दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 3

बातचीत वाली रात फिलिप की तबीयत ठीक नहीं थी. डाक्टर ने उसे कंपलीट रेस्ट के लिए कहा था. खानेपीने के बाद फिलिप ने डौल्टन और उस की पत्नी को सामने बैठा कर बड़ी होशियारी से बात शुरू की. एलेक्स और इजाबेला उस के बगल वाले सोफे पर बैठे थे. उन के चेहरे खुशी से खिले हुए थे.

फिलिप ने कहा, ‘‘मि. डौल्टन, जानते हो मैं ने तुम्हें यहां क्यों बुलाया है? दरअसल मैं स्पष्ट बात करने का आदी हूं. इस शादी से मैं जरा भी खुश नहीं हूं. इसलिए नहीं कि इजाबेला में कोई खराबी है. इस की वजह मेरा और तुम्हारा अतीत है, जिस का एलेक्स और इजाबेला से कोई ताल्लुक नहीं है. मैं यह जानना चाहता हूं कि इस शादी से तुम ने क्या उम्मीदें बांध रखी हैं?’’

फिलिप का यह सवाल इतना अजीब था कि सब हैरानी से उस का मुंह देखते रह गए. थोड़ी देर में डौल्टन ने खुद को संभाल कर कहा, ‘‘मि. फिलिप, जो होना था, वह हो चुका है. अच्छा है, आप ने साफ बात की. मैं भी आप को बता दूं कि कभी मैं भी दौलतमंद था, लेकिन अब मुश्किल से गुजरबसर हो रहा है. इसलिए मैं अपनी बेटी के लिए कुछ नहीं कर सकता. जो करना है, वह आप को ही करना है.’’

डौल्टन की बात खत्म होते ही फिलिप ने कहा, ‘‘मुझे नहीं, जो कुछ करना है मि. डौल्टन आप को और एलेक्स को करना है. आप की बेटी एलेक्स से शादी कर रही है, मुझ से नहीं.’’

‘‘लेकिन एलेक्स आप का बेटा है. इसलिए आप इस बात को कतई पसंद नहीं करेंगे कि वह इजाबेला की कमाई खाए.’’

इस तरह डौल्टन ने फिलिप की दुखती रग पर हाथ रखने की कोशिश की. जवाब में उस ने कहा, ‘‘पसंद ना पसंद का सवाल मेरे लिए नहीं, एलेक्स के लिए है. मेरी दुआएं उस के साथ हैं. वह पढ़ालिखा नौजवान है, अपनी जिंदगी खुद संवार सकता है. यतीम हो कर मैं ने अपनी जिंदगी खुद बनाई थी. किसी ने मेरी मदद भी नहीं की.’’

डौल्टन ने व्यंग्य से कहा, ‘‘शायद आप अपनी दौलत की बात कर रहे हैं? लेकिन आप भूल रहे हैं कि संयोग भी कोई चीज होती है. लेकिन हालात अब काफी बदल गए हैं.’’

‘‘मैं हालात का मुकाबला करने की हिम्मत रखता हूं.’’ एलेक्स ने विश्वास के साथ कहा.

‘‘लेकिन एलेक्स आप का एकलौता बेटा है,’’ एलेक्स की बात पूरी होते ही डौल्टन की बीवी ने कहा, ‘‘इसलिए वही आप की दौलत का वारिस है.’’

‘‘आप ने सही कहा, लेकिन मेरी मौत के बाद, पहले नहीं. मेरे बाप को छोड़ कर मेरे खानदान में कोई 90 साल से पहले नहीं मरा. इस तरह अभी मेरी आधी जिंदगी बाकी है. सौरी, इसलिए आप की यह उम्मीद जल्दी पूरी नहीं हो सकती.’’ फिलिप ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए जवाब दिया.

रोजा ने फिलिप को घूरा. उस की इस बात से डौल्टन और उस की पत्नी का चेहरा शरम और अपमान से लाल हो गया. एलेक्स के चेहरे की भी चमक खतम हो गई. वह एकदम से उठा और कमरे से निकल गया. इस के बाद डौल्टन, उस की पत्नी और बेटी भी उठ खड़ी हुई. निकलते समय दरवाजे के बाहर एलेक्स ने इजाबेला को रोकने की कोशिश की, ‘‘इजाबेला मेरी बात सुनो.’’

इजाबेला ने बगैर रुके ही कहा, ‘‘अगर एलेक्स तुम्हारे डैड को दौलत प्यारी है तो मेरे पापा को अपनी इज्जत. अब मैं कुछ भी नहीं सुनना चाहती.’’

तीनों बाहर निकल गए. बाप को नफरत से देखते हुए एलेक्स ने कहा, ‘‘खलनायक की इतनी अच्छी भूमिका अदा करने के लिए आप को बहुतबहुत धन्यवाद. यही बात कोई और कहता तो शायद मैं उसे थप्पड़ मार देता.’’

फिलिप ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेवकूफ मत बनो एलेक्स. मैं तुम्हारे सामने यह साबित करना चाहता था कि वे इजाबेला की शादी तुम से सिर्फ मेरी दौलत के लिए करना चाहते थे. मेरी दौलत से तुम इजाबेला जैसी सैकड़ों लड़कियों से शादी कर सकते हो.’’

‘‘डैडी, औरत खरीदी जा सकती है, बीवी नहीं.’’ एलेक्स ने शांति से कहा. इस के बाद वह सिर थाम कर बैठ गया.

फिलिप को लगा, उस का तीर सही निशाने पर लगा है. उस ने प्यार से कहा, ‘‘तुम क्या समझते हो, जो कुछ मैं ने कहा है, वह सच था? तुम चाहो तो कल इजाबेला से शादी कर सकते हो, लेकिन तुम ने देखा न, वह तुम से नहीं, तुम्हारी दौलत से प्यार करती है. बहरहाल मेरा जो कुछ भी है, तुम्हारा है. मैं नहीं चाहता कि कोई तुम्हें उल्लू बना कर तुम्हारी दौलत ठग ले.’’

ये बातें फिलिप ने बेटे को उदास देख कर बहुत दूर की सोच कर कही थी. एलेक्स ने जवाब दिया, ‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं, कम से कम उसे मेरी बात तो सुननी ही चाहिए थी. खैर, अपने प्रोग्राम के मुताबिक मैं जा रहा हूं. आप की दौलत और इजाबेला की मुहब्बत, दोनों ने मुझे बरबाद कर दिया.’’

कह कर एलेक्स निढाल और मायूस सा अपने कमरे में चला गया.

मौसम अच्छा होने की वजह से फिलिप शाम को लंबी वाक पर निकल जाता था. रास्ते में ही डौल्टन का घर पड़ता था, जो उजड़ा और पुराना सा था. उस के हालात पहले से भी बुरे हो गए थे. उस की अखबार की नौकरी छूट गई थी. इजाबेला को मिलने वाले वेतन से घर चल रहा था.

उस की हालत देख कर फिलिप को काफी सुकून मिलता था, क्योंकि अपने पुश्तैनी मकान से निकाले जाने के बाद उस ने बहुत बुरे दिन देखे थे. पैसे के लिए उस ने इतनी मेहनत की थी कि उस की सेहत बरबाद हो गई थी. उसी की वजह से आज वह दिल का मरीज बन गया था. इस सब की वजह उसे डौल्टन लगता था.

कभीकभार फिलिप को खूबसूरत, स्मार्ट और ग्रेसफुल इजाबेला भी दिखाई दे जाती थी. कभी स्कूल से आती हुई तो कभी कोई काम करती हुई. इस में कोई शक नहीं था कि वह चाहे जाने लायक थी. अगर फिलिप की डौल्टन से दुश्मनी न होती तो निश्चित वह बेटे की पसंद को दाद देता.

इजाबेला से फिलिप की नजर मिल जाती तो वह मुसकरा देता. वह उस से नमस्ते करती. ऐसे में फिलिप यह जानने का प्रयास करता कि एलेक्स से जुदाई का उस पर क्या असर पड़ा है. पिछले एक साल से एलेक्स बाहर रह रहा था. शुरू में तो उस ने फिलिप से कोई संबंध नहीं रखा, लेकिन बाद में बापबेटे में फोन पर बातें होने लगी थीं. वह कंपनी के काम में काफी रुचि ले रहा था, इसलिए फिलिप को लगने लगा था कि वह उस का उत्तराधिकारी बनने का प्रयास कर रहा है.

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 3

मैं ने करामत की पत्नी को वह लिफाफा और खत दिखा कर पूछा, “यह इकबाल कौन है.”

उस ने बताया, “करामत का एक दोस्त है और इसी मोहल्ले में रहता है. वह भी शहर के एक सरकारी औफिस में काम करता है.”

मैं ने उस की पत्नी से पूछा कि करामत किस समय घर से निकला था तो उस ने दुखी हो कर कहा, “वह शाम को खाना खा कर घर से निकलते थे और अपने दोस्तों में समय गुजार कर आधी रात को घर आ जाते थे.”

मोहल्ले के 2-4 आदमियों से पूछा कि रात को करामत और उस के दोस्त इकट्ठा हो कर क्या करते थे तो उन्होंने बताया कि वे ताश खेलते थे.

मैं ने पूछा, “जुआ भी खेलते थे?”

उन्होंने कहा, “नहीं, जुआ नहीं खेलते थे. कभी तमाशा देखने वाले भी आ जाते थे, तब महफिल रात तक जमी रहती थी.”

मैं ने करामत के दोस्त इकबाल का पता दे कर एसआई को यह कह कर उस के घर भेजा कि पूछ कर आए कि करामत वहां आया था या नहीं? उस के बाद मैं ने उस के उन दोस्तों को बुलवाया, जो उस के साथ ताश खेला करते थे. मैं ने उन से बारीबारी पूछताछ की तो सब ने यही बताया कि वह रात के साढ़े 12 बजे ताश खेल कर चला गया था.

साढ़े 12 बजे की बात सुन कर मुझे उस आदमी का खयाल आया, जिस ने कहा था कि उस ने करामत को रात साढ़े 11 बजे गाड़ी में सवार होते देखा था. मैं ने एक कांस्टेबल को भेज कर उस आदमी को बुलवाया, जिस ने करामत को ट्रेन में सवार होने की बात बताई थी.

जब मैं ने उस से कहा कि तुम ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला तो उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. वह मेरे चेहरे को देखते हुए बोला, “मैं ने झूठा बयान नहीं दिया.”

मैं कुछ देर तक चुप रहा, फिर पुलिसिया अंदाज से बोला, “करामत रात साढ़े 12 बजे तक ताश खेलता रहा था, जिस के 8-10 गवाह हैं. जबकि तुम ने बताया है कि तुम ने उसे साढ़े 11 बजे गाड़ी में सवार होते देखा था.”

“मुझ से गलती हो गई, वह कोई और रहा होगा.”

“तुम ने बहुत बड़ी गलती की है, अब उस की सजा के लिए तैयार हो जाओ.” मैं ने हडक़ाया.

