महिला आईएएस अधिकारी ने गलत ढ़ग से बेचे करोड़ों के गेहूं

 ऊंचे पदों पर बैठे कई अधिकारी अपने पद का लाभ उठा कर करोड़ों कमाते हैं. जोधपुर की सीनियर आईएएस अधिकारी निर्मला मीणा पर 8 करोड़ रुपए के गेहूं को गलत ढंग से बेचने का आरोप है. बीती 16 मई की बात है. सुबह के करीब 10-साढ़े 10 बज रहे थे. राजस्थान की सूर्यनगरी जोधपुर में सूरज अपना रौद्र रूप दिखा रहा था, भीषण गरमी थी. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी एसीबी के एसपी अजयपाल लांबा कुछ देर पहले ही अपने औफिस आए थे और अपने चैंबर में बैठे एक फाइल पर सरसरी नजर डाल रहे थे. इसी बीच उन के पीए ने टेलीफोन पर घंटी दे कर कहा, ‘‘सर, एक वकील साहब आप से मिलना चाहते हैं.’

लांबा ने एक पल सोचा फिर पीए से कह दिया, ‘‘मेरे पास भेज दो.’’

2 मिनट बाद ही एक सज्जन एसपी साहब के चैंबर का गेट खोल कर अंदर आए और एसपी साहब की ओर मुखातिब हो कर बोले, ‘‘सर, मैं आईएएस औफिसर निर्मला मीणा का वकील हूं.’’

‘‘हां वकील साहब, बैठिए.’’ एसपी साहब ने बैठने के लिए इशारा किया. वकील साहब कुरसी पर बैठते हुए बोले, ‘‘सर, निर्मलाजी आज 2-3 घंटे बाद सरेंडर कर देंगी.’’

‘‘वकील साहब, उन्होंने एसीबी की गिरफ्त से बचने के तो सारे जतन किए थे. लेकिन अब उन के पास इस के अलावा कोई और रास्ता बचा ही नहीं था.’’ एसपी लांबा ने कहा, ‘‘चलो, देर आए दुरुस्त आए.’’

इधरउधर की कुछ और बातें करने के बाद वकील साहब एसपी अजयपाल लांबा से विदा ले कर चले गए तो एसपी ने अपने पीए से कहा कि निर्मला मीणा केस के जांच अधिकारी मुकेश सोनी से बात कराओ. पीए ने एक मिनट बाद ही लाइन मिला कर फोन की घंटी दे कर कहा, ‘‘सर, सोनीजी लाइन पर हैं.’’

एसपी साहब ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘सोनी, तुम जिस आईएएस अधिकारी निर्मला मीणा को कई महीने से ढूंढ रहे हो, वह आज सरेंडर कर रही हैं. अभी उन के वकील साहब आए थे, वही बता कर गए हैं.’’

‘‘सर, यह तो अच्छी बात है.’’ दूसरी ओर से सोनी ने कहा.

‘‘हां, ठीक तो है. तुम फटाफट एक काम करो. निर्मला मीणा से पूछे जाने वाले सवालों की एक लंबी लिस्ट बना लो, ताकि पूछताछ में आसानी रहे.’’ एसपी ने सोनी को फोन पर निर्देश देते हुए कहा, ‘‘ध्यान रखना, उन से 8 करोड़ रुपए के गेहूं घोटाले मामले से जुड़ी हर बात पूछनी है ताकि हमारा केस पूरी तरह मजबूत रहे.’’

‘‘सर, मुझे पूरे मामले की एकएक बात पता है.’’ सोनी ने एसपी साहब को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘मैं निर्मला मीणा से पौइंट टू पौइंट सीधे सवाल करूंगा.’’

‘‘ठीक है,’’ कहते हुए एसपी साहब ने लाइन काट दी.

इस बातचीत के करीब ढाई घंटे बाद दोपहर करीब एक बजे आईएएस औफिसर निर्मला मीणा एक गाड़ी से एसीबी की स्पैशल यूनिट के औफिस पहुंचीं. वे अपने वकील के साथ आई थीं. सलवारकुरता पहने हुए आई निर्मला ने अपना मुंह दुपट्टे से ढक रखा था. उन की केवल आंखें नजर रही थीं. निर्मला मीणा ने वहां मौजूद एसीबी कर्मचारियों को अपना नाम बताया तो वे उन्हें सीधे जांच अधिकारी मुकेश सोनी के कमरे में ले गए. एसीबी के औफिस में मामले के जांच अधिकारी मुकेश सोनी पहले से तैयार बैठे थे. उन्होंने निर्मला मीणा को कुरसी पर बैठने को कहा. कुछ ही देर में एसीबी के एसपी अजयपाल लांबा भी वहां पहुंच गए.

एसपी लांबा और जांच अधिकारी सोनी ने निर्मला मीणा से अपने चेहरे पर ढका दुपट्टा हटाने को कहा तो उन्होंने इनकार कर दिया. एसीबी अधिकारियों ने उन से साफ कहा कि अगर वह जांच में सहयोग नहीं करेंगी तो सख्ती करनी पड़ेगी. एसीबी अधिकारियों के सख्त रवैए को देख कर निर्मला मीणा ने कुछ देर नानुकुर के बाद आखिर अपने चेहरे से दुपट्टा हटा दिया. इस के बाद अधिकारियों ने उन पर सवालों की बौछार शुरू की तो उन्होंने तबीयत खराब होने की बात कह कर किसी सवाल का जवाब नहीं दिया. एसीबी अधिकारियों को अच्छी तरह पता था कि निर्मला मीणा सीनियर आईएएस औफिसर हैं. वे पुलिस की कार्यप्रणाली के साथ पुलिस की मजबूरियों को भी बखूबी जानती हैं. 

अधिकारियों ने निर्मला मीणा से घुमाफिरा कर कई तरह के सवाल पूछे लेकिन वह तबीयत ठीक नहीं होने और गेहूं घोटाले के मामले में कोई बात याद नहीं होने की बात कहती रहीं. मीणा से उन के पति पवन मित्तल के बारे में भी सवाल पूछे गए. मीणा के साथ उन के पति भी इस मामले में आरोपी थे. मीणा ने पति के बारे में भी कोई जानकारी नहीं होने की बात कही. लगभग 3 घंटे तक एसीबी अधिकारियों ने निर्मला मीणा से पूछताछ की, लेकिन मीणा ने ऐसी कोई खास बात नहीं बताई, जिस से गेहूं घोटाले के मामले में कोई नए तथ्य सामने आते. मीणा के बारबार तबीयत खराब होने की बात कहने पर एसपी लांबा ने अधिकारियों को उन का मैडिकल चैकअप कराने के निर्देश दिए.

एसीबी अधिकारियों ने पावटा सेटेलाइट हौस्पिटल ले जा कर निर्मला मीणा का चैकअप कराया. जांच में वह पूरी तरह सामान्य पाई गईं. आईएएस औफिसर निर्मला मीणा कौन थीं और उन्होंने एसीबी के सामने क्यों सरेंडर किया, यह जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना पड़ेगा. उदयपुर की रहने वाली आईएएस औफिसर निर्मला मीणा को सब से पहली पोस्टिंग 9 अप्रैल, 1990 को अजमेर में सहायक कलेक्टर एवं कार्यपालक मजिस्ट्रैट के पद पर मिली थी. अपनी 29 साल की नौकरी में 24 साल तक वह जोधपुर में रहीं

इस दौरान वह सहायक कलेक्टर एवं कार्यपालक मजिस्ट्रैट, सहायक निदेशक भूमि एवं भवन कर, अतिरिक्त जिला कलेक्टर, उपनिदेशक स्थानीय विभाग, जिला रसद अधिकारी, रजिस्ट्रार जोधपुर यूनिवर्सिटी, रजिस्ट्रार पुलिस यूनिवर्सिटी जोधपुर, संगीत नाटक अकादमी आदि विभाग में तैनात रहीं. वह 6 बार जोधपुर की जिला रसद अधिकारी रहीं. जोधपुर में जिला रसद अधिकारी के पद पर रहते हुए फरवरी, 2016 में निर्मला मीणा ने खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के मुख्यालय जयपुर को शासकीय पत्र लिख कर कहा कि जोधपुर में लाभान्वित किए जाने वाले परिवारों की संख्या 33 हजार बढ़ गई है, इसलिए खाद्य सुरक्षा योजना के तहत जोधपुर के लिए राशन का 35 हजार क्विंटल गेहूं ज्यादा आवंटित किया जाए.

जिला रसद अधिकारी के पत्र के आधार पर जयपुर से जोधपुर के लिए 35 हजार क्विंटल राशन के गेहूं का ज्यादा आवंटन कर दिया गया. इस मामले में लापरवाही यह रही कि जयपुर मुख्यालय के किसी अधिकारी ने इस बात की सच्चाई का पता नहीं लगाया कि जोधपुर में अचानक 33 हजार परिवारों की संख्या कैसे बढ़ गई? बाद में शिकायत मिलने पर राजस्थान सरकार ने इस मामले की जांच कराई. जांच में खुलासा हुआ कि परिवार बढ़ने के नाम पर राशन का जो अतिरिक्त गेहूं मंगाया गया, वह आटा मिलों को बेच दिया गया. जो गरीब परिवार बढ़े हुए बताए गए, वे सब फरजी निकले.

व्यापक जांचपड़ताल के बाद राज्य सरकार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी निर्मला मीणा को 11 अक्तूबर, 2017 को निलंबित कर दिया. निलंबन के समय मीणा जोधपुर में जिला रसद अधिकारी के पद पर कार्यरत थीं. निलंबन काल में निर्मला मीणा का तबादला मुख्यालय जयपुर में शासन सचिवालय के कार्मिक विभाग में कर दिया गया. इस के बाद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने 2 नवंबर, 2017 को निर्मला मीणा एवं अन्य लोगों के खिलाफ अपने पदों का दुरुपयोग कर फरजी रिकौर्ड तैयार करने और गेहूं का घोटाला करने का मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने पर एसीबी के जोधपुर एसपी अजयपाल लांबा के निर्देशन में इस मामले की जांच मुकेश सोनी को सौंपी गई.

सोनी ने मामले की जांच शुरू कर दी. इस बीच एक जोरदार वाकया हुआ. फरवरी के पहले सप्ताह में एक युवक निलंबित आईएएस अधिकारी निर्मला मीणा के पति पवन मित्तल से मिला. मित्तल सेवानिवृत्त एकाउंट अफसर हैं. युवक ने खुद को एसीबी के एसपी अजयपाल लांबा का गनमैन बता कर कहा कि 45 लाख रुपए में गेहूं घोटाले का पूरा मामला सैटल करवा देगा. पत्नी निर्मला मीणा के गेहूं घोटाले में फंसने से मित्तल वैसे ही परेशान थे. उन्हें लगा कि अगर पैसे दे कर यह मामला रफादफा हो सकता है तो झंझट खत्म हो जाएगा. लेकिन सवाल यह था कि गनमैन 45 लाख रुपए मांग रहा था. इतनी बड़ी रकम मित्तल के पास नहीं थी. 

वे कई दिनों तक उस युवक से टालमटोल कर सोचविचार करते रहे. इस बीच युवक ने मित्तल को भरोसा दिलाने के लिए एक नंबर से वाट्सऐप मैसेज भी किए. इस वाट्सऐप मैसेज की डीपी में आईपीएस औफिसर की यूनिफौर्म पहने हुए अजयपाल लांबा की फोटो लगी हुई थी. मित्तल ने सोचा कि जब एसपी साहब का गनमैन मामला सैटल करवाने की बात कर रहा है तो क्यों खुद जा कर एसपी साहब से मिल लिया जाए. यही सोच कर मित्तल एक दिन एसीबी औफिस जा कर एसपी लांबा से मिले. मित्तल ने उन्हें सारी बात बता कर 45 लाख रुपए देने में असमर्थता जताई. मित्तल की बातें सुन कर एसपी साहब आश्चर्य में पड़ गए. आश्चर्य की बात थी भी, कोई बदमाश उन के नाम पर आरोपी के पति से मोटी रकम मांग रहा था.

लांबा साहब ने बदमाश का पता लगाने के लिए डिप्टी एसपी जगदीश सोनी के नेतृत्व में तुरंत इंटेलीजेंस की टीम लगाई. टीम ने जांचपड़ताल की और मित्तल के रानाताड़ा स्थित मकान पर निगरानी रखीपुलिस ने 13 फरवरी को उस बदमाश को पकड़ लिया. यह बदमाश गुड़ा विश्नोइयान का रहने वाला सुनील विश्नोई था. सुनील विश्नोई के खिलाफ जोधपुर के रातानाड़ा पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया. सुनील से पूछताछ में पता चला कि गरीबों को बांटे जाने वाले 35 हजार क्विंटल गेहूं की कालाबाजारी कर के 8 करोड़ रुपए का घोटाला करने की खबरें अखबारों में छपने व न्यूज चैनलों पर देखने के बाद उस ने आईएएस अधिकारी निर्मला मीणा को ही शिकार बनाने की योजना बनाई थी. 

इसी के लिए उस ने मीणा के पति पवन मित्तल से संपर्क किया था. वह लोगों को इसी तरह ठग कर या ब्लैकमेल कर के ऐश करता था. इधर निर्मला मीणा पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी. वह अपनी अग्रिम जमानत कराने के प्रयास में जुटी हुई थीं. सब से पहले उन्होंने सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत की अरजी दाखिल की. एसीबी ने जनवरी में सेशन कोर्ट से मीणा की अर्जी खारिज करवा दी. इस के बाद निर्मला मीणा भूमिगत हो गईर्ं. कुछ दिनों बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए याचिका लगाई. हाईकोट्र ने मीणा की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी.

इस बीच एसीबी ने मार्च के पहले पखवाड़े में मीणा के जोधपुर में सरकारी आवास सहित जयपुर उदयपुर स्थित ठिकानों पर छापे मारे. इन छापों में मीणा के पास 10 करोड़ रुपए से ज्यादा की प्रौपर्टी होने का पता चला. इन में जोधपुर में एक बंगला, फ्लैट व कई प्लौट के अलावा कई बीघा जमीन, एक पैट्रोलपंप, बाड़मेर के पचपदरा में 2 करोड़ रुपए कीमत की 15 बीघा जमीन और जयपुर में मानसरोवर व गोपालपुरा बाइपास पर 2 बंगलों के कागजात मिले. एसीबी अधिकारियों ने छापे के दौरान निर्मला मीणा से पूछताछ भी की.

उसी दिन एसीबी ने गेहूं घोटाले के अन्य आरोपियों ठेकेदार सुरेश उपाध्याय और रसद विभाग के लिपिक अशोक पालीवाल के मकानों पर भी छापे मार कर तलाशी ली. इन 2 आरोपियों के मकानों से गेहूं घोटाले से संबंधित कुछ दस्तावेज मिले. निर्मला मीणा के ठिकानों पर छापे की काररवाई दूसरे दिन भी चली. इस दौरान माउंट आबू के एक रिसोर्ट में उन की कौटेज होने का पता चला. मीणा ने यह कौटेज 2013 में पति के नाम से जोधपुर के एक आदमी से खरीदा था. मीणा के 2 नाबालिग बेटों के नाम जोधपुर में 300-300 वर्गगज के 2 भूखंडों का भी पता चला. इस के अलावा निर्मला मीणा, उन के पति पवन मित्तल और उन के 2 बच्चों के नाम 17 बैंक खाते तथा 3 लौकर मिले. इन बैंक खातों व लौकरों को एसीबी ने सीज करवा दिया.

एसीबी को इन छापों में मीणा परिवार की कुल 18 संपत्तियों का पता चला. निर्मला मीणा ने आईएएस अधिकारी के तौर पर हर साल की जाने वाली अपनी चलअचल संपत्तियों की घोषणा में इन में से केवल 4 संपत्तियां ही सरकार को बता रखी थीं. निर्मला मीणा ने 20 फरवरी, 2017 को सरकार को पेश अपने अचल संपत्ति विवरण में जयपुर में 26 लाख का मकान, जोधपुर में 16 लाख का मकान और 18 लाख रुपए का भूखंड तथा बाड़मेर के पचपदरा में 14 लाख रुपए की 15 बीघा जमीन बताई थी. बाद में एसीबी ने इस मामले में निर्मला मीणा के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का एक अलग केस दर्ज किया.

एक तरफ एसीबी निर्मला मीणा पर शिकंजा कसती जा रही थी और दूसरी तरफ मीणा अपनी गिरफ्तारी से रोक हटवाने की कोशिश में जुटी हुई थींइस के लिए एसीबी सुप्रीम कोर्ट भी गई. सुप्रीम कोर्ट ने 14 मार्च को एसीबी को बैरंग लौटा दिया और कहा कि हाईकोर्ट ही इस का फैसला करेगा. फैसला होने के बाद आप सुप्रीम कोर्ट आएं. हाईकोर्ट में 2 महीने तक सुनवाई हुई. इस के बाद हाईकोर्ट ने 17 अप्रैल को निर्मला मीणा को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया. हाईकोर्ट के जस्टिस विजय विश्नोई ने मीणा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि वे जांच एजेंसी के इस तर्क से सहमत हैं कि इस घोटाले की गहन जांच की आवश्यकता है. इस मामले में कई और उच्चाधिकारी शामिल हो सकते हैं

इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत में कहा कि गेहूं के गबन का लगाया गया आरोप झूठा है. आवंटित गेहूं अगर जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचा तो इस के लिए जिला रसद अधिकारी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. अग्रिम जमानत याचिका हाईकोर्ट से खारिज होने पर मीणा की मुश्किलें बढ़ गईं. एसीबी ने उन की गिरफ्तारी के लिए छापे मारने शुरू कर दिए. एसीबी की टीम 17 अप्रैल को ही मीणा के सरकारी आवास पर पहुंची लेकिन मीणा और उन के पति नहीं मिले. इस पर एसीबी अधिकारियों ने उन के घर पर नोटिस चस्पा कर दिया. इस नोटिस में मीणा और उन के पति को अगले दिन एसीबी की चौकी में उपस्थित होने की बात लिखी थी.

दूसरे दिन तो निर्मला मीणा एसीबी के सामने हाजिर हुईं और ही उन के पति. इस पर एसीबी ने फिर मीणा के सरकारी आवास पर दबिश दी लेकिन वह नहीं मिलीं. एसीबी को यह आशंका थी कि निर्मला मीणा फरार हो गई हैं. इसलिए एसीबी ने मीणा के गिरफ्तारी वारंट जारी कराएइस बीच निर्मला मीणा के खिलाफ एसीबी ने केरोसिन की कालाबाजारी का परिवाद और दर्ज कर लिया. इस से पहले मीणा पर गेहूं घोटाले और आय से अधिक संपत्ति के मुकदमे दर्ज किए गए थे. एसीबी की गिरफ्तारी से बचती हुई निर्मला मीणा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं. सुप्रीम कोर्ट ने मीणा की ओर से सीनियर एडवोकेट के.टी.एस. तुलसी ने दलीलें पेश कीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को मीणा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी.

सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिलने पर मीणा के सामने सरेंडर करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. एसीबी से लुकाछिपी के खेल में मीणा जयपुर के कार्मिक विभाग में भी उपस्थिति दर्ज नहीं करा रही थीं. इस दौरान वह करीब 2 महीने तक बिना सूचना के अनुपस्थित रहीं. निर्मला मीणा 8 करोड़ के गेहूं घोटाले के मामले में खुद को बचाना चाहती थीं. लेकिन गिरफ्तारी से बचने के लिए वह इतनी भागदौड़ करती रहीं कि एसीबी को उन के नित नए मामलों और संपत्तियों का पता लगता रहा. इस में उन के पति भी फंस गएएसीबी ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में मीणा के पति को भी आरोपी बनाया. इस मामले में मीणा के पति ने अगर सही जवाब और सबूत नहीं दिए तो उन की गिरफ्तारी भी हो सकती है.

एसीबी ने सरेंडर करने वाली आईएएस औफिसर निर्मला मीणा को 17 मई को अदालत में पेश कर के 7 दिन का रिमांड मांगा. अदालत ने 2 दिन का रिमांड दिया. अदालत से स्पैशल यूनिट में ला कर एसीबी ने निर्मला मीणा से पूछताछ की तो उन्होंने कहा कि मेरा गुरुवार का उपवास है, तबीयत भी ठीक नहीं है. 6 घंटे की पूछताछ में निर्मला मीणा ने किसी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दिया. रिमांड अवधि के दौरान दूसरे दिन भी एसीबी अधिकारियों ने निर्मला मीणा से 8 घंटे तक पूछताछ की लेकिन उन्होंने बीमार होने, सिर चकराने और मुझे नहीं पता कह कर सारे सवालों को टाल दिया

मीणा से पूछताछ में गेहूं घोटाले में सुरेश उपाध्याय, स्वरूप सिंह राजपुरोहित और अशोक पालीवाल का नाम उभर कर सामने आया था. इन में आटा मिल संचालक स्वरूप सिंह राजपुरोहित को एसीबी ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. 2 दिन का रिमांड पूरा होने पर एसीबी ने 19 मई को निर्मला मीणा को फिर अदालत में पेश किया. इस बार अदालत ने मीणा की रिमांड अवधि 22 मई तक बढ़ा दी. इस के अगले ही दिन गेहूं घोटाले में फरार परिवहन ठेकेदार सुरेश उपाध्याय ने एसीबी के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. जिला रसद विभाग में गेहूं का परिवहन ठेका सुरेश के पास था. उस का काम भारतीय खाद्य निगम के गोदाम से गेहूं उठा कर राशन डीलरों तक पहुंचाना था. आरोप है कि सुरेश उपाध्याय ने भी निर्मला मीणा और अन्य आरोपियों के साथ मिल कर राशन के गेहूं की कालाबाजारी कर के आटा मिलों को बेच दिया था.

गेहूं घोटाले की कडि़यां जोड़ने के लिए एसीबी ने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग जयपुर के तत्कालीन उपायुक्त राजस्थान प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी मुकेश मीणा को जोधपुर तलब किया. मुकेश मीणा 2 दिन बाद हाजिर हुए तो एसीबी अधिकारियों ने मुकेश मीणा और निर्मला मीणा को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ कीनिर्मला मीणा के सरकारी पत्र पर 35 हजार क्विंटल गेहूं आवंटित करने की फाइल तत्कालीन उपायुक्त मुकेश मीणा के हाथ से ही निकली थी. उन की सहमति से ही गेहूं आवंटित किया गया था. एसीबी ने मुकेश मीणा के बयान दर्ज कर लिए.

रिमांड अवधि पूरी होने पर 22 मई को एसीबी ने निर्मला मीणा को अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. निर्मला मीणा जोधपुर सेंट्रल जेल में बतौर आरोपी जाने वाली पहली महिला आईएएस अधिकारी बन गई हैं. 24 मई को अदालत ने निर्मला मीणा और परिवहन ठेकेदार सुरेश उपाध्याय की जमानत याचिका खारिज कर दी. सुरेश उपाध्याय भी जेल में है. एसीबी अभी तक इस मामले की जांच में जुटी है. हो सकता है कि कुछ अन्य अफसर भी इस घोटाले में पकड़े जाएं. निर्मला मीणा के पति पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है. कथा लिखे जाने तक एसीबी इस मामले में रसद विभाग के तत्कालीन क्लर्क अशोक पालीवाल की तलाश कर रही थी.

       

चार बेटियों के साथ मिलकर मां ने की दरोगा की हत्या

दरोगा भौंदे खान अपने घर को अपने हिसाब से चलाना चाहता था, लेकिन उस की पत्नी जाहिदा ने अपनी तरह बेटियों को भी बिगाड़ रखा था. लिहाजा एक तीर से 2 शिकार करने के लिए जाहिदा और बेटियों ने भौंदे खान की ऐसी हत्या की कि… 

विवार 24 जून, 2018 की सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के रहने वाले शरीफुद्दीन और बाबू मियां जलालनगर मोहल्ले के बगल से गुजरने वाले नाले के किनारे होते हुए पैदल ही बस अड्डे की तरफ जा रहे थे. अचानक शरीफुद्दीन की नजर नाले में गिरी पड़ी एक मोटरसाइकिल पर पड़ी, जिस का कुछ हिस्सा नाले के पानी के ऊपर था. यह देखते ही शरीफुद्दीन बोला, ‘‘अरे बाबू भाई, लगता है कोई आदमी नाले में गिर गया है. उस की बाइक यहीं से दिख रही है.’’

शरीफुद्दीन की बात पर बाबू ने जब नाले की तरफ देखा तो वह चौंकते हुए बोला, ‘‘हां शरीफ भाई, लग तो रहा हैचलो चल कर देखते हैं.’’

इस के बाद वह दोनों तेजी से कदम बढ़ाते हुए उधर ही पहुंच गए जहां मोटरसाइकिल पड़ी थी. उन्होंने देखा कि वहां सिर्फ मोटरसाइकिल थी बल्कि चंद कदम की दूरी पर एक आदमी भी औंधे मुंह पड़ा हुआ थाऐसा लग रहा था कि या तो वह शराब के नशे में बाइक समेत नाले में जा गिरा या किसी चीज से टकरा कर वह बाइक समेत नाले में गिर गया है. वह दोनों उस व्यक्ति के करीब पहुंच गए, उस व्यक्ति के शरीर के ऊपर का कुछ भाग नाले के किनारे पर था. उस के सिर से खून बह कर जम गया था. वह व्यक्ति कौन है जानने के लिए दोनों ने जैसे ही उसे पलट कर देखा तो बाबू के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘अरे बाप रे, ये तो अपने दरोगाजी भौंदे खान हैं.’’ दरोगा भौंदे खान उर्फ मेहरबान अली उन्हीं के मोहल्ले में रहते थे

‘‘चल, इन के घर जा कर खबर करते हैं.’’ बाबू ने अपने साथी से कहा और उल्टे पांव अपने मोहल्ले की तरफ चल दिए. वहां से बमुश्किल 400 मीटर की दूरी पर एमनजई जलालनगर मोहल्ला था. उस मोहल्ले में घुसते ही 20 कदम की दूरी पर दरोगा मेहरबान अली उर्फ भौंदे खान का घर था. चेहरे पर उड़ती हवाइयों के बीच दरोगाजी के घर पहुंचे तो घर के बाहर ही उन्हें दरोगाजी का दामाद अनीस मिल गया. दरोगाजी अपने दामाद के साथ ही रहते थे. शरीफुद्दीन और बाबू मियां ने एक ही सांस में अनीस को बता दिया कि उस के ससुर दरोगाजी अपनी मोटरसाइकिल के साथ नाले में गिरे पड़े हैं.

यह सुनते ही अनीस ने दौड़ कर अपने घर में अपनी सास जाहिदा, पत्नी और सालियों को ये बात बताई. जैसे ही परिवार वालों को भौंदे खान के नाले में गिरने की बात पता चली तो पूरे घर में जैसे कोहराम मच गया. उन की पत्नी जाहिदा और घर में मौजूद तीनों बेटियां अनीस के साथ नाले के उसी हिस्से की तरफ दौड़ पड़ीं, जहां उन के गिरे होने की जानकारी मिली थी. मोहल्ले के अनेक लोग भी उन के साथ हो लिए.

मरने वाला निकला दरोगा भौंदे खान जाहिदा ने अपने पति को काफी हिलायाडुलाया लेकिन खून से लथपथ पति के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई तो कुछ लोगों ने उन की नब्ज टटोली तब पता चला कि उन की मौत हो चुकी है. इस के बाद तो जाहिदा और उन की बेटियां छाती पीटपीट कर रोने लगीं. थोड़ी ही देर में घटनास्थल पर लोगों का हुजूम लग गया. अनीस ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के दरोगा मेहरबान अली का शव नाले में मिलने की सूचना दे दी.

यह इलाका सदर कोतवाली क्षेत्र में पड़ता था. मामला चूंकि विभाग के ही एक सबइंसपेक्टर की मौत से संबंधित था, इसलिए सूचना मिलते ही सदर कोतवाली थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा तथा एसएसआई रामनरेश यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने जब मेहरबान अली के शव को नाले से बाहर निकलवा कर बारीकी से उस की पड़ताल की तो पहली ही नजर में मामला दुर्घटना का नजर आयाऐसा लग रहा था कि नाले में गिरने पर सिर में लगी चोट के कारण शायद उन की मौत हो गई है. सूचना मिलने पर एसपी का प्रभार देख रहे एसपी (ग्रामीण) सुभाष चंद्र शाक्य, एसपी (सिटी) दिनेश त्रिपाठी और सीओ (सदर) सुमित शुक्ला भी घटनास्थल पर पहुंच गए

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. फोरैंसिक टीम ने भी वहां पहुंच कर सबूत जुटाए. घटना की सूचना आईजी और डीआईजी तक पहुंच गई थी लिहाजा अगले 2 घंटे में पुलिस के ये आला अफसर भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन दरोगा मेहरबान अली के शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उसे पढ़ कर पुलिस भी हैरान रह गई. क्योंकि उस में बताया गया कि उन की मौत दुर्घटना के कारण नहीं हुई थी बल्कि उन की हत्या की गई थी

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सिर में दाहिनी तरफ चोट लगने के अलावा इस तरह की चोट थी, जैसे किसी ने कई बार भारीभरकम चीज से सिर पर चोट पहुंचाई हो. साथ ही गला भी दबाया गया था. उन की गरदन पर बाकायदा कुछ लोगों की अंगुलियों के निशान थे, मानो उन का गला दबाने की कोशिश भी की गई हो. पोस्टमार्टम रिपोर्ट सीधे तौर पर उन की हत्या की ओर इशारा कर रही थी. मृतक दरोगाजी के परिवार वालों से जब पूछा कि उन्हें किसी पर हत्या करने का शक है तो उन्होंने किसी पर शक नहीं जताया. लेकिन उन के दामाद अनीस ने सदर कोतवाली में तहरीर दे कर अज्ञात लोगों के खिलाफ उन की हत्या करने की शिकायत दर्ज करा दी

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने जांच अपने हाथ में ले ली. अनीस ने थानाप्रभारी को बताया कि एक दिन पहले शनिवार को भौंदे खान दोपहर करीब साढ़े 11 बजे खाना खा कर मोटसाइकिल ले कर ड्यूटी के लिए गए थे. पुलिस ने की दरोगा के घर वालों से पूछताछ वह ड्यूटी से रात 8 बजे तक घर लौटने वाले थे. लेकिन 11 बजे तक भी वह नहीं लौटे तो घर वालों को चिंता होने लगी तब साजिदा ने वायरलैस कंट्रोल रूम में फोन कर के पूछा तो पता चला कि मेहरबान अली तो उस दिन ड्यटी पर पहुंचे ही नहीं थे

जाहिदा जानती थी कि उस के पति कभीकभी दोस्तों के साथ शराब की पार्टी में बैठ जाते हैं. ऐसे में वह कभीकभी ड्यटी पर भी नहीं जाते थे और देर रात तक घर लौटते थे. उस ने सोचा कि हो सकता है आज भी वह कहीं ऐसी ही किसी पार्टी में शामिल हो गए होंगे और सुबह तक जाएंगे. यह सोच कर जाहिदा सो गईसुबह हो गई, भौंदे खान तब भी घर नहीं लौटे. अनीस उस रोज शहर से बाहर गया हुआ था. सुबह जब वह घर लौटा तो सास जाहिदा ने उसे यह बात बताई. अनीस ने सास से कहा कि वह कुछ देर बाद पुलिस लाइन जा कर देख आएगा कि आखिर बात क्या है. लेकिन उस से पहले ही उसे भौंदे खान की लाश मिलने की सूचना मिल गई.

सीओ (सदर) सुमित शुक्ला और थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा की समझ में नहीं रहा था कि आखिर ऐसी कौन सी वजह रही होगी जिस के कारण उन की हत्या की गई. मामला लूटपाट का नहीं था क्योंकि उन की मोटरसाइकिल, कलाई घड़ी और जेब में उन का पर्स ज्यों का त्यों बरामद हुआ था. पर्स में आईडी कार्ड से ले कर डेबिट कार्ड तथा कुछ रुपए सहीसलामत पाए गए थे. थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को लग रहा था कि दरोगा मेहरबान अली की हत्या का मामला उतना सीधा नहीं है, जितना कि नजर रहा है. इसलिए उन्होंने एक टीम मेहरबान अली के परिवार और उन के मेलजोल वालों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए गठित कर दी, जिस में एसएसआई रामनरेश यादव, महिला एसआई ज्योति त्यागी, कांस्टेबल अनूप मिश्रा, माधुरी के साथ एक दरजन पुलिस वाले शामिल थे.

थानाप्रभारी ने यह कदम यूं ही नहीं उठाया, बल्कि उन्हें 2 महीने पहले दरोगा मेहरबान अली के घर में हुई एक ऐसी घटना याद गई जिस की तफ्तीश खुद उन्होंने ही की थी. मेहरबान अली उर्फ भौंदे खान मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर की तहसील बुढ़ाना के गांव कसेरवा के रहने वाले थे. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में सब इंसपेक्टर के पद पर तैनात थे. उन की नियुक्ति उत्तर प्रदेश के अलगअलग जिलों में रहने के बाद सन 2007 में शाहजहांपुर जिले की पुलिस लाइन में वायरलैस सेल में हुई थी

वह थाना सदर क्षेत्र के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में अपने दामाद अनीस के साथ रहते थे. मकान की दूसरी मंजिल पर अनीस अपनी पत्नी सबा के साथ रहता था. अनीस मशीनरी टूल की ट्रेडिंग का धंधा करता था. जिस के सिलसिले में उसे अकसर शहर से बाहर भी आनाजाना पड़ता था. जिस दिन मेहरबान अली गायब हुए थे, अनीस उस दिन शहर से बाहर गया हुआ था. मेहरबान अली के परिवार में उन की पत्नी जाहिदा के अलावा 5 बेटियां एक बेटा था. बड़ी बेटी सबा की शादी अनीस के साथ डेढ़ साल पहले हुई थी. उस से छोटी 4 बेटियां सना, जीनत, इरम, आलिया तथा एक बेटा मोहसिन है, जो परिवार में सब से छोटा है. दूसरे नंबर की बेटी सना खान की 2 महीने पहले हत्या हो गई थी. थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने ही उस मामले की जांच की थी.

दरोगा की बेटी की हुई थी हत्या सना जी.एस. कालेज में बीए फाइनल की छात्रा थी. वह यूपी पुलिस परीक्षा की तैयारी कर रही थी. इस के लिए वह रामनगर कालोनी स्थित एक कोचिंग सेंटर, अपनी छोटी बहन जीनत के साथ जाती थी. 7 अप्रैल, 2018 को भी सना जीनत के साथ कोचिंग सेंटर से बाहर निकल कर 200 मीटर दूर पहुंची थी. तभी अरशद वहां आया. वह अपने एक दोस्त के साथ बाइक पर सवार था. उस ने सना से बात करने के लिए दोनों बहनों को रोक लिया

अरशद भी उन के साथ उसी कोचिंग सेंटर में जाता था. दोनों आपस में अच्छे दोस्त थे. अरशद सना से बात करने लगा. बात करतेकरते दोनों जैसे ही इलाके के डा. मुबीन के घर के पास पहुंचे तभी अरशद की सना से किसी बात को ले कर नोकझोंक और गालीगलौज होने लगी. तभी गुस्से में आ कर अरशद ने जेब से तमंचा निकाल कर सना को गोली मार दी. गोली उस के सीने पर लगी और वह वहीं जमीन पर गिर पड़ी. गोली मारते ही अरशद अपने दोस्त के साथ बाइक से फरार हो गया था.

