बेगुनाह कातिल : प्यार के जुनून में बेमौत मारी गयी रेशमा – भाग 3

रोशन पर रेशमा की मेहरबानियां बढ़ती जा रही थीं. वह उस की प्लेट में ढेर सारा सालन डाल देती, पराठों में भी खूब घी लगाती. रोशन बच्चों के साथ ही घर से निकल जाता और नौकरी की तलाश में दिन भर दफ्तरों के चक्कर लगाता रहता, जो समय बचता, रहीम चाचा की दुकान पर बैठ कर उन का हिसाब किताब कर देता. बदले में वह उसे खर्च के लिए थोड़े बहुत पैसे दे देते थे.

जब तक रोशन घर से बाहर रहता, रेशमा पागलों की तरह दरवाजा ताकती रहती. आने पर ऐसी बेताबी से उस का स्वागत करती कि वह शर्मिंदा हो जाता. रात में उस की चारपाई पर जा कर बैठ जाती तो वह घबरा कर खड़ा हो जाता. रेशमा जुनूनी हो कर उस का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती उसे चारपाई पर बिठाती. रोशन घबरा कर पसीने पसीने हो कर कहता, ‘‘चाची, मैं ऐसे ही ठीक हूं.’’

यह कहते रोशन की आवाज गले में फंसने लगती. एक रात रेशमा ने उस के करीब आ कर कहा, ‘‘तुम बहुत खूबसूरत हो रोशन, बिलकुल मेरे सा…’’

संयोग से इतने पर ही रेशमा की जुबान रुक गई. 2 शब्द और निकल जाते तो सारा राज खुल जाता. चाची के इस जबरदस्ती के प्यार से रोशन परेशान रहने लगा था. उसे लगने लगा कि अगर यही हाल रहा तो यहां रहना मुश्किल हो जाएगा. चाची की हरकतों से तंग आ कर वह गांव वापस जाने की सोचने लगा था. लेकिन चाचा ने आने तक उसे रुकने को कहा था. वह अपने अफसरों और दोस्तों से उस के लिए बात करना चाहते थे.

चाची का व्यवहार रोशन की समझ से बाहर होता जा रहा था. लेकिन मांबाप की मजबूरियों का खयाल कर के घर के लिए उस के कदम नहीं उठ रहे थे. वह कुछ पैसे कमा कर ही घर वापस जाना चाहता था.

रात होते ही रोशन की घबराहट बढ़ जाती थी. उसे डर लगने लगता था कि चाचा कहीं कुछ उलटासीधा न समझ लें. उस रात रेशमा ने उसे जबरन अपने पास बैठा कर पूछा था कि वह उसे कैसी लगती है? रोशन ने हकलाते हुए कहा था, ‘‘चाची, आप बहुत अच्छी हैं. आप मेरा खयाल अपने बच्चों की तरह रखती हैं.’’

‘‘रोशन मुझे देख कर तुम्हें कैसा एहसास होता है, क्योंकि मैं तुम से प्यार करती हूं.’’

रोशन ने घबरा कर कहा, ‘‘चाची, यह आप कैसी बातें कर रही हैं? आप मेरी मां जैसी हैं. अब मैं यहां नहीं रह सकता. बस फरीद चाचा आ जाएं.’’

फरीद का नाम सुनते ही रेशमा जैसे होश में आ गई. उस का प्यार का सारा खुमार उतर गया. जल्दी से रोशन का हाथ छोड़ कर वह बेबसी से बोली, ‘‘तुम्हें कोई तो अच्छा लगता होगा रोशन?’’

‘‘हां, मुझे शमा अच्छी लगती है.’’ रोशन ने शरमाते हुए कहा.

रेशमा के दिल में तीर सा लगा. उस ने रोशन को घूरते हुए कहा, ‘‘आज तो शमा का नाम ले लिया, लेकिन फिर कभी मत लेना, वरना मैं तुम्हारी शिकायत तुम्हारे चाचा से कर दूंगी. वह बहुत ही गुस्से वाले हैं. जूते मार मार कर तुम्हारा मुंह तोड़ देंगे.’’

रोशन डर गया. उस ने कहा, ‘‘चाची, ऐसी कोई बात नहीं है. आप चाचा से कुछ मत कहिएगा.’’

रेशमा उठी और पैर पटकती हुई अंदर चली गई. हैरान परेशान रोशन चुपचाप वहीं बैठा रहा.

रेशमा ने रोशन पर अपनी मेहरबानियां और बढ़ा दी थीं, साथ ही शमा पर नजर रखने लगी थी. अब वह उसे रोशन के पास बिलकुल नहीं जाने देती थी.

रोशन चाची की नीयत जान गया था, इसलिए उसे फरीद से डर लगने लगा था कि अगर चाची ने चाचा से कुछ उलटासीधा कह दिया तो वह चाचा को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा. अब वह चाची से बचने लगा था. अपना रवैया भी रूखा कर लिया था. एक रात रोशन की अचानक नींद खुली तो उस ने देखा रेशमा उस के पास बैठी उस के बालों में अंगुलियां फेर रही है. वह हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ.

रेशमा ने मनुहार करते हुए कहा, ‘‘रोशन, कुछ देर मेरे पास बैठ कर मुझ से बातें करो.’’

इतना कह कर रेशमा ने रोशन का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती अपने पास बैठा लिया और उस से लिपट गई. रोशन छिटक कर उस से अलग होते हुए गुस्से में बोला, ‘‘आप मेरी चाची हैं. अदब करना मेरा फर्ज है. आप को रिश्तों की मर्यादा का खयाल रखना चाहिए.’’

रेशमा चिढ़ कर बोली, ‘‘अदब करना अपनी मां का, मेरा नहीं.’’

रोशन की आंखों में आंसू आ गए. रेशमा की बात से एक तो मां की याद आ गई थी, दूसरे उसे अपनी मजबूरी और बेबसी का अहसास हो उठा था. उस ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘चाची, मैं कल ही यहां से चला जाऊंगा.’’

रेशमा नागिन की तरह फुफकारी, ‘‘अभी तुम घर जाने के बारे में सोचना भी मत. अगर तुम चले गए तो मैं तुम्हारी शिकायत फरीद से करूंगी. उस के बाद क्या होगा, तुम्हें पता ही है.’’

अगले दिन सुबह ही रोशन ने रेशमा को अपना फैसला सुना दिया कि वह घर जा रहा है. इस के बाद तो रेशमा जैसे गम के समुद्र में डूब गई. उस ने तड़प कर कहा, ‘‘तुम ऐसे कैसे जा सकते हो? अपने चाचा को तो आ जाने दो.’’

‘‘मैं चाचा को खत लिख दूंगा.’’ दुखी मन से रोशन ने कहा.

रेशमा का दिल धक से रह गया. जब से फरीद गया था, उस ने भूल कर भी उस का नाम नहीं लिया था. आज रोशन के मुंह से उस का नाम सुन कर उस का दिल खौफ से भर उठा था. उस ने जल्दी से पूछा, ‘‘उस खत में क्या लिखोगे?’’

‘‘खैरियत लिख कर अपनी नौकरी के बारे में पूछूंगा.’’

इस के बाद रेशमा को सलाम कर के रोशन घर से निकल गया. घर से बाहर आ कर उसे लगा, जैसे वह जेल से रिहा हुआ हो.

रोशन की जुदाई रेशमा के दिल पर जख्म सी लगी. अब किसी काम में उस का मन नहीं लगता था. घर काटने को दौड़ने लगा था. दिन बेचैनी और बेकरारी से कट रहे थे. उस के जाने के बाद से शमा भी चुपचुप सी रहने लगी थी. अब सभी रात को जल्दी सो जाते थे. रेशमा उस की चारपाई पर लेट कर तड़पती रहती थी.

आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य – भाग 2

अजरू मौके की तलाश में था. उसे एक दिन यह मौका मिल गया. जोया ने उस दिन उस से एक होटल में कमरा बुक करने के लिए कहा था. कई दिनों से अजरू महसूस कर रहा था कि जोया उसे संपूर्ण रूप से पा लेने के लिए आतुर है. वह जब भी उस से मिलती थी, उस से कस कर लिपट जाती थी. अपने जिस्म का सारा बोझ वह उस के ऊपर डाल देती थी.

जोया को अपनी सच्चाई बताने का पक्का मन बना कर उस ने अलीगढ़ में एक होटल में कमरा बुक कर लिया. जोया को उस ने कमरा बुक होने की बात बताई तो वह बहुत खुश हो गई. वह शाम को ही धोलाना से अलीगढ़ पहुंच गई.

अजरू होटल के बाहर उस का इंतजार कर रहा था. वह जोया को ले कर होटल के बुक किए कमरे में आ गया. कमरे में आते ही जोया ने उस के गले में अपनी नाजुक बांहों का हार पहना दिया. वह अपनी नाक अजरू की नाक से रगड़ती हुई चहक पड़ी, ”मैं ने तुम्हें अपना सरताज मान लिया है अजरू. मेरे इस पाक जिस्म को तुम्हें छू लेने का मैं पूरा अधिकार दे रही हूं. आज तुम मुझे कली से फूल बना दो.’’

”तुम्हें संपूर्ण पा लेने की लालसा मेरे दिल में भी है जोया, लेकिन…’’

”लेकिन क्या…?’’ जोया उसे आश्चर्य से देखती हुई खोली.

”मैं तुम्हें अपनी एक सच्चाई बता देना चाहता हूं जोया, ताकि अपना पाक जिस्म मुझे सौंपने से पहले तुम ‘हां’ या ‘न’ कहने का फैसला ले सको.’’

”ऐसी क्या बात है अजरू?’’ जोया अलग हो कर उसे हैरानी से देखने लगी.

अजरुद्दीन गंभीर हो गया. उस ने जोया की ओर देखा, वह उसे ही एकटक देख रही थी. अजरू ने मन को पक्का कर लिया और धीरे से बोला, ”मैं पहले से शादीशुदा हूं जोया, मेरे 5 बच्चे भी हैं.’’

जोया उर्फ शहजादी कुछ पलों तक अजरू को ठगी सी खड़ी देखती रही फिर मुसकरा कर बोली, ”तुम शादीशुदा हो, इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. मैं तुम्हारी बेगम बन कर एक कोने में पड़ी रहूंगी’ मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए और कुछ नहीं.’’

”सोच लो जोया, प्यार के जोश में उठाया गया यह कदम तुम्हारे लिए आगे चल कर परेशानी का सबब न बन जाए? बाद में तुम पछताओ कि तुम ने नादानी में फैसला ले कर अपना सब कुछ खो दिया.’’

