2 लड़कियों की आशिकी

18 मार्च, 2017 को पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली कि गांव अनोड़ा में कुछ लोगों ने 2 लड़कियों को घेर रखा है, उन की जान को खतरा है. कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना राया पुलिस को दे दी, क्योंकि गांव अनोड़ा उसी के अंतर्गत आता था. सूचना मिलते ही थाना राया के थानाप्रभारी इंसपेक्टर अनिल कुमार पुलिस बल के साथ गांव अनोड़ा पहुंच गए. गांव पहुंच कर उन्हें पता चला कि वह फोन रामखिलाड़ी के घर से किया गया था.

पूछताछ में अनिल कुमार के सामने जो घटना आई, वह हैरान करने वाली थी. फोन जिन 2 लड़कियों ने किया था, वे आपस में शादी करना चाहती थीं, जो लोगों को स्वीकार नहीं था. लोग दोनों को अलग करना चाहते थे, जबकि लड़कियां एकदूसरे से अलग नहीं होना चाहती थीं. जब लोग जबरदस्ती करने लगे तो उन्होंने कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर दिया था.

मामला कोई बहुत गंभीर नहीं था, फिर भी कुछ लोगों को उत्तेजित देख कर अनिल कुमार दोनों लड़कियों को साथ ले कर थाने आ गए. उन के पीछेपीछे दोनों लड़कियों के घर वाले ही नहीं, कुछ रिश्तेदार और गांव के भी तमाम लोग आ गए थे.

पुलिस जिन दोनों लड़कियों को थाने ले आई थी, उन में से एक का नाम सोनिया था. उस की उम्र 23 साल थी. वह मथुरा जिले के थाना राया के गांव अनोड़ा के रहने वाले रामखिलाड़ी की बेटी थी. उस के साथ आई लड़की का नाम रीना था, जो 21 साल की थी. वह गांव रूमगेला के रहने वाले लक्ष्मण की बेटी थी.

थाने में की गई पूछताछ में सोनिया और रीना के प्रेम से ले कर बात विवाह तक पहुंचने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा के थाना राया का एक गांव है अनोड़ा. रामखिलाड़ी इसी गांव के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी भारती के अलावा 4 बेटियां और एक बेटा था.

रामखिलाड़ी कपड़ों पर प्रैस कर के गुजरबसर करते थे. सोनिया उन की सब से छोटी बेटी थी. उन्होंने 3 बेटियों की शादी कर दी थी. अब वह सोनिया की शादी के बारे में सोचने लगे थे.

लेकिन सोनिया कुछ अलग तरह की लड़की थी, जिसे ले कर रामखिलाड़ी ही नहीं, उन की पत्नी भारती भी चिंतित रहती थी. इस की वजह यह थी कि सोनिया बचपन से ही लड़कियों की तरह नहीं, लड़कों की तरह रहती आई थी. वह कपड़े तो लड़कों जैसे पहनती ही थी, उस की सोच, बातचीत का लहजा भी लड़कों जैसा था. वह रहती भी लड़कों के साथ ही थी.

सोनिया की चालढाल, रहनसहन और उस की बातें सुन कर रामखिलाड़ी और भारती चिंतित रहते थे. जब तक वह बच्ची थी, बात बचपने में टाल दी जाती रही, लेकिन जब वह सयानी हुई तो मांबाप उसे समझाने ही नहीं लगे, बल्कि हिदायतें भी देने लगे. लेकिन सोनिया पर उन के समझाने या हिदायतों का कोई असर नहीं पड़ा.

सोनिया ने 12वीं तक पढ़ाई की और अपने पैरों पर खड़ी होने के लिए सिलाई सीख कर लोगों के कपड़े तो सीने ही लगी, साथ ही सिलाई सिखाने का इंस्टीट्यूट भी खोल लिया. उस के यहां सिलाई सीखने गांव की ही नहीं, अगलबगल के गांवों की भी लड़कियां आती थीं.

सोनिया जहां अपने में मस्त रहती थी, वहीं मांबाप को उस के ब्याह की चिंता थी. क्योंकि उन्हें शायद पता नहीं था कि वह जिस बेटी के ब्याह के लिए परेशान हैं, उस में लड़कियों वाले गुण हैं ही नहीं. उन्होंने सोनिया के मन में क्या है, इस बात की परवाह किए बगैर अलीगढ़ की तहसील अतरौली के गांव जमनपुर के रहने वाले रमेश से उस की शादी तय कर दी.

जब इस बात की जानकारी सोनिया को हुई तो वह विरोध पर उतर आई. लेकिन उस के विरोध के बावजूद रामखिलाड़ी ने उस की शादी धूमधाम से रमेश के साथ कर दी. यह सन 2009 की बात है. मांबाप के इस फैसले से नाराज सोनिया ससुराल चली तो गई, पर बागी बन गई. ससुराल वालों ने उसे हाथोंहाथ लिया, पर उस के मन में जो था, उस में जरा भी बदलाव नहीं आया.

सोनिया ने पति को छूने देने की कौन कहे, चारपाई के भी नजदीक नहीं आने दिया. सवेरा होते ही उस ने साड़ी उतार कर फेंक दी और जींसटौप पहन लिया. बहू की इस हरकत से ससुराल वाले हैरान रह गए. उन्हें यह जरा भी पसंद नहीं आया. उन्होंने उसे नादान समझ कर समझाना चाहा, पर वह कुछ भी समझने को तैयार नहीं थी. उन्होंने फोन कर के सारी बात रामखिलाड़ी को बताई तो वह परेशान हो उठे.

बड़ी मुश्किल से तो उस ने बेटी की शादी की थी. ससुराल जा कर वह इस तरह का नाटक कर रही थी. 5 दिनों बाद वह मायके आई तो उस ने साफ कह दिया कि अब वह ससुराल नहीं जाएगी. इस के बाद लाख प्रयास के बावजूद भी वह ससुराल नहीं गई. मजबूर हो कर मांबाप ने बेटी के तलाक का मुकदमा अदालत में दायर कर दिया, जो अभी भी विचाराधीन है.

सोनिया तनमन से अपने सिलाई सैंटर में लग गई. उसे लड़कियों को सिलाई सिखाना पसंद था. न जाने क्यों उसे लड़कियों को छूना अच्छा लगता था. इसलिए वह उन्हीं के बीच लगी रहती थी. एक दिन पड़ोस के रूमगेला गांव की रहने वाली रीना उस के सिलाई सैंटर पर सिलाई सीखने आई तो उस ने उस में न जाने क्या देखा कि उसे लगा, इसी लड़की की उसे तलाश थी. रीना अभी पढ़ रही थी. वह सिलाई सीख कर अपनी पढ़ाई का खर्च खुद निकालना चाहती थी. उस के पिता लक्ष्मण खेती करते थे. उन के परिवार में पत्नी शांति के अलावा 4 बेटियां थीं. 3 बेटियों की वह शादी कर चुके थे. सब से छोटी रीना अभी पढ़ रही थी.

रूमगेला गांव अनोड़ा से 6 किलोमीटर दूर था. इस के बावजूद रीना रोज साइकिल से सोनिया के यहां सिलाई सीखने आती थी. रीना में ऐसा न जाने कौन सा आकर्षण था कि सोनिया उस की ओर खिंचती जा रही थी. जब तक वह सिलाई सैंटर में रहती, सोनिया को अजीब सा सुख महसूस होता. वह उसी के इर्दगिर्द मंडराती रहती थी. उसे छू कर उस के मन को असीम शांति ही नहीं मिलती थी, बल्ति अद्भुत सुख का भी अहसास होता था.

सोनिया की नजरें हमेशा रीना पर ही जमी रहती थीं, क्योंकि वह उसे अन्य लड़कियों से अलग नजर आती थी. रीना को भी जब उस के मन की बात का अहसास हुआ तो वह भी उस के करीब आने लगी. जल्दी ही वह उस की खास छात्रा बन गई.

एक दिन सोनिया ने बहाने से उसे अपने घर क्या रोका, उस दिन के बाद से वह उसी की हो कर रह गई. इस के बाद सोनिया ने रीना के पिता लक्ष्मण को फोन कर के कहा कि रीना रोजरोज 6 किलोमीटर आनेजाने में थक जाती है. अच्छा होगा कि उसे उस के पास ही रहनें दें. इस से रीना सिलाई भी जल्दी सीख जाएगी और रोजरोज की थकान से भी बच जाएगी.

लक्ष्मण को क्या पता था कि सोनिया के मन में क्या है. उन्होंने सहज भाव से इजाजत दे दी. अब रीना सोनिया के साथ ही रहने लगी. सप्ताह में एकाध दिन वह घर भी चली जाती थी. एक साथ रहने से सोनिया और रीना एकदूसरे के इतने करीब आ गईं कि वे अलग होने के नाम से घबराने लग%8

आवारगी में गंवाई जान – भाग 3

रेखा ने रिंकी को पहली बार तेजप्रताप गिरि के यहां देखा था, तभी से वह भांप गई थी कि यह औरत उस के काम की साबित हो सकती है. उस ने तेजप्रताप से रिंकी का मोबाइल नंबर ले कर उस से बातचीत शुरू कर दी थी. बातचीत के दौरान उसे पता चल गया कि रिंकी पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है, इसलिए वह उसे पैसे कमाने का रास्ता बताने लगी. फिर जल्दी ही रिंकी उस के जाल में फंस भी गई.

रिंकी जब भी गोरखपुर आती, रेखा से मिलने उस के घर जरूर जाती थी. इसी आनेजाने में अपनी उम्र से छोटे बबलू, संदीप और मनोज से उस के संबंध बन गए. इन लड़कों से संबंध बनाने में उसे बहुत मजा आता था.

रेखा का एक पुराना ग्राहक था सरदार रकम सिंह, जो सहारनपुर का रहने वाला था. उस ने रेखा से एक कमसिन, खूबसूरत और कुंवारी लड़की की व्यवस्था के लिए कहा था, जिस से वह शादी कर सके. रेखा को तुरंत रिंकी की याद आ गई. रिंकी भले ही शादीशुदा और 2 बच्चों की मां थी, लेकिन देखने में वह कमसिन लगती थी. कैसे और क्या करना है, उस ने तुरंत योजना बना डाली.

अब तक रिंकी की बातचीत से रेखा को पता चल गया था कि वह अपने सीधेसादे पति से खुश नहीं है. उसे भौतिक सुखों की चाहत थी, जो उस के पास नहीं था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी.

1 दिसंबर, 2013 को रिंकी छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर गोरखपुर आई. संयोग से उसी दिन किरन किसी बात पर पति से लड़झगड़ कर बड़ी बहन पुष्पा के यहां कुबेरस्थान (कुशीनगर) चली गई. रिंकी ने वह रात तेजप्रताप के साथ आराम से बिताई.

अगले दिन सुबह तेजप्रताप ने रिंकी को उस की ससुराल वापस पटहेरवा भेज दिया. इस के 2 दिनों बाद रेखा ने रिंकी को फोन किया. हालचाल पूछने के बाद उस ने कहा, ‘‘रिंकी मैं ने तुम्हारे लिए एक बहुत ही खानदानी घरवर ढूंढा है. अगर तुम अपने पति को छोड़ कर उस के साथ शादी करना चाहो तो बताओ.’’

रिंकी ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘मैं तैयार हूं.’’

‘‘ठीक है, कब और कहां आना है, मैं तुम्हें फिर फोन कर के बताऊंगी.’’ कह कर रेखा ने फोन काट दिया.

8 दिसंबर, 2013 को फोन कर के रेखा ने रिंकी से 11 दिसंबर को गोरखपुर आने को कहा. तय तारीख पर रिंकी अजय से बड़ी ननद पुष्पा के यहां जाने की बात कह कर घर से निकली. शाम होतेहोते वह रेखा के यहां पहुंच गई. उस ने इस की जानकारी तेजप्रताप को नहीं होने दी. रात रिंकी ने रेखा के यहां बिताई. 12 दिसंबर को रेखा ने भतीजे बबलू और भांजे मनोज के साथ उसे सहारनपुर सरदार रकम सिंह के पास भेज दिया और उस के बेटे को अपने पास रख लिया.

