दुश्मन प्यार के

राजू को पड़ोस में रहने वाली सर्वेश से प्यार हुआ तो हर वक्त वह उस की एक झलक पाने की फिराक में रहने लगा. पूरा पूरा दिन वह उसे देखने के लिए दरवाजे पर चारपाई डाले पड़ा रहता. वह उस से मिल कर अपने दिल की बात कहना चाहता था. मौके तो उसे तमाम मिले, लेकिन उन मौकों पर वह उस से दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं कर सका.

राजू जिला कांशी रामनगर की कोतवाली खोरो के गांव दतलाना के रहने वाले रामवीर के 2 बेटों में छोटा बेटा था. बड़े बेटे अमर की शादी हो गई थी. शादी के बाद वह खेती के कामों में पिता की मदद करने लगा था. राजू ने हाईस्कूल कर के भले पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन घर का लाडला होने की वजह से घर का कोई काम नहीं करता था. घर का कोई आदमी उस से किसी काम के लिए कहता भी नहीं था.

मांबाप के लिए वह अभी भी बच्चा था, इसलिए वे नहीं चाहते थे कि उन का लाडला उन की आंखों से ओझल हो, इसलिए राजू ने दिल्ली जा कर नौकरी करने की इच्छा जताई तो उन्होंने उसे वहां भी नहीं जाने दिया. क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उन का लाडला बेटा अभी से किसी की गुलामी करे. इसलिए कोई कामधाम न होने की वजह से राजू दिनभर इधरउधर भटकता रहता था.

चारपाई पर पड़ेपड़े ही उस की नजर सर्वेश पर पड़ी थी तो कोई कामधाम न होने की वजह से उस की ओर आकर्षित हो गया था. कोई कामधाम न होने की ही वजह से हुआ था. जबकि सर्वेश को वह बचपन से ही देखता आया था. पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

सर्वेश राजू के पड़ोस में ही रहने वाले सुरेश की बेटी थी. वह कासगंज में किसी मशीनरी स्टोर पर नौकरी करता था, इसलिए सुबह टे्रन से कासगंज चला जाता था तो रात को ही लौटता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा बेटी सर्वेश तथा एक बेटा नीरज था. अपने इस छोटे से परिवार को सुखी रखने के लिए वह रातदिन मेहनत करता था.

पड़ोसी होने के नाते सर्वेश और राजू का आमनासामना होता ही रहता था. लेकिन जब से उस के लिए राजू के मन में आकर्षण पैदा हुआ, तब से सर्वेश के सामने पड़ने पर उस का दिल तेजी से धड़कने लगता. राजू अब सर्वेश के लिए बेचैन रहने लगा था. बेचैनी बरदाश्त से बाहर होने लगी तो एक दिन सर्वेश जब अपने दरवाजे पर खड़ी थी तो उस के पास जा कर राजू ने कहा, ‘‘सर्वेश, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं. अगर आज शाम को तुम प्राइमरी स्कूल में आ जाओ तो मैं वह बात कह कर अपने दिल का बोझ हलका कर लूं.’’

‘‘जो बात कहनी है, यहीं कह दो. अंधेरे में वहां जाने की क्या जरूरत है?’’ सर्वेश ने बोली.

‘‘नहीं, वह बात यहां नहीं कही जा सकती. शाम को स्कूल में मिलना.’’ कह कर राजू चला गया.

सर्वेश इतनी भी बेवकूफ नहीं थी कि वह स्कूल में बुलाने का मकसद न समझती. वह सोच में पड़ गई कि उस का वहां जाना ठीक रहेगा या नहीं? वह भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. उस के मन में भी लालसा उठ रही थी कि वह स्कूल जा कर देखे तो राजू उस से क्या कहता है? वहां जाने में हर्ज ही क्या है? शाम होतेहोते उस ने स्कूल जा कर राजू से मिलने जाने का निर्णय कर लिया.

शाम को वह प्राइमरी स्कूल पहुंची तो राजू उसे वहां इंतजार करता मिल गया. राजू ने उस के पास आ कर कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि तुम जरूर आओगी.’’

‘‘लेकिन अब बताओ तो सही कि तुम ने मुझे यहां बुलाया क्यों है?’’

राजू ने उस का हाथ पकड़ कह कहा, ‘‘सर्वेश, मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

सर्वेश को पता था कि राजू कुछ ऐसी ही बात कहेगा. लेकिन अभी वह इस के लिए तैयार नहीं थी. इसलिए अपना हाथ छुड़ा कर बोली, ‘‘यह अच्छी बात नहीं है. अगर यह बात मेरे पापा को पता चल गई तो वह दोनों को ही मार डालेंगे.’’

‘‘अब प्यार हो गया है तो मरने से कौन डरता है. तुम भले ही मुझ से प्यार न करो, लेकिन मैं तुम से प्यार करता रहूंगा.’’ राजू ने कहा.

राजू की इस दीवानगी पर सर्वेश ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘तुम पागल तो नहीं हो गए हो? मुझे मरवाना चाहते हो क्या?’’

‘‘प्यार में आदमी पागल ही हो जाता है. सर्वेश सचमुच मैं पागल हो गया हूं. अगर तुम ने मना किया तो मैं मर जाऊंगा.’’ राजू रुआंसा सा हो कर बोला.

प्यार सचमुच दीवाना होता है. इस का नशा दिल और दिमाग में चढ़ने में देर कहां लगती है. राजू ने सर्वेश की जवान उमंगों को हवा दी तो उस पर भी प्यार का सुरूर चढ़ने लगा. उसे राजू की बात भा गई. प्रेमी के रूप में वह उसे अच्छा लगने लगा. लेकिन उसे मांबाप का भी डर लग रहा था. इस के बावजूद उस ने अपना हाथ राजू की ओर बढ़ा दिया.

उसी दिन के बाद यह प्रेमी युगल जिंदगी के रंगीन सपने देखने लगा. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते. इन मुलाकातों में दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे. लेकिन एक बात का डर तो था ही कि वे कसमें चाहे जितनी खाते, यह इतना आसान नहीं था. मुलाकातों में दोनों इतने करीब आ गए कि उन के शारीरिक संबंध भी बन गए.

सर्वेश जानती थी कि उस के मांबाप उस की शादी किसी अच्छे परिवार के कमाने वाले लड़के से करना चाहते हैं. जबकि राजू कोई कामधाम नहीं करता था. वह ज्यादा पढ़ालिखा भी नहीं था. इसलिए किसी दिन एकांत में मिलने पर उस ने राजू से कहा, ‘‘राजू, अगर तुम मुझे पाना चाहते हो तो अपने पिता की खेती संभालो या फिर कोई नौकरी कर लो. तभी हमारे घर वाले मेरा हाथ तुम्हें दे सकते हैं.’’

गांव में कोई नौकरी तो थी नहीं, खेती वह कर नहीं सकता था. इसलिए उस ने कहा, ‘‘सर्वेश, मैं तुम से दूर जाने की सोच भी नहीं सकता. खेती मुझ से हो नहीं सकती. लेकिन तुम कह रही हो तो कुछ न कुछ तो करना ही होगा.’’

राजू और सर्वेश अपने प्यार को मंजिल तक पहुंचा पाते, उस के पहले ही लोगों की नजर उन पर पड़ गई. गांव के किसी आदमी ने दोनों को एकांत में मिलते देख लिया. उस ने यह बात सुरेश को बताई तो घर आ कर उस ने हंगामा खड़ा कर दिया. उस ने पत्नी को भी डांटा और सर्वेश को भी.

उस ने सर्वेश को चेतावनी भी दे दी, ‘‘अब तुम अकेली कहीं नहीं जाओगी.’’

सुरेश जानता था कि बेटी इतनी आसानी से नहीं मानेगी. इसलिए खाना खा कर वह पत्नी मोहिनी के पास लेटा तो चिंतित स्वर में बोला, ‘‘मुझे लगता है, अब हमें सर्वेश की शादी कर देनी चाहिए. क्योंकि अगर कोई ऊंचनीच हो गई तो हम गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रह पाएंगे.’’

‘‘मैं भी यही सोच रही हूं. आप लड़का देख कर उस की शादी कर दीजिए. सारा झंझट अपने आप खत्म हो जाएगा.’’ मोहिनी ने कहा.

सुरेश ने रामवीर से भी कहा था कि वह राजू को सर्वेश से मिलने से रोके. गांव का मामला था, इसलिए रामवीर को राजू को डांटाफटकारा ही नहीं, गांव के लड़कों के साथ दिल्ली भेज दिया. वे लड़के पहले से ही दिल्ली में रहते थे. उन्होंने राजू को भी दिल्ली में नौकरी दिलवा दी.

