जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 2

फार्महाउस के अहाते पर कांटेदार तार लगा हुआ था. अंदर दो मंजिला खूबसूरत मकान बना था जो बाहर से ही दिख रहा था. मैं बेहिचक गेट खोल कर अंदर दाखिल हो गया. अंदर एक कोने में हैंडपंप लगा था. मैं ने बेताब हो कर पानी निकाला और मुंह हाथ धो कर जीभर के पानी पिया. फिर वहीं रखी एक बाल्टी भर कर घोड़े के आगे रख दी.

फार्महाउस में मक्की की फसल लगी थी. हैंडपंप के पास ही भुट्टे के छिलके और पौधों के तने पड़े थे. मैं ने घोड़े को उस ढेर के पास खड़ा कर दिया ताकि वह पेट भर सके. मैं खुद भी भुट्टा तोड़ कर खाने लगा ताकि कुछ सुकून मिले.

अभी मैं भुट्टा खा ही रहा था कि घोड़े के हिनहिनाने की आवाज सुन मैं ने मुड़ कर देखा. एक हट्टाकट्टा मजबूत जिस्म का व्यक्ति मेरे ऊपर बंदूक ताने खड़ा था मुझे लगा जैसे अभी गोली चलेगी और मेरा काम तमाम हो जाएगा. वह मुझे घूरते हुए बोला, ‘‘कौन हो तुम? बिना इजाजत अंदर कैसे आ गए?’’

मैं ने उसे गौर से देखा, तांबे सा चमकता रंग, भूरे घुंघराले बाल, जो गर्दन तक लटके हुए थे. उस के चेहरे और जिस्म से ऐसी मर्दाना खूबसूरती नुमाया हो रही थी जो औरतों के लिए खास कशिश रखती है.

मैं ने नरम लहजे में कहा, ‘‘मैं बहुत प्यासा था, पानी की तलाश में यहां आ गया. मैं किसी गलत मकसद से यहां नहीं आया हूं.’’

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, शमशेर.’’

उस ने मुझे घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम कहां से आ रहे हो? जाना कहां है?’’

मैं ने अपने शहर का गलत नाम बता कर कहा, ‘‘मैं काम की तलाश में निकला हूं. अगर आप को मेरा आना नागवार लगा है तो मैं तुरंत वापस चला जाता हूं. आसपास कोई आश्रय ढूंढ़ लूंगा.’’ लेकिन मेरी बात से वह संतुष्ट नहीं हुआ और डपट कर बोला, ‘‘तुम्हारे पास कोई हथियार हो तो चुपचप निकाल कर दे दो.’’

मजबूरी थी, मैं ने अपना कट्टा और चाकू उसे दे दिया. इस के बाद उस के तेवर कुछ नरम पड़े. उस ने बंदूक से इशारा करते हुए कहा, ‘‘अपने घोड़े को इस पेड़ से बांध दो ताकि फसल में न घुसे और अंदर चलो.’’

मैं ने घोड़ा बांधा और उस के साथ मकान के अंदर दाखिल हो गया. मकान अंदर से बहुत अच्छा था, खूबसूरत फर्नीचर से सजा हुआ. पर इस से भी खूबसूरत वह औरत थी जो वहां मौजूद थी. उस ने खुला ढीला सा सुर्ख गाउन पहन रखा था. गुलाबी बेदाग रंगत, चमकती नीली आंखें, सुडौल जिस्म, उस की नीली आंखें बड़ी सर्द सी लगी. औरत और उस व्यक्ति का हुलिया यह बताने के लिए काफी था कि कुछ देर पहले दोनों अंदर किस तरह की स्थिति में रहे होंगे.

औरत ने उस व्यक्ति की तरफ देख कर कहा, ‘‘इसे अंदर लाने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘जरूरत थी जानेमन.’’ उस ने मुसकुरा कर कहा और औरत का हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में चला गया. घर की सजावट और रहनसहन से लग रहा था कि वे काफी अमीर लोग हैं.

वह व्यक्ति मेरे हथियार अंदर रख कर बाहर आया तो उस के चेहरे पर मुसकुराहट और संतोष के भाव थे. अब उस का अंदाज ही बदला हुआ था. उस ने नरम लहजे में मुझ से कहा, ‘‘माफ करना शमशेर, हम लोग चूंकि वीराने में रहते हैं इसलिए जल्दी से किसी पर एतबार नहीं करते. कस्बा अजीरा भी यहां से थोड़ी दूरी पर है.’’

उस की बात सुन कर मैं ने इत्मीनान की सांस लेते हुए कहा, ‘‘यानि अब आप को यकीन आ गया कि मैं जरूरतमंद हूं.’’

वह कुछ नहीं बोला तो मैं ने कहा, ‘‘खैर, आप का शुक्रिया. अब अगर आप मेरे हथियार मुझे लौटा दें तो मैं जाना चाहूंगा.’’

‘‘इतनी जल्दी भी क्या है? बैठो अभी.’’

इस बीच वह औरत भी ढंग के कपडे़ पहन कर आ गई थी. नीले रंग के सलवार कुर्ते में वह गजब ढा रही थी. इस से ज्यादा हसीन औरत मैं ने पहले कभी नहीं देखी थी. मैं भले ही सब तरह के गुनाहों में डूबा था, पर औरत से दूर रहा था. पर उस औरत को देख कर मेरा दिल अजब से अंदाज में धड़कने लगा था.

औरत ने मुसकुरा कर कहा, ‘‘खाने का वक्त है, मेरे हाथ का खाना तुम्हें पसंद आएगा.’’

मैं भूख से बेहाल था. मैं ने मुसकरा कर उस की पेशकश कुबूल कर ली.’’ वह व्यक्ति बोला. ‘‘मेरा नाम आहन है. ये मेरी बीवी तूबा है.’’

मैं ने खुशदिली से कहा, ‘‘इतना खूबसूरत जोड़ा मैं ने पहली बार देखा है. आप जैसे लोगों की मेहमाननवाजी मेरी खुशनसीबी है.’’

तारीफ सुन कर तूबा के गाल सुर्ख हो गए. वह खाना लगाने अंदर चली गई. इस बीच आहन शराब के 2 पेग बना लाया. शराब बड़ी जायकेदार थी, जल्द ही हम दोनों अच्छे दोस्तों की तररह पीते पीते बातें करने लगे. उस ने बताया कि वह फार्म में मक्की, गेहूं और सब्जियां उगाता है. मैं ने उस से बच्चों के बारे में पूछा तो वह कहकहा लाते हुए बोला, ‘‘फिलहाल हम दोनों अकेले हैं और जिंदगी का आनंद ले रहे हैं. बच्चे तो हो ही जाएंगे, पर ये हसीन पल फिर कहां आएंगे.’’

खाना बेहद मजेदार था, मटन टिक्के बड़े लजीज लगे. मैं ने जी भर खाया. खानेपीने के बाद मैं ने उस से करीबी शहर के बारे में पूछा.

‘‘फाटक के सामने की सड़क पर बाईं तरफ सीधे चले जाओ. रात तक तुम बहादुरगढ़ पहुंच जाओगे. वह एक बड़ा शहर है, वहां काम मिल जाएगा.’’ उस ने मुझे रास्ता बताया.

मैं ने उस से अपने हथियार मांग लिए जिन्हें देने में उस ने कोई आनाकानी नहीं की. मैं ने हथियार और पानी साथ रख लिया. घोड़ा भी खापी कर ताजादम हो चुका था. मैं ने अपना घोड़ा उस के बताए रास्ते पर डाल दिया. सूरज की तपिश कम हो चुकी थी. मैं दोढाई घंटे का सफर तय कर चुका था. अचानक मेरे पेट में तेज दर्द उठा. ऐसा लगा जैसे आंतें फटी जा रही हों. निस्संदेह वह जानलेवा दर्द था. तभी एकाएक मुझे उबकाई के साथ उलटी हो गई. सारा खायापीया बाहर आ गया.

उल्टी में खून देख कर मैं डर गया. उल्टी के बाद थोड़ा आराम जरूर मिला पर कमजोरी कुछ ज्यादा ही लग रही थी, सिर चकरा रहा था. घोड़े पर बैठे रहना मुश्किल हो रहा था. दोनों हाथों से घोड़े की गरदन पकड़ कर मैं उस पर गिर सा गया. मेरा वफादार घोड़ा खुद ब खुद आगे बढ़ता रहा. पता नहीं मैं कब होशो हवास से बेगाना हो गया.

‘‘ऐ, होश में आओ.’’ किसी ने मेरे गाल पर थपकी मार कर कहा तो धीरेधीरे मेरी आंखें खुल गईं. मुझे अपने आसपास रोशनी सी महसूस हुई. कुछ देर में मुझे होश आ गया. उस वक्त मैं एक बग्घी में था जिस की छत पर रेशम का कपड़ा मढ़ा हुआ था. जो चेहरा मेरे सामने आया वह किसी अधेड़ उम्र के आदमी का था. हल्की खिचड़ी दाढ़ी, गोरा रंग, नरम चेहरा, सोने के फ्रेम का चश्मा. उस आदमी ने मुझ से बड़े प्यार से पूछा, ‘‘अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’’

‘‘कमजोरी कुछ ज्यादा ही लग रही है. मैं कहां हूं?’’