रिंकी को सिर्फ इतना पता था कि उस की दूसरी शादी हो रही है, जबकि रेखा ने उसे सरदार रकम सिंह के हाथों 45 हजार रुपए में बेच दिया था. रिंकी को वहां भेज कर उस ने उस के बेटे को बेलीपार की रहने वाली भाजपा नेता इशरावती के हाथों 30 हजार रुपए में बेच दिया था. बच्चा लेते समय इशरावती ने उसे 21 हजार दिए थे, बाकी 9 हजार रुपए बाद में देने को कहा था.

दूसरी ओर 2 दिनों तक रिंकी का फोन नहीं आया तो अजय को चिंता हुई. उस ने खुद फोन किया तो फोन बंद मिला. इस से वह परेशान हो उठा. उस ने पुष्पा को फोन किया तो उस ने बताया कि रिंकी तो उस के यहां आई ही नहीं थी. अब उस की परेशानी और बढ़ गई. वह अपने अन्य रिश्तेदारों को फोन कर के पत्नी के बारे में पूछने लगा. जब उस के बारे में कहीं से कुछ पता नहीं चला तो वह उस की तलाश में निकल पड़ा.

रिंकी का रकम सिंह के हाथों सौदा कर के रेखा निश्चिंत हो गई थी. लेकिन सप्ताह भर बाद उसे बच्चों की याद आने लगी तो वह रकम सिंह से गोरखपुर जाने की जिद करने लगी. तभी सरदार रकम सिंह को रिंकी के ब्याहता होने की जानकारी हो गई. चूंकि रिंकी खुद भी जाने की जिद कर रही थी, इसलिए उस ने रेखा को फोन कर के पैसे वापस कर के रिंकी को ले जाने को कहा.

अब रेखा और मनोज की परेशानी बढ़ गई, क्योंकि रिंकी आते ही अपने बेटे को मांगती. जबकि वे उस के बेटे को पैसे ले कर किसी और को सौंप चुके थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. रिंकी के वापस आने से उन का भेद भी खुल सकता था. इसलिए पैसा और अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्होंने उसे खत्म करने की योजना बना डाली.

21 दिसंबर, 2013 को बबलू और मनोज सहारनपुर पहुंचे. रकम सिंह के पैसे लौटा कर वे रिंकी को साथ ले कर ट्रेन से गोरखपुर के लिए चल पड़े. रात 7 बजे वे गोरखपुर पहुंचे. स्टेशन से उन्होंने रेखा को फोन कर के एक मोटरसाइकिल मंगाई. संदीप उन्हें मोटरसाइकिल दे कर अपने गांव चौरीचौरा गौनर चला गया.

आगे रिंकी के साथ क्या करना है, यह रेखा ने मनोज को पहले ही समझा दिया था. मनोज, बबलू रिंकी को ले कर कुसुम्ही जंगल पहुंचे. मनोज ने उस से कहा था कि वह कुसुम्ही के बुढि़या माई मंदिर में उस से शादी कर लेगा. मंदिर से पहले ही मोड़ पर उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तीनों नीचे उतरे तो मनोज ने बबलू को मोटरसाइकिल के पास रुकने को कहा और खुद रिंकी को ले कर आगे बढ़ा.

शायद रिंकी मनोज के इरादे को समझ गई थी, इसलिए उस ने भागना चाहा. लेकिन वह भाग पाती, उस के पहले ही मनोज ने उसे पकड़ कर कमर में खोंसा 315 बोर का कट्टा निकाल कर बट से उस के सिर के पीछे वाले हिस्से पर इतने जोर से वार किया कि उसी एक वार में वह गिर पड़ी.

घायल हो कर रिंकी खडंजे पर गिर कर छटपटाने लगी. उसे छटपटाते देख मनोज ने अपना पैर उस के सीने पर रख कर दबा दिया. जब वह मर गई तो उस की लाश को ठीक कर के दोनों मोटरसाइकिल से घर आ गए. बाद में इस बात की जानकारी तेजप्रताप को हो गई थी, लेकिन उस ने यह बात अपने साले अजय को नहीं बताई थी.

कथा लिखे जाने तक रिंकी हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त मनोज कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. सरदार रकम सिंह की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी. वह भी फरार था. बाकी सभी अभियुक्तों को पुलिस ने जेल भेज दिया था.

इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार ने 5 हजार रुपए पुरस्कार देने की घोषणा की है.

—कथा पारिवारिक और पुलिस सूत्रों पर आधारित.

क्राइम पेट्रोल देखकर किया घिनौना अपराध

बुधवार 2 मई की रात के लगभग 9 बजे कोटा के पुलिस अधिकारियों की बैठक चल रही थी. मुख्य मुद्दा था मार्बल व्यवसाई परिवार के बेटे विशाल मेवाड़ा के अपहरण और फिरौती का. कोटा में नित नए अपराधों से सकपकाई पुलिस के लिए यह गंभीर चुनौती थी.

दरअसल, वाकया कुछ ऐसा था जो ढाई साल पहले घटित रुद्राक्ष हांडा कांड के अंदेशों को बल दे रहा था, जिस में फिरौती के लिए किए गए अपहरण में बच्चे की हत्या भी कर दी गई थी. पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया ने एक पल अपने अधीनस्थ अफसरों पर सरसरी नजर दौड़ाने के बाद कहना शुरू किया, ‘‘आप के सामने फिर एक नया इम्तिहान है. हमें एकएक कदम बहुत सोचसमझ कर उठाना होगा.’’

बुधवार 2 मई की शाम करीब 7 बजे बोरखेड़ा के थानाप्रभारी महावीर सिंह जिस समय अपने थाने में बैठे थे, तभी लगभग 45-46 साल की रुआंसी औरत कमरे में दाखिल हुई. कुलीन और संपन्न परिवार की लगने वाली उस महिला के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. महावीर सिंह ने उसे सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, आप कौन हैं और इस तरह परेशान और घबराई हुई क्यों हैं?’’

‘‘परेशानी की तो बात यह है थानेदार साहब, मेरा बेटा गायब है, उस का अपहरण कर लिया गया है.’’ महिला ने अपनी बात सिलसिलेवार बतानी शुरू की, ‘‘साहब, मेरा नाम भूलीबाई है. मैं मार्बल कारोबारी बनवारी लाल मेवाड़ा की पत्नी हूं. मेरा 19 साल का बेटा विशाल मेवाड़ा कोटा के योगीराज पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. वह वहां से गायब हो गया.’’

महावीर सिंह ने उन्हें पानी का गिलास थमाते हुए कहा, ‘‘आप निश्चिंत हो कर पूरी बात बताइए.’’

एक ही बार में पानी का गिलास खाली कर के महिला ने कहना शुरू किया, ‘‘हम खैराबाद कस्बे में रहते हैं. मेरा बेटा विशाल कोटा में रह कर पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. पति बनवारीलाल कारोबार के सिलसिले में सूरत गए हुए हैं. अपहर्त्ताओं ने मंगलवार पहली मई को मेरे पति को मोबाइल पर फोन कर के 15 लाख की फिरौती मांगी है.’’

पलभर रुकने के बाद भूलीबाई ने कहना शुरू किया, ‘‘पति को मोबाइल पर पहला फोन दोपहर बाद 4 बजे आया, जिस में एक आदमी ने विशाल के अपहरण करने की इत्तिला देते हुए 15 लाख की रकम का इंतजाम करने को कहा और इस के साथ ही फोन काट दिया. करीब 15 मिनट बाद फिर उसी आवाज में धमकी भरा फोन आया कि पुलिस को खबर की तो विशाल को जान से मार दिया जाएगा. इस के साथ ही फोन बंद हो गया.’’

‘‘फिर उस के बाद कोई फोन आया?’’ थानाप्रभारी महावीर सिंह के स्वर में हैरानी का भाव स्पष्ट था.

‘‘रात 11 सवा 11 बजे मेरे पति का फोन आया. उन्होंने बताया कि 11 बज कर 1 मिनट पर उन के पास आए फोन काल में कहा गया था कि रकम कहां ले कर आना है, इस बाबत अगले दिन शाम 4 बजे बताएंगे और इस के साथ ही फोन बंद कर दिया.’’

‘‘आप के पति ने उन्हें क्या जवाब दिया?’’

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‘‘क्या कहते,’’ भूलीबाई ने सुबकते हुए कहा, ‘‘मेरे पति ने तो बड़ी आजिजी के साथ कहा कि तुम को जो रकम चाहिए, हम देंगे. बस हमारे बेटे को कुछ नहीं होना चाहिए.’’

लेकिन अगले ही पल भूलीबाई ने जो कहा, वह चौंकाने वाला था. उन्होंने बताया, ‘‘मेरे पति इस बात को ले कर हैरान थे कि फोन करने वाला जो कोई भी था, हमारे बेटे के मोबाइल से ही फोन कर रहा था.’’ इस के साथ ही भूलीबाई फूटफूट कर रोने लगी.

गहरी सांस लेते हुए महावीर सिंह ने कहा, ‘‘कोई और बात जो आप कहना चाहें.’’

‘‘हां साहब,’’ भूलीबाई ने जैसे याद करते हुए कहा, ‘‘साहब, मुझे फोन करने से पहले मेरे पति ने विशाल के मामा को फोन कर के विशाल के अपहरण की खबर देने के साथ उस के कमरे पर जा कर उसे तलाश करने को कहा था. उस का मामा दिनेश कोटा में ही रहता है. दिनेश ने विशाल के कमरे पर जा कर देखा तो वह वहां नहीं मिला. दिनेश ने मेरे पति को तो यह बात बताई ही, मुझे भी फोन कर के कोटा आने को कहा.’’

बोरखेड़ा थानाप्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज करने के साथ ही फौरन इस घटना और घटनाक्रम के बारे में पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया को जानकारी दी. इस के बाद तत्काल पुलिस सक्रिय हो गई. आननफानन में पुलिस अधिकारियों की बुलाई गई बैठक की वजह यही थी.

भोमिया साहब को मालूम था कि इतने संपन्न परिवार के बेटे के अपहरण की बाबत जब लोगों को पता चलेगा तो लोग पुलिस को आड़े हाथों लेने से पीछे नहीं हटेंगे.

अपहरण के इस मामले में किसी बड़े गिरोह का हाथ हो सकता है, यह सोच कर पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया ने क्षेत्राधिकारी नरसीलाल मीणा और राजेश मेश्राम के अलावा सर्किल इंसपेक्टर श्रीचंद सिंह, महावीर सिंह, आनंद यादव, मुनींद्र सिंह, लोकेंद्र पालीवाल, विजय शंकर शर्मा और एसआई महेश कुमार, एएसआई दिनेश त्यागी, कमल सिंह और प्रताप सिंह के नेतृत्व में 7 टीमों का गठन किया और विशाल के अपहर्त्ताओं का पता लगाने की जिम्मेदारी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार को सौंप दी.

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ ने बड़ी संख्या में लोगों से गहनता से पूछताछ की. करीब 100 से अधिक टीवी फुटेज निकाले, लेकिन कोई काम की बात मालूम नहीं हो सकी.

पुलिस को तब हैरानी हुई, जब विशाल के कुछ दोस्तों ने बताया कि उन के पास विशाल का फोन आया था. उस ने हम से 2-3 सौ रुपए की जरूरत बताते हुए पैसों की मांग की थी. लेकिन इस से पहले कि उस से इतनी छोटी रकम मांगने की वजह पूछते, उस का फोन संपर्क टूट गया.

पुलिस ने अंडरवर्ल्ड को भी खंगाला लेकिन लाख सिर पटकने के बावजूद पुलिस ऐसे किसी शातिर गिरोह का पता नहीं लगा सकी, जिस से इस मामले में कोई जानकारी मिल पाती. इस मामले में पुलिस ने फिरौती के लिए कुख्यात गिरोहों का पुलिस रिकौर्ड भी टटोला.

तमाम पुलिस रिकौर्ड जांचने के बाद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार इस नतीजे पर पहुंचे कि विशाल के अपहरण में कम से कम किसी नामी गिरोह का हाथ नहीं है.

पौलीटेक्निक की पढ़ाई करते हुए विशाल बोरखेड़ा के इलाके की आकाश नगर कालोनी में उसी कालेज में पढ़ने वाले मनोज मीणा के साथ किराए के कमरे में रहता था. पुलिस ने मनोज की गतिविधियों को पूरी तरह टटोला, लेकिन कहीं कोई संदिग्ध बात नजर नहीं आई.

