पाक प्यार में नापाक इरादे

सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट का सब से व्यवस्ततम है इलाका अग्रसेन चौराहा. फर्नीचर व्यवसायियों की सब से बड़ी मार्केट  होने की वजह से यहां पूरे दिन भीड़ लगी रहती है. इस मार्केट की दुकान ‘गीता फर्नीचर’ काफी बड़ी और प्रतिष्ठित मानी जाती है. फर्नीचर व्यवसायी अभिषेक रंजन अग्रवाल की यह दुकान उन की पत्नी गीता के नाम पर है. दुकान के पीछे ही उन का मकान भी है.

  18 जून, 2013 की रात साढ़े 8 बजे अभिषेक अग्रवाल ने दुकान के कर्मचारियों सनी प्रजापति और राजेंद्र साहनी से दुकान बढ़ाने को कह कर खुद दुकान से बाहर आ कर अपने परिचित रवि अग्रवाल के साथ खड़े हो कर बातें करने लगे. इसी बीच बैंक रोड की ओर से एक मोटरसाइकिल उन के करीब आ कर रुक गई.

  उस पर 2 युवक सवार थे. वे कौन हैं, यह देखने के लिए जैसे ही अभिषेक पलटे, पीछे बैठे युवक ने रिवाल्वर निकाल कर उन पर 2 गोलियां दाग दीं. दोनों ही गोलियां उन के सिर में लगीं. गोलियां लगते ही अभिषेक जहां जमीन पर गिर गए, वहीं मोटरसाइकिल युवक भाग निकले. उन के हाथों में रिवाल्वर थे, इसलिए कोई भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर सका.

  अप्रत्याशित घटी इस घटना से जहां सभी हैरान थे, वहीं पूरी बाजार में हड़कंप सा मच गया था. दोनों नौकर पहले तो भाग कर घायल हो कर गिरे अभिषेक के पास आए. उन्हें तड़पता देख कर सनी जहां रवि अग्रवाल की मदद से उन्हें संभालने लगा, वहीं रवींद्र घर के अंदर की ओर घटना की सूचना देने के लिए भागा.

  घर के सदस्य सूचना पा कर बाहर आते, उस के पहले ही पड़ोस के दुकानदारों ने अभिषेक को एक रिक्शे पर बैठाया और पास के विंध्यवासिनीनगर स्थित स्टार नर्सिंगहोम के लिए रवाना हो गए. पीछेपीछे अभिषेक के घर वाले भी अस्पताल की ओर भागे. लेकिन अभिषेक को अस्पताल ले जाने का कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि अस्पताल पहुंचने के पहले ही उस की मौत हो चुकी थी. डाक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया था. मौत की जानकारी होते ही घरवाले बिलखबिलख कर रोने लगे.

 सूचना पा कर अभिषेक के तमाम परिचित भी अस्पताल पहुंच चुके थे. किसी ने घटना की सूचना फोन द्वारा  पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी थी, जहां से सूचना पा कर थाना कैंट के इंस्पेक्टर टी.पी. श्रीवास्तव सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए थे. वहीं से उन्होंने इस घटना की सूचना अधिकारियों को दे कर खुद अस्पताल जा पहुंचे. इस के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक (नगर) परेश पांडेय, क्षेत्राधिकारी (कैंट) वी.के. पांडेय, कोतवाली के इंसपेक्टर बृजेंद्र कुमार सिंह भी वहां पहुंच गए.

  पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कालेज भिजवा दी. पुलिस ने घटनास्थल से 9 एमएम के 2 खोखे बरामद किए थे. सारी काररवाई निपटाने के बाद थाने लौट कर पुलिस ने मृतक अभिषेक के पिता अर्जुन कुमार अग्रवाल द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर अभिषेक के बहनोई विवेक कुमार लाट, उस के मंझले भाई विनय कुमार लाट तथा 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ अपराध संख्या 513/2013 पर भादंवि की धारा 302/120 बी/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

  मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना कैंट पुलिस ने उसी दिन विनय कुमार लाट को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई. पहले तो वह पुलिस को बरगलाता रहा, लेकिन वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं, इसलिए पुलिस ने जब उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उसे टूटते देर नहीं लगी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने सुपारी दे कर किराए के हत्यारों से अभिषेक की हत्या कराई थी. विनय द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने और हत्यारों के नाम बता देने के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

  इस मामले में नामजद दूसरा अभियुक्त विनय का भाई विवेक पहले से ही जेल में बंद था. पुलिस अन्य अभियुक्तों की तलाश में जुट गई. इस मामले में सोचने वाली बात यह थी कि आखिर बहनोई के बड़े भाई ने ही छोटे भाई के साले की हत्या क्यों कराई? अभिषेक का बहनोई जेल में क्यों बंद था? यह सब जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना होगा.

  गोरखपुर के थाना कैंट के रहने वाले 72 वर्षीय अर्जुन कुमार अग्रवाल ढुनमुनदास बालमुकुंद दास इंटर कालेज से 30 जून, 2003 को रिटायर होने के बाद अपने एकलौते बेटे अभिषेक रंजन के साथ उस के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बच्चों में 3 बेटियां रश्मि, शालिनी, दिवीता और एकलौता बेटा अभिषेक रंजन था. उन का यह बेटा तीसरे नंबर पर था.

  अध्यापक होने की वजह से अर्जुन कुमार खुद तो संस्कारी थे ही, उन के चारों बच्चे भी उन्हीं की तरह संस्कारी थे. अर्जुन की बड़ी बेटी रश्मि सीधीसादी, बेहद सुशील थी. उस ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से संस्कृत से एमए करने के बाद नेट परीक्षा भी पास कर ली थी. अर्जुन कुमार अग्रवाल के सभी बच्चे इसी तरह पढ़ेलिखे थे. बायोलौजी से प्रथम श्रेणी में बीएससी करने के बाद अभिषेक रंजन अग्रवाल ने पढ़ाई छोड़ कर व्यवसाय की ओर कदम बढ़ाया था. अपने घर के आगे पड़ी जमीन में दुकान बनवा कर उस ने फर्नीचर और हार्डवेयर का काम शुरू कर दिया था. जल्दी ही उस का यह व्यवसाय चल निकला.

  घर में हर तरह से खुशहाली थी. रश्मि शादी लायक हुई तो अर्जुन कुमार उस के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे. एक दिन अर्जुन कुमार अग्रवाल की नजर स्थानीय अखबार के शहनाई कालम में ‘वधु चाहिए’ में छपे एक विज्ञापन पर पड़ी तो उन्हें लगा कि यहां बात बन सकती है. यह विज्ञापन रामस्वरूप लाट ने अपने बेटे के विवाह के लिए छपवाया था. उस  में फोन नंबर भी दिया था, इसलिए अर्जुन कुमार अग्रवाल ने तुरंत फोन कर के बात कर ली.

  आखिर वहां बात बन गई. जल्दी गोदभराई कर के कुल 15 दिनों में अर्जुन कुमार ने अपनी बड़ी बेटी रश्मि का विवाह रामस्वरूप लाट के बेटे विवेक कुमार से कर दिया था. पहली और बड़ी बेटी का विवाह था, इसलिए अर्जुन कुमार ने अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा इस शादी में खर्च किया था.

रामस्वरूप लाट ने यह विवाह इतनी जल्दी में कराया था कि अर्जुन कुमार को मौका ही नहीं मिला था कि वह लड़के या उस के घर वालों के बारे में ठीक से पता कर पाते. बाद में जो पता चला, उस के अनुसार गोरखपुर की कोतवाली के आर्यनगर के दक्षिणी हुमायूंपुर मोहल्ले के राज नर्सिंग होम के पास रहने वाले रामस्वरूप लाट ठेकेदारी करते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे, कमलेश कुमार लाट, विनय कुमार लाट, विवेक कुमार लाट, विकास कुमार लाट तथा 3 बेटियां, कमला, वंदना और एप्पुल थीं.

कागज के टुकड़े की चोरी – भाग 3

जब वह घर पहुंचा तो गिलोरिया मौजूद नहीं थी. उस ने यह सोचते हुए जेब से कागज निकाला कि उस की उम्मीद के विपरीत जल्दी काम पूरा हो गया. लेकिन कागज खोल कर देखा तो उस की उम्मीदों पर पानी फिर गया. वह किसी पुरानी डायरी का कागज नहीं था. उस का साइज भी अलग था. निक ने मायूसी के साथ सिर को झटका और कागज को फाड़ने का इरादा किया.

तभी उस की नजर कागज पर लिखे हुए पते पर पड़ी. लिखा था : पाल गिलबर्ट, कमोडोर रेस्टोरेंट, कोस्ट रोड.

निक कुछ देर तक सोचता रहा. फिर वह कार में बैठ कर कोस्ट रोड की तरफ रवाना हो गया.

कमोडोर रेस्टोरेंट समुद्र के किनारे एक छोटा सा रेस्तरां था. काउंटर के पीछे एक मोटी सी औरत एप्रिन बांधे खड़ी थी. रेस्टोरेंट करीब करीब खाली पड़ा था. एक कोने में कुछ शिपमैन बैठे थे. निक ने काउंटर के पास पड़े एक स्टूल पर बैठ कर कौफी का आर्डर दिया. औरत ने कौफी का कप भर कर उस के सामने रख दिया और जिज्ञासा भरी नजरों से उस की ओर देखने लगी.

‘‘तुम शायद पहली बार यहां आए हो?’’ औरत ने पूछा तो निक बोला, ‘‘हां, दरअसल मेरे एक दोस्त ने बताया था कि यहां सी-फूड बहुत अच्छा मिलता है.’’

‘‘थैंक्स, क्या नाम है तुम्हारे दोस्त का?’’

निक ने थोड़ा रुक कर कहा, ‘‘माइकल गार्नर.’’

‘‘माइकल गार्नर?’’ औरत ने थोड़ा चौंकते हुए पूछा, ‘‘तुम उसे कैसे जानते हो?’’

‘‘हमारी मुलाकात एक बिजनैस फंक्शन के दौरान हुई थी.’’ निक आंख दबाते हुए बोला, ‘‘हमारी लाइन एक ही है. उम्मीद है, तुम मेरा मतलब समझ गई होगी.’’

वह औरत भौएं सिकोड़ कर निक को घूरने लगी. एक लंबी चुप्पी के बाद उस ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हें माइकल ने भेजा है?’’

सुन कर निक चौंका, लेकिन उस ने जाहिर नहीं होने दिया. उस ने थोड़ा सा ड्रामा करने का फैसला किया. वह कौफी की चुस्कियां लेते हुए बोला, ‘‘माइकल ने पाल गिलबर्ट का नाम लिया था.’’

‘‘पाल मेरा पति है और बिलकुल बुद्धू है. मैं खुद माइकल से बात करना चाहती थी लेकिन परेशानी यह है कि वह कभी सामने नहीं आता. मैं ने आज तक उस की शक्ल नहीं देखी. वह पाल की सादगी से नाजायज फायदा उठा रहा है.’’

निक बड़ी मुश्किल से उस की बात को पचा गया. वह सोचने लग. अगर इस औरत ने माइकल की शक्ल नहीं देखी तो इस का मतलब माइकल ने कभी इस रेस्टोरेंट में कदम नहीं रखा था.