इधर, बहन को गोली लगते ही जीनत जोरजोर से चीखने लगी. जीनत की चीखपुकार सुन कर कोचिंग सेंटर से अन्य छात्र बाहर गए. उन्होंने खून से लथपथ सना को देखा तो तुरंत एंबुलेंस को फोन किया. लेकिन एंबुलेंस के आने से पहले ही कोचिंग के दोस्त सना को मोटरसाइकिल पर बीच में बैठा कर अस्पताल ले गए. लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. जिस इलाके में वारदात हुई वह सदर थाना क्षेत्र में आता है. सना के पिता मेहरबान अली चूंकि पुलिस में ही दरोगा थे, इसलिए थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने मामले को गंभीरता से लिया. जीनत के बयान के आधार पर सना की हत्या की रिपोर्ट दर्ज की गई.

अरशद नाम के जिस युवक ने सना को गोली मारी थी उस के बारे में जानकारी हासिल करने में पुलिस को ज्यादा वक्त नहीं लगा. अरशद प्रतापगढ़ के थाना कन्हई के कठहार गांव का रहने वाला था. उस के पिता जहीरूद्दीन सिद्दीकी भी उत्तर प्रदेश पुलिस में थे. अरशद के चाचा सौराब खां शाहजहांपुर में ही बतौर कांस्टेबल तैनात थे. अरशद उन्हीं के साथ रहता था. वह पुलिस लाइन में रह कर पुलिस सेना में भरती होने की तैयारी करता था. इसलिए वह रोजाना दौड़ लगाने के लिए पुलिस लाइन के परेड ग्राउंड में जाता था.

उसी ग्राउंड में सना खान और उस की बहन जीनत भी दौड़ने आती थी. वह भी पुलिस में भरती होने की तैयारी कर रही थीं. बातों ही बातों में अरशद की उन से दोस्ती हो गई. सना मन ही मन अरशद को पसंद करने लगी और जल्द ही दोनों का अकेले में मिलनाजुलना शुरू हो गया. लेकिन अरशद सना की बहन जीनत को ज्यादा पसंद करता था और उसी के साथ निकाह करना चाहता था. जीनत भी अरशद को चाहने लगी थी.

अरशद जब जीनत के साथ हंसीमजाक करता तो सना को ये बात नागवार गुजरती थी. उस ने इस बात पर अरशद को कई बार झिड़कते हुए कह दिया था कि वह उसे पसंद करती है इसलिए वह उस की बहन जीनत पर गलत नजर रखे. सना के कई बार ऐसा कहने पर एक दिन अरशद ने सना से साफ कह दिया कि वह उस से नहीं बल्कि जीनत को पसंद करता है और उस से निकाह करना चाहता है. इस के बाद से सना अरशद के जीनत से मेलजोल का विरोध करने लगी. इतना ही नहीं उस ने अपनी मां जाहिदा और पिता मेहरबान अली को भी यह बात बता दी थी. जिस पर जीनत को घर वालों से डांट भी पड़ी थी.

अरशद ने मारा था सना को जीनत ने यह बात अरशद को बताई तो अरशद ने सना की हत्या कराने का फैसला कर लिया. उस ने सोचा कि सना के न रहने पर उसे जीनत से मिलने में कोई बाधा नहीं आएगी. इस बारे में अरशद ने अपने गांव के बचपन के दोस्त सलमान से बात की. सलमान अरशद का साथ देने के लिए तैयार हो गया और एक दिन उस ने सना को गोली मार दी. हत्याकांड की जानकारी मिलने के बाद सदर पुलिस ने अगले 24 घंटे में ही अरशद को गिरफ्तार कर के उस के कब्जे से हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का देशी तमंचा, 2 कारतूस और मोटरसाइकिल बरामद कर ली थी.

अरशद से पूछताछ में पता चला था कि हत्या में मदद करने वाला उस का दूसरा साथी भी प्रतापगढ़ जिले के गांव कढ़ार का रहने वाला सलमान है, तो पुलिस ने सलमान की गिरफ्तारी के प्रयास करते हुए कई बार उस के ठिकानों पर दबिशें दीं, लेकिन सलमान हर बार पुलिस की पकड़ में आने से बचता रहाआखिरकार एसपी सुभाष चंद्र शाक्य ने उस की गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. जिस के एक हफ्ते बाद सलमान को सदर पुलिस ने रोडवेज बस स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया. आरोपी को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को अनायास सना की हत्या करने वाले कातिल अरशद का वह कबूल नामा भी याद आने लगा जब उस ने बताया था कि सना चाहती थी कि अगर वह उस के पिता मेहरबान अली को मार देने में उस की मदद करे तो अनुकंपा के आधार पर उन की नौकरी उसे मिल जाएगी. सना ने अरशद से ये भी कहा था कि यदि वह ऐसा कर देगा तो वह उस से शादी कर लेगी. अरशद ने ये भी बताया था कि सना ने उस से कहा था कि उस के पिता उस की मां और सभी बहनों के साथ न सिर्फ मारपीट करते हैं बल्कि सभी बहनों पर पाबंदियां भी लगाते हैं. लेकिन अरशद ने सना का ये औफर इसलिए ठुकरा दिया था, क्योंकि वह सना से नहीं बल्कि उस की बहन जीनत से प्यार करता था.

घर वालों के बयानों में मिला विरोधाभास उस वक्त तो थानाप्रभारी को लगा था कि अरशद शायद अपने बचाव में और सना को ही दोषी ठहराने के लिए झूठी कहानी गढ़ रहा है. लेकिन अब जबकि दरोगा मेहरबान अली की हत्या हुई तो उन्हें अरशद के उस बयान में सच्चाई नजर आने लगी. उन्हें लगने लगा कि संभव है, मेहरबान अली की हत्या का राज कहीं कहीं उन के घर में ही छिपा हो. अगली सुबह सब से पहले उन्होंने पुलिस टीम के साथ मेहरबान अली के घर का दौरा किया. उन्होंने एकएक कर के मेहरबान अली की पत्नी और उस की बेटियों से पूछताछ की. उन्होंने सभी से मेहरबान अली के शनिवार को घर से बाहर जाने का घटनाक्रम पूछा था. तो जाने क्यों मांबेटियों के बयानों में एक के बाद एक कई विरोधाभास नजर आए.

किसी ने बताया कि वह दोपहर को खाना खा कर ड्यूटी चले गए थे. किसी ने बताया कि वह सुबह 10 बजे ही रात की ड्यूटी कर के घर लौटे थे और शाम को घर से गए थे. यह भी पता चला कि उन्होंने रात को घर लौटने पर पुलिस लाइन में फोन कर के उन के घर लौटने के बारे में पूछा था. लेकिन वहां से पता चला कि उस दिन मेहरबान अली ड्यूटी पर आए ही नहीं थे. थानाप्रभारी शर्मा ने एसएसआई रामनरेश यादव को पुलिस लाइन में बने वायरलैस कंट्रोल रूम भेजा तो उन्हें पता चला कि मेहरबान अली के बारे में जानकारी लेने के लिए उन की पत्नी जाहिदा ने पुलिस लाइन में कोई फोन नहीं किया था. यह सुन कर थानाप्रभारी का शक यकीन में बदलने लगा कि हो हो मेहरबान अली के कातिल उन के घर में ही छिपे हैं

अपने शक को पुख्ता करने के लिए जब उन्होंने वायरलैस औफिस में मेहरबान अली की ड्यूटी का चार्ट निकलवाया तो जानकारी मिली कि मेहरबान अली इस सप्ताह रात की ड्यूटी पर तैनात थे. वह शुक्रवार की रात को ड्यूटी कर के शनिवार सुबह अपने घर आए थे. डी.सी. शर्मा सोचने लगे कि अगर मेहरबान अली रात की ड्यूटी कर के घर लौटे थे तो दोपहर साढ़े 12 बजे वह भला दोबारा ड्यूटी पर क्यों जाएंगे. अब उन्हें लगने लगा कि मेहरबान अली को ले कर घर वाले झूठ बोल रहे हैं. इस झूठ का परदाफाश करना ही पड़ेगा

थानाप्रभारी पुलिस टीम और फोरेंसिक टीम को ले कर एक बार फिर मेहरबान अली के घर पहुंचे. उन्होंने जब उन के घर आसपास के घरों का निरीक्षण किया तो अनायास उन की नजर उन के घर के सामने वाले घर की छत पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी. सीसीटीवी कैमरे से मिला क्लू संयोग से सीसीटीवी कैमरे की दिशा ऐसी थी कि मेहरबान अली के घर आनेजाने वाला हर शख्स वीडियो में कैद हो सकता था. उन्होंने सीसीटीवी की फुटेज देखी तो अचानक मेहरबान अली हत्याकांड का पूरा सच सब के सामने गया.

सीसीटीवी वीडियो में 23 जून, 2018 को सुबह 9 बजे दरोगा मेहरबान अली घर के अंदर दाखिल होते दिखे थे. संभवत: वह उस वक्त अपनी ड्यूटी से लौटे थे. लगभग डेढ़ घंटे बाद घर के अंदर 2 अन्य लोग जाते दिखे लेकिन देर रात तक वह दोनों वापस लौटते नहीं दिखे. इस के बाद रात होने तक कोई असामान्य बात नहीं दिखी. लेकिन रात को 10 बजे के बाद अचानक मेहरबान अली की पत्नी बेटियों की असामान्य गतिविधियां दिखाई पड़ीं. करीब 10 बजे मेहरबान अली की पत्नी जाहिदा दरवाजे तक आई कुछ देर रोड पर इधरउधर देखा और लौट गई. उस के बाद कुछ देर बाद उस की बेटी आलिया और इरम बाहर आईं उन्होंने भी गली में इधरउधर देखा और वहां रुक कर मोबाइल देखती रहीं फिर वापस घर में भीतर चली गईं. इस के बाद मेहरबान अली की बड़ी बेटी शबा भी बाहर आई और कुछ देर रुक कर वह भी अंदर चली गई. 

इस के बाद जाहिदा फिर एक बार दरवाजे पर कर लौट गई. फिर रात 10 बज कर 40 मिनट पर घर के बाहर 2 लोग जो सुबह घर के भीतर घुसे थे, वह एक बाइक पर मेहरबान अली को बीच में बैठा कर बाहर आते दिखाई दिए. घर से बाइक बाहर निकालने के लिए पीछे से जाहिदा और उस की 2 बेटियों को बाइक को धक्का लगाते देखा गया. जाहिदा फिर गली में आई. उस ने देखा कि रोड पर कोई नहीं है तो रास्ता साफ होने का इशारा कर के बाइक को आगे ले जाने का उस ने इशारा किया.

इस के बाद 2 लोग बाइक को ले कर चले गए. लेकिन हैरानी की बात यह थी कि इस दौरान मेहरबान अली का शरीर बेजान सा बीच में रखा था. सीसीटीवी फुटेज को देख कर ऐसा लग रहा था कि वह मेहरबान अली के मृत शरीर को मोटरसाइकिल पर ले जा रहे थे. जाहिदा और बेटियां ही निकलीं कातिल अब सब कुछ आईने की तरह साफ था. सीसीटीवी फुटेज कब्जे में ले कर थानाप्रभारी शर्मा एक बार फिर जाहिदा के घर पहुंचे. उन्होंने जब पूछा कि शनिवार की सुबह उन के यहां कौन 2 लोग आए थे तो कोई भी ठीकठाक उन के सवालों का जवाब नहीं दे सका. वह जानते थे कि कोई भी गुनहगार आसानी से अपना गुनाह नहीं कबूलता.

उन्होंने जाहिदा और उस की बेटियों को पुरुषोत्तम आहूजा के घर से बरामद की गई सीसीटीवी फुटेज दिखाई तो उन के पास बचने का कोई बहाना नहीं रहा. थोड़ी सी डांटफटकार के बाद ही जाहिदा ने कबूल कर लिया कि अपने पति मेहरबान अली की हत्या उस ने अपनी बेटियों के साथ साजिश रच कर भाडे़ के 2 हत्यारों से कराई थी. और उन की लाश को करीब 11 घंटे तक अपने कमरे में ही रखा. इस दौरान दोनों हत्यारे भी उन के साथ घर में मौजूद रहे. फिर मौका मिलने पर रात के अंधेरे में लाश फेंकी गई.

जाहिदा से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी डी.के. शर्मा ने उसे उस की चारों बेटियों जीनत, इरम, आलिया तथा शादीशुदा बेटी सबा को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. पांचों को थाने ला कर उन्होंने उच्चाधिकारियों को हत्याकांड का खुलासा करने की सूचना दे दी. इस के बाद एसपी सुभाषचंद्र शाक्य, एसपी (सिटी) दिनेश त्रिपाठी और सीओ(सदर) सुमित शुक्ला के समने मेहरबान अली हत्याकांड की साजिश बेनकाब हो गई. जाहिदा के अपने बहनोई से थे अवैध संबंध जाहिदा ने बताया कि उस के नाजायज संबंध मुजफ्फरनगर के गांव तावली में रहने वाले अपने बहनोई फारुख से थे. उस के संबंधों की जानकारी जब मेहरबान अली को हुई तो उस ने जाहिदा को समझानेबुझाने की कोशिश की लेकिन बाद में जब जाहिदा नहीं मानी तो मेहरबान अली उस के साथ मारपीट करने लगे इसलिए जाहिदा के मन में अपनी पति के लिए नफरत भर गई.

इतना सब तो ठीक था, लेकिन जाहिदा ने अपनी बेटियों को भी अपने रंग में ढालना शुरू कर दिया. मेहरबान अली धार्मिक प्रवृत्ति के थे उन्हें बेटियों का आधुनिक फैशन करना और बेपर्दा हो कर घर से निकलना पसंद नहीं था. वह उन के आधुनिक फैशन पर रोकटोक लगाते थे. इसलिए उन की बेटियां भी उन के से तंग थीं. वे भी अपनी मां की तरह चाहने लगीं कि ऐसे पिता उन की जिंदगी में न रहे. आए दिन मेहरबान अली की टोकाटाकी और अपने बहनोई से मेलजोल में बाधा बनने की वजह से जाहिदा ने करीब 6 महीने पहले अपने पति मेहरबान अली की हत्या कराने की साजिश रचनी शुरू कर दी

वह इस बात की कोशिश कर रही थी कि किसी तरह पति रास्ते से हट जाएगा तो उन की जगह अनुकंपा के आधार पर बेटी जीनत को नौकरी पर लगवा दिया जाएगा. इस से उस का रास्ता भी साफ हो जाएगा और परिवार की गुजरबसर भी होती रहेगी. पति की हत्या कराने के लिए जाहिदा ने 6 महीने पहले अपने बहनोई फारुख के गांव के रहने वाले तहसीन तथा कासिम से बात की. वे दोनों फारुख के दूर के रिश्तेदार भी थे

जाहिदा ने उन से एक लाख रुपए में सौदा तय कर लिया. इस के लिए वह सही मौके का इंतजार करने लगी. जिस के लिए वह अकसर उन दोनों से फोन पर बात करती रहती. इधर जीनत से एकतरफा प्यार करने के कारण अरशद ने जब सना की हत्या कर दी तो मेहरबान अली ने पत्नी और बेटियों पर ज्यादा सख्ती करनी शुरू कर दी. भाड़े के हत्यारों से कराया था कत्ल जाहिदा को लगा कि इस काम को अब जल्द अंजाम देना होगा. सना की भले ही हत्या हो चुकी थी लेकिन वह जानती थी कि मेहरबान अली की मौत हो जाएगी तो जीनत को ये नौकरी मिल जाएगी. लिहाजा इस के लिए 23 जून, 2018 जाहिदा ने तहसीन और कासिम को फोन कर के मुजफ्फरनगर से शाहजहांपुर बुला लिया

क्योंकि उस दिन सुबह उस का दामाद अनीस शहर से बाहर जाने वाला था और उस के होने पर बारदात को अंजाम देना आसान था. जाहिदा के बुलाने पर तहसीन और कासिम शाहजहांपुर गए. और सुबह करीब साढ़े 10 बजे घर में पहुंचे. उस वक्त मेहरबान अली खाना खा कर रात की ड्यूटी से थका होने के कारण बिस्तर पर जा लेटे थे और जल्द ही गहरी नींद में सो गए. तहसीन और कासिम ने गहरी नींद में सोए हुए मेहरबान अली का गला दबा दिया. बचने की कोई गुंजाइश न रहे, इसलिए उन्होंने उन के सिर को कई बार दीवार से दे कर मारा. जिस से उन के सिर में चोट आई. इस के बाद रात को उन्होंने करीब साढ़े 10 बजे मेहरबान अली की बाइक पर ही डैडबौडी को बीच में बैठाने की स्थिति में रखा और लाश 400 मीटर दूर नाले में ले जा कर डाल दी. लेकिन इस से पहले उन्होंने मेहरबान अली के शरीर पर वही कपड़े पहना दिए जिन्हें पहन कर वह ड्यूटी जाते थे.

हाथ में घड़ी और जेब पर्स डाल कर ऐसा बना दिया ताकि लगे कि वह वाकई अपनी ड्यूटी पर गया हो. जाहिदा ने अपने पति के वेतन में से 50 हजार रुपए भाडे़ के कातिलों को एडवांस के रूप में दे दिए. 5 जून, 2018 को ही मेहरबान अली अपनी सैलरी 68 हजार 500 रुपए निकाल कर घर लाए थे. वह पैसे उस ने जाहिदा को दिए थेजाहिदा ने उसी रकम में से 50 हजार रुपए हत्यारों को दिए थे. शेष रकम उस ने जल्द ही देने का आश्वासन दिया था और उन से यह भी कह दिया था कि वह उस से संपर्क करें. काम निपटाने के बाद रात को ही अपने घर चले गए थे.

दरोगा की पत्नी और बेटियां हुईं गिरफ्तार जाहिदा ने अपने नाजायज रिश्तों को बनाए रखने के लिए पति मेहरबान अली को रास्ते से हटाने की साजिश तो पुख्ता रची थी लेकिन वह यह बात शायद नहीं जानती थी कि अपराध चाहे कितनी भी चालाकी से क्यों न किया जाए, एक एक दिन वह खुल ही जाता है. कहते हैं कि कातिल कितना भी चालाक हो वह कोई चूक कर ही जाता है. जरूरी पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने जाहिदा और उस की चारों बेटियों को अदालत में पेश किया जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. उन के जेल भेजने के बाद थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को आशंका थी कि हत्याकांड का खुलासा होने के बाद कहीं भाड़े के हत्यारे पुलिस के चंगुल से दूर हो जाएं इसलिए शाहजहांपुर एसपी सुभाषचंद्र शाक्य ने एसएसपी मुजफ्फरनगर अनंत देव को वारदात की जानकारी देते हुए तावली गांव में रहने वाले दोनों आरोपियों तहसीन और कासिम को तुरंत गिरफ्तार कराने का अनुरोध किया.

तावली गांव शाहपुर थानाक्षेत्र में आता था. पता चला कि तहसीन और कासिम इलाके के शातिर बदमाश हैं. उन के ऊपर जिला पुलिस ने 5-5 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित किया हुआ थाएसएसपी मुजफ्फरनगर अनंत देव के निर्देश पर शाहपुर के थानाप्रभारी कुशलपाल ने उक्त दोनों बदमाशों के घर दबिश दी लेकिन वह घर पर नहीं मिले. इस के बाद मुखबिर की सूचना पर उन दोनों को एक मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार कर लिया

पूछताछ में कासिम और तहसीन ने बताया कि दोनों ने जाहिदा के कहने पर दरोगा मेहरबान अली की हत्या कर उन का शव नाले में डाला था. शाहजहांपुर पुलिस को जब उन के गिरफ्तार होने की जानकारी मिली तो उस ने मुजफ्फनगर पहुंच कर कोर्ट के द्वारा उन्हें हिरासत में ले लिया. बाद में वह उन्हें शाहजहांपुर ले आई. पुलिस ने रिमांड पर ले कर उन से विस्तार से पूछताछ की फिर कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया. 

फिंगर प्रिंट से बचने के लिए पॉलिथिन से प्रेमिका का दबा दिया गला

सोफिया जैसी जाने कितनी लड़कियां हैं जो फोन और इंटरनेट पर बने दोस्तों के झांसे में कर उन्हें अपना सर्वस्व मान बैठती हैं. काश! नादान सोफिया ने सचिन की फितरत को समय रहते समझ लिया होता तो वह आज जीवित होती. उन्नाव जिले के गांव हरचंदपुर के रहने वाले रफीक के परिवार में पत्नी रेहाना के अलावा 2 बेटे थे और 2 बेटियां. खेतीकिसानी के काम में ज्यादा आय होने के बावजूद रफीक चाहते थे कि उन के बच्चे पढ़लिख कर किसी लायक बन जाएं. इसीलिए उन्होंने अपनी बड़ी बेटी सोफिया को पढ़ाने में कोई कोताही नहीं की थी. सोफिया हाईस्कूल कर के आगे की पढ़ाई कर रही थी. उसे चूंकि स्कूल जाना होता था, इसलिए रफीक ने उसे मोबाइल फोन ले कर दे दिया था, ताकि वक्तजरूरत पर घर से संपर्क कर सके. नातेरिश्तेदारों के फोन भी उसी फोन पर आते थे.

जैसा कि आजकल के बच्चे करते हैं, फोन मिलने के बाद सोफिया का ज्यादातर वक्त फोन पर ही गुजरने लगा. सहेलियों को एसएमएस भेजना, उन से लंबीलंबी बातें करना उस की आदत में शुमार हो गया. यहां तक कि उस के मोबाइल पर कोई मिसकाल भी आती तो वह उस नंबर पर फोन कर के जरूर पूछती कि मिसकाल किस ने दी. एक दिन सोफिया के फोन पर एक मिसकाल आई तो उस ने फोन कर के पूछा कि वह किस का नंबर है. वह नंबर लखनऊ के यासीनगंज स्थित मोअज्जम नगर के रहने वाले सचिन का था. उस ने सोफिया को बताया कि किसी और का नंबर लगाते वक्त धोखे से उस का नंबर मिल गया होगा और काल चली गई होगी

बातचीत हुई तो सचिन ने सोफिया को अपना नाम ही नहीं, बल्कि यह भी बता दिया कि वह लखनऊ के मोअज्जमनगर का रहने वाला है. बात हालांकि वहीं खत्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सोफिया को सचिन की बातें इतनी अच्छी लगीं कि उस ने उस का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया. सचिन को भी सोफिया से बात करना अच्छा लगा था. इसलिए उस ने भी बिना नाम के ही उस का नंबर अपने मोबाइल फोन में सेव कर लिया था. करीब एक हफ्ते बाद अचानक सचिन का फोन आया तो मोबाइल स्क्रीन पर उस का नाम देख कर सोफिया खुशी से उछल पड़ी. उस ने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मैं सचिन बोल रहा हूं. पहचाना मुझे?’’

 ‘‘तुम्हारा नंबर मेरे मोबाइल में सेव है.’’ सोफिया ने खुश हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आवाज सुनने से पहले ही पता चल गया था कि तुम हो. कहो, कैसे हो सचिन?’’

‘‘अरे वाह, तुम ने मेरा नंबर सेव कर रखा है. मैं तो डर रहा था कि कहीं बुरा मान जाओ. इसलिए फोन भी नहीं किया.’’ सचिन ने कहा तो सोफिया बोली, ‘‘बुरा क्यों मानूंगी, तुम ने ऐसा कुछ तो कहा नहीं था, जो बुरा मानने लायक हो.’’

सोफिया की खुशी से खनकती आवाज सुन कर सचिन को लगा कि लड़की उस से बातचीत करने में रुचि ले रही है. इसलिए उस ने इस सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए कहा, ‘‘मैं खुशनसीब हूं, जो तुम ने मेरे दोबारा फोन करने का बुरा नहीं माना. पर हो सकता है, अब बुरा मान जाओ.’’

‘‘क्यों, मैं भला बुरा क्यों मानूंगी?’’

‘‘इसलिए कि मैं यह जानना चाहता हूं कि मैं जिस से बात कर रहा हूं, उस का नाम क्या है. बोलो, बताओगी?’’

‘‘इस में बुरा मानने की क्या बात है. मेरा नाम सोफिया है और मैं उन्नाव के गांव हरचंदपुर की रहने वाली हूं.’’

‘‘जब इतना बता दिया है तो फिर यह भी बता दो कि करती क्या हो, दिखती कैसी हो? और भी कुछ बताना चाहो तो वह भी.’’ सचिन ने सोफिया को बातों के जाल में उलझाने के लिए कहा तो सोफिया हलकी सी हंसी के साथ बोली, ‘‘मैं हाईस्कूल कर चुकी हूं, आगे पढ़ रही हूं. मुझे फोन पर बात करना बहुत अच्छा लगता है. रही बात दिखने की तो मेरी आवाज से खुद ही अंदाजा लगा लो कि मैं कैसी दिखती हूं.’’

‘‘तुम्हारी आवाज और मेरा दिल, दोनों ही एक बात कह रहे हैं कि तुम बहुत खूबसूरत होगी. खूबसूरत आंखें, गोरा रंग, छरहरा बदन.’’ सचिन ने कहा तो सोफिया हंसते हुए बोली, ‘‘तुम ज्योतिषी हो क्या? बिना देखे ही मेरे बारे में सारी बातें पता चल गईं.’’

सोफिया की इस बात से सचिन को उस में और भी दिलचस्पी बढ़ गई. वह उस से लंबी बात करना चाहता था. लेकिन सोफिया को स्कूल जाना था. इसलिए उस ने सचिन से कहा, ‘‘अभी नहीं, पढ़ाई भी जरूरी है. फोन करना हो तो रात में करना. तब आराम से बात हो जाएगी.’’ रात को फोन करने की बात सुन कर सचिन मन ही मन खिल उठा. उस का वह दिन बड़ी बेचैनी से गुजरा. रात हुई तो उस ने सोफिया को फोन किया. सोफिया सचिन के ही फोन का इंतजार कर रही थी. उसे पूरा यकीन था कि वह फोन जरूर करेगा. उस ने सचिन से बड़े प्यार से बात की. प्यार की सही परिभाषा को समझने वाला उस का किशोर मन समझ रहा था कि सचिन उसे प्यार करने लगा है. इसलिए वह प्यार की ही बातें करना चाहती थी.

उस रात बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर आगे बढ़ता ही गया. अब सोफिया रात को रोजाना उस के फोन का इंतजार करती थी. इस के लिए दोनों के बीच समय तय थाकामकाज से निपट कर रात में जैसे ही वह अपने कमरे में जाती, सचिन का फोन जाता. वह कानों में ईयरफोन लगा कर उस से देर तक बातें करती रहती. अब रात में वह अपना फोन साइलेंट मोड पर रखने लगी थी. उधर सचिन जो भी कमाता था, उस में से उस का ज्यादातर पैसा फोन पर ही खर्च होने लगा था

एक दिन बातों ही बातों में सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, मुझे तुम से प्यार हो गया है. अब मैं तुम्हारे बिना रह नहीं पाऊंगा.’’ दरअसल इस बीच सोफिया की बातों से सचिन ने अंदाजा लगा लिया था कि जब तक वह सोफिया से प्यार की बात नहीं करेगा, वह उस के चंगुल में नहीं फंसेगी. इसीलिए उस ने यह चाल चली थी. सोफिया तो कब से उस के मुंह से यही सुनने को तरस रही थी. वह बोली, ‘‘सचिन, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम से यही बात कहना चाहती थी. पर समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे कहूं. मैं गांव की रहने वाली सीधीसादी लड़की हूं. जबकि तुम शहर में रहते हो. सोचती थी कि मेरे बारे में पता नहीं क्या समझ बैठोगे, इसलिए कह नहीं पा रही थी. मैं भी तुम से उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम मुझ से करते हो.’’

सोफिया और सचिन भले ही दूरदूर रहते थे, पर दोनों अपने को एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते थे. बातों ने उन के बीच की सारी दूरियां मिटा दी थीं. सोफिया और सचिन को लगने लगा था कि अब वे एकदूसरे के बिना नहीं रह पाएंगे. 12 दिसंबर, 2013 की सुबह के 4 बजे का समय था. लखनऊ की सब से पौश कालोनी आशियाना स्थित थाना आशियाना में सन्नाटा पसरा हुआ था. थाने में पहरे पर तैनात सिपाही और अंदर बैठे दीवान के अलावा कोई नजर नहीं रहा था. तभी साधारण सी एक जैकेट पहने 25 साल का एक युवक थाने में आया.

पहरे पर तैनात सिपाही से इजाजत ले कर वह ड्यूटी पर तैनात दीवान के सामने जा खड़ा हुआ. पूछने पर उस ने बताया, ‘‘दीवान साहब, मैं यहां से 2 किलोमीटर दूर किला चौराहे के पास आशियाना कालोनी में किराए के मकान में रहता हूं. मेरी बीवी मर गई है, थानेदार साहब से मिलने आया हूं.’’ सुबहसुबह ऐसी खबरें किसी भी पुलिस वाले को अच्छी नहीं लगतीं. दीवान को भी अच्छा नहीं लगा. वह उस युवक से ज्यादा पूछताछ करने के बजाए उसे बैठा कर यह बात थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह को बताने चला गया. सुधीर कुमार सिंह को कच्ची नींद में ही उठ कर आना पड़ा. उन्होंने थाने में आते ही युवक से पूछा, ‘‘हां भाई, बता क्या बात है?’’

बुरी तरह घबराए युवक ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम सचिन है और मैं रुचिखंड के मकान नंबर ईडब्ल्यूएस 2/341 में किराए के कमरे में रहता हूं. यह मकान पीडब्ल्यूडी कर्मचारी गुलाबचंद सिंह का है. उन का बेटा अजय मेरा दोस्त है. जिस कमरे में मैं रहता हूं, वह मकान के ऊपर बना हुआ है. मेरी पत्नी ने मुझे दवा लेने के लिए भेजा था, जब मैं दवा ले कर वापस आया तो देखा, मेरी पत्नी छत के कुंडे से लटकी हुई थी. मैं ने घबरा कर उसे हाथ लगाया तो वह नीचे गिर गई. वह मर चुकी है.’’

‘‘घटना कब घटी?’’ सुधीर कुमार सिंह ने पूछा तो सचिन ने बताया, ‘‘रात 10 बजे.’’

‘‘तब से अब तक क्या कर रहे थे?’’ यह पूछने पर सचिन बोला, ‘‘रात भर उस की लाश के पास बैठा रोता रहा. सुबह हुई तो आप के पास चला आया.’’

सचिन ने आगे बताया कि वह यासीनगंज के मोअज्जमनगर का रहने वाला है और एक निजी कंपनी में नौकरी करता है. उस के पिता का नाम रमेश कुमार है. सचिन की बातों में एसओ सुधीर कुमार सिंह को सच्चाई नजर रही थी. मामला चूंकि संदिग्ध लग रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की सूचना क्षेत्राधिकारी कैंट बबीता सिंह को दी और सचिन को ले कर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने जब उस के कमरे का दरवाजा खोला तो फर्श पर एक कमउम्र लड़की की लाश पड़ी थी. उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह शादीशुदा रही होगी.

इसी बीच सीओ कैंट बबीता सिंह भी वहां पहुंच गई थीं. सचिन की पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने लड़की की लाश को गौर से देखा. उन्हें यह आत्महत्या का मामला नहीं लगा. बहरहाल, घटनास्थल की प्राथमिक काररवाई निपटा कर पुलिस ने मृतका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और सचिन को थाने ले आई. कुछ पुलिस वालों का कहना था कि सचिन की बात सच है. लेकिन बबीता सिंह यह मानने को तैयार नहीं थीं. उन्होंने मृतका के गले पर निशान देखे थे और उन का कहना था कि संभवत: उस का गला घोंटा गया है.

कुछ पुलिस वालों का कहना था कि अगर सचिन ने ऐसा किया होता तो वह खुद थाने क्यों आता? अगर उस ने हत्या की होती तो वह भाग जाता. इस तर्क का सीओ बबीता सिंह के पास कोई जवाब नहीं था. बहरहाल, हकीकत पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल सकती थी. सावधानी के तौर पर पुलिस ने सचिन को थाने में ही बिठाए रखा. इस बीच सचिन पुलिस को बारबार अलगअलग कहानी सुनाता रहा. देर शाम जब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो इस मामले से परदा उठा. पता चला, मृतका की मौत दम घुटने से हुई थी और उसे गला घोंट कर मारा गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने के बाद पुलिस ने सचिन से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मुंह खोल दिया. सचिन ने जो कुछ बताया, वह एक किशोरी द्वारा अविवेक में उठाए कदम और वासना के रंग में रंगे एक युवक की ऐसी कहानी थी, जो प्यार के नाम पर दुखद परिणति तक पहुंच गई थी. मृतका सोफिया थी. मिसकाल से शुरू हुई सचिन और सोफिया की प्रेमकहानी काफी आगे बढ़ चुकी थी. फोन पर होने वाली बातचीत के बाद दोनों के मन में एकदूसरे से मिलने की इच्छा बलवती होने लगी थी. तभी एक दिन सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, हमें आपस में बात करते 2 महीने बीत चुके हैं. अब तुम से मिलने का मन हो रहा है.’’

‘‘सचिन, चाहती तो मैं भी यही हूं. लेकिन कैसे मिलूं, समझ में नहीं आता. मैं अभी तक कभी अजगैन से बाहर नहीं गई हूं. ऐसे में लखनऊ कैसे आ पाऊंगी?’’ सोफिया ने कहा तो सचिन सोफिया की नादानी और भावुकता का लाभ उठाते हुए बोला, ‘‘इस का मतलब तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. अगर प्यार करतीं तो ऐसा नहीं कहतीं. प्यार इंसान को कहीं से कहीं ले जाता है.’’

‘‘ऐसा मत सोचो सचिन. तुम कहो तो मैं अपना सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास चली आऊं?’’ सोफिया ने भावुकता में कहा.