उस ने जवाब में कहा, ‘‘मैं डा. जव्वाद हूं. तुम्हें किसी ने जहर दिया था. शुक्र है कि मैं वक्त पर पहुंच गया और तुम बच गए. मैं ने ही तुम्हारा इलाज किया है. गनीमत रही कि तुम्हें उल्टी हो गई थी जिस से जहर का असर कम हो गया था और मेरी दवा की खुराक कारगर साबित हुई. बच गए जनाब तुम.’’

मैं ने हैरानी से पूछा, ‘‘मुझे जहर दिया गया था?’’

‘‘हां, तुम्हारे पेट में जहर था. एक जंगली जहरीली बूटी है जिस का पाउडर जहर का काम करता है. उस का कोई खास स्वाद या गंध नहीं होती. पानी में डालो तो हलका बादामी रंग झलकता है, शराब या किसी शरबत में तो पता भी नहीं चलता. खासियत यह है कि इस जड़ी को खाने के 2 ढाई घंटे बाद असर होता है.’’

मेरा दिमाग आहन द्वारा खाने के समय दी गई शराब की तरफ चला गया. शराब तो हम तीनों ने पी थी पर शायद उस ने मेरे गिलास में जहरीला पाउडर मिला दिया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि मुझे जहर दिया गया है?’’

‘‘ये तुम्हारी खुशनसीबी थी. ये जहरीली बूटी इसी इलाके में ही पाई जाती है और मैं इस के इलाज का एक्सपर्ट हूं. तुम्हारी कमीज पर जो उल्टी गिरी थी उस में खून भी था. उसे देख कर मुझे पता चल गया कि तुम्हें जहर दिया गया है. इसलिए मैं ने फौरन इलाज शुरू कर दिया था.’’

मैं सोचने लगा कि सचमुच यह इत्तेफाक ही है कि इस वीराने में ये रहमदिल डाक्टर मिल गया और उस के इलाज से मेरी जान बच गई. वरना मौत यकीनी थी. डाक्टर ने मुझे सोच में पड़ा देख पूछा, ‘‘तुम जा कहां रहे थे?’’

‘‘बहादुरगढ़.’’

‘‘पर तुम तो बहादुरगढ़ की उल्टी दिशा में सफर कर रहे थे?’’

‘‘या तो मेरा घोड़ा गलत दिशा में निकल आया होगा या फिर बताने वाले ने गलत दिशा बताई होगी.’’

मुझे अपने घोड़े की याद आई तो मैं ने पूछा, ‘‘मेरा घोड़ा कहां है?’’

‘‘वह देखो पीछे बंधा है.’’ उस ने इशारा कर के कहा, ‘‘दाना खा रहा है.’’ अपने घोड़े को देख मुझे बड़ी तसल्ली मिली.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 1

मेरा नाम शमशेर है. जो बात मैं बताने जा रहा हूं वह 35-40 साल पुरानी है. मेरा बाप तांगा चलाता था. इस काम में हमारी अच्छे से गुजरबसर  हो जाती थी. जब मैं 11-12 साल का था, मेरा बाप एक एक्सीडेंट में चल बसा. मां ने तांगा घोड़ा किराए पर चलाने को दे दिया. वह बड़ी मेहनती औरत थी और घर में बैठ कर सिलाई का काम करती थी. इस तरह हमारी जिंदगी की गाड़ी चलने लगी.

मां मुझे पढ़ाना चाहती थी. पर मेरा पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था. वैसे मुझे अंगरेजी जरूर अच्छी लगती थी. अंगरेजी को मैं बड़े ध्यान से पढ़ता और सीखता था. इसी वजह से 9वीं क्लास में मैं अंगरेजी के अलावा सारे विषयों में फेल हो गया.

फेल होने के बाद स्कूल से मेरा मन एकदम उचाट हो गया था. मैं ने पढ़ाई छोड़ दी. उन्हीं दिनों मेरी दोस्ती गलत किस्म के कुछ युवकों से हो गई. दोस्तों के साथ रह कर मुझे कई तरह के ऐब लग गए. सिगरेट पीना, ताश खेलना, होटलों में जाना मेरी आदतों में शामिल हो गया. इस के लिए पैसे की जरूरत होती थी. पैसे के लिए मैं दोस्तों के साथ मिल कर हाथ की सफाई भी करने लगा.

इस में कोई दो राय नहीं कि बुराई शैतान की आंत की तरह होती है. एक बार शुरू हो जाए तो रुकना आसान नहीं होता. मां ने मुझे फिर से स्कूल भेजने की बहुत कोशिश की पर गुनाह की आदत ने मुझे पीछे नहीं लौटने दिया.

धीरेधीरे मैं जुए में माहिर हो गया. मेरे पास पैसे की रेलपेल होने लगी. ताश के पत्ते मेरे हाथ में आते ही जैसे मेरे गुलाम हो जाते थे. मेरी चालाकी ने मुझे जीतने का हुनर सिखा दिया था. जीतने की कूवत ने मेरी मांग भी बढ़ा दी और शोहरत भी. अब बाहर की पार्टियां भी मुझे बुला कर जुआ खिलवाने लगीं. इस काम में मुझे अच्छाखासा पैसा मिल जाता था. जिंदगी ऐश से गुजर रही थी.

देखतेदेखते मैं 23 साल का गबरू जवान बन गया. मेरी मां से मेरी बरबादी बरदाश्त न हुई और एक दिन वह सारे दुखों से निजात पा गई. मां की मौत के बाद मुझे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था. जुए की महारत ने जहां कई दोस्त बनाए वहीं बहुत से दुश्मन भी बन गए. दोस्त तो पैसे के यार होते हैं. मैं ने ऐसे ही दोस्तों के साथ छोटा सा एक गिरोह बना लिया ताकि दुश्मनों से निपटा जा सके. हम लोग अपने पास चाकू कट्टे भी रखने लगे.

एक दिन मैं जुआखाने में एक बड़े गिरोह के सूरमा के साथ जुआ खेल रहा था. शुरू में वह जीतता रहा फिर अचानक बाजी पलट गई. मैं लगातार जीतने लगा,  नोटों का ढेर बढ़ता गया. यह देख उस के साथी गाली गलोच पर उतर आए. गुस्से में मैं ने खेल रोक कर जैसे ही नोट समेटने चाहे उन लोगों के हाथों में चाकू और पिस्तौल चमकने लगे. मेरे साथियों ने भी हथियार निकाल लिए. गोलियों चलने लगीं.

उसी दौरान एक गोली मेरे बाजू से रगड़ती हुई निकल गई. इस से मुझ पर जुनून सा तारी हो गया. हम 4 लोग थे और वो 7-8. दोनों तरफ से घमासान शुरू हो गया. 3 लोग जमीन पर गिर कर तड़पने लगे. दूसरे लोग चीखतेचिल्लाते हुए बाहर भागे. मैं और मेरे साथी भी सारे नोट समेट कर वहां से भाग लिए. अंधेरे ने हमारा साथ दिया. पीछे से पकड़ो पकड़ो की आवाजों के साथ गोलियां चल रही थीं. भागते भागते मेरा एक साथी भी चीख कर ढेर हो गया.

मैं ने जल्दी से रास्ता बदला और एक तंग गली से होता हुआ एक टूटीफूटी वीरान बिल्डिंग के जीने के नीचे दुबक गया. मेरे साथी पता नहीं किधर निकल गए. मैं घंटों वहां बैठा रहा. रात का गहरा सन्नाटा फैल चुका था. कहीं कोई आहट नहीं थी. मैं छिपते छिपाते घर पहुंचा और अपना घोड़ा ले कर एक अनजानी दिशा की तरफ बढ़ गया.

मैं मौत के मुंह से निकला था और बुरी तरह घबराया हुआ था. जुए से कमाए पैसे मैं ने घर के अंदर कपड़ों में छिपा कर रख रखे थे. मुझ में इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि उन पैसों को ले आता. अभी तक मैं ने चोरी, लूट और जुआ जैसी छोटीछोटी वारदातें की थीं. मेरे हाथों कत्ल पहली बार हुआ था. मैं ने अपराध भले ही किए थे, लेकिन अभी तक मेरे अंदर का इंसान मरा नहीं था. मेरे हाथों किसी की जान गई है, यह अहसास मुझे मन ही मन विचलित कर रहा था.

मुझे ये पता नहीं था कि मेरे हाथों से कितने लोग मरे हैं, पर मेरा निशाना चूंकि अच्छा था इसलिए मुझे लग रहा था कि कत्ल मेरे हाथों ही हुआ होगा. एक मरे या दो, गुनाह तो गुनाह है और इस गुनाह की सजा मौत है. अगर मैं पुलिस के हाथ लग जाता तो वह मेरी एक नहीं सुनती क्योंकि पुलिस में भी मेरा रिकौर्ड खराब था.

जुए में जीतने की मेरी शोहरत की वजह से मेरे दुश्मनों की कमी नहीं थी. निस्संदेह वे मेरे खिलाफ गवाही दे कर मेरी मौत का सामान कर देते और अगर मैं इत्तफाक से सूरमा के गिरोह के हाथ लग जाता तो वे लोग मेरे टुकड़ेटुकड़े करने में जरा भी देर नहीं लगाते क्योंकि उन के 3-4 आदमी मरे थे.