‘‘तुम माइकल के बजाय मुझ से बात कर सकती हो.’’ निक ने कहा, ‘‘मुझे निकोलस कहते हैं.’’

औरत धीमे स्वर में बोली, ‘‘माइकल से कह देना कि हम सिर्फ एक हजार डौलर के लिए इतना बड़ा खतरा मोल नहीं ले सकते.’’

‘‘मेरे ख्याल में तो एक हजार डौलर बहुत होते हैं.’’ निक ने अंधेरे में तीर चलाया. उसे इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि वह औरत किस मामले की बात कर रही है.

‘‘असल खतरा तो हम मोल लेते हैं. अगर कभी छापा पड़ गया तो माइकल का क्या नुकसान होगा? ज्यादा से ज्यादा एक पैकेज पकड़ा जाएगा. सारी मुसीबत तो हम पर आ पड़ेगी.’’

निक ने गहरी सांस ली. एक बात साफ हो गई थी कि मामला स्मगलिंग से संबंधित था.

‘‘मैं माइकल से बात करुंगा,’’ निक ने कहा, ‘‘तुम्हारे खयाल में कितने पैसे ठीक रहेंगे?’’

‘‘कम से कम 3 हजार डौलर.’’

‘‘यह तो बहुत ज्यादा हैं. बहरहाल, माइकल से बात करुंगा. मैं पैकेज के बारे में पूछना चाहता था.’’

‘‘मेरा खयाल है, यह बात माइकल को मालूम होनी चाहिए. आखिरी सूचना के अनुसार जहाज 15 तारीख को रात के किसी समय बंदरगाह पहुंचेगा. इस का मतलब डिलीवरी 16 या 17 तारीख को होगी.’’

निक ने कौफी का आखिरी घूंट लिया, पैसे निकाल कर काउंटर पर रखे और जाने के लिए खड़ा हो गया. जातेजाते उस ने कहा, ‘‘ओ.के. मिसेज गिलबर्ट. फिर मुलाकात होगी.’’

बाहर निकलकर निक अपनी कार में जा बैठा जो रेस्टोरेंट से कुछ दूरी पर सड़क के दूसरी ओर खड़ी थी. कुछ देर तक वह ड्राइविंग सीट पर बैठा परिस्थितियों पर विचार करता रहा. जाहिर था कोई चीज पानी के जहाज पर स्मगल कर के कमोडोर रेस्टोरेंट में पहुंचाई जाती थी और वहां से माइकल का कोई कारिंदा उसे वसूल कर लेता था और इस थोड़ी सी सेवा के बदले पाल गिलबर्ट एक हजार डौलर कमा लेता था. सौदा ज्यादा बुरा नहीं था.

निक ने इंजन स्टार्ट कर के कार को गियर में डाल दिया. उसी समय उस ने कमोडोर रेस्टोरेंट के सामने एक स्टेशन वैगन को रुकते हुए देखा. उस की ड्राइविंग सीट पर नारमन बैठा था. उस समय उस की आंख पर काली पट्टी के बजाय धूप का चश्मा था. निक ने अर्थपूर्ण भाव में सिर हिलाया और रुके बगैर बढ़ गया.

अगले दिन जब निक ने माइकल गार्नर के घर की कालबेल बजाई तो एक 30-32 साल की औरत ने दरवाजा खोला. वह वैलडे्रस्ड और आकर्षक औरत थी. उस ने सवालिया नजरों से निक और गिलोरिया की ओर देखा. निक के कंधे पर कैमरे लटक रहे थे. जबकि गिलोरिया एक मुस्तैद फीचर राइटर लग रही थी.

‘‘सौरी, मिस्टर माइकल घर पर नहीं हैं.’’ औरत ने उन दोनों को देखते ही कहा.

यह बात निक और गिलोरिया को पहले से ही मालूम थी. सच तो यह था कि उन्हें इस मौके के लिए डेढ़ घंटे तक इंतजार करना पड़ा था. वो औरत उस घर की हाउसकीपर थी. निक ने जेब से एक कार्ड निकाल कर उस औरत के हाथ में दिया.

उस कार्ड के अनुसार निक घरेलू नौकरों की एक संस्था का प्रतिनिधि था. विजिटिंग कार्ड उस ने फौरी तौर पर आर्डर दे कर तैयार करवाए थे.

‘‘मैं किसी संस्था की सदस्य नहीं बनना चाहती.’’ औरत ने कार्ड वापस करते हुए कहा तो निक 5 डौलर का नोट निकाल कर औरत की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘हम तुम्हें संस्था का सदस्य बनाने नहीं आए. हम घरों में काम करने वाले नौकरों के बारे में सर्वे कर रहे हैं और तुम से कुछ सवाल करना चाहते हैं.’’

औरत असमंजस की नजरों से नोट की तरफ देखने लगी.

‘‘हम तुम्हारा ज्यादा समय नहीं लेंगे. कुछ सवाल करेंगे और कुछ फोटो खींचेंगे. ज्यादा से ज्यादा 15-20 मिनट लगेंगे. ये फोटो महिलाओं की मैगजीन में प्रकाशित की जाएंगी.’’

ऐसा क्या था रहस्य छिपा था उस कागज के टुकड़े में? जानने के लिए पढ़ें इस Fiction Crime Story का अगला भाग… 

बारिश वाला प्यार : कौन थी वो? – भाग 3

कल सुबह जब शायनी औफिस आई तो बहुत खुश थी बोली, “मां, बौस कह रहे थे अगर मैं ने उन की कंपनी को कौन्ट्रेक्ट दिलवा दिया तो जल्द ही मुझे प्रमोशन मिलेगी.’‘

उस के थोड़ी ही देर में शायनी का मैसेज आया कि आज कौन्ट्रेक्ट के लिए एक बहुत बड़े सेठ अवस्थी से मिलने जाना है. आज बहुत लेट हो जाएगी और मैं उस का इंतजार न कर के सो जाऊं, कल सुबह बात कर लेंगे. जैसे ही मैं ने अवस्थी नाम पढ़ा, मुझे घबराहट महसूस हुई. मैं ने शायनी को पूछा कि मीटिंग कब और कहां है तो उस ने मुझे बताया कि मीटिंग ओबराय होटल में रात को 10 बजे है.

यह सुन कर मेरा मन घबरा गया. उस समय अभी सुबह के 11 ही बजे थे और मैं उसी समय टैक्सी पकड़ कर मुंबई के लिए निकल पड़ी. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे अपनी बेटी को उस दरिंदे से बचाऊं जो कि उसी का ही खून है.

मैं जैसे ही होटल पहुंची, लगभग 11 बज रहे थे. मैं पूरे रास्ते शायनी को फोन करती रही, मगर आज अचानक शायद उस का फोन खराब हो गया था. मैं ने रिसैप्शन पर अवस्थी का रूम पूछा तो उन्होंने बताने से इंकार कर दिया, बोले सर की मीटिंग चल रही है. मुझे कुछ आइडिया था ही कि शायद रूम का पता रिसैप्शन पर न बताएं, इसलिए एक शैंपेन की बोतल और केक भी रास्ते से ले कर साथ रख लिया था.

तब मैं ने एक नाटक रचा. उस केक और शैंपेन की बोतल को दिखा कर रिसैप्शन पर बैठी एक महिला से रिक्वेस्ट की कि अवस्थीजी मेरे पति हैं और वो बिजनैस में इतने बिजी रहते हैं कि अपना जन्मदिन तक भूल गए. मैं उन्हें सरप्राइज देने आई हूं.

इस तरह उन्हें यकीन दिला कर मैं रूम तक गई, लेकिन रूम के बाहर ‘डू नाट डिस्टर्ब’ का बोर्ड लटकता देख वेटर अंदर जाने से मना करने लगा. तब मैं ने वेटर को चुप रहने का इशारा कर के दरवाजा खटखटाया तो अंदर से बहुत ही गुस्से भरी आवाज आई, “कौन बदतमीज है. बाहर डू नाट डिस्टर्ब का बोर्ड नहीं दिखाई दिया.’‘

“सर, आप के लिए सरप्राइज है, प्लीज़ ओपन द डोर, प्लीज सर. इट्स ए ह्यूज सरप्राइज.’‘ मैं ने कहा.

सेठ तो वैसे ही लड़कियों का दीवाना था, सुरीली आवाज सुन कर दरवाजा खोल दिया. अब तक मैं वेटर को वापस भेज चुकी थी, सेठ के दरवाजा खोलते ही उसे नाइट गाउन में देख कर मेरा दिमाग झन्ना उठा और उसे धक्का दे कर मैं ट्रौली ले कर अंदर चली गई. अचानक इस तरह के व्यवहार की उम्मीद न होते हुए सेठ हड़बड़ा गया.

गुस्से से चिल्लाने लगा, “कौन हो तुम और इस तरह से अंदर क्यों आई?’‘

मुझे देखते ही शायनी मुझ से लिपट गई और रोने लगी बोली, “अच्छा हुआ आप आ गईं, वरना आज मैं कहीं की न रहती.”

मैं ने देखा 1-2 जगह से उस के कपड़े फटे हुए थे, जिन्हें देखते ही मुझे पुरानी सारी बातें याद आने लगीं. उस वक्त मुझे कुछ होश नहीं था. कुछ सोचने के बाद शीतल फिर से बोलने लगी कि अचानक मैं ने शैंपेन की बोतल उठाई और जोर से सेठ के सिर पर दे मारी. उस के सिर से खून की धारा बहने लगी. मैं लगातार उस पर वार कर रही थी और वह कुछ ही देर में ठंडा हो गया.

शायनी ने जब मुझे झिंझोड़ा तब मुझे होश आया कि मैं ने क्या किया. मगर, मुझे इस बात का बिलकुल भी अफसोस नहीं था और न है. मैं ने एक राक्षस को मारा है, एक पिता के हाथ से बेटी को अपवित्र होने से बचाया. धरती का थोड़ा सा बोझ कम कर दिया आज मैं ने. अब चाहे कानून मुझे फांसी दे दे, लेकिन मेरे मन में शांति है आज इंतकाम ले लिया मैं ने. इतना कह कर शीतल ने एक ठंडी सांस ली.

“इस समय आप की बेटी कहां है?’‘

“उसे मैं ने उसी समय टैक्सी में योगेश के पास भेज दिया था.’‘

“हां कुछ देर पहले एक गोरी, लंबी सी नीली ड्रेस में लड़की बारिश में भागते हुए होटल से बाहर आई और टैक्सी में बैठ कर चली गई.’‘

“हां, वो मेरी बेटी थी.’‘

आज मुंबई न्यूज की सब से बड़ी खबर, ‘देवता कहलाने वाला राक्षस अपनी ही बेटी को बेआबरू करने चला था, लेकिन बेटी की मां ने उस का कत्ल कर के बेटी को भी बचाया और अपना इंतकाम भी लिया,’ चर्चा का विषय बनी रही.

इस के बाद राहुल ने अपने दोस्त अमन को फोन किया, “हैलो अमन, मिल गया.’‘

“कौन, खूनी?’‘ अमन ने पूछा.

