगा.’’ गुरु ने समझाया.

‘‘फिर क्या हुआ गुरुजी?’’ नीतीश ने जिज्ञासावश पूछा.

‘‘वीडियो में देखो, सब पता चल जाएगा.’’

‘‘जी, गुरुजी.’’

उस के बाद दोनों ध्यान से वीडियो में महाभारत के बर्बरीक की कहानी देखने लगे. तब तक श्रीकृष्ण और बर्बरीक के बीच संवाद शुरू हो चुका था. वीडियो के खत्म होने के बाद आशीष ने कहा, ‘‘मुझे भी बर्बरीक की तरह दोबारा जिंदा होने की सिद्धि मिल चुकी है.’’

‘‘सच में गुरुजी?’’ नीतीश आश्चर्य से बोल पड़ा.

‘‘सच नहीं तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं. मैं यहां हरिद्वार में घरबार, ऐशोआराम छोड़ कर ऐसे ही बैठा हुआ हूं. मैं ने काफी तपस्या की है. दैवीय शक्ति हासिल करने के लिए तंत्रमंत्र की कठिन साधना की है, अनुष्ठान किए हैं.’’ गुरु आशीष ने बताया.

‘‘तब तो आप भी दोबारा जिंदा हो सकते हैं?’’ शिष्य नीतीश बोला.

‘‘हां, क्यों नहीं!’’

‘‘अच्छा..?’’ नीतीश का मुंह खुला का खुला रह गया.

यह बात 8 दिसंबर, 2022 की थी. आशीष ने शिष्य नीतीश को एक योजना समझाते हुए कहा कि उसे ऐसी सिद्धि प्राप्त हो चुकी है, जिस से वह उस के जीवन के सारे कष्टों को दूर कर देगा. उसे केवल उस के इशारे पर वह सब करना होगा, जो वह बताएगा.

नीतीश ने गुरु आशीष की बातें मान लीं और अपने गुरु के कहे अनुसार कार्य करने को तैयार हो गया.

गुरु आशीष द्वारा बनाए गए कार्यक्रम के मुताबिक दोनों उसी रोज 8 दिसंबर, 2022 को प्रयागराज से विंध्यवासिनी मां के दर्शन करने के लिए निकल पड़े. वहां से लौटते समय उन के सारे पैसे खत्म हो गए थे. अगले रोज वे 9 दिसंबर को पैदल ही प्रयागराज के लिए चल दिए.

जब वे करछना थानांतर्गत मर्दापुर गांव पहुंचे, तब आशीष ने नीतीश को बताया कि मां विंध्यवासिनी देवी की कृपा से देवी शक्ति प्राप्त हो गई है. उसे भीतर से शक्ति का एहसास भी होने लगा है. इसी के साथ उस ने एक बार फिर महाभारत के बर्बरीक की चर्चा छेड़ दी.

कहने लगा, ‘‘अब मैं अपनी ही बलि दे सकता हूं और मुझे देवी दोबारा जिंदा कर देंगी. उस के बाद मैं किसी के भी दुखतकलीफ और दूसरी समस्याओं को दूर कर सकता हूं. तुम्हारी आर्थिक समस्या भी मैं दूर का दूंगा.’’

‘‘मुझे क्या करना होगा गुरुदेव?’’ नीतीश पूछा.

‘‘तुम्हें ठीक वैसे ही करना होगा, जैसा मैं बताऊंगा. वह भी आज ही रात में हो जाना चाहिए.’’ यह कहते हुए आशीष ने नीतीश को तांत्रिक पूजा और बलि के अनुष्ठान का एक वीडियो दिखाया.

उसी रात को नीतीश ने अपने गुरु के बताए तरीके के मुताबिक ठीक वैसा ही किया, जैसा उस ने वीडियो में देखा और समझाया था. तंत्रमंत्र की साधना संपन्न हुई और यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद नीतीश निश्चिंत भाव से अपने घर हरिद्वार लौट आया. इस से पहले उस ने पूजन सामग्री प्रयागराज गंगा में ही प्रवाहित कर दी थी.

आशीष के वादे के मुताबिक उसे अपने चेले नीतीश से प्रयागराज स्टेशन पर ही मिलना था. नीतीश के दिमाग में उथलपुथल मची हुई थी. तांत्रिक अनुष्ठान के बाद से ही मन में भय भी समाया हुआ था. देवी शक्ति के प्रभाव और चमत्कार के साथसाथ हत्या जैसे भय से वह परेशान हो गया था. हालांकि वह दोनों ही स्थितियों में अपने मन को समझाने की कोशिश कर रहा था.

यदि चमत्कार हुआ, तब गुरु के कहे मुताबिक उस के सारे दुखों का अंत हो जाना था और दैवीय चमत्कार नहीं हुआ तब भी उस का कोई अधिक नुकसान होने की बात नहीं थी. उस ने प्रयागराज जंक्शन पर अपने गुरु आशीष दीक्षित का 2 घंटे तक इंतजार किया, जब वह नहीं आया तब उस ने हरिद्वार की गाड़ी पकड़ ली.

यशपाल सैनी का पुत्र नीतीश सैनी हरिद्वार जनपद में लश्कर गांव का रहने वाला एक 22 वर्षीय युवक है. वह एक फाइनैंस कंपनी में काम करता था. जौब प्राइवेट थी, इस कारण वह अच्छी सरकारी नौकरी की तलाश में था. वह पैसा कमाना चाहता था, जो उसे इस प्राइवेट नौकरी में नहीं मिल पा रहा था.

