बाप का इश्क बेटी को ले डूबा – भाग 2

जरूरी काररवाई पूरी कर के मुंबई पुलिस बच्ची के शव को अपने कब्जे में ले कर मुंबई लौट आई और उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया. इधर जब अंजलि की हत्या की बात उस बिल्डिंग और आसपड़ोस के रहने वालों को पता लगी तो लोगों में आक्रोश फूट पड़ा.

देखते ही देखते पुलिस स्टेशन के सामने हजारों की भीड़ जमा हो गई. भीड़ पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगी. भीड़ तब तक शांत नहीं हुई, जब तक एसएसपी राजतिलक रोशन, एसपी मंजुनाथ शिंगे और एएसपी जयंत वंजवले ने पुलिस थाने आ कर 24 घंटे के अंदर हत्यारे को गिरफ्तार करने का आश्वासन नहीं दिया.

मामले को तूल पकड़ते देख पुलिस के बड़े अधिकारियों की आंखों से नींद गायब हो गई थी. उन्होंने जांच टीम को शीघ्र से शीघ्र अंजलि के हत्यारों को गिरफ्तार करने का निर्देश दिए. पुलिस टीम ने अंजलि के परिवार और आसपास के लोगों से गहराई से पूछताछ करने के अलावा इलाके में लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली. लोकमान्य तिलक स्कूल के एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में अंजलि एक महिला के साथ नालासोपारा स्टेशन की तरफ जाते हुए दिखाई दी.

वह महिला कौन थी और कहां से आई थी, यह जानने के लिए पुलिस टीम ने उस का स्केच बनवा कर जब मामले की जांच की तो पता चला कि वह महिला कई बार अंजलि के स्कूल और उस के घर साईं अपर्णा बिल्डिंग के आसपास संदिग्ध अवस्था में दिखाई दी थी. जिस दिन अंजलि गायब हुई थी, उस दिन भी वह बिल्डिंग परिसर में आई थी.

पुलिस जांच का चक्र तेजी से घूम रहा था. उस महिला का स्केच पूरे शहर में चिपकवाने के अलावा जनपद के सभी पुलिस थानों को भी भेज दिया गया. इस के अलावा स्केच अंजलि के पिता संतोष सरोज को भी दिखाया गया.

स्केच देखते ही संतोष ने अपना सिर पीट लिया. उस ने कहा कि यह तो उस की प्रेमिका है. पुलिस ने संतोष को सीसीटीवी कैमरे में अंजलि के साथ जाने वाली उस महिला की फुटेज दिखाई तो संतोष ने कहा कि यह उस की प्रेमिका अनीता वाघेला है और यह नालासोपारा (पूर्व) के नगीनदास पाड़ा इलाके में रहती है.

बिना देर किए पुलिस टीम अनीता के घर पहुंच गई. वह घर पर ही मिल गई. पुलिस उसे हिरासत में ले कर थाने लौट आई. पुलिस ने जब उस से अंजलि की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने आसानी से अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. अनीता से पूछताछ के बाद अंजलि की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह प्यार में चोट खाई नागिन के प्रतिशोध वाली निकली—

22 साल की अनीता का रंग हालांकि बहुत साफ नहीं था, लेकिन कुदरत ने उसे कुछ इस तरह गढ़ा था कि जो भी उसे देखता, देखता ही रह जाता था. सांवले सौंदर्य की मालकिन अनीता के जिस्म की कसावट और फिगर देख मनचले गहरी सांसें लेते हुए फिकरे कसते थे. इस के अलावा अनीता खुले विचारों वाली महत्त्वाकांक्षी युवती थी.

आमतौर पर अनीता जैसी महत्त्वाकांक्षी युवतियां जो सपने देखती हैं, उन्हें किसी भी कीमत पर या कोई भी जोखिम उठा कर पूरा करने की कोशिश करती हैं.

यह अलग बात है कि इस के लिए उन्हें जो कीमत चुकानी पड़ती है, वह कभीकभी भारी पड़ जाती है. तब उन के पास हाथ मलने और अपनी नादानियों पर पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाता. यही हाल अनीता का हुआ था. वह आंख मूंद कर संतोष सरोज पर भरोसा कर के प्यार करने की भूल कर बैठी थी.

मूलरूप से गुजरात की रहने वाली अनीता वाघेला अपने मातापिता और भाईबहनों के साथ नालासोपारा (पूर्व) के नगीनदास पाड़ा इलाके में रहती थी. वह अपने और परिवार के लिए कैटरिंग का काम किया करती थी. उस की और संतोष सरोज की मुलाकात करीब 7 साल पहले नगीनदास पाड़ा के आटो स्टैंड पर हुई थी.

उस दिन वह अपने काम पर जाने के लिए काफी लेट हो रही थी. तब वह अपनी मंजिल तक संतोष के आटोरिक्शा से पहुंची थी. अनीता आटो से उतर कर चली तो गई लेकिन उस की शोख चंचल निगाहें, मुसकराता चेहरा संतोष के दिमाग में ही घूमता रह गया. उस की पहली ही झलक में संतोष अपना होशोहवास खो बैठा था, यह जानते हुए भी कि वह एक शादीशुदा और एक बच्ची का बाप है.

लेकिन वह यह सब भूल कर अनीता का सामीप्य पाना चाहता था. इस के लिए वह अकसर नगीनदास पाड़ा के आटो स्टैंड पर अनीता के आने का इंतजार करता था. वह दिख जाती तो वह मुसकराते हुए उस से अपने आटो में चलने की बात कहता. अनीता को तो किसी न किसी आटो से जाना ही था, लिहाजा वह संतोष के आग्रह पर उस के ही आटो में बैठ जाती.

2-4 बार संतोष के आटो से आनेजाने के बाद अनीता और संतोष के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. स्वयं को अविवाहित बता कर उस ने अनीता को अपने प्रभाव में ले लिया. बातों और मिलने का सिलसिला शुरू हो गया तो दोनों एकदूसरे के करीब आ गए. जब भी अनीता को संतोष के साथ कहीं घूमने के लिए जाना होता तो वह संतोष को बेझिझक फोन कर बुला लेती. इस तरह दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.

दोस्ती का दायरा बढ़ा तो अनीता के मन में संतोष के प्रति प्यार का अंकुर फूट पड़ा. वह सरोज को अपने मनमंदिर में बैठा कर गृहस्थ जीवन के सुंदर सपने देखने लगी. जिस का संतोष ने भरपूर फायदा उठाया.

उस ने अनीता को शादी का लालच दे कर उस का अपनी पत्नी की तरह इस्तेमाल किया. 7 सालों में अनीता 2 बार गर्भवती भी हुई. लेकिन संतोष ने अपनी कोई न कोई मजबूरी बता कर उस का गर्भपात करवा दिया था.

वासना में बनी पतिहंता : पत्नी ही बनी कातिल – भाग 2

एएसआई सुनील कुमार ने मृतक की फैक्ट्री में उस के साथ काम करने वालों के अलावा उस के मालिक प्रवीण गर्ग से भी पूछताछ की. यहां तक कि मृतक के पड़ोसियों से भी मृतक और उस के परिवार के बारे में जानकारी हासिल की गई, पर कोई क्लू हाथ नहीं लगा.

सब का यही कहना था कि सुनील सीधासादा शरीफ इंसान था. उस की न तो किसी से कोई दुश्मनी थी और न कोई लड़ाईझगड़ा. अपने घर से काम पर जाना और वापस घर लौट कर अपने बच्चों में मग्न रहना ही दिनचर्या थी.

एएसआई सुनील की समझ में एक बात नहीं आ रही थी कि मृतक की लाश इतनी दूर सिटी सेंटर के पास कैसे पहुंची, जबकि उस के घर आने का रूट चीमा चौक की ओर से था. उस की इलैक्ट्रिक साइकिल भी नहीं मिली. महज साइकिल के लिए कोई किसी की हत्या करेगा, यह बात किसी को हजम नहीं हो रही थी.

बहरहाल, अगले दिन मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था और उस का गला चेन जैसी किसी चीज से घोटा गया था. मृतक के शरीर पर चोट के भी निशान थे. इस से यही लग रहा था कि हत्या से पहले मृतक की खूब पिटाई की गई थी. उस की हत्या का कारण दम घुटना बताया गया.

पोस्टमार्टम के बाद लाश मृतक के घर वालों के हवाले कर दी गई. सुनील की हत्या हुए एक सप्ताह बीत चुका था. अभी तक पुलिस के हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा था. मृतक की साइकिल का भी पता नहीं चल पा रहा था.

एएसआई सुनील कुमार ने एक बार फिर इस केस पर बड़ी बारीकी से गौर किया. उन्होंने मृतक की पत्नी, भाई और अन्य लोगों के बयानों को ध्यान से पढ़ा. उन्हें पत्नी सुनीता के बयानों में झोल नजर आया तो उन्होंने उस के फोन की कालडिटेल्स निकलवा कर चैक कीं.

सुनीता की काल डिटेल्स में 2 बातें सामने आईं. एक तो उस ने पुलिस को यह झूठा बयान दिया था कि पति ने उसे 8 बजे फोन कर कहा था कि वह घर आ रहा है, खाना तैयार रखना.

लेकिन कालडिटेल्स से पता चला कि मृतक ने नहीं बल्कि खुद सुनीता ने उसे सवा 8 बजे और साढ़े 8 बजे फोन किए थे. दूसरी बात यह कि सुनीता की कालडिटेल्स में एक ऐसा नंबर था, जिस पर सुनीता की दिन में कई बार घंटों तक बातें होती थीं. घटना वाली रात 21 मई को भी मृतक को फोन करने के अलावा सुनीता की रात साढ़े 7 बजे से ले कर रात 11 बजे तक लगातार बातें हुई थीं.

यह फोन नंबर किस का था, यह जानने के लिए एएसआई सुनील कुमार ने मृतक के भाई और बेटे से जब पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की. बहरहाल, एएसआई सुनील कुमार ने 2 महिला सिपाहियों को सादे लिबास में सुनीता पर नजर रखने के लिए लगा दिया. साथ ही मुखबिरों को सुनीता की जन्मकुंडली पता लगाने के लिए कहा. इस के अलावा उन्होंने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह नंबर आई ब्लौक निवासी मनदीप सिंह उर्फ दीपा का है.