“नहीं, बारिश वाला प्यार.’‘

राहुल को अब उस लड़की का नाम भी पता चल चुका था, जो उस के दिल को पहली ही नजर में घायल कर गई थी. राहुल ने शीतल को भरोसा दिया कि वह अपने स्तर से उस की जमानत कराने का प्रयास करेगा. उस ने उस के मुंहबोले भाई का फोन नंबर भी ले लिया.

पुलिस ने शीतल से पूछताछ करने के बाद उसे जेल भेज दिया था. इस के बाद राहुल ने योगेश से संपर्क किया. फिर राहुल ने योगेश को अपने जानकार सीनियर वकील अवनीश गोयल से मिलवाया. अब राहुल ने अपने स्तर से मृतक सेठ अवस्थी की कुंडली खंगाल कर उस की अय्याशी के सारे सबूत इकट्ठे किए. अनाथ आश्रम की संचालिका और कई भुक्तभोगी लड़कियों ने भी सेठ अवस्थी के खिलाफ गवाही दी.

पुलिस हत्या के इस केस का न तो कोई चश्मदीद गवाह पेश कर सकी और न ही पुख्ता सबूत. इस का नतीजा यह हुआ कि कोर्ट ने शीतल को बाइज्जत बरी कर दिया.

शीतल राहुल के अहसान को कैसे भुला सकती थी. बाद में उसे पता चला कि राहुल उस की बेटी शायनी को दिल से चाहता है. यह बात उस ने शायनी से पूछी तो उस ने भी हां कर दी. इस के बाद शीतल और योगेश ने शायनी और राहुल का विवाह करा दिया. राहुल अपने बारिश वाले प्यार को पा कर फूला नहीं समा रहा था.

कागज के टुकड़े की चोरी – भाग 2

निक ने सोचा कि माइकल या तो उस बंगले में किराएदार है या उस ने वह बंगला हाल ही में खरीदा है. वह नेम प्लेट देखता हुआ थोड़ा आगे बढ़ गया और फिर वापस लौट आया. उसी वक्त बंगले का मुख्य दरवाजा खुला और अंदर से एक काली मर्सिडीज निकलती दिखाई दी. ड्राइविंग सीट पर एक स्वस्थ और अच्छी शक्लोसूरत का आदमी बैठा था. सफेद बाल और उम्र लगभग 60 साल.

पीछे की सीट पर उस से आधी उम्र की एक खूबसूरत औरत बैठी थी. निक अपनी कार में आ बैठा और उस ने मर्सिडीज का पीछा शुरू कर दिया. दूरी थोड़ी ज्यादा थी, जब वह गली के मोड़ पर पहुंचा तो मर्सिडीज नजरों से ओझल हो गई.

उसी रोज रात के 10 बजे निक ईस्ट हारलम के इलाके में जा पहुंचा. वह एक बदनाम इलाका था, शरीफ आदमी रात के समय वहां जाते हुए डरते थे. निक अपनी कार सबवे स्टेशन के पास खड़ी कर के पैदल ही एक ओर चल दिया. थोड़ी दूर चलने के बाद उस ने महसूस किया कि लफंगे टाइप के 2 युवक उस का पीछा कर रहे हैं.

वह जानबूझ कर एक अंधेरी गली में घुस गया. वे दोनों युवक उस के बिलकुल पास पहुंच गए. तभी एक ने उस के बाईं ओर के कंधे से कंधा टकराया. निक ने उस की ओर देखा तो दाईं ओर वाला उस के साथ रगड़ खाता हुआ आगे निकल गया. अगर निक इस ड्रामे के लिए तैयार न होता तो उसे हरगिज पता नहीं चलता कि दाईं ओर वाला युवक उस की पैंट की पिछली जेब से पर्स निकाल चुका है.

‘‘रुक जाओ.’’ निक ने जल्दी से आवाज लगाई, ‘‘पर्स खाली है, कुछ नहीं है उस में.’’

यह सुनते ही वे दोनों रुके और बाईं ओर वाले युवक ने कमानीदार चाकू निकाल लिया. हलके अंधेरे के बावजूद निक ने बड़ी फुरती से उस की बांह पकड़ कर चाकू छीन लिया. दूसरा युवक अपने साथी की मदद के लिए तेजी से आगे बढ़ा तो निक ने उस के पेट पर घुटने से जोरदार वार किया. वह तेज दर्द से कराहता हुआ दोहरा हो गया. उन दोनों को शायद यह बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि शरीफ सा दिखने वाला वह आदमी जवाबी हमला कर देगा. इसलिए दोनों बौखला गए.

निक ने अभी तक पहले वाले युवक की बांह नहीं छोड़ी थी. उस ने चाकू की नोक उस की गरदन से लगाते हुए कहा, ‘‘मैं बिजनेस की बात करना चाहता हूं.’’

‘‘कैसा बिजनेस? हमारी जेबें बिलकुल खाली हैं, तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा.’’

‘‘जानता हूं, तुम दोनों कंगले हो.’’

‘‘ओह, मेरी बांह तो छोड़ो.’’

‘‘चुपचाप मेरी बात सुनो.’’ निक ने उसे डांटा, ‘‘यह बताओ, चौबीस घंटों के अंदर 5 सौ डौलर कमाने के बारे में क्या खयाल है?’’

‘‘24 घंटे के अंदर 5 सौ डौलर?’’ दोनों एकसाथ बोले, ‘‘काम क्या है?’’

‘‘काम ज्यादा मुश्किल नहीं है.’’ कहते हुए निक ने उस युवक की बांह छोड़ दी. फिर कहा, ‘‘तुम्हें एक आदमी की जेब से पर्स निकालना और वापस डालना है.’’

‘‘निकालने वाली बात तो समझ में आती है, लेकिन वापस डालने का क्या मतलब?’’

‘‘समझ लो यह तुम्हारे हुनर की परीक्षा है. 5 सै डौलर तुम्हें इसी काम के मिलेंगे.’’

‘‘तुम ने हमारा हुनर देखा ही कहां है, हम एक बार नहीं 10 बार पर्स निकाल कर डाल सकते हैं. लेकिन परेशानी यह है कि पर्स में 25-50 डौलर से ज्यादा नहीं निकलते. आजकल आमतौर पर लोगों की जेब में क्रेडिट कार्ड होते हैं. बड़े लोगों ने जेबों में कैश रखना छोड़ दिया है. वैसे हमें अपने हुनर का प्रदर्शन कब और कहां करना होगा?’’

निक ने उन्हें विस्तार से सब कुछ समझा दिया. उन के नाम बर्ट और विकी थे.

अगले दिन 11 बज कर 10 मिनट पर माइकल गार्नर ने अपनी कार पार्किंग में खड़ी की और नजदीकी शौपिंग प्लाजा की ओर बढ़ गया. निक की कार भी उस के पीछेपीछे पार्किंग में दाखिल हुई थी. बर्ट और विकी नाम के देनों युवक पिछली सीट पर बैठे थे. तीनों लगभग 2 घंटे से माइकल का पीछा कर रहे थे. अब वह मौका उन के सामने था जिस की उन्हें तलाश थी.

निक के इशारे पर बर्ट और विकी कार से निकल कर माइकल के पीछे चल दिए. निक वहां नहीं रुका. उस ने अपनी कार पार्किंग से बाहर निकाल कर शौपिंग प्लाजा की ओर मोड़ दी. वह उन के ज्यादा से ज्यादा करीब रहना चाहता था. चंद पलों के बाद उस ने अपनी कार प्लाजा के सामने रोक दी.

बर्ट और विकी निक की उम्मीद से ज्यादा तेज साबित हुए. उन्होंने उस समय माइकल का पर्स पार कर लिया, जब वह स्टोर के अंदर दाखिल हो रहा था. विकी उस के पीछे ही रहा जबकि बर्ट पर्स ले कर निक के पास पहुंच गया. पर्स के अंदर लगभग डेढ़ सौ डौलर, क्रेडिट कार्ड, आइडिंटी कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, तीन विजिटिंग कार्ड और एक मुड़ा हुआ कागज था. निक ने कागज निकाल कर पर्स यह कह कर बर्ट को वापस दे दिया कि उसे फिर से उसी की जेब में डाल दे.

बर्ट पर्स लेते हुए बोला, ‘‘तुम ने केवल इस कागज के लिए 5 सौ डौलर खर्च किए हैं?’’

‘‘तुम अपने काम से मतलब रखो.’’ निक ने कहा, ‘‘पर्स से बिना कोई चीज निकाले इसे वापस माइकल की जेब में डाल देना.’’

‘‘और हमारा मेहनताना?’’ बर्ट ने कहा तो निक ने जेब से 2 सौ डौलर निकाल कर उस के हाथ पर रख दिए. बोला, ‘‘3 सौ डौलर काम पूरा होने पर. और हां, जरा जल्दी करो. कहीं वह वापस न चला जाए. मैं भी तुम्हारे पीछे ही आ रहा हूं.’’

बर्ट 2 सौ डौलर जेब में रख कर वापस चल दिया. निक कार से बाहर निकला और थोड़े फासले से उस के पीछे चलने लगा. स्टोर के दरवाजे पर पहुंच कर बर्ट ने पर्स की नकदी अपनी जेब में डाल ली लेकिन निक से उस की यह हरकत नहीं छुप सकी. माइमल अभी तक स्टोर के अंदर ही था. बर्ट ने विकी को इशारा किया और माइकल के पीछे पहुंच गया.

चंद पलों तक वह उस के पीछे चलता रहा. फिर मौका देख कर उस ने पर्स उस की जेब में डालने की कोशिश की. तभी अचानक माइकल घूमा और उस ने बर्ट की कलाई पकड़ ली. उस ने शोर मचाया तो शौपिंग प्लाजा के कोने पर खड़ा सिक्योरिटी गार्ड फौरन उस की मदद के लिए पहुंच गया. यह देख कर विकी ने वहां से खिसक जाने में ही भलाई समझी. निक भी तुरंत मुड़ गया क्योंकि अब वहां रुकना खतरनाक था.

निक कार के पास पहुंचा तो विकी वहां खड़ा उस का इंतजार कर रहा था. उस ने निक को देखते ही कहा, ‘‘बर्ट पकड़ लिया गया है.’’

‘‘मुझे मालूम है. उस ने मेरे मना करने के बावजूद भी पर्स से पैसे निकाल लिए. यह बात मुझे पसंद नहीं आई.’’

‘‘अब हमारे मेहनताने का क्या होगा?’’

‘‘उसूली तौर पर तो तुम्हें कोई मेहनताना नहीं मिलना चाहिए. क्योंकि तुम लोगों ने वादे के मुताबिक काम नहीं किया.’’ इस के साथ ही उस ने सौ डौलर निकाल कर विकी के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘‘2 सौ डौलर बर्ट को दे चुका हूं. ये सौ डालर तुम्हारे हैं.’’

‘‘लेकिन बात 5 सौ डौलर की हुई थी.’’

‘‘हां, लेकिन काम पूरा होने की स्थिति में. इन्हें रखो और चलते बनो. वरना पुलिस तुम तक भी पहुंच सकती है.’’

विकी ने सौ डौलर ले कर जेब में डाले और बड़बड़ाते हुए एक ओर चल दिया. निक कार में बैठा और इंजन स्टार्ट कर के गाड़ी आगे बढ़ा दी.

