गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 1

नईनवेली मनपसंद दुलहन साथ हो तो दुनिया की हर शय, हर नजारा, हर जगह खूबसूरत लगने लगती है. मौका हनीमून का हो और जगह गोवा का  समुद्र तट तो फिर तो कहने ही क्या. …बलखाती समुद्र की लहरें. शीतल मंद बयार में झूमते नारियल के पेड़. छतरीदार पेड़ों से छन कर आए चुलबुले बालकों की तरह धरती पर लोटते धूप के टुकड़े. कहीं रंगीन रेस्तराओं के बाहर बड़ेबड़े छातों के नीचे गोल मेज के इर्दगिर्द सिमटे देशीविदेशी पर्यटक तो कहीं समुद्र किनारे खुले आसमान के नीचे रेत पर मस्ती में लेटी अर्धनग्न विदेशी सुंदरियां.

कहीं सजीधजी नावों और स्टीमरों पर समुद्र की सैर करते सैलानी तो कहीं समुद्र तटों पर हंसीठिठोली के साथ नहाते युवकयुवतियां. मस्ती ही मस्ती. ऊपर से मौसम अगर वसंत का हो तो फिर कहना ही क्या. सुबह की बेला में उगते सूरज का मनोहारी दृश्य हो या शाम के सूर्यास्त का समां, रंगरंगीले गोवा का हर दृश्य देख तनमन में मस्ती की लहर दौड़ जाती है. लगता है जैसे धरती पर स्वर्ग उतर आया हो.

अनुज और सोनम जब हनीमून मनाने गोवा पहुंचे तो उन्हें भी ऐसा ही लगा जैसे स्वर्ग में आ गए हों. कहां दिल्ली की शोरशराबे और प्रदूषण से आजिज मशीनी जिंदगी और कहां गोवा का सौंदर्य और शांति. आधे से अधिक दिन तो मुंबई से गोवा पहुंचने में ही निकल गया था. शाम को अंजुना बीच पर थोड़ा घूमने और समुद्र की चंचल लहरों के साथ थोड़ी मस्ती करने के अलावा उस दिन वे गोवा की रंगीन फिजाओं का ज्यादा आनंद नहीं ले सके.

लेकिन अगले दिन उन्होंने मनमाफिक मस्ती में गुजारा. गोवा में वह सब तो था ही जो मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में होता है— एक से एक बढि़या रेस्तरां, क्रीड़ागृह, बड़ेबड़े होटल, बार, डिस्कोथेक और सजीधजी दुकानें. लेकिन दिल को मोहने वाले प्राकृतिक नजारों के अलावा वहां बहुत कुछ ऐसा भी था, जो दिल्ली या मुंबई जैसे महानगरों में नहीं होता.

मसलन केरल की नावों जैसे फ्लोटिंग पैलेस (तैरते महल), बलखातीं लहरें, दूर तक फैली रेत, हवा में झूमते झुकेझुके नारियल के पेड़ और बसंती बयार के साथ खेलती खिलीखिली चमकीली धूप. उस दिन उन दोनों ने खूब सैरसपाटा किया. लहरों से खेले, बीच पर नहाए, रेत में लेटे और बीच पर खुले रेस्तरां में खाना खाया.

अनुज और सोनम की शादी एक महीना पहले हुई थी. अनुज दिल्ली का रहने वाला था जबकि सोनम सिरसा, हरियाणा के एक संपन्न परिवार की बेटी. अनुज और सोनम की शादी दोनों परिवारों की सहमति से खूब धूमधाम से हुई थी.

अनुज के पिता चंद्रप्रकाश का दिल्ली में अपना व्यवसाय था. उन के 2 बेटों अनुज और नमित में अनुज बड़ा था. उस ने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रैजुएशन किया था. पढ़ाई पूरी कर के वह पिता के काम में हाथ बंटाने लगा था. अनुज और सोनम को हनीमून के लिए गोवा जाना है, यह शादी के बाद ही तय हो गया था. रिजर्वेशन सहित उन के जाने की पूरी तैयारी कर दी गई थी.

अनुज के रिश्ते के एक चाचा विजयकरण मुंबई में रहते थे. अनुज और सोनम को मुंबई स्थित उन के घर जा कर रुकना था और वहां से गोवा जाना था. गोवा में उन के ठहरने और घूमने के लिए कार का इंतजाम करने की जिम्मेदारी विजयकरण ने ले रखी थी.

अनुज और सोनम दिल्ली से राजधानी एक्सप्रेस पकड़ कर मुंबई पहुंचे और अंधेरी स्थित विजयकरण के घर ठहरे. वहां इस नवदंपति का खूब स्वागत हुआ. विजयकरण ने अनुज और सोनम के मुंबई घूमने के लिए कार और ड्राइवर का इंतजाम कर दिया था. 3 दिन तक पतिपत्नी मुंबई की खासखास जगहों पर घूमे.

