लड़की, लुटेरा और बस – भाग 7

मेरा खौफ, डर सब खत्म हो चुका था. डीसी साहब चूंकि अभी एक दुख उठा चुके थे, इसलिए वह जरूरत से ज्यादा डरे हुए थे. यह डर वक्त गुजरने के साथसाथ बढ़ता जा रहा था. अब नौबत यहां तक आ पहुंची थी कि इस मसले पर एसपी और डीएसपी साहब बहुत गंभीर नजर आने लगे थे. कोई भी जरा सा रिस्क लेने को तैयार नहीं था.

मैं ने वरदी उतारी और लपेट कर झाडिय़ों में छिपा दी. इस के बाद धीरेधीरे आगे बढऩे लगा. मैं कोहनियों और घुटनों के बल रेंगता रहा. बस के करीब पहुंच कर बस के पहियों के बीच से निकल कर ड्राइविंग सीट की तरफ से बाहर निकल आया. बस के बगल में छिप कर मैं ने अंगुली से लोहे की चादर को बजाया. ठकठक की आवाज पैदा की.

थोड़ा रुक कर फिर ठकठक की. इस बार चलने और बड़बड़ाने की आवाज आई. मैं एकदम अलर्ट था. मैं बैठा हुआ था. सिर ऊंचा था, नजर खिडक़ी पर जमी थी. मुझे खिडक़ी से किसी की ठोढ़ी और नाक की चोंच नजर आई. बदरू आवाज की वजह जानने को नीचे झांक रहा था.

लेकिन उस ने गरदन खिडक़ी से बाहर निकालने की गलती नहीं की. फिर भी मैं उस की जगह जान चुका था. बहुत तेजी से अपनी जगह पर उछल कर खड़ा हो गया और उस के बाल मुट्ठी में पकड़ लिए. इस के पहले कि वह कुछ समझ पाता, मैं ने एक जोरदार झटका दिया, जिस से उस का आधा धड़ खिडक़ी से बाहर आ गया.

उस के दाएं हाथ में हथगोला बम मुझे दिखाई दिया. उसी समय बस में लड़की की चीखें गूंजी. उन में भगदड़ मच गई. मैं ने बहुत नफरत और गुस्से से दूसरा झटका मारा तो झनाके की आवाज से खिडक़ी का शीशा टूट गया और बदरू कांटे में फंसी मछली की तरह तड़प कर नीचे आ गिरा. वह अपना दायां हाथ मुंह की तरफ बढ़ा रहा था. अगर वह कामयाब हो जाता तो तबाही मच जाती. मैं ने उस की दाहिनी कलाई थाम कर बालों को जोर से झटका दिया.

वह सैफ्टी पिन खींचने के लिए बम को अपने मुंह के करीब ला रहा था. मैं पूरी ताकत से उस का हाथ मुंह से दूर रखने की कोशिश कर रहा था. मैं ने बस की खिड़कियों में कुछ लड़कियों के खौफजदा चेहरे देखे, मैं ने चिल्ला कर कहा, “भाग जाओ तुम लोग.”

मेरी आवाज सुन कर वे सब जैसे होश में आईं. अब तक कुछ लड़कियां दरवाजे की सिटकनी खोल चुकी थीं. फिर मैं ने लड़कियों के भागने की और चीखने की आवाजें सुनीं. मैं ने पूरी ताकत से बदरू का हाथ मरोड़ दिया. बम उस के हाथ से छूट कर नीचे गिर गया. बम जैसे ही नीचे गिरा, मैं ने खड़े हाथ का एक जोरदार वार उस की गरदन पर किया तो उस की पकड़ ढीली पड़ गई.

मैं ने उस का सिर जमीन से टकराया तो कराह के साथ उस ने हाथपैर फेंक दिए. मुझे यकीन था कि वह एक घंटे से पहले होश में नहीं आएगा. उसी वक्त मैं ने बस के अंदर जूतों की ठकठक सुनी. मेरे साथी बस में दाखिल हो चुके थे. मैं तेजी से भागता हुआ वहां आया, जहां अपने कपड़े रखे थे. उन्हें उठा कर झाडिय़ों की आड़ लेता हुआ सडक़ पर आ गया.

कुछ अरसे बाद मैं इनायत खां की बेटी नजमा और शारिक की शादी में शामिल हुआ. दोनों खानदानों में सुलह हो चुकी थी. शादी खूब धूमधाम से हुई. शादी में पुलिस के बड़े अफसर और दूसरे विभाग के भी बड़े अफसर शामिल थे. दूल्हा अपने दोस्तों में खुश बैठा था. सब से ज्यादा गुरविंदर सिंह खुश था.

निकाह हो चुका था. खाने का इंतजार हो रहा था. मेरे साथ ही बैठे एसपी साहब एक डाक्टर और जज साहब से बस वाले हादसे की डिटेल बता रहे थे. एसपी साहब कह रहे थे, “4 बजे सुबह हम बस पर छापा मारने ही वाले थे (वैसे छापे का कोई प्रोग्राम नहीं था) कि हालात एकदम बदल गए. उसी वक्त मुलजिम का एक साथी वहां पहुंचा. न जाने क्यों बदरू और उस का झगड़ा हो गया. लड़कियों ने उन दोनों को गुत्थमगुत्था देखा तो बस से भाग निकलीं.”

बात खत्म होने पर एसपी साहब ने मुसकरा कर मेरी ओर देख कर कहा, “हमारे डिपार्टमेंट में कुछ ऐसे लोग हैं, जिन पर मुझे फख्र है.”

इस के पहले जब भी इस हादसे का जिक्र हुआ था, उन्होंने मुझे मुसकरा कर तारीफी नजरों से देखा था. एक बार तो उन्होंने कह भी दिया था, “नवाज खां, कभी उस पतलून वाले का पता तो लगाओ, पुलिस में उस जवान को भरती कर लेंगे.”

चुप रहने में ही मेरी भलाई थी. दरअसल एसपी जानते थे कि उस रात बदरू को मार कर बेहोश करने वाला मैं ही था.

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 6

मैं ने लड़की से उस के जख्म के बारे में पूछा तो वह बोली, “इंसपेक्टर साहब, वह चरस के नशे में लड़कियों से बेहूदा हरकतें कर रहा था. मुझ से बरदाश्त नहीं हुआ तो मैं ने मना किया. वह मेरे पीछे पड़ गया. मुझे बाजुओं से पकड़ कर अगली सीट पर ले जाने लगा. लेक्चरार जो वहीं थी, उन्होंने उस पर अपना पर्स दे मारा. लेकिन पिस्तौल नहीं गिरा. उस ने उन पर गोली चला दी, जो बाजू में लगी. वह सीटों के बीच गिर पड़ीं. मैं ने उस बास्टर्ड के लंबे बाल पकड़ लिए.

अगर उस वक्त कोई अन्य लड़की मदद को आ जाती तो हम उस का तियापांचा कर देते. लेकिन सभी इतनी डरी हुई थीं कि कोई भी आगे नहीं बढ़ी. उस ने फिर गोली चला दी, जो मेरी जांघ में लगी. उस के बाद अस्पताल पहुंच कर मुझे होश आया.”

मैं लड़की से बातें कर रहा था कि डाक्टर ने आ कर मुझ से कहा, “पुलिस स्टेशन से आप का फोन आ गया है.”

मैं ने जा कर फोन रिसीव किया. एसपी साहब ने मुझे फौरन बुलाया था. मैं समझ गया कि मीङ्क्षटग में कोई खास फैसला हुआ है. जब मैं वहां पहुंचा तो एसपी साहब ने कहा, “नवाज खान, कमिश्नर साहब ने हमें एक कोशिश करने की इजाजत दी है, लेकिन बहुत मुश्किल से. उन का आदेश है कि सवारियों में से किसी का भी कोई नुकसान नहीं होना चाहिए. मैं ने उन्हें यकीन दिलया है और वादा किया है कि ऐसा ही होगा. हम ने एक प्लान बनाया है. क्या तुम इस के लिए अपनी मरजी से खुद को पेश कर सकते हो?”

“जनाब, मैं तो पहले ही खुद को पेश कर चुका हंू, आदेश दीजिए कि मुझे करना क्या है?” मैं ने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा.

एसपी साहब ने सारा प्लान मुझे समझाया. उस वक्त 3 बज रहे थे. प्लान बहुत ज्यादा महत्त्व का तो नहीं था, पर नजमा, शारिक और गुरविंदर के लिए कुछ करने का मौका था.

सुबह के साढ़े 4 बज रहे थे. सख्त सर्दी थी. चारों ओर गहरा अंधेरा था. कुत्तों के भौंकने की आवाज कभीकभी सुनाई दे रही थी. हम झाडिय़ों के बीच खड़े थे. 30 गज के फासले पर बस हलकी सी दिखाई दे रही थी, जिस में कालेज की लड़कियां ,लेक्चरार और एक 3 साल की बच्ची पिछले 14 घंटे से जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी.

मेरे साथ पुलिस के 6 जवान 2 इंसपेक्टर और कई सबइंसपेक्टर थे. मैं अभीअभी वहां पहुंचा था. लेकिन बाकी के लोग शाम से ही वहां जमे थे. मैं ने उन से अब तक की प्रगति के बारे में पूछा. उस के बाद मैं बस तक जाने को तैयार हो गया. मैं आम सिपाही की ड्रैस में था. हाथों में एक बड़ा टिफिन था, जिस में 2-3 आदमियों का खाना था.

दरअसल, बदरू ने करीब डेढ़ घंटे पहले भूख से बेहाल हो कर खाने की फरमाइश की थी. उस की यही फरमाइश मीङ्क्षटग में इस काररवाई का सबब बनी थी. 14 घंटों में पहली बार कोई आदमी बस के करीब जा रहा था. इस से पहले शाम को 2 सिपाही जख्मी औरतों को बस के बाहर से उठा कर लाने के लिए गए थे, लेकिन उस वक्त उजाला था. किसी काररवाई का मौका नहीं था. चांद की रोशनी में बस का साया किसी भूत की तरह लग रहा था.

एक इंसपेक्टर ने थोड़ा आगे बढ़ कर जोर से चिल्ला कर कहा, “बदरू, सिपाही खाना ला रहा है, ले लो.”

कोई जवाब नहीं आया, केवल खिडक़ी का शीशा खोलने की आवाज आई. मैं धडक़ते दिल के साथ झाडिय़ों में से निकला और टिफिन ले कर बस की ओर बढ़ा. हमारे मंसूबों की कामयाबी इस बात पर निर्भर करती थी कि बदरू खुद खाना लेने के लिए हाथ बाहर निकाले या कम से कम खिडक़ी में नजर आए. मैं नपेतुले कदमों से बस के करीब पहुंचा. अपने रिवाल्वर को हाथ लगा कर देखा. बस के करीब पहुंच कर मैं ने टिफिन ऊपर उठाया.

उस वक्त मेरी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया, जब खिडक़ी में एक लडक़ी का डरासहमा चेहरा दिखाई दिया. उस ने हाथ बढ़ा कर मुझ से टिफिन थाम लिया. बस के अंदर अंधेरा था. किसी के रोने की आवाज आ रही थी. उसी वक्त मुझे लडक़ी के सिर के ऊपर 2 लाल चमकती आंखें और मुलजिम का सिर दिखाई दिया. वह झाडिय़ों में छिपे किसी दरिंदे की तरह लग रहा था. मैं ने जरा पीछे हट कर बस के दरवाजे पर दबाव डाला, वह बंद था.

अब लौट आने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. देरी मुलजिम को शक में डाल सकती थी. मुरदा कदमों के साथ मैं लौट आया. एसपी साहब वायरलैस पर रिपोर्ट का इंतजार कर रहे थे. मैं ने उन्हें नाकामी की खबर दी.

उन्होंने फैसला सुना दिया, “नवाज खान, अब तुम लौट आओ. कमिश्नर साहब ने सख्त हिदायत दी है कि इस के आगे कोई काररवाई नहीं होगी. उन का आदेश है कि तुम तुरंत थाने पहुंचो. इनायत खां से बात हो चुकी है, वह राजी है. उन का आदेश है कि बस की लड़कियों को जल्द से जल्द रिहा कराया जाए.”

मैं एसपी साहब की बात का मतलब अच्छी तरह समझ रहा था. एक मासूम लडक़ी को एक दरिंदे के हवाले किया जा रहा था. मेरा दिमाग भन्ना गया. लानत है ऐसी नौकरी और ऐसी जिंदगी पर. यह समझौता नहीं, कत्ल था. मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, मेरी नौकरी और जान चली जाएगी या डिप्टी कमिश्नर की बेटी और नवासी को नुकसान पहुंचेगा. पर मैं यह जुल्म नहीं होने दूंगा.

मैं ने एक फैसला किया और अपनी जगह पर खड़ा हो गया. एक सबइंसपेक्टर ने पूछा, “क्या हुआ जनाब?”

“कुछ नहीं, मैं वापस थाने जा रहा हूं. एसपी साहब ने बुलाया है.”

साथियों से अलग हो कर मैं सडक़ की ओर आया और बाएं घूम कर झाडिय़ों में दाखिल हो गया. करीब एक फर्लांग का चक्कर काट कर मैं बस की दूसरी तरफ निकला. अब मैं अपनी काररवाई के लिए आजाद था. इस काररवई का इरादा ही मेरी कामयाबी थी. मैं सुकून में था. जब इंसान खतरे में कूदने की ठान ले तो रास्ता आसान लगता है.

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 5

\मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ. इस का मतलब नजमा के मांबाप को मजबूर किया जा रहा था कि वे अपनी बेटी एक गुंडे के हवाले कर दें. क्या हमारी पुलिस इतनी नकारा हो चुकी थी कि जिन लोगों का काम रक्षा करना है, वही उन्हें मौत की तरफ धकेल रहे थे.

मैं ने कहा, “सर, इस तरह के हादसे तो होते ही रहते हैं. क्या एक गुंडे की खातिर कानून की धज्जियां उड़ाई जाएंगी.”

“नवाज खान, तुम सही कह रहे हो, पर हम लोग ऐसा करने को मजबूर हैं, क्योंकि डिप्टी कमिश्नर साहब की बेटी और नवासी भी उसी बस में हैं. उन की बेटी गल्र्स कालेज में लेक्चरार है. उस के साथ उस की 3 साल की बच्ची भी है. डीसी साहब के लिए उन दोनों की जिंदगी हर चीज से ज्यादा प्यारी है.

“अभी 3-4 महीने पहले उन की बीवी एक बम धमाके में मारी गई थी. अभी वह इस सदमे से उबरे भी नहीं हैं कि यह हादसा हो गया. वह बेहद डरे हुए हैं. उन का आदेश है कि कुछ भी हो, उन की बेटी और नवासी को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए. उन की बेटी और नवासी आगे की सीट पर हैं. अगर हम बदरू पर काररवाई करते हैं और वह हथगोला फेंकता है तो अगली 3-4 सीटों पर एक भी सवारी जिन्दा नहीं बचेगी.

“डिप्टी कमिश्नर साहब और कमिश्नर साहब ने और्डर दिया है कि मामले को बिलकुल खुफिया रखा जाए. जैसे भी हो, बदरू की मांग पूरी की जाए. इसलिए कल दोपहर डिप्टी कमिश्नर साहब ने खुद नजमा के अब्बू इनायत खां से बता की थी.

“फिर उसे कमिश्नर साहब के पास ले गए थे. दोनों इस मामले को शांति से हल करना चाहते हैं. चाहे इस के लिए कोई भी कीमत अदा करनी पड़े. भले वह नजमा ही क्यों न हो. यह मामला करीब करीब हल भी हो चुका था, लेकिन शाम को नजमा गायब हो गई. हम सब उस की तलाश में लग गए. देर रात वह हमें मिल भी गई.”

मैं अंग्रेज अफसर की सोच पर हैरान था. अपने खून को बचाने के लिए कानून को बेबस कर के मासूम की कुरबानी को राजी था. मैं ने एसपी साहब से पूछा, “अब क्या प्रोग्राम है?”

एसपी साहब ने कहा, “अभी डेढ़ बज रहे हैं. ठीक 5 मिनट बाद कमिश्नर साहब की कार हमें लेने आ रही है. उन से मीङ्क्षटग के बाद ही कुछ तय हो सकेगा?”

मैं ने कहा, “जनाब, यह बात काफी लोगों को मालूम हो चुकी है. अगर इस मामले को इस तरह से हल किया गया तो पुलिस की बड़ी बदनामी होगी. मेरा खयाल है कि इस शर्मनाक समझौते के बजाय हमें हालात का मुकाबला बहादुरी से करना चाहिए. इस के लिए मैं सब से पहले खुद को पेश करता हूं.”

थोड़ी देर इस बात पर बहस होती रही. एसपी साहब किसी भी काररवाई के सख्त खिलाफ थे. उन का कहना था कि एक तो इस तरह हम अपनी जान भी खतरे में डालेंगे, दूसरे यह कमिश्नर साहब और डिप्टी कमिश्नर साहब के और्डर के खिलाफ होगा. उन्होंने मुझे एक फाइल पढऩे को दी है.”

उसी वक्त गाड़ी आ गई. दोनों अफसर कमिश्नर साहब के पास चले गए. मैं फाइल देखने लगा. इस में बदरू के बारे में जानकारी थी. वह मैट्रिक फेल नौजवान था. मांबाप मर चुके थे, मोहल्ले में वह आवारा और चरसी के रूप में मशहूर था. फिल्मों का बेहद शौकीन था. अभी मैं फाइल पढ़ ही रहा था कि बाहर से चीखपुकार की आवाजें आने लगीं.

मैं बाहर आया तो शोर लौकअप की ओर से आ रहा था. गुरविंदर सिंह ने शारिक को जकड़ रखा था. वह सलाखों से अपना सिर टकरा रहा था. उस की पेशानी से खून बह रहा था, “मुझे छोड़ दे गुरविंदर, मुझे मर जाने दे. मैं जी कर क्या करूंगा?”

लौकअप खोल कर 3-4 सिपाही अंदर घुसे. उन लोगों ने शारिक को पकड़ा तो अचानक गुरविंदर छलांग लगा कर लौकअप से बाहर निकल गया. मैं दरवाजे पर ही था. अगर मैं जरा भी चूकता तो वह निकल भागता. उसे दबोच कर लौकअप के अंदर किया. वह बहुत गुस्से में था. उस ने कहा, “मुझे जाने दो, मुझे नजमा को बचाना है, नहीं तो मेरा यार मर जाएगा.”

उस की आंखों में आंसू चमक रहे थे. फिर वह शारिक से लिपट कर बोला, “मुझे माफ कर यार, देख ले मैं कितना मजबूर हूं.”

अजीब परेशान करने वाले हालात थे. एक बेगुनाह लडक़ी और उस की मां पर जुल्म हो रहा था. उस का आशिक अलग मरने को तैयार था. दोस्त हर खतरा उठाने को राजी था और जुल्म करने वाले वे थे, जिन्हें बचाना चाहिए था यानी कानून के रखवाले. मैं ने फैसला कर लिया कि मैं इन लोगों के लिए जरूर कुछ करूंगा, भले ही मुझे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़े. इस के लिए मुझे उन 2 जख्मी औरतों से मिलना था.

रात ढाई बज रहे थे, पर जाना जरूरी था. आज का दिन और रात इन्हीं हंगामों में गुजरी. मैं अस्पताल पहुंचा. ड्यूटी पर तैनात डाक्टर ने पहले तो मुझे मिलने से रोका, पर मैं ने कहा कि बहुत जरूरी है तो वह मुझे लडक़ी के पास ले गया. लडक़ी बिस्तर पर लेटी थी. थोड़ी देर पहले उस का एक छोटा सा औपरेशन हुआ था. पर वह होश में थी. थरसिया नाम की वह एंग्लोइंडियन लडक़ी सेकैंड ईयर की स्टूडैंट थी.

पहले मैं ने उस का हाल पूछा, इस के बाद बड़े प्यार से उस से बातें करने लगा. उस ने मुझे बताया कि वह बड़ा गुस्सैल आदमी है. लगातार सिगरेट पीता है. पूरी बस में चरस की बदबू फैली हुई थी, जिस में सांस लेना मुश्किल था. लडक़ी ने डिटेल में बस के अंदर की स्थिति बताई. बदरू ने बड़ी होशियारी से बस को कब्जे में किया हुआ था.

उस ने आगे की 2-3 सीटें खाली करा ली थीं. ड्राइवर को सब से पिछली वाली सीट पर भेज दिया था. बस के दरवाजे की सिटकनी अंदर से लगा दी थी. बस में एक ही दरवाजा था. उस के एक हाथ में पिस्तौल और दूसरे में हथगोला था. लड़कियों को धमकाता रहता था. न खुद कुछ खाया, न किसी को कुछ खाने दिया.

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 4

इस बीच नजमा को होश आ गया तो उस ने शारिक के घर फोन कर दिया. इस के बाद वह शारिक को ले कर वापस आया तो उसे देख कर नजमा हैरान रह गई. गुरविंदर सिंह ने दोनों को सलाह दी कि वे उस के गांव चले जाएं, वहां वे पूरी तरह से सुरक्षित रहेंगे. उस का बाप एक बड़ा जमींदार और रसूखदार आदमी था. क्या किया जाए, अभी वे लोग सोच ही रहे थे कि मैं वहां पहुंच गया. लेकिन अभी भी कुछ बातें मुझे उलझन में डाल रही थीं.

नजमा का बाप चुपचाप फौरन उस की शादी क्यों कर रहा था? उन लोगों ने शारिक से शादी का इरादा क्यों बदल दिया था? अंग्रेज डीसी इस मामले में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा था?

