आशिक ससुर की कातिल बहू – भाग 2

परमानंद देखने में ही जवान नहीं था, बल्कि शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. इस की वजह यह थी कि वह अपने शरीर और खानपान का विशेष ध्यान रखता था. बच्चे सयाने हो गए हैं, यह कह कर पत्नी उर्मिला उसे पास नहीं फटकने देती थी. जबकि परमानंद अभी खुद को जवान समझता था और स्त्रीसुख की लालसा रखता था.

परमानंद को इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी कि गीता उस की बेटी की उम्र की तो है ही, उस की बहू भी है. वह वासना में इस कदर अंधा हो गया था कि मर्यादा ही नहीं, रिश्ते नाते भी भूल गया. गीता अब उसे सिर्फ एक औरत नजर आ रही थी, जो उस की शारीरिक भूख शांत कर सकती थी. यहां परमानंद ही नहीं, गीता भी अपनी मर्यादा भुला चुकी थी. यही वजह थी कि वह परमानंद की किसी अशोभनीय हरकत का विरोध नहीं कर रही थी, जिस से उस की हिम्मत और हसरतें बढ़ती जा रही थीं. फिर तो एक स्थिति यह आ गई कि परमानंद की रात की नींद गायब हो गई. अब वह मौके की तलाश में रहने लगा.

आखिर उसे एक दिन तब मौका मिल गया, जब पत्नी मायके गई हुई थी. गरमी के दिन होने की वजह से बाकी बच्चे अंदर सो रहे थे. गीता घर के काम निपटा कर बाहर दालान में आई तो ससुर को बेचैन हालत में करवट बदलते देखा. उसे लगा ससुर की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उस ने उस के पास आ कर पूछा, ‘‘लगता है, आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’

परमानंद हसरत भरी निगाहों से गीता को ताकते हुए बोला, ‘‘तुम इतनी दूरदूर रहोगी तो तबीयत ठीक कैसे रहेगी.’’

गीता को परमानंद की बीमारी का पहले से ही पता था. बीमार तो वह खुद भी थी. इसीलिए तो मौका देख कर उस के पास आई थी. उस ने चाहतभरी नजरों से परमानंद को ताकते हुए कहा, ‘‘यह आप का भ्रम है. मैं आप से दूर कहां हूं बाबूजी. आप के आगेपीछे ही तो घूमती रहती हूं.’’

अब गीता इस से ज्यादा क्या कहती. परमानंद ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो वह खुद ही उस के ऊपर गिर पड़ी. इस तरह एक बार मर्यादा की दीवार गिरी तो उस पर रोजरोज वासना की इमारत खड़ी होने लगी. गीता का तो मर्यादा से कभी कोई नाता ही नहीं रहा था, उसी में उस ने ससुर को भी शामिल कर लिया. परमानंद की संगत में आ कर वह शराब भी पीने लगी. अब वह शराब पी कर ससुर के साथ आनंद उठाने लगी. कुछ दिनों बाद उस ने अपने चचिया ससुर से भी संबंध बना लिए.

ये ऐसा रिश्ता है, जिसे कितना भी छिपाया जाए, छिपता नहीं है. किसी दिन उर्मिला ने गीता को परमानंद के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. जब घर का मुखिया ही पतन के रास्ते पर चल रहा हो तो घर के अन्य लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उर्मिला भी जब ससुरबहू के इस मिलन को नहीं रोक पाई तो उस ने यह बात अपने बेटे मनोज को बताई.

मनोज जानता था कि उस का बाप और पत्नी बरबादी की राह पर चल रहे हैं, इसलिए वह भाग कर गांव आया. बाप से वह कुछ कह नहीं सकता था, उस ने गीता को समझाने की कोशिश की. लेकिन गीता अब कहां मानने वाली थी. हार कर मनोज उसे अपने साथ ले गया. मनोज का विचार था कि गीता साथ रहेगी तो ठीक रहेगी. लेकिन जिस की आदत बिगड़ चुकी हो, वह कैसे सुधर सकती है. बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो ऐसे मामलों में सुधरने के बारे में सोचते हैं.

मनोज के नौकरी पर जाते ही गीता आजाद हो जाती. वह कमरे में ताला डाल कर घूमने निकल जाती. उस ने वहां भी अपने रंगढ़ंग दिखाने शुरू किए तो वहां भी रंगीनमिजाज लोग उस के पीछे पड़ गए. उन्हीं में रुद्रपुर की आदर्श कालोनी का रहने वाला शेखर और जगतपुरा का रहने वाला मनोज भटनागर भी था.

गीता के दोनों से ही प्रेमसंबंध बन गए. शेखर ने बातें करने के लिए गीता को एक मोबाइल फोन भी खरीद कर दे दिया था. यही नहीं, दोनों गीता की हर जरूरत पूरी करने को तैयार रहते थे. गीता उन के साथ घूमतीफिरती, सिनेमा देखती, होटलों और रेस्तरांओं में खाना खाती. बदले में वह उन्हें खुश करती और खुद भी खुश रहती.

मनोज जागरलाल के जिस मकान में किराए पर रहता था, उसी में उस के बगल वाले कमरे में रामचंद्र मौर्य रहता था. वह जिला बरेली के थाना मीरगंज के अंतर्गत आने वाले गांव गौनेरा का रहने वाला था. था तो वह शादीशुदा, लेकिन वहां वह अकेला ही रहता था. वह वहां एक फैक्ट्री में ठेकेदारी करता था.

अगलबगल रहने की वजह से मनोज और रामचंद्र के बीच परिचय हुआ तो दोनों एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए उन में आपस में खास लगाव हो गया था. जल्दी ही रामचंद्र गीता के बारे में सब कुछ जान गया था. मनोज के काम पर जाते ही वह उस के कमरे पर पहुंच जाता और गीता से घंटों बातें करता रहता.

पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर गीता समझ गई कि रामचंद्र उस के कमरे पर क्यों आता है. वह जान गई कि पत्नी से दूर औरत सुख के लिए बेचैन रामचंद्र उसी के लिए उस के आगेपीछे घूमता है. रामचंद्र गीता से दोगुनी उम्र का था. लेकिन गीता के लिए इस का कोई मतलब नहीं था. उसे मतलब था तो सिर्फ देहसुख और पैसों से, जो चाहने वाले उस पर लुटा रहे थे. तरहतरह के मर्दों के साथ मजा लेने वाली गीता को रामचंद्र का आना अच्छा ही लगा. इसलिए गीता उस का मुसकरा कर स्वागत करने लगी.

फिर तो रामचंद्र को उस के करीब आने में देर नहीं लगी. जल्दी ही दोनों के मन ही नहीं, तन भी एक हो गए. लेकिन जितनी जल्दी वे एक हुए, उतनी ही जल्दी उन की पोल भी खुल गई. एक दिन मनोज फैक्ट्री से जल्दी आ गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजा खटखटाया तो गीता ने दरवाजा काफी देर बाद खोला. वह मनोज को देख कर चौंकी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे, इसलिए मनोज को लगा, वह सो रही थी. गीता ने सहमे स्वर में पूछा, ‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘फैक्ट्री का जनरेटर खराब था, इसलिए काम नहीं हुआ.’’ कह कर मनोज कमरे में दाखिल हुआ तो सामने पलंग पर रामचंद्र को बैठे देख कर उसे माजरा समझते देर नहीं लगी. मनोज को देख कर वह तेजी बाहर निकल गया. मनोज ने गुस्से से पूछा, ‘‘यह यहां क्या कर रहा था?’’

‘‘पानी पीने आया था.’’ गीता ने हकलाते हुए कहा.

‘‘कमरा बंद कर के पानी पिला रही थी या उस के साथ गुलछर्रे उड़ा रही थी?’’

‘‘तुम्हें यह कहते शरम नहीं आती?’’ गीता चीखी.

‘‘शरम तो तुम्हें आनी चाहिए, जो एक के बाद एक गलत हरकतें करती आ रही हो. अपने मर्द के होते हुए पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो. तुम्हें तो शरम से डूब मरना चाहिए.’’

‘‘तुम में है ही क्या? तुम न तो पत्नी को संतुष्ट कर सकते हो, न ही उस के खर्चे उठा सकते हो. अगर तुम को इस सब से परेशानी हो रही है तो मुझे छोड़ दो.’’ गीता ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘तू तो चाहती ही है कि मैं तुझे छोड़ दूं तो तू घूमघूम कर गुलछर्रे उड़ाए. तुझे तो अपनी इज्जत की पड़ी नहीं है, लेकिन मुझे तो अपनी इज्जत की फिक्र है. इसलिए सामान बांध लो और अब हम गांव चलते हैं.’’

मां की राह पर बेटी : मां के प्यार पर डाला डाका – भाग 2

मिलते रहने की वजह से गुडि़या और गोलू में प्रेम हो गया तो गुडि़या गोलू को अपने साथ रखने के बारे में सोचने लगी. इस के लिए उस ने मातापिता से अनुमति लेने के लिए कहा, ‘‘अभी तो मेरी पूरी जिंदगी पड़ी है. जब तक आप दोनों जिंदा हैं, कोई कुछ न कहेगा. लेकिन आप लोगों के बाद लोग मुझे जीने नहीं देंगे. इसलिए मैं चाहती हूं कि गोलू को अपने साथ रख लूं.’’

गुडि़या के पिता तैयार नहीं थे. लेकिन गुडि़या ने उन्हें ऊंचनीच समझाई तो वह भी तैयार हो गए. उस के बाद गुडि़या ने गोलू को अपने साथ रख लिया. गोलू गुडि़या के साथ उस के पति की हैसियत से रहने लगा. समय अपनी गति से बीतता रहा. पिछले साल गुडि़या के मातापिता की मौत हो गई तो गुडि़या और गोलू ही रह गए.