जिस समय पुलिस विशाल के रूम पार्टनर मनोज मीणा समेत अन्य दोस्तों से गहनता से पूछताछ कर रही थी, तभी इस बात का पता चला कि विशाल के दोस्ताना रिश्ते विक्रांत उर्फ हिमांशु, प्रदीप और विजेंद्र भाटी उर्फ लकी से कुछ ज्यादा ही गहरे थे.

विशाल के मकान मालिक के मुताबिक इन तीनों लड़कों का विशाल के पास वक्तबेवक्त कुछ ज्यादा ही आनाजाना था. यह सूचना मिलते ही पुलिस ने उन्हें पूछताछ के घेरे में ले लिया, लेकिन हर सवाल पर तीनों पुलिस को छकाते रहे. पुलिस को लगा भी कि कहीं यह उस का भ्रम तो नहीं, फिर भी पुलिस ने अपनी जांच की दिशा नहीं बदली.

अब तक विशाल के पिता बनवारी लाल मेवाड़ा सूरत से कोटा लौट आए थे. उन्होंने पुलिस की जानकारी में इजाफा करते हुए बताया कि उन्हें मंगलवार को दोपहर बाद 4 बजे, फिर सवा 4 बजे तथा बाद में रात को 11 बज कर एक मिनट पर फोन आए थे.

रात को आने वाले फोन काल में अपहर्त्ताओं का कहना था कि फिरौती की रकम ले कर उन्हें दरा के निकट रेलवे क्रौसिंग पर पहुंचना होगा. कब, यह बाद में बताएंगे. अपहर्त्ता का यह भी कहना था कि रकम मिलने के एक घंटे बाद ही विशाल को छोड़ दिया जाएगा.

बनवारी लाल ने यह सब बताते हुए पुलिस से यह शंका भी जाहिर की कि फोन काल जब विशाल के मोबाइल से की जा रही थीं तो क्या उसे सुरक्षित मान लिया जाना चाहिए.

गुरुवार 3 मई की सुबह जब पुलिस इसी मुद्दे पर मंथन कर रही थी, तभी एक ग्रामीण की सूचना ने अधिकारियों को स्तब्ध कर दिया. सूचना बोरखेड़ा से करीब 20 किलोमीटर दूर नोताड़ा और मानस गांव के वन क्षेत्र के बीच बहने वाली नदी की कराइयों में एक लाश पड़ी होने की थी.

हजार अंदेशों में घिरी पुलिस के लिए यह सूचना चौंकाने वाली थी. पुलिस टीम तुरंत वहां के लिए रवाना हो गई. पुलिस के साथ विशाल के पिता बनवारीलाल भी थे. चंद्रलोई नदी का यह तटीय क्षेत्र हालांकि कुदरती रूप से मनोहारी था, जहां शहरी कोलाहल से ऊबे लोगों या फिर सैलानियों का आनाजाना था.

क्षेत्राधिकारी राजेश मेश्राम चंद्रलोई नदी की कराइयों के पास जीप रुकवा कर अपनी टीम के साथ नीचे उतर गए. तभी उन की नजर 3-4 फुट ऊंची झाडि़यों की कतार की तरफ चली गई. वहां पर एक युवक औंधा पड़ा नजर आया.

पुलिस के जवानों ने शव को सीधा किया तो बनवारीलाल वहीं पछाड़ खा कर गिर गए. शव विशाल का ही था. उस का चेहरा कुचल दिया गया था. लाश नमक की परत में लिपटी हुई थी. राजेश मेश्राम लाश पड़ी होने की स्थिति देख कर एक पल में ही भांप गए कि हत्या कहीं और की गई थी, लेकिन पुलिस को भटकाने के लिए लाश को यहां ला कर फेंका गया होगा.

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विशाल की हत्या बहुत ही निर्ममतापूर्वक की गई थी. उस की गरदन किसी तेजधार हथियार से रेती गई थी. संघर्ष का कोई चिह्न नहीं था. घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद राजेश मेश्राम ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद लाश मृतक के पिता को सौंप दी गई.

यह अजीब इत्तफाक था कि अभी शव के पंचनामे की काररवाई हो ही रही थी कि राजेश मेश्राम को एएसपी से सूचना मिली कि पूछताछ में अपराधी टूट गए हैं और उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया है.

अपराध का यह तानाबाना 3 सनकी और खुराफाती लड़कों ने बुना था. आईटीआई डिप्लोमा कर चुका विक्रांत उर्फ हिमांशु बोरखेड़ा का ही रहने वाला था. आईटीआई में डिप्लोमा कर चुका विक्रांत इस हद तक सनकी था कि सनक में वह अपनी कलाइयों में ब्लेड मार कर खुद ही कई जगह अपने हाथों को जख्मी कर चुका था.

बृजेंद्र सिंह भाटी उर्फ लकी कोटा के नजदीकी कस्बे कैथून का रहने वाला था. वह औटोमोबाइल से जुड़ी एक कंपनी में काम करता था और बोरखेड़ा में ही किराए पर कमरा ले कर रह रहा था.

तीसरा साथी प्रदीप उर्फ बिन्नी रोजीरोजगार के लिए गोलगप्पों का ठेला लगाता था. बिन्नी भिंड का बाशिंदा था और कोटा की मन्ना कालोनी में रह रहा था. सनक में तीनों एक से बढ़ कर एक थे. तीनों लगभग 18 से 20 साल की उम्र के थे.

पूछताछ में पता चला कि तीनों की हसरतों के पखेरू आसमानी उड़ान भरते रहे, नतीजतन मौजमस्ती और अय्याशी के शौक के लिए जितना भी कमाते थे, पूरा नहीं पड़ता था. तीनों की इस मंडली में विशाल शामिल हुआ तो बोरखेड़ा में ही रहने वाले विक्रांत उर्फ हिमांशु की बदौलत.

दारूबाजी के महंगे शौक में संपन्न बाप का बेटा विशाल उन के लिए काफी काम का था. विक्रांत, बृजेंद्र और प्रदीप की साझा ख्वाहिश थी तो एक ही कि कोई ऐसा शख्स हाथ चढ़ जाए, जिस से इतना पैसा मिल सके कि मौजममस्ती के लिए तरसना न पड़े.

नशे के सुरूर में एक दिन विशाल का काल ही उस की जुबान पर बैठ गया और वह कह बैठा, ‘‘आज की पार्टी मेरी तरफ से.’’

‘‘किस खुशी में?’’ पूछने पर विशाल ने कह दिया, ‘‘आज ही मेरे पिता को एक बड़े सौदे में भारीभरकम रकम मिली है. इसलिए जश्न होना चाहिए.’’

फिर क्या था, तीनों की आंखों में लालच चमक उठा. पार्टी खत्म होने के बाद तीनों सनकी सिर जोड़ कर बैठे तो बदनीयती जुबान पर आ गई. तीनों की जुबान पर एक ही बात थी, ‘अगर यह बड़ी रकम हमारे हाथ आ जाए तो मजे ही मजे हैं.’ लेकिन सवाल था कि कैसे?

कैसे का आइडिया भी अनायास ही मिल गया. उन के लिए संयोग था और विशाल के लिए दुर्भाग्य कि इत्तफाक से तीनों आपराधिक घटना पर आधारित क्राइम पैट्रोल सीरियल देखते थे. एक कहानी ऐसी ही एक घटना पर आधारित थी, जिस में पैसों की खातिर 3 सिरफिरे अपने दोस्त से ही दगा करते हैं और उस की हत्या कर देते हैं.

फिरौती की घटना पर बुनी गई इस कहानी ने इन तीन तिलंगों को भी दगाबाजी की राह दिखा दी. योजना बनाई गई कि शराब की पार्टी में विशाल को इतनी पिला दी जाए कि वह होश खो बैठे. फिर उसे काबू में कर के उस के पिता से 15 लाख की फिरौती मांगी जाए.

तीनों का मानना था कि एकलौती औलाद के लिए एक दौलतमंद बाप 15 लाख क्या 15 करोड़ भी दे सकता है.

सवाल था कि विशाल बुलाने पर तयशुदा ठिकाने पर आ भी जाए और अपना मोबाइल भी इस्तेमाल न करना पड़े. यह योजना मंगलवार को कामयाब भी हो गई.  इन लोगों ने सुबह 10 बजे बोरखेड़ा पहुंच कर एक सब्जी वाले के मोबाइल से फोन कर के विशाल को बुलाया और वहां से उसे बृजेंद्र के रामराजपुरा स्थित खेत पर ले गए.

सब्जी वाले को यह कह कर विश्वास में लिया कि भैया, हमारे मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई है, इसलिए एक जरूरी फोन कर लेने दो. सब्जी वाला झांसे में आ गया. दोपहर 12 बजे रामराजपुरा पहुंच कर दारू का दौर चला तो विशाल को जम कर दारू पिलाई गई, ताकि वह होश खो बैठे. ऐसा ही हुआ भी.

नशे में बेसुध विशाल के मोबाइल से बृजेंद्र ने पहले विशाल को अपने कब्जे में होने की बात की, फिर 15 लाख की मांग करते हुए धमकी दी कि पुलिस को इत्तला दी तो बेटा जिंदा नहीं बचेगा. असहाय पिता बनवारीलाल ने सहमति जता दी तो उसे पैसे पहुंचाने का निर्धारित स्थान भी बता दिया गया.

एसपी भोमिया साहब ने पूछा, ‘‘जब बाप ने फिरौती की रकम देने का भरोसा दे दिया था तो बेटे को क्यों मारा?’’

एसपी ने आंखें तरेरते हुए हड़काया तो विक्रांत ने उगल दिया, ‘‘हमें डर था कि रकम देने के बाद विशाल हमारा भेद खोलने से नहीं चूकेगा. इसलिए उसे मारना पड़ा.’’

‘‘कैसे और कब?’’ एसपी ने पूछा, ‘‘दरिंदे बन गए तुम लोग? कैसे मारा?’’

‘‘हत्या तो हम ने चाकुओं से कर दी थी. बाद में पहचान मिटाने के लिए उस पर नमक भी लपेट दिया. लेकिन…’’ उस ने बिन्नी और लक्की की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘ये दोनों संतुष्ट नहीं थे, इसलिए लोहे की रौड से उस के चेहरे पर इतने वार किए कि लाश पहचान में न आ सके. साहब, विशाल की हत्या तो हम ने 2 बजे ही कर दी थी.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर…’’ अटकते हुए विक्रांत ने बताया, ‘‘इस के बाद लाश को बोरे में भरा और बाइक पर लाद कर नार्दर्न बाईपास के पास चंद्रलोई नदी की कराइयों में डाल आए और घर आ कर सो गए.’’

‘‘नींद आ गई तुम्हें?’’ एसपी भोमिया उन्हें नफरत भरी नजर से देखते हुए बुरी तरह बरस पड़े, ‘‘तुम ने तो शैतान को भी मात दे दी. लानत है तुम पर.’’

एसपी भोमिया ने मामले का रहस्योद्घाटन करते हुए मीडिया से कहा, ‘‘कैसी विचित्र बात है, ऐसे सीरियल से लोग जागरूक कम होते हैं लेकिन अपराधियों को अपराध के नए तरीके सीखने का मौका मिल जाता है.’’

कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी न्यायिक अभिरक्षा में थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आवारगी में गंवाई जान – भाग 2

उसी दिन पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. इन की गिरफ्तारी के बाद अजय गिरि का 3 वर्षीय बेटा सुंदरम भी सहीसलामत मिल गया. गिरफ्तार पांचों अभियुक्तों से की गई पूछताछ के बाद रिंकी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी…

पुलिस ने लाश बरामद होने पर हत्या का जो मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज किया था, खुलासा होने पर अजय से तहरीर ले कर अज्ञात हत्यारों की जगह मनोज पाल, बबलू, संदीप पाल, तेजप्रताप गिरि, रंभा उर्फ रेखा पाल, इशरावती और सरदार रकम सिंह के नाम डाल कर नामजद कर दिया.

25 वर्षीया रिंकी उर्फ रिंकू, उत्तर प्रदेश के जिला कुशीनगर के थाना तरयासुजान के गांव लक्ष्मीपुर राजा की रहने वाली थी. उस के पिता नगीना गिरि गांव में ही रह कर खेती करते थे. इस खेती से ही उन का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में रिंकी के अलावा 3 बच्चे, जियुत, रंजीत और नंदिनी थे. नगीना के बच्चों में रिंकी सब से बड़ी थी. रिंकी खूबसूरत तो थी ही, स्वभाव से भी थोड़ा चंचल थी, इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था.