3 दिन मुंबई में रुकने के बाद अनुज और सोनम को गोवा जाना था. गोवा में विजयकरण के एक दोस्त विनोद अत्री सरकारी नौकरी में बड़े पद पर तैनात थे. विजयकरण ने उन्हें फोन कर के दोनों के लिए सेंट पैड्रो क्षेत्र में स्थित होटल में कमरा बुक करा दिया था.

साथ ही उन्होंने अपने दोस्त विनोद को कह भी दिया था कि वे बच्चों के घूमने के लिए कार और ड्राइवर का इंतजाम कर दें. अनुज को उन्होंने विनोद अत्री का फोन नंबर दे कर समझा दिया था कि गोवा पहुंच कर वह अपने वहां पहुंचने की सूचना उन्हें दे दे. वे कार और ड्राइवर भेज देंगे.

अनुज और सोनम बस द्वारा गोवा के लिए रवाना हो गए. उस समय उन के पास 50 हजार रुपए नकद और लगभग 2 लाख रुपए के जेवरात थे. गोवा के सेंट पैड्रो इलाके के एक होटल में अनुज और सोनम के लिए कमरा बुक था. बस से उतर कर वे सीधे होटल पहुंच गए और जाते ही विनोद अत्री को फोन कर दिया.

विनोद ने दोनों के घूमने के लिए ड्राइवर सहित कार भेज दी. उस दिन शाम को अनुज और सोनम अंजुना बीच घूमने गए. सफर की थकान थी, इसलिए उस दिन वे एकडेढ़ घंटे से ज्यादा नहीं घूम सके. ड्राइवर ने उन्हें होटल में छोड़ दिया और सुबह को आने की कह कर चला गया.

घर वालों के निर्देशानुसार अनुज और सोनम रोज शाम को अपनेअपने घर फोन करते थे. उस दिन भी उन्होंने दिल्ली और सिरसा फोन किए. साथ ही मुंबई फोन कर के विजयकरण को भी बता दिया कि वे लोग गोवा पहुंच गए हैं.

अगले दिन ड्राइवर कार ले कर होटल आ गया. उस दिन अनुज और सोनम ने गोवा की खूबसूरत वादियों और अंजुना व बामा बीच पर रेत की सतह पर चादर सी बिछाती समेटती लहरों का आनंद लिया. उन का वह पूरा दिन मौजमस्ती में गुजरा. लग रहा था जैसे कंकरीट के जंगल से निकल कर जन्नतएबहिश्त के किनारे आ बैठे हों.

मखमली रेत पर बैठ कर वे दोनों सिर से सिर जोड़े घंटों समुद्र की बलखाती लहरों को निहारते रहे. समुद्र तट पर गुनगुनी धूप में लेटे उन विदेशी पर्यटकों को देखते रहे जो भारतीय मिट्टी में अपनी संस्कृति की गंध घोलने का प्रयास कर रहे थे. हनीमून का वह दिन उन के लिए यादगार बन गया.

अगले दिन सुबह को विनोद अत्री का ड्राइवर पिछले दिनों की तरह कार ले कर होटल पहुंच गया. अनुज और सोनम लगभग साढ़े 10 बजे होटल से निकले. इधरउधर घूमते हुए वे दोनों अंजुना बीच पहुंचे. कार अस्थाई पार्किंग में लगवाने के बाद दोनों बीच पर चले गए. ड्राइवर कार में बैठा उन के लौटने का इंतजार करता रहा.

दूर की सोच : प्यार या पैसा

भांजी को प्यार के जाल में फांसने वाला पुजारी

चोट : मिला कत्ल का सुराग

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 5

सुबह मैं ने जाहिद को अपने औफिस में बुला कर कहा, “जाहिद मियां, तुम इतना झूठ बोल चुके हो कि अब मैं तुम्हें कोई मौका नहीं दूंगा. तुम यह बताओ कि यह झूठ किस लिए बोला था. अब तुम बताओ कि करामत और तुम्हारी पत्नी कहां हैं?”

“मुझे क्या पता साहब.” उस ने जवाब में कहा.

मैं ने चीख कर पूछा, “तुम्हारी पत्नी और करामत कहां हैं?”

उस के होंठ कांपने लगे, लेकिन आवाज नहीं निकली. मैं ने गरज कर कहा, “जल्दी बोलो…”

इस पर भी उस ने कुछ नहीं बताया तो मैं ने एक हैडकांस्टेबल को बुला कर जाहिद को उस के हवाले कर के कहा, “यह कुछ कहना चाहता है, लेकिन कह नहीं पा रहा है. इस की सुन लो.”

