
मौकाएवारदात पर पुलिस को जो सूचना मिली थी, वह उस ने गोपनीय रखी ताकि घटना के असल कारणों का पता लगा कर मुलजिमों को आसानी से सलाखों के पीछे पहुंचाया जा सके. थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह ने विजयपाल को कानोंकान भनक नहीं लगने दी कि वे घटना की तह तक पहुंच गए हैं.
अगले दिन पुलिस को विवेक चौहान की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट में मौत की वजह हैड इंजरी बताया गया था. हत्यारों ने किसी नुकीली और वजनदार चीज से वार कर के उसे मौत के घाट उतारा था. यही नहीं हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए विवेक की लाश को फ्लाईओवर के पास फेंक दिया था, ताकि पुलिस इसे दुर्घटना मान ले और हत्यारे साफ बच निकलें.
विवेक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और किरन की हत्या को ले कर सीओ (सदर) पवन कुमार गौतम काफी सक्रिय थे. दोहरे हत्याकांड की निगरानी सीओ गौतम ही कर रहे थे. पुलिस ने हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए किरन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकवाई.
काल डिटेल्स से पता चला कि उस ने सब से ज्यादा फोन एक ही नंबर पर किए थे. उसी नंबर पर 9 मार्च, 2018 की रात 10 बजे के करीब भी किरन की बात हुई थी.
वह नंबर विवेक का निकला. जांच में यह भी पता चला कि विवेक विजयपाल के साढ़ू का बेटा था. विवेक और किरन मौसेरे भाईबहन थे. फिर भी उन के बीच सालों से प्रेमसंबंध था.
9 मार्च की रात विवेक चौहान को मूड़ाघाट गांव में देखा गया था. वह अपने मौसा के घर आया था. उस के बाद से वह गायब था. अगले दिन उस की लाश बरामद हुई थी. पुलिस के लिए यह सूचना पर्याप्त थी. इस से पुलिस का यह शक यकीन में तब्दील हो गया कि इस घटना में विजयपाल चौहान और उस के परिवार का ही हाथ है.
विजयेंद्र सिंह ने किरन की हत्या के संबंध में पूछताछ के लिए विजयपाल, उस के बेटे गोलू उर्फ शंभू और छोटे भाई जनार्दन को थाने बुलवा लिया.
सीओ (सदर) पवन कुमार गौतम थाने में पहले से मौजूद थे. थानाप्रभारी ने विजयपाल से सवाल किया, ‘‘क्या बता सकते हो कि कल फ्लाईओवर के पास जो लाश बरामद हुई थी, किस की थी?’’
‘‘साहब, मुझे क्या पता वो किस की लाश थी?’’ विजयपाल चौहान ने गंभीरता से जवाब दिया.
‘‘सच कहते हो तुम, भला तुम्हें कैसे पता होगा कि वह लाश किस की थी. तुम्हें तो उस के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है.’’
‘‘हां साहब, सचमुच मुझे उस लाश के बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही मैं उसे पहचानता हूं.’’ विजयपाल ने उत्तर दिया.
‘‘ठीक है, कोई बात नहीं चलो मैं ही तुम्हारी कुछ मदद कर देता हूं.’’ विजयेंद्र सिंह ने व्यंग्य कसते हुए कहा, ‘‘किसी विवेक चौहान उर्फ रामू को जानते हो?’’ विजयपाल से सवाल कर के उन्होंने उस के चेहरे पर अपनी तीखीं नजरें गड़ा दीं. उन की सवालिया नजरों को देख कर विजयपाल एकदम से सकपका गया.
‘‘साहब, आप तो मुझे ऐसे देख रहे हैं, जैसे मैं ने ही उस की हत्या की है.’’ विजयपाल बोला.
‘‘हम ने कब कहा कि तुम ने उस की हत्या नहीं की है.’’ इस बार सीओ गौतम बोले, ‘‘भलाई इसी में है कि तुम अपना जुर्म कबूल कर लो और सचसच बता दो कि तुम ने विवेक की हत्या क्यों की? वादा करता हूं, मैं सरकार से सिफारिश करूंगा कि तुम्हें कम से कम सजा हो.’’
‘‘हां, साहब. मैं ने ही रामू की हत्या की है.’’ विजयपाल सीओ (सदर) के पैरों को पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘साहब मुझे माफ कर दीजिए, मुझे बचा लीजिए, मैं ऐसा नहीं करना चाहता था, लेकिन हालात से मजबूर हो कर मुझे यह कदम उठाना पड़ा. रामू ने मेरी इज्जत की बखिया उधेड़ कर रख दी थी. लाख समझाने के बावजूद भी वह मेरी बेटी का पीछा नहीं छोड़ रहा था. उस दिन तो उस ने हद ही कर दी और…’’ भावावेश में आ कर विजयपाल चौहान पूरी कहानी सुनाता चला गया.
विजयपाल चौहान द्वारा अपना जुर्म कबूल कर लेने के बाद उस के बेटे गोलू उर्फ शंभू और भाई जनार्दन ने भी अपनाअपना गुनाह कबूल कर लिया. दोनों ने स्वीकार किया कि विवेक और किरन की हत्या में उन्होंने विजयपाल का साथ दिया था. 36 घंटे के भीतर जिले को दहला देने वाली 2-2 सनसनीखेज हत्याओं का पर्दाफाश हो चुका था.
विवेक किरन हत्याकांड के परदाफाश पर पुलिस कप्तान नरेंद्र कुमार सिंह ने पुलिस टीम को 5 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की. पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत के सामने पेश कर के उन्हें जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई पूछताछ के आधार पर कहानी कुछ इस तरह सामने आई—
विजयपाल के परिवार में कुल 5 सदस्य थे. पतिपत्नी और 3 बच्चे. 3 बच्चों में 2 बेटे थे गोलू उर्फ शंभू और गुलाब तथा एक बेटी थी किरन, जिस की उम्र 20 वर्ष थी. विजयपाल प्राइवेट नौकरी करता था. तीनों संतानों में किरन दूसरे नंबर की औलाद थी. किरन चंचल और हंसमुख स्वभाव की युवती थी. वह बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी. गांव से कालेज वह साइकिल से जाती थी.
किरन की मौसी परिवार सहित गोरखपुर के बड़हलगंज के चिल्लुपार विधानसभा के बरगदवा में रहती थी. उस का एक ही एकलौता बेटा रामू उर्फ विवेक था. विवेक 21-22 साल का गबरू जवान था. साढ़े 5 फीट लंबा और स्मार्ट.
विवेक की अपनी कोई बहन नहीं थी. रक्षाबंधन के अवसर पर उसे बहन की कमी काफी खलती थी. विवेक की मां से बेटे की मायूसी देखी नहीं जाती थी. इसलिए विवेक की मां सुमन अपनी बड़ी बहन की बेटी किरन को रक्षाबंधन पर अपने यहां बुला लेती थी. किरन विवेक की कलाई पर राखी बांध कर अपने घर लौट आती थी. ऐसा हर साल होता था.
किरन और विवेक करीबकरीब हमउम्र थे. भाईबहन के रिश्ते के नाते दोनों के बीच काफी नजदीकियां थीं, विवेक जब भी किरन को देखता था, ख्ुशी के मारे उस का दिल बागबाग हो उठता था. किरन भी विवेक को देख कर खुश हो जाती थी.
गतवर्ष रक्षाबंधन के मौके पर विवेक ने मौसेरी बहन किरन को तोहफे में एक मोबाइल फोन दिया था. जब भी विवेक का मन किरन से बात करने का होता था, वह फोन कर लेता था और जब देखने की इच्छा होती तो बस्ती जा कर किरन से मिल आता था.
बस्ती-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित बस्ती जिले के थाना कोतवाली क्षेत्र के बड़ेवन फ्लाईओवर पर भारी वाहनों का आनाजाना जारी था. इसी फ्लाईओवर से पश्चिम में अमहट पुल के पास सैकड़ों तमाशबीन एकत्र थे. सड़क के दूसरी ओर एक 21-22 साल के युवक की लाश पड़ी हुई थी, जिसे देख कर लग रहा था कि शायद किसी वाहन से टकराने से दुर्घटना हुई है.
मौके पर जुटी भीड़ मृतक की शिनाख्त करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान पा रहा था. भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी.
पुलिस कंट्रोलरूम से वायरलेस के जरिए घटना की सूचना प्रसारित कर दी गई. वह इलाका थाना कोतवाली में पड़ता था. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे थे.
पुलिस ने घटनास्थल पर जुटी भीड़ से शव की शिनाख्त कराई, लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका. पुलिस ने लाश का गौर से मुआयना किया. लाश की दशा देख कर थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह को ऐसा नहीं लगा कि उस युवक की मौत मार्ग दुर्घटना में हुई है.
क्योंकि मृतक के शरीर पर कहीं भी खरोंच के निशान तक नहीं थे, जबकि दुर्घटना में लाश की स्थिति भयावह हो जाती है. यही बात संदेह पैदा कर रही थी. मृतक के सिर के पीछे चोट लगी थी, जिसे देख कर ऐसा लग रहा था कि मृतक की हत्या कहीं और कर के हत्यारों ने लाश यहां फेंकी हो.
लाश की जामातलाशी लेने पर उस की पैंट की जेब से आधार कार्ड बरामद हुआ. आधार कार्ड मृतक का ही था, उस पर उस का नाम विवेक चौहान पुत्र शिव गोविंद चौहान निवासी बरगदवां, चिल्लुपार, गोरखपुर लिखा था.
शव की शिनाख्त हो जाने से पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली. लेकिन पुलिस ने यह बात पक्की कर ली थी कि युवक की हत्या कहीं और कर के हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए लाश यहां फेंक दी थी.
पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. उस के बाद थाना लौट कर विजयेंद्र सिंह ने कागजी काररवाई कराई. तब तक आधा दिन बीत गया था. यह घटना 10 मार्च, 2018 की सुबह की थी.
थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह को काम से जैसे ही थोड़ी फुरसत मिली, वैसे ही एक फरियादी आ गया. फरियादी का नाम विजयपाल चौहान था. विजयपाल के साथ 2 अन्य लोग भी आए थे. वे इसी थाने के मूड़ाघाट गांव के रहने वाले थे. बातचीत में पता चला कि विजयपाल की बेटी किरन, बीती रात से रहस्यमय तरीके से गायब थी.
10 मार्च की सुबह जब किरन घर में कहीं दिखाई नहीं दी तो सब परेशान हो गए. पूरा घर छान मारा गया. पड़ोसियों के घर जा कर पता लगाया गया, लेकिन किरन का कहीं पता नहीं चला.
जवान बेटी के इस तरह अचानक रहस्यमय ढंग से गायब हो जाने से पूरा परिवार परेशान था. विजयपाल चौहान बडे़ बेटे गोलू उर्फ शंभू और छोटे भाई जनार्दन के साथ बेटी की गुमशुदगी की फरियाद ले कर कोतवाली थाना पहुंचा.
विजयपाल चौहान की बात सुन कर थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह चौंके. उन्होंने विजयपाल चौहान से गुमशुदगी की तहरीर ले कर उसे घर भेज दिया. पुलिस ने किरन की गुमशुदगी दर्ज कर के आगे की काररवाई शुरू कर दी.
शाम को कोतवाली पुलिस को हाइवे से सटे पुराने आरटीओ कार्यालय के पास खेत में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. उस की हत्या ईंट मारमार कर की गई थी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. 2-2 लाशें मिलने से शहर में सनसनीफैल गई थी.
युवती की लाश के पास काफी लोग एकत्र थे. देखने से युवती 19-20 साल की लग रही थी. लाश की स्थिति से ऐसा लगता था जैसे युवती की हत्या कहीं और कर के हत्यारों ने लाश ठिकाने लगाने के लिए यहां ला कर फेंकी हो. फ्लाईओवर के पास सुबह मिली लाश की दशा जैसी ही हालत इस लाश की भी थी.
पुलिस ने लाश का मुआयना किया. मृतका के दोनों पैरों की चप्पलें लाश से थोड़ी दूरी पर इधरउधर पड़ी थीं. हत्यारों ने सिर पर ईंट मारमार कर उसे मौत के घाट उतारा था. ऐसी ही चोट सुबह मिली युवक की लाश के सिर पर मौजूद थी. पुलिस सोच रही थी कि कहीं दोनों लाशों का आपस में कोई संबंध तो नहीं है.
चप्पलें मृतका की ही थीं. पुलिस ने बतौर साक्ष्य चप्पलों को कब्जे में ले लिया. इस के बाद पुलिस और सबूत ढूंढने में जुट गई. इसी बीच भीड़ में से एक युवक ने लाश को पहचान लिया. उस ने बताया कि लाश मूड़ाघाट के रहने वाले विजयपाल चौहान की बेटी किरन की है.
इतना ही नहीं उस युवक ने कोतवाल विजयेंद्र सिंह को एक ऐसी जानकारी दी, जिसे सुनते ही वे उछल पडे़. युवक ने बताया कि सुबह के समय फ्लाईओवर के पास जिस विवेक चौहान की लाश बरामद हुई थी, वह मृतका किरण का प्रेमी था.
यह सुन कर विजयेंद्र सिंह को समझते देर नहीं लगी कि दोनों हत्याओं के पीछे जरूर विजयपाल चौहान का ही हाथ रहा होगा. वह यह भी समझ गए कि यह मामला प्रेमप्रसंग से जुड़ा हुआ है और विजयपाल को पूरे मामले की जानकारी होगी.
विजयेंद्र सिंह ने 2 सिपाहियों को मूड़ाघाट भेज कर लाश की शिनाख्त कराने के लिए विजयपाल को मौके पर बुलवा लिया. विजयपाल के साथ उन का बेटा और छोटा भाई भी साथसाथ आए थे. विजयपाल युवती को देख कर पहचान गए, वह उन की बेटी किरन चौहान थी जो बीती रात रहस्यमय तरीके से गायब थी.
लाश देख कर विजयपाल चौहान, उन का बेटा और छोटा भाई दहाड़ मार कर रोने लगे. पुलिस ने उन्हें किसी तरह शांत कराया. लाश का पंचनामा भर कर पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. विजयेंद्र सिंह अपनी टीम के साथ थाने लौट आए. पुलिस ने किरन की गुमशुदगी को हत्या की धारा (302) में तरमीम कर दिया, जिस में अज्ञात हत्यारों को आरोपी बनाया गया.
डा. प्रकाश सिंह वैज्ञानिक थे. उन का हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक दिन उन के फ्लैट में परिवार के सभी सदस्यों की लाशें मिलीं?
एक जुलाई की बात है. सुबह के करीब 7 बजे का समय था. रोजाना की तरह घरेलू नौकरानी जूली डा. प्रकाश सिंह के घर पहुंची. उस ने मकान की डोरबैल बजाई. बैल बजती रही, लेकिन न तो किसी ने गेट खोला और न ही अंदर से कोई आवाज आई.
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. डा. प्रकाश सिंह का परिवार सुबह जल्दी उठ जाता था. रोजाना आमतौर पर डा. सिंह की पत्नी सोनू सिंह उर्फ कोमल या बेटी अदिति डोरबैल बजने पर गेट खोल देती थीं. उस दिन बारबार घंटी बजाने पर भी गेट नहीं खुला तो जूली परेशान हो गई. वह सोचने लगी कि आज ऐसी क्या बात है, जो साहब की पूरी फैमिली अभी तक नहीं जागी है.
बारबार घंटी बजने पर घर के अंदर से पालतू कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थीं. कुत्तों की आवाज पर भी गेट नहीं खुलने पर जूली को चिंता हुई. उस ने पड़ोसियों को बताया. पड़ोसियों ने भी डोरबैल बजाई. दरवाजा खटखटाया और आवाजें दीं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. थकहार कर पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दे दी.
यह बात हरियाणा के जिला गुरुग्राम के सेक्टर-49 स्थित पौश सोसायटी ‘उप्पल साउथ एंड’ की है. डा. प्रकाश इसी सोसायटी के एफ ब्लौक में 3 मंजिला बिल्डिंग के भूतल पर स्थित आलीशान फ्लैट में रहते थे.
वह वैज्ञानिक थे और नामी दवा कंपनी सन फार्मा में निदेशक रह चुके थे. करीब एक महीने पहले ही डा. सिंह ने इस सन फार्मा कंपनी की नौकरी छोड़ी थी. कुछ दिनों बाद उन्हें हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनी में नई नौकरी जौइन करनी थी.
55 वर्षीय डा. सिंह के परिवार में उन की पत्नी डा. सोनू सिंह, 20 साल की बेटी अदिति और 14 साल का बेटा आदित्य था. चारों इसी फ्लैट में रहते थे. डा. प्रकाश सिंह दवा कंपनी में वैज्ञानिक की नौकरी के साथसाथ पत्नी के साथ स्कूल भी चलाते थे. गुरुग्राम और पलवल में उन के 4 स्कूल थे. बेटी अदिति भी बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी जबकि बेटा नवीं कक्षा में पढ़ता था.
सोसायटी के लोगों की सूचना पर कुछ ही देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने भी पहले तो डा. सिंह के मकान की डोरबैल बजाई और कुंडी खटखटाई, लेकिन जब गेट नहीं खुला तो खिड़की तोड़ने का फैसला किया गया. खिड़की तोड़ कर पुलिस मकान के अंदर पहुंची तो वहां का भयावह नजारा देख कर हैरान रह गई.
बैडरूम में 3 लाशें पड़ी थीं. खून फैला हुआ था. घर की लौबी में लगे पंखे में बंधी नायलौन की रस्सी से एक अधेड़ आदमी लटका हुआ था. रूम में बैड पर एक लड़की का और बैड से नीचे एक किशोर के शव पड़े थे. इन से करीब 6 फुट दूर जमीन पर अधेड़ महिला की लाश पड़ी थी. तीनों पर हथौड़े जैसी भारी चीज से वार करने के बाद गला काटने के निशान थे.
पुलिस ने बैड और जमीन पर पड़े तीनों लोगों की नब्ज टटोल कर देखी, लेकिन उन की सांसें थम चुकी थीं. उन के शरीर में जीवन के कोई लक्षण नहीं थे. पंखे से लटके अधेड़ की जान भी जा चुकी थी.
पड़ोसियों से पुलिस ने उन लाशों की शिनाख्त करवाई तो पता चला कि पंखे से लटका शव डा. प्रकाश सिंह का था और बैड पर उन की बेटी अदिति व बेटे आदित्य की लाशें पड़ी थीं. जमीन पर पड़ा शव डा. सिंह की पत्नी डा. सोनू सिंह का था.
पुलिस ने खोजबीन की तो डा. प्रकाश सिंह के पायजामे की जेब से 4 लाइनों का अंगरेजी में लिखा सुसाइड नोट मिला. सुसाइड नोट में उन्होंने परिवार संभालने में असमर्थता जताते हुए घटना के लिए खुद को जिम्मेदार बताया था. सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी.
डा. प्रकाश सिंह के घर में पुलिस को 4 पालतू कुत्ते भी मिले. जमीन पर खून फैला होने के कारण कुत्ते भी खून से लथपथ थे. इन में 2 कुत्ते जरमन शेफर्ड और 2 कुत्ते पग प्रजाति के थे. परिवार के चारों सदस्यों ने ये अलगअलग कुत्ते पाल रखे थे.
जरमन शेफर्ड कुत्ते डा. प्रकाश और उन के बेटे आदित्य को तथा पग प्रजाति के कुत्ते डा. सोनू व उन की बेटी अदिति को प्रिय थे. ये चारों कुत्ते कमरे में शवों के पास बैठे थे. पुलिस के घर आने पर ये कुत्ते भौंकने लगे थे. नौकरानी जूली ने उन्हें पुचकार कर शांत किया.