वह हाथ जोड़ कर उठ खड़ा हुआ, कांपती आवाज में बोला, “गरीब हूं हुजूर, 20 रुपए महीना वेतन मिलता है, छोटेछोटे 2 बच्चे हैं, 2 भाई हैं. इतने कम वेतन में गुजारा नहीं होता. जाहिद ने मुझ से कहा था कि ऐसा बयान दे दो, तुम्हें 15 रुपए दूंगा. आप जानते हैं हुजूर मेरे लिए 15 रुपए कितनी बड़ी रकम है. यह मेरे पूरे घर की रोटी का खर्च है. लालच में आ कर मैं ने यह बयान दे दिया था.”

“तुम ने यह क्यों कहा था कि करामत के पीछे एक आदमी था, जो कंबल ओढ़े था.” मैं ने उस से पूछा, “तुम ने यह क्यों नहीं कहा कि वह जाहिद की पत्नी थी.”

“मुझे जैसा जाहिद ने कहने को कहा था, मैं ने वैसा ही कह दिया.”

उस की बात सुन कर मुझे यही लगा कि जाहिद चालाक आदमी है, जबकि मैं उसे परेशान समझता रहा.

“अगर तुम्हें कुछ और पता हो तो बता दो, बाद में पता चला तो मैं तुम्हें गिरफ्तार कर के जेल भेज दूंगा.”

उस ने कसमें खा कर कहा कि इस के अलावा वह कुछ नहीं जानता. उस आदमी को मैं ने थाने में बिठाए रखा और जाहिद को बुलवा लिया. मेरे दिमाग में करामत के नाम का लिफाफा और स्लीपर अटक गए थे और यह भी कि वह घर में पहनने वाले कपड़ों में गया था.

जाहिद थाने आया तो मैं ने उस से पूछा, “जाहिद, तुम ने अपने तौर पर अपनी पत्नी को ढूंढऩे की कोशिश नहीं की?”

“मैं कैसे ढूंढ़ सकता हूं जी, पता नहीं वह अपने यार के साथ ट्रेन से कहां चली गई? एक आदमी को मैं आप के पास लाया भी था, जिस ने उन दोनों को गाड़ी में सवार होते देखा था.”

“वह आदमी अभी थाने में ही है. बस तुम मुझे इतना बता दो कि उस आदमी से तुम ने झूठ क्यों बुलवाया था?”

जवाब देने के बजाय वह मेरे मुंह को देखने लगा. कुछ देर बाद उस ने हिम्मत की, “मैं ने झूठ नहीं बुलवाया हुजूर, वह तो उस ने खुद ही बोला था.”

मैं ने कहा, “जाहिद, उस बेचारे को 2 साल के लिए क्यों अंदर करा रहे हो? वह बालबच्चों वाला आदमी है. तुम ने उसे झूठ बोलने के लिए 15 रुपए दिए थे. कह दो कि यह बात भी झूठी है.

“जाहिद, मुझे कुछ और भी सबूत मिले हैं. क्या तुम्हें पता नहीं कि आज सुबह मैं करामत के घर गया था?”

“पता है.”

“तो तुम्हें यह भी पता होगा कि खेतों में से करामत की कुछ चीजें बरामद हुई हैं. वे चीजें कुछ और ही कहानी कहती हैं.”

इतना सुन कर उस के चेहरे पर ऐसा बदलाव आया, जैसे सिनेमा के परदे पर एक स्लाइड के बाद दूसरे रंग की स्लाइड आ गई हो.

उस ने कांपती आवाज में कहा, “मलिक साहब. मैं ने सोचा है कि अगर मुझे पत्नी मिल जाती है तो मैं उस का क्या करूंगा? क्या ऐसी पत्नी को कोई इज्जतदार आदमी अपने घर में रख सकता है, जो गैरमर्द के साथ चली गई हो. मैं ने तय किया है कि तलाक दे कर कागज उस के बाप को दे दूंगा और आप को एक तहरीर दे कर अपनी रिपोर्ट वापस ले लूंगा.”

“और जो तुम्हारे इतने गहने चले गए हैं, उन का क्या होगा?” मैं ने पूछा.

“संतोष कर लूंगा. मेरा घर तो तबाह हो ही गया है.”

“फिर जानते हो क्या होगा?” मैं ने कहा, “तुम्हारा ससुर तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराएगा कि तुम ने उस की लडक़ी को गायब कर दिया है और उस के गहने तुम हजम कर गए हो.”

“मैं उस के गहने दे दूंगा.”

“कहां से दोगे?”

उस ने कोई जवाब नहीं दिया. मैं ने उस के चेहरे पर एक और बदलाव देखा. मुझे लगा, जैसे उस ने अपनी पत्नी को बदनाम करने के लिए कोई चाल चली है. आगे की जांच के लिए मैं जाहिद को उस के घर ले गया.

भांजी को प्यार के जाल में फांसने वाला पुजारी – भाग 3

काफी भटकने के बाद भी लकड़ी की व्यवस्था नहीं हो सकी तो उस ने अप्सरा की जूतियां और कपड़े वहीं झाड़ियों में छिपा दिए. इस के बाद लाश उठा कर उस ने कार की डिक्की में रखा और मंदिर लौट आया. अब उस के सामने लाश को ठिकाने लगाने की समस्या थी.

वह काफी देर तक विचार करता रहा. सोचते हुए वह मंदिर के पीछे गया. मंदिर के पीछे राजस्व विभाग की पुरानी इमारत है. वह सोचतेविचारते हुए मंदिर के पीछे टहल रहा था कि उस की नजर राजस्व विभाग की उस पुरानी इमारत के सामने बने मेनहोल पर पड़ी. उस पर नजर पड़ते ही उस की समस्या हल हो गई.

साईंकृष्णा तुरंत मंदिर में आया और कार की डिक्की से लाश निकाल कर ले जा कर मेनहोल का ढक्कन हटा कर लाश उसी में डाल दी और ढक्कन बंद कर मंदिर में वापस आ गया. रात में ही उस ने कार साफ की और अप्सरा का हैंडबैग वगैरह जला कर उस की राख भी उसी मेनहोल में ले जा कर फेंक दी. फिर वह आराम से सो गया.

अगले दिन सुबह वह अप्सरा के घर गया तो उस की मां ने कहा, “अप्सरा को कल रात से ही फोन कर रही हूं. उस का फोन ही नहीं लग रहा है. जब भी फोन करो, स्विच्ड औफ बताता है.”

“यही पता करने तो मैं भी आया हूं. मैं ने भी फोन किया था. उस का फोन बंद ही बताए जा रहा था. कहीं उस का फोन चोरी तो नहीं हो गया. पर फोन चोरी होता तो अपनी किसी सहेली के फोन से फोन कर सकती थी.” साईंकृष्णा ने कहा.

दुर्गंध न आने का कर दिया पुख्ता इंतजाम

अप्सरा के घर से लौट कर पुजारी साईंकृष्णा मेनहोल के पास गया तो उसे लगा कि मेनहोल से लाश के सडऩे की बदबू आ रही है. उसे लगा कि अगर यह बदबू फैली और मेनहोल का ढक्कन उठा कर देखा गया तो वह फंस जाएगा. उस ने ढक्कन के किनारे सीमेंट और कंक्रीट लगा कर 2 ट्रक लाल मिट्टी मंगा कर मेनहोल के ढक्कन के ऊपर डलवा दी, जिस से ढक्कन पूरी तरह बंद हो गया. अब वह निश्चिंत हो गया.

इसी तरह इंतजार में पूरा दिन भी बीत गया और रात भी. जब अप्सरा का कुछ पता नहीं चला तो 5 जून, 2023 को दोपहर के बाद पुजारी साईंकृष्णा अप्सरा की गुमशुदगी दर्ज कराने थाना आरजीआईए पहुंच गया. वहां गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद असलियत सामने आ गई और अप्सरा मर्डर केस में वह खुद ही पकड़ा गया. थाना शम्साबाद पुलिस ने वह पत्थर भी बरामद कर लिए, जिन से अप्सरा की हत्या की गई थी. गौशाला के पास से अप्सरा की जूतियां और कपड़े भी मिल गए थे.

पुलिस ने पुजारी अय्यागिरि वेंकट सूर्या साईंकृष्णा के खिलाफ हत्या (धारा 302) और सबूत मिटाने (धारा 120) के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे रंगा रेड्डी कोर्ट में पेश किया, जहां से 14 दिनों के रिमांड पर लिया गया. रिमांड अवधि में पुलिस ने उस से पूछताछ कर कुछ और सबूत जुटाए. रिमांड अवधि पूरी होने पर उसे दोबारा अदालत में पेश किया गया, जहां से कातिल पुजारी को जेल भेज दिया गया.

पुजारी की पापलीला और अप्सरा की हत्या को ले कर मीडिया में अप्सरा की एक से एक फोटो के साथ पुजारी के फोटो दिखाए जा रहे थे. तभी इस मामले में एक और नया रहस्य निकल कर सामने आया.

अप्सरा और उस की मां अरुणा एक साल पहले ही हैदराबाद रहने आई थीं. इस के पहले दोनों चेन्नै में रहती थीं. अप्सरा की हत्या का समाचार सुन कर चेन्नै की धनलक्ष्मी राजा नाम की एक महिला ने सोशल मीडिया पर अप्सरा के फोटोग्राफ्स, वीडियो और आडियो डाल कर हडक़ंप मचा दिया.

सामने आई नई जानकारी

धनलक्ष्मी ने वीडियो वायरल कर के कहा था कि दुनिया में देर है पर अंधेर नहीं है. प्रकृति हर किसी को उस के कर्म की सजा देती है. मेरा एकलौता बेटा कार्तिक सौफ्टवेयर इंजीनियर था. उसे अप्सरा से प्यार हो गया. उस की सुंदरता पर वह ऐसा मोहित हुआ था कि मेरे मना करने के बावजूद उस ने उस रूपसुंदरी से विवाह कर लिया.

विवाह कर के घर आते ही अप्सरा ने हम दोनों को परेशान करना शुरू कर दिया था. मेरा बेटा तो सीधासादा था और वह महारानी हर शनिवार और रविवार को बाहर घूमने जाती और हद से ज्यादा खर्च कराती. इस मामले में उस की मां अरुणा भी बेटी का पक्ष ले कर मेरे बेटे को धमकाती. जब देखो तब लड़ाईझगड़ा कर के मांबेटी ने कार्तिक का जीना हराम कर दिया था.

एक दिन घर में थोड़ा ज्यादा झगड़ा हो गया. अप्सरा ऐसी बिफरी की मुझे और कार्तिक को गंदीगंदी गालियां देने लगी. कार्तिक को भी गुस्सा आ गया. उस ने अप्सरा पर हाथ उठा दिया. इस के बाद अप्सरा थाने चली गई और कार्तिक के खिलाफ तरहतरह के आरोप लगा कर शिकायत दर्ज करा दी. अप्सरा की सुंदरता देख कर पुलिस ने भी फटाफट मुकदमा दर्ज कर लिया और कार्तिक को गिरफ्तार कर के अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद अप्सरा अपनी मां के साथ चेन्नै से हैदराबाद चली गई.

