अविवेक ने उजाड़ी बगिया – भाग 1

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के थाना तिवारीपुर के एसओ रामभवन यादव रात्रि गश्त से लौट कर अपने आवास पर पहुंचे ही थे कि उन के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. उस समय सुबह के 5 बजे थे. बेपरवाही से उन्होंने फोन स्क्रीन पर नजर डाली. काल किसी बिना पहचान वाले नंबर से आई थी. उन्होंने काल रिसीव कर जैसे ही हैलो कहा तो दूसरी तरफ से आवाज आई. मैं एसओ साहब से बात करना चाहता हूं.

‘‘जी बताइए, मैं एसओ तिवारीपुर बोल रहा हूं.’’ रामभवन यादव ने कहा, ‘‘बताइए क्या बात है, आप इतना घबराए हुए क्यों हैं?’’

‘‘सर, मैं सुनील सिंह बोल रहा हूं और सूर्य विहार कालोनी में रहता हूं.’’ फोन करने वाले व्यक्ति ने आगे कहा, ‘‘सर, गजब हो गया. कुछ बदमाश मेरे घर में घुस कर मेरी पत्नी रेनू सिंह की हत्या कर के फरार हो गए.’’ इतना कह कर सुनील सिंह फफकफफक कर रोने लगा. इस के बाद उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

सुबहसुबह हत्या की खबर सुन कर एसओ रामभवन यादव चौंक गए.  मामला गंभीर था. इसलिए वह फटाफट टीम को साथ ले कर सूर्य विहार कालोनी की तरफ रवाना हो गए. इसी बीच गोरखपुर जीआरपी थाने के इंसपेक्टर अजीत सिंह का फोन भी उन के पास आ चुका था. उन से बात कर के पता चला कि मृतका रेनू सिंह अजीत सिंह की सगी बहन थी.

यहां बात विभाग की आ गई. एसओ रामभवन यादव ने इंसपेक्टर अजीत सिंह को भरोसा दिया कि उन के साथ पूरा न्याय होगा. अपराधी चाहे जो भी हो उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाएगी. उधर इंसपेक्टर अजीत सिंह ने भी केस के खुलासे में अपनी तरफ से पूरी मदद करने को कहा.

तिवारीपुर थाने से घटनास्थल करीब 2 किलोमीटर दूर था इसलिए एसओ यादव 10-15 मिनट में ही मौके पर पहुंच गए. पुलिस के पहुंचने के बाद ही कालोनी के लोगों को जानकारी हुई कि बदमाशों ने सुनील के यहां लूटपाट कर उस की पत्नी की हत्या कर दी है.

इस के बाद तो सुनील के घर के सामने कालोनी के लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई. एसओ रामभवन यादव जब सुनील के घर में गए तो उस की पत्नी रेनू सिंह की खून से सनी लाश बेड पर पड़ी हुई थी. लग रहा था कि बदमाशों ने उस के सिर के पीछे कोई भारी चीज मार कर घायल किया था.

वार से सिर की हड्डी भी भीतर की तरफ धंसी हुई थी. सिर पर चोट के अलावा रेनू के शरीर पर चोट का और कोई निशान नहीं था. कमरे में रखी लोहे की अलमारी खुली हुई थी और उस का सामान फर्श पर बिखरा पड़ा था.

कमरे में फर्श पर कान का एक झुमका गिरा पड़ा था. शायद लूटपाट के बाद बदमाशों के वहां से भागते समय लूटे गए गहनों में से झुमका गिर गया था. एसओ ने उस झुमके के बारे में सुनील से पूछा तो सुनील झुमका देखते ही रोते हुए कहने लगा कि यह झुमका उस की पत्नी रेनू का ही है.

इस बीच एसओ रामभवन यादव ने फोन कर के एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह, एसपी (क्राइम), सीओ (क्राइम) प्रवीण सिंह को सूचित कर दिया था. सूचना मिलने के बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे.

इन अधिकारियों के अलावा सीओ (बांसगांव) वीवी सिंह, सीओ (कोतवाली), एसओ (सहजनवां) सत्य प्रकाश सिंह, स्वाट टीम के इंचार्ज वीरेंद्र राय, एसआई मनोज दुबे, क्राइम ब्रांच के सिपाही वीपेंद्र मल्ल, राजमंगल सिंह, शशिकांत राय, राशिद अख्तर खां, शिवानंद उपाध्याय, कुतुबउद्दीन, राकेश, विजय प्रकाश के अलावा फोरैंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई.

चूंकि यह मामला पुलिस विभाग से जुड़ चुका था, इसलिए पुलिस वर्क आउट करने में कोई चूक नहीं करना चाहती थी. अधिकारियों ने मौके का गहनता से निरीक्षण किया. कमरे की हालत देख कर पहली नजर में यह मामला लूट का लग रहा था.

फोरैंसिक टीम मौके से सबूत जुटा रही थी. फोरैंसिक टीम ने कमरे में रखी लोहे की अलमारी की जांच की तो अलमारी का लौक कहीं से टूटा हुआ नजर नहीं आया. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने अलमारी को चाबी से खोला हो. ये देख कर फोरैंसिक टीम हैरान रह गई.

सुनील ने पुलिस को बताया था कि बदमाशों ने अलमारी तोड़ कर जेवर गहने लूटे थे. जबकि घटनास्थल पर इस तरह के कोई निशान नहीं मिले. ये मामला पूरी तरह संदिग्ध लगने लगा और शक के दायरे में कोई अपना ही नजर आने लगा. इसे पुलिस पूरी तरह गोपनीय रखे रही. पुलिस ने उस समय सुनील से कुछ नहीं कहा.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर रेनू की लाश पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेजवा दी. सुनील की तहरीर पर अज्ञात बदमाशों के खिलाफ लूट के लिए हत्या करने का मुकदमा दर्ज कर लिया. यह बात 12 सितंबर, 2018 की है.

अगले दिन 13 सितंबर को रेनू सिंह की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी. रिपोर्ट में रेनू सिंह की मौत हेड इंजरी के कारण बताई गई. यही नहीं उस की मौत का जो समय बताया गया था वह सुनील के दिए गए बयान से कतई मेल नहीं खा रहा था.

पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची थी तो उस समय रेनू की डैडबौडी अकड़ चुकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि अमूमन इस तरह के लक्षण किसी बौडी में मौत के करीब 4 घंटे बाद देखने को मिलते हैं.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, रेनू की मौत 11-12 सितंबर की रात के 12 बजे के करीब हो चुकी थी. जबकि सुनील ने बयान दिया था कि उस ने भोर के साढ़े 4 बजे के करीब 3 संदिग्धों को घर की तरफ से जाते हुए देखा था. उन्हीं तीनों ने घटना को अंजाम दिया था.

सुनील के बयान और मौके के हालात तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट आपस में कहीं भी मेल नहीं खा रहे थे. इस का मतलब साफ हो चुका था कि सुनील घटना में शामिल  था या फिर वह पुलिस से कुछ छिपा रहा है. सुनील के बयान को तसदीक करने के लिए पुलिस टीम उन तीनों संदिग्धों की तलाश में जुट गई, जिन पर सुनील को शक था.

अदालत में ऐसे झुकी मूछें – भाग 3

किरन की हत्या और रोहतास के साथ हुए अन्याय को मीडियाकर्मियों ने विभिन्न टीवी चैनलों पर दिखाना शुरू कर दिया. इस खबर के बाद क्षेत्र में हंगामा उठ खड़ा हुआ. कई समाजसेवी और महिला संगठन सड़कों पर उतर आए थे.

किरन के हत्यारे मातापिता और भाई की गिरफ्तारी को ले कर आवाज उठने लगी थीं. हर गली, नुक्कड़ पर इस घटना की चर्चा होने लगी थी. कोई इसे उचित ठहरा रहा था तो कोई अन्याय कह रहा था. पुलिस प्रशासन ने इस मामले से निपटने की पूरी तैयारी कर ली थी.

रोहतास की शिकायत पर 14 फरवरी, 2017 को थाना सदर में किरन के भाई अशोक और अन्य लोगों के खिलाफ किरन की हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302, 201, 506, 34 के तहत दर्ज कर लिया गया. पुलिस उसी रात जुगलना गांव पहुंच गई.

पुलिस ने लोगों से पूछताछ कर किरन के बारे में जानकारी जुटाई. देर रात पुलिस ने रोहतास की सुरक्षा के मद्देनजर उसे एक गनमैन दे दिया था. क्योंकि अशोक ने रोहतास को जान से मारने की धमकी भी दी थी. दूसरे ऐसे गंभीर माहौल में रोहतास की सुरक्षा अति आवश्यक बन गई थी.

पुलिस ने श्मशान से बरामद किए सबूत

अगली सुबह पुलिस ने जुगलना गांव जा कर अशोक को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया था. अशोक की गिरफ्तारी के बाद थाना सदर और सीन औफ क्राइम की टीम ने मृतका किरन के कमरे का बड़ी बारीकी से मुआयना किया और कुछ चीजों को अपने कब्जे में ले लिया था. इस के बाद पुलिस परिवार के लोगों, गांव के प्रमुख लोगों और सरपंच को साथ ले कर श्मशान घाट पहुंची.

अशोक की निशानदेही पर उस जगह की पहचान करवाई गई, जहां किरन का अंतिम संस्कार किया गया था. श्मशान से पुलिस ने हड्डियों और राख के सैंपल लिए और उन्हें लैब में भेजने के बाद डीएनए टेस्ट की तैयारी शुरू कर दी थी.

इसी के साथ ही किरन द्वारा लिखा गया बताया जाने वाला सुसाइड नोट भी टीम ने अपने कब्जे में ले लिया था ताकि लिखाई की जांच की जा सके. क्राइम टीम ने छत पर उस जगह की मिट्टी के सैंपल भी लिए जिस जगह जहरीला पानी पीने के बाद किरन ने उल्टी की थी.

इस काम से फारिग होने के बाद 16 फरवरी को अशोक को अदालत में पेश कर 2 दिन का पुलिस रिमांड लिया, ताकि अभियुक्त से मृतका का मोबाइल फोन व इस केस से जुड़ी अन्य चीजें बरामद की जा सकें. रिमांड अवधि में पुलिस ने कई सबूत जुटाए. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने अशोक को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

पुलिस ने समय पर इस केस की चार्जशीट अदालत में फाइल कर दी थी. यह केस जिला एवं सत्र न्यायालय में एक साल 10 महीने तक चला था. बचाव पक्ष की तरफ से इस केस को ललित गोयल लड़ रहे थे और अभियोजन पक्ष की ओर से इस केस की पैरवी सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट के अधिवक्ता जतिंदर कुश कर रहे थे.