राजू दिल्ली चला गया तो सुरेश को थोड़ी राहत महसूस हुई. उस ने सोचा कि राजू के वापस आने से पहले वह अगर सर्वेश की शादी कर दे तो ठीक रहेगा. किसी रिश्तेदार की मदद से उस ने अलीगढ़ के थाना दादों के गांव बरतोलिया के रहने वाले डोरीलाल के बेटे भूरा से सर्वेश की शादी तय कर दी.

डोरीलाल का खातापीता परिवार था. बेटा भूरा गुजरात में रहता था. सुरेश का सोचना था कि शादी के बाद भूरा सर्वेश को ले कर गुजरात चला जाएगा तो वह पूरी तरह से निश्चिंत हो जाएगा. यही सब सोच कर सुरेश ने सर्वेश की शादी भूरा से कर दी.

सर्वेश की शादी की जानकारी राजू को हुई तो पहले उसे विश्वास ही नहीं हुआ. सर्वेश ने कसम तो उस के साथ जीनेमरने की खाई थी, फिर उस ने दूसरे से शादी क्यों कर ली. प्रेमिका की बेवफाई पर उसे बहुत गुस्सा आया. इस के बाद उस का मन नौकरी में नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ कर गांव आ गया.

राजू का आना मांबाप को बहुत अच्छा लगा. अब उन्हें चिंता भी नहीं थी, क्योंकि सर्वेश की शादी हो गई थी. लेकिन राजू काफी तनाव में था. वह सर्वेश से मिलना चाहता था, लेकिन वह ससुराल में थी. इसलिए तनाव कम करने के लिए उस ने शराब का सहारा लिया.

कुछ दिनों बाद भूरा अपनी नौकरी पर गुजरात चला गया तो सुरेश सर्वेश को लिवा लाया. राजू को सर्वेश के आने का पता चला तो वह उस से मिलने की कोशिश करने लगा. चाह को राह मिल ही जाती है, राजू को भी सर्वेश मिल गई. सुरेश अपनी नौकरी पर कासगंज चला गया था तो मोहिनी दवा लेने डाक्टर के पास गई थी. उसी बीच सर्वेश ने राजू को गली में जाते देखा तो घर के अंदर बुला लिया. अंदर आते ही राजू ने कहा, ‘‘तुम बेवफा कैसे हो गई सर्वेश?’’

‘‘मैं बेवफा कहां हुई. बेवफा होती तो तुम्हें क्यों बुलाती. मेरी मजबूरी थी. किस के भरोसे मैं विरोध करती. तुम दिल्ली में थे और तुम्हें संदेश देने का मेरे पास कोई उपाय नहीं था. भूरा से शादी कर के मैं बिलकुल खुश नहीं हूं. तुम कुछ करो वरना मैं मर जाऊंगी.’’

‘‘अभी तुम्हें थोड़ा इंतजार करना होगा. पहले मैं कामधाम की व्यवस्था कर लूं. उस के बाद तुम्हें अपने साथ दिल्ली ले चलूंगा.’’ राजू ने कहा.

सर्वेश को राजू पर पूरा भरोसा था. इसलिए उस ने उस की यह बात भी मान ली और मौका निकाल कर उस से मिलने लगी. उन के इस तरह एकांत में मिलने की जानकारी सुरेश को हुई तो वह परेशान हो उठा. शादीशुदा बेटी पर वह हाथ भी नहीं उठा सकता था. क्योंकि बात खुल जाती तो उसी की बदनामी होती. दामाद गुजरात में था. वह चाहता था कि दामाद सर्वेश को अपने साथ ले जाए.

उस ने यह बात भूरा से कही भी. तब भूरा ने कहा, ‘‘बाबूजी, मेरी इतनी कमाई नहीं है कि मैं पत्नी को अपने साथ रख सकूं. इसलिए सर्वेश को अभी वहीं रहने दो.’’

सुरेश दामाद को असली बात बता भी नहीं सकता था. बहरहाल इज्जत बचाने के लिए वह सर्वेश को उस की ससुराल पहुंचा आया. लेकिन इस से भी उस की परेशानी दूर नहीं हुई, क्योंकि राजू सर्वेश से मिलने उस की ससुराल भी जाने लगा.

ससुराल में पति नहीं था, इसलिए सर्वेश का जब मन होता, मायके आ जाती. मायके आने पर सुरेश सर्वेश पर नजर तो रखता था, लेकिन वह राजू से मिल ही लेती थी. इसी का नतीजा था कि एक रात सुरेश ने छत पर सर्वेश को राजू के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया.

सुरेश को देख कर राजू तो भाग गया, लेकिन सर्वेश पकड़ी गई. वह उसे खींचता हुआ नीचे लाया और फिर उस की जम कर पिटाई की. सुरेश की समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपनी बेटी को राजू से मिलने से रोके. उस ने उस की शादी भी कर दी थी. इस के बावजूद सर्वेश ने उस से मिलना बंद नहीं किया था.

काफी सोचविचार कर सुरेश भूरा के आने का इंतजार करने लगा. वह जानता था कि एक न एक दिन दामाद को बेटी की करतूतों का पता चल ही जाएगा. तब वह सर्वेश को छोड़ भी सकता था. ऐसे में सर्वेश की जिंदगी तो बरबाद होती ही, बदनामी भी होती. इसलिए उस ने सोचा कि वह खुद ही दामाद को सब कुछ बता कर कोई उचित राय मांगे. इस के बाद भूरा गांव आया तो उस ने कहा, ‘‘बेटा भूरा, गांव का ही राजू सर्वेश के पीछे पड़ा है. मैं ने कई बार उसे समझाया, लेकिन वह मानता ही नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मैं उस से बात करता हूं.’’ भूरा ने कहा.

‘‘इस तरह बात करने से काम नहीं चलेगा. इस से हमारी ही बदनामी होगी. मैं इस कांटे को जड़ से ही खत्म कर देना चाहता हूं, जिस से सर्वेश और तुम चैन से जिंदगी जी सको.’’ सुरेश ने कहा.

भूरा को भी ससुर की बात उचित लगी. फिर दोनों ने राजू को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत भूरा सर्वेश को लिवा कर अपने यहां चला गया.

इस के सप्ताह भर बाद ही थाना खोरों के थानाप्रभारी रामअवतार कर्णवाल को उठेर बांध के पास एक कंकाल के पड़े होने की सूचना मिली. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद थानाप्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए. नरकंकाल सिरविहीन था. कंकाल के पास एक बनियान और पैंट पड़ी थी.

उन्हें याद आया कि 7 दिनों पहले दतलाना के रहने वाले रामवीर के भाई फूल सिंह ने भतीजे राजू की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. उन्होंने सूचना दे कर फूल सिंह को वहीं बुला लिया. कंकाल से तो कुछ पता चल नहीं सकता था, उस के पास पड़े पैंट को देख कर फूल सिंह ने बताया कि यह पैंट उस के भतीजे राजू की है.

फूल सिंह ने राजू की हत्या का संदेह सुरेश पर व्यक्त किया था. उस ने पुलिस को वजह भी बता दी थी कि राजू के संबंध उस की बेटी सर्वेश से थे. थानाप्रभारी ने सुरेश को बुलाने के लिए सिपाही भेजा तो पता चला कि वह घर पर नहीं है. वह दामाद के साथ गुजरात चला गया था. इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि राजू की हत्या कर के सुरेश गुजरात भाग गया था.

कपड़ों के अनुसार कंकाल राजू का ही हो सकता था, लेकिन पक्के सुबूत के लिए उस की डीएनए जांच जरूरी थी. डीएनए जांच के लिए हड्डियां विधि विज्ञान प्रयोगशाला लखनऊ भेज दी गईं. रिपोर्ट आने से पहले रामअवतार कर्णवाल का तबादला हो गया. उन की जगह पर आए सुरेश कुमार.

जनवरी महीने में डीएनए रिपोर्ट आई तो पता चला कि वह कंकाल रामवीर के बेटे राजू का ही था. पुलिस को सुरेश पर ही नहीं, उस के दामाद भूरा, गंगा सिंह और रूप सिंह पर भी संदेह था. क्योंकि ये सभी उसी समय से गायब थे. संयोग से उसी बीच गंगा सिंह गांव आया तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो उस ने राजू की हत्या का सारा राज उगल दिया.

गंगाराम ने बताया था कि 1 अक्तूबर की शाम को भूरा ने राजू को शराब और मुर्गे की दावत के लिए बुलाया. उस दावत में राजू को इतनी शराब पिला दी गई कि उसे होश ही नहीं रहा. इस के बाद उस की गला दबा कर हत्या कर दी गई.

उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए उठेर बांध पर ले जाया गया, जहां उस के सिर को धड़ से अलग कर दिया गया. सिर को नहर में फेंक दिया गया, जबकि धड़ को बांध के पास ही छोड़ दिया गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने गंगा सिंह को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने मोहिनी से फोन करा कर सुरेश को बहाने से गांव बुलवाया और उसे भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी राजू की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का कहना था कि इज्जत और बेटी की जिंदगी बचाने की खातिर उस ने यह कदम उठाया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक भूरा और रूप सिंह पकड़े नहीं जा सके थे. शायद उन्हें गंगा सिंह और सुरेश के पकड़े जाने की जानकारी हो गई थी, इसलिए पुलिस के बहाने से लाख बुलाने पर भी वे गांव नहीं आए. दोनों गुजरात में कहीं छिपे हैं.

सुरेश ने जिस इज्जत को बचाने के लिए यह कू्रर कदम उठाया, राज खुलने पर इज्जत तो गई ही, सब के सब जेल भी पहुंच गए. बेटी की भी जिंदगी बरबाद हुई. एक तरह इसे नासमझी ही कहा जाएगा. अगर वह चाहता तो किसी और तरीके से इस मामले को सुलझा सकता था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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जहां मां बाप ही करते हैं बेटियों का सौदा

छिप कर की जाने वाली जिस्मफरोशी भले ही अंधेरे में होती हो, लेकिन इस धंधे में उतारी गई लड़कियों की सौदेबाजी खुलेआम होती है. हैरानी तो इस बात की है कि मासूम बच्चियों की बोलियां लगाने वाले उस के परिवार के अपने ही लोग होते हैं. कहीं मां तो कहीं भाई या फिर कहीं दूसरे करीबी चाचा मामा, यहां तक कि बाप भी उस की कीमत तय कर बेटी को सैक्स के बाजार में ढकेल देते हैं. ऐसा मध्य प्रदेश और राजस्थान के जिन इलाके में होता है, उस का चौंकाने वाला खुलासा एक स्टिंग आपरेशन के जरिए हुआ…

दिल्ली के एक बड़े मीडिया हाउस का एक रिपोर्टर खास रिपोर्टिंग के लिए खाक छानता हुआ राजस्थान के एक गांव के बौर्डर पर जा पहुंचा था. धुंधलका गहराने में अभी कुछ वक्त था. उस की एक व्यक्ति से मुलाकात हुई. उस ने अपना नाम लाखन बताया. रिपोर्टर से उस के बारे में पूछा.

गांव आने का कारण पूछा, हालांकि रिपोर्टर ने अपनी असली पहचान और आने का सही कारण बताने के बजाए कुछ और ही बताया. जब वह व्यक्ति उस की बातों से संतुष्ट हुआ, तब उस ने खुद को पास के गांव का निवासी बताया और यह भी आश्वासन दिया कि उस के मकसद को वही पूरा कर सकता है.

फिर दोनों के बीच औपचारिक बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया, “आप को लड़कियां चाहिए? हां, भेज देंगे. बहुत सारी लड़कियां हैं गांव में. कम से कम 50 से 60 लड़किया हैं.”

बातूनी लाखन बोला.

“अरे उतनी का क्या करना है, सिर्फ 2-4. उन की कितनी उम्र होगी?” रिपोर्टर ने झिझकते हुए पूछा.

“कम से कम 14 साल या 15 साल,” लाखन बोला.

रिपोर्टर हामी भरता हुआ बोला, “ठीक है.”

“अभी चल सकते हैं, लड़कियां दिखा दूंगा… जो पसंद आए बता देना. लडक़ी के मांबाप से बात कर लेंगे.”

“ठीक है, चलो मिलवाओ उन से. लेकिन यह बताओ कि आप लोग जब लड़कियों को भेजते हो तो लिखापढ़ी में क्या लिखते हो?” रिपोर्टर ने पूछा.

“जी, लिखापढ़ी पूरी सही करते हैं. हम यहां लिखते हैं कि लड़कियों को नाचनेगाने के लिए होटल में भेजा जा रहा है,” लाखन बोला.

“लेकिन ऐसा क्यों?” रिपोर्टर ने पूछा.

“अरे साहब जी, आप नहीं समझते. यही तो हमारी कलाकारी है. ऐसा बताना तो अपना बहाना है. अगर कोई पुलिस वाला देख ले या उसे शक हो जाए तो ऐसा बोलते हैं.” लाखन ने समझाया.

“अच्छा! बड़े समझदार हो और होशियार भी.” रिपोर्टर ने आश्चर्य जताया.

“लड़कियों को जबरदस्ती थोड़े ही भेज रहे हैं. उन के मांबाप से राय लेंगे. उन के मांबाप को पैसे देंगे. कोई ऐसे ही लड़कियों को उठा के थोड़े ही भेज देंगे कहीं भी.”

“तो लड़कियों को भेजने के लिए एग्रीमेंट क्या लडक़ी के मांबाप करेंगे?” रिपोर्टर पूछा.

“हां, लडक़ी के मांबाप ही करेंगे,” लाखन बोला.

बिचौलिए करा देते हैं लड़कियों का सौदा

इस तरह से बिचौलिया लाखन और ग्राहक बने रिपोर्टर के बीच लड़कियों की सौदेबाजी की बुनियादी शुरुआत हो गई. लाखन ने कथित ग्राहक को आश्वासन दिया कि वह सब कुछ बहुत आसानी से करवा देगा. कहीं कोई मुश्किल नहीं आएगी. कौन्ट्रैक्ट के नाम पर खानापूर्ति भी पूरी करवा देगा. सब से बड़ी बात कि लड़कियां अपनी मरजी से साथ जाएंगी या फिर उस के बताई जगह पर पहुंचा दी जाएंगी.

यह सब राजस्थान के बूंदी जिले के एक गांव रामनगर में हुआ था, जहां हर तरफ गरीबी का आलम साफ नजर आ रहा था. रिपोर्टर को इतना तो अहसास हो ही गया था कि गांव के लोग चंद रुपयों की खातिर अपनी बेटियों को बेचने को तैयार हो जाते हैं. उस के साथ सौदेबाजी की पहल करने वाला गांव में लाखन गरीब परिवारों का बिचौलिया है.

बिचौलिया लाखन ने बताया कि वह लड़कियों की सौदेबाजी तय होने के बाद कैसे लड़कियों को काफी आसानी से ठिकाने पर पहुंचा देगा. सारा काम बहुत आसानी से चुटकी बजाते हुए ऐसे करवा देगा कि किसी को कानोकान खबर तक नहीं होगी, पुलिस को भनक लगनी तो दूर की बात है.

ग्राहक और खुद के बचाव के कौन्ट्रैक्ट की खानापूर्ति भी हो जाएगी. उन्हें यह बताया जाएगा कि लड़कियों को होटल में नाचगाने के लिए भेजा गया है. यह सब जान कर रिपोर्टर को बेहद हैरानी हुई. उसे मालूम हुआ कि बिचौलिए लड़कियों से वेश्यावृत्ति कराने के लिए कैसे आंखों में धूल झोंकते हैं. यही नहीं, बाकायदा बेटियों को बेचने के लिए मांबाप कौन्ट्रैक्ट करते हैं.

दरअसल, एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल ने पिछले दिनों मानव तसकरी की जमीनी हकीकत जानने के लिए इनवैस्टिगेशन टीम बनाई थी. टीम पहले राजस्थान के 3 गांवों में गई थी. उन्होंने स्टिंग औपरेशन किया. उन्होंने जिस्मफरोशी के लिए बेटियों से की जाने वाली सौदेबाजी को अपने कैमरे में रिकौर्ड किया था. उस से पता चला कि राजस्थान के उन गांवों में बेटियों की बोलियां लगाई जा रही हैं.

इन की जम कर सौदेबाजी हो रही है और वहां एक तरह से बेटियों का बाजार बन चुका है, जिन में बिचौलियों की भी भरमार हो चुकी है. टीम द्वारा नाबालिग लड़कियों की तसकरी और वेश्यावृत्ति का सच उजागर होने के क्रम में कई तरह के खुलासे हुए. इस में रिश्ते नाते और समाज का एक बदसूरत चेहरा भी उजागर हो गया.

मालूम हुआ कि बेटियों की बोली लगाने वालों में कहीं मां, कहीं चाचा, कहीं भाई तो कहीं दूसरे करीबी रिश्तेदार हैं. बिचौलिए राजस्थान के बूंदी जिले के अंतर्गत एक गांव रामनगर के बारे में बताया कि वहां 50-60 लड़कियां बेचे जाने को तैयार हैं.

परिवार के लोग भी तैयार हुए नाबालिग का सौदा करने को

मीडिया की जांच टीम को बिचौलिए ने नाबालिग लड़कियों के रिश्तेदारों से भी बातचीत करवाई. उन में लडक़े की मां, चाचा, बुआ और भाई तक थे. इन्हीं में भतीजी को बेचने के लिए सौदेबाजी कर रहे चाचा ने अपना नाम जितेंद्र बताया. साथ ही उस ने रिपोर्टर को 2 नाबालिग लड़कियां दिखाईं. उस ने बताया कि एक नाबालिग लडक़ी की कीमत 6 से 7 लाख रुपए है और इसी के साथ उस ने एक साल के कौन्ट्रैक्ट की बात की.

