एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 1

मेरी पोस्टिंग सरगोधा थाने में थी. मैं अपने औफिस में बैठा था, तभी नंबरदार, चौकीदार और 2-3 आदमी  खबर लाए कि गांव से 5-6 फर्लांग दूर टीलों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही मैं घटनास्थल पर गया. लाश पर चादर डली थी, मैं ने चादर हटाई तो नंबरदार और चौकीदार ने उसे पहचान लिया. वह पड़ोस के गांव का रहने वाला मंजूर था.

मरने वाले की गरदन, चेहरा और कंधे ठीक थे लेकिन नीचे का अधिकतर हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. मैं ने लाश उलटी कराई तो उस की गरदन कटी हुई मिली. वह घाव कुल्हाड़ी, तलवार या किसी धारदार हथियार का था.

मैं ने कागज तैयार कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का प्रबंध किया. लाश के आसपास पैरों के कोई निशान नहीं थे, लेकिन मिट्टी से पता लगता था कि मृतक तड़पता रहा था. खून 2-3 गज दूर तक बिखरा हुआ था.

इधरउधर टीले टीकरियां थीं. कहीं सूखे सरकंडे थे तो कहीं बंजर जमीन. घटनास्थल से लगभग डेढ़ सौ गज दूर बरसाती नाला था, जिस में कहींकहीं पानी रुका हुआ था. मैं ने यह सोच कर वहां जा कर देखा कि हो न हो हत्यारे ने वहां जा कर हथियार धोए हों. लेकिन वहां कोई निशानी नहीं मिली.

मैं मृतक मंजूर के गांव चला गया. नंबरदार ने चौपाल में चारपाई बिछवाई. मैं मंजूर के मांबाप को बुलवाना चाहता था, लेकिन वे पहले ही मर चुके थे. 2 भाई थे वे भी मर गए थे. मृतक अकेला था. एक चाचा और उस के 2 बेटे थे. मैं ने नंबरदार से पूछा कि क्या मंजूर की किसी से दुश्मनी थी.

पारिवारिक दुश्मनी तो नहीं थी, लेकिन पारिवारिक झगड़ा जरूर था. नंबरदार ने बताया, मंजूर की उस के चाचा के साथ जमीन मिलीजुली थी, पर एक साल पहले जमीन का बंटवारा हो गया था. मंजूर का कहना था कि चाचा ने उस का हिस्सा मार लिया है, इस पर उन का झगड़ा रहता था.

‘‘उन की आपस में कभी लड़ाई हुई थी?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘मामूली कहासुनी और हाथापाई हुई थी. मृतक अकेला था. उस का साथ देने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर चाचा और उस के 3 बेटे थे, इसलिए वह उन का मुकाबला नहीं कर सकता था.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंजूर ने उन से झगड़ा मोल लिया हो और उन्होंने उस की हत्या कर दी हो?’’

अगर झगड़ा होता तो गांव में सब को नहीं तो किसी को तो पता चलता. नंबरदार ने जवाब दिया, ‘‘मैं गांव की पूरी खबर रखता हूं. हालफिलहाल उन में कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘मंजूर के चाचा के लड़के कैसे हैं, क्या वह किसी की हत्या करा सकते हैं?’’

‘‘उस परिवार में कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन किसी के दिल की कोई क्या बता सकता है.’’ नंबरदार ने आगे कहा, ‘‘आप कयूम पर ध्यान दें. वह 25-26 साल का है. वह रोज उन के घर जाता है. मंजूर की पत्नी के कारण वह उस के घर जाता है. लोग कहते हैं कि मंजूर की पत्नी के साथ कयूम के अवैध संबंध हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे दोनों मुंहबोले बहनभाई की तरह हैं.’’

‘‘कयूम शादीशुदा है?’’

‘‘नहीं,’’ नंबरदार ने बताया, ‘‘उस की पूरी उमर इसी तरह बीतेगी. उसे किसी लड़की का रिश्ता नहीं मिल सकता. एक रिश्ता आया भी था लेकिन कयूम ने मना कर दिया था.’’

‘‘रिश्ता क्यों नहीं मिल सकता?’’

‘‘देखने में तो ठीक लगता है, लेकिन उस के दिमाग में कुछ कमी है. कभी बैठेबैठे अपने आप से बातें करता रहता है. उस का बाप है, 3 भाई हैं 2 बहनें हैं. चौबारा है, अच्छा धनी जमींदार का बेटा है.’’

‘‘क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि कयूम के मंजूर की बीवी के साथ अवैध संबंध थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मैं शकशुबहे की बात नहीं सुनना चाहता.’’

‘‘मैं यकीन से नहीं कह सकता.’’

‘‘इस से तो यह लगता है कि कयूम ने मृतक को दोस्त बना रखा था.’’

‘‘बात यह भी नहीं है,’’ नंबरदार ने कहा, ‘‘मैं ने मंजूर से कहा था कि इस आदमी को मित्र मत बनाओ. कोई उलटीसीधी हरकत कर बैठेगा. वैसे भी लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.’’

‘‘उस की पत्नी का कयूम के साथ कैसा व्यवहार होता था?’’ मैं ने पूछा.

नंबरदार ने कहा, ‘‘मंजूर ने मुझे बताया था कि उस की पत्नी कयूम से बात कर लेती है. वास्तव में बात यह है जी, मंजूर कयूम के परिवार के मुकाबले में कमजोर था और अकेला भी, इसलिए वह कयूम को अपने घर से निकाल नहीं सकता था.’’

‘‘मृतक के कितने बच्चे हैं?’’

‘‘शादी को 10 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी औलाद नहीं हुई.’’ नंबरदार ने बताया.

यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए, ‘‘10 साल हो गए लेकिन संतान नहीं हुई. कयूम उन के घर जाता है, मृतक को यह भी पता था कि कयूम उस की पत्नी से कुछ ज्यादा ही घुलामिला है. लेकिन मृतक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने घर में कयूम का आनाजाना बंद कर देता.’’

मैं ने इस बात से यह निष्कर्ष निकाला कि मृतक कायर और ढीलाढाला आदमी था और इसीलिए उस की पत्नी उसे पसंद नहीं करती थी. पत्नी कयूम को चाहती थी और कयूम उस पर मरता था. दोनों ने मृतक को रास्ते से हटाने का यह तरीका इस्तेमाल किया कि कयूम उस की हत्या कर दे.

2 आदमियों ने विश्वास के साथ बताया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे और उन दोनों ने मृतक को धोखे में रखा हुआ था. मैं ने अपना पूरा ध्यान कयूम पर केंद्रित कर लिया, उस की दिमागी हालत से मेरा शक पक्का हो गया. मैं ने कयूम से पहले मृतक की पत्नी से पूछताछ करनी जरूरी समझी.

मेरे बुलाने पर वह आई तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. नाक लाल हो गई थी. वह हलके सांवले रंग की थी, लेकिन चेहरे के कट्स अच्छे थे. आंखें मोटी थीं. कुल मिला कर वह अच्छी लगती थी. उस की कदकाठी में भी आकर्षण था.

मैं ने उसे सांत्वना दी. हमदर्दी की बातें कीं और पूछा कि उसे किस पर शक है?

उस ने सिर हिला कर कहा, ‘‘पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ, किस ने किया.’’

‘‘मंजूर का कोई दुश्मन हो सकता है?’’

‘‘नहीं, उस का कोई दुश्मन नहीं था. न ही वह दुश्मनी रखने वाला आदमी था.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘मंजूर घर से कब निकला?’’

‘‘शाम को घर से निकला था.’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या शाम को हर दिन इसी तरह जाया करता था?’’

‘‘कभीकभी, लेकिन उस ने कभी नहीं बताया कि वह कहां जा रहा है.’’

‘‘तुम्हें यह तो पता होगा कि कहां जाता था?’’ मैं ने पूछा, ‘‘दोस्तों यारों में जाता होगा. वह जुआ तो नहीं खेलता था?’’

‘‘नहीं, उस में कोई बुरी आदत नहीं थी.’’

‘‘आमना,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति की हत्या हो गई है. यह मेरा फर्ज है कि मैं उस के हत्यारे को पकड़ूं. तुम मेरी जितनी मदद कर सकती हो, दूसरा कोई नहीं कर सकता. अगर तुम यह नहीं चाहती कि हत्यारा पकड़ा जाए तो भी मैं अपना फर्ज नहीं भूल सकता. अगर कोई राज की बात है तो अभी बता दो. इस वक्त बता दोगी तो मैं परदा डाल दूंगा. आज का दिन गुजर गया तो फिर मैं मजबूर हो जाऊंगा.’’

‘‘आप अफसर हैं, जो चाहे कह सकते हैं. लेकिन आप ने यह गलत कहा कि मैं अपने पति के हत्यारे को पकड़वाना नहीं चाहती. मैं ने आप से पहले ही कह दिया है कि मुझे कुछ पता नहीं, यह सब किस ने और क्यों किया है?’’

‘‘एक बात बताओ, मंजूर ने किसी और औरत से तो रिश्ते नहीं बना लिए थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस औरत के रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं देख लिया हो?’’

‘‘नहीं, वह ऐसा आदमी नहीं था?’’ आमना ने जवाब दिया.

‘‘तुम यह बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हो?’’

‘‘हां, वह इस तरह की हरकत करने वाला आदमी नहीं था.’’

मेरे पूछने पर उस ने 3 आदमियों के नाम बताए, जिन्हें मैं ने पूछताछ के लिए बुलवा लिया. उन तीनों से मैं ने कहा कि जो मृतक का सब से घनिष्ठ मित्र हो, वह मेरे सामने बैठ जाए.

मासूम से दुश्मनी : चचेरे भाई ने ले ली जान – भाग 1

स्कूल से घर लौटने के बाद आकाश ने अपना बैग मेज पर रखा और फौरन बाहर की तरफ दौड़ लगा दी. मां रानी ने उसे कई आवाजें  दीं, लेकिन वह यह कहते हुए घर से निकल गया कि खेलने जा रहा है. आकाश अकसर स्कूल से लौटने के तुरंत बाद खेलने चला जाता था. थोड़ी देर खेल कर वह घर लौट आता था. इसलिए रानी उस की ओर से ध्यान हटा कर घर के काम में लग गई. यह 21 सितंबर, 2018 की शाम 4 बजे की बात है.