अदालत में डीएनए की रिपोर्ट भी पेश की गई थी जो श्मशान से उठाई गई मृतका की हड्डियों के डीएनए और मृतका के भाई अशोक के डीएनए से मैच कर गई थी. लेकिन पुलिस ने छत से उल्टी के जो सैंपल लिए थे. उन की जांच रिपोर्ट से यह बात साबित नहीं हो सकी कि मृतका को जहर दे कर मारा गया था. जहर की बात रोहतास ने ही पुलिस व अन्य लोगों को अपने बयान में बताई थी.

प्रेमी मुकर गया गवाही से

इस केस में नया मोड़ उस समय आया था, जब मृतका के पति रोहतास ने अदालत में अपनी गवाही देने से मना कर दिया था, जिस प्रेम विवाह की कीमत किरन को अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी थी, वही रोहतास बेवफा  निकल गया था.

साथ जीनेमरने की कसमें खा कर शादी के बंधन में बंधने के बाद जब किरन की हत्या कर दी गई तो कानूनी लड़ाई लड़ने के बजाय रोहतास गवाही से ही मुकर गया. उस ने अपने बयान में अदालत को बताया था कि उसे पुलिस से कोई शिकायत नहीं है. उस ने अपने तौर पर पता लगा लिया है कि किरन की मौत प्राकृतिक तरीके से हुई थी.

रोहतास के इस बयान के बाद सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट ने किरन हत्याकांड के मुकदमे की कमान पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली थी. ट्रस्ट के वकील जतिंदर कुश ने 5 सितंबर, 2018 को अदालत में एक पेटीशन दायर कर प्रार्थना की थी कि अभियुक्त अशोक के पिता पुलिस में हैं, जिस की वजह से सदर पुलिस ने सनातन धर्म ट्रस्ट के पदाधिकारियों की न तो गवाही दर्ज की थी और न ही किसी रजिस्टर या दस्तावेज को चैक किया था. जबकि इस केस में उन की गवाही की बड़ी अहमियत है.

ट्रस्ट की प्रार्थना स्वीकार कर अदालत ने 14 सितंबर को ट्रस्ट के उस रजिस्टर को चैक किया, जिस में शादी के बाद अपने हस्ताक्षर करते वक्त किरन ने अपनी हत्या होने की आशंका व्यक्त की थी.

इस के बाद सनातन धर्म ट्रस्ट के चेयरमैन संजय चौहान के बयान भी अदालत में दर्ज किए गए थे. तमाम गवाहियां और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अतिरिक्त सेशन जज डा. पंकज ने अशोक को किरन की हत्या का दोषी ठहराते हुए फैसले की तारीख 5 दिसंबर, 2018 तय कर दी थी.

न्यायाधीश डा. पंकज ने इस केस में अपना फैसला निर्धारित तिथि को दिन के 3 बज कर 58 मिनट पर सुनाया. इस फैसले से ठीक 10 मिनट पहले 3:48 बजे दोषी अशोक के थानेदार पिता सुशील उठ कर अदालत से बाहर चले गए थे. वह शायद पहले से ही जानते थे कि फैसला उन के पक्ष में नहीं होने वाला है.

दोषी अशोक को सजा सुनाने से पहले जज साहब ने इस मामले पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा था, ‘‘जो ऐसी साजिश रचते हैं, वह याद रखें कि फांसी का फंदा उन का इंतजार कर रहा है.’’

अदालत ने सुनाई फांसी की सजा

अदालत इसे रेयरेस्ट औफ रेयर अपराध मानते हुए किरन की हत्या के अपराध में आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत दोषी को फांसी की सजा और एक हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. इस के अलावा धारा 201 के तहत 7 साल के कठोर कारावास की सजा का हुक्म भी दिया.

तभी मुजरिम अशोक ने अदालत से कम सजा करने की अपील करते हुए कहा था कि उस की मां को कैंसर है और वह अकसर बीमार रहती हैं. पिता को अपनी नौकरी से समय नहीं मिलता है. ऐसे में मां की देखभाल करने वाला कोई नहीं है.

पर अदालत ने उस की अपील को खारिज करते हुए कहा था कि ऐसे अपराधी के साथ नरमी नहीं बरती जा सकती. सजा सुनने के बाद अशोक का सिर शर्म और पश्चाताप से नीचे झुक गया था.

किरन की मौत से पहले सन 2017 तक हिसार के गांव जुगलान में थानेदार सुरेश का हंसताखेलता परिवार था. 4 लोगों के इस छोटे से परिवार में बेटी की मौत हो गई और उस की हत्या के अपराध में बेटा जेल चला गया. पत्नी को कैंसर है और सुरेश स्वयं ड्यूटी पर बाहर रहते हैं. कैंसर से पीडि़त पत्नी अब बिना किसी सहारे के घर में अकेली रहेगी.

आखिर क्या मिला ऐसी मूंछ बचा कर. ध्यान से सोचा जाए तो अशोक ही अपने घर को उजाड़ने का कसूरवार निकला. जिस समाज के लिए उस ने इतना बड़ा अपराध किया, अब वह समाज और समाज के ठेकेदार कहां हैं.

ऐसी बेटी किसी की न हो – भाग 3

प्रिंस और सोनिया की जुगलबंदी

दरअसल प्रिंस और सोनिया अब एकदूसरे को पसंद करने लगे थे लेकिन सोनिया समझ गई थी कि उसे इतनी कमाई नहीं होती कि वह उस के खर्चे लंबे समय तक उठा सके. लेकिन सोनिया के दिल्ली में मातापिता के पास रहने के दौरान भी प्रिंस अकसर सोनिया से मिलने के लिए दिल्ली आता जाता रहता था. सोनिया ने अपने मातापिता को बताया कि वे जल्द ही शादी करने वाले हैं.

कुछ समय बाद ही प्रिंस को उस के घर आतेजाते ये बात पता चल चुकी थी कि दोनों भाई परिवार से अलग हैं और छोटी बेटी हरजिंदर कौर के सोनिया के पति से संबंध हो जाने के बाद उस के मातापिता के पास केवल सोनिया ही थी, जो उस मकान की हकदार थी. उस 100 वर्गगज के मकान की कीमत लगभग 70-80 लाख रुपए थी. इसलिए प्रिंस ने सोनिया के दिमाग में यह बात डाल दी कि अगर वह अपने मातापिता से इस मकान को अपने नाम करा ले तो वे दोनों शादी कर के दिल्ली में इवेंट मैनेजमेंट कंपनी खोल कर आगे की जिंदगी चैन से बसर कर सकते हैं.

सोनिया को भी उस की बात पसंद आई. सोनिया ने अपने मातापिता से घर को उस के नाम पर करने के लिए कहा तो पिता बुरी तरह भड़क गए. कहने लगे क्या हुआ जो मेरे दूसरे बच्चे मेरे साथ नहीं रहते. अरे ये मेरी मेहनत की कमाई से बनाई गई प्रौपर्टी है, इस पर उन सब का भी बराबर का अधिकार है. जब तक मैं जिंदा हूं, इस पर किसी एक का अधिकार नहीं हो सकता.

कई बार बात करने के बाद भी गुरमीत सिंह और जागीर कौर मकान को सोनिया के नाम ट्रांसफर करने के लिए राजी नहीं हुए. अपने सपने में मातापिता को बाधक बनता देख कर सोनिया के दिमाग में उन के लिए खुराफाती खयाल आने लगे.

जब उस ने देख लिया कि पिता प्रौपर्टी उस के नाम नहीं करेंगे तो उस ने सब से पहले पिता के संदूक से उस प्रौपर्टी के पेपर चुरा लिए. बाद में उस ने प्रिंस की मदद से उन दस्तावेजों को जालसाजी कर के अपने नाम करवा लिया. फिर उन दोनों ने तिलकनगर के प्रौपर्टी डीलर बिट्टू से इस प्रौपर्टी को बिकवाने के लिए बात की तो उस ने जल्द ही एक तय रकम में इस प्रौपर्टी को बिकवाने का वादा किया.

इस दौरान प्रिंस के बहकावे में आ कर उस ने तय कर लिया कि अगर उन्हें मातापिता की संपत्ति हथियानी है तो उन की हत्या करनी पड़ेगी. बस यह खयाल आते ही उन्होंने इस की प्लानिंग शुरू कर दी. संयोग से मौका भी जल्द ही मिल गया. अपने पिता की मौत हो जाने के कारण 10 फरवरी, 2019 को जागीर कौर पंजाब के जालंधर स्थित अपने मायके चली गई थीं. पिता गुरमीत सिंह के घर में अकेले होते ही सोनिया ने प्रिंस से बात की और कहा कि पापा घर में अकेले हैं. मौका अच्छा है, तुम जल्दी दिल्ली आ जाओ.

प्रिंस समझ गया कि अकेले यह काम उस के वश का नहीं है. लिहाजा उस ने लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन में रहने वाले 2 परिचितों रिंकू और दिवाकर से बात की. दोनों लूट, चोरी व डकैती करते थे.  प्रिंस ने दोनों को 50 हजार रुपए दिए और साथ देने के लिए राजी कर लिया. जिस के बाद प्रिंस 21 फरवरी को रिंकू व दिवाकर के साथ दिल्ली में सोनिया के घर पहुंच गया.

पहले पिता को लगाया ठिकाने

उस के घर पहुंचने से पहले ही सोनिया ने रात को अपने पिता को दी गई चाय में नींद की गोलियां पिला कर बेसुध कर दिया. फिर प्रिंस ने उन दोनों के साथ मिल कर गुरमीत की गला घोंट कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद उस ने उन की लाश घर में रखे एक लाल रंग के सूटकेस में भरी और गुरमीत सिंह की मोटरसाइकिल पर प्रिंस व रिंकू सूटकेस रख कर सैयद नांगलोई नाले में फेंक आए.

सोनिया के लिए अच्छी बात यह थी कि पिता की खैरखबर लेने वाला कोई नहीं था. कई दिन ऐसे ही गुजर गए. इसी बीच जागीर कौर ने सोनिया को फोन कर के बताया कि वह 2 मार्च को दिल्ली लौटेगी.

यह सूचना सोनिया ने अपने प्रेमी प्रिंस को दे दी. जागीर कौर 2 मार्च की रात को दिल्ली लौट आईं. जागीर कौर ने घर आते ही सोनिया से अपने पति गुरमीत सिंह के बारे में पूछा, तो सोनिया ने जवाब दिया कि उन की तबीयत खराब है और वह अस्पताल में भरती हैं.

जागीर कौर ने पूछा कि ऐसा उन्हें क्या हुआ जो अस्पताल में भरती करना पड़ा.

‘‘मम्मी, अचानक उन्हें हार्ट अटैक हुआ था. मैं ने आप को फोन कर के इसलिए खबर नहीं दी कि आप और परेशान हो जाएंगी क्योंकि नानाजी की मौत पर आप पहले से दुखी थीं.’’ सोनिया ने बताया.