प्रारंभिक तौर पर यही नजर आ रहा था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या करने के बाद फांसी लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. डा. प्रकाश के पूरे परिवार की मौत की जानकारी मिलने पर पूरी सोसायटी में सनसनी फैल गई.
लोगों से पूछताछ में ऐसी कोई बात पुलिस के सामने नहीं आई, जिस से यह पता चलता कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या के बाद खुद फांसी क्यों लगा ली. पड़ोसियों ने बताया कि डा. प्रकाश और उन का परिवार खुशमिजाज था. उन्हें पैसों की भी कोई परेशानी नहीं थी.
पड़ोसियों से पूछताछ कर पुलिस ने डा. प्रकाश के परिजनों और रिश्तेदारों का पता लगाया. फिर उन्हें सूचना दी गई. सूचना मिलने पर सब से पहले डा. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा वहां पहुंचीं.
दिल्ली में रहने वाली सीमा अरोड़ा हाईकोर्ट में वकील हैं. उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछली रात 11 बजे तक डा. प्रकाश के घर में सब कुछ ठीकठाक था. वह खुद रात 11 बजे तक अदिति से वाट्सऐप पर चैटिंग कर रही थीं.
सीमा अरोड़ा की बातों से यह तय हो गया कि यह घटना रात 11 बजे के बाद हुई. दूसरा यह भी था कि सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी. एक जुलाई रात 12 बजे शुरू हुई थी. सीमा अरोड़ा से बातचीत में पुलिस को ऐसा कोई कारण पता नहीं चला, जिस से इस बात का खुलासा होता कि डा. प्रकाश ने ऐसा कदम क्यों उठाया.
वैज्ञानिक के परिवार के 4 सदस्यों की मौत की जानकारी मिलने पर गुरुगाम पुलिस के तमाम आला अफसर मौके पर पहुंच गए. एफएसएल टीम भी बुला ली गई. फोरैंसिक वैज्ञानिकों ने घर में विभिन्न स्थानों से घटना के संबंध में साक्ष्य एकत्र किए. पुलिस ने डा. प्रकाश का शव फंदे से उतारा. दोपहर में चारों शवों को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.
इस दौरान पुलिस ने घर के बाथरूम से 3 मोबाइल फोन बरामद किए. ये फोन पानी से भरी बाल्टी में पड़े थे. तीनों मोबाइलों के अंदर पानी चले जाने से ये चालू नहीं हो रहे थे. इसलिए तीनों मोबाइल फोरैंसिक लैब भेज दिए गए. पुलिस ने इस के अलावा मौके से रक्तरंजित एक तेज धारदार चाकू अैर एक हथौड़ा बरामद किया. माना गया कि इसी चाकू व हथौड़े से पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या की गई.
पुलिस ने इसी दिन सीमा अरोड़ा के बयानों के आधार पर सेक्टर-50 थाने में मामला दर्ज कर लिया. डा. सिंह के परिवार के चारों कुत्ते देखभाल के लिए फिलहाल पड़ोसियों को सौंप दिए गए.
अस्पताल में चारों शवों के मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने की काररवाई में रात हो गई. अगले दिन 2 जुलाई को डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह के परिवारों के लोग सुबह ही गुरुग्राम पहुंच गए. पुलिस ने दोनों पक्षों के बयान लिए और जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सुबह करीब पौने 12 बजे चारों शव परिजनों को सौंप दिए.
12 दिसंबर, 2019 की सुबह तिर्वा-कन्नौज मार्ग पर आवागमन शुरू हुआ तो कुछ लोगों ने ईशन नदी पुल के नीचे एक महिला का शव पड़ा देखा. कुछ ही देर में पुल पर काफी भीड़ जमा हो गई. पुल पर लोग रुकते और झांक कर लाश देखने की कोशिश करते और चले जाते.
कुछ लोग ऐसे भी थे जो पुल के नीचे जाते और नजदीक से शव की शिनाख्त करने की कोशिश करते. यह खबर क्षेत्र में फैली तो भुडि़या और आसपास के गांवों के लोग भी आ गए. भीषण ठंड के बावजूद सुबह 10 बजे तक सैकड़ों लोगों की भीड़ घटनास्थल पर जमा हो गई. इसी बीच भुडि़यां गांव के प्रधान जगदीश ने मोबाइल फोन से यह सूचना थाना तिर्वा को दे दी.
सूचना मिलते ही तिर्वा थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने लाश मिलने की सूचना जिले के पुलिस अधिकारियों को दी, और लाश का निरीक्षण करने लगे. महिला का शव पुल के नीचे नदी किनारे झाडि़यों में पड़ा था. उस की उम्र 25-26 साल के आसपास थी. वह हल्के हरे रंग का सलवारकुरता और क्रीम कलर का स्वेटर पहने थी, हाथों में मेहंदी, पैरों में महावर, चूडि़यां, बिछिया पहने थी और मांग में सिंदूर. लगता जैसे कोई दुलहन हो.
मृतका का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था, और झुलसा हुआ था. उस के गले में सफेद रंग का अंगौछा पड़ा था. देख कर लग रहा था, जैसे महिला की हत्या उसी अंगौछे से गला कस कर की गई हो. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा कुचल कर तेजाब से जला दिया गया था.
महिला की हत्या पुल के ऊपर की गई थी और शव को घसीट कर पुल के नीचे झाडि़यों तक लाया गया था. घसीट कर लाने के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. महिला के साथ बलात्कार के बाद विरोध करने पर हत्या किए जाने की भी आशंका थी.
थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा अभी शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह, एएसपी विनोद कुमार तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम प्रभारी राकेश कुमार को बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम प्रभारी ने वहां से सबूत एकत्र किए.
अब तक कई घंटे बीत चुके थे, घटनास्थल पर भीड़ जमा थी. लेकिन कोई भी शव की शिनाख्त नहीं कर पाया. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने महिला के शव के बारे में भुडि़या गांव के ग्राम प्रधान जगदीश से बातचीत की तो उन्होंने कहा, ‘‘सर, यह महिला हमारे क्षेत्र की नहीं, कहीं और की है. अगर हमारे क्षेत्र की होती तो अब तक शिनाख्त हो गई होती.’’
एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को भी ग्राम प्रधान की बात सही लगी. उन्होंने थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द महिला की हत्या का खुलासा करें.
थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने आवश्यक काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दी. किसी थाने में मृतका की गुमशुदगी दर्ज तो नहीं है, यह जानने के लिए उन्होंने वायरलैस से सभी थानों में अज्ञात महिला की लाश मिलने की सूचना प्रसारित करा दी.
इस के साथ ही उन्होंने क्षेत्र के सभी समाचार पत्रों में महिला की लाश के फोटो छपवा कर लोगों से उस की पहचान करने की अपील की.
इस का परिणाम यह निकला कि 13 दिसंबर को अज्ञात महिला के शव की पहचान करने के लिए कई लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. लेकिन उन में से कोई भी शव को नहीं पहचान पाया. शाम 4 बजे 3 डाक्टरों के एक पैनल ने अज्ञात महिला के शव का पोस्टमार्टम शुरू किया.
मिला छोटा सा सुराग
पोस्टमार्टम के पहले जब महिला के शरीर से कपड़े अलग किए गए तो उस की सलवार के नाड़े के स्थान से कागज की एक परची निकली, जिस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम करने के बाद रिपोर्ट के साथ वह मोबाइल नंबर लिखी परची भी थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को दे दी.
दूसरे दिन थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अवलोकन किया. रिपोर्ट के मुताबिक महिला की हत्या गला दबा कर की गई थी. चेहरे को भारी वस्तु से कुचला गया था और उसे तेजाब डाल कर जलाया गया था. बलात्कार की पुष्टि के लिए 2 स्लाइड बनाई गई थीं.
थानाप्रभारी ने परची पर लिखे मोबाइल नंबर पर फोन मिलाया तो फोन बंद था. उन्होंने कई बार वह नंबर मिला कर बात करने की कोशिश की लेकिन वह हर बार वह नंबर स्विच्ड औफ ही मिला.
टी.पी. वर्मा को लगा कि यह रहस्यमय नंबर महिला के कातिल तक पहुंचा सकता है, इसलिए उन्होंने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि घटना वाली रात वह नंबर पूरी रात सक्रिय रहा था. इतना ही नहीं, रात 1 से 2 बजे के बीच इस नंबर की लोकेशन भुडि़या गांव के पास की मिली. इस नंबर से उस रात एक और नंबर पर कई बार बात की गई थी. उस नंबर की लोकेशन भी भुडि़या गांव की ही मिल रही थी.
थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने दोनों नंबरों की जानकारी निकलवाई तो पता चला कि वे दोनों नंबर विजय प्रताप और अजय प्रताप पुत्र हरिनारायण, ग्राम पैथाना, थाना ठठिया, जिला कन्नौज के नाम से लिए गए थे. इस से पता चला कि विजय प्रताप और अजय प्रताप दोनों सगे भाई हैं.
15 दिसंबर, 2019 की रात 10 बजे थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पुलिस टीम के साथ थाना ठठिया के गांव पैथाना में हरिनारायण के घर छापा मारा. छापा पड़ते ही घर में भगदड़ मच गई.
एक युवक को तो पुलिस ने दबोच लिया, किंतु दूसरा मोटरसाइकिल स्टार्ट कर भागने लगा. इत्तफाक से गांव की नाली से टकरा कर उस की मोटरसाइकिल पलट गई. तभी पीछा कर रही पुलिस ने उसे दबोच लिया. मोटरसाइकिल सहित दोनों युवकों को थाना तिर्वा लाया गया.
थाने पर जब उन से नामपता पूछा गया तो एक ने अपना नाम विजयप्रताप उर्फ शोभित निवासी ग्राम पैथाना थाना ठठिया जिला कन्नौज बताया. जबकि दूसरा युवक विजय प्रताप का भाई अजय प्रताप था.