हैडकांस्टेबल उसे पकड़ कर ले गया

मैं ने उन आदमियों में से एक को, जो जाहिद के घर आए थे, बुला कर पूछा, “यहां कब से आए हुए हो?”

“कल सुबह आए थे.”

“पहले कब आए थे?”

“पिछली बार… कोई एक महीना हो गया.”

उसे भेज कर दूसरे को बुलाया, उस से भी यही सवाल किया. उस ने जवाब दिया, “कोई डेढ़दो महीने पहले आए थे.”

मैं ने अभी जाहिद के छोटे भाई को नहीं बुलाया और अपने काम में लग गया. कोई एक घंटे बाद हैडकांस्टेबल हंसता हुआ आया. उस ने कहा, “सर, आप को जाहिद बुला रहा है.”

मैं वहां गया. हैडकांस्टेबल ने उसे जिस पोजीशन में रखा था, जाहिद 15 मिनट से अधिक सहन नहीं कर सकता था. उस की आंखें मांस की तरह लाल हो गई थीं.

मैं ने उसे बिठाया, पानी पिलाया. उस के सामान्य होने पर मैं ने कहा, “देख, तेरे साथ यह जो हुआ है, वह ट्रेलर है. अब भी मुंह नहीं खोला तो समझ ले आगे क्या होगा?”

उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. वह बोला, “साहब, मुझे बचा लो.”

मैं ने कहा, “कुछ कहो तो सही, पहले अपना अपराध बताओ, फिर मैं कुछ करूंगा. तुम मेरे दुश्मन नहीं हो, मेरा तुम ने क्या बिगाड़ा है.”

उस की जबान पर बात आती और चली जाती. अपराध स्वीकार करने से पहले हर अपराधी का यही हाल होता है. मैं ने उसे तसल्ली दी, “मुझे यह बताओ कि तुम्हारी पत्नी और करामत कहां हैं?”

“अब वे जिंदा नहीं हैं.”

इस के बाद उस ने जो कहानी सुनाई, उस के अनुसार, वह मुनव्वरी की करतूत से तंग आ गया था लेकिन उस के बाप से डरता था, इसलिए उसे तलाक नहीं दे सकता था. मुनव्वरी के मातापिता बेटी को समझाने के अलावा उसे उलटा पाठ पढ़ाते थे. तंग आ कर जाहिद ने अपने इन दोनों रिश्तेदारों से बात की.

दोनों ने जाहिद के साथ मिल कर करामत और मुनव्वरी को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. जाहिद को पता था कि करामत रोज अपने दोस्तों के साथ रात को ताश खेलने जाता है. उन्होंने दिन के समय टीलों के पास वह जगह देख ली, जहां दोनों की लाशों को छिपाया जा सकता था. घटना की रात जाहिद ने मुनव्वरी का गला उस समय दबा दिया, जब वह सोई हुई थी. जाहिद के भाई और दोनों रिश्तेदारों ने उस की लाश को एक बोरी में डाल कर सिल दिया.

जाहिद का भाई देख आया कि करामत अपने दोस्तों के साथ ताश खेल रहा है. चारों गली के मोड़ पर घात लगा कर करामत का इंतजार करने लगे. करामत जब ताश खेल कर लौट रहा था तो चारों ने चाकू के बल पर उसे रोक लिया. उस के बाद वे उसे खेतों की तरफ ले गए. डर की वजह से करामत उन के साथ चला गया.

खेतों में जा कर एक आदमी ने पीछे से उस का गला दबा दिया. वह मर गया तो उस की लाश को बोरी में डालने के बाद कंधे पर रख कर चल पड़े. बारीबारी से वे उसे ले कर चलते रहे और टीले के पास ले गए. टीले पर दीवार की तरफ कुदरती गड्ढा था. अंदर से वह चौड़ा था. उन्होंने करामत की लाश को उस गढ्ढे में डाल कर दबा दिया. जाहिद और उस के भाई ने दोनों रिश्तेदारों के साथ घर से मुनव्वरी की लाश को भी ला कर वहीं दबा दिया, जहां करामत की लाश दबाई थी.

करामत को जब वे लोग ले जा रहे थे तभी उस की जेब से एक लिफाफा गिर गया था. घसीटने में उस के पैरों से स्लीपर निकल गए थे. स्लीपर गिरा, जिस का उन चारों को पता नहीं चल पाया था. मुनव्वरी की जूतियां घर में थीं, क्योंकि उसे मार कर बोरी में भर दिया गया था. उन लोगों की योजना थी कि सुबह जाहिद थाने जा कर रिपोर्ट करेगा कि करामत और उस की पत्नी भाग गए हैं. जाहिद ने किया भी वही.