‘‘कल मैं अस्पताल चलूंगी.’’ जागीर कौर बोलीं.

‘‘ठीक है मम्मी, कल मैं आप को पापा के पास ले कर चलूंगी.’’ सोनिया ने मां से कहा. इस के बाद सोने से पहले सोनिया ने उन्हें पीने के लिए चाय दी और उस में उसी तरह नशे की गोलियां मिला दीं जैसे पिता को बेसुध करने के लिए चाय में मिलाई थीं.

चाय पीते ही जागीर कौर पर मूर्छा छा गई और वह गहरी नींद सो गईं. 2 मार्च को प्रिंस रिंकू के साथ लखनऊ से दिल्ली आ चुका था. सोनिया द्वारा फोन करने पर प्रिंस रिंकू को ले कर सोनिया के घर पहुंच गया. वहां पहुंच कर प्रिंस और रिंकू ने उसी तरह गला दबा कर जागीर कौर को भी मार दिया जैसे गुरमीत सिंह को मारा था. उन के शव को ये लोग उस दिन घर में ही रखे रहे.

अगले दिन शाम को प्रिंस व रिंकू नांगलोई के बाजार से एक रैक्सीन का बड़ा ब्रीफकेस खरीद लाए और शाम को जागीर कौर का शव उस में भर कर उसी बाइक पर रखा और सैयद नांगलोई नाले तक ले गए. उन्होंने उसी जगह पर जागीर कौर के शव से भरे सूटकेस को भी फेंक दिया, जहां गुरमीत सिंह के शव को फेंका था. बाद में उन्होंने गुरमीत सिंह की मोटरसाइकिल पश्चिम विहार के एक मौल की पार्किंग में खड़ी कर दी. प्रिंस दीक्षित अगली सुबह रिंकू के साथ लखनऊ चला गया.

4 मार्च, 2019 की सुबह गुरमीत की छोटी बेटी ने जब अपनी मां को फोन किया तो उन का फोन बंद मिला. क्योंकि उसे पता था कि मां 2 मार्च की रात को दिल्ली वापस लौटी होंगी, इसलिए वह उन की कुशलता का समाचार लेना चाहती थी.

जब मां का फोन बंद मिला तो हरजिंदर कौर ने सोनिया को फोन कर के मां से बात कराने को कहा. तब सोनिया ने बताया कि मां अभी दिल्ली नहीं पहुंची हैं. यह सुन कर हरजिंदर परेशान हो उठी.

कई दिनों से उस के पिता का फोन भी बंद आ रहा था. हरजिंदर को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. लिहाजा उस से रुका नहीं गया और वह 4 मार्च की दोपहर को पिता के घर निलोठी एक्सटेंशन पहुंच गई. वहां मां और पिता दोनों ही नहीं थे. पूछने पर सोनिया भी कोई सही जवाब नहीं दे सकी कि वे कहां हैं.

जालंधर में ननिहाल फोन करने पर यह बात साफ हो चुकी थी कि मां तो 2 मार्च की सुबह ही वहां से दिल्ली के लिए चली गई थीं. हरजिंदर समझ गई कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. क्योंकि उसे यह भी पता था कि सोनिया मम्मीपापा पर पिछले कुछ महीनों से मकान को अपने नाम पर कराने का दबाव बना रही थी. लिहाजा उस ने 4 मार्च को ही निहाल विहार थाने में अपने मातापिता की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी.

हालांकि हरजिंदर कौर ने गुमशुदगी दर्ज कराते समय निहाल विहार थाने की पुलिस से साफ कहा था कि उस के मातापिता की गुम होने के पीछे उस की बहन सोनिया व उस के प्रेमी प्रिंस दीक्षित का हाथ हो सकता है. लेकिन पुलिस ने हरजिंदर की शिकायत पर गंभीरता से न तो जांच की और न ही कोई काररवाई की.

इस दौरान जब मातापिता दोनों की हत्या हो गई तो सोनिया व प्रिंस तिलक नगर के प्रौपर्टी डीलर बिटटू पर मकान को जल्द बिकवाने का दबाव बनाने लगे. वे दोनों हत्या के बाद प्रौपर्टी बेच कर कहीं दूर भागने की फिराक में थे.

जब पुलिस ने नांगलाई के नाले से पहले जागीर कौर फिर उन के पति गुरमीत सिंह  के शव बरामद कर जांचपड़ताल शुरू की और सोनिया व प्रिंस फरार मिले तो उन के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगाया गया.

पुलिस ने इसी आधार पर बिट्टू को थाने ला कर पूछताछ की और पता किया कि वे दोनों उस से किस लिए बातचीत कर रहे थे. तभी पता चला कि दोनों उस से पिता के मकान को बेचने के लिए लगातार बात कर रहे थे. उसी दौरान पुलिस ने सोनिया व प्रिंस को पकड़ने के लिए एक चाल चली.

उस ने सोनिया और प्रिंस को एक साथ एक ही जगह बुलवाने के लिए प्रौपर्टी डीलर बिट्टू से दोनों को फोन करवाया कि प्रौपर्टी को खरीदने का एक ग्राहक मिल गया है, जो उन से मिल कर एक साथ सारी रकम दे कर डील करने में रुचि रखता है.

बस इसी के बाद सोनिया व प्रिंस ने आपस में फोन पर बात की. प्रिंस उस वक्त लखनऊ में था और सोनिया दिल्ली में ही कहीं छिपी थी. दोनों ने बिट्टू को खरीदार के साथ नांगलोई के दिलेर मेहंदी फार्म के पास मिलने का वक्त दे दिया. लखनऊ से दिल्ली आ कर प्रिंस 10 मार्च की रात जैसे ही फार्महाउस के पास पहुंचा तो वहां प्रौपर्टी के खरीदार के रूप में पुलिस पहुंच गई और दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

सोनिया के हाथ में मातापिता की प्रौपर्टी तो नहीं आई, लेकिन वह जेल की सलाखों के पीछे जरूर पहुंच गई और उस ने अपना नाम एक ऐसी बेटी के रूप में दर्ज करवा लिया, जिस ने संपत्ति की खातिर अपने ही जन्मदाताओं को मौत के घाट उतार दिया.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

पैसा बना जान का दुश्मन – भाग 3

कहा जाता है कि बेटेबेटी का सुख मांबाप के लिए अमृत है. लेकिन यही अमृत अगर जहर बन जाए तो उन के लिए बरदाश्त करना मुश्किल हो जाता है. ऐसा ही कुछ शकुंतला के साथ हुआ. जब उन्हें पता चला कि मधुमती का पति एक नंबर का शराबी और निकम्मा है तो वह टूट कर बिखर गईं. बेटी के गम में वह बीमार रहने लगीं. उन के इस गम ने उन्हें मौत तक पहुंचा दिया.

शकुंतला की मौत से अगर किसी को खुशी हुई थी तो वह गिरीश था. अब उस फ्लैट में वह जैसे चाहेगा, रह सकेगा. मां की मौत के बाद मधुमती बेटे के साथ अपने फ्लैट में रहने आ गई. फ्लैट में आते ही गिरीश उसे बेचने के चक्कर में रहने लगा. वह उस फ्लैट को बेच कर उस का सारा पैसा अय्याशी मे उड़ा देना चाहता था. इस के लिए वह शातिर चाल भी चलने लगा.

मधुमती से शादी करते समय जिस तरह वह संत बन गया था, फ्लैट बिकवाने के लिए भी उसी तरह एक बार फिर  संत बन गया. मधुमती और बेटे से खूब प्यार करने लगा. मधुमती के दिल में एक अच्छे आदमी की इमेज बनाने के लिए वह नौकरी भी ढूंढ़ने लगा. जब गिरीश को लगा कि मधुमती उस पर विश्वास करने लगी है, तब उस ने अपनी नायाब चाल चली. मजे की बात, मधुमती उस में फंस भी गई.

भोलीभाली मधुमती को विश्वास में ले कर उस ने बिजनैस की योजना बनाई और उस में 50 लाख रुपए लगाने की बात की. इस के बाद मधुमती का फ्लैट 43 लाख रुपए में बेच कर सारा पैसा अपने नाम जमा करा लिया और रहने के लिए भायंदर के नक्षत्र टावर के 14वीं मंजिल पर एक फ्लैट किराए पर ले लिया.

जैसे ही फ्लैट का पैसा गिरीश के पास आया, वह एकदम से बदल गया. उस के पास लाखों रुपए आ गए थे, इसलिए वह लखपतियों की तरह ठाठ से रहने लगा. वह बीयर बारों में जा कर अपने ऊपर तो शराब शबाब पर पैसे लुटाता ही था, अपने साथ दोस्तों को भी ले जाता था. उन का खर्च भी वह स्वयं ही उठाता था. मधुमती जब भी उसे रोकने की कोशिश करती, उस से लड़ाईझगड़ा ही नहीं करता, बल्कि उसे मारतापीटता भी. उसे कतई पसंद नहीं था कि वह उस की मौजमसती में दखल दे.

गिरीश जिस तरह अय्याशी पर पैसे लुटा रहा था, उसे देख कर मधुमती को अपने और बेटे के भविष्य की चिंता सताने लगी. उसे लगा कि अगर गिरीश का यही हाल रहा तो उसे भिखारी बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. वैसे भी उस ने उसे घर से बेघर कर दिया था.

पति की हरकतों से परेशान हो कर मधुमती ने तय किया कि वह गिरीश से तलाक ले कर अपने बचे हुए पैसों और बेटे के साथ नानी के पास फ्रांस चली जाएगी.

इस के लिए उस ने नानी से बात भी कर ली. लेकिन जब इस बात की जानकारी श्रीरंग पोटे को हुई तो वह परेशान हो उठे. क्योंकि इस से समाज में उन की काफी बदनामी होती. बेटे ने तो वैसे ही इज्जत बरबाद कर रखी थी. रहीसही इज्जत बहू के साथ जाने वाली थी. वह पत्नी को ले कर भायंदर पहुंचे और बहू को समझाने के साथ गिरीश को काफी खरीखोटी सुनाई. इस के बाद वह पोते को साथ ले कर माहीम चले आए.

पिता की डांटफटकार और मधुमती के फैसले के बारे में जान कर गिरीश का पारा आसमान पर जा पहुंचा. वह यह कतई नहीं चाहता था कि मधुमती उसे छोड़ कर फ्रांस चली जाए. क्योंकि उस के जाते ही वह भिखारी बन जाता. अब इसी बात को ले कर गिरीश अकसर मधुमती से लड़ाईझगड़ा और मारपीट करने लगा.

3 दिसंबर को भी पैसों को ले कर गिरीश और मधुमती के बीच कहासुनी शुरू हुई तो बात मारपीट तक पहुंच गई. गिरीश ने मधुमती को इस कदर मारा कि वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. इस पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने उस का गला दबा दिया. इसी गला दबाने में मधुमती की मौत हो गई.