गोलू को पा कर गुडि़या के जीवन में एक बार फिर रौनक आ गई थी. गुडि़या के पास पैसा था ही, गांव नयाखेड़ा में एक छोटा सा प्लौट ले कर उस ने अपना छोटा सा मकान बनवा लिया. लेकिन वह उस में रहती नहीं थी. रहने के लिए उस ने गजियाखेड़ा में एक मकान किराए पर ले रखा था.

पिछले साल जनवरी महीने में गुडि़या की बड़ी बेटी सोनम अपने पति दीपक वर्मा के साथ गुडि़या के घर पहुंची. उस ने मां को बताया कि पिता ने उस की तो शादी कर दी है, लेकिन दोनों छोटी बहनों पर वह बहुत अत्याचार करते हैं.

बेटियों पर अत्याचार करने की बात सुन कर गुडि़या ने सोनम को एक मोबाइल फोन देते हुए कहा, ‘‘गोलू के साथ होने से मैं हर तरह से मजबूत हो गई हूं. किसी तरह तुम यह मोबाइल फोन कंचन तक पहुंचा दो. मैं उस से अपने साथ रहने की बात करूंगी. अगर वह मेरे साथ रहने को तैयार हो जाती है तो मैं उसे ला कर अपने पास रख लूंगी.’’

सोनम ने मां द्वारा दिया गया मोबाइल फोन ले जा कर कंचन को दे दिया. इस के बाद कंचन अपनी मां गुडि़या से बातें करने लगी. पिता द्वारा किए गए अत्याचारों के बारे में वह मां को बताती रहती थी. उस ने यह भी बताया कि नई मां भी जुल्म करने में पीछे नहीं है. उस का कहना था कि किसी भी तरह वह उसे पिता के चंगुल से मुक्त कराए, वरना वह आत्महत्या कर लेगी.

श्यामबाबू को कहीं से पता चल गया कि कंचन उस की शिकायत गुडि़या से करती है. इस के बाद वह कंचन को और परेशान करने लगा. तब कंचन ने मां से कहा, ‘‘मां, अब मुझ से पिता के अत्याचार सहे नहीं जा रहे हैं. आप मुझे यहां से किसी तरह निकालिए, वरना मैं आत्महत्या कर लूंगी.’’

बेटी की तकलीफों के बारे में सुन कर गुडि़या तड़प उठी. उस ने कंचन और मोना को श्यामबाबू के चंगुल से मुक्त कराने के लिए 6 अगस्त, 2013 को कानपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, जिलाधिकारी, उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग, थाना बर्रा के थानाप्रभारी से लिखित शिकायत तो की ही, पुलिस अधिकारियों को बेटी से बातचीत की काल डिटेल्स देते हुए फोन पर रिकौर्ड की गई बातचीत भी सुनाई. इस के बावजूद पुलिस ने उस की कोई मदद नहीं की.

तब गुडि़या ने 8 अगस्त, 2013 को महिला थाना में शिकायत करते हुए अपनी और कंचन की रिकौर्ड की गई बातचीत तो महिला थाना की थानाप्रभारी को सुनाई तो वह द्रवित हो उठीं. उन्होंने बर्रा स्थित श्यामबाबू के घर छापा मार कर कंचन और मोना को मुक्त करा कर उस की मां गुडि़या के हवाले कर दिया. गुडि़या दोनों बेटियों को ले कर अपने घर आ गई. इस के बाद गुडि़या ने उन्नाव की अदालत में कंचन और मोना के गुजारेभत्ते के लिए श्यामबाबू के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया.

इस मुकदमें से श्यामबाबू की परेशानी बढ़ गई. मुकदमें की तारीखों पर आनेजाने से दुखी हो कर एक दिन उस ने अदालत से लौटते समय गुडि़या को जान से मारने के लिए उस पर देसी पिस्तौल से गोली चला दी. संयोग से कंचन की नजर उस पर पड़ गई तो उस ने नाल पर हाथ मार दिया, जिस से उस का निशाना चूक गया. गुडि़या ने उसी दिन उन्नाव कोतवाली में धारा 307 के अंतर्गत श्यामबाबू के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. जब इस बात की जानकारी श्यामबाबू को हुई तो उस ने मांबेटी को मुकदमा वापस लेने को कहा. लेकिन गुडि़या और कंचन ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया.

इस के बाद सोनम ने फोन कर के मां को बताया कि पापा एक पुलिस अधिकारी के साथ मिल कर उस के खिलाफ कोई षड्यंत्र रच रहे हैं. इसलिए वह कंचन और मोना पर कड़ी नजर रखे, वरना वह दोनों को उठवा कर उन के साथ कुछ भी कर सकते हैं. क्योंकि उन्हीं की वजह से उन्हें जलालत झेलनी पड़ रही थी.

गुडि़या सतर्क हो गई. वह दोनों बेटियों पर नजर रखने लगी. 12 नवंबर, 2013 की सुबह कंचन आजादनगर राजमार्ग पर टहलने गई थी. काफी देर तक वह घर नहीं लौटी तो गुडि़या ने उस की तलाश शुरू की. लेकिन वह कहीं नहीं मिली. तब गुडि़या को लगा, कहीं उसे श्यामबाबू तो नहीं उठा ले गया. उस ने सोनम को फोन कर के कंचन के गायब होने की जानकारी दे कर उस के बारे में पता लगाने को कहा.

थोड़ी देर बाद ही सोनम का फोन आ गया. उस ने गुडि़या को बताया कि कंचन पापा के घर नहीं है. पापा भी अपनी ड्यूटी पर महोबा गए हुए हैं. गुडि़या ने एक बार फिर सभी जगह कंचन की तलाश की. जब उस का कही पता नही चला तो उस ने 13 नवंबर, 2013 को थाना गंगाघाट में कंचन वर्मा की गुमशुदगी दर्ज करा दी. लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की.

गांव घोंघी रऊतापुर में जो लाश मिली थी, गुडि़या उस की शिनाख्त तो नहीं कर पाई, लेकिन चप्पलों के बारे में कहा था कि ये उसी की जैसी हैं. अगर वह लाश कंचन की थी तो उस की हत्या उस के पिता श्यामबाबू ने ही योजना बना कर की थी.

गुडि़या के बयान के आधार पर थानाप्रभारी मनोज सिंह ने श्यामबाबू को लाश की शिनाख्त के लिए थाना गंगाघाट बुलाया. उसे फोटो और चप्पलें दिखाई गईं तो उस ने कहा कि न लाश ही उस की बेटी की है और न ही चप्पलें. जब लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने इस मामले की जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया. लगभग डेढ़ महीने बाद श्यामबाबू घोंघी रऊतापुर में मिली लाश को अपनी बेटी कंचन की लाश बता कर उन्नाव के पुलिस अधीक्षक को प्रार्थनापत्र दिया कि कंचन की हत्या उस की मां गुडि़या ने अपने प्रेमी गोलू श्रीवास्तव के साथ मिल कर की है.

इस के बाद लाश को ठिकाने लगाने में कंचन की बड़ी बहन सोनम ने मां और उस के प्रेमी की मदद की थी. श्यामबाबू ने अपने प्रार्थनापत्र में यह भी आरोप लगाया था कि थाना गंगाघाट पुलिस हत्यारों से मिली है, इसलिए कंचन की हत्या के मामले की जांच ठंडे बस्ते में डाल दी है.

आशिक ससुर की कातिल बहू – भाग 1

गीता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के थाना बहेड़ी के गांव फरीदपुर के रहने वाले गंगाराम की दूसरे नंबर की बेटी थी. गंगाराम की गिनती गांव के  संपन्न किसानों में होती थी. उन की 3 शादियां हुई थीं. पहली पत्नी रमा की बीमारी से मौत हो गई तो उन्होंने सुधा से शादी की. पारिवारिक कलह की वजह से उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली तो उन्होंने तीसरी शादी रेशमा से की.

रेशमा से ही उन्हें 4 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी ललिता की उन्होंने उम्र होने पर शादी कर दी थी. उस से छोटी गीता का 8वीं पास करने के बाद पढ़ाई में मन नहीं लगा तो उस ने पढ़ाई छोड़ दी. गीता जिस उम्र में थी, अगर उस उम्र ध्यान न दिया जाए तो बच्चों को बहकते देर नहीं लगती. वे सही गलत के फर्क को समझ नहीं पाते. ऐसा ही कुछ गीता के साथ भी हुआ.

गीता गंगाराम के अन्य बच्चों से थोड़ा अलग हट कर थी. वह जिद्दी थी, इसलिए उस के मन में जो आता था, वह हर हाल में वही करती थी. उसे लड़कों की तरह रहना, उन्हीं की तरह दोस्ती करना और बिंदास घूमते हुए मस्ती करना कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था. इसलिए वह लड़कों की तरह कपड़े तो पहनती ही थी, अपने बाल भी लड़कों की ही तरह कटवा रखे थे. वह अकसर गांव के लड़कों के साथ घूमती रहती थी. उम्र के साथ उस के बदन में ही नहीं, सुंदरता में भी निखार आ गया था.

गंगाराम के पास ट्रैक्टर भी था और मोटरसाइकिल भी. गीता दोनों ही चीजें चला लेती थी. इसलिए उस का जब मन होता, वह मोटरसाइकिल ले कर घूमने निकल जाती. उसे लड़कों से कोई परहेज नहीं था, इसलिए गांव के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे. गीता नादान तो थी नहीं कि उन लड़कों की मंशा न समझती, इसलिए अपने बिंदासपन से वह उन्हें अंगुलियों पर नचाती रहती थी. लेकिन उन लड़कों को इस का फायदा भी मिलता था. वे लड़के गीता से जो चाहते थे, वह उन्हें मिला भी.