अजय-विजय को जब मृतका के फोटो दिखाए गए तो दोनों उसे पहचानने से इनकार कर दिया. दोनों के झूठ पर थानाप्रभारी वर्मा को गुस्सा आ गया. उन्होंने उन से सख्ती से पूछताछ की तो विजय प्रताप ने बताया कि मृत महिला उस की पत्नी नीलम थी. हम दोनों ने ही मिल कर नीलम की हत्या की थी और शव को ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दिया था.
अजय और विजय ने हत्या का जुर्म तो कबूल कर लिया. किंतु अभी तक उन से आला ए कत्ल बरामद नहीं हुआ था. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने इस संबंध में पूछताछ की तो उन दोनों ने बताया कि हत्या में प्रयुक्त मफलर तथा खून से सनी ईंटें उन्होंने ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दी थीं.
थानाप्रभारी उन दोनों को ईशन नदी पुल के नीचे ले गए. वहां दोनों ने झाडि़यों में छिपाई गई ईंट तथा मफलर बरामद करा दिया. पुलिस ने उन्हें साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया.
विजय प्रताप के पास मृतका नीलम के मामा श्यामबाबू का मोबाइल नंबर था. उस नंबर पर टी.पी. वर्मा ने श्यामबाबू से बात की और नीलम के संबंध में कुछ जानकारी हासिल करने के लिए थाना तिर्वा बुलाया. हालांकि उन्होंने श्यामबाबू को यह जानकारी नहीं दी कि उस की भांजी नीलम की हत्या हो गई है.
श्यामबाबू नीलम को ले कर पिछले 2 सप्ताह से परेशान था. वजह यह कि उस की न तो नीलम से बात हो पा रही थी और न ही उस के पति विजय से. थाना तिर्वा से फोन मिला तो वह तुरंत रवाना हो गया.
मामा ने बताई असल कहानी
कानपुर से तिर्वा कस्बे की दूरी लगभग सवा सौ किलोमीटर है, इसलिए 4 घंटे बाद श्यामबाबू थाना तिर्वा पहुंच गया. थाने पर उस समय थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा मौजूद थे. वर्मा ने उसे एक महिला का फोटो दिखते हुए पूछा, ‘‘क्या तुम इस महिला हो पहचानते हो?’’
रामकिशोर को चूंकि रिया पहली नजर में ही पसंद आ गई थी, इसलिए उन्होंने तुरंत हां कर दी. सौदा पट गया तो साजिद ने फोन पर उन से कहा कि आप वहीं इंतजार करें, एक स्कोडा कार आप को लेने आ रही है. इस कार का नंबर उस ने रामकिशोर को बता दिया.
इंतजार के 10 मिनट 10 साल सरीखे बीते, जिन में रामकिशोर रिया के संगमरमरी जिस्म के उतारचढ़ावों की कल्पना में डूबे रहे. जैसे ही कार उन के नजदीक आई तो वे फुरती से उस में बैठ गए. मानो देर हो गई तो गंगा डुबकी का मुहूर्त हाथ से निकल जाएगा.
मकान के भव्य कमरे में जैसे ही रिया रामकिशोर के सामने पड़ी, तो उन के रहेसहे होश भी उड़ गए. सचमुच रिया संगमरमर की शिला जैसी थी और फिगर भी वही था जो साजिद ने बताया था. खजुराहो और अजंता एलोरा की मैथुनरत मूर्तियां भी रामकिशोर को साकार होती लग रही थीं.
आम भारतीय ग्राहक की सहज होने की कमजोरियां ऐसे वक्त में ही उजागर होती हैं. रामकिशोर रिया से उस की राष्ट्रीयता वगैरह पूछने लगे. अच्छा तो यह रहा कि उन्होंने उस से उस की जाति और गोत्र वगैरह नहीं पूछे.
उधर रिया इस बेवजह और फिजूल की संगोष्ठी के मूड में कतई नहीं थी, फिर भी उस ने औपचारिक लेकिन पेशेवर अंदाज में जवाब दे दिया कि वह उजबेकिस्तान ताशकंद की रहने वाली है और इन बेकार की बातों में वक्त जाया करने से कोई फायदा नहीं, आप तो बस अपना काम करो और बढ़ लो.
रिया को मालूम था कि रामकिशोर ने उस की सिंगल यानी एक बार के लिए बुकिंग कराई है, जिस का चार्ज 10 हजार रुपए है और टाइम लिमिट 40 मिनिट. उसे रामकिशोर की बातों पर झल्लाहट आ रही थी कि आया है मौजमस्ती करने और देह सुख लेने, लेकिन बात 1966 में हुए ताशकंद समझौते की कर रहा है. इस ऐतराज पर रामकिशोर को गुस्सा आ गया और उन्होंने पूछा कि पूरी रात का क्या लोगी तो रिया ने झट जवाब दिया 25 हजार रुपए.
रामकिशोर की हालत बार में बैठे उस शराबी की तरह हुई जा रही थी, जो जाता तो एकदो पैग पीने की गरज से है लेकिन नशा न होते देख फुल बोतल गटक जाता है. लिहाजा वे 25 हजार देने को तैयार हो गए जो रिया ने तुरंत रखवा लिए. शर्त या प्रावधान यह भी था कि रामकिशोर जैसे चाहेंगे वैसे वह उन्हें मजा या सुख कुछ भी कह लें, देगी.
पैसे दे कर रामकिशोर ने अपनी यह ख्वाहिश रिया को बता दी कि वे औरल सैक्स चाहते हैं तो उस ने कोई नानुकुर नहीं की क्योंकि पैकेज में यह शामिल था लेकिन उस बाबत उस ने लाइट बंद की तो रामकिशोर बोले यह सब मैं रोशनी में चाहता हूं.
इस पर रिया ने उन से कहा कि रोशनी में करवाना है तो 2 हजार रुपए एक्स्ट्रा देने होंगे. इस पर भी वे तैयार हो गए तो रिया ने ये पैसे भी नकद ले लिए और जैसा वे चाहते थे, करना शुरू कर दिया.
यही वह वक्त था जब पुलिस के भेजे सिपाही ने साजिद से एक लड़की के बाबत सौदा तय कर अपने अधिकारियों को छापा मारने का सिगनल दे दिया था. फिल्मी स्टाइल में पुलिस ने छापा मारा और हमेशा की तरह एकएक कर 4 कालगर्ल्स और 4 ग्राहकों को आपत्तिजनक अवस्था में पकड़ा, जिन में से एक रामकिशोर मीणा भी थे.
हर छापे की तर्ज पर ही मकान से आपत्तिजनक सामग्री जिन में कंडोम, ब्लू फिल्मों की सीडी और कामोत्तेजक दवाएं वगैरह होती हैं, भी जब्त हुईं और पंचनामा भी बन गया. साजिद के साथ उस की पत्नी शबनम भी गिरफ्तार कर लिए गए. पकड़ी गई लड़कियों में से 2 नेपाली थीं और एक पश्चिम बंगाल की थी.
पुलिसिया खानापूर्तियों के बाद पता चला कि रिया टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थी और वह दिल्ली के मालवीय नगर में रहती है. वह कोई 7 साल से यह धंधा कर रही थी और 17 साल की उम्र में ही इस धंधे में आ गई थी. साजिद ने एक दलाल अजय से उसे 15 दिन के लिए डेढ़ लाख रुपए में हायर किया था या ठेके पर लिया था एक ही बात है. पता यह भी चला कि इन कालगर्ल्स का सारा खर्च मेजबान दलाल उठाते हैं जो देश के विभिन्न हिस्सों में घूम कर धंधा करती हैं. भोपाल में रिया और दूसरी कालगर्ल्स का खर्च साजिद उठा रहा था. नेपाली लड़कियां रिया के मुकाबले सस्ती थीं.
देखा जाए तो साजिद घाटे का सौदा नहीं कर रहा था, क्योंकि रिया औसतन उसे 30 हजार रुपए रोज दिलवा रही थी यानी 15 दिन के साढ़े 4 लाख रुपए. अजय को डेढ़ लाख देने के बाद साजिद बचे 3 लाख रुपए में से अगर एक लाख खर्च भी कर रहा था तो 15 दिन में 2 लाख रुपए तो कमा ही रहा था. इतनी ही रकम वह पत्नी शबनम और दूसरी कालगर्ल्स से बना रहा था.
इस कहानी के लिखे जाने तक रिया के बारे में पुलिस और जानकारियां जुटाने में लगी थी और सभी की एचआईवी जांच भी करा रही थी क्योंकि कुछ महीने पहले ही एक छापे में कुछ अफ्रीकन लड़कियां पकड़ी गई थीं, जिन में से 2 की रिपोर्ट एचआईवी पाजिटिव आई थी.
एक साजिद का गिरोह पकड़े जाने से यह नहीं माना जा सकता कि देहव्यापार बंद हो गया. हां, इतना जरूर हर किसी को समझ आ गया कि अब देहव्यापार काफी हाईटेक हो चला है और भोपाल जैसे शहर में भी विदेशी कालगर्ल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है.
रामकिशोर मीणा जैसे पकड़े गए लोग अपनी इच्छाओं को नहीं, बल्कि किस्मत को कोसते नजर आते हैं कि उन्होंने छापे वाले दिन ही सौदा क्यों किया या छापा उसी दिन क्यों पड़ा जिस दिन उन्होंने सौदा किया था.
रही बात साजिद की तो उसे कोई खास नुकसान होगा, ऐसा लग नहीं रहा. जमानत पर छूट जाने के बाद वह कहीं और जा कर कारोबार जमा लेगा. लेकिन मुकदमा लंबा खींचने में वह कोई कसर नहीं छोड़ेगा. जिस ने भी इस छापे की खबर पढ़ी उस ने साजिद को कोसा कि कैसा बेशर्म आदमी था जो बीवी को भी देहव्यापार की दलदल में घसीट लाया. शायद ही कोई इस बात का जवाब दे पाए कि गरीबी भुखमरी और अभावों की दलदल इस सब से बेहतर थी क्या?