”अजरू, मैं ने तुम्हें दिल की गहराइयों से प्यार किया है. तुम यदि यह बात छिपा कर मुझे पाने की चेष्टा करते तो मुझे बहुत दुख पहुंचता, तुम ने एक अच्छे आदमी होने की मिसाल कायम की है.’’

”मैं तुम्हारे लिए अच्छा हूं जोया, लेकिन मैं अपनी पत्नी जीनत को धोखा दे कर उस के साथ नाइंसाफी कर रहा हूं, जानती हो क्यों?’’

”क्यों?’’

”क्योंकि तुम दुनिया की बेहद हसीन चीज हो, तुम मेरे दिल में बस गई हो. मैं अब तुम्हारे बगैर जिंदा नहीं रह पाऊंगा.’’

”ओह! मेरे अच्छे अजरू.’’ जोया ने लरजते स्वर में कहा और अजरू से लिपट गई.

अजरू ने उस के नाजुक जिस्म को अपनी बाहों में समेट लिया और झुक कर अपने तपते होंठ जोया के पतले पतले अधरों पर टिका दिए. कुछ पलों बाद उस कमरे में 2 जिस्मों की महकती सांसों और फुसफुसाते शब्दों से भर गए.

अजरू ने क्यों बेचीं बापदादा की जमीनें

जोया उर्फ शहजादी को संपूर्ण रूप से पा लेने के बाद अजरू प्रेमिका का दीवाना हो गया. जोया पर अब वह दिल खोल कर रुपया खर्च करने लगा. वह उस के लिए महंगे महंगे गिफ्ट देने लगा. जोया को उस ने ऊपर से नीचे तक गहनों से लाद दिया. उन की लव स्टोरी गहराती चली गई.

जोया ने अजरू के इस दीवानगी की कद्र की, वह अपने मादक जिस्म की तपिश से अजरू को गरमाने में जरा भी संकोच नहीं करती थी. जोया की जवानी में अजरू पूरी तरह डूब गया था. अब उसे ख्वाबों में भी जोया ही चाहिए थी.

इस पागलपन का परिणाम यह हुआ कि अजरू अपने बापदादा की जमीनें बेचने लगा. जमीन से मिले रुपयों को वह जोया पर खर्च कर देता. जोया अजरू के इन कीमती तोहफों को पा कर आसमान में उडऩे लगी थी.

जोया का बाप और भाई जोया के बहकते कदमों से अंजान नहीं थे. वह सब देख और समझ रहे थे, लेकिन खामोश थे, क्योंकि जोया के द्वारा घर में हर कीमती सामान आ रहा था. वह लोग अजरू से ही जोया का निकाह कर देना चाहते थे.

अजरू उन के घर आता तो वह उस का गर्मजोशी से आदरसत्कार करते थे. एक प्रकार से जोया का पूरा परिवार अजरू को जोया का भावी शौहर मानने लगे थे.

इधर अजरू की बीवी जीनत बेगम अपने शौहर के बदलते रंग से परेशान थी, वह देख रही थी उस का शौहर बापदादा की जमीनें बेच रहा है, लेकिन वह रुपया घर में खर्च नहीं कर रहा है, कहीं और खर्च कर रहा है. जीनत का अनुमान था अजरू ने कोई बड़ा बिजनैस शुरू कर दिया है.

एक दिन अजरू का जानकार दोस्त उस से मिलने उस के घर आया. अजरू घर पर नहीं था. उस दोस्त ने जीनत का हाल पूछा, ”कैसी हो भाभी?’’

”अच्छी हूं.’’ जीनत ने औपचारिकतावश कहा, ”तुम्हारे भाईजान तो घर पर नहीं हैं.’’

”आजकल अजरू मिलता ही नहीं है.’’ अजरू का दोस्त परेशान हो कर बोला, ”पहले अजरू मेरे से रोज मुलाकात कर लेता था.’’

”उन्होंने कोई बिजनैस शुरू कर दिया है, इसीलिए तुम से नहीं मिल पाते हैं.’’

वह दोस्त मुसकरा दिया, ”कैसा बिजनैस भाभी, वह तो जोया के प्यार में पागल हुआ पड़ा है.’’

यह सुन कर जीनत का दिल धड़क उठा, ”यह जोया कौन है भाईजान?’’

”जोया धौलाना (हापुड़) में रहती है, भाईजान उस के इश्क में पड़ गए हैं. क्या आप यह नहीं जानतीं.’’

”नहीं, मैं उन का घर और बच्चों की देखभाल में उलझी रहती हूं. मुझे क्या खबर कि वह बाहर क्या कर रहे हैं.’’

”आप नादान और भोली हैं, घर में ही रहेंगी तो अजरू आप के हाथ से निकल जाएगा. उस के पैरों में रस्सी बांध कर रखना जरूरी है. मैं अजरू का गहरा दोस्त हूं, उस का अच्छा बुरा सोचना मेरा फर्ज है. मैं ने आप को आगाह कर दिया है. आप यह बात अजरू से मत कहना, नहीं तो हमारी दोस्ती में दरार पड़ जाएगी…’’

”आप का नाम मैं नहीं लूंगी भाईजान. आप ने मुझे उन की प्रेम कहानी की सच्चाई बता कर बहुत बड़ा एहसान किया है.’’ जीनत ने गंभीर स्वर में कहा, ”मैं आज ही उन की खबर लूंगी.’’

अजरू का दोस्त चला गया. जीनत को अपने शौहर की करतूत का पता चल चुका था. बापदादा की जमीनें बेच कर अजरू जोया के ऊपर खर्च कर रहा है, यह बात उसे परेशान और चिंता में डाल देने वाली थी.

अय्याशी में डबल मर्डर : होटल मालिक और गर्लफ्रेंड की हत्या – भाग 2

पुलिस कैसे पहुंची हत्यारों तक

सरिता ठाकुर इंदौर में ही एक ब्यूटीपार्लर चलाती थी. सरिता ठाकुर का ब्यूटीपार्लर भी ठीकठाक चलता था. ब्यूटीपार्लर चलाने के दौरान उस के पास हर तरह की महिलाएं आती थीं. यही कारण था कि सरिता ठाकुर अधिकांश महिलाओं की कुंडली भलीभांति जानती थी.

सरिता ठाकुर और रवि ठाकुर के बीच काफी समय से प्रेम प्रसंग चला आ रहा था. उसी के चलते सरिता रवि ठाकुर के पैसे से मालामाल हो गई थी. यही कारण था कि सरिता ठाकुर हर वक्त रवि ठाकुर के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती थी.

रवि ठाकुर काफी पैसे वाला था. अपना पैसा वह ब्याज पर भी देने का काम करता था. इस सब में सरिता ठाकुर की ही भागीदारी होती थी. वही उस के लिए ऐसे ग्राहक ढूंढ कर लाती थी, जिन्हें पैसों की जरूरत होती थी.

सरिता ठाकुर के पास हर रोज ऐसी कई महिलाएं आती थीं, जिन्हें पैसों की सख्त जरूरत होती थी. उस के बाद सरिता उन को रवि ठाकुर के पास ले जा कर उस से मिलवाती और फिर उसे उस की जरूरत के हिसाब से उसे पैसा दिलवाती थी. उस पैसे की वापसी की जिम्मेदारी भी सरिता ठाकुर की ही होती थी.

अगर कोई महिला उस का पैसा नहीं लौटा पाती तो वह उसे अपने होटल पर बुलाता और फिर उस की मजबूरी का फायदा उठा कर उस के साथ अवैध संबंध बना लेता था. वह इसी धंधे के सहारे अपनी मनमाफिक महिलाओं के साथ अवैध संबंध बना कर अपनी हवस को मिटाने लगा था.

धीरेधीरे रवि ठाकुर और सरिता ठाकुर के बीच बने संबंध इतने मजबूत हो गए थे कि वह अपने घर भी बहुत ही कम जाता था. उस का सरिता के पास ही ज्यादातर आनाजाना था. सरिता ने अशोक नगर में एक 3 मंजिला मकान में ऊपर का फ्लोर ले रखा था. वह अधिकांश रातें उसी के पास गुजारता था.

सरिता ठाकुर रवि के पास क्यों लाती थी नईनई महिलाएं

ममता देवी भी सरिता ठाकुर की जानपहचान की थी. उस की जानपहचान भी उसी के ब्यूटीपार्लर में हुई थी. सरिता ठाकुर का व्यवहार ममता को बहुत ही अच्छा लगा था. यही कारण था कि कुछ ही दिनों में दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई.

उसी दौरान ममता को किसी काम के लिए कुछ पैसों की जरूरत आ पड़ी. उस के लिए उस ने सरिता से जिक्र किया तो सरिता ने कहा, ”बहन, तुम्हें मेरे होते परेशान होने की जरूरत नहीं. तुम्हें जितने पैसे चाहिए, मैं उस की व्यवस्था करा दूंगी.’’

उस के बाद वह एक दिन टाइम निकाल कर उसे साथ ले कर रवि ठाकुर के होटल पहुंची. ममता देखने भालने में सुंदर थी. उस को देखते ही रवि ठाकुर उस की खूबसूरती पर मर मिटा.

सरिता ने रवि ठाकुर से ममता का परिचय कराया. उस के बाद सरिता के कहने पर उस ने उसे कुछ रुपए उधार दे दिए. ममता को पैसे देते वक्त रवि ठाकुर ने उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था.

ममता के मोबाइल लेने के बाद रवि ठाकुर उसे टाइम बेटाइम फोन करता रहता था. जिस के कारण ममता भी खुश थी कि कई होटलों का मालिक होते हुए भी रवि उसे फोन कर उस की खैर खबर लेता रहता है, जिस के कारण ममता भी उस पर बहुत विश्वास करने लगी थी.

उसी विश्वास के चलते एक दिन रवि ठाकुर ने ममता को अपने होटल में बुलाया और उस के साथ शारीरिक संबंध स्थापित कर लिए. उस समय तो ममता ने उस का विरोध नहीं किया, लेकिन इस के बाद में रवि ठाकुर आए दिन उस को होटल में बुलाने लगा था, जो बाद में ममता को खलने लगा. वह उस के पास जाने से आनाकानी करती तो वह उस से अपने रुपए वापस करने की धौंस देने लगा था.

रवि ठाकुर अय्याशी केवल ममता के साथ ही नहीं करता था. बल्कि उस ने इसी तरह से कई महिलाओं को अपने जाल में फंसा रखा था. उन महिलाओं की मजबूरी ही ऐसी थी कि वह न तो रुपए ही लौटा सकती थीं और न ही उस के पास जाने से मना कर सकती थीं.

