एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत – भाग 1

जिला फर्रूखाबाद के थाना  मउ दरवाजा क्षेत्र में एक गांव है हथियापुर. इस के पास  कायमगंज रोड पर एक भट्ठा है, जिस का नाम है बजरंग भट्ठा. सुनसान जगह पर खेतों के बीच होने की वजह से भट्ठे के पास जरूरतमंद लोग ही आतेजाते हैं. भट्टे का मुनीम अरविंद कुमार सुबह को भट्ठे पर जाता है और कामकाज के बाद शाम को घर लौट आता है.

21 जुलाई 2014 को सुबह साढ़े 7 बजे जब अरविंद कुमार भट्ठे पर जा रहा था तो उस ने भट्ठे के पास के एक खेत में सिर कटी एक लाश पड़ी देखी. मृतक के शरीर पर केवल कच्छा बनियान था. अलबत्ता पास ही कुछ कपड़े जरूर पड़े थे. लाश देख कर अरविंद डर गया. उस ने उसी समय अपने मोबाइल से फोन कर के उस लाश से संबंधित सूचना थाना मउ दरवाजा को दे दी.

उस दिन सोमवार था, गंगा स्नान का दिन. थाना मउ दरवाजा के थानाप्रभारी राघवन सिंह पुलिस टीम के साथ घटियाघाट पर ड्यूटी के लिए गए हुए थे. थाने से उन के सीयूजी नंबर पर बजरंग भट्ठे के पास सिर कटी लाश पड़ी होने की सूचना दी गई.

खबर मिलते ही थानाप्रभारी राघवन सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. सिर कटी लाश लगभग 30 वर्षीय व्यक्ति की थी. उस के शरीर पर केवल कच्छा बनियान था. जबकि लाश के पास ही कुछ कपड़े पड़े हुए थे. पुलिस ने उन कपड़ों को देखा, तो लगा उन में एक जोड़ी कपड़े मृतक के रहे होंगे. बाकी कपड़ों को देख कर लग रहा था जैसे उन्हें किसी बैग वगैरह से निकाल कर वहां डाले गए हों.

राघवन सिंह ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने वे कपड़े मृतक के बैग से निकाल कर वहां डाल दिए होंगे और मय बैग के उस में रखा कीमती सामान अपने साथ ले गए होंगे. पुलिस ने उन कपड़ों की तलाशी ली तो एक एटीएम कार्ड के अलावा कुछ नहीं मिला. एटीएम कार्ड आईसीआईसीआई बैंक का था और उस पर धारक का नाम गौहर अली लिखा था. पुलिस ने आसपास के खेतों में मृतक का कटा सिर खोजने की काफी कोशिश की, लेकिन वह कहीं नहीं मिला.

प्राथमिक जांच के बाद पुलिस ने एटीएम कार्ड और कपड़े कब्जे में ले लिए और लाश का पंचनामा कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए फर्रूखाबाद मोर्चरी भिजवा दिया.

एटीएम कार्ड से मृतक का पता चल सकता था, इसलिए थाने लौट कर राघवन सिंह ने सब से पहले एटीएम कार्ड की जांच कराई. पता चला कि वह कार्ड जयपुर के मोहल्ला बदनापुरा निवासी गौहर अली के नाम पर था. बदनापुरा जयपुर के थाना गलता गेट क्षेत्र में आता था. राघवन सिंह ने थाना गलता गेट की पुलिस  से रिक्वेस्ट कर के गौहर अली के परिवार से संपर्क करने को कहा.

स्थानीय पुलिस ने मोहल्ला बदनापुरा जा कर संपर्क किया तो गौहर अली के पिता शौकत अली घर पर ही मिल गए. उन्हें फर्रूखाबाद की घटना के बारे में बता दिया गया. उन का बेटा गौहर अली फर्रूखाबाद गया हुआ था. हत्या की बात सुन कर पूरा परिवार सन्न रह गया. शौकत अली दूसरे बेटे अनवर अली और कुछ लोगों के साथ अगले दिन यानी 22 जुलाई को फर्रूखाबाद पहुंच गए.

शौकत अली ने लाश के कपड़े और मृतक के शरीर पर तिल व अन्य निशानों को देख कर उस की शिनाख्त अपने बेटे गौहर अली के रूप में कर दी. पूरा माजरा समझने के बाद उन्होंने थाने में एक लिखित तहरीर दी, जिस में उन्होंने पैसों के लेनदेन के विवाद की वजह से बेटे की हत्या का आरोप उस के दोस्त जावेद पर लगाया. जावेद फर्रूखाबाद के ही मोहल्ला खटकपुरा इज्जत खां में रहता था.

तहरीर के मुताबिक जावेद ने ही गौहर को फोन कर के फर्रूखाबाद बुलाया था. वह 19 जुलाई की सुबह पहुंचा था. उस दिन रात को वह जावेद के घर रुका.

