बेगुनाह कातिल : प्यार के जुनून में बेमौत मारी गयी रेशमा

एक लड़की के कत्ल का राज – भाग 4

खाने के थोड़ी देर बाद वही दुबली पतली खूबसूरत लड़की कमरे में आई, जो थोड़ी देर पहले शादा के साथ डोली में आई थी. उस का हुलिया एकदम बदला हुआ था. खूबसूरत टाइट सूट, सलीके से काढ़े गए बाल, हलका सा मेकअप, पर उस के चेहरे पर उदासी और बेबसी पहले से ज्यादा बढ़ गई थी. उस के पीछे बुलडौग की शक्ल का एक नौकर था. उस ने कड़े लहजे में लड़की से कहा, ‘‘साहब के पास बैठ कर इन की खिदमत करो.’’

अपनी बात कह कर कुछ कमीनगी से मुसकराता हुआ बाहर चला गया. लड़की डरी सहमी सी पलंग पर बैठ गई.

मैं ने लड़की की तरफ देखा. वह डर से कांप रही थी. मैं ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटी, घबराओ मत. तुम्हारे साथ कुछ गलत नहीं होगा. तुम आराम से बैठो और बताओ कि तुम कौन हो?’’

वही पुरानी कहानी थी, गरीब बाप ने पैसे की खातिर बेटी को शादा के हाथों बेच दिया था. उस का नाम कमला था. मुझे शादा की यह खातिरदारी किसी जाल की तरह लग रही थी. मैं लड़की से इधरउधर की बातें करने लगा. उसी वक्त कोठी के पोर्च में किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आई. मैं ने खिड़की का परदा हटा कर देखा और फिर से बिस्तर पर लेट गया. मैं ने कमला से कहा, ‘‘कमला, अब भेडि़या आ रहा है.’’

वह और ज्यादा डर गई. मैं ने रिवाल्वर हाथ में थाम लिया. कमला ने घबरा कर पूछा, ‘‘अब क्या होगा?’’

मैं ने उसे दिलासा दिया, ‘‘तुम घबराओ मत, मैं हूं. तुम इस अलमारी के पीछे छिप जाओ.’’

अब तक कमला मुझ से खुल गई थी. वह चुपचाप अलमारी के पीछे छिप गई. मैं रिवाल्वर हाथ में थाम कर कंबल ओढ़ कर बैठ गया. चंद लम्हे बाद दरवाजा खुला. नौकर और श्याम कमरे के अंदर आ गए. मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आओ श्याम, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था.’’

मुझे देख कर श्याम को गहरा झटका लगा. उस के साथ शादा और मुच्छड भी थे. शादा ने गुस्से से पूछा, ‘‘लड़की कहां है?’’

मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘लड़की की फिक्र मत करो, वह यहीं है. उसे बीच में लाए बिना जो प्रोग्राम तय करना है, मुझ से करो.’’

‘‘कैसा प्रोग्राम?’’

‘‘वही प्रोग्राम, जो तुम ने अनिल के साथ बनाया था. तुम ने उसे बेहिसाब शराब पिलाई थी न? यहां तक कि बेचारे को उठा कर गाड़ी में बैठाना पड़ा था.’’ मेरा लहजा और अंदाज बेहद सख्त था, जो उन्हें परेशान कर रहा था.

शादा ने श्याम के कान में कुछ कहा और मुलाजिम के साथ बाहर निकल गई. श्याम ने सिगरेट जलाते हुए मुझ से पूछा, ‘‘क्या चाहते हैं आप?’’

‘‘तुम्हारी गिरफ्तारी.’’

‘‘कोई और बात करो.’’

‘‘मुझे कोई और बात नहीं आती.’’

‘‘मैं तुम्हें 5 हजार दूंगा.’’

‘‘5 लाख भी नहीं चाहिए.’’

‘‘मैं आप को एक बंदे की गिरफ्तारी भी दूंगा, वह इकबाले जुर्म भी कर लेगा.’’ उस ने धीमे लहजे में कहा.

‘‘मुझे जिस को गिरफ्तार करना है, वह मेरे सामने है.’’ एकाएक श्याम की आंखें गुस्से से चमकने लगीं. वह अचानक मुझ पर झपटा, मैं उसे मारना नहीं चाहता था, मैं ने उस के पैरों पर गोली चलाई, जो उस के घुटने को छूती हुई निकल गई. श्याम पूरी ताकत से मुझ से टकराया, मेरा सिर जोरों से दीवार से जा लगा. आंखों के आगे सितारे नाचने लगे.

मेरा कंधा पहले से चोटिल था. उस पर जबरदस्त मार पड़ी. मेरा सारा बदन झनझना गया. उस का दूसरा वार ज्यादा खतरनाक था. जबकि मेरा एक हाथ सिरे से काम नहीं कर रहा था. रिवाल्वर हाथ से गिर गई. उस के हाथ में पता नहीं कहां से बिजली का एक तार आ गया. उस ने उसे मेरी गदर्न में लपेट कर कसना शुरू किया. मैं ने गला छुड़ाने की बहुत कोशिश की, पर नाकाम रहा.

गोली की आवाज ने भगदड़ मचा दी थी. दरवाजा जोर से भड़भड़ाया जा रहा था. जिसे श्याम ने बंद कर दिया था. मेरा दम घुट रहा था. मेरे गले से खर्रखर्र की आवाजें निकल रही थी. तार का दबाव बढ़ता जा रहा था. तभी कमला एकदम से अलमारी के पीछे से चीखती हुई बाहर निकली और तांबे का एक वजनी गुलदान उठा कर पूरी ताकत से श्याम के सिर पर दे मारा.

श्याम कराह कर बाजू में गिरा. उस के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. गुलदान की चोट लगने के बाद श्याम को संभलने का मौका नहीं मिला. एक मिनट में मेरे घूंसों और ठोकरों ने उस के कसबल निकाल दिए. जब श्याम बिलकुल ढेर हो गया तो कमला दौड़ कर किसी बच्ची की तरह मेरे कंधे से आ लगी.

उधर दरवाजे पर अब जोर के धक्के लग रहे थे. मैं ने कमला को श्याम पर नजर रखने को कहा और खिड़की से कूद कर बाहर निकल गया. मैं ने इमरान खां को आवाज दी तो वह अपने अमले के साथ पहुंच गया. हम सब कमरे में पहुंचे. श्याम और शादा की गिरफ्तारी के बाद यह बात साफ हो गई कि अनिल को मौत के घाट उतारने का सारा इंतजाम इसी सफेद कोठी में किया गया था.

शादा की अनिल से अच्छी पहचान थी. अनिल ने अपना हमदर्द समझ कर मुसीबत में शादा के यहां पनाह ली थी. पर उस ने धोखा दे कर उसे कातिलों के हाथों में सौंप दिया था. बिलकुल उसी तरह, जैसे उस ने मुझे पनाह दे कर श्याम को बुलवा लिया था.

अभी भी कहानी के कुछ हिस्से अंधेरे में थे. 3-4 दिनों में सारी सच्चाइयों के साथ पूरी कहानी पुलिस के सामने आ गई. श्याम का एक साथी अर्जुन सिंह सरकारी गवाह बन गया. उस के बयान से मेरे सारे अंदेशे सच साबित हुए.

कहानी की शुरुआत तब हुई, जब रत्ना को पता चला कि उस का मंगेतर श्याम किसी अंगे्रज लड़की में दिलचस्पी ले रहा है. उन दोनों को कई बार साथ देखा गया था. रत्ना श्याम को दिलोजान से प्यार करती थी.

किसी दूसरी लड़की की बात सुन कर वह बहुत दुखी हुई. जब अफवाहें ज्यादा जोर पकड़ने लगीं तो उस ने श्याम पर निगरानी रखनी शुरू कर दी. किसी तरह श्याम को यह बात पता चल गई. इसलिए वह रत्ना के डलहौजी आने पर सावधान हो जाता था. पर रत्ना तय कर चुकी थी कि वह सच्चाई जान कर रहेगी. मौत के पहले वह श्याम को दिखाने के लिए लाहौर स्थित अपने हौस्टल चली गई थी. एक रोज वहां रुक कर वह चुपचाप डलहौजी वापस आ गई.

उसे पता चला कि आज श्याम अपनी नई महबूबा से मूनलाइट क्लब में मिलेगा. यह पता चलने पर वह भी शाम को क्लब पहुंच गई. वहां उस ने श्याम को उस की अंगरेज महबूबा के साथ रंगरलियां मनाते देखा तो उस का पारा चढ़ गया. यह बात उस के बरदाश्त के बाहर थी.

बहुत ज्यादा दुखी हो कर रत्ना ने यह सोच कर कि उस धोखेबाज आदमी से वह ताल्लुक खत्म कर लेगी, वहां से लौटने का फैसला किया. लेकिन तभी उस पर श्याम की नजर पड़ गई. माजरा समझते ही वह दौड़ कर उस के पास आया. वह रत्ना जैसी खूबसूरत, दौलतमंद और पढ़ीलिखी लड़की को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था.

श्याम उस के पीछे दौड़ा और उसे समझाने की कोशिश करने लगा. पर रत्ना हकीकत जान चुकी थी. वह कुछ सुनने को तैयार नहीं थी. क्योंकि उस के शुभचिंतकों ने उसे पहले ही सब बता दिया था.

श्याम ने जब बात बिगड़ती देखी तो जबरदस्ती उसे अपने साथ गाड़ी में ले गया. रत्ना उस की सूरत भी नहीं देखना चाहती थी. श्याम उसे मनाने के लिए उसे अपने फ्लैट पर ले गया. वहां दोनों में खासी तकरार हुई. इस झगड़े से श्याम को अंदाजा हो गया कि उस ने रत्ना को हमेशा के लिए खो दिया है. अब यह मंगनी टूट जाएगी. रत्ना किसी कीमत पर उस से शादी नहीं करेगी.

बस, यहीं से रत्ना की बदकिस्मती की शुरुआत हो गई. श्याम के इरादे खतरनाक हो गए. उस ने रत्ना को डराया धमकाया, मारापीटा. फिर गुस्से में हैवान बने श्याम ने रत्ना की इज्जत तारतार कर डाली. लुटीपिटी हालत में रत्ना मांबाप के सामने नहीं जाना चाहती थी. श्याम के चंगुल से छूटते ही वह दूसरी मंजिल की खिड़की से नीचे कूद गई. नीचे पक्का फर्श था. रत्ना के सिर में गहरी चोटें आईं और वह बेहोश हो गई.