ममता को यह भी पता चल गया था कि इस सब में सरिता ठाकुर की मिलीजुली साजिश थी. वो ही औरतों को फंसाती और फिर रवि ठाकुर के सामने परोस देती थी. उसे इस दलदल से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.

एक दिन रवि ठाकुर ने ममता को फोन मिलाया तो वह उस वक्त टायलेट में गई हुई थी. रवि ठाकुर ने कई बार उसे फोन मिलाया, लेकिन वह उसे उठा नहीं पाई. उसी वक्त उस का पति नितिन बाहर से घर आ गया. ममता का फोन बारबार बजने के कारण नितिन ने ही उसे रिसीव किया. नितिन के रिसीव करते ही रवि ठाकुर ने फोन काट दिया.

उस के बाद नितिन ने अपनी ओर से उसे फोन लगाया तो उस ने रिसीव नहीं किया, जिस से नितिन को कुछ शक हो गया. तब तक ममता भी टायलेट से बाहर आ गई थी. नितिन ने उस के आते ही बताया कि रवि ठाकुर का फोन था.

रवि ने ममता के पास क्यों भेजी अश्लील वीडियो

तब ममता ने बात टालने के लिए कह दिया कि वह अपने पैसे वापस मांग रहा है. तब नितिन ने ममता से कहा कि उस से कह देना कि उस के पैसे वापस करने में कुछ और वक्त लगेगा. उस के बाद नितिन कुछ काम से घर से निकल गया.

तब ममता ने रवि ठाकुर को फोन किया तो उस ने रिसीव करते हुए कहा कि आज शाम वक्त निकाल कर कुछ समय के लिए होटल आ जाना. ममता ने आने से मना किया तो थोड़ी देर बाद ही रवि ठाकुर ने उस के मोबाइल पर एक वीडियो सेंट कर दी. ममता ने उसे देखा तो उस के होश ही उड़ गए.

यह वीडियो उसी के साथ बनाए गए संबंधों की थी. उस के थोड़ी देर बाद ही रवि ठाकुर का फोन आ गया, ”ममता रानी, हमारी वीडियो आप को कैसी लगी? अगर आप को सही लगी तो यह आप के पति के नंबर पर भी भेज दूं. शायद उसे भी पसंद आ जाए.’’

यह बात सुनते ही ममता को दिन में तारे नजर आ गए. उस ने सोचा कि यह वीडियो उस के पति ने देख ली तो वह तो उस की जान ही ले लेगा.

उस दिन उसे पहली बार लगा कि वह बुरी तरह से फंस चुकी है. उस ने इस बात की शिकायत सरिता से की तो सरिता ने भी उसे उलटा जबाव दिया, ”अगर तुम्हें यह सब बुरा लग रहा है तो रवि बाबू के पैसे लौटा दो.’’

सरिता की यह बात ममता को बहुत ही बुरी लगी. फिर वह सरिता से भी नफरत करने लगी थी, लेकिन उसे उस दलदल से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.

बेगुनाह कातिल : प्यार के जुनून में बेमौत मारी गयी रेशमा – भाग 4

फरीद के आने में एक दिन रह गया तो रेशमा को अजीब सी घबराहट होने लगी. फिर वही बेरंग जिंदगी हो गई थी. यही सोचतेसोचते वह सो गई. अचानक किसी आहट से उस की नींद खुली तो उसे एक परछाई दिखाई दी. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘कौन…?’’

आने वाले ने चेहरे पर बंधा कपड़ा खोला तो वह एकदम से खिल उठी, ‘‘अरे रोशन तुम, मेरा दिल कह रहा था कि तुम जरूर लौट कर आओगे. आखिर तुम्हारा दिल मेरे बिना नहीं लगा न?’’

रोशन ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘चाची, तुम्हें औरत कहना औरत की तौहीन है. तुम रिश्ते के नाम पर कलंक हो. मैं तुम्हें मां की तरह मानता था, जबकि तुम मेरी बेबसी और मजबूरी का फायदा उठा रही थीं. उम्र और रिश्ते का लिहाज किए बगैर तुम मुझ से इश्क लड़ा रही थी. मैं यहां नौकरी का सपना ले कर आया था, लेकिन तुम ने मुझे बरबाद कर दिया.’’

रेशमा दम साधे उस की बातें सुनती रही. रोशन निडर मर्द की तरह तना खड़ा था. रेशमा गिड़गिड़ाई, ‘‘मैं तुम से प्यार करती हूं रोशन.’’

‘‘लानत है तुम्हारे प्यार पर.’’ कह कर उस ने चादर में छिपा चाकू निकाला और फुर्ती से रेशमा पर हमला कर दिया. चाकू बाईं बाजू के पास सीने में घुस गया. चाकू को उसी तरह छोड़ कर वह हवा के झोंके की तरह दीवार फांद कर भाग गया. रेशमा बेहोश हो गई. उस के शरीर से तेजी से खून बहता रहा.

फरीद के स्वागत में बच्चों ने घर को सजाने का प्रोग्राम बनाया था, इसलिए बच्चों ने स्कूल से छुट्टी ले रखी थी. सुबह जब वे मां को बुलाने छत पर गए तो मां खून में डूबी पड़ी थी. दोनों जोर जोर से रोने चिल्लाने लगे. शोर सुन कर पड़ोसी आ गए. आननफानन में एंबुलैंस से रेशमा को अस्पताल पहुंचाया गया. फरीद घर पहुंचा तो उसे इस दर्दनाक हादसे के बारे में पता चला.

फरीद ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने दिनों बाद घर आने पर इस तरह की बुरी खबर सुनने को मिलेगी. वह दोनों बच्चों को ले कर अस्पताल पहुंचा. संयोग से उसी समय रेशमा को होश आ गया.

डाक्टर से पूछ कर वह रेशमा के पास पहुंचा तो उस के साथ इंस्पेक्टर सफदर खान भी थे. रेशमा का चेहरा पीला पड़ गया था. फरीद ने बेकरारी से पूछा, ‘‘रेशमा यह सब कैसे हुआ, किस ने मारा तुम्हें?’’

इंसपेक्टर सफदर खान ने भी करीब आ कर वही सवाल किया, ‘‘रेशमा बोलो, तुम्हें किस ने मारा?’’

रेशमा कमजोर आवाज में टूटेफूटे शब्दों में बोली, ‘‘व…वह सालार बेग… सालार बेग ने…’’

‘‘यह सालार कौन है रेशमा?’’ फरीद ने जल्दी से पूछा.

‘‘वह सालार, वह शहजादा…’’

बात पूरी किए बगैर ही सासों ने रेशमा का साथ छोड़ दिया.

फरीद ने बेटी से पूछा, ‘‘शमा, रोशन कहां है?’’

‘‘वह तो 3-4 दिन पहले ही अपने घर चले गए थे.’’

रेशमा की मौत से फरीद और बच्चे एकाएक सदमे में आ गए थे. फरीद को बच्चों को संभालना था, इसलिए पत्नी की मौत के दुख को भूल कर वह अन्य काररवाई में लग गया. लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई थी.

जैसे जैसे रोशन शहर से दूर जा रहा था, वैसेवैसे उसे सुकून मिलता जा रहा था. वह घर पहुंचा तो नौकरी न मिलने से मांबाप दुखी तो हुए, लेकिन बेटे को देख कर खुशी भी हुई. उन्होंने कहा, ‘‘नौकरी नहीं मिली, कोई बात नहीं. यहीं कोई धंधा कर लेना.’’

अगले दिन फरीद ने फोन कर के भाई को बताया कि रेशमा की मौत हो गई है. वे सभी लोग शहर पहुंच गए. फरीद और बच्चों को ढांढस बंधाया. पता चला कि किसी सालार शहजादा ने रेशमा की चाकू मार कर हत्या कर दी थी.

रोशन अजीब सी उलझन में था. दो दिन रुक कर सभी लौट गए. फरीद काफी परेशान था. बीवी की हत्या हो जाने से बच्चों को संभालने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर पुलिस बारबार पूछ रही थी कि यह सालार शहजादा कौन है?

फरीद को खुद ही कुछ पता नहीं था, इसलिए वह क्या बताता? नईम मां की मौत के बारे में बाहर से कुछ सुन कर आता तो उस से पूछता. फरीद उस के सवालों का क्या जवाब देता? वह तो बाहर रहता था. बेटे के बारबार पूछने पर वह गुस्सा होता.

रोशन की दिमागी हालत काफी खराब थी. उस का जमीर उसे कचोट रहा था कि उस ने यह क्या कर दिया? बच्चों से उन की मां छीन ली. किसी काम में उस का मन नहीं लगता. खाना पीना भी छूट गया था.

पुलिस और फरीद को सालार नाम के शख्स ने मुश्किल में डाल दिया था. फरीद के रिश्तेदारों में भी कोई सालार नाम का आदमी नहीं था.

इंसपेक्टर सफदर खान ने पूछा, ‘‘आप के घर में कौन कौन रहता था?’’

‘‘मेरी बीवी रेशमा, बेटीबेटा और एक भतीजा रोशन, जो साढ़े 3 महीने पहले ही नौकरी की तलाश में आया था.’’

‘‘आप ने उस से पूछा था, शायद वह सालार को जानता हो?’’

‘‘वह तो रेशमा की हत्या के 3 दिन पहले ही गांव चला गया था.’’

इस के बाद इंसपेक्टर सफदरखान ने नईम और शमा से पूछा, ‘‘तुम्हारे रोशन भाई घर छोड़ कर क्यों चले गए थे?’’

‘‘काफी परेशान होने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिली तो वह गांव लौट गए थे.’’

‘‘तुम्हारी अम्मी से कहासुनी या लड़ाई तो नहीं हुई थी?’’

‘‘नहीं, अम्मी तो उन्हें खूब प्यार करती थीं. उन का खयाल भी हम दोनों से ज्यादा रखती थीं.’’ नईम ने कहा.

इस के बाद शमा बोली, ‘‘रोशन भाई अम्मा का बड़ा अदब करते थे. अम्मी भी उन से बहुत प्यार से पेश आती थीं.’’

सफदर खान ने पूछा, ‘‘रोशन का कोई दोस्त तो तुम्हारे घर नहीं आता था?’’

‘‘नहीं, उन का कोई दोस्त कभी हमारे घर नहीं आया.’’ भाईबहन दोनों ने एक साथ कहा.