अगले दिन 20 जुलाई को वह जावेद के साथ थाना फर्रूखाबाद की असगर रोड पर रहने वाले अपने मामा आफाक उर्फ हद्दू के यहां भी गया. उस के बाद ही रात में किसी वक्त जावेद ने किन्हीं लोगों के साथ मिल कर गौहर की हत्या की होगी.

थाना प्रभारी राघवन सिंह ने शौकत अली की लिखित तहरीर के आधार पर जावेद के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302 व 201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.पोस्टमार्टम हो चुका था. लिखापढ़ी कर के पुलिस ने गौहर की लाश उस के पिता शौकत को सुपुर्द कर दी. शौकत अली बेटे की लाश ले कर अपने पैतृक गांव राजापुर जनपद कन्नौज चले गए.

जावेद को अपने खिलाफ मुकदमा दर्ज होने की बात पता चली तो वह अपनी सफाई देने खुद मऊ दरवाजा थाने जा पहुंचा. थानाप्रभारी राघवन सिंह ने जावेद को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि 20 जुलाई रविवार की रात 8 बजे वह गौहर को बाइक पर बस अड्डे ले गया था. उस के साथ उस के मोहल्ले का ही कासिम भी था. उन्होंने गौहर को आगरा जाने वाली बस में बैठा दिया था.

बस रवाना होने से पहले ही गौहर ने उन दोनों को वापस भेज दिया था. गौहर भट्ठे के पास कैसे पहुंचा और उस की हत्या कैसे हुई, उसे नहीं पता. उस ने यह भी बताया कि जो बाइक उस के पास है वह उस ने जयपुर में गौहर के नाम से ली थी, लेकिन उस की किस्तें वह खुद भर रहा है. पैसे के लेनदेन के बारे में उस ने बताया कि गौहर के उस पर 5 हजार रुपए बाकी हैं. जावेद के अनुसार गौहर का असगर रोड निवासी कल्लू से किसी बात को ले कर विवाद चल रहा था.

थानाप्रभारी ने कल्लू से पूछताछ की, लेकिन उस की घटना में संलिप्तता का कोई सुराग नहीं मिला. उस क्षेत्र के लोगों से पूछताछ की गई तो पता चला कि घटना वाले दिन गौहर को जावेद व कासिम के साथ देखा गया था. इस का मतलब यह था कि जावेद पुलिस को बरगलाने की कोशिश कर रहा था. यह पता चलने के बाद जावेद से कई चरणों में सख्ती के साथ पूछताछ की गई. अंतत: उस ने सारा सच उगल दिया.

जावेद से हुई पूछताछ के बाद जो कहानी पता चली वह कुछ इस तरह थी.

शौकत अली उत्तर प्रदेश की इत्र नगरी कन्नौज के थाना सौरिख क्षेत्र के गांव राजापुर के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी रफीका बेगम के अलावा 2 बेटे और 3 बेटियां थीं.उन के सब से बड़े बेटे अनवार का निकाह शहाना परवीन से हो चुका था. दोनों की कोई संतान नहीं थी. गौहर उर्फ रिंकू अभी अविवाहित था. बेटियों में शफीका, जरीना और निशात थीं. इन में केवल शफीका ही विवाहित थी. शफीका की शादी लखनऊ निवासी रिजवान से हुई थी. वह जयपुर में रह कर जरदोजी का काम करता था.

शौकत के पास खेती की जमीन तो थी, लेकिन उस में खेती करने से कोई फायदा नहीं होता था. यह देख कर शौकत ने कुछ और करने की ठानी. उन के दोनों बेटे भी जवान और अपने पैरों पर खड़े होने लायक थे.उन का दामाद रिजवान पहले से ही जयपुर में था और जरदोजी के काम में अच्छाभला कमा लेता था.

शौकत ने जयपुर जा कर जरदोजी के काम में अपनी किस्मत आजमाने की सोची. 10 साल पहले वह जयपुर चले गए और वहीं दामाद के साथ रह कर जरदोजी का काम करने लगे. उन्होंने दोनों बेटों को भी इस काम में लगा दिया. इस तरह पूरा परिवार जयपुर में रहने लगा. पहले यह परिवार किराए के मकान में रहता था, बाद में शौकत ने गाल्टा गेट थाना क्षेत्र के बदनापुरा मोहल्ले में अपना मकान बनवा लिया.

सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर – भाग 1

मुरादाबाद के मोहल्ला वारसीनगर के रहने वाले रईस मंसूरी का इनवर्टर बनाने और उस की मरम्मत करने का काम था. उस का यह काम काफी अच्छा चल रहा था. 15 दिसंबर, 2015 को इनवर्टर लगवाने के लिए उस के दोस्त जमा खां के बेटे आलम ने फोन किया.