मैं ने मुलजिमों की निशानदेही पर करामत और मुनव्वरी की लाशें टीले के पास से निकलवाईं और पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. अदालत में जब मामला चला तो मैं ने पुख्ता सुबूत पेश किए, जिस से जाहिद और उस के दोनों रिश्तेदारों को फांसी की सजा तथा भाई को अपराध में शामिल होने का दोषी होने पर 5 साल की सजा हुई. उन्होंने सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की, लेकिन उन की अपील खारिज हो गई.

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 4

इजाबेला को देख कर भले ही फिलिप मुसकरा देता था, लेकिन सही मायने में उसे देख कर उसे गुस्सा आता था. उस ने बाप के साथ मिल कर एलेक्स को प्यार के नाम पर धोखा देने की कोशिश की थी. अगर वह सचमुच एलेक्स को प्यार करती होती तो आत्महत्या कर लिया होता. आत्महत्या नहीं करती तो कम से कम बीमार तो पड़ ही गई होती या अपने कमीने बाप को छोड़ दिया होता. लेकिन उस ने ऐसा कुछ नहीं किया था. इस का मतलब उस का प्यार नाटक था.

एक दिन इजाबेला फिलिप के एकदम सामने पड़ गई तो उस ने नमस्ते किया. फिलिप ने उसे बताया कि आजकल एलेक्स कैलिफोर्निया में है और बहुत खुश है. वह टेनिस का अच्छा खिलाड़ी है. हर समय लड़कियां उस के पीछे लगी रहती हैं.

यह बताते हुए फिलिप उस के चेहरे को गौर से देख रहा था कि प्रतिक्रियास्वरूप उस पर कैसे भाव आते हैं. लेकिन उस का चेहरा भावशून्य बना रहा. बल्कि उसे लगा कि वह मुसकरा रही है. तब बेचैनी से फिलिप ने कहा, ‘‘कभी तुम उस से बहुत प्यार करती थीं?’’

‘‘जी, शायद वह मेरी बेवकूफी थी.’’ इजाबेला ने झट कहा, ‘‘कई महीने पहले एलेक्स ने भी फोन कर के कहा था.’’

‘‘तुम उतनी नहीं भोली हो, जितनी दिखती हो,’’ फिलिप ने कहा, ‘‘कितनी आसानी से तुम ने उसे बुद्धू बना दिया.’’

‘‘इन बातों का अब क्या मतलब मि. फिलिप. आप ने ही कहा था कि एलेक्स को छोड़ दो. मैं ने छोड़ दिया. अब आप शिकायत कर रहे हैं कि मैं ने बड़ी आसानी से उसे भुला दिया.’’

‘‘तुम जैसी लड़कियां कुछ भी कर सकती हैं. किसी पर भी हक जमा सकती हैं.’’

‘‘कैसा हक मि. फिलिप? मुझे पता है कि एलेक्स आप का बेटा है. वह आप से अलग थोड़े ही हो सकता है. उस समय वह भावुक हो रहा था, वरना मुझ में ऐसा क्या था, जिस के लिए वह आप को और आप की जायदाद को छोड़ देता. वह मुझ से सिविल मैरिज के लिए कह रहा था, पर मैं ने मना कर दिया.’’

फिलिप चौंका, फिर स्वयं को संभाल कर बोला, ‘‘कर लेना चाहिए था सिविल मैरिज. तुम दोनों बालिग तो हो ही चुके हो.’’

‘‘वह मुझ से कह रहा था कि मैं उस के साथ कैलिफोर्निया चलूं, लेकिन मैं ने मना कर दिया था. मुझे पता था कि वह बाद में पछताता. क्योंकि उस की शक्लसूरत, आदत और मिजाज सब कुछ आप जैसे हैं. वह भी दौलत से उतना ही प्यार करता है, जितना आप. बाद में अपनी गरीबी के लिए मुझ पर आरोप लगता. उसे मेहनतमजदूरी करनी पड़ती तो प्यार का नशा उतर जाता और लड़ाईझगड़ा होने लगता. अंत में तलाक हो जाता.’’ इजाबेला ने व्यंग्यात्मक हंसी हंसते हुए कहा.

‘‘ये बातें तुम्हें एलेक्स से कहनी चाहिए थीं.’’

‘‘अब कोई फायदा नहीं, जो होना था, वह हो चुका है. अब इस बारे में सोचने से क्या फायदा.’’

इजाबेला की बातें सुन कर फिलिप को लगा, वह सचमुच एलेक्स से प्यार करती थी. उस ने बिना मतलब एक मासूम लड़की का दिल तोड़ा. उस पूरे सप्ताह वह काफी उदास रहा. एक दिन उस ने रोजा से कहा, ‘‘काश, इजाबेला किसी और की बेटी होती तो एलेक्स से उस की शादी हो गई होती.’’

