प्यार का ऐसा अंजाम तो सपने में भी नहीं सोचा

सोशल मीडिया पर जहां मी टू जैसे कैंपेन चल रहे हैं, वहीं एक मौडल को इस की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी. वजह, फेसबुक फ्रैंड ने ही मौडल बनने आई कुलीग के साथ ऐसी हरकत कर डाली कि उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

मलाड (पश्चिम) में माइंडस्पेस के पास झाड़ियों के बीच ट्रैवल बैग में 20 साल की मौडल की लाश मिलने से हड़कंप मच गया. बैग के अंदर एक महिला की लाश थी जिस के सिर पर चोट थी. उस के शव को कुशन और बेडशीट से कवर किया हुआ था.

हालांकि सीसीटीवी फुटेज में एक कार दिखी है जिस के अंदर बैठे एक शख्स ने सड़क किनारे सूटकेस फेंका था. इसी के आधार पर पुलिस ने आरोपी की पहचान की और उसे उस की बिल्डिंग से पकड़ लिया गया. आरोपी की पहचान 20 साला मुजम्मिल सईद के रूप में हुई. आरोपी सेकंड ईयर का छात्र है. वह मिल्लत नगर अंधेरी (पश्चिम) में रहता था. वहीं मृतका का नाम मानसी दीक्षित है जो राजस्थान से मुंबई मौडल बनने का सपना ले कर आई थी.

पुलिस के मुताबिक, मानसी राजस्थान के कोटा शहर की रहने वाली थी, आरोपी मुजम्मिल सईद हैदराबाद का रहने वाला है. मानसी आरोपी से इंटरनेट के जरीए मिली थी. दोनों ने अंधेरी स्थित आरोपी के फ्लैट में मुलाकात की थी. दोपहर में दोनों के बीच किसी बात पर बहस हो गई, जिस के बाद मुजम्मिल सईद ने गुस्से में मानसी को किसी चीज से सिर पर मारा जिस से उस की मौत हो गई.

घटना को अंजाम देने के बाद सईद ने मानसी के शव को बैग में भरा और अंधेरी से मलाड तक एक प्राइवेट कैब बुक की. इस के बाद उस ने मलाड के माइंडस्पेस के पास झाड़ियों में बैग को फेंक दिया और वहां से फरार हो गया.

पुलिस को इस घटना की जानकारी कैब ड्राइवर ने दी. कैब ड्राइवर ने सईद को झाड़ियों में बैग फेंक कर आटोरिक्शा में फरार होते देखा था. पुलिस ने तुंरत मौके पर पहुंच कर मामले की जांच शुरू की और मानसी का शव बरामद कर लिया.

मुजम्मिल ने बताया कि हादसे के दौरान मानसी उस के फ्लैट में थी. उस ने गुस्से में मानसी के सिर पर स्टूल मार दिया जिस से अनजाने में मानसी की मौत हो गई. आरोपी ने हत्या की बात कबूल कर ली है.

प्लान बनाकर किया डिजाइनर का मर्डर

फैशन डिजाइनर माला लखानी (53) उनके नौकर बहादुर (50) की हत्या के आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने दावा किया है कि योजना बनाकर मर्डर को अंजाम दिया गया. बाद में आरोपी डर गए और खुद ही थाने पहुंचकर सरेंडर कर दिया.

पूछताछ में पता चला है कि राहुल ने वारदात की योजना पहले से बनाई थी. इन लोगों को पैसों की जरूरत थी. राहुल को लगता था कि माला के घर से उसे काफी रुपये और जूलरी या दूसरा कीमती सामान हाथ लग सकता है. वह दोस्तों के साथ मिलकर हथियारों के बल पर लूट को अंजाम देना चाहता था. उसने बीते रविवार को ही वसंत कुंज इलाके में लगनेवाली संडे मार्केट से मीट काटने वाले 2 बड़े चाकू भी खरीद लिए थे.

फोन कर कहा- ड्रेस रेडी है : पुलिस के मुताबिक, बुधवार रात 10:30 या 10:45 बजे के करीब राहुल ने माला को कॉल करके बताया कि ड्रेस रेडी है. वह वर्कशाप में आकर चेक कर लें. माला टीवी देख रहीं थीं. राहुल की कॉल के बाद जब वह वर्कशॉप पहुंचीं, तो आरोपियों ने पीछे से उनका मुंह दबाकर जमीन पर गिराने की कोशिश की. माला ने विरोध कर खुद को छुड़ाना चाहा, उसी दौरान उनके गले और पेट पर चाकू से ताबड़तोड़ 5-6 वार कर दिए गए. गले की नस कटने से माला ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.

बहादुर न आता तो शायद बच जाता : आरोपी वर्कशाप से निकले भी नहीं थे कि 10 मिनट बाद ही माला का नौकर बहादुर वहां पहुंच गया. उसने खून से लथपथ माला को देखा, तो हक्का-बक्का रह गया. इससे पहले कि बहादुर कुछ समझ पाता, आरोपियों ने उसे भी वर्कशाप के गेट से अंदर की तरफ धक्का देकर नीचे गिरा दिया. फिर दरवाजा लगाकर उस पर भी हमले कर दिए. आरोपियों को डर था कि अगर बहादुर बच गया, तो उनकी पहचान हो जाएगी. बहादुर ने काफी देर तक आरोपियों का मुकाबला किया, लेकिन पेट में चाकू के 5-6 वार के बाद उसने भी वहीं दम तोड़ दिया. उसके बाद आरोपियों ने कपड़े बदले. करीब एक घंटे घर के कोने-कोने को खंगाला. उन्हें थोड़ी बहुत जूलरी ही मिल पाई.

बोतल ले गए थे, लेकिन पी नहीं पाए : पुलिस का दावा है कि रात 12:15 बजे आरोपी माला की कार लेकर घर से निकले. रंगपुरी पहाड़ी पर पहुंचे. उन्होंने वहां चाकू और खून से सने कपड़ों को ठिकाने लगाया. देर रात तक वहीं रुके रहे. आरोपी माला के घर से शराब की एक बोतल भी ले गए थे, लेकिन इतने घबराए हुए थे कि शराब पी नहीं पाए.

पड़ोसियों के लिए यकीन करना मुश्किल

वसंत कुंज एनक्लेव के ए ब्लौक में जिस जगह माला का घर बना हुआ है, वहां आज भले ही महेंद्र सिंह धोनी और चेतन शर्मा जैसे नामी क्रिकेटर भी रह रहें हो, लेकिन पड़ोसी शकील अहमद और उनके भाई वसीम अहमद ने बताया कि माला तब से इस इलाके में अकेली रह रहीं थीं, जब यह इलाका ठीक से बसा भी नहीं था. वह काफी हिम्मत वाली महिला थीं और उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था. उनकी हिम्मत की आस-पास के लोग भी दाद देते थे. गाड़ी भी वो खुद ही ड्राइव करती थीं.

वसीम ने बताया कि माला के घर में अक्सर जब कोई पार्टी होती थी या मेहमान आते थे, तो वह उन्हीं के घर से बड़े बर्तन मंगवाती थीं. साथ ही त्योहारों पर भी वे एक-दूसरे को विश करते थे. वसीम और शकील के बच्चों से भी माला बहुत प्यार और स्नेह से मिलती थीं. वसीम ने बताया कि गुरुवार तड़के 4 बजे के करीब जब उन्होंने शोरशराबा सुना और वो बाहर आए, तो उन्होंने भारी तादाद में पुलिस देखी. पुलिसवाले माला के घर के अंदर छानबीन कर रहे थे.

पहले उन्हें लगा कि शायद कोई चोरी हुई है, क्योंकि माला की कार नहीं दिख रही थी. पूछने पर पुलिसवालों ने कुछ नहीं बताया और अंदर चले जाने के लिए कहा. फिर 6 बजे के करीब जब पुलिसवालों ने दो लाशें घर से बाहर निकालीं, तो उसे देखकर हर कोई हैरान रह गया.

भरोसे का उठाया फायदा

मुख्य आरोपी राहुल अनवर माला के यहां साढ़े तीन साल से काम कर रहा था. वही उनका मेन टेलर था. माला ने वर्कशाप का पूरा जिम्मा उसी को दिया था. वर्कशॉप की चाबी भी राहुल के पास रहती थी. माला उसे जिस तरह के कपड़े बनाने के लिए कहतीं, राहुल जरूरत के हिसाब से दूसरे टेलरों और हेल्परों को हायर कर लेता था. माला ने राहुल को इसकी खुली छूट दे रखी थी. इसी का फायदा उठाकर राहुल ने बुधवार की शाम को 6:30 बजे के करीब अपने 2 साथियों वसीम और रहमत को वर्कशॉप पर बुला लिया था. एक-दो बार पहले भी राहुल उन्हें माला के घर बुला चुका था.

आखिर में तीनों आरोपियों ने रजामंदी से लिया सरेंडर का फैसला

करीब दो ढाई घंटे तक बातचीत के बाद आरोपियों को लगा कि पुलिस कभी न कभी उन्हें पकड़ लेगी. उनकी पहचान ज्यादा दिन छुपी नहीं रह पाएगी. तीनों घबरा गए. आखिरकार उन्होंने मिलकर सरेंडर का फैसला किया. रात 2:45 बजे सभी माला की गाड़ी लेकर वसंत कुंज (साउथ) थाने पहुंचे. ड्यूटी अफसर को बताया कि डबल मर्डर करके आए हैं. तब एसएचओ संजीव कुमार थाने में ही थे. तड़के 3 बजे पुलिस तीनों आरोपियों को लेकर मौके पर पहुंची. वहां माला और बहादुर की लाश थी.

चार राज्यों तक फैले खून के छींटे – भाग 3

हेमंत को अपने पकड़े जाने का डर इसलिए भी था, क्योंकि उस ने जयपुर आने के लिए जिस कैब को बुक किया था, उस के लिए उस ने दीप्ति के फोन का इस्तेमाल किया था. उसी फोन नंबर और गाड़ी के ड्राइवर की मदद से पुलिस उस तक पहुंच सकती थी.