आलम शहर के ही मोहल्ला बखलान की चामुंडा वाली गली में रहता था. इनवर्टर लगाने के लिए वह रईस को 5 हजार रुपए पहले ही दे चुका था. लेकिन काम ज्यादा होने की वजह से रईस को आलम के यहां इनवर्टर लगाने का समय नहीं मिला था.

आलम ने 15 दिसंबर को रईस को फोन कर के अपने यहां जल्द इनवर्टर लगाने को कहा तो रईस ने उसे भरोसा दिया कि उसी दिन शाम को वह उस के यहां इनवर्टर जरूर लगा देगा. अपने वादे के अनुसार उसी दिन शाम को लगभग साढ़े 7 बजे रईस अपनी स्कूटी से आलम के घर के लिए निकला. आलम के घर जाने वाली बात उस ने अपनी पत्नी नुसरत को बता दी थी.

रईस को आलम के घर गए कई घंटे बीत गए. न तो वह लौटा और न ही उस ने फोन किया. इस से पहले जब कभी उसे देर होने लगती थी तो वह पत्नी को फोन कर देता था. घर आने में कितनी देर और लगेगी, यह जानने के लिए नुसरत ने फोन किया तो रईस का फोन बंद मिला.

नुसरत ने 2-3 बार पति को फोन किया, हर बार कंप्यूटर द्वारा फोन बंद होने की बात बताई गई. नुसरत परेशान हो गई कि उन्होंने फोन बंद क्यों कर दिया है? आधे घंटे बाद उस ने फिर फोन किया. इस बार भी फोन बंद मिला. पति से संपर्क न होने की बात उस ने अपने देवर अमीर को बताई. अमीर आलम को तो जानता ही था, उस ने उस का घर भी देखा था. अमीर भाई के बारे में पता लगाने आलम के घर पहुंचा.

पूछने पर आलम ने बताया कि वह तो इनवर्टर लगा कर 8 बजे ही चले गए थे. अमीर घर लौट आया. अमीर और नुसरत रईस के बारे में पता लगाने लगे, लेकिन कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली. रात भर दोनों परेशान होते रहे. सुबह होते ही रईस के घर वालों ने एक बार फिर उस की खोज शुरू कर दी. सभी रिश्तेदारों से फोन कर के उस के बारे में पूछा, लेकिन सभी ने कहा कि वह उन के यहां नहीं आया था.

जब कहीं से रईस के बारे में कुछ पता नहीं चला तो घर वाले चिंतित हो गए. 16 दिसंबर को अमीर हुसैन ने थाना मुरादाबाद पहुंच कर भाई रईस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. रईस के मामले में पुलिस कोई काररवाई करती, उस के पहले ही क्रिकेट खेलने वाले कुछ बच्चों ने रईस के बारे में पता कर लिया.

हुआ यह कि 16 दिसंबर की दोपहर को कुछ बच्चे शहर के किनारे से गुजरने वाली रामगंगा नदी के किनारे क्रिकेट खेल रहे थे. उन्हीं बच्चों में से किसी ने ऐसा शौट मारा कि गेंद पानी के किनारे जा कर गिरी. जैसे ही एक बच्चा गेंद लेने गया, उसे वहां एक आदमी का हाथ पड़ा दिखाई दिया. हाथ देख कर वह बच्चा डर गया और उस ने शोर मचा दिया.

शोर सुन कर सभी बच्चे वहां आ गए. हाथ देख कर बच्चे क्रिकेट खेलना भूल कर शोर मचाने लगे. इस के बाद आसपास के खेतों में काम करने वाले भी आ गए. सभी इस बात को ले कर परेशान थे कि यह कटा हाथ किस का हो सकता है? किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को इस की सूचना दे दी. वह इलाका थाना मुगलपुरा के तहत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना मुगलपुरा को दे दी गई.

खबर मिलते ही मुगलपुरा के थानाप्रभारी अनिल कुमार वर्मा एसएसआई मनोज कुमार सिंह और अन्य पुलिसकर्मियों को साथ ले कर रामगंगा नदी के किनारे पहुंच गए. हाथ के बालों को देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हाथ किसी आदमी का है. पुलिस को लगा कि इस हाथ को कुत्ता वगैरह यहां खींच कर ले आया है. लाश भी यहीं आसपास ही होगी.

पुलिस वाले लाश को इधरउधर तलाशने लगे. वहां से कुछ दूरी पर रामगंगा पर बने पुल के नीचे 4 बोरे मिले. पुलिस ने उन बोरों को खोला तो उन में से आदमी के कटे अंग निकले. लेकिन उस में सिर और एक हाथ नहीं मिला.

थानाप्रभारी ने यह सूचना एसएसपी नितिन तिवारी, एसपी (सिटी) डा. रामसुरेश यादव को दी तो दोनों पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने सिर और एक हाथ को आसपास बहुत ढूंढा, लेकिन वे नहीं मिले. शायद उन्हें कोई जंगली जानवर उठा ले गया था.