‘‘किसी और की नहीं, किसी करोड़पति की बेटी कहो. तब तुम्हारा मकसद पूरा हो जाता.’’ रोजा ने कहा.

अगले ही दिन एलेक्स आ गया. उस का रवैया एकदम नार्मल था. वह खुश भी नजर आ रहा था. इस से फिलिप को तसल्ली हुई. उस ने स्पोर्ट कार खरीद ली थी. वह रोज टेनिस खेलने जाता था. उस के आने के बाद फिलिप ने एक दिन डिनर रखा. उस में इजाबेला को खासतौर से बुलाया. फिलिप एलेक्स के साथ दरवाजे पर खड़े हो कर आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहा था.

इजाबेला आई तो बहुत ही खूबसूरत और ग्रेसफुल लग रही थी. उस के आते समय फिलिप की नजरें एलेक्स पर ही जमी थीं. एलेक्स ने उस पर खास ध्यान नहीं दिया था. सब की ही तरह हाथ मिला कर हालचाल पूछ लिया था. उसी तरह फिलिप ने भी हालचाल पूछा था. इजाबेला रोजा से बड़े प्यार से बातें कर रही थी.

फिलिप सब से मिलजुल रहा था, लेकिन उस की नजरें एलेक्स पर ही टिकी थीं. उस ने देखा, दोनों एकदूसरे के प्रति लापरवाह नजर आ रहे थे, जैसे उन का एकदूसरे से कोई ताल्लुक ही नहीं था. उस ने इत्मीनान की सांस ली कि उस की दूर की सोच ने उसे बुरे अंजाम से बचा लिया. इस तरह इजाबेला को पार्टी में बुलाने का उस का मकसद पूरा हो गया.

पार्टी खत्म हुई तो इजाबेला ने जाने की इजाजत मांगी. फिलिप ने एलेक्स से कहा कि वह इजाबेला को उस के घर तक छोड़ आए. उन के बाहर निकलने से पहले फिलिप पिछले दरवाजे से निकल कर वहां गया, जिधर से वे जाने वाले थे. वह एक झाड़ी के पीछे छिप कर खड़ा हो गया. बाहर आते ही एलेक्स बेताबी से इजाबेला को बांहों में भर कर प्यार करने लगा.

इजाबेला ने उस के सीने से लग कर रोते हुए कहा, ‘‘एलेक्स, अब मैं और इंतजार नहीं कर सकती. मुझे लगता है, मैं पागल हो जाऊंगी.’’

‘‘बेवकूफी वाली बातें मत करो. जिस तरह तुम ने एक साल बिता दिया, उसी तरह कुछ दिन और बिता दो. यही तो दूर की सोच है.’’ इजाबेला के बालों को सहलाते हुए एलेक्स ने कहा.

‘‘लेकिन इस बात का क्या भरोसा कि अब हमें ज्यादा दिन इंतजार नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अब मैं ज्यादा दिनों तक यह नाटक नहीं कर सकती.’’

‘‘बस, कुछ दिनों की ही बात है. मैं खुद जा कर डाक्टर से मिला था. उस ने बताया है कि डैडी का दिल काफी कमजोर होने के साथ बहुत ज्यादा बढ़ चुका है, इसलिए वह ज्यादा दिनों तक जिंदा रहने वाले नहीं हैं. बस कुछ हफ्ते या 2-4 महीने के मेहमान हैं. उस के बाद हमारे इंतजार की घडि़यां और दुख के दिन खत्म हो जाएंगे.’’

ये बातें सुन कर फिलिप को लगा कि उस ने एलेक्स का प्यार छीना तो इजाबेला ने उस से उस का बेटा छीन लिया. वह उस की जायदाद का एकलौता वारिस था. कहां उसे अपनी दूर की सोच पर नाज था, अपनी अक्ल पर घमंड था, आज उस का बेटा उस से ज्यादा दूर की सोच वाला और समझदार निकल चुका था. कितनी आसानी से बिना किसी लड़ाईझगड़े के उस ने अपनी दूर की सोच की वजह से अपने प्यार को पा लिया था.

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 4

उस के घर पर सेहन में 3 आदमी बैठे थे, जिन में एक जवान और 2 ज्यादा उम्र के थे. जवान लडक़ा देखने में जाहिद का भाई लगता था. दूसरे आदमियों के बारे में बताया कि वे उस के रिश्तेदार हैं, जो पास के गांव में रहते हैं. मुझे याद आया कि मुनव्वरी के बाप ने बताया था कि जाहिद की रिश्तेदारी पड़ोस के गांव में ऐसे लोगों से थी, जिन के यहां दुश्मनी में हत्या, मारकुटाई आम बात है.