लेकिन गिरीश को पता नहीं चला कि मधुमती मर चुकी है. उसे लगा कि वह बेहोश होने का नाटक कर रही है, ताकि वह मारना बंद कर दे. वह उसे मारतेमारते थक गया था, इसलिए उसे वैसी ही छोड़ कर गुस्सा शांत करने के लिए बाहर चला गया. काफी देर तक आवारा दोस्तों के साथ रहने के बाद वह घर आया तो उसे यह देख कर हैरानी हुई कि वह मधुमति को जिस स्थिति में छोड़ कर गया था, वह अभी भी उसी स्थिति में पड़ी थी.

गिरीश ने मधुमती को उठाने की कोशिश की तो पता चला कि उस का शरीर ठंडा पड़ कर अकड़ चुका है. उसे समझते देर नहीं लगी कि मधुमती मर चुकी है. उस के होश उड़ गए. वह घबरा गया कि अब क्या करे.

गिरीश बुरी तरह डर गया था. उसे हथकड़ी और जेल के सींखचे नजर आने लगे. इस सब से कैसे बचा जाए, वह तरहतरह की योजनाएं बनाने लगा. मधुमती की लाश को इस तरह बाहर ले जा कर फेंकना उस के लिए संभव नहीं था. क्योंकि लाश की शिनाख्त होने पर वह पकड़ा जाता. तब उस ने ऐसी योजना बनाई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

उस ने तय किया कि वह मधुमती के लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर के समुद्र में फेंक देगा, जहां समुद्री मछलियां उन्हें खा जाएंगी. इस के बाद मधुमती की लाश ही नहीं मिलेगी तो कानून उस का कुछ नहीं कर पाएगा. अगर कोई मधुमती के बारे में पूछेगा तो वह कह देगा कि मधुमती उस से लड़ाईझगड़ा कर के अपनी नानी के पास फ्रांस चली गई है. इस तरह उस की हत्या का यह राज राज ही रह जाएगा.

लेकिन इस में भी एक समस्या थी. गिरीश मधुमती की लाश के टुकड़े तो कर सकता था, लेकिन उन टुकड़ों को अकेले ले जा कर फेंक नहीं सकता था. उस ने काफी सोचाविचारा तो उसे अपनी बुआ के बेटे नितिन की याद आई. वह उस का दोस्त भी था, इसलिए उस पर विश्वास भी किया जा सकता था. उसे यह भी विश्वास था कि नितिन उस की मदद भी करेगा.

यही सोच कर गिरीश ने नितिन को फोन कर के अपने पास बुलाया और उसे साथ ले कर भायंदर मौल गया. लेकिन जब गिरीश ने नितिन को सच्चाई बताई तो उसे लगा कि अगर उस ने गिरीश की मदद की तो उस के साथ उसे भी जेल जाना होगा. इसलिए वह चुप के से वहां से खिसक गया. इस के बाद उसी की वजह से यह मामला पुलिस तक जा पहुंचा.

नितिन के चले जाने के बाद गिरीश अपने फ्लैट पर पहुंचा और मधुमती की लाश के कई टुकड़े किए. फ्लैट में दुर्गंध न फैले, इस के लिए उस ने उन टुकड़ों की अच्छी तरह पैकिंग कर के कुछ टुकड़े फ्रिज में रख दिए तो कुछ कमरे में बैड के नीचे छिपा दिए. मौका देख कर वह उन्हें ले जा कर फेंक देता. लेकिन उसे इस का मौका ही नहीं मिला, क्योंकि मदद के बहाने नितिन ने फोन कर के उसे बुलाया तो वह शेवारे पार्क में आ गया, जहां से पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने गिरीश को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक गिरीश जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अदालत में ऐसे झुकी मूछें – भाग 2

भाई को पता लगी बहन की सच्चाई

अशोक ने बहन से कुछ नहीं कहा बल्कि वह पहले यह पता लगाना चाहता था कि किरन किस से बातें करती है. मौका मिलने पर एक दिन अशोक ने जब किरन का फोन चैक किया तो रोहतास का नाम सामने आया. वह रोहतास से फोन पर बात ही नहीं करती थी, बल्कि वाट्सऐप से भी दोनों एकदूसरे को मैसेज भेजते थे.

तमाम मैसेज अशोक ने देखे तो उस का खून खौल उठा. उस ने किरन से रोहतास के विषय में जब पूछा तो किरन ने झूठ बोलने के बजाए साफ बता दिया था कि रोहतास उस का प्रेमी है और वे शादी कर चुके हैं. क्योंकि अब उस की चोरी पकड़ी जा चुकी थी और बात को छिपाने से कोई फायदा भी नहीं था. मौका मिलने पर वह खुद भी तो यह बात घर वालों को बताना चाहती थी. भाई ने पूछ लिया तो किरन से सब बता दिया.

किरन के इस रहस्योद्घाटन से जैसे घर में भूचाल आ गया था. अशोक और उस की मां ने किरन की जम कर पिटाई की. उन्होंने धमकी भी दी कि वह रोहतास को भूल जाए. अगर उस ने ऐसा नहीं किया तो उसे जान से मार दिया जाएगा, लेकिन किरन अपनी किसी बात से टस से मस नहीं हुई.

उसे इस बात का पहले से अहसास था कि शादी वाली बात घर वालों को पता चलने पर यह सब तो होना ही था. इसीलिए उस ने अपने आप को इन सब बातों के लिए पहले से ही तैयार कर रखा था.

इस के बाद किरन को घर में कैद कर लिया गया. 22 जनवरी, 2017 को अशोक ने किरन के पति रोहतास को फोन कर के धमकाया कि वह किरन से अपने संबंध खत्म कर ले नहीं तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा. यह भी कहा कि वह इस शादी को भूल जाए.

इस के बाद 9 फरवरी, 2017 को किरन ने किसी तरह फोन द्वारा रोहतास को बता दिया कि उन की शादी के बारे में घर वालों को पता चल गया है और अब वे सब उस पर जुल्म ढा रहे हैं. जल्दी कुछ करो.

इस से पहले कि रोहतास कुछ करता, 9-10 फरवरी, 2017 की रात को अशोक ने अपनी मां के सामने ही किरन को पहले प्यार से समझाने की कोशिश की थी. किरन को बताया गया कि रोहतास जाति का सैनी है और हम जाट हैं. ऊपर से रोहतास और हमारी हैसियत में जमीनआसमान का फर्क है. वह मामूली परिवार से है.

अशोक ने किरन को ऊंचनीच, जातिपात और मर्यादा का पाठ पढ़ाते हुए रोहतास से रिश्ता तोड़ने के लिए कहा, लेकिन किरन पर अपनी मां और भाई की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उस ने अपनी बात पर कायम रहते हुए कह दिया, ‘‘चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए, रोहतास मेरा पति है और पति रहेगा. मैं ने अग्नि और भगवान को साक्षी मान कर उसे अपने मन से पति स्वीकार किया है, इसलिए उसे हरगिज नहीं भुला सकती.’’

किरन की बात सुन कर अशोक के तनबदन में आग लग गई थी. वह उस की चोटी पकड़ कर कमरे में ले गया और उस ने किरन से जबरदस्ती एक रजिस्टर पर सुसाइड नोट लिखवाया, जिस में लिखा गया था, ‘मैं किन्हीं कारणवश अपनी मरजी से आत्महत्या कर रही हूं. इस मामले में मेरे परिवार के किसी सदस्य का कोई लेनादेना नहीं है. उन्हें दोषी न ठहराया जाए.’

किरन को पिला दिया जहर

इस के बाद अशोक किरन को छत पर ले गया और उसे एक गिलास में कोई जहरीला पदार्थ मिला पानी जबरदस्ती पिला दिया. पानी पीते ही किरन को उल्टी हो गई, पर तब तक जहर अपना असर दिखा चुका था. कुछ देर तड़पने और छटपटाने के बाद किरन की मौके पर ही मौत हो गई थी.

किरन की हत्या करने के बाद अशोक उस की लाश को वहीं छत पर ही रजाई से ढक कर नीचे आ कर अपने कमरे में सो गया था. किरन के पिता दरोगा सुरेश सिंह उस समय अपनी ड्यूटी पर रोहतक थाने में थे. उन्हें शायद किरन की हत्या के बाद ही बताया गया था.

अपने बेटे को इस हत्या के केस से और बेटी की बदनामी से बचाने के लिए अगली सुबह गांव में यह बात फैला दी गई कि किरन की हार्ट अटैक से मौत हो गई है. इस के बाद आननफानन में बिना पुलिस या किसी अन्य को सूचना दिए किरन का अंतिम संस्कार कर दिया गया था.

किरन रोजाना रोहतास को फोन किया करती थी. जब 2 दिन गुजर जाने पर भी किरन का फोन नहीं आया और न ही डायल करने पर उस का फोन मिला तो रोहतास को चिंता होने के साथ दाल में कुछ काला दिखाई देने लगा. उस ने अपने स्तर पर किरन के गांव किसी को भेज कर पता लगवाया तो जानकारी मिली कि पिछली 10 तारीख को किरन की मौत हो गई थी और उस के परिजनों ने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया था.

पुलिस से की शिकायत

यह खबर सुन कर रोहतास की तो दुनिया ही वीरान हो गई थी. उसे पक्का विश्वास था कि किरन की हत्या कर दी गई है. रोहतास ने यह बात सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट और जय भीम आर्मी ट्रस्ट के चेयरमैन संजय चौहान को बताई. संजय चौहान रोहतास को साथ ले कर तत्कालीन डीएसपी भगवान दास से मिले और उन्हें पूरी बात विस्तार से बताते हुए कानूनी काररवाई करने की अपील की.

मामला औनर किलिंग और 2 अलगअलग जातियों के परिवारों से संबंधित था. ऐसे में जातीय दंगा भड़कने का खतरा था सो मामले की गंभीरता को देखते हुए डीएसपी भगवान दास ने यह सूचना तत्कालीन एसएसपी (हिसार) राजिंदर मीणा को दी.

एसएसपी के दिशानिर्देश पर डीएसपी ने थाना सदर के इंचार्ज इंसपेक्टर प्रह्लाद सिंह को तुरंत इस मामले में काररवाई करने के निर्देश दिए. उसी दिन थाने के पास ही रोहतास और संजय चौहान ने एक प्रैसवार्ता कर मीडियाकर्मियों को भी इस बात की पूरी जानकारी दे दी.

ऐसी बेटी किसी की न हो – भाग 2

चूंकि मामला दोहरे हत्याकांड का था, लिहाजा जिले के डीसीपी सेजू पी. कुरुविला ने हत्यारों को पकड़ने के लिए एक बड़ी टीम का गठन कर दिया. इस टीम के सुपरविजन की जिम्मेदारी उन्होंने एडीशनल डीसीपी राजेंद्र सागर को सौंपी और औपरेशन की कमांड संभालने का जिम्मा एसीपी विनय माथुर को दिया.