‘‘फरीद साहब, मैं रोशन से भी पूछताछ करना चाहता हूं. क्या आप उसे गांव से बुलवा देंगे?’’ इंसपेक्टर सफदर खान ने कहा.

इस में फरीद को क्या परेशानी हो सकती थी. उन्होंने रोशन को बुलवा लिया. इंसपेक्टर सफदर खान ने उस से बड़ी नरमी से पूछा, ‘‘तुम्हारे पास कोई कामधाम तो था नहीं, दिन भर तुम घर में क्या करते रहते थे?’’

‘‘साहब, मैं घर में कहां रहता था, दिन भर नौकरी की तलाश में भटकता रहता था. उस के बाद जो समय बचता था, रहीम चाचा की दुकान पर उन का हिसाब किताब ठीक करता था.’’

‘‘तुम्हारी चाची का तुम्हारे प्रति कैसा व्यवहार था?’’

‘‘साहब, वह बहुत अच्छी थीं. मेरा बहुत खयाल रखती थीं.’’

यह बात उन्हें बच्चे भी बता चुके थे. रहीम से भी रोशन के बारे में पूछा गया. उन्होंने रोशन को बहुत ही नेक ओर मेहनती लड़का बताया. उन का कहना था कि उस मासूम मजबूर बच्चे के बारे में ऐसा सोचना भी गुनाह है.

बेगुनाह कातिल : प्यार के जुनून में बेमौत मारी गयी रेशमा – भाग 1

गहरे रंग की तीखे नयननक्श वाली रेशमा एक छोटे से कस्बे में अपने बाप अल्लारखा और मां ताहिरा के साथ रहती थी. उस का बाप कपड़ों  की सिलाई का काम करता था. उस की आमदनी ठीकठाक थी, इसलिए उस की गुजरबसर आराम से हो रही थी.

रेशमा एकलौती बेटी थी, इसलिए मांबाप उस के खूब नाजनखरे उठा रहे थे. बाप खुद सिलाई का काम करता था, इसलिए वह नएनए फैशन के कपड़े पहनती थी.

उस में वैसे तो कोई खास बात नहीं थी, सिर्फ एक गुण यह था कि उस की आवाज ऐसी सुरीली और मीठी थी कि दिल को छू लेती थी. अल्लारखा के पास एक ट्रांजिस्टर था, जिसे वह दिन भर दुकान पर साथ रखता था और शाम को घर आते समय लेते आता था.

मौका मिलते ही रेशमा उस पर गाने लगा कर साथसाथ गाती. इस से धीरेधीरे उसे गानों के उतारचढ़ाव और सुरताल समझ में आने लगे थे. उसे ढेरों गाने याद भी हो गए थे. कभी स्कूल में कोई समारोह होता तो उसे गाने का मौका भी मिलता, जिस से उसे तारीफ तो मिलती ही, इनाम भी मिलता. मां भी उस की तारीफ और इनाम से खुश होती. रेशमा की सब से प्यारी सहेली थी मैमूना. उस के भाई की सगाई थी, जिस में उस ने रेशमा को भी बुलाया था.

करीबी सहेली ने बुलाया था, इसलिए रेशमा खूब सजधज कर सगाई में गई थी. वहां गाने के प्रोग्राम में जब रेशमा ने गाया तो उस की आवाज का जादू ऐसा चला कि लोग कामधाम छोड़ कर उस का गाना सुनने वहां आ गए.

मैमूना का भाई सालार बेग, जो उस से 2-3 साल बड़ा था, जिस की सगाई हो रही थी, वह तो उस की सुरीली आवाज पर मर ही मिटा. जितनी देर तक रेशमा की रसभरी आवाज वहां गूंजती रही, वह दम साधे सुनता रहा. गाना खत्म हुआ तो उस ने कहा, ‘‘ऐसी आवाज मैं ने पहले कभी नहीं सुनी, क्या गजब गाती है.’’

रेशमा ने जैसे उस का दिल अपने वश में कर लिया था. शमीम, जिस से उस की सगाई हो रही थी, वह उसी की पसंद थी. गोरी, खूबसूरत, सुनहरे बालों वाली समझदार शमीम से अचानक सालार का दिल उचट गया. उस के कानों में रेशमा ने जो रस घोला था, उस से उस का काला रंग भी छिप गया था. उस ने कई बार रेशमा को देखा था, पर उस की काली रंगत ने उसे कभी आकर्षित नहीं किया था.

सालार खुद भी लंबाचौड़ा, गोरा, खूबसूरत जवान था. उस का अच्छाखासा चलने वाला जनरल स्टोर था. शमीम के बाप की अनाज की आढ़त थी. सुखीसंपन्न लोग थे. अच्छा दहेज देने वाले थे. एक साल से सालार और शमीम की शादी की बात चल रही थी. उस के भाई से मैमूना का भी रिश्ता तय हो गया था. लेकिन ऐन सगाई के दिन रेशमा की जादू भरी आवाज ने सालार का दिल लूट लिया था.

सालार की समझ में नहीं आ रहा था कि यह उसे क्या हो गया है. उस का दिल रेशमा की तरफ क्यों खिंचा चला जा रहा है. आखिर यह कैसी बेचैनी और बेबसी है? जबकि वह दिल से ऐसा नहीं चाहता था.

घर के सभी लोग सगाई की तैयारी में लगे थे. उस के दोस्त डांस कर रहे थे. जबकि उस का दिल इस सब से अलग रेशमा की आवाज के जादू में खोया था.

सगाई हो गई. सालार के लिए उस की ससुराल से खूब सामान आया था. खूब मिठाई बंटी और खुशियां मनाई गईं. अगले दिन मैमूना की भी शमीम के भाई अनवर से सगाई हो गई. धीरेधीरे एक महीना बीत गया. इस बीच सालार की बेचैनी कम होने के बजाय बढ़ती गई.

जब उस से नहीं रहा गया तो एक दिन उस ने दिल की बात मैमूना से कही तो वह अवाक रह गई. उस ने हैरानी से कहा, ‘‘भाई, अभी अभी तो आप की मंगनी हुई है और अब आप रेशमा की बात कर रहे हैं. ऐसा कैसे हो सकता है?’’

सालार बेबसी से बोला, ‘‘मैं क्या करूं मैमूना, मुझे एक पल भी चैन नहीं मिल रहा. अगर मुझे रेशमा नहीं मिली तो मैं मर जाऊंगा. तुम मेरी मदद करो.’’

मैमूना परेशान हो गई. उस ने भाई के दिल का हाल मां को बताया. मां ने सालार से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मां, मैं रेशमा से ही शादी करूंगा, क्योंकि अब मैं उस के बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘तू ने उस का रंग देखा है? वह शमीम के पांव की जूती के बराबर भी नहीं है. तू ने शमीम को खुद पसंद कर के सगाई की है. रही बात रेशमा की तो वह हमारी जाति बिरादरी की भी नहीं है. ऐसे में वहां तेरा रिश्ता कैसे हो सकता है?’’ मां ने सालार को डांटा.

‘‘अम्मा, तुम एक बार राखा चाचा से बात करो. मुझे पता है कि वह मेरे लिए मना नहीं करेंगे. मैं किसी भी कीमत पर रेशमा को पाना चाहता हूं.’’ सालार ने बेचैनी से कहा.

‘‘बेटा, तू कैसी बातें कर रहा है. तेरे साथ तेरी बहन की भी सगाई उस घर में हुई है. अगर तू ने सगाई तोड़ दी तो तेरी बहन की भी सगाई टूट जाएगी. तू बहन पर ऐसा जुल्म मत कर. यह भी तो सोच ऐसा करने से बिरादरी में हमारी कितनी बेइज्जती होगी. सब थूथू करेंगे. कोई मैमूना से शादी नहीं करेगा.’’ मां गुस्से में बोली.

‘‘अम्मा, मैं कुछ नहीं जानता. आप राखा चाचा से रेशमा से रिश्ते के लिए बात करो. यह मेरा अंतिम फैसला है.’’ सालार ने कहा.

रेशमा को क्या पता था कि उस की आवाज ने सहेली के घर में कैसा तूफान खड़ा कर दिया है? उस की वजह से सहेली की खुशियां दांव पर लग गई हैं. कई दिनों बाद वह मैमूना के घर गई तो सालार से उस की मुलाकात हो गई. उसे देख कर रेशमा का दिल धड़क उठा कि सालार कितना खूबसूरत है, एकदम सपनों के शहजादे जैसा.

घबरा कर रेश्मा ने नजरें झुका लीं. तभी सालार ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर कहा, ‘‘रेशमा, तुम्हारी आवाज बड़ी सुरीली है. उस में ऐसा जादू है कि मैं उस का दीवाना हो गया हूं. अपनी उस आवाज से तुम ने मेरा चैन और करार लूट लिया है. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं रेशमा, क्योंकि अब मैं तुम्हारे बिना रह नहीं सकता.’’

रेशमा हैरानी से सालार को देखती रह गई. उस ने ख्वाब में भी ऐसे खूबसूरत नवजवान के बारे में नहीं सोचा था. उस ने घबरा कर कहा, ‘‘लेकिन आप की तो शमीम से सगाई हो चुकी है?’’

‘‘लेकिन अब शादी मैं तुम से करूंगा, क्योंकि मुझे तुम से प्यार हो गया है. मैं तुम्हारे लिए यह सगाई तोड़ दूंगा.’’

खुशी और घबराहट में रेशमा तेजी से बाहर की ओर भागी. अब वह हवाओं में उड़ रही थी. उस के कानों में सालार के शब्द गूंज रहे थे, ‘मुझे तुम से प्यार हो गया है.’ इतना स्मार्ट लड़का उस से प्यार करता है और उस का दीवाना है. उस के तो भाग्य ही खुल गए हैं.

आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य – भाग 1

कमरा नंबर 204 बाहर से बंद था. होटल के मैनेजर ने उसे खोल कर देखा तो कमरे के पलंग पर एक  युवती की लाश पड़ी हुई थी. युवती की आंखें फैली हुई थीं और मुंह से झाग निकल रहे थे.

मैनेजर ने तुरंत होटल मालिक को फोन कर के इस लाश की सूचना दी और उस के कहने पर गाजियाबाद के थाना वेव सिटी को लाश के बारे में बता कर होटल अनंत में आने को कह दिया. वहां मौजूद दानिश अपनी 22 वर्षीय बहन जोया की लाश देख कर जोरजोर से रोने लगा था.