मैं ने दोनों के नाम पूछे. दोनों चचाजाद भाई थे. दोनों के पिता के नाम पूछे तो पता चला कि उन में से एक के पिता को दफा 307 में 5 साल की जेल हुई थी. मैं ने उस से पूछा कि वह अपने पिता से जेल में मिलने जाता है या नहीं तो उस ने कहा कि मैं और घर वाले उन से मिलने जेल जाते रहते हैं. मैं जाहिद को कमरे में ले गया तो देखा वे दोनों जा रहे थे. मैं ने उन्हें आवाज दे कर कहा, “अभी जाओ नहीं, यहीं बैठो.”

जाहिद से मैं ने पूछा, “गहने कौन से ट्रंक में रखे थे.”

उस ने ट्रंक खोल कर दिखाया, “बस यही ट्रंक है. मैं ने आप से सच बताया था कि वह सब गहने ले गई है.”

मैं गहनों के बारे में ज्यादा गंभीर नहीं था. उस ने 2-3 बार कहा, “यही ट्रंक है. आप सब खोल कर देख लें. किसी में भी गहने नहीं मिलेंगे.”

मैं दूसरे कमरे में गया, उस में 2 पलंग थे, मैं कोई और सुराग तलाश रहा था. तभी मुझे एक पलंग के नीचे एक और ट्रंक दिखाई दिया. मैं ने जाहिद से कहा, “तुम तो कह रहे थे कि बस यही ट्रंक है तो यह ट्रंक किस का है?”

वह बोला, “ओह, मुझे यह याद नहीं रहा. मैं ने कहा था कि उस कमरे में यही ट्रंक है.”

वह अपनी कही बात को घुमाने की कोशिश करने लगा. उस की इस बात पर मुझे गुस्सा आ गया. मैं समझ गया कि यह आदमी मुझे मूर्ख बना कर मुझ से कुछ छिपा रहा है. मैं ने गुस्से में कहा, “इस ट्रंक को बाहर निकाल कर खोलो.”

उस ने मेरी बात को अनसुना सा कर दिया. वह उस ट्रंक को खोलना नहीं चाह रहा था. मैं ने चीख कर कहा, “खोलो इस ट्रंक को, खोलते क्यों नहीं?”

उस ने ट्रंक को घसीटा. फिर मेरी ओर देख कर कहा, “ओह इस की चाबियां तो मेरे पास नहीं हैं. मेरी पत्नी के पास थीं, पता नहीं वह कहां रख गई है?”

मैं ने पास खड़े कांस्टेबल से लोहार को बुलाने को कहा.

“इस में आप को क्या मिलेगा मलिक साहब?” जाहिद ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

“मैं तुम से यह नहीं कहूंगा कि चाबियां ढूंढो, क्योंकि चाबियां घर में ही रखी हैं.” मैं ने कहा.

आखिर चाबियां घर में ही मिल गईं, ट्रंक खोल कर देखा तो उस में कुछ कपड़े और नीचे एक लंबे से डिब्बे में गहने रखे थे. गहने देखते ही जाहिद के हावभाव बदल गए.

“यह किस के गहने हैं?” मैं ने जाहिद से पूछा.

“ओह… गहने तो यहीं पड़े हैं. मुझे लगा था कि वह गहने साथ ले गई है.”

मैं ने उस से कुछ नहीं कहा. अभी मैं यह देख रहा था कि यह आदमी मुझे किस तरह मूर्ख समझ कर कैसे खेल तमाशे कर रहा है. उस मकान में एक कमरा और था. मैं उस में गया तो वहां भी एक पलंग बिछा था. दीवार के साथ एक खूंटी पर 2 जोड़ी जनाना कपड़े टंगे थे. पलंग के नीचे एक जोड़ी जनाना चप्पलें पड़ी थीं. पलंग के तकिए की ओर दीवार के साथ 4 जोड़ी सैंडिलें और एक जरी की जूती रखी थी.

मैं ने जाहिद को बुला कर कहा, “यह तेरी पत्नी का कमरा है?”

“जी, वह इसी कमरे में सोती थी.”

“और तुम.”

“जी 6-7 महीने से हम दोनों अलगअलग कमरों में सो रहे थे.”

मैं ने मुनव्वरी की सहेलियों के बारे में पूछा तो जाहिद ने एक का नाम बताया. मैं ने उसे बुला कर पूछा, “मुनव्वरी अपने पति के बारे में तो तुम से बातें करती रही होगी, क्या बातें करती थी?”

उस लडक़ी का जवाब बहुत लंबा था. संक्षेप में यह कि जाहिद को मुनव्वरी ने शुरूशुरू में कबूल कर लिया था, लेकिन जाहिद इतना बेहूदा इंसान था कि मुनव्वरी पर चरित्रहीनता के झूठे आरोप लगाता रहता था. शादी से पहले मुनव्वरी का करामत से प्रेम था, लेकिन शादी के बाद खत्म हो गया था.