मुझे जल्द से जल्द वहां से बहुत दूर चले जाना था इसलिए मैं ने जंगल का सुनसान रास्ता पकड़ा. पता नहीं मैं कब तक घोड़ा दौड़ाता रहा. जब घोड़े ने थक कर आगे बढ़ने से इनकार कर दिया और मैं भी भूखप्यास और थकान से पस्त हो गया तो एक साफ जगह देख कर रुक गया. तब तक दिन का उजाला फैलने लगा था. मैं ने घोड़े को एक पेड़ से बांधा और उसी पेड़ के नीचे लेट गया.

जिस वक्त सूरज की तेज तपिश से मेरी आंखें खुलीं तब तक दिन काफी चढ़ आया था. घोड़ा भी आसपास की घासपत्ती खा कर ताजादम हो गया था.

मैं ने पानी की तलाश में आसपास नजर दौड़ाई, लेकिन दूरदूर तक छितराए पेड़ों और झाडि़यों के अलावा कुछ नजर नहीं आया. वह पूरा इलाका सूखा बंजर सा था. मजबूरन मैं ने फिर से अपना सफर शुरू कर दिया. मैं जानबूझ कर बस्तियों से बच कर चल रहा था इसलिए कोई कस्बा या शहर भी रास्ते में नहीं आया. दोपहर तक भूख ने मेरी हालत खराब कर दी. इस के बावजूद मैं किसी ऐसी जगह पहुंच कर रुकना चाहता था जहां मेरे दुश्मन मुझ तक न पहुंच सकें. अब तक मैं काफी दूर निकल आया था. इसलिए जंगल का रास्ता छोड़ कर मैं सड़क पर आ गया.

भूखप्यास बरदाश्त से बाहर होती जा रही थी. मुझे लग रहा था कि अगर कुछ देर और दानापानी नहीं मिला तो घोड़ा भी नहीं चल पाएगा. मैं ने लस्तपस्त हो कर अपना सिर घोड़े की पीठ पर रख दिया और सोचने लगा कि पता नहीं जिंदगी मिलेगी या मौत. घोड़ा धीमी गति से चलता रहा. कुछ देर बाद मैं ने भूख और धूप से चकराया हुआ अपना सिर उठाया तो सामने एक फार्म हाउस देख कर आंखों पर यकीन नहीं हुआ.

अदालत में ऐसे झुकी मूछें

ऐसी बेटी किसी की न हो

पैसा बना जान का दुश्मन

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 3

सुबहसुबह साल्वी का फोन घनघना उठा. सोहम का एक दोस्त जो उस के साथ वाले फ्लैट में रहता था, उस ने जो बताया, सुन कर साल्वी के पैरों तले से जमीन खिसक गई. अकबकाई सी वह जिन कपड़ों में थी, उन्हीं कपड़ों में भागी. उस के साथ निधि भी थी.

दोनों सोहम के कमरे पर पहुंच गईं. वहां जा कर देखा तो सोहम बेहोशी की हालत में पड़ा था. इस हालत में उसे देख कर साल्वी घबरा गई. दोनों किसी तरह उसे पास के अस्पताल में ले गईं. मगर डाक्टर ने यह कह कर इलाज करने से मना कर दिया कि यह पुलिस केस है. जब तक पुलिस नहीं आ जाती, वह इलाज नहीं कर सकते.

अस्पताल से पुलिस को फोन कर दिया गया. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. साल्वी का तो रोरो कर बुरा हाल था. अगर निधि वहां नहीं आती तो पता नहीं कौन उसे संभालता. इस बीच उस के दोस्त ने बताया कि रात को उस ने बड़े अनमनेपन से थोड़ा सा खाना खाया था. उस ने पूछा भी कि सब ठीक तो है, कोई परेशानी तो नहीं पर वह सब ठीक है कह कर कमरे में जा कर सो गया.

जब कुछ देर बाद वह भी कमरे में गया तो दंग रह गया क्योंकि वहां नींद की गोलियों की खाली शीशी पड़ी थी और सोहम अचेत पड़ा हुआ था. उसे समझते देर नहीं लगी कि सोहम ने नींद की गोलियां खा ली हैं लेकिन उस की सांसें चल रही थीं. कुछ न सूझा तो घबरा कर उस ने साल्वी को फोन कर दिया था.

घंटों इंतजार के बाद जब डाक्टर ने आ कर बताया कि सोहम खतरे से बाहर है और पुलिस उस का बयान ले सकती है, तो सब की जान में जान आई.

पुलिस पूछताछ के दौरान सोहम बस यही कहता रहा कि किसी ने उसे मरने पर मजबूर नहीं किया, बल्कि उस ने अपनी मरजी से यह फैसला लिया था, क्योंकि थक चुका था वह अपनी जिंदगी से.

पूछताछ कर के पुलिस तो चली गई लेकिन साल्वी यह मानने को तैयार नहीं थी कि सोहम जो बोल रहा है, वह सच है. कोई तो बात जरूर है, जो वह सब से छिपा रहा है.

अस्पताल से आने के बाद साल्वी ने उस से पूछा, ‘‘क्यों किया तुम ने ऐसा सोहम? क्या एक बार भी तुम्हें अपने मातापिता का खयाल नहीं आया? तुम ने यह नहीं सोचा कि तुम्हारी 2-2 जवान बहनें हैं, उन का क्या होगा? बताओ न क्यों किया तुम ने ऐसा? जानती हूं कोई तो ऐसी बात है जो तुम हम से छिपा रहे हो. बोलो, क्या बात है, तुम्हें मेरी कसम. हमारे प्यार की कसम.’’

यह सब सुनने के बाद सोहम अपने आंसुओं का सैलाब रोक नहीं पाया और एकएक कर साल्वी को सारी बातें बता दीं. सुन कर साल्वी का पूरा शरीर कंपकंपा गया.

‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और तुम ने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा. लेकिन तुम ने आत्महत्या करने की कोशिश क्यों की? यह नहीं सोचा कि उस नागिन को सजा दिलवानी है.’’ साल्वी हैरानी से सवाल पर सवाल किए जा रही थी और सोहम अपने बहते आंसू पोंछे जा रहा था.

‘‘अब बच्चों की तरह रोना बंद करो और मेरी बात सुनो. वह तुम्हें फिर बुलाएगी और तुम जाओगे. हां, जाओगे तुम. लेकिन ऐसे नहीं पूरी तैयारी के साथ. उस से पहले हमें पुलिस के पास जा कर सारी सच्चाई बतानी होगी.’’

साल्वी के समझाने के बाद सोहम थाने पहुंच गया और एकएक कर सारी बातें पुलिस को बताईं. हकीकत जानने के बाद थानाप्रभारी समझ गए कि मामला गंभीर है. इसलिए उन्होंने सोहम को फिर मनोरमा के पास जाने को कहा, मगर पूरी तैयारी के साथ, जिस से सबूत के साथ उसे पकड़ा जा सके.

4-5 दिन बाद मनोरमा ने सोहम को फोन किया, ‘‘सोहम, कहां थे तुम इतने दिनों तक? अपना फोन भी नहीं उठा रहे हो. एक काम करो, आज रात यहां आ जाओ. एक जगह माल पहुंचाना है.’’

योजनानुसार सोहम उस के यहां पहुंच गया. उस ने वहां जा कर फिर से वही बात छेड़ी, ‘‘नहीं, अब मैं आप की एक भी बात नहीं मानने वाला और क्या लगता है आप को, आप अपनी अंगुलियों पर मुझे नचाती रहेंगी और मैं नाचता रहूंगा. नहीं, अब ऐसा नहीं होगा मैडम.’’

‘‘पता भी है तुम्हें, तुम क्या बोल रहे हो? एक मिनट भी नहीं लगेगा मुझे तुम्हें सलाखों के पीछे पहुंचाने में. समझ रहे हो तुम?’’ मनोरमा ने धमकी दी.

‘‘हां, मैं सब समझ रहा हूं और देख भी रहा हूं कि एक औरत ऐसी भी हो सकती है. आप को पता है न आंटी, उस वीडियो में जो भी है, वह गलत है. मैं ने नहीं, बल्कि आप ने मेरी बेहोशी का फायदा उठाया और मेरे साथ…’’

‘‘चुप क्यों हो गए, बोलो न कि मैं ने तुम्हारा रेप किया. हां, किया ताकि तुम्हें अपनी मुट्ठी में कर सकूं.’’ बोलते बोलते मनोरमा ने अपने ड्रग्स के सालों से चले आ रहे धंधे के बारे में भी बोलना शुरू कर दिया. वह बोलती चली गई, मगर उसे यह नहीं पता था कि उस की सारी बातें रिकौर्ड हो रही थीं और बाहर खड़ी पुलिस भी उस की बातें सुन रही थी.

‘‘देख लिया न इंसपेक्टर साहब, इस औरत का असली चेहरा?’’ पुलिस के साथ अंदर आते ही साल्वी ने कहा.