अब तक उस के करीब 10-12 फोन आ चुके थे. शायद एसपी साहब जानते हों, पर उन्होंने कुछ बताया नहीं था. इसी उधेड़बुन में मैं टहलता हुआ मुंशी के कमरे की तरफ निकल गया. वहां 2 लोग अपनी लड़कियों के गायब होने की रिपोर्ट लिखा रहे थे. वे लड़कियां रोजाना कालेज की बस से घर आती थीं, पर आज बस ही नहीं आई थी. उन लोगों ने कालेज जा कर पता किया तो जानकारी मिली कि बस लड़कियों को ले कर कालेज से चली गई थी.

पूरी बात बताने में कालेज का स्टाफ टालमटोल कर रहा था. वे दोनों झिकझिक कर रहे थे कि कुछ और पैरेंट्स वहां आ गए. उन की भी लड़कियां घर नहीं पहुंची थीं. वे सब भी परेशान थे. 4 बजे के करीब उन्हें बताया गया कि बस मिल गई है और लड़कियां एक घंटे में घर पहुंच जाएंगी.

कुछ देर में कालेज की अंग्रेज ङ्प्रसिपल आ गई. उस ने बताया कि गल्र्स कालेज की बस में 2 गुंडे सवार हो गए थे. वे ड्राइवर को पिस्तौल दिखा कर बस को वीराने में ले गए हैं, पर खतरे की कोई बात नहीं है. उन्होंने किसी लडक़ी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है. वे रुपए की मांग कर रहे हैं. कमिश्नर साहब ने उन की बात मान ली है. थोड़ी देर में बस वापस कालेज पहुंच जाएगी.

कुछ पैरेंट्स वापस जाने लगे तो उन्हें यह कह कर रोक लिया गया कि एसपी साहब के आदेश के अनुसार किसी को जाने की इजाजत नहीं है, लड़कियों के आने तक सभी को यहां रुकना पड़ेगा. इस के बाद जो भी अपनी लड़कियों के बारे में पूछने आया, उसे वहीं रोक लिया गया. रात 8 बजे बाहर से आने वाले एक आदमी से पता चला कि एक लेक्चरार और एक लडक़ी को जख्मी हालत में अस्पताल में भरती कराया गया है. उन की हालत हर किसी से छिपाई जा रही है.

रिपोर्ट लिखाने वाले दोनों आदमी सगे भाई थे और वकील थे. बड़े भाई की 2 लड़कियां बस में बंधक थीं. दोनों बड़ी होशियारी से कालेज से निकल कर थाने पहुंच गए थे. मैं ने जब उन की बातें सुनीं तो लगा कि मामला बड़ा गंभीर है. लड़कियों से भरी बस 2 गुंडों के रहमोकरम पर थी. किसी वजह से पुलिस सख्त काररवाई करने से बच रही थी और पूरे मामले को छिपाने की कोशिश कर रही थी. परेशान पैरेंट्स को कालेज में ही रोक लिया गया था, ताकि बात खुले न.

उसी वक्त एक सबइंसपेक्टर ने आ कर बताया कि डीएसपी साहब बुला रहे हैं. मैं अंदर पहुंचा तो वे काफी परेशान थे. एक चिट देते हुए वह मुझ से बोले, “नवाज खान इस आदमी को अभी गिरफ्तार करो.”

मैं ने चिट देखी, उस पर अरुण अग्रवाल एडवोकेट लिखा था, साथ ही उस का पता भी लिखा था. यह अरुण अग्रवाल वही आदमी था, जो मुंशी के पास लड़कियों की गुमशुदगी लिखवा रहे थे. मैं ने पूछा, “सर, आखिर यह मामला क्या है?”

डीएसपी ने रूखे स्वर में कहा, “मामले के चक्कर में मत पड़ो. बस समझो टौप सीके्रट है.”

अब मुझे इस पूरे मामले से दहशत होने लगी थी. मैं ने आगे झुक कर दृढ़ता से कहा, “सर, कुछ टौप सीक्रेट नहीं है. आप क्यों एक बिगड़े हुए मामले को और बिगाड़ रहे हैं?”

डीएसपी साहब नाराज हो कर बोले, “तुम्हें क्या मालूम, क्या मामला है?”

मैं ने कहा, “जनाब, मुझे पता है. 2 गुंडों ने कालेज की बस अगवा कर ली है. 2 लोगों को जख्मी भी कर दिया है और बाकी लड़कियों की ङ्क्षजदगी खतरे में है. जब मुझे पता है तो और लोगों को भी पता होगा. आप को मालूम नहीं कि अभी थोड़ी देर पहले अरुण अग्रवाल इस मामले की रिपोर्ट लिखवा रहा था. आप ने और्डर देने में थोड़ी देर कर दी.”

एसपी और ज्यादा परेशान हो गए. मुझ से बैठने को कह कर बोले, “मुझे लगता है नवाज खान, तुम्हें सारी बात बता देनी चाहिए. जैसा कि तुम जानते हो, बस अगवा हो चुकी है और उस में गोली भी चल गई है, जिस से एक लेक्चरार और एक स्टूडैंट घायल हो गई हैं. स्थिति यह है कि बस में सिर्फ एक बदमाश है. उस का नाम बदरु है. वह सनकी और खतरनाक आदमी है.

“बस अगवा करने के बाद उस ने एक बड़ी अजीब सी मांग रखी है. उस का कहना है कि एक लडक़ी, जो उस की महबूबा है, उसे उस के हवाले कर दिया जाए. वह उस के बिना जिन्दा नहीं रह सकता. और वह लडक़ी कोई और नहीं, इनायत खां की बेटी नजमा है.

“बदरू काफी दिनों से उस के पीछे पड़ा था. कुछ दिनों पहले उस ने नजमा को रास्ते में परेशान भी किया था. उस पर उस के भाइयों ने बदरू की जम कर पिटाई की थी. पर वह बहुत ढीठ और जिद्दी है. वह सिर्फ नजमा को अगवा करने के लिए बस में घुसा था. लेकिन नजमा बस में नहीं थी, क्योंकि कल वह कालेज नहीं गई थी.

“नजमा को न पा कर वह गुस्से से पागल हो गया और ड्राइवर के सिर पर पिस्तौल रख कर उसे वीराने में चलने को मजबूर किया. अब वह बस सडक़ से हट कर वीराने में झाडिय़ों के बीच खड़ी है. बस का कंडक्टर किसी तरह से भागने में कामयाब हो गया. उसी ने कालेज जा कर इस घटना की सूचना दी.

“मैं ने खुद मौके पर जा कर बदरू से बात की. वह आधा पागल है. उस के पास एक हथगोला और भरी पिस्तौल है. उस ने मुझे खिडक़ी से बम दिखाया था. वह एक ही बात कह रहा है कि उसे उस की महबूबा नजमा और 5 लाख रुपए चाहिए. वह अन्य किसी लडक़ी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा. उस की मांग पूरी कर दो.”

“जनाब, क्या आप ने उस की मांग पूरी करने का फैसला कर लिया है?”

“हां, शायद उस की मांग पूरी करनी ही पड़ेगी.” उन्होंने कहा.

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 3

मायूसी बढ़ रही थी कि अचानक वायरलैस जाग उठा. दूसरी ओर मेरा सबइंसपेक्टर बोला, “हैलो साहब थोड़ी देर पहले जीप के इंजन की आवाज सुनाई दी थी. पर अब नहीं सुनाई दे रही है.”

मैं ने कहा, “हसन, हम जीप पीछे करते हैं, तुम फिर बताओ.”

हम धीरेधीरे जीप पीछे करने लगे. हम थोड़ा पीछे लौटे थे कि उस की आवाज आई, “जी साहब, अब आवाज आ रही है.” हम थोड़ा और पीछे चले तो उस ने कहा, “अब ज्यादा तेज आवाज आ रही है.” हम ने जीप वहीं रोक दी.

सामने एक बड़ी सी कोठी थी. अपने 2 सिपाहियों और एक सबइंसपेक्टर को बाहर होशियारी से ड्यूटी देने के लिए कह कर कहा कि अगर फायर की आवाज आए तो तुरंत अंदर आ जाना. इस के बाद मैं ने गेट से अंदर झांका. चौकीदार वगैरह नहीं दिखाई दिया. गैराज में एक कार खड़ी थी, चारदीवारी ज्यादा ऊंची नहीं थी. मैं आसानी से अंदर कूद गया. गहरा सन्नाटा और अंधेरा था. धीरेधीरे मैं कोठी की ओर बढ़ा.

अचानक मेरे ऊपर हमला हुआ तो मैं फर्श पर गिर पड़ा. उस के हाथ में कोई लंबी वजनी चीज थी. जैसे ही उस ने मारने के लिए उठाया, मैं ने जोर से उस के पेट पर एक लात मारी. चोट करारी थी, वह पीछे दीवार से जा टकराया. जल्दी से खड़े हो कर मैं ने देखा, उस के हाथ में बैट था. जैसे ही उस ने मारने को बैट उठाया, मैं ने तेजी से एक बार फिर उस के पेट पर लात मारी. वह गिर पड़ा तो एक लात और उस के मुंह पर जमा दिया.

वह चकरा कर पलटा. एक और वार में वह बेसुध हो गया. तभी किसी ने पीछे से जोरदार धक्का दिया. इस के बाद वह मेरी कमर से लिपट गया. मैं ने फुरती से रिवौल्वर निकाली और हवाई फायर कर दिया. हमलावर ठिठका तो मैं ने पलट कर एक जोरदार घूंसा उस के मुंह पर मारा तो वह घुटनों के बल बैठ गया.

जैसा मैं ने साथियों से कहा था, फायर की आवाज सुनते ही वे अंदर आ गए. उन्होंने उसे पकड़ लिया और अंदर ले गए. अंदर सारी लाइटें जला दी गईं. वह काफी बड़ी कोठी थी. सामान ज्यादा नहीं था, लेकिन जो था, उस से लगा कि कोई स्टूडैंट वहां रहता है. मैं ने सबइंसपेक्टर से तलाशरी लेने को कहा. पल भर बाद वह एक खूबसूरत 17-18 साल की लडक़ी को ले कर मेरे सामने आ खड़ा हुआ. वह सलवारकमीज पहने थी, पैरों में जूती नहीं थी. वह काफी घबराई हुई थी.

वह कुछ कहना चाहती थी कि तभी एसपी, डीएसपी कुछ सिपाहियों के साथ आ पहुंचे. उन के साथ लडक़ी के घर वाले भी थे. लडक़ी मां से लिपट गई. वह नौजवान, जिस ने मुझ पर बाद में हमला किया था, उस की ठोड़ी से खून बह रहा था. उसे देख कर इनायत खां चीखा, “यही है वह कमीना शारिक, इसी ने मेरी बेटी को अगवा किया था.”

रात करीब 1 बजे हम थाने लौटे. उसी समय डीसी साहब का फोन आ गया. उन्हें खबर दे दी गई थी कि लडक़ी मिल गई है, मुलजिम पकड़े गए हैं. याकूब अली के बेटे शारिक ने अपने दोस्त गुरविंदर के साथ इस वारदात को अंजाम दिया था.