थोड़ी देर में होटल अनंत में थाना वेव सिटी के एसएचओ अंकित चौहान और एसीपी सलोनी अग्रवाल पहुंच गईं. अंकित चौहान ने थाने से चलते समय एसीपी को लाश की सूचना दे दी थी. एसीपी सलोनी अग्रवाल और एसएचओ ने लाश का निरीक्षण किया. दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि युवती को जहर दिया गया है तथा उस का मुंह दबा कर उसे मारा गया है.

गोरी, छरहरी, लंबी कदकाठी वाली जोया उर्फ शहजादी बेशक किसी राजा की राजकुमारी नहीं थी, लेकिन रहनसहन और अपनी खूबसूरत छवि की वजह से वह किसी राजकुमारी से कम नहीं लगती थी.

शहजादी को घर और बाहर जोया भी कहते थे, इसलिए शहजादी भी अपना यही नाम सब को बताती थी. इस शहजादी को पाने की ललक हर युवा दिल में थी, लेकिन शहजादी के दिल में कोई और बसा हुआ था. शहजादी जिसे दिलोजान से प्यार करती थी, उस का नाम अजरुद्दीन उर्फ अजरू था.

अजरुद्दीन शादीशुदा और 5 बच्चों का बाप था. उस की पत्नी जीनत बेगम थी, जो बेहद खूबसूरत थी. करीब 4 साल पहले अलीगढ़ की एक ज्वैलरी शाप में वह अपनी पत्नी जीनत के लिए सोने की अंगूठी खरीद रहा था, वहीं पर उस ने पहली बार जोया को देखा था. उस की खूबसूरती देख कर वह ठगा सा रह गया था.

कोई उसे देख कर अपने होश भी खो सकता है, यह जान कर जोया अचंभित रह गई थी. वह खुद को संभाल कर अजरुद्दीन के पास आ कर बैठ गई मुसकराते हुए बोली थी, ”होश में आइए जनाब, मैं इंसानी बुत हूं, कोई आसमान से उतरी हुई अप्सरा नहीं हूं.’’

”तुम अप्सराओं से भी बढ़ कर हो,’’ अजरू के मुंह से बरबस ही निकल गया. वह अपनी पूर्व स्थिति में लौट आया था.

”मेरे हुस्न की तारीफ के लिए शुक्रिया.’’ जोया मुसकरा कर बोली, ”क्या मैं आप का नाम जान सकती हूंï?’’

”मेरा नाम अजरुद्दीन है. प्यार से लोग मुझे अजरू कहते हैं. गाजियाबाद से थोड़ी दूरी पर कल्लूगढ़ी गांव है, वहीं रहता हूं.’’

”मैं धोलाना (हापुड़) की बसरा कालोनी में रहती हूं.’’ जोया ने हंस कर कहा, ”एक प्रकार से हम और आप पड़ोसी हुए.’’

”धोलाना मेरा आनाजाना रहता है. यहां क्या खरीदने आई हैं आप?’’

”मेरी हाथ की अंगुली सूनी है, एक रिंग थी वह पता नहीं नहाते वक्त कहां निकल कर गटर में चली गई…’’

”बदनसीब रही वह रिंग.’’ अजरू ने दर्शन बघारा, ”इस खूबसूरत अंगुली का साथ पाने को तो अंगूठियां तरसती होंगी.’’

अजरू जौहरी की तरफ घूमा. वह किसी अन्य कस्टमर को अटेंड कर रहा था.

अजरुद्दीन ने जोया की तरफ इशारा कर के कहा, ”सेठजी, आप इन के लिए बेहतरीन अंगूठी दिखाइए.’’ उस ने बेझिझक जोया की कलाई पकड़ कर जौहरी के सामने कर दी.

जोया उस की जिंदादिली पर अवाक रह गई. वह कुछ कहती, उस से पहले ही जौहरी ने खूबसूरत अंगूठियों का बौक्स उस के सामने रख कर कहा, ”आप पसंद कर लीजिए, एक से बढ़ कर एक डिजाइन हैं.’’

जोया ने नगीने की अंगूठी पसंद की और जौहरी से पूछा, ”कितनी कीमत  है इस अंगूठी की?’’

”15 हजार की है.’’ जौहरी ने अंगूठी का वजन करने के लिए कहा तो जोया अपना पर्स खोलने लगी.

”आप रहने दीजिए, इस की कीमत मैं अदा कर रहा हूं.’’ अजरू तुरंत बोला और उस ने अपनी जेब से 15 हजार रुपए निकाल कर तुरंत जौहरी को दे दिए.

जोया हैरान परेशान हो गई. एक अजनबी जिस से कुछ पलों पहले मुलाकात हुई थी, उस की पसंद वाली अंगूठी की कीमत चुका रहा है, वह भी 10-5 रुपए नहीं, पूरे 15 हजार. कुछ क्षण तो जोया की जुबान तालू से चिपक गई, फिर वह बोली, ”अजरू, यह अंगूठी मैं ने खरीदी है, फिर आप इस की कीमत क्यों अदा कर रहे हैं?’’

”यह मेरी तरफ से आप को गिफ्ट है.’’ अजरू मुसकरा कर बोला, ”वैसे आप ने अपना नाम नहीं बताया अभी तक?’’

”मेरा नाम जोया उर्फ शहजादी है.’’ जोया ने प्यार भरी नजरों से अजरू को देखते हुए अपने लब खोले, ”यदि आप मुझे यह गिफ्ट दे रहे हैं तो अपने हाथ से इसे मेरी अंगुली में पहना भी दीजिए.’’

अजरू ने जोया की कलाई पकड़ कर उस की अंगुली में अंगूठी पहना दी. जोया ने वह अंगुली चूम ली और भावुक स्वर में बोली, ”अजरू, आज से आप मेरे बहुत करीब आ गए हैं. मैं आप के इस अनमोल गिफ्ट को जीवन भर संभाल कर रखूंगी.’’

अजरू मुसकरा दिया. इस के बाद दोनों दुकान से बाहर आ कर अपनेअपने रास्ते चले गए. मगर जाने से पहले उन्होंने एकदूसरे को अपना मोबाइल नंबर दे दिया था.

अजरू क्यों बताना चाहता था शादीशुदा होने की बात

जोया उर्फ शहजादी और अजरू के बीच पहले मोबाइल पर प्यारभरी बातों का सिलसिला शुरू हुआ, फिर वह पिकनिक स्पौट, रेस्तरां और पार्कों में मुलाकातें करने लगे. उन दोनों के बीच प्यार गहराने लगा.

अजरू ने अभी तक जोया को अपने शादीशुदा होने की बात नहीं बताई थी. वह जोया को अपनी शादी की बात बता देना चाहता था, क्योंकि जोया उसे बहुत गहराई से चाहने लगी थी. उसे ले कर वह शादी के सपने देखने लगी थी. अजरू उस से सच्चाई छिपा कर उसे इस मोड़ तक नहीं ले जाना चाहता था, जहां पहुंचने के बाद जोया को वापस लौटने में तकलीफ हो.

अय्याशी में डबल मर्डर : होटल मालिक और गर्लफ्रेंड की हत्या – भाग 1

जैसे ही इशिका ने घर का दरवाजा खोला, सामने कमरे में उस की मम्मी सरिता और उस के अंकल रवि ठाकुर के शव पड़े हुए थे. यह देखते ही उस की चीख निकल गई. फर्श पूरी तरह से खून से लाल हुआ पड़ा था. सरिता और रवि ठाकुर दोनों के शरीर पूरी तरह से नग्न थे.

घर का दृश्य देखते ही उस ने इस की सूचना सब से पहले पुलिस को दी. यह घटना मध्य प्रदेश के इंदौर के एरोड्रम थाना क्षेत्र में स्थित अशोक नगर में हुई थी. यहीं पर सरिता तीसरी मंजिल पर किराए के मकान में रहती थी. डबल मर्डर की सूचना पाते ही एरोड्रम थाने के एसएचओ राजेश साहू तुरंत ही पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

ममता अपने घर के काम में बिजी थी. उसी वक्त उस के मोबाइल पर किसी की काल आई. जैसे ही ममता ने अपने मोबाइल पर नजर डाली, रवि ठाकुर का फोन था. रवि बाबू का फोन देखते ही उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. वह समझ नहीं पा रही थी कि वह उस की काल रिसीव करे या काट दे.

ममता का पति नितिन उस समय घर पर ही था. उस वक्त तो उस ने रवि की काल रिसीव नहीं की, लेकिन जैसे ही उस का पति घर से काम के लिए निकला, ममता ने रवि बाबू को काल बैक कर दी.

ममता की काल रिसीव करते ही रवि ठाकुर बोला, ”और ममता रानी, कैसी हो? क्या बात है, आजकल तो तुम हमारा फोन भी रिसीव नहीं कर रही हो?’’

”ठाकुर साहब, ऐसी कोई बात नहीं. दरअसल, उस वक्त मेरे पति घर पर ही थे, जिस वजह से मैं फोन रिसीव नहीं कर सकी. बोलिए ठाकुर साहब, कैसे फोन किया?’’ ममता ने पूछा.

तभी रवि ठाकुर ने कहा, ”ममता रानी, आज शाम को टाइम निकाल कर होटल चली आना. तुम्हारी दावत है.’’

”नहीं…नहीं…ठाकुर साहब, आज मैं आप के पास नहीं आ सकती. आज मुझे घर पर जरूरी काम है.’’

”ममता रानी, जरूरी काम तो हर रोज होते ही रहते हैं. हमारा भी आज जरूरी काम है. अगर आज तुम नहीं आई तो हमारा जरूरी काम कैसे होगा. आज तो तुम्हें आना ही पड़ेगा.’’ रवि अपनी जिद पर अड़ गया तो ममता के चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आए थे.

फिर भी उस ने मरे मन से कहा, ”ठीक है, मैं आने की कोशिश करूंगी. लेकिन मैं आप के होटल नहीं आ पाऊंगी. अगर हम दोनों सरिता दीदी के घर पर मिलें तो ज्यादा अच्छा रहेगा.’’

रवि ठाकुर को सरिता के घर जाने में भी कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि सरिता के साथ भी ममता की तरह उस के गहरे संबंध थे. ममता का आज कहीं भी जाने का मन तो नहीं था. लेकिन रवि ठाकुर को मना करने की उस की हिम्मत नहीं थी.

सरिता मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के अशोक नगर में अपनी बेटी इशिका और पति ऋषि के साथ रहती थी. दोपहर के कोई 11 बजे सरिता की बेटी इशिका कोचिंग जाने के लिए घर से निकली थी. पति भी किसी काम से घर से चला गया था. बेटी के घर से निकलते ही सरिता ने कहा था कि बेटी ठंड का मौसम है, टाइम से घर आ जाना.