हेमंत ने उसी वक्त फैसला कर लिया कि अगर उसे पुलिस से बचना है तो उसे इनोवा कैब के चालक की भी हत्या करनी पड़ेगी वरना वह खुद फंस जाएगा. उस ने सोचा कि देवेंद्र की हत्या कर के कुछ वक्त इधरउधर छिप कर बिता लेगा. देवेंद्र सिंह की हत्या के बाद उस की गाड़ी को भी बेच देगा.

यह ख्याल आते ही हेमंतके दिमाग में एक और खतरनाक साजिश ने जन्म ले लिया. उसे लग रहा था कि वह देवेंद्र के मामले में पुलिस के हाथ कभी नहीं लगेगा, क्योंकि उस की कार उस ने दीप्ति के फोन से बुक की थी. देवेंद्र की हत्या के बाद पुलिस के लिए उस तक पहुंचने की कड़ी टूट जाएगी.

इसी साजिश को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने एक दिन जयपुर में ही रुकने का मन बनाया. उस ने यह बात ड्राइवर देवेंद्र को बता दी. देवेंद्र को पता ही नहीं था कि हेमंत के दिमाग में क्या खतरनाक साजिश चल रही है.

उसी रात हेमंत किसी से मिलने के बहाने ड्राइवर देवेंद्र को अपने साथ अजमेर बाइपास एक्सप्रैस-वे पर चंदबाजी के इलाके में ले गया. वहां उस ने रास्ते में एक सुनसान जगह पर देवेंद्र को गोली मार क र उस की भी हत्या कर दी. इस के बाद लाश फेंक कर वह उस की इनोवा ले कर पहले अपने होटल पहुंचा, फिर वहां से कमरा खाली कर के गुजरात के लिए रवाना हो गया.

हेमंत ने सोचा था कि वह पहले देवेंद्र की इनोवा कार को सूरत में बेचेगा, फिर वहां से मुंबई चला जाएगा. अगले दिन वह इनोवा ले कर सूरत पहुंच गया. वहां पहुंच कर उस ने एक होटल में कमरा ले लिया.

इस के बाद उस ने दिल्ली में अपने एक दोस्त को फोन कर के दिल्ली में कुछ कार डीलरों के नंबर हासिल किए. दरअसल, वह उन से संपर्क कर के सेकेंड हैंड इनोवा की कीमत जानना चाहता था. उसे पता चला कि इनोवा 8-9 लाख में बिक सकती है. सूरत में उस ने गाड़ी बेचने के लिए एक डीलर से संपर्क किया तो सौदा 8 लाख रुपए में तय हो गया.

इनोवा की ड्राइविंग साइड का एक शीशा टूटा हुआ था. उस पर खून के कुछ निशान भी थे. यह देख डीलर को शक हुआ तो हेमंत गाड़ी ले कर भाग निकला, लेकिन इस से पहले डीलर ने तुरंत पीछे लिखे नंबर पर फोन कर दिया. यह नंबर देवेंद्र के भाई अजीत का था, जो कार का मालिक था.

कुछ गड़बड़ देख देवेंद्र के भाई अजीत ने अपने भाई देवेंद्र के मोबाइल पर फोन किया तो उस का नंबर स्विच्ड औफ मिला. जिस के बाद देवेंद्र के भाई ने पलट कर उसी डीलर के नंबर पर फोन किया, जिस ने उसे फोन किया था.

जिस वक्त सूरत में ये सब चल रहा था, उसी वक्त पुलिस को जयपुर के चंदबाजी में सड़क किनारे एक युवक का शव पड़े होने की सूचना मिली. युवक को गोली मारी गई थी और किसी कार का शीशा भी टूटा पड़ा था.

पुलिस ने टोल नाकों की सीसीटीवी फुटेज खंगाली तो एक इनोवा एसयूवी कार संदिग्ध नजर आई. उस के नंबरों के आधार पर कार मालिक दिल्ली निवासी अजीत सिंह से संपर्क किया गया.

अजीत ने बताया कि उस का भाई देवेंद्र बुकिंग पर कार ले कर गया था. वह 7 दिसंबर से लापता है, जिस की गुमशुदगी डाबड़ी थाने में दर्ज करवाई गई थी. बुकिंग करवाने वाले के मोबाइल नंबर की डिटेल्स खंगाली गई तो वह दिल्ली की दीप्ति गोयल का निकला.

पता चला कि दीप्ति की 6 दिसंबर को धारूहेड़ा में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी और उस का शव सड़क किनारे एक खाली प्लौट में फेंक दिया गया था. बाद में पुलिस को देवेंद्र की कार की लोकेशन सूरत में मिली. आरोपी हेमंत कार को बेचने के लिए सूरत ले गया था.

सूरत के जिस कार डीलर ने अजीत सिंह को फोन किया था, उसी ने थाना सरथाना के एसएचओ टी.आर. चौधरी को भी फोन कर के इस की इत्तला दे दी थी. चौधरी ने इस सूचना के बाद तत्काल अपने स्टाफ को सक्रिय कर दिया. फलस्वरूप कुछ ही देर में वह इनोवा गाड़ी सरथाना पुलिस के कब्जे में आ गई, जिसे हेमंत लांबा ड्राइव कर रहा था.

जब हेमंत को थाने लाया गया और पुलिस ने उस की खातिरदारी कर के कार के मालिक और उस पर लगे खून के छींटों और टूटे हुए साइड मिरर के बारे में पूछा तो सारी कहानी खुलती चली गई.

इंसपेक्टर चौधरी के सामने एक नहीं दो कत्ल करने वाले आरोपी ने इकबाले जुर्म किया था. लेकिन दोनों में से कोई भी वारदात उन के इलाके में नहीं हुई थी, इसलिए उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को इस बाबत पूरी जानकारी दे कर हेमंत के खिलाफ सीआरपीसी की धारा में मुकदमा दर्ज कर लिया.

तब तक उच्चाधिकारियों की तरफ से जयपुर पुलिस व रेवाड़ी पुलिस को उन के इलाके में हुए दीप्ति हत्याकांड व देवेंद्र सिंह हत्याकांड की जानकारी दे दी गई थी.

सब से पहले रेवाड़ी पुलिस सूरत पहुंची और उस ने आरोपी हेमंत से पूछताछ करने के बाद उसे स्थानीय कोर्ट में पेश कर प्रोडक्शन वारंट पर अपनी हिरासत में ले लिया.

रेवाड़ी पुलिस हेमंत को सूरत से ले कर वापस आ गई और उसे अदालत में पेश कर जब 7 दिन के रिमांड पर लिया गया तो यह राज भी उजागर हो गया कि हेमंत ने दीप्ति की हत्या क्यों की थी.

फेसबुक पर हेमंत लांबा से हुई जानपहचान और फिर उस के प्यार में पड़ना दीप्ति को भारी पड़ गया था, जो उस की मौत का कारण बन गया.

दरअसल, जब दोनों की मुलाकात हुई तो हेमंत को दीप्ति पंसद तो आई लेकिन उसे दीप्ति में ऐसा कुछ नहीं दिखा कि वह उस के साथ लंबा वक्त गुजारता. कुछ समय तक वह उस से प्यार करने का नाटक करता रहा, लेकिन दीप्ति के साथ मौजमस्ती करतेकरते  दीप्ति उस के प्यार में कुछ इस कदर डूब गई कि वह उस से शादी के सपने देखने लगी.

हेमंत ऐसा भंवरा था जो एक डाल पर ज्यादा दिन तक नहीं बैठता था. फूल का रस चूसने के बाद वह अगली कली की तरफ बढ़ जाता था. लेकिन दीप्ति के मामले में उसे लगने लगा कि वह उस के गले में हड्डी की तरह फंस गई है. वक्त बीतने के साथ दीप्ति उस पर शादी का दबाव बनाने लगी थी. इसलिए उस से छुटकारा पाने के लिए हेमंत ने उस की हत्या की साजिश रची.

रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में धारूहेड़ा पुलिस ने हेमंत से वारदात में इस्तेमाल की गई पिस्तौल, 4 जिंदा कारतूस और इनोवा बरामद कर ली. रेवाड़ी पुलिस ने रिमांड खत्म होने के बाद हेमंत लांबा के खिलाफ दर्ज मामले में हत्या के अलावा सबूत छिपाने की धारा जोड़ कर उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस के बाद जयपुर पुलिस ने हेमंत को देवेंद्र हत्याकांड में रिमांड पर ले लिया और उस से गहन पूछताछ की.

हेमंत लांबा अपनी फेसबुक वाल पर नेताओं व खुद को स्मार्ट दिखाने वाली फोटो डालता रहता था. उस पर दिल्ली में 1 दुष्कर्म, 2 छेड़छाड़ व एनआईए के 42 मामले दर्ज थे.

इस में लोगों के साथ ठगी करना, जबरन कब्जा करना, झगड़ा आदि करने के मामले भी शामिल हैं.

हरियाणा साउथ रेंज के एडीजीपी डा. आर.सी. मिश्रा के मुताबिक हेमंत सोशल मीडिया, फेसबुक व अन्य वेबसाइट पर खुद को हाईप्रोफाइल सोसायटी का दर्शाता था. उस के इसी प्रोफाइल को देख कर लड़कियां उस के जाल में फंस जाती थीं.

लेकिन वह उन लड़कियों के साथ कुछ दिन अय्याशी करता था और उन से नाता तोड़ लेता था.

उसे पता नहीं था कि जिस दीप्ति को उस ने अय्याशी  के लिए अपने जाल में फंसाया है, वह एक दिन उस के गले की फांस बन जाएगी.  द्य

—कथा पुलिस की जांच व आरोपी से हुई पूछताछ पर आधारित

मौत का सौदागर : लालच ने बनाया हत्यारा

25नंवबर, 2020 को देव दिवाली का त्यौहार होने के कारण एक ओर जहां रतलाम के लोग अपने आंगन में गन्ने से बने मंडप तले शालिग्राम और तुलसी का विवाह उत्सव मना रहे थेवहीं दूसरी ओर शहर भर के बच्चे दीवाली की बची आतिशबाजी खत्म करने में लगे थे. चारों तरफ धूमधड़ाके का माहौल था.

 

लेकिन इस से अलग औद्योगिक थाना इलाके में कब्रिस्तान के पास बसे राजीव नगर में युवक बेवजह ही सड़क पर यहां से वहां चक्कर लगाते हुए कालोनी के एक तिमंजिला मकान पर नजर लगाए हुए थे.