मनदीप पेशे से आटो चालक था. सन 2018 में वह जालसाजी के केस में जेल भी जा चुका था. मनदीप शादीशुदा था और उस की 3 साल की एक बेटी भी थी. हालांकि उस की शादी 4 साल पहले ही हुई थी, लेकिन उस की पत्नी से नहीं बनती थी. पत्नी ने उस के खिलाफ वूमन सेल में केस दायर कर रखा था.

सुनीता पर नजर रखने वाली महिला और मुखबिरों ने यह जानकारी दी कि सुनीता और मनदीप के बीच नाजायज संबंध हैं. इस बीच फोरैंसिक लैब भेजा गया मृतक का फोन ठीक हो कर आ गया, जिस ने इस हत्याकांड को पूरी तरह बेनकाब कर दिया.

एएसआई सुनील कुमार ने उसी दिन सुनीता को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो वह अपने आप को निर्दोष बताते हुए पुलिस को गुमराह करने के लिए तरहतरह की कहानियां सुनाने लगी. जब उसे महिला हवलदार सुरजीत कौर के हवाले किया गया तो उस ने पूरा सच उगल दिया.

सुनीता की निशानदेही पर उसी दिन 3 जून को 30 वर्षीय मनदीप सिंह उर्फ दीपा, 18 वर्षीय रमन राजपूत, 23 वर्षीय सन्नी कुमार और 21 वर्षीय प्रकाश को भाई रणधीर सिंह चौक से जेन कार सहित गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन्होंने सुनीता और मनदीप के कहने पर सुनील की हत्या की थी.

पांचों अभियुक्तों को उसी दिन अदालत में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में सुनील हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह पति और जवान बच्चों के रहते परपुरुष की बांहों में देहसुख तलाशने वाली एक औरत के मूर्खतापूर्ण कारनामे का नतीजा थी.

सुनील जब धागा फैक्ट्री में अपनी नौकरी पर चला जाता था तो सुनीता घर पर अकेली रह जाती थी. इसी के मद्देनजर उस ने पास ही स्थित प्ले वे स्कूल में चपरासी की नौकरी कर ली. पतिपत्नी के कमाने से घर ठीक से चलने लगा.

इसी प्ले वे स्कूल में मनदीप उर्फ दीपा की बेटी भी पढ़ती थी. पहले मनदीप की पत्नी अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने और लेने आया करती थी, पर एक बार मनदीप अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने आया तब उस की मुलाकात सुनीता से हुई.

सुनीता को देखते ही वह उस का दीवाना हो गया. हालांकि सुनीता उस से उम्र में 10-11 साल बड़ी थी, पर उस में ऐसी कशिश थी, जो मनदीप के मन भा गई. यह बात करीब 9 महीने पहले की है.

बाप का इश्क बेटी को ले डूबा – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी के रहने वाले भालचंद्र सरोज अपने परिवार के साथ महानगर मुंबई के तालुका वसई के उपनगर नालासोपारा की साईं अपर्णा बिल्डिंग में लगभग 30 सालों से रह रहे थे. अपनी रोजीरोटी के लिए उन्होंने उसी बिल्डिंग के परिसर में किराने की दुकान खोल ली थी.

परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटा संतोष सरोज था, जिस की शादी उन्होंने मालती नाम की लड़की से कर दी थी. संतोष की एक बेटी थी अंजलि. भालचंद्र सरोज का एक छोटा सा परिवार था, उन का जीवन हंसीखुशी के साथ व्यतीत हो रहा था. संतोष 10वीं जमात से आगे नहीं पढ़ सका था, इसलिए भालचंद्र ने उसे एक आटोरिक्शा खरीदवा दिया था. किराने की दुकान और आटो से जो कमाई होती थी, उस से उन की घरगृहस्थी आराम से चल रही थी.

अंजलि अपने मातापिता के अलावा दादादादी की भी लाडली थी. संतोष भले ही खुद नहीं पढ़लिख सका था, लेकिन बेटी को उच्चशिक्षा दिलाना चाहता था. इसीलिए उस ने अंजलि का दाखिला जानेमाने लोकमान्य तिलक इंगलिश स्कूल में करवा दिया था. परिवार में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. इसी दौरान एक ऐसी घटना घटी, जिस का दुख यह परिवार जिंदगी भर नहीं भुला सकेगा.

बात 24 मार्च, 2018 की है. संतोष सरोज की 5 वर्षीय बेटी अंजलि हमेशा की तरह उस शाम 7 बजे बच्चों के साथ खेलने के लिए बिल्डिंग से नीचे आई तो फिर वह वापस नहीं लौटी. वह बच्चों के साथ कुछ देर तक तो अपने दादा भालचंद्र सरोज की दुकान के सामने खेलती रही. फिर वहां से खेलतेखेलते कहां गायब हो गई, किसी को पता नहीं चला.

जब वह 8 बजे तक वापस घर नहीं आई तो उस की मां मालती को उस की चिंता हुई. जिन बच्चों के साथ वह खेलने गई थी, मालती ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की. उसी दौरान संतोष घर लौटा तो मालती ने बेटी के गुम हो जाने की बात पति को बताते हुए उस का पता लगाने के लिए कहा.

संतोष बिल्डिंग से उतरने के बाद अंजलि को इधरउधर ढूंढने लगा. वहीं पर उस के पिता की दुकान थी. वह पिता की दुकान पर पहुंचा और उन से अंजलि के बारे में पूछा. पोती के गायब होने की बात भालचंद्र को थोड़ी अजीब लगी. उन्होंने बताया कि कुछ देर पहले तक तो वह यहीं पर बच्चों के साथ खेल रही थी. इतनी देर में कहां चली गई.

उन्हें भी पोती की चिंता होने लगी. वह भी दुकान बंद कर के बेटे के साथ उसे ढूंढने के लिए निकल गए. संभावित जगहों पर तलाशने के बाद भी जब वह नहीं मिली तो उन की चिंता और बढ़ गई.

अंजलि के गायब होने की बात जब पड़ोस के लोगों को पता चली तो वे भी उसे खोजने लगे. वहां आसपास खुले गटर और नालों को देखने के बाद भी अंजलि का कहीं पता नहीं चला. बेटी की चिंता में मां मालती की घबराहट बढ़ती जा रही थी. चैत्र नवरात्रि होने की वजह से लोग यह भी आशंका व्यक्त कर रहे थे कि कहीं उसे तंत्रमंत्र की क्रियाएं करने वालों ने तो गायब नहीं कर दिया.

सभी लोग अंजलि की खोजबीन कर के थक गए तो उन्होंने पुलिस की मदद लेने का फैसला किया. लिहाजा वे रात करीब 11 बजे तुलीज पुलिस थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी किशोर खैरनार से मिल कर उन लोगों ने उन्हें सारी बातें बताईं और अंजलि की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. अंजलि का सारा विवरण दे कर उन्होंने उस का पता लगाने का अनुरोध किया. थानाप्रभारी ने अंजलि का पता लगाने का आश्वासन दे कर उन्हें घर भेज दिया.

थाने से घर लौटे सरोज परिवार का मन अशांत था. उन का दिल अपनी मासूम बच्ची को देखने के लिए तड़प रहा था. वह रात उन के लिए किसी कालरात्रि से कम नहीं थी. सुबह होते ही संतोष सरोज का परिवार फिर से अंजलि की खोज में निकल गया. उन्होंने उस की गुमशुदगी के पैंफ्लेट छपवा कर रेलवे स्टेशनों के अलावा बसस्टैंड और सार्वजनिक जगहों पर लगवा दिए.

उधर थानाप्रभारी किशोर खैरनार ने अंजलि की गुमशुदगी की जांच सहायक पीआई के.डी. कोल्हे को सौंप दी. के.डी. कोल्हे ने जब मामले पर गहराई से विचार किया, तो उन्हें लगा कि या तो बच्ची का फिरौती के लिए अपहरण किया गया है या फिर उसे किसी दुश्मनी या तंत्रमंत्र क्रिया के लिए उठा लिया गया है.

उन्होंने सरोज परिवार से भी कह दिया कि यदि किसी का फिरौती मांगने के संबंध में फोन आए तो वह उस से प्यार से बात करें और इस की जानकारी पुलिस को जरूर दे दें.

जांच के लिए पीआई के.डी. कोल्हे ने पुलिस की 6 टीमें तैयार कीं, जिस में उन्होंने एपीआई राकेश खासरकर, नितिन विचारे, शिवाजी पाटिल, एसआई भरत सांलुके, हैडकांस्टेबल सुरेश शिंदे, कांस्टेबल भास्कर कोठारी, महेश चह्वाण आदि को शामिल किया. सभी टीमें अलगअलग तरीके से मामले की जांच में जुट गईं.

पुलिस ने अंजलि के फोटो सहित गुमशुदगी का संदेश अनेक वाट्सऐप गु्रप में भेजा और उसे अन्य लोगों को भी भेजने का अनुरोध किया. पीआई के.डी. कोल्हे दूसरे दिन अपनी जांच की कोई और रूपरेखा तैयार करते, इस के पहले ही उन्हें स्तब्ध कर देने वाली एक खबर मिली.

खबर गुजरात के नवसारी रेलवे पुलिस की तरफ से आई थी. रेलवे पुलिस ने मुंबई पुलिस को बताया कि जिस बच्ची की उन्हें तलाश है, वह बच्ची मृत अवस्था में नवसारी रेलवे स्टेशन के बाथरूम में पड़ी मिली है. किसी ने गला काट कर उस की हत्या की है.

सूचना मिलते ही पुलिस की एक टीम अंजलि के परिवार वालों को ले कर तुरंत नवसारी रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हो गई. नवसारी रेलवे पुलिस ने जब संतोष सरोज और उस के परिवार वालों को बच्ची की लाश दिखाई तो वे सभी दहाड़ मार कर रोने लगे, क्योंकि वह लाश अंजलि की ही थी.

