
मोनिका को नींद सताने लगी थी. रात काफी बीत चुकी थी. गुनगुनी सर्दी की शुरुआत थी. बाहों में सिहरन महसूस होने पर उस ने अपने कमरे में इधरउधर चहलकदमी करते पति से कहा, ”हरप्रीत वार्डरोब से चादर निकाल देना, हलकी हलकी ठंड लग रही है.’’
”अरे, खुद उठ कर निकाल लो न अपनी पसंद का! कौन सा चाहिए तुम्हें?’’ हरप्रीत बोला.
”तुम वहीं पर तो हो, कोई भी दे दो न यार! अब चादर में पसंद नापसंद की क्या बात है?’’ मोनिका बोली और बुदबुदाने लगी, ”पता नहीं क्या हो गया है इसे, हर बात को काटता रहता है.’’
”फिर बोली कुछ..? अपना काम खुद क्यों नहीं करती?’’ नाराजगी के साथ हरप्रीत बोला.
”अरे, तुम नाराज क्यों हो रहे हो, चादर ही तो मांगी है, कोई प्रौपर्टी नहीं मांग रही.’’
”प्रौपर्टी की बात कहां से आ गई अब? देखो, मेरा दिमाग खुद खराब चल रहा है, परेशान हूं… ऊपर से तुम ने प्रौपर्टी की बात छेड़ दी.’’ हरप्रीत बोला.
”चल, छोड़ यार! चादर मैं खुद ही निकाल लेती हूं. अब तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है, मैं क्या जानूं?’’ मोनिका सांस खींचती हुई बोली. तब तक हरप्रीत कमरे से बाहर जाने लगा.
”बच्चे सो चुके हैं…रात भी अधिक हो रही है, मैं समझती हूं तुम्हारी बेचैनी. मम्मी और पापाजी से जो भी बात करनी है, कल दिन में आराम से कर लेना, अभी इतना बेचैन होने की क्या जरूरत है?’’ बेड पर अधलेटी मोनिका पास लेटे बच्चे का हाथ अपनी कमर से हटाती हुई बोली.
उस की पूरी बात सुने बगैर हरप्रीत कमरे से बाहर निकल गया. इसी बीच रसोई में बरतनों के जमीन पर गिरने की आवाजें आने लगीं.
मोनिका ने हरप्रीत को आवाज लगाई, ”हरप्रीत, जा कर देखो, लगता है तुम्हारे मेंटल भाई पर फिर दौरा पड़ा है. रसोई में बरतन फेंक रहा है. मैं कैसे जा सकती हूं रात को जेठ के सामने. मां को जा कर बोल दो.’’
हरप्रीत ने उस की बात सुनी या नहीं, मोनिका को नहीं मालूम, लेकिन कुछ समय में मोनिका को सास की आवाज सुनाई दी. वह समझाती हुई बोल रही थी, ”देख बेटा, रात को हंगामा नहीं करते, तुझे जो चाहिए कल सुबह पापाजी से बोलना. जा, अभी जा कर सो जा.’’
दरअसल, हरप्रीत सिंह से 2 साल बड़ा भाई गगनदीप सिंह मानसिक तौर पर बीमार था. उस पर बीचबीच में दौरे पड़ते थे. वह जब भी परेशान होता, सीधा रसोई में जा कर गुस्से से बरतनों को इधरउधर फेंकने लगता था. घर में पड़ा पूरा दूध पी जाता था या सब्जियां खा जाता था.
उस की मेंटल प्रौब्लम के बारे में नातेरिश्तेदार और मोहल्ले वाले, सभी जानते थे. इस कारण उस की शादी नहीं हुई थी. जबकि छोटा भाई हरप्रीत शादीशुदा था और उस के 2 बच्चे भी थे. उस का अपना एक छोटा से परिवार था.
पंजाब के जालंधर शहर में लांबड़ा थाने के अंतर्गत टावर इनक्लेव में 58 वर्षीय जगबीर सिंह 2 साल पहले ही परिवार समेत शिफ्ट हुए थे, वहीं 10 मरले में छोटा मकान बनाया था और परिवार के साथ रह रहे थे.
वह सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते और उन का बड़ा बेटा 32 साल का गगनदीप सिंह घर पर ही रहता था. उस की मानसिक हालत ठीक नहीं होने के कारण वह कुछ नहीं करता था. जबकि छोटा बेटा हरप्रीत सिंह शादीशुदा था.
हरप्रीत पर भी अपने परिवार की जिम्मेदारियां आ चुकी थीं. उस के जिम्मे कोई ठोस काम नहीं था, जिस से परिवार की अच्छी परवरिश कर सके. इस कारण पत्नी से हमेशा तकरार होती रहती थी.
उस के सामने दूसरी समस्या भाई के पागलपन को ले कर भी थी. उस के खर्चे भी थे. इस बात पर उस की पिता के साथ भी तनातनी होती रहती थी. वह कुछ अपना काम करना चाहता था. इसलिए उसे पूंजी की जरूरत थी.
हरप्रीत चाहता था कि पिता जगबीर सिंह और मां अमृतपाल कौर मकान उस के नाम कर दें, ताकि वह कोई अपना कामधंधा कर सके, किंतु मातापिता मकान उस के नाम पर लिखने के लिए राजी नहीं हो रहे थे.
कुछ समय बाद जब घर में शोरगुल बंद हुआ, तब मोनिका ने हरप्रीत को आवाज दी. हरप्रीत आ कर कमरे में सिर पकड़ कर बैठ गया. मोनिका नाराजगी के अंदाज में बोली, ”यह सब रोजरोज की बात पसंद नहीं है. जल्द कुछ करो, वरना मैं अब यहां नहीं रहने वाली.’’
”अब मैं इस हालत में क्या कर सकता हूं, भाई को ले क र सभी परेशान हैं.’’ हरप्रीत बोला.
”तुम कोई कोशिश ही नहीं कर रहे हो. मेरा तो इस घर में अब दम घुटने लगा है.’’ मोनिका शिकायती लहजे में बोली.