अचानक पुलिस को अपने सामने देख कर मनोरमा के होश फाख्ता हो गए. जुबान तो जैसे हलक में ही अटक गई. किसी तरह मुंह से कुछ शब्द निकाल पाई, ‘‘आ…प आप यहां किसलिए इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘आप को नमस्ते करने के लिए मैडम.’’ कह कर जब इंसपेक्टर ने लेडीज कांस्टेबल को उसे हथकड़ी लगाने को कहा तो वह चीख उठी, ‘‘किस जुर्म में आप मुझे हथकड़ी लगा रहे हैं? पता भी है आप को, मैं कौन हूं? ’’ अपने रुतबे की धौंस दिखाते हुए मनोरमा चीखी.

‘‘मैं बताता हूं कि तुम कौन हो? तुम निहायत ही बदचलन और बददिमाग औरत हो.’’ कह कर सोहम ने एक जोर का थप्पड़ उस के गाल पर दे मारा और कहने लगा, ‘‘तुम्हें क्या लगा, तुम बच जाओगी और यूं ही मुझे इस्तेमाल करती रहोगी. आज तुम्हारे कारण मेरा परिवार अनाथ हो जाता. अगर साल्वी न होती तो शायद आज मैं इस दुनिया में ही नहीं होता. बचा लिया इस ने मुझे और मेरे परिवार को भी. शर्म नहीं आई तुम्हें अपने बेटे जैसे लड़के के साथ संबंध बनाते हुए?’’

गुस्से से आज सोहम की आंखें धधक रही थीं. उस के शरीर का खून इतना उबल रहा था कि वश चलता तो वह खुद ही मनोरमा की जान ले लेता. पर कानून को वह अपने हाथों में नहीं लेना चाहता था.

‘‘इंसपेक्टर साहब ले जाइए इसे और इतनी कड़ी सजा दिलवाइए कि यह अपनी मौत की भीख मांगे और इसे मौत भी नसीब न हो.’’ गुस्से से साल्वी ने कहा, ‘‘इसे ऐसी सजा दिलाना कि अब ये मुट्ठी भर उजियारे के लिए तरसती रह जाए.’’ कह कर वह सोहम का हाथ पकड़ कर वहां से निकल गई.

प्राथमिक पूछताछ में गिरफ्तार मनोरमा ने पुलिस को बताया कि वह सालों से नेपाल से ड्रग्स मंगवा कर महानगर के विभिन्न बड़े क्लबों, रेव पार्टियों व अन्य रेस्तराओं में सप्लाई करती आ रही थी. वह कुछ युवकों को गुप्त तरीके से नेपाल भेज कर ड्रग्स मंगवाती थी.

सोहम से मिल कर उसे लगा कि यह लड़का उस के धंधे को और आगे तक ले जा सकता है, इसलिए पहले उस ने उसे अपने जाल में फंसाया और फिर उस का इस्तेमाल करती रही. मनोरमा के साथ इस धंधे में और कौन कौन लोग जुड़े थे, पुलिस ने उन का भी पता लगा लिया.

खुद को बचाने और निर्दोष साबित करने के लिए मनोरमा ने एड़ीचोटी का जोर लगाया, लेकिन असफल रही. क्योंकि पुलिस के पास उस के खिलाफ पक्के सबूत और गवाह थे.

मनोरमा को अब मौत की सजा मिले या उम्रकैद, सोहम और साल्वी को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. साल्वी के लिए तो बस इतना काफी था कि सोहम को इंसाफ मिल गया और मनोरमा को उस के कर्मों की सजा.

सोहम को आज साल्वी पर गर्व महसूस हो रहा था. सोच रहा था कि उस के लिए इस से अच्छा जीवनसाथी कोई हो ही नहीं सकता. उधर साल्वी भी सोहम की बांहों में मंदमंद मुसकरा रही थी. खुले आसमान के नीचे दो मुट्ठी उजियारा उन के लिए काफी था.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 2

एग्जाम्स के बाद साल्वी और पीजी की सारी लड़कियां और सोहम के दोस्त अपने अपने घर चले गए. मगर सोहम नहीं गया. पार्टटाइम नौकरी करने की वजह से वह अहमदाबाद में ही रुक गया था. साल्वी के यहां न रहने पर सोहम कभीकभार मनोरमा के घर चला जाता था और वह भी तब जब मनोरमा किसी काम के लिए उसे बुलाती थी, वरना वह व्यस्त रहता था.

एक रोज सोहम के पास मनोरमा का फोन आया, ‘‘हैलो सोहम, मैं मनोरमा आंटी बोल रही हूं. कहीं बिजी हो क्या?’’

‘‘नहीं तो आंटी, कहिए न?’’ सोहम बोला.

‘‘बस ऐसे ही बेटा, अगर फुरसत मिले तो आ जाना. लेकिन अगर बिजी हो तो रहने दो.’’ मनोरमा बड़ी धीमी आवाज में बोली.

‘‘नहींनहीं आंटी, कोई बात नहीं. बस थोड़ा काम है, खत्म कर के अभी आता हूं.’’ सोहम ने कहा और कुछ देर बाद ही वह मनोरमा के घर पहुंच गया.

‘‘क्या बात है आंटी, आज मुझे कैसे याद किया?’’ अपनी आदत के अनुसार हंसी बिखेरते हुए सोहम ने कहा.

‘‘मैं तो तुम्हें हमेशा याद करती हूं पर तुम ही अपनी आंटी को भूल जाते हो. वैसे जब साल्वी रहती है तब तो खूब आते हो मेरे पास.’’ मनोरमा हंसते हुए बोली.

सोहम झेंप गया और कहने लगा कि ऐसी कोई बात नहीं है. बस काम और पढ़ाई के चक्कर में वक्त नहीं मिलता.

‘‘अरे, मैं तो मजाक कर रही थी बेटा, पर तुम तो सीरियस हो गए. अच्छा बताओ क्या लोगे, चाय, कौफी या फिर कोल्ड ड्रिंक्स लाऊं तुम्हारे लिए?’’

‘‘कुछ भी चलेगा आंटी.’’ कहते हुए सोहम टेबल पर रखी मैगजीन उठा कर उलटने पलटने लगा, ‘‘अरे क्या बात है आंटी, आप भी सरिता मैगजीन पढ़ती हो? मेरी मां तो इस मैगजीन की कायल हैं. पता है क्यों, क्योंकि सरिता धर्म की आड़ में छिपे अधर्म की पोल खोलती है इसलिए.

‘‘मां के साथसाथ हम भाईबहनें भी इसे पढ़ने के आदी हो गए हैं और चंपक मैगजीन की तो पूछो मत आंटी. हम भाईबहनों में लड़ाई हो जाती थी उसे ले कर कि पहले कौन पढ़ेगा.’’ बोलते हुए सोहम की आंखें चमक उठीं.

चाय पी कर वह जाने को हुआ तो मनोरमा ने उसे रोक लिया और कहा कि अब वह रात का खाना खा कर ही जाए. सोहम ने मना किया पर मनोरमा की जिद के आगे उस की एक न चली. खाने के बाद एकएक कप कौफी हो जाए कह कर मनोरमा ने फिर उसे कुछ देर रोक लिया.

लेकिन कौफी पीतेपीते ही अचानक सोहम को न जाने क्या हुआ कि वह वहीं सोफे पर लुढ़क गया. इस के बाद क्या हुआ, उसे कुछ पता नहीं चला. सुबह उस ने जो दृश्य देखा, उस के होश उड़ गए. रोरो कर मनोरमा कह रही थी कि उस ने जिसे बेटे जैसा समझा और उसी ने उस का ही रेप कर डाला.

‘‘पर आंटी, मम..मैं ने कुछ नहीं किया.’’ सोहम मासूमियत से बोला.

सोहम की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या हो रहा है और आंटी ऐसा क्यों बोल रही हैं.

‘‘तो किस ने किया? कौन था यहां हम दोनों के सिवा. तुम्हें पता है कि रात में तुम ने पी कर कितना तमाशा किया था. मैं लाख कहती रही कि तुम्हारी मां जैसी हूं पर तुम ने मेरी एक नहीं सुनी. मुझे कहीं का नहीं छोड़ा तुम ने सोहम.’’ कह कर सिसकते हुए मनोरमा ने अपना चेहरा हथेलियों में छिपा लिया.

अपने कमरे में आ कर वह 2 दिन तक यूं ही पड़ा रहा. न तो वह कालेज जा रहा था और न ही काम पर. वह अपने किसी दोस्त से भी बातचीत नहीं कर रहा था, क्योंकि वह खुद में ही शर्मिंदा था. एक ही बात उस के दिल को मथे जा रही थी कि उस से इतनी बड़ी गलती कैसे हुई. धिक्कार रहा था वह खुद को. उधर मनोरमा ने भी इस बीच न तो उसे कोई फोन किया और न ही उसे मिलने के लिए बुलाया.

लेकिन एक दिन मनोरमा ने उसे खुद फोन कर अपने घर बुलाया. वह वहां जाना तो नहीं चाह रहा था, पर डरतेसहमते चला गया.

‘‘आ गया सोहम.’’ मनोरमा ने उस से ऐसे बात की, जैसे उन दोनों के बीच कुछ हुआ ही न हो.