यह मकान गोविंद सेन का था. लगभग 50 वर्षीय गोविंद सेन का स्टेशन रोड पर अपना सैलून था. उन का रिश्ता ऐसे परिवार से रहा जिस के पास काफी पुश्तैनी संपत्ति थी. पारिवारिक बंटवारे में मिली बड़ी संपत्ति के कारण उन्होंने राजीव नगर में यह आलीशान मकान बनवा लिया था.

इस की पहली मंजिल पर वह स्वयं 45 वर्षीय पत्नी शारदा और 21 साल की बेटी दिव्या के साथ रहते थे. जबकि बाकी मंजिलों पर किराएदार रहते थे. उन की एक बड़ी बेटी भी थीजिस की शादी हो चुकी थी.

इस परिवार के बारे में आसपास के लोग जितना जानते थेउस के हिसाब से गोविंद सिंह की पत्नी घर पर अवैध शराब बेचने का काम करती थी. जबकि उन की बेटी को खुले विचारों वाली माना जाता था. लोगों का मानना था कि दिव्या एक ऐसी लड़की है जो जवानी में ही दुनिया जीत लेना चाहती थी. उस की कई युवकों से दोस्ती की बात भी लोगों ने देखीसुनी थी.

पिता के सैलून चले जाने के बाद वह दिन भर घर में अकेली रहती थी. मां शारदा और बेटी दिव्या से मिलने आने वालों की कतार लगी रहती थी. मोहल्ले वाले यह सब देख कर कानाफूसी करने के बाद हमें क्या करना’ कह कर अनदेखी करते देते थे.

25 नवंबर की रात जब चारों ओर देव दिवाली की धूम मची हुई थी. राजीव नगर की इस गली मे घूम रहे युवक कोई साढे़ बजे के आसपास गोविंद के घर के सामने से गुजरे और सीढ़ी चढ़ कर ऊपर चले गए. सामने के मकान से देख रहे युवक ने जानबूझ कर इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया. जबकि उन का चौथा साथी गोविंद के घर जाने के बजाय कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया.

रात कोई सवा बजे थकाहारा गोविंद दूध की थैली लिए घर लौटा. गोविंद सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंच गया. इस के कुछ देर बाद वे तीनों युवक उन के घर से निकल कर नीचे आ गए.

जिस पड़ोसी ने उन्हें ऊपर जाते देखा थासंयोग से उस ने तीनों को वापस उतरते भी देखा तो यह सोच कर उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई कि घर लौटने पर उन युवकों को अपने घर में मौजूद देख कर गोविंद सेन की मन:स्थिति क्या रही होगी.

तीनों युवकों ने नीचे खड़ी दिव्या की एक्टिवा स्कूटी में चाबी लगाने की कोशिश कीलेकिन संभवत: वे गलत चाबी ले आए थे. इसलिए उन में से एक वापस ऊपर जा कर दूसरी चाबी ले आयाजिस के बाद वे दिव्या की एक्टिवा पर बैठ कर चले गए.

26 नवंबर की सुबह के बजे रतलाम में रोज की तरह सड़कों पर आवाजाही शुरू हो गई थी. लेकिन गोविंद सेन के घर में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ देर में उन के मकान में किराए पर रहने वाली युवती ज्वालिका अपने कमरे से बाहर निकल कर दिव्या के घर की तरफ गई.

दिव्या की हमउम्र ज्वालिका एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती थी. गोविंद की बेटी भी एक निजी कालेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ नर्सिंग का कोर्स कर रही थी. महामारी के कारण आजकल क्लासेस बंद थींइसलिए वह अपनी बड़ी बहन की कंपनी में नौकरी करने लगी थी.

ज्वालिका और दिव्या एक ही एक्टिवा इस्तेमाल करती थीं. जब जिस को जरूरत होतीवही एक्टिवा ले जाती. लेकिन इस की चाबी हमेशा गोविंद के घर में रहती थी. सो काम पर जाने के लिए एक्टिवा की चाबी लेने के लिए ज्वालिका जैसे ही गोविंद के घर में दाखिल हुईचीखते हुए वापस बाहर आ गई.

उस की चीख सुन कर दूसरे किराएदार भी बाहर आ गए. उन्हें पता चला कि गोविंद के घर के अंदर गोविंदउस की पत्नी और बेटी की लाशें पड़ी हैं. घबराए लोगों ने यह खबर नगर थाना टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी.

कुछ ही देर में वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और मामले की गंभीरता को देखते हुए इस तिहरे हत्याकांड की खबर तुरंत एसपी गौरव तिवारी को दी.

कुछ ही देर में एसपी गौरव तिवारी एएसपी सुनील पाटीदारएफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल एवं एसपी के निर्देश पर माणकचौक के थानाप्रभारी अयूब खान भी मौके पर पहुंच गए.

तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे रतलाम में फैल गईजिस से मौके पर जमा भारी भीड़ जमा हो गई. मौकाएवारदात की जांच में एसपी गौरव तिवारी ने पाया कि शारदा का शव बिस्तर पर पड़ा थाजिस के सिर में गोली लगी थी. उन की बेटी दिव्या की लाश किचन के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. दिव्या के हाथ में आटा लगा हुआ था और आधे मांडे हुए आटे की परात किचन में पड़ी हुई थी.

इस से साफ हुआ कि पहले बिस्तर पर लेटी हुई शारदा की हत्या हुई होगी. गोली की आवाज सुन कर दिव्या बाहर आई होगी तो हत्यारों ने उसे भी गोली मार दी होगी. गोविंद की लाश दरवाजे के पास पड़ी थीइस का मतलब उस की हत्या सब से बाद में हुई थी. उन के पैरों में जूते थे और हाथ में दूध की थैली.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे हत्या करने के बाद भागना चाहते होंगेलेकिन भागते समय ही गोविंद घर लौट आएजिस से उन की भी हत्या कर दी गई होगी. पड़ोसियों ने गोविंद को बजे घर आते देखा था. उस के बाद लोगों को घर से बाहर जाते देखा. इस से यह साफ हो गया कि शारदा और दिव्या की हत्या बजे के पहले की गई होगी. जबकि गोविंद की हत्या बजे हुई होगी. पुलिस ने जांच शुरू की तो गोविंद सेन के परिवार के बारे में जो जानकरी निकल कर सामने आईउस से पुलिस को शक हुआ कि हत्याएं प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध को ले कर की गई होंगी.

लेकिन गोविंद के एक रिश्तेदार ने इस बात को पूरी तरह गलत करार देते हुए बताया कि गोविंद ने कुछ ही समय पहले 30 लाख रुपए में गांव की अपनी जमीन बेची थी.

दूसरा घटना के दिन ही शारदा और दिव्या ने डेढ़ लाख रुपए की ज्वैलरी की खरीदारी की थीजो घर में नहीं मिली. इस कारण पुलिस लूट के एंगल से भी जांच करने में जुट गई. चूंकि मौके पर संघर्ष के निशान नहीं थे और हत्यारे गोविंद की बेटी की एक्टिवा भी साथ ले गए थे. इस से यह साफ हो गया कि वे जो भी रहे होंगेपरिवार के परिचित रहे होंगे और उन्हें गाड़ी की चाबी रखने की जगह भी मालूम थी.

हत्यारों ने वारदात का दिन देव दिवाली का सोचसमझ कर चुना. इसलिए आतिशबाजी के शोर में किसी ने भी पड़ोस में चलने वाली गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया था.

मामला गंभीर था इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने मौके का निरीक्षण करने के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा कर दी.

वहीं एसीपी गौरव तिवारी ने 10 थानों के टीआई और लगभग 60 पुलिसकर्मियों की एक टीम गठित कर दीजिस की कमान  थानाप्रभारी अयूब खान को सौंपी गई. इस टीम ने इलाके के पूरे सीसीटीवी कैमरे खंगालेइस के अलावा घटना के समय राजीव नगर में स्थित मोबाइल टावर के क्षेत्र में सक्रिय 70 हजार से अधिक फोन नंबरों की जांच शुरू की.

दिव्या को एक बोल्ड लड़की के रूप में जाना जाता था. उस की कई लड़कों से दोस्ती थी. कुछ दिन पहले उस ने एक अलबम मैनूं छोड़ के…’ में काम किया था. इस अलबम में भी उस की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है. पुलिस ने उस के साथ काम करने वाले युवक अभिजीत बैरागी से भी पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

घटना वाले दिन से ले कर चंद रोज पहले तक दिव्या ने जिन युवकों से फोन पर बात की थीउन सभी से पुलिस ने पूछताछ की. गोविंद सेन की एक्टिवा देवनारायण नगर में लावारिस खड़ी मिली. तब पुलिस ने वहां भी चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज जमा कर हत्यारों का पता लगाने की कोशिश शुरू की.

जिस में दोनों जगहों के फुटेज से संदिग्ध युवकों की पहचान कर ली गईजिन्हें घटना से पहले इलाके में पैदल घूमते देखा गया था. और बाद में वही युवक दिव्या की एक्टिवा पर जाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए.

जाहिर है हर बड़ी घटना के आरोपी भले ही कितनी भी दूर क्यों न भाग जाएंवे घटना वाले शहर में पुलिस क्या कर रही है. इस बात की जानकारी जरूर रखते हैंयह बात एसपी गौरव तिवारी जानते थे. इसलिए उन्होंने जानबूझ कर जांच के दौरान मिले महत्त्वपूर्ण सुराग को मीडिया के सामने नहीं रखा था.

दरअसलजब पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से हत्यारों के भागने के रूट का पीछा कर रही थी तभी देवनारायण नगर में आ कर दोनों संदिग्धों ने दिव्या की एक्टिवा छोड़ दी थी. वहां पहले से एक युवक स्कूटर ले कर खड़ा थाजिसे ले कर वे वहां से चले गए. जबकि स्कूटर वाला युवक पैदल ही वहां से गया था.

इस से एसपी को शक था कि तीसरा युवक स्थानीय हो सकता हैजो आसपास ही रहता होगा. बात सही थीवह अनुराग परमार उर्फ बौबी थाजो विनोबा नगर में रहता था.