”क्यों, ऐसी भी क्या आफत आ गई है?’’ हरप्रीत बोला.
”तुम्हें क्या पता मैं यहां कितना डरडर कर रहती हूं, जब तुम घर में नहीं होते हो.’’ मोनिका बोली.
”डर! किस बात का?’’ हरप्रीत ने सवाल किया.
”डर तुम्हारे मेंटल भाई से! और क्या?’’ मोनिका चिढ़ती हुई बोली.
”क्यों, क्या किया उस ने? कोई बदतमीजी की क्या?’’
”हमेशा घूरता रहता है. उस की नजर गंदी है. जब भी सामने आता है, मैं डर जाती हूं,’’ मोनिका बोली.
”अच्छा, यह बात है. अभी पिताजी से बात करता हूं.’’ हरप्रीत बोला.
”पिता से क्या बात करोगे, वे कम हैं क्या? उन की भी वैसी ही आदत है. किसी न किसी बहाने से मुझे छूने की कई बार कोशिश कर चुके हैं.’’ मोनिका बिफरती हुई बोली.
हरप्रीत यह सुन कर आश्चर्य से बोला, ”यह तुम ने पहले तो कभी नहीं बताया.’’
”क्या करती बता कर, दोनों मर्द हैं, एक कुंवारा, वासना का भूखा और ससुरजी किसी वासना के प्यासे से कम हैं. हमेशा पानी मांगते हैं और गिलास पकड़ने के बहाने हाथ सहला देते हैं. एक दिन तो उन्होंने हद ही कर दी थी, रसोई जाते समय पीछे से कंधे पर हाथ रख दिया था. हाथ पीठ तक ले जाने लगे थे.’’ मोनिका अब रुआंसी हो गई थी.
”अच्छा! तो घर में यह सब चल रहा है और मुझे कुछ पता नहीं. अभी मां से भी बात करता हूं.’’ हरप्रीत अब गुस्से में आ चुका था.
”नहींनहीं, मां से यह सब कुछ नहीं कहो, उन लोगों से कुछ कहना है तो मकान अपने नाम करवाने की बात करो.’’ मोनिका बोली.
”उस के लिए मैं कोशिश में हूं, मौका देख कर फिर बात करूंगा. आज फिर भाई पर दौरा पड़ गया है.’’ हरप्रीत बोला.
”वह सब मैं कुछ नहीं जानती हूं. मैं अब यहां एक पल रहने वाली नहीं हूं…’’ मोनिका बोली.
”थोड़ा तो सब्र करो.’’ हरप्रीत बोला.
”नहींनहीं, मुझे कुछ नहीं सुनना है. मैं कल सुबह ही बच्चों को ले कर मायके चली जाऊंगी.’’ मोनिका नाराजगी दिखाती हुई बोली और वार्डरोब से अपने कपड़े निकालने लगी.
उस रात हरप्रीत की मोनिका के साथ काफी बहस हो गई. हालांकि उन के बीच सिर्फ तूतूमैंमैं हो कर ही रह गई, लेकिन इस का गुस्सा हरप्रीत के जेहन में लबालब भर चुका था.
सुबह होते ही मोनिका अपने बच्चों को ले कर मायके चली गई. हरप्रीत की नींद खुली तब उस ने मोनिका और बच्चों को घर में नहीं पा कर समझ गया कि उस ने बीती रात जो कहा, वह कर दिया.
गुरुवार तारीख 19 अक्तूबर, 2023 का दिन था. हरप्रीत ने भारी मन से दिनचर्या की शुरुआत की. खुद चाय बनाई और रसोई में मोनिका उस के लिए जो कुछ पका कर गई थी, उसे खाया और सीधा अपने पिता के पास जा पहुंचा.
जाते ही मकान अपने नाम करने का पुराना राग छेड़ दिया. इसे ले कर उन के बीच बहस होने लगी. पिता ने साफ लहजे में उन के जिंदा रहते मकान किसी के नाम करने से इनकार कर दिया. मां ने भी हां में हां मिलाई. उन के बीच काफी समय तक बहस होती रही. बहस का कोई नतीजा नहीं निकल पा रहा था.
हरप्रीत बीती रात से ही गुस्से से भरा हुआ था. मन बेचैन था. घर का माहौल तनाव से भरा हुआ था. अचानक उसे क्या सूझी, 19 अक्तूबर को दोपहर करीब 2 बजे हरप्रीत तमतमाया हुआ पिता की दोनाली लाइसेंसी बंदूक उठा लाया और सीधे पिता पर तान दी. मकान अपने नाम न लिखने पर अंजाम बुरा होने की धमकी दी.
अचानक हरप्रीत के इस तेवर को देख कर उस की मां तुरंत बंदूक के सामने आ गई. उसे डांटते हुए समझाने की कोशिश की, लेकिन तब तक हरप्रीत पर गुस्से का उबाल ले चुका था. उस ने बंदूक का ट्रिगर दबा दिया. ‘धांय’ की आवाज के साथ गोली उस की मां को जा लगी. वह घायल हो कर वहीं जमीन पर गिर गई.
उस की हालत देख कर पिता मां को संभालने के लिए उस की ओर मुड़े, लेकिन तब तक हरप्रीत ने दोनाली की दूसरी गोली दाग दी. उस से पिता भी जख्मी हो गए.
गोलियों की आवाज सुन कर हरप्रीत का बड़ा भाई गगनदीप दौड़ता हुआ वहां आ गया. हरप्रीत तब तक आक्रामक बन चुका था, जबकि जख्मी मांबाप कराहने लगे थे. हरप्रीत उन के कराहने पर और आक्रामक बन गया. उस ने दनादन दोनाली में गोलियां लोड कर घायल मांबाप पर दोबारा चला दी.
उस के भाई ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन तब तक हरप्रीत ने बंदूक में गोली भरी और भाई पर दाग दी. भाई को भी गोली लगी और वह वहीं ढेर हो गया.