‘‘ये बैग तुम्हें इस होटल में पहुंचाना होगा. ये रहा होटल का पता. देखो, इस नाम के आदमी के हाथ में ही बैग जाना चाहिए, समझे?’’  आज मनोरमा का व्यवहार और उस की बातें सोहम को कुछ अटपटी सी लग रही थीं.

बड़ी हिम्मत कर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘इस बैग में है क्या और इतनी रात को ही क्या इसे उस आदमी तक पहुंचाना जरूरी है?’’

‘‘ज्यादा सवाल मत करो. जानना चाहते हो इस बैग में क्या है, तो सुनो, इस में ड्रग्स और अफीम है.’’ सुनते ही सोहम के रोंगटे खड़े हो गए और बैग उस के हाथ से छूट कर जमीन पर गिर गया.

‘‘अरे, इतना पसीना क्यों आ रहा है तुम्हारे माथे पर. बैग उठाओ और जाओ जल्दी, वह आदमी तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा.’’ इस बार मनोरमा की आवाज जरा सख्त थी.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो सोहम. क्या उस रात के बारे में सोच रहे हो. भूल जाओ उस बात को और जैसा मैं कहती हूं, वैसा ही करो. ऐसी छोटीमोटी गलतियां तो होती रहती हैं इंसान से.’’

मनोरमा की बातें और हरकतें देख सोहम दंग था. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही औरत है जिसे वह एक अच्छी और सच्ची औरत समझता था. इस तरह मजबूरी में ही कई बार वह ड्रग्स से भरा बैग यहांवहां लोगों के पास पहुंचाता रहा. लेकिन उस ने सोच लिया कि अब वह यह गलत काम नहीं करेगा. मना कर देगा मनोरमा को.

एक दिन सोहम ने कह ही दिया, ‘‘नहीं मैडम, अब मुझ से यह गंदा काम नहीं होगा. कल को अगर मैं पुलिस के हत्थे चढ़ गया तो क्या आप बचाने आएंगी मुझे? और क्यों करूं मैं यह काम?’’

कह कर वह वहां से जाने लगा तो मनोरमा ठठा कर हंसी और कहने लगी, ‘‘तुम ने मुझे क्या बेवकूफ समझ रखा है? क्या सोचा मैं भूल गई उस रात की बात? नहीं सोहम, मैं उन लोगों में से नहीं हूं. देखो, गौर से देखो इस वीडियो को. इस में साफसाफ दिख रहा है कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे हो और मैं तुम से बचने की कोशिश कर रही हूं. समझ रहे हो इस का क्या मतलब हुआ?’’

वीडियो देख कर सोहम के होश उड़ गए. वह समझ गया कि यह कोई इत्तफाक नहीं, बल्कि मनोरमा की सोचीसमझी चाल थी, जो उस ने उसे फंसाने के लिए चली थी. वह बोला, ‘‘तो यह सब आप की सोचीसमझी साजिश थी और रेप मैं ने नहीं, बल्कि आप ने मेरा किया है.’’

‘‘हां, पर वीडियो तो यही बता रहा है कि रेप तुम ने किया. तुम्हें पता है सोहम, अगर मैं चाहूं तो यह वीडियो पुलिस तक पहुंचा सकती हूं. लेकिन मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी, क्योंकि मैं तुम्हारी लाइफ बरबाद नहीं करना चाहती और फिर तुम्हारी 2 जवान बहनें हैं. उन का क्या होगा? कौन शादी करेगा उन से?

‘‘तुम्हारे बूढ़े मांबाप उन का क्या होगा? यह सब सोच कर मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया. पर तुम मुझे ऐसा करने पर मजबूर कर रहे हो.’’  मनोरमा का चेहरा उस समय किसी विलेन से कम नहीं लग रहा था.

‘‘पर क्यों, क्या बिगाड़ा था मैं ने आप का? मैं तो आप को अपनी मां समान समझता था और आप ने…’’ सोहम चीखते हुए बोला. आज उसे साल्वी की कही बातें याद आने लगीं कि इस मनोरमा मैडम को कम मत समझना. बिना अपने मतलब के कुछ नहीं करती. पर मैं ही बेवकूफ था, उसे ही चुप करा दिया था.

‘‘अब छोड़ो ये सब बातें और चलो अपने काम पर लग जाओ. कल एक रेव पार्टी में तुम्हें एक बैग पहुंचाना है. समय से आ जाना.’’

सोहम मनोरमा के जाल में इस तरह से फंस चुका था कि उसे निकलने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाला हाल हो गया था उस का. हंसने और सब को हंसाने वाला सोहम अब चुप रहने लगा था. अपने सारे दोस्तों से भी वह कटाकटा सा रहने लगा था. उस से कोई कुछ कहतापूछता तो वह चिढ़ कर उसी से लड़ पड़ता.

अपने आप को वह एक हारे हुए इंसान के रूप में देखने लगा था जो मुट्ठी भर उजियारा तलाशने यहां आया था, अब उसे अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगा था. कभी वह सोचता कि सारी बातें साल्वी को बता दे, लेकिन फिर मनोरमा की धमकी उसे याद आने लगती थी और वह सहम कर मुंह सिल लेता.

‘‘सोहम, क्या हो गया है तुम्हें, जब से आई हूं देख रही हूं कि न तो मुझ से मिलने आते हो और न ही कभी फोन करते हो. जब मैं फोन करती हूं तो बाद में करता हूं, कह कर फोन काट देते हो. बोलो न, हो क्या गया है तुम्हें सोहम?’’ तैश में आ कर साल्वी ने पूछा.

‘‘हां, नहीं बोलना. मैं क्या तुम्हारा गुलाम हूं कि जब तुम बुलाओ दौड़ा चला आऊं तुम्हारे पास? अरे मैं यहां पढ़ने आया हूं, तुम्हारा दिल बहलाने नहीं, समझीं. बड़ी आई.’’ कह कर सोहम वहां से चलता बना और साल्वी अवाक उसे देखती रह गई. सोहम ने एक बार पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा कि वह उसे ही देखे जा रही है.

जब भी साल्वी उस से बात करने की कोशिश करती, चुप्पी साधने का कारण पूछती तो वह झुंझला जाता. इतना ही नहीं, वह उसे अनापशनाप बोलने लगता था. धीरेधीरे साल्वी का मन भी उस से खट्टा होने लगा. उस ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया.

इस बीच कई महीनों तक दोनों के बीच कोई खास बातचीत नहीं हुई. बस ‘हां..हूं..’ में ही बातें हो जातीं कभीकभार. सोहम तो जान रहा था कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, पर साल्वी नहीं समझ पा रही थी कि अचानक ऐसा क्या हो गया जो सोहम उस से कटाकटा रहने लगा है. एक दिन साल्वी ने सोहम को मनोरमा मैडम के घर से निकलते देखा तो वह हैरान रह गई. साल्वी ने उस से पूछा भी कि वह यहां क्या कर रहा था.

‘‘मैं कुछ भी कर रहा हूं, तुम्हें इस से क्या मतलब?’’ सोहम ने कहा तो साल्वी चुप हो गई.

सोहम के जाने के बाद साल्वी सोचने लगी, ‘अच्छा, तो अब मुझ से ज्यादा मनोरमा मैडम उस की अपनी हो गई.’

दूसरी ओर सोहम एक पंछी की तरह बंद पिंजरे से निकलने के लिए फड़फड़ा रहा था. एक तो साल्वी के लिए उस की बेरुखी और ऊपर से मनोरमा मैडम का उसे जबतब बुला कर उस का यूज करना, अब उस के बरदाश्त के बाहर हो रहा था. लेकिन उस दिन बड़ी हिम्मत कर के उस ने बड़ा फैसला ले लिया कि अब वह मनोरमा की एक भी बात नहीं मानेगा, चाहे जो भी हो जाए.

जैसे ही मनोरमा का फोन आया, सोहम ने कहा, ‘‘नहीं, मैं नहीं करूंगा अब ये काम. आप क्या समझती हैं कि आप इस तरह से मुझे अपनी कैद में रख पाएंगी. दिखा दो जिसे भी वीडियो दिखाना हो. एक काम करो, मुझे वह वीडियो भेजो, मैं खुद ही उसे वायरल कर देता हूं. अब सारी सच्चाई दुनिया वालों के सामने आ ही जानी चाहिए. नहीं डरना अब मुझे किसी से भी, जो होगा देखा जाएगा.’’

कह कर सोहम ने फोन काट दिया और साल्वी को सब कुछ बताने के लिए फोन कर ही रहा था कि उस की मां का फोन आ गया. मां कहने लगीं कि उस की बहन का रिश्ता तय हो गया है, वह घर आ जाए. इधर मनोरमा मैडम उसे फोन पर धमकी दिए जा रही थी कि अगर उस की बात नहीं मानी तो वह उस वीडियो को पुलिस को सौंप देगी.

ऐसे में सोहम की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह सोचने लगा कि फिर क्या होगा उस की बहन का?

सोचतेसोचते सोहम को लगा कि उस का दिमाग फट जाएगा. मन तो कर रहा था कि वह कहीं भाग जाए या मर जाए. हर तरफ बस अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा था. आखिर उस ने एक फैसला ले ही लिया.