इंदौर से बीटेक करने के बाद भी उस के पास कोई काम नहीं था. वह इस घटना में शामिल था और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. इसलिए जब उसे पता चला कि पुलिस को उस का कोई फुटेज नहीं मिला तो वह लापरवाही से घर से बाहर घूमने लगा.

जिस के चलते नजर गड़ा कर बैठी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर पूछताछ की. उस से मिली जानकारी के दिन बाद ही पुलिस ने दाहोद (गुजरात) से लाला देवल निवासी खरेड़ी गोहदा और वहीं से रेलवे कालोनी रतलाम निवासी गोलू उर्फ गौरव को गिरफ्तार कर लिया. उन से पता चला कि पूरी घटना का मास्टरमांइड दिलीप देवले हैजो खरेड़ी गोहद का रहने वाला है.

यही नहीं पूछताछ में यह भी साफ हो गया कि जून 20 में दिलीप देवल ने ही अपने ताऊ के बेटे सुनीत उर्फ सुमीत चौहान निवासी गांधीनगररतलाम और हिम्मत सिंह देवल निवासी देवनारायण के साथ मिल कर डा. प्रेमकुंवर की हत्या की थी. जिस से पुलिस ने सुनीत और हिम्मत को भी गिरफ्तार कर लिया.

इन से पता चला कि तीनों हत्याएं लूट के इरादे से की गई थीं. दिलीप के बारे में पता चला कि वह रतलाम में ही छिप कर बैठा है. पुलिस को यह भी पता चला कि वह मिडटाउन कालोनी में किराए के मकान में रह रहा है. और पुलिस तथा सीसीटीवी कैमरे से बचने के लिए पीछे की तरफ टूटी बाउंड्री से आताजाता है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने पीछे की तरफ खाचरौद रोड पर उसे घेरने की योजना बनाईजिस के चलते दिसंबर, 2020 को वह पुलिस को दिख गया. पुलिस टीम ने उसे ललकारा तो दिलीप ने पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दींजवाबी काररवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं.

कुछ ही देर में मास्टरमाइंड दिलीप मारा गया. इस प्रकार असंभव से लगने वाले तिहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को पुलिस ने महज दिन में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इस में टीम प्रभारी अयूब खान और एसआई सहित पुलिसकर्मी भी घायल हुए.

लौकडाउन में घर में सैलून चलाना महंगा पड़ा गोविंद को गोविंद सेन पिछले 22 साल से स्टेशन रोड पर सैलून चलाते थे. लौकडाउन के दौरान वह चोरीछिपे अपने घर बुला कर लोगों की कटिंग करते रहे. दिलीप भी उन से कटिंग करवाने घर जाया करता था. जहां उस ने गोविंद की अमीरी देख कर उन्हें शिकार बनाने की योजना बनाई थी.

दिलीप के साथियों ने बताया कि शारदा और दिव्या की हत्या करने की योजना तो वे पहले से ही बना कर आए थे. लेकिन अंतिम समय में गोविंद भी अपनी दुकान से लौट कर आ गए थे. इसलिए उन की भी हत्या करनी पड़ी. आरोपियों ने बताया कि उस के घर से उन्हें 30 लाख रुपए मिलने की उम्मीद थी. लेकिन उन्हें केवल 20 हजार नकद और कुछ जेवर ही मिले थे.

दिलीप अपने कारनामों का कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए लूट के दौरान सामने वाले की सीधे हत्या कर देता था.

दिलीप अब तक एक ही तरीके से हत्याएं कर चुका थाइसलिए पुलिस उसे साइकोकिलर मानती थी. दिलीप के साथियों का कहना था कि पुलिस से बचने के लिए हत्या तो करनी ही पड़ेगी मर्डर इज मस्ट.

मजबूर औरत की यारी : निर्दोष को क्यों मिली सजा

राधा नाम की जिस औरत की वजह से प्रांशु का कत्ल किया गया, उस बेचारी को इस अपराध की भनक तक नहीं थी. इस की वजह शायद यह थी कि वह लल्लन और प्रांशु को जो देह सुख दे रही थी, वह उस गरीब की मजबूरी थी. उस ने सोचा भी न होगा कि दो दोस्तों… रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र में एक गांव है गुरदीन का पुरवा मजरा रसूलपुर. गंगाघाट के पास

खेल रहे कुछ बच्चों ने वहां एक युवक की लाश पड़ी देखी. बच्चों ने लाश देखी तो शोर मचा कर आसपास के लोगों को बुला लिया. कुछ ही देर में यह खबर दूरदूर तक फैल गई. खबर सुन कर रसूलपुर गांव के प्रधान भी वहां पहुंच गए. उन्होंने फोन कर के घटना की सूचना डलमऊ थाने को दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर श्रीराम पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 20-25 साल थी. उस के गले पर रस्सीनुमा किसी चीज से कसे जाने के निशान थे, शरीर पर भी चोट के निशान थे.

घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण किया गया तो वहां से लगभग 2 किलोमीटर दूर हीरो कंपनी की एक बाइक लावारिस खड़ी मिली. संभावना थी कि वह मृतक की ही रही होगी.

इसी बीच सीओ (डलमऊ) आर.पी. शाही भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. पुलिस अभी अपना काम कर ही रही थी कि एक व्यक्ति कुछ लोगों के साथ वहां पहुंचा. उस ने लाश देख कर उस की शिनाख्त अपने 20 वर्षीय बेटे प्रांशु तिवारी के रूप में की. यह बात 25 फरवरी, 2020 की है.

शिनाख्त करने वाले मदनलाल तिवारी थे और वह डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहते थे. मदनलाल तिवारी ने बताया कि प्रांशु एक दिन पहले 24 फरवरी की शाम 7 बजे घर से निकला था.

उसे उस के दोस्त पिंटू जोशी और पप्पू जोशी बुला कर ले गए थे. ये दोनों डलमऊ में टिकैतगंज में रहते हैं. संभवत: उन्होंने ही प्रांशु को मारा होगा. मदनलाल तिवारी से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने आ कर इंसपेक्टर श्रीराम ने मदनलाल की लिखित तहरीर पर पिंटू जोशी व पप्पू जोशी के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

इंसपेक्टर श्रीराम ने केस की जांच शुरू की. सब से पहले उन्होंने गांव के लोगों से पूछताछ की. पता चला मृतक प्रांशु तिवारी के सुरजीपुर गांव की राधा नाम की महिला से नाजायज संबंध थे. जब इस बात की और गहराई से छानबीन की गई तो राधा के प्रांशु के अलावा प्रांशु के पड़ोसी अशोक निषाद उर्फ कल्लन से भी नाजायज संबंध होने की बात सामने आई.

इस बात को ले कर दोनों में विवाद भी हो चुका था. यह जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर श्रीराम ने सोचा कि कहीं प्रांशु की हत्या इसी महिला से संबंधों के चलते तो नहीं हुई. पुलिस को यह भी पता चला कि पिंटू जोशी और पप्पू जोशी आपराधिक प्रवृत्ति के हैं.

इंसपेक्टर श्रीराम का शक तब और मजबूत हो गया, जब कल्लन अपने घर से फरार मिला. पिंटू और पप्पू भी फरार थे. इंसपेक्टर श्रीराम ने उन का पता लगाने के लिए अपने विश्वस्त मुखबिरों को लगा दिया.

घटना से 2 दिन बाद यानी 27 फरवरी को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी पिंटू जोशी, पप्पू जोशी और अशोक निषाद उर्फ कल्लन को सुरजीपुर शराब ठेके के पीछे मैदान से गिरफ्तार कर लिया.

कोतवाली में जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो तीनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और अपने चौथे साथी डलमऊ के भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार का नाम भी बता दिया.

राधा उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र के गांव सुरजीपुर में रहती थी. 35 वर्षीय राधा 2 बच्चों की मां थी. उस के पति का नाम बबलू था जो कहीं बाहर रह कर नौकरी करता था. अपनी नौकरी से वह इतने पैसे नहीं जुटा पाता कि उस के बीवीबच्चों का खर्च चल सके. बड़ी मुश्किल से परिवार की दोजून की रोटी मिल पाती थी.

एक तो पति घर से दूर और उस पर आर्थिक अभाव. दोनों ही बातों ने राधा को परेशान कर रखा था. शरीर की आग तो बुझना दूर पेट की आग को शांत करने तक के लाले पड़े थे. ऐसे में राधा का तनमन बहकने लगा. बड़ी उम्मीद ले कर वह अपनी जरूरत के पुरुष को तलाशने लगी.

अशोक निषाद उर्फ कल्लन डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहता था. कल्लन के पिता राजेंद्र शराब के एक ठेके पर सेल्समैन थे. कल्लन के 2 भाई और एक बहन थी. कल्लन सब से बड़ा था.

22 वर्षीय कल्लन भी सुरजीपुर के शराब ठेके पर सेल्समैन की नौकरी करता था. डलमऊ से सुरजीपुर की दूरी महज 2 किलोमीटर थी. काम पर वह अपनी बाइक से आताजाता था.

कल्लन ने राधा के हुस्न को देखा तो उसे पाने की चाहत पाल बैठा. उस के पति के काफी समय से दूर होने और आर्थिक अभाव के बारे में कल्लन जानता था. राधा से नजदीकी बढ़ाने के लिए वह उस से हमदर्दी दिखाने लगा.

राधा कल्लन के बारे में सब जानती थी. वह उस से 12 साल छोटा था. राधा को समझते देर नहीं लगी कि कल्लन उस से क्यों हमदर्दी दिखा रहा है. यह बात समझते ही उस के चेहरे पर मुसकान और आंखों में चमक आ गई. फिर उस का झुकाव भी कल्लन की ओर हो गया.

एक दिन कल्लन राधा के घर के सामने से जा रहा था तो राधा घर की चौखट पर बैठी थी. उस समय दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. अच्छा मौका देख कर कल्लन बोला, ‘‘राधा, मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है. तुम्हारी कहानी सुन कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में सिर्फ दुख ही दुख है.’’

‘‘कल्लन, मैं ने तुम्हारे बारे में जो सुन रखा था, तुम उस से भी कहीं ज्यादा अच्छे हो, जो दूसरों का दुख बांटने की हिम्मत रखते हो. वरना इस जालिम दुनिया में कोई किसी के बारे में कहां सोचता है.’’