बापबेटे के झगड़े में कौन मरा और कौन बचा, इस की परवाह किए बगैर हरप्रीत ने तुरंत अपने बचाव की योजना बना डाली. हत्या की घटना को दुर्घटना में बदलने के लिए वह रसोई में घुसा. गैस का चूल्हा औन कर सिलेंडर खोल दिया. चुपचाप मकान में बाहर से ताला लगा कर स्कूटी से फरार हो गया.
उसी दिन अंधेरा होने के काफी समय बाद गोलियों की आवाज सुनते ही पड़ोसी अपने घर से निकल आए. वह जगबीर सिंह के घर की तरफ गए, क्योंकि आवाज उधर से ही आई थी.
उसी समय जगबीर सिंह के घर में सन्नाटा और अंधेरा देख कर किसी ने जालंधर (ग्रामीण) के लांबड़ा थाने में इस वारदात की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसएचओ रमन कुमार मौके पर पहुंच गए. जब उन्होंने वहां 3 लाशें देखीं तो तुरंत सूचना एसपी (ग्रामीण) मुखविंदर सिंह भुल्लर और डीएसपी (करतारपुर) बलवीर सिंह को दे दी. दोनों अधिकारी मौके पर पहुंच गए.
मौके पर घर में 3 शव खून से लथपथ पड़े हुए थे. पुलिस ने उन्हें अपने कब्जे में ले लिया और आगे की काररवाई शुरू कर दी. काररवाई पूरी कर के तीनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगली काररवाई हत्यारे के गिरफ्तारी की थी.
पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि जगबीर सिंह का बेटा हरप्रीत लापता है. पुलिस ने उस की तलाशी के लिए पूरे शहर में नाकेबंदी करवा दी. पड़ोसियों ने बताया उस की बीवी और 2 बच्चों को सुबह ही सामान ले कर घर से जाते देखा गया है.
पुलिस ट्रिपल मर्डर को ले कर छानबीन कर रही थी. उसी रात हरप्रीत आत्मसमर्पण करने के लिए थाने जा रहा था, तभी रास्ते में ही पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. उसे थाने ले जाया गया, जहां उस ने आत्मसमर्पण कर दिया और वारदात की सारी घटना के बारे में विस्तार से बताया. साथ ही उस ने हत्या में इस्तेमाल लाइसेंसी बंदूक भी पुलिस को सौंप दी. यह जघन्य वारदात करने का कारण उस ने घरेलू झगड़ा और मकान का विवाद बताया.
जांच में पुलिस के सामने हत्या से संबंधित कई तथ्य सामने आए. पड़ोसियों ने बताया कि आरोपी हरप्रीत सिंह अकसर परिवार में झगड़ा करता रहता था. वारदात के 2 दिन पहले भी दुकान से 2 हजार रुपए का सामान उधार लेने को ले कर परिवार के साथ बहस हुई थी.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट और वारदात की जांच करने वाले डीएसपी बलजीत सिंह के अनुसार, घटना के दौरान कुल 7 राउंड गोलियां चली थीं. पिता जगबीर सिंह को 5 गोलियां और मां अमृतपाल कौर को एक गोली और भाई गगनदीप सिंह को एक गोली गोली लगी थी. सभी की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी.
हरप्रीत ने पुलिस को बताया कि उसे इस वारदात को ले कर उसे जरा भी मलाल नहीं है. वह हत्याकांड को अंजाम देने के बाद क्यूरा मौल चला गया था. वहीं उस ने ‘फुकरे’ फिल्म देखी और आत्मसमर्पण के लिए लौट रहा था, तभी पकड़ लिया गया.
इतनी बड़ी घटना के बारे में उस ने चौंकाने वाली बात बताई. उस ने कहा कि उस का पिता पत्नी को शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहता था, जिस के बारे में उसे मालूम हो गया था. इस बात की जानकारी उस के पिता को भी हो गई थी. इस जानकारी के बाद से ही वह अपने परिवार के साथ नहीं रहना चाहता था और अलग रहने के लिए कह रहा था.
उस ने बताया कि उस की मां का भी कहीं अफेयर चल रहा था, जिस की रिकौर्डिंग उस के पास है. उस के भाई की भी उस की पत्नी पर गलत निगाह रहती थी. इसलिए उस ने परिवार के सदस्यों से घर की संपत्ति में से उस का हिस्सा देने के लिए कहा था.
उस ने कहा कि पहले तो घर वाले उन की बात से सहमत थे, लेकिन बाद में वे कहने लगे कि अगर वह घर छोड़ देगा तो उन का खयाल कौन रखेगा. इसी बात को ले कर हरप्रीत की घर वालों से बहस हो गई.
हरप्रीत के बयानों के आधार पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 और आर्म्स ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. फिर कोर्ट में पेश करने के बाद उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक आगे की जांच जारी थी.
मध्य प्रदेश के जिला ग्वालियर के अशोक नगर में स्थित त्रिकाल चौबीसी जैन मंदिर हिंदुस्तान भर में प्रसिद्ध है. इस के अलावा यहां उत्पन्न होने वाले शरबती गेहूं की वजह से इस शहर की विश्व भर में पहचान है. इसी शहर में वार्ड नंबर 15 के अंतर्गत आने वाले हिरियन टपरा पठार मोहल्ला में सौरभ जैन अपने परिवार के साथ रहता था.
पेशे से सौरभ सेल्समैन का काम करता था, अत: सुबह 10 बजे खाना खा कर घर से निकलने के बाद उस का देर रात को ही घर लौटना होता था.
रिचा ने अपने अच्छे व्यवहार से अपनी सास और देवर का मन मोह लिया था. ससुराल में रिचा की सभी तारीफ करते थे, इस से रिचा बेहद ख़ुश थी, रिचा ने अपने दिल में ढेरों सपने संजोए थे. वह दुनिया की वे सब खुशियां पाना चाहती थी, जो एक लड़की चाहती है.