अविवेक ने उजाड़ी बगिया – भाग 3

सुनील की कमाई का एकमात्र जरिया टैंपो ही थे. अचानक से दोनों टैंपो ने जवाब दे दिया. जिस से जो पैसे घर में आ रहे थे, वो आने बंद हो गए. अचानक आई मुसीबत से सुनील की गृहस्थी की गाड़ी डगमगा गई थी. रेनू के ब्यूटीपार्लर से इतनी कमाई नहीं हो पा रही थी कि गृहस्थी की गाड़ी चल सके. जबकि खर्चे अपनी जगह पूरे थे. ऐसे में घर का खर्च चल पाना मुश्किल हो गया था.

अचानक आई मुसीबत से पति और पत्नी परेशान हो गए. सुनील को कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह करे तो क्या करे. टैंपो बंद हो जाने के बाद सुनील घर में मुट्ठी बंद कर के बैठ गया. उस ने बाहर कहीं हाथपांव मारने की कोशिश नहीं की. पति की उदासीनता देख कर रेनू के हाथपांव फूल गए कि गृहस्थी की गाड़ी कैसे चलेगी?

आगे का जीवन कैसे कटेगा. ये सोचसोच कर रेनू चिड़चिड़ी हो गई थी. वह पति को कहीं और जा कर नौकरी करने की सलाह देती. पत्नी की सलाह सुनील को अच्छी नहीं लगती थी. वह महसूस करता कि पत्नी उसे अपनी तरह से हांकना चाहती है. इसलिए वह उस पर बिगड़ जाता था. तब पति को डराने के लिए रेनू अपने इंसपेक्टर भाई की धौंस दे देती थी कि उस की बात नहीं मानी तो वह भाई से कह कर उसे जेल भेजवा देगी.

पत्नी की धौंस सुन कर सुनील गुस्से के मारे लाल हो जाता था. अब तो बातबात पर पतिपत्नी के बीच तूतू मैंमैं होने लगी थी. दोनों के बीच प्रेम की जगह नफरत खड़ी हो गई. एक ही छत के नीचे रह कर दोनों किसी अजनबी की तरह जीवन के दिन काटने लगे.

दोनों के बीच बातचीत भी कम होने लगी थी. इस का सीधा असर उन के बेटे शिवम पर पड़ रहा था. शिवम बड़ा हो चुका था और समझदार भी. मांबाप के रोजरोज के झगड़े से वह आजिज आ चुका था. इस से उस की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा था.

बेटे के भविष्य को देखते हुए रेनू ने फैसला किया कि वह बेटे को अपने पास नहीं रखेगी. इस से उस के जीवन पर बुरा असर पड़ सकता है. इसलिए इंटरमीडिएट परीक्षा पास कर लेने के बाद आगे की तैयारी के लिए रेनू ने बेटे को दिल्ली भेज दिया. शिवम दिल्ली में रह कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगा था. ये बात जून, 2018 की है.

इसी बीच रेनू बीमार पड़ गई. अकसर उस के पेट में असहनीय दर्द रहने लगा था. डाक्टर से चैकअप कराने पर पता चला उसे एपेंडिक्स हुआ है. उस के औपरेशन और दवा के खर्च में करीब 15-20 हजार रुपए तक खर्च आ सकते हैं. यह सुन कर सुनील अपना माथा पकड़ कर बैठ गया.

वह समझ नहीं पा रहा था कि इलाज के लिए पैसे कहां से आएंगे? खैर, जो भी हो, रेनू थी आखिर उस की पत्नी. भले ही वह एक छत के नीचे अजनबियों की तरह रह रहे थे, लेकिन पत्नी की अस्वस्थता देख कर उस का मन पसीज गया था. पत्नी को तकलीफ में जीता हुआ वह नहीं देख सकता था. इस बीमारी ने दोनों के सारे गिलेशिकवे भुला कर दोनों को एकदूसरे के करीब ला दिया था. दोनों एकदूसरे के करीब भले ही आ गए थे लेकिन उन के मन की कड़वाहट अभी भी ताजा बनी हुई थी.

सुनील ने जैसे तैसे रुपयों का बंदोबस्त किया और जून, 2018 में पत्नी का औपरेशन करवा दिया. डाक्टर ने रेनू को पूरी तरह बेड रेस्ट करने की सलाह दी. दिन भर चहलकदमी करने वाली रेनू बैड पर पड़ीपड़ी चिड़चिड़ी हो गई थी. पति की किसी भी बात को सुनते ही उस पर झल्ला उठती थी. ये लगभग रोज की ही उस की आदत बन गई थी.

अब तो वो किसी भी बात को ले कर इंसपेक्टर भाई की धौंस दे देती थी कि तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो भैया से शिकायत कर के तुम्हें जेल भिजवा दूंगी. पत्नी के व्यवहार से सुनील सिंह बुरी तरह दुखी था और टूट भी गया था.

पत्नी के रवैये से आजिज आ कर सुनील उस से छुटकारा पाने की युक्ति सोचने लगा कि कैसे इस से जल्द से जल्द मुक्ति पा सके. पत्नी से छुटकारा पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो गया था.

बात 11 सितंबर, 2018 की है. पत्नी को दिखाने सुनील को डाक्टर के पास जाना था. सुनील ने रेनू से कहा कि वह किसी जानने वाले से कार ले कर आता है. उसी से सुनील ने डाक्टर के पास चलने की बात कही तो रेनू भड़क गई. उस ने कह दिया कि वह मांगी हुई कार से चेकअप कराने नहीं जाएगी. चाहे कुछ भी हो जाए. कार अपनी होनी चाहिए. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच जो झगड़ा शुरू हुआ तो वो बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

देखा जाए तो इस बात में कोई दम नहीं था लेकिन रेनू ने तो उसे एक इश्यू बना लिया था. शाम में झगड़ा शुरू हुआ तो रात के 12 बजे तक चला. घर में चूल्हा तक नहीं जला. दोनों भूखे ही रहे. सुनील को पत्नी से छुटकारा पाने का ये मौका बेहतर लगा.

गुस्से में आपा खोए सुनील ने सिलबट्टे से रेनू के सिर के पीछे ऐसा वार किया कि वह फर्श पर जा गिरी और छटपटाने लगी. फिर धीरेधीरे वह मौत की आगोश में समाती चली गई.  खून देख कर सुनील के होश उड़ गए. डर के मारे वह कांपने लगा था. उस की आंखों के सामने जेल की सलाखें नजर आने लगी थीं. पुलिस से बचने के लिए उस ने एक अनोखी कहानी गढ़ डाली.

हत्या को लूट का रूप देने के लिए उस ने फर्श पर पड़े खून को गीले कपड़े से साफ कर दिया. फिर पत्नी की लाश को खींच कर बेड पर लिटा दिया. अलमारी के सामान को चौकी और फर्श पर बिखेर दिया. फिर पत्नी के गले और कान की बालियां निकाल लीं. एक बाली को फर्श पर ऐसे गिरा दिया जैसे लगे कि बदमाशों से जाते समय लूटे गए सामान से वह बाली गिर गई.

क्राइम औफ सीन को उस ने ऐसा बनाने की कोशिश की, जिस से लगे कि लूट के लिए बदमाशों ने रेनू की हत्या की हो. सुनील ने पत्नी की हत्या कर बड़ी सफाई से सबूत मिटा दिए थे. लेकिन सीसीटीवी कैमरे ने उस की सारी कहानी से परदा उठा दिया. पतिपत्नी अगर आपस में सामंजस्य बना कर रहते तो रेनू जीवित रहती और सुनील को जेल भी नहीं जाना पड़ता. लेकिन दोनों के अविवेक ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 1

अहमदाबाद में इंजीनियरिंग पढ़ने आई साल्वी ने कई पीजी देखे, पर उसे एक भी पसंद नहीं आया. किसी में सुबह का नाश्ता नहीं मिलता था तो कहीं किराया उस के अनुरूप नहीं था. जो पीजी उसे पसंद आता, वह उस के कालेज से कई किलोमीटर दूर पड़ता था. देखते भालते आखिरकार उसे एक पीजी मिल ही गया जो उस के कालेज से नजदीक भी था और उस के अनुरूप भी.

‘‘यहां तुम्हें साढ़े 8 हजार में 2 शेयरिंग वाला रूम मिलेगा. इन्हीं पैसों में तुम्हें सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात के खाने के अलावा लौंड्री की भी सुविधा मिलेगी.’’ पीजी की मालकिन मनोरमा ने कहा.

‘‘जी मैडम,’’ साल्वी बोली.

‘‘यह मैडम मैडम नहीं चलेगा, दीदी बोलो मुझे, जैसे यहां की सारी लड़कियां बोलती हैं.’’ मनोरमा ने कहा, ‘‘और हां, एक महीने का भाड़ा एडवांस डिपौजिट करना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक दीदी, मैं कल ही सारे पैसे दे दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हूं…और एक बात, रात के 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है. बहुत हुआ तो साढ़े 9 बजे तक, उस से ज्यादा नहीं, समझी? वैसे कोई बौयफ्रैंड का चक्कर तो नहीं है न?’’ मनोरमा ने पूछा तो साल्वी ने ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘वैरी गुड, वैसे कहां से हो तुम? हां, तुम्हारा कोई लोकल गार्जियन है?’’