‘‘ठीक है, तुम 1-2 दिन इंतजार करो, तब तक मैं कुछ करता हूं.’’  कह कर सचिन ने बात खत्म कर दीदरअसल वह किसी भी कीमत पर सोफिया को हासिल करना चाहता था. इस के लिए वह मन ही मन आगे की योजना बनाने लगा. सचिन का एक दोस्त था सुवेश. सचिन ने उस से कोई कमरा किराए पर दिलाने को कहा. सुवेश को कोई शक हो, इसलिए सचिन ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘दरअसल मैं एक लड़की से प्यार करता हूं और मैं ने उस से शादी करने का फैसला कर लिया है. चूंकि मेरे घर वाले अभी उसे घर में नहीं रखेंगे, इसलिए तुम किसी का मकान किराए पर दिला दो तो बड़ी मेहरबानी होगी. बाद में जब घर के लोग राजी हो जाएंगे तो मैं उसे ले कर अपने घर चला जाऊंगा.’’

सुवेश सचिन का अच्छा दोस्त था. उस की परेशानी समझ कर उस ने कहा, ‘‘मेरा एक दोस्त है अजय. उस का घर रुचिखंड में है. उस के मकान का ऊपर वाला हिस्सा खाली है. मैं उस से बात करता हूं. अगर अजय तैयार हो गया तो तुम्हें कमरा मिल जाएगा. वह 2 हजार रुपए कमरे का किराया लेगा. साथ ही एक महीने का एडवांस देना होगा.’’ सचिन इस के लिए तैयार हो गया. सुवेश ने अजय से बात की और अजय ने अपने पिता से. अजय का कोई दोस्त अपनी पत्नी के साथ रहेगा यह जान कर अजय के पिता गुलाबचंद राजी हो गए. सचिन ने कमरा देख कर एडवांस किराया दे दिया. इस के बाद उस ने 8 दिसंबर को सोफिया को फोन कर के कहा, ‘‘सोफिया, मैं तुम्हें लखनऊ बुलाना चाहता हूं. मैं 10 तारीख को तुम्हें अजगैन में मिलूंगा. हम 1-2 महीने अकेले रहेंगे. इस बीच मैं अपने घर वालों को राजी कर लूंगा और फिर तुम्हें अपने घर ले जाऊंगा.’’

सोफिया यही चाहती थी. वह पहले से ही सचिन के साथ जिंदगी जीने के सपने देख रही थी. योजनानुसार सोफिया 10 दिसंबर की सुबह अपने घर से निकली तो उस की मां ने पूछा, ‘‘आज स्कूल नहीं जाएगी क्या?’’

‘‘नहीं मां, आज दादी की दवा लेनी है, वही लेने जा रही हूं. थोड़ी देर में लौट आऊंगी.’’ कह कर सोफिया घर से निकल गई. उस ने घर से 10 हजार रुपए और चांदी की एक जोड़ी पायल भी साथ ले ली थी. अपने गांव से वह सीधी अजगैन पहुंची. सचिन उसे तयशुदा जगह पर मिल गया. उस से मिलने की खुशी में 17 साल की सोफिया अपने मांबाप की इज्जतआबरू, मानसम्मान, प्यार और विश्वास सब भूल गई. वहां से दोनों लखनऊ गए. सचिन सोफिया को अपने कमरे पर ले गया. खाना वगैरह दोनों ने बाहर ही खा लिया था.

कमरे पर पहुंचते ही सोफिया सचिन से शादी की बात करने लगी. सचिन ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘मुझ पर भरोसा रखो. हम जल्द ही शादी भी कर लेंगे. मैं तुम्हें सारी बातें पहले ही बता चुका हूं.’’  दरअसल सचिन किसी भी तरह जल्द से जल्द सोफिया को हासिल कर लेना चाहता था. गहराती रात के साथ सचिन की जवानी हिलोरें मारने लगी तो वह सोफिया के चाहते हुए भी अकेलेपन का लाभ उठा कर उसे हासिल करने की कोशिश करने लगा. सोफिया ने काफी हद तक खुद को बचाने की कोशिश की. लेकिन धीरेधीरे उस का विरोध कम हो गया और सचिन मनमानी करने में सफल रहा. सोफिया खुद को यह दिलासा दे रही थी कि आज सही कल शादी तो होनी ही है. जो शादी के बाद होना था वह पहले ही सही.

अगले दिन सोफिया सचिन से शादी करने की जिद करने लगी. जबकि सचिन चाहता था कि वह किसी तरह अपने घर वापस चली जाए. उस ने बहानेबाजी कर के उसे लौट जाने को कहा तो सोफिया बोली, ‘‘घर से भाग कर आने वाली लड़की के लिए घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं. मैं अब वापस नहीं लौट सकती.’’ 

सचिन और सोफिया का वह पूरा दिन प्यार और मनुहार के बीच गुजरा. रात गहरा गई तो सोफिया खाना खा कर सो गई. जबकि सचिन जाग रहा था. उस की समझ में नहीं रहा था कि सोफिया से कैसे पीछा छुड़ाए. उस के मन में खयाल आया कि क्यों वह गला दबा कर सोफिया को मार डाले. लेकिन उसे लगा कि इस से उस की अंगुलियों के निशान सोफिया के गले पर जाएंगे और वह पकड़ा जाएगा. आखिरकार काफी सोचविचार कर उस ने अपने हाथों पर पौलीथिन लपेट ली और सोती हुई सोफिया का गला दबाने लगा.

इस से सोफिया जाग गई और अपना बचाव करने का प्रयास करने लगी. सचिन जवान था और सोफिया से ताकतवर भी. वैसे भी वह योजना बना कर उस की हत्या कर रहा था. सोफिया एक तो शरीर से कमजोर थी, दूसरे उसे सचिन से ऐसी उम्मीद नहीं थी. इस के बावजूद वह पूरा जोर लगा कर बचने की कोशिश करने लगी. इस पर सचिन ने उस के सिर पर जोरो से वार किया. इस से वह बेहोश हो गई. सचिन को मौका मिला तो उस ने सोफिया का गला दबा कर उसे मार डाला. 

सोफिया के मरने के बाद सचिन के हाथपांव फूल गए. उस की समझ में नहीं रहा था कि वह करे तो क्या करे. रात भर वह सोफिया की लाश के पास बैठा रोता रहा. काफी सोचने के बाद जब उसे लगा कि अब वह बच नहीं पाएगा तो वह सुबह 4 बजे आशियाना थाने जा पहुंचा. उस ने अपने बचाव के लिए झूठी कहानी भी गढ़ी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट और सीओ बबीता सिंह के सामने उस का झूठ टिक नहीं सका.पुलिस ने मामले की जानकारी सोफिया के घर वालों को दी तो वे लखनऊ गए. उन लोगों ने बताया कि सोफिया किसी लड़के के साथ भाग आई थी. उन्हें सोफिया का शव सौंप दिया गया. लंबी पूछताछ के बाद सचिन के बयान की पुष्टि के लिए पुलिस ने मकान मालिक गुलाबचंद और उन के बेटे अजय उस के दोस्त सुवेश से भी पूछताछ की.

आशियाना पुलिस ने सचिन के खिलाफ भादंवि की धारा 363, 376, 302 और पोक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन औफ चिल्ड्रन फ्राम सैक्सुअल आफेंसेज एक्ट) की धारा 3/4 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. पूछताछ के बाद उसे जेल भेज दिया गया. इस में कोई दो राय नहीं कि सचिन के पास बचने के तमाम रास्ते थे. वह सोफिया को कहीं बाजार में अकेला छोड़ कर भाग सकता था. उसे उस के घर पहुंचा सकता था. सोफिया नादान और नासमझ थी. वह 2 माह पुरानी मोबाइल की दोस्ती पर इतना भरोसा कर बैठी कि परिवार छोड़ कर लखनऊ गई. उस ने जिस पर भरोसा किया, वही उस का कातिल बन गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में सोफिया नाम परिवर्तित है.

एक्ट्रेस ने तीसरी शादी के लिए रचा मौत का नाटक

मराठी फिल्मों  और धारावाहिकों में  काम करने वाली 2 शादियां कर चुकी 3 बच्चों की मां अलका पुनेवर को अपनी बड़ी बेटी से भी कम उम्र के आलोक पालीवाल से प्यार हुआ तो उस की पत्नी बनने के लिए उस ने अपनी ही मौत का ड्रामा रच डालामराठी फिल्मों और टीवी सीरियलों की जानीमानी सहअभिनेत्री अलका पुनेवर नाश्ता करते समय पति संजय पुनेवर से बोली, ‘‘मेरा आज का शेड्यूल बहुत बिजी है.

पहले मुझे एक स्टेज कार्यक्रम में भाग लेने के लिए नवी मुंबई के उरण जाना है. इस के बाद एक फिल्म की शूटिंग के लिए पूना जाऊंगी. जो लोग उरण में कार्यक्रम करा रहे हैं, वही थाणे रेलवे स्टेशन पर एक कार भेज देंगे. कार्यक्रम खत्म होने के बाद वही कार मुझे पूना छोड़ देगी.’’ अलका पुनेवर की इस बात पर संजय पुनेवर और उन के दोनों बच्चों को जरा भी हैरानी नहीं हुई, क्योंकि इस तरह की बातें उन के लिए आम थीं. नाश्ता करने के बाद संजय पुनेवर पत्नी को कार से थाणे रेलवे स्टेशन के पास छोड़ कर अपने औफिस चले गए. यह 27 दिसंबर, 2013 की बात है.

रात करीब 10 बजे संजय पुनेवर घर लौटे तो उन्होंने अपने बच्चों प्रतीक और पीयूष से अलका के बारे में पूछा. बच्चों ने बताया कि वह अभी नहीं लौटी हैं. अलका को शूटिंग से लौटने में कभी देर भी हो जाया करती थी, इसलिए उन्होंने सोचा कि खाना खाने के बाद वह उस से इत्मीनान से बात करेंगे. खाना खाने के बाद उन्होंने पत्नी अलका को फोन लगाया, लेकिन उस का फोन स्विच औफ बता रहा था. उन्होंने कई बार नंबर मिलाया, हर बार यही बताया गया कि डायल किया गया नंबर स्विच्ड औफ है. फोन नहीं मिला तो वह यह सोच कर सोने चले गए कि वह किसी खास काम में बिजी होगी, सुबह बात कर लेंगे.

28 दिसंबर, 2013 की सुबह जब उन की आंखें खुलीं तो उन्होंने अपने मोबाइल पर अलका का एसएमएस देखा. उन की जान में थोड़ी जान आई. वह एसएमएस सुबह साढ़े 4 बजे आया था. मगर उस एसएमएस में अलका ने यह नहीं लिखा था कि वह कहां है और घर कब लौटेगी. उस ने बेटे प्रतीक को लिखा था कि वह अपना बायोडाटा फलां कंपनी को मेल कर देअलका और संजय के जुड़वां बेटे प्रतीक और पीयूष थे, जो अब 19-19 साल के हो चुके हैं. प्रतीक इंजीनियरिंग कर रहा था और पीयूष मैनेजमेंट. एसएमएस पढ़ने के बाद संजय ने अलका को फोन किया, लेकिन इस बार भी उस के फोन ने स्विच्ड औफ बताया.

धीरेधीरे अलका को घर से गए 36 घंटे बीत चुके थे. इस बीच उस के बारे में पता नहीं चला कि वह कहां है, क्या कर रही है, कब लौटेगी? उसे ले कर संजय पुनेवर और उन के दोनों बेटे परेशान थे. संजय को अलका से शादी किए 22 साल हो चुके थे. इन 22 सालों में ऐसा पहली बार हुआ था कि आउटडोर शूटिंग पर जाने के दौरान उस का मोबाइल फोन बंद हुआ था.

संजय का धैर्य जवाब दे चुका था. किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए वह बच्चों के साथ पत्नी को ढूंढ़ने के लिए निकल पड़े. उन्होंने उस के सभी दोस्तों को फोन कर के उस के बारे में पूछा, नातेरिश्तेदारों के यहां भी फोन किया. लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई खबर नहीं मिली. थकहार कर वह थाना कोपरी पहुंचे और थानाप्रभारी मीरा वनसोडे को पत्नी के गायब होने की सूचना दी तो थानाप्रभारी ने अलका पुनेवर की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

मामला एक प्रतिष्ठित परिवार और फिल्म अभिनेत्री की गुमशुदगी का था, इसलिए थानाप्रभारी ने अलका पुनेवर के गायब होने की जानकारी पुलिस आयुक्त के.पी. रघुवंशी, पुलिस उपायुक्त बालासाहेब पाटिल के साथ पुलिस कंट्रोलरूम को भी दे कर खुद अपने स्तर से उस की तलाश भी करने लगीं. गुमशुदगी दर्ज करा कर संजय अभी घर लौटे ही थे कि उन के साले अमित मिश्रा का फोन आया कि मुंबई से पूना जाने वाली रोड पर गहरी खाई में एक कार गिरी मिली है, जिसे खापोली पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया है. उस कार के अंदर से अलका के कुछ कागजात बरामद हुए हैं. मैं खापोली थाने के लिए निकल रहा हूं, आप भी वहां जल्दी से पहुंचें.

खाई में कार गिरने की जानकारी थाना कोपरी के थानाप्रभारी को भी मिल चुकी थी. संजय पुनेवर उस जगह के लिए निकल पड़े, जहां खाई में कार गिरे होने की जानकारी मिली थी. उन के और उन के साले अमित मिश्रा के वहां पहुंचने से पहले कोपरी थाने की पुलिस वहां पहुंच चुकी थी. कार देखने के बाद संजय ने पुलिस को बताया कि यह कार अलका की नहीं है.

थाना खापोली पुलिस ने खाई में गिरी कार से जो कागजात बरामद किए थे, उन में अलका पुनेवर का पासपोर्ट भी था. सारे कागजातों को थाना कोपरी पुलिस ने थाना खापोली पुलिस से अपने कब्जे में ले लिए. कार की छानबीन की गई तो उस में एक भी ऐसा सुबूत नहीं मिला, जिस से लगता कि इस दुर्घटना में किसी की जान की क्षति हुई हो. इस से संजय पुनेवर की जान में जान आई.

उन्होंने राहत की सांस ली. पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि जब कार खाई में गिरी तो इसे चलाने वाला कहां चला गया? और यह कार अलका की नहीं है तो और किस की है? पुलिस को इस मामले में किसी गहरी साजिश की गंध आने लगी. मामला हाईप्रोफाइल परिवार से जुड़ा था, इसलिए पुलिस कमिश्नर ने इस मामले की जांच में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया. क्राइम ब्रांच के चीफ हिमांशु राय के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में अपर पुलिस आयुक्त निकेत कौशिक, पुलिस उपायुक्त अंबादास पोटे, सहायक पुलिस आयुक्त प्रफुल्ल जोशी क्राइम यूनिट-1 के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक नंदकुमार गोपाले को शामिल किया गया. इस टीम ने अभिनेत्री अलका के मामले की तफ्तीश बड़ी सरगरमी से शुरू कर दी.

टीम ने अलका के पति संजय पुनेवर और उन के दोनों बेटों प्रतीक पीयूष को क्राइम ब्रांच के औफिस में बुला कर उन से अलका के बारे में गहन पूछताछ की. पुलिस ने संजय पुनेवर का वह मोबाइल फोन भी अपने कब्जे में लिया, जिस पर अलका का एसएमएस आया था. जिस फोन नंबर से वह एसएमएस भेजा गया था, उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि जिस समय संजय के फोन पर वह एसएमएस आया था, उस के चंद सेकेंड बाद वही एसएमएस एक दूसरे फोन नंबर पर भी भेजा गया था. पुलिस ने उस नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो जानकारी मिली कि यह नंबर किसी आलोक पालीवाल का था और वह नंबर तकरीबन 6 महीने पहले बंद हो चुका था.

अब पुलिस की जांच की दिशा बदल गई. पुलिस पता लगाने लगी कि आलोक पालीवाल कौन है? पुलिस पता लगाने की कोशिश करने लगी कि आलोक पालीवाल के फोन में अब किस कंपनी का सिम कार्ड ऐक्टिव है. फोन के आईएमईआई नंबर से पुलिस को आलोक का नया नंबर मिल गया. इस के बाद पुलिस ने उस के नए नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. इस काल डिटेल्स के अध्ययन पर चौंकाने वाली जानकारी मिली. पता चला कि उस नंबर से अलका पुनेवर की नियमित लंबी बातें होती थीं. वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक नंदकुमार गोपाले ने अलका के पति से आलोक पालीवाल के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि इस नाम का उस का कोई रिश्तेदार नहीं है और ही उन्होंने कभी अलका के मुंह से आलोक पालीवाल के बारे में कुछ सुना है.

आलोक पालीवाल की काल डिटेल्स में मिले नंबरों में से पुलिस टीम को एक नंबर पर शक हुआ. जांच में पता चला कि वह नंबर उस के दोस्त संजीव कुमार का था. पुलिस ने आलोक को डिस्टर्ब करने के बजाए संजीव कुमार को बुला लिया. उस से आलोक और अलका के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने अलका और आलोक पालीवाल की लवस्टोरी का सारा रहस्य उजागर करते हुए पूरी साजिश का खुलासा कर दिया. संजीव की निशानदेही पर क्राइम ब्रांच पुलिस चेन्नई पुलिस के सहयोग से 4 फरवरी, 2014 को अलका पुनेवर और आलोक पालीवाल को चेन्नई के एक फाइवस्टार होटल से हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए मुंबई ले आई. पुलिस अनुमान लगा रही थी कि अलका किसी साजिश का शिकार हुई है. लेकिन अलका से की गई पूछताछ में जो जानकारी मिली, उस के अनुसार खापोली थाना के अंतर्गत खाई में जो कार गिरी थी, वह एक साजिश के तहत गिराई गई थी. इस साजिश के पीछे के इरादे का पता चलने पर सभी दंग रह गए.

50 वर्षीया अलका पुनेवर के बचपन का नाम अलका मिश्रा था. सालों पहले उस के दादापरदादा रोजीरोटी की तलाश में उत्तर प्रदेश से नागपुर (महाराष्ट्र) कर बस गए थे. धीरेधीरे यह परिवार महाराष्ट्र की भाषा और रीतिरिवाजों में रंग गया. अलका की पढ़ाईलिखाई मराठी मीडियम से हुई. वह परिवार की एकलौती बेटी थी. उस का एक छोटा भाई था अमित मिश्रा. ऐशोआराम से पलीबढ़ी अलका अतिमहत्वाकांक्षी लड़की थी. उसे बचपन से ही मराठी फिल्में और टीवी सीरियल्स देखने का शौक था, इसलिए उस का झुकाव मराठी फिल्मों और टीवी सीरियलों की तरफ अधिक था. खूबसूरत अलका मराठी फिल्म और टीवी सीरियलों में काम कर के ग्लैमर की दुनिया में चमकना चाहती थी.

जब इस बात का अलका के पिता को पता चला तो वह परेशान हो उठे. वह नहीं चाहते थे कि उन की बेटी फिल्मों या टीवी सीरियलों में काम करे. उन्होंने अलका को समझाया, लेकिन वह नहीं मानी. इसलिए अलका के पढ़ाई खत्म करते ही उन्होंने उस की शादी तय कर दी. लड़का एक जानीमानी कंपनी में अच्छी पोस्ट पर था. उस के सिर से फिल्मों का भूत उतर जाए, इसलिए घर वालों ने उसे सात फेरों के बंधन में बांध दिया.

शादी के बाद अलका को एक बेटी पैदा हुई. लेकिन फिल्मों की दीवानी अलका को शादी का बंधन रास नहीं आया. एक बच्ची की मां होने के बाद भी उस की फिगर में गजब का आकर्षण था. उस के दिमाग से फिल्मों और टीवी सीरियलों का भूत नहीं उतरा था. वह अपनी दुधमुंही बच्ची की परवाह किए बिना सिल्वर स्क्रीन पर काम करने के लिए स्ट्रगल करने लगी. पति को उस की यह बात अच्छी नहीं लगी. लिहाजा दोनों के बीच मतभेद होने से परिवार में विवाद होने लगा. फिर नौबत तलाक तक पहुंच गई.

पति से तलाक होने के बाद अलका मुंबई में अपने एक रिश्तेदार के यहां गई. अब वह अकेली थी, इसलिए काम के लिए फिल्म निर्माताओं के यहां चक्कर लगाने लगी. उस की मेहनत रंग लाई और उसे मराठी फिल्मों और टीवी सीरियलों में सहकलाकार की भूमिकाएं मिलने लगीं. कुछ दिनों बाद अलका को पति की कमी खलने लगी. तब अलका ने मुंबई के सटे जनपद थाणे के कोपरी में रहने वाले संजय पुनेवर से विवाह कर लिया. संजय पुनेवर एयरफोर्स में अधिकारी और खुले विचारों वाले आदमी थे. उन्हें अलका के मामलों से कुछ लेनादेना नहीं था और ही अलका के फिल्मों में काम करने से कोई परहेज था.

संजय पुनेवर का परिवार आधुनिक विचारों वाला था, इसलिए अलका को उस के परिवार ने स्वीकार कर लिया. फिल्मों और टीवी सीरियलों में काम करते हुए उन का दांपत्यजीवन अच्छी तरह से चल रहा था. अलका ने जुड़वां बेटों को जन्म दिया, जिन का नाम प्रतीक और पीयूष रखा गया. संजय पुनेवर अपने दांपत्यजीवन से बहुत खुश थे. ग्लैमर की दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाली अलका पुनेवर खुले दिल और विचारों वाली महिला थी. जिस संजय पुनेवर से 20 साल पहले अलका ने अपनी नन्ही सी बच्ची और पति को छोड़ कर शादी की थी, अब उसी संजय को छोड़ कर उस का झुकाव अपने से आधी उम्र वाले युवक आलोक पालीवाल की तरफ हो गया था.

अलका पुनेवर का दिल जिस आलोक पालीवाल के लिए धड़क रहा था, उस की उम्र उस के पहले पति से जन्मी बेटी से भी कम थी. नागपुर में रहने वाला आलोक पालीवाल का परिवार भी अलका के परिवार वालों की तरह उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. आलोक पालीवाल के पिता रामचंद्र पालीवाल सुप्रसिद्ध प्लास्टिक सर्जन थे, जो बैंकाक के किसी अस्पताल में काम करते थे. चूंकि अलका अपनी खूबसूरती को बनाए रखना चाहती थी, इसलिए आलोक पालीवाल से मिलने के बाद बैंकाक जा कर उस के पिता से अपने चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी भी करवाई थी.

आलोक पालीवाल एक हैंडसम युवक था. इंजीनियरिंग करने के बाद उस ने बैंकाक से एमबीए किया था. उस के बाद एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस में एक बड़ी पोस्ट पर काम करने लगा था. अलका पुनेवर और आलोक पालीवाल की मुलाकात लगभग 6 महीने पहले एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस की एक बिजनैस मीटिंग में हुई थी. उस मीटिंग में अलका पुनेवर एक गेस्ट के रूप में आई थी. उसी दौरान अलका को पता चला था कि आलोक का परिवार भी मूलरूप से उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. इस मुलाकात के बाद उन के बीच होने वाली मुलाकातों ने उन्हें प्यार के मुकाम तक पहुंचा दिया था.

आलोक पालीवाल भी अपनी उम्र से 25 साल बड़ी अलका पुनेवर के प्यार में दीवाना हो गया था. दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. आलोक पालीवाल ने जब अलका से शादी करने की बात घर वालों से कही तो घर वाले उस की पसंद पर चौंके. क्योंकि पहली बात तो यह थी कि अलका उस से उम्र में लगभग दोगुनी थी. इस के अलावा यह भी पता चला था कि अलका की 2 शादियां पहले भी हो चुकी थीं. पहले पति से उस की एक 24 साल की बेटी थी. दूसरे पति संजय पुनेवर से 19-19 साल के 2 बेटे थे. अमित ने तय कर लिया था कि कुछ भी हो जाए, वह अलका से जुदा नहीं होगा.

फिल्म और टीवी सीरियलों की लिखी गई स्क्रिप्ट पर काम करने वाली अलका पुनेवर ने आलोक के साथ रहने के लिए उस के साथ मिल कर एक रहस्यमय स्क्रिप्ट लिख डाली. उस स्क्रिप्ट में अलका पुनेवर और आलोक पालीवाल ने अपने एक दोस्त संजीव कुमार को भी शामिल कर लिया. संजीव कुमार और आलोक पालीवाल बचपन के दोस्त थे. स्कूल और कालेज की पढ़ाई भी दोनों ने साथसाथ की थी. आलोक की नौकरी बंगलुरू स्थित एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस में लगी तो संजीव कुमार एयरटेल कंपनी में नौकरी पर लग गया. उस की पोस्टिंग मुंबई में थी.

अपनी लिखी गई स्क्रिप्ट के अनुसार आलोक पालीवाल संजीव कुमार और अलका पुनेवर ने घटना से 5 दिनों पहले 22 दिसंबर, 2013 को 28 हजार रुपए में एक पुरानी कार खरीदी. योजनानुसार, 27 दिसंबर, 2013 को अलका अपने पति संजय पुनेवर और बच्चों से शूटिंग पर जाने के लिए कह कर घर से निकली. संजय ने उसे कार से थाणे रेलवे स्टेशन के पास छोड़ दिया. कुछ देर बाद आलोक पालीवाल और संजीव कुमार कार ले कर वहां गए. अलका उन की कार में बैठ गई. उन्होंने उसे सीएसटी रेलवे स्टेशन छोड़ा और उसे लोकल ट्रेन पकड़ कर उरण आने को कहा. मगर अलका ट्रेन के बजाए बस से उरण जा पहुंची. थोड़ी देर बाद आलोक और संजीव भी कार से उरण पहुंच गए.

तीनों ने एक होटल में बैठ कर आगे की योजना बनाई. योजना के अनुसार अलका पूना के लिए निकल पड़ी. जबकि आलोक पालीवाल और संजीव कुमार कार ले कर पूनाखडाला की तरफ. रात 12 बजे के करीब वह खापोली पहुंचे, जहां 8-9 सौ फुट गहरी खाई थी. पोली के हील पौइंट पर ले जा कर दोनों कार से उतर गए. उन्होंने अलका के पासपोर्ट की फोटोकौफी और अन्य कागज कार में रख कर धक्का दिया तो कार खाई में गिर गई. उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि लोग समझें कि अलका पुनेवर की इस हादसे में मौत हो गई है.

उन्होंने कार तो खाई में गिरा दी, लेकिन इस बात की जानकारी लोगों तक कैसे पहुंचे कि मराठी फिल्मों और टीवी सीरियलों की जानीमानी अभिनेत्री अलका पुनेवर की कार ऐक्सीडेंट में मौत हो गई है, इस के लिए आलोक और संजीव मुंबईपूना एक्सप्रेस हाइवे पर आए और वहां से गुजरने वाले ट्रक ड्राइवरों को रोक कर उन्हें खाई में गिरी कार की जानकारी दी. उन की बात सुन कर ट्रक चालक उस कार और उस महिला की मदद के लिए आगे आए. थोड़ी देर में वहां काफी लोग जमा हो गए. आलोक और संजीव मौका देख कर वहां से खिसक गए और बस पकड़ कर पूना चले गए. वहां उन्हें अलका मिल गई. आलोक और अलका वहां से बंगलुरू और फिर चेन्नई चले गए, जबकि संजीव कुमार मुंबई लौट गया. वहीं से आलोक पालीवाल ने अपने पास छोड़े गए अलका के मोबाइल से संजय पुनेवर और एक दूसरे नंबर पर एसएमएस कर दिया था.

अलका का सोचना था कि वह मामला शांत होने पर अपने चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करवा कर आलोक पालीवाल से शादी कर लेगी. प्लास्टिक सर्जरी कराने के बाद उसे कोई पहचान नहीं पाएगा. मगर उस की इस साजिश का खेल एसएमएस ने बिगाड़ दिया और वह पकड़ी गई. उसी के साथ साजिश रचने वाला आलोक भी पकड़ा गया. अलका पुनेवर ने पुलिस को बताया कि उस का पति संजय पुनेवर उसे मानसिक रूप से परेशान करता था, जिस की वजह से उस ने यह कदम उठाया. क्राइम ब्रांच यूनिट-1 की टीम ने तीनों को थाना कोपरी की थानाप्रभारी मीरा वनसोडे को सौंप दिया. जांच पूरी कर के मीरा वनसोडे ने मामले की फाइल पुलिस उपायुक्त बालासाहेब पाटिल को सौंप दी.

आलोक पालीवाल और अलका पुनेवर का मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं था. उन के खिलाफ किसी ने कोई शिकायत भी नहीं दर्ज नहीं कराई थी. इसलिए उन के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता था. पुलिस उपायुक्त बालासाहेब ने तीनों को घर जाने दिया. थाने से निकल कर अलका पुनेवर घर जाने के बजाए आलोक पालीवाल के साथ चली गई थी.

    

कौन थी मरजान जिसे गुल का प्यार नहीं मिला तो कहा अलविदा

समर गुल हत्या कर के फरार हुआ था, सरहद पार कबीले के सरदार नौरोज खान ने उसे शरण दी. लेकिन नौरोज की बेटी समर गुल और मरजाना एकदूसरे को प्यार कर बैठे, जो कबाइली परंपरा के विपरीत था. आखिर क्या हुआ उन के प्यार का अंजाम…    

मर गुल ने जानबूझ कर एक अभागे की हत्या कर दी थी. पठानों में ऐसी हत्या को बड़ी इज्जत की नजर से देखा जाता था और हत्यारे की समाज में धाक बैठ जाती थी. समर गुल की उमर ही क्या थी, अभी तो वह विद्यार्थी था. मामूली तकरार पर उस ने एक आदमी को चाकू घोंप दिया था और वह आदमी अस्पताल ले जाते हुए मर गया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए समर गुल कबाइली इलाके की ओर भाग गया था.

 जब वह वहां के गगनचुंबी पहाड़ों के पास पहुंचा तो उसे कुछ ऐसा सकून मिला, जैसे वे पहाड़ उस की सुरक्षा के लिए हों. सरहदें कितनी अच्छी होती हैं, इंसान को नया जन्म देती हैं. फिर भी यह इलाका उस के लिए अजनबी था, उसे कहीं शरण लेनी थी, किसी बड़े खान की शरण. क्योंकि मृतक के घर वाले किसी कबाइली आदमी को पैसे दे कर उस की हत्या करवा सकते थे. पठानों की यह रीत थी कि अगर वे किसी को शरण देते थे तो वे अपने मेहमान की जान पर खेल कर रक्षा करते थे.

वह एक पहाड़ी पर खड़ा था, उसे एक गांव की तलाश थी. दूर नीचे की ओर उसे कुछ भेड़बकरियां चरती दिखाई दीं. उस ने सोचा, पास ही कहीं आबादी होगी. वह रेवड़ के पास पहुंच कर इधरउधर देखने लगा. गड़रिया उसे कहीं दिखाई नहीं दिया. अचानक एक काले बालों वाला कुत्ता भौंकता हुआ उस की ओर लपका. उस ने एक पत्थर उठा कर मारा, लेकिन कुत्ता नहीं रुका. उस ने चाकू निकाल लिया, तभी एक लड़की की आवाज आई, ‘‘खबरदार, कुत्ते पर चाकू चलाया तो…’’ 

उस ने उस आवाज की ओर देखा तो कुत्ता उस से उलझ गया. उस की सलवार फट गई. कुत्ते ने उस की पिंडली में दांत गड़ा दिए थे. आवाज एक लड़की की थी, उस ने कुत्ते को प्यार से अलग किया और उसे एक पेड़ से बांध दिया. समर गुल एक चट्टान पर बैठ कर अपने घाव का देखने लगा. लड़की ने पास कर कहा, ‘‘मुझे अफसोस है, मेरी लापरवाही की वजह से आप को कुत्ते ने काट लिया.’’

समर गुल ने गुस्से से लड़की की ओर देखा तो उसे देखता ही रह गया. वह बहुत सुंदर लड़की थी. उस की शरबती आंखों में शराब जैसा नशा था. लड़की ने पिंडली से रिसता हुआ खून देखा तो भाग कर पानी लाई और उस का खून साफ किया. फिर अपना दुपट्टा फाड़ कर उसे जलाया और समर के घाव पर उस की राख रखी, जिस से खून बंद हो गया. समर गुल उस लड़की की बेचैनी और तड़प को देखता रहा. खून बंद हो गया तो वह खड़ी हो गई.

‘‘कोई बात नहीं,’’ समर गुल ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कुत्ते ने अपनी ड्यूटी की और इंसान ने अपनी ड्यूटी.’’

‘‘अजनबी लगते हैं आप.’’ लड़की ने कहा तो उस ने अपनी पूरी कहानी उसे सुना दी.

‘‘अच्छा तो आप फरार हो कर आए हैं. मैं बाबा को आप की कहानी सुनाऊंगी तो वह खुश होंगे, क्योंकि काफी दिन बाद हमारे घर में किसी फरारी के आने की चर्चा होगी.’’

मलिक नौरोज खान एक जिंदादिल इंसान था. 70-75 साल की उमर होने पर भी स्वस्थ और ताकतवर जवान लड़कों जैसा. बड़ा बेटा शाहदाद खान सरकारी नौकरी में था जबकि छोटा बेटा शाहबाज खान जिसे सब प्यार से बाजू कहते थे, बड़ा ही खिलंदड़ा और नटखट था. वह बहन ही की तरह सुंदर और प्यारा था. बेटी की जुबानी समर गुल की कहानी सुन कर नौरोज ने सोचा कि इतनी कम उम्र का बच्चा हत्यारा कैसे हो सकता है. फिर भी उस के लिए अच्छेअच्छे खाने बनवाए गए. उसे घर में रख लिया गया. कुछ दिन के बाद समर गुल ने सोचा, कब तक मेहमान बन कर इन के ऊपर बोझ बनूंगा, इसलिए कोई काम देखना चाहिए. उस ने नौरोज खान से बात करना ठीक नहीं समझा. के लिए उसे मरजाना से बात करना ठीक लगा. हां, उस लड़की का ही नाम मरजाना था.

अगले दिन सुबह उस ने मरजाना से कहा, ‘‘बात यह है कि मुझे लकड़ी काटना नहीं आता, हल चलाना नहीं आता. मैं ने सोचा कि रेवड़ तो चरा सकता हूं. मुफ्त की रोटी खाते मुझे शरम आती है.’’

‘‘यह काम भी तुम से नहीं होगा, तुम इस काम के लिए पैदा ही नहीं हुए हो. मुझे तो हैरानी है कि तुम ने हत्या कैसे कर दी. तुम ऐसे ही रहो, तुम्हें मुफ्त की रोटी खाने का ताना कोई नहीं देगा.’’

‘‘अगर मुझे सारा जीवन फरारी बन कर रहना पड़ा तो?’’

‘‘मैं बाबा से बात करूंगी, वह भी यही कहेंगे जो मैं ने कहा है.’’ इतना कह कर वह रेवड़ ले कर चली गई और समर गुल उसे जाते हुए देखता रहा. हकीकत जान कर नौरोज ठहाका मार कर हंसा और समर से बोला, ‘‘फरारी बाबू, मैं ने तुम्हारे लिए काम ढूंढ लिया है. तुम बाजू को पढ़ाया करोगे.’’