आकाश आधे एक घंटे में खेल कर घर लौट आता था. लेकिन उस दिन जब वह साढ़े 6 बजे तक नहीं लौटा तो रानी को उसे बुलाने के लिए घर से निकलना पड़ा. घर से कुछ ही दूरी पर पार्क था. पार्क में जो बच्चे खेल रहे थे, उन में आकाश नहीं था. रानी ने बच्चों से आकाश के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आकाश कुछ देर पहले बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था.

आकाश जिन बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था, वह भी रानी के पासपड़ोस में रहते थे. रानी उन बच्चों के घर गई तो उन्होंने बताया कि कुछ देर पहले वे खेलबंद कर के घर लौट आए थे. आकाश वहीं रह गया था.

रानी ने अपनी बेटी राधा को साथ लिया और पार्क में खेलने वाले बच्चों और पार्क के आसपास रहने वाले लोगों से आकाश के बारे पता करने लगी. लेकिन आकाश का कोई पता नहीं लगा. मायूस हो कर घर लौटी रानी ने आकाश के लापता होने की बात अपने पति सुनील विश्नोई को बताई.

सुनील उस समय बाजार में था. बेटे के लापता होने की खबर मिली तो वह आननफानन में घर आ गया. फिर वह भी बेटे को ढूंढने के लिए घर से निकल पड़ा. रानी और उस की बेटी राधा कस्बे की गलियों में आकाश को खोजने लगीं. लेकिन आकाश का कोई पता नहीं लगा, पतिपत्नी दोनों परेशान थे. अचानक रानी ने सोचा कि कहीं आकाश खेल कर शिवम के घर तो नहीं चला गया.

शिवम विश्नोई, रानी के जेठ विनोद विश्नोई का बेटा था. उस का घर रानी के घर से 2 घर छोड़ कर था. घबराई हुई रानी शिवम के घर पहुंची और आकाश के बारे में पूछा. शिवम ने बताया, ‘‘चाची, आकाश आया जरूर था, लेकिन थोड़ी देर बतिया कर चला गया था.’’

तब तक 9 बज चुके थे और रात गहराने लगी थी. आकाश का जब कुछ पता नहीं चला तो उस के पिता सुनील विश्नोई ने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर के बता दिया कि राजपुर कस्बे की गली नंबर 9 से 12 साल का एक लड़का गायब हो गया है. राजपुर कस्बा कानपुर देहात जिले के थाना राजपुर क्षेत्र में आता है. पुलिस कंट्रोल रूम ने लड़के के गायब होने की सूचना थाना राजपुर को दे दी.

सूचना मिलते ही एसआई देशराज सिंह हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र को साथ ले कर राजपुर कस्बे स्थित सुनील के घर पहुंच गए. सुनील विश्नोई और उस की पत्नी रानी घर पर थे. शिवम भी उन के साथ था. उन्होंने आकाश के गायब होने की जानकारी उन्हें दी. एसआई देशराज सिंह सुनील विश्नोई का बयान दर्ज कर के थाने लौट आए.

थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह उस समय थाने पर मौजूद थे. एसआई देशराज सिंह ने 12 वर्षीय आकाश के गुम होने की जानकारी उन्हें दे दी. उन्होंने अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करवा दी और इस मामले की जांच देशराज सिंह को ही सौंप दी.

एसआई देशराज सिंह आकाश की खोजबीन में जुट गए. सूचना पा कर रानी के मातापिता भी आ गए. उन्होंने रानी से कहा कि वह एक बार ठीक से देख लें कि वह घर में ही तो नहीं सो गया है. रानी ने घर के सारे कमरे छान मारे लेकिन आकाश नहीं मिला. आकाश कहीं शिवम के घर न सो गया हो, यह सोच कर रानी शिवम के घर गई तो वह दरवाजे पर ही मिल गया.

रानी ने जब उस से आकाश को घर में देखने की बात कही तो वह बोला, ‘‘चाची, वैसे तो आकाश यहां से चला गया था, फिर भी तुम कहती हो तो मैं एक बार और देख लेता हूं.’’

शिवम घर में चला गया, जबकि रानी दरवाजे पर ही खड़ी रही. कुछ देर बाद शिवम ने बाहर आ कर बताया कि आकाश यहां नहीं है.

फिरौती के लिए नहीं हुआ अपहरण

इधर इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने आकाश अपहरण पर गहन विचारविमर्श किया. उन के विचार से आकाश का अपहरण फिरौती के लिए नहीं किया गया था. क्योंकि सुनील विश्नोई की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि उस के बेटे का अपहरण 2-4 लाख की फिरौती के लिए किया जाता. दूसरे फिरौती की बात इसलिए भी गले नहीं उतर रही थी, क्योंकि अभी तक अपहर्त्ता का कोई फोन नहीं आया था.

नवीन कुमार सिंह का अनुमान था कि आकाश का अपहरण किसी और कारण से किया गया है. यह कारण क्या हो सकता है, इस का पता लगाना जरूरी था. फिर भी इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने पुखरायां, घाटमपुर, भीमसेन रेलवे स्टेशन के अलावा कानपुर देहात के सभी प्रमुख बस अड्डों पर छानबीन के लिए आकाश के फोटो के साथ अलगअलग पुलिस टीमें रवाना कर दीं.

एसआई देशराज सिंह थाना क्षेत्र के नदी, नालों और सड़क किनारे की झाडि़यों पार्कों आदि में इस आशंका से आकाश को खोज कर रहे थे कि कहीं किसी ने उस की हत्या न कर दी हो.

कस्बा राजपुर में सड़क किनारे एक शिव मंदिर था. मंदिर के पास वाले मैदान में बच्चे खेलते थे. पुलिस आकाश की खोज में वहां भी गई, लेकिन उस का पता नहीं चला. पुलिस ने नमाज के समय मसजिद से आकाश के हुलिए सहित उस के गुम होने की सूचना प्रसारित कराई, पर कोई सफलता नहीं मिली.

उधर आकाश के लापता होने से विश्नोई परिवार की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. घर के सभी लोगों को इस बात की चिंता सता रही थी कि उन की आंखों का चिराग पता नहीं कहां और किस हाल में होगा. वे लोग पूरी रात बैठे रहे. उन के दिमाग में तरहतरह के खयाल आ रहे थे.

अंधेरा छंटते ही वे लोग फिर 2-2, 3-3, के ग्रुप में आकाश की खोज में निकल पड़े. उधर पुलिस ने आकाश के गुम होने की सूचना उस के हुलिए के साथ कानपुर देहात जनपद के सभी थानों को दे दी थी.

ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों  सुनील और उस की पत्नी रानी की चिंता बढ़ती जा रही थी. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि आकाश चला कहां गया? रानी बेटे के गम में सब से ज्यादा दुखी थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. उस ने खानापीना भी छोड़ दिया था.

धीरेधीरे 3 दिन बीत गए, लेकिन अब तक आकाश का पता न तो घर वाले लगा पाए थे और न ही पुलिस को सफलता मिली थी. पुलिस आकाश की खोज में जीजान से जुटी थी. उस ने क्षेत्र के हर रेलवे स्टेशन व बस अड्डे पर आकाश की फोटो सहित सूचना चस्पा कर दी थी.

पुलिस आपराधिक प्रवृत्ति के युवकों को पकड़ कर थाने लाई और उन से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन आकाश के बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं हुई. आखिर पुलिस को मजबूरन उन युवकों को रिहा करना पड़ा. पुलिस का मुखबिर तंत्र भी आकाश का पता लगाने में नाकाम रहा.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी?

अविवेक ने उजाड़ी बगिया

जीजा साली का जुनूनी इश्क – भाग 3

घर की कलह और रोजरोज की मारपीट से आजिज आ कर शादी के एक साल बाद पूजा मायके आ कर रहने लगी. कुछ दिन बाद पति ओमप्रकाश उसे मनाने आया लेकिन पूजा ने ससुराल जाने से साफ मना कर दिया.

अधिकांश मांबाप को बेटी का गुस्से में ससुराल छोड़ कर आना अच्छा नहीं लगता. जगराम सिंह और मीना को भी यह अच्छा नहीं लगा, उन्होंने पूजा को समझाया परंतु पूजा ने साफ कह दिया कि वह जहर खा कर मर जाएगी पर ससुराल नहीं जाएगी. इसके बाद मांबाप भी बेबस हो गए.

जब मनोज को पता चला कि पूजा गुस्से में ससुराल से मायके आ गई है तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने ससुराल आ कर पूजा से मुलाकात की. उस ने पूजा द्वारा उठाए गए कदम को सही ठहराया और उस की हर संभव मदद करने का भरोसा दिया. पूजा की मदद के बहाने मनोज अब फिर ससुराल आने लगा. उस ने फिर से पूजा से नाजायज संबंध बना लिए.

ओमप्रकाश ने पूजा को जितना प्रताडि़त किया था, वह उस के बदले उसे सबक सिखाना चाहती थी. इस के लिए उस ने जीजा मनोज के सहयोग से नौबस्ता थाने में पति ओमप्रकाश के खिलाफ दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने ओमप्रकाश को दहेज उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. ओमप्रकाश कुछ दिनों बाद किसी तरह जमानत करा कर जेल से बाहर आ गया.

जमानत मिलने के बाद ओमप्रकाश ने बड़े भाई तेजबहादुर पर मामले को रफादफा करने का दबाव डाला, लेकिन तेजबहादुर ने साफ मना कर दिया. तब ओमप्रकाश ने बडे़ भाई से जम कर झगड़ा और मारपीट की. तेजबहादुर उस की ससुराल वालों के पक्ष में था.

पूजा को ले कर दोनों भाइयों के बीच रंजिश बढ़ गई. हां, इतना जरूर था कि ओमप्रकाश की बहन ऊषा तथा भाई छोटू व प्रमोद उस के पक्ष में थे और उस की हर संभव मदद करते थे.