शादी के बाद सौरभ और रिचा बेहद खुश थे. शादी के 9 साल कब बीत गए,पता ही नहीं चला. इसी बीच रिचा एक बेटे की मां बन गई, बेटा पैदा होने के बाद घर में खुशी और बढ़ गई. रिचा का समय बच्चे के लालनपालन में व्यतीत होने लगा.
रिचा अपने जीवनसाथी के साथ ख़ुश थी, लेकिन कोरोना काल में फेसबुक पर चैटिंग के दौरान दीपेश भार्गव से दोस्ती हो जाने के बाद रिचा के व्यवहार में अचानक काफी बदलाव आ गया था, जिस के चलते घर में हर समय कलह रहने लगी.
सौरभ को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि रिचा उस के और उस के घर वालों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है. ऐसी स्थिति में आखिरकार वह क्या करे. रोजरोज की किचकिच से परेशान हो कर सौरभ ने एक दिन अपनी मां को रिचा के बदले व्यवहार के बारे में बताया. मां ने बेटे को ही समझाया कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा.
समय अपनी गति से गुजरता रहा, लेकिन रिचा के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया. दिन प्रतिदिन पति पत्नी में कलह बढ़ती ही गई. रिचा के व्यवहार को देख कर सौरभ सोचता था कि इस से तो वह बिना शादी के ही हंसीखुशी से जीवन गुजार लेता.
27 वर्षीय रिचा जैन बालाजी धाम कालोनी में रहने वाले 35 वर्षीय सौरभ जैन की पत्नी थी. बात तकरीबन 3 साल पुरानी 2020 में कोरोना महामारी में लगे लौकडाउन के समय की है. उसी दौरान रिचा की विदिशा के भटौली निवासी दीपेश भार्गव से फेसबुक पर चैटिंग के दौरान दोस्ती हो गई थी.
रिचा के कहने पर एक दिन दीपेश भार्गव रिचा से मिलने अशोक नगर आया. रिचा के बात करने के खुले लहजे और उस की खूबसूरती से वह बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ. उस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए गजब के चालाक दीपेश ने खुद को एक बड़े रईस परिवार से ताल्लुक रखने वाला बताया.
उस ने अपने पिता का विदिशा में बहुत बड़ा इलेक्ट्रौनिक शोरूम होना भी बताया. दीपेश ने रिचा को अपनी बातों के जाल में फंसा कर अपना दोस्त बना लिया था. जैसेजैसे समय गुजरता गया, रिचा और दीपेश की सोच में बदलाव आता गया.
धीरेधीरे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. दोस्ती और प्यार तक तो ठीक था, लेकिन दोनों के कदम मर्यादा की दीवारों को लांघ चुके थे. उन के बीच शारीरिक संबंध तक बन गए थे. हालात बिगड़ने तब शुरू हुए, जब दीपेश रिचा से मिलने उस के घर भी आने लगा और रुकने भी लगा.
अभी तक तो रिचा और दीपेश के संबंध सौरभ और उस के घर वालों से पूरी तरह छिपे हुए थे, क्योंकि रिचा ने ससुराल वालों को दीपेश को अपना मुंहबोला भाई बताया. सौरभ का बेटा भी दीपेश को मामा कहता था, अत: शुरुआत में दीपेश की खूब आवभगत हुई थी.
इसी रिश्ते की आड़ में पति की गैरमौजूदगी में मौका मिलते ही रिचा और दीपेश अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे, क्योंकि सौरभ और उस के घर वालों के मन में रिचा के प्रति अविश्वास जैसी कोई बात नहीं थी. हालांकि रिश्तों के विश्वास के मामले में सौरभ अपने ही घर में पत्नी से धोखा खा रहा था.
ऐसी बातें छिपी नहीं रहतीं, एक दिन सौरभ ने रिचा और दीपेश को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उस ने रिचा को जम कर लताड़ा और उसे ऊंचनीच समझाई तो मौके की नजाकत को समझते हुए रिचा ने दीपेश से अपने रिश्ते खत्म करने की बात कह कर झूठी कसमें भी खा लीं और वादा किया कि वह आइंदा ऐसा कुछ भी नहीं करेगी, लेकिन वह उस पर लंबे समय तक कायम नहीं रह सकी.
कसमें और वादे मात्र दिखावा थे, बात आईगई हो गई. उधर रिचा और दीपेश का प्यार परवान चढ़ा तो रिचा का मोह अपने पति से भंग होने लगा. इतना ही नहीं, उस ने पति के साथ बेवफाई कर डाली. रिचा ने घर से भाग कर लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला भी कर लिया था.
पति के पास वापस क्यों आई रिचा
31 मार्च 2022 को मौका मिलते ही रिचा अपने 8 वर्षीय बेटे को अपने साथ ले कर प्रेमी दीपेश के साथ ससुराल से भाग गई. तकरीबन 2 महीने तक रिचा और दीपेश लिवइन रिलेशनशिप में रहे.
एक दिन रिचा ने अपने पति सौरभ को फोन कर के कहा, ”मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है, वहीं तुम्हारा बेटा शौर्य भी तुम्हारे पास जाने की हठ करता है. उसे दीपेश के पास रहना कतई अच्छा नहीं लगता. मैं और तुम्हारा बेटा तुम्हारे पास वापस लौटना चाहते हैं.’’
भोलाभाला सौरभ अपनी फरेबी पत्नी के शैतानी दिमाग में मच रही साजिश को नहीं समझ सका, बल्कि रिचा के अंदर आए इस बदलाव से वह काफी खुश हुआ. कोमल दिल के सौरभ ने पत्नी को माफ कर दिया और नए तरीके से जिंदगी शुरू करने का ख्वाब देखने लगा. वह पत्नी रिचा और बेटे शौर्य को पुन: अपने साथ रखने को तैयार हो गया.
रिचा के प्रेमी के पास से लौट कर आने के बाद सौरभ सोचता था कि सब कुछ पहले की तरह ठीक हो जाएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ. ठीक होने के बजाए घर में कलह बढ़ गई. रोजरोज की कलह से परेशान हो कर सौरभ रिचा के दबाव में घर वालों से नाता तोड़ कर अशोक नगर के ही हिरियन के टपरा में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.