यह काम उस के लिए बहुत अच्छा था. अगले दिन से उस ने केवल बाजू को बल्कि गांव के और बच्चों को इकट्ठा कर के पढ़ाना शुरू कर दिया. शाम के समय चौपाल लगती थी, गांव के सब बूढ़ेबच्चे इकट्ठे हो जाते. समर गुल भी चौपाल पर चला जाता था. वहां कोई कहानी सुनाता, कोई चुटकुले और कोई शेरोशायरी. यह सभा आधीआधी रात तक जमी रहती थी. रात को लौट कर समर गुल जब दरवाजा खटखटाता तो मरजाना ही दरवाजा खोलती, क्योंकि मलिक नौरोज खान ऊपर के माले पर सोता था.

समर गुल को यहां आए हुए 2-3 महीने हो गए थे, लेकिन मरजाना से उस की बात नहीं हो पाई थी, क्योंकि वह उस से डराडरा सा रहता था. वह समर से हंस कर पूछती, ‘‘ गए…’’ वह उसे सिर झुकाए जवाब देता, लेकिन एक पल के लिए भी वहां नहीं रुकता था और अपने कमरे में जा कर लेट जाता था. वह बिस्तर पर भी मरजाना के बारे में सोचता रहता थामरजाना का व्यवहार सदैव उस के प्रति प्यार भरा होता था. लेकिन अब वह उस की तरफ और भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी. एक रात जब वह आया तो मरजाना ने रोज की तरह कहा, ‘‘ गए…’’

वह कुछ नहीं बोला और खड़ा रहा. दोनों के ही दिल तेजी से धड़क रहे थे. दोनों ने एक अनजानी सी खुशी और डर अपने अंदर महसूस किया. मरजाना ने धीरे से कहा, ‘‘अंदर आ जाओ.’’ वह अंदर आ गया. मरजाना ने दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी. फिर भी वह वहीं खड़ा रहा. मरजाना भी वहीं खड़ी उसे निहारती रही. फिर धीरे से बोली, ‘‘जाओ, सो जाओ.’’ वह चला गया, लेकिन मरजाना वहीं खड़ी रही. उस का अंगअंग एक अनोखी मस्ती से बहक रहा था. साथ ही दिल भी एक अनजानी खुशी से भर गया था. समर गुल अपने कमरे में पहुंचा तो उस की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. वह बारबार होंठों ही होंठों में दोहरा रहा था, ‘‘जाओ,सो जाओ.’’

मरजाना का प्यारभरा स्वर उस की आत्मा को झिंझोड़ गया था. वह भावुक हो गया और सिसकियां ले कर रोने लगा. यह खुशी के आंसू थे. उस की हालत एक बच्चे जैसी हो गई थी. उसे यह अहसास डंक मार रहा था कि उस ने किसी की हत्या की हैवह पहली बार दिल की गहराइयों से अपने किए पर लज्जित था, उस की आत्मा पर पाप का बोझ पड़ा था. इस बोझ को उस ने पहले महसूस नहीं किया था, लेकिन प्रेम की अग्नि ने उसे कुंदन बना दिया था. आज वह किसी का दुश्मन नहीं रहा. मरजाना अपने बिस्तर पर लेट कर अंदर ही अंदर खुश हो रही थी, ऐसी खुशी उसे पहली बार मिली थी. वह सोच रही थी कि जब मैं ने दरवाजा बंद किया तो समर वहीं खड़ा रहा. वह चुपचाप था. उस की खामोशी ने मुझे अंदर तक हिला डाला. क्या इसी को प्रेम कहते हैं?

सोच रही थी कि क्या यही मीठामीठा प्रेम का दर्द है, जिस के लिए दरखुई आदम खान के लिए मर गई थी और आदम खान दरखुई के लिए मरा था. गुल मकई मूसा खान के लिए मरी और मूसा खान गुल मकई के लिएहां, ये सब प्रेम के लिए मर गए थे, लेकिन लोग प्रेम करने वालों के दुश्मन क्यों होते हैं. इतनी पवित्र चीज और खुशी से इंसानों को क्यों दूर रखा जाता है. लेकिन मेरी अंतरात्मा पवित्र है, मैं ने कोई पाप नहीं किया. वह झटके से बोली, ‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. अपने आप को इस अनजानी खुशी से वंचित नहीं होने दूंगी.’’ सुबह हुई तो मरजाना ने उजाले में वह सुंदरता देखी जो उसे पहले कभी दिखाई नहीं दी थी. समर गुल जाग रहा था. वह उठा और उस ने बाहर जा कर देखा, मरजाना रेवड़ ले कर जा चुकी थी. उस की निगाहें हवेली की दीवारों पर टिक गईं, ऐसा लगा जैसे उस का बचपन यहीं गुजरा हो.

तभी बाजू पास कर बोला, ‘‘गुल लाला चलो, सब बच्चे आप का इंतजार कर रहे हैं. आप अभी तक पढ़ाने नहीं आए.’’ उस ने बाजू को गोद में उठा लिया और उसे चूमने लगा. बाजू बोला, ‘‘लाला, इतना प्यार तो आप ने मुझे कभी नहीं किया.’’ उस ने कहा, ‘‘हां बाजू, मैं ने कभी इतना प्यार नहीं किया, लेकिन दिल में तुम्हारे लिए बहुत प्यार रखता था.’’ फिर वह उसे नीचे उतार कर बोला, ‘‘बाजू, जाओ आज तुम सब छुट्टी कर लो.’’ वह खुश हो कर चला गया. गुल घर में रखी रायफल ले कर जंगल चला गया. मरजाना रेवड़ के पास डलिया बुन रही थी. साथ ही धीमे स्वर में गा रही थी. समर गुल चुपके से उस के पीछे खड़ा हो कर उस का गाना सुनने लगा.

मरजाना जो गा रही थी, उस का सार कुछ इस तरह था, ‘तुम नहीं आए थे तो दिल में कोई हलचल नहीं थी, जीवन शांति से अपनी डगर पर चल रहा था. तुम आते तो यह जीवन इसी तरह कट जाता. लेकिन तुम ने अपनी सुंदर आंखों से मेरे दिल को जगमगा दिया है. तुम ने यह क्या कियापलक झपकते ही मेरी दुनिया ही बदल डाली. बाप, भाई, मां सब से नाता टूट गया, यह तुम ने क्या किया. अब तुम मेरे खून में दौड़ने लगे.’ समर गुल चुपचाप सुनता रहा. फिर धीरे से बोला, ‘‘मरजाना!’’ वह एकदम चौंक पड़ी. उस के होंठ कांपने लगे. उस की भूरी आंखें खुशी के आंसुओं से भर गईं.

समर गुल उस के आंसू पोंछते हुए बोला, ‘‘तुम मुझे दूर पहाडि़यों में ढूंढ रही थी, लेकिन मैं यहां तुम्हारे दिल के पास खड़ा था.’’ ‘‘खुदा करे, मैं तुम्हें हर पल ढूंढती रहूं.’’ वह उस के पास बैठते हुए बोला, ‘‘मरजाना, मैं हत्या कर के बहुत पछता रहा हूं. लेकिन लगता है कि कुदरत ने तुम से मिलवाने के लिए मुझ से यह हत्या करवाई थी. मुझे हैरानी है कि पाप के बदले इतनी बड़ी खुशी मिली. डरता हूं कि यह खुशी छिन जाए.’’

मरजाना बोली, ‘‘तुम्हारे बिना मैं जीने की चाहत भी नहीं कर सकती. मुझे तुम पहले दिन से ही अच्छे लगने लगे थे. कुछ भी हो जाए, मुझे तुम अपने साथ ही पाओगे. मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती.’’ ‘‘मरने की बात न करो मरजाना.’’ ‘‘मेरा नाम मरजाना है गुल, मुझे मर जाना आता है. मरने की बात क्यों न करूं?’’ ‘‘नहीं मरजाना नहीं, मैं तुम्हें बाबा से मांग लूंगा. पूरी जिंदगी की गुलामी कर लूंगा. अगर तब भी नहीं माने तो बापभाइयों से कहूंगा कि मरजाना के कदमों में पैसे का ढेर लगा दो, उसे हीरेजवाहरात में तोल दो. सब कुछ ले लो मगर मरजाना को दे दो.’’

‘‘यह सब तो ठीक है, लेकिन गुल यहां के कानून के मुताबिक यहां के लोग अपनी बेटियों को सरहद के पार नहीं देते. देख लेना, बाबा तुम से यही कहेगा.’’ ‘‘इस का मतलब मरजाना, मैं तुम्हें कभी नहीं पा सकूंगा?’’ ‘‘मैं ने कह तो दिया मेरा नाम मरजाना है और मुझे मरना आता है.’’  ‘‘मरने की बातें मत करो मरजाना,’’ गुल ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया. अचानक कहीं से उस का कुत्ता गया और गुल के पांव चाटने लगा. गुल बोला, ‘‘देखो, एक दिन इस ने मेरी टांग पर काटा था और अब पैर चाट रहा है.’’ मरजाना बोली, ‘‘यह तुम्हारे प्रेम को समझ गया है.’’

कुछ देर बातें करने के बाद दोनों घर पहुंचे तो गुल के पिता, भाई और मामा बैठे थे और चाय पी रहे थे. गुल को उन्होंने गले लगा लिया. गुल के चेहरे की रंगत और सेहत देख कर सब हैरत में पड़ गए. उन के आने से केस के बारे में पता चला, पुलिस ने दोनों पार्टियों का समझौता करा कर केस बंद कर दिया था. वे लोग गुल को लेने के लिए आए थे. रात में गुल ने बड़े भाई को सब बातें बता दीं. साथ ही अपना फैसला भी सुना दिया कि वह वापस नहीं जाएगा और अगर जाएगा तो मरजाना भी साथ जाएगी. 

उस की बातें सुन कर उस का भाई परेशान हो गया. अंत में यह तय हुआ कि मरजाना के पिता से रिश्ता मांग लिया जाए. बहुत झिझक के साथ मरजाना के बाबा से उस के रिश्ते की बात की तो उस ने कहा, ‘‘देखो, मैं बहादुर आदमियों की इज्जत करता हूं. घर में शरण भी देता हूं लेकिन सरहद पार का पठान कितना भी बड़ा क्यों हो, हमारे कबीले के सरदारों का मुकाबला नहीं कर सकता. मैं किसी ऐसे आदमी को दामाद नहीं बना सकता, जो हमारे खून की बराबरी कर सके.’’

समर गुल के बाप ने मिन्नत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हजारों रुपयों का लालच दिया, लेकिन रुपयों की बात सुन कर उस ने कहा, ‘‘हमें रुपयों का लालच दो, हमारे पास पैसे की कोई कमी नहीं है. हम सरहद पार अपनी लड़की नहीं देंगे.’’ समर गुल ने ये बातें सुनीं तो उस की आंखों से नींद ही गायब हो गई. कुछ दिन पहले उस ने जो ख्वाब देखे थे, वे तिनके की तरह बिखर गए. इस का मतलब यह कि उसे बिना मरजाना के जाना होगा. अगली सुबह वे लोग अपने घर की ओर चल दिए. समर गुल ने आखिरी बार पीछे मुड़ कर देखा. वह रोने लगा. उस के भाई ने उसे गले से लगा लिया. उस का बाप, भाई और मामा उस के दुख को समझते थे. सब लोग चले जा रहे कि अचानक कुत्ते के भौंकने की आवाज आई. वह गुल की ओर दौड़ा चला आ रहा था. उस के पीछे मरजाना दौड़ी आ रही थी.

‘‘मरजाना…’’ गुल जोर से चीखा. मरजाना उस के पास आ कर उस के सामने खड़ी हो गई. वह हांफते हुए बोली, ‘‘मैं ने कहा था न, मेरा नाम मरजाना है, मुझे मरना आता है.’’ गुल ने अपने बाप की ओर इशारा करते हुए  मरजाना से कहा, ‘‘यह मेरे बाबा हैं.’’ मरजाना उस के बाप के पैरों में गिर गई और बोली, ‘‘बाबा, मुझे भी अपनी बेटी बना लो, अब मैं वापस नहीं जाऊंगी.’’ समर गुल का बाप उसे देख कर भौचक्का रह गया. उस ने उसे उठाया और ध्यान से देखा. वह लड़की उस के बेटे के लिए अपना परिवार, अपना वतन सब कुछ छोड़ कर आ गई थी. लेकिन वह तुरंत संभल गया. उस ने सोचा कि यह उस आदमी की बेटी भी तो है, जिस ने मेरे बेटे पर बड़े उपकार किए हैं. 

गुल के पिता ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी इज्जत करता हूं. तुम ने मेरे बेटे से प्यार किया है, तुम जैसी लड़की लाखों में भी नहीं मिलेगी. लेकिन बेटी तुझे साथ ले जा कर मैं दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगा. लोग कहेंगे सरहद के पठान का क्या यही किरदार होता है कि जिस थाली में खाए उसी में छेद करे.’’ मरजाना गिड़गिड़ाई, ‘‘बाबा, मैं वापस नहीं जाऊंगी, आप के साथ ही चलूंगी. यह सब दुनियादारी की बातें हैं.’’

समर गुल के बाप ने मरजाना को गले लगा कर कहा, ‘‘बेटी, जरा सोचो तुम अपने बाप की इज्जत हो. अपने भाइयों की आन हो, जब दुनिया यह सुनेगी, नौरोज खान की बेटी घर से भाग गई है तो तुम्हारे बाप के दिल पर क्या गुजरेगी? एक बाप के लिए यह बात मरने के बराबर होगी.’’ उस ने कहा, ‘‘बाबा, रात मैं ने कसम खाई थी कि जो रास्ता मैं ने चुना है, उस से पीछे नहीं हटूंगी.’’

समर गुल ने बाप से कहा, ‘‘बाबा, मान जाइए. इस ने कसम खा ली है. अगर यह मेरी नहीं हुई तो अपनी जान दे देगी और फिर मैं भी जिंदा नहीं रहूंगा.’’ बाप चुप हो गया और समर गुल का भाई व मामा भी चुप रहे. लगता था मोहब्बत जीत गई थी. मरजाना का कुत्ता बारीबारी से सब को सूंघ रहा था, जैसे सब को पहचानने की कोशिश कर रहा हो. समर गुल के बाप ने भीगी आंखों से मरजाना को गले लगा लिया और उस के सिर पर हाथ रख दिया.

शाम को इक्कादुक्का भेड़ें घर पहुंचीं, लेकिन उन के साथ मरजाना नहीं थी. कुत्ता भी गायब था, नौरोज का दिल बैठा जा रहा था. कुछ ही देर में पूरे गांव में यह खबर फैल गई कि नौरोज की लड़की मरजाना घर से भाग गई.अगले दिन तक आसपास के कबीलों में यह खबर पहुंच गई. दोस्त या दुश्मन सब के लिए यह खबर दुख की थी. यह सवाल नौरोज के घर की इज्जत का ही नहीं, बल्कि पूरे कबीले की इज्जत का था. तक हर गांव से हथियारबंद लड़के पहुंचने शुरू हो गए. कबीले का जिरगा (कबीले की संसद) बुलाया गया और यह तय किया गया कि हर गांव से एक जवान चुना जाए और ये जवान चारों ओर फैल जाएं. इन्हें हर हाल में मरजाना को ले कर आना होगा. जो जवान खाली हाथ सरहद पर वापस आता दिखाई दे, उसे तुरंत गोली मार दी जाए. इसलिए 25 जवानों का दस्ता मालिक नौरोज के नेतृत्व में रवाना हो गया.

समर गुल के बाप ने अपने गांव पहुंचते ही समर गुल और मरजाना का निकाह करा दिया. अभी उन की शादी को एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि उन के गांव को चारों ओर से घेर कर अंधाधुंध फायरिंग होने लगी. गांव के लोग भी चुप नहीं थे. एक कबीले के सरदार की बेटी उन की बहू बनी थी, इसलिए गोली का जवाब गोली से दिया गया. 2 दिन तक फायरिंग होती रही, दोनों ओर से कई लोग घायल भी हुए लेकिन फायरिंग बंद नहीं हुई. मरजाना के हाथों की मेहंदी का रंग अभी ताजा था, उस में अभी तक महक थी. तीसरे दिन पुलिस की भारी कुमुक पहुंच गई और बहुत मुश्किल से फायरिंग पर काबू पाया गया. लेकिन नौरोज घेरा तोड़ने को तैयार नहीं हुआ. पुलिस औफीसर ने सोचा अगर इन पर सख्ती की गई तो यह कबीला मरनेमारने पर तैयार हो जाएगा. पुलिस अधिकारी ने समझदारी से काम लेते हुए दोनों ओर के 4-4 जवानों को चुना और उन की मीटिंग बैठा दी.

समर गुल के बाप ने कहा, ‘‘जो कुछ हुआ, मुझे उस का खेद है. हम पहले से ही मरजाना के पिता के सामने आंख उठा कर नहीं देख सकते. मैं उस से माफी मांगने के लिए भी पीछे नहीं हटूंगा. यह मैं किसी दबाव में नहीं कह रहा हूं बल्कि यह मेरे दिल की आवाज है. नौरोज ने हमारे ऊपर उपकार किया है, हम नौरोज से दगा करने वाले लोग नहीं हैं. अगर वह चाहे तो मरजाना के बदले मैं अपनी बेटी उस के बेटे से ब्याह सकता हूं. और अगर खून बहाना हो तो मेरे बेटे के बदले मैं अपना खून दे सकता हूं. मैं उन के साथ सरहद पर जा सकता हूं. वे मेरी हत्या कर के अपने दिल की भड़ास निकाल लें. जहां तक मरजाना का सवाल है, मेरा बेटा उसे भगा कर नहीं लाया है. हम ऐसा कर ही नहीं सकते. अब वह मेरी बहू बन चुकी है और उसे मैं किसी भी कीमत पर वापस नहीं करूंगा. बहू परिवार की इज्जत होती है.’’

जिरगे में मौजूद नौरोज खान ने कहा, ‘‘मुझे समर गुल के बाप का खून नहीं चाहिए. उस से मेरी प्यास नहीं बुझ सकती और ही उस की लड़की का रिश्ता चाहिए. उस से मेरी तसल्ली नहीं होगी. मुझे हीरेजवाहरात भी नहीं चाहिए, उन से मेरे घाव नहीं भर सकते. भागी हुई बेटी बाप की आत्मा में जो घाव लगा देती है, दुनिया की कोई दवा उसे ठीक नहीं कर सकती. थप्पड़ के बदले थप्पड़, हत्या के बदले हत्या की जा सकती है, लेकिन मैं दिल वालों से पूछता हूं, भागी हुई बेटी का बदला कोई किस तरह ले? मुझे समझाओ, मैं यहां क्या लेने आया हूं? समर के पिता को गोली मारूं, समर को गोली मारूं या अपनी बेटी को? कोई बतलाए कि मैं क्या करूं?’’ 

इतना कह कर मलिक नौरोज फूटफूट कर रोने लगा. सब ने पहली बार एक चट्टान को रोते देखा. मरजाना ने सब कुछ सुन लिया था. अपनी खुशी के लिए उस ने जो कदम उठाया था, वह अपने बाप के दुख के सामने कितना मामूली था. यह जीवन कितना अजीब है, दूसरों के लिए जीना, दूसरों के लिए मरना, उस ने समर गुल से कहा, ‘‘मेरे प्रियतम, अब मैं बहुत दूर चली जाऊंगी.’’

समर गुल कुछ नहीं बोला. उसे हक्काबक्का देखता रहा.

‘‘समर गुल,’’ उस ने रुंधी आवाज में कहा, ‘‘मुझे जाना ही होगा, मुझे मान लेना चाहिए. मैं बाप की इज्जत से खेली हूं. जीवन दूसरों के लिए होता है, मुझे आज इस का अहसास हुआ है.’’ ‘‘जो होना था, वह तो हो चुका.’’ समर गुल ने तड़प कर कहा, ‘‘गई हुई इज्जत तो गिरे हुए आंसुओं की तरह होती है, जो फिर हाथ नहीं आते.’’

‘‘हां, इज्जत वापस नहीं सकती, लेकिन मैं उस का प्रायश्चित करना चाहती हूं, मेरे जानम.’’ ‘‘तो तुम मरना चाहती हो?’’ ‘‘हां, मेरे बाप का कुछ तो बोझ हलका होगा, उस की आनबान को कुछ तो सहारा मिल जाएगा.’’ उस ने समर के सीने पर अपना सिर रख कर कहा, ‘‘यह मेरा आखिरी फैसला है, समर गुल. मेरे बाबा से कह दो, मैं उस के साथ जाने के लिए तैयार हूं.’’ जिरगे को बता दिया गया. समर गुल के बाप को बड़ी हैरत हुई. लेकिन मरजाना के बाप के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उस ने राइफल की गोलियां निकाल कर फेंक दी, जंग खत्म हो गईवे लोग मरजाना को ले कर चल दिए. पूरा गांव उदास था. आई थी तो गई ही क्यों, हर एक की जुबान पर यही सवाल था. उस के जाने का कारण समर गुल के अलावा और कोई नहीं जानता था.

अगले दिन वे सरहद पर पहुंच गए. सब लोग सरहद पर रुक गए, लेकिन मरजाना नहीं रुकी. वह आगे बढ़ती रही. अचानक गोलियां की बौछार हुई, मरजाना तड़प कर मुड़ी और गिर पड़ी. हिचकी ली, एकदो बार मुंह खोला और शांत हो गई. उस की आंखें आसमान की ओर थीं, जैसे कह रही हों, ‘मेरा नाम मरजाना है, मुझे मर जाना आता है.’  

शौहर ने पत्नी की हत्या के लिए दिए 10 लाख

सिकंदर ने अपनी प्रेयसी और सेक्रेटरी रोमा के साथ मिल कर जो नाटक किया, वह वाकई जबरदस्त था. इस से उस की पत्नी भी संतुष्ट हो गई और उन दोनों के मिलने का रास्ता भी साफ हो गया. एक रोमांचक कहानी…   

पिछला टेलीफोन उस के लिए परेशानी भरा था. दूसरा फोन तो उसे खौफजदा करने के लिए काफी था. दोनों टेलीफोन दिन के वक्त आए थे. तब जब उस का हसबैंड सिकंदर अपने औफिस में था और वह घर पर अकेली थी.

‘‘मिसेज सिकंदर,’’ फोन पर एक अजनबी औरत की आवाज सुनाई दी.

‘‘हां, बोल रही हूं. आप कौन हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने कहा.

‘‘एक दोस्त हूं. मकसद है आप की मदद करना. क्या आप सलिलि को जानती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘तो क्या आप सलिलि हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने पूछा.

‘‘नहीं मिसेज सिकंदर, सलिलि तो आप के शौहर की सेक्रेटरी का नाम है. मिस्टर सिकंदर और सलिलि के बीच जो चल रहा है, आप के लिए ठीक नहीं है. मेरा फर्ज है कि मैं आप को सही हालात की जानकारी दे दूं.’’

मिसेज सिकंदर गुस्से से चिल्लाई, ‘‘यह सब फालतू बकवास है. सलिलि मेरे शौहर की सेक्रेटरी जरूर है. वह उस का जिक्र भी करते हैं. पर उन का उस से कोई चक्कर है, यह बिलकुल गलत है. सलिलि को दिल की बीमारी है, इसलिए वह उस से हमदर्दी रखते हैं. अबकी बार तो वह कह रहे थे, अगर अब उस ने ज्यादा छुट्टियां लीं तो उसे नौकरी से निकाल देंगे.’’

दूसरी तरफ से औरत की जहरीली हंसी की आवाज आई, ‘‘हां, आप यह सच कह रही हैं मिसेज सिकंदर. सलिलि को दिल की बीमारी है, लेकिन वह दूसरी तरह की दिल की बीमारी है. वैसे मुझे सलिलि से कोई जलन नहीं है. मैं तो आप का भला चाहती हूं. आप यह मालूम करने की कोशिश करें कि जब आप के शौहर पिछले महीने बिजनैस के सिलसिले में सिंगापुर गए थे, उस वक्त उन की खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि कहां थी?’’

‘‘आप हद से आगे बढ़ रही हैं मैडम, अपनी बेहूदा बकवास बंद कीजिए.’’ गुस्से से मिसेज सिकंदर ने फोन रख दिया. दोनों हाथों से सिर थाम कर मिसेज सिकंदर सोच में डूब गईंउन्हें याद आया, जब पिछले महीने सिकंदर बिजनैस के लिए सिंगापुर गया था, तो उस ने उसे सिंगापुर के उस होटल का नाम बताया था, जहां वह ठहरने वाला था. लेकिन एक जरूरी काम के सिलसिले में जब उस ने सिकंदर को होटल फोन किया था तो होटल से बताया गया था कि सिकंदर नाम का कोई आदमी उन के होटल में नहीं ठहरा है. उस वक्त उस ने सोचा था कि सिकंदर ने किसी वजह से होटल बदल लिया होगा. लेकिन अब?

सिकंदर से उस की शादी किसी रोमांस का नतीजा नहीं थी. उसे कहीं देख कर सिकंदर ने उस के हुस्न की तारीफ की तो वह सोच में पड़ गई थी. वह सिकंदर से उम्र में बड़ी थी. देखने में भी कोई खास अच्छी नहीं थी. उसे अपने हुस्न के बारे में कोई गलतफहमी नहीं थी. सिकंदर ने उस से शादी सिर्फ इसलिए की थी कि वह एक बड़ी दौलत और जायदाद की वारिस थी. 14 साल से वह सिकंदर के साथ एक अच्छी जिंदगी गुजार रही थी. सिकंदर देखने में स्मार्ट था और बेहद जहीन भी.

उस ने रोमा की दौलत को इस तरह बिजनैस में लगाया कि कारोबार चमक उठा. बिजनैस खूब फलफूल रहा था. 14 साल के अरसे में उन की शादी को एक शानदार कारोबारी समझौता कहा जा सकता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे और इस कामयाब फायदेमंद कौंट्रैक्ट को तोड़ने पर राजी नहीं थे. दोनों ही खुशहाल जिंदगी बसर कर रहे थे. शाम को सिकंदर की वापसी पर रोमा ने फोन काल के बारे में कुछ नहीं बताया. एक हफ्ता आराम से गुजरा. इस बार किसी आदमी का फोन था. जिस ने उसे दहशतजदा कर दिया. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘इस बारे में आप को फिक्र करने की जरूरत नहीं है. जो मैं कह रहा हूं, उसे ध्यान से सुनो मिसेज सिकंदर. मैं एक पेशेवर कातिल हूं. मैं मोटी रकम के बदले किसी का भी कत्ल कर सकता हूं. शायद यह जान कर आप को ताज्जुब होगा कि आप के शौहर सिकंदर ने आप को कत्ल करने के लिए मुझे 10 लाख रुपए की औफर दी है.’’ रोमा डर कर चिल्लाई, ‘‘तुम पागल हो गए हो या मजाक कर रहे हो? मेरा शौहर हरगिज ऐसा नहीं कर सकता.’’

मरदाना आवाज फिर उभरी, ‘‘अगर आप को आप के शौहर के औफर के बारे में बताता तो शायद मैं पागल कहलाता. मैं हर काम बहुत सोचसमझ कर करता हूं. 10 लाख का औफर मिलने के बाद मैं ने अपने शिकार के बारे में जानकारी हासिल की और आप तक पहुंचा

‘‘मैं कोई मामूली ठग या चोर नहीं हूं. अपने मैदान का कामयाब खिलाड़ी हूं. मैं इस तरह कत्ल करता हूं कि मौत नेचुरल लगे. किसी को भी कोई शक न हो. मैं अपने काम में कभी भी नाकाम नहीं रहा.’’

मिसेज सिकंदर ने कंपकंपाती आवाज में कहा, ‘‘यह सब क्या कह रहे हो तुम, मुझे कुछ समझ में नहीं रहा है.’’ अजनबी मर्द की आवाज गूंजी, ‘‘मैं आप को सब समझाता हूं. आप के हसबैंड की औफर कबूल करने के बाद मुझे आप के बारे में पता लगा कि सारी दौलत की मालिक आप हैं. आप का शौहर आप का कत्ल करवाने के बाद पूरी दौलत का मालिक बनना चाहता है

‘‘तब मुझे एक खयाल आया कि अगर मिसेज सिकंदर मुझे डबल रकम देने पर राजी हो जाएं तो मैं उन की जगह उन के शौहर को ही ठिकाने लगा दूं. आप क्या कहती हैं, इस बारे में मिसेज सिकंदर?’’

मिसेज सिकंदर खौफ से चीखीं, ‘‘तुम एकदम पागल आदमी हो. मैं पुलिस को खबर कर रही हूं.’’

मर्द ने जोरों से हंसते हुए कहा, ‘‘पुलिस, आप उन्हें क्या बताएंगी. चलिए, अगर उन्होंने यकीन कर भी लिया तो आप मुझे कहां तलाश करेंगी? मैं पीसीओ से फोन कर रहा हूं. आप बेकार की बातें छोड़ें और गौर करें. आप दोनों में से कोई एक मरने वाला है. अब रहा सवाल यह कि मरने वाला कौन होगा? आप या आप का शौहर? इस का फैसला आप को करना होगा. आप तसल्ली से सोच लें. कल मैं इसी वक्त फिर फोन करूंगा. आप का आखिरी फैसला जानने के लिए.’ दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

शाम को सिकंदर घर नहीं आया. उस ने फोन कर दिया कि औफिस में काम ज्यादा है, वह देर रात तक काम करेगा. उस ने सोचा कि सलिलि के साथ ऐश करेगा. जब आधी रात को सिकंदर बैडरूम में दाखिल हुआ तो वह जाग रही थी और कुछ सोच रही थी. सोचतेसोचते वह इस फैसले पर पहुंच गई कि सुबह सिकंदर को टेलीफोन के बारे में बताएगी. मगर सिर्फ पहले फोन के बारे में. वह उस से कहेगी कि अगर उसे कोई कीप रखनी है तो रखे. उसे कोई ऐतराज नहीं, पर यह बात राज रहे. कोई बदनामी हो.

वह आखिर दूसरे फोन के बारे में क्या बताती कि एक आदमी ने कहा है कि मुझे कत्ल करने के लिए 10 लाख का औफर दिया गया है. अगर मैं औफर डबल कर दूं तो मेरी जगह वह मारा जाएगा. शायद यह सुन कर सिकंदर उसे पागलखाने में दाखिल करा दे.फिर उसे खयाल आया कि क्यों वह उस अजनबी मर्द के दूसरे फोन का इंतजार करे. हो सकता है बातचीत के दौरान उस की कोई ऐसी गलती पकड़ में जाए, जिस की वजह से सिकंदर और पुलिस दोनों को उस की बात का यकीन जाए. फिर उसे पागलखाने में डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

लेकिन उसे लगा कि पहले फोन के बारे में भी बताने की भी क्या जरूरत है. वह उस की कहानी सुन कर खूब हंसेगा. अफेयर से इनकार करेगा और चौकन्ना हो जाएगा. जैसेजैसे वह सोच रही थी, उसे लग रहा था कि फोन करने वाला आदमी पागल है. आखिर सिकंदर उस का कत्ल क्यों करवाएगा? वह खुद बूढ़ा हो रहा है, तोंद निकल आई है. अब क्या इश्क लड़ाएगा. पर यह बात भी सच है कि वह उसे तलाक नहीं दे सकता, क्योंकि सारी दौलत उस के हाथ से निकल जाएगी. पर अचानक एक खयाल ने उसे डरा दिया कि अगर आज वह मर जाती है तो सारी दौलत का मालिक सिकंदर होगा. इस तरह उसे अपनी बीवी से छुटकारा मिल जाएगा और वह सलिलि से शादी करने के लिए आजाद हो जाएगा.

इसी सोचविचार में सारी रात कट गई. दूसरे दिन जब फोन की घंटी बजी तो उसी मरदाना आवाज ने पूछा, ‘‘मैडम, आप ने क्या फैसला किया?’’ रोमा की पेशानी पसीने से भीग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. मैं तुम्हें 20 लाख दूंगी, तुम शिकार बदल दो. पर शिकार सिकंदर नहीं, सलिलि होगी.’’

‘‘बहुत अच्छा फैसला है, मतलब अब इस लड़की को ठिकाने लगाना है.’’ मरदाना आवाज ने पूछा.

‘‘हां, मेरे शौहर के बजाए उस की सेक्रेटरी सलिलि को कत्ल करना बेहतर है. क्योंकि रहेगा बांस बजेगी बांसुरी. उसे लग रहा था, जैसे सलिलि और सिकंदर के अफेयर के बारे में सारी दुनिया जानती है. सलिलि के रहने से वह खुद ही वफादार बन जाएगा और अगर उस ने अपनी बीवी को कत्ल कराने की कोशिश की थी तो वह उस से खौफजदा भी रहेगा.’’

उस के दिमाग में एक खयाल और आया कि ये सारी बातें लिख कर अपने वकील के पास हिफाजत से रखवा देगी कि उस की अननेचुरल डैथ के बाद इसे खोला जाए और मौत का जिम्मेदार सिकंदर को ठहराया जाए. फोन में मरदाना आवाज उभरी, ‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि शिकार कौन है? मैं अपना काम बहुत ईमानदारी और सलीके से करता हूं. मैं आज ही आप के शौहर के औफर से इनकार कर दूंगा

‘‘आप का काम हो जाने के बाद फिर कभी आप मेरी आवाज नहीं सुनेंगी, पर एकदो चीजें बहुत जरूरी हैं. मैं अपनी फीस एडवांस में नहीं मांग रहा हूं पर आप को मेरे बताए पते पर मेरे कहे मुताबिक एक खत लिख कर भेजना पड़ेगा. मेरा पता हैरूस्तम, पोस्ट बौक्स-911, रौयल पैलेस.’’

रोमा ने घबरा कर पूछा, ‘‘मुझे क्या लिखना होगा?’’

‘‘आप को लिखना होगा कि आप ने 20 लाख के एवज में मुझे हायर किया है कि मैं आप के शौहर की सेक्रेटरी सलिलि फर्नांडीज को कत्ल कर दूं.’’ मरदानी आवाज सुनाई दी. रोमा चीख पड़ी, ‘‘नहीं, हरगिज नहीं. इस तरह तो मैं कत्ल में शामिल हो जाऊंगी.’’ ‘‘बेशक, पर यह खत मेरे लिए बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इसे लिखने के बाद आप मेरे बारे में छानबीन नहीं करेंगी. यही खत मेरी फीस की गारंटी भी है. जब आप को सबूत मिल जाए कि सलिलि मर चुकी है, आप मुझे 20 लाख की रकम भेजेंगी. उस के मिलते ही कुरियर से आप को आप का खत वापस मिल जाएगा.’’

‘‘नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती.’’ रोमा ने चिल्ला कर कहा.

‘‘मुझे बहुत दुख है मैडम कि आप के शौहर आप से कहीं ज्यादा अक्लमंद हैं. उन्होंने मेरी हर बात मंजूर कर ली थी. अब मैं आप के शौहर से ही सौदा कर लेता हूं.’’