श्याम ने अपने राजदार दोस्तों के साथ मिल कर दम तोड़ती रत्ना को कार में डाला और रात 11 बजे उस के घर के सामने डाल आया. तब तक रत्ना दम तोड़ चुकी थी. अनिल सिन्हा इस जुर्म का चश्मदीद गवाह था. दरअसल जिस वक्त रत्ना और श्याम मूनलाइट क्लब की लौबी में झगड़ रहे थे, अनिल वहीं खड़ा था. एक खूबसूरत लड़की को इस तरह लड़ते देख उस की दिलचस्पी बढ़ गई थी. वैसे भी वह रत्ना को थोड़ाबहुत जानता था.

दरअसल, जिस बैंक में वह काम करता था, वहां रत्ना का एकाउंट था. वह अकसर बैंक आती रहती थी. उसे यह भी पता था कि वह डा. प्रकाश की बेटी है. जब श्याम खींचतान कर रत्ना को कार में बिठा रहा था, अनिल को लगा, उसे रत्ना की टोह लेनी चाहिए. यही सोच कर उस ने अपनी गाड़ी फासला रखते हुए श्याम की कार के पीछे लगा दी. बड़ी होशियारी से पीछा करते हुए वह श्याम के फ्लैट तक पहुंच गया.

रत्ना और श्याम के फ्लैट में जाने के कुछ देर बाद वह भी ऊपर पहुंच गया और एक छज्जे के सहारे उस फ्लैट की बालकनी में उतर गया. उसे लग रहा था कि उस लड़की के साथ कुछ गलत हो रहा है. बंद खिड़की की हलकी सी दरार से अंदर का थोड़ा सा मंजर दिख रहा था. अंदर से रत्ना के रोने की आवाज आ रही थी. साथ ही गुस्से और दुख से बोलने की आवाजें भी, जिस से पता चल रहा था कि उस के साथ कितना बड़ा जुल्म हो चुका है.

तभी उस ने रत्ना को बाजू की खिड़की से नीचे कूदते देखा. इस दिल दहलाने वाले हादसे को देख कर उस की चीख निकल गई. जरा सी गलती से वह उसी वक्त श्याम की नजर में आ गया. श्याम के इशारे पर उस के खतरनाक गुंडे उस के पीछे लग गए.

जैसे ही उस की कार बड़ी सड़क पर पहुंची, अर्जुन सिंह और उस का साथी जीप ले कर उस के पीछे लग गए.  जिंदगी और मौत की दौड़ काफी लंबी चली. आखिर उस ने अपनी कार एक बंद गली में छोड़ी और एक तंग गली से लंबा चक्कर काट कर रात 11 बजे हांफता कांपता घर पहुंचा.

वह यह देख कर हैरान रह गया कि श्याम के आदमी वहां पहले से मौजूद थे. दरअसल मौकाएवारदात पर उसे पहचान लिया गया था. इस से अनिल को लग रहा था कि उस की जान को खतरा है. उस ने पुलिस से संपर्क करना चाहा, पर नाकाम रहा. तभी न जाने कैसे उस के दिमाग में मेरा नाम आ गया. उस ने मुझे अमृतसर फोन कर के अपनी परेशानी बताई, पर बात पूरी न हो सकी.

दूसरे दिन सवेरे अमजद की साइकिल ले कर वह मुंह छिपा कर पीछे के रास्ते से पनाह की तलाश में सफेद कोठी पहुंचा. उसे मदद की उम्मीद वहां ले गई थी. शादा से उस के पुराने ताल्लुकात थे. उसे उम्मीद थी कि शादा उस की मदद करेगी.

उस को इस बात का जरा भी गुमान नहीं था कि शादा के श्याम से बहुत गहरे रिश्ते हैं. उस ने श्याम को बुलवा लिया. तब तक वह काफी हद तक आश्वस्त हो गया था कि शादा उस की पूरी मदद करेगी.

उस ने शादा के घर से मुझे दूसरा फोन किया था और बताया था कि वह अमृतसर आ रहा है. यही उस की आखिरी आवाज थी, जो मैं ने सुनी थी. उस के बाद वह दुश्मनों के चंगुल में फंस गया. उस की पनाहगाह उस की कत्लगाह बन गई. श्याम और उस के गुंडे साथियों ने पहले अनिल को खूब मारापीटा और फिर जबरदस्ती उसे अंधाधुंध शराब पिलाई. उस की कार वे लोग पहले ही हासिल कर चुके थे.

बेहोश अधमरे अनिल को उस की कार में डाल दिया गया और उस की कार कैंट रोड के एक खतरनाक मोड़ से खाई में लुढ़का दी गई. दोहरे कत्ल की इस संगीन वारदात के बड़े मुलजिम श्याम को सजाएमौत हुई. उस के 3 साथियों को 10-10 साल की सजा सुनाई गई. एक दो को हल्की सजाएं हुईं. शादा पर भी पेशा कराने के जुर्म में काररवाई हुई.

इस केस में मैं उस मासूम लड़की कमला को कभी न भूल सका. उस की बहादुरी ने मेरी जान बचाई थी. शायद उस ने मेरी शराफत और मोहब्बत का सिला इस तरह दिया था. इस केस में मैं ने उसे अलग कर के महफूज हाथों में सौंप दिया था, ताकि वह इज्जत से जिंदगी गुजार सके.

एक लड़की के कत्ल का राज – भाग 3

हम डा. प्रकाश के घर से निकल आए. मौसम काफी ठंडा था. रात के 8 बजे थे. उसी वक्त पास में एक लाल रंग की कार मोड़ काट कर आगे बढ़ गई. उस की ड्राइविंग सीट पर श्याम बैठा था. कुछ सोच कर मैं ने इमरान खां से फासला रख कर उस का पीछा करने को कहा. लाल रंग की वह कार मूनलाइट क्लब के सामने जा कर रुकी.

इस क्लब के ज्यादा मेंबर अंगरेज फौजी या अमीरों के लड़के थे. क्लब में काफी रश रहता था. इमरान खां ने मुझे बताया कि अनिल के कागजात में इस क्लब की मेंबरशिप का कार्ड भी था. हम दोनों अंदर क्लब में पहुंचे. अंदर काफी शोरशराबा था. लोग वहां की डांसरों के साथ डांस कर रहे थे. अंदर तंबाकू का धुआं और शराब की बू भरी थी.

मेरी नजर श्याम पर पड़ी. वह एक अंगरेज लड़की से हंसहंस कर बातें कर रहा था. उस के चेहरे पर गम की हलकी सी भी निशानी नहीं थी. वह उस श्याम से एकदम अलग लग रहा था, जिसे हम ने थोड़ी देर पहले देखा था. क्लब का मैनेजर इमरान का दोस्त था. उसे देख कर वह हमारे पास आया और हमें अपने कमरे में ले गया. दरवाजे के शीशे से श्याम साफ दिख रहा था.

मैं ने मैनेजर से उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘इस का नाम श्याम है, अमीर घर का लड़का है.’’

‘‘इस के बारे में और कुछ बताइए. कोई वाकया, कोई झगड़ा या और कुछ.’’

वह कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘हां, कुछ दिनों पहले एक वाकया हुआ था. क्लब की लौबी में श्याम का एक लड़की से झगड़ा हुआ था. झगड़ा क्या तकरार हो रही थी. वह लड़की बिफरी हुई बाहर जा रही थी. जबकि श्याम मिन्नतें कर के उसे रोक रहा था. इस पर लड़की ने चीख कर गुस्से में कहा था, ‘तुम बहुत नीच इनसान हो, मैं तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती.’ इस के बाद दोनों एकदूसरे से उलझते बाहर चले गए थे.’’

मैनेजर की इत्तला काबिले गौर थी. मैनेजर ने सोच कर जो दिन बताया था, वह अनिल की मौत के एक दिन पहले का था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘उस लड़की के बारे में कुछ बताओ, जिस से झगड़ा हो रहा था.’’

‘‘वह लड़की गोरी, खूबसूरत, लंबे बालों वाली थी और पहली बार क्लब आई थी. लहजे और अंदाज से वह उस की गर्लफ्रैंड लगती थी. क्लब में उसे शायद किसी और के साथ देख कर आपा खो बैठी थी. वह भले घर की शालीन लड़की थी.’’

इमरान खां ने कोट की जेब से रत्ना की फोटो निकाल मैनेजर को दिखाई. वह फोटो देखते ही बोल उठा, ‘‘हां, यही है वह लड़की, एकदम वही.’’

कहानी ने एक नया मोड़ ले लिया. अगर मैनेजर के मुताबिक वह लड़की रत्ना ही थी तो निस्संदेह अनिल और रत्ना के साथ जरूर कोई हादसा पेश आया था. धीरेन पर से मेरा शक हट चुका था. पता नहीं क्यों श्याम शुरू से ही मुझे कुछ रहस्यमय लग रहा था. उस की आंखों में शातिराना चमक थी. क्लब में उसे बदले अंदाज में देख कर तो उस के प्रति मेरी सोच ही बदल गई थी.

क्योंकि मैनेजर के अनुसार जिस रोज श्याम क्लब की लौबी में रत्ना से झगड़ रहा था, उसी दिन उस का कत्ल हुआ था. मैं ने कहानी की कडि़यां मिलानी शुरू कीं. श्याम को किसी और लड़की के साथ देख कर रत्ना और उस की लड़ाई हुई होगी. जिस का अंजाम रत्ना की मौत के रूप में सामने आया. फिर अगले दिन अनिल वाला हादसा हो गया. निस्संदेह उलझा हुआ मसला था.

अब मेरे सामने दो ही रास्ते थे. एक तो यह कि श्याम को गिरफ्तार कर के कड़ाई से पूछताछ की जाए और दूसरा यह कि खामोशी से तफ्तीश कर मुलजिम के इर्दगिर्द शिकंजा कस कर उसे पकड़ा जाए.