फिर तो गांव में गीता को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस सब की जानकारी गीता के पिता गंगाराम को हुई तो उस ने गीता पर बंदिशें लगाईं. लेकिन गीता अब काबू में आने वाली कहां थी. कोई न कोई बहाना बना कर वह घर से निकल जाती. कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस डर से गंगाराम गीता के लिए लड़के की तलाश करने लगा. जल्दी ही उस की यह तलाश खत्म हुई और उसे बरेली के ही थाना नवाबगंज के गांव लावाखेड़ा निवासी परमानंद का बेटा मनोज मिल गया.

परमानंद भी किसान थे. उस के पास भी ठीकठाक खेती थी, जिस की वजह से उस के यहां भी गांवदेहात के हिसाब से किसी चीज की कमी नहीं थी. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे मनोज तथा चैतन्य स्वरूप थे. बेटियों का वह विवाह कर चुका था. अब मनोज का नंबर था.

यही वजह थी कि जब गंगाराम उस के यहां अपने किसी रिश्तेदार के माध्यम से रिश्ता ले कर पहुंचा तो बात बन गई. इस के बाद सारे रस्मोरिवाज पूरे कर के मनोज और गीता को शादी के गठबंधन में बांध दिया गया. यह शादी फरवरी, 2009 में हुई थी.

गीता सुंदर तो थी ही, साथ ही उस में वे सारे गुण विद्यमान थे, जो पुरुषों को दीवाना बना देते हैं. यही वजह थी कि गीता ने अपनी अदाओं से पहली ही रात में मनोज को अपना दीवाना बना दिया था. गीता पहली ही रात में समझ गई कि उसे पति उस के मनमाफिक मिला है. वह जैसा सीधासादा, अंगुलियों पर नाचने वाला पति चाहती थी, मनोज ठीक वैसा ही निकला था.

2-4 दिनों में ही मनोज गीता के हुस्न में इस कदर खो गया कि हर पल, हर जगह उसे गीता ही गीता नजर आने लगी. उस का गीता को छोड़ कर कहीं जाने का मन ही न होता. खेतों पर भी उस का मन न लगता. लेकिन जिम्मेदारी ऐसी चीज है, जो पत्नी तो क्या, मांबाप से भी दूर होने को मजबूर कर देती है. यही हाल मनोज का भी हुआ. साल भर बाद वह एक बेटे का बाप बना तो खर्च बढ़ते ही उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास होने लगा.

इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए मनोज को कमाना धमाना जरूरी था, जिस के लिए वह ऊधमसिंहनगर चला गया. वहां उसे टाटा मैजिक के लिए पुर्जे बनाने वाली अल्ट्राटेक कंपनी में नौकरी मिल गई. रहने के लिए उस ने शांति कालोनी रोड स्थित बधईपुरा में जागरलाल के मकान में किराए पर कमरा ले लिया.

कमाईधमाई के लिए मनोज खुद तो ऊधमसिंहनगर चला गया था, लेकिन घरवालों की देखरेख के लिए गीता को गांव में ही मांबाप के पास छोड़ गया था. उस ने एक बार भी नहीं सोचा कि उस के बिना गीता का मन गांव में कैसे लगेगा. शायद उसे लग रहा था कि जिस तरह वह पत्नीबच्चे और परिवार के लिए त्याग कर रहा है, उसी तरह गीता भी कर लेगी.

लेकिन मनोज की यह सोच गलत साबित हुई. क्योंकि गीता को तो शारीरिक संबंधों का चस्का पहले से ही लगा हुआ था. ऐसे में वह बिना पति के कैसे रह सकती थी. उस का दिन तो घर के कामधाम और बच्चे में कट जाता था, लेकिन रातें काटे नहीं कटती थीं. बेचैनी से वह पूरी रात करवटें बदलती रहती थी. शारीरिक सुख के बिना वह बुझीबुझी सी रहती थी. उस की इस बेचैनी और परेशानी को घर का कोई दूसरा सदस्य भले ही नहीं समझ सका, लेकिन पितातुल्य ससुर परमानंद ने जरूर समझ लिया था.

इस की वजह यह थी कि परमानंद लंगोट का कच्चा था. उस के लिए रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण स्त्री का शरीर था. शायद यही वजह थी कि गीता को उस ने देखते ही पसंद कर लिया था. परमानंद अपनी बहू पर शुरू से ही फिदा था. लेकिन बेटे के रहते वह बहू के करीब नहीं जा पा रहा था. बहू के नजदीक जाने के लिए ही उस ने बेटे को जिम्मेदारी का अहसास दिला कर उसे घर से बाहर भेज दिया था.

मनोज के जाने के बाद गीता की बेचैनी बढ़ी तो परमानंद गीता के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा. वह उस से बातें करने के बहाने ढूंढ़ने लगा. गीता उस से बातें करती तो वह अकसर बातें करते करते अपनी सीमाएं लांघ जाता. वह उसे कोई सामान पकड़ाती तो सामान पकड़ने के बहाने वह उसे छूने की कोशिश करता. ससुर की इन हरकतों से अनुभवी गीता को समझते देर नहीं लगी कि वह उस से क्या चाहता है. गीता को शक तो पहले से ही था, लेकिन जब निगाहें बदलीं और परमानंद बातबात में हंसीमजाक करने लगा तो उस का शक यकीन में बदल गया.

सुपारी वाली मां : क्यों करवाई अपनी ही बेटी की हत्या?

मां की राह पर बेटी : मां के प्यार पर डाला डाका – भाग 1

रात 9 बजे के आसपास मारुति वैन के आने की घरघराहट ने लोगों का ध्यान अपनी ओर इसलिए खींचा था, क्योंकि उतनी रात को गांव  घोंघी रऊतापुर के असुरक्षित जंगली इलाके के उस सुनसान रास्ते पर कोई भी गाड़ी जल्दी नहीं आतीजाती थी. उतनी रात तक गांवों में वैसे भी सन्नाटा पसर जाता है. ठंड का मौसम हो तो आदमी तो क्या, कुत्ते भी दुबक जाते हैं. ऐसा ही कुछ हाल गांव घोंघी रऊतापुर का भी था. ज्यादातर लोग खापी कर रजाइयों में दुबक गए थे. गांव के  2-4 घरों के लेग ही आग जला कर उसी के पास बैठे बतिया रहे थे.

मारुति वैन के आने की आवाज जाग रहे लोगों के कानों में पड़ी तो अपने आप ही उन का ध्यान उस की ओर चला गया. वैन गांव से कुछ दूरी पर जंगली लोध के खेत के पास रुक गई. वैन के रुकते ही उस की हेडलाइट बुझ गई. अगर वैन गांव के अंदर आ जाती तो शायद उस के बारे में जानने की उतनी उत्सुकता न होती. लेकिन वह गांव के बाहर ही सुनसान जगह पर रुक गई थी, इसलिए लोगों को उस के बारे में जानने की उत्सुकता हुई.

उत्सुकतावश लोग उस के बारे में जानने की कोशिश करने लगे. सभी उसी के बारे में सोच रहे थे कि तभी वैन के पास आग की ऊंचीऊंची लपटें इस तरह उठने लगीं, जैसे कोई ज्वलनशील पदार्थ डाल कर कोई चीज जलाई जा रही हो.

उस तरह आग की लपटों को उठते देख गांव वालों को लगा कि किसी ने फसल में आग लगा दी है. इसलिए वे चीखचीख कर शोर मचाने लगे, ‘‘अरे दौड़ो भाई, किसी ने फसल में आग लगा दी है.’’

चीखपुकार सुन कर गांव वाले लाठीडंडे ले कर खेतों की ओर दौड़ पड़े. गांव वालों को शोर मचाते हुए अपनी ओर आते देख मारुति वैन से आए लोग जल्दी से वैन में बैठ कर दूसरे रास्ते से होते हुए कानपुर लखनऊ हाईवे की ओर भाग निकले. गांव वाले जब जंगली लोध के खेत के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा आग फसल में नहीं लगी थी, बल्कि वहां एक महिला की लाश जल रही थी. वहां एक जोड़ी चप्पलें एवं पेट्रोल की एक केन पड़ी थी. चप्पलें लेडीज थीं, इसलिए अंदाजा लगाया कि ये मृतका की ही होंगी.

गांव के ही शत्रुघ्न ने अपने मोबाइल फोन से इस घटना की सूचना थाना गंगाघाट पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी मनोज सिंह सिपायिहों के साथ रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया. शव लगभग 95 प्रतिशत जल चुका था. वह इतना वीभत्स हो चुका था कि उस की शिनाख्त करना मुश्किल था.

पुलिस ने घटनास्थल की कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के लाश को पोस्मार्टम के लिए जिला संयुक्त चिकित्सालय उन्नाव भेज दिया. इस के बाद थाने लौट कर पुलिस अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच को आगे बढ़ाने की राह तलाश करने लगी. यह 14 नवंबर, 2013 की बात है.

अगले दिन यानी 15 नवंबर, 2013 को थानाप्रभारी मनोज सिंह ने एक सिपाही को गांव गजियाखेड़ा भेज कर गुडि़या को बुलाया. दरअसल 13 नवंबर को उस ने अपनी 18 वर्षीया बेटी कंचन की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. मनोज सिंह ने गुडि़या को जले हुए शव का फोटो और उस के पास से बरामद चप्पलें दिखाईं तो गुडि़या शव को तो नहीं पहचान सकी, लेकिन चप्पलों के बारे में उस ने कहा कि ये तो मेरी बेटी की ही जैसी हैं.

उन चप्पलों को देख कर गुडि़या सिसकते हुए बोली, ‘‘लगता है साहब, मेरी बेटी पिता की साजिश का शिकार हो गई.’’