रोमा ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘ठहरो, मुझे तुम्हारी बात मंजूर है. बताओ, मुझे क्या लिखना है?’’

‘‘हां, यह ठीक है. आप कागज पेन ले लें, मैं आप को लिखवाता हूं.’’ 

रोमा ने कांपते हाथों से खत लिखा. फिर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को खबर करूंगा कि आप खत भेज दें. खत मिलने के 2-3 दिन के अंदर ही अखबार में आप को सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर मिल जाएगी. फिर मैं आप को रकम के बारे में बताऊंगा कि कहां और कैसे भेजनी है. और फिर आप का खत आप को वापस मिल जाएगा. इस के बाद हमारा ताल्लुक खत्म.’’ दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया. दिन बाद फिर फोन आया. उस ने खत भेजने की हिदायत दी. रोमा ने खत रवाना कर दिया. तीसरे दिन अखबार में सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर छपी कि कल रात सलिलि फर्नांडीस की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

रोमा का शौहर सिकंदर काम के सिलसिले में कलकत्ता गया हुआ था. अब उसे कोई फिक्र नहीं थी. वह कहां जाता है, कहां ठहरता है, क्या करता है. दूसरे दिन उसी आदमी ने रकम के बारे में कई हिदायतें दीं. रोमा ने अलगअलग बैंकों से रकम निकलवाई. कुछ अपने पास से मिलाई और बड़ी ईमानदारी से वहां पैसा पहुंचा दिया, जहां कहा गया था. वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पेशेवर कातिल भी अपने वादे का पक्का निकला. दूसरे रोज ही रोमा को कुरियर से उस का खत वापस मिल गया. उस ने फौरन उसे जला दिया और चैन की नींद सो गई.

उसी रात रोमा का शौहर रोमा से कई सौ मील दूर अपनी खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि के साथ एक शानदार होटल में अपनी कामयाबी का जश्न मना रहा था. सलिलि ने पूछा, ‘‘सिकंदर, मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब कैसे हो गया? आखिर कैसे तुम ने मेरी मौत की खबर छपवा दी?’’ सिकंदर ने शराब का घूंट भरते हुए कहा, ‘‘बहुत आसानी से, तुम्हारे मरने की खबर और रकम मैं ने अखबार वालों को भेज दी थी और उस के साथ एक परचा रखा था—‘सलिलि फर्नांडीस का कोई रिश्तेदार या करीबी इस शहर में नहीं है और वह मेरी कंपनी में मुलाजिम थी. उस की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आती है. उस के सारे मामलात मैं ही देख रहा हूं. बस अखबार के जरिए उस की मौत की खबर दुनिया को बताना चाहता हूं.’ 

उन लोगों ने दूसरे दिन ही यह खबर छाप दी. अच्छा जानेमन, तुम यह बताओ कि तुम ने फ्लैट छोड़ते वक्त अपनी मकान मालकिन से क्या कहा?’’ ‘‘मैं ने मकान मालकिन से कहा था कि मैं दिल की मरीज हूं. अपने शहर वापस जा कर अपने डाक्टर से इलाज कराऊंगी, क्योंकि अब तकलीफ बहुत बढ़ गई है.’’

‘‘शाबाश, तुम्हें मुंबई आए अभी बहुत कम अरसा हुआ है. कोई तुम्हें जानता भी नहीं है, कोई दोस्त है. अब तुम दूरदराज के इलाके में एक शानदार फ्लैट ले कर ठाठ से रहना. अपना नाम और पहचान भी बदल लेना. रोमा से मिले 20 लाख रुपए मैं किसी बिजनैस में लगा दूंगा ताकि हर महीने गुजारे के लिए अच्छीखासी रकम मिलती रहे.’’

‘‘डार्लिंग, तुम कितने अच्छे हो, सारी रकम मेरे नाम पर लगा रहे हो.’’

‘‘क्यों नहीं डियर, पहली बार टेलीफोन करने वाली तुम खुद थीं. तुम्हीं ने तो प्लान कामयाब बनाया.’’

‘‘मगर सिकंदर, सारी प्लानिंग तो तुम्हारी थी. तुम ने कितनी कामयाबी से आवाज बदल कर कातिल का रोल अदा किया. तुम्हारी आवाज सुन कर तो मैं भी धोखा खा गई थी. तुम वाकई में बहुत बड़े कलाकार हो.’’

‘‘चलो, फालतू बातें छोड़ो, अब हमारे मिलने में कोई रुकावट नहीं रहेगी. टूर का बहाना कर के मैं तुम्हारे पास जाया करूंगा. उधर रोमा अपनी दौलत पर नाज करते हुए चैन से सोएगी. अब मुझ पर शक भी नहीं करेगी.’’

अलमारी में कैद लिवइन पार्टनर

25 वर्षीय रुखसार उर्फ रिया और विपुल टेलर का प्यार एक बार की मुलाकात के बाद ही अमरबेल की तरह बढ़ गया था. बाद में दोनों लिवइन रिलेशन में भी रहने लगे. फिर एक दिन रुखसार की लाश उस के ही कमरे की अलमारी में बंद मिली. कौन था रुखसार का हत्यारा और क्यों की गई उस की हत्या? पढि़ए, लव क्राइम की खास स्टोरी.   

मुस्तकीम इंसपेक्टर धनंजय को एक अलमारी के पास ले गया. अलमारी का दरवाजा खुला हुआ था. उस के अंदर का मंजर दिल दहला देने वाला था. अलमारी के अंदर एक 25-26 साल की युवती की लाश थी. लाश इस पोजिशन में थी, जैसे उस की हत्या करने के बाद अलमारी में उसे बिठा दिया गया हो. चेहरा बुरी तरह भारी चीज के वार से कुचलने की कोशिश की गई थी. उस की आंखें फटी पड़ी थीं, इस से इंसपेक्टर ने अनुमान लगाया कि उसे गला घोंट कर मारा गया है. युवती के जिस्म पर चोट के निशान भी दिखाई दे रहे थे.

इंसपेक्टर धनंजय सिंह ने दक्षिणपश्चिम जिले के डीसीपी अंकित सिंह को इस हत्या की सूचना दे दी. उन्होंने घटनास्थल पर द्वारका थाने की औपरेशन सेल की टीम और फोरैंसिक टीम को भेज दिया. फोरैंसिक टीम ने अलमारी में बैठी अवस्था में युवती की लाश के कई एंगल से फोटो खींचे, अलमारी के दरवाजे और आसपास से फिंगरप्रिंट्स उठाए. फिर लाश को बाहर निकाल कर फर्श पर लिटा दिया. गुजरात का खूबसूरत शहर सूरत. इसी शहर में रुखसार उर्फ रिया का स्पा सेंटर था. इस वक्त सुबह के 10 बजे थे, रुखसार ने स्पा सेंटर खोल लिया था. वह सफाई से निपटी ही थी कि 18-19 साल की एक लड़की स्पा में अपना फेशियल करवाने के लिए आ गई. 

अभी स्पा में काम करने वाली 4 लड़कियों में से कोई भी लड़की काम पर नहीं आई थी इसलिए स्पा में आने वाली उस युवा कस्टमर को रुखसार ने संभाला. लड़की को कुरसी पर बिठा कर रुखसार ने उस का फेशियल करना शुरू कर दिया. उस ने लड़की के चेहरे पर क्लींजिंग किया और दूसरे स्टेप के लिए हथेली पर लोशन लिया, तभी स्पा का दरवाजा तेजी से खुला और एक युवक बदहवासी की हालत में रुखसार से आ कर टकराया. रुखसार इस अकस्मात टक्कर से संभल नहीं पाई, उस का सिर दीवार पर लगे बड़े आइने से टकराया. 

आईने का कांच छन्नाक की आवाज के साथ टूट कर नीचे बिखर गया. गनीमत यह रही कि इस टक्कर से रुखसार के सिर पर चोट नहीं आई. उस का सिर भन्ना गया. दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ कर वह फर्श पर बैठ गई. उस बदहवास युवक ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. वह फुरती से संभला और लपक कर स्पा का दरवाजा बंद कर दिया. ऐसा कर के वह दरवाजे के साथ लटक रहे परदे की ओट में दुबक कर खड़ा हो गया. कुछ देर बाद रुखसार संभली. वह गुस्से से खड़ी हो गई और उस परदे के पास आ गई, जिस के पीछे उस से टकराने वाला युवक दुबका खड़ा था.

ऐ मिस्टर… बाहर आओ.’’ रुखसार जोर से चीखी.

युवक सहमता हुआ परदे की ओट से बाहर आया. वह 27-28 साल का हैंडसम युवक था. शरीर पर सफेद शर्ट और ब्राउन रंग की डेनिम की जींस पहने था. चौंकाने वाली बात यह थी कि उस के माथे पर गहरी चोट थी, जिस में से बह रहे खून ने उस के चेहरे और शर्ट को भिगो दिया था. रुखसार का सारा गुस्सा काफूर हो गया. युवक को जख्मी देख कर वह घबरा गई. युवक की ओर झुक कर वह परेशान स्वर में बोली, ”अरे! तुम तो बहुत जख्मी हो!’’

बस यूं ही भागते वक्त ठोकर खा कर गिर गया और माथे पर चोट लग गई.’’ युवक जेब से रुमाल निकालते हुए बोला.

जख्म गहरा है. चलो पास में ही डाक्टर की दुकान है, वहां से मरहमपट्टी हो जाएगी.’’

नहीं, मैं बाहर नहीं जाऊंगा.’’ युवक घबरा कर बोला, ”बाहर पुलिस वाले मेरी टोह में होंगे.’’

पुलिस?’’ रुखसार के चेहरे पर परेशानी झलकने लगी, ”क… क्या गुनाह किया है तुम ने जो पुलिस तुम्हारे पीछे लगी है?’’

मैं ने कोई गुनाह नहीं किया.’’ युवक ने सफाई दी, ”हमारी गली में मर्डर हुआ था, मैं उस वक्त वहां खड़ा था. बुजुर्ग को चाकू मारने वाले भाग गए थे. पुलिस वाले वहां आए तो मुझे ही खूनी मान कर मुझे पकड़ लिया. रात भर मुझे लौकअप में रखा, सुबह अदालत ले जाने लगे तो मैं हाथ छुड़ा कर भाग आया हूं.’’ 

ओह! रुखसार ने सहानुभूति दिखाई, ”यह पुलिस वाले बड़े जालिम होते हैं, असली पर हाथ नहीं डालते, निर्दोष को पकड़ते हैं. चलो तुम कुरसी पर बैठो, मेरे पास डिटोल भी है और एंटीसेप्टिक क्रीम भी. मैं पट्टी कर देती हूं.’’

पहली मुलाकात में ऐसे हो गया प्यार

युवक कुरसी पर आज्ञाकारी बच्चे की तरह बैठ गया. वह कस्टमर लडकी जो फेशियल करवाने आई थी, बहुत ही हैरान बैठी रुखसार और उस जख्मी युवक की बातें सुन रही थी.

थोड़ा वेट करना पड़ेगा सिस्टर!’’ रुखसार ने उस लड़की से कहा, ”पहले इन्हें देखना जरूरी है.’’

कोई बात नहीं.’’ लड़की जल्दी से बोली, ”मैं वेट कर लूंगी.’’ 

रुखसार उस युवक के जख्म की मरहमपट्टी करने में व्यस्त हो गई.

क्या नाम है तुम्हारा?’’ रुखसार ने जख्म को डिटोल से साफ करते हुए पूछा.

विपुल टेलर.’’ युवक ने बताया.

कहां के रहने वाले हो?’’

यहीं सूरत में रहता हूं. मेरा इंपोर्ट एक्सपोर्ट का बिजनैस है.’’

रुखसार ने विपुल के जख्म पर मरहम लगा कर रुई रखी और टेप चिपका दी. विपुल टेलर ने कुरसी से उठ कर जेब में से पर्स निकाला और 5-5 सौ के 10 नोट निकाल कर रुखसार की तरफ बढ़ा दिए, ”यह रखो, तुम्हारा आईना मेरी वजह से टूटा है, उस की कीमत. ये 5 हजार रुपए हैं, कम हो तो बता दो.’’ 

रुखसार मुसकराई, ”मेरा आईना केवल 12 सौ रुपए का था. टूट गया तो क्या हुआ, पुराना हो गया था, मैं इसे बदलने वाली थी. तुम रुपए पर्स में रख लो.’’

नहीं. ये तुम्हारे नाम के निकले हैं, तुम्हें लेने ही होंगे. अब महंगा वाला आईनाखरीद लाना.’’ विपुल ने कहते हुए रुखसार की कलाई पकड़ कर 5 हजार रुपए जबरन रुखसार की हथेली पर रख दिए. रुखसार ठगी सी खड़ी रह गई. उस की कलाई पकड़ कर विपुल ने ऐसा महसूस करा दिया था कि वह अपनी बात मनवाने के लिए जिद्ïदी है.

तुम ने अपना नाम नहीं बताया अभी तक,’’ विपुल ने बुत बन कर खड़ी रुखसार से पूछा. रुखसार नींद से जागी हो जैसे, हड़बड़ाते हुए बोली, ”मेरा नाम रिया है. मैं भी यहां सूरत में रहती हूं. यह स्पा सेंटर मैं ने ही खोल रखा है.’’

मेहनती हो…’’ विपुल आगे को झुक कर धीरे से बोला, ”खूबसूरत भी हो. तुम से प्यार करने के लिए दिल मचलने लगा है, अगली मुलाकात जल्दी करूंगा.’’

विपुल अपने मन की बात कह कर तेजी से दरवाजे की ओर बढ़ा. उस ने दरवाजा खोल कर इधरउधर देखा, फिर तेजी से बाहर निकल गया. रुखसार हैरत में डूबी अपनी जगह खड़ी रह गई. वहां पर मौजूद कस्टमर लड़की के होंठों पर गहरी मुसकान थी. पहली अकस्मात मुलाकात में प्यार कैसे हो जाता है, यह उस ने अपनी आंखों से देखा था. विपुल टेलर रुखसार के दिल में पहली मुलाकात में ही खलबली मचा गया था. उस मुलाकात के बाद रुखसार ठीक से सो नहीं पाई थी. उस की आंखों के सामने विपुल का चेहरा बारबार घूम रहा था. विपुल हैंडसम युवक है, उस ने पहली मुलाकात में ही प्यार का इजहार कर दिया. वह हैंडसम ही नहीं, पैसे वाला भी है, 12 सौ के आईने के बदले 5 हजार रुपए दे गया. इस दिलफेंक आशिक से दोस्ती घाटे का सौदा नहीं रहेगी. 

रुखसार के दिल में तरहतरह के विचार आजा रहे थे. विपुल ने अपना केवल नाम ही बताया था, वह कहां रहता है यह नहीं बताया. दोबारा आने को कह गया था, अगर वह नहीं आया तो विचारों में खोई रुखसार का मन अपने काम में नहीं लग रहा था. जैसेतैसे शाम ढली, स्पा में काम करने वाली लड़कियां छुट्टी कर के चली गईं. रुखसार निढाल सी कुरसी पर बैठ गई. आज वह खुद को बहुत थका हुआ महसूस कर रही थी. उस ने आंखें बंद कर लीं और सिर कुरसी की पुश्त से सटा दिया. तभी दरवाजे को धकेल कर विपुल प्रकट हुआ. और पैरों में चमचमाते हुए शूज और मैरून कलर के सफारी सूट में देखते ही रुखसार कुरसी से उतर कर उस की ओर लपकी.

”3 दिन बाद आए हो,’’ रुखसार करीब पहुंच कर शिकायत करते हुए बोली, ”कहां थे 3 दिन से?’’

विपुल मुसकराया, ”ये तड़प, ये उतावलापन. लगता है तुम्हें मुझ से प्यार हो गया है.’’

रुखसार का चेहरा शरम से सुर्ख हो गया. वह विपुल के सीने से लग कर धीमे से बोली, ”यह इश्क की आग तुम ने ही तो लगाई है विपुल. 3 दिनों में ही तुम्हारी दूरी ने मुझे बेचैन कर दिया है.’’ 

विपुल ने उसे बाहों में भींच कर उस के ललाट पर चुंबन लेते हुए फुसफुसा कर कहा, ”मुझ से शादी कर लो रिया, मैं भी अब तुम बिन नहीं रह पाऊंगा.’’

एकाएक रुखसार छिटक कर विपुल के सीने से अलग हो गई. विपुल उस की इस हरकत पर हैरान रह गया. रुखसार कुरसी पर बैठ कर फर्श पर देखने लगी थी.

क्या हुआ रिया, शादी की बात पर तुम मेरे सीने से दूर क्यों हो गई?’’ 

तुम मेरी हकीकत जान लोगे तो मुझ से शादी की बात फिर नहीं करोगे.’’ रुखसार गंभीर हो गई थी. 

मैं तुम्हारी हकीकत जान लूंगा, तब भी अपनी बात पर अडिग रहूंगा रिया.’’ विपुल उस के करीब आ कर गंभीर स्वर में बोला, ”बताओ, तुम मुझ से शादी क्यों नहीं करना चाहती?’’

रुखसार ने विपुल के चेहरे पर अपनी नजरें टिका दीं, ”मैं पहले से ही शादीशुदा हूं विपुल, लेकिन…’’

रुखसार ने अपनी बात बीच में छोड़ दी. विपुल उस की शादी वाली बात पर निराश हुआ, किंतु लेकिनवाले शब्द में उसे अपने लिए कुछ गुंजाइश नजर आई. उस ने जल्दी से पूछा, ”लेकिन क्या रिया?’’

मेरी जिस शख्स से शादी हुई थी, उस से 2 साल बाद ही तलाक हो गया था. अब मैं अकेली अपनी जिंदगी गुजार रही हूं.’’

ओह! फिर तो कोई अड़चन नहीं है.’’

अड़चन अभी भी है विपुल,’’ रुखसार के स्वर में अब पहले से ज्यादा गंभीरता थी.

अब क्या अड़चन है रिया?’’ विपुल हैरान हो कर बोला.

रहने दो विपुल.’’ रुखसार का स्वर भीगने लगा, ”मेरी इस अड़चन की बात सुनने के बाद तुम तुरंत यहां से चले जाओगे… मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती, विपुल.’’

अगर मेरे लिए तुम्हारे दिल में इतना प्यार है तो रिया मैं भी वादा करता हूं, तुम्हारी बात कितनी भी कड़वी हो, मैं उसे मीठा शरबत समझ कर पी लूंगा. बताओ, अब कैसी अड़चन है हमारी शादी में.’’

”मैं रिया नहीं रुखसार हूं, एक मुसलिम लड़की…’’ कहतेकहते रुखसार रोने लगी. विपुल एक पल को हैरान सा अपनी जगह खड़ा रहा. फिर वह लपक कर रिया के करीब आया. उस के पास घुटनों के बल बैठ गया और उस के आंसुओं को पोंछते हुए बोला, ”तुम मुसलमान हो तो क्या हुआ रिया, प्यार किसी मजहब को नहीं मानता. प्यार में ऊंचनीच भी नहीं देखी जाती. प्यार तो प्यार होता है. मैं अब भी तुम से शादी करूंगा रिया उर्फ मेरी रुखसार.’’ विपुल जोश से बोला. 

रुखसार उस के कंधे पर झुक गई और जारजार रोने लगी. विपुल उस की पीठ सहलाते हुए किसी गहरी सोच में डूब गया था. रुखसार के आंसू नहीं थम रहे थे. प्यार भरे 2 दिल एकदूसरे के घड़कनों की आवाजें सुन रहे थे. उन प्रेमियों के कान में एक ही स्वर गूंज रहा था, ”प्यार किसी मजहब को नहीं मानता. प्यार तो बस प्यार होता है.’’ इस तरह विपुल और रुखसार का प्यार इतनी आगे बढ़ गया कि उस ने एक नई कहानी ही गढ़ दी.

दक्षिणपश्चिम दिल्ली में स्थित है डाबड़ी थाना. 4 अप्रैल, 2024 को थाने के एसएचओ धनंजय सिंह आवश्यक फाइलें देखने में व्यस्त थे. समय था रात के पौने 12 बजे का. उन्हें चाय की तलब लगी तो घंटी बजा कर उन्होंने अर्दली को अंदर बुलाया और चाय लाने के लिए कहा. कुछ ही देर में गरमागरम चाय का कप उन के सामने आ गया. अभी उन्होंने चाय का एक घूंट ही भरा होगा कि सामने रखा फोन घनघना उठा. हाथ बढ़ा कर धनंजय सिंह ने रिसीवर उठा कर कान से लगा लिया. फोन पुलिस कंट्रोल रूम से किया जा रहा था. उन्हें कंट्रोल रूम से सूचना दी गई कि द्वारका क्षेत्र के राजापुरी इलाके की गली नंबर 10 में एक युवती की हत्या कर दी गई है. मौकामुआयना करें. 

धनंजय सिंह ने जल्दी से चाय का कप खाली किया और अपनी जगह छोड़ दी. अपने साथ पुलिस टीम ले कर वह राजापुरी इलाके के लिए रवाना हो गए. राजापुरी की गली नंबर 10 में पुलिस टीम पहुंची तो वहां सन्नाटा था. पुलिस वैन के सायरन की आवाज से कई फ्लैट में लाइट जल गई. दरवाजेखिड़कियां खुल गईं. इंसपेक्टर धनंजय सिंह ने पुलिस वैन रुकवा दी. वह पुलिस टीम के साथ नीचे उतरे तो एक सांवले रंग का व्यक्ति लपकता हुआ उन के पास आ गया.

इंसपेक्टर धनंजय सिंह ने उस पर नजरें जमा कर पूछा, ”यहां किसी युवती की हत्या हुई है?’’ 

वह मेरी ही बेटी है साहब.’’ वह व्यक्ति भर्राए स्वर में बोला, ”मेरा नाम मुस्तकीम है, मैं ने ही पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया था.’’

तुम्हारी बेटी की लाश कहां पर है?’’ इंसपेक्टर धनजय सिंह ने पूछा. 

यह सामने का डी-1/12 के फ्लैट के फस्र्ट फ्लोर में. आप मेरे साथ आइए.’’

मुस्तकीम ने कहते हुए अपने कदम सामने वाले फ्लैट की ओर बढ़ा दिए. इंसपेक्टर धनंजय सिंह अपनी टीम के साथ उस के पीछे चलते हुए फ्लैट के फस्र्ट फ्लोर पर पहुंच गए. यहां बैडरूम नजर आ रहा था. उस में बैड पड़ा था. बैडरूम में हर तरफ सामान बिखरा हुआ था. ऐसा लगता था जैसे यहां 2 लोगों के बीच काफी संघर्ष हुआ है. कमरे की अलमारी में एक युवती की लाश थी. वह लाश मुस्तकीम की 25 वर्षीय बेटी रुखसार उर्फ रिया की थी. बारीक से बारीक सबूत इकट्ठा करने के बाद लाश की कागजी काररवाई पूरी की गई, फिर युवती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल भिजवा दिया गया.

युवती के पिता मुस्तकीम से पूछताछ की गई तो यह मालूम हुआ कि मुस्तकीम ने रुखसार का निकाह गुजरात के सूरत शहर में मोहम्मद मोहसिन के साथ सन 2017 में किया था. रुखसार पति के साथ 2 साल रही, फिर घरेलू क्लेश के कारण उस का तलाक हो गया. रुखसार की गोद में उस वक्त उस की एक साल की बच्ची थी. रुखसार ने अपने पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. बेटी को उस ने पिता के हवाले कर दिया और सूरत में आ कर अपना स्पा सेंटर खोल लिया. उस ने ब्यूटीशियन का कोर्स कर रखा था. उस का स्पा सेंटर अच्छा चल निकला. सहयोग के लिए रुखसार ने 3-4 लड़कियों को स्पा में कार्य करने के लिए रख लिया.

मुस्तकीम ने बताया कि 2 साल पहले रुखसार की जिंदगी में विपुल टेलर नाम का युवक आया था. रुखसार उस से मोहब्बत करने लगी. विपुल टेलर सूरत का ही रहने वाला था. रुखसार को उस ने बताया था कि उस का एक्सपोर्टइंपोर्ट का बिजनैस है. रुखसार उस की बातों में आ गई. उस पागल लड़की ने विपुल टेलर के कहने पर अपना अच्छाभला चलता हुआ स्पा सेंटर बंद कर दिया और दिल्ली आ गई. 

विपुल से 7 लाख रुपया ले कर रुखसार ने 42 लाख का यह फ्लैट खरीद लिया. इस की शेष रकम की किस्त विपुल टेलर ने चुकाने का वादा किया था, लेकिन रुखसार मुझे फोन कर के बताती थी कि वह विपुल के झांसे में आ कर अपना चलता हुआ स्पा सेंटर बंद कर आई. विपुल उसे रुपएपैसे से तंग रखता है. उस के साथ मौजमस्ती के लिए रह रहा है. फ्लैट की किस्तें भी नहीं चुका रहा है. वह कुछ ज्यादा बोलती है तो उस से मारपीट करने लगता है.

प्रेमी के इशारों पर क्यों चलने लगी रुखसार

मुस्तकीम ने बताया कि आज 3 अप्रैल, 2024 की दोपहर को ही रुखसार का फोन आया था. वह काफी घबराई हुई और डरी हुई थी. उस ने घबराई हुई आवाज में कहा था कि विपुल उसे मार डालेगा. आ कर मुझे यहां से मेरठ ले जाएं. मैं विपुल के साथ नहीं रहना चाहती. ऐसा वह अपनी ओर से मुझे फोन करने पर कई बार कहती रहती थी. आज भी मैं ने उसे केवल समझा दिया कि तुम लोगों में अकसर झगड़े होते रहते हैं. विपुल गुस्सा करे तो तुम चुप रहना, वह शांत हो जाएगा.

लेकिन रुखसार की आवाज में जो डर था, उस से मैं परेशान हो गया. मुझे लगा विपुल रुखसार का अहित न कर डाले, यह सोच कर अपने एकदो रिश्तेदारों को साथ में ले कर मैं मेरठ से दिल्ली आ गया. हम रात को 10 बजे फ्लैट पर पहुंचे थे. यहां गहरी खामोशी थी. फ्लैट का दरवाजा भी अंदर से बंद था. मुझे मालूम था रुखसार दरवाजे की एक चाबी खिड़की में छिपा कर रखती है. मैं ने वह चाबी ढूंढी और दरवाजा खोल लिया. अंदर सामान बिखरा देख घबराया. फ्लैट में 2 रूम हैं, 2 अटैच्ड टौयलेट बाथरूम हैं. एक ड्राइंगरूम है. 

हम ने रुखसार को आवाजें दीं, कोई उत्तर नहीं मिला तो हम उसे ढूंढने लगे तो मुझे मेरी बेटी की लाश इस अलमारी में मिली. विपुल टेलर मेरी बेटी की हत्या कर के भाग गया था. मैं ने पुलिस कंट्रोल रूम को इस हत्या की जानकारी दे दी. अब तक फ्लैट के सामने आसपास के फ्लैटस के निवासी एकत्र हो गए थे. एसएचओ धनंजय सिंह ने उन लोगों से रुखसार और विपुल टेलर के बारे में पूछताछ की. उन्हें बताया गया कि वैलेंटाइन डे 14 फरवरी को ये दोनों यहां रहने आए थे. प्रौपर्टी डीलर दीपक से इन्होंने यह फ्लैट खरीदा था. दोनों किसी से बातचीत नहीं करते थे. अधिकांश समय फ्लैट में ही बंद रहते थे. लोगों ने बताया कि आज रात 9 बजे विपुल काफी घबराया हुआ बाहर आया और अपनी कार ले कर बाहर चला गया.

पुलिस टीम और औपरेशन सेल के सामने इतना स्पष्ट हो गया था कि रुखसार का कातिल उस का प्रेमी विपुल टेलर है, जो वहां से फरार हो गया है. उसी रात डाबड़ी थाने में रुखसार के पिता मुस्तकीम की तरफ से विपुल टेलर के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया गया. अब रुखसार की हत्या के दोषी विपुल टेलर को गिरफ्तार करना और उस से मालूम करना था कि उस ने अपनी प्रेमिका रुखसार उर्फ रिया की हत्या क्यों की.

विपुल की तलाश में जुटीं पुलिस टीमें

विपुल टेलर की गिरफ्तारी के लिए डीसीपी अंकित सिंह ने औपरेशन यूनिट और डाबड़ी थाने की पुलिस टीम के तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की संयुक्त टीम का गठन कर दिया. इस में एसीपी (डाबड़ी) इशान भारद्वाज, एसीपी औपरेशन यूनिट (द्वारका) रामऔतार और इंसपेक्टर कमलेश कुमार, स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर सुभाष चंद्र, एसएचओ (डाबड़ी) धनंजय सिंह, एसआई राकेश, हैडकांस्टेबल दिनेश कुमार, परवीन को शामिल किया गया. एसीपी इशान भारद्वाज के नेतृत्व में पूरी टीम को काम करना था. एसीपी इशान भारद्वाज ने एक टीम को उसी रात सूरत भेज दिया. इन्हें सूरत में विपुल टेलर का पता लगाना था. 

दूसरी टीम ने फिर से घटनास्थल राजापुरी, गली नंबर 10 में पहुंच कर वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की तलाश की. गली के बाहर सड़क पर एक सीसीटीवी कैमरा लगा था, उस की फुटेज चैक की गई. फुटेज में विपुल की वह कार नजर आ गई, जिस में बैठ कर वह भागा था. कार का नंबर जूम कर के निकाला गया तो वह जीजे 05-जेएम 5411 था. यह कार गुजरात में रजिस्टर्ड थी. इस से साफ हो गया कि यह विपुल टेलर की ही कार है. क्योंकि विपुल टेलर गुजरात के सूरत का निवासी था.

इस टीम को पक्का विश्वास था, विपुल टेलर रुखसार की हत्या करने के बाद सूरत की ओर ही गया होगा. टीम ने पूरा विश्वास करने के लिए गुजरात जाने वाले मुंबई एक्सप्रैसवे के एंट्री टोल प्लाजा सोहना के सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग चेक की तो उन्हें विपुल अपनी कार से टोल प्लाजा पार करता नजर आ गया. इस कार का पीछा करने के लिए इंसपेक्टर सुभाष चंद्र के नेतृत्व में एसआई राकेश कुमार, हैडकांस्टेबल दिनेश, अजय कुमार और परवीन को मुंबई एक्सप्रैसवे पर रवाना कर दिया.

उधर द्वारका थाने की पुलिस अपने स्तर पर आसपास के राज्यों में विपुल टेलर को पकडऩे के लिए दबिश दे रही थी. इंसपेक्टर कमलेश कुमार दूसरी टीम ले कर पहली टीम के पीछे चल दिए. वह जानते थे कि राजस्थान में जा कर मुंबई एक्सप्रैसवे 2 भागों में बंट जाता है. एक कोटा हो कर, दूसरा उदयपुर के रास्ते गुजरात में पहुंचा जा सकता था. वह कोटा के रास्ते सूरत जाना चाहते थे. इंसपेक्टर सुभाष चंद्र की टीम ने विपुल टेलर की कार उस मुंबई एक्सप्रैसवे पर पकडऩे की कोशिश की. तकरीबन 1,400 किलोमीटर का सफर करते हुए आखिर इस टीम को सफलता मिल पाई. 

दिल्ली से निकले हुए उन्हें 48 घंटे हो गए थे. पहले वे भीलवाड़ा पहुंचे, उन्हें वहां मालूम हुआ कि यहां हाइवे पर एक युवक की सियाज कार खंभे से टकरा कर क्षतिग्रस्त हो गई थी. हाइवे पेट्रोलिंग टीम ने उस युवक के लिए एंबुलैंस बुलाई. एंबुलैंस ड्राइवर उसे अस्पताल ले जाना चाहता था, लेकिन उस घायल युवक ने ड्राइवर से कहा कि वह यहां के हौस्पिटल का खर्च नहीं उठा पाएगा. उस ने एंबुलैंस ड्राइवर के फोन से अपने किसी रिलेटिव से रुपए मंगवाए और दूसरी एंबुलैंस बुक कर के सूरत के लिए चला गया.

इंसपेक्टर सुभाष चंद्र ने हाईवे पैट्रोलिंग टीम से पहले वाली एंबुलैंस ड्राइवर का नंबर लिया. उस से बात कर के यह मालूम कर कि दूसरी एंबुलैंस जिस से विपुल टेलर सूरत गया है, उस के ड्राइवर का फोन नंबर क्या है. फोन नंबर मिलते ही इंसपेक्टर ने उस एंबुलैंस ड्राइवर से यह पूछा कि इस वक्त वह कहां पहुंचा है. ड्राइवर ने बताया कि वह उदयपुर पहुंचने वाला है. इंसपेक्टर सुभाष ने एंबुलेंस ड्राइवर को हिदायत दी कि वह अपनी रफ्तार कम रखे. इस के बाद इंसपेक्टर सुभाष ने अपनी गाड़ी की रफ्तार बढ़वा कर आखिर में विपुल टेलर वाली एंबुलैंस को ओवरटेक करने में यह टीम सफल रही. कार से उतर कर इस टीम ने एंबुलैंस में सवार विपुल टेलर को 8 अप्रैल, 2024 को दबोच लिया. वह उदयपुर में पकड़ा गया था.

एंबुलैंस ड्राइवर को धन्यवाद दे कर इंसपेक्टर सुभाष विपुल टेलर को ले कर दिल्ली के लिए वापस लौट पड़ी. रास्ते से ही उन्होंने इंसपेक्टर कमलेश कुमार को विपुल की गिरफ्तारी की सूचना दे दी. डीसीपी अंकित सिंह की उपस्थिति में विपुल टेलर से पूछताछ शुरू हुई. इंसपेक्टर कमलेश कुमार ने उसे घूरते हुए पूछा, ”2 साल पहले तुम ने रुखसार को अपने प्रेमजाल में फंसाया, उस का चलता हुआ स्पा सेंटर बंद करवा कर उसे दिल्ली लाए. 2 महीने से तुम दोनों यहां लिवइन रिलेशन में रह रहे थे, फिर तुम ने उस की हत्या क्यों कर दी?’’

”सर, वह बहुत हठी थी. मैं ने उसे फ्लैट खरीदने को 7 लाख रुपया दिया था. वह फ्लैट की किस्त के लिए मुझे टार्चर करती थी, वह मुझ पर शादी करने का दबाव भी बना रही थी. इन बातों से मैं परेशान हो गया, मैं ने रुखसार से पीछा छुड़ाने के लिए उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.’’ विपुल ने बताया, ”सर, मैं उस से शादी नहीं करना चाहता था. मैं ने उसे समझाया कि जैसा चल रहा है चलने दो, लेकिन वह नहीं मानी. मुझे धमकी देने लगी कि शादी नहीं करोगे और फ्लैट की किस्त नहीं दोगे तो मैं तुम्हें रेप केस में फंसा दूंगी.’’