‘‘जी, मैं पटना से हूं और मेरा कोई लोकल गार्जियन नहीं है दीदी,’’ अपने आप को खुद में समेटते हुए साल्वी ने कहा.

‘‘ठीक है तो फिर…’’ कह कर मनोरमा मुसकरा दी.

वैसे तो मनोरमा 44-45 साल की थी, पर उस ने अपने आप को इतना मेंटेन कर रखा था कि 30-32 से ज्यादा की नहीं लगती थी. देखने में भी वह किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. ठाठ तो ऐसे कि पूछो मत. इतना बड़ा घर, 2-2 गाडि़यां, नौकरचाकर सब कुछ था उस के पास.

होता भी क्यों न, मनोरमा के पति का अमेरिका में अपना बिजनैस था. एक बेटा भी था जो मैंगलूर रह कर पढ़ाई कर रहा था. जब भी मौका मिलता, बाप बेटा मनोरमा से मिलने आ जाते थे. मनोरमा का भी जब मन होता, उन से मिलने चली जाती थी.

मनोरमा से बात कर के साल्वी अपने कमरे में पहुंची तो वहां उस की रूममेट निधि मिली. निधि ने मुसकरा कर साल्वी का स्वागत किया. आपसी परिचय के बाद निधि ने पूछा, ‘‘साल्वी, तुम कहां से हो?’’

‘‘जी, मैं पटना से.’’ साल्वी ने जवाब दिया.

‘‘ओह, और मैं इंदौर से.’’ कह कर निधि मुसकराई तो साल्वी भी मुसकरा दी.

‘‘यहां पढ़ने आई हो या नौकरी करने?’’ निधि ने सवाल किया.

‘‘जी, यहां के एक कालेज से मैं इंजीनियरिंग करने आई हूं और आप?’’ साल्वी बोली.

‘‘मैं नौकरी करती हूं,’’ निधि ने कहा.

साल्वी के साथ सोहम नाम का एक लड़का भी बीटेक कर रहा था. उस के साथ साल्वी की अच्छी दोस्ती हो गई थी. अच्छी दोस्ती होने का एक कारण यह भी था कि दोनों बिहार से थे. साल्वी ने जब यह बात अपने मम्मी पापा को बताई तो जान कर उन्हें बहुत अच्छा लगा कि चलो इतने बड़े अनजान शहर में कोई तो है अपने राज्य का.

सोहम ने ही साल्वी को बताया था कि उस से बड़ी उस की 2 बहनें हैं, जिन की अभी शादी होनी बाकी है. उस के पापा रेलवे में फोरमैन हैं और किसी तरह अपने परिवार का पालनपोषण कर रहे हैं. पिता को सोहम से उम्मीद है कि एक न एक दिन वह अपने घर की गरीबी जरूर दूर करेगा और उन का सहारा बनेगा.

‘‘लेकिन तुम्हारी पढ़ाई के खर्चे? वह सब कैसे हो पाता है?’’ साल्वी ने पूछा.

‘‘वैसे तो मेरा इस कालेज में मेरिट पर एडमिशन हुआ है, लेकिन फिर भी एडमिशन के वक्त पापा को जमीन का एक टुकड़ा बेचना पड़ा था, जो उन्होंने दीदी की शादी के लिए रखा था. फिर भी रहनेखाने के लिए भी तो पैसे चाहिए थे न, इसलिए मैं ने पार्टटाइम नौकरी कर ली. उस से मेरे पढ़ने और रहने खाने के खर्चे निकल जाते हैं.’’ सोहम ने चेहरे पर स्माइल लाते हुए बताया.

सोहम के बारे में जानने के बाद साल्वी उस से बहुत प्रभावित हुई, क्योंकि आज से पहले वह उस के बारे में इतना ही जान पाई थी कि वह बहुत बड़बोला और मस्तीखोर लड़का है. लेकिन आज उसे पता चला कि कालेज के बाद वह अपने दोस्तों के साथ टाइम पास नहीं करता, बल्कि कहीं पार्टटाइम नौकरी पर जाता है.

‘‘हैलो,’’ साल्वी के आगे चुटकी बजाते हुए सोहम ने पूछा, ‘‘कहां खो गईं मैडम?’’

‘‘मैडम!’’ अपने मोबाइल पर नजर डालते हुए साल्वी चौंक कर उठ खड़ी हुई.

‘‘मैडम से याद आया कि साढ़े 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है और देखो 10 बजने जा रहे हैं. अब मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे 10 बज गए तो क्या हो गया? कौन सा आसमान फट गया? चलो, मैं तुम्हें पीजी तक छोड़ आता हूं और तुम्हारी उस मैडम से भी मिल लूंगा. वैसे भी तुम्हारा पीजी यहां पास में ही तो है.’’ कह कर सोहम उस के साथ चल दिया.

पीजी के नजदीक पहुंचते ही साल्वी ने उस से कहा, ‘‘सोहम, अब तुम यहां से लौट जाओ क्योंकि मनोरमा मैडम ने मुझे सख्त हिदायत दी है कि कोई लड़का पीजी के आसपास भी दिखाई नहीं देना चाहिए.’’ कह कर जैसे ही वह मुड़ी, मनोरमा मैडम बालकनी से उसे ही घूर रही थीं.

मैडम को देखते ही साल्वी घबरा गई. घबराहट के मारे उस की जुबान तालू से चिपक गई तो सोहम नीचे से बोला, ‘‘नमस्ते मैडम, हम एक ही कालेज में पढ़ते हैं इसलिए हमारी दोस्ती हो गई. वैसे भी मैं यहीं पास में ही रहता…’’ बोलते बोलते सोहम की भी घिग्घी बंध गई, जब मनोरमा की घूरती हुई नजर उस पर आ टिकी.

‘‘तुम ने तो कहा था कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड नहीं, फिर?’’ मनोरमा साल्वी को घूरते हुए बोली.

‘‘नहीं दीदी, आप जैसा समझ रही हैं, वैसा कुछ भी नहीं है. हम लोग बस दोस्त हैं.’’ किसी तरह साल्वी बोल पाई.

‘‘देखो, बौयफ्रैंड रखना गलत बात नहीं है पर झूठ मुझे पसंद नहीं और वक्त तो देखो. वैसे लड़का अच्छा है.’’ कह कर मनोरमा मुसकराई तो दोनों की जान में जान आई.

‘‘कोई बात नहीं, तुम भी अंदर आ जाओ.’’ हुक्म मिलते ही सोहम भी साल्वी के पीछे लग गया.

‘‘साल्वी, तुम तो कहती थीं कि तुम्हारी मैडम बड़ी सख्त है, पर ये तो बड़ी रहमदिल है.’’ सोहम ने फुसफुसाते हुए कहा तो साल्वी ने उसे कोहनी मार कर चुप करने को कहा. यह करते हुए मनोरमा ने उसे देख लिया.

वह बोली, ‘‘क्या बातें हो रही हैं?’’

‘‘कुछ नहीं दीदी, यह कह रहा था कि अब मैं चलता हूं और कुछ नहीं.’’ साल्वी ने सोहम को इशारे से जाने के लिए कहा.

‘‘अरे इस में क्या है, आया है तो बैठने दो थोड़ी देर.’’ मनोरमा बोली.

सोहम यहां कब से है, कहां रहता है, किस चीज की पढ़ाई कर रहा है और उस के घर में कौनकौन हैं. यह सब जानने के बाद मनोरमा उस से काफी इंप्रैस हुई. फिर वह अपने बारे में भी बताने लगी, ‘‘तुम्हारी ही उम्र का मेरा भी एक बेटा है, जो मैंगलूर में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.’’

धीरेधीरे सोहम की भी मनोरमा मैडम से अच्छी बनने लगी. अब वह जब भी वक्त मिलता बेधड़क मनोरमा मैडम के घर चला आता.  मनोरमा को भी उस का आना अच्छा लगता था. कुछ न कुछ छोटे मोटे काम, जो भी मनोरमा कहती, वह इसलिए कर दिया करता, क्योंकि कहीं न कहीं उस में उसे अपनी मां की छवि दिखाई देती थी.

फिर मनोरमा भी तो उसे अपने बेटे की तरह ही समझती थी. मनोरमा ने उस से यह भी कहा था कि वह उस के लिए एक अच्छी नौकरी देखेगी, जहां उसे ज्यादा सैलरी मिले और उस की पढ़ाई में भी हर्ज न हो. शायद इस लोभ से भी वह मनोरमा का कोई भी काम, जो वह कहती, हंसतेहंसते कर देता था.

जब सोहम का मनोरमा के यहां आनाजाना बढ़ गया तो एक दिन साल्वी बोली, ‘‘सोहम, क्या बात है, आजकल मनोरमा मैडम से बड़ी पट रही है तुम्हारी. कहीं कोई लोचा तो नहीं. देखो, उस औरत को कम मत समझना. मुझे तो वो बड़ी शातिर दिखती है और वैसे भी बिना अपने फायदे के वह किसी की भी मदद नहीं करती.’’