“लडक़ी की उम्र क्या होगी?” ग्राहक बन रिपोर्टर ने जितेंद्र से पहला सवाल पूछा.

“15-16 साल,” जितेंद्र की जगह लाखन तुरंत बोला.

“उम्र कम नहीं है? कानूनी बाधा आई तो…” रिपोर्टर ने फिर सवाल किया.

इस बार जवाब जितेंद्र ने दिया, “कोई दिक्कत की बात नहीं है, अदालत से नोटरी करवा लेना. एक साल के लिए रख लो… लेकिन हां, पैसे 6 से 7 लाख देने होंगे.”

“ऐं! 6 से 7 लाख रुपए. लडक़ी एक साल बाद वापस भी आ जाएगी.” रिपोर्टर बोला.

“हांहां! और नहीं तो क्या? जैसे ही टाइम पूरा होगा, लडक़ी अपने घर आ गई. एक साल के बाद दूसरी लडक़ी खरीद देंगे, फिर हम पर विश्वास हो जाएगा, तब आप जितना बोलोगे, उतनी भिजवा देंगे.” जितेंद्र ने समझाते हुए रिपोर्टर को अपने विश्वास में ले लिया. इस तरह से उन के बीच बात पक्की हो गई. रिपोर्टर मिलने का समय तय कर चला गया और अपनी टीम से जा मिला.

3 लाख में बहन का सौदा करने को तैयार हुआ भाई

उस के बाद जांच टीम का अगला पड़ाव राजस्थान का ही सवाई माधोपुर था. वहां के अदलवाड़ा गांव में रिपोर्टर की मुलाकात किसी बिचौलिए या रिश्तेदार से नहीं, बल्कि लडक़ी के मांबाप से ही हो गई. वे अपनी एक नहीं, बल्कि दोनों बेटियों की बोली लगाने को तैयार बैठे थे. लडक़ी की मां तन्नो ने एक बेटी की कीमत 3 लाख रुपए लगाई, जो उन के पास में थी, जबकि दूसरी मुंबई में थी.

रिपोर्टर ने तन्नो से जब पूछा कि वह बेटियों के बदले में मिले पैसे का क्या करेगी, तब इस के जवाब में उस ने बताया कि बेटी को बेचना उस की मजबूरी है. उसे मकान बनवाना है. उस का मकान नहीं है, इसलिए बेच रही है.

मीडिया इनवैस्टीगेशन का सिलसिला यहीं नहीं रुका. वह राजस्थान के टोंक जिले के जयसिंह गांव भी गई. वहां उन्हें लडक़ी की बोली लगाने वाला उस का मामा मिला. लडक़ी नाबालिग थी, जबकि बाप की उम्र के मामा ने उस की बोली एक लाख 70 हजार रुपए लगा दी. उस ने भी एग्रीमेंट बनवा कर देने की बात कही.

जांच टीम को न केवल राजस्थान, बल्कि मध्य प्रदेश में भी कई परिवार अपनी बेटियों की सौदेबाजी करने वाले मिले. मध्य प्रदेश के ऐसे ही एक गांव बोरखेड़ी में रिपोर्टर को विजय नाम का युवक मिला, जो अपनी ही बहन की सौदेबाजी कर रहा था. उस की बहन मात्र 16 साल की थी. उस के बदले में उस ने 3 लाख रुपए मांगे.

इतना ज्यादा पैसा मांगे जाने को ले कर विजय ने बताया कि उस की बहन कोई नखरे नहीं करेगी, इसे चाहो तो एक दिन में 4 ग्राहकों के पास भेज दो या फिर किसी के पास ही पूरी रात के लिए भेज सकते हो. रिपोर्टर के लिए अपनी ही बहन के बारे में विजय द्वारा किया गया दावा बेहद हैरान करने वाला लगा, फिर भी उन्होंने पूछ लिया, “इस का एग्रीमेंट कैसे होगा?”

जवाब में विजय बोला, “स्टांप पेपर पर.”

“एग्रीमेंट पर साइन कौन करेगा?”

यह पूछे जाने पर विजय बोला, “एग्रीमेंट लडक़ी के नाम पर बनेगा, उस पर मैं साइन करूंगा. दूसरा साइन तुम्हारे नाम के साथ होगा.”

“एग्रीमेंट में क्या लिखा जाएगा?”

“उस में पैसा उधार लेने के बारे में लिखा जाएगा. पैसे चुकाने की शर्त लिखी होगी, लेकिन हां, याद रखना लडक़ी का चार्ज एक दिन के हिसाब से 10 हजार होगा.” विजय ने समझाया.

मध्य प्रदेश के बरदिया गांव में भी बेटियों को बेचने वाले लोग मिल गए. वहां के एक बिचौलिए ने तो अपने परिवार और रिश्तेदारों की कई लड़कियों की सौदेबाजी की बात कही. बबलू नाम के बिचौलिए ने रिपोर्टर को बताया कि उस के पास मौजूद लड़कियों की उम्र 15 के आसपास है. उन की संख्या भी 15 है, लेकिन उन में सिर्फ 5 ही सौदे के लिए तैयार हैं.

मध्य प्रदेश के ही रतलाम जिले में पिपलिया जोधा गांव की एक औरत किरण अपनी भतीजी की सौदेबाजी के लिए सामने आई. उस ने बताया कि उसे अपनी बहन की बेटी के लिए 2 लाख रुपए चाहिए. पूरा पेमेंट वही लेगी. उस के लिए कोई विरोध नहीं करेगा. न मांबाप और न ही कोई दूसरा करीबी रिश्तेदार. किरण ने बताया कि लडक़ी का एग्रीमेंट स्टांप पेपर पर होगा.

इस तरह की वेश्यावृति को बढ़ाने वाले मानव तस्करी को ले कर खबर आने के बाद संसद तक में सवाल उठे. राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने सवाल उठाए. इस तरह के मामले को ले कर पहले भी कलेक्टर के पास जा चुके हैं, लेकिन पिछले 4 साल में मामले और भी बढ़ गए हैं.

—संवाददाता

मानव तस्करी पर चिंता

सालोंसाल से चली आ रही मानव तस्करी में कमी आने के बजाय बढ़ती ही जा रही है, जबकि इसे रोकने के लिए कानून बने हैं. वैश्विक प्रयास किए जा रहे हैं और इस में शामिल यौन अपराधों की रोकथाम के लिए भी कई कानून हैं.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी. लोकुर ने इसे ले कर चिंता जताई और कहा कि देश में मानव तस्करी के मामलों में ज्यादातर आरोपी बरी हो जाते हैं. जैसे 2020-2021 में 89 प्रतिशत का बरी हो जाना बेहद ही चिंता का विषय है. उन्होंने केरल न्यायिक अकादमी द्वारा मानव तस्करी विरोधी विषय पर आयोजित एकदिवसीय न्यायिक संगोष्ठी में कहा कि पिछले साल केरल में दर्ज किए गए 201 मामलों में से केवल एक को दोषी ठहराया गया.

पुलिस अकसर बड़ी संख्या में मानव तस्करी के मामलों को अपहरण और लापता व्यक्तियों के मामलों के रूप में गलत तरीके से रिपोर्ट कर देती है. कोई भी यह मानने को तैयार नहीं होता कि मानव तस्करी के मामले भी होते हैं. साइबर जगत में तो और भी प्रचलित हो गया है. इस से जबरन विवाह, बाल विवाह, बंधुआ मजदूरी और आर्थिक कारणों को बल मिला है.

इस बारे में आई 2022 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि मानव तस्करी के 2,189 मामले में 6,533 पीडि़त शामिल थे. उन में 4,062 महिलाएं और 2,877 नाबालिग थे.

मानव तस्करी में यौन शोषण, जबरन श्रम, घरेलू दासता, जबरन भीख मांगना, ऋण बंधन और बच्चों या किशोरों को उन की इच्छा के विरुद्ध सेवा करने के लिए मजबूर करना शामिल हैं. इस के व्यापक रूप के मूल कारणों को समझना महत्त्वपूर्ण है. वैसे इस का मुख्य कारण गरीबी, शिक्षा तक सीमित पहुंच, लैंगिक असमानता और बेरोजगारी है.

रोकने के कानून

मानव तस्करी के कई पहलू हैं. जैसे जालसाजी, जोरजबरदस्ती, धमकी, अवैध यात्राएं, अनैतिक भर्तियां, स्थानांतरण, आश्रय, घरेलू नौकरी, निजी सेवा, स्वागत आदि. इन का मुख्य उद्देश्य ही व्यक्तियों का शोषण करना होता है. यह शोषण वेश्यावृत्ति, अंग तस्करी , यौन शोषण, जबरन श्रम, गुलामी और दासता सहित विभिन्न रूपों में होता है.