यहां पर कुछ दिन रहने के बाद बालाजी धाम और फिर कोलुआ रोड पर रहने पहुंच गया था. यहीं पर रिचा ने अनेक बार ‘दृश्यम’ फिल्म देखने के बाद प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या की वारदात को अंजाम देने की योजना बनाई.
इसी योजना के तहत घर वालों से नाता तोड़वाने के बाद उस के हिस्से में मिली 5 बीघा जमीन की जनवरी, 2023 में साढ़े 11 लाख रुपए में बिकवा दी. फिर पति के नाम एक ट्रैक्टर फाइनेंस कराने के बाद पति का जीवन बीमा भी करा दिया. शेष बची रकम अपने नाम करा ली.
किस तरह से दिया हत्या को अंजाम
ट्रैक्टर और जीवन बीमा पालिसी के पैसे हड़पने के लालच में रिचा ने अपने पति के घर वालों से पति का नाता तुड़वाने के साथ ही बोलचाल भी बंद करा दी थी. हालांकि सौरभ मां के बुलाने पर रिचा से छिप कर अपनी मां से मिलने घर पर आता रहता था. सौरभ का छोटा भाई विनीत भी जब तब सौरभ के दोस्तों से सौरभ के हालचाल पूछ लिया करता था.
इत्तफाक से फरवरी माह में सौरभ के हाथ में फै्रक्चर हो गया तो अपनी योजना को अंजाम देने के लिए रिचा ने अशोक नगर के ही दिनेश शर्मा की स्विफ्ट डिजायर कार भोपाल के लिए बुक की.
21 फरवरी, 2023 की सुबह रिचा अपने पति को बेहतर इलाज कराने जाने के बहाने कार ले कर अशोक नगर से पति को ले कर भोपाल के लिए निकली. सौरभ को क्या पता था कि पत्नी और उस के प्रेमी के मन में क्या चल रहा है. खतरे से अंजान सौरभ ने सहज भाव से भोपाल चलने की हामी भर दी.
जैसे ही कार विदिशा जिले के शमशाबाद स्थित कोलुआ गांव में पहुंची, रिचा ने ड्राइवर से यह कहते हुए कार रोकने को कहा कि अब हम लोगों का इरादा बदल गया है. आज सिरोंज में रुकने के बाद दूसरे वाहन से भोपाल जाएंगे, इसलिए तुम अपने पैसे ले लो और अशोक नगर वापस लौट जाओ.
पैसे ले कर ड्राइवर के जाते ही रिचा और उस का प्रेमी सौरभ को सुनसान जगह पर ले गए. फिर दोनों ने बड़ी बेरहमी से पत्थर से सौरभ का सिर कुचल कर मौत के घाट उतार दिया और उस के बाद सौरभ की लाश विदिशा जिले के शमशाबाद की एक खंती में फेंक दी.
इस के बाद वह ससुराल वालों को बिना कुछ बताए प्रेमी के साथ लंबे समय के लिए उज्जैन, अयोध्या, खाटूश्यामजी, शिरडी की तीर्थयात्रा पर निकल गई.
तीर्थयात्रा से लौट कर वह और प्रेमी के साथ सिरोंज में रहने लगी. कुछ समय बाद रिचा के मातापिता भी उस के साथ रहने लगे. रिचा ने 5 जून को बोगस पंचनामा और मृत्यु प्रमाणपत्र तक बनवा लिया. 5 महीने बाद घर वालों को सौरभ की मौत का पता उस वक्त चला, जब रिचा 10 जुलाई, 2023 को अपने बेटे शौर्य की टीसी लेने के लिए पति का मृत्यु प्रमाणपत्र ले कर उस के स्कूल पहुंची.
तब टीचर ने रिचा से बेटे की अचानक टीसी निकलने की वजह पूछी तो रिचा ने बताया कि शौर्य के पिता का एक्सीडेंट हो जाने से निधन हो गया है, इस वजह से टीसी चाहिए.
सौरभ की हत्या की बात कैसे आई सामने
वह शिक्षिका सौरभ के पैतृक घर के पड़ोस में ही रहती थी. इसलिए उसे रिचा की बात पर भरोसा नहीं हुआ तो उस ने रिचा से कहा कि टीसी तो आप को कल मिल सकेगी. स्कूल से लौटने पर शिक्षिका ने सौरभ की मां को बताया कि आज सौरभ की पत्नी रिचा स्कूल आई थी. बता रही थी कि सौरभ का एक्सीडेंट हो जाने से निधन हो गया है.
यह सुनते ही मां सन्न रह गई. सौरभ की मां ने किसी तरह अपने आप को संभाला और अपने छोटे बेटे विनीत को इस बारे में बताया. विनीत को भी विश्वास नहीं हुआ कि उस के भाई का निधन हो गया है. वह असलियत का पता लगाने के लिए दूसरे दिन अपने भतीजे शौर्य के सेंट थामस स्कूल जा पहुंचा.
जैसे ही सौरभ की पत्नी रिचा बेटे की टीसी लेने स्कूल पहुंची, विनीत ने भाभी से पूछा कि भैया कहां हैं?
रिचा ने बेझिझक हो कर बताया कि उन का तो 21 फरवरी, 2023 को ही ऐक्सीडेंट में निधन हो गया. उन का वहीं पर अंतिम संस्कार कर दिया था.
भाभी के मुंह से यह सुन कर विनीत दंग रह गया. उस से ज्यादा बहस करने के बजाय विनीत ने अपने रिश्तेदारों को इकट्ठा किया और सीधे अशोक नगर के एसपी अमन सिंह राठौड़ से मिलने उन के कार्यालय में जा पहुंचा.