ओमप्रकाश दहेज उत्पीड़न का मुकदमा वापस लेने के लिए पत्नी पर भी दबाव डाल रहा था. वह उसे हर तरह से ठीक प्रकार रखने का आश्वासन भी दे रहा था. लेकिन पूजा उस की बात नहीं मान रही थी. पूजा के पति से साफ कह दिया कि उसे उस पर भरोसा नहीं रहा. इसलिए मुकदमा वापस नहीं लेगी. ओमप्रकाश को शक था पूजा को उस का जीजा मनोज ही भड़का रहा है जिस से वह उस की बात नहीं मान रही.

पूजा ने पति की बात नहीं मानी तो ओमप्रकाश ने दूसरा रास्ता निकाला. अब वह जब भी ससुराल जाता तो नशे में धुत होता. वह घर में देखता कि कहीं मनोज तो पूजा के साथ रंगरलियां मनाने नहीं आया. पूजा रोकती टोकती तो वह उसे गाली बकता. उस का साला राजकुमार कुछ कहता तो वह उस की पिटाई कर देता था. इस से राजकुमार को भी ओमप्रकाश से नफरत हो गई.

ऐसे ही एक रोज ओमप्रकाश ससुराल पहुंचा तो घर के अंदर मनोज था. ओमप्रकाश को शक हुआ कि सूने घर में मनोज पूजा के साथ रंगरलियां मना रहा होगा. उस ने खा जाने वाली नजरों से मनोज को देखा, फिर पूजा को बुरी तरह मारापीटा.

इस के बाद उस ने मनोज को घर से चले जाने को कह दिया, ‘‘हमारा तुम्हारा रिश्ता साढू का है. तुम पूजा की बहन के सुहाग हो. इसलिए बख्श रहा हूं. कोई दूसरा होता तो इस कमरे से उस की लाश बाहर जाती. कान खोल कर सुन लो. आइंदा पूजा से मिलने की जुर्रत मत करना वरना…’’

मनोज को गुस्सा तो बहुत आया. लेकिन वह अपराधबोध से सिर झुकाए चला गया.

उसी शाम मनोज के मोबाइल पर पूजा का फोन आया, ‘‘मैं तुम्हें बड़ा तीसमार खां समझती थी, पर तुम तो नामर्द निकले. ओमप्रकाश मुझे पीटता रहा और तुम खड़ेखड़े तमाशा देखते रहे. तुम्हें तो उसे वहीं पटक कर जान से मार देना चाहिए था.’’

पूजा की ललकार से मनोज की मर्दानगी जाग गई. खुद का अपमान भी उसे याद आने लगा. गुस्से से तिलमिला कर वह बोला, ‘‘मैं ने ओमप्रकाश को इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि वह तुम्हारा पति है. तुम ने मेरी मर्दानगी को ललकारा है इसलिए अब मैं उसे जान से मार कर ही तुम्हें मुंह दिखाऊंगा.’’

‘‘हां, मार दो.’’ पूजा ने गुस्से की आग में घी डाला, ‘‘जब तक ओमप्रकाश नहीं मरेगा मेरा कलेजा ठंडा नहीं होगा.’’

इस के बाद मनोज ने ओमप्रकाश की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में उस ने अपने साले राजकुमार तथा ओमप्रकाश के बड़े भाई तेजबहादुर को भी शामिल कर लिया.

चूंकि ओमप्रकाश कई बार तेजबहादुर को पीट चुका था और उसे बेइज्जत भी किया. इसलिए वह भाई की हत्या में मनोज का साथ देने को राजी हो गया. राजकुमार को अपनी बहन की प्रताड़ना व बेइज्जती बरदाश्त नहीं थी इसलिए वह भी उस का साथ देने को राजी हो गया.

6 नंवबर, 2018 को तेजबहादुर ने रात आठ बजे मनोज को मोबाइल फोन पर बताया कि ओमप्रकाश विधनू में पप्पू रिपेयरिंग सेंटर पर अपनी मोटरसाइकिल ठीक करा रहा है. वहां से वह बहन ऊषा के घर पतारा जाएगा. तुम पहुंचो, पीछे से मैं भी आ रहा हूं. आज उचित मौका है.

मनोज ने साले राजकुमार को साथ लिया और विधनू पहुंच गया जहां ओमप्रकाश अपनी मोटरसाइकिल ठीक करा रहा था. योजना के अनुसार मनोज अपनी मोटरसाइकिल से विधनू के रिपेयरिंग सेंटर पर पहुंच गया. वहां मनोज ने ओमप्रकाश से दुआसलाम की फिर अपने किए की माफी मांगी. मनोज झुका तो ओमप्रकाश भी नरम पड़ गया.

वैसे भी मनोज कोई गैर नहीं, साढ़ू था. इसलिए ओमप्रकाश ने उसे माफ करते हुए कहा, ‘‘ठीक है भाई साहब, मैं ने तुम्हें माफ किया. मगर गलती दोहराने की कोशिश मत करना.’’

‘‘ठीक है, आइंदा गलती नहीं होगी, लेकिन मैं चाहता हूं कि इस खुशी में आज तुम मेरे साथ पार्टी करो. तब मैं समझूंगा कि तुम ने दिल से मुझे माफ कर दिया है.’’

‘‘जब तुम यह बात कह रहे हो तो मुझे मंजूर है.’’ इस के बाद मनोज और ओमप्रकाश ने ठेके पर जा कर शराब पी. मनोज ने जानबूझ कर ओमप्रकाश को कुछ ज्यादा पिला दी. घर वापसी में मनोज ने शंभुआ हाइवे पुल पर मोटरसाइकिल रोक दी. ओमप्रकाश भी रुक गया. इस के बाद मनोज ने तेज बहादुर को भी बुला लिया.

योजना के मुताबिक राजकुमार ने ओमप्रकाश की मोटरसाइकिल हाईवे किनारे पलट दी. फिर मनोज व तेज बहादुर ने ओमप्रकाश को दबोच लिया और दोनों ने मिल कर चाकू से ओमप्रकाश की गरदन रेत दी.

दुर्घटना दर्शाने के लिए उन लोगों ने उस के शव को सड़क किनारे फेंक दिया. इस के बाद मनोज, राजकुमार के साथ ससुराल पहुंचा और पूजा को उस के पति की हत्या कर देने की जानकारी दी. तेज बहादुर भी अपने घर हंसपुरम आ गया.

7 नवंबर की सुबह शंभुआ हाईवे पुल पर दुर्घटना की सूचना विधनू थानाप्रभारी संजीव चौहान को मिली तो वह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. उस समय वहां भीड़ जुटी थी. इसी भीड़ में से एक शख्स सामने आया और उस ने बताया कि उस का नाम तेजबहादुर है और वह नौबस्ता थाने के हसंपुरम का रहने वाला है. मृतक उस का छोटा भाई ओमप्रकाश है. वह उसे खोजता हुआ यहां पहुंचा था. बीती शाम ओमप्रकाश बहन ऊषा के घर गया था. शायद वहीं से घर लौटते समय उस का एक्सीडेंट हो गया.

चूंकि शव की शिनाख्त हो गई थी इसलिए थानाप्रभारी संजीव चौहान ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. दूसरे रोज जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट उन्होंने पढ़ी तो वह चौंक गए. क्योंकि ओमप्रकाश की मौत सड़क दुर्घटना में नहीं हुई थी बल्कि गला काट कर हत्या करने के बाद उसे सड़क पर डाला गया था ताकि मामला दुर्घटना का लगे.

इस के बाद थानाप्रभारी संजीव चौहान ने मृतक के भाई तेजबहादुर, प्रमोद व छोटू तथा बहन ऊषा से पूछताछ की. तेजबहादुर तो पुलिस को बरगलाता रहा. लेकिन प्रमोद, छोटू व उषा ने शक जाहिर कर दिया. उन्होंने बताया कि ओमप्रकाश की शादी पूजा से हुई थी.

पूजा के अपने बहनोई मनोज से नाजायज संबंध थे. ओमप्रकाश इस का विरोध करता था. पूजा नाराज हो कर मायके चली गई थी. इतना ही नहीं उस ने भाई के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करा दिया था. उन्होंने कहा कि मनोज व पूजा ने ही भाई की हत्या की है.

मनोज शक के घेरे में आया तो थानाप्रभारी संजीव चौहान ने उसे थाने बुलवा लिया. जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. मनोज ने ओमप्रकाश की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

मनोज ने बताया कि उस ने अपने साले राजकुमार व मृतक के बड़े भाई तेज बहादुर के साथ मिल कर ओमप्रकाश की हत्या की थी. मनोज ने यह भी स्वीकार किया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के नाजायज संबंध हैं. उसी के उकसाने पर ओमप्रकाश की हत्या की गई थी.

हत्या का राज खुला तो पुलिस ने मृतक की पत्नी पूजा तथा भाई तेजबहादुर को भी हिरासत में ले लिया. किंतु राजकुमार फरार हो गया. मनोज की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया, जिसे उस ने घर में छिपा दिया था.

थानाप्रभारी संजीव चौहान ने मृतक के छोटे भाई प्रमोद की तरफ से मनोज, पूजा, तेजबहादुर व राजकुमार के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर के उन्हें विधिवत गिरफ्तार कर लिया.

14 नवंबर, 2018 को पुलिस ने हत्यारोपी मनोज, पूजा व तेज बहादुर को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. जबकि राजकुमार फरार था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जीजा साली का जुनूनी इश्क – भाग 2

एक रात अचानक पूजा के पिता जगराम सिंह की नींद खुल गई. उन्हें बेटी के कमरे से खुसरफुसर की आवाजें आईं. जिज्ञासावश उन्होंने बेटी के कमरे में खिड़की से झांका तो छोटी बेटी पूजा को दामाद के साथ देख कर उन का खून खौल गया.

किसी तरह उन्होंने गुस्से पर काबू कर के दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोलना मजबूरी थी, पूजा ने डरते सहमते दरवाजा खोल दिया, सामने पिता को देख कर वह घबरा गई. मनोज माफी मांगते हुए ससुर के पैरों में गिर गया.