5 टुकड़ों में लाश मिलने की खबर थोड़ी देर में ही शहर में फैल गई. मीडिया वाले भी वहां पहुंच गए. एक दिन पहले ही थाना मुगलपुरा में रईस मंसूरी की गुमशुदगी दर्ज हुई थी. थानाप्रभारी ने गुमशुदगी वाला रजिस्टर चेक किया तो पता चला कि गुम हुए व्यक्ति की कदकाठी और हुलिया मरने वाले से मिल रहा था.

यह गुमशुदगी अमीर ने दर्ज कराई थी. अमीर का फोन नंबर लिखा ही था, थानाप्रभारी ने उस नंबर पर फोन कर के उसे बुला लिया. अनिल कुमार वर्मा से बात होने के बाद अमीर अपनी भाभी नुसरत को ले कर रामगंगा के किनारे पहुंच गया. हालांकि लाश का सिर नहीं था, इस के बावजूद कपड़ों से अमीर और नुसरत ने उस की शिनाख्त रईस मंसूरी की लाश के रूप में कर दी.

पति के शरीर के 5 टुकड़े देख कर नुसरत रोरो कर बेहोश हो गई. अमीर समझ नहीं पा रहा था कि उस के भाई की किसी से ऐसी क्या दुश्मनी थी कि उस की हत्या कर उसे इस तरह टुकड़ों में काट कर यहां फेंक गया. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि हत्यारों ने उस के गुप्तांग को काट डाला था. हत्या करने से पहले रईस ने शराब भी पी थी.

हत्या के इस सनसनीखेज मामले को सुलझाने के लिए एसएसपी ने एसपी (सिटी) डा. रामसुरेश यादव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम ने मृतक की पत्नी नुसरत और भाई अमीर से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रईस का किसी से कोई झगड़ा वगैरह नहीं था. उस दिन शाम को वह आलम के घर इनवर्टर लगाने गया था. उस के बाद नहीं आया.

एक और युग का अंत – भाग 1

महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर के थाना खकड़गंज के अंतर्गत आने वाली गुरुवंदन सोसायटी में रहने वाले डा. मुकेश चांडक के परिवार में पत्नी डा. प्रेमल चांडक के अलावा 2 बेटे ध्रुव और युग थे.

11 साल का ध्रुव छठवीं कक्षा में पढ़ता था तो 8 साल का युग तीसरी कक्षा में. मुकेश चांडक और प्रेमल चांडक दोनों ही दांतों के अच्छे डाक्टर थे, इसलिए उन की क्लिनिक भी बहुत अच्छी चलती थी.

उन की क्लिनिक भले ही सोसायटी से मात्र 5 मिनट की दूरी पर सैंट्रल एवन्यू रोड पर स्थित दोसर भवन चौराहे पर थी, लेकिन पतिपत्नी इतने व्यस्त रहते थे कि डा. मुकेश चांडक तो सुबह के गए देर रात को ही घर आ पाते थे, जबकि डा. प्रेमल को बच्चों को भी देखना होता था, इसलिए उन्हें बच्चों के लिए समय निकालना ही पड़ता था.

पति के अति व्यस्त होने की वजह से घरपरिवार की सारी जिम्मेदारी डा. प्रेमल चांडक को ही निभानी पड़ती थी, जिसे वह बखूबी निभा भी रही थीं. पत्नी की ही वजह से डा. मुकेश चांडक निश्चिंत हो कर सुबह से ले कर देर रात तक अपनी क्लिनिक पर बैठे रहते थे. उन का भरापूरा परिवार तो था ही, ठीकठाक आमदनी होने की वजह से वह सुखी और संपन्न भी थे.

पढ़ालिखा परिवार था, इसलिए बच्चे भी अपनी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही होशियार और समझदार थे. दोनों भाई वाठोड़ा के सैंट्रल प्वाइंट इंगलिश स्कूल में पढ़ते थे. डा. प्रेमल चांडक को भले ही दोगुनी मेहनत करनी पड़ती थी, लेकिन वह भी खुश थीं. घर की जिम्मेदारी निभाने के साथसाथ वह क्लिनिक की जिम्मेदारी निभा रही थीं.

उस दिन डा. प्रेमल चांडक बच्चों के स्कूल से आने के समय क्लिनिक से घर लौट रही थीं तो सोसायटी के गेट पर खड़े सिक्योरिटी गार्ड ने जब उन्हें युग का स्कूल बैग थमाया तो उन्होंने गार्ड से पूछा, ‘‘युग कहां है?’’

‘‘शायद वह क्लिनिक पर गया होगा, क्योंकि बैग देते समय उस ने कहा था कि वह पापा के पास जा रहा है.’’ गार्ड ने कहा.

यह कोई नई बात नहीं थी. अक्सर वह सिक्योरिटी गार्ड को बैग दे कर क्लिनिक पर चला जाता था और वहां कंप्यूटर पर गेम खेलता रहता था. इसलिए डा. प्रेमल ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया और यह सोच कर घर के कामों में लग गईं कि गेम खेल कर युग स्वयं ही समय पर घर आ जाएगा.

लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी युग घर नहीं आया तो डा. प्रेमल को हैरानी हुई. क्योंकि अब उन के भी क्लिनिक जाने का समय हो रहा था. युग जब क्लिनिक पर जाता था, उन के जाने के पहले ही आ जाता था. उन्होंने बड़े बेटे ध्रुव से उस के बारे में पूछा तो वह भी कुछ नहीं बता सका. बच्चा छोटा था, इसलिए प्रेमल घबरा गईं. उन्होंने पति को फोन किया तो पता चला कि युग वहां नहीं है.

डा. प्रेमल को लगा कि वह सोसायटी के अपने किसी दोस्त के यहां चला गया होगा. उन्होंने उस की तलाश सोसायटी में की. वह सोसायटी में भी नहीं मिला तो सोसायटी के गेट पर ड्यूटी पर तैनात सिक्योरिटी गार्डों से एक बार फिर उन्होंने उस के बारे में पूछा. वे भी युग के बारे में कुछ नहीं बता सके. जब युग का कहीं कुछ पता नहीं चला तो उन्हें घबराहट होने लगी.

बेटे के इस तरह अचानक गायब हो जाने से डा. प्रेमल रोने लगीं. यही हाल ध्रुव का भी था. बेटे के गायब होने की सूचना पा कर डा. मुकेश चांडक भी घर आ गए थे. उन्होंने सांत्वना दे कर पत्नी तथा बेटे को चुप कराया और खुद युग की तलाश में लग गए. उन का सोचना था कि छोटा सा बच्चा सोसायटी और क्लिनिक के अलावा और कहां जा सकता है.

डा. मुकेश चांडक के साथ घर के नौकर चाकर और सोसायटी के कुछ लोग भी युग की तलाश में लगे थे. जैसेजैसे समय बीत रहा था, सब की घबराहट बढ़ती जा रही थी. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी जब युग के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो डा. मुकेश चांडक भी रो पड़े.

पूरी रात डा. मुकेश चांडक और उन के शुभचिंतक युग की तलाश करते रहे. जब इस तलाश का कोई लाभ नहीं मिला तो सलाह कर के तय किया गया कि अब पुलिस की मदद लेनी चाहिए. इस के बाद डा. मुकेश पत्नी और अपने कुछ शुभचिंतकों के साथ थाना लकड़गंज पहुंचे. थानाप्रभारी इंसपेक्टर एस.के. जैसवाल को युग का सारा विवरण दे कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी गई.

मामला हाईप्रोफाइल परिवार से जुड़ा था, इसलिए थानाप्रभारी इंसपेक्टर एस.के. जैसवाल ने तुरंत इस बात की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को देने के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी. बच्चे की गुमशुदगी की सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर के.के. पाठक और एडिशनल पुलिस कमिश्नर निर्मला देवी थाना लकड़गंज पहुंच गईं.

दोनों ही पुलिस अधिकारियों ने तत्काल नागपुर शहर के सभी थानों के थानाप्रभारियों को बुला कर मीटिंग की और जांच की एक रूपरेखा तैयार की. सिर्फ रूपरेखा ही नहीं तैयार की गई, बल्कि बच्चे की तलाश की जिम्मेदारी शहर के सभी थानों की पुलिस को सौंप दी गई. इस की वजह यह थी कि इस के पहले कुश कटारिया और हरेकृष्ण ठकराल की अपहरण कर के हत्या कर दी गई थी.

इस के बाद शहर में जिस तरह हंगामा होने के साथ पुलिस की किरकिरी हुई थी, वैसा कुछ पुलिस युग चांडक के मामले में नहीं होने देना चाहती थी. इसी वजह से शहर के सभी थानों की पुलिस, पुलिस अधिकारियों के निर्देशन में युग चांडक की तलाश में सरगर्मी से लग गई.

डा. मुकेश चांडक संभ्रांत और प्रतिष्ठित आदमी थे. उन की आर्थिक स्थिति भी काफी मजबूत थी. इस बात की जानकारी उन के नौकरोंचाकरों को ही नहीं, सोसायटी में काम करने वाले अन्य नौकरों तथा सिक्योरिटी गार्डों को भी थी. इस से पुलिस को यही लगा कि डा. मुकेश के बेटे युग का अपहरण या तो फिरौती के लिए किया गया है या फिर किसी ने दुश्मनी निकालने के लिए उसे उठा लिया है.

वैसे ज्यादा संभावना यही थी कि किसी ने मोटी रकम वसूलने के लिए युग का अपहरण किया है. लेकिन जब तक फिरौती के लिए कोई फोन न आ जाए, तब तक इस बात पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता था. पुलिस इस बात पर विचार कर ही रही थी कि अपहर्त्ता का फोन आ गया. उस ने युग को सकुशल रिहा करने के लिए डा. मुकेश चांडक से 15 करोड़ रुपए मांगे थे.