क्या पुलिस निक तक पहुंच जाएगी या वो अपने मनसूबे में कामयाब हो जायेगा? इन सभी सवालों के जवाब मिलेंगे इस बेस्ट फिक्शन क्राइम स्टोरी के अगले अंक में..

बारिश वाला प्यार : कौन थी वो? – भाग 2

अगली सुबह राहुल कोर्ट की इजाजत ले कर पहुंच गया थाने और पुलिस हिरासत में लाई गई उस महिला से बात करने लगा, जिसे सब सेठ की बीवी समझ रहे थे. इधर सेठ की हत्या की खबर उस के घर तक पहुंची तो सब के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. घर में रोनाधोना शुरू हो गया. सभी इस बात पर ताज्जुब कर रहे थे कि हत्यारा कोई और नहीं सेठ की बीवी है. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था यह सब क्या मामला है.

उधर राहुल ने थाने में उस महिला से बात शुरू की, “मैडमजी, सब से पहले मैं ये जानना चाहूंगा कि आप कौन हैं?’‘

“क्यों, आप ने सुना नहीं, जो सब कह रहे हैं?’‘ वह महिला बोली.

“मैं ने सब सुना, लेकिन मैं जानता हूं आप वो नहीं है. और यही जानने आया हूं कि आप कौन हैं और किस बात का बदला लिया आप ने अवस्थीजी से?’‘

“क्यों देवता नहीं कहेंगे आप भी, सब लोग तो इसी नाम से पुकारते हैं. और आप केवल अवस्थीजी?’‘

“सही कहा आप ने, पहली बात आप उन की पत्नी नहीं, दूसरी आप ने अगर उन का खून किया तो किसी बात का बदला ही लिया होगा और बदला कभी देवता से नहीं लिया जाता, आप बताएं असलियत क्या है?’‘

उस महिला ने अपना नाम शीतल बताया. इस के बाद उस ने राहुल को बताया कि मुझे नहीं मालूम मुझे कब कौन मुंबई के शेल्टर होम (जहां बेघर, बेसहारा लोग आसरा पाते हैं) में छोड़ गया. जब से होश संभाला, अपने आप को वहीं पाया. वहां और भी बहुत सी लड़कियां थीं.

जब मैं छोटी थी तो अकसर औफिस से लड़कियों के रोने, चीखनेचिल्लाने की आवाजें आतीं और साथ में ये भी कोई कहता कि चुप कर हराम की औलाद, वरना यहीं खत्म कर दूंगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा. तेरा कोई आगेपीछे भी नहीं, जो तुझे बैठ कर रोएगा.

मैं तब इन बातों को नहीं समझ पाती थी, जब मैं 13 साल की हो गई तो कुछकुछ बात मुझे भी समझ आने लगी. एक दिन मैं उस शेल्टर में बने मंदिर से पूजा कर के रूम की तरफ जा रही थी तो सेठ अवस्थी (इस समय शीतल ने मुंह ऐसे बना लिया, जैसे किसी ने मुंह में जहर डाल दिया हो) जो कई अनाथ आश्रम, कई वृद्धाश्रम इत्यादि चलाते थे, जो नारी उत्थान की बड़ीबड़ी बातें करते थे, जिन्होंने न जाने कितनी गरीब लड़कियों का विवाह कराया, वही सेठ, उस शेल्टर होम में रोज आया करते थे.

उन की नजर मुझ पर पड़ गई और वार्डन से कहने लगे, “रियाजी, ये कोहिनूर कहां छिपा रखा था. हमारी तो नजर ही नहीं पड़ी अभी तक इस पर. हमें दिखाना तो चाहिए था, जरा बुलाओ एक झलक देखें तो.’

“शीतल बिटिया जरा इधर आओ, सर को भी प्रसाद दो.’‘ वार्डन ने आवाज दी.

मैं ने दोनों को प्रसाद दिया तो सेठ ने मेरा गाल थपथपा दिया.

दरअसल, मैं 13 साल की जरूर थी, मगर कद और शरीर से 16-17 साल की लगती थी. उस पर रंगरूप से भी गदगद थी.

अगले दिन वार्डन मेरे पास आई और बोली, “शीतल, तुम्हें सर बुला रहे हैं. शायद कोई काम हो, जाओ जरा मिल लो. और हां, जरा अच्छे से रैडी हो कर जाओ.’‘

मैं वार्डन की बात समझ चुकी थी, अब तक इतनी समझ आ गई थी मुझ में. मैं ने कहा, “मां, मैं? आप तो मेरी मां हो.’‘

वार्डन ने मुझे गले से लगाया और उस की आंखें भर आईं. बोली, “मुझे सब बच्चियां बेटी जैसी ही लगती हैं, लेकिन क्या करूं, इस पेट का सवाल खड़ा हो जाता है. मुझे माफ कर दे मेरी बच्ची, तुझे जाना होगा. मैं मजबूर हूं, वरना सेठ हमें छोड़ेगा नहीं.’‘

और मुझे जाना पड़ा उस सेठ अवस्थी के पास जो अपनी हवस मिटाने के लिए आतुर बैठा था. मुझे देखते ही टूट पड़ा मुझ पर. मैं ने लाख मिन्नतें कीं, हाथ जोड़े, लेकिन उस ने मेरी एक न सुनी. मैं दर्द से तड़पती रही, रोती, चीखतीचिल्लाती रही. नहीं छोड़ा दरिंदे ने मुझे. और इस तरह अब रोज ही वह मुझे बुलाने लगा. वह बैल बन कर मुझे बंजर धरती समझ मुझ पर हल चलाता रहा.

लगभग 2 साल तक यह सिलसिला यूं ही चलता रहा और एक दिन मुझे एहसास हुआ कि मैं पेट से हूं. जब सेठ अवस्थी को पता चला तो अबार्शन करवाने के लिए कहा, लेकिन अब तक समय निकल चुका था. डाक्टर ने कहा कि समय अधिक हो गया है, अगर इस समय अबार्शन कराया तो लड़की की जान को भी खतरा हो सकता है. इस पर सेठ फिर भी जिद पर था कि अबार्शन कराया जाए, अगर लड़की मरती है तो मर जाए.

मैं न ही मरना चाहती थी न ही अबार्शन कराना. मैं उस शेल्टर होम से भाग निकली, इस में वार्डन ने मेरा साथ दिया, ताकि मैं आगे अपनी जिंदगी अपने लिए जी सकूं. मैं मुंबई से भाग कर दिल्ली चली गई. वहां रेलवे स्टेशन पर एक भला योगेश आदमी मिल गया, जिस ने मुझे सहारा दिया और बहन की तरह मेरी देखभाल की. मैं उस की मदद करने के लिए छोटेमोटे काम करने लगी. मुझे परी जैसी बेटी पैदा हुई, उस का नाम मेरे नाम से ‘श’ और मेरे मुंह बोले भाई के नाम योगेश से ‘य’ ले कर हम ने शायनी नाम रखा.

योगेश का भी परिवार था तो मैं ने सोचा कि आगे चल कर कोई बच्चों की वजह से परेशानी न आए, इसलिए मैं अलग घर में रहने लगी और भाई ने मुझे काम पर भी लगवा दिया था. मैं ने अपनी बेटी शायनी को पढ़ाया लिखाया, अपने पैरों पर खड़ा किया. अब तक मैं पिछले सब दुख भूल चुकी थी.

शायनी पढ़ाई में होशियार, बहुत ही लायक बेटी थी. एमबीए करते ही अच्छी कंपनी में जौब मिल गई. अभी 15 दिन पहले ही मुंबई ट्रांसफर हुआ. जब से मुंबई ट्रांसफर हुआ, तब से ही एक अजीब सा डर मेरे दिल में था. मैं शायनी को मुंबई नहीं भेजना चाहती थी, लेकिन उस के भविष्य की सोच कर चुप रह गई और तब योगेश भी कहने लगा,

“जीजी, शायनी बड़ी हो गई है. भलाबुरा सब जानती है, उसे जाने दो, जी लेने दो अपनी जिंदगी उसे.’‘

लेकिन मुझे क्या पता था कि यहां फिर से वही कहानी दोहराई जाएगी.

इतना कह कर शीतल चुप हो गई और एक ही सांस में सामने रखा गिलास का पूरा पानी पी गई.

“उस के बाद फिर ऐसा क्या हुआ मैडम कि आप यहां और सेठ का खून? आप तो दिल्ली में रहती है न?’‘

“हां, मैं अभी तक दिल्ली में ही थी. सोचा एक बार शायनी की सैटिंग हो जाए तो फिर मैं भी बेटी के पास जा कर रहूंगी. रोज रात को फ्री हो कर हम मांबेटी खूब सारी बातें किया करते थे. जब कभी शायनी मीटिंग से लेट हो जाती तो मुझे मैसेज कर के बता देती कि आज लेट बात करेंगे और हम तब बात करते जब वो फ्री हो जाती, मैं तब तक जागती रहती.’

कहीं शायनी उस दरिंदे सेठ के चंगुल में तो नहीं फंस जाएगी? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

मसानी बाबा निकला बलात्कारी

मंगलवार का दिन था. द्वारका के एक घर में दोपहर बाद दरबार लग चुका था. दोमंजिला मकान के एक बड़े कमरे में लाल रंग के सिंगल भव्य सोफे पर आध्यात्मिक गुरु आ कर बैठ चुका था. उसे लोग मसानी बाबा या फिर दुल्हनिया बाबा के नाम से जानते थे.

उस का दरबार शनिवार और मंगलवार को 5 से 6 घंटे के लिए आयोजित किया जाता था. बीते शनिवार को लगे दरबार की तुलना में उस रोज कुछ ज्यादा ही अनुयाई जमीन पर बैठे थे. उन में अधिकतर औरतें थीं. वे फुसफुसाती हुईं आपस में बातें कर रही थीं.

कमरे में उन की बातचीत का मिलाजुला और मद्धिम शोर गूंज रहा था. कोने में एक कैमरामैन बाबा के अलावा अनुयायियों की ओर भी कैमरे को घुमा कर वीडियो शूट कर रहा था. वैसे दरबार में मोबाइल से किसी भी तरह की फोटो या वीडियो बनाने की सख्त मनाही थी.

दरबार में अंदर जाने के लिए प्रवेश द्वार पर एक व्यक्ति मुस्तैदी से तैनात था. उस की अनुमति के बगैर कोई भी कमरे में नहीं जा सकता था. जबकि एक अन्य व्यक्ति दरबार में प्रसाद बांट रहा था. थोड़ी देर पहले ही वहीं बने छोटे से मंदिर में आरती खत्म हुई थी. शोरगुल प्रसाद को ले कर भी था.

बाबा ठीक अपने आगे बैठी एक महिला को कुछ समझा रहा था. महिला का एक हाथ बाबा के सजेसंवरे चरण पर था, जबकि दूसरे हाथ से वह अपने साथ लाई मिठाई का डिब्बा खोल रही थी. बाबा बोले, “कोई बात नहीं, दोनों हाथों से डिब्बा खोल लो. चुन्नी सिर पर रख लो. अगली बार लाल चुन्नी में आना, तभी पूरा आशीर्वाद मिल पाएगा.”

सिर झुकाए महिला ने कुछ बोले बगैर मिठाई का डिब्बा खोल लिया. मिठाई के अलावा महिला ने साथ लाए सेब और केले रख दिए. दोनों हाथों से डिब्बे को बाबा के सामने कर दिया. बाबा उस पर अपना हाथ फिराते हुए बोला, “इसे मंदिर में रख दो.”