कहने को तो यह मामला विश्व स्तर पर मौजूद है. जिस में अफ्रीका, मध्य एशिया और दक्षिण एशिया जैसे कुछ क्षेत्र विशेष रूप से प्रभावित हैं. भारत की स्थिति भी चिंताजनक है.

यूनिसेफ का अनुमान है कि हर साल दुनिया भर में लगभग 1.2 मिलियन बच्चों की तस्करी की जाती है और भारत इस का बड़ा स्रोत है. भारत में बाल तस्करी से सब से अधिक प्रभावित राज्यों में पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र शामिल हैं.

इस मुद्दे के समाधान के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पहल की गई हैं. संयुक्त राष्ट्र वैश्विक पहल (यूएन जीआईएफटी: यूनाइटेड नेशंस ग्लोबल इनिशिएटिव टू फाइट ह्यूमन ट्रैफिकिंग) मानव तस्करी को रोकने के लिए बनाया गया है.

इसी तरह से बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कनवेंशन (सीआरसी) की स्थापना 1989 में की गई थी. साल 2000 में भारत ने पलेर्मो प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किए थे, जिस में इस से निपटने में सहायता के लिए तसकरी की स्पष्ट परिभाषा बताई गई है.

भारत सरकार ने बाल तसकरी को संबोधित करने और बच्चों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई कानून और नियम बनाए हैं. वे हैं—

—अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (आईटीपीए): यह कानून व्यावसायिक यौन शोषण के उद्ïदेश्य से तस्करी  को अपराध मानता है और पीडि़तों के बचाव, पुनर्वास और स्वदेश वापसी का प्रावधान करता है.

—यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम, 2012: यह अधिनियम विशेष रूप से बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित है और जांच और परीक्षण के दौरान उन की सुरक्षा प्रदान करता है.

—यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम 2012: 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों के खिलाफ किए गए यौन अपराधों को संबोधित करता है, जिन्हें कानूनी तौर पर बच्चा माना जाता है.

—बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976: यह अधिनियम बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाता है, जिसे अकसर बाल तस्करी से जोड़ा जाता है.

—किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: यह अधिनियम बच्चों की देखभाल, सुरक्षा और पुनर्वास पर केंद्रित है, जिस में तस्करी की रोकथाम और नियंत्रण के प्रावधान भी शामिल हैं.

मानव तस्करी की शिकायत को गंभीरता से ले कर स्थानीय पुलिस थाने, प्रशासनिक अधिकारी जैसे कि स्थानीय सबडिवीजनल मजिस्ट्रैट (एसडीएम) या उपनिरीक्षक जनरल (स्क्कत्र) को की जा सकती है. अगर शिकायत गंभीर है और संबंधित राज्य की स्थिति में है तो शिकायत को राज्य सरकार के गृह (आंतरिक मामले) विभाग में भी दर्ज किया जा सकता है. ऐसी शिकायतों को गंभीरता से लिया जाएगा और उचित जांच की जाएगी.

मैं चीज बड़ी हूं मस्त मस्त

मौत के मुंह से वापसी

नासमझी का घातक परिणाम

मैनेजमेंट गुरु बना शातिर ठग

इंग्लैंड में रहने वाली एनआरआई महिला निशा करावद्रा भारत आई हुई थीं. घर पर बैठी वह एक दैनिक अखबार पढ़ रही थीं, तभी उन की नजर अखबार में छपे एक विज्ञापन  पर गई. वह विज्ञापन एक कार का था, रेनोल्ट डस्टर नाम की उस एसयूवी कार का नंबर वीआईपी था. निशा को भारत में एक लग्जरी कार की जरूरी थी. उन्हें वीआईपी नंबर की वह कार पसंद आ गई. विज्ञापन में जो फोन नंबर दिया हुआ था, निशा ने उस नंबर पर बात की.

दूसरी तरफ से बोलने वाले व्यक्ति ने अपना नाम लार्ड मुकुल पौल तनेजा बताते हुए खुद को यूके का नामी शख्स बताया. उस ने निशा को बताया, ‘‘मैडम, नई दिल्ली के हौजखास इलाके में अगस्त क्रांति मार्ग पर, मेफेयर गार्डन में बी-20 नंबर का मेरा बंगला है. आप बंगले पर आ कर कार देख सकती हैं.’’

निशा उसी दिन उस बंगले पर पहुंच गईं. उस बंगले में औडी सहित अन्य कई महंगी गाडि़यां खड़ी थीं. यह सब देख कर उन्हें यकीन हो गया कि मुकुल पौल तनेजा ने अपने बारे में उसे जो बताया था, वह सही होगा. निशा ने वह कार वीआईपी नंबर की वजह से खरीदने का मूड बनाया था. उस का नंबर था—यूके07एएक्स-0999. काले रंग की वह कार उन्हें अच्छी कंडीशन में दिखी.

कार को चकाचक हालत में देख कर उन्होंने उसे खरीदने का फैसला कर लिया. उन्होंने मुकुल पौल तनेजा से जब कार खरीदने के बारे में बात की तो साढ़े 10 लाख रुपए में उस का सौदा हो गया. बाद में कुछ फौरमैलिटी पूरी करने के बाद निशा ने मुकुल पौल तनेजा को साढ़े 10 लाख रुपए दे दिए.

अब केवल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी) ट्रांसफर करने का काम बचा था. मुकुल पौल तनेजा ने उन्हें आश्वासन दिया कि हफ्ता भर में आरसी ट्रांसफर हो जाने के बाद गाड़ी उन्हें सौंप देगा. हफ्ते भर बाद कार सौंपने की बात पर निशा को भी कोई ऐतराज नहीं था.

निशा ने भी सोचा कि अब केवल आरटीओ औफिस से कागज ट्रांसफर होने रह गए हैं. यह काम होते ही गाड़ी उन्हें मिल जाएगी. हफ्ते भर बाद भी जब उन्हें कार की आरसी नहीं मिली तो उन्होंने मुकुल पौल तनेजा से फोन पर फिर बात की. तब उस ने बताया कि देहरादून आरटीओ औफिस में कागज ट्रांसफर होने की प्रक्रिया चल रही है, जैसे ही यह काम हो जाएगा, गाड़ी उन्हें सौंप देगा.

इसी तरह कई महीने बीत गए, लेकिन न तो उन्हें खरीदी गई कार के कागजात मिले और न ही कार. जब वह कुछ कहतीं तो तनेजा कोई न कोई बहाना बना कर टाल देता. बार बार टालने पर उन्हें मुकुल की बातों पर शक होने लगा. तब उन्होंने देहरादून के आरटीओ औफिस में संपर्क किया.

वहां से उन्हें पता चला कि जो कार उन्होंने मुकुल पौल से खरीदी है, वह पंजाब नैशनल बैंक, मोतीबाग, नई दिल्ली से फाइनैंस कराई गई थी. फाइनैंस कराने के बाद कार की किस्तें जमा नहीं की गई थीं. इसलिए वह कार लोन चुकाए बिना किसी और के नाम नहीं की जा सकती. यानी बैंक से एनओसी लिए बिना कार की आरसी किसी दूसरे के नाम ट्रांसफर नहीं हो सकती थी.

यह जानकारी मिलते ही निशा के जैसे होश उड़ गए. क्योंकि तनेजा ने उन से यह बात नहीं बताई थी. निशा ने इस बारे में मुकुल पौल से बात की तो उस ने कहा, ‘‘बैंक का जो भी लोन था, मैं ने चुका दिया है. बैंक से एनओसी ले कर मैं अथौरिटी में जमा करा दूंगा. अब तक मैं किसी दूसरे काम में बिजी था, जिस की वजह से लेट हो गया. अब आप चिंता न करें, जल्द ही कागज तैयार करा दूंगा.’’

निशा को लग रहा था कि मुकुल उन्हें बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहा है. फिर भी उन्होंने उस पर एक बार फिर से विश्वास कर लिया. काफी दिन बीत जाने के बावजूद भी निशा को आरसी नहीं मिली. अब निशा को लगने लगा कि मुकुल चीटर है. वह बारबार टाल कर उन्हें बेवकूफ बना रहा है. लिहाजा उन्होंने उस से अपने साढ़े 10 लाख रुपए वापस मांगे. तब उस ने पैसे लौटाने से मना कर दिया.

इतनी मोटी रकम भला वह कैसे छोड़ सकती थीं, इसलिए वह सख्त हो गईं. तब मुकुल पौल ने अपने राजनैतिक संबंधों का हवाला देते हुए उन्हें धमकाने की कोशिश की.