दो दिन बाद की बात है. मैं इमरान खां के साथ थाने में बैठा था. एक अधेड़ उम्र का अमजद नाम का व्यक्ति मुझ से मिलने आया. उसे इमरान खां ने बुलवाया था. वह उन्हीं रामबाबू के घर काम करता था, जिन की कोठी के एक हिस्से में अनिल किराए पर रहता था. कभीकभी अमजद अनिल के लिए भी चायनाश्ता बना देता था. साथ ही उस के छोटेमोटे काम भी कर देता था. उस से अनिल के बारे में पूरी जानकारी मिल सकती थी. इस के लिए इमरान खां ने उसे थाने बुला लिया था.

बातचीत हुई तो अमजद ने बताया, ‘‘उस दिन इतवार था. अनिल साहब रात करीब 11 बजे घर लौटे. चाय के बारे में पूछने के लिए मैं उन के कमरे में गया. अचानक मेरी निगाह गैराज में चली गई. मुझे यह देख कर हैरानी हुई कि उन की कार गैराज में नहीं थी. उस वक्त अनिल गली में खुलने वाली खिड़की के पास खड़े थे और खासे परेशान व घबराए हुए से गली में कुछ देख रहे थे. मैं ने चाय के लिए पूछा तो कहने लगे, ‘हां…हां, चाय बना लो, जाओ जल्दी.’

‘‘जब मैं चाय ले कर आया तो वह किसी दूसरे शहर फोन कर रहे थे. आवाज रुंधी थी, एकाध जुमला भी मैं ने सुना था. वह कह रहे थे, ‘मैं खतरा महसूस कर रहा हूं, क्या आप यहां आ सकते हैं?’ उन्होंने यह भी कहा था कि कुछ लोग मेरे पीछे लगे हैं.

‘‘यह सुन कर मैं परेशान हो गया. कुछ पूछने की हिम्मत न हुई, मैं अपने कमरे में आ गया. पर नींद नहीं आई. मैं बारबार खिड़की से झांकता रहा. उस वक्त एक सफेद वैगन घर के सामने खड़ी थी. सुबह अजान के वक्त अनिल साहब ने मुझे बुलाया. कमरा सिगरेट के टुकड़ों से भरा पड़ा था. उस वक्त मैं साइकिल पर दूध लेने जा रहा था. उन्होंने मुझ से कहा, ‘‘तुम अपनी साइकिल और चादर मुझे दे दो. मुझे एक जरूरी काम से कहीं जाना है.’’

‘‘साहब, अगर कोई खतरा हो तो पुलिस को खबर कर दें?’’

मैं ने कहा तो वह बोले, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. बस एक आदमी से पीछा छुड़ाना है. कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं. तुम अपनी साइकिल गली नंबर 14 की सफेद कोठी के सामने से ले लेना.’’

इस के बाद अनिल साहब मेरी साइकिल ले कर चले गए थे.

‘‘मैं एक, डेढ़ घंटे बाद सफेद कोठी के सामने से अपनी साइकिल ले आया और उसी दिन रात को एक्सीडेंट में अनिल साहब चल बसे. वह बहुत अच्छे इनसान थे.’’ अमजद ने रुंधे लहजे में अपनी बात खत्म की.

मैं ने अमजद से पूछा, ‘‘तुम जानते हो, सफेद कोठी में कौन रहता है?’’

‘‘हां, वहां शादा रहती है. वह अच्छी औरत नहीं है. वहां सब अय्याश और आवारा मर्द लोग आते हैं.’’

‘‘क्या अनिल भी वहां जाता था?’’ मैं ने पूछा तो उस ने हिचकते हुए कहा, ‘‘पहले कभीकभी जाते थे. लेकिन पिछले 5-6 महीने से मैं ने उन्हें उधर जाते नहीं देखा था.’’

अमजद से काफी अच्छी जानकारी मिल गई. सोचने के लिए कई मुद्दे भी मिल गए. एक बात साफ हो गई थी कि इस मामले में श्याम का हाथ जरूर था और अगर अनिल शादा के यहां जाने के बाद मारा गया था तो वह भी इस जुर्म से जुड़ी थी. इन सब सवालों के जवाब शादा के यहां गली नंबर 14 की सफेद कोठी से मिल सकते थे.

मैं इस इलाके में अजनबी था. वहां मुझे कोई नहीं पहचानता था. इसलिए सफेद कोठी में जाने की जिम्मेदारी मुझ पर आई. इस के लिए मैं ने हुलिया बदल लिया. मैं ने पहाड़ी लिबास पहना. सिर पर रंगीन टोपी, साथ ही एक देसी रिवाल्वर भी कमीज के नीचे रख लिया. मैं शादा के यहां उसी तरह जाना चाहता था, जिस तरह अनिल गया था.

जब मैं सफेद कोठी में पहुंचा तो एक मूंछों वाले हट्टेकट्टे आदमी ने मुझे रोक लिया. मैं ने शादा से मिलने को कहा तो पता चला कि वह घर पर नहीं है. इत्तफाक से उसी वक्त चार कहार एक डोली ले कर वहां पहुंच गए. उन दिनों डलहौजी में सवारी के लिए लकड़ी की बनी डोली आम थी.

डोली से एक गोरीचिट्टी मोटी सी औरत उतरी. उस की उम्र करीब 40-42 साल रही होगी. वही शादा थी. उस के साथ 14-15 साल की एक दुबलीपतली खूबसूरत लड़की भी थी, जो डरीसहमी सी शादा के पीछे खड़ी थी. मैं ने कहा, ‘‘शादाजी, मुझे आप से जरूरी काम है.’’

उस ने कड़े तेवरों से पूछा, ‘‘कैसा काम?’’

मैं ने घबराए अंदाज में कहा, ‘‘मैं बैंक औफिसर अनिल का दोस्त हूं. मुझे आप की पनाह की जरूरत है.’’

अनिल का नाम सुन कर शादा के चेहरे की बेरुखी हवा हो गई. अपने पीछे आने को कह कर वह अंदर दाखिल हो गई. मुझे सजे सजाए खूबसूरत ड्राइंगरूम में बैठा कर उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, यहां क्यों आए हो?’’

‘‘शादाजी, अनिल की तरह कुछ लोग मेरे पीछे पड़ गए हैं, वे मेरी जान लेना चाहते हैं. मैं उन्हें बड़ी मुश्किल से चकमा दे कर यहां तक पहुंचा हूं. अनिल ने मुझ से कहा था कि कोई मुश्किल पड़े तो शादाजी के पास चले जाना.’’

वह मुझे हैरत से देखते हुए बोली, ‘‘किन आदमियों की बात कर रहे हो तुम?’’

मैं ने कहा, ‘‘श्याम के आदमी हैं.’’

अंधेरे में चलाया मेरा तीन निशाने पर लगा. उस ने पहलू बदला, उस की आंखों में उलझन थी. बहरहाल वह अपनी कैफियत छिपाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी बात मेरे पल्ले नहीं पड़ रही है, अनिल ने कभी तुम्हारा जिक्र नहीं किया था.’’

मैं ने अपनी गोलमोल बातों से उस का शुबहा दूर करने की कोशिश की. ताबड़तोड़ अनिल के हवाले दिए. कुछ हद तक मुतमुइन हो कर वह मुझे वहीं छोड़ कर अंदर चली गई. शायद वह कहीं टेलीफोन कर रही थी. मैं सूरतेहाल का सामना करने को तैयार था. क्योंकि उस वक्त सफेद कोठी पूरी तरह पुलिस की निगरानी में थी. मैं ने इमरान खां को भी कह रखा था कि फायर होते ही अमले के साथ कोठी पर धावा बोल देना.

थोड़ी देर में शादा वापस लौट आई. कहने लगी, ‘‘अगर तुम अनिल के दोस्त हो तो हमारे भी दोस्त हुए. अपनी हिफाजत की फिक्र मुझ पर छोड़ दो. श्याम वगैरह बड़े खतरनाक लोग हैं. पर हम सब संभाल लेंगे.’’

मैं साफतौर पर महसूस कर रहा था कि फोन करने के बाद उस कर रवैया बहुत नरम और दोस्ताना हो गया था. वह थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘तुम कमरे में जाओ और फ्रैश हो कर आराम करो. वहां कपड़े भी रखे हैं. अभी मेरे कुछ मिलने वाले आए हुए हैं. मैं उन के साथ मसरूफ हूं. खाना वगैरह मैं भिजवा दूंगी.’’

मैं कमरे में आ गया. बड़ा शानदार कमरा था. उस से लगा साफसुथरा बाथरूम था. वहां एक सलवारकमीज टंगी थी. मैं ने जी भर कर गरम पानी से नहाया और कपड़े पहन कर लेट गया. कुछ देर में गरम खाना आ गया. मछली, कबाब, बिरयानी. मैं ने डरडर कर सूंघसूंघ कर खाना खाया कि कहीं खाने में लंबा लिटाने का इंतजाम न हो. लेकिन ऐसा कुछ नहीं था.

एक लड़की के कत्ल का राज – भाग 2

पता चला कि उन की बेटी रत्ना देवी 2 रोज पहले ही तेज बुखार में बे्रन हैमरेज होने से मर गई थी. यह एक सनसनीखेज खबर थी, क्योंकि उस की मौत के 24 घंटे बाद ही अनिल के साथ हादसा पेश आया था. अनिल के शब्द मेरे दिमाग में घूमने लगे, ‘‘अगर मुझे कुछ हो गया तो इस की वजह रत्ना देवी वाला मामला होगा. रत्ना देवी डा. प्रकाश की बेटी है.’’

अनिल मुझ से अपनी पूरी बात नहीं कह पाया था. पता नहीं, वह आगे क्या कहना चाहता था. ऐसी क्या मुश्किल थी कि उस ने मुझे रात को फोन किया था और फिर बाद में मिलने पर विस्तार से बताने को कहा था.

मेरा दिमाग उलझ गया. डा. प्रकाश से मिलना जरूरी हो गया था. मेरे मुंह से पूरी बात सुन कर इंसपेक्टर इमरान खां को भी शक हो रहा था कि यह हादसा हुआ नहीं, बल्कि करवाया गया है. पहले इस हादसे की वजह अनिल का नशे में होना माना गया था. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से भी उस के नशे में होने की पुष्टि हुई थी. फिर शराब की बोतल भी उस की कार में मिली थी.