इशिका को घर से निकले मुश्किल से एक घंटा भी नहीं हुआ था. तभी उस की मम्मी का उस के फोन पर मैसेज आ गया. उस ने जैसे ही मैसेज को पढ़ा तो वह हक्की बक्की रह गई. मैसेज में लिखा था, ‘बेटी कुछ लोग मुझे मारने की कोशिश कर रहे हैं. तू जल्दी से घर वापस आ जा.’

नग्न अवस्था में मिले रवि और ममता के शव

मैसेज पढ़ते ही इशिका बुरी तरह से घबरा गई. उस के बाद वह कामधाम छोड़ कर तुरंत ही घर पहुंची. घर पर अपनी मम्मी और अंकल की खून सनी लाशें देख कर वह घबरा गई. वह जोरजोर से चीखने लगी. कुछ देर बाद इशिका ने थाना एरोड्रम में फोन कर के इस मामले की सूचना दे दी.

घटनास्थल पर पहुंचते ही एसएचओ राजेश साहू ने कमरे की जांचपड़ताल की. सरिता और रवि ठाकुर के शव नग्न अवस्था में खून से लथपथ पड़े हुए थे. वहीं पर एक पुरानी तलवार भी पड़ी हुई थी.

पुलिस ने अपनी जांचपड़ताल की तो घर के दरवाजे पर भी जबरन प्रवेश के निशान पाए गए, जिस से पता चला कि हत्यारों की संख्या एक से अधिक थी. घर का दृश्य देख कर लगता था कि हत्यारों ने खून और सबूत को साफ करने की कोशिश भी की थी.

इस डबल मर्डर की सूचना पाते ही एडिशनल डीसीपी (जोन 1) आलोक शर्मा, एसीपी विवेक चौहान के साथ ही एफएसएल विशेशज्ञ भी मौके पर पहुंचे. विशेषज्ञों ने घटनास्थल से कुछ सबूत इकट्ठा किए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल पर पहुंचते ही मृतका की बेटी इशिका से जानकारी ली. मृतका सरिता की बेटी इशिका ने पुलिस को जानकारी देते हुए बताया कि रवि बाबू का सरवटे बसस्टैंड इलाके में होटल है. उस की मम्मी सरिता एक ब्यूटीपार्लर चलाती थीं. दोनों में अच्छी जान पहचान और घरेलू संबंध थे, जिस के कारण दोनों ही रवि बाबू अकसर उन के घर पर आतेजाते रहते थे. रवि बाबू के 3 बच्चे थे.

इस जघन्य अपराध की तह तक पहुंचने के लिए एडिशनल डीसीपी आलोक शर्मा ने साइबर टीम के साथसाथ एक पुलिस टीम का भी गठन किया.

इस टीम में एसआई लक्ष्मण सिंह गौड़, रविराज सिंह बैस, हैडकांस्टेबल अरविंद तोमर, पवन पांडेय, कमलेश चावला, विलियम सिंह, जितेंद्र सांखला, विजय वर्मा, माखन चौधरी, कांस्टेबल संजय दांगी, विशाल दभाडे, महिला कांस्टेबल रितिका शर्मा आदि को शामिल किया गया था.

टीम का गठन होने के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए इस क्षेत्र में लगे लगभग 50 सीसीटीवी कैमरे खंगाले, साथ ही लगभग 100 से ज्यादा संदिग्धों से पूछताछ भी की.

कैमरों की जांच करने के बाद पुलिस को जानकारी मिली. इस दौरान मृतक रवि ठाकुर के अलावा 2 व्यक्ति (एक महिला और एक पुरुष) भी आए थे.

यह सब जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने रवि ठाकुर और सरिता ठाकुर के मोबाइलों की खोज की तो दोनों के मोबाइल ही गायब मिले.

पुलिस कैसे पहुंची हत्यारों तक

उस के बाद पुलिस ने दोनों के मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा कर उन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि इस हत्याकांड से कुछ देर पहले ही सरिता ने अपनी सहेली ममता के फोन पर बात की थी. उसी काल डिटेल्स के द्वारा पता चला कि रवि ठाकुर सरिता के साथसाथ ममता से भी बात करता था.

पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के आधार पर ममता की शिनाख्त की तो पुलिस का शक उसी पर पक्का हो गया.

उसी शक के आधार पर पुलिस ने ममता के घर पर दबिश दी तो वह घर से गायब मिली. उस के बाद पुलिस ने उस के मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की तो उस का मोबाइल भी बंद मिला. उस के मोबाइल को ट्रेस करते हुए पुलिस ने देर रात देवनगर (खजराना) से ममता उर्फ पिंकी और उस के पति नितिन को गिरफ्तार कर लिया था.

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दोनों पतिपत्नी को अपनी हिरासत में लेते ही पुलिस ने उन से इस हत्याकांड के संबंध में पूछताछ की तो दोनों ने जल्दी ही अपना अपराध स्वीकार कर लिया. ममता ने पुलिस को बताया कि काफी समय से रवि ठाकुर उस के साथ ब्लैकमेलिंग का खेल खेल रहा था.

पुलिस ने रवि ठाकुर के मोबाइल की गैलरी सर्च की तो उस में कई महिलाओं के अश्लील वीडियो मिले, जो सभी उसी के होटल में बनाए गए थे.

पुलिस को रवि ठाकुर के होटल में कई गुप्त कैमरे भी मिले, जिन के सहारे से ही वह महिलाओं के साथ अश्लील हरकतें करते हुए उन की अश्लील वीडियो बना कर उन के साथ अवैध संबंध बनाता था. पुलिस द्वारा पूछताछ के बाद इस हत्याकांड की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी.

मध्य प्रदेश के जिला इंदौर के नंदानगर निवासी रवि ठाकुर ने सरवटे बस स्टैंड के पास स्थित 3 होटल मां वैष्णो पैलेस, हनी और होटल सागर ठेके पर ले रखे थे. इन होटलों से रवि ठाकुर को अच्छी कमाई होती थी. सरिता ठाकुर से रवि ठाकुर की पुरानी जानपहचान थी.

बेगुनाह कातिल : प्यार के जुनून में बेमौत मारी गयी रेशमा – भाग 2

शाम को मैमूना उस के घर मिलने आई तो कंधे पर सिर रख कर सिसक पड़ी. रेशमा के पूछने पर बोली, ‘‘मेरे घर में जो तूफान मचा है, मैं बता नहीं सकती. सालार भाई तेरी आवाज के दीवाने हो गए हैं. वह तुझ से शादी करना चाहते हैं. अगर उन्होंने शमीम से सगाई तोड़ दी तो मेरी भी जिंदगी बरबाद हो जाएगी. अम्मा ने उन्हें बहुत समझाया, पर वह मान नहीं रहे हैं. अगर अब्बा को इस बात का पता चला तो घर में कयामत आ जाएगी. वह इस के लिए कभी नहीं मानेंगे.’’

सहेली की हालत पर उसे दया तो आई, लेकिन स्वार्थवश वह सहेली के बारे में सोच नहीं सकी. उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘मैमूना इस में मेरा क्या दोष है? अगर तेरा भाई मुझे चाहता है तो तुम उसे समझाओ. इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’

सहेली के इस रवैये से दुखी मैमूना रोती हुई लौट गई. रेशमा अब ख्वाबों में खोई रहने लगी कि उसे शहजादों जैसा सालार मोहब्बत करता है.

लेकिन दुर्भाग्य से रेशमा के सपने सपने ही रह गए. क्योंकि उस के अब्बू अल्लारखा ने उस का रिश्ता अपने एक पुराने दोस्त के भतीजे से तय कर दिया. लड़का जहाज पर नौकरी करता था. उम्र जरा ज्यादा थी, लेकिन बढि़या नौकरी थी.

रेशमा की मोहब्बत का फूल खिलता, उस के पहले ही उसे फरीद के नाम की अंगूठी पहना दी गई. मैमूना को इस सगाई का पता चला तो वह बहुत खुश हुई. लेकिन सालार को उदासी ने घेर लिया.

जल्दी ही फरीद और रेशमा का ब्याह हो गया. सुहागरात को फरीद ने उसे देखा तो काफी निराश हुआ, क्योंकि वह गोरीचिट्टी खूबसूरत दुल्हन चाहता था. उसी तरह की दुल्हन की तलाश में इतनी उम्र हो गई थी. फरीद जैसा ही हाल रेशमा का था. उस की आंखों में तो सालार की खूबसूरती बस चुकी थी. उस के आगे सांवला, ठिगना, छोटीछोटी आंखों वाला फरीद कुछ भी नहीं था. रेशमा जहां सालार के खयालों में खोई रहने लगी थी, वहीं फरीद भी उसे प्यार नहीं कर सका. बस दोनों अपना अपना फर्ज अदा करते रहे.

इसी तरह 20-22 साल बीत गए. रेशमा 2 बच्चों की मां बन गई. वह शहर के छोटे से मकान में जिंदगी गुजर रही थी. फरीद की नौकरी जहाज पर थी, जो सफर पर निकल जाता तो कई महीनों बाद वापस आता. उस तनहाई में सालार की यादें ही उस का सहारा थीं.

अचानक उस की जिंदगी में उस समय एक नया मोड़ आया, जब फरीद अपने एक भतीजे को घर ले आया. वह नौकरी की तलाश में चाचा के साथ आया था.

किचन में खाना बना रही रेशमा के कानों में उस की मीठी आवाज ‘सलाम चाची’ पड़ी तो उस ने पलट कर देखा. 22-23 साल का एक गोराचिट्टा, लंबातगड़ा, खूबसूरत नौजवान किचन के बाहर खड़ा था. जिस की बड़ीबड़ी आंखों में कामयाबी और भविष्य के सुनहरे सपने झलक रहे थे. नीली शर्ट और ब्राउन पैंट में वह काफी स्मार्ट लग रहा था. उसे देख कर रेशमा जैसे पलक झपकाना ही भूल गई.

‘‘यह रोशन अली है, भाईजान का बड़ा बेटा.’’ फरीद ने कहा तो वह एकदम से चौंक कर बोली, ‘‘सलाम, कैसे हो? बैठो, मैं चाय पानी ले कर आती हूं.’’

रोशन अली बैठ कर रेशमा के बेटे नईम से बातें करने लगा, जबकि बेटी शमा किचन में उस की मदद के लिए आ गई.