करीब डेढ़ महीने बाद कार्तिक जमानत पर जेल से बाहर आया. जेल जाने से उस की नौकरी भी चली गई थी, जिस की वजह से वह भारी डिप्रेशन में आ गया. मां धनलक्ष्मी ने उसे बहुत समझाया, हिम्मत दी. पर अप्सरा ने उसे जिस तरह परेशान किया था, उस से वह इस हद तक टूट गया था कि वह इस हादसे से उबर नहीं पाया और जेल से बाहर आने के चौथे दिन उस ने फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

धनलक्ष्मी ने कार्तिक और अप्सरा के विवाह के जो फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किए थे, उन्हें ले कर लोगों में यही चर्चा हो रही थी कि अप्सरा की वजह से जिस तरह कार्तिक की मां बिलख रही है, ठीक उसी तरह से बेटी के मौत हो जाने पर अब खुद अरुणा को भी बिलखना पड़ रहा है.

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 2

सोनिया वाही को पति की चिंता खाए जा रही थी. जब उन्हें पता चला कि बैंक में पैसे डलवाने के लिए अपहर्त्ताओं ने बैंक एकाउंट नंबर दे दिए हैं तो वह राजेंदर सिंह पर दबाव बनाने लगीं कि जल्द से जल्द एकाउंट में पैसे जमा करा दें, ताकि पति जल्द घर आ जाएं.

राजेंदर सिंह दिल्ली पुलिस को बताए बिना उन के एकाउंट में पैसे जमा कराने के पक्ष में नहीं थे, इसलिए उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार से बात की. उन्होंने पुलिस को यह भी बता दिया कि अपहर्त्ता ने इस बार फोन अरुण वाही के नंबर से नहीं, बल्कि नए नंबर 8860103333 से किया था, इसी नंबर से मैसेज भी भेजा था.

पुलिस ने अपहर्त्ता के इस फोन नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया. पुलिस नहीं चाहती थी कि अपहर्त्ता अरुण वाही को कोई क्षति पहुंचाएं, इसलिए उन्होंने राजेंदर सिंह से कह दिया कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा भेजे गए दोनों बैंक खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दें. पुलिस के कहने पर राजेंदर सिंह ने आईसीआईसीआई के दोनों खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दिए.

पुलिस ने अपहर्त्ताओं द्वारा दिए गए खातों की जांच की तो पहला खाता इंफाल के रहने वाले किसी थांगन राकी नाम के व्यक्ति का और दूसरा इंफाल के ही लाइस रान थांबा का था. दिल्ली पुलिस ने इंफाल की पुलिस से जब इन के पते की जांच कराई तो पता चला कि इस पते पर इन नामों के लोग नहीं हैं. इस से यह पता चला कि दोनों बैंक खाते फरजी आईडी से खुलवाए गए थे.

अपहर्त्ताओं के जिस फोन को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया था, उस की लोकेशन भी दिल्ली के चित्तरंजन पार्क स्थित मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. इस के अलावा पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पुलिस को एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर ज्यादा बात होती थी. वह नंबर था 8130973333. उधर पुलिस ने अरुण वाही के फोन की जो काल डिटेल्स निकलवाई थी, उस में इसी नंबर से 18 दिसंबर की रात को ढाई बजे, साढ़े 3 बजे और पौने 4 बजे बात हुई थी.

8130973333 नंबर अब पुलिस के शक के दायरे में आ गया था. पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर और मिला, जिस पर लगातार कई बार बातें हुई थीं. वह नंबर गुड़गांव के जोगिंद्र नाम के व्यक्ति का था. एक पुलिस टीम गुड़गांव रवाना कर दी गई. जोगिंद्र पुलिस टीम को मिल गया.

पुलिस ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि यह नंबर रचना नाम की एक लड़की का है. वह लड़की बड़ी शातिर है. वह सोशल साइट के जरिए पहले लोगों से दोस्ती करती है, उस के बाद उन्हें ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठने की कोशिश करती है. जोगिंद्र ने बताया कि वह भी रचना का शिकार बन चुका है. उस ने पुलिस को रचना का फोटो भी उपलब्ध करा दिया.

जोगिंद्र से बात करने के बाद पुलिस के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. पुलिस ने रचना का मोबाइल फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. जांच के बाद पता चला कि उस ने फोन का सिम भी फरजी आईडी से लिया था. अब पुलिस के पास उस तक पहुंचने का जरिया केवल फोटो ही था.

2 दिन बीत गए थे, अरुण वाही के घर वालों को उन के बारे में कुछ पता नहीं लग रहा था. सोनिया वाही इस बात को सोचसोच कर परेशान थीं कि पता नहीं वह किस हाल में होंगे. इस मामले में लगी पुलिस भी उन के पास जल्द से जल्द पहुंचने का जरिया ढूंढ़ रही थी.

पुलिस को ध्यान आया कि अपहर्त्ताओं ने जब राजेंदर सिंह को फोन किए थे तो उन की लोकेशन चित्तरंजन पार्क में मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. पुलिस टीम रचना का फोटो ले कर दिल्ली के चित्तरंजन पार्क इलाके में पहुंच गई. मंदाकिनी इनक्लेव में पहुंच कर पुलिस ने कोठियों के बाहर तैनात सुरक्षा गार्डों को रचना का फोटो दिखा कर उन से पूछताछ की.

काफी मशक्कत के बाद एक सुरक्षा गार्ड ने लड़की का फोटो पहचान लिया. उस ने यह भी बता दिया कि यह लड़की 52/76 नंबर के मकान में रहती है. पुलिस जब वहां पहुंची तो उस मकान की तीसरी मंजिल पर रचना नाम की वही लड़की मिल गई, जिस का फोटो उन के पास था. उस के साथ 2 नाइजीरियन युवक भी थे.

उसी कमरे के एक कोने में अरुण वाही भी बैठे मिले. पुलिस के पास अरुण वाही का भी फोटो था, जो उन के बेटे निखिल ने दिया था. पुलिस ने सब से पहले अरुण वाही को अपने कब्जे में लिया. इस के बाद रचना सहित दोनों नाइजीरियन युवकों को हिरासत में ले लिया.

अरुण वाही को सकुशल बरामद कर के पुलिस खुश थी, क्योंकि पुलिस का पहला मकसद उन्हें सकुशल बरामद करना था. पुलिस तीनों को पूछताछ के लिए थाना जनकपुरी ले आई. रचना से जब पूछताछ की गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. फिर उस ने सोशल साइट के जरिए लोगों को फांसने से ले कर उन्हें ब्लैकमेल करने तक की जो कहानी बताई, वह बड़ी दिलचस्प निकली.

रचना का पूरा नाम रचना नायक राजपूत था. वह मूलरूप से हरियाणा के शहर फरीदाबाद के रहने वाले प्यारेलाल की बेटी थी. प्यारेलाल की 7 बेटियां थीं, जिन में से रचना चौथे नंबर की थी. प्यारेलाल प्रौपर्टी डीलर थे. उसी से होने वाली आमदनी से वह घर का खर्च चलाते थे. अन्य बेटियों की तरह वह रचना को भी पढ़ाना चाहते थे, लेकिन रचना ने नौवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी.

वह अति महत्त्वाकांक्षी थी. कुछ दिन घर बैठने के बाद उस ने फरीदाबाद के ही एक प्रौपर्टी डीलर के यहां रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. यह नौकरी रचना ने अपने शौक पूरे करने के लिए की थी. लेकिन प्यारेलाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. उन्होंने उसे डांटा और उस की नौकरी छुड़वा दी. रचना को अपने पिता का यह तुगलकी फरमान अच्छा नहीं लगा. उन के दबाव में उस ने नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन घर वालों से नाराज हो कर वह पश्चिमी दिल्ली के नवादा क्षेत्र में रहने वाली अपनी बहन के घर चली गई. यह करीब 5 साल पहले की बात है.

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 2

इजाबेला बहुत ही खूबसूरत लंबीछरहरी लड़की थी. उस के चेहरे पर ऐसी कशिश थी कि उस की उम्र का कोई भी नौजवान उस की ओर आकर्षित हो सकता था. फिलिप के दिमाग में खतरे की घंटी बज उठी.

तभी डौल्टन ने उस के करीब आ कर कहा, ‘‘मि. फिलिप, हम चाहते हैं कि पुरानी बातों को भुला कर अब हम अच्छे दोस्त बन जाएं.’’

‘‘ऐसा कुछ मेरे लिए मुमकिन नहीं है.’’ फिलिप ने बेरुखी से कहा.

डौल्टन भौचक्का रह गया. वह कुछ कहता, उस के पहले ही फिलिप ने उठते हुए कहा, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए, रात काफी हो चुकी है.’’

फिलिप एलेक्स के करीब पहुंचा और उस का बाजू पकड़ कर बोला, ‘‘एलेक्स बेहतर होगा कि तुम भी हमारे साथ चलो, काफी वक्त हो गया है.’’

‘‘डैडी, मैं अभी रुकना चाहता हूं, आप और आंटी जाइए. मैं बाद में आ जाऊंगा.’’ एलेक्स ने इत्मीनान से कहा.

घर आते हुए फिलिप ने बहन रोजा से कहा, ‘‘डौल्टन के यहां पार्टी में आ कर हम ने गलती तो नहीं की? कहीं ऐसा न हो, हमें बाद में पछताना पड़े.’’

‘‘ऐसा क्या हो गया, जो हमें पछताना पड़ेगा?’’ रोजा ने पूछा.

‘‘डौल्टन ने अपनी खूबसूरत बेटी को चारा बना कर मेरे बेटे के पास भेजा है, ताकि वह उसे अपने जाल में फंसा सके.’’

‘‘तुम्हारा मतलब इजाबेला से है?’’

‘‘हां, देखा नहीं, वह एलेक्स से कैसे हंसहंस कर बातें कर रही थी.’’

‘‘फिलिप, तुम नफरत में अंधे हो चुके हो. ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘मैं बहुत दूर की सोचने वालों में हूं. यह जायदाद और दौलत मैं ने अपनी अक्ल और इसी सोच की बदौलत बनाई है. मुझे साफ दिख रहा है कि डौल्टन इजाबेला को माध्यम बना कर मेरी दौलत हड़पना चाहता है. क्योंकि उसे पता है कि एलेक्स मेरा एकलौता बेटा है और यह सब उसी का है.’’

रोजा ने फिलिप को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘मन में तसल्ली रखो, ऐसा कुछ नहीं है.’’

फिलिप स्टडी रूम में बैठ कर एलेक्स का इंतजार करने लगा. जब वह आया तो उसे देख कर फिलिप को लगा कि उस का बेटा इतना खूबसूरत है कि कोई भी लड़की उसे पसंद कर सकती है.

उसे इस तरह बैठे देख एलेक्स ने कहा, ‘‘लगता है, आप को पार्टी पसंद नहीं आई?’’

‘‘रोजा ने मुझे वहां जाने के लिए मजबूर किया था, वरना मैं ऐसे लोगों के यहां कतई नहीं जाता.’’

‘‘ऐसे लोगों से आप का मतलब, कहीं आप इजाबेला के बारे में तो..?’’

‘‘तुम इजाबेला के बारे में मेरे विचार क्यों जानना चाहते हो?’’

‘‘इसलिए कि मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’’ एलेक्स ने कहा.

फिलिप एकदम से उठ कर गुस्से से चीखा, ‘‘तुम पागल तो नहीं हो गए हो एलेक्स? मैं तुम्हें भी अपनी तरह दूर तक सोचने वाला समझता था. तुम ने एक ही मुलाकात में इतना बड़ा फैसला ले लिया. अपनी और उस की हैसियत देखो, डौल्टन की हमारे आगे क्या औकात है? और वह लड़की, जो गंवार सी है, तुम से उम्र में भी 4 साल बड़ी है.’’