इस से सोचा गया था कि नशे में वह कार पर कंट्रोल नहीं रख पाया होगा और कार खाई में जा गिरी होगी. उस के मिलनेजुलने वालों के मुताबिक कई दिनों से वह कुछ परेशान था. एक घंटे बाद हम दोनों अधेड़ उम्र के डा. प्रकाश के सामने बैठे थे. डा. प्रकाश का बेटा धीरेन भी वहां मौजूद था. दोनों थोड़े नरवस लग रहे थे.

अनिल के बारे में पूछने पर दोनों ने उसे जानने से साफ इनकार कर दिया. रत्ना के बारे में बताया कि वह लाहौर के मैडिकल कालेज में डाक्टरी के दूसरे साल में थी. उस की मंगनी हो चुकी थी. इस साल उस की शादी करने का इरादा था. अच्छीभली सेहतमंद लड़की थी. कुछ दिनों पहले बुखार आया, घर की दवा दी तो तबीयत संभल गई.

छुट्टियां खत्म होने की वजह से वापस लाहौर हौस्टल चली गई. एक ही दिन कालेज गई. उस की तबीयत फिर बिगड़ गई, जिस से डलहौजी वापस आना पड़ा. उसे तेज बुखार था. रात को जब तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और नाक से खून बहने लगा तो उसे अस्पताल ले जाने के बारे में सोचा. लेकिन इस से पहले ही उस ने दम तोड़ दिया.

ज्यादा सवाल करने पर धीरेन भड़क उठा. हम वहां से लौट आए. पता नहीं क्यों, मुझे लग रहा था कि वे लोग कुछ छिपा रहे हैं. डाक्टर के मुताबिक बे्रन हैमरेज से मौत हुई थी. पर मुझे शक था कि रत्ना की मौत के पीछे कोई राज था. उन लोगों के अनुसार मरने के एक दिन पहले वह कालेज गई थी. अब शायद वहां से ही कुछ पता चल सके.

जब मैं ने इमरान खां को इस बारे में बताया तो उस ने कहा, ‘‘नवाज साहब, रत्ना देवी के एक प्रोफेसर डा. लाल यहां रहते हैं. आजकल वह यहीं हैं. आप चाहें तो हम उन से मिल सकते हैं. मेरी अच्छी पहचान है उन से.’’

यह सोच कर कि क्या पता कोई सुराग मिल जाए, मैं ने उन से मिलने के लिए हां कर दी.

डा. लाल की कोठी बहुत खूबसूरत थी. वह एक समझदार इंसान लगे. रत्ना की मौत के बारे में सुन कर उन्होंने बड़ा अफसोस और रंज जाहिर किया. उन्होंने बताया कि मौत के एक दिन पहले वह कालेज आई थी. उस ने क्लास में मुझ से कुछ सवाल भी पूछे थे. वह पूरी तरह सेहतमंद थी.

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राजदारी का वादा लेने के बाद उन्होंने जो बताया, बड़ा हैरान कर देने वाला था. डा. लाल ने बताया, ‘‘नवाज साहब, रत्ना बीमारी से नहीं मरी, बल्कि उसे कत्ल किया गया था. यहां तक कि उस की आबरू भी खराब की गई थी. अस्पताल में उस का पोस्टमार्टम हुआ था, जिस में उस के साथ हुई ज्यादती की बात सामने आई थी. लेकिन बाद में डा. प्रकाश ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर के मामला दबा दिया था.

‘‘डा. प्रकाश ने अपनी और अपने खानदान की इज्जत बचाने के लिए इस सदमे को सह लिया और यह सोच कर चुप्पी साध ली कि जो होना था, वह हो गया. पर मुझे लगा, उन की सोच गलत है. अगर इस तरह केस दबा कर मुजरिम को छोड़ दिया गया तो वह फिर किसी की इज्जत से खेलेगा.’’

डा. लाल की बातों से मेरा ध्यान अनिल की तरफ गया. वह रंगीनमिजाज जवान था. पैसा खर्च कर के लड़कियों को फंसाने का शौकीन. मुझे इस मामले की कडि़यां आपस में मिलती लग रही थीं. मैं ने सोचा कि हो सकता है, रत्ना से उस का चक्कर चला हो और जज्बात में बह कर उस ने उस की इज्जत से खिलवाड़ कर के उस का कत्ल कर दिया हो. बाद में जब यह बात रत्ना के भाई और बाप को पता चली हो तो उन लोगों ने अनिल को ठिकाने लगा दिया हो.

मुझे एक अहम सुबूत याद आया. अनिल की गाड़ी ‘फर्स्ट गियर में थी यानी उस की गाड़ी खाई में गिरी नहीं, बल्कि गिराई गई थी. इंजन स्टार्ट कर के पहले गियर में डाल कर गाड़ी को छोड़ दिया गया था और वह खाई में जा गिरी थी.’

दूसरे दिन मैं और इमरान खां डा. प्रकाश की कोठी पर पहुंचे. डा. प्रकाश घर पर नहीं थे. उन के बेटे धीरेन से मुलाकात हुई. उस के साथ रत्ना का मंगेतर भी था. लंबा, खूबसूरत जवान. उस के चेहरे पर गम के गहरे साए थे. नाम था श्याम. धीरेन से उस के बहुत करीबी ताल्लुकात थे.

मैं ने श्याम को कुछ देर के लिए बाहर भेज दिया. मुझे धीरेन से अकेले में बात करनी थी. मैं ने खुल कर कहा, ‘‘धीरेन मुझे सच्चाई पता चल चुकी है. रत्ना स्वाभाविक मौत नहीं मरी है.’’

सुन कर उस का चेहरा जर्द हो गया. वह हकला कर बोला, ‘‘आप को गलत खबर मिली है.’’

मैं ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट उस के सामने रखते हुए कहा, ‘‘अब लगे हाथों यह भी बता दो कि अनिल के कत्ल में तुम्हारे साथ कौनकौन शामिल था?’’

इस पर वह एकदम से तमक कर बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, आप गलत समझ रहे हैं. मैं किसी अनिल को नहीं जानता. मेरी स्वर्गवासी बहन के साथ आप यह नाम जोड़ कर उस का अपमान मत करिए. अगर आप यह समझते हैं कि मेरी बहन का मुजरिम अनिल है तो यह गलत है. आप यकीन करें, मैं किसी अनिल को जानता तक नहीं, जबकि आप उस के कत्ल से मुझे जोड़ रहे हैं.’’

मैं ने सुकून से कहा, ‘‘धीरेन, तुम ऐक्टिंग काफी अच्छी कर लेते हो.’’

इस पर वह चीख कर बोला, ‘‘मैं सच कह रहा हूं, ऐक्टिंग नहीं कर रहा हूं. मैं कसम खा कर कहता हूं कि मुझे नहीं मालूम कि उस ने मेरी बहन के साथ क्या किया, आप ही बताइए क्या किया उस ने?’’

उस के लहजे में सच्चाई थी. उस का गुस्सा भी अपनी जगह ठीक था. उस के चीखने की आवाज सुन कर श्याम ने अंदर झांका. मैं ने उस से जल्दी से कहा, ‘‘आप बाहर बैठिए, कुछ नहीं हुआ है.’’

फिर धीरेन की तरफ देखा. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. उस ने दर्दभरे लहजे में पूछा, ‘‘यह अनिल का क्या मामला है?’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘पहले तुम रत्ना की हकीकत बताओ, फिर तुम्हें सब कुछ बताऊंगा.’’

‘‘इंसपेक्टर साहब, आप यकीन करें, हम सिर्फ इतना जानते हैं कि इतवार के दिन शाम 4 बजे वह घर से निकली थी. इस के ठीक 7 घंटे बाद रात 11 बजे उस की लाश घर के दरवाजे पर पड़ी मिली थी. उस का जिस्म जख्मी था. नाक, सिर और कान से खून बह रहा था. उस का जिस्म दरिंदगी का जीताजागता नमूना था.’’

मैं ने उस की बात काटी, ‘‘मुझे सारी बात शुरू से बताओ.’’

उस ने दर्दभरी आवाज में कहना शुरू किया. ‘‘यह गलत है कि रत्ना बीमार थी, वह बिलकुल सेहतमंद थी. 2 रोज पहले वह कालेज गई थी, पर सिर्फ एक दिन वहां रुक कर डलहौजी लौट आई थी. हमें ताज्जुब हुआ, पर वह काफी समझदार थी. इसलिए किसी ने उस से कुछ नहीं कहा. फिर शाम 4 बजे वह कुछ काम के बारे में कह कर बाहर चली गई.

‘‘जब वह देर रात तक नहीं लौटी तो हम सब परेशान हो गए. हम ने उस की सहेलियों को फोन किया, पर कुछ पता नहीं लगा. मैं गाड़ी ले कर अस्पताल गया, वहां रत्ना के मिलनेजुलने वालों से पूछा, वहां भी कोई जानकारी नहीं मिली. दरबदर भटक कर जब मैं रात करीब पौने 11 बजे घर पहुंचा तो घर के गेट पर मेरी बदनसीब बहन की लाश पड़ी थी.’’

वह मुंह छिपा कर रोने लगा. कुछ देर रुक कर मैं ने उस से पूछा, ‘‘रत्ना और श्याम, मंगनी के बाद मिलतेजुलते थे? क्या दोनों इस रिश्ते से खुश थे?’’

‘‘हां, दोनों खुश थे. दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. मुलाकात भी होती रहती थी. श्याम उस पर जान छिड़कता था. आप से मेरी एक दरख्वास्त है कि एक शरीफ लड़की की इज्जत की पर्दापोशी रखिएगा. जब तक बेइंतहा जरूरी न हो, उस की आबरू लुटने की बात बाहर मत आने दीजिएगा.’’

एक लड़की के कत्ल का राज – भाग 1

उन दिनों मैं अमृतसर में तैनात था. मेरी रात की ड्यूटी थी. गजब की सरदी पड़ रही थी. उसी वक्त फोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ से तेज आवाज में कहा गया, ‘‘मैं अनिल बोल रहा हूं, डलहौजी से.’’