कोई एक साल पहले मुनव्वरी ने जाहिद के तानों से तंग आ कर करामत से मिलना शुरू कर दिया था. उस लडक़ी ने यह भी बताया कि पिछले 6 महीने से दोनों के संबंध ऐसे हो गए थे कि बोलचाल बंद थी. केवल काम की बातें होती थीं.

“क्या मुनव्वरी ने तुम से कभी कहा था कि वह घर से भाग जाएगी?” मैं ने पूछा.

“हां जी, यह तो उस ने कई बार कहा था. वह बहुत तंग हो गई थी. वह कहती थी कि अम्मी और अब्बा तलाक नहीं लेने देते. जी करता है कि कहीं भाग जाऊं. कभी वह इतनी दुखी होती थी कि कहती थी कि कुछ खा कर मर जाऊं.”

उस लडक़ी से मैं ने बहुत से सवाल पूछे. रात के 12 बज चुके थे. मैं ने उस से कहा, “एक सवाल और, जिस रात मुनव्वरी गई थी, उस रात को याद करो. जाते समय वह तुम से मिली थी या तुम उस के घर गई थीं?”

“वह आई थी, थोड़ी देर बैठी और चली गई थी. मैं ने उसे कुछ देर और बैठने को कहा तो उस ने बुरा सा मुंह बना कर कहा था कि गांव से उस के पति के 2 रिश्तेदार अभीअभी घर पहुंचे हैं. उन के लिए कुछ करना है.”

यह बात मेरे लिए बहुत खास थी. अब मुझे यह देखना था कि उस के वे यहां जो रिश्तेदार आए थे, वे कौन थे?

उस लडक़ी से बात कर के मैं कमरे में चला गया. जाहिद का भाई खड़ा था. मैं ने उस से पूछा कि उस रात जाहिद के कौन मेहमान आए थे? उस ने बताया कि यही दोनों थे, जो अब भी घर में बैठे हैं.

मैं ने उस से और कुछ नहीं पूछा. जाहिद, उस के भाई और उन दोनों रिश्तेदारों को मैं थाने ले आया. थाने ला कर मैं ने उन्हें बिठा दिया और सिपाहियों से कह दिया कि उन्हें एकदूसरे से दूर बिठा कर उन पर निगरानी रखी जाए.

देवर के इश्क़ में

गुनाह : भूल का एहसास

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 3

प्यारेलाल को जब पता चला कि रचना नाराज हो कर उन की बेटी के पास नवादा चली गई है तो उन्हें ज्यादा चिंता नहीं हुई. उन्होंने सोचा कि 2-4 दिन में गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह लौट आएगी. बहन के यहां रह कर रचना अपने लिए नौकरी तलाशने लगी. थोड़ी कोशिश करने के बाद नांगलोई में एक होम्योपैथी फार्मेसी में उस की नौकरी भी लग गई.

रचना स्वच्छंद विचारों की थी, इसलिए नवादा में अपनी बहन से भी उस की नहीं बनी तो बहन का मकान छोड़ कर वह द्वारका सेक्टर-7 में किराए पर रहने लगी. अब द्वारका में उस से कोई कुछ कहनेसुनने वाला नहीं था. उस का जहां मन करता, घूमतीफिरती थी. फेसबुक और अन्य सोशल साइटों के जरिए नएनए दोस्त बनाना उसे अच्छा लगता था. सोशल साइट के जरिए उस की दोस्ती नाइजीरियन युवक चिनवेंदु अन्यानवु से हुई.

चिनवेंदु जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी से आईटी की पढ़ाई कर रहा था. धीरेधीरे उन की दोस्ती बढ़ती गई तो वह रचना से मिलने दिल्ली आने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच प्यार हो गया. यह प्यार शारीरिक संबंधों तक भी पहुंच गया. इस के बाद तो रचना उस की ऐसी दीवानी हुई कि अपनी नौकरी छोड़ कर उस के साथ जयपुर में लिव इन रिलेशन में रहने लगी. वह जयपुर में करीब एक साल रही.

चिनवेंदु का एक दोस्त था जेम्स विलियम. वह भी नाइजीरिया का ही रहने वाला था. वह ग्रेटर नोएडा के किसी इंस्टीट्यूट से पढ़ाई कर रहा था. जेम्स अकसर चिनवेंदु से मिलने जयपुर जाता रहता था, इसलिए वह रचना को भी जान गया था.

जयपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद चिनवेंदु रचना को ले कर ग्रेटर नोएडा पहुंच गया. वे दोनों जानते थे कि रचना सोशल साइट पर लोगों से दोस्ती करने में माहिर है. इसलिए दोनों युवकों ने लोगों से पैसे ऐंठने का नया आइडिया रचना को बताया तो रचना ने तुरंत हामी भर दी. फिर योजना बना कर किसी पैसे वाली पार्टी को फांसने का फैसला किया गया.