यह किस्सा कुछ यूं था. गुरविंदर सिंह कालेज में आखिरी साल में था. वह स्टूडैंट यूनियन का अध्यक्ष था. उस के साथ मिल कर शारिक ने यह काम किया था. डीसी साहब ने सब को बधाई और शाबासी दी. मेरा सिर दर्द खत्म हो गया था. लडक़ी मिल गई थी, पर मुझे लग रहा था कि अभी कोई बात मुझ से छिपी हुई है. बात कुछ और भी है. डीसी का इस मामले में इतना ज्यादा इंट्रैस्ट लेना मेरी समझ में नहीं आ रहा था.

शारिक और गुरविंदर सिंह से पूछताछ की तो बात खुल कर सामने आई कि अपहरण वाले दिन दोपहर को शारिक के औफिस नजमा ने फोन किया था कि बहुत बड़ी मुश्किल आ गई है, वह जल्दी से जल्दी उस से मिले. शारिक औफिस से छुट्टी ले कर नजमा से मिलने पहुंच गया. दोनों एक नजदीक के पार्क में मिले तो नजमा ने रोते हुए बताया कि उस का सौतेला बाप उस की शादी चंद घंटों के अंदर कहीं और कर रहा है. यह सुन कर शारिक हैरान रह गया.

2 महीने में उन दोनों की शादी होने वाली थी, जिस की तैयारियां भी चल रही थीं. नजमा ने आगे बताया कि उस के अब्बा बहुत परेशान थे. 2-3 बार उन्हें एक कार ले जाने और छोडऩे आई थी. बारबार फोन आ रहे थे. थोड़ी देर पहले उस ने अम्मी अब्बू की बातें छिप कर सुनी थीं.

अब्बू अम्मी को समझाने की कोशिश कर रहे थे, “रईसा, हमें नजमा की शादी वहां करनी ही पड़ेगी, वरना हम कौड़ीकौड़ी को मोहताज हो जाएंगे. लडक़ी के बारे में मत सोचो, अपने और अन्य बच्चों के बारे में सोचो. शादी करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है.”

इस के बाद अम्मी रोते हुए बोलीं, “मेरी बिटिया का क्या होगा, दुनिया क्या कहेगी?”

अब्बू ने कहा, “उस की तुम फिकर मत करो, सब हो जाएगा. शादी कर के हम 2 महीनों के लिए कश्मीर चले जाएंगे. इतनेदिनों में लोग सब भूल जाएंगे.”

काफी बहस के बाद अम्मी मजबूरी में उस की इस शादी के लिए राजी हो गईं. कुछ ही घंटे में नजमा को किसी अजनबी आदमी के हवाले करने की बात तय हो गई.

शारिक नजमा की बातें सुन कर दंग रह गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी महबूबा को क्या और कैसे तसल्ली दे? बेहद परेशानी की इस हालत में वह एक होटल में जा बैठा. वहां उस के पक्के दोस्त गुरविंदर सिंह से उस की मुलाकात हो गई. उस ने उस की परेशानी की वजह पूछी तो उस ने दुखी मन से सारी बात बता दी.

गुरविंदर सिंह ने उस का दुख सुना और चुपचाप वहां से उठ कर चला गया. वह सीधे नजमा के घर पहुंचा और अपनी 2 सीटर गाड़ी कोठी के पीछे खड़ी कर के थोड़ी देर हालात जांचता रहा. इस के बाद मौका देख कर खिडक़ी से नजमा के कमरे में दाखिल हो गया और बड़ी होशियारी से उसे बेहोश कर के अपनी कोठी में ले कर आ गया. उसे एक कमरे में बंद कर के खुद शारिक की तलाश में निकल गया.

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 2

फोन की घंटी बजी, मैं ने लपक कर फोन उठाया. दूसरी ओर मेरा एक सबइंसपेक्टर था, जिसे मैं ने शारिक के बारे में पता करने के लिए उस के दोस्तों के यहां और औफिस भेजा था. उस ने बताया, “दोस्तों से तो कुछ पता नहीं चला, लेकिन औफिस वालों से पता चला है कि 2 बजे शारिक के लिए किसी का फोन आया था. इस के बाद वह हड़बड़ा कर औफिस से निकल गया था. तब से वह किसी को दिखाई नहीं दिया.”

मोहल्ले वालों से पता चला था कि 8 दिन पहले नजमा के भाइयों ने किसी लडक़े की घर के पास जम कर पिटाई की थी. वजह मालूम नहीं हो सकी, पर वह लडक़ा शारिक नहीं था.

फोन एक बार फिर बजा. मैं ने रिसीवर उठा कर कान से लगाया तो दूसरी ओर से किसी लडक़ी की घबराई हुई आवाज आई, “अकबर भाई बोल रहे हैं न?”

मैं ने कहा, “हां.”

लडक़ी घबराहट में आवाज नहीं पहचान पाई और जल्दीजल्दी कहने लगी, “अकबर भाई, एक आदमी मुझे पकड़ कर यहां ले आया है. मुझे एक कमरे में बंद कर के खुद न जाने कहां चला गया है? यह फोन दूसरे कमरे में था, खिडक़ी का शीशा तोड़ कर किसी तरह मेरा हाथ वहां पहुंचा है. सारे दरवाजे बंद हैं. प्लीज, मेरे अब्बा तक खबर पहुंचा दें.”

इतना कह कर वह रोने लगी. मैं ने कहा, “मैं अकबर का दोस्त बोल रहा हूं. वह अभी घर पर नहीं है. आप यह बताएं कि आप बोल कहां से रही हैं?”

“यह मुझे नहीं मालूम. मुझे बेहोश कर के यहां लाया गया है. मुझे पता नहीं है.”

“तुम उसे पहचानती हो, जो तुम्हें वहां ले आया है?”

“नहीं, पर वह लंबातगड़ा आदमी है. पतलूनकमीज पहने है, हाथ में कड़ा भी है. वह मेरे कमरे की खिडक़ी से अंदर आया था. उस ने मेरे मुंह पर कोई चीज रखी और मैं बेहोश हो गई. प्लीज, कुछ कीजिए. शारिक या उस के अब्बा से बात करवा दीजिए.”

मैं ने कहा, “मिस नजमा, हम सब आप की तलाश में लगे हैं. लेकिन जब तक आप पता या जगह नहीं बताएंगी, हम कुछ नहीं कर सकते. खिडक़ी से देख कर कुछ अंदाजा नहीं लगता क्या?”

अब तक सभी फोन के पास आ कर खड़े हो गए थे और बात समझने की कोशिश कर रहे थे. मैं ने पूछा, “मिस नजमा, वह आदमी घर में है या कहीं बाहर गया है?”

“मुझे होश आया तो मैं ने गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज सुनी. शायद वह कहीं बाहर गया है.”

मैं ने कहा, “मिस नजमा, फोन काट कर तुम टेलीफोन एक्सचैंज फोन करो. वे लोग पता लगा लेंगे कि तुम कहां से बोल रही हो. और इस के बाद एक्सचैंज का नंबर बता कर मैं ने फोन रख दिया. सभी जानने को बेचैन थे कि क्या हुआ. मैं ने उन्हें चुप रहने को कहा और एक्सचैंज फोन किया. सब की निगाहें फोन पर जमी थीं. एक्सचैंज वालों ने कहा, “जैसे ही नंबर ट्रेस होगा, पता बता देंगे.”

एकएक मिनट भारी पड़ रहा था. 15 मिनट बीत गए. घंटी नहीं बजी. मुझे ङ्क्षचता हो रही थी. इस के बाद एक्सचैंज से फोन आया कि उन्हें कहीं से कोई फोन नहीं किया गया. बात हो ही रही थी कि फोन आने का संकेत मिला. मैं ने फोन काट कर दोबारा फोन उठाया तो दूसरी ओर नजमा थी.

उस ने कहा कि वह एक्सचैंज फोन करने की कोशिश कर रही थी, पर कामयाब नहीं हुई, क्योंकि टेलीफोन करने के चक्कर में रिसीवर नीचे गिर गया. डायल में कोई खराबी आ गई है. वहां फोन नहीं लगा. बड़ी मुश्किल से न जाने कैसे आप को लग गया. वह रो रही थी और मिन्नतें कर रही थी कि उसे किसी तरह बचा लें, कहीं अगवा करने वाला आ न जाए.

हम कितने बेबस थे. एक मजबूर लडक़ी की फरियाद सुन रहे थे, पर उस के लिए कुछ कर नहीं पा रहे थे. वह बारबार कह रही थी, “अब फोन काटना मत, वरना दोबारा फोन नहीं मिल पाएगा.”

उसी बीच डीएसपी और एसपी साहब भी आ गए थे. याकूब अली का ड्राइंगरूम थाने का औफिस बन गया था. पूरी स्थिति जानने के बाद एसपी साहब ने कहा, “डीसी साहब का सख्त आदेश है कि किसी भी तरह जल्दी से जल्दी लडक़ी की तलाश की जाए.”

उसी समय नजमा के मांबाप भी दाखिल हुए. नजमा फोन पर थी. उस की आवाज सुन कर उस की मां जोरजोर से रोने लगी. तभी नजमा ने चीखते हुए कहा, “वह आ गया है, गाड़ी की आवाज आ रही है, वह किसी कमरे का दरवाजा खोल रहा है, उस के कदमों की आवाज साफ सुनाई दे रही है.”

मैं ने जल्दी से कहा, “मिस नजमा, हौसले से काम लो. मैं तुम से वादा करता हूं कि मैं तुम्हें जरूर बचाऊंगा.”

इसी के साथ मुझे दूर से गाडिय़ों और हौर्न की आवाजें आती सुनाई दीं. इस का मतलब वह घर किसी बड़ी सडक़ के किनारे था, जिस से बड़ी गाडिय़ां और ट्रक गुजरते थे. तभी उस की धीमी आवाज आई, “कोई दरवाजा खोल रहा है.”

मैं ने उस से कहा, “रिसीवर क्रेडिल के बजाय नीचे रख दो और खिडक़ी के टूटे शीशे के सामने खड़ी हो जाओ.”

उसी वक्त रिसीवर के नीचे गिरने की आवाज आई. शायद नजमा ने घबराहट में रिसीवर छोड़ दिया था. इस के बाद दरवाजा खुलने और किसी मर्द के कुछ कहने की आवाज आई. वह क्या कह रहा था, यह समझ में नहीं आ रहा था. इस के बाद दरवाजा बंद हुआ और बातें खत्म हो गईं. अब बस ट्रैफिक का शोर सुनाई दे रहा था.

एक तरकीब मेरे दिमाग में आई. मैं ने एसपी साहब से पूछा, “सर, आप की जीप में वायरलैस और रिसीवर है?”

उन्होंने कहा, “हां है.”