नगीना की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ाते, इसलिए उन्होंने रिंकी की पढ़ाई छुड़ा दी थी. रिंकी जैसे ही सयानी हुई, गांव के लड़के उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे. चंचल स्वभाव की रिंकी शहजादियों की तरह जीने के सपने देखती थी. लेकिन उस के लिए यह सिर्फ सपना ही था. यही वजह थी कि पैसों के लालच में वह दलदल में फंसती चली गई.

गांव के कई लड़कों से उस के संबंध बन गए थे. वे लड़के उसे सपनों के उड़नखटोले पर सैर करा रहे थे. जब इस बात का पता उस के पिता नगीना को चला तो उन्होंने इज्जत बचाने के लिए बेटी की शादी कर देना ही उचित समझा. उन्होंने प्रयास कर के कुशीनगर के ही थाना परहरवा के गांव पगरा बसंतपुर के रहने वाले पारस गिरि के बेटे अजय गिरि से उस की शादी कर दी.

पारस गिरि भी खेती से ही 7 सदस्यों के अपने परिवार कोे पाल रहे थे. शादी के बाद बड़ा बेटा नौकरी के लिए बाहर चला गया तो उस से छोटा अजय पिता की मदद करने लगा. साथ ही वह एक बिल्डिंग मैटेरियल की दुकान, जहां वेल्डर का भी काम होता था, पर नौकरी करता था. इस नौकरी से उसे इतना मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. पारस ने बेटियों की शादी अजय की मदद से कर दी थी.

पारस ने छोटी बेटी किरण की शादी जिला देवरिया के थाना तरकुलवा के गांव बालपुर के रहने वाले लालबाबू गिरि के सब से छोटे बेटे तेजप्रताप गिरि से की थी. शादी के बाद तेजप्रताप किरण को ले कर गोरखपुर आ गया था, जहां शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था.

रिंकी ने शहजादियों जैसे जीने के जो सपने देखे थे, शादी के बाद भी वे पूरे नहीं हुए. वह खूबसूरत और स्मार्ट पति चाहती थी, जो उसे बाइक पर बिठा कर शहर में घुमाता, होटल और रेस्तरां में खाना खिलाता. जबकि रिंकी का शहजादा अजय बेहद सीधासादा, ईमानदार और समाज के बंधनों को मानने वाला मेहनती युवक था. दुनिया की नजरों में वह भले ही रिंकी का पति था, लेकिन रिंकी ने दिल से कभी उसे पति नहीं माना . वह अभी भी किसी शहजादे की बांहों में झूलने के सपने देखती थी.

रिंकी सपने भले ही किसी शहजादे के देख रही थी, लेकिन रहती अजय के साथ ही थी. वह उस के 2 बेटों, सत्यम और सुंदरम की मां भी बन गई थी. इसी के बाद अजय ने छोटी बहन किरन की शादी तेजप्रताप से की तो पहली ही नजर में तेजप्रताप रिंकी को सपने का शहजादा जैसा लगा. फिर आनेजाने में कसरती बदन और मजाकिया स्वभाव के तेजप्रताप पर रिंकी कुछ इस तरह फिदा हुई कि उस से नजदीकी बनाने के लिए बेचैन रहने लगी.

तेजप्रताप को रिंकी के मन की बात जानने में देर नहीं लगी. सलहज के नजदीक पहुंचने के लिए वह जल्दीजल्दी ससुराल आने लगा. इस आनेजाने का उसे लाभ भी मिला. इस तरह दोनों जो चाहते थे, वह पूरा हो गया. रिंकी और तेजप्रताप के शारीरिक संबंध बन गए. दोनों बड़ी ही सावधानी से अपनअपनी चाहत पूरी कर रहे थे, इसलिए उन के इस संबंध की जानकारी किसी को नहीं हो सकी थी.

तेजप्रताप पादरी बाजार पुलिस चौकी के पास छोलेभटूरे का ठेला लगाता था. उस की दुकान पर बबलू और संदीप पाल अकसर छोले भटूरे खाने आते थे. बबलू और संदीप में अच्छी दोस्ती थी. उन की उम्र 15-16 साल के करीब थी. तेजप्रताप के वे नियमित ग्राहक तो थे, इसलिए उन में दोस्ती भी हो गई थी. बाद में पता चला कि वे रहते भी उसी के पड़ोस में थे. इस से घनिष्ठता और बढ़ गई. उन का परिवार सहित तेजप्रताप के घर आनाजाना हो गया.

एक बार रिंकी अजय के साथ ननद के घर गोरखपुर ननदननदोई से मिलने आई तो संयोग से उसी समय संदीप पाल की मां रंभा उर्फ रेखा पाल भी किसी काम से तेजप्रताप से मिलने आ गई. रेखा ने रिंकी को गौर से देखा तो महिलाओं की पारखी रेखा को वह अपने काम की लगी.

रिंकी ने तेजप्रताप के घर का रास्ता देख लिया तो उस का जब मन होता, वह किसी न किसी बहाने तेजप्रताप से मिलने गोरखपुर आने लगी. रिंकी गोरखपुर अकसर आने लगी तो रंभा उर्फ रेखा से भी जानपहचान हो गई. रेखा के 20 वर्षीय भांजे मनोज पाल की नजर मौसी के घर आनेजाने में रिंकी पर पड़ी तो खूबसूरत रिंकी का वह दीवाना हो उठा.

मनोज गोरखपुर में टैंपो चलाता था. वह रहने वाला गोरखपुर के थाना गोला के गांव हरपुर का था. वह मौसी रेखा के यहां इसलिए बहुत ज्यादा आताजाता था, क्योंकि वह उस का खास शागिर्द था. रेखा देखने में जितनी भोलीभाली लगती थी, भीतर से वह उतनी ही खुराफाती थी. उस औरत से पूरा मोहल्ला परेशान था. इस की वजह यह थी कि वह कालगर्ल रैकट चलाती थी. उस के इस काम में उस का भतीजा बबलू, बेटा संदीप और भांजा मनोज उस की मदद करते थे. रेखा के अच्छेबुरे सभी तरह के लोगों से अच्छे संबंध थे, इसलिए मोहल्ले वाले सब कुछ जानते हुए भी उस का कुछ नहीं कर पाते थे.

आगे क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग…

आवारगी में गंवाई जान – भाग 1

रात साढ़े 9 बजे के आसपास कुसुम्ही जंगल के वन दरोगा राकेश कुमार गश्त करते हुए बुढि़या माई दुर्गा मंदिर रोड पर मंदिर से थोड़ा आगे बढ़े थे कि वहां लगे खड़ंजे पर उन्हें एक लाश पड़ी दिखाई दी. उन्होंने टार्च की रोशनी में देखा, लाश महिला की थी. वह हरा सूट पहने थी. उस के दोनों पैरों में चांदी की पाजेब थी. लाश के पास ही एक पीले रंग की शौल पड़ी थी. सिर पर पीछे की ओर किसी धारदार हथियार से वार किया गया था. वहां बने घाव से अभी भी खून बह रहा था. इस से उन्हें लगा कि यह हत्या अभी जल्दी ही की गई है.

राकेश कुमार ने फोन द्वारा थाना खोराबार के थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव को लाश पड़ी होने की सूचना दी. वह गायघाट मर्डर केस को ले कर वैसे ही परेशान थे, इस लाश ने उन की परेशानी और बढ़ा दी. बहरहाल उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी और खुद पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव, एसपी (सिटी) परेश पांडेय और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतका के सिर से बह रहे खून से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हत्या एकाध घंटे के अंदर हुई है. मृतका की उम्र 24-25 साल थी. घटनास्थल पर संघर्ष के निशान थे. खड़ंजे से कुछ दूरी पर जूते और  दुपहिया वाहन के टायरों के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. इस का मतलब हत्यारे मोटरसाइकिल से आए थे. मृतका की छाती पर भी जूते के निशान मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे मृतका से नफरत करते रहे होंगे.

लाश के निरीक्षण के दौरान मृतका की दाहिनी हथेली पर पुलिस को एक मोबाइल नंबर लिखा दिखाई दिया. पुलिस ने वह मोबाइल नंबर नोट कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मृतका के पास से मिला सामान कब्जे में ले लिया था, ताकि उस की शिनाख्त कराने में मदद मिल सके. यह 21 दिसंबर की रात की बात थी. 22 दिसंबर की सुबह उन्होंने मृतका की हथेली से मिले मोबाइल नंबर पर फोन किया तो दूसरी ओर से फोन उठाने वाले ने ‘हैलो’ कहने के साथ ही उन के बारे में भी पूछ लिया.

‘‘मैं गोरखपुर के थाना खोराबार का थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव बोल रहा हूं.’’ उन्होंने अपना परिचय देते हुए पूछा, ‘‘यह नंबर आप का ही है. आप कहां से और कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘साहब मैं अजय गिरि बोल रहा हूं. यह नंबर आप को कहां से मिला?’’

‘‘यह नंबर एक महिला की हथेली पर लिखा था, जिस की हत्या हो चुकी है.’’

‘‘उस का हुलिया कैसा था?’’ अजय गिरि ने पूछा.

थानाप्रभारी ने हुलिया बताया तो अजय ने छूटते ही कहा, ‘‘साहब, यह हुलिया तो मेरी पत्नी रिंकी का है. क्या उस की हत्या हो चुकी है? दिसंबर, 2013 को छोटे बेटे सुंदरम को ले कर घर से निकली थी. तब से उस का कुछ पता नहीं चला. उसी की तलाश में मैं बड़े भाई की ससुराल मधुबनी आया था.’’

‘‘ऐसा करो, तुम थाना खोराबार आ जाओ. मरने वाली तुम्हारी पत्नी है या कोई और यह तो यहीं आ कर पता चलेगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘लेकिन मृतका के पास से हमें कोई बच्चा नहीं मिला है. भगवान तुम्हारे साथ अच्छा ही करे.’’

अजय ने पत्नी के साथ बच्चे के होने की बात की थी, जबकि महिला की लाश के पास से कोई बच्चा नहीं मिला था. इस से थानाप्रभारी थोड़ा पसोपेश में पड़ गए कि उस का बच्चा कहां गया? बच्चे की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं थी. उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हत्यारों ने बच्चे को कहीं दूसरी जगह ले जा कर ठिकाने लगा दिया हो. गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझ गई थी. अब यह अजय के आने पर ही सुलझ सकती थी.

उसी दिन शाम होतेहोते अजय थाना खोराबार आ पहुंचा. थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मेज की दराज से कुछ फोटो और लाश से बरामद सामान निकाल कर उस के सामने रखा तो सामान और फोटो देख कर वह रो पड़ा. थानाप्रभारी समझ गए कि मृतका इस की पत्नी रिंकी थी. इस के बाद मैडिकल कालेज ले जा कर उसे शव भी दिखाया गया. अजय ने उस शव की भी शिनाख्त अपनी पत्नी रिंकी के रूप में कर दी. अब सवाल यह था कि उस के साथ जो बच्चा था, वह कहां गया?

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव द्वारा की गई पूछताछ में अजय ने बताया, ‘‘रिंकी अपने 3 वर्षीय छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर ननद पुष्पा की ससुराल कुबेरस्थान जाने की बात कह कर घर से निकली थी. वहां जाने के लिए मैं ने ही उसे जीप में बैठाया था. उस ने 2 दिन बाद लौट कर आने को कहा था.

2 दिनों बाद जब वह घर नहीं लौटी तो मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया. उस के मोबाइल का स्विच औफ था. बाद में पता चला कि वह कुबेरस्थान न जा कर सीधे गोरखपुर में रहने वाले मेरे बहनोई तेजप्रताप गिरि के यहां चली गई थी. इस के बाद मैं ने उन से रिंकी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के यहां आई तो थी, लेकिन दूसरे ही दिन चली गई थी. उस के बाद उस का कुछ पता नहीं चला.’’