मुझे अचानक याद आ गया. अनिल सिन्हा बैंक में नौकरी करता था. पहले वह अमृतसर में तैनात था. बाद में ट्रांसफर हो कर डलहौजी चला गया था. एक मामले में मैं ने उस की मदद की थी. उस के बाद वह जब तब मेरे पास आने लगा था.

मैं ने उस से कहा, ‘‘कहो कैसे हो, बहुत दिनों बाद आवाज सुनाई दी?’’

कुछ पल सन्नाटा छाया रहा. किसी व्यस्त सड़क से गाडि़यों की आवाज आ रही थी. फिर अनिल की घबराई हुई आवाज आई, ‘‘नवाज साहब, मैं यहां एक मुश्किल में फंस गया हूं.’’

‘‘कैसी मुश्किल?’’

‘‘कुछ गड़बड़ हो गई है, कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं, मुझे खतरा महसूस हो रहा है. आप यहां आ सकते हैं क्या?’’

मैं ने हैरानी से कहा, ‘‘मैं वहां कैसे आ सकता हूं? वैसे परेशानी क्या है? हौसला रखो और मुझे बताओ.’’

‘‘नवाज साहब, बड़ा उलझा हुआ मसला है, फोन पर बताना मुश्किल है. अगर मुझे कुछ हो गया तो…’’ उस की आवाज रुंध गई, ‘‘देखें…देखें…’’

मैं ने उसे समझाया, ‘‘अनिल, घबराओ मत, मुझे बताओ क्या कोई झगड़ा हो गया है या कोई और बात है?’’

‘‘झगड़ा ही समझें, अगर मुझे कुछ हो जाए तो इस की वजह… रत्ना देवी वाले मामले को समझें. रत्ना देवी डाक्टर प्रकाश की बेटी है. वे लोग…’’

अनिल इतना ही बोल पाया था कि लाइन कट गई. मैं सोच में पड़ गया. अनिल की अधूरी बात ने मुझे बेचैन कर दिया. फिर उस का कोई और फोन नहीं आया. मैं उस के लिए परेशान हो गया. अनिल हंसमुख, बातूनी, पढ़ालिखा, स्मार्ट शख्स था और थोड़ा रंगीनमिजाज भी. लड़कियों से वह बहुत जल्दी बेतकल्लुफ हो जाता था.

मैं अगले दिन तक उस के फोन का इंतजार करता रहा. अगले दिन उस का फोन आ गया.इस बार उस की आवाज में घबराहट नहीं थी. वह बोला, ‘‘सब ठीक है नवाज साहब, मैं अमृतसर आ रहा हूं. अभी थोड़ी देर में बस पकड़ने वाला हूं. दोपहर तक पहुंच जाऊंगा.’’

यह मेरी और अनिल की आखिरी बातचीत थी. उस के फोन के बाद मैं 2 दिनों तक उस की राह देखता रहा. मैं ने उस के घर से पता करवाया, पर वह अमृतसर पहुंचा ही नहीं था. मैं उस के घर गया, लेकिन उस के घर वालों को किसी तरह की कोई जानकारी नहीं थी.

मैं ने उन पर कोई बात जाहिर नहीं होने दी. मैं वापस थाने पहुंचा ही था कि अनिल का एक पड़ोसी घबराया हुआ उस की मौत की खबर ले कर आ गया. एक दिन पहले डलहौजी में उस की मौत हो गई थी. मैं वापस उस के घर पहुंचा तो वहां कोहराम मचा हुआ था. उस की मां बहनें पछाड़े खा रही थीं.

मेरी आंखों के सामने अनिल का जिंदगी से भरपूर चेहरा घूम गया, कानों में उस के आखिरी शब्द गूंजने लगे. पता चला, डलहौजी से तार आया था, उसी से उस की मौत की जानकारी मिली थी. मैं वहां से सीधे डीएसपी के दफ्तर पहुंचा. उन्हें सारी बात बताई और तार दिखाया.

उस में लिखा था, ‘अनिल कैंट रोड पर कार हादसे में मारा गया.’

लेकिन मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था. उस ने मुझ से फोन पर जो बातें कही थीं, उन से मुझे शक था कि उस का कत्ल हुआ था. डीएसपी से इजाजत ले कर दूसरे दिन मैं डलहौजी के लिए रवाना हो गया. मेरे साथ अनिल का बड़ा भाई और मामू भी थे.

उस वक्त डलहौजी में बर्फबारी हो रही थी. पुलिस थाने पहुंच कर पता चला कि पोस्टमार्टम के बाद उस की लाश मुर्दाखाने में रखवा दी गई थी. वहां का एसएचओ इमरान खां काफी खुशमिजाज और मददगार था. उस से पता चला कि यह हादसा अनिल के नशे में होने की वजह से पेश आया था.

उस ने बहुत ज्यादा शराब पी रखी थी. होटल से जब वह घर वापस जा रहा था तो रास्ते में उस की कार बेकाबू हो कर एक खाई में जा गिरी. अनिल की मौत मौके पर ही हो गई. उस की कार में आग लग गई थी, जिस की वजह से उस की लाश के कई हिस्से भी जल गए थे. मैं इमरान खां को साथ ले कर मौकाएवारदात पर गया.

पता चला, अनिल के साथ यह हादसा 3 दिनों पहले रात के 9 बजे पेश आया था. जहां घटना घटी थी, वहां सड़क ढलानदार थी. एक तरफ ऊंचा पहाड़ और दूसरी तरफ कोई 3 सौ फुट गहरी खाई थी. खाई में पहाड़ी नाला बहता था. नाले के किनारे एक जली हुई नीले रंग की कार का ढांचा पड़ा था.

जहां से कार खाई में गिरी थी, वहां एक मोड़ था. हम ने उसी मोड़ के करीब से नीचे उतरना शुरू किया. रास्ते में इमरान खां ने गाड़ी से कुचले हुए पौधे दिखाए. गाड़ी उन से टकरा कर गुजरी थी. गाड़ी के साथ काफी चीजें जल चुकी थीं.

मैं ने मौके से जमीनी शहादतें ढूंढ़ने की कोशिश की. कार को हिलाडुला कर देखा तो पता लगा कि गाड़ी में पहला गियर लगा हुआ था. यह सोचने वाली बात थी कि गाड़ी जहां से लुढ़की थी, वह जगह ढलान थी. कोई भी ड्राइवर गाड़ी को तीसरे या दूसरे गियर में ही रखता, पहले गियर का वहां कोई काम नहीं था.

मैं ने गियर बदलने की कोशिश की, पर वह टस से मस नहीं हुआ. इस का मतलब यह था कि कार गिरने के बाद गियर नहीं बदला गया था. मौके पर मौजूद लोगों से पूछताछ करने पर पता लगा कि करीबी बस्ती के लोग धमाके की आवाज सुन कर वहां पहुंचे थे. वहां एक शख्स को गाड़ी में जलते देख कर उन लोगों ने गाड़ी पर नाले का पानी डाला था. लेकिन इस से आग नहीं बुझ सकी. इस बीच 1-2 गाडि़यां भी रुक गई थीं. आग की लपटें कम होने पर जले हुए आदमी को गाड़ी से खींचा गया. तब तक वह मर चुका था.

मैं ने काररवाई करवा कर अनिल के भाई और मामू को लाश के साथ अमृतसर रवाना कर दिया और खुद उस लड़की रत्ना देवी की खोज में लग गया, जिस का जिक्र अनिल ने फोन पर किया था. मुझे लग रहा था कि डा. प्रकाश की बेटी रत्ना देवी का अनिल की मौत से कोई न कोई संबंध जरूर था. अनिल के औफिस में मालूमात करने पर किसी डा. प्रकाश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

मैं ने उस के घर का पता लगाने का निश्चय किया. इस के लिए मैं और इमरान खां फोन डायरेक्टरी ले कर बैठ गए. डायरेक्टरी में डा. प्रकाश मिल गए. उन के पते में फोन नंबर भी मौजूद थे. मैं ने बारीबारी से हर डाक्टर को फोन कर के रत्ना देवी के बारे में पूछा. 3 जगह उलटे मुझ से पूछा गया, ‘‘कौन रत्ना देवी?’’

चौथे नंबर पर भारी आवाज में पूछा गया, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’

मैं ने फोन बंद कर दिया. मैं ने वह पता इमरान को दे कर डा. प्रकाश के बारे में जानकारी हासिल करने को कहा. इमरान ने जल्दी ही मुझे रिपोर्ट दे दी. डा. प्रकाश मेहरा पौश एरिया ‘बलवन’ में रहते थे. उन के परिवार में एक बेटा, 2 बेटियां और बीवी सहित 5 सदस्य थे. उन की एक बेटी का नाम रत्ना देवी था.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश

आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य – भाग 4

मौके का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने होटल मैनेजर ने पूछताछ की तो उस ने बताया, ”यह युवती, जिस का नाम जोया है, अपने शौहर अजरुद्दीन के साथ परसों रात को होटल में आई थी. कल रात को इस का शौहर अजरुद्दीन खाना लाने की बात कह कर होटल से बाहर गया था. फिर मैं ने नहीं देखा कि वह लौटा या नहीं. दानिश के आने के बाद कमरा खोला तो लाश मिली.’’

एसएचओ अंकित चौहान ने दानिश को पास बुलाया. वह अभी भी रो रहा था. उस के कंधे को सहानुभूति से दबा कर इंचार्ज अंकित चौहान ने प्रश्न किया, ”मिस्टर, आप कैसे जानते थे कि कमरा नंबर 204 में आप की बहन की लाश पड़ी है.’’

”मुझे सुबह खुद अजरुद्दीन ने फोन कर के यह बात बताई थी.’’

”अजरुद्दीन आप के जीजा लगते हैं तो…’’

”अजरू मेरा जीजा नहीं है, उस का मेरी बहन जोया से प्रेम संबंध था, लेकिन अजरू इन दिनों बाइक चोरी करने के आरोप में जेल में चला गया था. हमें यह बात अच्छी नहीं लगी. अब्बू एक चोर के साथ जोया का निकाह कभी नहीं करते.

