
रात 9 बजे के आसपास मारुति वैन के आने की घरघराहट ने लोगों का ध्यान अपनी ओर इसलिए खींचा था, क्योंकि उतनी रात को गांव घोंघी रऊतापुर के असुरक्षित जंगली इलाके के उस सुनसान रास्ते पर कोई भी गाड़ी जल्दी नहीं आतीजाती थी. उतनी रात तक गांवों में वैसे भी सन्नाटा पसर जाता है. ठंड का मौसम हो तो आदमी तो क्या, कुत्ते भी दुबक जाते हैं. ऐसा ही कुछ हाल गांव घोंघी रऊतापुर का भी था. ज्यादातर लोग खापी कर रजाइयों में दुबक गए थे. गांव के 2-4 घरों के लेग ही आग जला कर उसी के पास बैठे बतिया रहे थे.
मारुति वैन के आने की आवाज जाग रहे लोगों के कानों में पड़ी तो अपने आप ही उन का ध्यान उस की ओर चला गया. वैन गांव से कुछ दूरी पर जंगली लोध के खेत के पास रुक गई. वैन के रुकते ही उस की हेडलाइट बुझ गई. अगर वैन गांव के अंदर आ जाती तो शायद उस के बारे में जानने की उतनी उत्सुकता न होती. लेकिन वह गांव के बाहर ही सुनसान जगह पर रुक गई थी, इसलिए लोगों को उस के बारे में जानने की उत्सुकता हुई.
उत्सुकतावश लोग उस के बारे में जानने की कोशिश करने लगे. सभी उसी के बारे में सोच रहे थे कि तभी वैन के पास आग की ऊंचीऊंची लपटें इस तरह उठने लगीं, जैसे कोई ज्वलनशील पदार्थ डाल कर कोई चीज जलाई जा रही हो.
उस तरह आग की लपटों को उठते देख गांव वालों को लगा कि किसी ने फसल में आग लगा दी है. इसलिए वे चीखचीख कर शोर मचाने लगे, ‘‘अरे दौड़ो भाई, किसी ने फसल में आग लगा दी है.’’
चीखपुकार सुन कर गांव वाले लाठीडंडे ले कर खेतों की ओर दौड़ पड़े. गांव वालों को शोर मचाते हुए अपनी ओर आते देख मारुति वैन से आए लोग जल्दी से वैन में बैठ कर दूसरे रास्ते से होते हुए कानपुर लखनऊ हाईवे की ओर भाग निकले. गांव वाले जब जंगली लोध के खेत के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा आग फसल में नहीं लगी थी, बल्कि वहां एक महिला की लाश जल रही थी. वहां एक जोड़ी चप्पलें एवं पेट्रोल की एक केन पड़ी थी. चप्पलें लेडीज थीं, इसलिए अंदाजा लगाया कि ये मृतका की ही होंगी.
गांव के ही शत्रुघ्न ने अपने मोबाइल फोन से इस घटना की सूचना थाना गंगाघाट पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी मनोज सिंह सिपायिहों के साथ रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया. शव लगभग 95 प्रतिशत जल चुका था. वह इतना वीभत्स हो चुका था कि उस की शिनाख्त करना मुश्किल था.
पुलिस ने घटनास्थल की कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के लाश को पोस्मार्टम के लिए जिला संयुक्त चिकित्सालय उन्नाव भेज दिया. इस के बाद थाने लौट कर पुलिस अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच को आगे बढ़ाने की राह तलाश करने लगी. यह 14 नवंबर, 2013 की बात है.
अगले दिन यानी 15 नवंबर, 2013 को थानाप्रभारी मनोज सिंह ने एक सिपाही को गांव गजियाखेड़ा भेज कर गुडि़या को बुलाया. दरअसल 13 नवंबर को उस ने अपनी 18 वर्षीया बेटी कंचन की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. मनोज सिंह ने गुडि़या को जले हुए शव का फोटो और उस के पास से बरामद चप्पलें दिखाईं तो गुडि़या शव को तो नहीं पहचान सकी, लेकिन चप्पलों के बारे में उस ने कहा कि ये तो मेरी बेटी की ही जैसी हैं.
उन चप्पलों को देख कर गुडि़या सिसकते हुए बोली, ‘‘लगता है साहब, मेरी बेटी पिता की साजिश का शिकार हो गई.’’
गुडि़या की इस बात से थानाप्रभारी मनोज सिंह का माथा ठनका. उन्होंने कहा, ‘‘पिता की साजिश का शिकार, तुम्हारे कहने का मतलब क्या है? पूरी बात विस्तार से बताओ?’’
इस के बाद गुडि़या ने थानाप्रभारी मनोज कुमार को अपने पति श्यामबाबू और बेटी कंचन के गायब होने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.
उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना गंगाघाट के गांव गजियाखेड़ा की रहने वाली 38 वर्षीया गुडि़या की शादी 22 साल पहले कानपुर के मोहल्ला बर्रा के रहने वाले रामदास के बेटे श्यामबाबू के साथ हुई थी. श्यामबाबू की शराब पीने की आदत थी. एक तो गुड़िया खास सुंदर नहीं थी, दूसरे वह मनचाहा दहेज नहीं लाई थी, इसलिए श्यामबाबू शराब पी कर लगभग रोज ही गुड़िया के साथ मारपीट करता था. भविष्य की चिंता में गुड़िया पति की मारपीट सहती रही. उसी बीच गुड़िया सोनम, कंचन और मोना, लगातार 3 बेटियों की मां बन गई.
लगातार 3 बेटियों के पैदा होने से श्यामबाबू गुड़िया से नफरत करने लगा. बेटियां पैदा करने का दोष गुडि़या पर लगाते हुए वह उस पर और अत्याचार करने लगा. उस ने गुडि़या का घर से बाहर जाना तो पहले ही बंद कर दिया था, अब वह उसे किसी से बात भी नहीं करने देता था. जब गुडि़या की सहनशक्ति खत्म हो गई तो उस ने किसी के माध्यम से अपने भाइयों को अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों की खबर भिजवाई.
खबर पा कर गुडि़या का भाई रज्जन उसे ले जाने आया तो श्यामबाबू ने गुडि़या को उस के साथ भेजने से साफ मना कर दिया. तब रज्जन पुलिस की मदद से गुडि़या और उस की तीनों बेटियों को श्यामबाबू के चंगुल से मुक्त करा कर अपने घर ले गया.
गुडि़या तीनों बेटियों के साथ मायके में रहने लगी. 8-10 महीने ही बीते होंगे कि एक दिन चुपके से श्यामबाबू तीनों बेटियों को बहलाफुसला कर अपने साथ लिवा ले गया. बेटियों के अलग होने का दुख गुडि़या को हुआ जरूर, लेकिन उस का अपना ही कोई भविष्य नहीं था, इसलिए उस ने बेटियों की ओर से संतोष कर लिया. गुजरबसर के लिए वह मातापिता की अनुमति ले कर कोई कामधंधा तलाशने लगी.
मातापिता को गुडि़या की चिंता कुछ ज्यादा ही रहती थी, इसलिए वे उस का खयाल बेटों से ज्यादा रखते थे. इस बात को ले कर घर में कलह होने लगी. स्थिति खराब होते देख मां ने एक खेत लाखों रुपए में बेच कर पूरी रकम गुडि़या को दे दी. इस बात से नाराज भाइयों ने गुडि़या और मातापिता को मारपीट कर घर से भगा दिया. घर से निकाले गए मातापिता को ले कर गुडि़या शुक्लागंज में किराए का कमरा ले कर रहने लगी. गुजरबसर के लिए वह एक ब्यूटीपार्लर में काम करने लगी.
अकेली औरत की परेशानियों को देख कर गुडि़या ने श्यामबाबू से माफी मांगते हुए अपने साथ रखने को कहा. तब श्यामबाबू ने उसे साथ रखने से मना करते हुए कहा, ‘‘साथ रखना तो दूर, अब मैं तुम्हें देखना भी नहीं चाहता. मैं तुम्हें अब कभी साथ नहीं रखूंगा.’’
गुडि़या समझ गई कि अब श्यामबाबू उसे कभी अपने साथ नहीं रखेगा. उस की जिंदगी एक कटी पतंग की तरह हो कर रह गई थी. उसी निराशा के बीच गुडि़या की मुलाकात गोलू श्रीवास्तव उर्फ अशोक कुमार से हुई. वह अमेठी का रहने वाला था. उस की शादी नहीं हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे के प्रति कुछ ऐसा आकर्षित हुए कि फिर मिलने का वादा कर लिया.
कानपुर महानगर के थाना चकेरी के अंतर्गत आने वाले गांव घाऊखेड़ा में बालकृष्ण यादव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी वीरवती के अलावा 2 बेटियां गीता, ममता और 3 बेटे मोहन, राजेश और श्यामसुंदर थे. बालकृष्ण सेना में थे, इसलिए उन्होंने अपने सभी बच्चों की परवरिश बहुत ही अच्छे ढंग से की थी. उन की पढ़ाईलिखाई भी का भी विशेष ध्यान रखा था. नौकरी के दौरान ही उन्होंने अपने बड़े बेटे मोहन और बड़ी बेटी गीता की शादी कर दी थी.
सन 2004 में बालकृष्ण सेना से रिटायर्ड हो गए थे. अब तक उन के अन्य बच्चे भी सयाने हो गए थे. इसलिए वह एकएक की शादी कर के इस जिम्मेदारी से मुक्ति पाना चाहते थे. इसलिए घर आते ही उन्होंने ममता के लिए अच्छे घरवर की तलाश शुरू कर दी. इसी तलाश में उन्हें अपने दोस्त लक्ष्मण सिंह की याद आई. क्योंकि उन का छोटा बेटा सुरेंद्र सिंह शादी लायक था.