विशेष टीम में पश्चिम विहार (वेस्ट) थाने के एसएचओ मुकेश कुमार, एडीशनल एसएसओ मनोज भाटिया, निहाल विहार थाने के एसएचओ धर्मपाल सिंह, एसआई रितुराज, एएसआई अनिल कुमार, महावीर, राजेंद्र सिंह, राजबीर, धनराज, हैडकांस्टेबल कृष्ण राठी, सुभाष, रजनीश, कांस्टेबल संदीप, अनिल, नवीन, नवीन यादव, वीरेंद्र, अमित, सुनील और महिला कांस्टेबल दिव्या को शामिल किया गया.

पुलिस की एक टीम सोनिया व उस के प्रेमी प्रिंस के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकाल कर उस के फोन के सर्विलांस के काम में जुटी तो दूसरी टीम को उस से मिली जानकारी के आधार पर आरोपियों की धरपकड़ का जिम्मा सौंपा गया.

संभावना बेटी के हत्यारी होने की

पुलिस टीम ने जब मृतका जागीर कौर व उन के पति गुरमीत सिंह के घर के आसपास लगे कुछ सीसीटीवी कैमरों की जांचपड़ताल करनी शुरू की तो कुछ सीसीटीवी कैमरों से ऐसी फुटेज भी मिल गई, जिस से साफ हो गया कि सोनिया और प्रिंस ही इस दोहरे हत्याकांड के जिम्मेदार हैं.

पुलिस टीम ने सर्विलांस की मदद से लखनऊ से ले कर दिल्ली तक अपना जाल बिछा दिया, क्योंकि प्रिंस लखनऊ का ही रहने वाला था. ताबड़तोड़ छापेमारी और पुलिस की घेराबंदी का नतीजा यह निकला कि 10 मार्च, 2019 की रात को पुलिस ने बाहरी दिल्ली इलाके में दिलेर मेहंदी फार्महाउस के पास से सोनिया और उस के प्रेमी प्रिंस को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों को गिरफ्तार कर जब थाने लाया गया और पूछताछ की गई तो पता चला, इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए प्रिंस ने लखनऊ के भाड़े के 2 हत्यारों रिंकू और दिवाकर की भी मदद ली थी. पता चला कि दोनों हत्यारों को उस ने 50 हजार रुपए दिए थे.

दोनों सुपारी किलर रिंकू और दिवाकर लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन के रहने वाले थे. प्रिंस से पूछताछ के बाद पुलिस ने रिंकू और दिवाकर के मोबाइल नंबर हासिल कर लिए और (वेस्ट) थाने के एएसआई राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में पुलिस की टीम को दोनों की गिरफ्तारी के लिए लखनऊ रवाना कर दिया.

इधर अगली सुबह यानी 31 मार्च को सोनिया और प्रिंस दीक्षित को अदालत में पेश कर मनोज भाटिया ने 10 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. दूसरी तरफ एएसआई राजेंद्र सिंह की टीम ने 11 मार्च की रात को ही दोनों आरोपियों रिंकू और दिवाकर को लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन से गिरफ्तार कर लिया.

अगली सुबह तक राजेंद्र सिंह की टीम उन दोनों को ले कर दिल्ली आ गई. उन्हें भी अदालत में पेश कर 10 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया. चारों आरोपियों को आमनेसामने बैठा कर जब पुलिस ने पूछताछ शुरू की तो पूरा सच सामने आ गया और पूरे हत्याकांड की सारी कडि़यां जुड़ती चली गईं, जिसे सुन कर हर आदमी यही कह सकता है कि ऐसी बेटी किसी की न हो.

मूलरूप से दिल्ली के रहने वाले गुरमीत सिंह की शादी जालंधर की रहने वाली जागीर कौर से हुई थी. जागीर कौर और गुरमीत सिंह के 4 बच्चे हैं. गुरमीत सिंह पेशे से लकड़ी के ठेकेदार थे. वह अपने परिवार के साथ दीपक विहार, निलोठी एक्सटेंशन स्थित अपने मकान में रहते थे.

उन के 4 बच्चों में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. गुरमीत का बड़ा बेटा अमरजीत सिंह अपने परिवार के साथ दुबई में रहता है और वहीं सेटल है. जबकि छोटे बेटे ने दूसरे धर्म की लड़की से प्रेम विवाह कर लिया था, जिसे उन्होंने घर से निकाल दिया था, जिस के बाद उन के परिवार में बस 2 बेटियां ही रह गई थीं. बड़ी बेटी दविंदर कौर उर्फ सोनिया और छोटी हरजिंदर कौर.

सोनिया की शादी सन 2011 में फरीदाबाद में रहने वाले सुरेंद्र से हुई थी. लेकिन सुरेंद्र एक सीधासादा व्यापारी था, जबकि सोनिया पढ़ीलिखी और चंचल स्वभाव की महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. दोनों के विचार नहीं मिले तो उन के बीच अनबन रहने लगी. यही कारण रहा कि एक साल पूरा होतेहोते सोनिया का सुरेंद्र से आपसी सहमति से तलाक हो गया और वह अपने मातापिता के घर आ गई.

पहली शादी भले ही असफल हो गई थी लेकिन मातापिता को बेटी का घर में बैठना गवारा नहीं था. लिहाजा उन्होंने उसी साल निहाल विहार में रहने वाले करुण शर्मा से उस की दूसरी शादी कर दी.

दरअसल करुण शर्मा जो एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था, उस से सोनिया की जानपहचान खुद ही हुई थी. दोनों के बीच जल्द ही घनिष्ठता बढ़ गई और इसी के बाद सोनिया ने मातापिता को यह बात बताई. इस के बाद दोनों की शादी कर दी गई.

दूसरी शादी भी नहीं टिकी सोनिया की

शादी के 5 साल तक दोनों की गृहस्थी ठीकठाक चली. इस बीच सोनिया ने 2 बच्चों एक बेटी और एक बेटे को जन्म दिया. लेकिन 2 साल पहले यानी सन 2017 में उस ने अपने पति का घर छोड़ दिया. यहां तक कि वह दोनों बच्चों को पति के पास छोड़ कर मायके में आ गई. इस का भी एक अहम कारण था.

दरअसल, जब सोनिया अपने दूसरे बच्चे को जन्म देने वाली थी तो उस दौरान उस की छोटी बहन हरजिंदर कौर उस की तीमारदारी करने के लिए उस के घर आई थी. हरजिंदर कौर सुंदर भी थी और जवान भी. लिहाजा पत्नी के बिस्तर पर होने के कारण पति करुण शर्मा का उस की तरफ झुकाव हो गया था.

2-3 महीने में हालात ऐसे हो गए कि हरजिंदर कौर तथा करुण शर्मा के बीच संबंध हो गए. जल्द ही यह राज सोनिया को पता चल गया. दूसरे बच्चे को जन्म देने के बाद जब सोनिया ने हरजिंदर को घर भेज दिया तो उस के बाद भी दोनों का मिलनाजुलना जारी रहा. कभी करुण उस से मिलने मातापिता के घर चला जाता तो कभी वह उसे बाहर बुला कर उस से मिलताजुलता.

अब करुण के लिए बीवी से ज्यादा साली प्यारी हो गई थी. एक साल होतेहोते दोनों के संबंध इतने प्रगाढ़ हो गए कि सोनिया का आए दिन इस बात को ले कर अपने पति और बहन के साथ झगड़ा होने लगा. आखिर एक दिन तंग आ कर सोनिया दोनों बच्चों को पति के पास छोड़ कर हमेशा के लिए घर छोड़ कर अपने मातापिता के घर आ गई.

सोनिया मातापिता के पास क्या आई कि हरजिंदर उस के बच्चों की देखभाल के नाम पर करुण शर्मा के घर में आ कर रहने लगी. कुछ समय बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. इस घटना के बाद से ही सोनिया का रिश्तेनातों से विश्वास उठने लगा. उस ने तय कर लिया कि अब वह जीवन में सिर्फ अपने लिए जिएगी.

मातापिता के घर आ कर सोनिया के सामने अपनी जिंदगी को पालने का संकट था. लिहाजा उस ने नौकरी की तलाश शुरू कर दी. इस दौरान जौब पोर्टल से इवेंट मैनेजमेंट का काम करने वाले लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन निवासी प्रिंस दीक्षित का मोबाइल नंबर सोनिया को मिला. उस ने इवेंट मैनेजमेंट के लिए सोशल मीडिया पर महिला एग्जीक्यूटिव की जौब का विज्ञापन दिया हुआ था. उस नंबर पर बात कर के सोनिया प्रिंस से मिलने लखनऊ गई.

वहां प्रिंस को जब पता चला कि सोनिया पहले पति से तलाक के बाद दूसरे पति को बिना तलाक दिए छोड़ चुकी है तो उसे लगा कि खूबसूरत सोनिया को अगर वह अपने साथ रख ले तो उस का धंधा ही नहीं चलेगा, बल्कि औरत के बिना जिंदगी के अधूरेपन की कमी भी दूर हो जाएगी.

दरअसल प्रिंस ने भी अपनी पत्नी को छोड़ रखा था. लिहाजा प्रिंस ने उसे अपने यहां नौकरी ही नहीं दी बल्कि अपने घर में रहने के लिए एक कमरा भी दे दिया. दोनों ही अधूरेपन की जिंदगी जी रहे थे. फिर ऐसे हालात बने कि दोनों के बीच जल्द ही जिस्मानी संबंध भी बन गए. लेकिन कुछ समय बाद सोनिया दिल्ली आ गई क्योंकि उस ने कहा था कि वह दिल्ली में रह कर ही उस के इवेंट के लिए क्लाइंट देखा करेगी.

पैसा बना जान का दुश्मन – भाग 2

रिमांड के दौरान पूछताछ में गिरीश ने जो बताया, वह एक शराबी पति की हैवानियत की कहानी थी. गिरीश ने बड़ी ही होशियारी से अमीर घर की मधुमती को धोखे में रख विवाह किया.

इस के बाद वह उस की दौलत को शराब और अय्याशी में लुटाने लगा. जब उस ने मना किया तो उस के साथ मारपीट करने लगा. जब वह उस से संबंध तोड़ कर फ्रांस में रह रही अपनी नानी के यहां जाने की तैयारी करने लगी तो उस ने उस की हत्या कर दी. वह उस के शव को समुद्र में फेंक कर मछलियों को खिला देना चाहता था. लेकिन उस के पहले ही वह पकड़ा गया.