निशा चुप रहने वालों में नहीं थीं. उन्होंने ठान लिया कि वह धोखाधड़ी करने वाले इस शख्स को सबक जरूर सिखाएंगी. इंग्लैंड के एक सांसद जिन से निशा के अच्छे संबंध थे, से उन्होंने बात की और अपने साथ हुई धोखाधड़ी के बारे में बताया. उस सांसद ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर से बात कर निशा करावद्रा की हेल्प करने की गुजारिश की.

इस के बाद निशा दिल्ली पुलिस कमिश्नर बी.एस. बस्सी से मिलीं और धोखाधड़ी करने वाले लार्ड मुकुल पौल तनेजा के खिलाफ कानूनी काररवाई करने की मांग की. कमिश्नर ने इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच से कराने के आदेश दिए.

क्राइम ब्रांच के संयुक्त आयुक्त रविंद्र यादव ने धोखाधड़ी के इस मामले की जांच के लिए एंटी एक्सटोर्शन सेल के एसीपी होशियार सिंह के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में तेजतर्रार सबइंसपेक्टर विनय त्यागी, अतुल त्यागी, हेडकांस्टेबल राजकुमार, संजीव, जुगनू त्यागी, नरेश पाल, कांस्टेबल राजीव सहरावत, विपिन कुमार आदि को शामिल किया.

पुलिस टीम आरोपी लार्ड मुकुल पौल तनेजा की तलाश में जुट गई. पुलिस को दिल्ली में हौजखास के अलावा उस के देहरादून स्थित बंगले का पता भी मिल गया. दोनों ही जगहों पर पुलिस ने दबिश डाली. लेकिन वह नहीं मिला. शायद उसे पुलिस काररवाई की भनक लग गई थी, इसलिए वह इधरउधर घूमता रहा.

अपने सूत्रों से पुलिस ने यह पता लगा लिया था कि मुकुल पौल एक ठग है. इस दौरान वह किसी और को अपना शिकार न बना ले, यह आशंका पुलिस को हो रही थी. उस का सुराग लगाने के लिए टीम ने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. इस का नतीजा जल्द ही सामने आ गया. एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने आखिरकार 1 मई, 2014 को उसे दिल्ली की मुनीरका मार्र्केट के पास से हिरासत में ले लिया.

हिरासत में लिए जाने पर मुकुल पौल बौखला कर बोला, ‘‘लगता है, आप लोगों को कोई गलतफहमी हुई है. मैं ने किसी के साथ कोई चीटिंग नहीं की है. मैं एक हाईसोसायटी से हूं. मेरा संबंध राजनीति में रसूख रखने वाले लोगों से है, इसलिए आप लोग मुझे छोड़ दीजिए, वरना परेशानी में पड़ सकते हो.’’

पुलिस धमकी में न आ कर उसे पूछताछ के लिए अपने दफ्तर ले आई. 50 वर्षीय लार्ड मुकुल पौल तनेजा से जब क्राइम ब्रांच औफिस में पूछताछ शुरू हुई तो वह खुद को बेकुसूर बताता रहा. लेकिन पुलिस के पास इस बात के सुबूत थे कि उस ने निशा से साढ़े 10 लाख रुपए हड़प लिए थे. उन सुबूतों के आधार पर जब मुकुल पौल से पूछताछ की गई तो आखिर उसे निशा के साथ चीटिंग करने की बात स्वीकारनी पड़ी.

लार्ड मुकुल पौल तनेजा वास्तव में कोई आम आदमी नहीं था. पता चला कि वह एक उच्चशिक्षित लेखक, मैनेजमेंट गुरु और फिल्म प्रोड्यूसर था. उस से की गई पूछताछ के बाद ठगी का कारनामा करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

मुकुल पौल तनेजा दक्षिणी दिल्ली के हौजखास इलाके में मेफेयर गार्डन के रहने वाले अर्जुन कुमार तनेजा का बेटा था. अर्जुन कुमार एक निजी कंपनी में उच्च पद पर नौकरी करते थे.

मुकुल पौल की मां निर्मल तनेजा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में निदेशक थीं, जो 1989 में रिटायर हो चुकी थीं. मुकुल पौल ने सन 1983 में वसंतकुंज के मौडर्न स्कूल से 12वीं कक्षा पास की थी. इस के बाद उस ने दिल्ली के ही शेख सराय स्थित कालेज औफ वोकेशनल स्टडीज से सन 1987 में मार्केटिंग में बीबीए किया.

मुकुल पौल पढ़ाई में बहुत होशियार था. पढ़ाई में अव्वल होने की वजह से उसे स्कौलरशिप मिलती रही. जिस से उस ने विश्व के कई देशों में जा कर पढ़ाई की. सन 1989 में उस ने लंदन के कार्डिफ बिजनैस स्कूल से एमबीए किया और उस के बाद एलएलएम की डिग्री हासिल की.

इस के बाद उस ने भारत और ब्रिटेन के विभिन्न प्रतिष्ठित स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालयों में एमबीए में लेक्चर देने शुरू कर दिए. उस के लेक्चर पसंद किए जाने लगे. जिस के बाद उसे मैनेजमेंट गुरु के नाम से जाना जाने लगा.

बताया जाता है कि उस ने मैनेजमेंट पर कई किताबें भी लिखीं. उस की काबिलियत को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उसे लार्ड की उपाधि से सम्मानित किया.

मैनेजमेंट गुरु के रूप में लार्ड मुकुल पौल तनेजा की अब अच्छी पहचान बन चुकी थी. इसी बीच 1992 में वह भारत आ गया. यहां आ कर उसे जयप्रकाश ग्रुप औफ इंडस्ट्रीज में नौकरी मिल गई. सन 1992 से 1995 तक उस ने इस ग्रुप में नौकरी की. नौकरी में उसे एक निश्चित पगार मिलती थी, जबकि उस की चाहत उस से कहीं ज्यादा थी. इसलिए उस ने नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया.

वह अपना कोई ऐसा बिजनैस करना चाहता था, जिस में उसे अच्छी आमदनी हो. एक साल बाद उस ने गारमेंट्स एक्सपोर्ट के बिजनैस में हाथ आजमाया. एमजीए एक्सपोर्ट नाम से उस ने एक एक्सपोर्ट फर्म खोली. इसी दौरान 1998 में राजस्थान के धौलपुर जिले के एक अमीर घराने की लड़की के साथ उस ने शादी कर ली.

लार्ड मुकुल पौल ने गारमेंट्स एक्सपोर्ट का जो बिजनैस शुरू किया था, उस में जब उसे घाटा होने लगा तो उस ने वह बिजनैस बंद कर दिया. फिर उस ने जम्मूकश्मीर विकास प्राधिकरण के साथ मिल कर होटल और रेस्तरां का बिजनैस शुरू किया. यह उस की बड़ी सोच थी. पूरे भारत में होटल और रेस्तरां खोलने की उस की योजना थी. लेकिन इस धंधे में भी उसे घाटा उठाना पड़ा तो उस ने सन 2001 में यह बिजनैस भी बंद कर दिया.

मुकुल पौल एक हाईक्लास फैमिली से ताल्लुक रखता था, उस का रहनसहन शानोशौकत वाला था. जबकि आमदनी उस की जरूरत से कम थी. बताया जाता है कि होटल का बिजनैस करते समय उसे जब जम्मूकश्मीर में रहना पड़ा तो उसी दौरान उसे आतंकी संगठन जेकेएलएफ की तरफ से धमकियां भी मिली थीं.

इस के बाद मुकुल पौल ने कमोडिटी ट्रेडिंग के क्षेत्र में हाथ आजमाया. उस ने यह धंधा बड़े पैमाने पर शुरू किया. इस के लिए उस ने नई दिल्ली के हौजखास और इंग्लैंड में औफिस खोले.  ब बिजनैस बड़े पैमाने पर शुरू किया तो उसे इस में मोटी रकम भी इनवैस्ट करनी पड़ी. कुछ दिनों बाद इस बिजनैस का भी वही हाल हुआ जो उस के दूसरे बिजनैसों का हुआ था. यानी इस में भी उसे मोटा घाटा हुआ.

लार्ड मुकुल पौल जिस बिजनैस में भी हाथ डाल रहा था, उसी में उसे घाटा उठाना पड़ रहा था. इस की एक वजह शायद यह थी कि काम शुरू करने से पहले उसे उन कामों की नालेज नहीं था. जिस का खामियाजा उसे बिजनैस के घाटे के रूप में देखने को मिल रहा था. लगातार घाटे से उबरने का उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था.