कुछ दिन बाद फातिमा वापस घर चली गई. हालांकि घर इतनी दूर भी नहीं था कि आनाजाना न हो सके. इस घटना के बाद फातिमा अकसर किसी बहाने से बहन के घर आनेजाने लगी. इसी बीच डेढ़ साल बाद समरीन गर्भवती हुई तो फातिमा एक बार फिर बहन की तीमारदारी के लिए महीने भर उस के घर आ कर रही. इस दौरान फिर से दोनों के बीच नाजायज रिश्तों का अध्याय लिखा जाने लिखा.
साली को घरवाली बनाने की थी योजना
समरीन ने छोटे बेटे तैमूर को जन्म दिया. लेकिन तब तक आसिफ और फातिमा के बीच नाजायज रिश्ते की भनक न तो समरीन को लगी थी न ही फातिमा के परिवार वालों को. लेकिन फातिमा के शरीर की गंध पाने के बाद आसिफ को अपनी पत्नी समरीन से लगाव कम होने लगा था.
अचानक आसिफ के मन में फातिमा को अपना बनाने की लालसा तेज होने लगी. उस ने सोचा कि अगर समरीन मर जाए तो वह अपने बच्चों की देखभाल के लिए ससुराल वालों को मौसी को उन की मां बनाने के लिए तैयार कर सकता है. लेकिल सवाल था कि हट्टीकट्टी और जवान समरीन मरेगी कैसे.
आसिफ के मन में उसी समय यह खयाल आया कि क्यों न समरीन को किसी ऐसे तरीके से मार दिया जाए कि उस की मौत सब को स्वाभाविक लगे. बस ये खयाल मन में आते ही उस के दिमाग में साजिश के कीडे़ रेंगने लगे. आसिफ का एक दोस्त था रविंद्र जो गोविंद टाउन, बेहटा हाजीपुर में रहता था और वहीं पर जनकल्याण क्लीनिक चलाता था.
वैसे तो रविंद्र झोलाछाप डाक्टर था, लेकिन आसिफ के साथ खानेपीने के कारण उस की दोस्ती हो गई थी. आसिफ अपने बच्चोें को उसी से दवा वगैरह दिलवाता था. उस ने अपने मन की बात एक दिन रविंद्र को बताई. उस ने कहा कि इलाज के बहाने वह समरीन को ऐसा इंजेक्शन लगा दे कि उस की मौत हो जाए.
रविंद्र इस काम के लिए राजी तो हो गया लेकिन उस ने इस काम के लिए पैसे मांगे. आसिफ ने कह दिया कि वह काम कर दे, इस के बदले वह उसे मोटी रकम देगा. लिहाजा डा. रविंद्र ने उसे एक ऐसी दवा दे दी जिस को खाने के बाद समरीन पर रिएक्शन होना था. लेकिन संयोग से उस दवा को खाने के बाद जो थोड़ाबहुत असर हुआ, उसे समरीन ने घरेलू उपचार कर के ठीक कर लिया.
पहली साजिश फेल हो गई तो डा. रविंद्र ने कहा, ‘‘चलो तुम्हें एक और डाक्टर संदीप से मिलाता हूं, जो लोनी मे श्री साईं क्लीनिक चलाते हैं.’’
रविंद्र ने संदीप से आसिफ की मुलाकात कराई और उस का मकसद बताया. आसिफ का काम करने के लिए संदीप ने पैसे की मांग की तो आसिफ ने दोनों को 30 हजार रुपए दे दिए.
डा. संदीप ने एक दिन बुखार के इलाज के बहाने आसिफ के साथ उस के घर जा कर समरीन को एक जहरीला इंजेक्शन भी दिया, लेकिन कई दिन इंतजार के बाद भी समरीन की मौत नहीं हुई तो आसिफ निराश हो गया.
इस दौरान संदीप और रविंद्र आसिफ से मिले पैसे से मौजमस्ती करने के लिए मंसूरी चले गए. जब वापस लौटे तो उन्हें पता चला कि इंजेक्शन से भी समरीन की मृत्यु नहीं हुई है. इसलिए आसिफ उन से पैसे वापस मांगने लगा.
तब संदीप ने कहा कि वह एक आदमी के जरिए इस काम को सफाई से करवा सकता है लेकिन इस काम में थोड़ी ज्यादा रकम लगेगी. आसिफ इस के लिए भी तैयार हो गया.
लेकिन इस दौरान आसिफ की साली फातिमा का उस के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया समरीन ने देखा की फातिमा उसे छोड़ कर अपने जीजा के आसपास कुछ ज्यादा मंडराती है, तो उसे शक हुआ. उस ने दोनों के ऊपर निगाहें रखनी शुरू कर दीं. शक यकीन में तब बदल गया, जब एक दिन फातिमा चाय देने के बहाने नीचे वर्कशाप में आसिफ के पास पहुंची और आसिफ ने लपक कर उसे अपनी बांहों में भर लिया.
संयोग से शक की पुष्टि के लिए समरीन पीछे से आ गई और सबकुछ अपनी आंखों से देख लिया. उस दिन खूब हंगामा हुआ. उस दिन समरीन ने छोटी बहन को खूब डांटा और आसिफ से उस की जम कर लड़ाई हुई.
समरीन ने अपने मातापिता को तो बहन के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन परिवार वालों पर जोर देना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द फातिमा के लिए अच्छा सा लड़का देख कर उस का निकाह कर दें. परिवार वालों ने उस के लिए लड़का देख लिया और 7 मार्च, 2020 निकाह की तारीख तय कर दी.
इस बीच फातिमा के निकाह को ले कर समरीन और आसिफ में अकसर झगड़ा होने लगा. आसिफ समरीन से कहता था कि 2 बहनें एक साथ एक ही पति की बेगम बन कर भी तो रह सकती हैं. पता नहीं जिस से फातिमा की शादी हो वो लोग कैसे हों, उसे सुख दे सकें या नहीं. बस इसी बात पर दोनों में झगड़ा इस कदर बढ़ता कि मारपीट तक हो जाती.
दोनों के बीच मारपीट की बात समरीन के मातापिता तक पहुंची, लेकिन समरीन ने उन्हें कभी हकीकत का पता नहीं लगने दिया. जब आसिफ ने देखा कि समरीन उस के और फातिमा के रास्ते का कांटा बन चुकी है तो उस ने आखिरकार उस की हत्या के लिए आखिरी साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया. आसिफ ने डा. संदीप से कहा कि अब वह जल्द से जल्द समरीन की हत्या वाला काम करवा दे.
बदमाश सुनील शर्मा से किया संपर्क
इस के बाद संदीप आसिफ को अपने साले के साले के साले सुनील शर्मा निवासी भीमपुर, थाना बहजोई, जिला मुरादाबाद के पास ले गया, जो इन दिनों लोनी की पुश्ता कालोनी में रहता था. आसिफ को जब पता चला कि सुनील शर्मा आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है और पहले उत्तराखंड जेल में भी रह चुका है तो उसे यकीन हो गया कि यह आदमी उस का काम कर देगा.
आसिफ ने सुनील से 2 लाख रुपए मे समरीन की हत्या का सौदा पक्का कर लिया, जिस में से लगभग 90 हजार रुपए आसिफ ने सुनील को 2-3 बार में दे दिए. लेकिन जैसेजैसे फातिमा की शादी नजदीक आ रही थी, वैसेवैसे आसिफ को समरीन की हत्या की जल्दी होने लगी थी.
9 जनवरी, 2020 को आसिफ ने सुनील से बेहटा हाजीपुर में उत्तरांचल सोसाइटी के पास मुलाकात की और बताया कि 11-12 जनवरी की रात को उसे यह काम पूरा करना है. उस ने सुनील को पूरा प्लान भी समझा दिया. इस काम में सुनील ने अपने 2 अपराधी दोस्तों को भी शामिल कर लिया था.
प्लान के मुताबिक 11 जनवरी, 2020 की रात सुनील अपने दोनों साथियों के साथ मेवाती चौक पर आसिफ के घर के बाहर पहुंचा. योजना के मुताबिक आसिफ दरवाजा खोल कर काम कर रहा था. उस ने नीचे वाले कमरे में सुनील व उस के दोनों साथियों को बैठा दिया और खुद सोने के लिए ऊपर चला गया.
आधे घंटे में खाना खाने के बाद उस ने अपने साले और बेटे, जो मोबाइल पर गेम खेल रहे थे, से मोबाइल ले कर बंद कर दिए और जल्दी से सोने को कहा, ताकि सुबह जल्दी उठा जा सके. उस ने जीने की तरफ आने वाले गेट की कुंडी नहीं लगाई थी ताकि सुनील व उस के साथी आसानी से दरवाजा खोल कर ऊपर आ सकें.
आसिफ हत्या में खुद भी रहा शामिल
प्लान के मुताबिक रात 1 से 3 बजे के बीच में सुनील अपने दोनों साथियों के साथ उस कमरे में आया, जहां आासिफ व उस की बीवी सो रहे थे. आसिफ ने उन तीनों के साथ मिल कर पहले अपनी पत्नी समरीन की गला घोंट कर हत्या करवा दी. फिर अपने हाथपैर बंधवा कर ऊपरी मंजिल पर ले जाने के लिए कहा. ताकि ऊपर सो रहे साले व लड़के को लगे कि वास्तव में बदमाशों द्वारा इस घटना को अंजाम दिया गया है.
हत्या हो जाने के बाद आसिफ ने बदमाशों से कहा कि 23 हजार रुपए और लगभग 70 से 75 हजार रुपए का हार अलमारी में रखा है, जिसे तुम अपने शेष एक लाख रुपए के रूप में ले लो.