“गुरुजी, मेरी समस्या का समाधान हो जाएगा न?” जिज्ञासा के साथ महिला ने पूछा.

“यह भी पूछने की बात है. मुझ पर प्रभु की कृपा है, मैं तुम्हारे सारे दुखदर्द दूर कर दूंगा, लेकिन!”

“लेकिन क्या गुरुजी?” महिला ने आश्चर्य से पूछा.

“तुम्हें मैं ने जो उपाय बताए हैं, वह कल ही करने होंगे.” बाबा बोला.

“कल तो बुधवार है?” महिला बोली.

“तो क्या हुआ तुम्हें गुरुधारण करनी होगी. यह गुरु सेवा का पहला चरण होगा. उस पर आने वाला खर्च आज ही जमा करवाना होगा,” बाबा बोला.

“गुरुजी, मैं तो पहले ही आप को बहुत रुपया दे चुकी हूं.” महिला बोली.

“यह मसानी चौकी का दरबार है, यहां मोलतोल नहीं होता. माता रानी रूठ जाएंगी. शुद्ध घी के दिए कैसे जलेंगे? 7 दिनों के दुग्ध स्नान पर भी खर्च आएगा. कई पकवानों का भंडारा कैसे होगा? 2-ढाई सौ लोग तो आएंगे ही…” बाबा ने खर्च गिनवाने शुरू कर दिए थे.

इस बीच शोरगुल कुछ अधिक होने लगा था. बाबा ने अचानक भक्त महिलाओं की ओर नजर उठाई. डपटते हुए बोला, “क्या तुम लोगों ने इसे मछली बाजार बना रखा है. चलो, शांत हो जाओ…आगे आओ, अब किस की बारी है?”

दरबार में महिलाओं की लगती थी भीड़

कुछ देर में बाबा के चरणों के पास दूसरी महिला आ कर बैठ गई थी. वह लाल चुन्नी ओढ़े थी. बाबा ने उस की चुन्नी ले कर खुद ओढ़ ली. बोला, “मैं दुल्हन से कम सुंदर नहीं हूं…मसानी बाबा हुआ तो क्या हुआ…मेरी जीभ पर सत्य का वास है. मैं जो बोलता हूं वही होता है. मेरे आशीर्वाद से भक्तों की इच्छाएं पूरी होती हैं…”

कैमरापरसन बाबा और भक्त के बीच चल रही गतिविधियों को काफी अच्छी तरह से कैमरे में कैद कर रहा था. कैमरे का फोकस कभी बाबा के चमकते क्रीम कलर के कुरते और चूड़ीदार पाजामे पर होता था तो कभी चौड़ी पट्टियों के मोतियों की माला और उस के साथ चमकते लौकेट को जूम कर दिया जाता था.

ऐसा करते हुए उस ने कुछ सेकेंड के लिए बाबा के पैरों को भी फोकस कर दिया था. पैरों में नवविवाहिता की तरह आलता लगाया था और पायल भी. नीचे से कैमरा जब सीधा चेहरे पर फोकस हुआ, तब उन की आंखों में लगा काजल भी कुछ सेकेंड के लिए रिकौर्ड हो गया.

वीडियो बनाते वक्त कैमरापरसन इस बात का खास ध्यान रखे हुए था कि साथ वाली महिला का चेहरा स्पष्ट नहीं दिखने पाए. दरअसल, वह बाबा के यूट्यूब चैनल के लिए वीडियो बना रहा था. बाबा एक यूट्यूबर भी था, जिस पर 900 के करीब वीडियो थे. उन के फालोअर्स की संख्या भी हजारों में थी. वीडियो देख कर ही हजारों की संख्या में उस के भक्त बन गए थे.

यह सब इसी साल के अगस्त माह के अंतिम सप्ताह की बात है. बाबा के मसानी ‘दरबार’ में मंगलवार और शनिवार को छोड़ कर दूसरे दिन भी भक्त आते थे. उन दिनों में खासखास भक्तों की समस्याओं के समाधान के लिए अनुष्ठान आदि के कार्य होते थे. भक्त महिलाएं परिवार समेत या फिर अकेले अनुष्ठान में भाग लेती थीं. यह सिलसिला बीते कई सालों से चल रहा था.

बाबा के दरबार में अधिकतर भक्त अपने मन की पीड़ा को दूर करने के लिए आते थे. कुछ अपने स्वास्थ्य की समस्याएं भी बताते थे, जिन का इलाज अस्पतालों में चल रहा होता था. बाबा उन्हें स्वस्थ रहने के कुछ घरेलू उपाय बता देता था, फिर समस्या को समूल नष्ट करने के लिए उन से अनुष्ठान करवाने को कहता था. वे उपाय खर्चीले होते थे. खर्च भक्त को वहन करना हाता था. बाबा का कहना था कि संकटग्रस्त काफी लोगों को उस के आशीर्वाद से लाभ मिला है.

पुलिस ने दबोचा ढोंगी बाबा को

अक्तूबर की 10 तारीख को भी मंगलवार ही था. बाबा के दरबार की तैयारी सफाई के साथ शुरू हो चुकी थी. सुबहसुबह एक सफाईकर्मी आ गया था. वह मकान के बाहरी हिस्से में झाड़ू लगा रहा था. इसी बीच द्वारका (नार्थ) थाने की एसआई रश्मि धारीवाल और एसआई धर्मेश एसएचओ संजीव पाहवा के साथ ककरोला गांव में बाबा के मकान पर आ धमके थे. इतनी सुबह 3-3 पुलिस अधिकारियों को देख कर वह हड़बड़ा गया.

घबराहट के साथ बोला, “जी…जी…किस से मिलना है? अभी दरबार नहीं लगा है.”

एसआई रश्मि तीखेपन के साथ सामने सीढिय़ों की तरफ इशारा करते हुए बोली, “ऊपर कौन है? दरवाजा खोलो.”

“जी…जी…मैडम!”

इसी बीच 2 पुलिसकर्मी दरवाजा खोल कर धड़धड़ाते हुए ऊपरी मंजिल पर जा पहुंचे. देखते ही देखते एक कमरे से बाबा को घरेलू कपड़े में ही थाने चलने को कहा. जब बाबा और वहां मौजूद उन के सहयोगी ने ऐसा करने का कारण पूछा, तब एसआई रश्मि गुस्से में बोली, “इस के खिलाफ रेप की शिकायत है.”

“यह क्या कह रही हो तुम? जानती नहीं मैं कौन हूं?” बाबा बोला.

“तू कुछ भी ना है, तेरे खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट है, तुझे जो कुछ कहना है कोर्ट में कहियो…” एसआई डपटते हुए बोले.

दिल्ली में द्वारका (नार्थ) के एक थाने में चर्चित स्वयंभू बाबा बने विनोद कश्यप के खिलाफ 2 महिलाओं ने सितंबर में ही यौन शोषण और ठगी का आरोप लगाया था. उन के द्वारा दर्ज एफआईआर में दोनों महिलाओं में से एक की शिकायत थी, “मैं अपने पति और 2 बच्चों के साथ रहती हूं. अपने परिवार के लिए शांति और अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए बाबा विनोद कश्यप के दरबार में गई थी, जहां मुझे बताया गया कि अगर मैं बाबा द्वारा बताए गए कुछ समाधानों का पालन नहीं करूंगी तो मेरे घर में कई समस्याएं होंगी.”

बाबा पर रेप का लगा आरोप

एक अन्य महिला ने आरोप लगाया था, “मैं ने और मेरे पति ने सब कुछ किया, तब कश्यप ने हमें बताया कि हमें ‘गुरुधारणा’ करनी है, जिस के लिए उन्होंने मुझ से 5 लाख रुपए की मांग करनी शुरू कर दी. मैं ने मना कर दिया. फिर उस ने मुझे 2 सितंबर को सेवा करने के लिए बुलाया. कश्यप अपने कमरे में बैठा था और उस ने मुझे अंदर बुलाया. वह मुझे गलत तरीके से छूने लगा, जिस का मैं ने विरोध किया. फिर उस ने मुझे प्रसाद दिया जिस से मैं बेहोश हो गई, उस के बाद उस ने मेरे साथ बलात्कार किया.”

पुलिस उस तथाकथित मसानी बाबा को थाने ले आई

थाने में हुई पूछताछ से पता चला कि बाबा का असली नाम विनोद कश्यप है. वह एक समय में दिल्ली के एक हौस्पिटल में नर्स की नौकरी करता था. वेतन 25 हजार रुपए था. अचानक उस ने यूट्यूबर बनने की सोची.

मन में नए तरह का वीडियो बनाने का विचार आया. इस के लिए उस ने पहले सैंकड़ों तरह के यूट्यूब देखे. उस ने यह मालूम किया कि लोगों को किस तरह के वीडियो देखने में अधिक दिलचस्पी है और किस में अधिक सब्सक्राइबर बन जाते हैं. इस तरह यूट्यूब की छानबीन करने के सिलसिले में पता चला कि लोग आध्यात्मिक वीडियो खूब देखते हैं और उस से अच्छी कमाई भी होती है. फिर या था उस ने भी आध्यात्मिक गुरु का नकली चोला पहन कर वीडियो बनाने शुरू कर दिए.

कुछ नया करने के लिए बाबा का एक चमत्कारी रूप धारण किया. अद्र्धनारीश्वर बन कर महिलाओं की निजी समस्याएं खत्म करने के दावे के वीडियो बना कर अपलोड करने लगा. वीडियो को अपने अजीबोगरीब हरकतों से नाटकीय रूप दिया. कभी भक्तिभाव का प्रवचन तो कभी विभिन्न तरह की समस्याओं में लाइलाज रोगों का बखान कर उन के शर्तिया समाधान की भी बात कही.

मसानी बाबा के नाम से हो गया मशहूर

जल्द ही 33 वर्षीय विनोद कश्यप मसानी बाबा के नाम से एक चर्चित यूट्यूबर बन गया. जल्द ही उस के 34.5 हजार फालोअर्स हो गए. उन में हजारों की संख्या में सब्सक्राइबर थे. वे बाबा के नए वीडियो का इंतजार करते रहते थे. अपनी इस सफलता से उस ने अस्पताल की नौकरी छोड़ दी. स्वयंभू बाबा की आध्यात्मिकता अपनाने के बाद द्वारका क्षेत्र के ककरोला गांव में अपने दोमंजिला घर में ‘दरबार’ लगाना शुरू कर दिया.

उस ने दावा किया कि लोगों की व्यक्तिगत और स्वास्थ्य समस्याओं को हल करने के लिए उसे ‘प्रभु का आशीर्वाद’ प्राप्त है. जल्द ही वह लोकप्रिय हो गया. उस के अनुयाई लगातार बढऩे लगे. सप्ताह भर में लगभग 400 ‘संकटग्रस्त’ लोग आशीर्वाद लेने के लिए उस के घर आने लगे. उसी बाबा पर यौन शोषण और ठगी का आरोप लगा था.