लक्ष्मण सिंह भी उन्हीं के साथ सेना में थे. उन के परिवार में पत्नी लक्ष्मी देवी के अलावा 2 बेटे वीरेंद्र और सुरेंद्र थे. वीरेंद्र प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था, जबकि सुरेंद्र की नौकरी सेना में लग गई थी. वीरेंद्र की शादी कानपुर के ही मोहल्ला श्यामनगर के रहने वाले रामबहादुर की बहन निर्मला से हुई थी. सुरेंद्र की नौकरी लग गई थी, इसलिए लक्ष्मण सिंह भी उस के लिए लड़की देख रहे थे. सुरेंद्र का ख्याल आते ही बालकृष्ण अपने दोस्त के यहां जा पहुंचे. उन्होंने उन से आने का कारण बताया तो दोनों दोस्तों ने दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने का निश्चय कर लिया.
इस के बाद सारी औपचारिकताएं पूरी कर के ममता और सुरेंद्र की शादी हो गई. ममता सतरंगी सपने लिए अपनी ससुराल गांधीग्राम आ गई.
शादी के बाद ममता के दिन हंसीखुशी से गुजरने लगे. लेकिन जल्दी ही ममता की यह खुशी दुखों में बदलने लगी. इस की वजह यह थी कि सुरेंद्र पक्का शराबी था. वह शराब का ही नहीं, शबाब का भी शौकीन था. इस के अलावा उस में सभ्यता और शिष्टता भी नहीं थी. शादी होते ही हर लड़की मां बनने का सपना देखने लगती है. ममता भी मां बनना चाहती थी.
लेकिन जब ममता कई सालों तक मां नहीं बन सकी तो वह इस विषय पर गहराई से विचार करने लगी. जब इस बात पर उस ने गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि एक पति जिस तरह पत्नी से व्यवहार करता है, उस तरह का व्यवहार सुरेंद्र उस से नहीं करता.
उसी बीच ममता ने महसूस किया कि सुरेंद्र उस के बजाय अपनी भाभी के ज्यादा करीब है. लेकिन वह इस बारे में किसी से कुछ कह नहीं सकी. इस की वजह यह थी कि उस ने कभी दोनों को रंगेहाथों नहीं पकड़ा था. फिर भी उसे संदेह हो गया था कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है.
एक तो वैसे ही ममता को सुरेंद्र के साथ ज्यादा रहने का मौका नहीं मिलता था, दूसरे जब वह घर आता था तो उस से खिंचाखिंचा रहता था. सुरेंद्र ममता को साथ भी नहीं ले जाता था, इसलिए ज्यादातर वह मायके में ही रहती थी.
आखिर शादी के 5 सालों बाद ममता का मां बनने का सपना पूरा ही हो गया. उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रखा गया सौम्य. ममता को लगा कि बेटे के पैदा होने से सुरेंद्र बहुत खुश होगा. उन के बीच की जो हलकीफुलकी दरार है, वह भर जाएगी. उस के जीवन में भी खुशियों की बहार आ जाएगी.
लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि ममता को जैसे ही बेटा पैदा हुआ, उस के कुछ दिनों बाद ही सुरेंद्र के बड़े भाई वीरेंद्र की मौत हो गई. वीरेंद्र की यह मौत कुदरती नहीं थी. वह थोड़ा दबंग किस्म का आदमी था. उस का किसी से झगड़ा हो गया तो सामने वाले ने अपने साथियों के साथ उसे इस तरह मारापीटा कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही उस की मौत हो गई.
वीरेंद्र की मौत के बाद सुरेंद्र और उस की भाभी के जो नजायज संबंध लुकछिप कर बन रहे थे, अब घरपरिवार और समाज की परवाह किए बगैर बनने लगे. ममता का जो संदेह था, अब सच साबित हो गया. भाभी को हमारे यहां मां का दरजा दिया जाता है, लेकिन सुरेंद्र और निर्मला को इस की कोई परवाह नहीं थी. जेठ के रहते ममता ने इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया था. लेकिन जेठ की मौत के बाद सुरेंद्र खुलेआम भाभी के पास आनेजाने लगा.
ममता ने इस का विरोध किया तो उस के ससुर ने कहा, ‘‘ममता, इस मामले में तुम्हारा चुप रहना ही ठीक है. दरअसल मैं ने अपनी सारी प्रौपर्टी पहले ही वीरेंद्र और सुरेंद्र के नाम कर दी थी. निर्मला अभी जवान है. अगर वह कहीं चली गई तो उस के हिस्से की प्रौपर्टी भी उस के साथ चली जाएगी. इसलिए अगर तुम बखेड़ा न करो तो सुरेंद्र उस से शादी कर ले. इस तरह घर की बहू भी घर में ही रह जाएगी और प्रौपर्टी भी.’’
सौतन भला किसे पसंद होती है. इसलिए ससुर की बातें सुन कर ममता तड़प उठी. वह समझ गई कि यहां सब अपने मतलब के साथी हैं. उस का कोई हमदर्द नहीं है. पति गलत रास्ते पर चल रहा है तो ससुर को चाहिए कि वह उसे सही रास्ता दिखाएं और समझाएं. जबकि वह खुद ही उस का समर्थन कर रहे हैं. बल्कि उस से यह कह रहे हैं कि वह सौतन स्वीकार कर ले. उस का पति तो वैसे ही उसे वह मानसम्मान नहीं देता, जिस की वह हकदार है. अगर उस ने भाभी से शादी कर ली तो शायद वह उसे दिल से ही नहीं, घर से भी निकाल दे.
यही सब सोच कर ममता ने उस समय इस बात को टालते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह मेरी ही नहीं, मेरे बच्चे की भी जिंदगी से जुड़ा मामला है. इसलिए मुझे थोड़ा सोचने का समय दीजिए.’’
इस के बाद ममता मायके गई और घरवालों को पूरी बात बताई. ममता की बात सुन कर सभी हैरान रह गए. एकबारगी तो किसी को इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि निर्मला 3 बच्चों की मां थी. उस समय उस की बड़ी बेटी लगभग 20 साल की थी, उस से छोटा बेटा 16 साल का था तो सब से छोटा बेटा 12 साल का. इस उम्र में निर्मला को अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए था, जबकि वह अपने बारे में सोच रही थी. उस की बेटी ब्याहने लायक हो गई थी, जबकि वह खुद अपनी शादी की तैयारी कर रही थी.
ममता के घर वालों ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह इस बात के लिए कतई न राजी हो. जेठानी को जेठानी ही बने रहने दे, उसे सौतन कतई न बनने दे. मायके वालों का सहयोग मिला तो सीधीसादी ममता ने अपने ससुर से साफसाफ कह दिया कि वह कतई नहीं चाहती कि उस का पति उस के रहते दूसरी शादी करे.
ममता का यह विद्रोह न सुरेंद्र को पसंद आया, न उस के बाप लक्ष्मण सिंह को. इसलिए बापबेटे दोनों को ही ममता से नफरत हो गई. परिणामस्वरूप दोनों के बीच दरार बढ़ने लगी. ममता सुरेंद्र की परछाई बन कर उस के साथ रहना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र उस से दूर भाग रहा था. अब वह छोटीछोटी बातों पर ममता की पिटाई करने लगा.
ससुराल के अन्य लोग भी उसे परेशान करने लगे. इस के बावजूद ममता न पति को छोड़ रही थी, न ससुराल को. इतना परेशान करने पर भी ममता न सुरेंद्र को छोड़ रही थी, न उस का घर तो एक दिन सुरेंद्र ने खुद ही मारपीट कर उसे घर से निकाल दिया.
सुरेंद्र ने जिस समय ममता को घर से निकाला था, उस समय उस की पोस्टिंग लखनऊ के कमांड हौस्पिटल में थी. ममता के पिता बालकृष्ण और भाई श्यामसुंदर ने सुरेंद्र के अफसरों से उस की इस हरकत की लिखित शिकायत कर दी. तब अधिकारियों ने सुरेंद्र और ममता को बुला कर दोनों की बात सुनी. चूंकि गलती सुरेंद्र की थी, इसलिए अधिकारियों ने उसे डांटाफटकारा ही नहीं, बल्कि आदेश दिया कि वह ममता को 10 हजार रुपए महीने खर्च के लिए देने के साथ बच्चों को ठीक से पढ़ाएलिखाए.
इस के बाद अधिकारियों ने कमांड हौस्पिटल परिसर में ही सुरेंद्र को मकान दिला दिया, जिस से वह पत्नी और बच्चों के साथ रह सके. अधिकारियों के कहने पर सुरेंद्र ममता को साथ ले कर उसी सरकारी क्वार्टर में रहने तो लगा, लेकिन उस की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. उसे जब भी मौका मिलता, वह भाभी से मिलने कानपुर चला जाता. अगर ममता कुछ कहती तो वह उस से लड़नेझगड़ने लगता.
साथ रहने पर सुरेंद्र से जितना भी हो सकता था, वह ममता को परेशान करता रहा, इस के बावजूद ममता उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी. अगर सुरेंद्र ज्यादा परेशान करता तो वह उस की ज्यादतियों की शिकायत उस के अधिकारियों से कर देती, जिस से उसे डांटा फटकारा जाता. लखनऊ में रहते हुए ममता ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के पैदा होने के समय वह मायके आ गई थी. लेकिन 2 महीने के बाद वह अकेली ही लखनऊ चली गई.
धीरेधीरे सुरेंद्र सेना के नियमों का उल्लंघन करने लगा. एक दिन वह शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाते पकड़ा गया तो उसे दंडित किया गया. लेकिन उस पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. दंडित किए जाने के बाद भी उस में कोई सुधार नहीं आया.
इसी तरह दोबारा शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाने पर सेना के गार्ड ने उसे रोका तो उस ने गार्ड को जान से मारने की धमकी दी. गार्ड ने इस बात की रिपोर्ट कर दी. निश्चित था, इस मामले में उसे सजा हो जाती. इसलिए सजा से बचने के लिए वह भाग कर कानपुर चला गया.
सुरेंद्र को लगता था कि इस सब के पीछे उस के साले श्यामसुंदर का हाथ है. यह बात दिमाग में आते ही श्यामसुंदर उस की आंखों में कांटे की तरह चुभने लगा. क्योंकि श्यामसुंदर काफी पढ़ालिखा और समझदार था. वह कानपुर में ही एयरफोर्स में नौकरी कर रहा था. बात भी सही थी. उसी ने अधिकारियों से उस की शिकायत कर के ममता को साथ रखने के लिए उसे मजबूर किया था.
सुरेंद्र को लग रहा था कि जब तक श्यामसुंदर रहेगा, उसे चैन से नहीं रहने देगा. इसलिए उस ने सोचा कि अगर उसे चैन से रहना है तो उसे खत्म करना जरूरी है. इसी बात को दिमाग में बैठा कर सुरेंद्र 29 सितंबर को चकेरी के विराटनगर स्थित अपने ससुर की दुकान पर जा पहुंचा. उस समय शाम के सात बज रहे थे.
श्यामसुंदर ड्यूटी से आ कर दुकान पर बैठ कर पिता की मदद करता था. संयोग से उस दिन श्यामसुंदर दुकान पर अकेला ही था. सुरेंद्र ने पहुंचते ही अपने लाइसेंसी रिवाल्वर से श्यामसुंदर पर गोली चला दी.
गोली लगते ही श्यामसुंदर गिर कर छटपटाने लगा. गोली की आवाज सुन कर आसपास के लोग दौड़े तो सुरेंद्र ने हवाई फायर करते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने रोकने या पकड़ने की कोशिश की तो उस का भी यही हाल होगा.’’
डर के मारे किसी ने सुरेंद्र को पकड़ने की हिम्मत नहीं की. सुरेंद्र आसानी से वहां से भाग निकला. पड़ोसियों की मदद से बालकृष्ण बेटे को एयरफोर्स हौस्पिटल ले गए, जहां निरीक्षण के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
श्यामसुंदर की मौत से उस के घर में कोहराम मच गया. श्यामसुंदर की पत्नी सीमा देवी, जिस की शादी अभी 3 साल पहले ही हुई थी, उस का रोरो कर बुरा हाल था. अपने 2 साल के बेटे कार्तिक को सीने से लगाए कह रही थी, ‘‘बेटा तू अनाथ हो गया. तुझे किसी और ने नहीं, तेरे फूफा ने ही अनाथ कर दिया.’’
इस घटना की सूचना ममता को मिली तो उस का बुरा हाल हो गया. वह दोनों बच्चों को ले कर रोतीपीटती किसी तरह लखनऊ से कानपुर पहुंची. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी भाभी को कैसे सांत्वना दे. वह तो यही सोच रही थी कि वह स्वयं विधवा हो गई होती तो इस से अच्छा रहता.
घटना की सूचना पा कर अहिरवां चौकी प्रभारी विक्रम सिंह चौहान सिपाही रूप सिंह यादव, सीमांत सिकरवार, विनोद कुमार तथा योंगेंद्र को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. घटना गंभीर थी, इसलिए उन्होंने घटना की सूचना थानाप्रभारी संगमलाल सिंह को दी. इस तरह सूचना पा कर थानाप्रभारी संगमलाल सिंह, पुलिस अधीक्षक (पूर्वी) राहुल कुमार और क्षेत्राधिकारी कैंट भी घटनास्थल पर पहुंच गए.
इस के बाद श्यामसुंदर के भाई राजेश यादव द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर हत्या का यह मुकदमा थाना चकेरी में सुरेंद्र सिंह यादव पुत्र लक्ष्मण सिंह यादव निवासी गांधीग्राम, चकेरी के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. दूसरी ओर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. इस के बाद मामले की जांच की जिम्मेदारी थानाप्रभारी संगमलाल सिंह ने संभाल ली.
अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद श्यामसुंदर का शव मिला तो घरवालों ने सुरेंद्र की गिरफ्तारी न होने तक अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. मृतक के घर वालों की इस घोषणा से पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस के बाद पुलिस सुरेंद्र की गिरफ्तारी के लिए दौड़धूप करने लगी. परिणामस्वरूप अगले दिन यानी 1 अक्तूबर, 2013 को रामादेवी चौराहे से सुबह 4 बजे अभियुक्त सुरेंद्र सिंह यादव को गिरफ्तार कर लिया गया.
इस के बाद पुलिस ने सुरेंद्र की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस की लाइसेंसी रिवाल्वर बरामद कर ली. पूछताछ में सुरेंद्र ने बताया, ‘‘मेरे अपनी भाभी निर्मला से अवैध संबंध थे. भाई के मरने के बाद मैं उसे अपने साथ रखना चाहता था, जबकि ममता और उस के घर वाले इस बात का विरोध कर रहे थे. श्यामसुंदर इस मामले में सब से ज्यादा टांग अड़ा रहा था, इसलिए मैं ने उसे खत्म कर दिया.’’
सुरेंद्र की गिरफ्तारी के बाद उसी दिन शाम को श्यामसुंदर को घर वालों ने उस का अंतिमसंस्कार कर दिया. इस तरह एक सनकी फौजी ने अपनी सनक की वजह से 2 घर बरबाद कर दिए. साले के बच्चे को तो अनाथ किया ही, अपने भी बच्चों को अनाथ कर दिया.
ममता भी पति के रहते न सुहागिन रही न विधवा. उस के लिए विडंबना यह है कि वह मायके में भी रहे तो कैसे? अब उस की और उस के बच्चों की परवरिश कौन करेगा? सुरेंद्र को सजा हो गई तो उस के मासूम बच्चों का क्या होगा?
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
धीरेधीरे 2 साल बीत गए. इस बीच किसी को उन के प्यार की भनक नहीं लगी. लेकिन यह ऐसी चीज है, जो कभी न कभी सामने आ ही जाती है. आखिर एक दिन प्राची और आयुष्मान के प्यार की सच्चाई प्राची के घर वालों के सामने आ गई. मोहल्ले की किसी औरत ने प्राची और आयुष्मान को एक साथ देख लिया तो उस ने यह बात प्राची की मां सुमन को बता दी.
बेटी के बारे में यह सब सुन कर सुमन सन्न रह गई. इस का मतलब साफ था कि उन की बेटी इतनी बड़ी हो गई थी कि उन की आंखों में धूल झोंक सके. उन्होंने तुरंत प्राची को बुला कर डांटते हुए पूछा, ‘‘तू उस आयुष्मान के साथ कहां घूमती फिर रही थी?’’
‘‘कौन आयुष्मान?’’ प्राची ने इस तरह पूछा जैसे वह किसी आयुष्मान को जानती ही न हो.
‘‘झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. मैं विशाल के भांजे आयुष्मान की बात कर रही हूं. इस मोहल्ले में इस नाम का कोई दूसरा लड़का नहीं है. इस से तुझे पता होना चाहिए कि मैं उसी आयुष्मान की बात कर रही हूं.’’
‘‘मैं उस के साथ क्यों घूमूंगी?’’ प्राची तुनक कर बोली.
प्राची ने यह बात इतनी सफाई से कही थी कि सुमन को लगा कि उस की पड़ोसन को ही धोखा हुआ है. इसलिए उन्होंने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा और हिदायत दे कर बेटी को छोड़ दिया. इस के बाद प्राची खुद तो सतर्क हो ही गई, अपने प्रेमी आयुष्मान को भी सतर्क कर दिया. उस ने आयुष्मान से साफसाफ कह दिया कि अब उन्हें काफी सोचसमझ कर और बच कर मिलना होगा.
सुमन तो बेटी की बात मान कर शांत हो गई थी, लेकिन जब कई लोगों ने अजीत शुक्ला को टोका कि वह अपनी बेटी पर नजर रखें, वरना एक दिन वह उन के मुंह पर कालिख पोत देगी, तब घर में बवंडर मच गया.
अजीत को जैसे ही पता चला कि प्राची आयुष्मान से मिलती है, उन्होंने यह बात सुमन से कही. तब पतिपत्नी ने सलाह की कि जवान हो रही बेटी को समझाया जाए. शायद वह रास्ते पर आ जाए. उन्होंने प्राची को पास बैठा कर कैरियर का हवाला दे कर काफी समझायाबुझाया. लेकिन प्राची पर मांबाप के इस समझानेबुझाने का कोई असर नहीं हुआ.
प्राची ने मांबाप के सामने तो कह दिया कि अब वह आयुष्मान से नहीं मिलेगी, लेकिन उस ने उस से मिलना बंद नहीं किया. हां, वह मिलने में सावधानी जरूर बरतने लगी थी. इस के बावजूद शहजहांपुर जैसे छोटे शहर में उन पर किसी न किसी की नजर पड़ ही जाती थी. तब उन की हरकतों का पता अजीत को चल जाता था.
अजीत की गिनती मोहल्ले के प्रतिष्ठित लोगों में होती थी. कोई चारा न देख अजीत शुक्ला ने सरायकाइयां का विशाल के पास वाला मकान छोड़ दिया और कुछ दूरी पर स्थित दलेलगंज में दूसरा मकान ले कर रहने लगे. इस के अलावा प्राची पर भी नजर रखी जाने लगी. प्राची को रोज सुबह वह स्वयं मोटरसाइकिल से कालेज छोड़ने जाते और शाम को ले भी आते.
रास्ते में भले ही प्राची और आयुष्मान की मुलाकात नहीं हो पाती थी, लेकिन दिन में तो उन पर कोई नजर रखता नहीं था. प्राची क्लास छोड़ कर आयुष्मान के साथ निकल जाती. दिन भर दोनों घूमतेफिरते और छुट्टी होने के पहले आयुष्मान उसे कालेज में छोड़ देता. तब प्राची बाप के साथ घर आ जाती.