श्रीरंग पोटे सीधेसादे, उच्च विचार के महाराष्ट्री ब्राह्मण थे. वह महानगर मुंबई के उपनगर माहीम में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एकलौता बेटा गिरीश था. एकलौता होने की वजह से गिरीश मातापिता का कुछ ज्यादा ही लाडला था. शायद यही वजह थी कि वह जिद्दी और उद्दंड हो गया.

श्रीरंग पोटे ने गिरीश को बुढ़ापे का सहारा मान कर उस की हर इच्छा पूरी की थी. उसे किसी भी चीज का अभाव नहीं होने दिया था. मगर जैसे जैसे गिरीश बड़ा होता गया, उन की आशाएं धूमिल होती गईं, क्योंकि गिरीश वैसा नहीं बन सका, जैसा उन्हें और उन की पत्नी को उम्मीद थी. उस की आदतें बिगड़ती चली गईं और वह अक्खड़ और जिद्दी बन गया. श्रीरंग पोटे के काफी प्रयास के बाद भी वह किसी काबिल नहीं बन सका.

गिरीश दिन भर अपने आवारा दोस्तों के साथ घूमताफिरता और राह चलती लड़कियों को छेड़ता. खर्च के लिए वह मां से लड़झगड़ कर पैसे ले ही लेता था. आवारा दोस्तों के साथ रहते हुए वह शराब भी पीने लगा था. बेटे की इन हरकतों से श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी परेशान रहती थीं. लेकिन अब उन के वश में कुछ भी नहीं था क्योंकि वे बेटे को सुधारने की हर कोशिश कर के हार चुके थे.

श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी बेटे को सुधारने में पूरी तरह नाकाम रहे तो नातेरिश्तेदारों ने उन्हें सलाह दी कि वे उस की शादी कर दें. उन का मानना था कि जब जिम्मेदारियों का बोझ उस पर पड़ेगा तो वह अपनेआप सुधर जाएगा. यही पुराने लोगों का विचार रहा है, जो एक हद तक सही भी है.

शादी के बाद बेटा सुधर जाएगा, इस की उम्मीद श्रीरंग पोटे को कम ही थी. फिर भी बेटे के सुधरने की उम्मीद में वह उस की शादी करने के लिए तैयार हो गए.

श्रीरंग पोटे ने बेटे की शादी के लिए बात करनी शुरू की तो रिश्ते भी आने लगे, क्योंकि गिरीश उन की एकलौती औलाद थी. आजकल लोग वैसे भी छोटा परिवार ढूंढ़ते हैं. मांबाप यही चाहते हैं कि उन की बेटी को ज्यादा काम न करना पड़े.

यही सोच कर गिरीश के लिए रिश्ते तो बहुत आए, मगर जब उन्हें उस के बारे में पता चलता तो वे पीछे हट जाते. इस बात से श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी को तकलीफ तो बहुत होती, लेकिन वे कर ही क्या सकते थे. जब उन्हीं का सिक्का खोटा था तो वे दूसरों को क्या दोष देते.

शायद वे भाग्यशाली लड़कियां थीं, जिन की शादी गिरीश जैसे बिगड़े हुए युवक से होतेहोते रह गई. लेकिन मधुमती उन में नहीं थी. उस का भाग्य खराब था, जिस की वजह से उस की शादी गिरीश से हो गई.

सुंदर सुशील हंसमुख मधुमती भी अपने मातापिता की एकलौती संतान थी. जिस लाड़प्यार से गिरीश की परवरिश हुई थी, उस से कहीं अधिक लाड़प्यार मधुमती को मिला था. वह छोटी थी, तभी उस के पिता की मौत हो गई थी. इस के बाद बाप का भी प्यार उसे उस की मां शकुंतला ने दिया था. बेटी को उन्होंने किसी चीज का आभाव नहीं होने दिया था. उस की हर ख्वाहिश उन्होंने पूरी की थी. वह खुद नौकरी करती थीं, इसलिए बेटी के पालनपोषण में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई थी.

जब पति की मौत हुई थी, शकुंतला जवान थीं. उन से शादी के लिए तमाम रिश्ते आए थे, लेकिन उन्होने शादी नहीं की थी. उन्होंने अपना जीवन बेटी को न्यौछावर कर दिया था.

मधुमती मां शकुंतला से कहीं ज्यादा अपनी नानी अहिल्या की लाडली थी. वह रहती तो फ्रांस में थीं, लेकिन उस का हमेशा खयाल रखती थीं. शकुंतला का जो पैसा खर्च से बचता था. वह उसे मधुमती के नाम से जमा करती थीं.

इस के अलावा एक हजार डालर हर महीने मधुमती की नानी उस के एकाउंट में जमा करती थीं. इस तरह मधुमती के नाम करोड़ों रुपए जमा हो गए थे. इस के अलावा मधुमती अपनी मां शकुंतला के साथ जिस फ्लैट में रहती थी, वह भी मधुमती के ही नाम था.

करोड़पति मधुमति के बारे में पता चलते ही श्रीरंग पोटे के मुंह में पानी आ गया. जब इस रिश्ते के बारे में गिरीश को बताया गया तो उस के भी मन में लड्डू फूटने लगे. उसे लगा कि अगर उस की शादी मधुमती से हो गई तो वह भी करोड़पति हो जाएगा. इस के बाद उस की जिंदगी आराम से कटेगी. इसलिए वह इस रिश्ते को किसी भी सूरत में हाथ से निकलने नहीं देना चाहता था.

मधुमती से शादी के लिए गिरीश एकदम से संन्यासी बन गया. सारी बुराइयों को छोड़ कर वह आटोरिक्शा चलाने लगा. वह दिनभर  में जो कमाता, ईमानदारी से ला कर पिता श्रीरंग पोटे के हाथों में रख देता. वह जब भी मधुमती और उस की मां से मिलता, निहायत ही सादगी से मिलता.

गिरीश में आए इस बदलाव से श्रीरंग पोटे और उन की पत्नी बहुत खुश थे. उन्हें लग रहा था कि उन के घर बहू नहीं, देवी आ रही है, जिस के रिश्ते की बात चलते ही उन का बेटा सीधे रास्ते पर आ गया. उन्हें लगा कि शादी के बाद बहू घर आ जाएगी तो वह पूरी तरह से सुधर जाएगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

मधुमती और गिरीश की शादी हो गई. विवाह के बाद कुछ दिनों तक तो गिरीश ठीक रहा. लेकिन कुछ दिनों बाद वह अपने पुराने रास्ते पर फिर चल पड़ा. बहलाफुसला कर मधुमती से पैसे लेता और शराब तथा शबाब पर लुटा देता.

वह लगभग रोज ही बीयरबारों में जाने लगा. पति की हरकतों से मधुमती रो पड़ती, क्योंकि मां और नानी ने मेहनत की जो कमाई उस के भविष्य के लिए उस के नाम जमा की थी, गिरीश उसे शराब, शबाब और अय्याशी पर उड़ा रहा था.

जब कभी मधुमती और मांबाप गिरीश को समझाने और कामकाज के बारे में कहते, वह बड़े शान से कहता, ‘‘जिस की पत्नी करोड़पति हो, उसे कामधाम करने की क्या जरूरत है. आखिर ये करोड़ों रुपए किस दिन काम आएंगे.’’

समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा. मधुमती एक बेटे की मां बन गई. बेटे के जन्म से मधुमती के मन में उम्मीद जागी कि बच्चे का मुंह देख कर शायद गिरीश सुधर जाए. मगर उस का भी गिरीश पर कोई फर्क नहीं पड़ा. उसे अपने सुख के आगे किसी की कोई चिंता नहीं थी.

अदालत में ऐसे झुकी मूछें – भाग 1

हिसार के जिला एवं सत्र न्यायाधीश डा. पंकज की विशेष अदालत के बाहर 5 दिसंबर, 2018 को जुटी भीड़ को देख कर लग रहा था जैसे वहां  पूरा शहर ही उमड़ पड़ा था. अदालत की काररवाई देखनेसुनने के लिए लोग एकदूसरे से धक्कामुक्की कर रहे थे. इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडियाकर्मियों का भी वहां तांता लगा हुआ था.

अदालत के बाहर कई महिला संगठन और सनातन धर्म जैसी धार्मिक संस्थाओं के लोग भी मौजूद थे. भीड़ को देखते हुए वहां पुलिस का भी पर्याप्त इंतजाम था. हर कोई इस फैसले को सब से पहले सुनना चाहता था. मुजरिम अशोक को पुलिस की गाड़ी जेल से ले कर आ चुकी थी और उसे कड़ी सुरक्षा के बीच अदालत में ले जाया गया था.

वैसे इस केस की तमाम सुनवाई पूरी हो चुकी थी और 29 नवंबर, 2018 को अदालत ने आरोपी अशोक को दोषी करार दे दिया था. आज जज साहब को अपना फैसला सुनाना था. अदालत के बाहर खड़ी लोगों की भीड़ इस फैसले को सुनने के लिए इसलिए अधिक उतावली थी, क्योंकि हत्या के इस केस के दोषी अशोक के पिता हरियाणा पुलिस में दरोगा थे और उन्होंने अपने बेटे को बचाने के लिए वे सब कानूनी हथकंडे अपनाए थे, जो दोषी को सजा से बचाने के लिए सहायक सिद्ध हो सकते थे.

यह एक औनर किलिंग का मामला था. हिसार के गांव आदमपुर सीसवान निवासी रोहतास की शिकायत पर उस की पत्नी किरन की हत्या का यह मुकदमा किरन के भाई अशोक पर चलाया गया था. इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार से थी—

दरोगा की बेटी को हुआ प्यार

हरियाणा के जिला हिसार के गांव जुगलान में सुरेश सिंह का परिवार रहता था. सुरेश हरियाणा पुलिस में सबइंसपेक्टर थे और जिला रोहतक में तैनात थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा बेटा था अशोक, जो उन दिनों हिसार में कोचिंग कर रहा था और एक बेटी थी किरन. किरन भी उन दिनों आईटीआई कर रही थी.

सुरेश के पास लगभग 8 एकड़ खेती की जमीन थी, जो उन्होंने ठेके पर बुआई के लिए किसी को दे रखी थी. क्योंकि दोनों बच्चे पढ़ाई में लगे थे और वह खुद अपनी पुलिस की नौकरी में व्यस्त थे. ऐसे में जमीन की देखभाल करने वाला कोई नहीं था.

किरन और रोहतास की मुलाकात सन 2012 में हुई थी. किरन आईटीआई के लिए बस से रोज आदमपुर जाया करती थी. आदमपुर सीसवान निवासी रोहतास पेशे से ड्राइवर था और उन दिनों आदमपुर-हिसार मार्ग पर बस चलाया करता था. किरन अकसर उस की बस में ही आयाजाया करती थी.

इसी दौरान दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए और दोनों के दिलों के बीच प्यार के अंकुर फूटे थे. दोनों की आपस में बातें होने लगी थीं. आपसी विचार मिलने के कारण उन्हें एकदूजे से प्यार हो गया था और जल्दी ही दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा था.