”उन्होंने दिल्ली में जोया के लिए एक लड़का पसंद कर के उस के साथ जोया का रिश्ता पक्का कर दिया. 14 नवंबर को उस के साथ जोया की शादी होनी थी.’’

”अजरुद्दीन कहां रहता है?’’ एसीपी सलोनी अग्रवाल ने पूछा.

”वह कल्लूगढ़ी गांव (गाजियाबाद) में ही रहता है.’’ दानिश ने बताया.

एसीपी सलोनी अग्रवाल ने पहले जोया की लाश की जांच करने के लिए फोरैंसिक टीम को बुलवाया. कमरे से फोरैंसिक टीम ने सबूत एकत्र किए. इस के बाद जोया की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

एसीपी सलोनी अग्रवाल ने अजरुद्दीन की गिरफ्तारी के लिए एसएचओ अंकित चौहान को नियुक्त कर दिया.

अजरू ने क्यों किया प्रेमिका का कत्ल

अंकित चौहान ने अपनी पुलिस टीम के साथ कल्लूगढ़ी में अजरुद्दीन को पकडऩे के लिए रेड डाली, लेकिन यह वहां से फरार हो गया था. अंकित चौहान ने अपने खास मुखबिर उस की टोह में लगा दिए.

20 अक्तूबर, 2023 को अजरुद्दीन को उस वक्त गिरफ्तार कर लिया गया. जब पुलिस सड़क पर वाहनों की चैकिंग कर रही थी और अजरुद्दीन उसी रास्ते धोलाना की तरफ जा रहा था.

पुलिस को देख कर अजरुद्दीन अपने वाहन से कूद कर भागा तो पुलिस ने उस का पीछा किया. उसे पकडऩे के लिए पुलिस को मजबूरन उस के पांव में गोली मारनी पड़ी. वह गिरा तो पुलिस ने उसे दबोच लिया.

उसे वेव सिटी थाने लाया गया. थाने में उस ने पूछताछ के दौरान लव क्राइम के पीछे की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

अजरुद्दीन जोया उर्फ शहजादी को अपनी जान से ज्यादा प्यार करता था. उस की खातिर उस ने अपनी नेक और बहुत चाहने वाली बीवी जीनत और 5 बच्चों तक को छोड़ दिया. जोया की फरमाइशें पूरी करने के लिए उस ने अपने बापदादा की जमीनें बेच भी दीं, अपना पैतृक मकान भी बेच डाला. वह जोया को हर तरह से खुश रखता था.

जोया की खातिर सब कुछ बेच देने के बाद वह किराए का घर ले कर रहने लगा और जोया की डिमांड पूरी करने के लिए बाइक चोरी करने लगा. उस पर नोएडा और गाजियाबाद थानों में चोरी के कई केस दर्ज हुए और जेल तक जाना पड़ा.

जोया वहां उस से मिलने आती थी. जोया के घर वालों ने उसे जेल में बंद देख कर झटपट जोया का रिश्ता दिल्ली में तय कर दिया. उसे यह बात पता चली तो वह तड़प उठा. उस ने किसी तरह अपनी जमानत करवा ली और जेल से बाहर आ गया.

उस ने जोया को फोन कर के आखिरी मुलाकात के लिए गाजियाबाद बुलाया. बहुत मिन्नतें करने पर वह शौपिंग के बहाने से गाजियाबाद आ गई. वह 20 अक्तूबर की शाम थी. अजरुद्दीन ने यहां होटल अनंत में एक कमरा पतिपत्नी के रूप में बुक करा लिया था.

कमरे में आ कर उस ने जोया को वह रिश्ता तोड़ देने की मिन्नतें कीं, लेकिन उस ने इंकार कर के कहा कि वह एक चोर के साथ निकाह हरगिज नहीं कर सकती, इसलिए वह उसे भूल जाए.

जिस के पीछे अजरुद्दीन पूरी तरह बरबाद हो गया, वह अब उसे चोर कह रही थी. वह दूसरे दिन भी जोया को मनाता रहा, वह नहीं मानी तो उस ने उस की कोल्ड ड्रिंक में जहर मिला दिया. जब वह फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गई थी. वह कोल्ड ड्रिंक पी कर बेसुध हो कर पलंग पर पसर गई. उस के सोते ही अजरुद्दीन ने तकिया उस के मुंह पर रख कर तब तक दबाया, जब तक उस के प्राण नहीं निकल गए.

प्रेमिका की हत्या करने के बाद उस ने रात को अपने दोस्त जलाल को बाइक ले कर होटल के पीछे बुलाया था. खाना लाने के बहाने अजरुद्दीन होटल से निकला तो जलाल होटल के पीछे खड़ा मिल गया. वह उस की बाइक पर बैठ कर होटल से दूर निकल गया. इस के बाद सुबह उस ने जोया के भाई दानिश को जोया की लाश होटल के कमरा नंबर 204 में होने की जानकारी फोन से दे दी थी.

अजरुद्दीन द्वारा जोया की हत्या का जुर्म कुबूल करने के बाद उसे न्यायिक मजिस्ट्रैट की कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

अजरुद्दीन के इस बयान के बाद जलाल को भी पुलिस ने दबोच लिया और जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेगुनाह कातिल : प्यार के जुनून में बेमौत मारी गयी रेशमा – भाग 5

उस दिन तो इंसपेक्टर खान चले गए, लेकिन अगले दिन जब रोशन घर में अकेला था तो आ कर सख्ती से पूछताछ करने लगे. उन्होंने पूछा, ‘‘चाची के साथ तुम्हारा रवैया कैसा था?’’

‘‘मैं उन का बहुत आदर करता था. जो भी काम कहती थीं, मैं कर देता था.’’

‘‘तुम किसी सालार को जानते हो या इस तरह का नाम कभी सुना है?’’

‘‘नहीं साहब, मैं किसी सालार को नहीं जानता.’’

‘‘रेशमा का कत्ल किस ने किया, यह तो तुम्हें पता ही होगा? तुम्हारा ही कोई दोस्त होगा?’’

रोशन घबरा कर बोला, ‘‘नहीं साहब, मेरा यहां कोई दोस्त नहीं था.’’

इंसपेक्टद सफदर खान के दिमाग में नईम की कही बात बारबार घूम रही थी कि अम्मी रोशन भाई को बहुत चाहती थीं, हम से ज्यादा उन का खयाल रखती थीं. आखिर रेशमा रोशन पर इतना मेहरबान क्यों थी? अपने बेटे से भी ज्यादा उस से प्यार करती थी.

उन्होंने इसी बात को ध्यान में रख कर पूछा, ‘‘रेशमा, तुम्हारी सगी चाची नहीं थी, फिर वह तुम्हारा इतना खयाल क्यों रखती थी? तुम छोटे बच्चे तो हो नहीं, जवान हो. फिर तुम पर इतना प्यार लुटाने का मतलब क्या था? कहीं तुम अपनी चाची पर अपनी जवानी और खूबसूरती की बदौलत डोरे तो नहीं डाल रहे थे? पैसों के लिए उसे बरगला तो नहीं रहे थे?’’

‘‘नहीं साहब, खुदा के लिए ऐसा न कहें. वह मेरी मां जैसी थीं.’’

‘‘फिर उन के इतना प्यार करने की वजह क्या थी?’’

रोशन के सब्र का बांध एकदम से टूट गया. वह फफक कर रो पड़ा. संयोग से उसी समय फरीद घर में दाखिल हुआ. रोशन की रोने की आवाज सुन कर वह दरवाजे के पीछे खड़ा हो गया.

रोशन ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, खुदा की कसम, मैं ने कभी उसे नजर उठा कर नहीं देखा. अल्लाह गवाह हैं, वह बहुत खराब औरत थी. वह मुझे फंसाना चाहती थी. कहती थी कि वह मुझ से प्यार करती है. साहब, मैं उसे मां की तरह इज्जत देता था. उस की बेजा चाहत से बचने के लिए मैं ज्यादातर घर से बाहर रहता था.’’

रोशन की बातें सुन कर फरीद जहां खड़ा था, वहीं सिर थाम कर बैठ गया. शमा के कहे अल्फाज उस के कानों में गूंजने लगे, ‘‘अम्मी तो भाईजान के पीछे पीछे घूमा करती थीं. हम से ज्यादा भाईजान का खयाल रखती थीं. हमें तो जैसे भूल ही गई थीं.’’

तभी इंसपेक्टर खान की आवाज उन के कानों में पड़ी, ‘‘फिर तुम ने क्या किया? सारी बातें सचसच बता दो, मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगा.’’

रोशन रुंधी आवाज में कहने लगा, ‘‘साहब, आप चाचा को कुछ मत बताना, क्योंकि सच्चाई जान कर उन्हें बहुत दुख होगा. वह मुझे बहुत परेशान करती थी. रोज रात को मेरे पास आ जाती और मुझ से प्यार जताती. अल्लाह की कसम मैं उस से बचता था. मैं उसे हटाता, पर वह मुझे उठने ही नहीं देती. चाचा की इज्जत के बारे में सोच कर मैं चीखचिल्ला भी नहीं सकता था. शमा और नईम को भी नहीं उठा सकता.

‘‘जब मैं उस के हाथ नहीं आया तो वह उलटीसीधी बातें करने लगी. कहा कि चाचा से शिकायत कर दूंगी कि तू मुझ पर बुरी नजर रखता था. मैं उन से यह भी बताऊंगी तू शमा पर भी डोरे डाल रहा था. साहब, मैं बहुत डर गया था. मैं चाचा की बहुत इज्जत करता हूं.

‘‘मैं शमा को पसंद जरूर करता था, पर आज तक उसे नजर भर कर नहीं देखा है. जरा सी बात का उस ने कैसा फसाना बना दिया था. मुझे डर था कि अगर चाचा से उस ने ऐसा कुछ कह दिया तो मैं उन की नजरों से गिर जाऊंगा. मेरे ऊपर से उन का यकीन टूट जाएगा. दुनिया में बदनाम हो जाऊंगा. मैं मजबूर हो गया था साहब. मुझे बेबस कर दिया था उस ने.’’