अपहरण का मामला सामने आते ही पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए. इस के बाद सभी पुलिस अधिकारी अपनेअपने अनुभव के अनुसार अपने सहयोगियों के साथ मिल कर अपहर्त्ताओं के बारे में जानकारी जुटाने में लगे. लेकिन इस मामले में कामयाबी मिली थाना गणेशपेठ के थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार को. उन्होंने मात्र 12 घंटे में अपहर्त्ताओं को दबोच लिया था.

अपहर्त्ता का फोन आते ही थाना गणेशपेठ के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार सतर्क हो गए थे. उन्होंने अपने सहायक असिस्टैंट इंसपेक्टर अनिल ताकसंदे, प्रदीप नागरे, योगेश छापेकर, मधुकर शिर्कें, प्रवीण गोरटे, राजेश ताप्रे, नीलेश धैवट और किशोर ताकरे को मिला कर अपनी एक टीम बनाई और अपहर्त्ता की तलाश में निकल पड़े.

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 1

नईनवेली मनपसंद दुलहन साथ हो तो दुनिया की हर शय, हर नजारा, हर जगह खूबसूरत लगने लगती है. मौका हनीमून का हो और जगह गोवा का  समुद्र तट तो फिर तो कहने ही क्या. …बलखाती समुद्र की लहरें. शीतल मंद बयार में झूमते नारियल के पेड़. छतरीदार पेड़ों से छन कर आए चुलबुले बालकों की तरह धरती पर लोटते धूप के टुकड़े. कहीं रंगीन रेस्तराओं के बाहर बड़ेबड़े छातों के नीचे गोल मेज के इर्दगिर्द सिमटे देशीविदेशी पर्यटक तो कहीं समुद्र किनारे खुले आसमान के नीचे रेत पर मस्ती में लेटी अर्धनग्न विदेशी सुंदरियां.

कहीं सजीधजी नावों और स्टीमरों पर समुद्र की सैर करते सैलानी तो कहीं समुद्र तटों पर हंसीठिठोली के साथ नहाते युवकयुवतियां. मस्ती ही मस्ती. ऊपर से मौसम अगर वसंत का हो तो फिर कहना ही क्या. सुबह की बेला में उगते सूरज का मनोहारी दृश्य हो या शाम के सूर्यास्त का समां, रंगरंगीले गोवा का हर दृश्य देख तनमन में मस्ती की लहर दौड़ जाती है. लगता है जैसे धरती पर स्वर्ग उतर आया हो.

अनुज और सोनम जब हनीमून मनाने गोवा पहुंचे तो उन्हें भी ऐसा ही लगा जैसे स्वर्ग में आ गए हों. कहां दिल्ली की शोरशराबे और प्रदूषण से आजिज मशीनी जिंदगी और कहां गोवा का सौंदर्य और शांति. आधे से अधिक दिन तो मुंबई से गोवा पहुंचने में ही निकल गया था. शाम को अंजुना बीच पर थोड़ा घूमने और समुद्र की चंचल लहरों के साथ थोड़ी मस्ती करने के अलावा उस दिन वे गोवा की रंगीन फिजाओं का ज्यादा आनंद नहीं ले सके.

लेकिन अगले दिन उन्होंने मनमाफिक मस्ती में गुजारा. गोवा में वह सब तो था ही जो मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में होता है— एक से एक बढि़या रेस्तरां, क्रीड़ागृह, बड़ेबड़े होटल, बार, डिस्कोथेक और सजीधजी दुकानें. लेकिन दिल को मोहने वाले प्राकृतिक नजारों के अलावा वहां बहुत कुछ ऐसा भी था, जो दिल्ली या मुंबई जैसे महानगरों में नहीं होता.

मसलन केरल की नावों जैसे फ्लोटिंग पैलेस (तैरते महल), बलखातीं लहरें, दूर तक फैली रेत, हवा में झूमते झुकेझुके नारियल के पेड़ और बसंती बयार के साथ खेलती खिलीखिली चमकीली धूप. उस दिन उन दोनों ने खूब सैरसपाटा किया. लहरों से खेले, बीच पर नहाए, रेत में लेटे और बीच पर खुले रेस्तरां में खाना खाया.

अनुज और सोनम की शादी एक महीना पहले हुई थी. अनुज दिल्ली का रहने वाला था जबकि सोनम सिरसा, हरियाणा के एक संपन्न परिवार की बेटी. अनुज और सोनम की शादी दोनों परिवारों की सहमति से खूब धूमधाम से हुई थी.