रचना ने सोशल साइट टैग्ड डौटकाम के जरिए नोएडा के मनीष नाम के युवक से दोस्ती की. मनीष को अपने जाल में पूरी तरह फांसने के बाद रचना ने उसे अपने कमरे पर बुलाया. बातचीत के बाद रचना और मनीष जब आपत्तिजनक स्थिति में पहुंच गए तो चिनवेंदु ने किसी तरह उन के फोटो खींच लिए. फिर क्या था, उन फोटोग्राफ के जरिए वह मनीष को ब्लैकमेल करने लगा. मगर मनीष ने पैसे देने के बजाय पुलिस को सूचना देने की धमकी दी.

इस से वे लोग डर गए और उन्होंने उसे कमरे से भगा दिया. पहला वार खाली जाने के बाद उन्होंने अब नया शिकार तलाशना शुरू किया. फिर रचना ने अगला शिकार गुड़गांव के रहने वाले जोगिंद्र को बनाया. जोगिंद्र से दोस्ती गांठने के बाद रचना ने उसे भी अपने कमरे पर बुलाया. उन्होंने जोगिंद्र को भी ब्लैकमेल करने की कोशिश की. लेकिन जोगिंद्र भी रचना और उस के साथियों की धमकी में नहीं आया. लिहाजा उन्होंने जोगिंद्र को भी कमरे से भगा दिया.

इस के बाद रचना और उस के साथियों ने दिल्ली के चित्तरंजन पार्क में एक कमरा किराए पर लिया. रचना और उस के साथियों के 2 वार खाली जा चुके थे. अब वे मोटे आसामी की फिराक में थे. टैग्ड डौटकाम के जरिए अब रचना नया मुर्गा फांसने में जुट गई. रचना ने अरुण वाही से दोस्ती कर ली. अरुण वाही लुधियाना के सुंदरनगर के रहने वाले थे. वह चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. 46 साल के अरुण वाही भी रचना के जाल में फंस गए. दोनों ने एकदूसरे को नेट के जरिए अपने फोटो भी भेज दिए.

अरुण वाही उस पर एक तरह से मोहित हो गए थे. सोशल साइट के जरिए वह एकदूसरे से बात करते रहते थे. रचना ने अरुण वाही को दिल्ली मिलने के लिए बुलाया. 18 दिसंबर की रात को अरुण वाही की रचना से फोन पर 3 बार बात भी हुई थी. वह रचना से मिलने के लिए बेचैन थे, इसलिए 18 दिसंबर को सुबह 4 बजे लुधियाना से ट्रेन द्वारा दिल्ली के लिए निकल पड़े.

अरुण वाही को लेने रचना दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई थी. वह स्टेशन से उन्हें कमरे पर ले गई. वाही ने सोचा कि वह उस से एकांत में मन की बात करेंगे, इसलिए किराए की कार से रचना के साथ चित्तरंजन पार्क स्थित उस के कमरे पर पहुंचे. वहां भी चिनवेंदु ने रचना के साथ आपत्तिजनक हरकतें करते हुए वाही के फोटो खींच लिए. फिर उन का मोबाइल जब्त करने के बाद उन से 4 लाख रुपए की मांग की.

अरुण वाही एक इज्जतदार परिवार से थे, इसलिए उन्होंने मामले को दबाने के लिए पैसे देने की हामी भी भर ली. फिर पैसे हासिल करने के लिए वाही ने लुधियाना में रहने वाले अपने दोस्त राजेंदर सिंह का नंबर उन लोगों को बता दिया. चिनवेंदु भारत में रह कर हिंदी सीख गया था. उस ने ही वाही के फोन से राजेंदर सिंह से बात कर के अरुण वाही के बदले 4 लाख रुपए देने की मांग की. बाद में उन्होंने जब राजेंदर सिंह को बैंक एकाउंट नंबर भेजा तो वाही के बजाए अपना फोन नंबर प्रयोग किया. उसी के जरिए वे लोग पुलिस के चंगुल में फंस गए.

पुलिस ने 20 दिसंबर, 2013 को अभियुक्त रचना नायक राजपूत, चिनवेंदु अन्यानवु और जेम्स विलियम को गिरफ्तार कर तीसहजारी कोर्ट में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के यहां पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन के पास से विभिन्न कंपनियों के 46 सिमकार्ड, 2 लैपटौप, 5 मोबाइल फोन, एक कैमरा, 3 लाख 98 हजार 5 सौ रुपए नकद बरामद किए. उन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना एसआई घनश्याम किशोर कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. राजेंदर सिंह और मनीष परिवर्तित नाम हैं.