विनीत ने उन्हें बताया, ”सर, मुझे पिछले 5 महीने से अपने बड़े भाई के बारे में कुछ भी पता नहीं चल रहा है. मुझे अपनी भाभी और उन के प्रेमी दीपेश भार्गव पर शक है कि दोनों ने मिल कर उन की हत्या कर दी है.’’
एसपी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने की जिम्मेदारी कोतवाल नरेंद्र त्रिपाठी को सौंप दी. त्रिपाठी के नेतृत्व में एएसआई अवधेश रघुवंशी, हैडकांस्टेबल शैलेंद्र रघुवंशी तथा टीम के सदस्यों ने कड़ी से कड़ी जोड़ कर फरार रिचा और उस के प्रेमी को गंज बासौदा से गिरफ्तार कर लिया.
उन से थाने में पूछताछ की गई तो पूछताछ के दौरान रिचा और उस के प्रेमी दीपेश ने एक नहीं, कई झूठ बोले थे. उन में सब से बड़ा झूठ तो यही बोला था कि सौरभ की हत्या करने के बाद उस के शव के टुकड़े करने के बाद बालाजी कालोनी में मकान की छत पर जला दिए थे, लेकिन पुलिस की पड़ताल के दौरान उक्त स्थान पर शव जलाए जाने का कोई सबूत नहीं मिला.
फिर रिचा के प्रेमी ने बताया कि सौरभ का अंतिम संस्कार अशोक नगर के श्मशान घाट में किया था. श्मशान घाट का रिकौर्ड देखने पर यह बात भी झूठी साबित हुई, क्योंकि वहां के रजिस्टर में सौरभ का नाम दर्ज नहीं था.
कोतवाल नरेंद्र त्रिपाठी ने रिचा और दीपेश की बताई कहानी पर भरोसा न कर के विदिशा, सागर और गुना पुलिस से 21 फरवरी से 23 मार्च के बीच मिली अज्ञात लाशों के संबंध में वायरलैस पर मैसेज भेज कर जानकारी ली.
इस पर शमशाबाद पुलिस ने बताया कि 23 फरवरी को किसी युवक का शव मिला था. वह फोटो सौरभ के भाई को दिखाए तो फोटो देखते ही उस ने शव की शिनाख्त बड़े भाई सौरभ जैन के रूप में कर दी.
शव की शिनाख्त हो जाने के बाद कोतवाल नरेंद्र त्रिपाठी ने उन दोनों से फिर से पूछताछ की. इस बार सख्ती बरती तो दोनों टूट गए और उन्होंने सौरभ की हत्या की बात कुबूल कर ली. पुलिस ने रिचा और दीपेश के खिलाफ सौरभ की हत्या का मामला दर्ज कर दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया.
शातिर दिमाग रिचा और दीपेश भार्गव को उम्मीद थी कि सौरभ की हत्या पहेली बन कर रह जाएगी और वे कभी नहीं पकड़े जाएंगे. उधर अशोक नगर एसपी अमन सिंह राठौड़ ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा की है.
20 दिसंबर, 2013 को अरुण अपने भाई से मिलने के लिए लखनऊ आया. उस समय घर पर रितिका और प्रभात दोनों मौजूद थे. अरुण सीधा अपने भाई के पास जा कर बोला, ‘‘भैया, मां ने आप के लिए आप की पसंद की सब्जी बनाई थी. साथ में खाने के लिए बेसन का चिल्ला भी दिया है.’’ अरुण ने खाने का डिब्बा उस के हाथ पर रख दिया.
इस से पहले कि प्रभात वह डिब्बा खोलता, रितिका ने डिब्बा छीन कर पूरा खाना कूड़े के डिब्बे में फेंक दिया. फिर वह गुस्से से बोली, ‘‘जब हम कह चुके हैं कि प्रभात का आप सब से कोई संबंध नहीं है तो आप को समझ नहीं आता. बारबार यहां क्यों आते हैं. प्रभात केवल मेरा है और मेरा ही रहेगा.’’ अरुण और उस के साथ आया ड्राइवर यह सब देखते रह गए.
प्रभात ने रितिका से कुछ नहीं कहा, वह भी चुपचाप देखता रहा. भाभी की इस बात पर अरुण को गुस्सा आ गया. उस ने कुछ कहने की कोशिश की तो रितिका ने उस के बाल पकड़ कर उस के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया. इस पर अरुण गुस्से में वहां से चला गया.
उसे अपने थप्पड़ से ज्यादा इस बात का दुख था कि बीमार होने के बावजूद मां ने भैया की पसंद का खाना बना कर भेजा था, जिसे रितिका ने फेंक दिया था. अपमान सहन कर के अरुण उस समय तो वहां से चला गया लेकिन मां की बेइज्जती उस के दिल को टीस दे गई. प्रभात को भी रितिका की बात अच्छी नहीं लगी थी. लेकिन बाद में रितिका ने अपने प्रभाव से पति को मना लिया था.
अरुण अपना यह अपमान सहन नहीं कर पा रहा था. उस ने रितिका को सबक सिखाने की योजना बना ली. 24 दिसंबर को सुबह ही अरुण ने अपने साथ देवकाली, फैजाबाद के रहने वाले शुभम यादव और ड्राइवर सूरजलाल से अपने अपमान का बदला लेने के लिए मदद मांगी. सूरज और शुभम दोनों ही अपराधी किस्म के थे.
फैजाबाद में दोनों के खिलाफ अलगअलग थानों में कई मामले दर्ज थे. योजना बना कर ये तीनों 24 दिसंबर, 2013 की सुबह ही 2 चाकू और एक चापड़ का इंतजाम कर के अपनी इंडिगो कार से लखनऊ आ गए. इन लोगों ने अपने साथ एकएक जोड़ी कपड़े भी रख लिए थे. ताकि खून सने कपड़े उतार कर उन्हें पहन सकें. पुलिस के सर्विलांस से बचने के लिए सभी ने अपने मोबाइल फोन बंद कर के फैजाबाद में ही रख दिए थे.