‘‘डैड, आप नफरत में भले ही आंटी की दलीलें रद्द कर देते हैं, लेकिन मैं अपनी चाहत में आप की सारी दलीलें रद्द करने को मजबूर हूं. मुझे पहली मुलाकात में ही वह बहुत अच्छी लगी, इसीलिए मैं ने उस से शादी का फैसला कर लिया है.’’

गुस्से में गिलास दीवार पर मारते हुए फिलिप ने कहा, ‘‘बंद करो यह बकवास. वह कमीना मुझ से बदला लेना चाहता है. इसीलिए अपनी बेटी को तुम्हारे पीछे लगा दिया है. वह मेरी जायदाद पाने के लिए बेटी का इस्तेमाल कर रहा है.’’

‘‘डैड, मुझे मालूम था कि आप यही कहेंगे, इसलिए मैं इजाबेला से शादी कर के कैलिफोर्निया जा रहा हूं. आप चाहें तो मुझे अपनी जायदाद से बेदखल कर सकते हैं.’’

एलेक्स की बात खत्म होते ही रोजा कमरे में दाखिल हुई. फिलिप ने उस से कहा, ‘‘देखा तुम ने, सुनी इस की बातें. मैं नशे में नहीं हूं.’’

रोजा व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, ‘‘भइया, शराब के नशे से ज्यादा घातक दौलत का नशा होता है.’’

एलेक्स पैर पटकते हुए कमरे से बाहर चला गया.

फिलिप ने झुंझला कर कहा, ‘‘रोजा, वह गरीब, गंवार मेरा रिश्तेदार कैसे बन सकता है?’’

‘‘तुम्हारे दौलत के गुरूर की वजह से ही तुम्हारी बीवी तुम्हें ठुकरा कर चली गई. अब तुम्हारे बेटे की बारी है, जिसे तुम कहते हो कि बीवी से ज्यादा प्यार करते हो. लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हें सब से ज्यादा प्यार दौलत से है.’’ रोजा ने तल्खी से कहा.

‘‘रोजा, मैं एलेक्स के लिए इजाबेला के बारे में सोच भी नहीं सकता.’’

‘‘तो क्या तुम उस की शादी किसी प्रिंसेस से कराना चाहते हो?’’

फिलिप गुस्से से पैर पटक कर रह गया. 2 सप्ताह तक खामोशी रही. एलेक्स ने फिलिप से कोई बात नहीं की. उस ने भी उस से कुछ नहीं पूछा. लेकिन रोजा से उसे पता चला कि एलेक्स इजाबेला से रोज मिलता था.  फिलिप समझ गया कि मामला बहुत आगे बढ़ चुका है. ऐसे में अगर वह जल्दबाजी में कोई फैसला लेता है तो बेटे को हमेशा के लिए खो सकता है.

उस ने काफी सोचविचार कर एक योजना बनाई और एलेक्स को पास बैठा कर बड़े प्यार से बोला, ‘‘मुझे अफसोस है कि उस दिन मैं ने तुम से प्यार से बात नहीं की. शायद ऐसा उम्र के अंतर की वजह से हुआ है. मुझे लगता है कि मैं तुम्हें इजाबेला से शादी की इजाजत दे दूं.’’

एलेक्स इस तरह खामोश बैठा रहा, जैसे उस की बात से उसे कोई खुशी नहीं हुई. फिलिप ने कहा, ‘‘एक शर्त है. शर्त क्या, तुम्हारे लिए चैलेंज है. तुम इजाबेला से शादी कर सकते हो, लेकिन एक साल बाद भी तुम्हारे जज्बात वही रहने चाहिए, जो इस समय हैं. तब मैं समझूंगा कि भावनाओं में बह कर तुम ने यह फैसला नहीं लिया है.’’

‘‘मुझे मंजूर है. मैं यह शर्त आप की दौलत के लिए नहीं, बल्कि यह साबित करने के लिए मान रहा हूं कि प्यार का संबंध दौलत से नहीं, दिल से होता है. अब यह बताइए कि मुझे कहां जाना होगा?’’ एलेक्स ने गंभीरता से जवाब दिया.

फिलिप ने उस की अक्लमंदी की दाद दी. उस ने कहा, ‘‘तुम जहां चाहो, जा सकते हो. लेकिन उस से पहले मैं डौल्टन और उस के परिवार वालों से मिलना चाहता हूं. क्योंकि मैं इजाबेला और तुम्हारी उपस्थिति में उन से कुछ बातें करना चाहता हूं.’’

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 2

सबइंसपेक्टर इनाम को मैं ने जबलपुर में फौजी के पास भेजा. फौजी का पता उस के पिता से ले लिया था. उसे भेज कर मैं ने अपने मुखबिरों को लगा दिया कि वह करामत, मुनव्वरी, जाहिद, करामत की पत्नी और उन सब के परिवार के बारे में पता करे.

अगले दिन मुनव्वरी का पति जाहिद एक आदमी को ले कर मेरे पास आया. उस आदमी ने बताया कि उस के एक रिश्तेदार का उस के पास खत आया था कि वह रात की गाड़ी से अपने मातापिता और बच्चों के साथ आ रहा है. अपने उन रिश्तेदारों को लेने के लिए वह कल रात स्टेशन पहुंचा. जिस गाड़ी से उन्हें आना था, वह आई, लेकिन वे रिश्तेदार प्लेटफौर्म पर दिखाई नहीं दिए.

मैं काफी देर तक उन्हें इधरउधर घूम कर देखता रहा. उसी समय मैं ने वहां करामत को देखा. वह जबलपुर जाने वाली गाड़ी में रात साढ़े 11 बजे सवार हो रहा था. उस के पीछे एक आदमी भी था. उस ने सिर पर कंबल इस तरह से ओढ़ा हुआ था कि उस का मुंह दिखाई नहीं दे रहा था. वह भी करामत के पीछेपीछे गाड़ी में चढ़ गया था.

मुझे कल ही पता चला कि जाहिद की पत्नी घर से गायब हो गई है. मैं ने जाहिद को करामत और कंबल ओढ़े आदमी के साथ ट्रेन में सवार होने की बात बताई तो जाहिद ने झट से कह दिया कि उस के साथ कंबल ओढ़े हुए मुनव्वरी ही थी. जाहिद के साथ आए उस आदमी को मैं ने गवाहों की सूची में शामिल कर लिया और उस से कह दिया कि मेरे पूछे बिना वह कहीं बाहर नहीं जाएगा.

2 दिनों बाद सबइंसपेक्टर जबलपुर से वापस आ गया. उस ने बताया कि करामत वहां नहीं पहुंचा है.

उसी बीच मुनव्वरी का पिता मलिक नूर अहमद मेरे औफिस में आया. आते ही उस ने कप्तान की तरह पूछा, “थानेदार साहब तफ्तीश कहां तक पहुंची है?” मैं ने उसे गोलमोल जवाब दे दिया.

उस ने कहा, “मलिक साहब, मुझे यह मामला कुछ और ही दिखाई देता है. मुझे लगता है कि जाहिद ने ही मेरी बेटी और करामत को कहीं गायब करा दिया है. यह भी हो सकता है हत्या करा दी हो.”

“मलिक नूर अहमद साहब.” मैं ने कहा, “क्या आप ने हत्यारे देखे हैं? अलगअलग आदमियों को उन के घरों से गायब कराना, उन की हत्या कराना, कोई ऐसेवैसे आदमी का काम नहीं है. यह किसी पक्के उस्ताद का काम है. मैं ने जाहिद को परखा है, वह ऐसा आदमी नहीं है.”

“मलिक साहब, आप ने केवल जाहिद को देखा है,” उस ने एक गांव का नाम ले कर कहा, “आप ने उस के रिश्तेदारों को नहीं देखा. वे मामूली बात पर हत्याएं कर देते हैं. लड़ाई और मारकुटाई को तो वे मामूली बात समझते हैं.”

जिस गांव का उस ने नाम लिया था, वह गांव मेरे ही थाने में आता था. मुझे उस गांव का एक घराना याद आ गया. उस घराने ने हर थानेदार को मुसीबत में डाला हुआ था. उस गांव में वास्तव में ज्यादातर लोग खुराफाती किस्म के थे.

उस ने कहा, “मलिक साहब, मैं ने अपनी बेटी जाहिद को दे तो दी थी, लेकिन बेटी ने उस के घर में एकएक दिन एकएक साल के बराबर काटे हैं. वह उसे गालियां देता था, मारता था और सब से गंदी हरकत यह थी कि वह उसे चरित्रहीन कहता था.”

मैं ने पूछा, “चरित्रहीनता का आरोप किसी एक आदमी के साथ लगाता था या वैसे ही चरित्रहीन कहता था.”

“अजी उस की एक बात हो तो बताऊं, पूरा मोहल्ला उस से बहुत दुखी था. आप इस केस को इस तरह न लें कि करामत उसे ले कर भाग गया है, इस केस को दूसरे तरीके से भी देखें.” उस ने मशविरा दिया.

मलिक नूर अहमद ने मेरा इतना दिमाग चाटा कि मैं कुछ सोचने के काबिल नहीं रहा. उस ने चलतेचलते एक बात यह भी कही कि उस की बेटी मुनव्वरी अपने पति से इतनी तंग थी कि उसे उस घर से भाग जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझा.

उसी दिन उसी मोहल्ले का एक सम्मानित आदमी मेरे पास एक डाक का लिफाफा ले कर आया. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में एक पत्र और 5-5 के 3 नोट निकले. लिफाफा करामत के नाम था. लिफाफा लाने वाले के साथ एक आदमी और था. उसी के खेत में यह लिफाफा पड़ा मिला था. उस समय गेंहू की फसल एक फुट ऊंची थी.

मैं उन्हें ले कर खेत में उस जगह पहुंचा, जहां लिफाफा पड़ा मिला था. साफ लग रहा था कि वहां से 2-3 आदमी गुजरे हैं. पास के 2 और खेतों को देखा तो वहां भी पौधे टूटे हुए थे. वे मेंड़ों पर सीधे चलते गए थे. जहां से लिफाफा मिला था, उस से लगभग 200 गज दूर एक पैर का स्लीपर मिला था. उन दिनों लोग घरों में स्लीपर पहना करते थे. वह स्लीपर नया था. पुराना होता तो मैं समझ लेता कि इसे फेंका गया होगा.

उस स्लीपर को उठा कर मैं आगे चला गया. जहां खेत खत्म होते थे, वहां जमीन डेढ़-दो गज नीची ढलान पर थी. आगे झाडिय़ां थीं. दूसरा स्लीपर झाडिय़ों में मिला. मैं वहीं रुक गया और जिस आदमी को वह लिफाफा मिला था, उसे दौड़ा कर मैं ने करामत के बाप और भाइयों को बुलवा लिया. बाप और भाइयों को वे स्लीपर दिखा कर पूछा कि वे करामत के तो नहीं हैं.