बीए पास रोशन को फरीद ने अपने कुछ परिचितों से मिलवा दिया और खुद अपनी नौकरी पर चला गया. हमेशा उदास खामोश रहने वाली रेशमा रोशन अली के आने के बाद से खुश रहने लगी थी. बच्चों के साथ बैठ कर रोशन टीवी देखता, उन्हें पढ़ाता, उन्हें नई नई जानकारियां देता. रेशमा भी आ कर उन्हीं के साथ बैठ जाती.

रोशन अली को नौकरी की सख्त जरूरत थी. बीमारी की वजह से बाप कोई काम नहीं कर पाता था, इसलिए नौकरी लगते ही वह उस का इलाज कराने के लिए अपने पास लाना चाहता था. वह बहुत ही समझदार और तमीज वाला लड़का था. चाचा चाची का बहुत अदब करता था.

रेशमा भी रोशन का बहुत ध्यान रखती थी. उस का हर काम समय पर कर देती थी. इसलिए रोशन चाची का बहुत एहसान मानता था. लेकिन दूसरी ओर तो मामला ही कुछ और था. रेशमा को उस में सालार नजर आता था. इसलिए वह चाहती थी कि वह हर वक्त उस के सामने रहे. रेशमा के बच्चे उस से काफी हिलमिल गए थे.

सांवली घबराई शमा रोशन को बहुत अच्छी लगती थी. 18 साल की शमा के चेहरे पर गजब का आकर्षण था. उस की बड़ी बड़ी झुकी आंखें दिल मोह लेती थीं. शमा को भी रोशन अच्छा लगता था. अगर रोशन कभी उसे कुछ कहता तो उस के चेहरे पर हया की लाली फैल जाती. इस सब से बेखबर रेशमा रोशन को सालार मान कर उस की दीवानी होती जा रही थी.

गरमी के दिन थे, इसलिए रोशन छत पर सोता था. जबकि रेशमा बच्चों के साथ नीचे कमरे में सोती थी. एक रात बिजली जाने पर रेशमा की आंख खुली तो वह पानी पीने बाहर आई. गर्मी से बेहाल रोशन हाथ का पंखा चला रहा था. रेशमा ने उस के पास जा कर पूछा, ‘‘गरमी की वजह से नींद नहीं आ रही क्या रोशन?’’

‘‘हां चाची, आज उमस कुछ ज्यादा है.’’ रोशन ने अदब के साथ कहा.

रोशन के हाथ से पंखा ले कर रेशमा बोली, ‘‘तुम लेटो, मैं पंखा झलती हूं.’’

उस समय रेशमा को यही लग रहा था कि उस के सामने सालार लेटा है. यही सोच कर वह रोशन की चारपाई पर बैठ गई. उस के बैठते ही रोशन हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ. उस ने घबरा कर कहा, ‘‘नहीं चाची, मैं पंखा झल लूंगा. आप जा कर आराम कीजिए, मैं सो जाऊंगा.’’

जब तक रेशमा बैठी रही, रोशन खड़ा रहा. मजबूरन रेशमा को उठ कर कमरे में जाना पड़ा. वह कमरे में भले आ गई, लेकिन लग रहा था वह अपना सब कुछ वहीं छोड़ आई है.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 4

2 दिनों तक दोनों आपस में खिंचे खिंचे रहे. तीसरे दिन चुनन शाह ने कहा, ‘‘भावल, मैं मानता हूं कि मैं ने गलती की है. लेकिन वादा करता हूं कि अब आगे कभी इस तरह का घटिया काम नहीं करूंगा.’’

चुनन शाह की इस बात से भावल खान खुश हो गया. सुगरा छिपछिप कर दोनों की बातें सुनती रहती थी. उस ने भावल से कई बार कहा था कि चुनन शाह से पीछा छुड़ा ले. वह कहती थी कि चुनन शाह अच्छा आदमी नही है. तब वह जवाब में कहता, ‘‘सुगरा, मैं भी अच्छा आदमी नहीं हूं.’’

एक दिन अचानक चुनन शाह ने भावल खान से कहा, ‘‘भावल, इस बार तुम्हारी पसंद का काम मिला है. लेकिन काम थोड़ा जटिल है.’’

भावल खान को ऐसे ही काम करने में मजा आता था. वह तैयार हो गया. चुनन शाह ने अपने किसी पुराने साथी के साथ डकैती की योजना बनाई थी. बहुत बड़ी रकम हाथ लगने वाली थी. लेकिन काम सचमुच जटिल था.

उन्हें करेंसी से भरी वैन को लूटना था. उस वैन का ड्राइवर उन की पहचान का था, जो उन की मदद कर रहा था. योजना के अनुसार, वैन से नोटों के बैग उतार कर एक कार से फरार होना था. चुनन शाह ने कार की भी व्यवस्था कर ली थी. भावल खान सुगरा से 2 दिन बाद लौटने की बात कह कर चुनन शाह के साथ चला गया.

अगले दिन सुबह योजना को अंजाम देना था. लेकिन रात को जिस होटल में वे ठहरे थे, वहां पुलिस ने छापा मार कर उन्हें पकड़ लिया. थाने पहुंचने पर पता चला कि उन का तीसरा साथी, जो पहले से ही किसी मामले में वांछित था, उसे दोपहर में ही आते समय पुलिस ने रास्ते से पकड़ लिया था. उसी ने अगले दिन वैन लूटने के बारे में बता कर बाकी लोगों को गिरफ्तार करवा दिया था.

पकड़े जाने के बाद भावल खान को अपने मरहूम बाप की वह बात याद आ गई कि चोर हमेशा अकेला ही कामयाब होता है. लेकिन इस बार भावल खान शहरी लोगों के चक्कर में फंस गया था. उस ने कहा था कि वह इन लोगों को जानता ही नहीं. पुलिस ने जिस आदमी को गिरफ्तार किया था, वह उसे आज ही मिला था.

पुलिस वाले 7 दिनों का रिमांड ले कर भावल खान की धुनाई करते रहे, लेकिन उस से कुछ नहीं उगलवा सके. हार कर उन्होंने उस पर आवारागर्दी का मुकदमा कायम कर जेल भेज दिया. वहां उस की कोई जमानत लेने वाला नहीं था. उसे सुगरा की चिंता थी, लेकिन वह मन को तसल्ली देता कि चुनन शाह तो है ही.

6 महीने बाद भावल खान जेल से बाहर आया. जेल में उस से मिलने न चुनन शाह आया था, न सुगरा. इसलिए उसे चिंता हो रही थी कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हो गई. इसलिए जेल से बाहर आते ही वह सीधे उस मकान पर जा पहुंचा, जहां वह रहता था. वहां दोनों नहीं थे. पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि चुनन शाह पंजाब जाने की बात कर रहा था.

भावल खान पंजाब जा पहुंचा. बुआ के घर गया तो पता चला कि सुगरा वहां भी नहीं आई थी. भावल का दिल धक से रह गया. वह समझ गया कि चुनन शाह अपना काम कर गया.

बुआ से पैसे ले कर भावल खान चल पड़ा. शकल सूरत काफी हद तक बदल गई थी, इसलिए वह आसानी से पहचाना नहीं जा सकता था. वह सुगरा और चुनन शाह को गली गली ढूंढ़ता रहा, लेकिन दोनों में से कोई नहीं मिला. इस तरह उसे 5 साल बीत गए.

एक दिन वह शहर के रेडलाइट एरिया से गुजर रहा था तो एक दलाल उस से टकरा गया. उस के लिए यह दुनिया नई नहीं थी. दलाल उसे उस कोठे पर ले गया, जहां उस के जीवन की सब से दर्दनाक स्थिति उस का इंतजार कर रही थी.

भावल खान के सामने बहुत सारी लड़कियां खड़ी थीं, उन में एक सुगरा भी थी. वह हड्डियों का ढांचा बन चुकी थी. उसे देख कर भावल की आंखें फटी की फटी रह गईं. भावल उस की ओर लपका तो वह पागलों की तरह भागी. उस ने लपक कर उस का बाजू पकड़ लिया. उस के मुंह से मुश्किल से निकला, ‘‘सुगरा, तुम यहां?’’

‘‘भावल, खुदा के लिए मेरा नाम मत लो. मुझे छुओ भी मत. सुगरा मर चुकी है.’’

पता नहीं सुगरा क्याक्या बकती रही. भावल उस के साथ एक कमरे में बैठा था. दलाल अपना काम कर के चला गया था. सुगरा ने रोरो कर उसे बताया कि चुनन शाह ने आ कर उस से कहा था कि वह पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. अब पुलिस यहां छापा मारने वाली है.

इस के बाद चुनन शाह घर पहुंचाने के बहाने सुगरा को कार से इस अड्डे पर पहुंचा गया था. यहां आने पर उसे पता चला कि वह औरतों का पुराना दलाल था और मुद्दत से औरतों का अपहरण कर के बेचने का धंधा कर रहा था.

सुगरा की कहानी उन बदनसीब लड़कियों से मिलती जुलती थी, जो ऐसे अड्डों तक पहुंचा दी जाती थीं. उस ने भावल को यह भी बताया था कि उस ने 3 बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी, लेकिन यहां के लोगों ने उसे मरने भी नहीं दिया था.

भावल ने जब सुगरा से साथ चलने को कहा तो वह बोली, ‘‘भावल, यहां बहादुरी से काम नहीं चल सकता. ये बड़े असरदार लोग हैं. तुम कल दोपहर को गली के अगले वाले चौराहे पर जो डाक्टर है, उस के यहां मिलना. मैं वहां दवा लेने के बहाने जाती हूं. वहां से हम निकल चलेंगे.’’

मजबूर हो कर भावल खान वापस आ गया. रात उस ने करवटों में काटी. योजना के मुताबिक वह डाक्टर के यहां पहुंच गया. लेकिन सुगरा नहीं आई. शाम तक वह उस का इंतजार करता रहा. रात में वह उस के अड्डे पर पहुंचा तो पता चला कि उस ने रात को ही नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या कर ली थी. उसे एक लावारिस के रूप में दफना दिया गया था.

इस खबर ने भावल खान को बेचैन कर दिया था. उस की समझ में आ गया था कि उस हालत में सुगरा उस के साथ जाना नहीं चाहती थी. इस के बाद भावल के जीवन का एक ही मकसद रह गया था कि कैसे भी हो, वह उन लोगों को चुनचुन कर मार दे, जिन्होंने उस की सुगरा को और उसे जीतेजी मार डाला था. इस के बाद वह अपने मकसद को पूरा करने के लिए निकल पड़ा.