रोज की तरह 13 नवंबर को भी अजीत शुक्ला प्राची को कालेज छोड़ कर अपनी दुकान पर चले गए. इस के थोड़ी देर बाद आयुष्मान अपनी मोटरसाइकिल से प्राची के कालेज के गेट पर पहुंचा तो प्राची कालेज छोड़ कर उस के साथ निकल गई. दोनों थोड़ी दूर ही गए होंगे कि प्राची के ताऊ के बेटे राहुल शुक्ला की नजर उन पर पड़ गई. उस ने यह बात फोन कर के अपने चाचा अजीत शुक्ला को बताई तो उन्होंने राहुल से उन दोनों का पीछा करने को कहा.
राहुल अपनी मोटरसाइकिल से उन का पीछा करने लगा. प्राची ने राहुल को पीछा करते देख लिया तो उस ने यह बात आयुष्मान को बताई. इस के बाद आयुष्मान ने अपने मामा विशाल को फोन कर के ककराकलां आने को कहा.
दूसरी ओर बेटी की हरकत से नाराज अजीत शुक्ला ने लाइसेंसी राइफल उठाई और बेटे रजत को साथ ले कर प्राची के प्रेमी आयुष्मान को सबक सिखाने के लिए मोटरसाइकिल से निकल पड़े. ककराकलां में पानी की टंकी के पास अजीत शुक्ला ने राहुल और रजत की मदद से आयुष्मान और प्राची को घेर लिया. उन में बहस और हाथापाई होने लगी. तभी विशाल भी अपनी मारुति वैगनआर से ड्राइवर वरुण के साथ वहां पहुंच गया.
वादविवाद बढ़ता ही गया. अंतत: अजीत ने अपनी 315 बोर की राइफल से आयुष्मान पर फायर कर दिया. लेकिन आयुष्मान थोड़ा पीछे हट गया, जिस से निशाना चूक गया और वह गोली उस के दाएं हाथ में लगी.
अजीत दूसरी गोली न चला दे, इस के लिए सभी उस की राइफल छीनने लगे. इस छीनाझपटी में राइफल का ट्रिगर दब गया, जिस से चली गोली प्राची की बाईं तरफ कमर में जा कर लगी, जो उस के शरीर को भेदती हुई दाईं ओर से बाहर निकल गई. प्राची जमीन पर गिर कर तड़पने लगी.
बेटी को गोली लगते ही अजीत राइफल ले कर भाग खड़ा हुआ. प्राची के भाई रजत ने घायल प्राची को विशाल की कार में डाला और जिला अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने जांच कर के उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल से ही इस घटना की सूचना स्थानीय थाना कोतवाली सदर बाजार को दी गई. परिणामस्वरूप कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर आलोक सक्सेना सहयोगियों को साथ ले कर अस्पताल पहुंच गए.
पुलिस ने प्राची के भाई रजत शुक्ला को हिरासत में ले लिया. घटनास्थल से पुलिस ने राइफल की खाली मैगजीन और एक जिंदा कारतूस बरामद किया. आयुष्मान जिला अस्पताल में भर्ती था. पुलिस ने आयुष्मान से घटना के बारे में पूछताछ की और औपचारिक काररवाई निपटा कर प्राची के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.
पुलिस ने रजत को ला कर पूछताछ की. इस पूछताछ में उस ने पूरी कहानी बता दी, जिसे आाप ऊपर पढ़ ही चुके हैं.
इंस्पेक्टर आलोक सक्सेना ने आयुष्मान के नाना हरिकरननाथ मिश्र को वादी बना कर अजीत शुक्ला. रजत शुक्ला और राहुल शुक्ला के खिलाफ अपराध संख्या 842/2013 पर भादंवि की धारा 302, 307, 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज कर रजत को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक अजीत और राहुल शुक्ला को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. पुलिस सरगर्मी से दोनों की तलाश कर रही थी. पोस्टमार्टम के बाद प्राची का अंतिम संस्कार किया जा चुका था. आयुष्मान की हालत खतरे से बाहर थी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
आग दोनों तरफ लग चुकी थी. दिन तो किसी तरह बीत जाता था, लेकिन रात काटनी मुश्किल हो जाती थी. रोज रात को दोनों सोचते कि कल अपने दिल की बात जरूर कह देंगे. लेकिन सुबह होने पर हिम्मत नहीं पड़ती. दोनों एकदूसरे के नजदीक आते तो उन के दिलों की धड़कन इतनी तेज हो जाती कि दिल की बात जुबां पर आ ही नहीं पाती. होंठों पर जीभ फेरते हुए दोनों अपनेअपने रास्ते चले जाते.
आखिर जब रहा और सहा नहीं गया तो आयुष्मान ने अपने दिल की बात कहने का वही पुराना तरीका अख्तियार करने का विचार किया, जिसे अकसर इस तरह के प्रेमी इस्तेमाल करते आ रहे हैं. उस ने अपने दिल की बेचैनी एक कागज पर लिख कर प्राची तक पहुंचाने का विचार किया. रोज की तरह उस दिन भी प्राची कालेज के लिए निकली तो आयुष्मान अपनी निश्चित जगह पर उस का इंतजार करता दिखाई दिया. जैसे ही प्राची उस के नजदीक पहुंची, उस ने रात में लिखा वह प्रेमपत्र प्राची के सामने धीरे से फेंक दिया और बिना नजरें मिलाए चला गया.
प्राची ने इधरउधर देखा और फिर डरतेडरते वह कागज चुपके से उठा कर अपने बैग में डाल लिया. कालेज पहुंचते ही सब से पहले एकांत में जा कर उस ने उस कागज को निकाला. उस की जिज्ञासा उस कागज में लिखे मजमून पर थी.
उस ने उस कागज को जल्दी से खोला. उस में लिखा था—
‘प्रिय प्राची,
मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मुझे मालूम है कि तुम भी मुझे उतना ही प्यार करती हो, फिर भी मैं तुम से यह बात कहने की हिम्मत नहीं कर सका. तुम्हारे करीब पहुंचते ही पता नहीं क्यों शब्द ही जुबान से नहीं निकलते. इसीलिए दिल की बात इस कागज पर लिख कर भेज रहा हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हारे मन में भी वही सब है, जो मेरे मन में है. फिर भी एक बार जानना चाहता हूं. तुम भी अपने दिल की बात इसी तरह कागज पर उतार कर मुझ तक पहुंचा सकती हो.
—तुम्हारे प्यार में पागल, आयुष्मान’
कागज के उस टुकड़े का एकएक शब्द प्राची के दिल में उतर गया. पत्र पढ़ कर उस का दिल बल्लियों उछलने लगा, क्योंकि उस के मन की मुराद पूरी हो गई थी. वह खुद को बहुत ही सौभाग्यशाली समझ रही थी. उस ने अपने दिल को आयुष्मान को समर्पित करने का निर्णय ले लिया. उस ने भी जवाब में आयुष्मान को पत्र लिख कर उसी तरह दे दिया, जिस तरह आयुष्मान ने उसे दिया था.
पत्र मिलने के बाद आयुष्मान के मन में जो भी आशंकाएं थीं, सब समाप्त हो गईं. अब वह हमेशा प्राची के बारे में ही सोचता रहता. उस ने प्राची को ले कर जो सपने देखे थे, वे पूरे होते दिखाई दे रहे थे. दोनों चोरीछिपे मिलने लगे तो उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. पत्रों से शुरू हुआ प्यार वादों,कसमों, रूठनेमनाने से ले कर साथसाथ जीनेमरने की प्रतिज्ञाओं तक पहुंच गया. दोनों ने ही मुलाकातों के दौरान सौगंध ली कि वे अपने प्यार को मंजिल तक पहुंचा कर ही दम लेंगे, इस के लिए उन की जान ही क्यों न चली जाए.
आयुष्मान त्रिपाठी उर्फ मोनू सीतापुर जनपद के माहोली कस्बा के रहने वाले जयप्रकाश त्रिपाठी और विनीता त्रिपाठी का एकलौता बेटा था. एकलौता होने की वजह से वह मांबाप का काफी लाडला था. यह बात उन दिनों की है, जब वह बीए की पढ़ाई कर रहा था. उस का ननिहाल जिला शाहजहांपुर के थाना रामचंद्र मिशन के सरायकाइयां मोहल्ले में था.
उस के नाना हरिकरननाथ मिश्र की फलों की आढ़त थी. उन के इस काम में उन का बेटा विशाल उर्फ भोला मदद करता था. आयुष्मान ज्यादातर ननिहाल में ही रहता था. नाना के यहां रहने में ही उस की नजर नाना के घर के करीब रहने वाली प्राची पर पड़ी तो पहली ही नजर में वह उसे इस तरह भायी कि जब तक वह उसे एक नजर देख नहीं लेता, उसे चैन नहीं मिलता था.
प्राची के पिता अजीत शुक्ला का शाहजहांपुर के केरूगंज में मैडिकल स्टोर था. उन के परिवार में पत्नी सुमन के अलावा 2 बेटे रजत, रितिक और एक बेटी प्राची थी. रजत बरेली से बीटेक कर रहा था, जबकि प्राची आर्य कन्या महाविद्यालय से बीएससी कर रही थी. उस से छोटा रितिक 9वीं कक्षा में पढ़ रहा था. एकलौती बेटी होेने की वजह से प्राची भी मांबाप की लाडली थी.
किशोरावस्था में कदम रखते ही हसीन ख्यालों में खोने का जैसे ही समय आया, कालेज आनेजाने में आयुष्मान की नजर उस पर पड़ी तो वह उस के दिल में उतर गई. इस की वजह यह थी कि वह इतनी सुंदर थी कि आयुष्मान तो क्या, किसी के भी दिल में उतर सकती थी. संयोग से वह आयुष्मान को भायी तो आयुष्मान भी उसे भा गया. इसलिए आयुष्मान की चाहत जल्दी ही पूरी हो गई.
प्यार का इजहार हो गया तो प्राची और आयुष्मान घर वालों से चोरीछिपे पार्कों और रेस्तराओं में मिलने लगे. दोनों जब भी मिलते, उन्हें लगता कि दुनियाजहान की खुशी मिल गई है. बीए करने के बाद आयुष्मान शाहजहांपुर में नाना के यहां रह कर मामा की मदद करने लगा था. दोनों के पास एकदूसरे के मोबाइल नंबर थे, इसलिए समय मिलने पर वे लंबीलंबी बातें भी करते थे. इस से उन की करीबियां और बढ़ती गईं.
प्राची के घर में किसी को भी पता नहीं था कि उस के कदम बहक चुके हैं. वह एकलौती बेटी थी, इसलिए उस के पापा अजीत शुक्ला चाहते थे कि पढ़लिख कर वह उन का नाम रोशन करे. जबकि उन की बेटी पढ़ाई को भूल कर कुछ और ही गुल खिला रही थी. कोई भी मातापिता नहीं चाहता कि बेटी प्यारमोहब्बत में पड़े.
इस की वजह यह है कि हमारा समाज आज भी इसे अच्छा नहीं मानता. लेकिन प्यार करने वाले इस की परवाह नहीं करते. उन की अपनी अलग ही दुनिया होती है. वे स्वयं की रचीबुनी सपनीली दुनिया में खोए रहते हैं. ऐसी ही सपनीली दुनिया में आयुष्मान और प्राची भी खो गए थे.
कमलेश की इस कहानी में कितनी सच्चाई है, मंजू यादव ने यह पता लगाने के लिए तुरंत सबइंसपेक्टर भीम सिंह रघुवंशी को कृष्णाबाग कालोनी स्थित कमलेश के घर भेजा. पूछताछ में कमलेश के पिता मनोहर पांचाल ने बताया कि कमलेश कह तो रहा था कि एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 लड़के मुंह पर कपड़ा बांध कर घर की रेकी कर रहे थे. तब उन्होंने मोहल्ले वालों से इस बारे में पता किया था. लेकिन मोहल्ले वालों का कहना था कि इस तरह की न तो कोई मोटरसाइकिल दिखाई दी थी, न लड़के. इस से उन्हें लगा कि कमलेश को भ्रम हुआ होगा.
कमलेश की यह कहानी झूठी निकली तो पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के सुबूतों के आधार पर आगे की पूछताछ के लिए उसे 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.
दूसरी ओर कमलेश के ससुर नंदकिशोर पांचाल ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिख कर निष्पक्ष जांच की गुहार की थी. उन का कहना था कि कमलेश के पिता मनोहर पांचाल हाईकोर्ट के जज की गाड़ी चलाते हैं, इसलिए कहीं मामले की जांच प्रभावित न करा दें. उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में पिंकी की हत्या का आरोप सीधे कमलेश पर लगाया था. उन का कहना था कि बाकी तो सब ठीक था, लेकिन कमलेश के संबंध अन्य लड़कियों से थे. इसी वजह से वह पिंकी को नजरअंदाज करता था. पिंकी इस बात का विरोध कर रही थी, इसलिए कमलेश ने उस की हत्या कर दी है.
नंदकिशोर के भाई यानी पिंकी के एक चाचा इंदौर में ही एरोड्रम रोड पर स्थित राजनगर में रहते थे. उन का नाम भी कमलेश था. वह प्रेस फोटोग्राफर थे. उन का घर पिंकी के घर से मात्र एक किलोमीटर दूर था. पिंकी ने उन से भी कमलेश से अन्य लड़कियों से दोस्ती की बात बताई थी. इसलिए उन्होंने भी पुलिस को बताया था कि उन की भतीजी की हत्या उन के दामाद कमलेश ने अन्य लड़कियों की वजह से उस से छुटकारा पाने के लिए की है.
तमाम सुबूत होने के बावजूद कमलेश अपनी बात पर अड़ा था. उस का कहना था कि पिंकी की हत्या उन्हीं दोनों लड़कों ने की है, जो उस के घर लूटपाट करने आए थे. जब पुलिस ने कहा कि सारे गहने तो घर में ही मिल गए हैं तो इस पर कमलेश ने कहा, ‘‘हो सकता है, उन्हें ले जाने का मौका न मिला हो?’’
थानाप्रभारी मंजू यादव ने देखा कि कमलेश सीधे रास्ते पर नहीं आ रहा है तो उन्होंने अपने दोनों सबइंसपेक्टरों राजेंद्र सिंह दंडोत्या और भीम सिंह रघुवंशी से कहा, ‘‘यह सीधे सच्चाई बताने वाला नहीं है. इस के ससुर ने दहेज मांगने की जो रिपोर्ट दर्ज कराई है, उस के तहत इस के घर जा कर इस के पिता मनोहर, मां किरण और बहन को पकड़ लाओ. कल सभी को अदालत में पेश कर के जेल भिजवा दो.’’
थानाप्रभारी की इस धमकी पर कमलेश कांप उठा. उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘प्लीज, मेरे मातापिता और बहन को मत परेशान कीजिए. मेरे ससुर ने झूठा आरोप लगाया है. हम लोगों ने कभी दहेज मांगा ही नहीं है.’’
‘‘तो सच क्या है?’’ थानाप्रभारी मंजू यादव ने पूछा, ‘‘पिंकी की हत्या किस ने और क्यों की है?’’
‘‘उस की हत्या मैं ने की है. इस में मेरे घर वालों का कोई हाथ नहीं है.’’ कमलेश ने कहा.
इस तरह थानाप्रभारी मंजू यादव ने कमलेश से पिंकी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पिंकी की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.
कमलेश कालेज में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. वह स्टेज पर भी बढि़या अभिनय करता था. देखने में ठीकठाक था ही, इसलिए लड़कियां उस की ओर आकर्षित होने लगीं. कई लड़कियों से उस की दोस्ती भी हो गई. पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने काल सेंटर में नौकरी की. वहां भी उस के साथ तमाम लड़कियां नौकरी करती थीं. उन में से भी कई लड़कियों से उस की दोस्ती हो गई, जिन से वह घर आ कर भी फोन पर बातें करता रहता था.
कमलेश ने काल सेंटर की नौकरी छोड़ी तो उसे एक ऐसे एनजीओ में नौकरी मिल गई, जो रोजगार के लिए प्रेरित और दिलाने का काम करती थी. वहां स्वरोजगार का प्रशिक्षण भी दिया जाता था. इसलिए वहां भी तमाम लड़कियां रोजगार के लिए आती रहती थीं.
लड़कियां जो फार्म भरती थीं, उन में उन के फोटो के साथ जरूरी जानकारी तो होती ही थी, मोबाइल नंबर भी होता था. ऐसे में जो लड़की उसे पसंद आ जाती, नौकरी दिलाने के बहाने वह उस से बातचीत करने लगता था. कई लड़कियों को उस ने नौकरी भी दिलाई थी, जिस की वजह से उसे मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री की ओर से अवार्ड भी मिला था.
उसी बीच प्रियंका उर्फ पिंकी से उस की शादी हो गई. लेकिन शादी के बाद उस की आदत में कोई बदलाव नहीं आया. वह पहले की ही तरह लड़कियों से दोस्ती और फोन पर बातें करता रहा. पिंकी ने कई बार टोका भी लेकिन वह नहीं माना. इस के बाद पिंकी ने सासससुर से ही नहीं, मांबाप से भी उस की शिकायत की. सब ने कमलेश को समझाया, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आया.
उसी बीच कमलेश की मुलाकात बाणगंगा की रहने वाली एक लड़की से हुई. वह लड़की स्वरोजगार प्रशिक्षण लेने आई थी. लड़की काफी खूबसूरत थी, इसलिए वह उसे दिल दे बैठा. संयोग से लड़की उस की मीठी मीठी बातों में फंस भी गई. कमलेश उस से शादी के बारे में सोचने लगा. उस ने लड़की से बताया था कि अभी वह पढ़ रहा है, इसलिए लड़की ने भी शादी के लिए हामी भर दी थी.
लड़की के हामी भरने के बाद कमलेश पिंकी से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगा. पिंकी सासससुर की लाडली बहू थी. इसलिए वह उसे छोड़ नहीं सकता था. ऐसे में पिंकी से छुटकारा पाने का उस के पास एक ही उपाय था कि वह उस की हत्या कर दे. इस के बाद उस ने पिंकी की हत्या की जो योजना बनाई, उस के अनुसार वह सब से कहने लगा कि सुबहशाम मुंह पर कपड़ा बांध कर 2 लड़के पलसर मोटरसाइकिल से उस के घर के आसपास चक्कर लगा रहे हैं. लेकिन मोहल्ले के किसी आदमी ने ऐसे लोगों को देखा नहीं.
वह पिंकी की हत्या के लिए मौके की तलाश में था. वह इस काम को तभी अंजाम दे सकता था, जब पिंकी घर में अकेली हो. उसे तब मौका मिल गया, जब उस के नाना के मरने पर मां अपने मायके चली गईं. 17 फरवरी, 2014 सोमवार को पिता के ड्यूटी पर चले जाने के बाद घर में पिंकी और कमलेश ही घर में रह गए. पिंकी घर के काम निपटाने में लगी थी.
तभी कमलेश ने योजना के तहत पिंकी की हत्या करने में चाकू वगैरह पर अंगुलियों के निशान न आएं, इस के लिए रबर के दास्ताने पहन लिए. वह दास्ताने पहन कर तैयार हुआ था कि किसी का फोन आ गया तो वह फोन पर बातें करने लगा. उसी बीच पिंकी ने कमलेश से कहा, ‘‘आप कपड़े भिगो देते तो खाली होने पर मैं धो लेती.’’
कमलेश कपड़े भिगोने के बजाय किचन में जा कर फोन पर बातें करने लगा. पिंकी ने देखा कि वह कपड़े भिगोने के बजाय फोन पर ही बातें कर रहा है तो उस ने झुंझला कर कहा, ‘‘कपड़े भिगोने के लिए कह रही हूं, वह तो करते नहीं, फालतू फोन पर बातें कर रहे हो.’’