उसे लगता था कि उस की जिंदगी में दैवीय शक्ति से आज नहीं तो कल जरूर चमत्कार होगा और तब उस की जिंदगी में बहार आ जाएगी. इसी चक्कर में एक दिन उस ने अपनी वह प्राइवेट नौकरी भी छोड़ दी.

नीतीश बन गया चेला

एक दिन यूं ही वह हरिद्वार में गंगा किनारे सीढि़यों पर उदास बैठा था. उस की मुलाकात आशीष दीक्षित से हो गई. वह साधु की वेशभूषा में था, लेकिन जब उस से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तब उस ने पाया कि वह कोई साधारण साधु नहीं है.

साधु ने अपना नाम आशीष दीक्षित बताया और खुद को एक तपस्वी और तंत्रमंत्र साधक बताया. इसी के साथ उस ने कहा कि उसे उस जैसे ही एक नवयुवक की तलाश है, जो चेला बन कर उस के कामकाज और पूजापाठ के अनुष्ठानों में सहयोग कर सके. यदि वह इच्छुक हो तो उस के साथ रह सकता है.

नीतीश को साधु आशीष की बात पसंद आई और वह उस के साथ रहने को तैयार हो गया. किंतु उस ने अपनी मजबूरी बताई कि उस के पास पैसे नहीं हैं. वह बेरोजगार है. इस समस्या का समाधान भी आशीष ने ही निकाला और उस का सारा खर्च उठाने को तैयार हो गया.

यही नहीं, आशीष ने उसे अपना शिष्य बना लिया और उसे भरोसा दिया कि उस के तंत्रमंत्र से सारे कष्ट अवश्य दूर हो जाएंगे. घर की आर्थिक परिस्थितियों में भी सुधार हो जाएगा.

दोनों ने हरिद्वार में ही एक कमरा किराए पर ले लिया था. बहुत पूछने पर भी आशीष अपनी पिछली जिंदगी के बारे में उसे कुछ नहीं बताता था.

नीतीश 10 दिसंबर, 2022 को अपने घर हरिद्वार आ तो गया था, लेकिन वह भीतर से डरा था. वह एक अपराधबोध के द्वंद से भी जूझ रहा था. मन जब विचलित होने लगा, तब वह हरिद्वार से चल कर वाराणसी जा पहुंचा.

वहां भी ज्यादा समय तक नहीं रह पाया. उसी रोज कानपुर की राह पकड़ ली और फिर लखनऊ, आगरा होते हुए प्रयागराज में आ कर ठहर गया. इस का एक कारण यह भी था कि उस के गुरु आशीष ने उसे वहीं उस का इंतजार करने को कहा था.

आशीष तो नहीं आया, लेकिन हां उसे मोबाइल ट्रैकिंग के जरिए तलाशती हुई प्रयागराज पुलिस जरूर आ गई. प्रयागराज के  करछना थाने की पुलिस ने बगैर कुछ कहेसुने उसे दबोच लिया और उसे थाने ले आई.

इस तरह से पकड़े जाने पर नीतीश हक्काबक्का था, किंतु जब पता चला कि उस पर आशीष की हत्या का आरोप लगाया गया है तो वह बहुत डर गया.

दरअसल, नैनी के नंदन तालाब निवासी आशीष दीक्षित की सिरकटी लाश 10 दिसंबर को प्रयागराज-मिर्जापुर हाईवे पर मर्दापुर गांव के पास पाई गई थी. लाश तालाब के किनारे झाडि़यों में पड़ी थी.

रक्तरंजित लाश पहले दोपहर के समय उन लोगों ने देखी थी, जो मृत्युशैय्या बनाने के लिए बांस काटने के लिए लीलैंड सर्विस सेंटर के बगल में स्थित मर्दारपुर गांव के बंसवार में गए थे. उन्होंने जब लाश के करीब जा कर देखा तब भी वह उसे पहचान नहीं पाए थे. उस की गरदन कटी हुई थी और धड़ अलग पड़ा था. उन लोगों ने ही पुलिस कंट्रोलरूम के 112 नंबर पर काल कर जंगल में अज्ञात लाश होने की सूचना दी थी.

सूचना मिलते ही कुछ देर में 112 नंबर वैन में सवार सबइंसपेक्टर और सिपाही घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने इस सूचना को संबंधित थाना करछना को दे दी थी.

सूचना पा कर थाने से तुरंत इंसपेक्टर विश्वजीत सिंह दलबल के साथ पहुंच गए थे. करछना थानांतर्गत बंसवार में लाश मिलने की सूचना पूरे इलाके में फैल गई. देखते ही देखते तमाशबीनों की भीड़ जमा हो गई.

मृतक की शिनाख्त करने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी. उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस की जेब से पर्स और आधार कार्ड मिल गया. उस से मृतक के निवास की जानकारी मिल गई.

इस सूचना को पा कर डीसीपी (यमुनापार) सौरभ दीक्षित के साथ दूसरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर फोरैंसिक और डौग स्क्वायड की टीम भी आ गई.

घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया गया, जहां लाश के पास शराब की खाली बोतल, मुरझाए फूल, माला, लौंग, सुपारी, काली पीली सरसों के दाने मिले. इन चीजों को देख कर जांच में जुटे पुलिस अधिकारियों को समझते देर नहीं लगी कि मामला तंत्रमंत्र साधना और बलि देने का हो सकता है.

लाश की शिनाख्त के लिए वहां से बरामद आधार कार्ड से कई जानकारी मिल गईं. मृतक का नाम आशीष दीक्षित और उस का निवास स्थान प्रयागराज था.

पार्टी बनाने पर डूब गया कर्जे में

डीसीपी सौरभ दीक्षित ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर विश्वजीत सिंह, एसआई दिवाकर सिंह, अखिलेश कुमार राय, कांस्टेबल गब्बर, विजय बहादुर चौहान आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने मृतक के पते पर जा कर उस के बारे में पता किया. वहां उन्हें मृतक के बारे में कई जानकारी मिलीं. पता चला कि आशीष दीक्षित कई साल पहले ही घरबार छोड़ चुका था.

आशीष के परिवार में उस के पिता संतोष दीक्षित, पत्नी सुमन देवी और भाई रवि दीक्षित मिले. उन से पूछताछ में पुलिस को कई अहम जानकारी मिली.

उन लोगों से पूछताछ से पता चला कि आशीष दीक्षित एक अतिमहत्त्वाकांक्षी इंसान था, लेकिन अंधविश्वास से भी भरा हुआ था. पेशे से वकील था. जीवन में सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए स्थानीय राजनीतिक गतिविधियों में भी शामिल था. उस ने जनाधार शक्ति नामक पार्टी का गठन भी किया था.

इस राजनीतिक पार्टी के विस्तार के लिए उस ने लोगों से चंदा लेना शुरू कर दिया था. पहले तो उस ने पार्टी को चलाने के लिए कुछ लोगों से कर्ज लिया, जो करीब 40 लाख रुपए तक हो गया था.

कर्ज देने वालों में मुकेश पाल नाम का व्यक्ति भी था. करीब 6 महीने में ही कर्ज देने वाले कर्ज का पैसा वापस मांगने लगे. इस संबंध में लोगों का जब दबाव बढ़ गया, तब वह काफी परेशान हो गया. और फिर मई 2022 में अपने घर से गायब हो गया.

एक तरह से वह प्रयागराज से फरार हो कर हरिद्वार चला गया था. वहां वह हरि की पौड़ी में साधु के वेश में रहने लगा. वहां रहते हुए वह लोगों की समस्याओं का समाधान बताने लगा. यही उस की आमदनी का जरिया बन गया. उसी दौरान उस ने तंत्रमंत्र की कुछ जानकारी ले ली.

उन्हीं दिनों उस की मुलाकात नीतीश सैनी से हो गई थी और उसे भी उस ने अपने अंधविश्वास की चपेट में ले लिया था. नीतीश उसी का चेला बन कर उस के साथ ही रहने लगा था. साथ ही आशीष खुद अंधविश्वास और पुनर्जन्म की चपेट में आ गया था. खुद को दैवीय शक्ति के प्रभाव का खास व्यक्ति समझ बैठा था.

खुद कटवा ली अपनी गरदन

वह बारबार नीतीश को कहता था कि उस पर देवी की खास कृपा है. वह भी महाभारत के बर्बरीक की तरह मर कर दोबारा जिंदा हो सकता है. जब यह बात नीतीश को बताई, तब पहली बार में उसे भी विश्वास नहीं हुआ, लेकिन धीरेधीरे कर उस ने नीतीश को अपने रंग में रंग लिया.

उन्हीं दिनों परिस्थतियां कुछ ऐसी बनीं कि आशीष ने अपनी योजना के बारे में नीतीश को बताया और इस के लिए राजी भी कर लिया. तब उस ने नीतीश से कहा था, ‘‘मुझे मार दो, मैं जिंदा हो जाऊंगा और तुम से हरिद्वार में ही मिलूंगा.’’

उस के कहे अनुसार ही नीतीश ने किया. इस बारे में नीतीश ने पुलिस को बताया कि वह कैसे उस के साथ अंधविश्वास की धारा में बह गया था. उस के कहे अनुसार करता चला गया था.

उस ने कहा था कि ‘मुझे दैवीय सिद्धियां प्राप्त हैं, अगर तुम मुझे मार दोगे तो मैं फिर से जिंदा हो जाऊंगा. बस, मेरा गला काट कर महाशक्तियों के साथ छोड़ देना. जिस के बाद मैं पुनर्जीवित हो कर वापस उस से आ कर मिलूंगा. उस ने यह भी कहा था कि मेरा गला काटने के बाद सभी वस्तुओं को गंगाजी में प्रभावित कर के वह हरिद्वार चला जाए. मैं वहीं आ कर उसे मिलूंगा.’

अपनी योजना का पूरा खाका खींचते हुए आशीष ने नीतीश को समझाया कि पूजा कैसे करनी है? उस का गला किस तरह से काटना है? उस के बाद क्या करना है? नीतीश के मुताबिक आशीष ने कहा था कि पूजापाठ करने के बाद जब मैं जमीन पर लेट जाऊंगा, तब करीब एक घंटे बाद तुम मुझे हिलाडुला कर देखना. अगर मेरे शरीर में कोई हलचल नहीं हो तो फौरन चापड़ से मेरी गरदन धड़ से अलग कर देना और मेरे खून से अपने माथे पर आभिषेक लगा कर मंत्रोच्चार करना.