‘‘तुम लड़कियां भी न, कितनी बेकार की कहानियां बनाती हो. कितना अच्छा तो व्यवहार है उस का और तुम कहती हो कि बड़ी सख्त है.’’ कह कर सोहम ठहाका लगा कर हंसने लगा.

‘‘अच्छा छोड़ो ये सब बातें. चलो, आज हम कहीं बाहर खाना खाते हैं.’’

‘‘हांहां चलो, वैसे भी पीजी का खाना खा खा कर बोर हो गई हूं. मगर पैसे मैं दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हां, ठीक है.’’

इस के बाद दोनों ने एक अच्छे होटल में जा कर खाना खाया. कुछ देर बातें कीं. फिर अपनेअपने रास्ते चल दिए. दोनों ऐसा अकसर छुट्टी के दिन करते थे. दोनों की छुट्टी बड़े मजे से गुजर जाती थी. इन की दोस्ती और पढ़ाई का भी हंसते खेलते एक साल चुटकियों में निकल गया. अब दूसरे साल का एग्जाम भी नजदीक था, सो सोहम और साल्वी अपनी अपनी पढ़ाई में जुट गए.

अविवेक ने उजाड़ी बगिया – भाग 2

पुलिस सुनील से यह जानने में जुटी हुई थी कि घटना वाली रात साढ़े 4 बजे वह किस रास्ते से और कहां तक टहलने गया था? आनेजाने में उसे कुल कितना समय लगा था? इन सवालों की बौछार से सुनील के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं. वह सकपका गया और दाएंबाएं देखने लगा. पुलिस ने उस के चेहरे की हवाइयों को पहचान लिया कि वह वास्तव में जरूर कुछ छिपा रहा है.

सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस सीसीटीवी कैमरे की तलाश में जुट गई. पुलिस की मेहनत रंग लाई. सुनील के घर से करीब 500 मीटर दूर कालोनी के ही सूरजकुंड ओवरब्रिज के पास एक सीसीटीवी कैमरा लगा मिल गया.

पुलिस ने उस सीसीटीवी कैमरे की फुटेज खंगाली तो खुद सुनील हाथ में एक झोला लिए कहीं जाता हुआ दिखा. झोले में कुछ वजनदार चीज प्रतीत हो रही थी. थोड़ी देर बाद जब वह वापस लौटा तो उस के हाथ में झोला नहीं था. हाथ खाली था. सुनील जिन 3 संदिग्यों के होने का दावा कर रहा था, उस घटना वाली रात कैमरे में वह नहीं दिखे.

अब सीसीटीवी कैमरे से तसवीर साफ हो चुकी थी. यानी सुनील झूठ बोल रहा था. पुलिस के शक के दायरे में सुनील आ चुका था.

14 सितंबर की सुबह पत्नी के दाह संस्कार के वक्त पुलिस राजघाट श्मशान पहुंच गई और क्रियाकर्म हो जाने के बाद पुलिस ने सुनील को हिरासत में ले लिया. थाने पहुंचने पर पुलिस ने सुनील से गहनतापूर्वक पूछताछ की. पुलिस के सवालों के आगे वह एकदम टूट गया और पत्नी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने बताया, ‘‘सर मैं उसे मारना नहीं चाहता था. पर उस ने मेरी जिंदगी एकदम से नरक से भी बदतर बना दी थी. बातबात पर अपने इंसपेक्टर भाई की धौंस देती थी, जेल भेजवाने की धमकी तो उस की जबान पर हर समय रहती थी. इस के चलते मेरा कामकाज सब ठप्प पड़ गया था. उस की हरकतों की वजह से मैं इतना मजबूर हो गया था कि मुझे ऐसा कदम उठाना पड़ा. इस बात का दुख मुझे भी है और जीवन भर रहेगा.’’ इतना कह कर सुनील रोने लगा.

आखिर सुनील किस बात को ले कर मजबूर हुआ कि उसे ऐसा खतरनाक कदम उठाना पड़ा. पूछताछ करने पर इस की जो वजह सामने आई, इस प्रकार निकली.

45 वर्षीय सुनील सिंह मूलत: संतकबीर नगर जिले के धनघटा के मटौली गांव का रहने वाला था. उस के पिता कालिका सिंह को गोरखुपर के गोला क्षेत्र के नेवास गांव में नेवासा मिला हुआ था. सासससुर और संपत्ति की देखभाल के लिए पत्नी और बच्चों के साथ कालिका सिंह ससुराल में जा कर बस गए थे. गांव में रह कर बच्चे पले और बड़े हुए और उन्होंने उसी इलाके के विद्यालयों से पढ़ाई की.

कालिका सिंह मिलनसार स्वभाव के थे. अपने बच्चों को भी वह अच्छी शिक्षा और अच्छी सीख दिया करते थे. सुनील खुली आंखों से सरकारी अफसर बनने के सपने देखा करता था. इस के लिए वह दिन रात जीतोड़ मेहनत करता था. लेकिन वह कोशिश करने के बाद भी सरकारी मुलाजिम नहीं बन सका.

भाग्य और किस्मत के 2 पाटों के बीच में पिसे सुनील ने सरकारी नौकरी का ख्वाब देखना छोड़ दिया और उस ने खुद का कोई कारोबार करने की योजना बनाई. इसी बीच उस के जीवन में एक नई कहानी ने जन्म लिया. खूबसूरत रेनू सिंह के साथ वह दांपत्य जीवन में बंध गया. कुछ सालों बाद सुनील एक बेटे शिवम का बाप बन गया.

खुद्दार और मेहनतकश सुनील मांबाप के सिर पर कब तक बोझ बन कर जीता. अब वह अकेला नहीं बल्कि परिवार वाला हो चुका था. जीवन की गाड़ी चलाने के लिए उस ने कुछ न कुछ करने का फैसला ले लिया. सन 2008 में सुनील परिवार को ले कर गोरखपुर आ गया. सूरजकुंड कालोनी में उस का साला अजीत सिंह रहता था. अजीत ने ही सुनील को कालोनी में एक किराए का कमरा दिलवा दिया.

शहर में रहना तो आसान होता है लेकिन खर्चे संभालना आसान नहीं होता. वह भी तब जब कमाई का कोई जरिया न हो. ऐसा ही हाल कुछ सुनील का भी था. शुरुआत में सुनील के पिता ने उसे आर्थिक सहयोग किया.

बेटे का स्कूल में दाखिला कराने के बाद सुनील ने पिता के सहयोग से भाड़े पे चलाने के लिए 2 टैंपो खरीद लिए. टैंपो उस ने भाड़े पर चलवा दिए. टैंपो से उस की अच्छी कमाई होने लगी. दोनों ड्राइवरों को दैनिक मजदूरी देने के बाद सुनील के पास अच्छी बचत हो जाती थी.

पैसा आने लगा तो उस की जरूरतें भी बढ़ने लगीं. धीरेधीरे शिवम भी स्कूल जाने लायक हो चुका था. शिवम उस का इकलौता बेटा था. उसे वह अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता था. इसलिए सुनील ने बाद में शहर के अच्छे स्कूल में उस का दाखिला करा दिया.

सुनील और रेनू दोनों ने मिल कर तय किया कि जब शहर में ही रहना है तो भाड़े के मकान में कब तक सिर छिपाएंगे. थोड़ा पैसा इकट्ठा कर के मकान बनवा कर आराम से रहेंगे और कमाएंगे खाएंगे.

यह बात रेनू ने अपने बड़े भाई अजीत से कही तो उस ने बहन की बातों को काफी गंभीरता से लिया और अपने मकान से थोड़ी दूरी पर उसे एक प्लौट खरीदवा दिया. इस के बाद सुनील ने इधरउधर से पैसों का इंतजाम कर के उस प्लौट पर मकान बनवा लिया. फिर वह अपने मकान में रहने लगा.

पति की आमदनी से रेनू खुश नहीं थी. वह जान रही थी कि टैंपो की कमाई स्थाई नहीं है. आज सड़क पर दौड़ रहा है तो पैसे आ रहे हैं, यदि कल को वह खराब हो जाए तो क्या होगा? फिर पैसे कहां से आएंगे. कहां तक घर वालों के सामने हाथ फैलाए खडे़ रहेंगे.

रेनू ने सोचा कि वह भी कुछ ऐसा काम करे जिस से 2 पैसे घर में आएं तो अच्छा ही होगा. वह पढ़ीलिखी तो थी ही अपनी शिक्षा और व्यक्तित्व के अनुरूप ही काम करना चाहती थी.

बहुत सोचनेविचारने के बाद उसे ब्यूटीपार्लर का काम अच्छा लगा. पति से सलाह ले कर ब्यूटीपार्लर का कोर्स कर लिया फिर घर में ही ब्यूटीपार्लर की दुकान खोल ली. मोहल्ले में होने के नाते उस का पार्लर चल निकला. दोनों की कमाई से बड़े मजे से परिवार की गाड़ी चल रही थी. कुछ दिनों बाद ही पता नहीं किस की नजर लगी कि परिवार से जैसे खुशियां ही रूठ गईं.