मैं ने भाग कर उन के ड्राइवर के पास जा कर कहा, “जल्दी से जीप का साइलैंसर निकाल दो.”

इस के बाद साहब से कहा, “मैं ने साइलैंसर निकलवा दिया है. मैं इस जीप से शहर की सडक़ों पर गुजरूंगा. आप अपना कान इस टेलीफोन से लगाए रखें. जब और जहां आप को हमारी जीप की आवाज सुनाई दे, आप वायरलैस से हमें खबर कर दें.”

बात डीएसपी साहब की समझ में आ गई. उन्होंने हैरत से मुझे देखा. एसपी साहब भी खुश और जोश में नजर आए. मैं कुछ बंदों के साथ फौरन जीप से रवाना हो गया. रात के साढ़े 10 बज रहे थे, पर सडक़ें जाग रही थीं. मैं ने वायरलैस चालू कर के एक सबइंसपेक्टर को पकड़ा कर बैठा दिया. मैं ने वे सडक़ें चुनी, जहां से भारी वाहन गुजरते थे. जीप तेजी से सडक़ों पर दौड़ रही थी. उस के शोर से लोग मुड़ कर देख रहे थे. आधा घंटे तक कुछ हासिल नहीं हुआ.

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 1

यह एक शहरी थाने का मामला है. शाम को मैं औफिस में बैठा एक पुराने मामले की फाइल पलट रहा था, तभी 2-3 लोग काफी घबराए हुए मेरे पाए आए. शक्लसूरत से वे लोग ठीकठाक लग रहे थे. उन में एक दुबलापतला और अधेड़ उम्र का आदमी था, उस का नाम इनायत खां था, वह शहर का चमड़े का सब से बड़ा व्यापारी था.

उस ने बताया कि उस की बेटी गायब है. उसे शारिक नाम के युवक ने अगवा किया है. वह उन का दूर का रिश्तेदार है, जिस की अभी जल्दी ही किसी औफिस में नौकरी लगी है. इस के पहले वह आवारागर्दी किया करता था. उस की मां उस के पास उन की बेटी का रिश्ता मांगने आई थी, पर उन्होंने उसे कोई जवाब नहीं दिया था.

इनायत खां ने आगे बताया कि उस की बेटी नजमा मुकामी कालेज में पढ़ रही थी. उस की उम्र 17 साल थी. शरीफ उसे बहलाफुसला कर भगा ले गया था. मैं ने उस की शिकायत दर्ज कर ली और एक एसआई तथा 2 सिपाहियों को शारिक के बारे में पता करने उस के घर भेज दिया. आधे घंटे में वे शारिक के पिता और बड़े भाई को साथ ले कर थाने आ गए. दोनों के चेहरों पर परेशानी झलक रही थी.

शारिक के बाप ने कहा, “थानेदार साहब, मेरा बेटा शारिक ऐसा गलत काम नहीं कर सकता. फिर उसे ऐसा करने की जरूरत ही क्या थी? 2-3 महीने में वैसे भी नजमा से उस की शादी होने वाली थी.”

इस पर नजमा का बाप भडक़ उठा, “याकूब अली, तुम ने बेटे के लिए नजमा का रिश्ता मांगा जरूर था, पर अभी शादी तय कहां हुई थी? शायद इसी वजह से उस ने मेरी बेटी को गायब कर दिया है. तुम लोगों की बदनीयती सामने आ गई है.”

दोनों के बीच तकरार होने लगी. मैं ने उन्हें चुप कराया. याकूब अली इस बात पर अड़ा था कि शारिक और नजमा की शादी तय हो चुकी थी, जबकि इनायत खां मना कर रहा था. मैं ने उन्हें समझाबुझा कर घर भेज दिया.

मैं ने सोचा, थोड़े काम निपटा कर इनायत खां के घर जाता हूं कि तभी डिप्टी कमिश्नर साहब का फोन आ गया. मैं चौंका, अंग्रेज हाकिम के मिजाज को वही लोग समझ सकते हैं, जिन्होंने उन के अंडर में काम किया हो. उन्होंने लडक़ी के अगवा के मामले का जिक्र करते हुए कहा, “तुम फौरन लडक़ी के बारे में पता करो. किसी भी कीमत पर कुछ ही घंटों में मुझे लडक़ी चाहिए.”

मैं ने उन्हें यकीन दिला कर फोन बंद कर दिया. इस के तुरंत बाद डीएसपी साहब को फोन लगाया. उन्होंने भी कहा, “डीसी साहब का फोन आया था. तुम फौरन लडक़ी की तलाश में लग जाओ, शारिक को पकडऩे के लिए छापा मारो, मैं ने शहर से निकलने वाले सारे रास्तों पर नाकाबंदी करा दी है. रेलवे स्टेशन और बसस्टैंड पर भी आदमी भेज दिए हैं.”

डीएसपी साहब से सलाह कर के मैं सहयोगियों के साथ याकूब अली के घर जा पहुंचा. उस समय रात के 8 बज रहे थे. शारिक के भाई अकबर ने दरवाजा खोला. याकूब अली घर पर नहीं था. मैं ने थोड़ा तेज लहजे में कहा कि शारिक को छिपाने की गलती न करें, वरना परेशानी में पड़ जाएंगे. शारिक की मां अपने बेटे की सफाई में दुहाई देने लगी.

उस ने बताया कि नजमा इनायत खां की सगी बेटी नहीं थी. उस ने बीवी की मौत के बाद दूसरी शादी की थी. यह लडक़ी उसी दूसरी बीवी की है और उस के साथ इनायत खां के यहां आई थी. नजमा की मां रईसा उन की रिश्तेदार थी, इसलिए उन का एकदूसरे के यहां आनाजाना था.

नजमा शारिक को पसंद करने लगी थी. वह अकसर उन के घर आ कर छोटेमोटे काम वगैरह भी कर देती थी. शारिक की मां को वह अम्मीजान कहती थी. शारिक भी उसे पसंद करने लगा था. उस के छोटे भाई भी उसे खूब चाहते थे. इसी वजह से उस ने शारिक के रिश्ते की बात चलाई थी, जो उन्होंने मंजूर कर ली थी. 3-4 महीने में शादी होने वाली थी. वह उलझन में थी कि अब वे लोग ऐसा क्यों कह रहे थे कि शादी तय नहीं थी, जबकि सब कुछ तय हो चुका था.

रईसा शारिक की मां की चचेरी बहन थी. वह खुशीखुशी बेटी देने को तैयार थी. अब क्यों इनकार कर रही हैं, यह बात समझ के बाहर थी. मुझे लगा रईसा से मिल कर सच्चाई मालूम करनी पड़ेगी. मैं इसी बात पर विचार कर रहा था कि फोन की घंटी बजी. अकबर ने फोन उठाया, आवाज सुन कर उस का रंग उड़ गया. 2 शब्द बोल कर उस ने रिसीवर रख दिया.

“कौन था?” उस की मां ने पूछा.

“रौंग नंबर था.” उस ने जल्दी से कहा.

मैं समझ गया कि वह कुछ छिपा रहा है. मैं ने कहा, “तुम कह रहे थे कि शारिक 8 बजे तक घर आ जाता है, अब तो 9 बज रहे हैं, वह आया नहीं, बताओ कहां है? और हां, अब फोन आएगा तो तुम नहीं, मैं उठाऊंगा.”

इस के बाद मैं एक सिपाही को चौधरी इनायत खां के यहां भेज कर खुद शारिक की मां और उस के भाई से पूछताछ करने लगा. उन्होंने बताया कि शारिक औफिस से 3 बजे आता है, खाना खा कर थोड़ा आराम करता है, इस के बाद जाता है तो 7-8 बजे आता है, पर आज वह एक बार भी घर नहीं आया. मां अपने बेटे की तारीफें करती रही.

सिपाही इनायत खां के यहां से पूछताछ कर के आ गया. उस ने बताया, “साहब, उन की पौश इलाके में शानदार कोठी है. नजमा की मां रईसा से बात हुई. उन का कहना है कि शारिक का रिश्ता आया था, लेकिन बात बनी नहीं. जहां तक नजमा के अपहरण की बात है, उस में पक्के तौर पर शारिक का हाथ है.”

जिस सबइंसपेक्टर को जांच के लिए भेजा था, उस ने बताया, “नजमा शाम से पहले लौन में बैठी थी. इस के बाद अपने कमरे में चली गई. थोड़ी देर बाद मां उस के कमरे में गई तो वह कमरे से गायब थी. कमरे की पिछली खिडक़ी खुली थी. जनाब मैं ने खुद कमरा बारीकी से देखा है, शीशे का एक गिलास टूटा पड़ा था, तिपाई गिरी पड़ी थी, लडक़ी की एक जूती कमरे में पड़ी थी, हालात बताते हैं कि लडक़ी को खिडक़ी के रास्ते से जबरदस्ती ले जाया गया था.”

सबइंसपेक्टर की बातें सुन कर मैं उलझन में पड़ गया. नजमा के घर वाले शारिक पर इल्जाम लगा रहे थे. जबकि शारिक की मां का कहना था कि जब शारिक की उस से शादी होने वाली थी तो वह ऐसा क्यों करेगा? उस का कहना था कि यह सब लडक़ी के सौतेले बाप की साजिश है.

बीता वक़्त वापिस नहीं आता

उधार का चिराग

Top 25 Crime Kahaniyan In Hindi : टॉप 25 क्राइम कहानियां हिंदी में

Top 25 Crime Kahaniyan :  इन क्राइम कहानियों को पढ़कर आप जान पाएंगे कि इस बदलते समाज में कैसे और किस तरह के अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं. समाज में हो रहे अपराध और धोखाधड़ी से आप स्वयं को और अपने आस पास के लोगों को जागरूक करने के लिए पढ़े ये मनोहर कहानियां Best 25 Crime Kahaniyan in Hindi 

1. दिल्ली का साहिल साक्षी केस : प्यार पर नफरत के वार – भाग 1

“किसी को जो कुछ कहना है, कहे, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं तुझे दिल से चाहता हूं और तुम किसी और को, यह मुझे कदापि बरदाश्त नहीं होगा, समझी?” बोलते हुए साहिल उस के बालों को कस कर पकड़ कर खींचने लगा. उस का दूसरा हाथ साक्षी की गरदन पर आ गया था. साक्षी अचानक साहिल के इस हमले से लडख़ड़ा गई. किसी तरह उस के हाथ से अपने बालों को छुड़ाया. तब तक वह जमीन पर गिरने की स्थिति में आ गई थी.

दूसरी तरफ साहिल हारे हुए शिकारी की तरह तिलमिलाने लगा था, चीखा, “हरामजादी, रंडी कहीं की, इश्क करेगी? अभी बताता हूं, तूने अभी तक मेरा गुस्सा नहीं देखा है. कल तक प्यार से समझा रहा था, फिर भी तू नहीं मानी, अब देख मैं क्या करता हूं…”

साहिल ने फुरती से अपनी जींस पैंट में से बड़ा चाकू निकाल लिया. बाएं हाथ से बाल समेत उस की गरदन दबोच ली, दाएं हाथ में चाकू से दनादन उस पर वार करने लगा. साक्षी चीखने लगी. उस की चीख सुन कर पास से गुजर रहे कुछ लोग ठिठक गए.