पहले ये लोग दिन में ही घटना को अंजाम देना चाहते थे लेकिन रितिका के साथ प्रभात के होने की वजह से उन्हें मौका नहीं मिल पाया था. प्रभात की मोटरसाइकिल घर के बाहर देख कर उन्हें पता चल गया था कि वह घर पर है. ये लोग दूर खड़े हो कर मौका तलाशते रहे. शाम को 7 बजे के बाद जब प्रभात मोटरसाइकिल ले कर बीयर पीने निकला तो इन लोगों ने उसे जाते हुए देख लिया. फिर वे तुरंत दरवाजे पर पहुंच गए. अरुण ने दरवाजे पर लगी कालबेल बजाई.
रितिका ने दरवाजा खोला तो वह अरुण को देखते ही बोली, ‘‘तुम फिर आ गए.’’ वह दरवाजा खोलना नहीं चाहती थी. जब अरुण ने यह देखा तो उस ने कहा, ‘‘भाभी मुझे बाथरूम जा कर फ्रेश होना है. फ्रेश हो कर मैं वापस चला जाऊंगा.’’
यह सुन कर रितिका पीछे हट गई. वह प्रभात को फोन कर के जल्दी घर आने के लिए कहने वाली थी. इसी बीच अरुण के साथ आए शुभम और सूरज भी अंदर आ गए. उसी दौरान अरुण ने रितिका से उस का फोन छीन लिया. फिर दोनों साथियों ने रितिका को चाकू दिखाते हुए चुप रहने की धमकी दी. रितिका बुरी तरह डर गई. कुत्ता न भौंके इसलिए अरुण ने उसे जाली में बंद कर दिया था.
इस के बाद तीनों ने रितिका को दबोच लिया. रितिका पर चाकू से पहला वार ड्राइवर सूरज ने किया. फिर उस ने उस का गला रेत कर उस के पेट पर चाकू के कई वार किए. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. इस से पहले रितिका ने उन के चंगुल से खुद को बचाने के लिए नाकाम कोशिश की थी. इसी दौरान सूरज की अंगुली में चाकू लग गया था जिस से वह घायल हो गया था. सूरज के हाथ का खून ही बाहर दरवाजे पर पड़ा मिला था.
रितिका की हत्या के बाद सूरज, अरुण और शुभम ने बाथरूम में जा कर सब से पहले अपने खून से सने हाथपैर धो कर कपडे़े बदले. खून से सने कपड़े उन्होंने अलग बैग में रख लिए और फिर कार से फैजाबाद वापस चले गए. खून से सने कपड़े उन्होंने सरयू नदी में फेंक दिए थे.
प्रभात ने रितिका की हत्या की खबर जब अपने पिता को दी थी तो तब अरुण घर पर ही था. पुलिस ने रितिका और प्रभात से जुड़े 25 मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया था. प्रभात के साथ बातचीत में पुलिस को रितिका और अरुण के बीच हुई तकरार का भी पता चल गया था.
पुलिस ने अरुण से जब पूछताछ की तो वह इधरउधर की बातें करने लगा और फिर बाद में अपनी ही बातों में फंसने के बाद उसे पुलिस के सामने सच्चाई उगलनी पड़ी.
पुलिस ने अरुण से पूछताछ के बाद शुभम यादव और ड्राइवर सूरज से भी पूछताछ की. उन्होंने भी रितिका की हत्या की बात कुबूल कर ली. पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को रितिका की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर के न्यायालय में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
एसएसपी जे. रवींद्र गौड ने इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम में शामिल थानाप्रभारी उमेश बहादुर सिंह, एसएसआई सत्येंद्र प्रकाश सिंह, एसआई अवध किशोर शुक्ला, कांस्टेबल रामानंद, मुश्ताक, आनंद कुमार सिंह की तारीफ की.
पति प्रभात को खोने के डर से रितिका ने उसे उस के घर से दूर रखने की जो कोशिश की थी वो उसी पर भारी पड़ी. पतिपत्नी के बीच रिश्तों की मजबूती आपसी प्यार और विश्वास से होती है. 6 साल के प्रेमविवाह के बाद भी रितिका और प्रभात के बीच यह भरोसा नहीं बन पाया था. इसी की वजह से देवर अरुण की हिम्मत बढ़ गई और रितिका को अपनी जान गंवानी पड़ी.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि रितिका के पेट पर धारदार हथियार से वार किया गया था. वार इतना गहरा था कि उस का असर रीढ़ की हड्डी तक पहुंचा था. उस के शरीर में 8 घाव सहित चोट के 32 निशान पाए गए. डाक्टरों ने रिपोर्ट में बताया कि रितिका की हत्या 25 दिसंबर की रात करीब 8 बजे की गई थी. खबर सुन कर वाराणसी से रितिका के परिवार वाले कुछ अन्य लोगों के साथ लखनऊ आ गए थे. रितिका के पिता के.के. श्रीवास्तव के साथ सभी की आंखों में हत्यारों के प्रति गुस्सा साफ नजर आ रहा था.
पुलिस ने रितिका के मायके वालों से मालूमात की तो वे लोग इस मामले में रितिका के पति प्रभात को ही जिम्मेदार ठहराने लगे. कुत्ते का न भौंकना आदि से पुलिस को भी यही लग रहा था कि हत्या में उस के किसी जानने वाले का ही हाथ है. जबकि प्रभात पूछताछ में खुद को बेकुसूर बता रहा था. पुलिस की अपनी छानबीन के हिसाब से भी रितिका की हत्या में प्रभात का हाथ नजर नहीं आ रहा था.
जिस मकान में हत्या हुई थी उस के आसपास के मकानों में सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस को लगा कि उन कैमरों में हत्यारे फोटो आ गई होगी. लेकिन जब उन कैमरों की जांच की गई तो पता चला कि वे सब पहले से ही बंद पड़े थे. आखिर 4 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद पुलिस ने इस सनसनीखेज हत्याकांड से परदा उठा ही दिया. हत्याकांड में शामिल लोगों के नाम जान कर पुलिस भी हैरान रह गई और लोग भी.
वाराणसी की रहने वाली रितिका अपने सपनों को पूरा करने 22 साल की उम्र में लखनऊ आ गई थी. इस के लिए उसे अपने परिवार के पुरजोर विरोध का सामना भी करना पड़ा था. लखनऊ आने के बाद जब उसे पैसों की समस्या हुई तो उस ने लखनऊ में प्राइवेट नौकरी की. इस के बाद उस ने वीएलसीसी से डाइटीशियन और ब्यूटीशियन का कोर्स किया. यहीं पर उस की मुलाकात प्रभात श्रीवास्तव से हुई.
प्रभात लखनऊ में प्राइवेट नौकरी करता था. जल्दी ही उन दोनों की दोस्ती इस मुकाम तक पहुंच गई कि अकेलापन झेल रही रितिका प्रभात के साथ जिंदगी गुजरबसर करने का सपना देखने लगी. प्रभात फैजाबाद शहर का रहने वाला था. फैजाबाद के बेगमगंज मकबरा में उस के छोटे भाई अरुण की काफी बड़ी गिफ्ट शौप थी.
प्रभात के पिता बलदेव अनाज के बड़े व्यापारी थे. संबंध गहराने के बाद रितिका और प्रभात ने तय कर लिया कि वे दोनों शादी कर के साथसाथ रहेंगे. इस बारे में दोनों ने अपने घर वालों से बात की तो दोनों के घर वालों ने उन्हें इस की इजाजत नहीं दी. इस के बावजूद दोनों ने शादी कर ली और इंदिरानगर में किराए का मकान ले कर रहने लगे.
रितिका ने पढ़ाई पूरी करने के बाद वहीं वीएलसीसी में ही नौकरी कर ली. मिलजुल कर अच्छा कमाने लगे तो कुछ दिनों के बाद दोनों गोमतीनगर में 15 हजार रुपए किराए के मकान में रहने लगे. प्रभात ने रितिका से शादी जरूर कर ली थी लेकिन उस ने यह बात अपने परिवार वालों को नहीं बताई थी. प्रभात अपने भाई अरुण से कोई बात नहीं छिपाता था. उस ने रितिका से शादी वाली बात भी उसे बता दी थी.
अरुण कभीकभी अपनी दुकान का सामान खरीदने लखनऊ आता तो वह प्रभात से मिलने उस के घर चला जाता था. अरुण उसे मां के बारे में बताता तो प्रभात मां और परिवार के दूसरे लोगों को याद करने लगता था. जबकि यह बात रितिका को अच्छी नहीं लगती थी.
प्रभात से शादी के बाद रितिका अपना कैरियर बनाने में लग गई थी. उस ने अपना फेसबुक एकाउंट भी खोल रखा था. जिस के जरिए वह बहुत सारे लोगों के संपर्क में रहती थी. घर पर वह अपना ज्यादातर समय फेसबुक और इंटरनेट पर बिताती थी. उस ने कई नामों से फेसबुक एकाउंट खोल रखे थे. उस का पहला फेसबुक एकाउंट रिट्ज रितिका के नाम से और दूसरा अनामिका श्रीवास्तव के नाम से था. उस का इस तरह अकसर दोस्तों से बात करना प्रभात को अच्छा नहीं लगता था.
इसी वजह से उस ने वीएलसीसी से रितिका की नौकरी भी छुड़वा दी थी. उस के नौकरी छोड़ने के बाद घर के खर्च प्रभावित होने लगे तो प्रभात ने उसे दोबारा नौकरी करने की इजाजत दे दी. तब रितिका ने विकासनगर में मामा चौराहे के पास आर्यटन रेस्त्रां के ऊपर खुले निक्की बाबा के ब्यूटी पार्लर में काम करना शुरू कर दिया था.
कुछ दिनों बाद रितिका ने महसूस किया कि प्रभात अब उस से पहले की तरह प्यार नहीं करता. उस ने इस बात की शिकायत प्रभात से की तो उस ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया. परेशान हो कर रितिका समयसमय पर अपनी मां गायत्री से बात करने लगी. गायत्री बेटी की परेशानी को समझती थी पर चाह कर भी उस की मदद नहीं कर पा रही थी. इधर रितिका महसूस कर रही थी कि अरुण जब भी उस के यहां आता था तो उस की नजरें रितिका के प्रति अच्छी नहीं होती थी. वह उसे ललचाई नजरों से देखता था.
अरुण नशा भी करता था. कई बार वह प्रभात की गैरमौजूदगी में उस के घर आता था तो वहीं पर दोस्तों के साथ शराब पीता था. रितिका को यह बात पसंद नहीं थी लेकिन पति का छोटा भाई होने की वजह से वह उसे रोक नहीं पाती थी.
घटना से करीब 6 महीने पहले की बात है. 26 जून को गरमी के दिन थे. उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था. अरुण अपने एक दोस्त के साथ प्रभात के यहां पहुंच गया और वे दोनों शराब पीने लगे. आखिर उस दिन रितिका ने उसे टोक ही दिया, ‘‘अरुण, तुम्हारा इस तरह यहां आ कर शराब पीना मुझे पसंद नहीं है. जब तुम्हारे भैया यहां हों तुम तभी आया करो.’’
‘‘भाभी, तुम हम से इतना नाराज क्यों रहती हो? आखिर मैं तुम्हारा देवर हूं और तुम शायद यह जानती होगी कि देवर का भाभी पर आधा हक होता है.’’ कह कर नशे में बहकते अरुण ने रितिका का हाथ पकड़ लिया.
अचानक आई इस स्थिति से रितिका घबरा गई. वह झट से अपना हाथ छुड़ा कर बोली, ‘‘आज प्रभात को आने दो, मैं उन से तुम्हारी शिकायत करती हूं.’’
रितिका हाथ छुड़ा कर दूसरे कमरे में चली गई थी. अरुण और उस का दोस्त भी चले गए. इस के बाद कुछ दिनों तक अरुण ने रितिका के घर आना कम कर दिया था.