उस के बाद चापड़ और सभी पूजन सामग्री गंगा किनारे प्रवाहित कर देना. इस के बाद तुम प्रयागराज स्टेशन पर पहुंचना. अगर मैं वहां घंटे भर के भीतर नहीं आऊं, तब तुम वहां से हरिद्वार चले जाना. जीवित हो कर मैं हरिद्वार में ही मिलूंगा.

आशीष ने नीतीश को यह भी कहा था, ‘‘मैं मां कामाख्या देवी के पास जीवित हो कर दर्शन प्राप्त कर तुम से फिर मिलूंगा.’’

यह सब सुन कर पहले तो नीतीश डर गया, लेकिन बाद में जब उस ने चमात्कारी प्रभाव से भविष्य सुधरने की बात की, तब वह तैयार हो गया.

उस के दिमाग में यह बात भी आई कि आशीष मरने के बाद दोबारा जिंदा हो गया तब वह उस का भविष्य बदल देगा, अगर जिंदा नहीं हो पाया तब उसे उस के पैसे नहीं लौटाने पड़ेंगे. जब वह आशीष के साथ था, तब उस का खर्च उसी ने उठाया था, जो कर्ज के तौर पर था. थोड़े दिनों बाद ही उस से पैसे मांगने लगा था.

घटना की रात तालाब के किनारे बांस की झाडि़यों के बीच में नीतीश के सामने आशीष ने तंत्र साधना की, शराब और दवा का सेवन किया. उस के बाद शराब पी. एक पैग शराब नीतीश ने भी पी. आशीष दवा खाने के बाद अपनी जैकेट और टीशर्ट उतार कर जमीन पर लेट गया.

आशीष के कहे अनुसार नीतीश ने उसे झकझोर कर देखा. उस के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई. उस के बाद नीतीश ने आशीष की गरदन पर चापड़ से वार कर दिया. उस की गरदन एक झटके में ही धड़ से अलग हो गई. आशीष ने जैसे मंत्र पढ़ने और रक्त का तिलक लगाने को कहा था, नीतीश ने ठीक वैसा ही किया.

पुलिस ने नीतीश के  कहे अनुसार, हत्या में इस्तेमाल चापड़ भी बरामद कर ली. इस पूरे मामले में मुख्य आरोपी नीतीश सैनी को बनाया गया. उसे भादंवि की धारा 302 के तहत सिविल कोर्ट में पेश किया गया, जहां से जिला कारागार नैनी भेज दिया गया.      द्य

30 साल बाद लिया पत्रकार की हत्या का बदला

अजमेर छावनी बोर्ड के पार्षद रह चुके 70 वर्षीय सवाई सिंह अपने बेटे की शादी का निमंत्रण देने के लिए 7 जनवरी, 2023 को बंसेली गांव स्थित युवराज फोर्ट रिजार्ट गए थे. उस समय दिन का करीब एक बज चुका था. वहां उन के दोस्त राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कर्मचारी संघ के पूर्व अध्यक्ष दिनेश तिवाड़ी (68) और खलील पुष्कर मौजूद थे.

तीनों एकदूसरे का हालसमाचार लेते हुए शादी के बारे में बातें कर रहे थे. सवाई सिंह के बेटे की 16 जनवरी को शादी थी. उस वक्त सब कुछ सामान्य था. चारों हलकेफुलके माहौल में परिवार समाज के साथसाथ प्रदेश, देश की राजनीति की भी चर्चा कर रहे थे. कुछ समय में ही अचानक कुछ बदमाश रिजार्ट में घुस आए और उन पर दनादन फायरिंग शुरू कर दी.

उन के निशाने पर कौन थे, कौन नहीं समझना मुश्किल था. तभी एक गोली सवाई सिंह के सिर में जा धंसी और वह वहीं गिर गए. उस धुआंधार फायरिंग में दिनेश तिवाड़ी को भी गोली लग गई. गोली चलने की आवाज सुन कर रिजार्ट के कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी दौड़ते हुए उस ओर आ गए.

हमलावर उन्हें देख कर भागने लगे. वे 3 की संख्या में थे. उन में से 2 भागने में सफल हो गए, जबकि एक मौके पर ही दबोच लिया गया.

संयोग से खलील को गोली नहीं लगी थी, जबकि सवाई सिंह पूरी तरह से बेसुध जमीन पर गिरे हुए थे. उन के सिर से काफी खून रिस कर जमीन पर फैल गया था. तिवाड़ी भी पेट पकड़े वहीं जमीन पर गिरे हुए थे, किंतु वह होश में थे. सभी घायलों को तुरंत जेएलएन अस्पताल ले जाया गया.

साथ ही दिनदहाड़े हुई इस वारदात की सूचना भी पुष्कर थाने को दे दी गई. एसएचओ डा. रवीश सामरिया सूचना पाते ही दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां दबोचे गए एक आरोपी सूर्य प्रताप सिंह को हिरासत में ले लिया और आगे की तहकीकात के लिए एसएचओ अस्पताल जा पहुंचे.

तब तक घायलों में सवाई सिंह को डाक्टर मृत घोषित कर चुके थे, जबकि दिनेश तिवाड़ी का इलाज चल रहा था. वह होश में थे. गोली उन के पेट में लगी थी. उन के बयानों के आधार पर सूर्य प्रताप सिंह, धर्म प्रताप सिंह और अन्य एक अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.

पूर्व पार्षद सवाई सिंह की मौत की खबर कुछ मिनटों में ही पूरे शहर में फैल गई. स्थानीय नेता और उन के परिवार के लोग भागेभागे अस्पताल पहुंच गए. इस वारदात के बारे में सीओ छवि शर्मा, अजमेर के एसपी चूनाराम जाट, एएसपी वैभव शर्मा, प्रशिक्षु आईपीएस सुमित मेहरड़ा समेत गंज के एसएचओ महावीर प्रसाद ने भी घटनास्थल और अस्पताल आ कर मामले का जायजा लिया. पुलिस को शुरुआती जानकारी घायल दिनेश तिवाड़ी से मिल गई थी.

घटनास्थल पर मौजूद खलील ने भी हमले से संबंधित कई जानकारियां दीं. उन्होंने बताया कि सभी रिजार्ट के स्विमिंग पूल के पास बैठे चाय पी रहे थे. तभी 3 युवक हथियार ले कर अचानक वहां आ धमके थे. उन से कोई पूछताछ होती, इस का उन्होंने मौका ही नहीं दिया.

उन के बयान लेने के बाद सवाई सिंह का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उसी रोज पोस्टमार्टम हो जाने के बाद शव परिजनों को भी सौंप दिया गया.

इस घटना में मारे गए सवाई सिंह इलाके के एक बहुचर्चित शख्स थे. वह 1990 के दशक में अजमेर छावनी बोर्ड के पार्षद थे. अपने दोस्त दिनेश तिवाड़ी को बेटे की शादी का कार्ड देने के लिए पुष्कर गए हुए थे. वहीं उन पर जानलेवा हमला हुआ था और उन की मौत हो गई थी.

वारदात की जांचपड़ताल के दरम्यान पुलिस को अधिक भागदौड़ नहीं करनी पड़ी, क्योंकि तीनों हमलावार पकड़े जा चुके थे, जिन में एक व्यक्ति हमले के बाद चिल्लाने लगा था, ‘‘मैं ने पिता की मौत का बदला ले लिया… आज मेरी कसम पूरी हुई.’’

जांच अधिकारी के सामने हमलावर सूर्यप्रताप सिंह खुद सब कुछ बताने को तैयार था कि उस ने सवाई सिंह को गोली क्यों मारी.

दरअसल, उस ने 30 साल पहले अपने पिता की हत्या का बदला लिया था. उस के पिता मदन सिंह एक स्थानीय पत्रकार थे, जिन की हत्या कर दी गई थी, उस वक्त वह बच्चा था.

इस तरह पुराने हत्याकांड की उलझी हुई गुत्थी भी इस से जुड़ गई थी, जिस के मुख्य आरोपी सवाई सिंह थे, किंतु वह दूसरे आरोपियों की तरह बरी कर दिए गए थे. उस हत्याकांड की कहानी से जुड़ी इस वारदात की कहानी इस प्रकार सामने आई—

बात अप्रैल-मई 1992 के महीने की है. उन दिनों अजमेर शहर में एक सैक्स स्कैंडल की चर्चा लोगों की जुबान पर थी. इस स्कैंडल में 100 से अधिक छात्राओं के साथ ब्लैकमेलिंग की चर्चा अखबारों की सुर्खियां बन गई थीं. वे अजमेर के एक नामी गर्ल्स हौस्टल की छात्राएं थीं, जो राजस्थान और दूसरे पड़ोसी प्रदेशों के विभिन्न इलाकों से आई थीं.

यौन शोषण की शिकार कुछ लड़कियां अपनी आपबीती पुलिस को भी सुना चुकी थीं. उस स्कैंडल में लिप्त लोगों के गिरेबान तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच पा रहे थे. इस मामले पर कुछ स्थानीय पत्रकार और अखबार भी नजर गड़ाए हुए थे. उन्हीं में एक पत्रकार मदन सिंह भी थे. वह एक स्थानीय अखबार ‘लहरों की बरखा’ के संपादक थे.

मदन सिंह ने इस अखबार में छात्राओं के सैक्स स्कैंडल की सीरीज छापनी शुरू कर दी थी. हर सीरीज में पुलिस, प्रशासन और दूसरे सफेदपोश राजनेताओं के इस में शामिल होने का खुलासा किया जाने लगा था. इस तरह की सीरीज 2-4 ही नहीं, बल्कि सितंबर 1992 के पहले सप्ताह तक कुल 76 सीरीज छापी गई थीं.

यह आखिरी सीरीज साबित हुई. कारण 4 सितंबर, 1992 को संपादक मदन सिंह पर रात के 10 बजे हमलावरों ने गोलियों की बौछार कर दी थी. उस वक्त वह अपने स्कूटर में पैट्रोल भरवाने घर से निकले ही थे. हमलावर श्रीनगर रोड पर अंबेसडर कार में सवार थे. हमले से घायल होने पर मदन सिंह ने बचाव के लिए पास के नाले में छलांग लगा दी थी, हमलावर उन्हें मरा समझ फरार हो गए थे. उन्हें जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में भरती करवाया गया.