बौलीवुड की कई हस्तियों से उस के अच्छे संबंध थे. मोटी कमाई के लिए उस ने बौलीवुड की कई आर्ट फिल्मों में पैसा लगाया. फिल्म फाइनैंस करने के अलावा उस ने फिल्में भी बनाईं, लेकिन फिल्में फ्लौप हो जाने से उसे बहुत इस में भी उठाना पड़ा. जिस से उस ने इस क्षेत्र में बढ़ाए अपने कदम भी खींच लिए. लेकिन अभिनेता शाहिद कपूर की मां नीलिमा अजीम से कानूनी विवाद होने की वजह से मुकुल पौल की फिल्म ‘नवाब नौटंकी’ पूरी नहीं हो सकी. नीलिमा अजीम ने भी मुकुल पौल को ठग बताया.

अपना सामाजिक स्तर बनाए रखने और शानोशौकत दिखाने के लिए मुकुल पौल ने औडी ए-6, सुजुकी किजाशी, फोक्सवैगन पोलो, फोर्ड इको स्पोर्ट्स, स्विफ्ट डिजायर, रेनोल्ट डस्टर आदि कारें खरीद रखी थीं. इन में से अधिकांश कारें विभिन्न बैंकों से लोन पर खरीदी गई थीं.

उस की शानोशौकत देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह कितना कर्जदार है. बल्कि उस के व्यक्तित्व को देख कर उस से पहली बार मिलने वाला व्यक्ति उस से प्रभावित हो जाता था.

गाडि़यों पर ही नहीं, उस ने अपने बंगले पर भी 70 लाख का लोन ले रखा था. उस ने विभिन्न बैंकों से लोन तो ले लिया था, लेकिन आमदनी का कोई जरिया न होने की वजह से वह लोन की किस्तें भी नहीं चुका पा रहा था.

दिल्ली के मोतीबाग स्थित पंजाब नैशनल बैंक की शाखा से उस ने रेनोल्ट डस्टर और सुजुकी किजाशी कारें खरीदने के लिए लगभग 20 लाख रुपए का लोन लिया था. लोन की अदायगी न करने पर बैंक ने लार्ड मुकुल पौल तनेजा को डिफाल्टर घोषित कर कर के  इस का विज्ञापन विभिन्न अखबारों में भी छपवा दिया था.

मुकुल पौल की इनकम बंद थी और उस के खर्चे जस के तस थे. उस ने कई बैंकों से पहले ही मोटा कर्ज ले रखा था, किस्त अदायगी न होने की वजह से पंजाब नैशनल बैंक उसे डिफाल्टर घोषित कर चुकी थी, जिस की वजह से बैंकों से कर्ज लेना उस के लिए अब आसान नहीं था. कोई दूसरा धंधा शुरू करने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. पैसे कमाने के लिए वह क्या करे, यही सोच कर वह परेशान रहने लगा.

उस के पास जो लग्जरी कारें थीं, वे वीआईपी रजिस्टे्रशन नंबरों की थीं. उस ने उन्हीं लग्जरी कारों के जरिए धोखाधड़ी करने की योजना बनाई. उस ने विभिन्न अखबारों में वीआईपी नंबरों की लग्जरी कारों को बेचने के विज्ञापन देने शुरू कर दिए.  कोई व्यक्ति जब उस से कार खरीदने की बात करता तो वह गाड़ी का सौदा करने के बाद रकम ले लेता और गाड़ी व उस के रजिस्टे्रशन के कागज बाद में देने को कह देता.

कुछ दिनों बाद भी जब रजिस्टे्रशन सर्टिफिकेट उस व्यक्ति के नाम ट्रांसफर नहीं हो पाता तो वह व्यक्ति मुकुल पौल से शिकायत करता. मुकुल पौल उस व्यक्ति को कोई न कोई बहाना बना कर टालता रहता. फिर अंत में परेशान हो कर वह व्यक्ति मुकुल से अपने पैसे लौटाने की बात करता तो वह अपनी ऊंची राजनैतिक पहुंच होने की धमकी दे कर उसे चुप करा देता.

एनआरआई महिला निशा करावद्रा के साथ भी मुकुल पौल ने ऐसा ही किया. लेकिन निशा भी ऊंची पहुंच वाली महिला थीं, इसलिए वह उस की धमकी में नहीं आईं और ऐसे धोखेबाज आदमी को सबक सिखाने के लिए पुलिस का सहारा लिया. इस का नतीजा यह निकला कि लार्ड मुकुल पौल तनेजा पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

लार्ड मुकुल पौल तनेजा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की वीआईपी नंबर की रेनोल्ट डस्टर कार भी बरामद कर ली. फिर उसे 2 मई, 2014 को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. अब मामले की जांच सबइंसपेक्टर विनय त्यागी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

महिला कांस्टेबल से ट्रेन में दरिंदगी – भाग 3

तीनों बदमाश उस महिला सिपाही पर हावी नहीं हो पा रहे थे. इस के बाद तीनों ने उसे पकडऩे की कोशिश छोड़ कर उसे पीटना शुरू कर दिया, जिस से सिपाही बेसुध हो गई और ट्रेन के फर्श पर गिर पड़ी. तीनों बदमाशों ने उस के कपड़े फाड़ दिए.

इसी बीच मनकापुर स्टेशन आ गया. तब रात के करीब एक बज चुका था. तीनों को पकड़े जाने का डर हुआ फिर उन्होंने बेहोश महिला सिपाही को सीट के नीचे धकेल दिया. तीनों ने अपने मोबाइल फोन स्विच्ड औफ कर लिए और वहां से भाग निकले. हैडकांस्टेबल मानसी बेहोश होने के कारण सीट के नीचे पड़ी रही. रात करीब 3 बजे ट्रेन मनकापुर से प्रयागराज के लिए चली. उस समय तक मानसी को होश नहीं आया था.

सुबहसुबह 3 बज कर 40 मिनट पर ट्रेन अयोध्या स्टेशन पहुंची तो पूरा मामला खुला.

बदमाशों में मारा गया 30 वर्षीय अनीस खान और घायल आजाद खान ने नाबालिग हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसा लिया था और उन का धर्मांतरण कर निकाह कर लिया था. दोनों अयोध्या के हैदरगंज थाना क्षेत्र स्थित गांव दशलावन के निवासी हैं, जो अयोध्या शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर सुलतानपुर जिले की सीमा से सटा हुआ है.

अनीस ने दलित लडक़ी और आजाद ने पिछड़े समुदाय की युवती से निकाह किया था. आजाद की शादी हुए 13 साल हो चुके हैं और वह 4 बच्चों का बाप है. कहानी लिखे जाने तक पुलिस आजाद खान और विशंभर दयाल दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित. कथा में मानसी और मनोज परिवर्तित नाम हैं.

अनीस खान और आजाद खान ने हिंदू लड़कियों से किया था निकाह

मृतक अनीस खान और घायल आजाद खान अयोध्या के हैदरगंज थाना क्षेत्र स्थित गांव दशलावन के निवासी थे. अनीस खान ने अपने घर से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित मनऊपर गांव की एक दलित समुदाय की युवती से निकाह किया था. निकाह से पूर्व उस युवती का नाम अंतिमा था, जबकि अब वह  बानो के नाम से जानी जाती है. बानो एक बच्ची की मां है.

अनीस खान की पत्नी बानो उर्फ अंतिमा की मां ने मीडिया को रोते हुए बताया कि उन की फूल सी बच्ची अंतिमा के पीछे अनीस खान तब से पड़ा था, जब वह नाबालिग थी. उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूल आनेजाने के दौरान अनीस खान ने कक्षा 8 में पढ़ रही अंतिमा को अपने वश में कर लिया था.

अंतिमा की मां ने आगे बताया कि अनीस खान तो पहले नाबालिग उम्र में ही निकाह करना चाहता था, परंतु पुलिस के हस्तक्षेप के कारण वह अपने इरादे में कामयाब नहीं हो पाया था. उस के बाद अनीस खान ने अंतिमा के बालिग होने का इंतजार किया और उस के बालिग होते होते ही उसे अपने साथ ले गया.

अंतिमा की मां ने आगे बताया कि उन की 5 बेटियों और 2 बेटों के साथ पूरी बिरादरी ने इस रिश्ते का विरोध भी किया था. तब मामला पुलिस तक भी गया था और हम ने अनीस खान पर अंतिमा के अपहरण का आरोप लगाया था. हालांकि पुलिस छानबीन और पूछताछ के दौरान अंतिमा ने अपने आप को बालिग बताते हुए अनीस खान के साथ ही रहने की इच्छा जताई थी.

अपनी बेटी अंतिमा के महज 25-26 वर्ष की उम्र में ही विधवा हो जाने की खबर पर रोती हुई उस की मां ने बताया कि अब वह चाह कर भी अपनी विधवा बेटी को अपने परिवार में वापस नहीं ला पाएंगी. इस की वजह उन्होंने खुद को बिरादरी द्वारा बेदखल करने की चेतावनी और खुद के बेटों द्वारा अंतिमा से कोई संबंध न रखने का संकल्प बताया.