‘‘राधा, दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है. खैर, तुम चिंता मत करो. आज से मैं तुम्हारा हर तरह से खयाल रखूंगा. चाहो तो बदले में तुम मेरा कुछ काम कर दिया करना.’’

‘‘ठीक है, तुम मेरे बारे में इतना सोच रहे हो तो मैं भी तुम्हारा काम कर दिया करूंगी.’’

यह सुन कर कल्लन ने राधा के कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रखा तो राधा ने अपनी गरदन टेढ़ी कर के उस के हाथ पर अपना गाल रख कर आशा भरी नजरों से उस की तरफ देखा. कल्लन ने मौके का फायदा उठाने के लिए राधा के हाथों पर 5 सौ रुपए रखते हुए कहा, ‘‘ये रख लो, तुम्हें इन की जरूरत है.’’

राधा तो वैसे भी अभावों में जिंदगी गुजार रही थी, इसलिए उस ने कल्लन द्वारा दिए गए पैसे अपनी मट्ठी में दबा लिए. इस से कल्लन की हिम्मत और बढ़ गई. वह हर रोज राधा से मिलने उस के घर जाने लगा.

वह राधा के बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें ले कर आता था. कभीकभी वह राधा को पैसे भी देता था. इस तरह वह राधा का खैरख्वाह बन गया.

राधा हालात के थपेड़ों में डोलती ऐसी नाव थी, जिस का मांझी उस के पास नहीं था. इसलिए वह कल्लन के अहसान अपने ऊपर लादती चली गई.

स्वार्थ की दीवार पर अहसानों की ईंट पर ईंट चढ़ती जा रही थी, जिस के चलते राधा भी कल्लन का पूरा ख्याल रखने लगी थी. वह उसे खाना खाए बिना नहीं जाने देती थी. लेकिन कल्लन के मन में तो राधा की देह की चाहत थी, जिसे वह हर हाल में पाना चाहता था.

एक दिन उस ने कहा, ‘‘राधा, तुम खुद को अकेली मत समझना. मैं हर तरह से तुम्हारा बना रहूंगा.’’

यह सुन कर राधा उस की तरफ चाहत भरी नजरों से देखने लगी. कल्लन समझ गया कि वह पूरी तरह शीशे में उतर चुकी है, इसलिए उस के करीब आ गया और उस के हाथ को अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबा कर बोला, ‘‘सच कह रहा हूं राधा, तुम्हारी हर जरूरत पूरी करना अब मेरी जिम्मेदारी है.’’

हाथ थामने से राधा के शरीर में भी हलचल पैदा हो गई थी. कल्लन के हाथों की हरकत बढ़ने लगी थी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों बेकाबू हो गए और अपनी हसरत पूरी कर के ही माने.

कल्लन ने राधा की सोई हुई भावनाओं को जगाया तो उस ने देह सुख की खातिर सारी नैतिकताओं को ठेंगा दिखा दिया. कल्लन और राधा के अवैध संबंध बने तो फिर बारबार दोहराए जाने लगे.

राधा को कल्लन के पैसों का लालच तो था ही, अब वह उस से खुल कर पैसे मांगने लगी. कल्लन चूंकि उस के जिस्म का लुत्फ उठा चुका था, इसलिए पैसे देने में कोई गुरेज नहीं करता था. इस तरह एक तरफ राधा की दैहिक जरूरतें पूरी होने लगी थीं तो दूसरी तरफ कल्लन उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करने लगा था. काफी अरसे बाद राधा की जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे थे.

डलमऊ के शेरंदाजपुर मोहल्ले में कल्लन के पड़ोस में मदनलाल तिवारी का परिवार रहता था. मदनलाल पूर्व सैनिक थे. वह सन 2003 में सेना से रिटायर हुए थे. परिवार में उन की पत्नी अनीता के अलावा एक बेटी व 3 बेटे प्रांशु, अजीत और बऊआ थे.

20 वर्षीय प्रांशु बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. उस की और कल्लन की अच्छी दोस्ती थी. दोनों साथ खातेपीते थे.

एक दिन शराब के नशे में कल्लन ने प्रांशु को अपने और राधा के संबंधों के बारे में बता दिया. यह सुन कर प्रांशु चौंका. यह उस के लिए चिराग तले अंधेरा वाली बात थी.

कुंवारा प्रांशु किसी भी औरत के सान्निध्य के लिए तरस रहा था. राधा की हकीकत पता चली तो उसे अपनी मुराद पूरी होती दिखाई दी. राधा अपने शबाब का दरिया बहा रही थी और उसे खबर तक नहीं थी. वह भी राधा से बखूबी परिचित था.

प्रांशु के दिमाग में तरहतरह के विचार आने लगे. वह सोचने लगा कि जब कल्लन राधा के साथ रातें रंगीन कर सकता है तो वह क्यों नहीं.

अगले दिन प्रांशु कल्लन से मिला तो बोला, ‘‘तुम राधा से मेरे भी संबंध बनवाओ, नहीं तो मैं तुम्हारे संबंधों की बात पूरे गांव में फैला दूंगा.’’

कल्लन का राधा से कोई दिली लगाव तो था नहीं, वह तो उस की वासना की पूर्ति का साधन मात्र थी. उसे दोस्त के साथ बांटने में कोई परेशानी नहीं थी. वैसे भी प्रांशु का मुंह बंद करना जरूरी था.

इसलिए उस ने राधा को प्रांशु की शर्त बताते हुए समझाया, ‘‘देखो राधा, अगर हम ने उस की बात नहीं मानी तो वह हमारी पोल खोल देगा. पूरे गांव में हमारी बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम्हें उसे खुश करना ही पड़ेगा.’’

राधा के लिए जैसा कल्लन था, वैसा ही प्रांशु भी था. उस ने हां कर दी. इस बातचीत के बाद कल्लन ने यह बात प्रांशु को बता दी. फलस्वरूप वह उसी दिन शाम को राधा के घर पहुंच गया. दोनों पहले से ही बखूबी परिचित थे, दोनों में बातें भी होती थीं.

सारी बातें चूंकि पहले से तय थीं, इसलिए दोनों के बीच अब तक बनी संकोच की दीवार गिरते देर नहीं लगी. प्रांशु से शारीरिक संबंध बने तो राधा को एक अलग तरह की सुखद अनुभूति हुई. प्रांशु कल्लन से अधिक सुंदर, स्वस्थ था और बिस्तर पर खेले जाने वाले खेल का भी जबरदस्त खिलाड़ी था.

जोश में भी वह होश व संयम से खेल को देर तक खेलता था. जबकि कल्लन इस के ठीक विपरीत था.

राधा की ख्वाहिशों का उसे बिलकुल भी ख्याल नहीं रहता था. ऐसे में राधा प्रांशु के ज्यादा नजदीक आने लगी और कल्लन से दूरी बनाने लगी. प्रांशु के संपर्क में आने के बाद वह कल्लन को और उस के अहसानों को भूलने लगी.

कल्लन को भी समझते देर नहीं लगी कि राधा प्रांशु की वजह से उस से दूरी बना रही है. यह बात उसे अखरने लगी. राधा को फंसाने की सारी मेहनत उस ने की और प्रांशु बिना किसी मेहनत के फल खा रहा था. इस बात को ले कर प्रांशु और कल्लन में मनमुटाव रहने लगा.

इसी बीच कल्लन का रोड एक्सीडेंट हो गया और उस के एक पैर में फ्रैक्चर हो गया. जब उस का प्रांशु से विवाद हुआ तो प्रांशु ने कल्लन से कहा कि वह उस की दूसरी टांग भी तुड़वा देगा. कल्लन को उस की यह धमकी चुभ गई. इस के बाद उस ने कांटा बने प्रांशु को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

कल्लन की दोस्ती डलमऊ के ही मोहल्ला टिकैतगंज में रहने वाले शातिर अपराधी पिंटू जोशी और पप्पू उर्फ गिरीश जोशी से थी. ये दोनों प्रांशु के भी दोस्त थे.

कल्लन ने पिंटू जोशी से प्रांशु की हत्या करने को कहा. उस ने हत्या की एवज में 25 हजार रुपए देने की बात भी कही. पिंटू तो अपराधी था ही, इसलिए वह प्रांशु की हत्या करने को तैयार हो गया. उस की सहमति के बाद कल्लन ने सुपारी की रकम के आधे पैसे यानी साढ़े 12 हजार रुपए पिंटू को दे दिए.

पिंटू ने पप्पू के साथसाथ इस योजना में भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार को भी शामिल कर लिया. चारों ने मिल कर प्रांशु की हत्या की योजना बनाई.

24 फरवरी की शाम 7 बजे पिंटू और पप्पू जोशी कल्लन की बाइक से प्रांशु के घर पहुंचे. पार्टी देने की बात कह कर वे प्रांशु को सुरजीपुर ले गए.

वहां ये लोग शराब के ठेके के पीछे खाली पड़े मैदान में पहुंचे तो वहां कल्लन और राजकुमार पहले से मौजूद थे. सब ने वहां बैठ कर शराब पी और खाना खाया गया. पिंटू कल्लन और प्रांशु के बीच सुलह कराने का नाटक करते हुए प्रांशु को मनाने लगा. इस बात पर प्रांशु और कल्लन के बीच देर रात तक बहस चलती रही. फिर प्रांशु के शराब के नशे में होने पर सब ने मिल कर क्लच वायर से गला कस कर उस की हत्या कर दी.

पिंटू और पप्पू कल्लन की बाइक पर प्रांशु की लाश रख कर उसे गुरदीप का पुरवा में गंगाघाट के किनारे ले गए. उन्होंने उस की लाश फेंक दी और फरार हो गए. घटना के बाद से सभी अपने घरों से फरार हो गए थे. लेकिन मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिए गए.

पुलिस ने अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हीरो बाइक नंबर यूपी33क्यू 6990 भी बरामद कर ली. हत्या में प्रयुक्त क्लच वायर भी बरामद कर लिया गया. फिर आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक अभियुक्त राजकुमार को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चार राज्यों तक फैले खून के छींटे – भाग 2

दीप्ति के फेसबुक अकांउट में तो पुलिस को ऐसा कोई संदिग्ध नहीं मिला, जिस से कातिल तब पहुंचने में मदद मिलती. लेकिन फेसबुक की जांचपड़ताल में यह जरूर पता चला कि दीप्ति का फेसबुक अकाउंट आखिरी बार 29 नवंबर को अपडेट हुआ था. उस दिन दीप्ति ने ही एक मैसेज डाला था. इस से पहले उस ने 27 नवंबर को दिमाग अपसेट होने का एक मैसेज डाला था.

इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि संभवत: वह अपनी मां की मौत के बाद काफी दुखी रही होगी. पुलिस को अंदेशा हुआ कि कोई परिचित व्यक्ति दीप्ति की इस स्थिति का फायदा उठाना चाह रहा होगा.

धारूहेड़ा पुलिस दीप्ति की हत्या की गुत्थी सुलझाने में बुरी तरह उलझ कर रह गई थी. उस की हत्या किस कारण से की गई और वह दिल्ली से धारूहेड़ा कैसे पहुंची, इस का अभी तक पता नहीं चला पाया था. हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिला था. यह खुलासा भी नहीं हो पाया था कि उस की हत्या दिल्ली में की गई थी या हरियाणा में.

अभी पुलिस प्रयासों में जुटी ही थी कि 11 दिसंबर की शाम को रेवाड़ी जिले की एसएसपी नाजनीन भसीन के पास सूरत पुलिस के एक उच्चाधिकारी का फोन आया, जिन्होंने बताया कि सूरत के थाना सरथाना की पुलिस ने हेमंत लांबा नाम के शख्स को गिरफ्तार किया है, जिस ने एक टैक्सी चालक तथा दिल्ली में रहने वाली अपनी प्रेमिका दीप्ति की हत्या करने का जुर्म कबूल किया है.

पकड़े गए युवक ने पुलिस को बताया है कि दीप्ति की हत्या कर के उस ने शव को धारूहेड़ा इलाके में फेंक दिया था.  पूरी जानकारी मिलने के बाद रेवाड़ी एसएसपी को दीप्ति हत्याकांड से जुड़ी तमाम बातें याद आ गईं.

उन्होंने सूरत के पुलिस अधिकारी को आवश्यक जानकारी दे कर अपनी टीम के तत्काल सूरत पहुंचने का आश्वासन दिया.

उसी दिन उन्होंने पुलिस हैडक्वार्टर से डीएसपी हंसराज के साथ इंसपेक्टर सुधीर कुमार को सूरत रवाना कर दिया. देर रात तक रेवाड़ी से गई पुलिस टीम सड़क के रास्ते सफर तय कर के सूरत के पुलिस स्टेशन सरथाना पहुंच गई, जहां उन्होंने एसएचओ टी.आर. चौधरी से मुलाकात की.

बातचीत में पता चला कि जिस हेमंत लांबा को पुलिस ने पकड़ा है, उस ने केवल दीप्ति की ही हत्या नहीं की, बल्कि इस चक्कर में उस ने एक और हत्या को भी अंजाम दिया था.

34 वर्षीय हेमंत लांबा को इंसपेक्टर सुधीर कुमार के समक्ष लाया गया, तो वह उसे देख कर चौंक पड़े, क्योंकि वह कोई साधारण इंसान नहीं, बल्कि बेहद आकर्षक व्यक्तित्व  का मालिक था. पुलिस ने उस से सूरत में ही पूछताछ शुरू कर दी.

हेमंत लांबा फिटनैस इंडस्ट्री का जानामाना नाम था. उस की पहचान एक बौडी बिल्डर व फिटनैस एक्सपर्ट के तौर पर होती थी. वह नैशनल अवार्डी बीटेक सिविल इंजीनियर था. वह बौडी स्टेरोन हेल्थकेयर प्रा. लि. दिल्ली का चेयरमैन व बौडी स्टेरोन नैशनल बौडी बिल्डिंग ऐंड स्पोर्ट्स फेडरेशन का राष्ट्रीय महासचिव भी था. उस ने लार्जस्ट स्पोर्ट्स ऐंड फिटनैस चैंपियनशिप का आयोजन भी किया था.

इस के अलावा वह लांबा ग्रुप औफ इंडस्ट्रीज का चेयरमैन भी था. हेमंत लांबा उत्तम नगर, दिल्ली के विश्वास पार्क निवासी एक समृद्ध परिवार का युवक था. नामचीन आदमी होने के साथ वह अय्याश भी था.

वह लड़कियों को कपड़े की तरह बदलता था. 3 महीने पहले हेमंत और दीप्ति की जानपहचान फेसबुक के जरिए हुई थी. जल्द ही दोनों की मेलमुलाकातें होने लगीं और दोनों एकदूसरे पर जान छिड़कने लगे. दोनों अक्सर साथ घूमते, होटलों में खाना खाते और साथसाथ शौपिंग करते. हेमंत ने उस से शादी करने का वादा किया था.

पिछले कुछ दिनों से दीप्ति हेमंत पर दबाव बना रही थी कि वह उसे कहीं घुमाने के लिए ले चले. दीप्ति की इसी जिद के कारण 6 दिसंबर को हेमंत ने उसे फोन कर के कहा कि आज वह उसे लौंग ड्राइव पर ले जाना चाहता है. सुन कर दीप्ति खुश हुई.

6 दिसंबर को वह दीप्ति को घुमाने के बहाने अपनी अकोर्ड गाड़ी में ले कर निकला. दिन भर दोनों इधरउधर साथ घूमते रहे. हमेशा की तरह एक बार फिर दीप्ति ने हेमंत से शादी करने की ख्वाहिश जताई तो हेमंत ने कहा कि वह जल्द ही उस की ये ख्वाहिश पूरी करेगा.

उस दिन दोनों बेहद खुश थे. शाम को जब दीप्ति ने घर चलने के लिए कहा तो हेमंत बोला कि जब लौंग ड्राइव पर निकले हैं तो घर जाने की क्या जल्दी है. अभी तो रात बाकी है. चलते हैं कहीं दिल्ली से दूर.

कहते हुए हेमंत ने गाड़ी गुड़गांव की तरफ मोड़ दी. शाम का धुंधलका शुरू होते ही हेमंत ने शराब और बीयर की बोतलें ले लीं. फिर 2-3 घंटे तक इधरउधर गाड़ी घुमाते हुए हेमंत खुद भी शराब के पैग लेता रहा और दीप्ति को भी 2-3 बीयर के कैन पिला दिए.

रात के करीब 10 बजे जब हेमंत और दीप्ति दोनों पर शराब का अच्छाखासा सुरूर छा गया, तो हेमंत ने गुड़गांव के पास एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोक दी.

सुनसान जगह देख हेमंत ने दीप्ति को अपनी लाइसैंसी रिवौल्वर से एक के बाद एक 2 गोली मार कर उस की हत्या कर दी. हत्या के बाद उस ने शव को डिक्की में डाला और अगली सीट पर फैले खून को कपडे़ व पानी से साफ कर दिया. इस के बाद उस ने कार धारूहेड़ा की तरफ बढ़ा दी.

रात करीब 11 बजे उस ने नंदरामपुर बास रोड पर एक सुनसान जगह देख गाड़ी रोकी और दीप्ति का शव डिक्की से निकाल कर खाली प्लौट में एक फेंक दिया. दीप्ति का मोबाइल उस ने अपनी जेब में डाल लिया था. दीप्ति का शव फेंकने के बाद हेमंत वापस दिल्ली लौट आया.

दिल्ली आ कर उस ने हत्या में इस्तेमाल की गई अपनी गाड़ी को 6 दिसंबर की रात में ही एक डीलर को बेचने की कोशिश की, लेकिन गाड़ी नहीं बिकी तो वह मायापुरी पहुंचा. वहां उस ने रात को 1 बजे गाड़ी एक कबाड़ी को बेच दी. गाड़ी बेचने से हेमंत की जेब में बड़ी रकम आ गई थी.

रात करीब ढाई बजे हेमंत ने अपने साथ लाए दीप्ति के फोन से जयपुर के लिए ओला कैब बुक की. जनकपुरी का रहने वाला कैब चालक देवेंद्र सिंह अपनी इनोवा गाड़ी से हेमंत को ले कर जयपुर की ओर चल पड़ा.

रास्ते में करीब 4 बजे हेमंत ने दीप्ति के मोबाइल से उस के पिता के मोबाइल नंबर पर दीप्ति की तरफ से वाट्सऐप मैसेज किया कि वह ठीक है.

सुबह करीब 9 बजे हेमंत जयपुर पहुंचा और वहां के एक होटल में ठहर गया. वहां उस ने वाईफाई के जरिए दीप्ति के मोबाइल पर इंटरनेट चलाया तो उसे सोशल मीडिया पर चल रही खबरों के जरिए पता चला कि धारूहेड़ा पुलिस ने दीप्ति का शव बरामद कर लिया है और उस की पहचान भी हो चुकी है.

इस से हेमंत को लगा कि अब पुलिस जल्द ही यह भी पता लगा लेगी कि दीप्ति की हत्या  किस ने की है. उसे लगा कि अब पुलिस उस तक पहुंच जाएगी.

हाईटैक होता देह धंधा : शहरी चकाचौंध और ग्लैमर ने बदले मायने

शहरी चकाचौंध और ग्लैमर ने आज देह धंधे के माने ही बदल दिए हैं. यह काफी हाईटैक हो गया है. देश में आज तकरीबन 1370 रैडलाइट एरिया हैं. इन में सब से ज्यादा देह धंधे वाला एरिया कोलकाता और मुंबई का है. अकेले मुंबई रैडलाइट एरिया का ही करोड़ों रुपए का साप्ताहिक आंकड़ा है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश और ओडिशा ऐसे राज्य हैं, जहां देह धंधे की प्रथा का लंबा इतिहास रहा है. जयपुर ‘सवारियों’ के खेल में काफी तरक्की कर रहा है. इस वजह से गरम गोश्त के बेचने वालों की बांछें खिलती जा रही हैं.

प्रशासन या राज्य ने इस ओर इसलिए भी अपनी आंखें बंद कर रखी हैं, क्योंकि उन का इस से करीबी ताल्लुक है. आखिरकार नेताओं और अफसरों की मौजमस्ती का भी तो सवाल है.