नौबत यहां तक पहुंच गई कि उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया. पर समस्या यह थी कि दोनों अलगअलग बिरादरी के थे. रोहतास सैनी था और किरन जाट परिवार से थी. ऐसे में शादी के बारे में सोचना तक उन दोनों के लिए किसी अपराध से कम नहीं था. पर वे शादी करने की ठान चुके थे.

काफी सोचविचार के बाद दोनों ने तय किया कि अपनेअपने परिवारों को बताए बिना वे गुपचुप तरीके से शादी कर लेंगे. फिर 8 अगस्त, 2015 को रोहतास और किरन ने सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट, हिसार की सहायता से शादी कर ली.

किरन ने कर ली प्रेमी रोहतास से शादी

अपने परिवार वालों की आदत देखते हुए किरन ने शादी के समय ही सनातन धर्म मंदिर के शादी वाले रजिस्टर में अपने हस्ताक्षर करते समय यह भी लिख दिया था, ‘शादी के बाद मैं अपने मातापिता के घर जाऊंगी. अगर लगातार 5-7 दिनों तक मेरा मेरे पति के साथ संपर्क न हो पाए तो यह समझा जाए कि मेरी जान को खतरा है. मेरे घर वाले मेरी हत्या भी कर सकते हैं. मुझे वहां से निकाल लिया जाए. इस में मेरे पति का कोई दोष नहीं होगा.’

मंदिर में शादी करने के बाद उन्होंने अपनी शादी कोर्ट से भी रजिस्टर्ड करवा ली. फिर वह दोनों अपने अपने घर चले गए. दरअसल किरन की मां को कैंसर था. वह कोई सदमा बरदाश्त करने की स्थिति में नहीं थीं.

ऐसे में उन्हें गैरजाति के युवक के साथ शादी करने वाली बात बताना तो कतई उचित नहीं था, इसलिए दोनों ने मिल कर यह योजना बनाई थी कि इस शादी को तब तक गुप्त रखा जाएगा, जब तक किरन के मातापिता इस बात को ले कर राजी नहीं हो जाते.

योजना यह भी थी कि किरन इस बीच मां के स्वस्थ होने पर अपने मातापिता को पूरी बात बता कर इस शादी के लिए तैयार कर लेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका था. पतिपत्नी होते हुए भी लगभग 18 महीने तक किरन और रोहतास एकदूसरे से अलग अपनेअपने घरों में रहे.

उन दोनों के बीच केवल फोन पर ही रोज बातें हुआ करती थीं. वे दोनों इसी बात से ही खुश और संतुष्ट थे. इस बीच किरन आदमपुर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आगामी पढ़ाई के लिए जयपुर चली गई थी.

रोहतास ने भी वह बस छोड़ कर गुड़गांव में कैब चलानी शुरू कर दी. सब कुछ ठीक चल रहा था पर एक दिन किरन की मां को उस पर शक हो गया. किरन घंटों तक फोन पर रोहतास से बातें किया करती थी. यह बात उस ने अपने बेटे अशोक को बताते हुए कहा था कि न जाने किरन घंटों तक फोन पर किस से बातें करती है.

ऐसी बेटी किसी की न हो – भाग 1

8 मार्च, 2019 की रात के करीब साढ़े 8 बजे का वक्त था. बाहरी दिल्ली के निहाल विहार थाने के 2 सिपाही  मोटरसाइकिल पर गश्त करते हुए सैय्यद नांगलोई के पास बहने वाले नाले के किनारे बनी सड़क से गुजर रहे थे. तभी एक राहगीर दौड़ते हुए आ कर उन की बाइक के सामने खड़ा हो गया. मजबूरी में पुलिस वालों को मोटरसाइकिल रोकनी पड़ी.

बाइक पर पीछे बैठा सिपाही झुंझलाते हुए नीचे उतरा और उस राहगीर को झिड़कते हुए बोला,  ‘‘ओ भाई, क्या इरादा है मरना चाहता है क्या, जो इस तरह भाग कर बाइक के सामने आ गया.’’

‘‘नहीं सर, न तो मैं मरना चाहता हूं और न ही ऐसा कोई इरादा है. बस आप को एक सूचना देनी थी इसलिए आप लोगों को देख कर दौड़ता चला आया.’’ राहगीर ने अपनी उखड़ी सांस को नियंत्रित करते हुए सफाई दी.

राहगीर की बात सुन कर सिपाही का गुस्सा शांत हो गया. उस ने जिज्ञासा दिखाते हुए राहगीर से पूछा, ‘‘सूचना…कैसी सूचना… क्या हुआ?’’

‘‘सर, उस नाले में एक बड़ा सा सूटकेस पड़ा है. ऐसा लगता है कि उस में कोई संदिग्ध चीज है.’’ राहगीर ने कहा.

उस की बात सुन कर दोनों सिपाही बाइक को वहीं खड़ी कर के राहगीर के साथ उस जगह पहुंचे, जहां नाले में सूटकेस तैर रहा था.

दोनों सिपाहियों ने देखा, एक लाल रंग का सूटकेस नाले के दूसरे किनारे पर तैर रहा था. लेकिन वह इलाका उन के थाना क्षेत्र में नहीं आता था. वह थाना पश्चिम विहार (वेस्ट) के क्षेत्र में था, इसलिए कांस्टेबल ने उसी समय फोन कर के पश्चिम विहार (वेस्ट) थाने को सूचना दे दी.

सूचना चूंकि पुलिस की तरफ से मिली थी, इसलिए खबर मिलते ही एसएचओ मुकेश कुमार, इंसपेक्टर (एटीओ) मनोज भाटिया के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सूटकेस को नाले से बाहर निकाल कर खुलवाया तो उस में एक महिला का सड़ा गला शव मिला. उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के अलावा अपने उच्चाधिकारियों को भी लाश मिलने की सूचना दे दी.

कुछ ही देर में क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम वहां पहुंच गई. टीम ने लाश को सूटकेस से बाहर निकलवा कर जांच शुरू कर दी. वह शव किसी अधेड़ उम्र की महिला का था, जिस का मुंह काफी सूजा हुआ था. ऐसा लग रहा था जैसे उस शव को वहां पड़े कई दिन गुजर चुके हों, क्योंकि शव पानी में पड़े रहने के कारण काफी सड़ चुका था.

महिला के शव पर औरेंज कलर का कुरता व ब्राउन रंग की सलवार थी. वह जुराब पहने हुए थी, मगर पांव में चप्पल नहीं थीं. उस की बाजू में हरे रंग के कपड़े में एक ताबीज बंधा था और गले में रुद्राक्ष की माला थी. उसी दौरान एडीशनल डीसीपी राजेंद्र सागर और एसीपी विनय माथुर भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का मुआयना किया.

जिस तरह से अधेड़ महिला का शव मिला था, उसे देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि महिला की हत्या कहीं और की गई होगी और बाद में उस के शव को यहां ला कर डाला गया होगा.

फिलहाल सब से बड़ी चुनौती यह थी कि महिला की पहचान कैसे हो. क्योंकि वहां ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से महिला की शिनाख्त हो सके. पश्चिम विहार (वेस्ट) थाने के अधिकारियों ने अपने स्टाफ को आसपास की कालोनियों में भेज कर वहां रहने वाले कुछ लोगों को बुलाया ताकि महिला के शव की पहचान हो सके. लेकिन इस पूरी कवायद में कोई सफलता नहीं मिली. लिहाजा पुलिस ने शव के फोटोग्राफ्स खिंचवा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए संजय गांधी अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिया.

पश्चिम विहार (वेस्ट) थाने लौट कर एसएचओ मुकेश कुमार ने अज्ञात के खिलाफ भादंसं की धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच का जिम्मा इंसपेक्टर मनोज भाटिया को सौंप दिया.

मनोज भाटिया ने मुकदमे की जांच मिलने के बाद उसी रात सब से पहले यह पता लगाने का काम शुरू कर दिया कि आखिर मृतका है कौन. उन्हें शक था कि अगर उस महिला का शव यहां पड़ा है तो हो सकता है कि उस के परिवार वालों ने उस की गुमशुदगी दर्ज करवाई हो. लिहाजा उन्होंने अपने स्टाफ के साथ जिपनेट नेटवर्क को खंगालना शुरू कर दिया. दरअसल, इस नेटवर्क पर दिल्ली ही नहीं, दूसरे राज्यों में मिली लावारिस लाशों और गुमशुदा लोगों की जानकारी दर्ज रहती है.

करीब 3 घंटे की कवायद के बाद इंसपेक्टर मनोज भाटिया को गुमशुदगी के एक ऐसे मामले की रिपोर्ट मिल गई, जिस में दर्ज हुई महिला की तसवीर उस महिला की लाश से काफी हद तक मिलती थी. लापता महिला का नाम जागीर कौर (47) था. गुमशुदगी की ये सूचना निहाल विहार थाने में लिखी गई थी.

जागीर कौर निहाल विहार थाने के दीपक विहार, निलोठी एक्सटेंशन के मकान नंबर 22 में रहती थी. सूचना जागीर कौर की बेटी हरजिंदर कौर ने दर्ज कराई थी. इस रिपोर्ट से यह भी पता चला कि जागीर कौर के पति गुरमीत सिंह (52) भी लापता हैं.

रहस्य खुलने लगा

इंसपेक्टर मनोज भाटिया ने निहाल विहार थाने में फोन कर के जागीर कौर व गुरमीत सिंह की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कराने वाली हरजिंदर कौर का फोन नंबर हासिल कर लिया. मनोज भाटिया ने रात में ही हरजिंदर कौर को फोन कर के सैय्यद नांगलोई के नाले से अधेड़ महिला की लाश बरामद करने की जानकारी दी. उन्होंने शव की पहचान करने के लिए हरजिंदर कौर से संजय गांधी अस्पताल पहुंचने को कहा.

अगले एक घंटे के भीतर हरजिंदर कौर संजय गांधी अस्पताल पहुंच गई. तब तक इंसपेक्टर मनोज भाटिया भी वहां पहुंच गए. उन्होंने जब हरजिंदर कौर को महिला का शव दिखाया तो उस ने देखते ही शव की पहचान अपनी मां जागीर कौर के रूप में कर दी.

शव की पहचान होते ही मनोज भाटिया ने राहत की सांस ली. अब उन्हें लगने लगा कि हत्या की गुत्थी जल्द ही सुलझ जाएगी. उसी वक्त हरजिंदर कौर ने कहा कि अगर उस की मां का शव नाले में मिला है तो उस के पिता का शव भी वहां आसपास ही मिलना चाहिए क्योंकि उसे पूरा शक है कि उन की भी हत्या हो चुकी होगी.