वारदात के दौरान उस ने अपने हाथ थोड़ा ढीले बंधवाए ताकि उन के जाने के कुछ देर बाद वह हाथ खोल कर शोर मचा सके.
किसी को शक न हो इसलिए उस ने ही बदमाशों को ऊपर के कमरे में सब को बंद कर के कुंडी बाहर से बंद करने और जाते समय मकान के मुख्यद्वार को बाहर से बंद करने का आइडिया दिया था.
आसिफ से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी शाम झोलाछाप डाक्टर रविंद्र और संदीप को भी समरीन की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.
आसिफ ने जो प्लान तैयार किया था, उस में उस ने एक गलती कर दी थी. उसेये ध्यान ही नहीं रहा कि जब पूरे घर में घुसने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है तो बिना जबरदस्ती किए बदमाश घर के अंदर दाखिल कैसे हो गए. इस बात का वह क्या जवाब देगा. बस यहीं से पुलिस को उस पर शक होना शुरू हो गया.
गिरफ्तार किए गए मुख्य आरोपी आसिफ और उस के दोनों सहयोगियों रविंद्र और संदीप को आवश्यक पूछताछ के बाद जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.
बाकी 3 फरार आरोपियों में से सुनील शर्मा को पुलिस ने 17 जनवरी, 2020 को लोनी क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सुनील ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस के दोनों साथियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीमें लगातार छापेमारी कर रही हैं.
मात्र 72 घंटे में ब्लाइंड मर्डर व डकैती केस को सुलझाने के लिए एसएसपी गाजियाबाद कलानिधि नैथानी ने विवेचक और लोनी बौर्डर थाने की पुलिस टीम को 20 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है.
कथा पुलिस जांच व अभियुक्तों से हुई पूछताछ पर आधारित. फातिमा परिवर्तित नाम है.
श्यामबाबू ने फोटो गौर से देखा फिर बोला, ‘‘सर, यह फोटो मेरी भांजी नीलम की है. इस की यह हालत किस ने की?’’
‘‘नीलम को उस के पति विजय प्रताप ने अपने भाई अजय की मदद से मार डाला है. इस समय दोनों भाई हवालात में हैं. 2 दिन पहले नीलम की लाश ईशन नदी पुल के नीचे मिली थी.’’ थानाप्रभारी ने बताया.
नीलम की हत्या की बात सुनते ही श्यामबाबू फफक पड़ा. वह बोला, ‘‘सर, मैं ने पहले ही नीलम को मना किया था कि विजय ऊंची जाति का है. वह उसे जरूर धोखा देगा. लेकिन प्रेम दीवानी नीलम नहीं मानी और 4 महीने पहले घर से भाग कर उस से शादी कर ली. आखिर उस ने नीलम को मार ही डाला.’’
थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने बिलख रहे श्यामबाबू को धीरज बंधाया और उसे वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत विजय प्रताप व अजयप्रताप के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने कातिलों के पकड़े जाने की जानकारी एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल को दे दी.
जानकारी पाते ही एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने प्रैसवार्ता कर के कातिलों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.
रमेश कुमार अपने परिवार के साथ लखनऊ के चारबाग में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सीता के अलावा एकलौती बेटी थी नीलम. रमेश रोडवेज में सफाईकर्मी था और रोडवेज कालोनी में रहता था. रमेश और उस की पत्नी सीता नीलम को जान से बढ़ कर चाहते थे.
रमेश शराब बहुत पीता था. शराब ने उस के शरीर को खोखला कर दिया था. ज्यादा शराब पीने के कारण वह बीमार पड़ गया और उस की मौत हो गई. पति की मौत के बाद पत्नी सीता टूट गई, जिस से वह भी बीमार रहने लगी. इलाज के बावजूद उसे भी बचाया नहीं जा सका. उस समय नीलम महज 8 साल की थी.
नीलम के मामा श्यामबाबू कानपुर शहर के फीलखाना थाना क्षेत्र के रोटी गोदाम मोहल्ले में रहते थे. बहनबहनोई की मौत के बाद श्यामबाबू अपनी भांजी को कानपुर ले आए और उस का पालनपोषण करने लगे. चूंकि नीलम के सिर से मांबाप का साया छिन गया था, इसलिए श्यामबाबू व उस की पत्नी मीना, नीलम का भरपूर खयाल रखते थे, उस की हर जिद पूरी करते थे. नीलम धीरेधीरे मांबाप की यादें बिसराती गई.
वक्त बीतता रहा. वक्त के साथ नीलम की उम्र भी बढ़ती गई. नीलम अब जवान हो गई थी. 19 वर्षीय नीलम गोरे रंग, आकर्षक नैननक्श, इकहरे बदन और लंबे कद की खूबसूरत लड़की थी. वह साधारण परिवार में पलीबढ़ी जरूर थी, लेकिन उसे अच्छे और आधुनिक कपड़े पहनने का शौक था.
नीलम को अपनी सुंदरता का अंदाजा था, लेकिन वह अपनी सुंदरता पर इतराने के बजाए सभी से हंस कर बातें करती थी. उस के हंसमुख स्वभाव की वजह से सभी उस से बातें करना पसंद करते थे.
नीलम के घर के पास एक प्लास्टिक फैक्ट्री थी. इस फैक्ट्री में विजय प्रताप नाम का युवक काम करता था. वह मूलरूप से कन्नौज जिले के ठठिया थाना क्षेत्र के गांव पैथाना का रहने वाला था. उस के पिता हरिनारायण यादव किसान थे.
3 भाईबहनों में विजय प्रताप उर्फ शोभित सब से बड़ा था. उस का छोटा भाई अजय प्रताप उर्फ सुमित पढ़ाई के साथसाथ खेती के काम में पिता का हाथ बंटाता था. विजय प्रताप कानपुर के रावतपुर में किराए के मकान में रहता था और रोटी गोदाम स्थित फैक्ट्री में काम करता था.
फैक्ट्री आतेजाते एक रोज विजय प्रताप की निगाहें खूबसूरत नीलम पर पड़ीं तो वह उसे अपलक देखता रह गया. पहली ही नजर में नीलम उस के दिलोदिमाग में छा गई. इस के बाद तो जब भी विजय प्रताप फैक्ट्री आता, उस की निगाहें नीलम को ही ढूंढतीं.
नीलम दिख जाती तो उस के दिल को सकून मिलता, न दिखती तो मन उदास हो जाता था. नीलम के आकर्षण ने विजय प्रताप के दिन का चैन छीन लिया था, रातों की नींद हराम कर दी थी.
तथाकथित प्यार में छली गई नीलम
ऐसा नहीं था कि नीलम विजय की प्यार भरी नजरों से वाकिफ नहीं थी. जब वह उसे अपलक निहारता तो नीलम भी सिहर उठती थी. उसे उस का इस तरह निहारना मन में गुदगुदी पैदा करता था. विजय प्रताप भी आकर्षक युवक था. वह ठाठबाट से रहता था. धीरेधीरे नीलम भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. लेकिन अपनी बात कहने की हिम्मत दोनों में से कोई नहीं जुटा पा रहा था.
जब से विजय प्रताप ने नीलम को देखा था, उस का मन बहुत बेचैन रहने लगा था. उस के दिलोदिमाग पर नीलम ही छाई रहती थी. धीरेधीरे नीलम के प्रति उस की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. वह नीलम से बात कर के यह जानना चाहता था कि नीलम भी उस से प्यार करती है या नहीं. क्योंकि नीलम की ओर से अभी तक उसे कोई प्रतिभाव नहीं मिला था.
एक दिन लंच के दौरान विजय प्रताप फैक्ट्री के बाहर निकला तो उसे नीलम सब्जीमंडी बाजार की ओर जाते दिख गई. वह तेज कदमों से उस के सामने पहुंचा और साहस जुटा कर उस से पूछ लिया, ‘‘मैडम, आप अकसर फैक्ट्री के आसपास नजर आती हैं. पड़ोस में ही रहती हैं क्या?’’
‘‘हां, मैं पड़ोस में ही अपने मामा श्यामबाबू के साथ रहती हूं.’’ नीलम ने विजय प्रताप की बात का जवाब देते हुए कहा, ‘‘अब शायद आप मेरा नाम पूछोगे, इसलिए खुद ही बता देती हूं कि नीलम नाम है मेरा.’’
‘‘मेरा नाम विजय प्रताप है. आप के घर के पास जो फैक्ट्री है, उसी में काम करता हूं. रावतपुर में किराए के मकान में रहता हूं. वैसे मैं मूलरूप से कन्नौज के पैथाना का हूं. मेरे पिता किसान हैं. छोटा भाई अजय प्रताप पढ़ रहा है. मुझे खेती के कामों में रुचि नहीं थी, सो कानपुर आ कर नौकरी करने लगा.’’
इस तरह हलकीफुलकी बातों के बीच विजय और नीलम के बीच परिचय हुआ जो आगे चल कर दोस्ती में बदल गया. दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर दे दिए. फुरसत में विजय प्रताप नीलम के मोबाइल पर उस से बातें करने लगा. नीलम को भी विजय का स्वभाव अच्छा लगता था, इसलिए वह भी फोन पर उस से अपने दिल की बातें कर लेती थी. इस का परिणाम यह निकला कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए.
प्यार का नशा कुछ ऐसा होता है जो किसी पर एक बार चढ़ जाए तो आसानी से नहीं उतरता. नीलम और विजय के साथ भी ऐसा ही हुआ. अब वे दोनों साथ घूमने निकलने लगे. रेस्टोरेंट में बैठ कर साथसाथ चाय पीते और पार्कों में बैठ कर बतियाते. उन का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा.
एक दिन मोतीझील की मखमली घास पर बैठे दोनों बतिया रहे थे, तभी अचानक विजय नीलम का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करता हूं. मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा. मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं. बोलो, मेरा साथ दोगी?’’
नीलम ने उस पर चाहत भरी नजर डाली और बोली, ‘‘विजय, प्यार तो मैं भी तुम्हें करती हूं और तुम्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहती हूं, लेकिन मुझे डर लगता है.’’