राजस्थान का कोई भी शहर इस गरम गोश्त के कारोबार से अछूता नहीं है. इन इलाकों में ज्यादातर ‘सवारियों’ का धंधा होता है. या यों कहें कि इधर इस धंधे की खास क्वालिटी है, जिस का नाम ‘सवारी’ दिया गया है. यानी वे औरतें जिन्हें इस शहर से उस शहर में जिस्म के भिखारियों के आगे भेजा जाता है. जिस औरत का इस्तेमाल लोकल लैवल पर किया जाता है, उसे ‘गाड़ी’ कहते हैं. राजस्थान में जहां ‘सवारियों’ का ज्यादा काम होता है, वे इलाके हैं जयपुर, कोटा, अलवर, डूंगरपुर, किशनगढ़, जोधपुर, गंगानगर, नागौर, जैसलमेर और सीकर. बाकी इलाकोें में ‘गाडि़यों’ और ‘सवारियों’ का खूब कारोबार होता है.

ये बातें देश के तमाम रैडलाइट एरिया में पिछले 3 सालों से रिसर्च कर रहे एक पत्रकार, लेखक मोहम्मद जावेद अनवर सिद्दीकी के आंकड़ों से हासिल हुई हैं.

‘सवारियों’ और ‘गाडि़यों’ के इस नायाब कारोबार से अजमेर भी अछूता नहीं रहा है. यहां गरम गोश्त के कारोबारी भी अपनी ‘सवारियों’ और ‘गाडि़यों’ के लिए मन्नतें मांगने आते हैं, क्योंकि यहां हर किसी की मुरादें पूरी होती हैं.

पिछले 4 साल से अख्तरी बेगम (बदला हुआ नाम) ‘सवारियों’ को लाने और उन्हें सफर पर भेजने तक का सारा कारोबार करती है. उस के पास दलाल माल ला कर बेचते हैं और ज्यादातर वह ट्रेनिंग पाई ‘सवारियों’ का ही कारोबार करती है.

अख्तरी बेगम का कहना है कि इस कारोबार में काहिल और बीमार हों, तब भी औरतें ‘सवारी’ पर जाती हैं और ‘गाडि़यों’ का काम शौकिया और पार्टटाइम कमाने वाली औरतों के लिए है. लेकिन धंधा चाहे ‘सवारी’ का हो या ‘गाड़ी’ का, एक बार जो औरत इस राह पर आ जाती है, उस का अंत उम्र ढल जाने के बाद या तो फुटपाथ पर पागलों की शक्ल में या कहीं दलालों के साथ कमीशनखोर के लैवल पर जा कर खत्म होता है. वे न तो मां रह पाती हैं, न बीवी, न बेटी और न बहन.

अजमेर और जयपुर में ज्यादातर ‘सवारियों’ को विदेश भेजा जाता है. विदेशों से आने वाले, जिन्हें यहां का गरम गोश्त भा जाता है, अपने देश में हमारे यहां से अपनी रातें रंगीन करने का सामान मंगाना ज्यादा पसंद करते हैं.

जाहिर है, इस कारोबार का रुतबा भी कम लुभावना नहीं होगा. इस में मोटी कमाई तो होती ही है, ज्यादा खतरा भी नहीं रहता. बस, अच्छी ‘सवारियों’ को इकट्ठा करना और उन्हें विदेशी भूखों के हवाले कर देना, बाकी वे जानें और उन का काम. उसे तो बस हवाईजहाज तक ले जाने की जिम्मेदारी निभानी होती है.

एक ‘सवारी’ से जो कारोबार का ग्राफ बनता है, जरा उस पर भी गौर करें. अमूमन देश के अलगअलग इलाकों से 12 साल से 21 साल की उम्र की लड़कियों को ‘सवारी’ के लिए चुन कर लाया जाता है.

आमतौर पर गरम गोश्त के विदेशी ग्राहक हमारे यहां के सौदागरों को अपनी पसंद और बजट भेजते हैं और उन्हें उन की पसंद की ‘सवारियां’ मुहैया करा दी जाती हैं. उन ‘सवारियों’ को विदेशों में काम के बहाने भेजा जाता है. कुछ ‘सवारियां’, जो पहली बार इस धंधे में आती हैं, उन्हें विदेश जा कर मोटी कमाई का लालच दे कर इस दलदल में उतार दिया जाता है.

‘सवारी’ एक बार विदेश क्या गई, उस का सबकुछ या तो लुट जाता है या फिर मिजाज ही ऐसा बन जाता है कि चाहत ही नहीं होती इस धंधे से बाहर आने की. जब तक हुस्न का जलवा रहता है, ‘सवारियां’ उड़नछू होती रहती हैं, फिर उम्र ढलने तक इतनी सोच उन में आ जाती है कि उन्हें इस कारोबार की सारी जानकारी हो जाती है और या तो वे इस कारोबार की रानी बन जाती हैं या अपनी जिंदगी अलगथलग काटने पर मजबूर हो जाती हैं.

राजस्थान से जो ‘सवारियां’ जाती हैं, वे काफी सैक्सी और कम उम्र की गठीली बालाएं होती हैं. जब वे सजतीसंवरती हैं, तो सचमुच बेहोश कर देती हैं. उन का भाव भी सब से ज्यादा होता है. खाड़ी देशों के गरम गोश्त के भूखे उन्हें देखते ही कुछ भी लुटाने को तैयार हो जाते हैं.

‘सवारियों’ में कुंआरियों का होना ही जरूरी नहीं है. इन में शादीशुदा भी होती हैं, जिन के मर्द इस बात से अनजान नहीं होते हैं कि उन की पटरानी किसी पराए मर्द की रातें रंगीन करने विदेश जा रही हैं. रही बात वीजा की, तो इस में भी कोई मुश्किल नहीं होती है.

औरतों को इन अंधी गलियों में धकेलने वाले कई देशों में फैले गिरोहों के लोगों द्वारा इन की सभी जरूरतें पूरी कर दी जाती हैं.

चांदी (बदला हुआ नाम) बताती है कि उसे एक ट्रक ड्राइवर से प्यार हो गया था. उस ने बड़ेबड़े सपने दिखाए थे और वह उस के साथ भाग आई अपने बंगाल से अजमेर. मांबाप, भाईबहन सब थे, मगर दुनिया की रंगीनियत देख कर वह बहक गई. पति था तो, लेकिन मनमौजी. वह भी कहीं कामधाम नहीं करता था और ऊपर से उसे मारतापीटता भी था.

सब से बड़ी बात तो यह थी कि उस मर्द से देह सुख भी चांदी को नहीं मिलता था. उस की सखीसहेलियां अपने पति की बातें उसे बताती रहती थीं, तो बेचारी चांदी सिसक कर रह जाती थी. शायद इसी कमजोरी को भांप गया था वह ट्रक ड्राइवर.

ट्रक ड्राइवर ने चांदी को खूब भोगा. उसी दौरान चांदी को मिल गई रजिया. रजिया ‘सवारियों’ को खाड़ी देशों में भेजने की ठेकेदार थी. उस ने उसे सारी बातें खूब समझा कर बताईं, जिसे सुन कर चांदी की समझमें बस इतनी बात आई कि अगर एक बार वह ‘सवारी’ बन गई, तो जिंदगीभर मौज से कटेगी. फिर तो अपने बापभाई को भी वह तार देगी. मायके की गरीबी छूमंतर हो जाएगी. उस ने ‘सवारी’ बन जाना कबूल कर लिया और दुबई चली गई.

बंगाल से दिल्ली, दिल्ली से जयपुर और जयपुर से अजमेर, इन तमाम जगहों पर लोगों ने चांदी को खूब भोगा और फिर वह दुबई चली गई. उस के साथ पहली बार दुबई जाने वाली एक और औरत थी. उस औरत के बारे में बताया गया कि वह अब तक अपने ही देश में जो विदेशी लोग आते हैं, उन को खुश करने होटलों में जाती रही है. सो, उसे उन लोगों के साथ रात बिताने की पूरी जानकारी है.

उस औरत के साथ चांदी को दुबई में एक होटल में ठहराया गया था. रोज सुबह उसी होटल में एक गाड़ी आ जाती थी, जो उसे ले कर शेखों के हरम तक पहुंचा आती थी.

शेख रातभर चांदी को खूब नोचखसोट कर सुबह तक तकरीबन बेहोशी की हालत में छोड़ दिया करते थे. फिर वही गाड़ी आती थी, जो उसे होटल में छोड़ आती थी.

होटल में आ कर जब चांदी को कुछ होश आता, तो अपनी ही अंटी में से पैसे जो उसे रात को शेख से मिलते थे, होटल और गाड़ी वाले को देने होते थे. वह खापी कर कुछ देर आराम करती और तब तक फिर से दूसरी रात के लिए बुकिंग आ जाती थी.

इस तरह एक साल बीत गया और उस ने 19 हजार रियाल जमा कर लिए.

कुछ और पैसों के लालच में चांदी ने अपने एजेंटों से बात की, तो उस ने उसे वीजा के लिए किसी के बारे में बताया, लेकिन फिर क्या हुआ उसे पता ही नहीं, क्योंकि उसे जब उस रात शेख ने नोचने की शुरुआत की तो वह इतना वहशियाना था कि बेचारी बेहोश हो गई और जब होश में आई तो हवाईजहाज में थी. फिर दिल्ली में आ पहुंची.

अब वह ऐसा काम नहीं करेगी, इतना सोचते हुए बाहर आई. एयरपोर्ट पर एक गाड़ी खड़ी थी, जिस में चांदी को उस के एजेंट के आदमी बिठा ले गए. वह कुछ सोच पाती, उस से पहले उस के सपनों ने दम तोड़ दिया.

‘हिंदुस्तान के प्रमुख देह व्यापार और उस के बदलते परिदृश्य’ विषय पर रिसर्च करने वाले मोहम्मद जावेद अनवर सिद्दीकी ने जयपुर, अलवर, कोटा, नागौर, गंगानगर, जोधपुर, बीकानेर, अजमेर, सीकर, बाड़मेर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक, हनुमानगढ़, भरतपुर, बूंदी और बांसवाड़ा में जा कर सभी रैडलाइट इलाकों की छानबीन की.