वासना में बनी पतिहंता : पत्नी ही बनी कातिल – भाग 1

सुनील अपनी ड्यूटी से रोजाना रात 9 बजे तक अपने घर वापस पहुंच जाता था. पिछले 12 सालों से उस का यही रूटीन था. लेकिन 21 मई, 2019 को रात के 10 बज गए, वह घर नहीं लौटा.

पत्नी सुनीता को उस की चिंता होने लगी. उस ने पति को फोन मिलाया तो फोन भी स्विच्ड औफ मिला. वह परेशान हो गई कि करे तो क्या करे. घर से कुछ दूर ही सुनीता का देवर राहुल रहता था. सुनीता अपने 18 वर्षीय बेटे नवजोत के साथ देवर राहुल के यहां पहुंच गई. घबराई हुई हालत में आई भाभी को देख कर राहुल ने पूछा, ‘‘भाभी, क्या हुआ, आप इतनी परेशान क्यों हैं?’’

‘‘तुम्हारे भैया अभी तक घर नहीं आए. उन का फोन भी नहीं मिल रहा. पता नहीं कहां चले गए. मुझे बड़ी चिंता हो रही है. तुम जा कर उन का पता लगाओ. मेरा तो दिल घबरा रहा है. उन्होंने 8 बजे मुझे फोन पर बताया था कि थोड़ी देर में घर पहुंच रहे हैं, खाना तैयार रखना. लेकिन अभी तक नहीं आए.’’

45 वर्षीय सुनील मूलरूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले मोहनलाल का बड़ा बेटा था. सुनील के अलावा उन के 3 बेटे और एक बेटी थी. सभी शादीशुदा थे. सुनील लगभग 13 बरस पहले काम की तलाश में लुधियाना आया था. कुछ दिनों बाद यहीं के जनकपुरी इंडस्ट्रियल एरिया स्थित प्रवीण गर्ग की धागा फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. फिर वह यहीं के थाना सराभा नगर के अंतर्गत आने वाले गांव सुनेत में किराए का घर ले कर रहने लगा. बाद में उस ने अपनी पत्नी और बच्चों को भी लुधियाना में अपने पास बुला लिया.

जब सुनील ने धागा फैक्ट्री में अपनी पहचान बना ली तो अपने छोटे भाई राहुल को भी लुधियाना बुलवा लिया. उस ने राहुल की भी एक दूसरी फैक्ट्री में नौकरी लगवा दी. राहुल भी अपने बीवीबच्चों को लुधियाना ले आया और सुनील से 2 गली छोड़ कर किराए के मकान में रहने लगा.

पिछले 12 सालों से सुनील का रोज का नियम था कि वह रोज ठीक साढे़ 8 बजे काम के लिए घर से अपनी इलैक्ट्रिक साइकिल पर निकलता था और पौने 9 बजे अपने मालिक प्रवीण गर्ग की गुरुदेव नगर स्थित कोठी पर पहुंच जाता. वह अपनी साइकिल कोठी पर खड़ी कर के वहां से फैक्ट्री की बाइक द्वारा फैक्ट्री जाता था. इसी तरह वह शाम को भी साढ़े 8 बजे छुट्टी कर फैक्ट्री से मालिक की कोठी जाता और वहां बाइक खड़ी कर अपनी इलैक्ट्रिक साइकिल द्वारा 9 बजे तक अपने घर पहुंच जाता था.

पिछले 12 सालों में उस के इस नियम में 10 मिनट का भी बदलाव नहीं आया था. 21 मई, 2019 को भी वह रोज की तरह काम पर गया था पर वापस नहीं लौटा. इसलिए परिजनों का चिंतित होना स्वाभाविक था. राहुल अपने भतीजे नवजोत और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर सब से पहले अपने भाई के मालिक प्रवीण गर्ग की कोठी पर पहुंचा.

प्रवीण ने उसे बताया कि सुनील तो साढ़े 8 बजे कोठी पर फैक्ट्री की चाबियां दे कर घर चला गया था. प्रवीण ने राहुल को सलाह दी कि सब से पहले वह थाने जा कर इस बात की खबर करे. प्रवीण गर्ग की सलाह मान कर राहुल सीधे थाना डिवीजन नंबर-5 पहुंचा और अपने सुनील के लापता होने की बात बताई.

उस समय थाने में तैनात ड्यूटी अफसर ने राहुल से कहा, ‘‘अभी कुछ देर पहले सिविल अस्पताल में एक आदमी की लाश लाई गई थी, जिस के शरीर पर चोटों के निशान थे. लाश अस्पताल की मोर्चरी में रखी है, आप अस्पताल जा कर पहले उस लाश को देख लें. कहीं वह लाश आप के भाई की न हो.’’

राहुल पड़ोसियों के साथ सिविल अस्पताल पहुंच गया. अस्पताल में जैसे ही राहुल ने स्ट्रेचर पर रखी लाश देखी तो उस की चीख निकल गई. वह लाश उस के भाई सुनील की ही थी.

राहुल ने फोन द्वारा इस बात की सूचना अपनी भाभी सुनीता को दे कर अस्पताल आने के लिए कहा. उधर लाश की शिनाख्त होने के बाद आगे की काररवाई के लिए डाक्टरों ने यह खबर थाना दुगरी के अंतर्गत आने वाली पुलिस चौकी शहीद भगत सिंह नगर को दे दी. सुनील की लाश उसी चौकी के क्षेत्र में मिली थी.

दरअसल, 21 मई 2019 की रात 10 बजे किसी राहगीर ने लुधियाना पुलिस कंट्रोलरूम को फोन द्वारा यह खबर दी थी कि पखोवाल स्थित सिटी सेंटर के पास सड़क किनारे एक आदमी की लाश पड़ी है. कंट्रोलरूम ने यह खबर संबंधित पुलिस चौकी शहीद भगत सिंह नगर को दे दी थी.

सूचना मिलते ही चौकी इंचार्ज एएसआई सुनील कुमार, हवलदार गुरमेल सिंह, दलजीत सिंह और सिपाही हरपिंदर सिंह के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने इस की सूचना एडिशनल डीसीपी-2 जस किरनजीत सिंह, एसीपी (साउथ) जश्नदीप सिंह के अलावा क्राइम टीम को भी दे दी थी.

लाश का निरीक्षण करने पर उस की जेब से बरामद पर्स से 65 रुपए और एक मोबाइल फोन मिला. फोन टूटीफूटी हालत में था, जिसे बाद में चंडीगढ़ स्थित फोरैंसिक लैब भेजा गया था. लाश के पास ही एक बैग भी पड़ा था, जिस में खाने का टिफिन था. मृतक के सिर पर चोट का निशान था, जिस का खून बह कर उस के शरीर और कपड़ों पर फैल गया था.

उस समय लाश की शिनाख्त नहीं हो पाने पर एएसआई सुनील कुमार ने मौके की काररवाई पूरी कर लाश सिविल अस्पताल भेज दी थी.

अस्पताल द्वारा लाश की शिनाख्त होने की सूचना एएसआई सुनील कुमार को मिली तो वह सिविल अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने अस्पताल में मौजूद मृतक की पत्नी सुनीता और भाई राहुल से पूछताछ कर उन के बयान दर्ज किए और राहुल के बयानों के आधार पर सुनील की हत्या का मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज कर आगे की तहकीकात शुरू कर दी.

इश्क की आग में कुछ इस तरह बरबाद हुआ एक परिवार

2 लोगों के साथ जगराओं के थाना सिटी पहुंची लक्ष्मी ने थानाप्रभारी इंसपेक्टर इंद्रजीत सिंह को बताया था कि उस के पति प्रवासराम 2 दिन पहले काम पर गए तो अब तक लौट कर नहीं आए हैं. थानाप्रभारी ने पूरी बात बताने को कहा तो लक्ष्मी ने बताया कि उस के पति प्रवासराम मूलरूप से बिहार के जिला बांका के थाना रजौली के गांव उपराम के रहने वाले थे.

कई सालों पहले वह काम की तलाश में जगराओं आ गया था और पीओपी का काम सीख कर बडे़बडे़ मकानों में पीओपी करने के ठेके लेने लगा था. उस का काम ठीकठाक चलने लगा तो वह गांव से पत्नी और बच्चों को भी ले आया. जगराओं में वह डा. हरिराम अस्पताल के पास रहता था.

सन 2001 में प्रवासराम की लक्ष्मी से शादी हुई थी. उस के कुल 6 बच्चे थे, जिन में 4 बेटियां और 2 बेटे थे. वह सुबह काम पर जाता था तो शाम 7 बजे तक वापस आता था. लक्ष्मी की बात सुन कर इंद्रजीत सिंह ने पूछा, ‘‘जिस जगह तुम्हारा पति काम करता था, वहां जा कर तुम ने पता किया था?’’

‘‘जी साहब, यह लड़का उन्हीं के साथ काम करता था.’’ साथ आए 20-22 साल के एक लड़के की ओर इशारा कर के लक्ष्मी ने कहा.

थानाप्रभारी ने उस लड़के की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम सोनू है, मैं उन्हीं के साथ काम करता था. वह 2 दिनों से काम पर नहीं आए हैं, जिस से हम सभी बहुत परेशान हैं. हम सभी खाली बैठे हैं.’’

इंद्रजीत सिंह ने एएसआई बलजिंदर सिंह को पूरी बात समझा कर प्रवासराम की गुमशुदगी दर्ज करा कर उस की पत्नी से उस का एक फोटो लेने को कहा. थानाप्रभारी के आदेश पर बलजिंदर सिंह ने प्रवासराम की गुमशुदगी दर्ज कर लक्ष्मी से उस का एक फोटो ले लिया. इस के बाद उन्होंने उस की फोटो के साथ सभी थानों को उस की गुमशुदगी की सूचना दे दी. यह 4 अप्रैल, 2017 की बात है. इस का मतलब प्रवासराम 2 अप्रैल से गायब था.