डीसीपी (द्वारका) हर्षवर्धन के अनुसार, विनोद कश्यप को उस के दरबार में 2 महिला भक्तों की शिकायतों के आधार पर यौन उत्पीडऩ के 2 मामलों में गिरफ्तार किया गया. दोनों आरोपियों के मामलों में विनोद कश्यप पर यह आरोप लगाया गया कि उस ने महिला भक्तों को समस्याओं में मदद करने के बहाने बुलाया और उन से कहा कि उन्हें ‘गुरु सेवा’ की जानी चाहिए. फिर उस ने महिलाओं का यौन उत्पीडऩ किया और उन्हें घटना का खुलासा न करने की धमकी दी.

महिलाएं जब इस के पास अपनी समस्याएं ले कर आती थीं, तब वह और धीरेधीरे उन का हमदर्द बन कर दोस्ती कर लेता था और फिर इस की आड़ में गंदा खेल खेलता था. उन्हें शिकार बनाने के लिए मिठाई आदि में नशीली दवा मिला कर खिला देता था. फिर रेप करता और ब्लैकमेल करता था. महिलाएं डर जाती थीं.

पुलिस ने भादंवि की धाराओं 326 और 506 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर पाखंडी बाबा विनोद कश्यप को कोर्ट में पेश कर 3 दिन की कस्टडी रिमांड पर ले लिया. उस पर आरोप लगाने वाली महिलाओं में से एक ने मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दिया. जिस में विनोद के खिलाफ आरोप दोहराए गए. पुलिस की जांच में पाया गया कि वह शादीशुदा है और शादी 2015 में हुई थी. उस के 3 बच्चे भी हैं.

कागज के टुकड़े की चोरी – भाग 1

उस की बाईं आंख काली पट्टी से ढकी हुई थी. लेकिन निक वेलवेट को इस बात पर यकीन नहीं था कि उस की एक आंख नहीं है. शायद  उस ने वह पट्टी अपनी शख्सियत को रहस्यमय बनाने के लिए बांध रखी थी. वह औसत कद, आकर्षक शरीर का अधेड़ उम्र का आदमी था. उस का माथा ऊंचा और बाल भूरे थे. वह शेरों के पिंजरे के पास खड़ा लापरवाही से च्युंगम चबा रहा था. निक उस के पास जा कर खड़ा हो गया और पिंजरे में बंद शेर की ओर देखने लगा.

चंद पलों तक दोनों में से कोई नहीं बोला. आखिरकार निक को ही पहल करनी पड़ी, ‘‘मिस्टर नारमन आज सुबह हमारी फोन पर बात हुई थी.’’

नारमन ने हां में सिर हिलाया और निक की ओर देखे बिना बोला, ‘‘मिस्टर वेलवेट, तुम 5 मिनट देर से पहुंचे.’’

‘‘सौरी, मैं ट्रैफिक जाम में फंस गया था.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं बोर नहीं हुआ. जानते हो मैं ने तुम्हें शेरों के पिंजरे के पास मिलने के लिए क्यों कहा था?’’

निक इनकार में सिर हिलाते हुए बोला, ‘‘अगर तुम शेरों का जोड़ा चोरी करवाने के बारे में सोच रहे तो बात खत्म समझो. मैं कीमती चीजें चोरी नहीं करता.’’

‘‘मुझे मालूम है, असल में शेर मेरा आइडियल जानवर है. शेरों को देख कर मेरे अंदर हिम्मत और हौसला पैदा होता है.’’

‘‘हम यहां कुछ और बात करने के लिए मिले हैं.’’ निक ने उसे याद दिलाया.

‘‘ठीक है, हम मुद्दे की बात करते हैं. मैं तुम से एक कागज का टुकड़ा चोरी करवाना चाहता हूं.’’

निक को आश्चर्य नहीं हुआ. क्योंकि वह इस से भी साधारण चीजें चोरी कर चुका था. फिरभी उस ने बात को और साफ करने के लिए पूछा, ‘‘किस तरह का कागज? मेरा मतलब कोई डाक्युमेंट, वसीयतनामा या कानूनी कागज?’’

‘‘महज एक कागज का टुकड़ा.’’ नारमन ने दोहराया, ‘‘जिस का साइज करीब 5 स्क्वायर इंच है और उसे एक पुरानी डायरी से फाड़ा गया है. पुराना होने की वजह से कागज पीला पड़ गया है.’’

‘‘क्या किसी खजाने का नक्शा है?’’ निक ने हलके व्यंग्य में पूछा, तो नारमन की नजर आने वाली इकलौती आंख में गुस्सा झलकने लगा. वह बोला, ‘‘जिस आदमी ने तुम्हारा परिचय कराया था, उस ने कहा था कि तुम ज्यादा सवाल नहीं करते.’’

‘‘उस ने ठीक कहा था.’’ निक बोला, ‘‘फिर भी मैं कोई काम हाथ में लेने से पहले इस बात की तसल्ली करना जरूरी समझता हूं कि जिस चीज को चोरी किए जाने के लिए कहा जा रहा है वह कीमती तो नहीं है.’’

‘‘जब तुम कागज के उस टुकड़े को देखोगे तो खुद समझ जाओगे कि वह कीमती नहीं है न ही उस पर किसी खजाने का नक्शा बना है. उसे एक पुरानी डायरी से फाड़ा गया है और उस के ऊपर तारीख और सन वगैरह छपा हुआ है. जैसे कि आमतौर पर डायरी के पन्नों पर छपा होता है.’’

‘‘ओ.के., तुम्हें यह तो मालूम होगा कि मेरी फीस 25 हजार डौलर है.’’

‘‘हां मुझे मालूम है.’’ नारमन ने कहा और जेब से एक लिफाफा निकाल कर निक के हाथ पर रख दिया, ‘‘इस में पेशगी के 10 हजार डौलर हैं. बाकी रकम काम पूरा होने के बाद. और हां, एक जरूरी बात. आज महीने की 10 तारीख है, 15 तारीख तक कागज का वह टुकड़ा मेरे हाथ में होना चाहिए.’’

‘‘कागज कहां है?’’

नारमन ने जेब से एक तसवीर निकाल कर निक को देते हुए कहा, ‘‘यह उस मकान की तसवीर है जिस के अंदर से तुम्हें वह कागज का टुकड़ा चोरी करना है. यह मकान शहर के बाहरी इलाके में है. तसवीर के पीछे मकान का पता लिखा हुआ है.’’

निक ने तसवीर ले कर उस का मुआयना किया. वह एक बड़ा और मार्डन शैली का मकान था. चारों तरफ हरेभरे पेड़ और फूलों से लदे पौधे खड़े थे. निक की आंखें सोचने के अंदाज में सिकुड़ गईं. इतने बड़े मकान में कागज का एक छोटा सा टुकड़ा तलाश करना वाकई बहुत मुश्किल काम था.

‘‘इस इमारत के अंदर 3 लोग रहते हैं और उन के साथ उन के 2 नौकर हैं. मकान मालिक का नाम माइकल गार्नर है. जिस कागज के टुकड़े का मैं जिक्र कर रहा हूं उस के बारे में माइकल के अलावा कोई और नहीं जानता. यह मालूम करना तुम्हारा काम है कि कागज का वह टुकड़ा माइकल के पर्स में रखा हुआ है या घर के अदंर किसी जगह पर. वैसे मेरे अंदाजे के मुताबिक वह कागज का टुकड़ा 2 जगह पर हो सकता है, माइकल की जेब में या उस के स्टडी रूम में.’’

‘‘काफी मुश्किल काम मालूम होता है.’’ निक ने कहा.

‘‘एक बात और बता दूं कि रात के ठीक 11 बजे इमारत के दरवाजे और खिड़कियों पर लगा हुआ सिक्योरिटी अलार्म औन कर दिया जाता है. इस अलार्म का संपर्क पुलिस हेडक्वार्टर से है.’’

निक ने लिफाफा खोल कर अंदर नजर डाली. उस में 100 डौलर वाले नोटों की पूरी गड्डी थी. निक ने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया. लिफाफा जेब में डाला और नारमन को बाय कह कर चला गया. पार्किंग में गिलोरिया कार के अंदर उस का इंतजार कर रही थी. निक दरवाजा खोल कर ड्राइविंग सीट पर जा बैठा और इंजन स्टार्ट करने लगा.

‘‘क्या बात है निक?’’ गिलोरिया ने पूछा, ‘‘तुम कुछ खोए खोए से लग रहे हो. चिडि़याघर के अंदर कोई विचित्र जानवर तो नहीं देख लिया?’’

‘‘कुछ ऐसा ही समझ लो.’’ निक कार को गियर में डालते हुए बोला, ‘‘इंसान से बढ़ कर विचित्र जानवर कोई नहीं है.’’

थोड़ी देर बाद कार हाइवे पर दौड़ने लगी. गिलोरिया ने उस से पूछा, ‘‘हम कहां जा रहे हैं?’’

‘‘कुछ पल खुली हवा में सांस लेना चाहता हूं.’’ निक ने कहा, ‘‘शहर की हवा बड़ी दूषित है.’’

गिलोरिया ने कोई और सवाल नहीं किया. वह समझ गई कि निक ने कोई काम हाथ में लिया है. 25 मिनट के बाद उन की कार एक सफेद रंग की मार्डन इमारत के सामने पहुंच गई. निक ने जेब से तसवीर निकाल कर देखी और संतुष्टि के भाव से सिर हिलाते हुए तसवीर जेब में रख ली. वह बिलकुल ठीक जगह पहुंचा था. उस ने कार को इमारत से 50 मीटर दूर पार्क किया और इंजन बंद कर के बाहर निकल गया.

‘‘मैं अभी आता हूं.’’ उस ने गिलोरिया से कहा और लापरवाही से गली में घुस गया. वह साफसुथरा पौश इलाका था. वहां सारे बंगले लाइन में बने हुए थे. गली काफी चौड़ी और सुनसान थी. जिस बंगले की तसवीर उस की जेब में थी उस का मुख्य दरवाजा मजबूत लोहे की सलाखों का बना हुआ था. दरवाजे के साइड में 2 नाम लिखे हुए थे. उन में एक संगमरमर के स्तंभ पर लिखा हुआ था और दूसरा नाम उस के नीचे लगी नेम प्लेट पर. नेम प्लेट पर लिखा नाम माइकल गार्नर था.

क्या निक पता लगा पायेगा कागज के टुकड़े के बारे में? कैसे पहुंचेगा वो इस कागज तक? जानने के लिए पढ़ें इस दिलचस्प क्राइम स्टोरी का अगला भाग…

खुला नहीं उनकी मौत का रहस्य

अंकिता अग्रवाल उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद की रहने वाली थी. उस के पिता अनिल कुमार  अग्रवाल का सोनेचांदी के गहनों का कारोबार था. पिता की लाडली तो वह थी ही, मां विमला और भाई अभिषेक भी उसे बहुत प्यार करते थे. अंकिता बीए की परीक्षा दे रही थी, तभी उस के पिता ने उस की शादी की बात चला दी.

अंकिता देखने में तो सुंदर थी ही, मासूम और सुशील भी थी. पिता चाहते थे कि उस की शादी किसी ऐसे लड़के से हो, जो उसे जीवन भर खुश और सुखी रख सके. काफी तलाश के बाद उन्हें अंकिता के लिए अमित अग्रवाल मिला तो वह उन्हें अपनी भोलीभाली बेटी के लिए योग्य वर लगा.