गुडि़या की इस बात से थानाप्रभारी मनोज सिंह का माथा ठनका. उन्होंने कहा, ‘‘पिता की साजिश का शिकार, तुम्हारे कहने का मतलब क्या है? पूरी बात विस्तार से बताओ?’’

इस के बाद गुडि़या ने थानाप्रभारी मनोज कुमार को अपने पति श्यामबाबू और बेटी कंचन के गायब होने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना गंगाघाट के गांव गजियाखेड़ा की रहने वाली 38 वर्षीया गुडि़या की शादी 22 साल पहले कानपुर के मोहल्ला बर्रा के रहने वाले रामदास के बेटे श्यामबाबू के साथ हुई थी. श्यामबाबू की शराब पीने की आदत थी. एक तो गुड़िया खास सुंदर नहीं थी, दूसरे वह मनचाहा दहेज नहीं लाई थी, इसलिए श्यामबाबू शराब पी कर लगभग रोज ही गुड़िया के साथ मारपीट करता था. भविष्य की चिंता में गुड़िया पति की मारपीट सहती रही. उसी बीच गुड़िया सोनम, कंचन और मोना, लगातार 3 बेटियों की मां बन गई.

लगातार 3 बेटियों के पैदा होने से श्यामबाबू गुड़िया से नफरत करने लगा. बेटियां पैदा करने का दोष गुडि़या पर लगाते हुए वह उस पर और अत्याचार करने लगा. उस ने गुडि़या का घर से बाहर जाना तो पहले ही बंद कर दिया था, अब वह उसे किसी से बात भी नहीं करने देता था. जब गुडि़या की सहनशक्ति खत्म हो गई तो उस ने किसी के माध्यम से अपने भाइयों को अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों की खबर भिजवाई.

खबर पा कर गुडि़या का भाई रज्जन उसे ले जाने आया तो श्यामबाबू ने गुडि़या को उस के साथ भेजने से साफ मना कर दिया. तब रज्जन पुलिस की मदद से गुडि़या और उस की तीनों बेटियों को श्यामबाबू के चंगुल से मुक्त करा कर अपने घर ले गया.

गुडि़या तीनों बेटियों के साथ मायके में रहने लगी. 8-10 महीने ही बीते होंगे कि एक दिन चुपके से श्यामबाबू तीनों बेटियों को बहलाफुसला कर अपने साथ लिवा ले गया. बेटियों के अलग होने का दुख गुडि़या को हुआ जरूर, लेकिन उस का अपना ही कोई भविष्य नहीं था, इसलिए उस ने बेटियों की ओर से संतोष कर लिया. गुजरबसर के लिए वह मातापिता की अनुमति ले कर कोई कामधंधा तलाशने लगी.

मातापिता को गुडि़या की चिंता कुछ ज्यादा ही रहती थी, इसलिए वे उस का खयाल बेटों से ज्यादा रखते थे. इस बात को ले कर घर में कलह होने लगी. स्थिति खराब होते देख मां ने एक खेत लाखों रुपए में बेच कर पूरी रकम गुडि़या को दे दी. इस बात से नाराज भाइयों ने गुडि़या और मातापिता को मारपीट कर घर से भगा दिया. घर से निकाले गए मातापिता को ले कर गुडि़या शुक्लागंज में किराए का कमरा ले कर रहने लगी. गुजरबसर के लिए वह एक ब्यूटीपार्लर में काम करने लगी.

अकेली औरत की परेशानियों को देख कर गुडि़या ने श्यामबाबू से माफी मांगते हुए अपने साथ रखने को कहा. तब श्यामबाबू ने उसे साथ रखने से मना करते हुए कहा, ‘‘साथ रखना तो दूर, अब मैं तुम्हें देखना भी नहीं चाहता. मैं तुम्हें अब कभी साथ नहीं रखूंगा.’’

गुडि़या समझ गई कि अब श्यामबाबू उसे कभी अपने साथ नहीं रखेगा. उस की जिंदगी एक कटी पतंग की तरह हो कर रह गई थी. उसी निराशा के बीच गुडि़या की मुलाकात गोलू श्रीवास्तव उर्फ अशोक कुमार से हुई. वह अमेठी का रहने वाला था. उस की शादी नहीं हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे के प्रति कुछ ऐसा आकर्षित हुए कि फिर मिलने का वादा कर लिया.

उस रात की सच्चाई : प्यार करने की मिली सजा

लौकेट का रहस्य – भाग 5

इस बीच मैं हवालात जा कर जीते से लौकेट उतरवा लाया था. वह लौकेट मैं ने वली खां के सामने रख कर पूछा, ‘‘ध्यान से देख कर बताओ, ये लौकेट किस का है?’’

वली खां ने जब उस लौकेट को गौर से देखा तो उस के चेहरे का रंग बदल गया. वह हकला कर बोला, ‘‘जनाब, यह तो मेरी बीवी रजिया का लौकेट है.’’

‘‘बीवी को इसे तुम ने ही दिया होगा. कहां से आया यह तुम्हारे पास?’’

‘‘जी, मेरी वालिदा ने बनवाया था. इस के अलावा और भी गहने थे?’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारी वालिदा ने बनवाया था या तुम ने डाके में छीना था?’’

‘‘डाका…कैसा डाका…यह आप क्या कह रहे हैं जनाब?’’ उस का मुंह हैरत से खुला रह गया.

‘‘वही डाका जो तुम ने 5 साल पहले अमृतसर में मेहता सेठ के घर डाला था और तुम्हारी गोली लगने से मेहता की मौत हो गई थी.’’

थानेदार बख्शी हैरानी से देख रहा था. उस की नजर में वली खां एक शरीफ इंसान था. पर मैं पूरे दावे के साथ कह सकता था कि वह एक नामीगिरामी डाकू था. मैं ने करीब खड़े हवलदार नादिर से कहा, ‘‘वली खां को हथकड़ी लगा कर इस के सही ठिकाने पर पहुंचाओ.’’

वली खां को हवालात में बंद कर दिया गया. पूछताछ के दौरान पता चला कि उस का नाम वली खां नहीं, बल्कि अब्दुल सत्तार था. चोरीडकैती और अपहरण उस का मुख्य धंधा था. जामनगर में वह नाम बदल कर रह रहा था.

मैं और थानेदार बख्शी अभी वली खां से पूछताछ कर ही रहे थे कि एक सिपाही घबराया हुआ आया. उस ने हमें अलग ले जा कर बताया कि हवालाती जीते की जान खतरे में है. वली खां ने सिपाही कीमतीलाल को रिश्वत दे कर एक खत अपने दोस्त शेरू तक पहुंचाने के लिए भेजा है. वली खां ने खत में लिखा है कि वह उस की बीवी का काम तमाम कर दे और फरार हो जाए.

बख्शी ने सिपाही से पूछा, ‘‘शेरू कहां है?’’

सिपाही ने बताया, ‘‘मुझे नहीं पता, लेकिन कीमतीलाल को पता होगा. वह खत ले कर उसी के पास गया है.’’

थानेदार बख्शी ने गुस्से में पूछा, ‘‘तुम्हें यह सब कैसे मालूम हुआ?’’

सिपाही ने डरते हुए कहा, ‘‘पहले वली खां ने यह पेशकश मेरे सामने रखी थी. उस ने अपनी जांघों के बीच कुछ रुपए छिपा कर रखे थे. वह मुझे 2 सौ रुपयों का लालच देता रहा. मैं नहीं माना तो उस ने कीमतीलाल को फंसा लिया.’’

थानेदार बख्शी ने पूछा, ‘‘उस हरामी को हवालात में कागज कलम किस ने दिया?’’

‘‘जी, यह कीमतीलाल का ही काम है.’’

सिपाही का चेहरा बता रहा था कि वह सच बोल रहा था. मैं ने थानेदार से कहा, ‘‘बख्शी, हमें फौरन कुछ करना होगा. तुम थाने में रहो, मैं जा कर देखता हूं.’’

बख्शी के रोकने के बावजूद मैं थाने से निकल गया. 2 सिपाही मेरे साथ थे. उन में से एक के पास बंदूक थी. हम लगभग भागतेभागते नीम वाली गली तक पहुंचे. गली के मोड़ पर मैं ने रुक कर देखा. वली खां का तिमंजिला मकान मेरी नजरों के सामने था.

मकान के आसपास कोई हलचल नहीं थी. सिपाहियों के साथ मैं एक करीबी दुकान में जा घुसा. दुकानदार ने हमारे लिए कुर्सियां लगवा कर चाय मंगवा दी. वहीं बैठ कर हम वली खां के मकान पर नजर रखे हुए थे. लगभग आधेपौने घंटे बाद जब हम मायूस हो कर लौटने की सोच रहे थे, तभी अचानक एक टमटम गली में दाखिल हुई और सीधे वली खां के मकान के सामने जा रुकी. टमटम से शेरू उतरा. उस ने अपने शरीर को काले रंग की एक चादर से ढक रखा था. वह तेजी से दरवाजे की ओर बढ़ा तो मैं ने दौड़ कर उसे पीछे से जा दबोचा.

शेरू को गिरफ्तार कर लिया गया. तलाशी के दौरान उस के पास से एक भरे हुए रिवाल्वर के अलावा वह खत भी बरामद हुआ, जो वली खां ने हवालात से भेजा था.

उस खत में लिखा था, ‘‘शेरे, मैं पकड़ा गया हूं. पुलिस तुझे ढूंढ़ रही है. बेहतर है तू यहां से भाग जा. लेकिन भागने से पहले मेरा एक काम कर देना. मैं नहीं चाहता कि मेरे बाद रजिया जिंदा रहे. उसे खत्म कर देना. वह इस वक्त घर में अकेली है. तख्तपोश के नीचे मेरा रिवाल्वर पड़ा है. वह ले जाना, लेकिन कोशिश करना कि गोली न चलानी पड़े. अगर खुद न जा सको तो जुमे या दीनू को भेज कर ये काम करवा देना. खुदा हाफिज, तुम्हारा सरदार यार.’’