3 अप्रैल, 2024 को भी उस ने ऐसी ही धमकी दी तो मैं गुस्से में आ गया. मैं ने उसे लातघूंसों से मारा, फिर उस का गला घोंट दिया. उस समय वह शराब के नशे में थी. मैं लाश को छिपाना चाहता था. रुखसार की लाश को मैं जैसेतैसे अलमारी में ठूंस पाया. अलमारी बंद नहीं हुई तो उसे वैसे ही छोड़ दिया. फ्लैट का ताला बंद कर के मैं वहां से अपनी कार द्वारा निकल भागा. विपुल टेलर इसे पहला अपराध बता रहा था, किंतु उसे सूरत तलाश करने गई टीम ने उस का काला चिट्ठा खोला तो वहां उपस्थित सभी लोग हैरान रह गए.

सूरत पहुंची टीम ने किसी तरह विपुल टेलर का घर ए-3/1301,स्वास्तिक रेजिडेंसी, जीडी गोयनका स्कूल को ढूंढ निकाला. लेकिन जब पुलिस टीम विपुल के पिता मनीष अरुण चंद्र टेलर से मिली तो पता चला कि विपुल हिस्ट्रीशीटर है. उस पर 10 केस पहले से चल रहे हैं. अदालत ने उसे तड़ीपार कर दिया है. जांच टीम ने वहां के क्षेत्रीय थाने में जब विपुल की बाबत पूछताछ की तो मालूम हुआ कि विपुल टेलर पढ़ालिखा युवक है, उस के पिता का प्रौपर्टी डीलर का अच्छा कारोबार है. बेटे को पढ़ाने के लिए उन्होंने उसे आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर भेजा था, लेकिन विपुल का वहां मन नहीं लगा और वह भारत लौट आया. 

2016 में एक धमकी के मामले में उसे और उस के पिता पर केस दर्ज हुआ था. दोनों जेल भी गए. फिर विपुल जमानत पर बाहर आ गया. इस के बाद वह ड्रग्स और हथियारों की तसकरी करने लगा. उस ने अपना नेटवर्क गुजरात से दिल्ली तक फैला लिया. जांच टीम ने विपुल की प्रेमिका रुखसार के विषय में भी चौंकाने वाला खुलासा किया. पता चला कि रुखसार स्पा सेंटर की आड़ में देह व्यापार का धंधा चलाती थी. उसे इस मामले में पुलिस ने 3 बार गिरफ्तार किया था और जेल भेजा था.

रुखसार ने क्या किया, क्या नहीं किया, यह कहानी उस की हत्या के साथ ही समाप्त हो गई. लेकिन उस का हत्यारा विपुल टेलर पुलिस की गिरफ्त में था. उसे जांच टीम ने दूसरे दिन अदालत में पेश किया और जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित 

अंधविश्वास के कारण परिवार के 11 लोगों ने की आत्महत्या

दिल्ली के संतनगर, बुराड़ी में जिस तरह एक ही परिवार के 11 लोगों ने आत्महत्या की, उसे देख कर लगता है कि देश में अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहराई तक पैठ बनाए हुए हैं कि उन्हें उखाड़ फेंकना आसान नहीं है. सुबह के साढ़े 7 बज चुके थे, पर ललित की दुकान अभी तक बंद थी. जबकि रोजाना साढ़े 6 बजे ही दुकान खुल जाती थी. दुकान बंद देख कर पड़ोस में रहने वाले गुरचरण सिंह को आश्चर्य हुआ. क्योंकि उन के घर का मुख्य दरवाजा खुला था. जबकि अमूमन होता उलटा था, दुकान खुली होती थी और घर का दरवाजा बंद होता था.

संतनगर, बुराड़ी की गली नंबर 2 में रहने वाले गुरचरण सिंह का घर ललित के पड़ोस में ही था. ललित के घर का मुख्य दरवाजा खुला देख गुरचरण सिंह उन के घर के भीतर चले गए. अंदर का दृश्य देख कर वह हक्केबक्के रह गए. छत पर लगी लोहे की ग्रिल से घर के सारे सदस्य फांसी के फंदे पर लटके हुए थे. यह खौफनाक दृश्य देख गुरचरण सिंह उल्टे पांव वापस लौट आए और पड़ोस के लोगों को इकट्ठा कर अंदर की जानकारी दी. साथ ही उन्होंने पुलिस को भी सूचना दे दी. गली नंबर 2 में रहने वाले जिस किसी ने भी घर में जा कर देखा, हैरान रह गया. घर के सभी 11 लोगों के फांसी के फंदे पर झूलने की बात सुन कर कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई.

कुछ ही देर में बुराड़ी थाने की पुलिस भी आ गई. यह बात पहली जुलाई 2018 की सुबह की थी. एक ही घर के 11 लोगों की मौत बहुत बड़ी घटना थी. सूचना पा कर थोड़ी देर में पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी घटनास्थल पर पहुंचना शुरू कर दिया था. पुलिस आयुक्त के आदेश पर क्राइम ब्रांच के कई अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. फौरेंसिक और क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीमें भी मौके पर पहुंच कर जांच में जुट गईं. मरने वालों में 4 पुरुष और 7 महिलाएं थीं. जांच के दौरान घर की बाहरी दीवार पर 11 पाइप लगे मिले. इन में से 4 पाइप बडे़ और सीधे थे, जबकि 7 अन्य पाइपों का मुंह नीचे की ओर था.

घर की मुखिया नारायणी देवी की लाश नीचे फर्श पर पड़ी थी. उन के 2 बेटों भुवनेश और ललित, उन की पत्नियां सविता और टीना, नारायणी की विधवा बेटी प्रतिभा और प्रतिभा की बेटी प्रियंका की लाशें जाल में बंधी चुन्नियों से लटकी थीं. भुवनेश के 3 बच्चे नीतू, मेनका ध्रुव और ललित के बेटे शिवम की लाशें भी चुन्नी के सहारे जाल से लटकी हुई थीं. सभी लाशें प्रथम तल पर थीं. यह पूरा परिवार भोपाल सिंह भाटिया का था. भोपाल सिंह की मौत करीब 11 साल पहले हो गई थी.

प्रथम तल पर जाने वाली सीढ़ी के दोनों दरवाजे खुले थे. घर में कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. ही लूटपाट के कोई निशान थे. संभवतया देश भर में यह अपनी तरह की पहली घटना थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के 11 लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. नारायणी देवी का एक बेटा दिनेश सिविल कौंट्रेक्टर है जो अपने परिवार के साथ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में रहता है और उन की एक बेटी सुजाता पानीपत में रहती है. पुलिस ने इन दोनों भाईबहनों के पास भी सूचना भिजवा दी. सामूहिक आत्महत्या की देश की सब से बड़ी घटना मामले की जांच क्राइम ब्रांच ने शुरू कर दी. ज्योंज्यों तफ्तीश आगे बढ़ी मामला साफ होता गया. शुरू में हत्या और सामूहिक आत्महत्या, दोनों एंगल से जांच शुरू की गई.

भाटिया परिवार के बचे सदस्यों ने यह हत्या का मामला बताया. भोपाल सिंह की बेटी सुजाता ने कहा कि उन का परिवार आत्महत्या नहीं कर सकता. उन की योजनाबद्ध तरीके से किसी ने हत्या की है. परिवार धार्मिक जरूर था पर अंधविश्वासी नहीं था. पुलिस की जांच में 11 लोगों की मौत का खुलासा हुआ तो अंधविश्वास की एक ऐसी खौफनाक कहानी सामने आई जिसे सुन कर हर कोई दंग रह गया. अंधविश्वास के दलदल में फंस कर समूचा परिवार मौत के मुंह में समा गया. अंधविश्वास से जुड़ी यह विरल घटना थी, जिसे जान कर हर कोई हैरान और सन्न रह गया. टीवी चैनलों पर दिनभर भाटिया परिवार की मौत की सनसनीखेज खबरें प्रसारित होने लगीं.

अंधविश्वास की इस घटना ने तमाम वैज्ञानिक और शैक्षिक तरक्की को अंगूठा दिखा दिया. इस घटना ने समाज के उस अंधकार को उजागर किया, जिस के भीतर सदियों से डूबा यह देश परमात्मा, आत्मा, स्वर्ग, नरक, मुक्ति और मोक्ष को तलाशता रहा है. पुलिस जांच में सामने आया कि घर की मुखिया जिन नारायणी देवी की लाश फर्श पर पड़ी मिली, उन्हें गला घोंट कर मारा गया था. बाकी सभी के शव जाल से लटके मिले. उन की आंखों पर पट्टी बंधी थी, मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था. हाथ बंधे हुए थे.

पुलिस को मकान से जो डायरी मिली उस से पता चला कि यह सब मौतें अंधविश्वास की वजह से हुई थीं. डायरी में लिखी बातों से पता लगा कि ललित पिता के अलावा परिवार से जुड़े 5 अन्य सदस्यों की आत्मा को भी मोक्ष दिलाना चाहता था. डायरी में 9 जून को लिखा था, ‘अभी 7 आत्माएं मेरे साथ भटक रही हैं. क्रिया में सुधार करोगे तो गति बढ़ेगी. मैं इस चीज के लिए भटक रहा हूं. ऐसे ही सज्जन सिंह, हीरा, दयानंद, कर्मानंद, राहुल, गंगा और जमुना देवी मेरे सहयोगी बने हुए हैं.’

ललित ने जिन लोगों का जिक्र किया है उन में सज्जन सिंह ललित का ससुर यानी उस की पत्नी टीना का पिता, हीरा प्रतिभा का पति, दयानंद और गंगा देवी ललित की बहन सुजाता के ससुराल पक्ष के लोग थे, जो कुछ समय पहले मरे थे. संयुक्त आयुक्त क्राइम ब्रांच आलोक कुमार के मुताबिक तफ्तीश में जितने भी सबूत मिले, उस से साफ हो गया कि परिवार के सभी सदस्यों ने अंधविश्वास के चलते सामूहिक आत्महत्या की थी. ऐसा करने के लिए पूरे परिवार को ललित ने मजबूर किया था.

शुरू में इन लोगों की हत्या का संदेह जताया गया पर बाद में सबूतों और पूछताछ के आधार पर एक ऐसे परिवार की कहानी सामने आई, जो अंधविश्वास के ऐसे खौफनाक अंधकार में फंसा हुआ था कि किसी में विवेक नाम की जरा भी शक्ति नहीं बची थी. अंधविश्वास के दलदल में फंसे इस परिवार की भयावह हकीकत जान कर हर कोई सन्न रह गया. अंधविश्वास का अंधकूप तलाशी के दौरान पुलिस को छानबीन में घर से कई डायरियां मिलीं, इन डायरियों में परिवार के सदस्यों की इन मौतों की पूरी पटकथा लिखी थी. पुलिस ने कडि़यां जोड़ीं तो इस परिवार द्वारा मृत पिता भोपाल सिंह कीआत्माके आदेश परपरमात्मासे मिल कर वापस लौट आने का झूठा भ्रम फैलाया गया था.

भाटिया परिवार के मझले बेटे ललित के सिर में कुछ साल पहले चोट लगी थी. जिस की वजह से वह बोल नहीं पाता था. चोट से उस के दिमाग पर बुरा असर पड़ा था. उस का 3 साल तक इलाज चला. इस के बाद वह थोड़ाथोड़ा बोलने लगा था. इसे वह चमत्कार मानता था. ललित ने दावा करना शुरू कर दिया था कि उस पर उस के पिता भोपाल सिंह की आत्मा आती है और वह परिवार को सुखी रखने और दुख दूर करने के उपाय बताती है. बाद में उस ने डायरी लिखनी शुरू की जिस में धार्मिक आदेशात्मक बातें लिखता था

पुलिस के अनुसार ललित ने अंधविश्वासी क्रियाएं जुलाई, 2007 से शुरू कीं. ललित पूजापाठ से परिवार की समस्याएं दूर करता था. पड़ोसी बताते हैं कि इस काम में ललित की पत्नी टीना भी मदद करती थी. वह पूरी धार्मिक हो गई थी. भाटिया परिवार हदे से परे तक धार्मिक प्रवृत्ति का था और पूजापाठ में डूबा रहता था. साथ ही वह घोर अंधविश्वासी भी था. पूरा परिवार सुबह, दोपहर और शाम यानी 3 टाइम पूजापाठ करता था. क्राइम ब्रांच को 5 जून, 2013 से 30 जून, 2018 तक की तारीखों में लिखी 11 डायरियां मिलीं

इन डायरियों में अलगअलग तरह की लिखावट थी. ज्यादातर लिखावट प्रियंका की थी. ललित पर जब पिता का साया आता था और वह जो बोलता था उसे प्रियंका ही नोट करती थी. भाटिया परिवार को भरोसा था कि दिवंगत पिता की आत्मा परिवार की मदद कर रही है. यह विश्वास इसलिए बढ़ा क्योंकि घर के बाहर दोनों भाइयों की 2 दुकानें अच्छी चल रही थीं. भुवनेश की बेटी मेनका भी स्कूल में टौपर बच्चों में से थी. भुवनेश की किराने की दुकान थी और ललित की प्लाईवुड की. भाइयों के बच्चे भी अच्छे नंबरों से पास होते थे. इन के अलावा ललित की भांजी प्रियंका को मांगलिक बताया गया था. इस के बावजूद उस का रिश्ता तय हो गया था. 17 जून, 2018 को ही प्रियंका की सगाई नोएडा के एक इंजीनियर लड़के से तय हो गई थी और परिवार ने सगाई का कार्यक्रम बड़ी खुशीखुशी किया था.

इस से पहले ललित ने प्रियंका का रिश्ता होने पर उसे मांगलिक मान कर घर में हवनपूजा की थी. जिस में उस ने दावा किया था कि उस के पिता की आत्मा भी मौजूद है. प्रियंका के मांगलिक होने पर ललित ने उज्जैन जा कर भी पूजापाठ कराया था. ललित तंत्रमंत्र क्रियाएं भी कराता रहता था. जांच के दौरान घर की बाहरी दीवार पर 11 पाइप लगे मिले. यह पाइप भी ललित ने ही लगवाए थे. इन की वहां जरूरत भी नहीं थी. पुलिस को यह पता नहीं लगा कि ललित ने ये पाइप किसलिए लगवाए थे. पढ़ेलिखे बेवकूफ पूरा भाटिया परिवार पढ़ालिखा था. 32 साल की प्रियंका ने एमबीए किया था. वह दिल्ली में ही पढ़ीलिखी थी. इस समय प्रियंका नोएडा की सीपीएम ग्लोबल कंपनी में नौकरी करती थी. इस से पहले वह एक नामी सौफ्टवेयर कंपनी में थी

प्रियंका की भी धर्म, ज्योतिष और धर्मगुरुओं के प्रति रुचि थी. वह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती थी. जन्म के 2 साल बाद ही प्रियंका के पिता हीरा की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद वह अपनी मां के साथ राजस्थान से कर संतनगर, बुराड़ी में रहने लगी थी. प्रियंका की मां प्रतिभा घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी. प्रियंका का रिश्ता हो जाने पर ललित ने अपने पिता और भगवान का शुक्रिया करने के लिए 24 से 30 जून तक 7 दिन की पूजा साधना क्रिया का प्रोग्राम तय किया था, जिस में पूरे परिवार को शामिल होना था. इस बात की तस्दीक डायरी में लिखी बातों से होती है

डायरी में एक सप्ताह पहले लिखा गया था कि इस पूजा का उद्देश्य भगवान को धन्यवाद देना था, क्योंकि पूरे परिवार का मानना था कि भगवान उन पर आशीर्वाद बनाए हुए हैं. कुछ वर्षों के दौरान ललित अपने परिवार को यह समझाने में सफल हो गया था कि पिता की आत्मा की वजह से उन का परिवार आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है. डायरी में परिवार के सदस्यों की मौत का पूरा बयौरा लिखा गया था. डायरी में एक जगह लिखा था, ‘सभी सदस्य मोक्ष प्राप्त करने के बाद भगवान से मिल कर वापस धरती पर आ जाएंगे. इस के लिए तैयार रहना.’  आगे लिखा था, ‘बड़ पूजा क्रिया की जाएगी. यानी बड़ वृक्ष के नीचे लटकी जड़ों की तरह सब को लटकने की क्रिया करनी होगी. यह पूजा पूरी लगन और श्रद्धा से लगातार 7 दिन करनी है. पूजा के समय अगर कोई घर में आ जाए तो पूजा अगले दिन से शुरू होगी.’

एक जगह लिखा था, ‘9 सदस्यों के लिए भगवान का रास्ता जाल (घर में लगा लोहे का जाल) से शुरू होता है. बेबी (प्रतिभा) मंदिर के निकट स्टूल पर खड़ी होगी. 10 बजे भोजन का और्डर किया जाएगा. मां रोटी खिलाएंगी. क्रिया 1 बजे होगी. गीला कपड़ा मुंह में रखना होगा. टेप से हाथों को बांधना होगा और कानों को रूई से बंद करना होगा.’ आगे लिखा था, ‘पट्टियां अच्छे से बांधनी हैं. उस समय शून्य के अलावा कुछ भी नहीं दिखना चाहिए.’ यह भी लिखा था, ‘एक कप पानी का रखा जाएगा और जब पानी का रंग बदल जाएगा तब समझना कि पिता की आत्मा प्रकट हो चुकी है और वही आत्मा सब को बचा लेगी.’

ललित ने एक जगह लिखा था, ‘झूठ की जिंदगी से दूर रहना होगा. ऐसा करने से तुम्हारा जीवन आगे नहीं बढ़ेगा. मैं चाहता हूं कि आप ऐसा काम करो जिस से आप को कम मेहनत करनी पड़े और खुशहाल जिंदगी जी सको.’ हवाई खयालों में जीता था ललित 28 जून को डायरी में लिखी गई बात को पढ़ने से साफ हो जाता है कि परिवार का मरने का कोई इरादा नहीं था क्योंकि इस में अगले महीने तक की प्लानिंग लिखी थी. डायरी में लिखा था, ‘भूपी (भुवनेश) बैंक से पैसा निकालेगा. इस पैसे को दुकान में लगाया जाएगा. घर में इस पैसे का इस्तेमाल कदापि नहीं होगा.’

पुलिस ने दरवाजे के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी तो 30 जून की सुबह प्रतिभा और प्रियंका मौर्निंग वाक पर जाती दिखीं. भुवनेश सुबह 5:40 बजे मंदिर गया और 5:51 बजे घर वापस गया. 10 बजे ललित अपनी दुकान पर गया. दोपहर में उस ने मोबाइल की एक दुकान से अपना फोन रिचार्ज करवाया. रात 10 बजे सीसीटीवी में घर की 2 महिलाएं स्टूल ले कर आती दिखीं. कुछ देर बाद बच्चे नीचे दुकान से तार ले जाते दिखे. 10:40 बजे डिलीवरी बौय खाना दे कर गया. खाने में केवल 20 रोटियां थीं. मुंह पर चिपकाने के लिए टेप और अलगअलग रंग की चुन्नियां खरीदी गई थीं. इस से स्पष्ट है कि यह सब ललित के दिमागी पागलपन की निर्धारित योजना के तहत था.

वास्तव में ललित मनोरोगी था. परिवार के किसी सदस्य को इस बात का पता नहीं चला. परिवार यही सोचता था कि जब ललित पर पिता की आत्मा सवार हो जाती है उस समय ललित के मुंह से पिता भोपाल की भाषा शैली में ही आवाज निकलती है. उस समय ललित जो कुछ बोलता था, पूरा परिवार ध्यान से सुन कर उस पर अमल करता था. डायरी में लिखे गए आदेशों के अनुसार 30 जून, 2018 की रात को पूरे परिवार ने 11 बजे के बाद मोक्ष की क्रिया शुरू की. रात को 10  बजे के करीब बाहर से रोटी मंगाई गई. परिवार के पास एक कुत्ता था, जिसे छत के ऊपर जाल में बांध दिया गया और फिर परिवार के सभी 11 सदस्य फंदे बना कर लटक गए. घर का दरवाजा इसलिए खुला रखा गया ताकिपिता की आत्मादरवाजे से प्रवेश कर सके.

ललित ने घर वालों को बताया था कि मोक्ष के लिए उन्हें 7 दिन तक मोक्ष क्रिया करनी होगी और जब यह क्रिया पूरी कर लेंगे तब पिता की आत्मा ही उन्हें बचाएगी. ईश्वर और पिता से मिलने के बाद वे वापस लौट आएंगे. भाटिया परिवार के सदस्य मरना नहीं चाहते थे और उन्हें जरा भी मालूम नहीं था कि ईश्वर से मिलने के लिए वे जो क्रिया कर रहे हैं, उस से वे सचमुच मौत को गले लगाने जा रहे हैं. उन्हें पूरा भरोसा था कि उन्हें पिताजी बचा लेंगे.

डायरी में लिखे मौत के रहस्य डायरी में फंदे पर कैसे लटकना है, इस का तरीका भी लिखा था. ‘7 दिन लगातार पूजा करनी है. थोड़ी श्रद्धा और लगन से. बेबी खड़ी नहीं हो सकतीं तो वह अलग कमरे में लेट सकती हैं. पट्टियां अच्छे से बांधनी हैं. हाथ प्रार्थना की मुद्रा में होने चाहिए.  गले में सूती चुन्नी या साड़ी का ही प्रयोग करना है.’ आगे लिखा था, ‘सब की सोच एक जैसी हो. पहले से ज्यादा दृढ़. स्नान की जरूरत नहीं है, मुंहहाथ धो कर ही काम चल सकता है. इस से तुम्हारे आगे के काम होने शुरू होंगे. ढीलापन और अविश्वास नुकसानदायक होते हैं. श्रद्धा में तालमेल और आपसी सहयोग जरूरी होता है. मंगल, शनि, वीर, इतवार को फिर आऊंगा. मध्यम रोशनी का प्रयोग करना है.

हाथों की पट्टी बचेगी. उसे डबल कर के आंखों पर बांधना है. मुंह की पट्टी को भी रूमाल बांध कर डबल कर लेनी है. जितनी दृढ़ता और श्रद्धा दिखाओगे, उतना ही उचित फल मिलेगा. जिस दिन यह प्रयोग करो उस दिन फोन कम से कम प्रयोग करना.’ एक पेज पर लिखा था, ‘धरती कांपे या आसमान हिले लेकिन तुम घबराना मत. मैं आऊंगा और सब को बचा लूंगा.’मनोचिकित्सकों का मानना है कि असल में ललित मनोरोगी था. उस का रोग धार्मिक मान्यता और अंधविश्वास से जुड़ा हुआ था. ऐसे में पीडि़त व्यक्ति को किसी अदृश्य शक्ति के वश में होने का अहसास होता है और अपने अस्तित्व को कुछ देर के लिए भूल जाता है. मनोचिकत्सक इसेशेयर्ड  साइकोथिक डिसऔर्डरकहते हैं. पूरा परिवार इस बीमारी का शिकार था. ललित जो भी बात बताता था, पूरा परिवार उसे उस का आदेश मानता था.

आज पूरे देश में जिस तरह के धार्मिक अंधविश्वास का माहौल बना हुआ है, उसे देखते हुए संतनगर की यह घटना कोई ताज्जुब वाली बात नहीं है. क्योंकि सारा देश ही अंधविश्वास के जंजाल में बुरी तरह उलझा नजर आता है. मौजूदा समय में लोगों में समस्याओं के समाधान के लिए पूजापाठ, हवनयज्ञ, तंत्रमंत्र, टोनेटोटकों का चलन चरम पर है. कदमकदम पर परेशानियां दूर करने वाले पंडेपुजारी, ज्योतिषी, तांत्रिक, साधु या गुरु अंधविश्वास का डेरा जमाए बैठे हैं. हर नुक्कड़ पर समस्याओं का समाधान करने का दावा करने वाले तथाकथित मार्गदर्शक बैठे हैं जो बदले में दानदक्षिणा, चढ़ावा मांगते हैं.

धर्मगुरु, पंडेपुजारी अंधविश्वास के अंधेरे को बढ़ावा दे रहे हैं. मीडिया ऐसे पाखंडियों का प्रचार करने में लगा हुआ है. भाग्यवाद, लोकपरलोक, स्वर्ग, नरक, पुनर्जन्म, मोक्ष, पूर्वजन्म के कर्मों का फल, 33 करोड़ देवीदेवता, 84 लाख योनियां, मोहमाया त्याग कर ईश्वर की शरण में चले जाने जैसी मूर्खता की बातें इंसान को बरगलाने, मानसिक रूप से कमजोर करने के लिए काफी हैं. अंधविश्वास का जाल अब गांवों के दायरे से निकल कर शहरों, महानगरों में शिक्षित युवाओं और विदेशों तक पहुंच चुका है. आज लोग विज्ञान से ज्यादा टोनेटोटकों, अंधविश्वास और तंत्रमंत्र में अपनी परेशानियों का समाधान तलाश रहे हैं. अंधविश्वास का यह कारोबार खूब फलफूल रहा है.

11 लोगों की मौत की घटना किसी दूरदराज के इलाके में नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली में घटित हुई जो शिक्षा, विज्ञान, सामाजिक सभ्यता और तथाकथित आध्यात्मिकता प्रगति संबंधी नीति निर्माण का केंद्र बिंदु है. यहां सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक विकास के बड़ेबड़े दावे किए जाते हैं. ज्योंज्यों शिक्षा का विस्तार और वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रसार हो रहा है, लोग उतने ही अंधविश्वास की गर्त में धंसते जा रहे हैं. अंधविश्वास तार्किक, उदार और स्वतंत्र विचारों पर हावी है. वैज्ञानिक और तार्किक विचारों की बात करने वालों पर हमले किए जाते हैं. ऐसे में संतनगर की घटना समूचे समाज के माथे पर कलंक है. यह घटना अंधविश्वास की इंतहा है.

                           

एक टुकड़ा सुख

संस्था में सुनील से मुलाकात के होने के बाद मुक्ता के मन में संस्था से निकल कर अपनी लाइफ को अपनी तरह से जीने की उम्मीद जागी थी. सुनील ने भी उस की सोच को नए पंख दे दिए थे. लेकिन यह पंख भी मुक्ता को एक टुकड़ा सुख से ज्यादा कुछ न दे सके.

आज सुबह से ही न जाने क्यों मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था. किसी अनहोनी आशंका से मेरा मन घिरा हुआ था. मैं चाहते हुए भी स्वयं को संयत नहीं रख पा रहा था. जल्दीजल्दी नाश्ता किया और औफिस के लिए निकल पड़ा. मेरी पत्नी मानसी ने एकदो बार पूछा भी परंतु मैं उसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया. बस, अनमने मन से कहा, ”नहीं, बस यूं ही, औफिस में थोड़ा ज्यादा काम है.’’ कह कर मैं ने बात टाल दी. अभी मैं अपने घर के दरवाजे तक भी नहीं पहुंचा था कि पीछे से मानसी ने आवाज दे कर याद दिलाया कि आप कार की चाबी और टिफिन बौक्स तो घर पर ही भूल गए हैं. वह मेरे पास आ कर बोली, ”तबीयत ठीक नहीं है तो मत जाओ.’’ 

जवाब में मैं ने कुछ नहीं कहा और बेमन से औफिस चला गया. अभी मैं औफिस में अपने कामों को देख ही रहा था कि याद आया आज तो मैं ने अपनी केबिन में रखे छोटे से मंदिर की दीयाबाती भी नहीं की. क्या हो गया है मुझे आज! मैं सोचने लगा. तब तक औफिस का चपरासी टेबल पर चाय और पानी का गिलास रख कर जाने लगा तो मैं ने उस से कहा, ”मिसेज शर्मा को भेज देना.’’ फिर कुछ सोच कर बोला, ”अच्छा रहने दो, मैं बाद में बुला लूंगा.’’ वह मेरा मुंह देखने लगा.

हमारे औफिस में मोबाइल सुनने पर पाबंदी थी, इसलिए सभी स्टाफ अपना मोबाइल साइलेंट मोड पर रखते थे. मैं ने भी अपना फोन वाइब्रेट मोड पर रख कर सामने रख दिया. तभी फोन धीरे से बज उठा. किसी अंजान नंबर से फोन था. मैं ने जैसे ही रिसीव किया तो दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज आई, ”नमस्ते सर, क्या मैं सुनीलजी से बात कर सकती हूं?’’

जी, बोल रहा हूं… आप कौन?’’

मैं देहरादून से बोल रही हूं बसेरासे.’’ 

मैं चौंक गया. बसेरावृद्ध असहाय लोगों का एक आश्रम था, जिसे एक एनजीओ चलाता था. 

जी, बात यह है कि आप को प्रशांतजी याद कर रहे थे… आज आप यहां आ सकते हैं क्या?’’

क्यों, क्या बात हो गई? सब ठीक तो है न?’’ मैं ने चिंतित होते हुए पूछा.

सब कुछ तो ठीक नहीं है, बस आप यहां आ जाइए.’’

ठीक है, मैं एकदो दिन में आता हूं,’’ मैं ने कहा.

क्या आप आज नहीं आ सकते?’’ उस के स्वर में थोड़ी कंपन थी. शायद थोड़ा घबराई हुई भी थी.

अच्छा, मैं कोशिश करता हूं.’’ कह कर मैं ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

10 बज चुके थे और मैं कितनी भी जल्दी करूं, 12 बजे से पहले की बस तो पकड़ ही नहीं सकता था. मैं ने जल्दीजल्दी अपना सारा काम मिसेज शर्मा को समझा दिया. उधर पत्नी मानसी को भी मैं ने जाने की तैयारी के लिए कह दिया. मुझे इसी भागदौड़ में बस मिल गई. मैं ने जानबूझ कर पीछे की सीट ली ताकि आगे के शोर से बच सकूं. बस चलते ही बाहर का शोर तो कम हो गया, पर अपने भीतर के शोर का क्या करता, वह तो देहरादून और बसेराकी यादों में उलझा रहा. मैं यादों को जितना दबाता, वह उतना ही उभर कर सामने आ जातीं और उन्हीं यादों में एक याद मुक्ता की भी थी.

 

2 साल पहले मुझे मेरी कंपनी ने उत्तराखंड में सर्वे के लिए भेजा था, ताकि हम अपना प्रोडक्ट ठीक से बाजार में उतार सकें. हमारी कंपनी हौट वाटर बोटल यानी गर्म पानी की रबर की बोतलें बनाती थी और उत्तराखंड ही ऐसा राज्य था, जहां इस का प्रचारप्रसार हो सकता था. मैं ने देहरादून को अपना स्टेशन बनाया और सर्वे करता रहा. कभी मसूरी, कभी नैनीताल और कभी ऋषिकेश में. मैं अपने सर्वे का दायरा बढ़ाता रहा. बीचबीच में जब भी समय मिलता, मैं आश्रमों और मंदिरों में जाने लगा. राजपुर रोड पर कई आश्रम थे और कहीं न कहीं कोई प्रोग्राम चलता ही रहता था.

एक दिन मैं यूं ही घूम रहा था कि मेरी नजर एक बोर्ड पर जा पड़ी. जिस पर लिखा था कि बसेरा नाम की संस्था भागवत सप्ताह मनाने जा रही है और योगदान की सारी राशि वृद्धाश्रम के लिए उपयोग की जाएगी. उन दोनों ही बातों ने मुझ में जिज्ञासा पैदा की. पता पढ़ कर मैं अगले दिन सुबह ही बसेरापहुंच गया. उस दिन रविवार था. जैसे ही मैं हाल में पहुंचा, लगभग सारी सीटें भर चुकी थीं. वह एक छोटा सा हाल था, जिस में 30-35 व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था थी. मैं ने उड़ती हुई नजर हाल में दौड़ाई और पीछे की एक कुरसी पर बैठ गया.

सामने की तरफ एक कोने में कुछ देवीदेवताओं की फोटो के सामने एक दीया जल रहा था और एक वृद्ध कुरसी पर बैठे किसी किताब के पन्ने पलट रहे थे. दूसरी तरफ एक मंडली भजन गा रही थी. भजन समाप्त होते ही महाराजजी ने धीमे मगर मधुर स्वर से भूमिका बांधनी शुरू की और भागवत का महत्त्व समझाने लगे. तभी एक 28-30 साल की महिला ने मेरे पास आ कर बड़ी विनम्रता से जूते बाहर उतारने के लिए निवेदन किया. मैं ने इस बात को पहले नहीं महसूस किया कि सभी के जूतेचप्पल हाल के बाहर रखे थे. मैं सब से पीछे बैठा था, इसलिए किसी का ध्यान मेरी तरफ नहीं गया. मेरे लिए जूते उतार कर बाहर रखना या जूते पहन कर बाहर जाना, सब का ध्यान आकर्षित करने जैसा था. 

मैं थोड़ा हिचकिचाने लगा कि अब क्या करूं. वह मेरी ही पंक्ति में कोने में बैठी थी. उस ने मेरी इस हिचकिचाहट को भांप लिया और इशारा किया कि चुपचाप जूते उतार कर अपनी कुरसी के नीचे रख दूं. उस दिन की भागवत की क्लास समाप्त होने पर शांति पाठ हुआ और सभी लोग महाराज के पीछे चले गए. वह जैसे ही अपने स्थान से उठी, मैं ने हाथ जोड़ कर उन्हें धन्यवाद दिया और जूते बाहर ले जा कर पहनने लगा. 

हाल में 2 व्हील चेयर पर वृद्ध से व्यक्ति बैठे थे. वह उठ कर उन में से एक को धीरेधीरे बाहर ले जाने लगी. मैं अपने स्थान पर खड़ा हो गया और धीरे से कहा, ”मैं कुछ मदद करूं?’’ तब तक वह दूसरी व्हील चेयर भी बाहर ले आई और हाल का दरवाजा बाहर से बंद करती हुई बोली, ”आप को कोई परेशानी न हो तो एक व्हील चेयर के साथ मेरे पीछेपीछे आ जाइए.’’  मैं ने अपने जीवन में कभी व्हील चेयर को हाथ तक नहीं लगाया था और किसी की मदद करने में बड़ा सुख महसूस हो रहा था. भीतर से कोई आवाज ऐसी भी आ रही थी कि कोई ऐसा मोहताज कभी न बने. उन में से एक को पार्क के पास छोड़ कर और दूसरे व्यक्ति को पास के ही एक कमरे में छोड़ कर वह मेरे पास आ गई.

आप पहली बार आए हैं यहां?’’ उस ने पूछा. 

मैं वहां का वातावरण देख कर इतना भावुक हो गया था कि मुंह से कोई शब्द नहीं निकला, सिर्फ सिर नीचा कर के हांकी. तब तक सामने से 2 व्यक्ति आ रहे थे. उस ने हाथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम किया. मेरे हाथ भी खुदबखुद जुड़ गए. वह उन में से एक व्यक्ति की तरफ देखते हुए बोली, ”ये पहली बार आए हैं यहां, औफिस के बारे में पूछ रहे थे.’’ उन्होंने मुसकरा कर मेरा अभिनंदन किया और गेट के पास एक कमरे की तरफ इशारा कर के कहा कि आप वहां बैठिए, मैं थोड़ी देर में आता हूं. 