उन्होंने बताया कि करामत तो उन से अलग दूसरी जगह पर अपनी पत्नी के साथ रहता था, इसलिए कह नहीं सकते कि स्लीपर किस के हैं. फिर मैं उन स्लीपरों को ले कर करामत के घर पहुंचा. वहां उस की पत्नी मिली. करामत की पत्नी को मैं ने वे स्लीपर दिखा कर पूछा, “क्या करामत ऐसे स्लीपर पहनता था?”

“ये उन्हीं के लगते हैं,” उस ने कहा, “2-3 दिन पहले ही तो उन्होंने खरीदे थे.”

“घर में उस के और भी कोई जूते हैं?” मैं ने पूछा.

उस ने कहा, “जी हां, 2 जोड़ी जूते पड़े हैं.”

मेरे कहने पर वह जूते उठा लाई. मैं ने स्लीपर और जूतों के तलवे देखे, दोनों का साइज एक जैसा था. मैं ने पूछा, “करामत के पास कितने जोड़े हैं?”

“यही 2 जोड़े हैं, जिन्हें वह बाहर जाने पर पहनते थे और यह स्लीपर घर में पहनने के हैं.”

“जरा याद करो कि जब वह घर से निकला था तो क्या पहने था?” मैं ने पूछा.

“मुझे अच्छी तरह याद है, वह यही स्लीपर पहने थे. पाजामा और कमीज पहनी थी, ऊपर पुराना स्वेटर था.”

इस तरह कुरेदतेकुरेदते पता चला कि करामत दफ्तर जाता था तो सलवारकमीज और अच्छे प्रकार का स्वेटर और कोट पहनता था. अगर उसे शहर से बाहर जाना होता था तो वह यही कपड़े पहनता था. चूंकि वह एक औरत को ले कर गया है, निश्चित उस ने अच्छे कपड़े पहने होंगे.

भांजी को प्यार के जाल में फांसने वाला पुजारी – भाग 2

हैदराबाद दक्षिण भारतीय फिल्मों और धारावाहिकों के लिए बहुत बड़ा गढ़ माना जाता है. अप्सरा भी फिल्मों और धारावाहिकों में काम कर के नाम और दाम कमाना चाहती थी. हैदराबाद में उस की जानपहचान वाला कोई नहीं था. वह ज्योतिष और भाग्य पर आंख मूंद कर भरोसा करती थी.

अप्सरा के भाग्य में फिल्मों और धारावाहिकों में काम करने का योग है कि नहीं, यह पता करने के लिए अप्सरा और उस की मां नजदीक स्थित बांगारू माइसम्मा मंदिर गई, जहां का पुजारी था अय्यागिरि वेंकट सूर्या साईंकृष्णा. साईंकृष्णा मंदिर का पुजारी तो था ही, वह एमबीए कर के बिल्डिंग निर्माण की ठेकेदारी भी करता था.

अरुणा और अप्सरा साईंकृष्णा से मिलीं. इस के बाद अप्सरा कुंडली दिखाने और भगवान के दर्शन के लिए मंदिर आने लगी. मंदिर में आतेआते अप्सरा की पुजारी से अच्छी जानपहचान हुई, फिर कुछ दिनों में दोस्ती हो गई. अब तक पुजारी का दिल अप्सरा पर आ चुका था. इस की वजह यह थी कि पुजारी वहां अकेला ही रहता था.

पुजारी को भांजी से हुआ प्यार

पुजारी साईंकृष्णा का दिल अप्सरा पर आया तो वह उस की हर तरह से मदद करने लगा. अप्सरा और उस की मां पर प्रभाव जमाने के लिए उस ने रिश्ता भी जोड़ लिया. अरुणा को उस ने मुंहबोली बहन बना लिया तो अप्सरा उस की भांजी हो गई. अप्सरा साईंकृष्णा को अन्ना कहती थी.

अप्सरा मंदिर आती ही रहती थी. तभी साईंकृष्णा को भांजी अप्सरा से प्यार हो गया. साईंकृष्णा ने रिश्ते की आड़ में उस पर डोरे डालतेडालते आखिर उसे अपने प्रेम जाल में फंसा ही लिया. साईंकृष्णा शादीशुदा था और उस के 2 बच्चे भी थे. परंतु उस की पत्नी बच्चों के साथ गांव में रहती थी. इसलिए यहां पुजारी को अप्सरा के साथ रंगरलिया मनाने का खुला मौका मिल गया था.

मंदिर परिसर में पुजारी के लिए कमरा बना था. उसी कमरे में अप्सरा साईंकृष्णा से मिलती थी. अप्सरा को पूरी उम्मीद थी कि पुजारी साईंकृष्णा उस से विवाह कर के उसे पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेगा. इसलिए उस से संबंध बढ़ाने में उसे कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई, लेकिन जब उसे पता चला कि पुजारी तो शादीशुदा ही नहीं, बल्कि 2 बच्चों का बाप भी है तब उसे तकलीफ तो बहुत हुई, पर उस ने न पुजारी का साथ छोड़ा और न ही उस की पत्नी बनने की उम्मीद छोड़ी.

अप्सरा लगातार पुजारी साईंकृष्णा से मिलती रही, पर अब वह उस पर दबाव बनाने लगी कि वह अपनी पत्नी को छोड़ कर उस से विवाह कर ले. साईंकृष्णा अप्सरा को झूठे आश्वासन दे कर उस का शारीरिक शोषण करता रहा. उन के अवैध संबंधों की भनक किसी को नहीं लगी.

अप्रैल, 2023 के अंतिम सप्ताह में अप्सरा ने साईंकृष्णा को बताया कि वह प्रैग्नेंट है. उस ने कहा कि वह इस बच्चे को जन्म देगी. यह सुन कर साईंकृष्णा घबरा गया. उस ने गर्भपात कराने की सलाह दी. अप्सरा ने मना करते हुए कहा, “मैं अपनी पहली संतान की हत्या का पाप कतई नहीं करूंगी.”

पर चालाक साईंकृष्णा ने अप्सरा को उलटीसीधी पट्टी पढ़ा कर, समझाबुझा कर गर्भपात करा ही दिया. इस के बाद अप्सरा आक्रामक हो गई और पुजारी पर विवाह के लिए दबाव डालने लगी. अब इस बात को ले कर दोनों के बीच खूब कहासुनी भी होने लगी.

अप्सरा की धमकी से डर गया पुजारी

जल्दी ही अप्सरा की समझ में आ गया कि इस पुजारी को केवल उस के शरीर में रुचि है. इसे न उस की जिंदगी से कोई मतलब है न उस की भावनाओं से. वह उसे खिलौने की तरह खेल कर किनारे कर देना चाहता है. वह उसे पत्नी नहीं बनाना चाहता यानी उस से विवाह नहीं करना चाहता.

फिर तो अप्सरा रणचंडी बन गई. उस ने साईंकृष्णा को चेतावनी देते हुए कहा, “मेरी यह आखिरी चेतावनी है. अगर तुम ने मुझ से विवाह नहीं किया तो इसी मंदिर में बैठ कर तुम्हारे पराक्रम की पूरी कथा सभी को सुनाऊंगी, अखबारों में छपवाऊंगी, वीडियो बना कर वायरल करूंगी. मेरा तो जो होना होगा, वह होगा ही, पर तुम्हारी भी इज्जत की ऐसीतैसी कर के रहूंगी.”

अब पुजारी को अप्सरा अप्सरा नहीं, बला लगने लगी थी. अब रातदिन वह इसी सोच में डूबा रहने लगा कि किस तरह इस बला से छुटकारा पाए. अप्सरा अब पूरी तरह बिंदास हो कर पुजारी को धमकियां दे रही थी, इसलिए वह बुरी तरह घबराया हुआ था.

आखिर काफी मानसिक परेशानी झेल कर उस ने अप्सरा से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाने का उपाय खोज ही लिया. उस ने गूगल पर सर्च किया कि इंसान को कैसे मारा जाए.

योजना के अनुसार, 3 जून, 2023 को उस ने अप्सरा को मनाने के बाद कहा, “चलो, आज लांग ड्राइव पर चलते हैं. चलते हुए रास्ते में विचार करते हैं. फिर शायद कोई रास्ता निकल ही आए.”

अप्सरा को भला क्यों ऐतराज होता. फिर पुजारी साईंकृष्णा के मन में क्या खिचड़ी पक रही है, उसे कहां पता था. वह सहज तैयार हो गई. अप्सरा ने पुजारी के कहने पर घर में मां को बताया कि उसे सहेलियों के साथ भद्राचलम जाना है. उस की सारी सहेलियां शम्साबाद में मिलेंगी. मामा यानी पुजारी साईंकृष्णा उसे अपनी कार से शम्साबाद तक छोड़ देंगे.

पुजारी ने लिखी मौत की स्क्रिप्ट

3 जून, 2023 को पुजारी साईंकृष्णा ने अप्सरा को उस के घर से कार में बिठा लिया और शम्साबाद की ओर चल पड़ा. वह शम्साबाद जाने के बजाय अप्सरा को कार में बैठा कर घुमाता रहा. अप्सरा को नींद की गोलियां खाने की आदत थी. नींद की गोली खा कर कार में बैठेबैठे जब अप्सरा को नींद आ गई तो साईंकृष्णा ने देर रात को शम्साबाद के पहले ही सुलतानपल्ली के गौशाला के पास सुनसान जगह में कार रोक दी. वह इस जगह को पहले ही देख गया था.

कार रुकी तो अप्सरा की आंखें खुल गईं. उस ने कहा, “यह कहां कार रोक दी?”

“अपना निर्णय सुनाने के लिए.” साईंकृष्णा ने कहा, “मैं ने खूब सोचविचार कर तय कर लिया है कि मुझे तुम से विवाह नहीं करना है. तुम से जो हो सके तुम कर लो. हमारा विवाह किसी भी हालत में संभव नहीं है.”

पुजारी का यह फैसला सुनते ही अप्सरा भडक़ उठी. वह हाथापाई पर उतर आई तो साईंकृष्णा ने उसे जोर से धक्का दिया. वह जमीन पर गिर पड़ी. इस के बाद उस ने कार में रखा एक बड़ा पत्थर उठाया और दांत भींच कर पूरी ताकत से अप्सरा के सिर पर दे मारा, जिस से उस का सिर फूट गया. उस के सिर से खून बहने लगा, लेकिन साईंकृष्णा अप्सरा के सिर पर उस पत्थर से तब तक वार करता रहा, जब तक वह मर नहीं गई. वह कार में 2 पत्थर साथ ले कर ही आया था.

पुजारी ने अप्सरा की हत्या कर के पत्थर से उस का चेहरा इस तरह कुचल दिया था कि लाश मिलने पर भी पहचानी न जा सके. इस के बाद उस ने वहां आसपास लकडिय़ों की तलाश की ताकि लाश को यहीं जला दे.

जीजा के चक्रव्यूह में साली

‘‘जीजू, हम लोगों को इस तरह मिलते हुए करीब एक साल हो चुका है. आखिर इस तरह हम लोग चोरीछिपे कब तक मिलते रहेंगे. अगर घर वालों को हमारे संबंधों के बारे में पता चल गया तो क्या होगा? इस से पहले कि किसी को हमारे संबंधों के बारे में पता चले, तुम पापा से बात कर के मेरा हाथ मांग लो वरना मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.’’ कविता ने अपने जीजा वीरेंद्र दयाल से कहा.