अजय के अनुसार उस का बहनोई तेजप्रताप गिरि शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए पर परिवार के साथ रहता था. पुलिस ने उसी रात उस के घर से उसे पकड़ लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. तेजप्रताप गिरि कुछ भी बताने को तैयार नहीं था. वह काफी देर तक पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. जब पुलिस को लगा कि यह झूठ बोल रहा है, तब पुलिस ने अपने ढंग से उस से सच्चाई उगलवाई.

तेजप्रताप ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर पुलिस ने बबलू और संदीप पाल को गिरफ्तार कर लिया. जबकि मनोज फरार होने में कामयाब हो गया. बबलू और संदीप से पूछताछ की गई तो पता चला कि रिंकी की हत्या के मामले में 2 महिलाएं रंभा उर्फ रेखा पाल और इशरावती भी शामिल थीं.

आगे क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग…

कॉलगर्ल : होटल में उस रात क्या हुआ

मैं दफ्तर के टूर पर मुंबई गया था. कंपनी का काम तो 2 दिन का ही था, पर मैं ने बौस से मुंबई में एक दिन की छुट्टी बिताने की इजाजत ले ली थी. तीसरे दिन शाम की फ्लाइट से मुझे कोलकाता लौटना था. कंपनी ने मेरे ठहरने के लिए एक चारसितारा होटल बुक कर दिया था. होटल काफी अच्छा था. मैं चैकइन कर 10वीं मंजिल पर अपने कमरे की ओर गया.

मेरा कमरा काफी बड़ा था. कमरे के दूसरे छोर पर शीशे के दरवाजे के उस पार लहरा रहा था अरब सागर.

थोड़ी देर बाद ही मैं होटल की लौबी में सोफे पर जा बैठा.

मैं ने वेटर से कौफी लाने को कहा और एक मैगजीन उठा कर उस के पन्ने यों ही तसवीरें देखने के लिए पलटने लगा. थोड़ी देर में कौफी आ गई, तो मैं ने चुसकी ली.

तभी एक खूबसूरत लड़की मेरे बगल में आ कर बैठी. वह अपनेआप से कुछ बके जा रही थी. उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि वह गुस्से में थी.

मैं ने थोड़ी हिम्मत जुटा कर उस से पूछा, ‘‘कोई दिक्कत?’’

‘‘आप को इस से क्या लेनादेना? आप अपना काम कीजिए,’’ उस ने रूखा सा जवाब दिया.

कुछ देर में उस का बड़बड़ाना बंद हो गया था. थोड़ी देर बाद मैं ने ही दोबारा कहा, ‘‘बगल में मैं कौफी पी रहा हूं और तुम ऐसे ही उदास बैठी हो, अच्छा नहीं लग रहा है. पर मैं ने ‘तुम’ कहा, तुम्हें बुरा लगा हो, तो माफ करना.’’

‘‘नहीं, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा. माफी तो मुझे मांगनी चाहिए, मैं थोड़ा ज्यादा बोल गई आप से.’’

इस बार उस की बोली में थोड़ा अदब लगा, तो मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब कौफी पीने में तुम मेरा साथ दोगी.’’

और उस के कुछ बोलने के पहले ही मैं ने वेटर को इशारा कर के उस के लिए भी कौफी लाने को कहा. वह मेरी ओर देख कर मुसकराई.

मुझे लगा कि मुझे शुक्रिया करने का उस का यही अंदाज था. वेटर उस के सामने कौफी रख कर चला गया. उस ने कौफी पीना भी शुरू कर दिया था.

लड़की बोली, ‘‘कौफी अच्छी है.’’

उस ने जल्दी से कप खाली करते हुए कहा, ‘‘मुझे चाय या कौफी गरम ही अच्छी लगती है.’’

मैं भी अपनी कौफी खत्म कर चुका था. मैं ने पूछा, ‘‘किसी का इंतजार कर रही हो?’’

उस ने कहा, ‘‘हां भी, न भी. बस समझ लीजिए कि आप ही का इंतजार है,’’ और बोल कर वह हंस पड़ी.

मैं उस के जवाब पर थोड़ा चौंक गया. उसी समय वेटर कप लेने आया, तो मुसकरा कर कुछ इशारा किया, जो मैं नहीं समझ पाया था.

मैं ने लड़की से कहा, ‘‘तुम्हारा मतलब मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘सबकुछ यहीं जान लेंगे. क्यों न आराम से चल कर बातें करें,’’ बोल कर वह खड़ी हो गई.

फिर जब हम लिफ्ट में थे, तब मैं ने फिर पूछा, ‘‘तुम गुस्से में क्यों थीं?’’

‘‘पहले रूम में चलें, फिर बातें होंगी.’’

हम दोनों कमरे में आ गए थे. वह अपना बैग और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर सोफे पर आराम से बैठ गई.

मैं ने फिर उस से पूछा कि शुरू में वह गुस्से में क्यों थी, तो जवाब मिला, ‘‘इसी फ्लोर पर दूसरे छोर के रूम में एक बूढ़े ने मूड खराब कर दिया.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘बूढ़ा 50 के ऊपर का होगा. मुझ से अननैचुरल डिमांड कर रहा था. उस ने कहा कि इस के लिए मुझे ऐक्स्ट्रा पैसे देगा. यह मेरे लिए नामुमकिन बात थी और मैं ने उस के पैसे भी फेंक दिए.’’

मुझे तो उस की बातें सुन कर एक जोर का झटका लगा और मुझे लौबी में वेटर का इशारा समझ में आने लगा था.

फिर भी उस से नाम पूछा, तो वह उलटे मुझ से ही पूछ बैठी, ‘‘आप मुंबई के तो नहीं लगते. आप यहां किसलिए आए हैं और मुझ से क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं तो बस टाइम पास करना चाहता हूं. कंपनी के काम से आया था. वह पूरा हो गया. अब जो मरजी वह करूं. मुझे कल शाम की फ्लाइट से लौटना है. पर अपना नाम तो बताओ?’’

‘‘मुझे कालगर्ल कहते हैं.’’

‘‘वह तो मैं समझ सकता हूं, फिर भी तुम्हारा नाम तो होगा. हर बार कालगर्ल कह कर तो नहीं पुकार सकता. लड़की दिलचस्प लगती हो. जी चाहता है कि तुम से ढेर सारी बातें करूं… रातभर.’’

‘‘आप मुझे प्रिया नाम से पुकार सकते हैं, पर आप रातभर बातें करें या जो भी, रेट तो वही होगा. पर बूढ़े वाली बात नहीं, पहले ही बोल देती हूं,’’ लड़की बोली.

मैं भी अब उसे समझने लगा था. मुझे तो सिर्फ टाइम पास करना था और थोड़ा ऐसी लड़कियों के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुछ कोल्डड्रिंक वगैरह मंगाऊं?’’

‘‘मंगा लो,’’ प्रिया बोली, ‘‘हां, कुछ सींक कबाब भी चलेगा. तब तक मैं नहा लेती हूं.’’

‘‘बाथरूम में गाउन भी है. यह तो और अच्छी बात है, क्योंकि हमाम से निकल कर लड़कियां अच्छी लगती हैं.’’

‘‘क्यों, अभी अच्छी नहीं लग रही क्या?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बात नहीं है. नहाने के बाद और अच्छी लगोगी.’’

मैं ने रूम बौय को बुला कर कबाब लाने को कहा. प्रिया बाथरूम में थी.

थोड़ी देर बाद ही रूम बौय कबाब ले कर आ गया था. मैं ने 2 लोगों के लिए डिनर भी और्डर कर दिया.

इस के बाद मैं न्यूज देखने लगा, तभी बाथरूम से प्रिया निकली. दूधिया सफेद गाउन में वह सच में और अच्छी दिख रही थी. गाउन तो थोड़ा छोटा था ही, साथ में प्रिया ने उसे कुछ इस तरह ढीला बांधा था कि उस के उभार दिख रहे थे.

प्रिया सोफे पर आ कर बैठ गई.

‘‘मैं ने कहा था न कि तुम नहाने के बाद और भी खूबसूरत लगोगी.’’

प्रिया और मैं ने कोल्डड्रिंक ली और बीचबीच में हम कबाब भी ले रहे थे.

मैं ने कहा, ‘‘कबाब है और शबाब है, तो समां भी लाजवाब है.’’

‘‘अगर आप की पत्नी को पता चले कि यहां क्या समां है, तो फिर क्या होगा?’’

‘‘सवाल तो डरावना है, पर इस के लिए मुझे काफी सफर तय करना होगा. हो सकता है ताउम्र.’’

‘‘कल शाम की फ्लाइट से आप जा ही रहे हैं. मैं जानना चाहती हूं कि आखिर मर्दों के ऐसे चलन पर पत्नी की सोच क्या होती है.’’

‘‘पर, मेरे साथ ऐसी नौबत नहीं आएगी.’’

‘‘क्यों?’’

मैं ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं अपनी पत्नी को खो चुका हूं. 27 साल का था, जब मेरी शादी हुई थी और 5 साल बाद ही उस की मौत हो गई थी, पीलिया के कारण. उस को गए 2 साल हो गए हैं.’’

‘‘ओह, सो सौरी,’’ बोल कर अपनी प्लेट छोड़ कर वह मेरे ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी और आगे कहा, ‘‘तब तो मुझे आप का मूड ठीक करना ही होगा.’’

प्रिया ने अपने गाउन की डोरी की गांठ जैसे ही ढीला भर किया था कि जो कुछ मेरी आंखों के सामने था, देख कर मेरा मन कुछ पल के लिए बहुत विचलित हो गया था.

मैं ने इस पल की कल्पना नहीं की थी, न ही मैं ऐसे हालात के लिए तैयार था. फिर भी अपनेआप पर काबू रखा.

तभी डोर बैल बजी, तो प्रिया ने अपने को कंबल से ढक लिया था. डिनर आ गया था. रूम बौय डिनर टेबल पर रख कर चला गया.

प्रिया ने कंबल हटाया, तो गाउन का अगला हिस्सा वैसे ही खुला था.

प्रिया ने कहा, ‘‘टेबल पर मेरे बैग में कुछ सामान पड़े हैं, आप को यहीं से दिखता होगा. आप जब चाहें इस का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप का मूड भी तरोताजा हो जाएगा और आप के मन को शायद इस से थोड़ी राहत मिले.’’

‘‘जल्दी क्या है. सारी रात पड़ी है. हां, अगर कल दोपहर तक फ्री हो तो और अच्छा रहेगा.’’

इतना कह कर मैं भी खड़ा हो कर उस के गाउन की डोर बांधने लगा, तो वह बोली, ‘‘मेरा क्या, मुझे पैसे मिल गए. आप पहले आदमी हैं, जो शबाब को ठुकरा रहे हैं. वैसे, आप ने दोबारा शादी की? और आप का कोई बच्चा?’’

वह बहुत पर्सनल हो चली थी, पर मुझे बुरा नहीं लगा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘डिनर लोगी?’’

‘‘क्या अभी थोड़ा रुक सकते हैं? तब तक कुछ बातें करते हैं.’’

‘‘ओके. अब पहले तुम बताओ. तुम्हारी उम्र क्या है? और तुम यह सब क्यों करती हो?’’

‘‘पहली बात, लड़कियों से कभी उम्र नहीं पूछते हैं…’’

मैं थोड़ा हंस पड़ा, तभी उस ने कहना शुरू किया, ‘‘ठीक है, आप को मैं अपनी सही उम्र बता ही देती हूं. अभी मैं 21 साल की हूं. मैं सच बता रही हूं.’’

‘‘और कुछ लोगी?’’

‘‘अभी और नहीं. आप के दूसरे सवाल का जवाब थोड़ा लंबा होगा. वह भी बता दूंगी, पर पहले आप बताएं कि आप ने फिर शादी की? आप की उम्र भी ज्यादा नहीं लगती है.’’

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहा, ‘‘मैं अभी 34 साल का हूं. मेरा कोई बच्चा नहीं है. डाक्टरों ने सारे टैस्ट ले कर के बता दिया है कि मुझ में पिता बनने की ताकत ही नहीं है. अब दूसरी शादी कर के मैं किसी औरत को मां बनने के सुख के लिए तरसता नहीं छोड़ सकता.’’

इस बार प्रिया मुझ से गले मिली और कहा, ‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ.’’

मैं ने उस की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘दुनिया में सब को सबकुछ नहीं मिलता. पर कोई बात नहीं, दफ्तर के बाद मैं कुछ समय एक एनजीओ को देता हूं. मन को थोड़ी शांति मिलती है. चलो, डिनर लेते हैं.’’