तब तक वह बोली, ”चलिए, आप को वहां तक ले चलती हूं. जिन से आप मिले थे, वह यहां के ट्रस्टी हैं.’’  बातों का सिलसिला जारी रखते हुए मैं ने अपना परिचय दिया, ”मेरा नाम सुनील है, अभी 3 महीने पहले ही यहां आया हूं. परसों आप की संस्था का बोर्ड पढ़ा था. सोचा एक बार देख लूं. किसी भी आश्रम में आने का मेरा यह पहला अनुभव है और वह भी ऐसी संस्था जहां ज्यादातर शायद वृद्ध ही रहते हैं. आप यहां के बारे में कुछ बताइए.’’

उस ने मुझे बताना शुरू किया, ”बसेरा नाम का यह ट्रस्ट केवल वृद्ध व्यक्तियों की सेवा करता है. सीनियर सिटिजन होम भी इसे कह सकते हैं. प्रशांतजी, जिन से आप अभी मिले थे, यहां के प्रधान ट्रस्टी हैं. उन्हीं का बनाया हुआ यह ट्रस्ट है. कुछ तो यहां अपनी खुशी से रह रहे हैं और कुछ मजबूरी से. समय बिताने के लिए यहां एक छोटा सा मंदिर, पार्क, सत्संग हाल और एक पुस्तकालय है, जिन की जैसी रुचि हो वहां चला जाता है. और एक किचन भी है जहां सभी पहुंच जाते हैं और जो नहीं पहुंच सकते, उन के कमरों तक भोजन, नाश्ता वगैरह पहुंचाया जाता है.’’

और इन सब के लिए धन कहां से आता है, मेरा मतलब खर्चे भी बहुत होते होंगे इतनी बड़ी संस्था को चलाने के लिए.’’

हां, वह तो है… यह सब तो मैनेजमेंट ही जाने.’’ कह कर उस ने सामने के कमरे की तरफ इशारा कर के इंतजार करने के कहा.

मैं उन के कमरे के बाहर बरामदे में बैठ गया. थोड़ी देर में प्रशांतजी आए, मैं ने उन्हें अपना परिचय दिया और बातोंबातों में कुछ अपनी गर्म पानी की बोतलें भेंट करने का आश्वासन दिया. वह लगभग 68 वर्ष के सौम्य और शालीन नेचर के व्यक्ति थे. लगभग 20 वर्ष पहले उन्होंने यह संस्था शुरू की थी. समय बीतता गया और लोग जुड़ते गए. समयसमय पर सत्संग, भजन, प्रवचन, होलीदिवाली मेलों इत्यादि का आयोजन करते रहते और इकट्ठा हुए धन से संस्था का काम करते रहते.

मेरे जीवन का किसी भी संस्था में जाने का यह पहला अनुभव था. मैं बहुत ही नपेतुले शब्दों का प्रयोग करता रहा और मेरे इसी व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर उन्होंने मुझे यहां आने का एक खुला आमंत्रण दे दिया. यहां पर 3-4 दंपतियों के अलावा 12 पुरुष और 8 महिलाएं भी रहते थे. मैं ने उस संस्था में जाना शुरू कर दिया और एकदम पीछे की कुरसी पर जा बैठता. कुछ व्यक्ति तो बैठेबैठे ही सो जाते और कुछ ध्यान से भागवत कथा सुनते रहते. मेरी मिलीजुली प्रक्रिया थी. कभी मन लगता, कभी इधरउधर देखने लगता. मैं यहां इसलिए आ जाता था कि मेरे पास औफिस के बाद और कोई काम नहीं था, दूसरा प्रसाद इतना मिल जाता कि रात को खाना खाने की जरूरत महसूस नहीं होती थी. 

शायद इस के अलावा भी एक और बात थी, वह थी उस 28-30 वर्षीय महिला का आकर्षक व्यक्तित्त्व. न जाने उस में ऐसा क्या था कि मेरी नजरें उसी पर अटक जातीं. एक दिन सत्संग के बाद सारे पंखे और लाइटें बंद कर के वह हाल से बाहर निकल रही थी तो मैं ने उस से पूछा, ”यहां कोई कैंटीन भी है, जहां चायनाश्ता मिलता हो.’’

जी,’’ वह थोड़ा मुसकरा कर बोली, ”लाइब्रेरी के पीछे किचन है, आप चाहें तो पेंमेंट दे कर ले सकते हैं. आइए, मैं आप को दिखा देती हूं.’’ कह कर वह मेरे साथ चलने लगी.

आप यहीं रहती हैं क्या?’’ मैं ने पूछा.

जी,’’ कह कर वह अपनी चुन्नी सिर पर लेती हुई मेरी ओर देखने लगी. 

बातों का सिलसिला जारी रखते हुए मैं ने कहा, ”कब से?’’

पता नहीं शायद 7-8 साल तो हो गए होंगे, मेरा नाम मुक्ता है.’’

उस ने फिर से एक बार मुझे मुसकरा कर देखते हुए कहा, ”आप इधर से सामने की तरफ चले जाइए, वहां लिखा हुआ है. अच्छा, अब मैं चलती हूं, मेरा लाइब्रेरी का समय हो गया है.’’

वहां पढ़ती हैं आप?’’

ऐसा ही कुछ समझ लीजिए. मैं यहां की लाइब्रेरी संभालती हूं… जीने का कोई तो बहाना चाहिए…’’ कह कर वह मुंह फेर कर वहां से चली गई. 

वह नम्र और संयत स्वर में बात करती थी. एकदम नपातुला. कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जो आंखों को बांध लेते हैं. वह भी ऐसी ही थी. परंतु उस के आखिरी वाक्य ने मेरे भीतर कई प्रश्न खड़े कर दिए. मैं रातभर उसी के बारे में सोचता रहा. अगले दिन मेरा आश्रम में जाना तय था. मैं सब से पहले वहां पहुंच गया और पीछे बैठ गया. धीरेधीरे लोग आते रहे, कुछ मेरी तरह बाहर से तो कुछ यहीं के. कुछ जानेपहचाने चेहरों ने मेरा मुसकरा कर स्वागत किया. मेरी नजरें जिसे तलाश रही थीं, वह वहां नहीं थी. 

इतने में एक व्हील चेयर के साथ वह आई. व्हील चेयर को एक कोने में खड़ा कर के टेबल पर रखी फोटो के सामने एक दीया और अगरबत्ती जला कर पीछे बैठ गई. मैं उसी को देखता रहा. उस ने भी चोर निगाहों से मुझे देखा और नजरें फेर लीं. सप्ताह के अंत तक यह भी स्पष्ट हो गया कि उसे भी मेरा इंतजार रहता है. बातचीत हम दोनों के बीच इतनी जरूरी नहीं थी जितना की आंखों का भाव. आखिरी दिन प्रसाद भंडारे में भी मैं ने अंत तक अपना योगदान दिया. यहां तक कि 10-12 सहायकों में मुझे भी शामिल कर लिया गया. मुझे जब भी समय मिलता, मैं किसी न किसी काम में शामिल कर लिया जाता. मुक्ता से भी मेरी मुलाकात लगभग हर रोज हो जाती. शायद यह भी झूठ नहीं होगा कि मैं मुक्ता से मिलने के बहाने इस संस्था से जुड़ता चला गया.

हमारे छोटे वाक्यों में बातचीत का सिलसिला चलता रहा. वह इस संस्था में काम न करती होती तो शायद मैं उसे कहीं घूमने के लिए कह देता. मुझे यहां की सीमाओं और मर्यादाओं ने बांध रखा था. एक दिन सुबह रविवार को मैं थोड़ा जल्दी पहुंच गया. पहुंचने का तो बहाना था. मैं ने सामने से मुक्ता को आते देखा. बजाय पार्क में जाने के, जहां पहले से ही कई बुजुर्ग व्यक्ति बैठे धूप का आनंद ले रहे थे, मैं लाइब्रेरी में चला गया. थोड़ी देर में वह इशारे से पूछने लगी कि मैं औफिस या पार्क में क्यों नहीं गया. यह मेरा सामान्य नियम था कि मैं औफिस से प्रशांतजी को मिल कर कुछ समय यहां सेवा करता रहता.

वो प्रशांतजी तो 11 बजे से पहले आएंगे नहीं, मुझे अपनी गाड़ी सर्विस करानी है तो सोचा पहले यहीं आ जाता हूं.’’ कह कर मैं ने मैगजीन स्टैंड से कुछ पत्रिकाएं उठा लीं और एक कोने में बैठ गया. वह इधरइधर पड़ी किताबें और अखबार समेटती रही.

एक बात पूछनी थी आप से?’’ मैं ने धीमे से कहा. वह मेरे पास आ कर बैठ गई और बहाने से एक रजिस्टर सामने रख लिया, जैसे वह भी मुझ से बात करने का कोई अवसर ढूंढ़ रही हो.

उस दिन आप ने कहा था कि जीने का कोई तो बहाना होना चाहिए, यह तो इतनी शांत जगह है फिर आप की शायद कोई जिम्मेदारियां भी नहीं लगतीं, यहां भी बहाने ढूंढने पड़ते हैं क्या?’’

वह मुझे ऐसे देखने लगी जैसे मैं ने कोई गलत बात पूछ ली हो. उस का चेहरा सफेद होने लगा. मुझे यहां आते लगभग 2 महीने बीत चुके थे पर मैं ने उस के चेहरे पर कभी कोई खुशी नहीं देखी. हमारे बीच एक सन्नाटा सा पसर गया. मुझे लगा कि या तो वह कुछ बताना नहीं चाहती थी या बताने के लिए शब्द ढूंढ रही थी. मैं ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ”माफ कीजिए, मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया. कोई संकोच हो तो रहने दीजिए. मुझे तो यहां के तौरतरीके, बातचीत करने का ढंग भी नहीं आता.’’ कहतेकहते मैं ने अपनी लाचारी जताई और मैगजीन के पन्ने पलटने लगा.

मेरे पास बताने या छिपाने जैसी कोई बात नहीं है,’’ उस ने अपनी नजरें नीची कर लीं, ”अपने मम्मीपापा के साथ मैं काफी समय से यहां आती थी, लगभग हर छुट्टियों में. एक दिन पापा अचानक एक हादसे में चल बसे. न तो हमारे पास कोई जमापूंजी थी, न कोई अपना मकान. प्रशांतजी ने हमें हमारी हालत पर तरस खा कर यहां रहने की इजाजत दे दी. मम्मी भंडार घर में काम करने लगीं और मैं स्कूल जाने लगी.

”मेरी अभी इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई कि मम्मी को कैंसर हो गया, न वह बच पाईं न मेरी पढ़ाई. मैं एकदम अकेली पड़ गई. कहां जाती. बस तब से यहीं पड़ी हूं. मेरा फिर हर चीज से मोह टूट गया. कुछ भी करने का मन नहीं करता…’’

तो क्या सारी जिंदगी यूं ही काट देंगी?’’

फिर कहां जाऊं, न कोई मेरी आमदनी है न कोई और ठिकाना, बस मजबूरी है. इतनी पढ़ीलिखी भी नहीं कि कोई मुझे काम दे देगा. और अकेली जवान लड़की. पापा को अपने परिवार के बारे में कुछ सोचना चाहिए था. कहीं कुछ तो जोड़ते.’’

कहतेकहते वह रुआंसी सी हो गई. मेरे पास कहने के लिए शब्द कम पड़ गए. मैं उस की तरफ देखता रहा. उस की आंखों में आंसू थे, जो मुझ से छिपा रही थी. घबरा कर मैं ने नजरें फेर लीं, हालात जैसे नजर आते हैं वैसे होते नहीं.

जिस का नसीब ही खोटा है वह क्या करे.’’ एक लंबी सांस भर कर उस ने कहा और वहां से चल दी. मैं भी बिना कुछ कहे वहां से उठ कर चला गया. दिन बीतते गए उन को तो बीतना ही था. मुक्ता मेरा अभिवादन अब मुसकरा कर करती. मैं कभीकभी चुपके से उस के लिए कोई मिठाई या कोई नियमित प्रयोग होने वाला कोई सामान देता रहता. कभीकभी वह भी छोटामोटा सामान मंगवाती रहती. मैं उस की मदद करना चाहता था. एक बार देर रात प्रशांतजी का फोन आया कि अचानक एक माताजी की तबीयत खराब हो गई है, उन को एम्स ले जाना है, वह स्वयं कहीं बाहर गए हुए थे. उन्होंने मुझ से निवेदन किया जो मैं मना नहीं कर सका. मेरे लिए उन वृद्ध माताजी को अस्पताल ले जाने का सौभाग्य तो था ही और उस से ज्यादा खुशी की बात यह थी कि मुक्ता को उन की सेवा में लगा दिया.

मैं ने उन दोनों को साथ ले जा कर इमरजेंसी में सारी औपचारिकताएं पूरी कर के भरती करा दिया. जब तक उन का चैकअप होता रहा, मुझे बाहर ही बैठना था, मुक्ता को उन माताजी के साथ रहना था. थोड़ी देर में मुक्ता भी बाहर आ कर मेरे पास बैठ गई. मैं ने सामने के कैफेटेरिया से 2 कप कौफी ली और उस के साथ बैठ गया. रात काफी हो चुकी थी. हमारे पास डाक्टर की रिपोर्ट का इंतजार करने के सिवाय और कोई रास्ता भी तो नहीं था. मुझे तो जैसे 

इसी अवसर की तलाश थी. मुक्ता के चेहरे पर मैं ने पहली बार खुशी देखी. कहने लगी, ”पिछले एक साल से मैं पहली बार बाहर निकली हूं.’’

आप के निकलने पर कोई पाबंदी है क्या?’’

”पाबंदी तो नहीं है पर जाऊं भी कहां? मेरा और है ही कौन? जो कोई दूर पास के रिश्तेनाते थे, उन्होंने भी मां के मरने के बाद किनारा कर लिया. शायद मैं कोई डिमांड ही न कर बैठूं… या शायद उन पर बोझ ही न बन बैठूं. यहां कुछ ऐसे भी व्यक्ति हैं जो साधनसंपन्न हैं, उन के मिलने वाले कभीकभी उन को मसूरी, देहरादून या ऋषिकेश घुमाने ले जाते हैं, वह मुझे भी साथ ले जाना चाहते थे, पर यहां से इजाजत नहीं मिली.’’

कह कर वह वहां से मेरा भी खाली कप ले कर उठ गई. शायद वह भरे गले से मुझ से और बातचीत करने से बचना चाहती थी. तब तक ड्यूटी डाक्टर ने आ कर बताया, ”कोई घबराने वाली बात नहीं है, थोड़ी गैस्ट्रिक प्राब्लम है, अब थोड़ा ठीक है, सुबह तक हम उन को यहां रखेंगे, आप चाहें तो उन्हें सुबह ले जा सकते हैं.’’

मैं मुक्ता की तरफ देखने लगा, वह मेरा इशारा समझ गई. वह इतनी नादान भी नहीं थी, जितना मैं समझता था. कहने लगी, ”आप चाहें तो इन्हें यहां भरती कर लीजिए, हम लोग तो वृद्धाश्रम से आए हैं इन को ले कर. एकदो दिन में उन का कोई न कोई रिश्तेदार भी आ जाएगा, आश्रम में इन की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं है.’’

अस्पताल को भला इस में क्या परेशानी हो सकती थी, उन्होंने थोड़ी ही देर में उन को रूम में शिफ्ट कर दिया. मैं भी उन से इजाजत ले कर वहां से चला गया. मैं ने अगले 3 दिनों के लिए अपने औफिस से छुट्टी ले ली और दोपहर तक फिर से उन के रूम में पहुंच गया. माताजी मुझे देख कर बहुत खुश हुईं. बोली, ”बेटा, बहुतबहुत आशीर्वाद, कल रात तुम ने जो कुछ भी मेरे लिए किया, मैं हृदय से आभारी हूं. लोग अपनों के लिए इतना नहीं करते,’’ कहतेकहते उन की आवाज भर्रा गई.

तो क्या मैं पराया हूं. माताजी, जब एक रास्ता बंद हो जाता है तो कई और खुल जाते हैं. आप जब तक यहां हैं, मैं आप की सेवा में रहूंगा, आप चिंता मत कीजिए.’’ कह कर मैं सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया. 

मुक्ता ने मुझे देखते ही कहा, ”माताजी काफी समय से आप को याद कर रही थीं, उन का कुछ सामान, कपड़े, दवाइयां वगैरह उन के कमरे से लाना है, आप चल सकेंगे क्या?’’

इन का काम तो मेरे लिए सौभाग्य की बात है, पर अकेले इन के कमरे में…’’

नहीं, मुझे साथ जाना होगा… मैं ने प्रशांतजी से बात कर ली है,’’ वह बोली.

कब जाना है?’’ मैं ने पूछा.

अभी चलें… अगर आप को कोई परेशानी न हो तो?’’

परेशानी होती तो यहां आता ही क्यों, आप बाहर आ जाइए, मैं गाड़ी निकाल कर लाता हूं.’’ कह कर मैं पार्किंग में चला गया. 

मेरी तो बांछें ही खिल गईं. अब तो मेरे पास उस के साथ जाने का आधिकारिक फरमान था. मैं ने उसे गाड़ी में बिठाया और रास्ते में पूछा, ”कुछ खाओगी क्या… कचौरी समोसे या कुछ और..?’’

हांहां क्यों नहीं…’’ उस ने चहकते हुए कहा.

चलो, फिर तुम को साउथ इंडियन खिलाता हूं,’’ कह कर मैं ने गाड़ी मद्रास कैफे की तरफ मोड़ दी. 

समोसेकचौरी तो तुम्हारे यहां भी मिल जाती होंगी, नहींï?’’ मैं ने उस की तरफ देखते हुए कहा, ”तुम्हें कोई जल्दी तो नहीं?’’

”मुझे कौन सी जल्दी है.’’ वह बोली तो मुझे लगा जैसे उस का बचपन फिर से लौट आया है. कितने अरमानों को मार कर वह बेचारी सी महसूस करती होगी. अपनी मरजी का कुछ भी नहीं. मैं ने थोड़ाथोड़ा कर के काफी कुछ मंगवा दिया. वह ऐसे खाती रही जैसे जीवन में पहली बार खाया हो.

कार में बैठते ही उस ने बिना किसी संकोच मेरे हाथ पर हाथ रख कर कहा, ”थैंक्यू.’’

उस के कोमल हाथों का स्पर्श मुझ में भीतर तक सिहरन पैदा करने लगा. स्पर्श का अपना ही एक सुख होता है. एक अनकहा पूरा वाक्य. मैं गियर बदलने के लिए वहां से हाथ हटाना नहीं चाहता था, देर तक हम दोनों यूं ही बैठे रहे. चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने कहा, ”जानती हो, उस दिन रविवार सुबह मैं जल्दी आश्रम क्यों आ गया था?’’

”क्या आप नहीं जानते कि रविवार को लाइब्रेरी बंद रहती है? आप को दूर से आता देख कर मैं ने जानबूझ कर खोली थी कि शायद आप किसी बहाने वहां आओ. मुझे क्या मालूम था कि आप के भीतर कुछ चल रहा है.’’

मुक्ता के इस प्रतिप्रश्न से मेरे भीतर कुछ झन्न सा टूट गया. मैं ने यह तो सोचा भी न था, दिलों के इस खेल की शुरुआत तो दोनों तरफ से हो ही चुकी थी.

और शायद ऊपर वाले को मेरी नीरस सी जिंदगी पर तरस आ गया होगा, तभी तो आप मिल गए. अब मैं आप को खोना नहीं चाहती. सुना है इस जन्म के सारे संबंध पिछले जन्मों के बकाया लेनदेन को पूरा करने आते हैं.’’ कहतेकहते वह अपने विचारों में खो गई. मैं भी खयालों की दुनिया से यथार्थ में आ गया और यंत्रचलित हाथ कार को ठेल कर आश्रम आ गए. हमारे संबंध अब नजदीकी और मजबूत होते गए. मैं छोटेछोटे पल भी उस के साथ गुजारने लगा. उस को आश्रम से लाना, छोडऩा वगैरहवगैरह. तीसरे दिन माताजी को अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी. 

मुक्ता ने बहुत कोशिश की कि किसी बहाने कुछ दिन और यहां माताजी को रखा जाए, पर ऐसा हो न सका. माताजी के घर से किसी व्यक्ति ने आ कर अस्पताल का सारा हिसाब कर दिया. मुक्ता माताजी के पास थी और मैं नीचे रिसैप्शन पर. जब सब कुछ सैटल हो गया तो मुक्ता भागीभागी मेरे पास आ कर बोली, ”अब तो यहां से जाना ही होगा. पता नहीं अब मेरा क्या होगा. कैसे रहूंगी आप के बिना.’’ कहतेकहते वह सारे संकोच छोड़ कर मुझ से लिपट गई और रोने लगी, ”मैं अब आश्रम नहीं जाना चाहती.’’

मेरे पास शब्द ही नहीं थे, अपने साथ भी नहीं रख सकता था और उस के बिना रहना भी मुश्किल था. पता नहीं वह कौन सा पल था, जो मुझे मुझ से ही चुरा कर ले गई. उस के शब्दों के साथ मेरा भी दिल बैठने लगा.

”क्या ऐसा कोई रास्ता नहीं कि मैं आप के आसपास रह सकूं… मेरा दिल बैठा जा रहा है, कोई तो उपाय होगा. झूठ ही कह दो कि आप भी मेरे बिना नहीं रह सकते.’’ वह भावुक हो कर बोली. तब तक दूर से माताजी को व्हील चेयर पर आते देख कर मैं उस से अलग हो गया. बड़े बेमन से वहां से उठा और कार ला कर पोर्च में खड़ी कर दी. माताजी रास्ते भर ढेर सारे आशीर्वचनों से मुझे लादती रहीं. उन सब को वृद्धाश्रम छोडऩे के बाद मैं वहां से निकल गया. मुक्ता से आंखें मिलाने का साहस अब मुझ में नहीं था, शब्दों की यहां कोई जरूरत नहीं थी.

दिन बीतते गए. बसेरा में मेरा आनाजाना लगा रहा. उस के निकट रहता तो सीमाएं टूटतीं और दूर रहता तो मन टूटता. सुबह उठते ही पहला खयाल उस का होता और आखिरी भी उस का. जिस दिन मैं नहीं आता, वह कहीं न कहीं से फोन करती. उस की आवाज भर्रा जाती और टूट भी जाती थी. जब से मैं ने माताजी की सेवा की, मेरा परिचय वहां के लोगों से बढऩे लगा. उन के मन में मेरे प्रति एक आदर का भाव था.

और एक दिन वही हुआ, जिस का मुझे डर था. प्रशांतजी ने मुझे बुला कर कहा, ”सुनीलजी, यह समाज पतिपत्नी के अलावा बाकी सभी रिश्तों को संदेह की नजर से देखता है, उन का न कोई नाम होता है न मुकाम. इन थोड़े से शब्दों को ही अधिक समझना, बाकी जैसा आप को ठीक लगे.’’ उन के शब्दों को मैं न समझ सकूं, ऐसा नासमझ भी नहीं था मैं. मुझ से न तो कोई जवाब देते बना, न ही मैं नजरें मिला सका. आगे कुछ और अप्रिय न सुनना पड़े, मैं वहां से उठ कर चला गया.

उस रात मेरी आंखों को नींद ने धोखा दे दिया. हार कर मुझे अपनी कामनाओं के पंख समेटने पड़े, जो इतना आसान नहीं था. मैं ने खुद को समझाने की कोशिश की, पर दिल कहां मानने वाला था. मैं ने वहां जाना अब कम करने का मन बनाया. मैं कोशिश करता कि उन जगहों पर न जाऊं, जहां मुक्ता के मिल जाने की संभावना थी. मैं अपने आप को ही धोखा दे रहा था. मैं उस को देखना भी चाहता था और उस से छिपना भी. महाशिवरात्रि के दिन मैं चुपचाप मंदिर में आया और पूजाअर्चना कर के पीछे के रास्ते से निकल रहा था. तभी अचानक मेरी नजर मुक्ता पर पड़ी. वह एक कोने में बैठी हुई थी. उस से नजरें मिलते ही मैं बेचैन हो गया. उस का चेहरा उतरा हुआ था और रंग भी पीला पड़ चुका था. निष्प्राण सा शरीर और निस्तेज आंखें मानों कई सालों से बीमार हो. मैं उस से नजरें चुरा कर पीछे के रास्ते से जा ही रहा था कि न जाने वह कहां से सामने आ गई.

ऐसा क्या गुनाह कर दिया मैं ने, एक टुकड़ा साथ ही तो मांगा था.’’ वह बोली.

क्या?’’ मैं ने जानबूझ कर अनजान बनने की कोशिश की.

न आप लाइब्रेरी में मुझ से मिलने आते हैं, न मेरा फोन ही सुनते हैं. मुझ से मिलना नहीं चाहते क्या? आप से मिल कर जीवन जीने की कुछ आस बंधी थी और अब वह भी टूटती जा रही है. मैं ने ऐसा क्या जुर्म कर दिया, जिस का फैसला आप सुना रहे हैं? तुम क्यों आए थे यहां…’’ कहतेकहते वह रो पड़ी और नजरें हटा कर वहां से चली गई.

सच्चाई से ज्यादा मुश्किल सवाल था यह, जिस का मेरे पास कोई उत्तर नहीं था. बस यह मेरी उस से आखिरी मुलाकात थी. इस के बाद मैं ने अपने दिल को मजबूत किया और वहां आनाजाना बंद कर दिया. उस ने कुछ दिनों तक तो बहुत फोन किए और करवाए भी, पर बड़ी विनम्रता से मैं ने पीठ दर्द का बहाना बना कर टाल दिया. असली दर्द तो मेरे सीने में था. मन के घावों को वक्त पर छोड़ कर वहां से चला आया. और आज अचानक ‘बसेरा’ से फोन आ गया. देहरादून छोड़े हुए मुझे 6 महीने से अधिक का समय हो गया था. मैं मुक्ता का सामना किस मुंह से कर पाऊंगा. सच कहूं तो एक भी दिन ऐसा नहीं गया, जब मैं ने उसे याद न किया हो. उस की यादें अब मेरी पर्सनल लाइफ को भी प्रभावित कर रही थीं.

शाम काफी हो चुकी थी. बसेराके गेट पर पहुंचते ही मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. मैं दुआ करता रहा कि मुक्ता से सामना न हो तो अच्छा. मैं सीधा प्रशांतजी के औफिस गया, जहां वह मेरा ही इंतजार कर रहे थे.

कैसा रहा सफर, बहुत थक गए होगे. कुछ बात ही ऐसी है कि तुम को बुलाना पड़ा और तुम ने मेरा आग्रह मान कर फौरन हां कर दी, यह मेरा सौभाग्य है.’’ प्रशांतजी बोले.

मैं सामने की कुरसी पर बैठ गया और अगले वाक्य का इंतजार करने लगा.

तुम्हारे लिए चायनाश्ता मंगवाता हूं. फिर आराम से बात करेंगे. रात में तुम्हारे रहने की व्यवस्था भी यहीं करवा देता हूं.’’

नहीं रहने दीजिए… थोड़ी देर बाद ले लूंगा…’’ कह कर मैं ने बात टाल दी. मैं नहीं चाहता था कि मेरे आने का पता सब को चले.

उन्होंने अपनी कुरसी पीछे की और फिर आराम से बैठ गए.

बात यह है सुनीलजी कि मैं ने इस संस्था की 20 वर्षों से अधिक सेवा की. इस को वृद्ध लोगों का बसेराबनाया. अच्छे दिन भी देखे और बुरे भी. कई आए और चले गए. मुझ से अब यह बसेरानहीं संभलता. इसलिए मैं ने इस को नए लोगों के हाथों में सौंपने का फैसला किया है. कल हमारे ट्रस्ट की आखिरी मीटिंग है. आप ने इस संस्था के लिए जो भी योगदान दिया, उस के लिए मैं हृदय से आभारी हूं. यदि आप चाहें तो मैं आप का नाम ट्रस्टी में करवा सकता हूं, अभी इतना अधिकार मेरे पास है.’’

मैं खामोश रहा और उन की बातों का मतलब समझने लगा. परंतु मेरे मन में तो कुछ और ही चल रहा था. मैं ने एक लंबी सांस भर कर कहा, ”मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक्त चाहिए. खैर… यहां और सब लोग कैसे हैं?’’

आप का मतलब मुक्ता से है?’’ उन्होंने सीधा प्रश्न किया. मैं खामोश रहा.

मिलना चाहेंगे उस से?’’

मैं ने धीरे से सिर हिला कर इंकार कर दिया. इतना तो पता चल गया कि वह यहीं है. मुझे उस समय उस के साथ बिताए एकएक पल याद आने लगे. उन का यह ऐसा प्रश्न था, जिस की उम्मीद नहीं थी. यह प्रश्न पूछने का साफ मतलब था कि उन्हें हमारे संबंधों का पता है.

”सर, यदि आप मेरे लिए कुछ करना ही चाहते हैं तो मुक्ता के लिए कोई ऐसी व्यवस्था कर दीजिए कि उस को यहां से कोई निकाल न सके. मैं नहीं चाहता कि वह स्वयं को लाचार महसूस करे, अनाथ और बेसहारा महसूस करे.’’ पता नहीं उस समय मेरे मन में ऐसे विचार कहां से आए और मैं कह गया. वह कुछ देर मुझे देखते रहे. ट्रस्टी जैसे महत्त्वपूर्ण पद को छोड़ कर मैं मुक्ता के लिए कुछ मांग रहा था. फिर गंभीर हो कर कहने लगे, ”ठीक है, मैं उस को एक कमरा दिलवा देता हूं. वह जब तक जीवित रहेगी, उसे यहां से कोई नहीं निकालेगा, साथ ही वह यहां काम भी करती रहेगी, यह भी अभी तक मेरे अधिकार में है. परंतु आप को एक लाख रुपए की व्यवस्था करनी होगी. ट्रस्ट का ऐसा ही नियम है. मैं इस बारे में भी आप से बात करना चाहता था.’’

मैं अपनी कंपनी से आप को इस फंड में रुपए भिजवा देता हूं. यह मेरे अधिकार में है. हमारी कंपनी को ऐसे कार्य में योगदान के लिए कोई आपत्ति नहीं है.’’ मैं ने उन से धीरे से कहा.

मुक्ता को जीवन भर संस्था में रखने का भरोसा पा कर मैं बहुत खुश हुआ. मुझे बहुत सुकून मिला कि वह बेचारी अब जिंदगी भर वहां रह सकेगी.

लेखक –   डा. पंकज धवन

Webseries इल्लीगल : सीजन 3

वेब सीरीज इल्लीगल-3’ की कहानी तो कोई खास नहीं है, लेकिन इस में कई तरह के सब प्लौट हैं, जो कथा को व्यस्त और तनावपूर्ण रखते हैं. सीरीज में कानूनी लड़ाई से ले कर व्यक्तिगत संघर्षों तक कहानी एक तेज गति में दिखती है.

कलाकार: नेहा शर्मा, पीयूष मिश्रा, सत्यदीप मिश्रा, अक्षय ओबेराय, नील भूपलम, इरा दुबे, अचिंत कौर, विक्की अरोरा, अंशुमान मल्होत्रा, कीर्ति बिज, सोनाली सचदेवा, अशीमा वरदान

निर्माता: समर खान, आदित्य, निर्देशक: साहिर रजा, पटकथा: सुदीप निगम और भारत मिश्रा, लेखक: राधिका आनंद, ओटीटी: जियो सिनेमा

बौलीवुड एक्ट्रैस नेहा शर्मा और पीयूष मिश्रा की वेब सीरीज इल्लीगलका तीसरा सीजन 8 एपिसोड में जियो सिनेमा पर आ चुका है. पहले 2 सीजन की तरह इस बार भी इल्लीगल 3’ वेब सीरीज एक कोर्टरूम ड्रामा है. इस सीरीज में नेहा शर्मा एडवोकेट निहारिका सिंह के रोल में नजर आ रही हैं. सीरीज में नील भूपलम की एंट्री हुई है. नील भूपलम ने दुष्यंत राठौर के किरदार में लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है.

सीरीज की शुरुआत निहारिका सिंह और उन के सहयोगी पुनीत (सत्यदीप मिश्रा) के अलग होने से होती है. सीरीज में कोर्टरूम ड्रामा को काफी अच्छे से दिखाया गया है. नेहा सिंह के अलावा वेब सीरीज में मुख्यमंत्री जनार्दन जेटली के रूप में पीयूष मिश्रा का किरदार भी दर्शकों पर असर छोड़ता है. इस वेब सीरीज की स्टोरी कुछ खास नहीं है. सीरीज राजनैतिक दांवपेंच और कानूनी काररवाई से भरी पड़ी है. कहानी कभी दिल्ली के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच के अधिकारों की याद दिलाती है तो मुख्यमंत्री की नाजायज औलाद रनदीप की कहानी से लगता है कि यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी हुई नजर आती है.

‘इल्लीगल 3’ की कहानी वकील निहारिका सिंह पर केंद्रित है, जो दिल्ली के जानेमाने वकील जनार्दन जेटली की प्रेस्टिजियस ला फर्म में अपना करिअर शुरू करती है. जैसेजैसे सीरीज आगे बढ़ती है, निहारिका कई चौंकाने वाले खुलासे करती जाती है. पूरे सीजन में निहारिका का किरदार दिल्ली की प्रमुख वकील बनने की महत्त्वाकांक्षा में अपने सिद्धांतों से समझौता करने से जूझता है. कहानी में दिलचस्प मोड़ तब आते हैं, जब वह जिन मामलों पर काम करती है, उन से जुड़ी छिपी सच्चाइयों और काले रहस्यों का परदाफाश करती है.

पिछले सीजन में निहारिका ने लगातार अपने सीनियर जेजे (अब सीएम) को काम के प्रति उन के क्रूर रवैए के लिए दोषी ठहराया, लेकिन इस सीजन में उसे उसी राक्षस में बदलते हुए दिखाया गया है, जिस का उस ने कभी सामना किया था. निहारिका और जेजे के अलावा, ज्यादातर किरदार कार्डबोर्ड के टुकड़ों की तरह लगते हैं, जिन्हें ज्यादा बेहतरीन व्यक्तित्व की जरूरत होती है. अगर पुनीत एक आदर्शवादी है तो अक्षय डैडीमुद्दों वाला पुरुष है, जबकि जोया अहमद  निहारिका और दुष्यंत के युवा संस्करण की तरह लगती है.

इल्लीगल में सब से दिलचस्प एपिसोड दुष्यंत और उस की अभिनेत्री पत्नी अतीशा के बीच घरेलू हिंसा है, जिस में निहारिका न्याय के गलत छोर पर होने के बावजूद मामले को आगे बढ़ाती है. राजनीतिक ड्रामा तुलनात्मक रूप से उतना असरकारी नहीं है और पुनीत की पत्नी सू के गर्भपात के इर्दगिर्द का सबप्लौट भी बकवास लगता है.