अमित अग्रवाल मथुरा के गुदड़ी बाजार का रहने वाला था. उस के पिता माधवराम अग्रवाल की मथुरा में के.डी. ज्वैलर्स के नाम से सोनेचांदी के गहनों की दुकान थी. अमित का परिवार मथुरा का बड़ा कारोबारी घराना माना जाता था. सोनेचांदी की दुकान के साथसाथ उस के अन्य कई कारोबार थे.

अनिल कुमार अग्रवाल को अंकिता और अमित की जोड़ी हर तरह से ठीक लगी थी. यही वजह थी कि 13 जुलाई, 2005 को उन्होंने बड़े धूमधाम से अंकिता की शादी अमित से कर दी. शादी के कुछ दिनों बाद अमित ने लखनऊ के चौक बाजार में अपनी सोनेचांदी की दुकान खोलने का विचार किया. अमित और अंकिता, दोनों के ही तमाम नातेरिश्तेदार लखनऊ में सोनेचांदी की दुकानें चलाते थे. उन्हीं लोगों की मदद से अमित ने मथुरा के के.डी. ज्वैलर्स की एक अन्य दुकान यानी शाखा लखनऊ के चौक बाजार के सुरंगी टोला में खोल दी.

अमित जल्द से जल्द अमीर होना चाहता था, इसलिए वह गहनों के कारोबार से जुड़े गैरकानूनी काम करने लगा. समय के साथसाथ अमित और अंकिता 2 बच्चों के मांबाप बन गए थे. बेटी वाणी बड़ी थी तो बेटा दिव्यांश छोटा था.

बच्चे स्कूल जाने लायक हुए तो उन का दाखिला लखनऊ के रेडहिल स्कूल में करा दिया गया. कारोबार को बढ़ाने के लिए अमित ने अपनी ससुराल वालों यानी अंकिता के घर वालों से भी मदद ली थी.

अंकिता के साथ अमित को जिस तरह का प्यार और व्यवहार करना चाहिए था, वह वैसा नहीं करता था. इस से अंकिता परेशान रहती थी. अंकिता ये बातें मायके वालों को बता कर उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी. इस की वजह यह थी कि उस के पिता अनिल कुमार अग्रवाल की तबीयत ठीक नहीं रहती थी. लेकिन बच्चे अपनी परेशानी या दुख कितना भी छिपाएं, मांबाप तो चेहरे के हावभाव से ही सब जान लेते हैं.

अंकिता भले ही अपने मन की बात मांबाप से नहीं कह रही थी, लेकिन मां उस की परेशानी को अच्छी तरह से समझ रही थी. लेकिन वह जब भी कुछ पूछती, अंकिता कुछ बताने के बजाए बात को टाल जाती थी.

कभी वह इतना जरूर कह देती, ‘‘मां, आप लोगों ने हमारे लिए रिश्ता बहुत अच्छा खोजा है, फिर भी मेरे साथ जो होना होगा, वह होगा ही. फिलहाल मुझे कोई परेशानी नहीं है.’’

इसी बीच अंकिता के पिता की मौत हो गई. अंकिता की मां विमला का कहना है कि अंकिता के पिता का उस की ससुराल और पति पर काफी दबाव रहता था. इस वजह से वे लोग अंकिता के साथ कोई गलत व्यवहार नहीं कर पाते थे. अमित को लगता था कि अगर कोई बात अंकिता के पिता को पता चल गई तो वह हंगामा खड़ा कर देंगे. लेकिन उस के पिता की मौत के बाद वह दबाव खत्म हो गया, जिस से अमित अंकिता को परेशान करने लगा. अंकिता हालात बेहतर होने की उम्मीद में सब सहती रही.

विमला अग्रवाल के अनुसार, 18 अगस्त, 2013 को अमित अंकिता और दोनों बच्चों को ले कर इनोवा कार से अचानक कहीं चला गया. जाने से पहले उस ने अपने घर वालों या ससुराल  वालों को कुछ बताने के बजाए अपने मैनेजर राजेश पांडे को सिर्फ एक पत्र लिखा था, ‘मैं बहुत परेशान हूं. मरने जा रहा हूं. पैसे का लेनदेन तो चलता ही रहता है, लेकिन कैलाश चाचा, रानू और मनोज ने परेशान कर रखा है. वे मुझे बहुत अपमानित करते हैं. अब जीने की इच्छा नहीं रही. इसलिए मरने जा रहा हूं. आप लेग दूसरी जगह नौकरी कर लीजिएगा.’

अगले दिन अमित की इनोवा कार इलाहाबाद के दारागंज में लावारिस हालत में खड़ी मिली. अंकिता की मां का कहना है कि अमित के गायब होने के बाद योजना के अनुसार अमित के करीबी लोगों ने अफवाह फैला दी कि अमित पर 25 करोड़ रुपए की देनदारी हो गई थी. वह बकाया चुकाने की हालत में नहीं था, इसलिए परिवार के साथ कहीं भाग गया.

अंकिता के भाई अभिषेक ने लखनऊ की चौक कोतवाली में इंसपेक्टर आई.पी. सिंह ने मिल कर अमित, बहन अंकिता और भांजेभांजी की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. इस की जांच सबइंसपेक्टर दिनेश सिंह को सौंपी गई. बकायेदारी की बात का पता चलने पर पुलिस को लगा कि कुछ दिनों बाद अमित खुद ही वापस आ जाएगा. इसलिए लखनऊ पुलिस ने अमित की खोज के लिए सर्विलांस का भी सहारा नहीं लिया. अगर पुलिस तत्काल अमित के घर और करीबी लोगों के फोन सर्विलांस पर लगा देती तो शायद कोई न केई नतीजा जरूर निकल आता.

अमित की तलाश में केवल अंकिता का परिवार जुटा था. अभिषेक का कहना है कि अमित का परिवार किसी भी तरह का सहयोग नहीं कर रहा था. इसी तरह समय गुजरता रहा. अचानक 15 दिसंबर को अंकिता के भाई अभिषेक के मोबाइल फोन पर उड़ीसा के जिला पुरी से पुलिस का फोन आया. पुरी की पुलिस ने उसे बताया कि अंकिता और उस के दोनों बच्चे वहां के होटल जमींदार पैलेस के कमरा नंबर 307 मृत पाए गए हैं.

पुरी पुलिस की इस सूचना पर अभिषेक पत्नी श्रद्धा और मां विमला अग्रवाल के साथ पुरी पहुंचा. अभिषेक के अनुसार होटल के कमरे में अंकिता और बच्चों के शव बिस्तर पर पड़े मिले थे. बिस्तर की चादर और तकिया खून से सने थे. होटल के कमरे में जहर की शीशी भी पड़ी थी. इस से अंदाजा लगाया गया कि अंकिता और उस के बच्चों को जहर दे कर बेहोश किया गया था. उस के बाद उन्हें बेरहमी से पीटा गया था. फिर सब की गला दबा कर हत्या कर दी गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, अंकिता के शरीर में चोट के 5 निशान पाए गए थे. शरीर की हड्डी 4 जगह से टूटी थी. अभिषेक का कहना है कि ये लोग पहले पुरी के अन्य होटलों में ठहरे थे. 22 नवंबर को होटल जमींदार पैलेस आए थे. यह अच्छा होटल था. यहां अमित ने सी-फेसिंग कमरा लिया था, जिस का एक दिन का किराया 7500 रुपए था. घटना वाली रात होटल में पार्टी चल रही थी, इसलिए होटल का सारा स्टाफ उस में लगा था. कमरा समुद्र की ओर वाला था, इसलिए तेज हवाओं के शोर की वजह से अंकिता की चीखपुकार किसी को सुनाई नहीं दी थी.

अंकिता के भाई अभिषेक के अनुसार, लाशों के गले में तुलसी की माला और शरीर पर कालेसफेद तिल पड़े मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि मरने के बाद उन के क्रियाकर्म की कोशिश की गई थी. बाद में पुलिस ने होटल का वह कमरा डुप्लीकेट चाबी से खोला था.

कमरे में कागज का एक टुकड़ा मिला था, जिस पर अभिषेक के फोन नंबर के साथ लिखा था कि इस नंबर पर घटना की सूचना दी जाए. पुलिस जांच में पता चला कि अमित ने होटल के रजिस्टर में अपना पता मथुरा वृदांवन लिखाया था. पते के साथ उस ने जो मोबाइल नंबर लिखाया था, वह पहले से ही बंद था.

अभिषेक ने अंकिता और उस के बच्चों का अंतिम संस्कार कर दिया था. वह अपने बहनोई अमित और उस के घर वालों के खिलाफ बहन और उस के बच्चों की हत्या का मुकदमा नामजद दर्ज कराना चाहता था. उस का कहना है कि अमित के पिता माधवराम ने भाजपा के एक स्थानीय विधायक से पैरवी करा दी, जिस से पुरी पुलिस ने दबाव में आ कर हत्या का मुकदमा नामजद दर्ज करने के बजाए अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर के जांच शुरू की.

अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि पहले तो उन्हें लग रहा था कि उड़ीसा की पुरी पुलिस अमित को खोज लेगी. लेकिन जैसेजैसे समय बीतता गया, उन की उम्मीद धूमिल होती गई. पुरी पुलिस ने इस मामले की जानकारी लखनऊ पुलिस को भी दी थी. दोनों ने तथ्यों का अदानप्रदान भी किया था, लेकिन मामले का कोई हल नहीं निकला.

अंकिता के भाई अभिषेक का कहना है कि अंकिता और उस के बच्चों की हत्या में उस के पति अमित का हाथ है. उस की मदद उस के घर वाले कर रहे हैं. ऐसा भी हो सकता है कि उन की मदद से वह देश से बाहर चला गया हो. अगर अमित के घर वाले उस की मदद न कर रहे होते तो वह इतने लंबे समय तक पुरी के महंगे होटलों में नहीं रह सकता था.

अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि अगर अमित सही मायने में गायब होता तो उस के घर वाले उस की तलाश में जमीनआसमान एक कर देते. अमित के गायब होने से उस के घर वाले जरा भी परेशान नजर नहीं आ रहे हैं. उन्होंने उस की खोज भी नहीं की. वे चाहते तो अमित की तलाश में अखबार में उस का फोटो छपवाते, टीवी पर दिखवाते, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं कराया.

विमला अग्रवाल का कहना है कि लखनऊ पुलिस ने भी इस मामले में कम लापरवाही नहीं की. अमित और अंकिता के गायब होने के बाद पुलिस को गुमशुदगी की रिपोर्ट को अपहरण की धारा में बदल कर जांच करनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. पुरी पुलिस के साथ मिल कर भी लखनऊ पुलिस ने कोई छानबीन नहीं की.

अंकिता के घर वालों ने न्याय पाने के लिए लखनऊ में कैंडिल मार्च निकाल कर पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने की भी कोशिश की थी. पुलिस के बड़े अफसरों के अलावा फैजाबाद के सांसद एवं उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल खत्री और अयोध्या के विधायक अखिलेश सरकार के मंत्री तेजनारायण पांडेय से भी अपनी व्यथा सुनाई थी. सभी ने न्याय दिलाने और सही जांच कराने का भरोसा दिलाया था, लेकिन हकीकत में कुछ हुआ नहीं.