6 अप्रैल, 2017 को पुलिस को जगराओं के बाहरी इलाके में सेम नानकसर रोड पर स्थित एक गंदे नाले में एक लाश मिली. उसे बिस्तर में लपेट कर फेंका गया था. मौके पर पहचान न होने की वजह से पुलिस ने लाश को मोर्चरी में रखवा कर उस के पोस्टर जारी कर दिए थे. पोस्टर देख कर अगवाड़ लोपो के रहने वाले मृतक के साढू समीर ने उस की शिनाख्त डा. हरिराम अस्पताल के पास रहने वाले प्रवासराम की लाश के रूप में कर दी थी.

इंद्रजीत सिंह ने तुरंत सिपाही भेज कर लक्ष्मी को बुलवा लिया था. लाश देखते ही लक्ष्मी रोने लगी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. वह लाश उस के गुमशुदा पति प्रवासराम की ही थी. लाश की शिनाख्त होने के बाद इंद्रजीत सिंह ने प्रवासराम की गुमशुदगी की जगह अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लाश लक्ष्मी और उस के रिश्तेदारों को सौंप दी. उसी दिन शाम को उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, प्रवासराम की हत्या 4 दिनों पहले गला घोंट कर की गई थी. उस की गरदन पर रस्सी के निशान थे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच बलजिंदर सिंह को ही सौंप दी थी. उन्होंने मृतक की पत्नी लक्ष्मी और उस के भाइयों को बुला कर विस्तार से पूछताछ की.

मृतक के भाई अनूप का कहना था कि उस के भाई की न किसी से कोई दुश्मनी थी और न किसी तरह का कोई लेनादेना था. इस के बाद बलजिंदर सिंह ने लक्ष्मी से पूछा, ‘‘तुम सोच कर बताओ कि काम पर जाने से पहले तुम्हारी पति से कोई खास बात तो नहीं हुई थी?’’

‘‘कोई बात नहीं हुई थी साहब, रोज की तरह उस दिन भी वह अपना खाने का टिफिन ले कर सुबह साढ़े 7 बजे घर से गए तो लौट कर नहीं आए.’’

बलजिंदर सिंह ने वहां जा कर भी पूछताछ की, जहां प्रवासराम काम करा रहा था. उस के साथ काम करने वाले मजदूर ही नहीं, मकान के मालिक ने भी बताया कि प्रवासराम निहायत ही शरीफ और ईमानदार आदमी था. लड़ाईझगड़ा तो दूर, वह किसी से ऊंची आवाज में बात भी नहीं करता था. समय पर काम कर के मालिक से समय पर मजदूरी ले कर अपने मजदूरों को उन की मजदूरी दे कर उन्हें खुश रखता था.

बलजिंदर सिंह को अब तक की पूछताछ में कोई ऐसा सुराग नहीं मिला था, जिस से वह हत्यारों तक पहुंच पाते. यह तय था कि हत्यारे 2 या 2 से अधिक थे. लेकिन उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे शरीफ आदमी की भला किसी की क्या दुश्मनी हो सकती थी, जो उसे मार दिया.

थानाप्रभारी इंद्रजीत सिंह से सलाह कर के बलजिंदर सिंह मुखबिरों की मदद से यह पता करने लगे कि मृतक की पत्नी का किसी से अवैध संबंध तो नहीं था. इस की एक वजह यह थी कि लक्ष्मी ने कई बार बयान बदले थे. यही नहीं, पूछताछ के दौरान वह डरीडरी सी रहती थी. कभी वह कहती थी कि 2 अप्रैल को काम से लौटने के बाद वह कुछ लेने के लिए बाजार गए थे तो लौट कर नहीं आए तो कभी कहती थी कि सुबह काम पर गए थे तो लौट कर नहीं आए थे.

उस की इन्हीं बातों पर उन्हें उस पर शक हो गया था. मुखबिरों से उन्हें पता चला था कि लक्ष्मी के घर सिर्फ 20-22 सल के सोनू का ही आनाजाना था. उसी सोनू के साथ लक्ष्मी प्रवासराम की गुमशुदगी दर्ज कराने थाने आई थी. उस की उम्र लक्ष्मी से इतनी कम थी कि उस पर संदेह नहीं किया जा सकता था. लेकिन मुखबिर ने जो खबर दी थी, उस से सोनू ही संदेह के घेरे में आ गया था. पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला.

बलजिंदर सिंह महिला सिपाही की मदद से लक्ष्मी को थाने ले आए और जब उस से कहा कि उसी ने सोनू के साथ मिल कर अपने पति की हत्या की है तो वह अपने बच्चों की कसम खाने लगी. उस का कहना था कि पुलिस को शायद गलतफहमी हो गई है. वह भला अपने पति की हत्या क्यों करेगी.

लेकिन पुलिस को मुखबिर पर पूरा भरोसा था. इसलिए जब उस के साथ थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने अपने पति प्रवासराम की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए बता दिया कि उसी ने अपने प्रेमी सोनू के साथ साजिश रच कर पति प्रवासराम की हत्या कराई थी.

इस हत्या में उस का प्रेमी सोनू और उस के 2 दोस्त मिल्टन और छोटू सोनू शामिल थे.

सोनू के दोस्त का नाम भी सोनू था, इसलिए यहां उस का नाम छोटू सोनू लिख दिया गया है. लक्ष्मी ने ही प्रवासराम की हत्या करा कर उस की लाश गंदे नाले में फेंकवा दी थी.

इस के बाद लक्ष्मी की निशानदेही पर उस के प्रेमी सोनू और उस के साथी अवधेश (बदला हुआ नाम) को हिरासत में ले लिया गया था. जबकि उस का साथी सोनू फरार होने में कामयाब हो गया था. शायद उसे लक्ष्मी, अवधेश और सोनू के गिरफ्तार होने की सूचना मिल गई थी.

बलजिंदर सिंह ने उसी दिन यानी 9 अप्रैल, 2017 को तीनों अभियुक्तों लक्ष्मी, अवधेश और सोनू को जिला मजिस्टै्रट की अदालत में पेश कर के लक्ष्मी और सोनू को 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया, जबकि नाबालिग होने की वजह से अवधेश को बाल सुधारगृह भेज दिया गया. रिमांड अवधि के दौरान प्रवासराम की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह  इस प्रकार थी-

6 बच्चों की मां बन जाने के बाद भी लक्ष्मी की देह की आग शांत होने के बजाय और भड़क उठी थी. इस की वजह यह थी कि प्रवासराम सीधासादा और शरीफ आदमी था. उस ने लक्ष्मी से कहा था कि अब उसे खुद पर संयम रखना चाहिए, क्योंकि उस के 6 बच्चे हो चुके हैं. अब उसे अपने इन बच्चों की फिक्र करनी चाहिए.

प्रवासराम दिनभर काम कर के थकामांदा घर लौटता और खाना खा कर अगले दिन काम पर जाने के लिए जल्दी सो जाता. लक्ष्मी को यह जरा भी नहीं सुहाता था. जब पति ने उस की ओर से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया तो उस की नजरें खुद से लगभग 22 साल छोटे सोनू पर जा टिकीं.

काम से फारिग होने के बाद अकेला रहने वाला सोनू अक्सर प्रवासराम के साथ उस के घर आ जाता था. वह घंटों बैठा प्रवासराम और लक्ष्मी से बातें किया करता था. लक्ष्मी की नजरें उस पर टिकीं तो वह उस से हंसीमजाक के साथसाथ शारीरिक छेड़छाड़ भी करने लगी. युवा हो रहे सोनू को यह सब बहुत अच्छा लगता था.

एक दिन दोपहर को जब सोनू काम से छुट्टी ले कर लक्ष्मी के घर पहुंचा तो लक्ष्मी ने उसे पकड़ कर बैड पर पटक दिया और मनमानी कर डाली. सोनू के लिए यह एकदम नया सुख था. उसे ऐसा लगा, जैसे वह जन्नत की सैर कर रहा है. उस दिन के बाद यह रोज का नियम बन गया. सोनू काम के बीच कोई न कोई बहाना कर के लक्ष्मी के पास पहुंच जाता और मौजमस्ती कर के लौट जाता. यह सब लगभग एक साल तक चलता रहा. किसी तरह इस बात की जानकारी प्रवासराम को हुई तो उस ने लक्ष्मी को खरीखोटी ही नहीं सुनाई, बल्कि प्यार से समझाया भी, पर उस के कानों पर जूं नहीं रेंगी.

जब प्रवासराम ने लक्ष्मी पर रोक लगाने की कोशिश की तो सोनू के प्यार में पागल लक्ष्मी ने सोनू के साथ मिल कर प्रवासराम की हत्या की योजना बना डाली. एक दिन उस ने सोनू से कहा, ‘‘जब तक प्रवासराम जिंदा रहेगा तो हम दोनों इस तरह मिल नहीं पाएंगे. वैसे भी अब उस के वश का कुछ नहीं रहा. वह बूढा हो गया है, अब उस का मर जाना ही ठीक है.’’

लक्ष्मी के साथ मिल कर प्रवासराम की हत्या की योजना बना कर सोनू ने साथ काम करने वाले अवधेश और छोटू सोनू को कुछ रुपयों का लालच दे कर अपने साथ मिला लिया. घटना वाले दिन यानी 2 अप्रैल, 2017 को सोनू पार्टी देने के बहाने शराब की बोतल और चिकन ले कर लक्ष्मी के घर पहुंचा. अवधेश और छोटू सोनू भी उस के साथ थे. उस ने प्रवासराम से कहा, ‘‘भइया चिकन और शराब लाया हूं, आज पार्टी करने का मन है.’’

योजनानुसार चारों शराब पीने बैठ गए. खुद कम पी कर सोनू और उस के साथियों ने प्रवासराम को अधिक शराब पिला दी. रात के 11 बजे तक प्रवासराम जरूरत से ज्यादा शराब पी कर लगभग बेहोश हो गया तो लक्ष्मी ने सोनू को इशारा किया.

सोनू ने छोटू सोनू और अवधेश की तरफ देखा तो छोटू सोनू ने बेसुध पड़े प्रवासराम के दोनों पैर कस कर पकड़ लिए. अवधेश उस की छाती पर सवार हो गया तो लक्ष्मी और सोनू ने प्रवासराम के गले में रस्सी डाल कर कस दिया. प्रवासराम तड़प कर शांत हो गया तो चारों ने मिल कर लाश को बैड से उतार कर नीचे खिसका दिया.

अवधेश और छोटू सोनू तो अपनेअपने घर चले गए, जबकि सोनू लक्ष्मी के कमरे पर ही रुक गया. दोनों पूरी रात उसी बैड पर मौजमस्ती करते रहे, जिस बैड के नीचे प्रवासराम की लाश पड़ी थी.

अगले दिन यानी 3 अप्रैल की रात को अवधेश और छोटू सोनू की मदद से सोनू प्रवासराम की लाश को बिस्तर में लपेट कर रेहड़े से ले जा कर सेम नानकसर रोड पर बहने वाले गंदे नाले में फेंक आया.

रिमांड अवधि के दौरान लक्ष्मी की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से वह रस्सी बरामद कर ली थी, जिस से प्रवासराम का गला घोंटा गया था. हत्या करते समय लक्ष्मी ने अपने सभी बच्चों को दूसरे कमरे में सुला कर बाहर से कुंडी लगा दी थी, जिस से बच्चों को कुछ पता नहीं चल सका था.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर 11 अप्रैल, 2017 को लक्ष्मी और उस के प्रेमी सोनू को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. अवधेश को पहले ही बाल सुधार गृह भेज दिया गया था.

इस हत्याकांड का एक आरोपी छोटू सोनू अभी फरर है. पुलिस उस की तलाश कर रही है. प्रवासराम की हत्या और लक्ष्मी के जेल जाने के बाद उन के सभी बच्चों को प्रवासराम का छोटा भाई अपने घर ले गया है. लक्ष्मी ने अपनी वासना में अपना परिवार तो बरबाद किया ही, 3 लड़कों की जिंदगी पर सवालिया निशान लगा दिए.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अवधेश बदला हुआ नाम है.

गायत्री की खूनी जिद : कैसे बलि का बकरा बन गया संजीव – भाग 3

एक दिन गायत्री की मां रामश्री की रात को नींद खुल गई. उस दिन मां ने गायत्री और रंजीत को रंगे हाथों पकड़ लिया. इस पर घर वालों ने गायत्री की पिटाई कर दी. इस के बाद गायत्री के लिए रिश्ते की तलाश होने लगी. आखिर उन्होंने गायत्री की शादी संजीव से कर के राहत की सांस ली. हालांकि गायत्री ने इस शादी का विरोध किया था लेकिन घर वालों ने उस की एक नहीं सुनी थी.

बेटी की शादी के बाद सब निश्चिंत थे, लेकिन शादी के बाद भी गायत्री के नाजायज संबंध रंजीत से बने रहे. एक दिन रंजीत उस की ससुराल भी पहुंच गया. गायत्री ने उसे अपना दूर का रिश्तेदार बताया. ससुराल वालों ने भी मान लिया, लेकिन बाद में दूर के इस रिश्तेदार का कुछ ज्यादा ही आनाजाना होने लगा तो ससुराल वालों ने आपत्ति जताई.

गायत्री नहीं चाहती थी कि यह बात मायके वालों तक जाए. अत: उस ने अब अपना पुराना फारमूला अपनाया. वह ससुरालियों को भी रात के खाने में नींद की गोलियां देने लगी. इस तरह वह ससुराल में भी बेखौफ इश्क लड़ाती रही. गायत्री यह जानती थी कि ऐसा हमेशा नहीं चल सकता.

अब संजीव को भी उस पर शक होने लगा था. उस ने साफ शब्दों में कहा कि अगर अब कभी उस ने रंजीत को घर में देखा तो बुरा होगा. गायत्री पर ससुराल में भी लगाम लगनी शुरू हो गई तो वह परेशान हो उठी. उसे अपना पति ही दुश्मन लगने लगा.

एक दिन गायत्री ने तय किया कि संजीव से छुटकारा पाने के बाद ही वह प्रेमी से बेखौफ मिल सकती है. इस बारे में उसे रंजीत से बात की. दोनों ने तय किया कि संजीव को ठिकाने लगा कर वे कहीं दूर जा कर दुनिया बसा लेंगे.

गायत्री को शादी के डेढ़ साल बाद भी बच्चा नहीं हुआ था. गायत्री ने एक दिन अपनी सास से कहा कि एटा में एक अच्छा डाक्टर है. उस के इलाज से कई औरतों को बच्चा हुआ है. गायत्री ने सास से अपना इलाज उसी डाक्टर से कराने की बात कही. सास ने सोचा, अगर बच्चा हो गया तो गायत्री का मन भी घर में रमने लगेगा. अत: उस ने एटा के डाक्टर से इलाज कराने की इजाजत दे दी. गायत्री को कोई इलाज वगैरह नहीं कराना था, बल्कि यह उस का पति को ठिकाने लगाने का एक षड्यंत्र था.

लिखी जाने लगी हत्या की पटकथा

अब गायत्री का खुराफाती दिमाग काम करने लगा. उस ने पति के नाम मौत का वारंट जारी कर दिया और इस के लिए 13 मई, 2018 का दिन भी तय कर दिया. मौत की इस दस्तक से पूरा परिवार बेखबर था. पूरे घटनाक्रम की कहानी मोबाइल पर तय हो गई थी.

अपने इस काम में रंजीत ने रिजौर के ही रहने वाले अपने दोस्त राजेश उर्फ पप्पू को भी मिला लिया.

13 मई को गायत्री अपने पति संजीव के साथ बाइक नंबर यूपी 83एएल 6985 से एटा के लिए निकली. उस ने प्रेमी रंजीत को अपने एटा जाने की सूचना दे दी. रंजीत अपने दोस्त राजेश के साथ रिजौर से एटा पहुंच गया. इस के बाद न तो बहू और न ही बेटा घर वापस लौटे.

शाम तक जब दोनों घर नहीं लौटे तो पूरा परिवार चिंतित हो गया. उन्होंने एका थाने के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भदौरिया को सूचना दे दी और अपने सभी रिश्तेदारों से भी फोन द्वारा पूछा. उन्होंने गायत्री के घर वालों को भी बता दिया था.

दोनों का फोन भी स्विच्ड औफ था. रोरो कर घर वालों का बुरा हाल था. इधर मायके वाले परेशान थे कि कहीं गायत्री ने ही तो कुछ नहीं कर डाला. गायत्री और संजीव के गुम होने की सूचना अन्य थानों को भी दे दी गई थी.

18 मई, 2018 को रिजौर के चौकीदार रमेश को किसी ने बताया कि कुरीना दौलतपुर मोड़ के पास जैन फार्महाउस के खेत में एक युवक की लाश पड़ी हुई है. चौकीदार ने तुरंत इस की सूचना रिजौर के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भदौरिया को दी. थानाप्रभारी तुरंत मौके पर पहुंचे.

उन्हें वहां एक युवक की लाश मिली, जिस की गला रेत कर हत्या की गई थी. मौके पर काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी लेकिन शव को कोई नहीं पहचान पाया. कुछ दूरी पर पुलिस को एक मोबाइल फोन मिला जिस में मिले नंबर पर काल की गई तो पता चला कि मोबाइल रंजीत नाम के व्यक्ति का है. लेकिन उस के परिवार वालों ने जब लाश देखी तो कहा कि वह उन का बेटा नहीं है.

रंजीत और गायत्री की हकीकत आई सामने

जब लाश रंजीत की नहीं थी तो उस का मोबाइल वहां क्यों मिला. यह बात कोई नहीं समझ पा रहा था. इसी बीच सोशल मीडिया पर लाश का फोटो वायरल हो गया तो सोनेलाल ने एका थाने से संपर्क किया. पता चला कि जैन फार्महाउस रिजौर में मिलने वाली लाश उन के बेटे संजीव की है. संजीव के घर वाले समझ गए कि जरूर इस हत्या में गायत्री का हाथ है. उन्होंने रिजौर थानाप्रभारी को सारी बात बता दी.
गायत्री का भाई और पिता भी रिजौर आ गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि गायत्री ऐसा कर सकती है. मौके पर संजीव की बाइक भी बरामद हो गई थी, लेकिन गायत्री का कोई अतापता नहीं था.

रिजौर थानाप्रभारी ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को गायत्री और रंजीत के प्रेम संबंधों का भी पता चल चुका था. रंजीत भी घर से गायब था. अत: अब पुलिस उन दोनों की तलाश में लग गई. अगले दिन संजीव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. जिसे देख कर पुलिस चौंक गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि युवक ने नशे का सेवन किया था. पूछताछ करने पर पता चला कि संजीव तो नशा करता ही नहीं था.

इसी बीच 18 मई, 2018 को मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने प्रेमी युगल को बख्शीपुर तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. दोनों किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे. थाने ला कर गायत्री और रंजीत से पूछताछ की गई. गायत्री ने बताया कि वह तो रंजीत से प्यार करती थी. उसे जबरन प्रेमी से दूर कर के संजीव के गले बांध दिया गया. इसलिए उस ने उस से छुटकारा पाने का निश्चय कर किया. उस ने बताया कि उस ने रंजीत से पूर्व में शादी कर ली थी लेकिन पुलिस को वह शादी की कोई साक्ष्य नहीं दे पाई.

रंजीत ने भी अपना गुनाह कबूल करते हुए कहा कि पिछले 2-3 सालों से वह और गायत्री एकदूसरे से प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे लेकिन गायत्री के घर वाले इस के लिए राजी नहीं हुए. गायत्री की शादी के बाद भी वे दोनों अलग नहीं रह पाए और आखिर संजीव को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

गायत्री के प्यार की भेंट चढ़ा संजीव

उस दिन जब गायत्री अपने पति के साथ एटा पहुंची तो रास्ते में उस ने बाइक रुकवाई. मौका पा कर वह बोतल में भरे पानी में नींद की गोलियां मिला चुकी थीं. वही पानी उस ने पति संजीव को पीने को दिया. जिस जगह पर बैठ कर उस ने पानी पिया था कुछ ही देर में वह वहीं पर बेहोश हो गया.

तभी रंजीत अपने दोस्त के साथ वहां पहुंच गया. राजेश ने संजीव की बाइक संभाली और वह और गायत्री बेहोश हो चुके संजीव को आटो में डाल कर कुरीला गांव के पास दौलतपुर मोड़ पर ले आए. आटो वाले को पैसे दे कर उन्होंने वापस भेज दिया.

तभी राजेश भी वहां आ गया, फिर वे लोग संजीव को जैन फार्म हाउस के खेतों में ले आए. जहां गायत्री ने खुद चाकू से अपने पति का गला रेत दिया. इस के बाद राजेश अपने घर चला गया और वह दोनों एटा घूमते रहे. दोनों दिल्ली भाग जाना चाहते थे पर पैसों का इंतजाम करना था, इस से पहले कि वे एटा छोड़ पाते पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

गायत्री के मायके वालों को जब पता चला कि उन की बेटी ने खुद अपना सुहाग मिटा डाला है तो वे हैरान रह गए. उन्होंने कहा कि अब गायत्री से उन का कोई संबंध नहीं है. उसे उस की करनी की सजा मिलनी ही चाहिए.

संजीव के घर वाले दुखी हैं, उन्होंने तो सोचा तक नहीं था कि वह अपने सीधेसादे बेटे को खो देंगे. पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी के अंतर्गत तीनों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

18 टुकड़ों में मिली लाश का रहस्य

टुकड़ों में बरामद लाश की पहचान करना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर होती है. ऐसा ही एक मामला राजधानी दिल्ली में आया. हत्यारे ने लाश के 1-2, नहीं बल्कि 18 टुकड़े कर दिए थे. जानिए हत्यारे की क्रूरता की कहानी…

पश्चिमी दिल्ली में मोहन गार्डन थाने के प्रभारी राजेश मौर्या को 72 साल की वृद्धा के लापता होने की शिकायत मिली थी. शिकायतकर्ता मोहन गार्डन में ही रामा गार्डन के रहने वाले ग्रोवर दंपति थे. वे किराए के मकान में रहते थे. लापता कविता ग्रोवर मनीष ग्रोवर की मां और मेघा की सास थीं.

थानाप्रभारी ने मामले को आए दिन की सामान्य घटना मानते हुए मनीष को समझाया कि उन की मां यहीं कहीं आसपास गई होंगी, आ जाएंगी. साथ ही सुझाव भी दिया कि वह अपनी रिश्तेदारी या जानपहचान में पता कर लें. शायद वहीं मिल जाएं! फिर भी उन्होंने मनीष की तसल्ली के लिए पूछ लिया कि उन की या घर में किसी दूसरे सदस्य की मां के साथ हालफिलहाल में कोई कहासुनी तो नहीं हुई?

मनीष ने ऐसी किसी भी बात से इनकार कर दिया. लेकिन मौर्या की निगाह जब खामोश बैठी मेघा पर गई तो उन्हें थोड़ा अजीब लगा. उन्होंने मेघा की ओर सवालिया नजरों से देखा.

मेघा झट से बोल पड़ी, ‘‘सर, जब से मैं ब्याह कर आई हूं, तब से कभी भी मैं ने सास से ऊंची आवाज तक में बात नहीं की. सासूमां भी मुझे बेटी की तरह मानती थीं. वह बिना बताए ऐसे कहीं नहीं जाती थीं.’’

‘‘आप लोगों को ऐसा क्यों लग रहा है कि कविता ग्रोवर गायब हो गई हैं? मुझे थोड़ा और विस्तार से बताइए.’’ मौर्या ने कहा.

‘‘सर, हम लोग रिश्तेदारी में एक मौत की खबर पा कर 30 जून को सिरसा चले गए थे. वहां से जब 3 जुलाई को लौटे तब घर में ताला लगा मिला. हम ने दूसरी चाबी से ताला खोला. पहले तो हम ने सोचा मां इधरउधर कहीं पड़ोस में गई होंगी. थोड़ी देर में आ जाएंगी. लेकिन…’’

मेघा बोल ही रही थी कि बीच में मनीष बोलने लगे, ‘‘सर, एक पड़ोसी ने बताया कि घर में 2 दिनों से ताला लगा हुआ था. उस के बाद से ही हमें चिंता हो गई. हम ने उन की आसपास तलाश भी की.’’

‘‘ठीक है, आप लोग गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दीजिए.’’ राजेश मौर्य ने कहा.

मनीष ने सूचना लिखवाने के बाद साथ लाई मां की एक फोटो भी उन्हें दे दी और वापस अपने घर आ गए. पुलिस ने काररवाई शुरू करते हुए गुमशुदा कविता ग्रोवर की तसवीर सभी थानों में भिजवा दी.

वृद्धा की तलाश तेजी से जारी थी. 4 दिन गुजर गए थे, फिर भी कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. मौर्या परेशान थे. पांचवें दिन 8 जुलाई, 2021 को उन्हें मेघा का फोन आया.

उन्हें लगा मेघा उन से फिर से अपनी सासूमां की तलाश नहीं हो पाने की शिकायत करेंगी. लेकिन मेघा ने उन्हें फ्लैट में ही कविता ग्रोवर के बारे में कुछ सुराग मिलने की जानकारी दी.

यह सुन कर थानाप्रभारी भागेभागे मनीष के घर आ गए. अपने साथ एसआई अनिल कुमार और हैडकांस्टेबल रतनलाल को भी ले गए थे. मनीष बिल्डिंग में थर्ड फ्लोर पर रहते थे. वे मेघा के साथ कविता के रहने के कमरे में गए. वहां एक पलंग, एक अलमारी और बैठने के लिए 2 आरामदायक कुरसियां थीं.

‘‘कमरे के सामान को हम ने जरा भी छेड़ा नहीं है. आज जब मैं ने कमरे के बिस्तर को ध्यान से देखा. तब मुझे बिस्तर की चादर काफी सिमटी दिखी. उसे देख कर मैं कह सकती हूं कि सासूमां रात भर करवटें बदलती रही होंगी.’’ मेघा बोली.

इस पर इंसपेक्टर ने ध्यान से बिस्तर का निरीक्षण किया. उन्होंने भी अनुमान लगाया कि सामान्य तरह से सोने पर बिस्तर की सिलवटें बहुत अधिक नहीं बनती हैं. तभी उन्होंने सवाल किया, ‘‘मेघाजी, आप सास का एक बैग गायब होने की बात बता रही थीं.’’

‘‘जी हां सर, सासूमां का एक बैग गायब है, जिस में उन की ज्वैलरी और बैंक के कागजात थे. और हां, मेरी सासूमां का मोबाइल भी नहीं मिल रहा है.’’ मेघा बोली.

इस पर थानाप्रभारी मौर्या ने गंभीरता दिखाते हुए कमरे का कोनाकोना छान मारा. इस सिलसिले में बाथरूम की दीवारें संदिग्ध लगीं. कारण दीवारों को रगड़रगड़ कर धोने के निशान साफ दिख रहे थे.

ध्यान से देखने पर एकदो छोटे काले निशान अभी भी दिख रहे थे. उस की जांच के लिए फोरैंसिक टीम बुलाई गई.

जांच के लिए तमाम तरह के नमूने एकत्रित किए गए. घर के बाहर सीसीटीवी कैमरे से 30 जून और एक जुलाई की रात के फुटेज निकलवाए गए.

सीसीटीवी फुटेज में 2 बड़े बैग के साथ घर से रात को निकलते हुए 2 लोग दिखे. उन की तसवीर प्रिंट करवा कर मेघा से पहचान करवाई गई. मेघा ने देखते ही कहा कि ये दोनों उन के पड़ोसी अनिल आर्या और कामिनी आर्या हैं. उन की गैरमौजूदगी में यही सासूमां का खयाल रखते थे.

पुलिस ने बताया कि ये दोनों 30 जून की रात को 11 बजे आप के घर आए थे और सुबह साढ़े 6 बजे आप के घर से निकले थे. तब उन के पास 2 बड़े बैग थे.

अब मेघा समझ चुकी थी कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उस ने बताया कि उन की सास के पास इतना बड़ा बैग नहीं था. फिर खुद ही सवाल किया, ‘‘बैग में क्या हो सकता है, घर का सारा सामान तो यूं ही पड़ा है.’’

तहकीकात से मालूम हुआ कि आर्या दंपति गुरुद्वारा रोड पर किराए के मकान में रहते थे. पहली जुलाई के बाद से वे नहीं दिखे.

उधर फोरैंसिक जांच की रिपोर्ट से पता चला कि बाथरूम की दीवार पर वह काले निशान खून के धब्बे थे. इस का मतलब स्पष्ट था कि कविता ग्रोवर की किसी ने हत्या कर दी.

आगे की जांच के लिए जांच टीम बनाई गई और हत्यारे की तलाश की जाने लगी. इस मामले में शक की सुई पूरी तरह से अनिल आर्या और उस की पत्नी कामिनी आर्या की तरफ घूम चुकी थी. सवाल यह था कि दोनों बैग ले कर कहां लापता हो गए?

काफी पूछताछ के बाद मालूम हुआ कि दोनों उत्तराखंड में रानीखेत के मूल निवासी हैं. उन की तलाश के लिए पुलिस टीम रानीखेत पहुंची, लेकिन वे हाथ नहीं आए. केवल इतना पता चल सका कि 3 जुलाई, 2021 को टैक्सी स्टैंड पर दिखे थे.

इसी बीच दोनों के बारे में दिल्ली के एक आटो वाले से कुछ जानकारी मिली. उस ने बताया कि दोनों उस के परमानेंट ग्राहक थे. हमेशा उस के आटो से ही कहीं भी आतेजाते थे.

आटो ड्राइवर ने बताया कि 30 जून की आधी रात को मुझे फोन कर अगले रोज सुबह आने के लिए कहा था. मैं उन के पास ठीक सवा 6 बजे पहुंच गया था. अनिल आर्या और उस की पत्नी 2 बैग घसीटते हुए ले कर आए थे. उन्होंने कहा था कि दोस्त के यहां पार्टी है, उन के लिए चिकन का बैग पहुंचाना है. और वे आटो पर सवार हो गए.

थोड़ी दूर पर ही वे नजफगढ़ के पास उतर गए. उस के बाद वे कहां गए, मालूम नहीं. पूछने पर सिर्फ इतना बताया कि उन का दोस्त यहीं गाड़ी ले कर आएगा.