‘‘कैसा डर?’’ विजय ने अचकचा कर पूछा.
‘‘यही कि हमारी और तुम्हारी जाति अलग हैं. तुम्हारे घर वाले क्या हम दोनों के रिश्ते को स्वीकार करेंगे?’’
विजय प्रताप नीलम के इस सवाल पर कुछ देर मौन रहा फिर बोला, ‘‘नीलम, आसानी से तो घरपरिवार के लोग हमारे रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन जब हम उन पर दबाव डालेंगे तो मान जाएंगे. फिर भी न माने तो बगावत पर उतर जाऊंगा. मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें मानसम्मान दिला कर ही रहूंगा.’’
लेकिन इस के पहले कि वे दोनों अपने मकसद में सफल हो पाते, नीलम के मामा श्यामबाबू को पता चल गया कि उस की भांजी पड़ोस की फैक्ट्री में काम करने वाले किसी युवक के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है. श्यामबाबू नहीं चाहता था कि उस की भांजी किसी के साथ घूमेफिरे, जिस से उस की बदनामी हो.
मामा का समझाया नहीं समझी नीलम
इस तरह शबनम देहव्यापार के धंधे में आ गई और वाकई देखते ही देखते उन की गरीबी दूर होने लगी. शबनम पर पैसा लुटाने वालों की भीड़ बढ़ने लगी तो साजिद के दिमाग में बिजली सी कौंधी कि क्यों न यह कारोबार खुद के दम पर चलाया जाए. इस खयाल के पीछे वजह यह थी कि अभी मोटा कमीशन आंटी की जेब में चला जाता था, जिसे देख साजिद को लगता था कि यह पैसे भी उस के हो सकते हैं बशर्ते वह स्वतंत्र रूप से बीवी का दलाल बन कर यह धंधा शुरू कर दे.
इस इच्छा को अमल में लाने उस ने भोपाल के देहव्यापार के दलालों से संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया. मेहनत रंग लाई और कुछ दिनों बाद ही साजिद ने मकान बदल लिया. आंटी ने इस पर कोई खास ऐतराज नहीं जताया.
तजुर्बेकार होने के कारण वे इस धंधे के बुनियादी उसूल समझती थीं कि इस कारोबार में सप्लाई कम है और डिमांड ज्यादा है और वे शबनम से जितना ज्यादा कमा सकती थी उतना कमा चुकी थी.
दलालों से मिलने पर साजिद की हिम्मत और बढ़ी तो जल्द ही उस ने ज्यादा पैसे कमाने की गरज से जरूरत की मारी दूसरी लड़कियों से भी धंधा करवाना शुरू कर दिया. इस तरह उस की आमदनी बढ़ने लगी, क्योंकि अब उसे भी मोटा कमीशन मिलने लगा था और शबनम की कमाई तो सौ टका उसी की होती थी. दूसरी लड़कियों के आ जाने से शबनम अब खास ग्राहकों को ही खुश करती थी जो भारीभरकम पैसे देते थे.
2 साल में ही साजिद और शबनम की गरीबी दूर हो गई थी. इस दौरान उन्होंने खासा पैसा बना लिया था. साजिद चाहता तो इस पैसे से अपना कारोबार शुरू कर सकता था, लेकिन लालच बुरी बला वाली कहावत बेवजह नहीं गढ़ी गई है, जिस के चलते आदमी की अक्ल और समझ पर परदा पड़ जाता है. यही साजिद के साथ हो रहा था.
साजिद अब तक भोपाल के ही नहीं, बल्कि देश भर के दलालों के नेटवर्क से जुड़ चुका था. देहव्यापार का धंधा भी कितनी तरक्की कर रहा है, यह भी इसी दौरान उसे समझ आया था कि इस में कालगर्ल्स आजकल एक जगह टिक कर धंधा नहीं करतीं, बल्कि शहरशहर जा कर सर्विस देती हैं. इस में उन्हें पैसा भी ज्यादा मिलता है और पुलिस का खतरा भी कम होता है.
दुनिया का सब से बड़ा यह कारोबार हाइवे के टूटेफूटे ढाबों से ले कर फाइवस्टार होटल्स तक में चलता है. यह बात भी साजिद ने शिद्दत से देखी और समझी थी लेकिन होटलों के खतरों से भी वह नावाकिफ नहीं था. इसलिए उस ने और पैसा कमाने की गरज से दलाल के मार्फत भोपाल के एयरपोर्ट रोड पर बनी इंद्रविहार कालोनी में 11 हजार रुपए महीने का एक आलीशान मकान किराए पर ले लिया था.
लेकिन पैसों के नशे में चूर साजिद खुद को होशियार समझ रहा था. वह यह नहीं सोच पा रहा था कि उस के नाम और काम के चर्चे पुलिस के कानों में पड़ चुके हैं और पुलिस मौके का इंतजार कर रही है, जो उसे आखिरकार बीती 28 जनवरी को मिल ही गया.
एयरपोर्ट कालोनी लालघाटी स्थित इंद्रविहार कालोनी का मकान नंबर सी-106 वह मकान था, जो साजिद ने 15 जनवरी के आसपास किराए पर लिया था. इस मकान की अंदरूनी सजावट उस ने दिल से की थी. साजिद जानता था कि जो कस्टमर एक बार के 10-15 हजार रुपए और एक रात के 25-30 हजार रुपए तक देने की हैसियत रखते हैं, उन्हें तमाम चीजें लग्जरी चाहिए होती हैं.
अहतियात बरतते वह ठिकाने जरूर बदलता रहता था, लेकिन पुलिस वाले सैक्स रैकेट चलाने वालों की इस तरह की चालबाजियों को उन से ज्यादा जानतेसमझते हैं.
भोपाल क्राइम ब्रांच के एएसपी निश्चल झारिया कई दिनों से साजिद बंगाली नाम के इस दलाल पर मुखबिरों के जरिए नजर रखे हुए थे. लेकिन मौका उन्हें 28 जनवरी को तब मिला, जब एक भरोसेमंद मुखबिर ने उन्हें यह खबर दी कि इंद्रविहार कालोनी के मकान नंबर सी-106 में देहव्यापार हो रहा है और इस में कुछ विदेशी लड़कियां भी सर्विस दे रही हैं.
निश्चल झारिया ने इस गिरोह को दबोचने की कमान और जिम्मेदारी डीएसपी क्राइम सलीम खान और टीआई आलोक श्रीवास्तव को सौंप दी. इन दोनों ने विदेशी चिडि़यों और देसी बहेलिए को रंगेहाथों पकड़ने की योजना बना कर एक सिपाही को ग्राहक बना कर भेजा.
ठीक इस के पहले रामकिशोर मीणा मोबाइल पर साजिद बंगाली से बात कर रहे थे. रामकिशोर सतना के स्टेट बैंक औफ इंडिया की ब्रांच में सहायक मैनेजर हैं, जो भोपाल किसी काम से आए थे. शौकीन और रंगीनमिजाज रामकिशोर को साजिद का मोबाइल नंबर उन के एक दोस्त ने दिया था.
व्यावसायिक इलाके के एम.पी. नगर थाने के सामने भोपाल का सब से बड़ा मौल डीबी मौल है. यहां से रामकिशोर ने कड़ाके की ठंड में ‘गरमी’ पाने की मंशा से साजिद को फोन किया तो उन्हें निराशा हाथ नहीं लगी.
जब साजिद आश्वस्त हो गया कि रामकिशोर को उन के नियमित और विश्वसनीय ग्राहक ने भेजा है तो उस ने बातचीत के तुरंत बाद वाट्सऐप पर उन्हें 4 युवतियों की अर्धनग्न तस्वीरें भेज दीं. इन में से एक तसवीर रिया नाम की विदेशी गोरी चिकनी लड़की की भी थी, जिस का फिगर 36-28-36 बताया गया था. देसी तो कई बार आजमा चुके, क्यों न इस बार विदेशी लड़की ट्राई की जाए, यह सोचते हुए उन्होंने साजिद से रिया का रेट पूछा तो जवाब मिला एक बार के 10 हजार रुपए और लड़की हर तरह की सर्विस देगी.
आसिफ ने ग्राउंड फ्लोर पर अपनी वर्कशौप और गोदाम बनाया जबकि पहले दूसरे व तीसरे फ्लोर पर वह खुद रहने लगा. परिवार तेजी से बढ़ रहा था. डेढ़ साल पहले समरीन ने एक और बेटे को जन्म दिया. मेहमानों का भी घर में आवागमन रहता था, इसलिए आसिफ ने तीसरे फ्लोर को आनेजाने वालों के ठहरने और बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए रखा हुआ था.
आसिफ का इकलौता साला जुनैद अपने जीजा के पास रह कर काम सीख रहा था. हालांकि आसिफ की ससुराल उस के घर से 2 किलोमीटर की दूरी पर थी, इसलिए जुनैद कभी अपने घर चला जाता था तो कभी अपनी बहन के घर पर ही रुक जाता था.
आसिफ और उस की ससुराल वाले एकदृसरे के यहां रोज आतेजाते थे और एकदृसरे की कुशलक्षेम लेते रहते थे. लोनी में आने के बाद समरीन को यह फायदा हो गया था कि वह अपने परिवार के आ गई थी. हर दुखसुख में मातापिता और भाईबहन उस के साथ खड़े नजदीक थे.
आसिफ की जिंदगी मजे में गुजर रही थी कि अचानक 11 जनवरी की रात जब बदमाशों ने उस के घर में घुस कर लूटपाट की तो इस हादसे में बीवी समरीन की मौत के बाद उस की दुनिया ही उजड़ गई.
विवेचना अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ के बाद जब उस के परिवार की पूरी कुंडली खंगाली तो उन्होंने अपना ध्यान घटनाक्रम की कडि़यों को जोड़ने पर केंद्रित कर दिया.