अंकिता के भाई अभिषेक अग्रवाल का कहना है कि अमित के घर वालों की सत्ता में पहुंच है, इसलिए पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है. अगर लखनऊ पुलिस ने शुरू में ही अमित के खिलाफ सख्त कदम उठाया होता तो अंकिता और उस के बच्चे आज जिंदा होते. अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि अब हमें सिर्फ सीबीआई जांच पर भरोसा है. हम उसी की मांग कर रहे हैं.

कितने शर्म की बात है कि अगस्त से अब तक 8 महीने बीत जाने के बाद भी 2-2 राज्यों की पुलिस अंकिता और उस के बच्चों की हत्या का राज खोलने में पूरी तरह से नाकाम रही है. ऐसे में पुलिस की वैज्ञानिक और खोजपूर्ण जांच की बातें पूरी तरह से खोखली और बेमानी नजर आती हैं. जब तक अमित का पता नहीं चलता, तब तक हत्या की वजह और हत्यारे के बारे में नहीं जाना जा सकता.

अंकिता के करीबियों का कहना है कि अमित देश में ही कहीं छिपा है. उस के घर वालों को पता भी है. लेकिन वे बता नहीं रहे हैं. जबकि अमित के घर वाले इस बात को गलत बता रहे हैं. उन का कहना है, ‘‘हम तो चाहते हैं कि अमित जल्द से जल्द वापस आ जाए. जिस से सच्चाई का खुलासा हो सके.’’

—कथा अंकिता की मां और भाई के बयान पर आधारित

बारिश वाला प्यार : कौन थी वो? – भाग 1

राहुल मुंबई न्यूज का एक न्यूज रिपोर्टर था. 23 अक्तूबर को उस का जन्म दिन था, इसलिए वह दोस्तों के साथ पार्टी करने जा रहा था. उस दिन एक तो बारिश का सुहाना मौसम, उस पर यार दोस्तों का साथ मिल जाए तो मस्ती में सोने पे सुहागे वाला रंग चढ़ जाता है. राहुल मुंबई में अकेला रहता था, उस का परिवार कर्नाटक में था, क्योंकि उस के मम्मीपापा वहां एक स्कूल चलाते थे, इसलिए वह यहां अकेला ही रह रहा था.

राहुल पार्टी के लिए अपने दोस्तों को ले कर होटल के लिए निकला. उस ने गाड़ी ओबराय होटल के बाहर रोक कर कर दोस्तों से कहा, “यार तुम लोग गाड़ी में बैठो, बारिश तेज है. मैं जरा देख कर आता हूं कि अंदर कोई सीट है या नहीं. क्योंकि यहां भीड़ तो ऐसी होती है, जैसे पूरा मुंबई इसी होटल में आता है.’‘

जैसे ही राहुल कार का दरवाजा खोल कर होटल की तरफ बढ़ा, अचानक सामने से एक लड़की घबराई हुई लगभग भागते हुए आई और वह राहुल से टकरा गई. तभी वह लड़की राहुल की तरफ देख कर बोली, “ओह! आई एम सौरी.’‘

राहुल ने भी झट से कहा, “इट्स ओके, बाई द वे, हैव यू एनी प्राब्लम? मेरा मतलब है आप इस तरह बेतहाशा क्यों भाग रही हैं, कोई परेशानी हो तो कहिए.’‘

“जी नहीं, कोई परेशानी नहीं है. दरअसल, बारिश की वजह से मैं तेज आ रही थी.’‘

“जी, फिर ठीक है.’‘

इतने में जोर से बादलों की गड़गड़ाहट के साथ बिजली चमकी तो उस लड़की ने डर की वजह से राहुल को जकड़ लिया.

जैसे ही राहुल ने लड़की की नजदीकी महसूस की तो उस के शरीर में भी सिहरन पैदा हुई. एक तो दोनों का जवान खून, उस पर बारिश का कहर ढहाता मौसम था. सीने की धड़कन की तरह पास गोरी चिट्टी परियों जैसी हसीना, रूप की मल्लिका थी. उस का शरीर गुंथा हुआ था. उस की सांसों से सांसें टकराईं तो राहुल जैसे होशोहवास  खो बैठा. वह बुत बना वहीं खड़ा था.

न जाने वह लड़की क्या बोल रही थी, उसे कुछ सुनाई नहीं दिया. उस की तंद्रा तब भी नहीं टूटी जब सामने से वहां टैक्सी आ कर रुकी. टैक्सी में बैठ कर वह उस की आंखों से ओझल हो गई. राहुल वहीं बारिश में ही बुत बना खड़ा रहा. गाड़ी में बैठे उस के दोस्त समझ नहीं पा रहे थे कि राहुल बारिश में खड़ा क्यों भीग रहा है.

तभी गाड़ी में से अमन बाहर निकला और उसे झिंझोड़ते हुए बोला, “ओए राहुल, क्या हुआ यार, वो लड़की क्या कह रही थी? कौन थी और कहां गई ? और तू यहां इस तरह इतनी बारिश में बुत बना क्यों खड़ा है?’‘

“अमन यार, पता नहीं कौन थी, कहां गई और क्या कह रही थी? लेकिन यार बारिश में मुझे वह जलपरी नजर आई. लगता है कोई जादू कर गई वो.’‘

“राहुल, लगता है तुझे उस से प्यार हो गया है.’‘ अमन मजाकिया लहजे में बोला.

“हां यार, शायद पहली नजर वाला, मुंबई की पहली बारिश का पहला प्यार.’‘

“चल अच्छा, अब अंदर तो चल या यहीं खड़े रहने का इरादा है क्या?’‘

“हां चल, मगर कौन थी वो इस का पता तो लगा कर रहूंगा. यार, दिल निकाल कर ले गई मेरा.’‘ राहुल बेमन से गाड़ी में चला गया, लेकिन उस के दिमाग में वह लड़की बस गई. राहुल सोचने लगा कि कल ही इस का पता करेगा और फिर अपने मम्मीपापा से कह कर उस के उस के साथ रिश्ते की बात करेगा.

जैसे ही गाड़ी होटल के गेट पर रुकी और सब उतर कर होटल में जाने लगे तो वहां खड़े वैले पार्किंग के ड्राइवर ने कहा, “सर, आज होटल में एंट्री नहीं है.’‘

“क्यों?’‘

“होटल में खून हो गया है.’‘

“क्या… खून?’‘

आश्चर्य से सब के मुंह खुले रह गए, क्योंकि ओबराय नामचीन होटलों में गिना जाता है. आज तक इस होटल के बारे में कभी कोई ऐसीवैसी बात नहीं सुनी थी. इस होटल में कोई ऐरागैरा नहीं आ सकता था, केवल नामचीन लोग जैसे बड़ेबड़े सेठसाहूकार या मंत्री लोग ही आते थे. भला ऐसे बड़े लोगों में क्या झगड़ा या खूनखराबा हो सकता है.

पूछने पर पता चला कि खून शहर के जानेमाने बिजनैस टाइकून सेठ अवस्थीजी का हुआ, उस पर और चौंकाने वाली बात कि कत्ल उन्हीं की बीवी ने किया था.

“भला ऐसा कैसे हो सकता है?’‘ राहुल सोचने लगा.

एक तो सेठ इतने भले इंसान, उस पर उन्हीं की बीवी कत्ल करे, सुन कर राहुल का दिमाग घूम गया.

सभी दोस्त दूसरे होटल जाने के लिए कह रहे थे, मगर राहुल के दिमाग में कोई खिचड़ी पकने लगी, साथ में उस के मस्तिष्क में यह बात भी बारबार आ रही थी कि बारिश वाली लड़की कौन थी?

इतने में पुलिस की जीप सायरन बजाती हुई होटल में पहुंची, जिस में 2 लेडीज पुलिस भी थीं. थोड़ी देर में पुलिस एक महिला को साथ लिए बाहर निकली और जीप में बैठ कर चली गई. तभी राहुल का फोन बज उठा. उस ने देखा एडिटर साहब का फोन था, उस ने दोस्तों से माफी मांग कर उन्हें फिर कभी पार्टी देने का वादा कर के विदा किया और बौस से बात करने लगा.

“हैलो सर.’‘

“राहुल, कहां हो तुम? इतनी बड़ी खबर पूरे शहर में फैल गई और तुम्हें पता तक नहीं, पूरी डिटेल्स ले कर पहुंचो औफिस.’‘

“सर मैं वहीं हूं, अभी थोड़ी देर में आता हूं.’‘ राहुल बोला.

उस समय किसी को भी होटल के अंदर जाने की पाबंदी थी, इसलिए राहुल थोड़ी ही देर में औफिस चला गया.

“सुना है कि सेठ अवस्थी की बीवी ने ही उस का खून किया? जल्दी से बाकी डिटेल्स बताओ ताकि सब से पहले हमारे ही अखबार में धांसू खबर छपे,’‘ एडिटर बोले.

“नहीं सर, अभी हम ये खबर नहीं छापेंगे.’‘ राहुल ने कहा.

“लेकिन क्यों? इतनी बड़ी खबर, मुंबई शहर का इतना बड़ा सेठ अपनी ही बीवी के हाथों क्यों और कैसे मारा गया. कल देखना हर पेपर के फ्रंट पेज की हैडिंग यही होगी, लेकिन हमारे पेपर में पूरी डिटेल्स होगी कि क्यों मारा उस की बीवी ने, यही तो कमाल है तुम्हारे अंदर. दूसरे पेपर में आधी खबर होती है और तुम जमीन खोद कर और आसमान फाड़ कर जो खबर लाते हो वो तहलका मचा देती है.’‘

लेकिन राहुल उलझा हुआ था, उसे लड़की और मर्डर का कनेक्शन जुड़ा हुआ लग रहा था, इसलिए वह बौस से बोला, “सर, छापने दीजिए सब को, ये खबर आधी सच्ची और आधी झूठी है. मुझे पूरी तरह इस की तह तक जाना है, जो दिख रहा है वो है नहीं, जो है वो दिख नहीं रहा.’‘

बौस यह जानते थे कि राहुल जब तक संतुष्ट न हो वो खबर नहीं देता, इसलिए वह भी चुप हो गए. लेकिन राहुल को चैन नहीं था. वह खबर की तह तक पहुंचना चाहता था. और उसी समय वह पुलिस स्टेशन पहुंच गया. उसी औरत से मिलने, जिसे पुलिस पकड़ कर ले गई थी.

वह एसएचओ से बोला, “सर, मुझे उस औरत से मिलना है, जिस ने उस देवतारूपी सेठ का कत्ल किया.’‘

“वह उन की बीवी है, उन से बिना कोर्ट की इजाजत कोई नहीं मिल सकता. कोर्ट से और्डर ले कर मिल लेना.’‘ एसएचओ ने कहा.

राहुल वापस चला गया और कोर्ट खुलने का इंतजार करने लगा. राहुल का मन यह मानने को तैयार नहीं था कि वह सेठ की बीवी है. और यही बात उस ने बौस से भी कही थी.

उस बारिश वाली लड़की का क्या संबंध था इस कत्ल से? कौन थी वो महिला जिसे पुलिस सेठ की बीवी बता रही थी? इन सभी सवालों के जवाब मिलेंगे कहानी के अगले भाग में.