मदन सिंह को बचा लिया गया था. कई दिनों तक उन का इलाज चलता रहा. वे धीरेधीरे स्वस्थ हो रहे थे. तभी 11 सितंबर को अस्पताल के वार्ड में ही रात के अंधेरे में मौका देख कर हथियारों से लैस 4-5 हमलावर फिर आ धमके. वे कंबल से अपना चेहरा ढंके हुए थे.

आते ही उन्होंने सो रहे मदन सिंह पर फायरिंग कर दी और फरार हो गए. इस हमले में उन्हें 5 गोलियां लगी थीं. तब उन्हें बचाया नहीं जा सका. उन की 3 दिन बाद ही मौत हो गई.

इस हमले की एकमात्र चश्मदीद उन की मां घीसी कंवर थीं. उन की रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस के पूर्व विधायक डा. राजकुमार जायसवाल, पूर्व पार्षद सवाई सिंह, नरेंद्र सिंह समेत अन्य लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया गया था.

मामला एक पत्रकार की हत्या का था, इस कारण पुलिस और प्रशासन पर काफी दबाव था. फिर भी आरोपी पकड़े जाने के बावजूद तुरंत जमानत पर छूटते रहे. जिन की अदालत में पेशी हुई और सबूत के अभाव में वे बरी होते चले गए.

मदन सिंह के परिवार में उन की पत्नी और 2 बेटे धर्मप्रताप 8 साल का और सूर्यप्रताप 7 साल के थे. उन्होंने अपने पिता पर हमला भले ही नहीं देखा था, लेकिन उन की अस्पताल में दर्दनाक मौत को जरूर महसूस किया था. तभी से उन के मन में बदले की भावना भर गई थी.

दूसरी तरफ पुलिस की लापरवाही और गवाहों के लगातार बदलने से आरोपियों पर कानूनी शिकंजा कमजोर पड़ गया था. समय बीतने के साथ सूर्यप्रताप किशोरावस्था पार कर 18 साल का नवयुवक बन गया था. इसी के साथ उस के मन में दबी पिता के हत्यारे से बदले की भावना भी मजबूत हो गई थी.

गर्म खून के जोश में आ कर उस ने अपने मन की बात एक साल छोटे भाई को बताई. उस ने बड़े भाई की इच्छा के साथ अपनी सहमति जता दी. उन्हें एक दिन मौका भी मिल गया और उन्होंने एक आरोपी शिवहरे को घात लगा कर दबोच लिया. उस की लातघूंसे से जम कर पिटाई कर दी. उस के हाथपैर तोड़ डाले.

इस हमले से शिवहरे बुरी तरह से घायल हो गया था. उस का अस्पताल में इलाज चला जरूर, लेकिन वह बच नहीं पाया. तब बात आईगई हो गई. इस से दोनों भाइयों के कलेजे में थोड़ी ठंडक महसूस हुई, फिर भी बदले की चिंगारी सुलगती रही.

दोनों ने पूरे 10 साल तक अपने सीने में सुलगती चिंगारी को दबाए रखा. इस बीच वे मुख्य आरोपियों में डा. राजकुमार जायसवाल और सवाई सिंह को निशाना बनाए रहे. आखिरकार एक दिन उन्हें मौका मिल ही गया.

अजमेर के रीजनल कालेज के सामने एक रेस्टोरेंट में उन नेताओं पर दोनों भाइयों ने ठीक उसी तरह से हमला कर दिया, जिस तरह से उस के पिता पर हुआ था.

इस बार दोनों भाइयों की किस्मत ने साथ नहीं दिया. जायसवाल और सिंह का इस हमले में बाल भी बांका नहीं हुआ, उल्टे दोनों भाई जानलेवा हमले के आरोप में गिरफ्तार कर लिए गए. हालांकि वे जल्द ही जमानत पर छूट भी गए.

जहां तक मदन सिंह की हत्या की बात है तो उस मामले में कई तरह ही अड़चनें थीं. उस हत्याकांड से जुड़े वकील अजय प्रताप वर्मा के अनुसार मदन सिंह पर 2 बार जानलेवा हमले हुए थे. पहली बार बाजार के हमले की रिपोर्ट अलवर गेट थाने में दर्ज हुई थी, जबकि दूसरी बार उन पर हमला अस्पताल में हुआ था. उस की रिपोर्ट सदर कोतवाली (अब कोतवाली) में दर्ज की गई थी. बाद में दोनों मामलों को जोड़ कर जांच की गई थी.

मदन सिंह के अस्पताल में इलाज चलने संबंधी बातें और उन की मां के बयानों के आधार जांच की प्रक्रिया बहुत आगे तक नहीं बढ़ पाई थी. अदालत में उसे ले कर कई विरोधाभास पैदा हो गए थे.

मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा था, लेकिन उस के द्वारा वारदात को रीक्रिएट करने के बाद तैयार की गई रिपोर्ट से चश्मदीद गवाहों के बयान मेल नहीं खाने के कारण आरोपी 2004 में बरी हो गए थे. उस दौरान सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में की गई थी. हालांकि बरी होने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जा चुकी है, जो  लिखे जाने तक लंबित थी.