अनुज के पिता चंद्रप्रकाश का दिल्ली में अपना व्यवसाय था. उन के 2 बेटों अनुज और नमित में अनुज बड़ा था. उस ने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रैजुएशन किया था. पढ़ाई पूरी कर के वह पिता के काम में हाथ बंटाने लगा था. अनुज और सोनम को हनीमून के लिए गोवा जाना है, यह शादी के बाद ही तय हो गया था. रिजर्वेशन सहित उन के जाने की पूरी तैयारी कर दी गई थी.

अनुज के रिश्ते के एक चाचा विजयकरण मुंबई में रहते थे. अनुज और सोनम को मुंबई स्थित उन के घर जा कर रुकना था और वहां से गोवा जाना था. गोवा में उन के ठहरने और घूमने के लिए कार का इंतजाम करने की जिम्मेदारी विजयकरण ने ले रखी थी.

अनुज और सोनम दिल्ली से राजधानी एक्सप्रेस पकड़ कर मुंबई पहुंचे और अंधेरी स्थित विजयकरण के घर ठहरे. वहां इस नवदंपति का खूब स्वागत हुआ. विजयकरण ने अनुज और सोनम के मुंबई घूमने के लिए कार और ड्राइवर का इंतजाम कर दिया था. 3 दिन तक पतिपत्नी मुंबई की खासखास जगहों पर घूमे.

3 दिन मुंबई में रुकने के बाद अनुज और सोनम को गोवा जाना था. गोवा में विजयकरण के एक दोस्त विनोद अत्री सरकारी नौकरी में बड़े पद पर तैनात थे. विजयकरण ने उन्हें फोन कर के दोनों के लिए सेंट पैड्रो क्षेत्र में स्थित होटल में कमरा बुक करा दिया था.

साथ ही उन्होंने अपने दोस्त विनोद को कह भी दिया था कि वे बच्चों के घूमने के लिए कार और ड्राइवर का इंतजाम कर दें. अनुज को उन्होंने विनोद अत्री का फोन नंबर दे कर समझा दिया था कि गोवा पहुंच कर वह अपने वहां पहुंचने की सूचना उन्हें दे दे. वे कार और ड्राइवर भेज देंगे.

अनुज और सोनम बस द्वारा गोवा के लिए रवाना हो गए. उस समय उन के पास 50 हजार रुपए नकद और लगभग 2 लाख रुपए के जेवरात थे. गोवा के सेंट पैड्रो इलाके के एक होटल में अनुज और सोनम के लिए कमरा बुक था. बस से उतर कर वे सीधे होटल पहुंच गए और जाते ही विनोद अत्री को फोन कर दिया.

विनोद ने दोनों के घूमने के लिए ड्राइवर सहित कार भेज दी. उस दिन शाम को अनुज और सोनम अंजुना बीच घूमने गए. सफर की थकान थी, इसलिए उस दिन वे एकडेढ़ घंटे से ज्यादा नहीं घूम सके. ड्राइवर ने उन्हें होटल में छोड़ दिया और सुबह को आने की कह कर चला गया.

घर वालों के निर्देशानुसार अनुज और सोनम रोज शाम को अपनेअपने घर फोन करते थे. उस दिन भी उन्होंने दिल्ली और सिरसा फोन किए. साथ ही मुंबई फोन कर के विजयकरण को भी बता दिया कि वे लोग गोवा पहुंच गए हैं.

अगले दिन ड्राइवर कार ले कर होटल आ गया. उस दिन अनुज और सोनम ने गोवा की खूबसूरत वादियों और अंजुना व बामा बीच पर रेत की सतह पर चादर सी बिछाती समेटती लहरों का आनंद लिया. उन का वह पूरा दिन मौजमस्ती में गुजरा. लग रहा था जैसे कंकरीट के जंगल से निकल कर जन्नतएबहिश्त के किनारे आ बैठे हों.

मखमली रेत पर बैठ कर वे दोनों सिर से सिर जोड़े घंटों समुद्र की बलखाती लहरों को निहारते रहे. समुद्र तट पर गुनगुनी धूप में लेटे उन विदेशी पर्यटकों को देखते रहे जो भारतीय मिट्टी में अपनी संस्कृति की गंध घोलने का प्रयास कर रहे थे. हनीमून का वह दिन उन के लिए यादगार बन गया.

अगले दिन सुबह को विनोद अत्री का ड्राइवर पिछले दिनों की तरह कार ले कर होटल पहुंच गया. अनुज और सोनम लगभग साढ़े 10 बजे होटल से निकले. इधरउधर घूमते हुए वे दोनों अंजुना बीच पहुंचे. कार अस्थाई पार्किंग में लगवाने के बाद दोनों बीच पर चले गए. ड्राइवर कार में बैठा उन के लौटने का इंतजार करता रहा.