डिनर के बाद मुझे आराम करने का मन किया, तो मैं बैड पर लेट गया. प्रिया भी मेरे साथ ही बैड पर आ कर कंबल लपेट कर बैठ गई थी. वह मेरे बालों को सहलाने लगी.

‘‘तुम यह सब क्यों करती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कोई अपनी मरजी से यह सब नहीं करता. कोई न कोई मजबूरी या वजह इस के पीछे होती है. मेरे पापा एक प्राइवेट मिल में काम करते थे. एक एक्सीडैंट में उन का दायां हाथ कट गया था. कंपनी ने कुछ मुआवजा दे कर उन की छुट्टी कर दी. मां भी कुछ पढ़ीलिखी नहीं थीं. मैं और मेरी छोटी बहन स्कूल जाते थे.

‘‘मां 3-4 घरों में खाना बना कर कुछ कमा लेती थीं. किसी तरह गुजर हो जाती थी, पर पापा को घर बैठे शराब पीने की आदत पड़ गई थी. जमा पैसे खत्म हो चले थे…’’ इसी बीच रूम बौय डिनर के बरतन लेने आया और दिनभर के बिल के साथसाथ रूम के बिलों पर भी साइन करा कर ले गया.

प्रिया ने आगे कहा, ‘‘शराब के कारण मेरे पापा का लिवर खराब हुआ और वे चल बसे. मेरी मां की मौत भी एक साल के अंदर हो गई. मैं उस समय 10वीं जमात पास कर चुकी थी. छोटी बहन तब छठी जमात में थी. पर मैं ने पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स कर लिया था.

‘‘हम एक छोटी चाल में रहते थे. मेरे एक रिश्तेदार ने ही मुझे ब्यूटीपार्लर में नौकरी लगवा दी और शाम को एक घर में, जहां मां काम करती थी, खाना बनाती थी. पर उस पार्लर में मसाज के नाम पर जिस्मफरोशी भी होती थी. मैं भी उस की शिकार हुई और इस दुनिया में मैं ने पहला कदम रखा था,’’ बोलतेबोलते प्रिया की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

मैं ने टिशू पेपर से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं ने तुम्हारी दुखती रगों को बेमतलब ही छेड़ दिया.’’

‘‘नहीं, आप ने मुझे कोई दुख नहीं पहुंचाया है. आंसू निकलने से कुछ दिल का दर्द कम हो गया,’’ बोल कर प्रिया ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘पर, यह सब मैं अपनी छोटी बहन को सैटल करने के लिए कर रही हूं. वह भी 10वीं जमात पास कर चुकी है और सिलाईकढ़ाई की ट्रेनिंग भी पूरी कर ली है. अभी तो एक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन दे रखी है. घर बैठेबैठे कुछ पैसे वह भी कमा लेती है.

‘‘मैं ने एक लेडीज टेलर की दुकान देखी है, पर सेठ बहुत पगड़ी मांग रहा है. उसी की जुगाड़ में लगी हूं. यह काम हो जाए, तो दोनों बहनें उसी बिजनेस में रहेंगी…’’ फिर एक अंगड़ाई ले कर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को बोर कर रही हूं न? आप ने तो मुझे छुआ भी नहीं. आप को मुझ से कुछ चाहिए तो कहें.’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी सारी रात पड़ी है, मुझे अभी कोई जल्दी नहीं. जब कोई जरूरत होगी कहूंगा. पर पार्लर से होटल तक तुम कैसे पहुंचीं?’’

‘‘पार्लर वाले ने ही कहा था कि मैं औरों से थोड़ी अच्छी और स्मार्ट हूं, थोड़ी अंगरेजी भी बोल लेती हूं. उसी ने कहा था कि यहां ज्यादा पैसा कमा सकती हो. और पार्लरों में पुलिस की रेड का डर बना रहता है. फिर मैं होटलों में जाने लगी.’’

इस के बाद प्रिया ने ढेर सारी बातें बताईं. होटलों की रंगीन रातों के बारे में कुछ बातें तो मैं ने पहले भी सुनी थीं, पर एक जीतेजागते इनसान, जो खुद ऐसी जिंदगी जी रहा है, के मुंह से सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था.

इसी तरह की बातों में ही आधी रात बीत गई, तब प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे अब जोरों की नींद आ रही है. आप को कुछ करना हो…’’

प्रिया अभी तक गाउन में ही थी. मैं ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम दूसरे बैड पर जा कर आराम करो. और हां, बाथरूम में जा कर पहले अपने कपड़े पहन लो. बाकी बातें जब तुम्हारी नींद खुले तब. तुम कल दिन में क्या कर रही हो?’’

‘‘मुझ से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई. सर, आप ने मुझ पर इतना पैसा खर्च किया और…’’

‘‘नहींनहीं, मैं तो तुम से बहुत खुश हूं. अब जाओ अपने कपड़े बदल लो.’’

मैं ने देखा कि जिस लड़की में मेरे सामने बिना कुछ कहे गाउन खोलने में जरा भी संकोच नहीं था, वही अब कपड़े पहनने के लिए शर्मसार हो रही थी.

प्रिया ने गाउन के ऊपर चादर में अपने पूरे शरीर को इतनी सावधानी से लपेटा कि उस का शरीर पूरी तरह ढक गया था और वह बाथरूम में कपड़े पहनने चली गई.

थोड़ी देर बाद वह कपड़े बदल कर आई और मेरे माथे पर किस कर ‘गुडनाइट’ कह कर अपने बैड पर जा कर सो गई.

सुबह जब तक मेरी नींद खुली, प्रिया फ्रैश हो कर सोफे पर बैठी अखबार पढ़ रही थी.

मुझे देखा, तो ‘गुड मौर्निंग’ कह कर बोली, ‘‘सर, आप फ्रैश हो जाएं या पहले चाय लाऊं?’’

‘‘हां, पहले चाय ही बना दो, मुझे बैड टी की आदत है. और क्या तुम शाम 5 बजे तक फ्री हो? तुम्हें इस के लिए मैं ऐक्स्ट्रा पैसे दूंगा.’’

‘‘सर, मुझे आप और ज्यादा शर्मिंदा न करें. मैं फ्री नहीं भी हुई तो भी पहले आप का साथ दूंगी. बस, मैं अपनी बहन को फोन कर के बता देती हूं कि मैं दिन में नहीं आ सकती.’’

प्रिया ने अपनी बहन को फोन किया और मैं बाथरूम में चला गया. जातेजाते प्रिया को बोल दिया कि फोन कर के नाश्ता भी रूम में ही मंगा ले.

नाश्ता करने के बाद मैं ने प्रिया से कहा, ‘‘मैं ने ऐलीफैंटा की गुफाएं नहीं देखी हैं. क्या तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘बेशक दूंगी.’’

थोड़ी देर में हम ऐलीफैंटा में थे. वहां तकरीबन 2 घंटे हम साथ रहे थे. मैं ने उसे अपना कार्ड दिया और कहा, ‘‘तुम मुझ से संपर्क में रहना. मैं जिस एनजीओ से जुड़ा हूं, उस से तुम्हारी मदद के लिए कोशिश करूंगा. यह संस्था तुम जैसी लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने में जरूर मदद करेगी.

‘‘मैं तो कोलकाता में हूं, पर हमारी ब्रांच का हैडक्वार्टर यहां पर है. थोड़ा समय लग सकता है, पर कुछ न कुछ अच्छा ही होगा.’’

प्रिया ने भरे गले से कहा, ‘‘मेरे पास आप को धन्यवाद देने के सिवा कुछ नहीं है. इसी दुनिया में रात वाले बूढ़े की तरह दोपाया जानवर भी हैं और आप जैसे दयावान भी.’’

प्रिया ने भी अपना कार्ड मुझे दिया. हम दोनों लौट कर होटल आए. मैं ने रूम में ही दोनों का लंच मंगा लिया. लंच के बाद मैं ने होटल से चैकआउट कर एयरपोर्ट के लिए टैक्सी बुलाई.

सामान डिक्की में रखा जा चुका था. जब मैं चलने लगा, तो उस की ओर देख कर बोला, ‘‘प्रिया, मुझे तुम्हें और पैसे देने हैं.’’

मैं पर्स से पैसे निकाल रहा था कि इसी बीच टैक्सी का दूसरा दरवाजा खोल कर वह मुझ से पहले जा बैठी और कहा, ‘‘थोड़ी दूर तक मुझे लिफ्ट नहीं देंगे?’’

‘‘क्यों नहीं. चलो, कहां जाओगी?’’

‘‘एयरपोर्ट.’’

मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘एयरपोर्ट?’’

‘‘क्यों, क्या मैं एयर ट्रैवल नहीं कर सकती? और आगे से आप मुझे मेरे असली नाम से पुकारेंगे. मैं पायल हूं.’’

और कुछ देर बाद हम एयरपोर्ट पर थे. अभी फ्लाइट में कुछ वक्त था. उस से पूछा, ‘‘तुम्हें कहां जाना है?’’

‘‘बस यहीं तक आप को छोड़ने आई हूं,’’ पायल ने मुसकरा कर कहा.

मैं ने उसे और पैसे दिए, तो वह रोतेरोते बोली, ‘‘मैं तो आप के कुछ काम न आ सकी. यह पैसे आप रख लें.’’

‘‘पायल, तुम ने मुझे बहुत खुशी दी है. सब का भला तो मेरे बस की बात नहीं है. अगर मैं एनजीओ की मदद से तुम्हारे कुछ काम आऊं, तो वह खुशी शानदार होगी. ये पैसे तुम मेरा आशीर्वाद समझ कर रख लो.’’

और मैं एयरपोर्ट के अंदर जाने लगा, तो उस ने झुक कर मेरे पैरों को छुआ. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन की 2 बूंदें मेरे पैरों पर भी गिरीं.

मैं कोलकाता पहुंच कर मुंबई और कोलकाता दोनों जगह के एनजीओ से लगातार पायल के लिए कोशिश करता रहा. बीचबीच में पायल से भी बात होती थी. तकरीबन 6 महीने बाद मुझे पता चला कि एनजीओ से पायल को कुछ पैसे ग्रांट हुए हैं और कुछ उन्होंने बैंक से कम ब्याज पर कर्ज दिलवाया है.

एक दिन पायल का फोन आया. वह भर्राई आवाज में बोली, ‘सर, आप के पैर फिर छूने का जी कर रहा है. परसों मेरी दुकान का उद्घाटन है. यह सब आप की वजह से हुआ है. आप आते तो दोनों बहनों को आप के पैर छूने का एक और मौका मिलता.’

‘‘इस बार तो मैं नहीं आ सकता, पर अगली बार जरूर मुंबई आऊंगा, तो सब से पहले तुम दोनों बहनों से मिलूंगा.’’

आज मुझे पायल से बात कर के बेशुमार खुशी का एहसास हो रहा है और मन थोड़ा संतुष्ट लग रहा है.

देवेंद्र से देविका बनने की दर्द भरी दास्तां

मुसीबत और परेशानियां ऐसी थीं कि देवेंद्र को उनका कोई हल नहीं सूझ रहा था और जो सूझा वह हैरान कर देने वाला है. साल 2017 तक एक एनजीओ में काम करने बाला यह हट्टा कट्टा  युवा आम लड़कों की तरह ही रहता था लेकिन अब औपरेशन के जरिये लड़की यानि ट्रांसजेंडर बनकर अपने ही शहर भोपाल में किन्नरों की टोली में तालियां बजाता नजर आता है .

आमतौर पर कोई भी लड़का ट्रांसजेंडर तभी बनने की सोचेगा जब उसमें बचपन से ही लड़कियों जैसे लक्षण हों या फिर वह खुद को सेक्स कर पाने में असमर्थ पाये पर देवेंद्र के साथ ऐसा कुछ नहीं था, बल्कि उसकी कहानी दिल को छू जाने वाली है. खासतौर से उस वक्त जब रक्षा बंधन का त्योहार आने वाला है. देवेंद्र अपनी बहन के लिए देविका बना था जिसका उसे कोई मलाल भी नहीं है, उल्टे वह खुश है कि बलात्कार के झूठे आरोप में फंसने से भी बच गया.