पिंकी की इस बात पर कमलेश को गुस्सा आ गया तो उस ने पिंकी को एक तमाचा मार दिया. पति की इस हरकत से नाराज हो कर पिंकी ने भी उसे ऐसा धक्का दिया कि उस का सिर दीवार से टकरा गया, जिस की वजह से वह चकरा कर गिर पड़ा.
कमलेश तो चाहता ही था कि कुछ ऐसा हो, जिस से वह पिंकी से भिड़ सके. संयोग से मौका भी मिल गया गया. चोट लगने से वह तिलमिला कर उठा और किचन में रखा सब्जी काटने का चाकू उठा कर पिंकी पर झपटा. लेकिन पिंकी हट गई तो चाकू दीवार से जा लगा, जिस की वजह से टूट गया.
कमलेश इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था, इसलिए दूसरा चाकू उठा कर पिंकी पर टूट पड़ा. पिंकी का मुंह दबा कर लगातार वार करने लगा. पिंकी मूर्छित हो कर जमीन पर गिर पड़ी तो उस ने उस का गला रेत दिया. थोड़ी देर छटपटा कर पिंकी मर गई. कमलेश ने देखा की पिंकी मर गई है तो उस ने खून सने कपड़े उतार कर बेडरूम में छिपा दिए और फिर बाथरूम में जा कर हाथपैर साफ किए.
दूसरे कपड़े पहन कर उस ने इस हत्या को लूट में हत्या का रूप देने के लिए अलमारी खोल कर सारा सामान बिखेर दिया. कुछ गहने उस ने पलंग के नीचे डाल दिए तो कुछ खिड़की से पिछवाड़े फेंक दिए. इतना सब करने के बाद वह वहां से भाग जाना चाहता था, लेकिन तभी उस की बुआ के बेटे राहुल ने दरवाजा खटखटा दिया. अब वह बाहर तो जा नहीं सकता था, इसलिए खुद को बचाने के लिए वह मरी पड़ी पिंकी के ऊपर लेट गया. इस के बाद राहुल ने अंदर आ कर उसे अस्पताल में भरती कराया और घटना की जानकारी पुलिस को दी.
पूछताछ के बाद पुलिस कमलेश को उस के घर ले गई, जहां घर के पीछे से उस के द्वारा फेंके गए गहने बरामद कर लिए. पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स पहले ही निकलवा ली थी. उस के अनुसार उस ने साल भर में लड़कियों को 24 हजार फोन और एसएमएस किए थे. पुलिस ने सारे सुबूत जुटा कर 24 फरवरी को कमलेश को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.
कथा पुलिस सूत्रों एवं घर वालों से की गई बातचीत पर आधारित
कालेज पहुंचने के लिए अभी पर्याप्त समय था, इसलिए कंधे पर बैग लटकाए प्राची मस्ती से चली जा रही थी. घर से निकल कर अभी वह थोड़ी दूर गई थी कि उस ने महसूस किया कि उसे 2 आंखें लगातार घूर रही हैं. लड़कियों के लिए यह कोई खास बात नहीं है, इसलिए ध्यान दिए बगैर वह अपनी राह चली गई. एक दिन की बात होती तो शायद वह इस बात को भूल जाती, लेकिन जब वे 2 आंखें उसे रोज घूरने लगीं तो उसे उन में उत्सुकता हुई.
एक दिन जब प्राची ने उन आंखों में झांका तो आंखें मिलते ही उस के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई. उस ने झट अपनी आंखें फेर लीं. लेकिन उस ने उन आंखों में ऐसा न जाने कौन सा सम्मोहन देखा कि उस से रहा नहीं गया और उस ने एक बार फिर पलट कर उन आंखों में अपनी आंखें डाल दीं. वे आंखें अपलक उसे ही ताक रही थीं. इसलिए दोबारा आंखें मिलीं तो उस के दिल की धड़कन बढ़ गई.
उन आंखों में प्राची के लिए चाहत का समंदर लहरा रहा था. यह देख कर उस का दिल बेचैन हो उठा. न चाहते हुए भी उस की आंखों ने एक बार फिर उन आंखों में झांकना चाहा. इस बार आंखें मिलीं तो अपने आप ही उस के होंठ मुसकरा उठे. शरम से उस के गाल लाल हो गए और मन बेचैन हो उठा. वह तेजी से कालेज की ओर बढ़ गई.
कहते हैं, लड़कियों को लड़कों की आंखों की भाषा पढ़ने में जरा भी देर नहीं लगती. प्राची ने भी उस लड़के की आंखों की भाषा पढ़ ली थी. वह कालेज तो चली गई, लेकिन उस दिन पढ़ाई में उस का मन नहीं लगा. बारबार वही आंखें उस के सामने आ जातीं. नोटबुक और किताबों में भी उसे वही आंखें दिखाई देतीं. उस का मन बेचैन हो उठता. सिर झटक कर वह पढ़ाई में मन लगाना चाहती, लेकिन मन अपने वश में होता तब तो पढ़ाई में लगता. वह खोईखोई रही.
कालेज की छुट्टी हुई तो प्राची घर के लिए चल पड़ी. रोज की अपेक्षा उस दिन वह कुछ ज्यादा ही तेज चल रही थी. वह जल्दी ही उस जगह पर पहुंच गई, जहां उसे वे आंखें घूर रही थीं. लेकिन उस समय वहां कोई नहीं था. वह उदास हो गई. बेचैनी में वह घर की ओर चल पड़ी. प्राची को घूरने वाली उन आंखों के चेहरे की तलाश थी. घूरने वाली वे आंखें किसी और की नहीं, उस के घर से थोड़ी दूर रहने वाले आयुष्मान त्रिपाठी उर्फ मोनू की थीं.
प्राची इधर काफी दिनों से उसे अपने मोहल्ले में देख रही थी. वह उसे अच्छी तरह जानती भी थी, लेकिन कभी उस से उस की बात नहीं हुई थी. इधर उस ने महसूस किया था कि आयुष्मान अकसर उस से टकरा जाता था. लेकिन उस से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाता था. प्राची ने कालेज जाते समय उस की आंखों में झांका था तो उस ने आंखें झुका ली थीं. फिर जैसे ही उस ने मुंह फेरा था, वह फिर उसे ताकने लगा था.
प्राची ने उस दिन आयुष्मान में बहुत बड़ा और हैरान करने वाला बदलाव देखा था. सिर झुकाए रहने वाला आयुष्मान उसे प्यार से अपलक ताक रहा था. कई बार उन आंखों से प्राची की आंखें मिलीं तो उस के दिल में तूफान सा उमड़ पड़ा था.
उस के होंठों पर बरबस मुसकान उभर आई थी. दिल की धड़कन एकाएक बढ़ गई थी. विचलित मन से वह घर पहुंची थी. इस के बाद उस के ख्यालों में आयुष्मान ही आयुष्मान छा गया था.
घर पहुंच कर प्राची ने बैग रखा और बिना कपड़े बदले ही सीधे छत पर जा पहुंची. उस ने आयुष्मान के घर की ओर देखा. लेकिन आयुष्मान उसे दिखाई नहीं दिया. वह उदास हो गई. उस का मन एक बार फिर उन आंखों में झांकने को बेचैन था. लेकिन उस समय वे आंखें दिखाई नहीं दे रही थीं. वह उन्हीं के बारे में सोच रही थी कि नीचे से मां की आवाज आई, ‘‘प्राची, आज तुझे क्या हो गया कि आते ही छत पर चली गई? कपड़े भी नहीं बदले और खाना भी नहीं खाया. चल जल्दी नीचे आ जा. मुझे अभी बहुत काम करने हैं.’’
मां की बातें सुन कर ऊपर से ही प्राची बोली, ‘‘आई मां, थोड़ा टहलने का मन था, इसलिए छत पर आ गई थी.’’
प्राची ने एक बार फिर आयुष्मान की छत की ओर देखा. वह दिखाई नहीं दिया तो उदास हो कर प्राची नीचे आ गई. रात को खाना खाने की इच्छा नहीं थी, पर मां से क्या बहाना बनाती, इसलिए 2-4 कौर किसी तरह पानी से उतार कर प्राची बेड पर लेट गई. लेकिन आंखों में नींद नहीं थी.
आंखें बंद करती तो उसे आयुष्मान की घूरती आंखें दिखाई देने लगतीं. करवट बदलते हुए जब किसी तरह नींद आई तो उस ने सपने में भी उन 2 आंखों को प्यार से निहारते देखा.
दूसरी ओर आयुष्मान भी कम बेचैन नहीं था. सुबह तो समय निकाल कर उस ने प्राची को देख लिया था, लेकिन शाम को देर हो जाने की वजह वह प्राची को नहीं देख पाया था, इसलिए अगले दिन की सुबह के इंतजार में समय कट ही नहीं रहा था. वैसे भी इंतजार की घडि़यां काफी लंबी होती हैं.
अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर प्राची कालेज जाने की तैयारी करने लगी थी. लेकिन उस दिन ऐसा लग रहा था, जैसे समय बीत ही नहीं रहा है. आखिर इंतजार करतेकरते कालेज जाने का समय हुआ तो प्राची उस दिन कुछ ज्यादा ही सजधज कर घर से निकली. वह उस जगह जल्दी से जल्दी पहुंच जाना चाहती थी, जहां बैठ कर आयुष्मान उस के आने का इंतजार करता था.
पंख होते तो शायद वह उड़ कर पहुंच जाती, लेकिन उसे तो वहां पैरों से चल कर पहुंचना था. वह दौड़ कर भी नहीं जा सकत थी. कोई देख लेता तो क्या कहता. जैसेजैसे वह जगह नजदीक आती जा रही थी, उस के दिल की धड़कन बढ़ने के साथ मन बेचैन होता जा रहा था.