बहरहाल, उस समय जगराम ने उन से कुछ नहीं कहा. सुबह होने पर जगराम ने रात वाली बात अपनी पत्नी मीना को बताई. बदनामी के भय से जगराम सिंह व मीना ने शोरशराबा नहीं किया. उन दोनों ने पूजा और मनोज को धमकाया. दोनों सिर झुकाए अपनी फजीहत कराते रहे. कुछ देर बाद मनोज वहां से अपने घर लौट गया.

जगराम सिंह और मीना ने बड़ी बेटी ममता के दांपत्य को कड़वाहट से बचाने के लिए उस के पति की करतूत छिपाए रखी. ससुराल की बात ससुराल में ही दबी रही और वह पूजा के लिए लड़का देखने लगे ताकि जल्द उस के हाथ पीले कर सकें. लेकिन दामाद की करतूत छिपाना जगराम को महंगा पड़ा हुआ.

मनोज के मन में जो डर था वह धीरे धीरे दूर हो गया. एक दिन पूजा ने मनोज को फोन कर के बता दिया कि उस के पिता उस के लिए लड़का ढूंढ रहे हैं. यह जानकारी मिलते ही मनोज एक दिन ससुराल पहुंच गया. उस ने सास ससुर से अपनी गलती की माफी मांग ली. साथ ही यह भी कहा कि आइंदा वह पूजा को साली नहीं बल्कि छोटी बहन मानेगा.

वह उस के साथ वैसा ही व्यवहार करेगा, जैसा एक भाई, अपनी बहन से करता है. जगराम सिंह और मीना के लिए यही बहुत था कि दामाद को अपनी गलती का अहसास हो गया था और उस ने पूजा को बहन मान लिया था. अत: दोनों ने सच्चे दिल से मनोज को माफ कर दिया.

मौका मिलने पर मनोज ने पूजा को बताया, ‘‘तुम्हारी शादी भले ही कहीं हो जाए, मेरे संबंध तुम्हारे साथ पहले की तरह ही रहेंगे.’’ इस पर पूजा ने भी कह दिया, ‘‘मैं भी तुम्हें प्यार करती रहूंगी. तुम्हें कभी नहीं भुला सकूंगी.’’

इस के बाद मनोज अपने ससुर के साथ मिल कर पूजा के लिए लड़का खोजने लगा. इसी बीच जगराम सिंह की मुलाकात तेज बहादुर से हुई. तेजबहादुर कानपुर शहर के हंसपुरम (नौबस्ता) में रहता था. वह जगराम के बड़े भाई सुखराम का दामाद था. उस के साथ सुखराम की बेटी अनीता ब्याही थी. इस नाते वह उस का भी दामाद था.

जगराम ने उस से अपनी बेटी पूजा के लिए कोई लड़का बताने को कहा तो उस ने बताया कि उस का छोटा भाई ओमप्रकाश ब्याह लायक है. ओमप्रकाश कार चालक है और अच्छा कमाता है. तेज बहादुर ने यह भी बताया कि ओमप्रकाश के अलावा उस के 2 अन्य भाई छोटू व प्रमोद हैं. सभी लोग साथ रहते हैं.

चूंकि पुरानी रिश्तेदारी थी. अत: जगराम सिंह ने ओमप्रकाश को देखा तो वह उन्हें पसंद आ गया. पूजा के इस रिश्ते को मनोज ने भी सहमति दे दी. क्योंकि पूजा कहीं दूर नहीं जा रही थी. आपसी सहमति के बाद जगराम सिंह ने 16 फरवरी, 2016 को पूजा का विवाह ओमप्रकाश के साथ कर दिया.

शादी के बाद पूजा अपनी ससुराल हंसपुरम पहुंच गई. पूजा खूबसूरत थी, इसलिए ससुराल में सभी ने उस की सुंदरता की तारीफ की. ओमप्रकाश भी खूबसूरत बीवी पा कर खुश था. चूंकि पूजा और अनीता चचेरी बहनें थीं और एक ही घर में दोनों सगे भाइयों को ब्याही थीं. इसलिए दोनों में खूब पटती थी. पूजा ने अपने व्यवहार से पूरे परिवार का दिल जीत लिया था. वह पति के अलावा जेठ तेजबहादुर तथा देवर प्रमोद व छोटू का भी पूरा खयाल रखती थी.

पूजा ससुराल चली गई तो मनोज उस से मिलने के लिए छटपटाने लगा. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूजा से बात की फिर वह उस की ससुराल जा पहुंचा, चूंकि मनोज, ओमप्रकाश का साढ़ू था, सो सभी ने उस की आवभगत की.

इस आवभगत से मनोज गदगद हो उठा. इस के बाद वह अकसर पूजा की ससुराल जाने लगा. आतेजाते मनोज ने पूजा के जेठ तेजबहादुर से अच्छी दोस्ती कर ली. दोनों की साथसाथ भी महफिल जमने लगी.

मनोज जब भी पूजा की ससुराल पहुंचता तो वह उस के आसपास ही घूमता रहता था. वह उस से खूब हंसीमजाक करता और ठहाके लगा कर हंसता. उस की द्विअर्थी बातों से कभीकभी पूजा तिलमिला भी उठती और उसे सीमा में रहने की नसीहत दे देती.

ओमप्रकाश को साढ़ू का रिश्ता पंसद नहीं था. न ही उसे मनोज का घर आना और पूजा से हंसीमजाक करना अच्छा लगता था. वह मन ही मन कुढ़ता था. लेकिन विरोध नहीं जता पाता था.

एक रोज ओमप्रकाश ने मनोज के आनेजाने को ले कर अपनी पत्नी पूजा से बात की और कहा कि उसे आए दिन मनोज का यहां आनाजाना पसंद नहीं है. न मैं उस के घर जाऊंगा और न ही वह हमारे घर आया करे. मुझे उस की बेहूदा बातें और भद्दा हंसीमजाक बिलकुल पसंद नहीं है. तुम उसे यहां आने से साफ मना कर दो.

लेकिन पूजा ने मनोज को मना नहीं किया. वह पहले की तरह ही वहां आता रहा. बल्कि अब वह कभीकभी रात को वहां रुकने भी लगा था. मनोज की गतिविधियां देख कर ओमप्रकाश का माथा ठनका. उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा. उस ने गुप्त रूप से पता लगाया तो जानकारी मिली कि शादी के पहले से ही पूजा और मनोज के बीच नाजायज संबंध थे.

मनोज ने इस बारे में पूजा से बात की तो कड़वी सच्चाई सुन कर पूजा उखड़ गई. उस ने साफ कहा कि उस के और जीजा के बीच कोई नाजायज संबंध नहीं थे और न हैं. कोई उन दोनों को बदनाम करने के लिए इस तरह की बातें कर रहा है. पूजा ने भले ही कितनी सफाई देने की कोशिश की लेकिन उस के पति के दिमाग में तो शक का बीज अंकुरित हो चुका था.

नतीजा यह हुआ कि इन बातों को ले कर उन के घर में कलह होने लगी. कभीकभी कहासुनी इतनी बढ़ जाती कि नौबत मारपीट तक जा जाती थी. इस कलह की जानकारी मनोज को हुई तो उस ने पूजा की ससुराल जाना बंद कर दिया. लेकिन पूजा के जेठ तेजबहादुर से उस ने नाता नहीं तोड़ा और दोनों घर के बाहर महफिल जमाते रहे.

मनोज का घर आनाजाना बंद हुआ तो पूजा खिन्न रहने लगी. वह अपने पति से बातबेबात झगड़ने लगती. दोनों के बीच दूरियां भी बढ़ने लगीं. इस का परिणाम यह हुआ कि ओमप्रकाश ने शराब पीनी शुरू कर दी. वह देर रात नशे में चूर हो कर घर लौटता तो आते ही पत्नी को गालियां बकनी शुरू कर देता था. उस पर चरित्रहीनता का लांछन लगाता.

पूजा कुछ बोलती तो वह उस की पिटाई कर देता था. पूजा की चीखपुकार सुन कर उस का जेठ तेजबहादुर बीचबचाव करने आता तो ओमप्रकाश बडे़ भाई से भी भिड़ जाता था. इतना ही नहीं वह उस के साथ भी मारपीट करने लगता.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 5

मैं आगे बढ़ता रहा. थकान भूखप्यास से बुरा हाल था पर खुदा मुझ पर मेहरबान था. आगे मुझे कुछ मकान दिखने लगे. मेरा घोड़ा भी लस्तपस्त हो गया था. मैं थोड़ा आगे बढ़ा तो एक होटल नजर आया. खाने की खुशबू बाहर तक आ रही थी. पर मेरे पास पैसे नहीं थे, मैं वहीं थक कर बैठ गया. होटल के काउंटर पर बैठा शख्स मुझे गौर से देख रहा था.

कुछ देर बाद वह उठ कर बाहर आया और मुझे ध्यान से देखते हुए बोला, ‘‘यहां पहली बार दिख रहे हो, परदेसी हो क्या?’’

मैं ने बेबसी से कहा, ‘‘हां परदेसी हूं. भूखा हूं, पर जेब में पैसे नहीं हैं.’’

‘‘तुम कुछ पढ़ेलिखे हो? अंगरेजी बोल सकते हो, कुछ हिसाबकिताब कर सकते हो? दरअसल, मेरे यहां जो आदमी काम करता था, वह बाहर चला गया है, तुम मुझे जरूरतमंद और काबिले भरोसा लग रहे हो.’’

मैं ने झट से जवाब दिया, ‘‘मैं अंगे्रजी बोल सकता हूं, हिसाबकिताब भी कर सकता हूं. आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं.’’

होटल के मालिक आदम शेख ने मुझे होटल में रख लिया. होटल के पीछे ही मुझे रिहाइश भी मिल गई. मैं पूरी ईमानदारी से काम करने लगा. ऐतिहासिक शहर होने की वजह से वहां अंगरेज टूरिस्ट आते थे. इसलिए मेरी अहमियत और बढ़ गई. यहां मेरी अंगरेजी की काबिलियत काम आई.