‘‘कविता तुम चिंता मत करो. मौका आने दो, मैं पापा से बात कर लूंगा. लेकिन मुझे नहीं लगता कि तुम्हारी बड़ी बहन के रहते वह तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में दे देंगे. मैं खुद इसी उलझन में हूं कि इस मामले को कैसे सुलझाऊं.’’ वीरेंद्र दयाल ने कहा.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. तुम्हें यह बात क्लियर करनी पड़ेगी कि मेरे साथ शादी करोगे या नहीं? यह सब तुम्हें पहले सोचना चाहिए था. पहले तो बड़े लंबेचौड़े वादे करते थे. कहते थे कि तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं. वो वादे कहां गए. इस का मतलब तो यह हुआ कि तुम मेरी इज्जत से खिलवाड़ करने के लिए मुझे बहकाते रहे.’’

‘‘नहीं कविता, ऐसी बात नहीं है. तुम मुझे गलत मत समझो. मैं आज भी तुम से उतना ही प्यार करता हूं. मगर इस समय मैं दुविधा में फंसा हूं. तुम मेरे मन की स्थिति को समझने की कोशिश करो.’’

‘‘देखो जीजू, टालतेटालते कई महीने हो चुके हैं. मैं अब और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. मैं तुम्हें 15 दिन का समय देती हूं. इन 15 दिनों में अगर तुम ने पापा से मेरा हाथ नहीं मांगा तो मैं खुद अपना घर हमेशा के लिए छोड़ कर तुम्हारे घर आ जाऊंगी.’’ कविता ने धमकी दी.

‘‘नहीं कविता, ऐसा मत करना. मैं कोई न कोई रास्ता निकाल लूंगा.’’ वीरेंद्र दयाल ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी. वीरेंद्र जानता था कि कविता बहुत जिद्दी स्वभाव की है. वह एक बार मन में जो ठान लेती थी, उसे पूरा कर के ही मानती थी. इसी वजह से वीरेंद्र उस से परेशान रहता था.  कविता ने अपने जीजा को 15 दिन के अंदर घर वालों से शादी की बात करने का अल्टीमेटम दिया था. इस से पहले कि वीरेंद्र दयाल अपने सासससुर से बात करता, कविता रहस्यमय तरीके से गायब हो गई.

दरअसल 5 फरवरी, 2014 को शाम 4 बजे के करीब कविता बाजार जाने को कह कर घर से निकली थी. जब वह 2 घंटे तक घर नहीं लौटी तो मां ने उस का फोन मिलाया, लेकिन उस का फोन बंद मिला. उन्होंने ऐसा कई बार किया. फोन हर बार बंद मिला. बेटी का मामला था. इस से वह घबरा गईं. वीरेंद्र सिंह उस समय तक अपनी ड्यूटी से नहीं लौटे थे. मां ने बेटी के अभी तक घर न लौटने वाली बात पति को फोन से बता दी.

शाम का अंधेरा घिर आया था. जवान बेटी के घर न लौटने पर वीरेंद्र सिंह को भी चिंता हो रही थी. घर पहुंचने के बाद उन्होंने अपने स्तर से उसे ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन उस के बारे में कोई खबर नहीं मिली. अंत में वह आदर्श नगर स्थित पुलिस चौकी पहुंचे और चौकीप्रभारी कुलदीप सिंह को बेटी के गायब होने की जानकारी दी.

चौकीप्रभारी ने कविता की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद यह सूचना अपने अधिकारियों को दे दी और कविता के हुलिए के साथ गुमशुदगी की खबर पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा बल्लभगढ़ जिले के सभी थानों को प्रसारित करा दी. इस के साथ ही इस मामले की जांच एएसआई लाजपत को सौंप दी.

कविता 20-22 साल की थी. वह इतनी नादान नहीं थी कि उस के कहीं खो जाने की संभावना हो. ऐसे में 2 ही बातें हो सकती थीं. एक यह कि उस का किसी ने फिरौती के लिए अपहरण किया हो, दूसरी यह कि वह अपने किसी बौयफ्रेंड के साथ कहीं चली गई हो.   पूरी रात गुजर गई, लेकिन कविता घर नहीं लौटी. उस के घर वाले उस के इंतजार में ऐसे ही बैठे रहे. इस से पहले वह बिना बताए इतनी देर तक कभी गायब नहीं रही थी. इसलिए घर वालों के दिमाग में उसे ले कर तरहतरह के खयाल आ रहे थे.

उधर पुलिस भी अपने स्तर से कविता के बारे में पता लगाने की कोशिश कर रही थी. पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर कविता की काफी ज्यादा और देर तक बातें होती थीं. उस नंबर के बारे में कविता के घर वालों से पूछा गया तो पता चला वह नंबर कविता के जीजा वीरेंद्र दयाल का है.

चूंकि वीरेंद्र दयाल उन का रिश्तेदार था, इसलिए घर वालों को उन दोनों की बातों पर कोई आश्चर्य नहीं था. अलबत्ता पुलिस को उन के बीच होने वाली लंबी बातों पर शक जरूर हुआ.  चूंकि कविता के मातापिता ने अपने दामाद पर कोई शक वगैरह नहीं जताया था, इसलिए पुलिस ने उस समय वीरेंद्र दयाल से पूछताछ करना जरूरी नहीं समझा. लेकिन उस पर शक जरूर बना रहा.

देखतेदेखते कविता को रहस्यमय तरीके से गायब हुए 15 दिन बीत गए. उस के घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. उधर पुलिस को भी कविता के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. अंतत: उस का पता लगाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में एसआई कुलदीप, एएसआई लाजपत, हेडकांस्टेबल संजीव सिंह आदि को शामिल किया गया.

एसआई कुलदीप ने कविता के पिता वीरेंद्र सिंह से कहा, ‘‘अब तक जो भी जांच की गई है, उस में घूमफिर कर शक आप के दामाद वीरेंद्र दयाल पर ही जा रहा है. इसलिए उन से पूछताछ करने पर आप को ऐतराज नहीं करना चाहिए.’’

‘‘ऐतराज की कोई बात नहीं है, लेकिन आप खुद सोचिए कि वह हमारे दामाद हैं, हमें नहीं लगता कि वह ऐसा कुछ कर सकते हैं, जिस से हमारे परिवार को ठेस लगे. हमारे घर के बाहर के जो लोग शक के दायरे में आ रहे हैं, आप उन से पूछताछ कीजिए.’’ वीरेंद्र सिंह बोले.

‘‘अगर वीरेंद्र दयाल से पूछताछ करने के बाद हमें कोई जानकारी नहीं मिलती तो हम उसे छोड़ देंगे.’’ चौकीप्रभारी ने कहा.

चौकीप्रभारी ने वीरेंद्र सिंह को काफी समझाया. इस का नतीजा यह हुआ कि वह अपने दामाद वीरेंद्र दयाल को 21 फरवरी, 2014 को साथ ले कर पुलिस चौकी आदर्श नगर आ गए.   कुलदीप सिंह ने वीरेंद्र दयाल से कविता के बारे में मालूमात की तो वह यही बताता रहा कि उसे कविता के बारे में कोई जानकारी नहीं है और उस के गायब होने के कई दिनों पहले से उस की उस से कोई बात नहीं हुई थी.

चौकीप्रभारी के पास कविता और वीरेंद्र दयाल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स थी. इसलिए वीरेंद्र दयाल ने उन से जो बात बताई उस पर चौकीप्रभारी को शक हुआ. क्योंकि 4 फरवरी को शाम करीब साढ़े 5 बजे उस की कविता से बात हुई थी. उस काल की डिटेल जब वीरेंद्र दयाल को दिखाई गई तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया. वह उस रिकौर्ड को झुठला नहीं सकता था.

उस की इस घबराहट को चौकीप्रभारी भांप गए. उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हें कविता के बारे में सब पता है. अब बेहतर यही होगा कि तुम उस के बारे में सचसच बता दो, वरना…’’

सच्चाई यह थी कि वीरेंद्र दयाल को पता था कि कविता कहां है, इसलिए उस ने सोचा कि अगर उस ने पुलिस को नहीं बताया तो वह पिटाई कर के सच उगलवा लेगी. इसलिए इस से पहले कि पुलिस उस के साथ सख्ती करे, उस ने सच्चाई उगलते हुए कहा, ‘‘सर मैं ने कविता को मार दिया है.’’

उस की बात सुन कर चौकीप्रभारी चौंके, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘सर, मैं सच कह रहा हूं. उस ने मेरे सामने ऐसे हालात खड़े कर दिए थे कि उस की हत्या करने के अलावा मेरे सामने कोई दूसरा चारा नहीं था.’’ वीरेंद्र दयाल ने कहा.

‘‘उस की लाश कहां है?’’

‘‘लाश मैं ने आगरा कैनाल में डाल दी थी.’’

आगरा कैनाल यमुना नदी से निकाली गई है. यह दिल्ली के मदनपुर खादर से शुरू हो कर मथुरा, आगरा होते हुए राजस्थान के भरतपुर तक जाती है. वीरेंद्र दयाल ने पुलिस को बताया कि उस ने 5 फरवरी, 2014 को कविता की लाश आगरा कैनाल में फेंकी थी.   यानी लाश डाले हुए उसे 15 दिन हो चुके थे. पुलिस ने सोचा कि इस बीच लाश जहां भी पुलिया आदि के पास रुकी होगी, उस क्षेत्र की पुलिस ने उसे बरामद किया होगा.

इसलिए चौकीइंचार्ज कुलदीप ने आसपास के थानों में फोन कर के किसी लड़की की लाश बरामद होने के बारे में जानकारी मांगी. पता चला कि पलवल के सदर थाने के सबइंस्पेक्टर मोहम्मद इलियास ने 8 फरवरी, 2014 को रजवाहा, गोपालगढ़ की पुलिया के पास से एक अज्ञात लड़की की लाश बरामद की थी.  शिनाख्त के लिए उस लाश को रोहतक पीजीआई की मोर्चरी में रखवाया गया था. 4-5 दिनों बाद भी जब उस की शिनाख्त नहीं हो पाई तो 12 फरवरी को उस लाश का अंतिम संस्कार कर दिया गया था.

जिस लड़की की लाश सदर पुलिस ने बरामद की थी, उस के कपड़े आदि सदर थाने में रखे थे. चौकीप्रभारी कुलदीप, एएसआई लापजत, हेडकांस्टेबल संजीत सिंह कविता के पिता वीरेंद्र सिंह को ले कर थाना सदर पहुंचे. वहां एसआई मोहम्मद इलियास ने उन्हें उस अज्ञात लड़की की लाश के फोटो, कपड़े आदि दिखाए.

कपड़े देखते ही वीरेंद्र सिंह रो पड़े. क्योंकि वह कपड़े उन की बेटी कविता के थे. जिस दामाद को वीरेंद्र सिंह अपने बेटे की तरह मानते थे, उस के द्वारा बेटी की हत्या करने पर उन्हें बहुत दुख हुआ. पुलिस चौकी लौटने के बाद जब वीरेंद्र दयाल से पूछताछ की गई तो उस ने कविता की हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी.

दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा का एक जिला है बल्लभगढ़. इसी जिले के सुभाषनगर में बीरेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. वह ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर स्थित यामाहा कंपनी में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां थीं. बड़ी बेटी रेनू की शादी वह 4 साल पहले फरीदाबाद के सेक्टर-8 में रहने वाले धर्मपाल दयाल के बेटे वीरेंद्र दयाल से कर चुके थे.