पुलिस ने आटो वाले से अनिल आर्या का मोबाइल नंबर ले लिया. मोबाइल से बात नहीं बनी, लेकिन आटो और दूसरे दरजनों टैक्सी वालों से पूछताछ के बाद आर्या दंपति को उत्तर प्रदेश के बरेली से 12 जुलाई को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें दिल्ली लाया गया. उन से गहन पूछताछ की गई.

जल्द ही दोनों ने कविता ग्रोवर की हत्या की बात स्वीकार ली. उन्होंने जो बताया, वह किसी हैवानियत से जरा भी कम नहीं था. मानवता को शर्मसार करने वाली घटना को बड़ी क्रूरता से अंजाम दिया गया.

उन्होंने स्वीकार कर लिया कि 30 जून की रात को क्याक्या हुआ था. उन्होंने कविता ग्रोवर की हत्या करने का कारण भी बताया.

इवेंट मैनेजमेंट का काम करने वाले अनिल आर्या के अनुसार उस के लालच और स्वार्थ से भरे इस हत्याकांड की नींव 2 साल पहले ही पड़ गई थी. उस ने कविता ग्रोवर से जानपहचान बढ़ा कर उन से डेढ़ लाख रुपए उधार लिए थे, जिस की मांग वह लगातार करती थीं.

अनिल ने बताया कि 30 जून, 2021 को मनीष और मेघा सिरसा चले गए थे. उसी रात वह पत्नी के साथ पूरी तैयारी के साथ कविता के पास जा पहुंचा था. कविता ग्रोवर उन दोनों को अपना हितैषी समझती थीं, इसलिए देर रात को आने पर कोई सवालजवाब नहीं किया.

उन के बीच देर रात तक इधरउधर की बातें होती रहीं. इसी बीच कविता अपनी उधारी मांग बैठीं. बात बढ़ गई. कविता ने नाराजगी दिखाते हुए कह दिया कि पैसे वापस नहीं लौटाए तो वह इस बारे में अपने बहूबेटे को बता देगी.

फिर क्या था. तब तक अनिल को भी काफी गुस्सा आ गया था. उस ने तुरंत कविता के मुंह पर जबरदस्त मुक्का जड़ दिया. वह बिछावन पर वहीं गिर पड़ीं. अनिल ने उन के सीने पर सवार हो कर साथ लाई नायलौन की रस्सी से गला घोंट डाला.

कविता की मौत हो जाने के बाद अनिल लाश को बाथरूम में ले गया और साथ लाए बड़े चाकू से लाश के 18 टुकड़े कर डाले. सारे टुकड़े उस ने 2 बड़ेबड़े बैगों में भरे. इस काम में उन दोनों को करीब 4 घंटे का समय लगा.

उस की पत्नी कामिनी ने इस में पूरा साथ दिया और उस ने बाथरूम की दीवारें साफ कीं. फिर टुकड़े ठिकाने लगाने के लिए अपने जानपहचान के आटो वाले को फोन कर बुला लिया.

आटो से वह दोनों नजफगढ़ तक आए. आटो के जाने के बाद वहीं नाले में बैग फेंक दिए. उस के बाद वह उसी रोज कविता के घर से लाए जेवरों को मुथुट फाइनैंस में गिरवी रख आए. उस से मिले 70 हजार रुपए ले कर उन्होंने अपने कुछ जेवर छुड़वाए और रानीखेत चले गए.

पकड़े जाने के डर से वह वहां 2 घंटे ही रुके. यहां तक कि अपने घर भी नहीं गए. रास्ते में ही अपने मोबाइल का सिम और हत्या में इस्तेमाल चाकू आदि सामान को फेंक दिया. फिर बरेली जा कर एक कमरा किराए पर लिया और रहने लगे.

पुलिस ने उस के बताए अनुसार न केवल थैले से लाश के टुकड़े बरामद कर लिए, बल्कि हत्या में इस्तेमाल सामान भी हासिल कर लिया.

लाश के कुल 18 टुकड़े किए गए थे, जो सड़गल चुके थे. पुलिस ने मुथुट फाइनैंस से गिरवी रखे जेवर भी हासिल कर लिए. उन की शिनाख्त मेघा ग्रोवर ने कर दी.

इस तरह अनिल और कामिनी द्वारा हत्या का जुर्म स्वीकार करने के बाद अपहरण के केस को हत्या कर लाश ठिकाने लगाने की धारा 302, 201 आईपीसी में तरमीम कर दिया गया. फिर दोनों को अदालत में पेश कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया.

गायत्री की खूनी जिद : कैसे बलि का बकरा बन गया संजीव – भाग 2

अगले दिन रंजीत ने अपने मोबाइल पर किसी अनजान नंबर की घंटी सुनी. जैसे ही उस ने हैलो कहा तो दूसरी तरफ से लड़की की आवाज सुनाई दी. वह बोला, ‘‘कौन, किस से बात करनी है.’’
‘‘ओह हम ने तो सोचा था कि तुम काफी स्मार्ट हो, पर तुम तो जीरो निकले मि. स्मार्ट.’’ कहते हुए लड़की हंसने लगी.

रंजीत समझ गया कि वह गायत्री है. रंजीत मन ही मन बहुत खुश हुआ. वह सफाई देते हुए वह बोला, ‘‘सौरी गायत्री, मैं समझा किसी और का फोन है. अब मैं तुम्हारा फोन नंबर मोबाइल में सेव कर लूंगा.’’
‘‘हां, समझदार दिखते हो. सुनो, आज मुझे 2 घंटे के बाद एटा जाना है. तुम मोड़ पर मिलो.’’ गायत्री ने कहा.
रंजीत निर्धारित समय से पहले ही वहां पहुंच गया. उस के कुछ देर बाद गायत्री भी आ गई. उस दिन से रंजीत और गायत्री के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. दोनों ही लोगों की नजरों से छिप कर मिलने लगे. लेकिन लाख छिपाने पर भी ऐसी बातें छिप नहीं पातीं. गांव के किसी आदमी ने गायत्री को रंजीत की बाइक पर बैठे देखा तो उस ने रामबाबू को यह बात बता दी.

घर वालों की परेशानी बढ़ाई गायत्री ने

रामबाबू परेशान हो गया. घर आ कर उस ने गायत्री से पूछताछ की तो उस ने इस बात से इनकार कर दिया. रामबाबू ने सोचा कि शायद पड़ोसी को कोई गलतफहमी हो गई होगी.

लेकिन अब गायत्री सतर्क हो गई थी. उस का और रंजीत का प्यार परवान चढ़ने लगा था. अपनी मुलाकातों के दौरान प्रेमी युगल भविष्य के सपने बुनने लगा था. हालांकि दोनों की जाति एक थी पर रंजीत न तो कोई कामधंधा करता था और न ही उस की छवि अच्छी थी. गायत्री अच्छी तरह जानती थी कि घर वाले उस के इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे.

दूसरी ओर दोनों के इश्क की खबरें लोगों तक पहुंचने लगी थीं. लोग दोनों के बारे में खुसुरफुसुर करने लगे. कई लोगों ने रामबाबू से शिकायत की कि उसे अपनी बेटी पर कंट्रोल करना चाहिए. लोगों की बातें सुन कर वह परेशान हो गया था. जबकि गायत्री यही कहती कि लोगों को तो बातें बनाने की आदत होती है. फालतू में उसे बदनाम कर रहे हैं.

लेकिन एक दिन गायत्री और रंजीत ने रात को मिलने का फैसला किया. गायत्री के घर के सभी लोग सो चुके थे. देर रात को रंजीत उस के यहां पहुंच गया. गायत्री बाहरी गेट खोल कर उसे अंदर ले आई, पर वह दिन उन की मुलाकात के लिए ठीक नहीं रहा.

उस रात गायत्री के भाई टीटू की तबीयत ठीक नहीं थी. वह टौयलेट जाने को उठा तो देखा, मेन गेट की कुंडी खुली हुई है. उसे कुछ शक हुआ तो उस ने गायत्री के कमरे में झांक कर देखा, गायत्री वहां नहीं थी. वह टौयलेट जाने के बजाए तेजी से गेट खोल कर बाहर आया. तभी कोई व्यक्ति छत से कूद कर भाग गया. टीटू भाग कर अंदर आया तो देखा, गायत्री कमरे में थी.

‘‘तू कहां गई थी?’’ टीटू ने उस से पूछा.

‘‘मैं तो यहीं थी भैया, क्यों क्या हुआ आप कुछ परेशान से दिख रहे हैं?’’ गायत्री ने कहा.

टीटू की समझ में नहीं आ रहा था कि सच क्या है. कुछ देर पहले गायत्री कमरे में नहीं थी. किसी के छत से कूदने की आवाज भी उस ने सुनी थी, पर देखा किसी को नहीं था. क्या उसे भ्रम हुआ था. पर बाहरी दरवाजे की कुंडी भी खुली हुई थी. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वह वहां से चुपचाप चला गया.

गुपचुप खेला जाने लगा खेल

गायत्री ने राहत की सांस ली. वह जानती थी कि अगर भाई ने रंजीत को देख लिया होता तो उस की खैर नहीं थी. अगले दिन उस ने रंजीत को फोन पर सारी बात बताई और सतर्क रहने को कह दिया. इधर टीटू को लगने लगा था कि कुछ तो है जो वह देख नहीं पा रहा, जबकि लोग देख रहे हैं. बहन पर उस का शक पक्का होने लगा था.

अब वह गायत्री पर गहरी नहर रखने लगा. गायत्री भी मन ही मन डर गई थी. इधर टीटू ने एक दिन मां से कहा कि वह बहन को ले कर काफी चिंतित है. अगर कोई ऊंचनीच हो गई तो कहीं के नहीं रहेंगे. लेकिन मां ने कहा, ऐसी कोई बात नहीं है, गायत्री ऐसी लड़की नहीं है.