शेरू के अलावा जुमा और दीनू भी गिरफ्तार कर लिए गए. इस के बाद तफ्तीश और अदालती काररवाई का लंबा सिलसिला शुरू हुआ. जीते को मैं ने रिहा कर दिया. उस पर कोई इलजाम नहीं था. वह अपहरण व मारपीट के मामले में मुद्दई था.

रजिया एक ऐसी औरत थी, जो एक ही वक्त में 2 अलगअलग दिशाओं में सफर कर रही थी. उस के मांबाप ने उस का हाथ ऐसे शख्स को सौंप दिया था, जो बाहर से कुछ और, अंदर से कुछ और था. रजिया काफी हद तक अपने शौहर की हकीकत समझ गई थी. वह जान गई थी कि उस का शौहर अपराध की अंधेरी दुनिया से ताल्लुक रखता था. वह भीतर ही भीतर कुढ़ती रहती थी. लेकिन शौहर की हकीकत कभी उस के होंठों तक नहीं आई थी.

जिस तरह पानी अपना रास्ता खुद तलाश लेता है, उसी तरह जज्बात भी अपने इजहार का कोई न कोई तरीका ढूंढ़ लेते हैं. रजिया के भी दबे हुए जज्बात ने अपने इजहार का रास्ता तलाश कर लिया था. लोग उस पर अंगुलियां उठाते थे, मगर वह सब कुछ जानतेसमझते हुए अनजान और ढीठ बनी हुई थी.

वह जीते से बेपनाह मोहब्बत करती थी और उस मोहब्बत को चाह कर भी कोई मुनासिब नाम नहीं दे पाती थी. वह उसे धक्के दे कर घर से भी निकालती थी और फिर उस की एक झलक पाने के लिए बेचैन भी रहती थी. वह एक मजबूर औरत थी.

यह तय था कि वली खां और उस के साथियों को उम्रकैद होगी. रजिया द्वारा अदालत में दी गई दरख्वास्त पर उस के और वली खां के बीच तलाक अमल लाया गया. रजिया और जीते की प्रेमकहानी का यह बड़ा ही सुखद अंजाम था. दोनों ने शादी कर के वह कस्बा हमेशा के लिए छोड़ दिया.

यह बात अपनी जगह सच है कि कई बार छोटी सी घटना से इंसान की जिंदगी का रुख और दिशाएं बदल जाती हैं. इसी तरह कडि़यों से कडि़यां जुड़ कर कभीकभी बड़े खुलासे हो जाते हैं. अगर अखबार बेचने वाला जीता रईसजादी पम्मी के इशारों को नजरअंदाज न करता और उस पर चोरी का इलजाम न लगता तो शायद वली खां जैसे डाकू और उस के साथियों के चेहरे बेनकाब न होते.

सनकी सोल्जर : भाभी के प्यार में उजाड़ दिए 2 घर

कानपुर महानगर के थाना चकेरी के अंतर्गत आने वाले गांव घाऊखेड़ा में बालकृष्ण यादव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी वीरवती के  अलावा 2 बेटियां गीता, ममता और 3 बेटे मोहन, राजेश और श्यामसुंदर थे. बालकृष्ण सेना में थे, इसलिए उन्होंने अपने सभी बच्चों की परवरिश बहुत ही अच्छे ढंग से की थी. उन की पढ़ाईलिखाई भी का भी विशेष ध्यान रखा था. नौकरी के दौरान ही उन्होंने अपने बड़े बेटे मोहन और बड़ी बेटी गीता की शादी कर दी थी.

सन 2004 में बालकृष्ण सेना से रिटायर्ड हो गए थे. अब तक उन के अन्य बच्चे भी सयाने हो गए थे. इसलिए वह एकएक की शादी कर के इस जिम्मेदारी से मुक्ति पाना चाहते थे. इसलिए घर आते ही उन्होंने ममता के लिए अच्छे घरवर की तलाश शुरू कर दी. इसी तलाश में उन्हें अपने दोस्त लक्ष्मण सिंह की याद आई. क्योंकि उन का छोटा बेटा सुरेंद्र सिंह शादी लायक था.

लक्ष्मण सिंह भी उन्हीं के साथ सेना में थे. उन के परिवार में पत्नी लक्ष्मी देवी के अलावा 2 बेटे वीरेंद्र और सुरेंद्र थे. वीरेंद्र प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था, जबकि सुरेंद्र की नौकरी सेना में लग गई थी. वीरेंद्र की शादी कानपुर के ही मोहल्ला श्यामनगर के रहने वाले रामबहादुर की बहन निर्मला से हुई थी. सुरेंद्र की नौकरी लग गई थी, इसलिए लक्ष्मण सिंह भी उस के लिए लड़की देख रहे थे. सुरेंद्र का ख्याल आते ही बालकृष्ण अपने दोस्त के यहां जा पहुंचे. उन्होंने उन से आने का कारण बताया तो दोनों दोस्तों ने दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने का निश्चय कर लिया.

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इस के बाद सारी औपचारिकताएं पूरी कर के ममता और सुरेंद्र की शादी हो गई. ममता सतरंगी सपने लिए अपनी ससुराल गांधीग्राम आ गई.

शादी के बाद ममता के दिन हंसीखुशी से गुजरने लगे. लेकिन जल्दी ही ममता की यह खुशी दुखों में बदलने लगी. इस की वजह यह थी कि सुरेंद्र पक्का शराबी था. वह शराब का ही नहीं, शबाब का भी शौकीन था. इस के अलावा उस में सभ्यता और शिष्टता भी नहीं थी. शादी होते ही हर लड़की मां बनने का सपना देखने लगती है. ममता भी मां बनना चाहती थी.

लेकिन जब ममता कई सालों तक मां नहीं बन सकी तो वह इस विषय पर गहराई से विचार करने लगी. जब इस बात पर उस ने गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि एक पति जिस तरह पत्नी से व्यवहार करता है, उस तरह का व्यवहार सुरेंद्र उस से नहीं करता.

उसी बीच ममता ने महसूस किया कि सुरेंद्र उस के बजाय अपनी भाभी के ज्यादा करीब है. लेकिन वह इस बारे में किसी से कुछ कह नहीं सकी. इस की वजह यह थी कि उस ने कभी दोनों को रंगेहाथों नहीं पकड़ा था. फिर भी उसे संदेह हो गया था कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है.

एक तो वैसे ही ममता को सुरेंद्र के साथ ज्यादा रहने का मौका नहीं मिलता था, दूसरे जब वह घर आता था तो उस से खिंचाखिंचा रहता था. सुरेंद्र ममता को साथ भी नहीं ले जाता था, इसलिए ज्यादातर वह मायके में ही रहती थी.

आखिर शादी के 5 सालों बाद ममता का मां बनने का सपना पूरा ही हो गया. उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रखा गया सौम्य. ममता को लगा कि बेटे के पैदा होने से सुरेंद्र बहुत खुश होगा. उन के बीच की जो हलकीफुलकी दरार है, वह भर जाएगी. उस के जीवन में भी खुशियों की बहार आ जाएगी.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि ममता को जैसे ही बेटा पैदा हुआ, उस के कुछ दिनों बाद ही सुरेंद्र के बड़े भाई वीरेंद्र की मौत हो गई. वीरेंद्र की यह मौत कुदरती नहीं थी. वह थोड़ा दबंग किस्म का आदमी था. उस का किसी से झगड़ा हो गया तो सामने वाले ने अपने साथियों के साथ उसे इस तरह मारापीटा कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही उस की मौत हो गई.

वीरेंद्र की मौत के बाद सुरेंद्र और उस की भाभी के जो नजायज संबंध लुकछिप कर बन रहे थे, अब घरपरिवार और समाज की परवाह किए बगैर बनने लगे. ममता का जो संदेह था, अब सच साबित हो गया. भाभी को हमारे यहां मां का दरजा दिया जाता है, लेकिन सुरेंद्र और निर्मला को इस की कोई परवाह नहीं थी. जेठ के रहते ममता ने इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया था. लेकिन जेठ की मौत के बाद सुरेंद्र खुलेआम भाभी के पास आनेजाने लगा.

ममता ने इस का विरोध किया तो उस के ससुर ने कहा, ‘‘ममता, इस मामले में तुम्हारा चुप रहना ही ठीक है. दरअसल मैं ने अपनी सारी प्रौपर्टी पहले ही वीरेंद्र और सुरेंद्र के नाम कर दी थी. निर्मला अभी जवान है. अगर वह कहीं चली गई तो उस के हिस्से की प्रौपर्टी भी उस के साथ चली जाएगी. इसलिए अगर तुम बखेड़ा न करो तो सुरेंद्र उस से शादी कर ले. इस तरह घर की बहू भी घर में ही रह जाएगी और प्रौपर्टी भी.’’

सौतन भला किसे पसंद होती है. इसलिए ससुर की बातें सुन कर ममता तड़प उठी. वह समझ गई कि यहां सब अपने मतलब के साथी हैं. उस का कोई हमदर्द नहीं है. पति गलत रास्ते पर चल रहा है तो ससुर को चाहिए कि वह उसे सही रास्ता दिखाएं और समझाएं. जबकि वह खुद ही उस का समर्थन कर रहे हैं. बल्कि उस से यह कह रहे हैं कि वह सौतन स्वीकार कर ले. उस का पति तो वैसे ही उसे वह मानसम्मान नहीं देता, जिस की वह हकदार है. अगर उस ने भाभी से शादी कर ली तो शायद वह उसे दिल से ही नहीं, घर से भी निकाल दे.