इंसपेक्टर सफदर खान बहुत ही समझदार इंसान थे. सारे हालात उन के सामने थे. वह जानते थे कि प्यासी औरत बहक सकती है. फरीद ज्यादातर बाहर रहता था, वह देखने में भी अच्छा नहीं था. हो सकता है इसी वजह से उस ने रोशन को रिझाने की कोशिश की हो. उन्होंने पूछा, ‘‘तो फिर तुम ने चाचा की इज्जत बचाने के लिए क्या किया?’’

‘‘रहीम चाचा से कुछ पैसे ले कर मैं घर जाने के बाहने यहां से चला गया. रहीम चाचा से जो पैसे मिले थे, उस से मैं 2 दिन तक एक लौज में रुका रहा. तीसरी रात दीवार फांद कर मैं छत पर पहुंचा. चाची मेरी चारपाई पर सो रही थी. उस की धमकियों से विवश हो कर मैं उसे चाकू मार कर भाग गया. सुबह लौज से अपना सामान ले कर मैं गांव चला गया.

‘‘मैं मजबूर था साहब. दो दिनों तक मैं यही सोचता रहा कि इस मसले का क्या हल हो सकता है. मैं उसे उस के किए की सजा देना चाहता था, इसलिए उसे चाकू मारने के अलावा मुझे और कोई रास्ता नहीं सूझा. उस की गलत फितरत और चाचा से बेवफाई के लिए मैं उसे सबक सिखाना चाहता था. उस की गंदी हरकतों से मुझे उस से बेइंतहा नफरत हो गई थी. मैं चाचा का सामना नहीं करना चाहता था, इसलिए उन के आने से पहले ही उसे चाकू मार कर भाग गया था.

‘‘मैं उसे मारना नहीं चाहता था, लेकिन नफरत और शराफत की वजह से ऐसा हो गया. उसे मार कर मुझे एक पल के लिए भी चैन नहीं मिला. गुनाह का अहसास मुझे कचोटता रहा. मेरा जमीर मुझे झकझोरता रहा. गुनाह कुबूलने के बाद अब मुझे सुकून मिला है. अब मुझे सजा की भी चिंता नहीं है.’’

इतना कह कर रोशन दोनों हाथों से मुंह छिपा कर रोने लगा.

इंसपेक्टर सफदर खान ने कातिल पकड़ लिया था. लेकिन यह ऐसा मामला था, जिस में कातिल को पकड़ कर भी खुशी नहीं हुई थी. क्योंकि सही मायने में लड़का हत्यारा होते हुए भी बेकुसूर था.

फरीद ने अंदर आ कर रोशन को गले लगा लिया, ‘‘बेटा, मैं तेरा इस बात के लिए अहसानमंद हूं कि तू ने मेरी इज्जत के लिए अपनी बरबादी की भी चिंता नहीं की.’’

इस के बाद फरीद ने इंसपेक्टर खान से कहा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, यह लड़का बेकुसूर है. मैं अपना केस वापस ले रहा हूं. आप सच्चाई जान गए हैं, इसे किसी तरह बचा लीजिए.’’

‘‘आप की बात ठीक है, लेकिन रोशन ने जो बयान दिया है, वह पूरी तरह से इस के खिलाफ है. लेकिन रेशमा ने अपने बयान में इस का नहीं, सालार का नाम लिया था. कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं था, इसलिए वैसे भी यह केस काफी कमजोर है. अपनी ओर से भी मैं इस केस को हल्का बनाऊंगा, ताकि रोशन संदेह का लाभ पा कर छूट जाए,’’ इंसपेक्टर खान ने कहा.

‘‘लेकिन साहब एक विनती और है. मैं चाहता हूं कि मेरी बीवी की चरित्रहीनता उजागर न हो, वरना मेरे बच्चे सिर उठा कर जी नहीं पाएंगे.’’ फरीद ने हाथ जोड़ कर इंसपेक्टर खान से कहा.

इस के बाद फरीद ने रोशन को गले लगा कर कहा, ‘‘मेरे बच्चे, तू घबरा मत, मैं तेरे साथ हूं. मैं वैसे भी अब नौकरी नहीं कर सकता, क्योंकि मैं नौकरी पर चला जाऊंगा तो मेरे बच्चों को कौन संभालेगा. मैं नौकरी छोड़ कर कोई कारोबार कर लूंगा और उस कारोबार में तुम्हें भी शामिल कर लूंगा.

‘‘तुम्हारे मांबाप को यहां ले आऊंगा. बच्चों को भी सहारा मिलेगा और उन की भी ठीक से देखभाल हो सकेगी. उस के बाद तुम्हारी शादी शमा से करा दूंगा. इस तरह तुम्हारी चाहत तुम्हें मिल जाएगी.’’

इंसपेक्टर खान ने अपना वादा पूरा किया. उन्होंने ऐसा केस बनाया कि रोशन को संदेह का लाभ मिला. चश्मदीद गवाह न होने की वजह से वैसे भी यह केस काफी कमजोर था. फरीद ने वकील भी अच्छा किया था, जिस से रोशन सजा से बच गया. जमानत न होने से 2 सालों तक वह जेल में रहा. इतने दिनों जेल में रह कर रोशन के दिल पर जो बोझ था, वह उतर गया.

रोशन के मांबाप शहर आ गए थे, इसलिए जेल में रह कर भी उसे चिंता नहीं थी. लेकिन सालार को कोई नहीं भूल सका. सभी सोचते थे कि आखिर यह सालार कौन था? लेकिन रेशमा की मौत के साथ ही ‘सालार’ का रहस्य रहस्य ही रह गया था. किसी को पता नहीं चल सका था कि सालार उस की आवाज का दीवाना और प्रेमी था. रेशमा उस के प्यार को दिल में छिपाए उसी के जुनून में बेमौत मारी गई थी.

आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य – भाग 3

अजरू को जीनत दिलोजान से चाहती थी, उस का घर और इस के बच्चों को संभालना जीनत अपना फर्ज समझती थी. उस ने इस फर्ज की अदायगी में नाइंसाफी नहीं की थी. अजरू इस बात को जानता था और उस पर वह अपना भरपूर प्यार लुटाता था. अपने शौहर के इसी प्यार की भूखी थी जीनत, लेकिन अब अजरू का दिल कहीं और कुलांचे भर रहा था.

वह महसूस कर रही थी कि उस का अजरू अब पहले वाला अजरू नहीं रह गया है. इस के पीछे की सच्चाई जान कर जीनत का दिल रो पड़ा था. जीनत की आंखें भर आईं. उस का मन काम में नहीं लगा.

पति पर क्यों फूटा जीनत का गुस्सा

रात को अजरू घर आया तो जीनत ने उस से सीधा सवाल कर डाला, ”यह जोया कौन है जिस के पीछे आप अपना घर, बच्चे और मुझे भूलते जा रहे हैं?’’

अजरू एक पल को हक्का बक्का रह गया. उस के प्रेम की भनक उस की बीवी को लग चुकी है, यह जान कर उस ने गहरी सांस भरी और बोला, ”जोया से मैं प्रेम करता हूं जीनत.’’

”क्या मेरे प्यार में कोई कमी रह गई थी जो आप को बाहर मुंह मारने की जरूरत आ पड़ी.’’

”तुम्हें मैं ने भरपूर प्यार किया है, अब मेरा दिल दूसरी जगह सुकून तलाश रहा है तो तुम्हें क्या आपत्ति है?’’

”आपत्ति है,’’ जीनत तड़प कर बोली, ”आप मेरे हैं, आप का प्यार मेरे लिए है. इसे कोई दूसरी बांट ले, मुझे यह हरगिज मंजूर नहीं है.’’

”मैं जोया को नहीं छोड़ सकता जीनत. तुम्हें मैं खाने पीने का पूरा खर्च दे रहा हूं, तुम अपने घर और बच्चों में खुश रहो. मैं बाहर क्या कर रहा हूं, इस से परेशान मत हो.’’

”अगर आप को बाहर सुकून मिलने लगा है तो मैं आप के साथ आगे नहीं रह पाऊंगी, मैं आप से अलग होना ज्यादा पसंद करूंगी. मैं घुटघुट कर जिंदगी नहीं जीना चाहती.’’

”तुम्हारी मरजी है जीनत, तुम यहां रहती तो मुझे अच्छा लगता.’’ अजरू ने गहरी सांस भर कर कहा.

”आप जोया को छोड़ देंगे तो मुझे भी अच्छा लगेगा.’’ जीनत ने दोटूक कहा और अंदर कमरे में चली गई.

उसी दिन जीनत अपने बच्चों को साथ ले कर अपने मायके चली गई. अजरू जोया के प्यार में इस कदर डूब गया था कि उस ने अपने बीवी बच्चों को रोकने की जरूरत नहीं समझी. जोया की मोहब्बत में अजरू-जीनत का घर और रिश्ता टूट गया.

जोया के इश्क का भूत अजरुद्दीन पर इस कदर सवार हुआ कि उस ने खेत बेचने के बाद अपना पैतृक घर भी बेच दिया. उस ने उन पैसों से जोया की फरमाइशें पूरी करनी शुरू कर दीं. कुछ ही दिनों में उस के मकान का पैसा भी खत्म हो गया.

अजरू मकान बेच देने के बाद किराए का घर ले कर रहने लगा. जोया को अजरू द्वारा दिए जा रहे गिफ्ट पा कर संतोष नहीं हो रहा था. उसे गिफ्ट लेने का चस्का सा लग गया था, वह रोज अजरू से किसी न किसी चीज की डिमांड कर देती और अजरू उस की फरमाइश पूरी करने के लिए दिल खोल कर रुपए खर्च करता.

मकान बेचने के बाद मिला पैसा आखिर कितने दिनों तक चलता. अजरू एक दिन खाली जेब रह गया. फिर भी जोया की फरमाइश नहीं थमी. अब अजरू ने बाइक चोरी करनी शुरू कर दी. वह सड़क पर पार्क की गई बाइकें चोरी करता और औने पौने दामों में बेच देता.

एक दिन बाइक चुराते हुए वह पकड़ा गया. उसे पुलिस थाने ले आई और जेल में बंद कर दिया.

जोया उर्फ शहजादी को पता लगा कि चोरी के आरोप में गाजियाबाद पुलिस ने अजरू को जेल पहुंचा दिया है तो वह अजरू से मिलने जेल पहुंच गई. अजरू से मिल कर वह खूब रोई.