वीरेंद्र दयाल दिल्ली स्थित एक शिपिंग कंपनी में नौकरी करता था. वह 1 बेटी का बाप भी बन चुका था.  वीरेंद्र सिंह की छोटी बेटी कविता अच्छी नौकरी के लिए पढ़ाई में जुटी थी. वह बीसीए कर रही थी. बीसीए के बाद उस की इच्छा एमसीए करने की थी. लेकिन इस से पहले ही उस के साथ घटी एक घटना ने उस के अरमानों पर पानी फेर दिया.

पढ़ाई के समय ही हर छात्र या छात्रा अपने मन में सोच लेता है कि उसे पढ़लिख कर क्या बनना है. बाद में वह अपने सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश करता है. कविता ने भी कंप्यूटर के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने के सपने देखे थे. उसी के अनुसार वह अपनी पढ़ाई भी कर रही थी.

उसी दौरान उस के जीजा वीरेंद्र दयाल ने उसे अपने प्रेमजाल में फांस लिया. कविता के अंदर अभी दुनियादारी की इतनी समझ नहीं थी. वह तो उस की बातों में फंस कर सच में उस से मोहब्बत करने लगी थी. उसे क्या पता था कि जीजा उस की इज्जत से खिलवाड़ करने के लिए उसे अपनी मीठीमीठी बातों में फांस रहा है.

इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. करीब एक-डेढ़ साल पहले तक दोनों के बीच संबंध जारी रहे. दोनों फोन पर अकसर देर तक बातें करते रहते थे. वीरेंद्र दयाल ने उसे झांसा दे रखा था कि वह रेनू के रहते हुए भी उस से शादी कर लेगा. कविता इसी उम्मीद में थी कि जीजा उस के साथ शादी जरूर करेगा.

कविता जब भी वीरेंद्र दयाल से शादी के लिए कहती, वह कोई न कोई बहाना बना कर टालता रहता. कुछ दिनों तक तो वह उस पर विश्वास करती रही, लेकिन जब उस के सब्र का बांध टूटने लगा तो उस ने जीजा पर शादी का दबाव बढ़ा दिया.

वह जल्द से जल्द शादी करने की जिद करने लगी. वीरेंद्र दयाल फंस चुका था. उस की हालत ऐसी हो गई थी कि वह कविता से न तो शादी कर सकता था और न ही उस से पीछा छुड़ा सकता था. उसे यह उम्मीद नहीं थी कि कविता उस के गले की हड्डी बन जाएगी. उस ने यही सोच कर उस से संबंध बनाए थे कि मौजमस्ती करने के बाद वह उस से किनारा कर लेगा. लेकिन यहां दांव उलटा पड़ गया था.

चूंकि वीरेंद्र दयाल पहले से ही शादीशुदा और एक बेटी का बाप था. पत्नी को वह छोड़ नहीं सकता था और पत्नी के रहते वह उस की छोटी बहन कविता को रख नहीं सकता था. जबकि हालात एक म्यान में 2 तलवार रखने के बन गए थे. अब उस के सामने एक ही रास्ता था कि वह दोनों में से एक को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दे. यही उपाय उसे ठीक लगा.

अंतत: सोचविचार कर उस ने पत्नी के बजाय साली कविता का ही काम तमाम करने का फैसला कर लिया. उस का सोचना था कि कविता को ठिकाने लगा कर उस की गृहस्थी पहले की तरह चलती रहेगी. पूरी योजना बनाने के बाद वीरेंद्र दयाल ने 4 फरवरी, 2014 को कविता को फोन कर के 5 फरवरी को बल्लभगढ़ बस स्टैंड के पास मिलने को कहा.

अगले दिन वीरेंद्र दयाल मोटरसाइकिल से निर्धारित जगह पर पहुंच गया. तय समय पर कविता भी वहां पहुंच गई. दोनों मोटरसाइकिल से इधरउधर घूमते रहे. वीरेंद्र दयाल को अपना मंसूबा पूरा करने के लिए अंधेरा होने का इंतजार था.

शाम 7 बजे के करीब वह उसे ले कर फरीदाबाद सेक्टर-18 पहुंच गया और वहां आगरा कैनाल के किनारे बैठ कर बातें करने लगा.  कविता जीजा के मंसूबे से अनजान थी. उसी दौरान मौका पा कर वीरेंद्र दयाल ने कविता की चुनरी से गला घोंट दिया. कुछ ही पलों में उस की मौत हो गई. इस के बाद आननफानन में उस ने उस की लाश आगरा कैनाल में फेंक दी.

उसे उम्मीद थी कि नहर से लाश बह कर कहीं दूर निकल जाएगी और उस पर किसी को शक भी नहीं होगा. लाश को ठिकाने लगा कर वह अपने घर लौट गया. कविता के घर वाले जब उसे ढूंढ रहे थे तो वीरेंद्र दयाल भी उन के साथ रह कर उसे ढूंढने का नाटक करता रहा.

वीरेंद्र दयाल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली. चौकीइंचार्ज कुलदीप ने उस से विस्तार से पूछताछ के बाद न्यायालय में पेश कर के उसे जेल भेज दिया. फिर तफ्तीश करने के बाद उन्होंने 11 मार्च, 2014 को इस मामले की चार्जशीट न्यायालय में पेश कर दी. कथा संकलन तक अभियुक्त वीरेंद्र दयाल की जमानत नहीं हो सकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 1

पंजाब के शहर लुधियाना के रहने वाले अरुण वाही पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. उन का काम ही ऐसा था कि उन्हें औडिट करने के लिए विभिन्न कंपनियों, फर्मों में जाना पड़ता था. कभीकभी तो उन्हें औडिट के लिए लुधियाना से बाहर भी जाना पड़ता था.

18 दिसंबर, 2013 को भी वह लुधियाना से सुबह 4 बजे की ट्रेन पकड़ कर दिल्ली की किसी कंपनी का औडिट करने के लिए निकले. घर से निकलते समय उन्होंने पत्नी सोनिया वाही को बता दिया था कि वह दिल्ली से 1-2 दिन में लौटेंगे.

जिस दिन अरुण वाही दिल्ली के लिए निकले थे, उसी दिन दोपहर करीब 12 बजे लुधियाना में रहने वाले उन के एक दोस्त राजेंदर सिंह के पास फोन आया. राजेंदर सिंह पंजाब नेशनल बैंक में नौकरी करते थे. चूंकि फोन अरुण के नंबर से आया था, इसलिए उन्होंने काल रिसीव करते ही कहा, ‘‘पहुंच गए दिल्ली?’’

‘‘हां, यह दिल्ली पहुंच गए और अब हमारे कब्जे में हैं.’’ दूसरी तरफ से आई इस आवाज को सुन कर राजेंदर सिंह चौंके, क्योंकि वह आवाज अरुण की नहीं, किसी और की थी. राजेंदर सिंह ने उन से पूछा, ‘‘आप कौन हैं और कहां से बोल रहे हैं?’’

‘‘हम आबिद एंटरप्राइजेज, जनकपुरी दिल्ली से बोल रहे हैं. हम ने अरुण वाही को अपने पास ही रोक रखा है. अगर इन्हें छुड़ाना हो तो हमारे खाते में 4 लाख रुपए जमा करा दें, अन्यथा…’’

‘‘नहीं, आप अरुण को कुछ नहीं कहना. आप ने जितने पैसे मांगे हैं, मिल जाएंगे. लेकिन इस से पहले आप हमारी अरुण से बात तो करा दीजिए.’’ राजेंदर सिंह ने कहा.

‘‘हां, कर लीजिए उन से बात.’’ कहते हुए अपहर्त्ता ने फोन अरुण वाही को दे दिया. कुछ बातें कर के राजेंदर सिंह को जब यकीन हो गया कि जिन से वह बात कर रहे हैं, वह अरुण वाही ही हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘देखो अरुण, मैं तुम से शौर्ट में बात करूंगा. अगर तुम्हें वहां कोई परेशानी न हो तो तुम न कहना और परेशानी हो तो हां में जवाब देना.’’

तब अरुण ने हां में जवाब दिया. इतना सुन कर वह समझ गए कि उन का दोस्त इस समय गहरे संकट में है. मामला गंभीर था, इसलिए राजेंदर सिंह ने अरुण वाही की पत्नी सोनिया वाही को फोन कर के पूरी बात बता दी.

पति के किडनैप हो जाने की खबर सुन कर सोनिया भी हैरान रह गईं कि पता नहीं किस ने यह किया होगा. वह राजेंदर सिंह से ही पूछने लगीं कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? अरुण वाही का एक बेटा निखिल वाही भी चार्टर्ड एकाउंटेंट है. वह दिल्ली में ही था. सोनिया ने पति के किडनैपिंग की बात बेटे को बताई. निखिल उस समय नई दिल्ली एरिया में गोल डाकघर के पास स्थित एक कंपनी का औडिट कर रहा था. पिता के अपहरण की बात सुन कर वह घबरा गया.

चूंकि अपहरण की पहली काल पिता के दोस्त राजेंदर के मोबाइल पर आई थी, इसलिए उस ने सब से पहले उन्हीं से बात की. बातचीत में उसे जब पता चला कि अपहर्त्ताओं ने उस के पिता को दिल्ली में ही बंधक बना कर रखा है तो उस ने तुरंत दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन किया.

गोल डाकखाना क्षेत्र नई दिल्ली जिले में आता है, इसलिए अपहरण कर फिरौती मांगने की खबर पर नई दिल्ली जिला के थाना कनाट प्लेस की पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस तुरंत निखिल के पास पहुंची तो निखिल को राजेंदर सिंह और अपनी मां से जो जानकारी मिली थी, दिल्ली पुलिस को बता दी.

पुलिस को निखिल से यह पता लगा कि उस के पिता को जनकपुरी स्थित आबिद एंटरप्राइजेज में बंधक बना कर रखा गया है. कनाट प्लेस के थानाप्रभारी ने जनकपुरी के थानाप्रभारी राजकुमार से फोन पर बात की और निखिल वाही को थाना जनकपुरी भेज दिया. वहां पर निखिल वाही की तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण कर फिरौती मांगने का मामला दर्ज कर लिया गया.

अपहरण का मामला बेहद संवेदनशील होता है. इस में पुलिस पर इस बात का दबाव रहता है कि किसी भी तरह अपहृत व्यक्ति को सहीसलामत बरामद किया जाए. थानाप्रभारी ने सीए के अपहरण की बात उपायुक्त रणवीर सिंह को बताई तो उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी का गठन कर दिया, जिस में एसआई घनश्याम किशोर, हेडकांस्टेबल बिजेंद्र सिंह, ओमबीर सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम को बताया गया था कि अरुण वाही को जनकपुरी के आबिद एंटरप्राइजेज नाम की फर्म में बंधक बना कर रखा गया है, इसलिए पुलिस टीम इस नाम की फर्म को खोजने में लग गई. जनकपुरी कोई छोटामोटा इलाका नहीं है. पुलिस की जो एक टीम बनी थी, उस के लिए यह काम आसान नहीं था. फर्म का जल्द पता लगाने के लिए डीसीपी ने 6 टीमें और बनाईं और सभी को इस मामले में लगा दिया.