मुझे जो जहर ऐना ने दिया था जब वह जिस्म से निकला तो मेरी बुराइयां भी निकल गईं. शायद मैं पूरी तरह बदल गया. देखने में मैं वैसे भी काफी स्मार्ट था. अब रहनसहन, आदतें बदलने से मेरी निखरी हुई शख्सियत से आदम शेख बहुत प्रभावित हुआ. मेरे काम ने उस का दिल जीत लिया था.

वक्त मुझ पर मेहरबान हुआ, आदम शेख ने अपनी इकलौती बेटी नूरी की शादी मुझ से कर दी. उस ने होटल की सारी जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दी. एक खूबसूरत, समझदार बीवी ने मेरी जिंदगी में खुशियां भर दीं. पर दिल की टीस किसी हाल में कम नहीं हुई. जब भी मुझे बाबर और ऐना का जालिमाना रवैय्या याद आता, मेरे जिस्म में जैसे आग सी भर जाती. जुनून सा सवार हो जाता.

मैं ने इस आग को दबाने की बहुत कोशिश की पर वक्त के साथ तपिश बढ़ती गई. दिल चाहता एक बार फिर अजीरा जाऊं और उन दोनों को ऐसी सजा दूं कि उम्र भर याद रखें. मैं ने उन का कुछ नहीं बिगाड़ा था फिर भी उन दोनों ने मुझे जहर दिया और जब मैं ने उस का मुआवजा वसूल किया तो ऐसा सुलूक किया जिसे मैं आज तक नहीं भूल सका.

जिंदगी और मौत की 4 घंटे की वो कशमकश, वो खौफ और दहशत के पल मैं कैसे भूल सकता था. जहर के असर होने के डर से मैं जीतेजी कई बार मरा.

गनीमत यही थी कि मैं मजबूत शरीर का मालिक था जो ये सब झेल गया. कमजोर दिल तो मौत की सोच कर ही मर जाता. अपने सुकून की खातिर मैं ने एक बार अजीरा जाने का फैसला कर लिया.

उन दिनों होटल में काम कम था. मैं ने अपने एक भरोसेमंद साथी को जिम्मेदारी सौंपी. मैं ने नूरी और आदम शेख से एक बहुत जरूरी काम का बहाना किया और अजीरा के लिए रवाना हो गया. वक्त इतना ज्यादा नहीं गुजरा था कि मुझे रास्ता ढूंढ़ने में परेशानी होती.

जब मैं डा. जव्वाद के फार्म हाउस के गेट पर पहुंचा शाम हो रही थी. इस बीच फार्महाउस में थोड़े बदलाव हुए थे. गेट पर घंटी लगी थी. मैं ने बेहिचक घंटी बजाई तो एक उम्रदराज शख्स ने गेट खोला. मेरे कहने पर वह मुझे डाक्टर जव्वाद के पास उन के क्लीनिक वाले पोर्शन में ले गया.

कुछ पल डाक्टर मुझे गौर से देखता रहा. फिर उस की आंखों में चमक उभरीं. मुझे पहचानते ही वह खड़ा हुआ और बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘तुम…तुम… शमशेर हो न, बहुत अच्छा लगा. तुम्हें यहां देख कर.’’

मैं ने अपने साथ लाए तोहफे डाक्टर को पेश करते हुए कहा, ‘‘डा. साहब, मैं इधर से गुजर रहा था, दिल चाहा कि आप से मिलता चलूं. आप की मदद और कुदरत की मेहरबानी से बहुत खुशहाल और शानदार जिंदगी जी रहा हूं. अकसर याद आती थी आप की, आज मिलने का मौका मिल गया.’’

डा. जव्वाद हालचाल पूछता रहा, फिर कहने लगा, ‘‘मुझे अजीरा मे एक सीरियस पेशेंट को देखने जाना है, चाहो तो गेस्ट रूम में आराम करो या मेरे साथसाथ चलो.’’

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं आप के साथ चलूंगा. इस बहाने कस्बा भी घूम लूंगा.’’ मेरे दिल में बाबर के बारे में जानने की बेचैनी थी, इसलिए मैं चाय पीने के बाद डाक्टर के साथ निकल पड़ा. जानेपहचाने रास्ते, डाक्टर की बग्घी जब बाबर की हवेली के आगे रुकी तो मैं हैरान रह गया. डाक्टर के साथ अंदर पहुंचा तो हवेली में एक अजब सी उदासी और खामोशी थी.

सामने जहाजी साइज पलंग पर एक कंकाल सा वजूद पड़ा हुआ था. तभी डाक्टर की आवाज मेरे कानों से टकराई, ‘‘कैसे हो बाबर? तकलीफ कुछ कम हुई या नहीं?’’ मुझे एक झटका सा लगा. हड्डियों का वह ढांचा बाबर है, यकीन नहीं आ रहा था. मेरे कानों में एक कांपती हुई सी आवाज पड़ी, ‘‘बड़ी तकलीफ है, कुछ करो डाक्टर.’’

डाक्टर और उस के नौकर ने बड़ी मुश्किल से उसे उठा कर दवा पिलाई. वह हाथ हिलाने के काबिल भी नहीं था. आंखें धंसी हुईं. चेहरे पर झुर्रियां, गले की लटकी हुई खाल. वह कहीं से बाबर नजर नहीं आ रहा था. मैं उस से बदला लेना चाहता था पर उसे इस हालत में देख कर मैं एक अजीब असमंजस में पड़ गया.

वापसी पर मैं ने डा. जव्वाद से पूछा, ‘‘इसे क्या हो गया डाक्टर? बाबर तो बहुत तंदुरुस्त और कडि़यल जवान था.’’

डाक्टर के चेहरे पर एक रहस्यमय मुसकान फैल गई. वह धीरे से बोला, ‘‘कभीकभी पहाड़ भी अनदेखे ज्वालामुखी से टकरा कर किरचा किरचा हो जाते हैं. हम लोग 2-3 दिन के लिए पहाड़ी इलाके में गए थे. मेरे और ऐना के साथ बाबर भी था. ऐना उसे साथ ले जाने की जिद कर रही थी इसलिए मैं टाल न सका. वहां आदिवासियों ने हम लोगों की बड़ी मेहमाननवाजी की.

‘‘वहां पता नहीं कैसे बाबर जहरीली बूटी खा गया. इत्तफाक से मैं अपनी दवाइयां साथ ले जाना भूल गया था. उस के इलाज में काफी देर हो गई, जहर अंदर तक असर कर चुका है. अब मेरी दवाएं भी फायदा नहीं कर रही हैं. 15 दिन से ऐसी ही शदीद तकलीफ में है.’’

‘‘पर डाक्टर साब आप तो दवाइयां हमेशा अपने साथ रखते हैं, ऐसा कैसे मुमकिन है?’’  मैं ने पूछा तो डाक्टर की आंखों में अजीब सी चमक उभरी.

‘‘शमशेर कुछ चीजें न चाहते हुए भी हो जाती हैं. हो सकता है, उस ने जहर खाया न हो, उसे खिलाया गया हो. जो लोग दूसरों की जिंदगी में जहर घोलते हैं उन्हें भी तो पता चलना चाहिए कि असल में जहर का असर कितना घातक होता है?

‘‘अपनी इज्जत और शोहरत को मैं इस तरह दांव पर नहीं लगा सकता था. इस शर्मनाक मसले का यही एक हल था. ऐना को भी तसल्ली है कि मैं जीजान से बाबर का इलाज कर रहा हूं. ये अलग बात है कि उस की जिंदगी के चंद दिन बाकी हैं.’’

डाक्टर के लहजे की बेरहमी और उस की आंखों की जालिमाना चमक से मैं सारा मामला समझ गया. पिकनिक पर डाक्टर को ऐना और बाबर के ताल्लुक के बारे में यकीन हो गया होगा और उस ने वही किया जो एक इज्जतदार शौहर को करना चाहिए था. उस की बात सुन कर मेरे दिल को बहुत सुकून मिला.

जीजा साली का जुनूनी इश्क – भाग 1

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नौबस्ता थाने के अंतर्गत एक कालोनी है खाड़ेपुर. यह कालोनी  कानपुर विकास प्राधिकरण ने मध्यमवर्गीय आवास योजना के तहत विकसित की थी. इसी कालोनी के बी-ब्लौक में जगराम सिंह अपने परिवार के साथ रहता था.

उस के परिवार में पत्नी मीना सिंह के अलावा 2 बेटियां ममता, पूजा के अलावा एक बेटा राजकुमार था. जगराम सिंह पनकी स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. फैक्ट्री से मिलने वाली तनख्वाह से उस के घर का खर्च आसानी से चल जाता था.

बड़ी बेटी ममता की इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद जगराम सिंह ने उस की शादी कानपुर के कठारा निवासी मनोज से कर दी. मनोज 3 बहनों का एकलौता भाई था. पिता अपनी पुश्तैनी जमीन पर सब्जियां उगाते थे. मनोज उन सब्जियों को टैंपो से नौबस्ता मंडी में थोक में बेच आता था. इस से अच्छाखासा मुनाफा हो जाता था.

मनोज गांव से टैंपो पर सब्जी लाद कर नौबस्ता मंडी लाता था. नौबस्ता से खाडे़पुर कालोनी ज्यादा दूर नहीं थी. इसलिए वह हर तीसरेचौथे दिन ससुराल पहुंच जाता था.

नईनई शादी हुई हो तो दामाद के लिए ससुराल से बेहतरीन कोई दूसरा घर नहीं होता. इस का एक कारण भारतीय परंपरा भी है. दामाद घर आए तो सभी लोग उस के आगमन से विदाई तक पलक पावड़े बिछाए रहते हैं. खूब स्वागतसत्कार होता है. विदाई के समय उपहार भी दिया जाता है. यह उपहार सामान की शक्ल में भी होता है और नकदी के रूप में भी.

मनोज की ससुराल में दिल लगाने, हंसीमजाक और चुहल करने के लिए एक जवान और हसीन साली भी थी पूजा. हालांकि एक साला राजकुमार भी था, मगर मनोज उसे ज्यादा मुंह नहीं लगाता था. उस की कोशिश पूजा के आसपास बने रहने और उस के साथ चुहलबाजी, छेड़छाड़ करते रहने की होती थी. पूजा भी उस से खुल कर हंसीमजाक करती थी. दोनों में खूब पटती थी.