एक हफ्ते के अंदर भावल ने 10 लोगों को मार दिया था. ये सब वे लोग थे, जिन का सुगरा की बरबादी में किसी न किसी रूप में हाथ था. चुनन शाह न जाने कहां गायब हो गया था. भावल उसे ढूंढ़ता रहा. पुलिस उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी.

अचानक भावल खान ने रूप बदल कर अपराधों से तौबा कर के दुकान खोल ली. अब वह एक आखिरी गुनाह करने के लिए खुदा से दुआ मांग रहा था कि किसी तरह चुनन शाह मिल जाए और वह उस दुष्ट से इस दुनिया को छुटकारा दिला दे.

भावल ने जो पाप किए थे, उन की माफी मांगने और मन की शांति के लिए कभीकभी वह धर्मगुरुओं के यहां भी चला जाता था. यही उस के लिए फायदेमंद साबित हुआ. एक दिन उसे एक धर्मगुरू के गांव में आने के बारे में पता चला तो वह उन से मिलने पहुंच गया. वहीं भावल को मंजिल मिल गई. उसी पीर के चेलों में चुनन शाह भी था. वह अपना रूप बदले हुए था.

लोग उसे बाबा चुनन शाह के नाम से पुकार रहे थे. भावल समझ गया कि उस ने यह रूप भी अपने धंधे को आगे बढ़ाने के लिए बना रखा है. भावल ने पीछा कर के उस के ठिकाने का पता लगा लिया. फिर एक दिन उस ने उस के साथियों के सामने ही उसे कुत्ते की मौत मार दिया.

भावल ने उस की हत्या कुल्हाड़ी से काट कर की थी. उसे काटते हुए वह चिल्ला चिल्ला कर कह भी रहा था, ‘‘सुगरा का बदला ले रहा हूं. मैं बहराम खान का बेटा भावल खान हूं, जिस ने भी मेरी इज्जत से खेला है, उसे जिंदा रहने का कोई अधिकार नहीं है.’’

भावल खान को रोकने की कोई हिम्मत नहीं कर सका था. वहां से वह सीधे अपने गांव गया. पिता की कब्र पर हाजिरी दी. कानूनी दस्तावेज तैयार करा कर अपनी सारी जमीन बुआ के बेटों को दे दी.

इस के बाद वहां पहुंचा, जहां नियाज अली के रूप में रह रहा था. वहीं से उसे पुलिस ने पकड़ लिया. उस का कहना था कि अगर वह चाहता तो पुलिस उसे कभी न पकड़ पाती. लेकिन अब उस की जिंदगी का कोई मकसद नहीं रह गया था, क्योंकि उस की आखिरी गुनाह करने की जो ख्वाहिश थी, वह पूरी हो गई थी.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 3

2 हथियारबंद लोगों ने बहराम खान का पीछा किया और वहां से लगभग एक फरलांग की दूरी पर उसे घेर लिया. निहत्था और घायल होने के बावजूद बहराम ने कायर की मौत मरने के बजाय एक पर छलांग लगा दी. उस की गरदन उस के कब्जे में आ गई. बहराम कुछ कर पाता, उस के पहले ही उस के साथी ने बहराम के सिर में एक के बाद एक कर के 6 गोलियां उतार कर अपने साथी को बचा लिया.

इस हमले में भावल खान के पिता तथा उम्मीदवार के साथ 2 अन्य लोग मारे गए. बाकी लोग गंभीर रूप से घायल हुए. विरोधी उम्मीदवार पुलिस की मिलीभगत से पहले ही जेल जा चुका था, इसलिए उस का इस मामले में बाल भी बांका नहीं हो सका.

भावल खान ने अपने पिता को दफनाते समय कसम खाई थी कि वह बाप की मौत का बदला जरूर लेगा. इस के लिए उसे कितनी ही कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

बहराम खान ने उसे सिखाया था कि चोर हमेशा अकेला ही कामयाब होता है. लेकिन उस ने बाप का यह नियम चुनन शाह पर विश्वास कर के तोड़ दिया था.

चुनन शाह से भावल खान की दोस्ती हो गई थी. था तो वह भी अपराधी, लेकिन वह दूसरे तरह के अपराध करता था. वह औरतों को बहला फुसला कर ले जाता और कोठों पर बेच देता था. लेकिन उस ने भावल खान को कभी इस की भनक नहीं लगने दी थी. उस ने उस से बताया था कि वह तसकरी करता है.

जिस आदमी ने बहराम खान को मारा था, उसे पता था कि इस इलाके में भावल खान के अलावा कोई दूसरा उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. शायद इसीलिए उस ने भावल से दोस्ती करने के लिए खूब कोशिश की. लेकिन भावल को तो उस से बदला लेना था. वह दोस्ती कर के उस से बदला नहीं ले सकता था. क्योंकि किसी के साथ धोखेबाजी करना उसे पसंद नहीं था.

चुनन शाह बहुत ही कमीना आदमी था. समय के साथ वह अपने रूप बदलता रहता था. भावल खान के साथ वह इसलिए लगा रहता था, क्योंकि उसे उस के विरोधियों से भावल के अलावा और कोई नहीं बचा सकता था. भावल भी उसे इसलिए साथ रखता था, क्योंकि उस ने उसे नएनए हथियार दिलाए थे. फिर दूसरे इलाकों में भी चुनन शाह की अच्छी जानपहचान थी, इसलिए जरूरत पड़ने पर वह छिपने की व्यवस्था करा सकता था.

आखिर वह मौका आ गया, जिस का भावल खान को बेचैनी से इंतजार था. मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गई. चुनाव प्रचार भी शुरू हो गया. विरोधी उम्मीदवार एक गांव से चुनाव सभा कर के लौट रहा था तो रात हो गई. भावल चुनन शाह के साथ रास्ते में घात लगा कर बैठा था. जैसे ही उस उम्मीदवार की जीप उन के सामने आई, उन्होंने गोलियों की बौछार कर दी, साथ ही हथगोले भी फेंके.

किराए के लोग ऐसे मौकों पर मरना नहीं चाहते. उस विरोधी उम्मीदवार के साथी भी अपनी जान बचाने के लिए गाडि़यों से कूदकूद कर भागे. उम्मीदवार और उस के 2 साथी मारे गए. उन की मौत की पुष्टि हो गई तो भावल चुनन शाह के साथ भाग निकला. भागने की तैयारी उन्होंने पहले से ही कर रखी थी.

अगले दिन भावल चुनन शाह के साथ एक सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया. वहां चुनन शाह की जानपहचान काम आई. उस ने वहां रहने के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया. चुनन शाह के साथ भावल वहां 3 महीने तक रहा. एक दिन चुनन शाह को बिना बताए ही भावल अपनी बुआ के यहां चला गया. उस के पिता ने बचपन में ही उस की शादी बुआ की बेटी से तय कर दी थी. बुआ उसे देख कर हैरान रह गई.

‘‘बुआजी, आप को घबराने की जरूरत नहीं है.’’ भावल खान ने कहा, ‘‘मैं पिताजी की बात का मान रखने आया हूं, क्योंकि वह चाहते थे कि मेरी शादी सुगरा से हो. मेरे बारे में आप को सब पता ही है. अगर तुम मना भी कर दोगी तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा. फिर भी मैं चाहता हूं कि पिताजी की आत्मा को दुख न हो.’’

‘‘तू मेरे भाई की निशानी है,’’ बुआ ने भावल के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘तू अच्छा हो या बुरा, बेटियों का भाग्य ईश्वर लिखता है. सुगरा तेरी अमानत है, तू इसे ले जा.’’

तीसरे दिन एक साधारण से समारोह में सुगरा और भावल खान की शादी हो गई. चुनन शाह ने हर काम में एक सगे भाई की तरह बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. चुनन शाह की सलाह पर भावल सुगरा को ले कर कराची आ गया.

कराची की भीड़भाड़ में भावल खान समा गया. उस ने अपना नाम नियाज अली रख लिया. इसी नाम से उस ने अपना पहचान पत्र भी बनवा लिया और 3 कमरों का बड़ा सा मकान ले लिया था. आगे वाले कमरे में चुनन शाह रहता था, बाकी के पीछे के 2 कमरों में नियाज अली सुगरा के साथ रहता था. यहां उन की जिंदगी आराम से कट रही थी.

समय के साथ बड़ेबड़े खजाने खाली हो जाते हैं. यही भावल खान के साथ भी हुआ. कुछ दिनों में उस की जमापूंजी खत्म हो गई. इस बीच सुगरा उस से कहती रही कि वह पुरानी जिंदगी भूल कर कोई छोटामोटा काम कर ले. लेकिन उसे जो चस्का लग चुका था, वह जल्दी छूटने वाला नहीं था. उस ने कभी भी मामूली चोरी तक नहीं की थी.

चुनन शाह बहुत ही कमीना आदमी था. उस ने देखा कि भावल खान परेशान है तो एक दिन बोला, ‘‘भाईसाहब, इस तरह कब तक काम चलेगा. कहीं न कहीं हाथ मारना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं तैयार हूं. लेकिन शहर वाले काम मैं ने कभी किए नहीं, हम ने तो मर्दों वाले काम किए हैं.’’ भावल खान ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं ही बाहर निकलता हूं. शायद कोई पुरानी जानपहचान काम आ जाए.’’ चुनन शाह ने कहा.

‘‘जैसी तुम्हारी इच्छा. मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ भावल खान ने कहा.

चुनन शाह चला गया. 3 दिनों बाद वह लौटा तो अकेला नहीं था. उस के साथ एक जवान लड़की थी. भावल खान ने हैरानी से पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

चुनन शाह ने आंख से गंदा सा इशारा किया. भावल को गुस्सा आ गया. उस का हाथ उठता, उस के पहले ही चुनन शाह बोल पड़ा, ‘‘भावल यह तुम्हारा गांव नहीं, कराची शहर है. तुम जानते हो, हम दोनों फरार हत्यारे हैं. दिमाग को ठंडा रखो और हां, अगर होशियारी दिखाई तो हम दोनों मारे जाएंगे.’’

भावल खान ने खुद को कभी इतना बेबस और मजबूर नहीं महसूस किया था. शायद सुगरा से शादी कर के वह डरपोक हो गया था. उस ने चुनन शाह की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. अगले दिन चुनन शाह उस लड़की को ले कर गया तो शाम तक वापस आया. भावल ने अंदाजा लगाया कि उस ने उसे ठिकाने लगा दिया है.