सभी पुलिस टीमें अलगअलग तरीकों से आबिद एंटरप्राइजेज नाम की फर्म को ढूंढ़ने लगीं, लेकिन इस नाम की फर्म कहीं नहीं मिली. अब पुलिस के पास अपहर्त्ताओं तक जाने के लिए कोई रास्ता भी नहीं था. उन्होंने राजेंदर सिंह के पास फिरौती का जो फोन किया था, वह अरुण वाही के फोन से किया गया और उस की लोकेशन दिल्ली के चित्तरंजन पार्क की आ रही थी. एक पुलिस टीम चित्तरंजन पार्क भेजी गई.

इसी बीच राजेंदर सिंह के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं ने फोन कर के फिरौती की रकम 4 लाख से बढ़ा कर 6 लाख कर दी. दरअसल इस से पहले फोन करने पर राजेंदर सिंह ने 4 लाख रुपए देने में कोई आनाकानी नहीं की थी. अपहर्त्ताओं को लगा कि पार्टी मोटी है, इसलिए उन्होंने फिरौती की रकम बढ़ा दी.

इस पर राजेंदर सिंह ने कहा, ‘‘अभी हमारे पास 6 लाख रुपए नहीं हैं. हम 4 लाख रुपए भी इधरउधर से जुगाड़ कर के दे सकते हैं. अब आप यह बता दीजिए कि पैसे कहां पहुंचाने हैं?’’

‘‘आप को आने की जरूरत नहीं है. हम आप को बैंक का एकाउंट नंबर मैसेज कर देंगे, उसी में आप पैसे जमा करा देना. एकाउंट में पैसे जमा होते ही हम वाही को छोड़ देंगे.’’ कहने के बाद अपहर्त्ता ने आईसीआईसीआई बैंक के 2 एकाउंट नंबर राजेंदर सिंह के फोन पर मैसेज कर दिए. ये नंबर थे 246301500161 और 264301500653. राजेंदर सिंह को यह जानकारी मिल चुकी थी कि निखिल ने दिल्ली के थाना जनकपुरी में रिपोर्ट दर्ज करा दी है और दिल्ली पुलिस इस मामले में तेजी से काररवाई कर रही है. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी राजकुमार राजेंदर सिंह से बात भी कर चुके थे.

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 1

फिलिप रौजर की जेब में मौजूद पीले रंग का वह पुराना कागज एक तरह से उस के बाप की वसीयत थी, जिस में उस ने आशीर्वाद के बाद लिखा था कि वह उस के और उस की बहन के लिए भारी कर्ज छोड़े जा रहा है. खानदानी जायदाद और घर रेहन रखने के बाद भाईबहन को वह तकदीर के भरोसे छोड़ कर मौत को गले लगा रहा है. इस के अलावा अब उस के पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं बचा है.

उस वसीयत के साथ फिलिप को 14 साल की एक लड़की और 24 साल के एक नौजवान की याद आ गई, जो बाप के आत्महत्या कर लेने के बाद बेसहारा हो गए थे. उस दिन पूरे 24 साल बाद फिलिप ने डौल्टन का दरवाजा खटखटाने के लिए दरवाजे पर हाथ रखा तो मन में दहक रही बदले की आग के साथ गर्व का अहसास हुआ, क्योंकि अब उस के पास वह ताकत थी, जिस से वह अपना अतीत खरीद सकता था.

डौल्टन ने दरवाजा खोला. उस के सिर के बाल सफेद हो गए थे, चेहरे पर परेशानी और गरीबी साफ झलक रही थी. फिलिप ने तो उसे पहचान लिया, लेकिन वह उसे नहीं पहचान सका, क्योंकि फिलिप अब 24 साल का दुबलापतला नौजवान नहीं, 48 साल का कीमती सूट में लिपटा शानदार व्यक्तित्व का मालिक था.

फिलिप ने हाथ मिलाते हुए गंभीर लहजे में कहा, ‘‘मि. डौल्टन, मैं फिलिप रौजर. क्या अंदर आ सकता हूं?’’

डौल्टन घबरा सा गया. हकला कर बोला, ‘‘ओह मि. रौजर, मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है कि यह आप हैं. आइए, यह आप का ही तो घर है.’’

‘‘है नहीं मि. डौल्टन, था. सचमुच 24 साल पहले यह मेरा ही घर था. लेकिन अब नहीं है.’’

‘‘मि. फिलिप प्लीज, ऐसा मत कहिए. आज भी यह आप का ही घर है. आप अंदर तो आइए.’’ डौल्टन ने बेचैन हो कर कहा.

पूरे 24 सालों बाद फिलिप ने अपने घर में कदम रखा था, जहां आज भी उस का अतीत जिंदा था और उस के मांबाप की यादें थीं. घर की हालत काफी खस्ता हो चुकी थी. वहां रखा फर्नीचर भी काफी पुराना था. हर तरफ गरीबी झलक रही थी. यह सब देख कर फिलिप को खुशी हुई. कीमती पेंटिंग्स, फानूस, बड़ीबड़ी लाइटें, सब गायब थीं.

फिलिप ने एक पुरानी कुर्सी पर बैठते हुए कहा, ‘‘मैं यहां अपने मतलब की जरूरी बात करने आया हूं.’’

‘‘हां…हां, जरूर कहिएगा, पहले मैं आप को अपने घर वालों से तो मिलवा दूं.’’

‘‘मैं यहां किसी से मिलने नहीं, सिर्फ काम की बात करने आया हूं.’’ कह कर फिलिप ने साथ लाया बड़ा सा सूटकेस खोला और फर्श पर बिछे कालीन पर पलट दिया. नोटों का ढेर सा लग गया. उस ढेर की ओर इशारा करते हुए उस ने कहा, ‘‘आप ने विज्ञापन दिया है कि आप यह घर बेच रहे हैं. इसलिए मैं यहां आया हूं. शायद मुझ से ज्यादा इस घर की कीमत कोई दूसरा नहीं दे सकता. जितनी रकम चाहो, इस में से निकाल लो.’’

डौल्टन की आंखें हैरत से चौड़ी हो गईं. बातचीत सुन कर डौल्टन की पत्नी भी उस कमरे में आ गई थी. नोटों के उस ढेर को देख कर वह भी हैरान रह गई. फिलिप ने डौल्टन को घूरते हुए कहा, ‘‘24 साल पहले आप ने बड़ी होशियारी से मेरे बाप को मार दिया था.’’

‘‘यह सरासर गलत है मिस्टर रौजर,’’ डौल्टन ने जल्दी से कहा, ‘‘दीवालिया हो जाने के बाद आप के पिता ने आत्महत्या की थी.’’

‘‘आप ने उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर किया था. उस के बाद मुझे और मेरी बहन को धक्के खाने और भूखे मरने के लिए घर से निकाल दिया था. लेकिन संयोग देखो, पांसा पलट गया. बताइए, इस घर के लिए आप को कितनी रकम चाहिए?’’

‘‘मैं इसे 5 लाख डौलर में बेचना चाहता हूं.’’ डौल्टन ने धीरे से कहा.

फिलिप ने गर्व से कहा, ‘‘ये 7 लाख डौलर हैं, लेकिन मेरी एक शर्त है, आप को आज शाम तक यह मकान खाली कर देना होगा.’’

डौल्टन और उस की पत्नी का मुंह हैरत से खुला रह गया. पल भर बाद डौल्टन ने कहा, ‘‘लेकिन मि. फिलिप कानूनी काररवाही में समय लगेगा.’’

‘‘कानूनी काररवाही होती रहेगी, मुझे आज शाम तक घर चाहिए.’’

डौल्टन ने कांपते हाथों से नोट समेटते हुए कहा, ‘‘मि. फिलिप यह मकान आप का हुआ, लेकिन मैं भी उसूलों वाला आदमी हूं. इसलिए आप जो 2 लाख डौलर ज्यादा दे रहे हैं, वे मुझे नहीं चाहिए.’’

फिलिप के गुरूर को धक्का लगा. क्योंकि 2 लाख डौलर डौल्टन ने लौटा दिए थे. इस तरह फिलिप रौजर का पुश्तैनी मकान उस के कब्जे में आ गया था.

इस के कुछ दिनों बाद फिलिप की बहन रोजा ने बाल संवारते हुए कहा, ‘‘फिलिप, तुम्हें तो आज डौल्टन के यहां पार्टी में जाना था?’’

‘‘नहीं, मैं नहीं जा पाऊंगा उस के यहां पार्टी में.’’ फिलिफ ने बेरुखी से कहा.

‘‘यह गलत बात है फिलिप. हमारे उस के यहां से पुराने संबंध हैं, इसलिए उस के यहां तुम्हें जरूर जाना चाहिए.’’ रोजा ने भाई को समझाया.

‘‘मुझे उस आदमी से नफरत है. उसी की वजह से मेरे बाप ने आत्महत्या की थी.’’

‘‘यह इल्जाम झूठा है फिलिप. हमारे पिताजी यह मकान और जायदाद जुए और शराब में हार गए थे. इस में खरीदार का क्या दोष? उस ने पैसे दिए थे, बदले में यह सब ले लिया. अब तुम्हें इस में क्या परेशानी है, तुम ने तो अपना मकान वापस ले लिया है. अब डौल्टन के बच्चों का क्या हक है कि वे तुम से नफरत करें, तुम्हें जलील करें? अगर वह आत्महत्या कर लेता तो क्या तुम हत्यारे कहे जाओगे?’’

‘‘तुम तो वकालत बहुत अच्छी कर लेती हो.’’ फिलिफ ने हार मानते हुए कहा.

डौल्टन का नया घर काफी छोटा और पुराना था. उस के इस घर को देख कर फिलिप को बहुत खुशी हुई थी. लेकिन डौल्टन ने दिल से उस का स्वागत किया था. इस के बाद उस ने अपने बगल खड़ी एक लड़की की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘मि. फिलिप, यह मेरी बेटी इजाबेला है.’’

फिलिप ने इजाबेला पर एक नजर डाली और एक किनारे बैठ गया. उस ने किसी से बात नहीं की तो लोग भी उस से दूरी बनाए रहे. शायद वे उस की संपन्नता से सहमे हुए थे. डौल्टन ने वह पार्टी अपना कर्ज अदा करने और यह घर खरीदने की खुशी में दी थी.

पैग ले कर फिलिप धीरेधीरे चुस्कियां ले रहा था. क्योंकि वह शराब उसे पसंद नहीं थी. यह बात उस के चेहरे से ही पता चल रही थी. कर्ज अदा करने और मकान खरीदने में डौल्टन ने काफी रकम खर्च कर दी थी.   गुजरबसर के लिए उस की बेटी इजाबेला एक स्कूल में पढ़ा रही थी तो वह किसी अखबार के दफ्तर में छोटामोटा काम कर रहा था. पार्टी में आए मेहमान खानेपीने में मशगूल थे.

अचानक फिलिप की नजर अपने बेटे एलेक्स पर पड़ी. कीमती सूट में लिपटा शानदार पर्सनैलिटी वाला एलेक्स सब से अलग नजर आ रहा था. वह हंसहंस कर बातें कर रहा था. इजाबेला भी उस से उसी तरह बातें कर रही थी.