सवाई सिंह और दूसरे रसूख वाले आरोपी यह मान कर चल रहे थे कि उन्हें मदन सिंह हत्याकांड से छुटकारा मिल गया है. सवाई सिंह के बेटे सूर्यदेव सिंह तंवर की 15 जनवरी, 2023 को शादी होनी थी, जिस का उन्होंने स्नेह भोज 16 जनवरी को रखा था.

सवाई सिंह की मौत से दिवंगत पत्रकार मदन सिंह के बेटे खुश हैं कि उन्होंने अपने पिता के हत्यारे को मौत के घाट उतार दिया. यहां तक कि उस की पत्नी नीमा शेखावत ने भी मीडिया के सामने इस बाबत खुशी जताई.

पुलिस जांच के बाद अजमेर एसपी चूनाराम जाट ने बताया कि सवाई सिंह से बदला लेने के लिए सूर्यप्रताप ने इलाके के नामी बदमाश आकाश सोनी से शूटर्स मांगे थे.

उस के बाद उन्होंने अपनी योजना में भरतपुर के शूटर कपिल और विकास को शामिल कर लिया था. सूर्यप्रताप ने उन्हें अजमेर में ठहराया था. उस के बाद उस ने अपने भाई धर्मप्रताप और विनय प्रताप सिंह के साथ मिल कर सवाई सिंह के बारे में जानकारी दी. उस की तसवीरें दिखा कर पहचान करवाई. पूरी तैयारी के बाद सूर्यप्रताप, धर्मप्रताप और विनय प्रताप ने दोनों शूटर्स को रिजार्ट में ले जा कर हमला बोल दिया.

इस तरह से इस हमले में 5 लोगों को आरोपी बनाया गया है. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपियों के खिलाफ काररवाई पूरी नहीं हो पाई थी.     द्य

बाबाओं के वेश में ठग

पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, नागौर व पाली जिलों में भगवा कपड़े पहने बाबा दानदक्षिणा लेते दिख जाएंगे. पश्चिमी जिलों के हजारों गांवढाणियों में अकसर ऊपर वाले या दुखदर्द दूर करने के नाम पर ये भगवाधारी ठगी करते फिरते हैं.

4-5 के समूह में ये बाबा गांवकसबों में घूम कर लोगों के हाथ देख कर उन की किस्मत चमकाने के नाम पर मनका या अंगूठी देते हैं और बदले में 2-3 हजार रुपए तक ऐंठ लेते हैं. गांवदेहात के लोग इन बाबाओं की मीठीमीठी बातों में आ कर ठगे जा रहे हैं.

अचलवंशी कालोनी, जैसलमेर में रहने वाले दिनेश के पास नवरात्र में 4-5 बाबा पहुंचे. उन बाबाओं ने दुकानदार दिनेश को चारों तरफ से घेर लिया. एक बाबा दिनेश का हाथ पकड़ कर देखने लगा. उस बाबा ने हाथ की लकीरों को पढ़ते हुए कहा, ‘‘बच्चा, किस्मत वाला है तू. मगर कुछ पूजापाठ करनी होगी. पूजापाठ कराने से धंधे में जो फायदा नहीं हो रहा, वह बाधा दूर हो जाएगी. तुम देखना कि पूजापाठ के बाद किस्मत बदल जाएगी.’’

बाबा एक सांस में यह सब कह गया. दिनेश कुछ बोलता, उस से पहले ही दूसरे बाबा ने फोटो का अलबम आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, ये फोटो देख. ये पुलिस सुपरिंटैंडैंट और कलक्टर हैं. ये हमारे चेले हैं. अब तो तुम मान ही गए होगे कि हम ऐरेगैरे भिखारी नहीं हैं.’’

दिनेश ने अलबम देखा, तो उस की आंखें फटी रह गईं. उन फोटो में वे बाबा पुलिस अफसरों, नेताओं व दूसरे बड़े सरकारी अफसरों के साथ खड़े थे. बाबा उन्हें अपना चेला बता रहे थे.

दिनेश का धंधा चल नहीं रहा था. इस वजह से वह ठग बाबाओं की बातों में आ गया.

उन बाबाओं ने 25 सौ रुपए नकद, 5 किलो देशी घी, 10 किलो शक्कर, 5 किलो तेल, 5 किलो नारियल और अगरबत्ती, धूप, कपूर, सिंदूर, मौली व चांदी के 5 सिक्के पूजा के नाम पर लिए और तकरीबन 8 हजार रुपए का चूना लगा कर चलते बने.

दिनेश अब पछता रहा है कि उस ने क्यों उन ठग बाबाओं पर भरोसा किया. छोटी सी दुकान से महीनेभर में जो मुनाफा होता था, वह बाबा ले गए. अब दिनेश औरों से कह रहा है कि वे बाबाओं के चंगुल में न फंसें.

दिनेश की तरह महेंद्र भी बाबाओं की ठगी के शिकार हो चुके हैं. वे पोखरण में अपनी पत्नी सुनीता के साथ रहते हैं. उन की शादी को 10 साल हो चुके हैं, मगर उन्हें अब तक औलाद का सुख नहीं मिला है. दोनों ने खूब मंदिरों के चक्कर काटे और तांत्रिकओझाओं की शरण में गए, मगर कहीं से उन्हें औलाद का सुख नहीं मिला.

ऐसे में एक दिन जब बाबा उन के पास पहुंचे और महेंद्र से कहा कि उन की किस्मत में औलाद का सुख तो है, मगर कुछ पूर्वजों की आत्माएं इस में रोड़ा अटका रही हैं. उन आत्माओं की शांति के लिए पूजा करनी होगी.