यही सब सोच कर ममता ने उस समय इस बात को टालते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह मेरी ही नहीं, मेरे बच्चे की भी जिंदगी से जुड़ा मामला है. इसलिए मुझे थोड़ा सोचने का समय दीजिए.’’

इस के बाद ममता मायके गई और घरवालों को पूरी बात बताई. ममता की बात सुन कर सभी हैरान रह गए. एकबारगी तो किसी को इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि निर्मला 3 बच्चों की मां थी. उस समय उस की बड़ी बेटी लगभग 20 साल की थी, उस से छोटा बेटा 16 साल का था तो सब से छोटा बेटा 12 साल का. इस उम्र में निर्मला को अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए था, जबकि वह अपने बारे में सोच रही थी. उस की बेटी ब्याहने लायक हो गई थी, जबकि वह खुद अपनी शादी की तैयारी कर रही थी.

ममता के घर वालों ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह इस बात के लिए कतई न राजी हो. जेठानी को जेठानी ही बने रहने दे, उसे सौतन कतई न बनने दे. मायके वालों का सहयोग मिला तो सीधीसादी ममता ने अपने ससुर से साफसाफ कह दिया कि वह कतई नहीं चाहती कि उस  का पति उस के रहते दूसरी शादी करे.

ममता का यह विद्रोह न सुरेंद्र को पसंद आया, न उस के बाप लक्ष्मण सिंह को. इसलिए बापबेटे दोनों को ही ममता से नफरत हो गई. परिणामस्वरूप दोनों के बीच दरार बढ़ने लगी. ममता सुरेंद्र की परछाई बन कर उस के साथ रहना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र उस से दूर भाग रहा था. अब वह छोटीछोटी बातों पर ममता की पिटाई करने लगा.

ससुराल के अन्य लोग भी उसे परेशान करने लगे. इस के बावजूद ममता न पति को छोड़ रही थी, न ससुराल को. इतना परेशान करने पर भी ममता न सुरेंद्र को छोड़ रही थी, न उस का घर तो एक दिन सुरेंद्र ने खुद ही मारपीट कर उसे घर से निकाल दिया.

सुरेंद्र ने जिस समय ममता को घर से निकाला था, उस समय उस की पोस्टिंग लखनऊ के कमांड हौस्पिटल में थी. ममता के पिता बालकृष्ण और भाई श्यामसुंदर ने सुरेंद्र के अफसरों से उस की इस हरकत की लिखित शिकायत कर दी. तब अधिकारियों ने सुरेंद्र और ममता को बुला कर दोनों की बात सुनी. चूंकि गलती सुरेंद्र की थी, इसलिए अधिकारियों ने उसे डांटाफटकारा ही नहीं, बल्कि आदेश दिया कि वह ममता को 10 हजार रुपए महीने खर्च के लिए देने के साथ बच्चों को ठीक से पढ़ाएलिखाए.

इस के बाद अधिकारियों ने कमांड हौस्पिटल परिसर में ही सुरेंद्र को मकान दिला दिया, जिस से वह पत्नी और बच्चों के साथ रह सके. अधिकारियों के कहने पर सुरेंद्र ममता को साथ ले कर उसी सरकारी क्वार्टर में रहने तो लगा, लेकिन उस की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. उसे जब भी मौका मिलता, वह भाभी से मिलने कानपुर चला जाता. अगर ममता कुछ कहती तो वह उस से लड़नेझगड़ने लगता.

साथ रहने पर सुरेंद्र से जितना भी हो सकता था, वह ममता को परेशान करता रहा, इस के बावजूद ममता उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी. अगर सुरेंद्र ज्यादा परेशान करता तो वह उस की ज्यादतियों की शिकायत उस के अधिकारियों से कर देती, जिस से उसे डांटा फटकारा जाता. लखनऊ में रहते हुए ममता ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के पैदा होने के समय वह मायके आ गई थी. लेकिन 2 महीने के बाद वह अकेली ही लखनऊ चली गई.

धीरेधीरे सुरेंद्र सेना के नियमों का उल्लंघन करने लगा. एक दिन वह शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाते पकड़ा गया तो उसे दंडित किया गया. लेकिन उस पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. दंडित किए जाने के बाद भी उस में कोई सुधार नहीं आया.

इसी तरह दोबारा शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाने पर सेना के गार्ड ने उसे रोका तो उस ने गार्ड को जान से मारने की धमकी दी. गार्ड ने इस बात की रिपोर्ट कर दी. निश्चित था, इस मामले में उसे सजा हो जाती. इसलिए सजा से बचने के लिए वह भाग कर कानपुर चला गया.

सुरेंद्र को लगता था कि इस सब के पीछे उस के साले श्यामसुंदर का हाथ है. यह बात दिमाग में आते ही श्यामसुंदर उस की आंखों में कांटे की तरह चुभने लगा. क्योंकि श्यामसुंदर काफी पढ़ालिखा और समझदार था. वह कानपुर में ही एयरफोर्स में नौकरी कर रहा था. बात भी सही थी. उसी ने अधिकारियों से उस की शिकायत कर के ममता को साथ रखने के लिए उसे मजबूर किया था.

सुरेंद्र को लग रहा था कि जब तक श्यामसुंदर रहेगा, उसे चैन से नहीं रहने देगा. इसलिए उस ने सोचा कि अगर उसे चैन से रहना है तो उसे खत्म करना जरूरी है. इसी बात को दिमाग में बैठा कर सुरेंद्र 29 सितंबर को चकेरी के विराटनगर स्थित अपने ससुर की दुकान पर जा पहुंचा. उस समय शाम के सात बज रहे थे.

श्यामसुंदर ड्यूटी से आ कर दुकान पर बैठ कर पिता की मदद करता था. संयोग से उस दिन श्यामसुंदर दुकान पर अकेला ही था. सुरेंद्र ने पहुंचते ही अपने लाइसेंसी रिवाल्वर से श्यामसुंदर पर गोली चला दी.

गोली लगते ही श्यामसुंदर गिर कर छटपटाने लगा. गोली की आवाज सुन कर आसपास के लोग दौड़े तो सुरेंद्र ने हवाई फायर करते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने रोकने या पकड़ने की कोशिश की तो उस का भी यही हाल होगा.’’

डर के मारे किसी ने सुरेंद्र को पकड़ने की हिम्मत नहीं की. सुरेंद्र आसानी से वहां से भाग निकला. पड़ोसियों की मदद से बालकृष्ण बेटे को एयरफोर्स हौस्पिटल ले गए, जहां निरीक्षण के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

श्यामसुंदर की मौत से उस के घर में कोहराम मच गया. श्यामसुंदर की पत्नी सीमा देवी, जिस की शादी अभी 3 साल पहले ही हुई थी, उस का रोरो कर बुरा हाल था. अपने 2 साल के बेटे कार्तिक को सीने से लगाए कह रही थी, ‘‘बेटा तू अनाथ हो गया. तुझे किसी और ने नहीं, तेरे फूफा ने ही अनाथ कर दिया.’’

इस घटना की सूचना ममता को मिली तो उस का बुरा हाल हो गया. वह दोनों बच्चों को ले कर रोतीपीटती किसी तरह लखनऊ से कानपुर पहुंची. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी भाभी को कैसे सांत्वना दे. वह तो यही सोच रही थी कि वह स्वयं विधवा हो गई होती तो इस से अच्छा रहता.

घटना की सूचना पा कर अहिरवां चौकी प्रभारी विक्रम सिंह चौहान सिपाही रूप सिंह यादव, सीमांत सिकरवार, विनोद कुमार तथा योंगेंद्र को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. घटना गंभीर थी, इसलिए उन्होंने घटना की सूचना थानाप्रभारी संगमलाल सिंह को दी. इस तरह सूचना पा कर थानाप्रभारी संगमलाल सिंह, पुलिस अधीक्षक (पूर्वी) राहुल कुमार और क्षेत्राधिकारी कैंट भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

इस के बाद श्यामसुंदर के भाई राजेश यादव द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर हत्या का यह मुकदमा थाना चकेरी में सुरेंद्र सिंह यादव पुत्र लक्ष्मण सिंह यादव निवासी गांधीग्राम, चकेरी के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. दूसरी ओर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. इस के बाद मामले की जांच की जिम्मेदारी थानाप्रभारी संगमलाल सिंह ने संभाल ली.

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अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद श्यामसुंदर का शव मिला तो घरवालों ने सुरेंद्र की गिरफ्तारी न होने तक अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. मृतक के घर वालों की इस घोषणा से पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस के बाद पुलिस सुरेंद्र की गिरफ्तारी के लिए दौड़धूप करने लगी. परिणामस्वरूप अगले दिन यानी 1 अक्तूबर, 2013 को रामादेवी चौराहे से सुबह 4 बजे अभियुक्त सुरेंद्र सिंह यादव को गिरफ्तार कर लिया गया.

इस के बाद पुलिस ने सुरेंद्र की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस की लाइसेंसी रिवाल्वर बरामद कर ली. पूछताछ में सुरेंद्र ने बताया, ‘‘मेरे अपनी भाभी निर्मला से अवैध संबंध थे. भाई के मरने के बाद मैं उसे अपने साथ रखना चाहता था, जबकि ममता और उस के घर वाले इस बात का विरोध कर रहे थे. श्यामसुंदर इस मामले में सब से ज्यादा टांग अड़ा रहा था, इसलिए मैं ने उसे खत्म कर दिया.’’

सुरेंद्र की गिरफ्तारी के बाद उसी दिन शाम को श्यामसुंदर को घर वालों ने उस का अंतिमसंस्कार कर दिया. इस तरह एक सनकी फौजी ने अपनी सनक की वजह से 2 घर बरबाद कर दिए. साले के बच्चे को तो अनाथ किया ही, अपने भी बच्चों को अनाथ कर दिया.

ममता भी पति के रहते न सुहागिन रही न विधवा. उस के लिए विडंबना यह है कि वह मायके में भी रहे तो कैसे? अब उस की और उस के बच्चों की परवरिश कौन करेगा? सुरेंद्र को सजा हो गई तो उस के मासूम बच्चों का क्या होगा?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेटी का हत्यारा बाप – भाग 3

धीरेधीरे 2 साल बीत गए. इस बीच किसी को उन के प्यार की भनक नहीं लगी. लेकिन यह ऐसी चीज है, जो कभी न कभी सामने आ ही जाती है. आखिर एक दिन प्राची और आयुष्मान के प्यार की सच्चाई प्राची के घर वालों के सामने आ गई. मोहल्ले की किसी औरत ने प्राची और आयुष्मान को एक साथ देख लिया तो उस ने यह बात प्राची की मां सुमन को बता दी.

बेटी के बारे में यह सब सुन कर सुमन सन्न रह गई. इस का मतलब साफ था कि उन की बेटी इतनी बड़ी हो गई थी कि उन की आंखों में धूल झोंक सके. उन्होंने तुरंत प्राची को बुला कर डांटते हुए पूछा, ‘‘तू उस आयुष्मान के साथ कहां घूमती फिर रही थी?’’

‘‘कौन आयुष्मान?’’ प्राची ने इस तरह पूछा जैसे वह किसी आयुष्मान को जानती ही न हो.

‘‘झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. मैं विशाल के भांजे आयुष्मान की बात कर रही हूं. इस मोहल्ले में इस नाम का कोई दूसरा लड़का नहीं है. इस से तुझे पता होना चाहिए कि मैं उसी आयुष्मान की बात कर रही हूं.’’

‘‘मैं उस के साथ क्यों घूमूंगी?’’ प्राची तुनक कर बोली.

प्राची ने यह बात इतनी सफाई से कही थी कि सुमन को लगा कि उस की पड़ोसन को ही धोखा हुआ है. इसलिए उन्होंने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा और हिदायत दे कर बेटी को छोड़ दिया. इस के बाद प्राची खुद तो सतर्क हो ही गई, अपने प्रेमी आयुष्मान को भी सतर्क कर दिया. उस ने आयुष्मान से साफसाफ कह दिया कि अब उन्हें काफी सोचसमझ कर और बच कर मिलना होगा.

सुमन तो बेटी की बात मान कर शांत हो गई थी, लेकिन जब कई लोगों ने अजीत शुक्ला को टोका कि वह अपनी बेटी पर नजर रखें, वरना एक दिन वह उन के मुंह पर कालिख पोत देगी, तब घर में बवंडर मच गया.

अजीत को जैसे ही पता चला कि प्राची आयुष्मान से मिलती है, उन्होंने यह बात सुमन से कही. तब पतिपत्नी ने सलाह की कि जवान हो रही बेटी को समझाया जाए. शायद वह रास्ते पर आ जाए. उन्होंने प्राची को पास बैठा कर कैरियर का हवाला दे कर काफी समझायाबुझाया. लेकिन प्राची पर मांबाप के इस समझानेबुझाने का कोई असर नहीं हुआ.

प्राची ने मांबाप के सामने तो कह दिया कि अब वह आयुष्मान से नहीं मिलेगी, लेकिन उस ने उस से मिलना बंद नहीं किया. हां, वह मिलने में सावधानी जरूर बरतने लगी थी. इस के बावजूद शहजहांपुर जैसे छोटे शहर में उन पर किसी न किसी की नजर पड़ ही जाती थी. तब उन की हरकतों का पता अजीत को चल जाता था.

अजीत की गिनती मोहल्ले के प्रतिष्ठित लोगों में होती थी. कोई चारा न देख अजीत शुक्ला ने सरायकाइयां का विशाल के पास वाला मकान छोड़ दिया और कुछ दूरी पर स्थित दलेलगंज में दूसरा मकान ले कर रहने लगे. इस के अलावा प्राची पर भी नजर रखी जाने लगी. प्राची को रोज सुबह वह स्वयं मोटरसाइकिल से कालेज छोड़ने जाते और शाम को ले भी आते.

रास्ते में भले ही प्राची और आयुष्मान की मुलाकात नहीं हो पाती थी, लेकिन दिन में तो उन पर कोई नजर  रखता नहीं था. प्राची क्लास छोड़ कर आयुष्मान के साथ निकल जाती. दिन भर दोनों घूमतेफिरते और छुट्टी होने के पहले आयुष्मान उसे कालेज में छोड़ देता. तब प्राची बाप के साथ घर आ जाती.

रोज की तरह 13 नवंबर को भी अजीत शुक्ला प्राची को कालेज छोड़ कर अपनी दुकान पर चले गए. इस के थोड़ी देर बाद आयुष्मान अपनी मोटरसाइकिल से प्राची के कालेज के गेट पर पहुंचा तो प्राची कालेज छोड़ कर उस के साथ निकल गई. दोनों थोड़ी दूर ही गए होंगे कि प्राची के ताऊ के बेटे राहुल शुक्ला की नजर उन पर पड़ गई. उस ने यह बात फोन कर के अपने चाचा अजीत शुक्ला को बताई तो उन्होंने राहुल से उन दोनों का पीछा करने को कहा.

राहुल अपनी मोटरसाइकिल से उन का पीछा करने लगा. प्राची ने राहुल को पीछा करते देख लिया तो उस ने यह बात आयुष्मान को बताई. इस के बाद आयुष्मान ने अपने मामा विशाल को फोन कर के ककराकलां आने को कहा.

दूसरी ओर बेटी की हरकत से नाराज अजीत शुक्ला ने लाइसेंसी राइफल उठाई और बेटे रजत को साथ ले कर प्राची के प्रेमी आयुष्मान को सबक सिखाने के लिए मोटरसाइकिल से निकल पड़े. ककराकलां में पानी की टंकी के पास अजीत शुक्ला ने राहुल और रजत की मदद से आयुष्मान और प्राची को घेर लिया. उन में बहस और हाथापाई होने लगी. तभी विशाल भी अपनी मारुति वैगनआर से ड्राइवर वरुण के साथ वहां पहुंच गया.

वादविवाद बढ़ता ही गया. अंतत: अजीत ने अपनी 315 बोर की राइफल से आयुष्मान पर फायर कर दिया. लेकिन आयुष्मान थोड़ा पीछे हट गया, जिस से निशाना चूक गया और वह गोली उस के दाएं हाथ में लगी.

अजीत दूसरी गोली न चला दे, इस के लिए सभी उस की राइफल छीनने लगे. इस छीनाझपटी में राइफल का ट्रिगर दब गया, जिस से चली गोली प्राची की बाईं तरफ कमर में जा कर लगी, जो उस के शरीर को भेदती हुई दाईं ओर से बाहर निकल गई. प्राची जमीन पर गिर कर तड़पने लगी.

बेटी को गोली लगते ही अजीत राइफल ले कर भाग खड़ा हुआ. प्राची के भाई रजत ने घायल प्राची को विशाल की कार में डाला और जिला अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने जांच कर के उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल से ही इस घटना की सूचना स्थानीय थाना कोतवाली सदर बाजार को दी गई. परिणामस्वरूप कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर आलोक सक्सेना सहयोगियों को साथ ले कर अस्पताल पहुंच गए.

पुलिस ने प्राची के भाई रजत शुक्ला को हिरासत में ले लिया. घटनास्थल से पुलिस ने राइफल की खाली मैगजीन और एक जिंदा कारतूस बरामद किया. आयुष्मान जिला अस्पताल में भर्ती था. पुलिस ने आयुष्मान से घटना के बारे में पूछताछ की और औपचारिक काररवाई निपटा कर प्राची के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पुलिस ने रजत को ला कर पूछताछ की. इस पूछताछ में उस ने पूरी कहानी बता दी, जिसे आाप ऊपर पढ़ ही चुके हैं.

इंस्पेक्टर आलोक सक्सेना ने आयुष्मान के नाना हरिकरननाथ मिश्र को वादी बना कर अजीत शुक्ला. रजत शुक्ला और राहुल शुक्ला के खिलाफ अपराध संख्या 842/2013 पर भादंवि की धारा 302, 307, 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज कर रजत को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक अजीत और राहुल शुक्ला को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. पुलिस सरगर्मी से दोनों की तलाश कर रही थी. पोस्टमार्टम के बाद प्राची का अंतिम संस्कार किया जा चुका था. आयुष्मान की हालत खतरे से बाहर थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लौकेट का रहस्य – भाग 4

जीते को साथ ले कर हम उसी वक्त उस मकान पर गए, जहां उसे कैद रखा गया था. वह मकान वली खां के दोस्त शेरू का था. वहां वाकई एक कमरे की जाली टूटी हुई थी. वहां ऐसे सुबूत भी थे, जिस से साबित होता था कि उसे उसी जगह कैद कर के रखा गया था. वली खां और शेरू दोनों गायब थे.

मेरी हिदायत पर थानेदार बख्शी ने अपने स्टाफ से उन्हें तलाश करने को कहा. लेकिन कुछ किया जाता, इस से पहले ही शाम करीब 7 बजे वे दोनों खुद ही थाने आ गए. उन के साथ एक सरकारी अफसर भी था. उस ने बताया कि इन दोनों का भागने का कोई इरादा नहीं था. वे केवल डर की वजह से थाने नहीं आए थे.