एक दिन टीटू ने खुद गायत्री को रंजीत के साथ देख लिया. वह उस के साथ बाइक पर थी. टीटू जब घर आया तो उस ने देखा गायत्री घर पर ही थी. उस ने उस से पूछा कि अभी कुछ देर पहले वह कहां थी.
गायत्री ने कहा मैं तो अपनी सहेली के घर गई थी. टीटू को लगा कि वह झूठ बोल रही है. लिहाजा उस ने उस की पिटाई कर दी और कहा, ‘‘आइंदा अगर मैं ने तुझे किसी के साथ देखा तो जान से मार दूंगा.’’

मां को भी लगने लगा कि गायत्री कुछ तो गड़बड़ कर रही है. जब देखो तब बाहर भागने की कोशिश करती है. इसलिए मां ने भी उस से कहा, ‘‘आज से तेरा घर से बाहर जाना बंद, अब घर का काम सीख, वरना ससुराल जा कर हमारी बेइज्जती कराएगी.’’

‘‘मैं क्या कोई कैदी हूं मां, जो मुझे बांध कर रखोगी. आखिर मैं ने किया क्या है.’’ गायत्री ने कहा तो टीटू ने उसे कस कर तमाचा जड़ दिया, ‘‘तू क्या समझती है, हम अंधे हैं.’’

गायत्री रोती हुई कमरे में चली गई और उस ने मौका देख कर रंजीत को सारी बात बता दी. उस ने कहा कि जल्दी कुछ सोचो, वरना ये लोग हमें अलग कर देंगे.

अगले दिन टीटू ने रंजीत को रास्ते में रोक कर कहा, ‘‘तू गायत्री का पीछा करना छोड़ दे वरना बुरा होगा.’’ रंजीत ने टीटू को समझाने की कोशिश की कि उसे शायद कोई गलतफहमी हुई है.

गायत्री और रंजीत की हकीकत आई सामने

इधर रंजीत ने प्रेमिका से मिलने का एक उपाय खोज लिया. उस ने कैमिस्ट से नींद की गोलियां खरीद कर गायत्री को देते हुए कहा कि वह रात के खाने में कुछ गोलियां मिला दिया करे. फिर दोनों बेखौफ हो कर मिला करेंगे. गायत्री ने अब रात का खाना बनाने की जिम्मेदारी ले ली. इस के बाद वह जब अपने प्रेमी से मिलने का प्रोग्राम बना लेती तो खाने में नींद की गोलियां मिला देती. पूरा परिवार गोलियों के असर से गहरी नींद में सो जाता लेकिन सुबह जब वे लोग उठते तो सब का सिर भारी होता.

गायत्री की खूनी जिद : कैसे बलि का बकरा बन गया संजीव – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद में एक कस्बा है एटा इस कस्बे में थाना भी है. एटा कस्बे से कुछ दूर एक गांव है  नगलाचूड़. सोनेलाल अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. सोनेलाल के 3 बेटे थे गोपाल, कुलदीप और संजीव. इन के अलावा 2 बेटियां भी थीं. सोनेलाल के पास खेती की जमीन थी, जिस से उस के घरपरिवार का गुजारा बडे़ आराम से हो जाता था. सोनेलाल के बड़े बेटे गोपाल और एक बेटी की शादी हो चुकी थी.

शादी के बाद गोपाल अपने परिवार के साथ काम के लिए पंजाब गया था. वहां से वह कभीकभी ही घर आता था. सोनेलाल की एक बेटी और बेटा कुलदीप अपनी पढ़ाई कर रहे थे. जबकि संदीप अपने पिता के साथ खेती के कामों में हाथ बंटाता था. घर की व्यवस्था सोनेलाल की पत्नी सरला के जिम्मे थी. सरला चाहती थी कि संजीव का भी घर बस जाए इसलिए वह 24 साल के संजीव के लिए कोई लड़की देखने लगी.

इसी सिलसिले में रिजौर निवासी छबिराम नाम के एक रिश्तेदार ने रिजौर के ही रामबाबू शाक्य की बेटी गायत्री के बारे में बताया. छबिराम की मार्फत सोनेलाल ने रामबाबू से बात की.

उन्हें रामबाबू की बेटी गायत्री अपने बेटे संजीव के लिए सही लगी. दोनों ओर से चली बातचीत के बाद संजीव और गायत्री का रिश्ता तय कर के जल्द ही दोनों की शादी कर दी गई. यह लगभग डेढ़ साल पहले की बात है.

खूबसूरत गायत्री से शादी कर के संजीव ही नहीं बल्कि उस के घर वाले भी बहुत खुश थे. लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि आगे चल कर यही खूबसूरत दुलहन कितनी बड़ी मुसीबत बनने वाली है.

शादी के बाद गायत्री की शिकायत

गायत्री ससुराल आ तो गई थी पर उस के तेवर किसी की समझ में नहीं आ रहे थे. संजीव की मां सरला ने सोचा था कि बहू घर आ जाएगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा. घर की जिम्मेदारी बहू के हवाले कर के वह आराम करेगी, क्योंकि बड़ी बहू शादी के कुछ दिनों बाद ही गोपाल के साथ पंजाब चली गई थी. पर सरला का यह सपना अधूरा रहा. क्योंकि गायत्री पूरे दिन अपने कमरे में बैठी टीवी देखती रहती थी.

टीवी से फुरसत मिल जाती तो वह मोबाइल पर लग जाती. वह काफीकाफी देर तक किसी से बातें करती रहती थी. कुछ दिन तक तो सरला ने गायत्री से कुछ नहीं कहा. लेकिन जब पगफेरे के लिए उस का भाई टीटू उसे लेने आया तो सरला ने टीटू से कहा, ‘‘अपनी बहन को समझाओ. वह ससुराल में रहने का सलीका सीखे. यह इस घर की बहू है, इसे यहां बहू की तरह ही रहना होगा.’’

बहन की शिकायत सुन कर टीटू के माथे पर शिकन आ गई. उस ने घूर कर गायत्री की तरफ देखा लेकिन उस से कहा कुछ नहीं. टीटू के पिता बीमार रहते थे, इसलिए वह ही सब्जी की दुकान चलाता था. भाई के साथ गायत्री अपने मायके आ गई. घर पहुंचते ही टीटू ने अपनी मां रामश्री से कहा, ‘‘संभालो अपनी लाडली को, यह हमें जीने नहीं देगी.’’

गायत्री अपने कमरे में चली गई. इस के बाद रामश्री और टीटू देर तक बातें करते रहे. रामबाबू कुछ देर बाद घर आया तो उसे भी पता चल गया कि गायत्री के ससुराल वाले उस से खुश नहीं हैं. वह गुस्से में बोला, ‘‘हम ने तो सोचा था कि गायत्री शादी के बाद सुधर जाएगी, पर लगता है ये लड़की उन लोगों को भी नहीं जीने देगी.’’

दरअसल शादी के पहले से ही रामबाबू के घर में तनाव था. इस की वजह यह थी कि गायत्री संजीव से शादी करने से इनकार कर रही थी. पर घर वालों के सामने उस की एक नहीं चली. रामबाबू और रामश्री इस बात को ले कर बहुत चिंतित थे कि कहीं गायत्री की वजह से वह लोग किसी नई परेशानी में न पड़ जाएं.
रिजौर में ही रामबाबू के घर से कुछ दूरी पर किशनलाल का घर था. उस के बेटे रंजीत ने भी अपने घर वालों को परेशान कर रखा था. यूं तो किशनलाल के 4 बेटे थे, जिन में से 3 पढ़ेलिखे थे पर छोटे बेटे रंजीत का पढ़ाई में मन नहीं लगता था. वह सारे दिन गांव में अपने दोस्तों के साथ गपशप करता रहता था. वह अपने पिता के खेती के काम में भी हाथ नहीं बंटाता था.

रंजीत की जिंदगी में आई गायत्री

एक दिन अचानक रंजीत की नजर गायत्री से टकराई और वह उस की ओर खिंचता चला गया. वह उस से बात करने के लिए मौके की तलाश में था. एक दिन मोबाइल की दुकान पर उसे मौका मिल गया, जहां गायत्री अपना मोबाइल रीचार्ज कराने आई थी. उस से बात की शुरुआत करने का कोई बहाना चाहिए था. लिहाजा उस ने गायत्री से कहा, ‘‘गायत्री, देखें तुम्हारा मोबाइल किस कंपनी का है.’’

गायत्री ने उस के हाथ में मोबाइल दे दिया. रंजीत हाथ में मोबाइल ले कर देखते हुए बोला, ‘‘यह मोबाइल तो तुम्हारी तरह ही स्मार्ट है.’’

गायत्री ने उसे घूर कर देखा फिर खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘तुम भी काफी स्मार्ट लगते हो.’’
सुन कर रंजीत की हिम्मत और बढ़ गई. गायत्री वहां से चलने लगी तो रंजीत ने कहा, ‘‘अगर आप बुरा न मानो तो मैं बाइक से तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा.’’

गायत्री मुसकराई और उस की बाइक पर बैठ गई. रंजीत बहुत खुश हुआ. पहली बार किसी लड़की ने उस की दोस्ती कबूल की थी.

‘‘रंजीत वैसे तुम आजकल क्या कर रहे हो.’’ गायत्री ने पूछा.

‘‘इंटरमीडिएट पास कर के घर पर ही मौज कर रहा हूं. वैसे भी तुम्हें तो पता ही है कि घर में किसी चीज की कमी तो है नहीं. जब जिम्मेदारी आ जाएगी, देखा जाएगा’’ रंजीत बोला, ‘‘गायत्री, क्या तुम अपना मोबाइल नंबर दे सकती हो?’’

‘‘हांहां क्यों नहीं, तुम मुझे अपना मोबाइल नंबर बताओ, मैं मिस्ड काल कर देती हूं.’’ गायत्री बिना किसी झिझक के बोली. बाइक चलातेचलाते रंजीत ने उसे अपना मोबाइल नंबर बता दिया. गायत्री ने तुरंत उस के नंबर पर मिस्ड काल दे दी. गायत्री ने अपने घर से कुछ पहले ही मोटरसाइकिल रुकवा ली और बाइक से उतर कर पैदल अपने घर चली गई ताकि कोई घर वाला उसे बाइक पर बैठे न देख ले. उसे उतार कर रंजीत भी मुसकराता हुआ अपने घर चला गया.