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2. नन्हा हत्यारा, जिसने पूरा पंजाब हिला दिया

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रमेश दीपू को अपने कमरे में ले जा कर अंदर से कुंडी बंद कर ली. इस के बाद उसे उठा कर पलंग पर पटक दिया. अचानक हुए इस हमले से दीपू घबरा गया और खुद को रमेश के चंगुल से छुड़ाने के लिए हाथपैर चलाने लगा. दीपू छोटा और उस से कमजोर था, इसलिए उस का मुकाबला नहीं कर सका. उस ने रमेश को 2-3 जगह दांतों से काटा भी. लेकिन रमेश उस की छाती पर सवार हो गया और उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

दीपू की हत्या करने के बाद रमेश ने लाश को पलंग से नीचे उतारा और घसीट कर बाथरूम में ले गया. इस के बाद घर में रखी खुरपी से उस के शरीर के टुकड़े कर प्लास्टिक के कट्टे में भर दिए. दिल निकाल कर उस ने अलग पौलीथिन में रख लिया. जब गली में कोई नहीं दिखाई दिया तो लाश के टुकड़ों वाले कट्टे ले जा कर खाली प्लौट में फेंक आया.

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3. रिश्तों की कब्र खोदने वाला क्रूर हत्यारा – भाग 1

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पुलिस टीम जब अंदर दाखिल हुई तो वहां का नजारा देख चौंकी. कमरों का इंटीरियर बहुत अच्छा था, हर कमरे में एलसीडी लगे थे पर पूरा घर अस्तव्यस्त पड़ा था. ऐसा लग रहा था जैसे वहां मुद्दत से साफसफाई नहीं की गई है. पुलिस ने उदयन से आकांक्षा के बारे में पूछा तो वह खामोश रहा.

पहली मंजिल पर चबूतरा बना देख पुलिस वालों का चौंकना स्वाभाविक था. कमरों में सिगरेट के टोंटे पड़े थे. साथ ही शराब की खाली बोतलें भी लुढ़की पड़ी थीं. सिगरेट के टोंटों की तादाद हजारों में थी. कुछ प्लेटों में बासी सब्जी व दाल पड़ी थी, जिन से बदबू आ रही थी.

जैसेजैसे पुलिस टीम घर को देख रही थी, वैसेवैसे रोमांच और उत्तेजना दोनों ही बढ़ती जा रही थीं. हर कमरे की दीवार पर लव नोट्स लिखे हुए थे, जिन में आकांक्षा के साथ बिताए लम्हों का जिक्र साफ दिखाई दे रहा था. कुछ देर घर में घूमने के बाद पुलिस ने जब उदयन से दोबारा पूछा कि आकांक्षा कहां है तो उस ने बेहद सर्द आवाज में जवाब दिया, ‘‘मैं ने उस का कत्ल कर दिया है और वह इस चबूतरे के नीचे है.’’

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4. अपनों के खून से रंगे हाथ : ताइक्वांडो कोच को मिली सजा – भाग 1

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युवा प्रेमी से मिलने वाले जिस्मानी सुख को पाने की चाहत में संतोष शर्मा का दिमाग इस कदर खराब हुआ कि वह अपना घरबार, गृहस्थी, पति, बच्चे सभी कुछ भुला बैठी. संतोष शर्मा खुद से 10 साल छोटे आशिक हनुमान को हनी कह कर बुलाने लगी. हनी एक दोस्त के साथ उदयपुर में किराए के कमरे में रह कर बीपीएड की ट्रेनिंग कर रहा था. वह शारीरिक शिक्षक की नौकरी हासिल करना चाहता था. अविवाहित था.

घर से पैसे मंगा कर उदयपुर में दोस्त के साथ रह कर ट्रेनिंग कर रहा था. साथ ही मार्शल आर्ट का भी उसे शौक था. इसी दौरान कोचिंग में उस की मुलाकात संतोष शर्मा से हुई थी. उम्र में बड़ी हो कर भी उस का फिगर नवयुवतियों को मात करने वाला था. उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह 3 बच्चों की मां है. सलवार सूट में तो वह अभी भी किसी कालेज गर्ल जैसी ही दिखती थी. खूबसूरती और सैक्स अपील की अदाओं पर ही हनुमान मर मिटा था. जल्द ही वह संतोष शर्मा के इशारों पर नाचने लगा था.

अविवाहित हनुमान संतोष शर्मा के शारीरिक आकर्षण से पागल सा हो गया था. संतोष शर्मा एक आधुनिक दौर की युवती थी, जो जिंदगी का भरपूर आनंद लेने में विश्वास रखती थी. उसे अपने तीनों बच्चों से कोई मोह नहीं था और न ही वह अपने पति बनवारी लाल को दिल से पसंद करती थी.

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5. 60 साल का लुटेरा: 18 महिलाओं से शादी करने वाला बहरूपिया – भाग 1

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देखतेदेखते एक प्रोफाइल पर उस की नजर अटक गई. नाम था डा. बिधु प्रकाश स्वैन. केंद्र सरकार की नौकरी थी. वह स्वास्थ्य मंत्रालय के सेंट्रल बोर्ड औफ ऐडमिशन कमिटी का डेप्युटी डायरेक्टर जनरल के पद पर बेंगलुरु में पोस्टेड था. उस ने अपनी पसंद के बारे में लिखा था, ‘‘उसे एक एक समझदार और कल्चर्ड महिला की तलाश है.’’

प्रोफाइल में उम्र दर्ज थी 42 साल. मैरिटल स्टेटस में अनमैरेड लिखा था. साथ ही अपने अविवाहित होने का कारण भी था कि उस की शादी पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाने और नौकरी के सिलसिले में ट्रांसफर आदि होते रहने के चलते नहीं हो पाई थी. पुश्तैनी घर, परिवार और इलाके की कुछ तसवीरों के अलावा अशोक स्तंभ चिह्न के लोगो लगे विजिटिंग कार्ड और भारत सरकार लिखे लालबत्ती गाड़ी की तसवीरें भी लगी हुई थीं.

यह सब देख कर अवंतिका को उस पर भरोसा बन गया. दूसरी बात यह कि वह भुवनेश्वर में पढ़ाई के सिलसिले में रह चुकी थी, इसलिए उस प्रोफाइल को नजरंदाज नहीं कर पाई. लैपटाप पर सेव कर वह विशलिस्ट में डाल दी.

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6. 3 महीने बाद खुला सिर कटी लाश का राज – भाग 1

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“अरे जीजाजी सब ठीक है, बहुत दिनों से हमारी राधा दीदी से बात नहीं हुई तो सोचा आज होली का त्यौहार है, इसी बहाने उस से बात कर लूं.’’ दिलीप ने शैलेंद्र से कहा.

“लेकिन तुम्हारी जीजी तो 8-10 दिन पहले ही देवरी जाने की बोल कर गई है, क्या तुम्हारे पास नहीं पहुंची?’’ शैलेंद्र ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा.

“अरे जीजा, काहे मजाक कर रहे हो. चलो जल्दी से राधा से बात कराओ,’’ दिलीप बोला.

“अरे भाई, मैं मजाक नहीं कर रहा, सच बोल रहा हूं. राधा घर पर यही बोल कर निकली है कि काफी दिनों से वह अपने मायके नहीं गई है, इसलिए होली पर गुलाल लगाने भाई के घर जा रही है. यकीन न हो तो शक्ति और शौर्य से बात कर लो.’’

शैलेंद्र ने दिलीप को यकीन दिलाते हुए मोबाइल अपने बड़े बेटे शौर्य को पकड़ाते हुए कहा. शौर्य ने दिलीप को बताया, ‘‘मामाजी, मम्मी तो यहां से यही बोल कर गई है कि कुछ दिनों के लिए मामा के यहां जा रही हूं.’’

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7. सोनाली साव हत्याकांड : इश्किया गुरु का खूनी खेल – भाग 1

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सुनील कुमार एसएचओ के औफिस से उठ कर बाहर आ गए और बेटी की गुमशुदगी लिखा कर वापस घर लौट आए. अपनी तहरीर में इन्होंने दीपक कुमार साव और रोहित कुमार मेहता को नामजद किया था. उन्होंने यह आशंका जताई थी कि दीपक बेटी को बारबार फोन कर के परेशान किया करता था. दीपक को पकड़ कर कड़ाई से पूछताछ की जाए तो बेटी के बारे में जानकारी मिल सकती है.

दरअसल, कई साल पहले दीपक सोनाली को उस के घर ट्यूशन पढ़ाया करता था. तब वह 12वीं क्लास में पढ़ती थी. तभी से दोनों एकदूसरे को जानतेपहचानते थे. सोनाली के घर वाले भी दीपक को अच्छी तरह जानते थे. शिक्षक की हैसियत से वह अकसर सोनाली को फोन किया करता था. इस का घर वालों ने कभी ऐतराज नहीं किया. वे जानते थे इन के बीच एक पवित्रता और मर्यादा का रिश्ता है. इस रिश्ते का उन को खास खयाल है.

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8. कनाडा से बुला कर शादी, फिर हत्या – भाग 1

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मोनिका ने उस ओर देखा, तब तक एक कार उस के पास आ कर ही रुक गई थी. दूसरी तरफ ड्राइविंग सीट पर बैठे युवक ने अपना परिचय सुनील के रूप में दिया और उसे गाड़ी में बैठने को कहा. मोनिका हिचकिचाई. उस के कुछ बोलने से पहले ही सुनील ने मोबाइल फोन का स्पीकर औन कर उस के सामने कर दिया. दूसरी तरफ से आवाज आ रही थी. ‘‘हैलो, सुनील, बोलो क्या बात है?’’

“भाभीजी, मोनिका से बात कीजिए…’’

“मोनिका…तुम्हारे पास?’’ उधर से चिंतातुर आवाज आई.

“जी भाभी, उस की बस खराब हो गई है, दूसरी बस का इंतजार कर रही है. मैं उसे अपनी गाड़ी में लिफ्ट देने के लिए बोल रहा हूं, लेकिन वह हिचकिचा रही है. शायद मुझे नहीं पहचानती है.’’ सुनील बोला.

दूसरी तरफ से उस की भाभी सोनिया की आवाज आई, ‘‘अरे उसे फोन तो दो, मैं बात करती हूं. तुम्हारे बारे में बताती हूं.’’

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9. अपराध: लव, सैक्स और गोली

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शूटरों के साथ यह डील अगस्त महीने की शुरुआत में ही हुई थी. अगस्त महीना खत्म हो गया और उस के बाद सितंबर भी आधा खत्म हो गया और विक्रम को ठिकाने नहीं लगाया जा सका तो खुशबू परेशान हो गई. उस ने मिहिर पर दबाव बनाना शुरू किया. विक्रम राजीव को जिम ट्रेनिंग देने के लिए उस के घर पर जाता था. वहीं खुशबू से जानपहचान हुई और बातचीत शुरू हुई.