अंतिमा की मां ने रोते हुए मीडिया को बताया, “हम हिंदू वो मुसलमान. हमारा और इन का ये कैसा मेल. अपने ही धर्म में शादी की होती तो कुछ न कुछ रास्ता अवश्य निकल सकता था. अंतिमा के एक मुसलिम युवक के साथ निकाह कर लेने के बाद मेरे पति मानसिक रूप से बीमार हो गए और अब पागलों जैसी हरकत करते हैं. अगर हमारी बेटी अंतिमा हमारी नाक नीची न करती तो अनीस अब तक जेल की सजा काट रहा होता.”

अंतिमा की मां का दावा है कि 5 साल पहले निकाह होने के बाद उन्होंने या उन के परिवार ने कभी अपनी अपनी बेटी से बात तक नहीं की. उन को ये भी पता नहीं था कि उन की बेटी अंतिमा का नाम अब बानो हो चुका था.

अंतिमा की मां के अंतिम शब्द यह थे, “मैं ने उसे अपनी कोख से पैदा किया है. बहुत दर्द है अंदर ही अंदर हमें, परंतु अब हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उस घर में वह इतनी लंबी जिंदगी नहीं काट पाएगी, आप लोग ही उसे हिम्मत देना.”

वहीं दूसरी तरफ पुलिस मुठभेड़ में गिरफ्तार किए गए आरोपी आजाद खान ने भी एक ओबीसी समुदाय की हिंदू युवती से निकाह किया था, जो उसी दशलावन गांव की निवासी है. निकाह से पूर्व मुन्ना की बेटी सुमन अब शबाना के नाम से जानी जाती है.

सुमन उर्फ शबाना का आजाद खान से निकाह लगभग 13 साल पहले हुआ था. अब शबाना 4 बच्चों की अम्मी है. दशलावन गांव में अनीस खान और आजाद खान का घर लगभग अगलबगल ही है.

सुमन की मां ने कहा, “मेरी बेटी स्कूल जाती थी, तब से आजाद खान उस के पीछे लगा रहता था. स्कूल आतेजाते ही दोनों एकदूसरे के संपर्क में आए थे. लगभग 13 साल पहले जब सुमन की उम्र 20 वर्ष की हुई थी तो दोनों ने निकाह कर लिया था. हम ने जब आजाद खान के खिलाफ केस दायर किया और पुलिस से ले कर कोर्ट तक में हम ने केस भी लड़ा था. मगर जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो भला कौन क्या कर सकता था.

“सुमन ने खुद ही कोर्ट और पुलिस के आगे अपने बयान में आजाद खान के साथ रहने की इच्छा जताई थी. सुमन के इस बयान के बाद हम ने कभी भी सुमन या उस के घर की तरफ मुंह उठा कर भी नहीं देखा. हम एक ही गांव में रहते थे.”

रेप में फंसा दिल्ली सरकार का अधिकारी – भाग 3

डाक्टर्स उस के साथ हुई हैवानियत से आगबबूला हो गए. एक नाबालिग लडक़ी के साथ दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग का उपनिदेशक ऐसी घिनौनी हरकत करे और आजादी से घूमे, यह बरदाश्त से बाहर की बात थी.

एक डाक्टर ने तुरंत इस मामले की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दी. कंट्रोल रूम ने घटना से संबंधित उत्तरी दिल्ली के थाना बुराड़ी को तुरंत अवगत करा कर सेंट स्टीफन हौस्पिटल जा कर पीडि़ता के बयान दर्ज करने को कहा.

बुराड़ी थाने के एसएचओ राजेंद्र कुमार ने जिले के डीसीपी सागर सिंह कलसी को फोन कर के घटना के विषय में बताया, फिर अपने संग 2 महिला और 2 पुलिस कांस्टेबल को ले कर सेंट स्टीफन अस्पताल के लिए रवाना हो गए.

सेंट स्टीफन में जब एसएचओ राजेंद्र कुमार पहुंचे तब काउंसलिंग एक्सपर्ट और फोन करने वाले डाक्टर वहीं मीनाक्षी के बेड के पास मौजूद थे. इस 14 साल की नाबालिग लडक़ी को देख कर एसएचओ राजेंद्र कुमार ने गहरी सांस ली. वह उस व्यक्ति को कोसने लगे जिस ने इस फूल जैसी बच्ची से अपना मुंह काला किया था.

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मीनाक्षी अभी सो रही थी. एसएचओ राजेंद्र कुमार को काउंसलिंग एक्सपर्ट और डाक्टर ने संक्षिप्त में सारी बातें बता दीं. डीसीपी सागर सिंह कलसी भी वहां आ गए थे. मीनाक्षी का बयान लेने के लिए उसे जगाया गया और सीआरपीसी के सेक्शन 164 के तहत उसका बयान दर्ज किया गया. मीनाक्षी के बयान दर्ज कर के डीसीपी सागर सिंह कलसी और एसएचओ राजेंद्र कुमार लौट गए.

पुलिस ने महिला एवं बाल विकास विभाग के उपनिदेशक प्रमोदय खाका और पत्नी सीमा को पहुंचाया जेल

मामला दिल्ली सरकार के एक प्रतिष्ठित पद पर बैठे अधिकारी का था. उस पर एकदम से हाथ नहीं डाला जा सकता था. पुलिस उस के खिलाफ ठोस सबूत जुटाना चाहती थी. इस के लिए एसएचओ राजेंद्र कुमार ने बुराड़ी के चर्च में जा कर पादरी और वहां हमेशा आने वाले लोगों से प्रमोदय खाका के बारे में जानकारी जुटाई. पता चला कि प्रमोदय खाका वहां रविवार को अवश्य जाता था. वहां उस की दोस्ती मीनाक्षी के मम्मीपापा से हुई. चर्च में आने वाले लोगों ने बताया कि ये तीनों चर्च में आने पर एकदूसरे से हंसतेबोलते थे.

मीनाक्षी के घर भी एसएचओ ने जा कर मीनाक्षी के बारे में पूछताछ की, मीनाक्षी कैसी लडक़ी है, उस की मां का चरित्र कैसा है, यह सब आसपास रहने वाले लोगों से पूछा गया. सभी ने बताया कि मीनाक्षी अच्छी लडक़ी है. उस की मां पति की मौत के बाद एक फैक्ट्री में नौकरी करती है, वह अच्छे चरित्र की महिला है. उन के यहां प्रमोदय खाका आता रहता था. तीनों के बारे में पूछताछ कर के एसएचओ राजेंद्र कुमार वापस आ गए.

मीडिया तक मीनाक्षी के साथ हुए रेप और उस का अबार्शन करवाने की बात पहुंची तो अखबारों में प्रमोदय खाका और उस की पत्नी सीमा के विरुद्ध सुर्खियों में बहुत कुछ लिखा जाने लगा.

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल ने प्रमोदय खाका की गिरफ्तारी की मांग कर डाली. दिल्ली सरकार ने तुरंत ऐक्शन लेते हुए खाका को नौकरी से सस्पेंड कर दिया. चारों ओर से दबाव बना तो पुलिस ने प्रमोदय खाका के बुराड़ी स्थित घर पर दबिश दे कर प्रमोदय की पत्नी सीमा को गिरफ्तार कर लिया. प्रमोदय खाका फरार था. पता चला कि वह अपनी अग्रिम जमानत के लिए कोर्ट पहुंच गया था.

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पुलिस ने उसे उस की अग्रिम जमानत होने से पहले ही वहां से गिरफ्तार कर लिया. सीमा को कोर्ट में 21 अगस्त, 2023 को पेश कर उसे जेल भेज दिया गया.

22 अगस्त मंगलवार को प्रमोदय खाका की गिरफ्तारी हुई थी. उस पर थाने में भादंवि की धारा 376 (2) (महिला से बलात्कार), 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना), 328 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 313 (महिला की सहमति के बिना उस का गर्भपात करवाना), धारा 120बी (आपराधिक साजिश) और पोक्सो अधिनियम (यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण का प्रावधान), 506 (आपराधिक धमकी देना) के अंतर्गत केस दर्ज किया गया.

पुलिस को प्रमोदय खाका का पोटेंसी टेस्ट (शुक्राणु की जांच से संबंधित) भी करवाना पड़ा, क्योंकि प्रमोदय खाका के वकील उमाशंकर ने चौंकाने वाला खुलासा किया था कि प्रमोदय खाका ने 2005 में अपनी नसबंदी करवा ली थी. हकीकत क्या है यह जांच रिपोर्ट आने के बाद पता चल सकेगा. कथा लिखने तक प्रमोदय खाका और उस की पत्नी सलाखों के पीछे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में मीनाक्षी और सुषमा परिवर्तित नाम हैं.