वह उस जगह पर पहुंची तो देखा कि आयुष्मान अपलक उसे ताक रहा था. उस ने उस की आंखों में अपनी आंखें डाल दीं. आंखें मिलीं तो होंठ अपने आप ही मुसकरा उठे. उस का आंखें हटाने का मन नहीं हो रहा था, लेकिन राह चलते यह सब ठीक नहीं था. ऐसी बातें लोग ताड़ते भी बहुत जल्दी हैं. वह उसे पलटपलट कर भी नहीं देख सकती थी. फिर भी शरमसंकोच के बीच उस से जितनी बार हो सका, उस ने उसे तब तक देखा, जब तक वह उसे दिखाई देता रहा.
साफ था, दोनों ही आंखों के रास्ते एकदूसरे के दिल में उतर चुके थे. उस रात दोनों को ही नींद नहीं आई. बेड पर लेटेलेटे बेचैनी बढ़ने लगी तो प्राची बेड से उठ कर छत पर आ गई. खुले वातावरण में गहरी सांस ले कर उस ने इधरउधर देखा. आसमान में तारे चमक रहे थे. उस ने उन तारों की ओर देखा तो उसे लगा कि हर तारे से आयुष्मान मुसकराता हुआ उसे ताक रहा है.
कमलेश शादी लायक हो गया था. वह नौकरी भी कर रहा था, इसलिए उस की शादी के लिए रिश्ते आने लगे थे. मनोहर और किरण भी बेटे की शादी करना चाहते थे, इसलिए वे बेटे के लिए लड़की देखने लगे थे. काफी खोजबीन के बाद आखिर उन्होंने नागदा के रहने वाले नंदकिशोर पांचाल की बेटी प्रियंका उर्फ पिंकी को पसंद कर लिया था.
जैसा कमलेश के मांबाप चाहते थे, पिंकी वैसी ही पढ़ीलिखी, खूबसूरत, सुशील और समझदार घरेलू लड़की थी. सारी बातचीत के बाद पूरी रस्मोरिवाज के साथ 12 मई, 2013 को कमलेश और पिंकी का धूमधाम से विवाह हो गया. पिंकी बाबुल के घर से विदा हो कर अपने सपनों के राजकुमार के घर आ गई.
अब पिंकी को उस पल का इंतजार था, जो जिंदगी में सिर्फ एक बार आता है. वह पल आ गया, लेकिन उस का पति कमलेश उस का घूंघट उठा कर प्यार करने के बजाय उतनी रात को भी न जाने किस से फोन पर बातें करने में लगा था. पिंकी को यह सब अच्छा तो नहीं लग रहा था, लेकिन संकोचवश वह कुछ कह नहीं पा रही थी. वह भले ही कुछ नहीं कह पा रही थी, लेकिन यह जरूर सोच रही थी कि ऐसा कौन सा खास आदमी है, जिस से वह उसे छोड़ कर फोन पर बातें करने में लगा है.
कमलेश ने सुहागरात तो मनाई, लेकिन उस में वह जोश नहीं था, जो होना चाहिए था. जिस की कसक पिंकी साफ महसूस कर रही थी. उस की यह कसक बढ़ती जा रही थी, क्योंकि कमलेश का लगभग रोज का वही नियम था. वह होता तो पिंकी के पास था, लेकिन बातें किसी और से करता रहता था. उस की बातें सुन जब पिंकी को लगा कि वह लड़कियों से बातें करता है तो उस की कसक और बढ़ गई.
कमलेश की काल सेंटर की नौकरी कोई बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए वह किसी अच्छी नौकरी की तलाश में था. उसे एक एनजीओ में काम मिल गया तो उस ने काल सेंटर वाली नौकरी छोड़ दी. यह लगभग 6 महीने पहले की बात है. उस एनजीओ की ओर से वह मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत लोगों को प्रशिक्षण देता था. उस ने अपना यह काम पूरी ईमानदारी और लगन से किया था. इसलिए उसे मुख्यमंत्री ने अवार्ड भी प्रदान किया था. एनजीओ से जुड़ने के बाद कमलेश फोन पर कुछ ज्यादा ही व्यस्त रहने लगा था. वह देर रात तक फोन पर बातें करता रहता था. पिंकी अकसर उकता कर सो जाती थी.
पिंकी इस का पुरजोर विरोध कर रही थी. लेकिन कमलेश में कोई सुधार नहीं आ रहा था. तब पिंकी ने इस बात की शिकायत अपने सासससुर से ही नहीं, मांबाप से भी की. कमलेश के मांबाप ने जब उसे टोका तो यह बात उसे बड़ी नागवार लगी. पिंकी का इस तरह जिंदगी में दखल देना उसे अच्छा नहीं लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तनाव रहने लगा.
कमलेश पिंकी को इसलिए कुछ नहीं कह पाता था, क्योंकि उस के मांबाप बहू को बहुत प्यार करते थे. उन की बहू थी भी इस लायक. वह सासससुर का हर तरह से खयाल रखती थी. उन्हें हमेशा हाथों पर लिए रहती थी.
ऐसी बहू की हत्या हो जाने से मनोहर और किरण बहुत परेशान थे, इसलिए वे केस को खोलने और हत्यारे को पकड़वाने के लिए पुलिस पर दबाव बनाए हुए थे. चूंकि वह ज्युडिशियरी से जुड़े थे, इसलिए पुलिस पर इस मामले को जल्द से जल्द खोलने का दबाव भी था.
कमलेश अगर अपना बयान दे देता तो पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने में आसानी होती. इसलिए पुलिस उस से पूछताछ के लिए अस्पताल के चक्कर लगा रही थी. लेकिन पुलिस जब भी अस्पताल पहुंचती, पता चलता वह बेहोश है. जबकि डाक्टरों के अनुसार वह पूरी तरह से स्वस्थ था. अब पुलिस को उसी पर शक होने लगा. लेकिन पुलिस उस पर शक के आधार पर हाथ नहीं डाल सकती थी, क्योंकि उस के पिता हाईकोर्ट के जज की गाड़ी चलाते थे. जरा भी इधरउधर हो जाता तो पुलिस को जवाब देना मुश्किल हो जाता. इसलिए पुलिस उस के खिलाफ सुबूत जुटाने लगी.
पुलिस ने सब से पहले उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. इस काल डिटेल्स से ऐसे तमाम नंबर मिले, जिन पर उस की लंबीलंबी बातें हुई थीं. पुलिस ने जब उन नंबरों के बारे में पता किया तो वे सभी नंबर लड़कियों के थे. इस से यह बात साफ हो गई कि वह काफी आशिकमिजाज लड़का था.
थानाप्रभारी मंजू यादव की समझ में आ गया था कि कमलेश पुलिस की पूछताछ से बचने के लिए बेहोश और कमजोरी होने का नाटक कर रहा है. वैसे भी वह नाटकों में काम कर चुका था. कालेज के समय में उसे अभिनय सम्राट कहा जाता था. उसे नाटकों के लिए कई अवार्ड भी मिले थे. इसलिए मंजू यादव ने भी उस के साथ नाटक करने की योजना बनाई.
वह सबइंसपेक्टर राजेंद्र सिंह दंडोत्या, भीम सिंह रघुवंशी और कुछ पुलिस वालों को साथ ले कर अस्पताल पहुंचीं. क्योंकि अब तक उन्हें कुछ ऐसे सुबूत मिल चुके थे, जिस से उन्हें लग रहा था कि पिंकी की हत्या कमलेश ने ही की है. इस की वजह यह थी कि कमरे में केवल उसी की अंगुली के निशान मिले थे. जांच के लिए कमलेश के खून से सने कपड़े और पलंग के नीचे से मिले जो गहने पुलिस ने बरमाद किए थे, उन पर जो खून के दाग लगे थे, वह पिंकी के खून के थे.
अपने शक को दूर करने के लिए पुलिस ने कमलेश की काल डिटेल्स से मिले एक नंबर पर उसी के फोन से फोन किया, जिस पर उस ने उसी रात काफी लंबीलंबी बातचीत की थी. फोन लगते ही दूसरी ओर से फोन रिसीव कर लिया गया था, इधर से बिना कुछ कहे ही दूसरी ओर से सीधे कहा गया, ‘‘कमलेश, तुम ने जो किया, वह ठीक नहीं किया. तुम बहुत ही गंदे आदमी हो. आखिर तुम ने अपनी पत्नी की हत्या कर ही दी. लेकिन अब इस मामले में मुझे मत फंसाना, क्योंकि इस में मेरी कोई भूमिका नहीं है. और हां, अब कभी मुझे भूल कर भी फोन मत करना.’’
इतना कह कर फोन रिसीव करने वाली लड़की ने फोन काट दिया था. पुलिस ने लड़की की यह बातचीत टेप कर ली थी. बाद में पुलिस ने उस लड़की के बारे में पता किया तो वह बाणगंगा मोहल्ले की निकली.
थानाप्रभारी मंजू यादव अपने साथियों के साथ सीएचएल अस्पताल के उस कमरे में जैसे ही पहुंचीं, जिस में कमलेश भरती था, उन्हें देख कर कमलेश तुरंत बेहोश हो गया. कमलेश की मां किरण उस की देखभाल के लिए वहीं थीं. पुलिस उन्हें बाहर भेज कर कमलेश से बात करने की कोशिश करने लगी. कमलेश बेहोशी का नाटक तो किए ही था, अब कराहने भी लगा.
थानाप्रभारी मंजू यादव भी कम नाटकबाज नहीं थीं. उन्होंने सच्चाई का पता लगाने के लिए एक योजना बनाई. उस योजना के तहत उन्होंने एक सिपाही को परदे के पीछे छिपा कर खड़ा कर दिया और एक मोबाइल फोन का वाइस रिकौर्ड चालू कर के कमलेश के बेड पर इस तरह रख दिया कि उसे पता नहीं चला. इस के बाद उन्होंने साथियों के साथ बाहर आ कर कमलेश की मां से कहा, ‘‘कमलेश अभी बयान देने लायक नहीं है. जब वह बयान देने लायक हो जाए, आप हमें सूचना भिजवा दीजिएगा. हम सभी आ कर बयान ले लेंगे.’’