विक्रम के गठीले बदन को देख खुशबू उस पर फिदा हो गई. वह धीरेधीरे विक्रम के करीब आती गई. वह पटना मार्केट के पास विक्रम के जिम में पहुंचने लगी और वहीं कईकई घंटों तक बैठी रहती थी. विक्रम ने पुलिस को बताया कि वह उस के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाना चाहती थी. ऐसा नहीं करने पर वह उसे फंसाने और ब्लैकमेल करने की धमकी देने लगी.

जब विक्रम उस से दूर रहने की कोशिश करने लगा तो एक रात को विक्रम के घर पहुंच गई और हंगामा मचाने लगी. खुशबू की हरकतों से आजिज आ कर विक्रम ने डाक्टर राजीव को फोन कर सारे मामले की जानकारी भी दी. विक्रम ने उस से कहा कि खुशबू उसे पिछले कई दिनों से परेशान कर रही है. डाक्टर राजीव ने विक्रम की बातों पर यकीन नहीं किया और उस से कहा कि सुबूत ले कर आओ, उस के बाद देखा जाएगा.

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10. सिरफिरे का प्यार : बना गले की फांस – भाग 1

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राहुल अच्छी कदकाठी का आकर्षक नौजवान था. नेहा ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. इस के बाद दोनों के बीच चैटिंग का सिलसिला चल निकला. जल्द ही दोनों के बीच दोस्ती हो गई और उन्होंने एकदूसरे का नंबर ले लिया. बातों का दायरा बढ़ा तो बातों के साथसाथ मुलाकातें भी शुरू हो गईं.

चंद दिनों की मुलाकातों में दोनों के बीच प्यार हो गया. नेहा शादीशुदा थी, लेकिन उस ने यह बात राहुल से छिपा ली थी. वक्त के साथ दोनों का प्यार परवान चढ़ा, तो राहुल उस के साथ अपनी दुनिया बसाने का ख्वाब देखने लगा. राहुल उसे दिल से चाहता है, नेहा यह बात बखूबी जानती थी. यही वजह थी कि वह उस की एक आवाज पर दौड़ी चली आती थी.

सामाजिक लिहाज से शादीशुदा हो कर भी किसी युवक के साथ इस तरह का रिश्ता रखना यूं तो गलत था, लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में बह कर नेहा भी दिल के हाथों मजबूर हो गई थी. पतन की डगर कभी अच्छी नहीं होती.

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11. प्रेम त्रिकोण में मारा गया ग़ालिब

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कुछ महीने पहले गालिब जब जेल से छूट कर आया तो उस ने अपनी प्रेमिका जरीन से मिलने की कोशिश की, लेकिन जरीन ने अयाज से संबंधों के चलते गालिब खान से दूरी बना ली. वह जरीन को अपने साथ रहने के लिए उस पर तरहतरह के दबाव बनाने लगा, जबकि वह नए आशिक के साथ इश्क फरमा रही थी. वह अयाज को छोडऩे के लिए राजी नहीं थी.

यह बात गालिब को अखरने लगी. गालिब को यह कतई बरदाश्त नहीं हुआ कि उस की प्रेमिका उस के होते हुए किसी दूसरे की बांहों में दिखाई दे. वह सिरफिरे आशिक की तरह हो गया. जहां भी अयाज दिखाई दे जाता, वह उस के साथ मारपीट कर देता.

गालिब बहुत शातिर था. उस ने पहले ही अपने और जरीन के शारीरिक संबंधों की एक वीडियो बना ली थी. गालिब उस अश्लील वीडियो को वायरल करने की धमकी दे कर उस के साथ जब चाहे तब दुष्कर्म करता था. इसी ब्लैकमेलिंग से आजिज आ कर जरीन ने अपने प्रेमी गालिब से दूरी बनाई थी. लेकिन जेल से छूट कर आने के बाद वह फिर से वही काम करने लगा.

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12. बदनामी सह न सकी बदनाम औरत

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ब्रांडी का कमरा किसी जन्नत से कम नहीं था. कमरे के बीचोबीच बेड पड़ा था, जो बेहद कीमती था. उस के सिरहाने एक छोटी सी टेबल रखी थी, जिस पर सुगंधित मोमबत्ती जल रही थी. हलका उत्तेजक संगीत बज रहा था. मोमबत्ती की हलकी रोशनी में पारदर्शी गाउन पहने ब्रांडी लेटी थी.

उसे देख कर फिलिप्स की आंखें हैरत से फटी रह गई थीं. उसे ब्रांडी नहीं, जन्नत दिखाई दे रही थी. वह होश खो बैठा. उसे आगे बढ़ने का होश ही नहीं रहा. उसे ठगा सा देख ब्रांडी ने कहा, ‘‘एक घंटे के लिए मैं तुम्हारी हो चुकी हूं, जिस की कीमत तुम अदा कर चुके हो. अब दूर खड़े क्या देख रहे हो, करीब आ जाओ.’’

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13. ठगी का नया जामताड़ा: नूंह-मेवात – भाग 1

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नूंह जिले के साथ ही मेवात क्षेत्र राजस्थान के भरतपुर और अलवर जिले तक फैला हुआ है. इन जिलों के 40 गांवों के युवा जामताड़ा के साइबर ठगों के संपर्क में आ कर इतने शातिर अपराधी बन चुके हैं कि उन्होंने झारखंड के जामताड़ा की यादों को फीका कर मेवात के जामताड़ा को उस से भी बड़ा कर दिया है.

जामताड़ा के बाद साइबर अपराध के मामलों में देश का दूसरा सब से बड़ा केंद्र मेवात बन चुका है. हरियाणा-राजस्थान के मेवात क्षेत्र में बैठे ये ठग विभिन्न राज्यों के सैकड़ों लोगों को अपना शिकार बनाते हैं और उन से लाखों की ठगी करते हैं. अनपढ़ से ले कर आठवीं और दसवीं पास युवा ठगी करने में माहिर हैं.

वे बैंक मैनेजर से ले कर बीमा कंपनी के अफसर बन कर पढ़ेलिखे व्यक्ति को बड़ी आसानी से अपने चंगुल में फंसा लेते हैं. इन बदमाशों ने फिल्म अभिनेताओं, सैन्यकर्मियों तथा कई प्रतिष्ठित नेताओं को भी चूना लगाया है. बीते साल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बेटी को भी साइबर ठगों ने अपने चंगुल में फंसा लिया था.

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14. व्हाइट कालर्स को पसंद ब्लैक ब्यूटी

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पकड़ी गई भोपाली युवतियों ने इस का राज भी यह बता कर खोल दिया कि भोपाल में इन दिनों अफ्रीकन लड़कियों के शौकीनों की तादाद बढ़ रही है. इस के पीछे मर्दों की यह सोच है कि अफ्रीकन यानी काली लड़कियां सैक्स में माहिर होती हैं और अप्राकृतिक व ओरल सैक्स से परहेज नहीं करतीं. इस के अलावा इन के सामान्य से बड़े आकार के स्तन भी पुरुषों को बहुत लुभाते हैं.

एक कालगर्ल का कहना था कि मर्द जो कुछ ब्लू फिल्मों में देखते हैं, वह खुद भी वैसा ही करना चाहते हैं. लेकिन आमतौर पर देसी कालगर्ल्स इस तरह के जंगली सैक्स से परहेज करती हैं, इसलिए युगांडाई युवतियों को फंसाया गया या राजी किया गया, कहना मुश्किल है. हां, सैक्स में प्रयोग का यह शौक पांचों युवकों को महंगा पड़ा.

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15. कामुक पति की पांचवीं पत्नी का खेल

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वीरेंद्र ने उस की एक नहीं सुनी और अपनी जिद पर अड़ा रहा. उस रात उस ने जबरन कंचन के साथ अप्राकृतिक सैक्स संबंध बनाए. कंचन को उल्टियां भी हो गईं. देह चूरचूर हो गई. शराब की गंध नथुने में भर गई. जीभ पर शराब का तीखापन भरा हुआ था.

अप्राकृतिक सैक्स संबंध  से काफी पीड़ा हो रही थी. उस की आंखें सूज गई थीं. गालों पर थप्पड़ों के निशान भी पड़ गए थे. शरीर पर नाखूनों से नोचे जाने की खरोंचें भी थीं. किसी तरह से उस ने कपड़े पहने. कंबल घिसटते हुए बच्चों के कमरे में आ गई. तब तक वीरेंद्र निढाल हो चुका था, कंबल में खर्राटे भरने लगा था.

कंचन वीरेंद्र गुर्जर की पांचवीं पत्नी थी. वीरेंद्र अव्वल दरजे का शराबी था. साथ ही अय्याश किस्म का व्यक्ति था. वह कहने को इंसान था, लेकिन उस के चरित्र में हैवानियत शामिल थी. कामुकता से भरा हुआ था. सैक्स की बातों से उबलता रहता था. बातबात में घूमफिर कर सैक्स की बातें ही उस के जुबान से निकल पड़ती थीं. मांबहन की भद्ïदी गालियों के साथसाथ यौनाचार संबंधी गालियां तो उस की जुबान पर रहती थीं.

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16. पुलिस की छाया में कैसे बनते हैं अतीक जैसे गैंगस्टर – भाग 1

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ठीक इसी वक्त अशरफ बोल पड़े, ‘‘मेन बात ये है कि गुड्ïडू मुसलिम…’’ उन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि तभी मीडियाकर्मियों की भीड़ में से 2 लोगों ने अपने माइक और आईडी नीचे फेंक दी. उन्होंने तुरंत हथियार निकाल कर अतीक और अशरफ को निशाना बनाया. एक ने अतीक की कनपटी पर पिस्टल सटा दी और दूसरे ने तड़ातड़ फायरिंग शुरू कर दी. वे फायरिंग अत्याधुनिक सेमी आटोमैटिक हथियार से कर रहे थे. इसी दौरान तीसरे कथित मीडियाकर्मी ने भी अतीक और अशरफ को निशाना बना कर फायर करने शुरू कर दिए थे.

जब तक कोई कुछ समझ पाता और पुलिस सचेत हो पाती, तब तक मीडियाकर्मी बन कर आए हमलावरों द्वारा अतीक और अशरफ पर दनादन कई गोलियां दागी जा चुकी थीं. हमलावरों की लगातार हुई फायरिंग से कांस्टेबल मान सिंह भी जख्मी हो गए. उन के दाहिने हाथ में गोली लगी थी. गोलीबारी के बीच आधुनिक हथियार थामे हुए पुलिस वालों ने हमलावरों पर गोली नहीं चलाई और न ही अतीक व उस के भाई को बचाने की कोशिश की. इसे लोगों ने सुनियोजित साजिश बताया. हमलावर निर्भीकता के साथ ‘जय श्रीराम’ का जयघोष कर भागने लगे, जबकि मीडियाकर्मियों के कैमरे औन थे

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17. अभिनेत्री आरती मित्तल का सैक्स रैकेट

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“जी बोलिए शुभमजी, आप को पसंद आई हैं न मेरी बिंदास मौडल्स?” आरती ने काल रिसीव करते हुए कहा.

“आरतीजी, फोटो देख कर तो सचमुच मेरा दिल खुश हो गया. अब मैं ने गोरेगांव के चितरंजन होटल में आप केकहे अनुसार 2 कमरे भी बुक करा दिए हैं. एक कमरा विवेक के नाम और दूसरा कमरा मैं ने अपने क्लाइंट कैलाश के नाम बुक करा दिया है. देखिए आरतीजी, मेरा आप से रिक्वेस्ट है कि ये दोनों मेरे काफी खास कस्टमर हैं. मैं इन दोनों को बिलकुल भी नाराज नहीं कर सकता, इसलिए मैं खुद इन दोनों को ले कर 10 मिनट में गोरेगांव के चितरंजन होटल पहुंच रहा हूं.” मनोज सुतार ने बताया.

“शुभमजी, आप अपने कस्टमर्स का काफी अच्छा खयाल रखते हैं. व्यापार में तो यह सब करना ही पड़ता है, पर आप कुछ निवेदन करना चाहते थे, वह तो आप ने अब तक किया ही नहीं. बोलिए, आखिर क्या निवेदन करना चाहते हैं आप?” आरती ने पूछा.

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18. क्रूरता की इंतिहा

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जसबीर नीयत की साफ थी और भोली भी. रविंदर कौर की बातों को वह समझ नहीं पाई और उस के घर चली गई. वहां पहले से ही रविंदर कौर के परिवार के सब लोग मौजूद थे. सो समय व्यर्थ न करते हुए सब ने किसी तरह जसबीर को अपने कब्जे में ले कर दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

दम घुटते ही जसबीर एक ओर लुढ़क गई. वह मर चुकी थी. तभी तांत्रिक दीशो ने अपने साथ लाए सर्जिकल ब्लेड से उस का पेट चीर कर पेट का शिशु बाहर निकाल लिया. शिशु को गोद में ले कर जब देखा तो पता चला कि जसबीर कौर के साथसाथ वह भी मर चुका है. मां और बच्चे की मौत के बाद उन सब के हाथपैर फूल गए.

अब क्या किया जाए? सब के सामने अब यही एक प्रश्न था. काफी सोचविचार के बाद तय किया गया कि शिशु के शव को घर में बनी सीढि़यों के नीचे गाड़ दिया जाए और जसबीर की लाश कमरे के बाहर रखे संदूक में छिपा दिया जाए.

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19. दिलजली प्रेमिका ने जब मंडप में खेला तेजाबी खेल

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पलभर में बदले उस के हावभाव और बातों से अंजना को झटका सा लगा. वह कुछ समझ पाती, उस से पहले ही दोनों लड़कियों ने एकदूसरे की तरफ देख कर इशारा किया तो उन में से एक ने झपट कर अंजना के हाथ पकड़ लिए तो उस की साथी लड़की ने एक बोतल निकाली और उस का ढक्कन खोल कर उस में भरा तरल अंजना पर उछाल दिया.

बचाव के लिए अंजना ने अपना चेहरा घुमा लिया. अपना काम कर के दोनों लड़कियां तेजी से कमरे के बाहर निकल गईं. जबकि तरल पड़ते ही अंजना जलन से चीखने लगी.

उस की चुनरी भी जल गई थी, क्योंकि उस पर उछाला गया तरल तेजाब था. जलन से अंजना बिलबिला उठी. वह दरवाजे की तरफ भागी, लेकिन लड़कियों ने बाहर जाते वक्त दरवाजा बाहर से बंद कर दिया था.

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20. परी का प्यार हुआ जानलेवा – भाग 1

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3 दिन बाद मालती का पति सोनू उसे लेने अपनी ससुराल मोहनगढ़ आया तो वह बेमन से ससुराल चली गई. ससुराल में किसी को भी उस के शादी से पूर्व के प्रेम प्रसंग के बारे में जानकारी नहीं थी, इसलिए उसे देर रात मोबाइल पर बतियाते देख किसी को उस पर संदेह नहीं हुआ. ससुराल वाले यही समझते रहे कि वह अपने मांबाप की लाडली बेटी है उन्हीं से बतियाती होगी.

इत्तफाक से एक दिन मालती के पति सोनू की देर रात अचानक नींद टूट गई, तब उस ने उसे किसी पुरुष से खिलखिला कर हंसते हुए वीडियो कालिंग पर बात करते हुए देखा. इस से सोनू को मालती पर शक हो गया. उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि शादी के बाद भी पत्नी का किसी अन्य पुरुष से चक्कर चल रहा होगा. काफी प्रयत्न करने पर सोनू को पता चला कि मालती का प्रेम प्रसंग मोहनगढ़ गांव के पवन से चल रहा है. इस जानकारी से सोनू को गहरा झटका लगा.

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21. आफरीन के प्यार में मनोहर के 8 टुकड़े

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6 जून, 2023 को मनोहर लाल अपने घर वालों से झूठ बोल कर अपने साथ दोनों खच्चरों को ले कर घर से निकला था. मनोहर लाल ने आफरीन के घर जाने से पहले ही अपने दोनों खच्चरों को सलूनी नाले के पास छोड़ दिया. फिर वह आफरीन के घर चला गया. उस के बाद उन्होंने उसे फिर से समझाने की कोशिश की. लेकिन वह उन की एक भी बात मानने को तैयार न था.

उसी से तंग आ कर उन्होंने उसे घर में ही डंडों से बुरी तरह से मारापीटा. जब मनोहर लाल बेहोश हो गया तो उन्होंने उस की हत्या कर दी. उस के बाद उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए लकड़ी काटने वाली आरी से उसे 8 टुकड़ों में काट डाला. फिर उस के सभी टुकड़ों को 3 बोरियों में भर कर नाले में पानी के नीचे पत्थरों से दबा दिया.

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22. अधेड़ उम्र का खूनी प्यार

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ऐसे कब तक मिलतेजुलते दोनों? ज्यादा समय साथ बिताने के लिए सविता ने आशीष को रिश्ते में बांधने का फैसला किया. खुद तो आशीष के साथ सामाजिक तौर पर एक हो नहीं सकती थी, इसलिए उस ने अपनी 21 वर्षीय बेटी रवीना की शादी अपने प्रेमी आशीष के साथ करने की सोची. इस से दोनों आसानी से मिल सकते थे और सास दामाद का रिश्ता बनने के कारण कोई उन पर शक भी नहीं करता.

सविता अपने प्यार को पाने के लिए अपनी ही सगी बेटी को बलि का बकरा बनाने की सोच रही थी. आशीष भी उस की बेटी से शादी करने को तैयार था. तैयार होता भी क्यों नहीं, इस फैसले से उस के दोनों हाथों में लड्डू ही लड्डू होते. एक तरफ वह अपनी प्रेमिका से मजे लेता, वहीं दूसरी तरफ उस की बेटी के साथ भी मजे लेता. सविता ने बेटी की शादी की बात अपने पति और बेटी के सामने चलाई तो दोनों ने शादी करने से साफसाफ मना कर दिया.

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23. वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर?

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रविंद्र को अपनी कामवासना शांत करने का यह तरीका अच्छा लगा. क्योंकि वह 2 हत्याएं कर चुका था और दोनों ही मामलों में वह सुरक्षित रहा, इस से उस के मन का डर निकल गया. इस के बाद वह कंझावला इलाके में एक बच्ची को बहलाफुसला कर सुनसान जगह पर ले गया और उस के साथ कुकर्म कर के उस की हत्या कर दी.

बच्चियों को देख कर जाग जाती थी कामकुंठा

वह कोई एक काम जम कर नहीं करता था. कभी गाड़ी पर हेल्परी का काम करता तो कभी बेलदारी करने लगता. नोएडा के सेक्टर-72 में वह एक बिल्डिंग में काम कर रहा था. वहां भी उस ने अपने साथ काम करने वाली महिला बेलदारों की 2 बच्चियों को अलगअलग समय पर अपनी हवस का शिकार बनाया. वह उन बच्चियों को चौकलेट दिलाने के लालच में गेहूं के खेत में ले गया था. वहीं पर उस ने उन की गला दबा कर हत्या कर दी थी.

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24. एक क्रूर औरत की काली करतूत

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भाई ने पूछा कि वह गड्ढा क्यों खोद रही है तो उस ने कहा, ‘‘तू अंदर जा कर सो जा, मैं क्या कर रही हूं, इस बात पर ध्यान न दे.’’

शिवपूजन जा कर सो गया. अर्चना ने साढ़े 3 फुट गहरा गड्ढा खोद डाला. गड्ढा खोद कर अर्चना अंदर पहुंची तो देखा सुमिक्षा बेहोश पड़ी थी. दरअसल उस ने मैगी में नशीली दवा मिला दी थी, इसलिए मैगी खा कर सुमिक्षा बेहोश हो गई थी.

अर्चना ने बेहोश पड़ी सुमिक्षा के दोनों हाथ पीछे बांध कर मुंह और नाक में कपड़ा ठूंस दिया. इस के बाद ऊपर से पौलीथिन लपेट कर उसे उठाया और गड्ढे में लेटा कर ऊपर से 2 थैली नमक डाल कर गड्ढे को ढक दिया. नमक उस ने इसलिए डाला था, ताकि लाश जल्दी गल जाए.

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25. भांजी को प्यार के जाल में फांसने वाला पुजारी

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एक दिन घर में थोड़ा ज्यादा झगड़ा हो गया. अप्सरा ऐसी बिफरी की मुझे और कार्तिक को गंदीगंदी गालियां देने लगी. कार्तिक को भी गुस्सा आ गया. उस ने अप्सरा पर हाथ उठा दिया. इस के बाद अप्सरा थाने चली गई और कार्तिक के खिलाफ तरहतरह के आरोप लगा कर शिकायत दर्ज करा दी. अप्सरा की सुंदरता देख कर पुलिस ने भी फटाफट मुकदमा दर्ज कर लिया और कार्तिक को गिरफ्तार कर के अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद अप्सरा अपनी मां के साथ चेन्नै से हैदराबाद चली गई.

करीब डेढ़ महीने बाद कार्तिक जमानत पर जेल से बाहर आया. जेल जाने से उस की नौकरी भी चली गई थी, जिस की वजह से वह भारी डिप्रेशन में आ गया. मां धनलक्ष्मी ने उसे बहुत समझाया, हिम्मत दी. पर अप्सरा ने उसे जिस तरह परेशान किया था, उस से वह इस हद तक टूट गया था कि वह इस हादसे से उबर नहीं पाया और जेल से बाहर आने के चौथे दिन उस ने फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

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