इस के बाद इंसपेक्टर मनोज भाटिया ने थाने की एक और टीम को तत्काल सैय्यद नांगलोई नाले की तरफ रवाना किया और खुद भी हरजिंदर कौर को ले कर उसी तरफ रवाना हो गए.

पुलिस टीम ने रात में ही नाले के उसी एरिया में सर्च औपरेशन शुरू किया, जिस का परिणाम ये निकला कि 2 घंटे बाद नाले में रैक्सीन का एक और काला सूटकेस बरामद हुआ. उस सूटकेस को खुलवाया तो उस में भी एक शव बरामद हुआ. ये शव एक सिख का था और बुरी तरह सड़ चुका था.

लेकिन उस के शरीर पर लिबास व पहनावे को देख कर हरजिंदर कौर ने पहचान लिया. यह शव उस के पिता गुरमीत सिंह का ही था. नाले से एक और शव की सूचना मिलने के बाद तमाम बड़े अधिकारी एक बार फिर घटनास्थल पर पहुंचे और फोरैंसिक, क्राइम टीम को फिर से मौके पर बुलाया गया.

शव की शिनाख्त, जांचपड़ताल के बाद गुरमीत सिंह के शव को भी पोस्टमार्टम के लिए संजय गांधी अस्पताल भेज दिया गया. तब तक 9 मार्च की सुबह के भोर का उजाला हो गया था. दूसरा शव मिलने के बाद पुलिस ने हत्या का एक और मुकदमा दर्ज कर लिया. इस की जांच का जिम्मा थाने की महिला इंसपेक्टर इनवैस्टीगेशन डोमिका पूर्ति को सौंपा गया.

हरजिंदर कौर ने इस शव की शिनाख्त अपने पिता गुरमीत सिंह के रूप में की, इसलिए जब इंसपेक्टर डोमिका पूर्ति ने हरजिंदर कौर से पूछताछ की तो उस ने साफ आरोप लगाया कि उस के मातापिता की हत्या उस की बड़ी बहन दविंदर कौर उर्फ सोनिया ने अपने प्रेमी राजकुमार दीक्षित उर्फ विक्रम उर्फ प्रिंस दीक्षित के साथ मिल कर की होगी. उस ने यह भी बताया कि उस की बहन सोनिया और प्रिंस के बीच पिछले एक साल से लिवइन रिलेशन चले आ रहे हैं.

पूछताछ में हरजिंदर कौर ने यह भी बताया कि सोनिया मातापिता के साथ ही रहती थी. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस की एक टीम तत्काल उस ठिकाने पर रवाना कर दी गई, जहां सोनिया रहती थी. मगर वहां ताला लटका मिला. साफ हो गया कि इस वारदात को सोनिया ने ही अंजाम दिया है, क्योंकि वह लापता थी.

पैसा बना जान का दुश्मन – भाग 1

नितिन चाय पी कर कप रखने जा रहा था कि उस के मामा के बेटे गिरीश का फोन आ गया. उस ने कप मेज पर रख कर फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से गिरीश ने कहा, ‘‘मैं अपनी इमारत के नीचे खड़ा हूं. बहुत जरूरी काम है. तुम जल्दी से आ जाओ.’’

आने वाली आवाज से गिरीश काफी परेशान लग रहा था, इसलिए नितिन ने पूछा, ‘‘क्या बात है भाई, तुम कुछ परेशान से लग रहे हो?’’

‘‘तुम आ कर मिलो तो… आने पर ही बता पाऊंगा कि परेशानी क्या है?’’ गिरीश ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं 10 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’

‘‘भाई, जल्दी आ,’’ कह कर गिरीश ने फोन काट दिया.

नितिन कुछ देर तक खड़ा सोचता रहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि गिरीश इतना परेशान क्यों था? उसे जल्दी से जल्दी आने को कहा था. इस के पहले उस ने न कभी इस तरह बात की थी और न इस तरह बुलाया था. इसलिए जल्दी से तैयार हो कर नितिन नीचे आया और आटो पकड़ कर अपने ममेरे भाई गिरीश के घर की ओर रवाना हो गया. गिरीश सचमुच इमारत के नीचे खड़ा उस का इंतजार कर रहा था. नितिन के पहुंचते ही वह पास आया और उसी आटो से उस के साथ भायंदर मौल की ओर चल पड़ा.

मौल से गिरीश ने तेज धार वाले 2 बड़ेबड़े चाकू, प्लास्टिक के बड़ेबड़े 2 बैग, एक बड़ी बोतल फिनाइल, टेप और पैकिंग का सामान खरीदा तो नितिन परेशान हो उठा. उस से रहा नहीं गया तो उस ने पूछा, ‘‘इन सब चीजों की तुम्हें क्या जरूरत पड़ गई?’’

‘‘आज मारपीट करते समय मधुमती की मौत हो गई है. उसी की लाश को ठिकाने लगाना है,’’ गिरीश ने कहा, ‘‘इस काम में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए.’’

गिरीश पोटे ने लाश ठिकाने लगाने में मदद मांगी तो नितिन के होश उड़ गए. क्योंकि उसे पता था कि मामला निश्चित पुलिस तक पहुंचेगा, तब पकड़े जाने पर उसे भी जेल जाना पड़ेगा. लेकिन उसे गिरीश की बात पर विश्वास भी नहीं हो रहा था, क्योंकि गिरीश जब भी नशे में होता था, अकसर इसी तरह की ऊटपटांग बातें करता रहता था.

इस के बावजूद गिरीश ने जो सामान मौल से खरीदा था, उसे देख कर नितिन को उस की नीयत ठीक नहीं लगी. वह जिस काम में मदद मांग रहा था, वह नितिन के वश का नहीं था. इसलिए मौल में भीड़ का फायदा उठा कर वह भाग निकला.

बाहर आ कर उस ने मधुमती को फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो सकी. उस ने न जाने कितनी बार मधुमती का नंबर मिला डाला. जब मधुमती का फोन स्विच औफ ही बताता रहा तो वह घबरा गया.

काफी प्रयास के बाद भी मधुमती से संपर्क नहीं हो सका तो नितिन ने गिरीश के पिता यानी अपने मामा श्रीरंग पोटे को फोन किया. उन्हें पूरी बात बता कर जब उस ने अपनी आशंका बताई तो श्रीरंग पोटे की हालत खराब हो गई. उन का बेटा गिरीश ऐसा भी कुछ कर सकता है, इस बात की उन्हें जरा भी आशंका नहीं थी.

लेकिन नितिन ने जो बताया था, उसे भी एकदम से नकारा नहीं जा सकता था. वह तुरंत भायंदर के लिए निकल पड़े. भायंदर पहुंचने में उन्हें आधा घंटा लगा. वह गिरीश के फ्लैट पर पहुंचे तो फ्लैट अंदर से बंद था. बारबार डोरबेल बजाने और दरवाजा खटखटाने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो उन का कलेजा मुंह को आ गया. वह अपना सिर थाम कर बैठ गए.

श्रीरंग को नितिन की आशंका सच नजर आने लगी. उन का मन किसी अनहोनी से कांप उठा. इस की वजह यह थी कि उन दिनों गिरीश और मधुमती का रिश्ता काफी नाजुक मोड़ से गुजर रहा था. दोनों के बीच इतना अधिक तनाव था कि अकसर लड़ाईझगड़े होते रहते थे. कभीकभी नौबत मारपीट तक पहुंच जाती थी. ऐसे में नितिन ने जो बताया था, वैसा होना असंभव नहीं था.

लाख प्रयास के बाद भी जब फ्लैट का दरवाजा नहीं खुला तो श्रीरंग पोटे नितिन को साथ ले कर मुंबई से सटे जनपद थाना के उपनगर भायंदर के थाना नवाघर जा पहुंचे. उस समय ड्यूटी पर असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर थे. उन्होंने श्रीरंग पोटे और नितिन को बैठा कर आने की वजह पूछी तो श्रीरंग पोटे और नितिन ने उन के सामने अपनी आशंका व्यक्त कर दी.

किसी की जिंदगी का सवाल था, इसलिए असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर ने दोनों की आशंका को गंभीरता से लिया और सच्चाई का पता लगाने के लिए तत्काल हेडकांस्टेबल मोहन परकाले, आनंद मिक्कारे को ले कर गिरीश के फ्लैट पर जा पहुंचे. फ्लैट अभी भी उसी तरह बंद था.

पुलिस ने भी फ्लैट को खुलवाने की कोशिश की. लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो आसपड़ोस के कुछ लोगों को बुला कर फ्लैट का दरवाजा तोड़ दिया गया. दरवाजा खुला तो श्रीरंग पोटे और नितिन ने जो आशंका व्यक्त की थी, वह सच निकली. फ्लैट के अंदर की स्थिति देख कर सभी स्तब्ध रह गए. ममला गंभीर था, इसलिए असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर ने इस की सूचना तुरंत सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले और पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद ही सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्हीं के साथ थाना जनपद के ज्वाइंट सीपी अनिल कुंभारे और एसीपी संग्राम सिंह भी पहुंच गए थे. फ्लैट के अंदर का मंजर बड़ा ही भयानक था. कमरे में रखी वाशिंग मशीन के ऊपर खून से सने वे दोनों चाकू रखे थे, जिन्हें गिरीश ने नितिन के समने भयंदर मौल से खरीदे थे.

गिरीश पोटे ने उन्हीं चाकुओं से अपनी पत्नी मधुमती के शरीर के कई टुकड़े किए थे. उन से बदबू न आए, इसलिए उन्हें उठा कर फ्रिज में रख दिया था. कुछ टुकड़ों को उस ने पार्सल की तररह पैक कर के बेडरूम में पड़े पलंग के नीचे छिपा दिया था. कमरे के फर्श को फिनाइल डाल कर साफ करने की कोशिश की गई थी.

एक ओर जहां पुलिस अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण और मधुमती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले के निर्देश पर असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश शिवरकर हेडकांस्टेबल मोहन परकाले और आनंद मिल्लारे के साथ गिरीश पोटे की गिरफ्तारी की कोशिश में लग गए थे.

इस के लिए वह गिरीश की बुआ के बेटे नितिन की मदद ले रहे थे. नितिन की ही मदद से असिस्टैंट इंसपेक्टर सतीश सिवरकर ने गिरीश को रात 11 बजे भायंदर के शेवारे पार्क से गिरफ्तार कर लिया. यह 3 दिसंबर, 2013 की बात थी.

गिरीश के थाने पहुंचने तक सीनियर इंसपेक्टर दिनकर पिंगले मधुमती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए थे. अब तक रात के लगभग 12 बज चुके थे. इसलिए पुलिस ने गिरीश से पूछताछ  करने के बजाय लौकअप में बंद कर दिया. अगले दिन उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के पूछताछ एवं सुबूत जुटाने के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.