इतना कह कर थानाप्रभारी मंजू यादव ने किरण को अंदर भेज दिया. मां के अंदर आते ही कमलेश को होश आ गया. उस ने तुरंत पूछा, ‘‘पुलिस वाले चले गए?’’
मां ने हां में सिर हिलाया तो वह उन से अच्छी तरह बातें करने लगा. उसे अच्छी तरह बातें करते देख परदे के पीछे छिप कर खड़े सिपाही ने मिसकाल दे कर थानाप्रभारी मंजू यादव को अंदर आने का इशारा कर दिया. वह साथियों के साथ तुरंत अंदर आ गईं. कमरे में अचानक पुलिस को देखते ही कमलेश फिर से बेहोशी का नाटक कर के कराहने लगा.
मंजू यादव ने हंसते हुए पलंग पर छिपा कर रखे मोबाइल फोन को उठा कर रिकौर्ड हुई मांबेटे की बातचीत सुनाई तो कमलेश का कराहना बंद हो गया. उसे तुरंत अस्पताल से छुट्टी करा कर थानाप्रभारी मंजू यादव रानीसराय स्थित पुलिस मुख्यालय ले गईं. उन्होंने वहां वीडियोग्राफी की तैयारी पहले से ही करा रखी थी.
वीडियोग्राफी कराते हुए कमलेश से पूछताछ शुरू हुई. इस पूछताछ में उस ने पुलिस को भरमाने के लिए एक कहानी सुनाई, जो इस प्रकार थी.
कमलेश ने बताया कि 4-5 दिनों से काले रंग की एक पलसर मोटरसाइकिल से 2 लड़के मुंह पर कपड़ा बांध कर उस के घर के आसपास चक्कर लगा रहे थे. उस दिन वही दोनों लड़के उस के घर में घुस आए और उस के सिर पर डंडा मार कर उसे बेहोश कर दिया. इस के बाद उन्होंने लूटपाट की होगी. पिंकी ने विरोध किया होगा या उन्हें पहचान लिया होगा, जिस की वजह से उन्होंने उस की हत्या कर दी होगी.
राहुल इंदौर के एयरोड्रम रोड पर स्थित कृष्णबाग कालोनी में रहने वाले अपने मामा मनोहर पांचाल के यहां शादी का कार्ड देने पहुंचा तो घर में सन्नाटा छाया हुआ था. पहली मंजिल पर जा कर उस ने कमरे का दरवाजा खटखटाया तो अंदर कोई हलचल नहीं सुनाई दी. कुछ देर उस ने इंतजार किया. जब दरवाजा नहीं खुला तो उसे हैरानी हुई. क्योंकि दरवाजे के बाहर की कुंडी खुली थी. इस का मतलब घर खाली नहीं था.
राहुल ने एक बार फिर दरवाजा खटखटाया. इस बार भी दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दरवाजे पर धक्का दिया. अंदर से सिटकनी बंद नहीं थी, इसलिए दरवाजा खुल गया. वह अंदर कमरे में पहुंचा तो कोई दिखाई नहीं दिया. उस ने बेडरूम में झांका. वहां भी कोई दिखाई नहीं दिया तो वह किचन की ओर बढ़ा. वहां उस ने जो देखा, उस की रूह कांप उठी. उस के मामा के बेटे कमलेश की पत्नी खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थी. उसी के ऊपर कमलेश औंधा पड़ा था.
यह भयानक दृश्य देख कर वह घबरा तो गया, लेकिन धैर्य नहीं खोया. उस ने तुरंत 108 नंबर पर एंबुलेंस के लिए फोन किया. इस के बाद उस ने अपने कुछ दोस्तों को फोन किया. यह 17 फरवरी, 2014 की बात है. उस समय शाम के साढ़े 4 बज रहे थे. राहुल को पता था कि उस समय उस के मामा मनोहर पांचाल ड्युटी पर होंगे. वह हाईकोर्ट जज की गाड़ी चलाते थे. मामी किरण पांचाल के पिता की मौत हो गई थी, इसलिए वह अपने मायके गई हुई थीं. उन का मायका बड़नगर के पास लोहाना गांव में था. बाकी बच्चे स्कूल गए हुए थे.
थोड़ी ही देर में राहुल के दोस्त तो आ गए, लेकिन एंबुलेंस नहीं आई. राहुल ने कमलेश और पिंकी की नब्ज टटोली. पता चला पिंकी मर चुकी है. लेकिन कमलेश की सांस अच्छी तरह चल रही थी. वह सिर्फ बेहोश था. वे कार से कमलेश को नजदीक के एक प्राइवेट अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने जांच कर के बताया कि यह पूरी तरह से स्वस्थ है. शायद घबरा गया है, जिस से चक्कर खा कर गिर गया है.
लेकिन राहुल और उस के दोस्तों को डाक्टरों की इस बात पर भरोसा नहीं हुआ, इसलिए वे कमलेश को दूसरे बड़े सीएचएल अस्पताल ले गए, जहां उसे आईसीयू में भरती करा दिया. एक राहुल और उस के दोस्त कमलेश को इलाज के लिए अस्पताल ले कर चले गए थे, जबकि दूसरी ओर इस घटना की सूचना थाना एयरोड्रम पुलिस को दे दी गई थी. मामला हत्या का था, इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी मंजू यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गईं.
लाश निरीक्षण और पूछताछ में उन्हें मामला रहस्यमय लगा, इसलिए थानाप्रभारी ने अधिकारियों को सूचना देने के साथ जरूरी साक्ष्य एकत्र करने के लिए एफएसएल अधिकारी डा. सुधीर शर्मा को बुला लिया था. निरीक्षण के दौरान सुधीर शर्मा ने देखा कि वहां 2 चाकू पडे़ हैं. दोनों ही चाकू अपराध को अंजाम देने वाले न हो कर किचन के उपयोग में लाए जाने वाले थे. उन में से एक चाकू टूटा हुआ था. जो चाकू टूटा था, उस पर खून नहीं लगा था.
इस से अंदाजा लगाया गया कि हमला करने में वह चाकू टूट गया होगा, तब हत्यारे ने दूसरा चाकू ले कर हत्या की होगी, क्योंकि दूसरा चाकू खून से लथपथ था. डा. सुधीर शर्मा ने घटनास्थल का निरीक्षण कर के अंगुलियों के निशान, खून के नमूने और चाकू वगैरह अपने कब्जे में ले लिए तो पुलिस ने अपना काम शुरू किया.
जांच में पुलिस ने देखा कि कमरे का सामान बिखरा हुआ था. अलमारियां खाली पड़ी थीं. पुलिस ने इधरउधर देखा तो पलंग के नीचे कुछ गहने उसे मिल गए. मृतका के शरीर पर भी सारे गहने मौजूद थे. इस से पुलिस और एफएसएल अधिकारी डा. सुधीर शर्मा ने अनुमान लगाया कि वारदात को किसी जानपहचान वाले ने ही अंजाम दिया है. शायद हत्या उस ने पहचाने जाने की वजह से की है.
पुलिस लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रही थी कि सूचना पा कर मनोहर पांचाल आ गए थे. पुलिस ने उन से कहा कि वह देख कर बताएं कि घर का क्या क्या सामान गायब है. इस पर उन्होंने कहा, ‘‘घर का सामान तो गायब नहीं लगता, रही बात गहनों की तो उस के बारे में मैं ज्यादा कुछ बता नहीं सकता. लेकिन जो गहने मिले हैं, वे पूरे नहीं हैं. हो सकता है, घर में कहीं और रखे हों या अपराध को अंजाम देने वाले अपने साथ ले गए हों.’’
लूट के बारे में मनोहर से ज्यादा कुछ जानकारी नहीं मिल सकी थी. औपचारिक पूछताछ के बाद पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.
घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद मामले की जांच आगे बढ़ाने के लिए कमलेश से पूछताछ करना जरूरी था. क्योंकि राहुल द्वारा मिली जानकारी के अनुसार वह लाश के पास ही बेहोश मिला था. इसलिए घटना के बारे में उसी से कुछ पता चल सकता था. उस से पूछताछ करने पुलिस अस्पताल पहुंची तो पता चला कि वह अभी भी बेहोश है. पुलिस ने डाक्टरों से पूछा तो उन्होंने बताया कि वह शारीरिक रूप से तो स्वस्थ है. लेकिन शायद घटना से घबरा गया है, इसलिए बेहोश है. पुलिस बिना पूछताछ के ही लौट आई.
घटना की जांच के लिए थानाप्रभारी मंजू यादव ने सबइंसपेक्टर राजेंद्र सिंह दंडोत्या और भीम सिंह रघुवंशी के नेतृत्व में एक टीम बना कर लगा दी. इन दोनों सबइंसपेक्टरों ने जो जानकारी जुटाई, उस के अनुसार मृतका पिंकी का पति कमलेश पांचाल इंदौर की कृष्णबाग कालोनी के मकान नंबर 126 में रहने वाले मनोहर पांचाल का बेटा था. बीकौम करने के बाद वह एक काल सेंटर में नौकरी करने लगा था.
अभिनय का शौकीन कमलेश कालेज के नाटकों में भी भाग लेता रहा था. नाटकों में भाग लेने की ही वजह से वह काफी फ्रैंक हो गया था. हर किसी से वह बेझिझक बात कर लेता था. ऐसे में उसे किसी से भी दोस्ती करने या बातचीत में जरा भी हिचक नहीं होती थी. यही वजह थी कि उस की कालेज की तमाम लड़कियों से तो दोस्ती हो ही गई थी, काल सेंटर में साथ काम करने वाली लडकियों से भी दोस्ती हो गई थी. इन लड़कियों से अकसर वह फोन पर बातें करता रहता था.