पूजा के घर वाले पूजा और मनोज की चुहलबाजी को जीजासाली की स्वाभाविक छेड़छाड़ मानते थे और उन दोनों की नोकझोंक पर खुद भी हंसते रहते थे. ससुराल वाले मनोज को दामाद कम बेटा अधिक मानते थे. दरअसल मनोज ने अपने कुशल व्यवहार से अपनी सास व ससुर का दिल जीत लिया था. वह उन के घरेलू काम में भी मदद कर देता था. इसी के चलते वह मनोज पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करने लगे थे.

मनोज जब ससुराल में ज्यादा आनेजाने लगा तो उस का धंधा भी प्रभावित होने लगा. पिता ने डांटा तो उस के दिमाग से ससुराल का नशा उतरने लगा. जिंदगी की ठोस हकीकत सामने आनी शुरू हुई तो मनोज का ससुराल में जल्दीजल्दी आनाजाना बंद हो गया. हां, फुरसत मिलने पर वह ससुराल में हो आता था.

पत्नी चाहे जितनी खूबसूरत हो, उस का नशा हमेशा नहीं रहता. वह जितनी तेजी से चढ़ता है उतनी ही तेजी से उतरने भी लगता है. शादी के 2 साल बाद ही मनोज को ममता बासी और उबाऊ लगने लगी. पत्नी से मन उचटा तो कुंवारी और हसीन साली पूजा में रमने लगा.

मन नहीं माना तो मनोज ने फिर से ससुराल के फेरे बढ़ा दिए. पर इस बार मनोज का ससुराल आना बेमकसद नहीं था. उस का मकसद थी पूजा. लेकिन ममता को पति के असली इरादे की भनक नहीं थी. वह तो यही समझती थी कि मनोज उस के परिवार का कितना खयाल रखता है, जो वह उस के मातापिता की मदद करने के लिए उस के मायके चला जाता है. पत्नी के इसी विश्वास की आड़ में मनोज अपना मकसद पूरा करने में लगा था.

ससुराल पहुंचने पर मनोज की आंखें साली को ही खोजती रहती थीं, वह पूजा से मौखिक छेड़छाड़ तो पहले से करता था, अब उस ने मौका मिलने पर शारीरिक छेड़छाड़ भी शुरू कर दी थी. पूजा को यह सब अजीब तो लगता था मगर वह जीजा का विरोध नहीं करती थी. वह सोचती थी कि कहीं जीजा बुरा न मान जाएं.

एक दिन मनोज मर्यादा की हद लांघ गया. उस दिन पूजा के मातापिता कहीं गए थे और भाई राजकुमार अपने दोस्तों के साथ घूमने के लिए निकल गया.

घर में केवल पूजा और मनोज ही थे. अच्छा मौका पा कर मनोज ने पूजा को आलिंगबद्ध कर लिया. पूजा उस के चंगुल से छूटने को कसमसाई तो वह उस के गालों पर होंठ रगड़ने लगा. इस के बाद उस ने पूजा की गरदन को गर्म सांसों से सहला दिया.

यह पहला मौका था, जब किसी पुरुष ने पूजा को मर्दाना स्पर्श की अनुभूति कराई थी. मनोज के स्पर्श से वह रोमांच से भर गई. इस के बावजूद किसी तरह उस ने मनोज को अपने से दूर कर दिया. पूजा ने नाराजगी से मनोज को देखते हुए कहा, ‘‘जीजा, पिछले कुछ दिनों से मैं ने नोट किया है कि तुम कुछ ज्यादा ही शरारत करने लगे हो.’’

‘‘तुम ने सुना ही होगा कि साली आधी घर वाली होती है.’’ मनोज ने भी बेहयाई से हंसते हुए कहा, ‘‘तो मैं तुम पर अपना अधिकार क्यों न जताऊं.’’

‘‘नहीं जीजा, यह सब मुझे पसंद नहीं है.’’ वह बोली.

‘‘सच कहता हूं पूजा, तुम ममता से ज्यादा खूबसूरत और नशीली हो.’’ कहते हुए मनोज ने उस का हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रख दिया, ‘‘मेरी बात का यकीन न हो तो इस दिल से पूछ लो, जो तुम्हें प्यार करने लगा है. काश, मेरी शादी ममता के बजाए तुम से हुई होती.’’

‘‘जीजा, तुम हद से आगे बढ़ रहे हो,’’ कह कर पूजा ने हाथ छुड़ाया और वहां से चली गई. मनोज ने उसे रोकने या पकड़ने का प्रयास नहीं किया. वह अपनी जगह पर खड़ा मुसकराता रहा.

पूजा पत्थर हो, ऐसा नहीं था. जीजा की रसीली बातों और छेड़छाड़ से उस के मन में भी गुदगुदी होने लगी थी.

बहरहाल, उस दिन के बाद से मनोज पूजा से जुबानी छेड़छाड़ कम और जिस्मानी छेड़छाड़ ज्यादा करने लगा. अब वह उस का विरोध भी नहीं करती थी. पूजा का अपने जीजा से लगाव बढ़ गया. वह स्वयं सोचने लगी कि शादी जब होगी, तब होगी. क्यों न शादी होने तक जीजा से मस्ती कर ली जाए. परिणाम वही हुआ, जो ऐसे मामलों में होता है.

शादी के पहले ही पूजा ने खुद को जीजा के हवाले कर दिया. इस के बाद तो वह जीजा की दीवानी हो गई. मनोज भी आए दिन ससुराल में पड़ा रहने लगा. रात को अपने बिस्तर से उठ कर वह चुपके से पूजा के कमरे में चला जाता और सुबह 4 बजे अपने बिस्तर पर आ जाता था.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 4

शाम का अंधेरा फैल रहा था. गलियां लैंप पोस्टों से रोशन हो चुकी थीं. वह एक छोटा सा साफसुथरा कस्बा था. वहां के लोग खुशहाल लग रहे थे. मैं बताए गए पते पर पहुंच गया. वह एक बड़ी शानदार हवेली थी. अहाता लैंपों की रोशनी में चमक रहा था. गेट के पास एक खूबसूरत बग्घी खड़ी थी. एक तरफ अस्तबल में घोड़े बंधे थे. मैं ने सोचा किस्मत की बड़ी धनी औरत है ऐना. शौहर भी अमीर और महबूब भी.

जुआरी होने की वजह से मेरी जेब हमेशा खाली रहती थी. बस आखिरी बार जो रकम मेरे हाथ लगी थी वही मेरे पास थी. मुझे इस कस्बे से दौलत की खुशबू आ रही थी. खुशकिस्मती से तुरूप का पत्ता मेरे हाथ लग गया था. अगर मैं एहतियात से खेलता तो एक बड़ी रकम हाथ लग सकती थी. मैं हवेली देख कर लौट आया.

रात का खाना खाने के बाद मैं दवा ले कर डाक्टर के साथ गपशप करने लगा. बातों बातों में मैं ने कस्बे की शानदार हवेली का जिक्र किया तो डाक्टर ने नागवारी से कहा, ‘‘वह हवेली बाबर की है. उस के बाप को कहीं से खजाना मिल गया था, इसलिए इतनी दौलत छोड़ कर मरा है कि वह सारी उम्र उड़ाए तो भी खत्म नहीं होगी.

‘‘बेटा निकम्मा और ऐशपरस्त निकला, बाप की दौलत पर ऐश कर रहा है, नालायक आदमी.’’ डाक्टर के लहजे से बाबर के लिए नफरत साफ झलक रही थी. दवा से मुझे गहरी नींद आई.

सुबह उठा तो एकदम ताजादम था. जब मैं नीचे उतरा तो डाक्टर कहीं गया हुआ था, ऐना नाश्ता लगा रही थी. वह मुझे नाश्ता सर्व करते हुए बोली, ‘‘कल तुम डाक्टर से बाबर का जिक्र कर रहे थे और शायद तुम उस की हवेली भी देख आए हो. मैं तुम्हें आगाह करना चाहती हूं कि तुम उस से पंगा न लो तो तुम्हारे लिए अच्छा रहेगा. वह बहुत खतरनाक आदमी है.’’

‘‘चलो, मैं तुम्हारी बात मान कर उस से पंगा नहीं लेता, पर तुम दोनों की आशिकी की बात तो सब को बता सकता हूं.’’

‘‘उस से कोई फायदा नहीं होगा, हम साफ इनकार कर देंगे. तुम यहां अजनबी हो, डाक्टर भी तुम्हारी बात का यकीन नहीं करेगा. वो मुझ से बेहद मोहब्बत करता है. वैसे भी इस कस्बे में हमारी बहुत इज्जत और अहमियत है, सब तुम्हें ही झूठा कहेंगे. ये भी मुमकिन है कि एक शरीफ डाक्टर की बीवी पर झूठा इलजाम लगाने की वजह से तुम खुद फंस जाओ.’’

निस्संदेह वह औरत बड़ी शातिर थी. मेरी बातों से जरा भी नहीं घबराई. उस की इस बात में दम था कि एक अजनबी पर कोई यकीन नहीं करेगा. पर अभी भी मेरे हाथ में एक प्लसपौइंट था. मैं ने कहा, ‘‘तुम शायद यह भूल रही हो कि तुम ने मुझे जहर दे कर मारने की कोशिश की थी.’’

इस बार वह थोड़ा घबराई, ‘‘पर इस का क्या सुबूत कि मैं ने तुम्हें जहर दिया था?’’

‘‘इस बात की गवाही खुद डाक्टर जव्वाद देगा कि मुझे जहर दिया गया था. तुम्हारे घर से निकलने के बाद उस रास्ते में कहीं ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां कुछ खायापिया जा सकता. तुम्हारे फार्महाउस से निकलने के 2 घंटे बाद मेरी तबियत बिगड़ने लगी, उल्टी हुई, पेट में जानलेवा दर्द था.

‘‘डाक्टर ने दवा दे कर मेरी जान बचाई. मैं तुम्हारे फार्महाउस में रुका था, तुम ने मुझे खाना खिलाया. यह सब डाक्टर को बता कर मैं तुम पर इलजाम लगाऊंगा. जब बात फैलेगी तो सोचो तुम्हारी क्या इज्जत रह जाएगी. तुम्हारी वजह से डाक्टर की अलग बदनामी होगी क्योंकि कस्बे के कुछ लोग तो जरूर तुम्हारे और बाबर के नाजायज ताल्लुक के बारे में जानते होंगे.’’

‘‘तुम ऐसा नहीं कर सकते.’’ उस का लहजा कमजोर पड़ गया. ‘‘मैं ऐसा ही करूंगा.’’ मैं ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘तुम और बाबर अगर मेरी डिमांड पूरी नहीं करते तो?’’

‘‘तुम्हारी क्या डिमांड है?’’

‘‘सिर्फ 50 हजार रुपए.’’ उस जमाने में यह एक बहुत बड़ी रकम होती थी. 50 हजार की मांग सुन कर उस की आंखें फैल गईं, बोली, ‘‘ये तो बहुत ज्यादा है?’’

‘‘अगर तुम अपनी इज्जत बरकरार रखना चाहती हो तो ये रकम देनी ही पड़ेगी. अपने महबूब को समझाना तुम्हारा काम है. वह लखपति है, उस के लिए 50 हजार कोई बड़ी रकम नहीं है.’’

ऐना चिढ़ कर बोली, ‘‘वह मेरा महबूब नहीं है, वो तो बस एक वक्ती ताल्लुक था.’’

‘‘जब वह तुम्हारा आशिक नहीं है तो तुम डाक्टर को क्यों धोखा दे रही थीं?’’ उस ने धीरे से कहा, ‘‘ये बात तुम नहीं समझोगे.’’

‘‘मुझे समझना भी नहीं है, तुम्हारे पास 2 दिन की मोहलत है. पैसे दे दो वरना कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जाओगी.’’ मैं ने कहा तो उस का चेहरा पीला पड़ गया. मैं उसे वहीं छोड़ कर बाहर निकल गया.

खाने के समय डाक्टर से मुलाकात हुई. उस ने कहा, ‘‘अब तुम्हारी हालत ठीक है, चाहो तो तुम कल जा सकते हो. अब सफर में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

मैं सोच रहा था कि यहां से निकल कर किसी नए शहर में अपनी पहचान छिपा कर रहूंगा. वैसे भी अब बढ़ी हुई दाढ़ी की वजह से मेरा हुलिया काफी कुछ बदल गया था. मैं ने ऐना पर दबाव डालने के लिए जानबूझ कर डाक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, अगर मैं उन लोगों के खिलाफ रिपोर्ट करना चाहूं. जिन्होंने मुझे जहर दिया था तो क्या आप मेरा साथ देंगे?’’

‘‘हां जरूर, ये एक संगीन जुर्म है. एक डाक्टर होने के नाते मैं ये गवाही जरूर दूंगा कि तुम्हें जहर दिया गया था. ये तो तुम्हारा हक बनता है.’’

‘‘शुक्रिया डा. साहब, सही मानों में आप एक नेक इंसान हैं, मैं आप के अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा.’’

ऐना किचन के पास खड़ी सब सुन रही थी. कुछ देर बाद वह एक बैग ले कर बाहर आई और डाक्टर से बोली, ‘‘मुझे काम से बाहर जाना है. आप को बग्घी की जरूरत तो नहीं है, मैं ले जाऊं?’’

‘‘हां ले जाओ. मैं अब आराम करूंगा,’’ कहते हुए वह उठ कर अपने कमरे में चला गया. कुछ देर बाद मैं भी घोड़ा ले कर ऐना के पीछे निकल गया.

पहले वह एक जनरल स्टोर में गई. फिर कुछ सब्जियां लीं और सीधी बाबर की हवेली की तरफ चली गई. सारा काम मेरी मंशा के मुताबिक हो रहा था. कुछ देर वहां रुक कर वह वापस फार्महाउस चली गई. मैं चुपचाप छिपा खड़ा सब देख रहा था. थोड़ी देर बाद बाबर बग्घी ले कर बाहर निकला, उस का रुख बैंक की तरफ था. मेरा काम हो गया था, मैं फार्महाउस लौट आया.

रात के खाने के बाद डाक्टर ने मुझे दवा का आखरी डोज दिया और मैं ने उस की मुंहमांगी फीस अदा की. वह खुश हो कर अपने शयन कक्ष में चला गया. मैं ऐना के पास बैठ गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘मेरा खयाल है, तुम ने बाबर से बात कर ली होगी.’’

‘‘हां, मुझे पता है, तुम मेरा पीछा कर रहे थे. मैं ने बाबर को बामुश्किल 25 हजार देने को राजी किया है. वह भी इस शर्त पर कि तुम फौरन यहां से रवाना हो जाओगे और कभी पलट कर इस तरफ नहीं आओगे.’’

मुझे 25 हजार ठीक लगे. मैं ने कहा, ‘‘पैसे मिलने के बाद यहां लौट कर क्या करूंगा? तुम्हारे हाथ से जहर खा कर हिम्मत टूट गई है.’’

मैं उठ कर अपने कमरे में आ गया. सुबह मुझे निकलना था, मैं डाक्टर से इजाजत ले चुका था. बस अब मुझे रकम का इंतजार था. करीब एक घंटे बाद ऐना आई. उस के हाथ में एक थैली थी.

वह थैली मुझे थमाते हुए बोली, ‘‘ये लो पूरे 25 हजार हैं, सुबह होते ही यहां से निकल जाना वरना अपने अंजाम के तुम खुद जिम्मेदार होगे.’’

मैं ने थैली ले कर पैसे गिने. फिर उसे शुक्रिया कहा तो वह गुस्से में बोली, ‘‘कल सवेरे जल्दी दफा हो जाना.’’

वह पैर पटकती हुई बाहर निकल गई. मैं ने थैली संभाल कर कपड़ों में छिपाई. फिर कल लाई शराब के कुछ घूंट ले कर मैं ने पैसे मिलने की खुशी मनाई और सो गया.

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जब मेरी आंख खुलीं तो मेरे चेहरे पर तेज धूप पड़ रही थी. कुछ देर तक कुछ भी समझ में नहीं आया. फिर एकदम बौखला कर उठ बैठा. मैं डाक्टर के घर के आरामदेह बिस्तर पर नहीं बल्कि रेत पर पड़ा हुआ था. मैं ने अपने कपड़े टटोले, मेरे पैसे और हथियार गायब थे. सामने देखा तो बाबर घोड़े पर बैठा था. उस की बंदूक की नाल मेरी तरफ उठी हुई थी.

मैं ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘मैं यहां कैसे?’’

‘‘बहुत आसानी से, रात को क्लोरोफार्म, सुंघा कर तुम्हें बेहोश किया और फिर तुम्हें तुम्हारे घोड़े पर डाल कर यहां ले आया. ये जगह फार्महाउस से 4 घंटे की दूरी पर है.’’ मेरी नजर अपने घोड़े पर पड़ी जो झाडि़यों में मुंह मार रहा था. अब न मेरे पास मेरे हथियार थे, न पैसे. मैं एकदम खाली हाथ था. मैं ने परेशान हो कर पूछा, ‘‘क्या तुम मुझे कत्ल करना चाहते हो?’’

‘‘नहीं, पर तुम ने मुझ से पंगा लेने की भूल की है, उस की सजा तो मिलेगी.’’

‘‘कैसी सजा?’’

बाबर ने बंदूक का रूख मेरी तरफ करते हुए कहा, ‘‘शमशेर तुम्हारे पास दो रास्ते हैं. पहला यह कि मैं तुम्हें गोली मार दूं और दूसरा यह कि,’’ उस ने शराब की एक छोटी बोतल मेरी तरफ उछालते हुए कहा, ‘‘इस शराब को पी लो. इस में वही जहर मिला हुआ है जिस का स्वाद तुम चख चुके हो.’’

उस की बात सुन कर मेरे हाथ से बोतल नीचे गिर गई. बाबर निशाना साधते हुए बोला. ‘‘मैं 10 तक गिनूंगा, इस बीच तुम ने जहर नहीं पिया तो मैं तुम्हें गोली मार कर चला जाऊंगा. एक दो तीन…’’

मैं तड़प कर बोला, ‘‘एक मिनट रुको.’’ मैं बुरी तरह कांप रहा था.

उस ने मुझे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘जहर पीने के बाद तुम्हारे पास जान बचाने के लिए 2 ढाई घंटे होंगे. इस बीच अगर तुम किसी बस्ती तक पहुंच गए तो अपनी जान बचा सकते हो. कोई भी डाक्टर तुम्हारा इलाज कर देगा. पर एक बार गोली चल गई तो बचने का कोई चांस नहीं है. इसलिए जहर पीना ही तुम्हारा नसीब है.’’

वह फिर गिनती गिनने लगा. जब वह 9 तक पहुंचा तो मैं ने बोतल मुंह से लगा ली. वह मुझे शराब पीता देख मुसकरा कर बोला, ‘‘अच्छा किया, तुम ने दूसरा रास्ता चुना. पर अजीरा का रुख न करना क्योंकि वहां तक नहीं पहुंच सकोगे. वैसे भी मेरे आदमी तुम्हारी ताक में हैं.’’

मेरे हाथ से खाली बोतल छीन कर वह घोड़ा दौड़ाते हुए उल्टी तरफ निकल गया. मेरे पास वक्त कम था. मैं ने लपक कर घोड़ा संभाला और घोड़े को विपरीत दिशा में दौड़ाने लगा. इस बार मैं ने जीतने के लिए जिंदगी की बाजी खेली थी और इस जुए में मुझे हर हाल में जीतना था. दांव पर चूंकि मेरी जान लगी हुई थी इसलिए मुझे हर हाल में 2 घंटे में किसी शहर या आबादी में पहुंचना था.