देवेंद्र अपनी बहन को बहुत चाहता था और उसकी विदाई 20 मई 2016 को इन दुआओं के साथ उसने की थी कि बहन ससुराल जाकर खुशहाल ज़िंदगी जिये लेकिन भगवान कहीं होता तो उसकी सुनता. हुआ यूं कि शादी के कुछ दिनों बाद ही बहन की ससुराल वालों ने उस पर तरह तरह के जुल्मों सितम ढाने शुरू कर दिये ठीक वैसे ही जैसे फिल्मों और टीवी सीरियलों में दिखाये जाते हैं. दहेज के लालची ससुराल वालों ने उसकी बहन को इतना सताया कि वह खून के आंसू रो दी .

अब देवेंद्र ने वही गलती की जो आमतौर पर दहेज के लिए सताई जाने वाली लड़कियों के घर वाले करते हैं. यह गलती थी ससुराल वालों के हाथ पैर जोड़ना और अपनी पगड़ी उनके चरणों में रख देना. ऐसे फिल्मी टोटकों से तो फिल्मों में भी बात नहीं बनती फिर यह तो सामने से होकर गुजर रही हकीकत थी. देवेंद्र ने मध्यस्थता करते हर मुमकिन कोशिश की कि जैसे भी हो बगैर किसी झगड़े फसाद विवाद या कोर्ट कचहरी के बहन की ज़िंदगी में खुशियां आ जाएं पर कोई कोशिश कामयाब नहीं हुई तो उसने भी थकहार कर वही रास्ता पकड़ा जो सभी पकड़ते हैं.

ननद की धमकी

लेकिन थाने जाने से पहले उसने बहन की ससुराल बालों को आगाह करना या धोंस देना कुछ भी समझ लें जरूरी समझा कि शायद इससे उनमें अक्ल आ जाए. आमतौर पर ससुराल वाले इस बात से डरते हैं कि अगर बहू या उसके घर वालों ने रिपोर्ट दर्ज करा दी तो कभी कभी जमानत के भी लाले पड़ जाते हैं. यही इस मामले में भी हुआ, शुरू में तो बहन के ससुराल वाले डरे लेकिन जल्द ही बहन की चालाक ननद ने इस का भी तोड़ निकाल लिया और ऐसा निकाला कि देवेंद्र की सारी हेकड़ी तो हेकड़ी मर्दानगी भी हमेशा के लिए हवा हो गई.

इस ननद ने उसे ही यह धमकी देना शुरू कर दिया था कि अगर वह थाने गया तो वह भी थाने जाकर देवेंद्र के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट लिखा देगी. इस धमकी का उम्मीद के मुताबिक असर हुआ और देवेंद्र ने बहन की ससुराल जाना बंद कर दिया. लेकिन इससे बहन का कोई भला या मदद नहीं हो पा रही थी इसलिए एक दिन उसने जी कडा करते बचाव का रास्ता ढूंढ़ ही लिया कि अगर वह मर्द ही न रह जाये तो बहन की ननद क्या खाकर उसके खिलाफ बलात्कार की झूठी रिपोर्ट लिखाएगी .

नवंबर 2017 में देवेंद्र ऑपरेशन करा कर लड़की बन गया और अपना नया नाम रखा देविका . अब उसे ननद का डर नहीं रह गया था लिहाजा उसने बहन को बचाने पुलिसिया और कानूनी काररवाई शुरू कर दी . मामला जब विधिक सेवा प्राधिकरण पहुंचा तो उसने बेहिचक सारे पत्ते सचिव आशुतोष मिश्रा के सामने खोलते अपने  मेडिकल दस्तावेज़ भी दिखाये  और बताया कि बहन की ननद की धमकियों से आजिज़ आकर उसने यह फैसला लिया था .

देखते ही देखते बहन को तलाक मिल गया और वह ससुराल नाम की जेल से आजाद हो गई . लेकिन डर के चलते और बहन की सलामती के लिए देविका बन गए देवेंद्र को बहुत बड़ी क़ुर्बानी देनी पड़ी जिसकी मिसाल शायद ही ढूंढे से मिले. साड़ी और सलवार सूट पहने देविका माथे पर बिंदी और बड़ा सा टीका भी लगाती है और चूड़ियां भी पहनती है. उसका मेकअप भी लड़कियों जैसा तड़क भड़क भरा होता है .

देवेंद्र, देविका बनकर खुश है और अब ट्रांसजेंडर्स के भले के लिए काम करना चाहता है . मुमकिन है जल्द ही उसकी ज़िंदगी और बहन के लिए त्याग पर कोई फिल्म निर्माता फिल्म बनाए जिसमें भरपूर मसाला और जायका होगा लेकिन देवेंद्र की ज़िंदगी में जरूर कोई जायका नहीं रह गया है. बेहतर तो यह होगा कि वह फिर से आपरेशन कराके पहले की तरह लड़का बन जाये और ज़िंदगी का भरपूर लुत्फ उठाए.

साधना पटेल नहीं बन पाई बैंडिट क्वीन

पिछड़े तबके के बुद्धिविलास पटेल मध्य प्रदेश के विंघ्य इलाके के चित्रकूट के गांव बगहिया पुरवा के बाशिंदे थे. उन की 3 औलादों में साधना सब से बड़ी थी. हालांकि साधना पढ़ाईलिखाई में होशियार थी, लेकिन उस की ख्वाहिश जिंदगी में कुछ ऐसा करने की थी, जिस से लोग उसे याद रखें.

जिस उम्र में लड़कियां कौपीकिताबें सीने से लगाए शोहदों से बचती जमीन में आंखें धंसाए स्कूल जा रही होती थीं, उस उम्र में साधना अपने किसी बौयफ्रैंड के साथ जंगल में कहीं मौजमस्ती कर रही होती थी.

जाहिर है कि बहुत कम उम्र में ही वह रास्ता भटक बैठी थी तो इस के जिम्मेदार पिता बुद्धिविलास भी थे, जिन के घर आएदिन डाकुओं का आनाजाना लगा रहता था. नामी और इनामी डाकू चुन्नी पटेल का तो उन से इतना याराना था कि जिस दिन वह घर आता था, तो तबीयत से दारू, मुरगा की पार्टी होती थी.

चुन्नी पटेल को साधना चाचा कह कर बुलाती थी और अकसर उस की उंगलियां बंदूक से खेला करती थीं.

साधना की हरकतें देख चुन्नी पटेल अकसर कहा करता था कि एक दिन यह लड़की पुतलीबाई से भी बड़ी डाकू बनेगी.

ऐसा हुआ भी और उजागर 18 नवंबर, 2019 को हुआ, जब सतना पुलिस ने 50,000 इनामी की इस दस्यु सुंदरी, जिसे ‘जंगल की शेरनी’ भी कहा जाता था, को कडियन मोड़ के जंगल से गिरफ्तार कर लिया.

ऐसे बनी डाकू

एक मामूली से घर की बला की खूबसूरत दिखने व लगने वाली साधना पटेल के डाकू बनने की कहानी भी उस की जिंदगी की तरह कम दिलचस्प नहीं. कम उम्र में ही साधना पटेल को सैक्स का चसका लग गया था, जिस से पिता बुद्धिविलास परेशान रहने लगे थे.

बेटी को रास्ते पर लाने के लिए उन्होंने उसे अपनी बहन के घर भागड़ा गांव भेज दिया, लेकिन इस से कोई फायदा नहीं हुआ. उलटे, वह यह जान कर हैरान हो उठी कि चुन्नी चाचा का आनाजाना यहां भी है और उन के उस की बूआ से नाजायज संबंध हैं. तब साधना को पहली बार सैक्स को ले कर मर्दों की कमजोरी सम झ आई थी.

लेकिन सैक्स की अपनी लत और कमजोरी से वह कोई सम झौता नहीं कर पाई. बूआ के यहां कोई रोकटोक नहीं थी, इसलिए उस के जिस्मानी ताल्लुकात एक ऐसे नौजवान से बन गए, जो उस का मुंहबोला भाई था.

एक दिन बूआ ने हमबिस्तरी करते दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया, तो साधना घबरा उठी.

साधना को डर था कि बूआ के कहने पर चुन्नीलाल उसे और उस के आशिक को मार डालेगा, इसलिए वह जान बचाने के लिए बीहड़ों में कूद पड़ी.

यह साल 2015 की बात है, जब उस की मुलाकात नामी डकैत नवल धोबी से हुई. नवल धोबी औरतों के मामले में बड़ा सख्त था. उस का मानना था कि औरतें डाकू गिरोहों की बरबादी की बड़ी वजह होती हैं, इसलिए वह गिरोह में उन्हें शामिल नहीं करता था.

कमसिन साधना पटेल को देखते ही नवल धोबी का मन डोल उठा और अपने उसूल छोड़ते हुए उस ने साधना को न केवल गिरोह में, बल्कि जिंदगी में भी शामिल कर लिया.

अब तक साधना कपड़ों की तरह आशिक बदलती रही थी, लेकिन नवल की हो जाने के बाद उस ने इसी बात में बेहतरी और भलाई सम झी कि अब कहीं और मुंह न मारा जाए. कुछ दिन बड़े इतमीनान और सुकून से कटे.

इसी दौरान साधना ने डकैती के कई गुर और सलीके से हथियार चलाना सीखा. नवल के साथ मिल कर उस ने कई वारदातों को अंजाम भी दिया.

नवल के साथ साधना का नाम भी चल निकला, लेकिन एक दिन पुलिस ने नवल को कई साथियों समेत गिरफ्तार कर लिया, जिस से उस का गिरोह तितरबितर हो उठा. नवल की गिरफ्तारी साधना की बैंडिट क्वीन बन जाने की ख्वाहिश पूरी करने वाली साबित हुई.

साधना ने गिरोह के बाकी सदस्यों को ले कर अपना खुद का गिरोह बना डाला और बेखौफ हो कर वारदातों को अंजाम देने लगी. गिरोह के सभी सदस्य हालांकि उसे ‘साधना जीजी’ कहते थे, लेकिन कई मर्दों से वह सैक्स संबंध बनाती रही.

फिर आया एक मोड़

अपना खुद का गिरोह बनाने के शुरुआती दौर में साधना रंगदारी वसूलती थी, लेकिन यह भी उसे सम झ आ रहा था कि अगर नामी डाकू बनना है और खौफ बनाए रखना है तो जरूरी है कि किसी ऐसी वारदात को अंजाम दिया जाए जिस की चर्चा दूरदूर तक हो.

इसी गरज से साल 2018 में साधना ने नयागांव थाने के तहत आने वाले पालदेव गांव के छोटकू सेन को अगवा कर लिया. छोटकू सेन से वह गड़े खजाने के बारे में पूछती रहती थी. लेकिन वह कुछ नहीं बता पाया तो साधना ने बेरहमी से उस की उंगलियां काट दीं.

साधना की गिरफ्त से छूट कर छोटकू ने उस के खिलाफ मामला दर्ज कराया तो इस कांड की चर्चा वाकई वैसी ही हुई जैसा कि वह चाहती थी.

इस कांड के बाद साधना के नाम का सिक्का बीहड़ों में चल निकला और इसी दौरान उस की जिंदगी में पालदेव गांव का ही नौजवान छोटू पटेल आया. छोटू के पिता ने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में लिखाते समय उस के अगवा हो जाने का अंदेशा जताया था.

कुछ दिनों बाद पुलिस को पता चला कि छोटू साधना का नया आशिक है और उसे अगवा नहीं किया गया है, बल्कि वह अपनी मरजी से साधना के साथ रह रहा है, तो पुलिस ने उसे भी डकैत घोषित कर उस के सिर 10,000 रुपए का इनाम रख दिया.

छोटू 6 अगस्त, 2019 को गायब हुआ था, लेकिन हकीकत में इस के पहले भी वह साधना से मिला करता था और दोनों जंगल में रंगरलियां मनाते थे. बाद में छोटू गांव वापस लौट आता था.

सच जो भी हो, लेकिन यह तय है कि साधना वाकई छोटू से दिल लगा बैठी थी और उस की ख्वाहिश पूरी करने के लिए कभीकभी जींसशर्ट उतार कर साड़ी भी पहन लेती थी. छोटू भी उस पर जान देने लगा था, इसलिए उस के साथ रहने लगा था.