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मौज मजा बन गया सजा – भाग 3

बलदाऊ यादव डा. सुनील के ही यहां था. थोड़ी देर में डा. अशोक कुमार भी मैडिकल कालेज परिसर स्थित डा. सुनील आर्या के आवास पर पहुंच गए. इस के बाद डा. अशोक कुमार अपनी गाड़ी से तो डा. सुनील आर्या ने अपनी गाड़ी में बलदाऊ को बैठा लिया. अविनाश चौहान शरीफ के साथ उस की गाड़ी में बैठ गया था.  सभी पनियरा डाक बंगले की ओर चल पड़े. सभी रात डेढ़ बजे के करीब वे लोग गेस्टहाऊस पहुंचे.

आराधना मिश्रा बाहर ही खड़ी रह गईं, जबकि डा. अशोक कुमार, डा. सुनील आर्या, शरीफ, अविनाश और बलदाऊ डाकबंगले के अंदर चले गए. अंदर पहुंच कर डा. अशोक कुमार ने अराधना के बारे में पूछा तो डा. आर्या ने कहा, ‘‘आराधना फ्रेश होने गई है. अभी आ जाएगी.’’

डा. अशोक कुमार वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गए. इस के बाद उसी के सामने कुर्सी रख कर डा. आर्या भी बैठ गए. उस ने डा. अशोक कुमार को बातों में उलझा लिया तो शरीफ ने देशी तमंचा निकाल कर उस की कनपटी से सटाया और ट्रिगर दबा दिया. गोली लगते ही डा. अशोक कुमार लुढ़क कर छटपटाने लगा.

थोड़ी देर में वह खत्म हो गया तो डा. आर्या ने बलदाऊ से अपनी कार से तौलिया मंगा कर उस के सिर में लपेट दिया. इस के बाद लाश उठा कर शरीफ अहमद की इंडिका में रख दी गई. गेस्टहाउस से तकिए का कवर निकाल कर बलदाऊ ने फर्श पर फैला खून साफ किया और उस तकिए के कवर को भी रख लिया.

एक बार फिर तीनों कारें चल पड़ीं. उस समय रात के ढाई बज रहे थे. डा. अशोक कुमार की कार अविनाश चला रहा था तो लाश वाली गाड़ी में शरीफ के साथ बलदाऊ बैठा था. आराधना मिश्रा डा. सुनील आर्या की कार में थी. गोरखपुर के भटहट पहुंच कर लाश को शरीफ की गाड़ी से निकाल कर मृतक डा. अशोक कुमार की कार में डाला जाने लगा तो आराधना को पता चला कि डा. अशोक कुमार की हत्या कर दी गई है. वह डर गई, लेकिन बोली कुछ नहीं.

वहीं डा. सुनील आर्या ने अपनी कार अविनाश को दे कर आराधना को उस के साथ गोरखपुर भेज दिया. जबकि खुद शरीफ और बलदाऊ के साथ लाश को ठिकाने लगाने के लिए देवरिया की ओर चल पड़ा. इस के बाद देवरिया-सलेमपुर रोड पर स्थित वन विभाग की पौधशाला के पास डा. अशोक की लाश को फेंक दिया.

उसी के साथ उन्होंने तौलिया और तकिया का कवर भी फेंक दिया था. लाश तो ठिकाने लग गई थी, अब कार को ठिकाने लगाना था. कार ले जा कर उन्होंने जिला मऊ के थाना दक्षिण टोला के जहांगीराबाद में सड़क किनारे खड़ी कर दी. उस के बाद सभी गोरखपुर वापस आ गए.

तीनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने बलदाऊ यादव को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद शरीफ की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का एक देशी पिस्तौल, 2 कारतूस, हत्या के समय पहने कपड़े बरामद कर लिए थे. कार में लगे खून के धब्बे के नमूने परीक्षण के लिए लखनऊ भेज दिए गए थे.

आराधना मिश्रा की डा. अशोक कुमार की हत्या में कोई भूमिका नहीं थी, इसलिए पुलिस ने उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया था. लेकिन गवाहों की सूची में उस का भी नाम था. पुलिस ने इस मामले में 34 लोगों को गवाह बनाया था.

अभियुक्तों के बयान और सभी गवाहों के गवाही होने में काफी अरसा लग गया. लगभग 13 सालों तक चले डा. अशोक कुमार की हत्या के मुकदमे का फैसला सुनाया गया 11 अप्रैल, 2014 को. न्यायमूर्ति श्री सुरेंद्र कुमार यादव ने डा. अशोक कुमार की हत्या का दोषी मानते हुए 52 पृष्ठों का अपना फैसला सुनाया था.

फैसले में अभियुक्त अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, डा. सुनील आर्या तथा बलदाऊ यादव को आजीवन कारावास के साथ 10-10 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी. जुर्माना अदा न करने पर एक साल की अतिरिक्त सजा भोगनी होगी. सजा सुनाते ही सभी अभियुक्तों को पुलिस ने अपनी कस्टडी में ले कर जेल भेज दिया. अब चारों अभियुक्त हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं.

—कथा अदालत द्वारा सुनाए फैसले पर आधारित