घोड़ा भी शायद मेरी परेशानी समझ कर हवा से बातें करने लगा. मैं भूखप्यास धूप की परवाह किए बिना घोड़ा दौड़ाता रहा. अचानक मुझे अहसास हुआ कि मुझे सफर करते हुए 4 घंटे से ज्यादा गुजर चुके हैं. सूरज सिर पर आ चुका था पर अभी तक जहर ने कोई असर नहीं दिखाया था. मेरी तबियत बिलकुल ठीक थी. इस बीच कोई बस्ती भी नहीं आई थी.

मैं समझ गया बाबर ने जहर की बात झूठ कही थी. निस्संदेह वह चाहता होगा कि मैं जल्द से जल्द उस जगह से बहुत दूर निकल जाऊं. पर इस बीच खौफ और परेशानी में मेरा जो हाल हुआ वह मैं ही जानता था.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 3

डाक्टर की बग्घी बहुत शानदार थी. उस में मोटे गद्दे और नरम कुशन लगे थे. बैठने और लेटने के लिए बड़ी आरामदायक जगह बनाई गई थी. एक काला सा आदमी डाक्टर का कोचवान था.

डाक्टर जव्वाद ने मुझ से यह नहीं पूछा कि मैं कौन हूं, कहां से आया हूं. मैं भी चुपचाप आंख बंद कर के लेटा रहा. कुछ देर बाद उस ने मुझे दूध के साथ दवा दी.

दवाई पी कर मैं ने बग्घी से उतरना चाहा तो मुझे एकदम से जोर का चक्कर आ गया. डाक्टर ने मुझे फिर लिटा दिया. कुछ देर बाद उस ने मुझे नाश्ता और कुछ फल खिलाए. फिर कहा, ‘‘अभी तुम लेटे रहो, चलनाफिरना मुश्किल है. तुम्हें बहुत कमजोरी हो गई है.’’

मैं सोचने लगा कि आहन और तूबा ने मुझे जहर क्यों दिया, उन से मेरी कोई दुश्मनी भी नहीं थी. मेरी आंखों में तूबा का खूबसूरत चेहरा घूम गया. मैं सोच भी नही सकता था कि हुस्न भी इतना जहरीला हो सकता है.

बग्घी वहां से रवाना हो गई. मेरा घोड़ा पीछे आ रहा था. एकाएक डाक्टर ने पूछा, ‘‘तुम्हें जहर किस ने दिया?’’

‘‘मैं एक फार्महाउस पर रुका था. वहां रहने वाले एक मियां बीवी के साथ खानापीना हुआ था. उन लोगों ने ही जहर दिया होगा.’’

‘‘उन से तुम्हारी कोई अदावत थी या कोई झगड़ा हुआ था?’’

‘‘न मेरी उन से कोई दुश्मनी थी न झगड़ा हुआ था, पता नहीं उन लोगों ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? वैसे मैं जिन की बात कर रहा हूं उन में मर्द मर्दाना खूबसूरती का नमूना था और औरत बेहद हसीन.’’

‘‘हो सकता है, वे लोग कोई मुजरिम हों और उन्हें तुम से कोई खतरा हो?’’

‘‘नहीं ऐसे तो नहीं लगते थे, खासे अमीर लोग थे.’’ कहते हुए मैं ने डाक्टर से पूछा, ‘‘आप कहां से आ रहे हैं?’’

‘‘मैं इस इलाके के लोगों का इलाज करने के लिए दूरदूर तक जाता हूं. खास कर जहां इलाज और डाक्टर की सहूलियत नहीं है. समझ लो साल के 6 महीने घर से बाहर बीतते हैं.’’

‘‘आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘हां, मेरी बीवी बहुत अच्छी है, मेरी गैरहाजरी में घर अच्छे से संभालती है, फारमिंग वगैरह भी देख लेती है. इस मामले में मैं बहुत खुशनसीब हूं.’’

‘‘डाक्टर साहब, अब मुझे कोई बस्ती देख कर उतार दीजिए. मुझे अपनी मंजिल की तलाश में निकलना चाहिए.’’

‘‘नहीं, नहीं, अभी तुम बहुत कमजोर हो, घुड़सवारी कतई नहीं कर सकते. अगर तुम ने सफर किया तो मेरी सारी मेहनत बेकार जाएगी. अभी तुम्हारे शरीर से जहर का असर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. तुम मेरे साथ चलो. 2 दिन मेरे घर पर आराम करना. इलाज के बाद जब पूरी तरह ठीक हो जाओगे फिर जहां चाहो, चले जाना.’’

मैं इनकार करने की सोच ही रहा था कि मेरे दिमाग में एक खयाल बिजली की तरह कौंधा तो मैं ने झट से कहा, ‘‘डाक्टर साहब, मैं आप का अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा. आप मेरी इतनी परवाह कर रहे हैं तो मैं आप के साथ ही चलूंगा और इलाज पूरा होने के बाद आप की पूरी फीस दे कर जाऊंगा.’’

डा. जव्वाद ने हंस कर कहा, ‘‘मैं इलाज बढि़या करता हूं. इस के लिए फीस भी अच्छी लेता हूं.’’

हम डाक्टर के घर पहुंचे तो मैं चौंका. वह जगह मेरे लिए अपरिचित नहीं थी. जहां गाड़ी रुकी वह वही खूबसूरत फार्महाउस था, जहां मुझे जहर दिया गया था. दरवाजा खोलने वाली वही हसीन औरत थी. वह बड़े प्यार से डाक्टर के गले लग गई. डाक्टर ने पीछे मुड़ कर कहा, ‘‘शमशेर, ये मेरी बीवी ऐना है.’’

उस की नजर मुझ पर पड़ी तो ऐसा लगा जैसे उस ने कोई भूत देख लिया हो. उस का चेहरा सफेद पड़ गया. मैं ने झुक कर उसे सलाम किया. गुलाबी साड़ी में उस का हुस्न दमक रहा था.

डाक्टर ने उस से मुखातिब हो कर कहा, ‘‘ऐना इन के लिए ऊपर का कमरा खुलवा दो, ये 2 दिन यहां रुकेंगे. इन्हें किसी जालिम ने जहर दे दिया था, लेकिन मैं वक्त पर पहुंच गया और इन्हें बचा लिया. मैं इन्हें आराम और इलाज के लिए अपने साथ ले आया हूं.’’

मैं सीढि़यों की तरफ बढ़ा. ऐना मेरे पीछे थी. कमरा खोल कर वह एक तरफ हट गई. वह गुस्से से लाल हो रही थी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘वापस क्यों लौट आए?’’ मैं ने मुसकरा कर व्यंग में कहा, ‘‘ये जानने के लिए कि तुम ने मुझे जहर क्यों दिया?’’ लेकिन वह साफ मुकर गई, ‘‘मैं भला तुम्हें क्यों जहर देने लगी? तुम्हें गलतफहमी हुई है.’’

‘‘मैं ने तुम्हारे घर के अलावा कहीं और कुछ नहीं खाया पिया था, इसलिए यकीनन जहर तुम ने दिया था.’’

उस ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम ने खुद कोई जहरीली चीज खा ली होगी. मुझे तुम्हें जहर देने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘जरूरत थी क्योंकि मैं ने तुम्हें आहन के साथ देख लिया था. तुम्हारे इश्क का गवाह बन गया था मैं.’’

वह बात काट कर बोली, ‘‘मैं किसी आहन को नहीं जानती.’’

‘‘ओह, यानी तुम दोनों ने मुझे अपने नाम गलत बताए थे. खैर, मैं यहां तुम्हारी आशनाई का राजफाश करने नहीं आया हूं. मुझे डाक्टर से अपना पूरा इलाज करवाना है. उन का कहना है कि अगर इलाज पूरा न हो तो ये जहर कुछ दिन बाद फिर असर दिखाता है. इसलिए दवा का 3 दिन का कोर्स पूरा करना जरूरी है.’’

इस पर उस ने तमक कर कहा, ‘‘अगर तुम ने कुछ उलटासीधा करने की कोशिश की तो बहुत बड़ी मुश्किल में पड़ जाओगे, याद रखना.’’

‘‘मैं एक जुआरी हूं, फायदा उठाने के साथसाथ नुकसान उठाने के लिए भी तैयार रहता हूं. यह तुम सोचो कि क्या तुम नुकसान उठा सकती हो?’’

ऐना गुस्से से जाने के लिए पलट गई. मैं ने उसे फिर याद दिलाया, ‘‘ऐना एक बात जहन में रख लो, मैं एक बार धोखा खा सकता हूं, बारबार नहीं.’’

डाक्टर ने मेरा बहुत खयाल रखा. इलाज में भी कोई कोताही नहीं बरती. शाम तक मैं काफी फ्रेश महसूस करने लगा. मैं ने डाक्टर से कहा, ‘‘मैं थोड़ा बाहर घूमना चाहता हूं, आप ठीक समझें तो चला जाऊं?’’

‘‘हां, थोड़ी देर के लिए चले जाओ. पास ही कस्बा अजीरा है, पर ज्यादा नहीं घूमना. थक जाओगे.’’

बाहर निकला तो ऐना को गेट के पास कहीं जाने को तैयार खड़ा देखा. मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं कस्बे जा रहा हूं. आहान को कोई पैगाम देना हो तो बता दो.’’

उस ने गुस्से से दांत पीसे और रुख बदल कर खड़ी हो गई. मैं बाहर निकल गया. थोड़ी दूर चलने के बाद एक शराबखाना नजर आया. मैं ने एक पैग रम का आर्डर दिया, शराब सर्व करने वाला एक 14-15 साल का लड़का था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या तुम बिना किसी मेहनत के 10 रुपए कमाना चाहते हो?’’

वह हैरान सा मुझे देखते हुए बोला, ‘‘क्या काम करना होगा मुझे?’’

‘‘कुछ खास नहीं, मैं तुम्हें एक आदमी का हुलिया बताता हूं, तुम मुझे उस का नाम और पता बता दो बस.’’

हुलिया सुन कर वह डर सा गया, बोला, ‘‘साब, वह बहुत जालिम और खतरनाक आदमी है. बीच में मेरा नाम नहीं आना चाहिए.’’ मैं ने उस का नाम न आने का वादा किया तो उस ने उस का नाम बाबर बताया और उस का पता समझा दिया. मैं उसे 10 रुपए दे कर बाहर आ गया.