इस से जो खास बातें सामने आई हैं, उन के मुताबिक पूरे देश में राजस्थान तीसरा ऐसा प्रमुख राज्य है, जहां से देश के बाहर ‘सवारियां’ भेजने का कारोबार होता है.

यह चौंकाने वाली बात है कि अगर सरकार देह व्यापार की मंडियों से टैक्स वसूल करने लगे, तो अकेला यह व्यापार देश की तमाम पंचवर्षीय योजनाओं को पूरा करने के लिए काफी है.

कोटा, राजस्थान की 2 पढ़ीलिखी सहेलियां रूबी और सविता (बदला हुआ नाम) पिछले 5 साल से जिस्मफरोशी का धंधा कर रही हैं. अब वे पछतावा नहीं कर रही हैं, बल्कि कहती हैं कि इतनी रईसी क्या बाहर मिलेगी?

बनारस से धंधे की शुरुआत करते हुए इन दोनों ने अब तक 3 बार ‘सवारी’ का सफर पूरा किया है. अब तो वे अपने ही देश में रह कर इस धंधे को अंजाम दे रही हैं. जिस्म की खरीदफरोख्त का काम अब बदनाम बस्तियों से होते हुए राज्य के गंवई इलाकों के घरों की चौखट तक को पार कर गया है. माहौल ऐसा बन गया है कि लोग अपनी पत्नी, सौतेली या कमजोर बहन, भांजी या दूसरी औरतों को गरम गोश्त की गलियों में खुद भेजते हैं, जिस के एवज में बैठेबिठाए बेहतर आमदनी हो जाती है.

यह बात भी कम चौंकाने वाली नहीं है कि कहींकहीं नौकरी की जरूरत ने भी कमसिन लड़कियों को जिस्म की तस्करी में फंसा दिया है.

साल 2015 में दिल्ली पुलिस ने नौकरी का झांसा दे कर जिस्मफरोशी के जाल में फांस कर गांव की औरतों और जवान होती कमसिन बालिकाओं को अरब देशों में बेचने वाले एक गिरोह का परदाफाश किया था. इस में 80 फीसदी राजस्थान की थीं, जो अपने घरबार की गरीबी, भुखमरी से जूझते लाचार मांबाप और कुपोषण की शिकार भाईबहनों की खातिर नौकरी करने घर से बाहर निकल गई थीं.

दिल्ली में पकड़े गए गरम गोश्त के सौदागरों ने जाहिर किया कि वे राजस्थान के जयपुर, अजमेर, ब्यावर और अलवर इलाकों से गांव की लड़कियों और औरतों को नौकरी का झांसा दे कर अपने जाल में लपेट लेते थे. इन अबलाओं को दिल्ली में सब से पहले इस गहरी अंधेर नगरी से रूबरू कराया जाता है, फिर कुछ खास गुर बताते हुए इस पेशे में उतार दिया जाता है.

कभी एकएक दाने को मुहताज जयपुर बाजार के तंग महल्ले के टूटेफूटे मकान में रहने वाली शायरा (बदला हुआ नाम) ने 40 लाख रुपए में एक मकान खरीद कर लोगों को चौंका दिया.

इस की खबर पुलिस को भी मिली, तो उस ने फौरन शायरा को दबोच लिया और उस के बाद यह राज खुला कि शायरा ‘सवारियों’ की कारोबारियों में से एक है.

जयपुर और अजमेर से शायरा महिला डांस म्यूजिकल ग्रुप की आड़ में गांवों से लाई गई बेबस लड़की को विदेश भेजने का काम करती थी. किराए के गुंडेमवालियों के बल पर वह एक शातिर कारोबारी बन गई थी. आज डांस स्कूल और म्यूजिकल ग्रुप की आड़ में राजस्थान के कई इलाकों में जिस्मफरोशी का काम चल रहा है. हकीकत यह है कि अजमेर इन दिनों इस धंधे की खास मंडी बना हुआ है.

मास्टरमाइंड और सब से बड़े रेगिस्तानी कारोबारी के रूप में सलाम उर्फ टोपीबाज का नाम सामने आया है. सलाम खुद तो मुंबई में रहता है, लेकिन जयपुर और अजमेर में इस के 3 खास एजेंट काम संभालते हैं.

इन एजेंटों के साथ उन की खास सैक्रेटरी की हैसियत से एकएक औरत भी रहती है. इन को एरिया में घूम रहे दलाल और सड़कछाप गुंडों के जरीए माल मिलता है. बताते हैं कि सलाम का नैटवर्क पिछले 10-12 सालों से चल रहा है. इस पर हाथ क्या नजर तक उठाने के लिए पुलिस को कई बार सोचना पड़ता है.

चाहे सलाम मुंबई में रहे या अजमेरजयपुर में, उस का नैटवर्क अब इतना तगड़ा हो गया है कि किसी भी तरह की अड़चन इस के कारोबार को डिस्टर्ब नहीं कर सकती है.

अब तो सलाम ने अपना कारोबार कंप्यूटराइज्ड कर लिया है. इंटरनैट या मोबाइल फोन पर ही सारा काम निबटा लिया जाता है.

जिस्म के सौदागरों का काम करने का तरीका भी कुछ अजीब सा है. ये देहात से लाई गई लड़कियों को डांस की टे्रनिंग देते हैं. उन के घर वालों को कहा जाता है कि उन की लाड़ली को विदेश में काम करने के लिए ले जा रहे हैं, जहां ये बहुत सारा रुपया कमा सकेंगी. मांबाप इजाजत देने से गुरेज नहीं करते, फिर उन्हें 20-25 हजार रुपए थमा दिए जाते हैं, जो उन्हें गरीबी के अंधेरे में किसी चांद से कम नहीं लगते. उन से यह भी कहा जाता है कि उन की बेटी विदेश से उन्हें मोटी रकम भेजती रहेगी. जब ये मासूम लड़कियां डांस की कुछ टे्रनिंग ले कर अरब देशों की जमीन पर उतार दी जाती हैं, तब जा कर इन्हें पता चलता है कि इन की मासूमियत को यहां शेखों की बांहों में मसला जाएगा.

क्या कोई बता सकता है कि लोग चंद सिक्कों में जो मासूम देह खरीदते हैं, वे आती कहां से हैं और कैसे?

इस सवाल का जवाब मिलेगा पश्चिम बंगाल के बागानों से, उत्तरपूर्व के पहाड़ों से, कश्मीर की सुनहरी वादियों से, दक्षिण भारत के समुद्री घाटों से और नेपाल के गांवों से. मुंबई के कमाठीपुरा, फारस रोड, फाकलैंड रोड और पीला हाउस जैसे इलाकों में हर महीने सैकड़ों नई नाबालिग लड़कियां पहुंचाई जाती हैं.

गरीबी की चक्की में पिसती ये भोलीभाली 10 से 12 साल की मासूम लड़कियों ने सिर्फ इतनी ही गलती की थी कि उन्होंने अपने लिए एक बेहतर जिंदगी का सपना देख लिया था. कई तो परिवार की सताई हुई होती हैं, कई दुबई जा कर खूब ज्यादा पैसा कमाने की तमन्ना लिए होती हैं, कइयों को मुंबई आ कर फिल्मी सितारे से शादी करनी होती है या खुद हीरोइन बनने का सपना देख रही होती हैं.

नेपाल बौर्डर पर तकरीबन हर थाने और सोनौली व भैरवाट्रांजिट कैंप में ऐसे बोर्ड लगे हैं, जिन पर नेपाल से गायब हुई ऐसी तमाम लड़कियों के फोटो चस्पां होते हैं, जिन्हें देह धंधे की भेंट चढ़ा दिया जाता है.

इन तथाकथित गुमशुदा नाबालिग और बालिग लड़कियों को कभी बरामद नहीं किया जा सका है, यह रिकौर्ड उन पुलिस थानों में मिल सकता है. अलबत्ता, उन में से तकरीबन 90 फीसदी लड़कियों के घर वाले जान चुके होते हैं कि उन की लाड़ली परदेश में पैसा कमा रही है. थानों में लगे पुराने फोटो उम्मीदों की तरह धुंधले भी होते जाते हैं.

मोईती, नेपाल के एक सदस्य के पास एक गांव का बाशिंदा आता है और अपनी पत्नी को किसी लोगों के द्वारा बहलाफुसला कर भगा ले जाने की बाबत शिकायत करता है, उस के बारे में जब तहकीकात की जाती है, तो पता चलता है कि उस की बीवी मुंबई में है और अच्छीखासी कमाई कर रही है. लिहाजा, उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है.

इस खबर के साथ बेचारे के हाथ में एक हजार रुपए थमा दिए जाते हैं और बताया जाता है कि अब हर महीने उसे उस की बीवी की ओर से 2 हजार रुपए मिलेंगे, सो वह अपनी जबान बंद ही रखे.

वह आदमी कुछ दिनों तक तो यों ही खोजता फिरा, फिर बाद में जब पता लगा कि उस की बीवी पुणे के बुधवारपेठ रैडलाइट इलाके में एक कोठे पर काजल नामक बाई के पास है, तो वह थाने से पुलिस के साथ चल पड़ा अपनी बीवी की छुड़ाने को. जुगत काम आई और पुलिस दस्ते ने उस की बीवी को सुरक्षित बरामद कर लिया. पुलिस ने उस की बीवी के साथ 5 नेपाली दलालों को भी पकड़ लिया.

कुछ गिरोह नेपाल के पहाड़ों और तराई में बसे गांवों की गरीब नाबालिग लड़कियों के जत्थे को मुंबई की देह मंडी में झोंक देते हैं. इस बारे में कोई तय आंकड़ा भी मुहैया नहीं है, जिस से पता चले कि कितनी लड़कियां हर साल नेपाल की तराइयों से ला कर मुंबई में बेच दी जाती हैं.

लेकिन सरकारी सूत्रों की अगर मानें, तो जाहिर होता है कि 4 से 5 हजार लड़कियों को बहलाफुसला कर नेपाल के रास्ते भारत की सब से बड़ी देह मंडी कमाठीपुरा में बेच दिया जाता है. इन में से 40 फीसदी बहलाफुसला कर, 30 फीसदी जबरन, जिस में उन के घर और रिश्तेनातेदारों की रजामंदी होती है. 30 फीसदी पैसे कमाने की खातिर इस दलदल में आती हैं.