मैं ने वली खां से कहा कि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहता है तो कह दे. इस पर उस ने जेब से कुछ खत निकाल कर हमारे सामने रख दिए. वे खत क्या थे, गालियों का पुलिंदा था. उन में ऐसी ऐसी गालियां लिखी थीं जो मैं ने कभी नहीं सुनी थीं. खत लिखने वाले ने कोशिश की थी कि वली खां और उस की बीवी को जितना ज्यादा हो सके, जलील किया जाए.

वली खां ने रुआंसे हो कर कहा, ‘‘जनाब, कुछ खत तो बरदाश्त से बाहर थे, इसलिए मैं ने फाड़ कर फेंक दिए थे.’’

उन खतों को पढ़ कर किसी भी शरीफ आदमी का दिमाग घूम सकता था. वली खां ने बताया कि ये गंदगी उस के घर में 3 महीने से फेंकी जा रही है. उस का मानना था कि ये काम जीते के अलावा और कोई नहीं कर सकता.

वली खां ने यह भी बताया कि मजबूर हो कर वह अमृतसर गया और जीते से मिल कर उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन वह उल्टे उसे ही डरानेधमकाने लगा. इस पर उस का दिमाग घूम गया. वह उसे टैक्सी में डाल कर यहां ले आया. वली खां ने माना कि उस ने जीते को 4-5 दिन शेरू के घर में रखा था. वह सिर्फ यह चाहता था कि वह उन मियांबीवी की जिंदगी से निकल जाए.

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वली खां के साथ आए सरकारी अफसर ने भी कहा कि वली खां शरीफ आदमी है. अगर जीता उस की इज्जत को न ललकारता तो यह वाकया कभी न होता. मैं ने वली खां और शेरू को गिरफ्तार न कर के उन्हें तफ्तीश के दायरे में रखा. जीते को हवालात में रखना जरूरी था, क्योंकि अगर उसे छोड़ा जाता तो वह फिर से वली खां के घर जा कर हंगामा कर सकता था. हम ने डाक्टर बुला कर उस की मरहमपट्टी करा दी थी.

जीते को हवालात में छोड़ कर मैं उस के घर पहुंचा और उस के पिता सुरजीत से मुलाकात की. मैं काफी देर तक सुरजीत से जीते के बारे में बातें करता रहा. जब मैं उस के पास से उठने लगा तो दरवाजे के पीछे से चूडि़यों की खनक सुनाई दी. एक औरत जल्दी से अंदर आई थी और मुझे देख कर ठिठक गई थी. वह जवान औरत थी. उस के हाथ में एक छोटा सा लिफाफा था. वह असमंजस में थी कि आगे जाए या वापस लौट जाए.

लेकिन लौटने के बजाए वह हिम्मत कर बोली, ‘‘सुरजीत चचा, ये दवा खा लो. बस 2 दिन और खानी है.’’

सुरजीत ने उसे घूर कर देखते हुए कहा, ‘‘रजिया तुझे कितनी बार कहा है, यहां मत आया कर. रही दवा की बात तो मुझे एक बार ही ला कर दे दे. मैं खुद ही खा लिया करूंगा. बिना वजह रिश्तेदारी मत बना हम से. हम पहले ही बहुत दुखी हैं.’’

रजिया ने दवा वाला लिफाफा सुरजीत के सामने रखते हुए कहा, ‘‘आज तो खा लो, कल बाकी दवा भिजवा दूंगी.’’

सुरजीत ने दवा ले कर मजबूरी में कहा, ‘‘जा, पानी ले कर आ.’’

वह मुझे उलझन भरी नजरों से देख कर बाहर चली गई. मैं समझ गया कि यह वही रजिया है, जो इस फसाद की जड़ है. उस के बाहर जाते ही सुरजीत बोला, ‘‘पागल है यह लड़की, हम सब को भी पागल बना रखा है. यह सोच कर बहाने से दवा देने आई है कि शायद जीता घर पर हो. एक तरफ उसे धक्के दे कर घर से निकालती है, दूसरी तरफ उस की दीवानी हुई फिरती है. पता नहीं क्या चाहती है यह नादान लड़की.’’

रजिया पानी ले आई. जब वह सुरजीत को दवा खिला कर जाने लगी तो मैं ने उसे आवाज दे कर रोक लिया. वह ठिठक गई. सुरजीत ने उस से मेरा परिचय करवाते हुए बताया कि इन इंसपेक्टर साहब ने जीते की बहुत मदद की है.

मेरा परिचय सुन कर वह डर गई. फिर संभल कर बोली, ‘‘जी फरमाइए.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं तुम से कुछ जरूरी बातें करना चाहता हूं. तुम्हारा शौहर घर में ही है?’’

‘‘जी नहीं,’’ वह बोली, ‘‘वह शेरू के साथ थाने गए हैं.’’

‘‘चलो ठीक है, यहीं बात कर लेते हैं.’’ मैं ने सुरजीत की ओर देख कर कहा, ‘‘आप हमें चंद मिनट दीजिए.’’

मेरी बात समझ कर वह उठ खड़ा हुआ और जातेजाते बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, वाहेगुरु के वास्ते इसे समझाएं. इस के दिमाग से यह जुनून निकाल दें. इसे समझाएं कि न अपना घर उजाड़े और न हमें बरबाद करे.’’

सुरजीत बाहर चला गया तो मैं ने रजिया को सामने पड़ी कुरसी पर बैठने को कहा. वह वाकई खूबसूरत औरत थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘बीबी, तुम जानती हो कि तुम्हारी वजह से कितना हंगामा हो रहा है? आखिर तुम चाहती क्या हो?’’

उस ने सिर झुका लिया. उस के होंठ कांपने लगे. वह कुछ कहना चाहती थी, पर कह नहीं पा रही थी. मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारा शौहर शरीफ आदमी है. तुम से बेपनाह मोहब्बत भी करता है. फिर तुम यह खेल क्यों खेल रही हो?’’

मेरी बात सुन कर उस की आंखों से आंसू निकल आए. मैं ने बहुत कोशिश की कि वह अपने दिल की बात बताए. लेकिन वह अपने होंठों को सी कर बैठ गई. आखिर मैं ने कहा, ‘‘खामोश रहने से काम नहीं चलेगा. यह मत भूलो कि तुम्हारा व्यवहार तुम्हें अदालत तक भी ले जा सकता है और जेल भी.’’

उस ने रोतेरोते सिर्फ इतना कहा, ‘‘मैं बेबस हूं.’’

वह टस से मस नहीं हुई. बस खामोश बैठी आंसू बहाती रही. निस्संदेह वह कोई अहम बात छिपा रही थी. अपनी आंखें पोंछने के बाद उस ने कानों पर गिरे अपने बालों को पीछे किया तो मेरी निगाह उस के कान के झुमके पर पड़ी. मैं ने उस झुमके को गौर से देखा तो चौंका. इतनी देर में रजिया ने अपने कानों पर ओढ़नी डाल दी थी. मैं ने कहा, ‘‘बीबी, जरा कानों से ओढ़नी हटाओ.’’

वह मेरी बात नहीं समझी. जब मैं ने दूसरी बार गुस्से से कहा तो उस ने ओढ़नी हटाई. मैं ने आगे हो कर उस के झुमके का मुआयना किया. शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. यह उस लौकेट के साथ का उसी डिजाइन का झुमका था जो जीते के गले में था. मैं ने पूछा, ‘‘बीबी, यह झुमका तुम्हें कहां से मिला?’’

‘‘मेरी शादी का है.’’ उस ने बताया.

‘‘मांबाप ने दिया था?’’

‘‘नहीं, ससुराल की तरफ से मिला था.’’

‘‘इस के साथ का और कोई जेवर भी है तुम्हारे पास?’’

‘‘जी नहीं, बस झुमके ही हैं.’’

‘‘देखो बीबी, मैं जो भी पूछूं, सचसच बताना वरना तुम सब बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाओगे.’’

रजिया मेरी बातों से पहले ही परेशान नजर आ रही थी. जब मैं ने मुसीबत की बात कही तो वह घबरा गई. कहने लगी, ‘‘पता नहीं, आप क्या पूछना चाहते हैं. बेहतर होगा आप मेरे शौहर से बात कर लें.’’

‘‘घबराने की कोई बात नहीं है. सच बोलोगी तो मैं हर तरह से मदद करूंगा. लेकिन झूठ बोला तो मैं तुम्हें नहीं बचा पाऊंगा.’’

उस के चेहरे का रंग पीला पड़ गया. वह ऐसे सिमट कर बैठ गई जैसे खुद में ही छिपने की कोशिश कर रही हो. मैं ने कहा, ‘‘इस झुमके के साथ का एक लौकेट मैं ने जीते के गले में देखा है. वह कहां से आया?’’

उस ने सिर झुका कर जवाब दिया, ‘‘वह लौकेट उसे मैं ने दिया था.’’

‘‘तुम्हारे शौहर को मालूम है?’’

‘‘जी नहीं.’’

‘‘क्या तुम यह जानती हो कि तुम्हारे शौहर के पास ये जेवर कहां से आए?’’

वह सादगी से बोली, ‘‘ये जेवर शादी से पहले के हैं.’’

मैं ने रजिया से कुछ सवाल और पूछे फिर उसे घर जाने की इजाजत देते हुए कहा कि न तो वह घर से बाहर कहीं जाएगी और न इस बात का जिक्र किसी से करेगी. वहां से फारिग हो कर मैं थाने पहुंचा. मैं ने थानेदार से कहा कि वह एक सिपाही भेज कर शेरू को बुलाए. साथ ही मैं ने एक एएसआई को यह कह कर भेज दिया कि वली खां जहां भी मिले उसे फौरन मेरे पास ले आए. लगभग आधे घंटे बाद एएसआई वली खां को ले आया. वह थोड़ी देर पहले ही थाने से गया था.