दरअसल राजेंद्र पाल ने कई बार घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पाया कि 50 गज के तीनमंजिला मकान में एंट्री का एक ही रास्ता है, जो भूतल पर बने मुख्यद्वार के रूप में है. इसी फ्लोर पर आसिफ की वर्कशाप है. आसिफ का मकान चारों तरफ से ऊपर व नीचे से पूर्णत: बंद था, कहीं से भी घर में प्रवेश करने का कोई और रास्ता नहीं था.
बाहरी व्यक्ति का आने व जाने का अन्य कोई रास्ता नहीं था. मकान में बाहरी बदमाशों के घुसने के लिए कोई दरवाजा खिड़की या लौक टूटा नहीं नहीं मिला. मतलब कि दरवाजे से फ्रैंडली एंट्री हुई थी.
सीसीटीवी की फुटेज से यह बात तो साफ हो गई कि वारदात को अंजाम देने के लिए घर में 3 बदमाश घुसे थे. आसिफ ने भी अपने बयान में यह बात कही थी कि वारदात में शामिल बदमाशों की संख्या 3 से 4 थी, लेकिन उस ने देखा 3 को ही था.
बस इतना समझना बाकी था कि बदमाशों को घर में आने के लिए घर के ही किसी व्यक्ति ने दरवाजा खोला था या परिवार के लोग गलती से दरवाजा बंद करना भूल गए थे. हालांकि आसिफ ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि घर के मुख्यद्वार को अंदर से उसी ने बंद किया था. दूसरी अहम गुत्थी यह थी कि सीसीटीवी कैमरे में आसिफ के घर की तरफ आने वाले लोग 9 बजे के करीब आए थे और रात को पौने 4 बजे वापस जाते दिखे थे.
पीड़ितों के मुताबिक वारदात करने का वक्त 1 से 3 बजे के बीच का था. अब सवाल यह था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाश करीब 4-5 घंटे तक कहां छिपे रहे. अगर वे घर के बाहर होते तो सीसीटीवी कैमरे में या लोगों की नजर में जरूर आते. अगर वे घर के अंदर आ कर छिप गए थे तो परिवार में किसी को इस की भनक क्यों नहीं लगी.
13 जनवरी को लोनी बौर्डर थाने के प्रभारी निरीक्षक शैलेंद्र प्रताप सिंह छुट्टी से वापस लौट आए. उन्हें थाना क्षेत्र में हुई इस वारदात की सूचना मिली तो उन्होंने जांच अधिकारी एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बुला कर मामले की विस्तार से जानकारी ली. जब राजेंद्र पाल सिंह ने एसएचओ को अपने शक के बारे में बताया तो उन्होंने आसिफ को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के लिए कहा.
आसिफ से की पूछताछ
अपने सीनियर अधिकारी की हरी झंडी मिलते ही राजेंद्र पाल सिंह ने पूछताछ के बहाने आसिफ को थाने बुला लिया. इस दौरान उन्हें मुखबिरों की मदद से एक बात पता चल चुकी थी कि आसिफ रंगीनमिजाज है. अपनी पत्नी से उस का अकसर झगड़ा होता था. दोनों के बीच विवाद का कारण कोई महिला थी.
हालांकि जांच अधिकारी ने समरीन के पिता तनसीन को बुला कर इस जानकारी की पुष्टि करनी चाही, लेकिन वे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सके. उन्होंने इतना जरूर बताया था कि आसिफ और समरीन में पिछले कुछ महीनों से अकसर झगड़ा और मारपीट होती थी. लेकिन वे बेटी के घर में ज्यादा दखल देना नहीं चाहते थे, क्योंकि यह तो घरघर में होता है.
उन्होंने कालोनी में 3 मकान छोड़ कर एक घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की उस रात की फुटेज निकलवा ली थी, जिस से पता चला कि 11 जनवरी की रात 9 बजे 3 लोग आसिफ के मकान तक गए थे. वही लोग 12 जनवरी की सुबह करीब 3.35 बजे मकान से निकल कर गली से बाहर जाते हुए दिखे.
पुलिस ने आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से पूछा कि क्या उस रात किसी के घर कोई मेहमान तो नहीं आए थे. पता चला कि आसपड़ोस के किसी भी मकान में उस रात कोई अतिथि नहीं आया था.
चूंकि आसिफ का मकान गली के अंतिम सिरे पर था और गली आगे से बंद भी थी, इसीलिए जांच अधिकारी को शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस परिवार का ही कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो और उस ने ही बदमाशों के लिए दरवाजे खोले हों.
आसपड़ोस के लोगों ने पूछताछ में इस बात की पुष्टि जरूर कर दी थी कि उन्होंने उस रात करीब 9 बजे गली में 3 अनजान लोगों को जाते देखा था. लेकिन वे लोग किस के यहां जा रहे हैं, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.
कुछ लोगों ने साढ़े 8 बजे के करीब आसिफ को अपने घर के मुख्यद्वार के बरामदे में बैठ कर काम करते हुए देखा था. ये सारी बातें इस बात की तरफ इशारा कर रही थीं कि हो न हो घर का कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो. चूंकि आसिफ की पत्नी समरीन की हत्या हो चुकी थी, इसलिए उस पर शक करने का कोई औचित्य नहीं था.
अब 2 ही पुरुष सदस्य थे, जिन पर शक किया जा सकता था. एक था आसिफ का साला जुनैद और दूसरा खुद आसिफ. चूंकि जुनैद अभी 15 साल का किशोर था और दीनदुनिया से वाकिफ नहीं था, इसलिए जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह की नजरें आसिफ पर आ कर ठहर गईं. उन्होंने आसिफ को पूछताछ के बहाने थाने बुलवा लिया.
टूट गया आसिफ
आसिफ से गहनता से पूछताछ शुरू हो गई. जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने पहले तो उस से इधरउधर की पूछताछ शुरू की. लेकिन फिर उन्होंने आसिफ से सीधा सपाट सवाल किया, ‘‘देखो आसिफ, हमें सब पता चल गया है कि तुम ने अपनी बीवी को खुद मरवाया है. अब सीधे तरीके से यह बता दो कि वो लड़की कौन है, जिस के लिए तुम ने अपनी पत्नी की हत्या करवाई? हमें यह भी पता है कि बदमाशों को तुम ने ही बुलाया था.’’
राजेंद्र पाल सिंह ने तीर तो अंधेरे में मारा था, लेकिन लगा एकदम निशाने पर. इस तरह के सवाल की आसिफ को उम्मीद नहीं थी वह घबरा गया. जांच अधिकारी ने उसे और ज्यादा डरा दिया.
‘‘देखो, अगर सच बता दोगे तो हम तुम्हें बचा भी सकते हैं, लेकिन सच नहीं बताया तो…’’
आसिफ की घबराहट चरम पर पहुंच गई. अप्रत्याशित रूप से वह जांच अधिकारी सिंह के पांवों में गिर गया, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं अपनी साली से शादी करना चाहता था, इसलिए पत्नी को मरवा दिया. मुझे माफ कर दीजिए सर, सारी जिंदगी आप की गुलामी करूंगा. किसी तरह बचा लीजिए.’’
एसएचओ शैलेन्द्र प्रताप सिंह को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस द्वारा तुक्के में कही गई बात का ऐसा असर होगा कि आसिफ इतनी जल्दी गुनाह कबूल कर लेगा. उस ने एक बार अपना गुनाह कबूला तो फिर पुलिस को पूरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.
थोड़ी सी हिचकिचाहट और टालमटोल के बाद आसिफ ने बताया कि लगभग 3 साल से उस का अपनी साली के साथ अफेयर चल रहा था. एक बार उस की पत्नी बीमार हो गई थी, उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. समरीन की मां शमशीदा अस्पताल में बेटी की तीमारदारी के लिए रुक गई थीं, जबकि छोटी बेटी फातिमा को उन्होंने बच्चों की देखभाल के लिए आसिफ के घर भेज दिया था.
वैसे तो तनसीन की तीनों ही बेटियां सुंदर थीं, लेकिन जवानी की दहलीज पर खड़ी सब से छोटी बेटी फातिमा बला की खूबसूरत थी. उसे देख कर आसिफ सोचता था कि अगर उस की शादी फातिमा से हुई होती तो कितना अच्छा होता. फातिमा को वह प्यार भरी नजरों से देखता था. लेकिन जब अपनी बहन की बीमारी और उस के अस्पनताल में होने के कारण फातिमा को जीजा के घर आ कर रहना पड़ा तो मानो आसिफ की हसरतों को बल मिल गया.
न जाने कैसे एक दिन फातिमा जब वाशरूम में नहा रही थी तो जल्दबाजी में आसिफ बाथरूम में घुस गया. उस दिन पहली बार आसिफ ने अपनी हसीन साली का संगमरमर में तराशा हुआ बदन देखा तो उस पर मदहोशी छा गई. रिश्ते की मर्यादा भूल कर उस ने फातिमा को वहीं पर अपनी बांहों में भर लिया.
फातिमा जीजा की बांहों में कसमसाई, विरोध किया लेकिन आसिफ पर हवस का भूत सवार था. थोड़ा विरोध करने के बाद फातिमा भी जीजा की बांहों में समा गई. फातिमा के शरीर को पहली बार किसी मर्द के स्पर्श का अहसास मिला था.
वह पहली बार हुआ एक हादसा था. लेकिन इस के बाद फातिमा और आसिफ के बीच इस नाजायज रिश्ते की कहानी हर रोज लिखी जाने लगी.
चंद रोज बाद समरीन अस्पताल से ठीक हो कर वापस घर आ गई. कुछ दिन तीमारदारी के बहाने फातिमा बहन के घर पर ही रही. आसिफ को जब भी मौका मिलता, वह उसे अपनी बांहों में ले कर अपनी भूख मिटा लेता. फातिमा को भी अब जीजा आसिफ का इस तरह उस के शरीर को मसलना अच्छा लगने लगा था.