एपीसोड

मेड लायर रिटर्ननाम के 40 मिनट के इस एपीसोड में पहले सीजन 2 का रिकैप दिखाया गया है, जिस में जनार्दन जेटली की ला फर्म में निहारिका काम करती है और बाद में दोनों आमनेसामने हो जाते हैं. जनार्दन जेटली के एक वकील से ले कर मुख्यमंत्री की कुरसी पाने की कहानी है. सीजन 3 की शुरुआत में एक एंबुलैंस में निहारिका सिंह (नेहा शर्मा) अपने साथी एडवोकेट पुनीत टंडन (सत्यदीप मिश्रा) को  हौस्पिटल ले कर पहुंचती है. एक घंटे पहले के घटनाक्रम को फ्लैशबैक में दिखाया गया है. 

नरेला में जिंगलपुर इंडस्ट्रीज के खिलाफ अर्थ नेक्स्ट एनजीओ के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, उस प्रदर्शन में पुनीत और निहारिका शामिल होते हैं, तभी दुष्यंत राठौर के कहने पर पुलिस वहां आ कर प्रदर्शनकारियों को रोकती है. भीड़ में से कोई पुलिस पर पथराव कर देता है और पुलिस बल प्रयोग करती है, जिस में पुनीत घायल हो जाता है.

हौस्पिटल में पुनीत की पत्नी सू उस से मिलने आती है, तभी पुनीत बाहर आ कर कोर्ट जा कर अर्थ नेक्स्ट के फाउंडर रीमा और फरहान की बेल करने की बात कहता है. उसी समय अक्षय जेटली भी निहारिका से मिलने आता है. अक्षय जेटली जिस होटल में रहता है, वहां उस का पिता दिल्ली सरकार का मुख्यमंत्री जनार्दन जेटली उर्फ जेजे (पीयूष मिश्रा) मिलने आता है, जहां वह अक्षय को सफाई दे कर कहता है कि उस की मां रोहिणी का खून उस ने नहीं किया है, लेकिन अक्षय उस की बात सुनने के बजाय उसे होटल से बाहर जाने को कहता है. 

कार में जाते समय जेजे अपने पीए को पत्थरबाजी करने वालों की जानकारी लेने को कहता है. इधर पुनीत कोर्ट में जिरह कर के रीमा और फरहान की जमानत करवा लेता है. अंकुश सिंघल जो अर्थ नेक्स्ट संस्था का फाउंडर है, मीडिया के सामने पत्थरबाजी की जिम्मेदारी लेता है. इस के बाद पुलिस रीमा और फरहान को रात के समय घर से अरेस्ट कर लेती है. पुनीत और निहारिका फिर से उन की जमानत के लिए कोशिश करने लगते हैं. अक्षय निहारिका को बहुत सारे पार्सल भेज कर उस के घर मिलने पहुंच जाता है और फिर से दोस्ती का वास्ता दे कर उस के नजदीक आना चाहता है.

इधर निहारिका दुष्यंत राठौर (नील भूपलम) से मिल कर बताती है कि उस की फर्म ने उस की फर्म से लाखों रुपए के चैक से पारस जैम्स कंपनी को फायदा पहुंचाया है. यह कंपनी मिस्टर मुंजाल की है, जिस का दामाद अंकुश सिंघल है. जिंगलपुर इंडस्ट्रीज के खिलाफ आंदोलन को रोकने के लिए अंकुश सिंघल को पैसे देने की बात कहने पर दुष्यंत बिना डरे निहारिका को कोर्ट जाने की सलाह देता है.

जनार्दन जेटली प्रेस कौन्फ्रैंस कर जानकारी देता है कि सरकार अपनी जमीन दुष्यंत जैसे पूंजीपतियों के हाथों में नहीं जाने देगी. निहारिका कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर के जिंगलपुर इंडस्ट्रीज की जमीन शरणार्थियों को (आईडीपीएस) को वापस देने की गुहार लगाती है. निहारिका दुष्यंत से मिल कर नया दांव खेलती है. वह दुष्यंत से लिंगलपुर इंडस्टी से प्रभावित लोगों को मजनू का टीला के पास जमीन दे कर मुआवजा देने और सभी कामगारों को 2 साल तक फैक्ट्री में काम देने और अर्थ नेक्स्ट के खिलाफ शिकायतों को वापस लेने की शर्त पर पिटीशन वापस लेने का प्रस्ताव रखती है, जिन्हें दुष्यंत मान लेता है. 

लेखक ने डायलौग लिखते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा कि दुष्यंत जैसा बिजनैसमैन, जो कई कंपनियों का मालिक है, वह बातचीत में तो अंगरेजी शब्दों का इस्तेमाल करता है, मगर दूसरी तरफ भद्दी और फूहड़ गालियां भी बकता है, जिन से उस के कैरेक्टर पर सवालिया निशान लगता है.

एपीसोड 2

37 मिनट के दूसरे एपीसोड का नाम लव एंड लासहै, जिस की शुरुआत एक गरमागरम सीन से होती है. दुष्यंत एक अवार्ड फंक्शन में जाने से पहले बंद कमरे में लड़की के साथ रोमांस कर रहा है. पुनीत रीमा और फरहान की रिहाई के लिए निहारिका के पास पहुंचता है, मगर निहारिका अपनी सहायक शायना के साथ किसी क्लाइंट से मिलने चली जाती है. अक्षय निहारिका को पुरानी बातें भुला कर फिर से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करता है. पार्टी में दुष्यंत की तीसरी बीवी अतीसा (इरा दुबे) किसी बात को ले कर दुष्यंत को भलाबुरा कहती हैं तो दुष्यंत गुस्से से उसे जमीन पर गिरा देता है. एपीसोड में अंगरेजी डायलौग की भरमार है. जिसे देख कर लगता है कि दर्शक कोई इंगलिश मूवी देख रहे हैं.

निहारिका पुनीत के किसी काम में रुचि नहीं ले रही है. शनाया इस बात से चिंतित हैं कि कहीं पुनीत को निहारिका और दुष्यंत के बीच की डील का पता न चल जाए. पुंडीर साहब की पार्टी में सीएम जेटली पहुंचता है, वहां महिला लीडर मृणालिनी (अचिंत कौर) से मुलाकात में पता चलता है कि वे दिल्ली की एलजी बनने वाली है. धर दुष्यंत के खिलाफ अतीशा कोर्ट में केस कर देती है और दुष्यंत की तरफ से निहारिका वकालत करती है. अतीशा की तरफ से जोया अहमद (जयन मेरी खान) कोर्ट में खड़ी होती है. 

जेटली पत्रकार के माध्यम से एक इंटरव्यू रिकौर्ड करवा कर यह बताता है कि नरेला की जमीन शरणार्थियों को दिलाने वह दुष्यंत जैसे दुशासन से लड़ता रहेगा. वह अपने पीए ओपी को कहता है कि सोशल मीडिया में यह खबर फैला दो कि लेफ्टिनेंट गवर्नर सीएम को काम नहीं करने दे रही.

एपीसोड

34 मिनट के तीसरे एपीसोड का नाम ‘लोनली ऐट द टौप’ है, जिस की शुरुआत कोर्ट के एक अर्दली शरद और एडवोकेट जोया अहमद की बातचीत से शुरू होती है. जोया अहमद शरद की बेटी सोनाली के डायवोर्स केस को लडऩे का फैसला करती है तो भावनात्मक रूप से शरद उस का शुक्रिया अदा करता है. दूसरे सीन में सीएम जेटली हुमायूं के मकबरे में अपने नाजायज बेटे रनदीप (विक्की अरोरा) से मिलता है तो रनदीप मेरठ से दिल्ली में उस के साथ रहने की जिद करता है. मगर जेटली उसे लंदन भेजने का बंदोबस्त करने को कह कर वहां से चला जाता है.

जेटली पुनीत को बुला कर बताता है कि पत्थरबाजी अर्थ नेक्स्ट के लोगों ने नहीं, बल्कि किसी और ने की थी. जेटली पुनीत को इस का सबूत देने और सरकार का चीफ पब्लिक प्रौसीक्यूटर बनाने का प्रलोभन देता है.  अक्षय जोया को उस की फर्म में उस का औफिस दिखाता है तो जोया कहती है कि वह निहारिका के खिलाफ केस लड़ कर उसे खत्म करना चाहती तो अक्षय मना करता है. तभी अतीसा का फोन आने पर जोया वहां से चली जाती है.

पुनीत पत्नी सुलेखा (कीर्ति विज) से जेजे के प्रपोजल पर बात करता है तो वह भी अपनी सहमति देते हुए कहती है कि रीमा और फरहान को जेल से बाहर निकालने के लिए जेजे की बात मान लेना ही समझदारी है. इधर दुष्यंत न्यूज सुन कर घबरा जाता है और निहारिका से फोन पर बात करता है तो निहारिका उस की जमानत करने की बात कहती है. मगर जोया अपनी चाल से किसी दूसरे क्लाइंट में निहारिका को उलझा देती है और जब तक निहारिका कोर्ट पहुंचती है, कोर्ट के दरवाजे बंद हो चुके होते है. 

दुष्यंत की जमानत के लिए निहारिका कोर्ट में देर से पहुंचे इस के लिए जोया द्वारा जिस पागल खानदान को भेजा गया है, वह दृश्य भी कोई खास प्रभाव दर्शकों पर नहीं छोड़ पाता है. यहां पर कमजोर पटकथा और निर्देशन की कमी साफ दिखाई देती है. पुलिस दुष्यंत को 2 दिन की न्यायिक हिरासत में लेती है, यह समाचार सुन कर सीएम जेटली बेहद खुश होता है. निहारिका पुलिस लौकअप में बंद दुष्यंत से मिलने जाती है तो दुष्यंत उसे डांटता है. इस पर निहारिका माफी मांगते हुए 2 दिन बाद जमानत करवाने का वचन देती है.

पुनीत को रात के अंधेरे में जेटली का पीए ओपी किसी लालू नाम के पेशेवर अपराधी से मिलवाता है जो पुनीत को बताता है कि दुष्यंत के लिए काम करने वाले लाखन मंडल और सुरेश जैन के कहने पर उस ने पत्थरबाजी की थी.

एपीसोड

35 मिनट के चौथे एपीसोड का नाम गेम औनहै. इस में शनाया के पास निखिल मेहरा (अंशुमान मल्होत्रा) की मां उसे ले कर आती है. निखिल को मल्टीपल स्केलिरिस बीमारी है, जिस की वजह से उसे असहनीय दर्द होता है. देशविदेश में इलाज के बाद भी कोई दवा, थैरेपी से उसे राहत नहीं मिल रही. निखिल इच्छामृत्यु के लिए कोर्ट में पिटीशन दाखिल करना चाहता है. इधर पुनीत रीमा और फरहान को रिहा करवा देता है. पुनीत और निहारिका में उसूलों को ले कर फिर बहस होती है. सबइंसपेक्टर दानियल शेख पुलिस स्टेशन में रनदीप को लंदन का टिकट, होटल बुकिंग के पेपर और खर्च के लिए पैसे दे कर कहता है कि कल सुबह की फ्लाइट से लंदन जाना है, ये जेजे सर का आदेश है, मगर रनदीप पेपर फाड़ कर कहता है कि वह कहीं नहीं जाएगा.

शनाया और निहारिका दुष्यंत की बेल के बारे में चर्चा करते हैं. सीएम जेजे पुनीत के औफिस खुद मिलने पहुंच जाता है और पुनीत को कहता है कि यदि दुष्यंत को हराना है तो दिल्ली पुलिस से 2 कदम आगे चलना होगा. अंकुश सिंघल को पकड़ो और कोर्ट में साबित कर दो कि उस बयान के पीछे दुष्यंत का हाथ था, फिर देखो यह जमीन हमारे कब्जे में होगी. निहारिका के घर में अक्षय उसे दुष्यंत की बेल के लिए शुभकामनाएं देता है तो निहारिका अक्षय को जोया अहमद को हायर करने की बधाई देती है. इस को ले कर निहारिका नाराज हो जाती है, मगर अक्षय उसे मना लेता है. दोनों खाना खाने मेज पर पहुंचते हैं, तभी दिलबहार आ कर निहारिका को उस दिन की घटना के संबंध में बताता है. 

दुष्यंत की रिहाई के बाद निहारिका अतीसा मेवानी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करती है. कोर्ट में जोया और निहारिका के बीच शानदार जिरह होती है. निहारिका अतीसा के खिलाफ जिंगलपुर इंडस्ट्रीज हड़पने का आरोप लगाती है तो जोया और निहारिका कोर्टरूम में भिड़ जाती हैं. इस पर मजिस्ट्रैट उन्हें फटकार लगाता है और सुनवाई की अगली तारीख देता है.

शनाया और निहारिका एक बार में बैठ कर बातें कर रहे होते हैं, तभी एक जगह से लड़की शोर मचाती है. शनाया का ध्यान उस तरफ जाता है, जहां तान्या नाम की लड़की निखिल पर इसलिए गुस्सा हो रही है कि निखिल ने पैंट में पेशाब कर ली है. वह सफाई देता है, मगर तान्या उस से गुस्सा हो कर भाग जाती है.  निखिल व्हीलचेयर से गिर जाता है. शनाया और निहारिका उसे उठा कर कपड़े साफ करती हैं और उस के घर छोडऩे जाती हैं. वहां उस की मां से बातचीत में निखिल की बीमारी और परेशानी से वाकिफ होती हैं और निखिल की इच्छामृत्यु का केस लडऩे के लिए तैयार होती है.

अर्थ नेक्स्ट के एक प्रोग्राम में सीएम जेटली मीडिया के सामने कहता है कि दिल्ली सरकार ने इस जमीन को दोबारा वापस लेने के लिए एक अरजी एलजी साहिबा के पास लगाई थी, मगर एलजी साहिबा केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रही हैं. न्यूज सुन रही मृणालिनी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से कहती है कि जांच को डिले करने से कुछ नहीं होगा, वह मीडिया के कंधे पर बंदूक रख कर चला रहा है. 

एपीसोड

41 मिनट के पांचवें एपीसोड का नाम पावर प्लेहै. इस एपिसोड की शुरुआत में दिखाया गया है कि लाखन मंडल अपने बेटे बिजू के घावों पर मरहमपट्टी लगाते हुए पूछ रहा है कि ये किस ने कियाबिजू बताता है कि जेटली की पार्टी की स्टूडेंट्स यूनियन के लड़कों ने उसे इसलिए मारा है, क्योंकि वह विरोधी पार्टी का है. एलजी मृणालिनी अक्षय को वह फाइल सौंपती है, जिस में जेटली और रनदीप के कारनामों का काला चिट्ठा है.

कोर्ट में निखिल मेहरा के इच्छामृत्यु के केस की सुनवाई होती है, जिस में निहारिका और पुनीत के द्वारा बेहतरीन तरीके से जिरह की जाती है और मजिस्ट्रैट भी इमोशनल हो कर एक्सपर्ट की राय सुनना चाहता है. इस रोग की एक्सपर्ट डा. भारती कोर्ट को बताती है कि इस रोग के इलाज हेतु नई थैरेपी ईजाद हो रही है. निहारिका के पूछने पर डा. भारती स्वीकार करती है कि निखिल का केस यूनिक है. निहारिका और पुनीत कोर्ट में बहस के दौरान आमनेसामने आ जाते हैं तो मजिस्ट्रैट डांटते हुए अगली सुनवाई की तारीख दे देता है.

पुनीत की पत्नी सुलेखा, जिस को 20 सप्ताह का गर्भ है, को डा. जाह्नïवी के क्लीनिक ले जाता है, जहां डा. जाह्नïवी बताती है कि भ्रूण का ब्रेन विकसित नहीं हुआ है, ऐसी स्थिति में यदि वह बच्चे को जन्म देगी तो बच्चे की अधिकतम उम्र 10 साल होगी और वह हमेशा दर्द से परेशान रहेगा, इसलिए डाक्टर एबार्शन करवाने की सलाह देती है. पुनीत की पत्नी सुलेखा की प्रेगनेंसी की रिपोर्ट में आने वाले बच्चे के रोग की वजह से एबार्शन की कहानी ज्यादा असर नहीं डाल पाई. इस समस्या की तुलना निखिल मेहरा के असहनीय दर्द और लाइलाज बीमारी से करना दर्शकों के गले नहीं उतरता.

कोर्ट में अतीसा मेवानी राठौर के केस की सुनवाई में भी जोया और निहारिका की बहस को रोचक अंदाज में पेश किया गया है. दुष्यंत के थप्पड़ मारने की रिपोर्ट में आंख के नीचे जिस चोट के निशान का उल्लेख किया गया है, उसे निहारिका फोरैंसिक एक्सपर्ट के बयान से यह साबित कर देती है कि वह मेकअप आर्टिस्ट द्वारा बनाया गया है. फोन काल आने पर पुनीत सीएम जेटली से मिलने जाता है, जहां पर वह बताता है कि जोया अहमद अब उन के लिए काम करेगी. सीएम का पीए ओमप्रकाश पुनीत को बताता है कि जोया ने कंफर्म किया है कि अंकुश ने दुष्यंत से पैसे ले कर मीडिया में बयान दिया था. मजिस्ट्रैट जोया को अपने क्लाइंट से बात करने का समय और चेतावनी दे कर अगली सुनवाई बंद कमरे की बजाय प्रिंट मीडिया की उपस्थिति में करने का आदेश देता है.

सीएम जेटली अपने निवास से एलजी से मिलने पदयात्रा करने का ड्रामा करता है. एलजी मृणालिनी से मिलबांट कर खाने और काम करने का समझौता होता है. रेस्टोरेंट में निहारिका अक्षय का इंतजार कर रही है. उधर अक्षय मृणालिनी की दी गई फाइल खोल कर देखता है तो रनदीप का पता लगाने वह फोन पर बुरी तरह चीखने लगता है. कुछ देर बाद निहारिका उस के पास पहुंचती है तो वह बताता है कि रनदीप ने उस की मां का मर्डर किया था और अब रनदीप मेरठ में है.

दिलबहार निहारिका को फोन कर के बताता है कि वह अतीसा के बौडीगार्ड रौकी का पीछा कर रहा है. इस के बाद निखिल मेहरा और निहारिका के बीच इमोशनल बातचीत होती है, जिस में निखिल अपनी परेशानी बता कर निहारिका को यह केस जीत लेने की बात कह कर रो पड़ता है.

एपीसोड

40 मिनट के छठवें एपीसोड का नाम सीक्रेट ऐंड सैक्रीफाइसहै, जिस की शुरुआत में शनाया हाथ में मोबाइल लिए रेलवे स्टेशन से बाहर निकलती है. उस के मोबाइल पर किसी बच्चे के रोने की आवाज आती है. शनाया घर पहुंचती है, जहां उस की बहन बेहोश पड़ी है और उस का बच्चा रो रहा है. वह एंबुलैंस से उन्हें हौस्पिटल पहुंचाती है. लाखन मंडल सीएम जेटली से मिल कर अपने बेटे पर हुए हमले का दुखड़ा सुनाता है तो जेटली उस का स्टेटमेंट रिकौर्ड कराता है, जिस में वह दुष्यंत राठौर पर आरोप लगाता है कि उस ने झूठी दिलासा दे कर शरणार्थियों की जमीन धोखे से अपने कब्जे में कर ली. सीएम जेटली इस स्टेटमेंट को सभी टीवी चैनल पर चलवाने का निर्देश देता है.

शनाया और प्रीति की बातचीत से पता चलता है कि शनाया का असली नाम आकांक्षा तिवारी है. मगर इस छोटे से सीन से दर्शकों को समझ नहीं आता कि आखिर आकांक्षा अपना असली नाम क्यों छिपा रही है. रनदीप अक्षय को कुरसी से बांध कर टौर्चर करता है और उस की फोटो जेटली को भेज देता है. इधर अक्षय किसी नुकीली चीज से अपने हाथों में बंधी रस्सी खोल लेता है. दर्शकों के लिए यह समझना बड़ा मुश्किल है कि बंधे हाथों में वह नुकीली चीज आई कहां से. 

अक्षय और रनदीप के बीच हाथापाई होती है, तभी रनदीप की पिस्टल गिर जाती है, जिसे अक्षय उठा कर उस के ऊपर तान देता है. उसी समय जेटली भी वहां पहुंचता है और गोली चलने की आवाज आती है. यह सस्पेंस बना रहता है कि रनदीप पर गोली किस ने चलाई. कोर्ट में निखिल मेहरा के केस की सुनवाई हो रही है. मजिस्ट्रैट निखिल की मां श्वेता और पिता हरीश के पक्ष को सुनते हैं, जहां मां निखिल के असहनीय दर्द और बीमारी का कोई इलाज न होने की बात कह कर इच्छा मृत्यु मांगती है तो वहीं पिता उसे जिंदा रखने की बात रखता है. मजिस्ट्रैट यह कह कर एक हफ्ते का वक्त मांगता है कि हिंदुस्तान में अभी तक इच्छामृत्यु के पक्ष में कोई फैसला नहीं हुआ है.

कोर्ट में दुष्यंत अतीसा केस की सुनवाई में निहारिका की जगह हड़बड़ी में देर से शनाया पहुंचती है और जज उसे बताता है कि जोया ने एक गवाह एंड किया है. इस पर शनाया वक्त मांगती है तो जज सुनवाई टाल देता है. कोर्टरूम से बाहर निकल कर शनाया दुष्यंत से उस गवाह आरती भटनागर के बारे में पूछती है तो पता चलता है कि आरती दुष्यंत की कालेज में क्लासमेट रही है, जिस के साथ दुष्यंत ने मारपीट की थी. 

निहारिका अक्षय को ले कर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराती है और अक्षय मीडिया के सामने बयान दे कर बताता है कि रनदीप का खून जेजे ने किया है. यह खबर सुन कर जेजे को दिल का दौरा पड़ता है.

एपीसोड

सातवें एपीसोड का नाम टेबल्स टर्नहै, जो 37 मिनट का है. मुख्यमंत्री जेटली के निवास के सामने लोग तख्तियां लिए जेटली के विरोध में नारेबाजी कर रहे हैं. दिल्ली और मेरठ पुलिस स्थिति पर नजर रख काररवाई करने की बात कर रही है. जेटली जोया और एसके से निहारिका को उस का केस लडऩे को कहते हैं. जोया और एसके के साथ जेटली एक फोटो शेयर करते हुए लिखता है कि जेटली एसोसिएट अब जनार्दन जेटली को रिप्रेजेंट करेंगे तो अक्षय बौखला जाता है.

जोया और निहारिका के बीच जोरदार बहस होती है. निहारिका अतीसा से कुछ सवाल पूछती है, जिस के उत्तर में अतीसा बताती है कि दुष्यंत नशे में धुत हो कर उस की पिटाई करता था और नशा उतरते ही अपने व्यवहार के लिए माफी मांगता. इस वजह से उस ने कभी इस की शिकायत नहीं की. एक फाइल देते हुए अतीसा से आखिरी सवाल पूछने की इजाजत निहारिका जज से मांगती है, जोया विरोध करती है. जज की इजाजत पर निहारिका अतीसा से पूछती है कि वह दुष्यंत की मार सहने के बाद कभी डाक्टर के पास गईं तो अतीसा मना कर देती है. इस पर निहारिका जज को अतीसा की मैडिकल रिपोर्ट पढऩे को कहती है, जिस में डाक्टर ने ऐसी बीमारी डायग्नोस की है, जिस में उस के रक्त का थक्का नहीं जमता. 

निहारिका अतीसा को झूठा साबित कर देती है. तब दुष्यंत को घरेलू हिंसा के केस में बाइज्जत बरी कर देता है. इधर पुनीत अक्षय को समझाता है कि उस की इमेज मीडिया में एक पागल की तरह बन गई है. वह पुनीत की सलाह पर एक यूट्यूबर की मदद से अक्षय के इंटरव्यू को रिकौर्ड कराता है, जिस में जेटली के खिलाफ बहुत सारे सबूत हैं. यही सबूत पुलिस को भी सौंपे जाते हैं. जेटली के खिलाफ मनी ट्रांसफर के सबूत तो हैं, परंतु रनदीप की बौडी न मिलने से जेटली के खिलाफ ऐक्शन नहीं हो रहा. अक्षय मृणालिनी से बात करता है तो दिल्ली पुलिस जेजे को गिरफ्तार कर लेती है.

मृणालिनी के कहने पर अक्षय मेरठ पुलिस स्टेशन जा कर इंसपेक्टर डेनियल शेख से रनदीप की बौडी खोजने की बात कहता है, उसी समय उस का सस्पेंशन और्डर का फोन आ जाता है. केस की जांच दिल्ली पुलिस के हाथों में आ जाती है और वह रनदीप की डैडबौडी खोज निकालती है. कोर्ट में सीएम जेटली के केस की सुनवाई शुरू होने वाली होती है. जज काररवाई शुरू करने के लिए निहारिका को बुलाते हैं. वह बताती है कि वह जेटली की अटर्नी नहीं है. तब जज उसे वकालतनामा दिखाते हुए पूछता है कि ये दस्तखत तो आप के ही हैं. निहारिका आश्चर्य से देखती है. तब पता चलता है कि किसी ने धोखे से उस के हस्ताक्षर वकालतनामा पर करवा लिए हैं.

एपीसोड

43 मिनट के आखिरी एपीसोड का नाम द बर्डन औफ ट्रुथहै. एपीसोड की शुरुआत में जज निहारिका को जेजे का केस न लडऩे पर लाइसेंस रद्द करने की हिदायत देता है. निहारिका के नाम का वकालतनामा के संबंध में शनाया कुछ सफाई देना चाहती है, मगर निहारिका उसे डांट लगाती है. अक्षय भी यह सुन कर नाराज हो जाता है. जेजे निहारिका को बुला कर बताता है कि रनदीप को उस ने नहीं, अक्षय ने मारा है. वह निहारिका को बताता है कि रनदीप उस का बेटा था, मगर उसे वह सब नहीं मिल सका, जो उस का हक था. वह निहारिका से कहता है कि केस तो कोई भी लड़ सकता है, मगर तुम दोनों को डिफेंड करोगी. 

तुम्हारा प्यार गुनहगार को बचाएगा और तुम्हारा ईमान बेकुसूर को न्याय दिलाएगा. कोर्ट में पुनीत और निहारिका की गरमागरम बहस होती है और निहारिका को कोर्ट एक हफ्ते का वक्त देता है. हौस्पिटल आ कर निखिल के पिता उसे क्लीनिकल ट्रायल के लिए बंगलुरु ले जाने की बात कह कर रूम से बाहर निकलते हैं. तभी निहारिका निखिल के पास लगे उपकरण को स्विच औफ करना चाहती है, मगर निखिल की मां वहां आ जाती है. वह निहारिका के गाल पर प्यार से हाथ फेरती है. निहारिका रूम से जैसे बाहर जाती है, निखिल की मां उस स्विच को बंद कर देती है और कुछ ही क्षणों में निखिल की मौत हो जाती है. बाहर निहारिका की आंखों में आंसू देख कर निखिल के पिता अंदर आते हैं.

शनाया निहारिका के घर जा कर बताती है कि उस का असली नाम आकांक्षा तिवारी है, वह गरीब परिवार से है. वकालत करने के बाद उसे जौब नहीं मिल रही थी, इसलिए उस ने अपना नाम शनाया रख लिया.  जोया को यह सब पता चल गया तो वह ब्लैकमैल करने लगी. जोया के कहने पर ही उस ने जेजे के केस के वकालतनामा पर आप से दस्तखत करवा लिए. निहारिका टीवी चैनल पर एक न्यूज देख रही होती है, जिस में बताया जा रहा है कि दिल्ली की उपराज्यपाल मृणालिनी ने उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने को ले कर वहां के मुख्यमंत्री की निंदा की है. एक किसान माधव चौहान कहता है कि जेटली के जाते ही यह सब आरोप लगना शुरू हो गए. किसान तो वही करेगा, जो उस के बापदादा करते आए हैं.

निहारिका जज को एक एफिडेविट दे कर बताती है कि मेरठ के श्याम नगर में रहने वाले उत्कर्ष गुप्ता ने रनदीप से 2 लाख रुपए उधार लिए थे, जो वह चुका नहीं सका. इस वजह से उस ने रनदीप को मार दिया है. निहारिका रनदीप के पास मिले गन और दूसरे सबूत भी अदालत में पेश करती है. कोर्ट दिल्ली पुलिस को उन के खिलाफ घूस का प्रकरण दर्ज करने और उत्कर्ष गुप्ता के खिलाफ रनदीप का मर्डर करने का केस दर्ज करने का निर्देश देता है. कोर्टरूम से बाहर निकलते ही अक्षय निहारिका के पास जा कर जेटली की तरफ इशारा कर कहता कि वह जेल जाएगा.

दिल्ली पुलिस अक्षय को गोली मारने के आरोप में डेनियल को गिरफ्तार कर लेती है. निहारिका की मौजूदगी में अक्षय का अंतिम संस्कार होता है, वहीं पर पुलिस आ कर निहारिका को निखिल के खिलाफ जान से मारने की कोशिश करने के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है. वेब सीरीज का अंत बोरिंग तरीके से दिखाया गया है, जिस में जेल में बीड़ी पीते हुए जेटली को उपदेशक की भूमिका में दिखाया गया है.

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा का जन्म 21 नवंबर, 1987 को भागलपुर बिहार में हुआ था. नेहा शर्मा के पिता अजित शर्मा एक राजनेता हैं, जो भागलपुर से कांग्रेसी विधायक हैं. उन के पिता ने 2024 का लोकसभा चुनाव भागलपुर सीट से लड़ा था, परन्तु उन्हें हार का सामना करना पड़ा. नेहा शर्मा ने अपनी शुरुआती पढाई माउंट कार्मेल स्कूल भागलपुर से कर नैशनल इंस्टीट्यूट औफ फैशन टेक्नोलौजी (हृढ्ढस्नञ्ज) से फैशन डिजाइन की पढ़ाई की थी. नेहा शर्मा ने अपने करिअर की शुरुआत तेलुगू फिल्म चिरुथासे की थी. इस फिल्म में चरण तेज के अपोजिट नजर आई थी. उस ने हिंदी सिनेमा में मोहित सूरी की फिल्म क्रुकसे शुरुआत की थी, जिस में इमरान हाशमी भी था. 

उस की यह पहली फिल्म बौक्स औफिस पर कोई कमाल नहीं दिखा सकी. इस के बाद वह तेरी मेरी कहानीऔर कौमेडी फिल्म क्या सुपर कूल हैं हममें नजर आई. इस फिल्म में उस के अलावा रितेश देशमुख और तुषार कपूर भी थे. उसे इस फिल्म में अभिनय के लिए आलोचकों से मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली थी. इस के बाद वह कौमेडी लव स्टोरी जयंतु भाई की लवस्टोरी में विवेक ओबराय संग नजर आई और यह फिल्म भी बौक्स औफिस पर बुरी तरह फ्लौप साबित हुई. उस का अब तक हिंदी फिल्मों का करिअर कुछ खास नहीं रहा. साल 2020 में आई फिल्म तान्हाजीउन के करिअर की इकलौती ब्लौकबस्टर फिल्म है. नेहा की आने वाली फिल्म जोगीरा सारा रा राहै, जिस में वह नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ नजर आएगी.

पीयूष मिश्रा

पीयूष मिश्रा का जन्म 13 जनवरी, 1963 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में हुआ था. पीयूष मिश्रा को उस के पिता की बड़ी बुआ ने गोद लिया था, जिस के बाद उस का नाम प्रियाकांत शर्मा हुआ. पीयूष मिश्रा ने अपनी पढाई कार्मेल कौन्वेंट स्कूल, ग्वालियर से पूरी की थी. बचपन से ही पीयूष सिंगिंग, पेंटिंग और ऐक्टिंग में दिलचस्पी रखता था. ऐक्टिंग के शौक ने उसे नैशनल स्कूल औफ ड्रामा पहुंचा दिया. पीयूष मिश्रा की शादी प्रिया नारायण से हुई, दोनों की मुलाकात वर्ष 1992 में हुई थी.

वर्ष 1986 में नैशनल स्कूल औफ ड्रामा से पास आउट होने के बाद पीयूष ने दिल्ली में ही थिएटर करना शुरू कर दिया. फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले पीयूष कई लोकप्रिय थिएटर स्टेज शोज का हिस्सा बना. उस ने हिंदी सिनेमा में कदम रखा वर्ष 1998 में फिल्म ‘दिल से’ में, इस फिल्म में वह एक सीबीआई इनवैस्टीगेशन औफिसर की भूमिका में नजर आया था. इस के बाद उस ने कुछ खास फिल्मों के डायलौग भी लिखे. पीयूष को हिंदी सिनेमा में पहचान विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘मकबूल’ से मिली, इस फिल्म में पीयूष ने काका की भूमिका निभाई थी, जिसे दर्शकों ने बेहद सराहा था. इस के बाद पीयूष ने ‘गुलाल’, ‘गैंग औफवासेपुर’ में महत्त्वपूर्ण किरदार निभाया है.

अक्षय ओबेराय

अक्षय ओबेराय भारतीय मूल का एक अमेरिकी अभिनेता है, जो हिंदी फिल्मों में ऐक्टिंग करता है. 2002 की कौमेडी-ड्रामा अमेरिकन चायमें बतौर बाल कलाकार के रूप में अभिनय की शुरुआत की थी, अक्षय ने 2010 में राजश्री प्रोडक्शंस में बनी फिल्म इसी लाइफमें अपनी पहली प्रमुख भूमिका निभाई थी. अक्षय ओबेराय का जन्म पहली जनवरी, 1985 को संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यू जर्सी में हुआ था. अक्षय के पिता कृष्ण ओबेराय, अभिनेता सुरेश ओबेराय के भाई हैं और अक्षय विवेक ओबेराय का चचेरा भाई है. 

अक्षय ने नेवार्क एकेडमी से स्कूली शिक्षा प्राप्त की और बाल्टीमोर में जोंस हापकिंस विश्वविद्यालय से रंगमंच कला और अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की है. उस ने न्यूयार्क शहर में स्टेला एडलर और फिर लौस एंजिल्स में प्लेहाउस वेस्ट में अभिनय प्रशिक्षण पूरा किया. अपनी शिक्षा के दौरान उस ने द एडम्स फैमिलीसे जौन एस्टिन के साथ अभिनय का अध्ययन किया. साथ ही, उस ने ब्रौडवे डांस सेंटर में बैले, जैज और हिपहौप नृत्य का भी अध्ययन किया.

भारत आने के बाद अक्षय ने पृथ्वी थिएटर  में नाटक किए और किशोर नमित कपूर से प्रशिक्षण लिया. फिल्म लाल रंगऔर गुडग़ांवमें दर्शकों ने अक्षय के काम को पसंद किया है. इल्लीगल 3’ में अक्षय ने सीएम के बेटे अक्षय जेटली का किरदार निभाया है. मानसिक रूप से अस्थिर और एक पागल प्रेमी के किरदार में फिट नजर आया है.