सितंबर, 2019 में पुलिस ने नामी और 7 लाख रुपए के इनामी डाकू बबली कोल को उस के साथ व साले लवकेश को ऐनकाउंटर में मार गिराया तो राज्य में खासी हलचल मची थी.

बबली कोल गिरोह के दबदबे और चर्चों के चलते साधना को कोई भाव नहीं देता था. अब तक हालांकि उस के खिलाफ आधा दर्जन मामले दर्ज हो चुके थे, लेकिन बबली के कारनामों के सामने वे कुछ भी नहीं थे.

बहरहाल, बबली कोल की मौत के बाद विंध्य के बीहड़ों में 21 साला साधना का एकछत्र राज हो गया, लेकिन जिस फुरती से पुलिस डाकुओं का सफाया कर रही थी, उस से घबराई साधना पटेल को अंडरग्राउंड हो जाना ही बेहतर लगा.

छोटू के साथ वह  झांसी और दिल्ली में रही और पूरी तरह घरेलू औरत बन कर रही. हालांकि यह जिंदगी वह 4 महीने ही जी पाई. बड़े शहरों के खर्चे भी ज्यादा होते हैं, लिहाजा जब पैसों की तंगी होने लगी, तो उस ने फिर वारदात की योजना बनाई और बीहड़ लौट आई.

पुलिस को मुखबिरों के जरीए जब यह बात मालूम हुई तो उस ने जाल बिछा कर 17 नवंबर, 2019 को उसे गिरफ्तार कर लिया.

उत्तर प्रदेश में भी साधना पटेल कई वारदातों को अंजाम दे चुकी थी, लेकिन वहां किसी थाने में उस के खिलाफ किसी ने मामला दर्ज नहीं कराया था. इस के बाद भी पुलिस ने उस पर 30,000 रुपए के इनाम का ऐलान किया था.

अब साधना पटेल जेल में बैठी मुकदमोें की सुनवाई और सजा के इंतजार में काट रही है, लेकिन उस की कहानी बताती है कि उस के डाकू बनने में सब से बड़ी गलती तो उस के पिता की ही है, जिन की मौत के बाद साधना बेलगाम हो गई थी.

राष्ट्रप्रेम थोपा नहीं जा सकता

12 दिसंबर, 2016 को तिरुअनंतपुरम में इंटरनैशनल फिल्म फैस्टिवल औफ केरल के आयोजन के दौरान 6 लोग राष्ट्रगान बजने पर खड़े नहीं हुए तो उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इस घटना के एक दिन पहले चेन्नई के अशोक नगर इलाके के काशी थिएटर में भी 9 लोग राष्ट्रगान के दौरान खड़े नहीं हुए तो उन्हें भी राष्ट्रगान के अपमान के आरोप में गिरफ्तार कर मामला दर्ज कर लिया गया था.

इस के पहले राष्ट्रगान के अपमान के मामले न के बराबर हो रहे थे क्योंकि थिएटर में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं था. अब अनिवार्य हो गया है तो ऐसे मामलों की तादाद और बढ़ना तय दिख रही है. थिएटरों में राष्ट्रगान बजाने की अनिवार्यता को ले कर बहस बडे़ पैमाने पर शुरू हो गई है. कई लोग सुप्रीम कोर्ट के 30 नवंबर, 2016 के फैसले से सहमति न रखते हुए यह दलील देने लगे हैं कि राष्ट्रगान की आड़ में लोगों के दिलों में देशप्रेम का जज्बा जबरन पैदा नहीं किया जा सकता तो इन लोगों को पूरी तरह गलत नहीं ठहराया जा सकता.

अपने एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब देश के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने के पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य होगा और इस दौरान थिएटर में मौजूद सभी दर्शकों को राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होना जरूरी होगा. 52 सैकंड के राष्ट्रगान के दौरान हौल में कोई आएगाजाएगा नहीं और स्क्रीन पर राष्ट्रध्वज दिखाना जरूरी होगा. विकलांगों को खड़े न होने की छूट होगी. फैसले को कड़ा या प्रभावी बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने यह हिदायत भी दी है कि राष्ट्रगान हमारी राष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक देशभक्ति से जुड़ा हुआ है. देश में रह रहे हर भारतीय नागरिक को राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े होना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने संभावित आपत्तियोें को ध्यान में रखते यह भी स्पष्ट कर दिया कि आप लोग (भारतीय) विदेशों में सभी बंदिशों का पालन करते हैं पर भारत में कहते हैं कि कोई बंदिश न लगाई जाए. अगर आप भारतीय हैं तो आप को राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े होने में कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए. लेकिन एक अजीब बात इस फैसले में यह कही गई जो विवाद की वजह बन सकती है. वह यह है कि शास्त्रों में भी राष्ट्रगान को स्वीकार किया गया है, इसलिए देश के सम्मान के प्रतीक राष्ट्रगान का सम्मान करना आप का भी दायित्व बनता है. कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह इस बाबत अधिसूचना जारी कर जागरूकता के लिए अखबारों व न्यूज चैनल्स पर विज्ञापन दे.

ठोस वजह नहीं है

थिएटरों में राष्ट्रगान की अनिवार्यता लागू करने के पीछे कोई गंभीर या भारीभरकम वजह नहीं है, बल्कि यह एक दायर याचिका के एवज में आया फैसला है. भोपाल के शाहपुरा इलाके में रहने वाले 77 वर्षीय श्यामसुंदर चौकसे भोपाल के एक सिनेमाघर में ‘कभी खुशी कभी गम’ फिल्म देखने गए थे. जब राष्ट्रगान शुरू हुआ तो वे खड़े हो गए. इस पर मौजूद दूसरे बैठे दर्शकों ने उन की हूटिंग की तो वे दुखी हो उठे और जगहजगह इस वाकए की शिकायत की.

इस पर कोई सुनवाई नही हुई तो उन्होंने जबलपुर हाइकोर्ट में याचिका दायर कर दी. 24 जुलाई, 2004 को फैसला उन के हक में आया पर फिल्म निर्देशक करण जौहर इस पर स्थगन आदेश ले आए. इस पर श्यामसुंदर ने सितंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई और उस में कहा कि सिनेमाहौल में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान जरूरी हो. अपनी याचिका में उन्होंने राष्ट्रगान की गरिमा सुनिश्चित करने के लिए अदालत को कई बिंदु बताए.

30 नवंबर, 2016 को पहली सुनवाई में ही जस्टिस दीपक मिश्रा और अमिताव राय की पीठ ने उन से इत्तफाक रखते यह फैसला दे दिया.

यह है सजा

फैसला आते ही आम लोग अचंभित रह गए और इस का उल्लंघन करने पर सजा के प्रावधान से दहशत में भी हैं. प्रिवैंशन औफ इन्सल्ट टू नैशनल ओनर ऐक्ट 1971 की धारा 3 के मुताबिक, राष्ट्रगान में खलल डालने या राष्ट्रगान को रोकने की कोशिश करने पर 3 साल तक की कैद हो सकती है. यह ऐक्ट और धारा दोनों विरोधाभासी इस लिहाज से हैं कि इन में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि लोगों को राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किया जाए.

थिएटरों में राष्ट्रगान की शुरुआत 60 के दशक में हुई थी लेकिन 20 साल बाद इसे बंद कर दिया गया था क्योंकि सभी लोग थिएटरों में इस के बजने के दौरान खड़े नहीं होते थे. दूसरी व्यावहारिक दिक्कतें ये थीं कि लोग सिनेमाघर मनोरंजन के लिए जाते हैं, ऐसे में वहां राष्ट्रगान के दौरान बंद हौल में खड़े होने की बाध्यता उन्हें असहज बना रही थी. किसी पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि वह देशप्रेमी नहीं है या राष्ट्रगान के दौरान खड़े न हो कर देशद्रोही हो गया है. इस की अपनी वजहें और तर्क हैं लेकिन कड़ी सजा के प्रावधान से लग ऐसा रहा है कि अब बात अंधभक्ति की हो रही है.

अंधभक्ति न हो

यह वाकई जरूरी है कि लोग राष्ट्रगान, ध्वज और दूसरे राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करें. लेकिन वह धर्म की तरह अंधभ्क्ति जैसा हो जाए, इस बात में कोई तर्क नहीं होता. उलटे, लोगों का जी उचटाने वाली बात साबित हो जाती है. देश के कई मंदिरों में प्रवेश और पूजापाठ का अपना एक अलग संविधान और विधिविधान है और यहां तक है कि बनारस, पुरी, हरिद्वार व इलाहाबाद सहित कई शहरों के मंदिरों में साफसाफ लिखा है कि यहां गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है. शनि शिगणापुर के मंदिर में लोग जाते हैं तो उन्हें धोती पहनने के लिए पंडों द्वारा मजबूर किया जाता है. इस पर वहां आएदिन विवादफसाद होते रहते हैं.

मध्य प्रदेश के दतिया स्थित देवी पीतांबरा पीठ में 2 महीने पहले कई दिग्गज भाजपाई नेता पहुंचे थे तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मंदिर के गर्भगृह में नहीं जा पाए थे क्योंकि वे धोती नहीं पहने थे. किसी भी गुरुद्वारे में दाखिल होने से पहले सिर पर रूमाल रखना एक अनिवार्यता है. ऐसे कई कायदेकानूननियम अधिकांश धर्मस्थलों में जाने के बाबत हैं. इसी तरह राष्ट्रगान के दौरान वह भी थिएटरों में, खड़े होने की बाध्यता इस के अपमान को जन्म देने और बढ़ावा देने वाली साबित हो रही है.

केरल और चेन्नई के मामले इस की बानगी भर हैं. अब जगहजगह इस बात को ले कर फसाद होंगे ठीक वैसे ही जैसे 80 के दशक में होते थे. तब अकेले महाराष्ट्र्र को छोड़ कर देशभर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान की बाध्यता खत्म करनी पड़ी थी. देश का माहौल राष्ट्र और धर्म को ले कर कतई ठीक नहीं है. हिंदूवादी राष्ट्रभक्ति को धर्म से जोड़ कर लोगों को न केवल उपदेश दे रहे हैं बल्कि धर्म की नई दुकानें भी खोल रहे हैं. भारत माता की जय बोलना और वंदे मातरम कहना जैसे विवाद जबतब होते रहते हैं.

अब तो कई धार्मिक आयोजनों में बाकायदा आरती के साथसाथ राष्ट्रगान भी गाया जाने लगा है. भक्तगणों के हाथ में तिरंगा थमा दिया जाता है यानी राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रप्रेम को धर्म के दुकानदारों ने भुनाना शुरू कर दिया है.

पिछले दिसंबर माह के तीसरे हफ्ते में भोपाल के एक धार्मिक समारोह में यह नजारा देख लोग हैरत में थे कि ऐसा क्यों किया जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि देश और धर्म को अलग किया जाए, न कि इन्हें एकदूसरे का पर्याय बना दिया जाए. रही बात कानून की, तो साफ दिख रहा है कि राष्ट्रप्रेम उस के जरिए न पैदा किया जा सकता है, न ही थोपा जा सकता है. लोगों में यह भावना जगाने के दूसरे तरीके भी हैं. स्कूलकालेजों में राष्ट्रगान अनिवार्य है और छात्र उस का पालन भी करते हैं. सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के दौरान कोई खड़ा न हो तो साथ के लोग एतराज जताते हैं और लड़ाईझगड़ा करते हैं. यह कानून इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा देने वाला साबित होगा.

राष्ट्रगान का अपमान करने वालों को सजा देना हर्ज की बात नहीं, लेकिन उस का थोपा जाना ‘सम्मान न करना, अपमान के दायरे में लाना जरूर चिंता की बात है. अब तक देशभक्ति और धर्मभक्ति में एक फर्क हुआ करता था, उस का खत्म हो जाना भी चिंता और हर्ज की बात है. हिंदू धर्म के नाम पर योग, सूर्य नमस्कार एक तरह से थोपे ही जा रहे हैं. इसी तरह हर धर्म अपने उसूलों और बंदिशों से बंधा हुआ है जिन का पालन करना अनुयायियों की मजबूरी होती है. ऐसा न करने पर वे नास्तिक और पापी करार दे कर तिरस्कृत किए जाने लगते हैं. अब देशभक्ति के मामले में भी यही कानूनीतौर पर होगा तो धर्मभक्ति और देशभक्ति में क्या फर्क रह जाएगा.