अजरू ने उस के आंसू पोंछते हुए भावुक स्वर में कहा, ”मैं जल्दी जेल से बाहर आ जाऊंगा जोया. जेल से निकलने के बाद मैं कहीं काम तलाश कर लूंगा और तुम से निकाह कर लूंगा. जीनत नाम का कांटा हमारे बीच से निकल गया है, हम दोनों प्यार की नई दुनिया बसा लेंगे.’’

”हां अजरू, हमारा मिलन होगा, हमारा प्यारा सा घर भी होगा और उस घर के आंगन में प्यारे प्यारे बच्चे भी होंगे. बस, तुम जल्दी से अपनी सजा काट कर जेल से बाहर आ जाओ.’’

”मैं जल्द आऊंगा जोया.’’ प्यार से अजरू ने जोया का हाथ पकड़ कर दबाते हुए कहा, ”तुम मेरा इंतजार करना.’’

”करूंगी मेरे महबूब.’’ आंखों में आए आंसू पोंछते हुए जोया उठ कर खड़ी हो गई और थके कदमों से चलती हुई जेल के बाहर आ गई.

22 अक्तूबर, 2023 को सुबह का उजाला फैला भी नहीं था कि जोया के भाई दानिश के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. दानिश की आंखें खुल गईं. उस ने कंबल में से हाथ बाहर निकाल कर टेबल पर रखा मोबाइल फोन उठाया. स्क्रीन पर अजरू का नाम चमक रहा था. ‘इतनी सुबह अजरुद्दीन को मुझ से क्या काम पड़ गया?’

हैरत में डूबे दानिश ने बड़बड़ाते हुए काल रिसीव की, ”दानिश बोल रहा हूं, कैसे फोन किया?’’

”दानिश, तुम्हारी बहन जोया की लाश रोहन एनक्लेव (गाजियाबाद) के होटल अनंत में कमरा नंबर 209 में पड़ी है.’’ दूसरी ओर से अजरू ने गंभीर स्वर में कहा और काल डिसकनेक्ट कर दी.

दानिश हैलो…हैलो… करता रह गया. अजरू ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर दिया था.

दानिश जल्दी से बिस्तर से उतरा और अपने पिता को बताए बगैर वह अपनी बाइक से गाजियाबाद के लिए निकल गया. वह जब होटल अनंत पहुंचा तो धूप पूरी तरह निकल चुकी थी.

दानिश दौड़ता हुआ होटल के रिसैप्शन पर आया. वहां ड्यूटी पर मैनेजर मौजूद था.

”तुम्हारे होटल के कमरा नंबर 204 में मेरी बहन जोया की लाश है…’’ दानिश घबराए स्वर में बोला.

”लाश..!’’ मैनेजर बौखला गया, ”आप को किस ने कहा कि हमारे होटल में लाश है.’’

”आप पहले देखिए,’’ दानिश ऊंची आवाज में बोला.

मैनेजर अपनी जगह से हिला. वह कमरा नंबर 204 की तरफ दौड़ा. उस के पीछे दानिश भी था. कमरा खोल कर देखा तो उस में वास्तव में बैड पर जोया की लाश पड़ी थी.

इस की सूचना तुरंत थाना वेव सिटी में फोन कर के दे दी. सूचना मिलने पर थाना वेव सिटी के एसएचओ अंकित चौहान और एसीपी सलोनी भी मौके पर पहुंच गईं.

अय्याशी में डबल मर्डर : होटल मालिक और गर्लफ्रेंड की हत्या – भाग 3

रवि ठाकुर ममता की मजबूरी का फायदा उठाते हुए आए दिन उसे अपनी हवस का शिकार बनाने लगा था. जब ममता उस की हरकतों से परेशान हो गई तो उस ने यह बात एक दिन अपने पति को यह बात बता दी.

यह बात सुनते ही नितिन बौखला उठा. इस जानकारी के बाद नितिन और ममता के बीच काफी मनमुटाव भी पैदा हो गया था. जिस के कारण कई दिनों तक दोनों के बीच लड़ाई झगड़ा भी हुआ था.

ममता ने पति को यह भी बता दिया कि इस सब की जिम्मेदार सरिता ठाकुर ही है. उसी ने उस के साथ संबंध बनाने के लिए उसे मजबूर किया था. इस के बाद नितिन और ममता उस से पीछा छुड़ाने के लिए किसी रास्ते की तलाश में लग गए. रास्ता भी ऐसा कि जिस से उन्हें रवि का पैसा भी न देना पड़े और उस से हमेशा हमेशा के लिए पीछा भी छूट जाए.

सलाह मशविरा के बाद दोनों ने सरिता ठाकुर और रवि ठाकुर को मौत के घाट उतारने का फैसला कर लिया. प्लानिंग के लिए उन्होंने करीब एक महीने तक क्राइम सीरियल देखे. तब पतिपत्नी दोनों ने मिल कर दोनों को मौत के घाट उतारने की योजना बनाई. फिर वह उसी योजना के तहत रवि ठाकुर के फोन आने का इंतजार करने लगे.

सरिता के घर पहुंच कर ममता और उस के पति ने क्या किया

9 दिसंबर, 2023 को रवि ठाकुर ने ममता को फोन कर होटल आने के लिए कहा. इस पर ममता ने कह दिया, ”मैं आज आप के होटल पर नहीं आ सकती. अगर आप को आना है तो आप सरिता ठाकुर के घर आ जाना.’’

सरिता ठाकुर के घर जाने में रवि को कोई परेशानी वाली बात नहीं थी. उस के बाद रवि ठाकुर ने ममता से कह दिया कि ठीक है, वह सरिता के घर पर ही पहुंच जाएगा.

उसी वक्त ममता ने सरिता को फोन कर बता दिया कि रवि ठाकुर और मैं आप के घर आने वाले हैं. यह बात सुनते ही सरिता ठाकुर ममता और रवि ठाकुर के आने का इंतजार करने लगी. उस वक्त सरिता का पति ऋषि भी किसी काम से बाहर गया हुआ था.

दोनों की हत्या की योजना बनाने के बाद ममता अपने पति नितिन को साथ ले कर सरिता के घर पहुंची, लेकिन ममता के साथ उस के पति नितिन को देख कर उसे कुछ हैरानी भी हुई.

सरिता ने ममता को एक तरफ बुला कर उस के पति के आने का कारण पूछा तो उस ने बताया कि वह किसी काम से बाहर जा रहे थे. फिर बोले कि मुझे भी उधर ही जाना है. वह मुझे छोडऩे के लिए ही आए हैं.

यह जानकारी मिलते ही सरिता ठाकुर दोनों के लिए चाय बनाने के लिए किचन में चली गई. सरिता ठाकुर के किचन में जाते ही नितिन ने उस के घर का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया. उस के बाद उस ने उस के घर में ही रखी तलवार से सरिता ठाकुर की हत्या कर दी.

सरिता की हत्या करने के बाद ममता ने दरवाजे पर लगा कुंदा खोल दिया. उस के बाद नितिन सरिता के अंदर वाले कमरे में छिप गया. उस के बाद जैसे ही रवि ठाकुर सरिता के घर पर पहुंचा तो ममता ने फिर से सरिता के घर का बाहर वाला दरवाजा अंदर से बंद कर दिया.

उस के बाद उस ने रवि ठाकुर को बाहर वाले कमरे में ही रोक लिया. रवि ठाकुर ने उस वक्त सरिता के बारे में पूछा तो ममता ने कहा कि सरिता दीदी बहुत ही चालाक हैं, वह बाजार का बहाना बना कर इसलिए चली गई, ताकि हम दोनों खुल कर मौजमस्ती कर सकें.

इतना कहते ही ममता ने रवि बाबू पर अपना प्यार दिखाते हुए उस के होंठों पर एक जोरदार किस कर दी. आप चिंता न करें, वह इतनी जल्दी घर वापस आने वाली नहीं.

इतना कहने के बाद ही ममता ने रवि ठाकुर को अपनी आगोश में ले लिया. फिर वह रवि ठाकुर के साथ अश्लील हरकतें करने लगी. जिस के बाद ममता को अकेला पा कर रवि ठाकुर भी उस के साथ संबंध बनाने के लिए बैचेन हो उठा था.

हत्या करने के बाद ममता ने सरिता की बेटी को क्या मैसेज भेजा

रवि ठाकुर के कामुक होते ही ममता ने उस के कपड़े उतार दिए. उस के बाद रवि ठाकुर ने भी उस से कपड़े उतारने को कहा तो उस ने कहा कि उसे आप के सामने कपड़े उतारते हुए शर्म आती है. यह कहते ही ममता ने रवि ठाकुर की आंखों पर पट्टी बांध दी.

रवि ठाकुर की आंखों पर पट्टी बांधते ही नितिन तलवार ले कर आया और सामने खड़े रवि पर ताबड़तोड़ बार कर दिए. जिस के तुरंत बाद उस की भी मौके पर ही मौत हो गई.

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हत्यारे ममता और नितिन 

सरिता ठाकुर और रवि ठाकुर की हत्या करने के बाद ममता और नितिन ने दोनों को एक ही कमरे में ले जा कर डाल दिया. उन्होंने सरिता के भी कपड़े उतार कर नग्न कर दिया था. उस के बाद ममता ने ही सरिता के मोबाइल से उस की बेटी को मारने का मैसेज भेज दिया था. ताकि उस की बेटी को उन पर किसी तरह का कोई शक न हो.

दोनों को बेरहमी से खत्म करने के बाद पतिपत्नी ने वहां पर फैले खून को साफ करने की कोशिश की. उस के बाद दोनों उस के कमरे से निकल कर बाहर से दरवाजा बंद करने के बाद आटो से फरार हो गए.

ममता ने रवि ठाकुर और सरिता का मोबाइल भी अपने पास रख लिए थे. अपने घर पहुंचते ही दोनों ने अपने पहने कपड़े जला दिए.

इस हत्याकांड के खुलासे के बाद पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर आरोपियों के जले कपड़े और दोनों मृतकों के कपड़े के साथसाथ हत्या में प्रयुक्त तलवार भी बरामद कर ली.

—कथा लिखने तक पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही थी.