महेंद्र अपने जानने वालों और आसपड़ोस के लोगों के तानों से परेशान थे. बाबाओं ने मोबाइल फोन में बड़े अफसरों व मंत्रियों के साथ अपने फोटो दिखाए, तो महेंद्र को लगा कि जब इतने बड़े अफसर इन बाबाओं के चेले हैं, तो जरूर ये बाबा पहुंचे हुए हैं.

महेंद्र बाबा से बोला, ‘‘मैं मंदिरों के चक्कर में लाखों रुपए उड़ा चुका हूं. आप लोगों पर मुझे भरोसा है. मुझे पूजापाठ के लिए कितना खर्च करना होगा?’’

तब एक बाबा ने कहा, ‘‘आप हमें 11 हजार रुपए दे दें. इन रुपयों से हम पूजापाठ का सामान खरीद कर पूजा कर देंगे. अगली बार जब हम आएंगे, तो तुम औलाद होने की खुशी में हमें 51 हजार रुपए दोगे. यह हमारा वादा है.’’

बस, उस बाबा की बातों में आ कर महेंद्र 11 हजार रुपए गंवा बैठे. ऐसे बाबाओं की ठगी के हजारों किस्से हर रोज होते हैं. बाड़मेर जिले की पचपदरा थाना पुलिस ने ऐसे ही 6 ठग बाबाओं को 18-19 सितंबर, 2017 को पचपदरा कसबे से अपनी गिरफ्त में लिया. किसी ने फोन कर के थाने में सूचना दी थी कि बाबाओं ने लोगों को ठगने का धंधा चला रखा है. ये लोग पीडि़तों को झूठे आश्वासन दे कर उन से जबरदस्ती रुपए ऐंठ रहे हैं.

पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने पुलिस टीम के साथ दबिश दे कर 6 बाबाओं को पकड़ लिया. उन ठग बाबाओं को थाने ला कर पूछताछ की गई. जो बात सामने आई, उसे सुन कर हर कोई हैरान रह गया.

दरअसल, वे लोग नागा बाबा के वेश में दिनभर लोगों को नौकरी दिलाने, घरों में सुखशांति, औलाद का सुख हासिल करने के साथ ही कई तरह के झांसे दे कर नगीने, अंगूठी व मनका वगैरह बेच कर ठगी करते थे. कई लोगों के हाथ देख कर उन्हें किस्मत बताते थे. दिन में लोगों से ठगी कर के जो रकम ऐंठते थे, रात में उसे शराब पार्टी, नाचगाने में उड़ाते थे.

पचपदरा पुलिस ने जिन 6 ठग बाबाओं को गिरफ्तार किया, वे सभी सीकरीगोविंदगढ़ के रहने वाले सिख परिवार से थे.

पूछताछ में ठग बाबाओं ने पुलिस को बताया कि सीकरीगोविंदगढ़ के तकरीबन ढाई सौ परिवार इसी तरह साधुसंत बन कर ठगी का काम करते हैं. अलगअलग जगहों पर घूम कर ये बड़े अफसरों को धार्मिक बातों में उलझा कर उन के साथ फोटो खिंचवाते हैं और फिर वे इन फोटो को दिखा कर गांव वालों को बताते हैं कि ये सब उन के भक्त हैं और इस तरह भोलेभाले लोगों को ठग कर रुपए ऐंठ लेते थे. शाम को वे शराब पार्टियां करते थे.

पुलिस ने उन बाबाओं के कब्जे से मोबाइल फोन बरामद किए, जिन में कई बेहूदा नाचगाने और शराब पार्टी के फोटो थे. साथ ही, कई अश्लील क्लिपें भी बरामद हुईं.

इन बाबाओं ने खुद को गुजरात में जूना अखाड़े का साधु बताया. थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने कवाना मठ के महंत परशुरामगिरी महाराज, जो जूना अखाड़ा में पदाधिकारी भी हैं, को थाने बुलवा कर इन गिरफ्तार बाबाओं के बारे में पूछा, तो इन बाबाओं के फर्जीवाड़े की पोल खुल गई.

इस के बाद बाबाओं ने मुकरते हुए कहा कि वे तो उदासीन अखाड़े से हैं. इस पर महंत परशुरामगिरी ने बाबाओं से उदासीन अखाड़े के बारे में पूछताछ की, तो वे जवाब न दे सके. इस के बाद पुलिस ने इन्हें हिरासत में ले लिया.

ये ठग बाबा पूरे राजस्थान में घूमते थे और लोगों को झांसे में ले कर शिकार बनाते थे. महंगी गाडि़यों और शानदार महंगे कपड़ों में इन बाबाओं के फोटो देख कर पुलिस भी हैरान रह गई.

ये सब बाबा इतने अमीर हैं. इन के घर पक्के हैं. इन के पास गाडि़यां भी हैं. इन को बगैर कोई काम किए लोगों के अंधविश्वास के चलते लाखों रुपए की महीने में कमाई हो जाती थी.

पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने इन ठग बाबाओं के बारे में कहा, ‘‘इन के बरताव से पता चला कि ये फर्जी पाखंडी संत हैं. ऐसे लोगों से बच कर रहना चाहिए.’’