रात में सभी सो गए, जबकि हरमीत अपने कमरे में जागता रहा. सब के सो जाने के बाद उस ने शराब पी. वह हत्याओं के बारे में सोचने लगा. शराब के नशे के चलते करीब 12 बजे उस की आंख लग गई. दिमाग में चूंकि हत्या का भूत सवार था, इसलिए 3 बजे आंख खुल गई. हरमीत ने एक बार फिर शराब पी और 4 बजे के करीब जय सिंह बाथरूम जाने के लिए उठे तो उसे आहट से पता चल गया.
उस ने ठान लिया कि अब वह एकएक को मार कर ही रहेगा. जय सिंह बाथरूम से वापस आए तो अचानक हरमीत उन के कमरे में पहुंच गया और चाकू से ताबड़तोड़ वार करने लगा.
बेटे का यह रूप देख कर जय सिंह हक्केबक्के रह गए. उन्होंने बचाव के लिए हाथ उठाए तो उस ने हाथों पर भी चाकू मारे. उम्र का तकाजा था, जय सिंह ज्यादा विरोध नहीं कर सके. हरमीत ने पेट से ले कर गर्दन तक कई वार किए तो लहूलुहान हो कर वह दरवाजे के पास गिर गए और दम तोड़ दिया. पिता की हत्या करने के बाद उसे घबराहट होने लगी तो वह अपने कमरे में गया और शराब का एक पैग बना कर पिया.
उस के सिर पर खून सवार था. इस के बाद वह ड्राइंगरूम कम बेडरूम में पहुंचा और वहां सो रही कुलवंत कौर पर हमला बोल दिया. जागने पर वह हरमीत से भिड़ गईं. मामूली संघर्ष के बाद उस ने उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया. उसी बेडरूम में हरजीत भी अपने दोनों बच्चों के साथ सो रही थी. हरमीत ने अगला निशाना उसे बनाया. गर्भवती होने के कारण वह ज्यादा विरोध नहीं कर सकी.
उस की 3 साल की मासूम बेटी सुखमणि को भी उस ने मार दिया. उसी बीच 6 साल के कंवलजीत की आंख खुल गई तो वह बिस्तर से उतर कर रोता हुआ भागा. हरमीत किसी को भी जिंदा नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने भागते कंवलजीत की पीठ पर 2 वार किए. दोनों ही वार हलके थे. वह 2 सोफों के बीच छिप कर रोते हुए गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘प्लीज मामा, मुझे मत मारो.’’
हरमीत कंवलजीत को प्यार तो करता था, परंतु उस वक्त वह भी उसे अपना दुश्मन नजर आ रहा था. अचानक उसे ख्याल आया कि कंवलजीत को जिंदा छोड़ कर अपने पक्ष में गवाह बनाया जा सकता है कि हत्याएं किसी और ने की हैं. मन में यह ख्याल आते ही उस ने कंवलजीत से गुर्राकर कहा, ‘‘रोना बंद कर और मेरी बात सुन. तुझ से कोई पूछे तो बताना कि 3 नकाबपोश लोगों ने ये हत्याएं की हैं. तू ने सच बताया तो तेरा भी यही हाल करूंगा.’’
कंवलजीत थरथर कांप रहा था, उस ने रोते हुए कहा, ‘‘ठीक है मामा, मैं ऐसा ही कहूंगा. मुझे मत मारो.’’
हरमीत ने उसे छोड़ दिया. लेकिन डर की वजह से वह वहीं छिपा रहा. हरमीत ने सोचा कि सुबह लेगों को बताएगा कि 3 नकाबपोश बदमाशों ने पूरे परिवार की हत्या की है. गवाह के तौर पर वह कंवलजीत को सामने कर देगा. कहानी को सच बनाने के लिए उस ने अपने हाथ पर चाकू मार लिया.
घर में खून का दरिया बहाने वाले का अपना थोड़ा खून बहा तो उस ने हाथ पर रूमाल बांध लिया. अपनी खून सनी कमीज उस ने उतार कर रख दी और चाकू भी फेंक दिया. हरमीत अपने कमरे में गया और एक बार और शराब पी. नशा अधिक होने के चलते हरमीत आगे की कोई प्लानिंग नहीं कर सका. उसे किसी अंजाम की परवाह भी नहीं रही. इसी बीच वह सो गया.
सुबह नौकरानी आई तो वह हड़बड़ा कर उठा और राजो को टालने की कोशिश की. परंतु वह दोबारा आई तो वह सिर पकड़ कर बरामदे में बैठ गया. लोग आए तो कंवलजीत भी बाहर आ गया. लोगों के पूछने पर उस ने कुछ नहीं बताया. पुलिस को भी उस ने हरमीत द्वारा समझाई गई बात ही बताई, लेकिन पिता के आने पर उस का डर कम हुआ तो उस ने सच बता दिया.
इस के बाद निर्दयी हरमीत को हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने उस की मां अनीता और भाई को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की, लेकिन हत्या या षडयंत्र में उन का कोई हाथ नहीं निकला. जांच के लिए हरमीत के फिंगरप्रिंट व खून का नमूना ले कर प्रयोगशाला भिजवा दिया, ताकि घटनास्थल पर मिले सुबूतों से उस का मिलान किया जा सके.
पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों को भी हरमीत की कू्ररता चौंका गई. जय सिंह के शरीर पर 24, कुलवंत के शरीर पर 9, हरजीत के शरीर पर 7 और सुखमणि के शरीर पर चाकू के 5 घाव पाए गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार हरजीत के गर्भ में पलने वाला बच्चा लड़का था.
अगले दिन लक्खीबाग श्मशान घाट पर गमगीन माहौल में सभी का अंतिम संस्कार कर दिया गया. हत्याओं के चश्मदीद गवाह मासूम कंवलजीत के बाल मन पर डरावने मंजर का गहरा असर पड़ा था. वह गुमशुम था. हरमीत के प्रति लोगों में गुस्सा था. हर कोई उसे कोस रहा था, जबकि हरमीत को इन हत्याओं का कोई अफसोस नहीं था.
पुलिस ने गर्भस्थ शिशु की मौत के मामले में उस के खिलाफ धारा 316 भी लगा दी थी. पुलिस ने उसे विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया. उसे देखने के लिए अदालत में काफी भीड़ लगी थी. लोगों के गुस्से को देखते हुए सुरक्षा की काफी व्यवस्था थी. इस के बावजूद लोगों ने उसे पीटने का प्रयास किया. अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया.
अपनी बिगड़ैल प्रवृत्ति, संपत्ति के लालच व नफरत में हरमीत इतना अंधा हो गया कि अपनों का ही हत्यारा बन बैठा. कथा लिखे जाने तक वह सलाखों के पीछे था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित