रोमा के कई रंग : क्यों किया इतने लोगों का क़त्ल

8सितंबर, 2019 का दिन था. उस समय सुबह के करीब पौने 9 बजे थे. तभी जिला हरिद्वार के रुड़की स्थित थाना सिविललाइंस के थानाप्रभारी अमरजीत सिंह के पास शेरपुर गांव के पूर्वप्रधान अनुज का फोन आया.

उस ने बताया कि शेरपुर बाजुहेड़ी मार्ग पर एक आदमी की लाश पड़ी है, जो खून से लथपथ है. लाश मिलने की खबर सुनते ही थानाप्रभारी सबइंसपेक्टर अंकुर शर्मा, सिपाही अरविंद व आशुतोष को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

उन्होंने इस मामले की सूचना सीओ चंदन सिंह बिष्ट, एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर तथा एसएसपी सेंथिल अवूदई कृष्णराज एस. को दे दी. घटनास्थल कोतवाली से मात्र 2 किलोमीटर दूर था. इसलिए वह 10 मिनट में ही मौके पर पहुंच गए.

लाश गांव के मुखिया दयाराम सैनी के गन्ने के खेत में पड़ी थी. अच्छी बात यह थी कि पुलिस के आने से पहले ही मृतक की शिनाख्त हो चुकी थी. शव मिलने की सूचना पर जब गांव शंकरपुरी के लोग मौके पर पहुंचे तो उन्होंने उस की शिनाख्त शंकरपुरी निवासी बोरवैल ठेकेदार सुदेश पाल के रूप में कर दी.

तब तक वहां मृतक सुदेश पाल की पत्नी देशो देवी भी पहुंच गई थी. देशो देवी ने थानाप्रभारी को बताया कि आज सुबह 8 बजे सुदेश मोबाइल पर किसी व्यक्ति से बात करते हुए घर से बाहर चले गए थे. इस के बाद गांव के कुछ लोगों ने सुदेश को 2 युवकों के साथ बाइक पर बैठ कर शेरपुर गांव की ओर जाते देखा था.

इसी बीच सीओ चंदन सिंह बिष्ट भी घटनास्थल पर पहुंच गए. दोनों अधिकारियों ने जब सुदेश पाल के शव का गहन निरीक्षण किया तो पाया कि हत्यारों ने सुदेश का गला किसी धारदार हथियार से रेता था. लाश की स्थिति देखनेसमझने के बाद सीओ चंदन सिंह ने वहां मौजूद देशो देवी व अन्य लोगों से सुदेश के बारे में पूछताछ की.

घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने सुदेश की लाश को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दिया.

सुदेश पाल की हत्या से उस के परिवार में  कोहराम मच गया था. गांव वाले भी इस बात से हैरान थे कि उस की हत्या आखिर किस ने की. इस हत्या के विरोध में सैकड़ों गमजदा ग्रामीण थाना सिविललाइंस पहुंच गए. थानाप्रभारी से मुलाकात कर उन्होंने हत्यारों को तत्काल गिरफ्तार कर कड़ी सजा दिलवाने की मांग की.

पुलिस ने सुदेश पाल की पत्नी देशो देवी की ओर से आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. पोस्टमार्टम के बाद दोपहर बाद सुदेश पाल का शव उस के परिजनों को सौंप दिया गया.

उसी शाम एसपी (देहात) नवनीत सिंह ने सुदेश पाल की हत्या के खुलासे के लिए सीओ चंदन सिंह बिष्ट के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अमरजीत सिंह सहित एसएसआई प्रमोद चौधरी, थानेदार अंकुर शर्मा व संजय नेगी सहित अपराध अन्वेषण यूनिट प्रभारी रविंद्र कुमार, एएसआई देवेंद्र भारती, जाकिर, अशोक, महीपाल, रविंद्र खत्री आदि को शामिल किया गया. जांच टीम ने सब से पहले घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज चैक किए.

इस के बाद पुलिस टीम ने मुखबिरों से क्षेत्र में सुरागरसी कराई. मृतक के परिजनों से भी व्यापक पूछताछ की गई. पूछताछ के दौरान टीम को जानकारी मिली कि सुदेश सीधासादा व्यक्ति था.

वह बोरवैल का ठेकेदार था. गांव में उस की किसी से दुश्मनी भी नहीं थी. उस के छोटे भाई अर्जुन की पत्नी रोमा के पास विकास नाम के युवक का आनाजाना था, जिस का सुदेश अकसर विरोध करता था.

विकास मूलरूप से गांव मांडला थाना पुरकाजी, जिला मुजफ्फरनगर का रहने वाला था. मगर वह पिछले 8 सालों से हरिद्वार के थाना रानीपुर क्षेत्र के गांव रावली महदूद में रह रहा था. यह जानकारी मिलते ही जांच टीम के शक की सुई विकास की ओर घूम गई. पुलिस ने जब विकास से संपर्क करने का प्रयास किया तो पता चला कि वह सुदेश की हत्या के बाद से ही घर से गायब है.

इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि सुदेश की हत्या के तार अवश्य ही विकास से जुड़े हुए हैं. इस के बाद जांच टीम ने विकास को गिरफ्तार करने के लिए मुखबिरों को सुरागरसी पर लगा दिया.

पुलिस को सुदेश की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली थी, उस में उस की मौत का कारण गला घोंटना व धारदार प्रहारों के कारण शरीर से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

11 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अमरजीत सिंह सुबह 11 बजे अपने कार्यालय में बैठे थे, तभी उन के खास मुखबिर ने सूचना दी कि सुदेश पाल की हत्या का आरोपी विकास थोड़ी देर पहले अपने एक साथी के साथ पल्सर बाइक पर बहादराबाद क्षेत्र में देखा गया था. यह सूचना महत्त्वपूर्ण थी.

अमरजीत सिंह ने तत्काल एसएसआई प्रमोद चौधरी, एसआई संजय नेगी, अंकुश शर्मा, सीआईयू प्रभारी रविंद्र कुमार, एएसआई देवेंद्र भारती व सिपाही जाकिर, अशोक, महीपाल, रविंद्र खत्री, नीरज राणा व सचिन अहलावत को साथ लिया और 15 मिनट में बहादराबाद पहुंच गए.

वहां पहुंच कर उन्होंने पुलिस की 2 टीमें बनाईं. अमरजीत सिंह ने पुलिस की एक टीम को सिडकुल-सलेमपुर रोड पर वाहन चैकिंग के लिए लगाया और दूसरी टीम को बहादराबाद हाइवे पर काले रंग की पल्सर बाइक की तलाश में लगा दिया.

लगभग 2 घंटे बाद पुलिस टीम को काले रंग की पल्सर बाइक सिडकुल सलेमपुर रोड पर आती दिखाई दी. बाइक पर 2 युवक सवार थे. पुलिस ने जब उन्हें रुकने का इशारा किया, तो वे सकपका गए.

दोनों युवकों ने पीछे मुड़ कर भागने का प्रयास किया तो पीछे से एक ट्रक आ जाने के कारण वे भाग न सके और हड़बड़ाहट में बाइक सहित सड़क के बीच में गिर पड़े. इस के बाद पुलिस टीम ने फुरती के साथ उन्हें पकड़ लिया.

पूछताछ में दोनों युवकों ने अपने नाम पते विकास व कपिल निवासी गांव मांडला, थाना पुरकाजी, मुजफ्फरनगर व हाल निवासी गांव रावली महदूद बताए.

इस के बाद पुलिस दोनों को ले कर रुड़की कोतवाली पहुंची और उन से सुदेश पाल की हत्या की बाबत पूछताछ की. पहले तो विकास और कपिल पुलिस को टरकाते रहे, मगर जब कोतवाल अमरजीत सिंह ने सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने पुलिस के सामने सुदेश पाल की हत्या में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली. विकास ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार थी.

विकास कई सालों से सिडकुल स्थित महिंद्रा कंपनी में नौकरी कर रहा था. पिछले 4 सालों से अंगरेश नाम की एक युवती उस के मकान में किराए पर रह रही थी. इसी वजह से अंगरेश के भाई अर्जुन व उस की पत्नी रोमा का उस के यहां आनाजाना लगा रहता था.

उसी दौरान विकास की मुलाकात रोमा से हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई. दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे. उन के अवैध संबंधों के बारे में जब विकास के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उसे समझाया. इस के बाद विकास ने रोमा का साथ छोड़ दिया.

यह बात 2 साल पहले की है. इस के बाद रोमा रावली महदूद छोड़ कर शंकरपुरी में आ कर रहने लगी.

4 महीने पहले गांव शंकरपुरी के आकाश ने विकास को बताया कि रोमा रिश्ते में उस की मौसी लगती है और उस के मन में अभी भी उस के लिए पहले जैसा प्यार है.

यह सुनते ही विकास के मनमस्तिष्क में रोमा की यादें ताजा हो गईं. वह रोमा से मिलने पहुंच गया. नतीजा यह हुआ कि विकास और रोमा दोबारा छिपछिप कर मिलने लगे. इसी दौरान विकास ने रोमा को अपने नाम से खरीद कर एक मोबाइल फोन व सिमकार्ड दे दिया था. रोमा और विकास की मोबाइल पर अकसर बातें होती रहतीं.

एक दिन रोमा ने विकास को बताया कि उस के अपने जेठ सुदेश पाल के साथ भी अवैध संबंध थे, लेकिन अब वह सुदेश पाल को पसंद नहीं करती. जबकि सुदेश पाल अब भी उस के साथ जबरन संबंध बनाने के लिए परेशान करता रहता है.

रोमा ने बताया कि सुदेश पाल को हमारे अवैध संबंधों की भी जानकारी हो गई है. अब वह हमारे बीच में दीवार बन कर खड़ा हो गया है. अगर तुम सुदेश को निपटा दो तो हम दोनों एक हो सकते हैं. रोमा की यह बात सुन कर विकास को गुस्सा आ गया. उस ने अपने दोस्त आकाश व रोमा से मिल कर सुदेश पाल की हत्या की योजना बनाई.

हत्या करने के बाद वे जेल न जा सकें, यानी पुलिस से बचने के लिए उन्होंने यूट्यूब पर हत्या से संबंधित कई वीडियो देखीं. उन से पता चला कि हत्या करने के बाद पुलिस से बचने के लिए क्या करना चाहिए.

पूरी योजना बनने के बाद रोमा ने सुदेश पाल का मोबाइल नंबर भी उपलब्ध करा दिया. योजना के अनुसार इस हत्या में उन्हें किसी लूटे हुए मोबाइल फोन का प्रयोग करना था.

इस बारे में विकास ने अपने परिचित कपिल से बात की तो उस ने पहली सितंबर, 2019 को लूटा हुआ एक मोबाइल फोन उपलब्ध करा दिया. फिर 4 सितंबर को आकाश ने ही उस के व कपिल के साथ जा कर घटनास्थल की रेकी कराई.

आकाश व रोमा ने ही विकास को बताया था कि सुदेश पाल बोरवैल लगाने का काम करता है और तुम भी उसे इसी बहाने अज्ञात जगह ले जा कर उस की हत्या कर देना.

8 सितंबर को विकास व कपिल सुबह 7 बजे काले रंग की पल्सर बाइक से रावली महदूद से चले. शंकरपुरी पहुंचने के बाद विकास ने उसी लूटे हुए मोबाइल से सुदेश पाल को फोन किया और बोरवैल के लिए जगह दिखाने की बात की. धंधे का मामला था, बोरवैल की जगह देखने के लिए सुदेश पाल गांव के बाहर आ गया.

इस के बाद विकास और कपिल सुदेश पाल को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव शेरपुर-बाजुहेड़ी मार्ग के निकट एक खेत में ले गए. वहां पहुंचते ही उन दोनों ने क्लच के तार का फंदा बना कर सुदेश पाल के गले में डाल कर उस का गला घोंट दिया. इस के तुरंत बाद उन्होंने चाकू से उस का गला भी रेत डाला. जिस से उन दोनों के कपड़ों पर खून के धब्बे भी लग गए.

गांव रावली महदूद वापस जाते समय उन्होंने अपने कपड़े व चाकू मेहवड़ पुल के पास ईंट भट्ठे की ओर वाली झाडि़यों में छिपा दिए. इस के बाद दोनों पुलिस से छिपते घूम रहे थे.

पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर सुदेश पाल की हत्या में प्रयुक्त चाकू, खून से सने कपड़े, काले रंग की पल्सर बाइक तथा हत्या में इस्तेमाल किए गए 3 मोबाइल फोन भी बरामद कर लिए.

इस के बाद एसएसपी सेंथिल अवुदई कृष्णराज एस. ने थाने में प्रैसवार्ता कर के सुदेश पाल हत्याकांड का खुलासा किया और आरोपियों को मीडिया के सामने पेश किया. पुलिस ने रोमा को भी हिरासत में ले लिया. उस ने भी पुलिस के सामने सुदेश पाल की हत्या की साजिश रचने में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली.

अगले दिन यानी 12 सितंबर, 2019 को सुदेश पाल की हत्या का तानाबाना बुनने वाले आरोपी आकाश को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. मृतक सुदेश पाल 5 बेटियों का पिता था. जिन में से वह भारती, आरती व साक्षी की शादी कर चुका था. बेटा न होने के कारण उस ने अपने भाई अर्जुन के बेटे प्रभात को गोद ले लिया था.

कथा लिखे जाने तक आरोपीगण विकास, कपिल, आकाश और रोमा जेल में थे. थानाप्रभारी अमरजीत सिंह इस प्रकरण की जांच पूरी करने के बाद आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट कोर्ट में भेजने की तैयारी में लगे थे.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

 

प्यार की कीमत 4 लाशें: प्रेम की खातिर गंवाई जान

परेशानी की हालत में हरमन सिंह कुएं के चारों ओर चक्कर लगाते हुए गहरी सोच में डूबा हुआ था. नवनीत कौर उर्फ बेबी कुएं की मुंडेर पर बैठी थी. उस के चेहरे पर भी चिंता के बादल मंडरा रहे थे. दोनों ही सोच में डूबे थे पर किसी से कुछ कह नहीं पा रहे थे. अचानक हरमन रुका और उस ने बेबी के नजदीक जा कर कहा, ‘‘हमारे पास इस समस्या का और कोई इलाज नहीं है, सिवाय इस के कि हम घर से भाग कर शादी कर लें. बाद में जो होगा, देखा जाएगा.’’

‘‘नहीं हरमन, हम ऐसा नहीं कर सकते.’’ चिंतित बेबी ने डरते हुए कहा. अपनी बात जारी रखते हुए उस ने आगे बताया, ‘‘मैं ने अपनी मां से अपनी शादी के बारे में बात की थी. मां ने वादा किया था कि वह बापू को मना लेगी. मेरे खयाल से हमें कुछ दिन और इंतजार करना चाहिए.’’

‘‘मैं ने भी अपने बापू को सब कुछ बता दिया है. शायद वह राजी हो जाएं. पर समस्या यह है कि तेरे बापू ने तेरे लिए जो लड़का ढूंढा है, जिस से अगले हफ्ते तेरी सगाई हो रही है. उस वक्त हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’ हरमन ने चिंतातुर होते हुए कहा.

‘‘मैं फिर कहती हूं कि हमें कुछ दिन और इंतजार करना चाहिए. अगर कोई चारा न बचा तो हम घर से भाग कर शादी कर लेंगे.’’ बेबी ने इतना बता कर बात खत्म कर दी. इस के बाद  दोनों अपनेअपने रास्ते चले गए. यह बात 2 अगस्त, 2019 की है.

भारतपाक सीमा पर स्थित तरनतारन के गांव नौशेरा के निवासी थे सरदार जोगिंदर सिंह. वह खेतीबाड़ी का काम करते थे. उन के 4 बच्चे थे, 2 बेटे और 2 बेटियां. सब से बड़ी बेटी सरबजीत कौर की शादी उन्होंने कर दी थी. उस से छोटा बेटा 22 वर्षीय हरमन अपने पिता के साथ खेतों में काम करता था.

हरमन से छोटी थी 19 वर्षीय प्रभदीप कौर, जिस की शादी के लिए वर की तलाश की जा रही थी. इन सब से छोटा 16 वर्षीय पवनदीप सिंह था. यह परिवार अपने आप में मस्त मगन रहने वाला शांत स्वभाव का था.

4 साल पहले जोगिंदर सिंह की पत्नी अमरजीत कौर की मृत्यु हो गई थी. उस समय गांव के ही बीर सिंह ने जोगिंदर सिंह और उस के परिवार का बड़ा ध्यान रखा था. बीर सिंह भले ही छोटी जाति का मजहबी सिख था, पर बीर सिंह और जोगिंदर सिंह की आपस में बड़ी गहरी दोस्ती थी.

पूरा गांव उन की दोस्ती की मिसाल देता था. दोनों एकदूसरे को भाई मानते थे, पर यह बात कोई नहीं जानता था कि आगे चल कर उन की दोस्ती एक ऐसे मुकाम पर जा पहुंचेगी कि जिस की कीमत लहू दे कर चुकानी पड़ेगी.

बीर सिंह भी नौशेरा ढाला गांव का निवासी था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की उस ने शादी कर दी थी और बाकी बच्चे अभी अविवाहित थे. बीर सिंह और जोगिंदर के आपस में अच्छे संबंध होने के कारण दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर काफी आनाजाना था.

इसी आनेजाने के दौरान जोगिंदर के बेटे हरमन की आंखें बीर सिंह की बेटी नवनीत कौर उर्फ बेबी से लड़ गईं. दोनों बचपन से साथ खेलेबढ़े थे, युवा होने पर जब दोनों ने एकदूजे को देखा तो अपनाअपना दिल हार बैठे.

गांव के बाहर खेतों में किसी न किसी बहाने से दोनों की मुलाकातें होने लगीं. दिन पर दिन उन का प्यार परवान चढ़ने लगा और फिर अंत में वह दिन भी आ गया, जिस की दोनों ने कल्पना भी नहीं की थी.

बीर सिंह ने अपनी बेटी बेबी के लिए लड़का खोज लिया था और वह जल्द ही उस के हाथ पीले करना चाहता था. हरमन और बेबी के प्रेम संबंधों की दोनों परिवारों को भनक तक नहीं थी. बहरहाल, बेबी के कहने पर उस की मां ने अपने पति बीर सिंह से जब हरमन के रिश्ते की बात की तो उस ने साफ और कड़े शब्दों में इनकार कर दिया.

इस के बाद हरमन और बेबी के पास शादी करने के लिए घर से भागने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा था. सो आपस में सलाह कर वे दोनों अगस्त के पहले सप्ताह में घर से भाग गए. हरमन ने अपनी बड़ी बहन की सहायता से गुरुद्वारा साहिब में बेबी से शादी कर ली.

दोनों ने जाति की दीवार तोड़ कर एक साथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए शादी तो कर ली, पर उन्हें क्या पता था कि इस की कीमत हरमनजीत सिंह के पूरे परिवार को चुकानी पड़ेगी.

बीर सिंह और उस के बेटों को जब इस बात का पता चला तो उन का खून खौल उठा. उन्होंने हरमन और बेबी को तलाशने की बहुत कोशिश की पर वे नहीं मिले. इस बीच गांव वालों के सामने बलबीर सिंह बीरा, उस के बेटों वरदीप सिंह, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह की ओर से हरमन और उस के परिवार को धमकाया जा रहा था.

शादी के बंधन में बंध जाने के बाद घर की जिम्मेदारी के चलते हरमन कोई भी विवाद नहीं चाहता था. इसी कारण लगभग डेढ़ महीने पहले विवाह के तुरंत बाद वह गांव छोड़ कर चला गया था.

29 जुलाई, 2019 को बीर सिंह और उस के बेटों को खबर मिली कि हरमन बेबी के साथ 2 दिनों से अपने घर आया हुआ है. यह खबर मिलने के बाद वे लोग पूरी तैयारी के साथ रात होने का इंतजार करने लगे. इस से पहले बीर सिंह के बेटे वरदीप सिंह, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह हाथों में नंगी तलवारें ले कर जोगिंदर के घर के आसपास मंडराते रहे थे.

खतरे का अंदेशा भांप कर हरमन ने चुपके से अपनी पत्नी बेबी को अपने घर से निकाला और बहन के गांव पहुंचा दिया. घटना वाली रात 29 तारीख को रात का खाने के बाद हरमन अपने पिता जोगिंदर सिंह के साथ छत पर सोने चला गया. उस का छोटा भाई पवनदीप सिंह और बहन प्रभदीप कौर नीचे कमरे में सो गए थे.

रात करीब डेढ़ बजे हरमन को अपने घर की चारदीवारी के पास कुछ आहट सुनाई दी. उस ने नीचे झांक कर देखा तो दंग रह गया. बीर सिंह अपने बेटों और कुछ अन्य लोगों के साथ घर की चारदीवारी फांदने की कोशिश कर रहा था.

यह देख वह घबरा गया और उस ने अपने पिता को जगा कर सचेत किया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे संकट में वह अपने परिवार को बचाने के लिए क्या करे. तब तक बीर सिंह अपने लोगों के साथ चारदीवारी फांद कर घर के आंगन में दाखिल हो चुका था.

हरमन ने छत से गली में छलांग लगाई और ‘बचाओ बचाओ’ का शोर मचाते हुए अपने ताया बलकार सिंह के घर की तरफ दौड़ा. तब तक कुछ और गांव वाले भी उठ कर अपने घरों से बाहर निकल आए और हरमन को भागते हुए देखा पर किसी की समझ में यह बात नहीं आई कि हरमन क्यों भाग रहा है.

हरमन ने अपने ताया को जा कर पूरी बात बताई. वह अपने छोटे भाई और बेटों के साथ तुरंत भाई जोगिंदर सिंह के घर की ओर दौड़े पर जब वह वहां पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

बीर सिंह अपने बेटों, दामाद और अपने साथियों के साथ हरमन के परिवार की लाशें बिछा कर जा चुका था. शोर सुन कर पड़ोसी भी जमा हो गए थे. हरमन के ताऊ चाचा और पड़ोसियों ने पूरे गांव में बीर सिंह और उस के बेटों की तलाश की, पर वे गांव से फरार हो गए थे. बीर सिंह ने छत पर सो रहे जोगिंदर सिंह तथा नीचे कमरे में सो रहे पवनदीप सिंह और प्रभदीप कौर की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी थी.

सुबह जैसेजैसे दिन का उजाला फैलता गया, गांव में दहशत का माहौल बनता गया. इस तिहरे हत्याकांड ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया था. घटना की सूचना मिलते ही एसपी हरजीत धारीवाल, डीएसपी कमलजीत सिंह औलख और थाना सराय अमानत खां के प्रभारी इंसपेक्टर प्रभजीत सिंह क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम सहित मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

शुरुआती जांच में सामने आया कि किसी तेज धार और नुकीले हथियारों से इस वारदात को अंजाम दिया गया था. सब से अधिक घाव जोगिंदर सिंह के सीने और गरदन में पाए गए जबकि बेटी प्रभदीप कौर की छाती और पेट पर वार किए गए थे.

16 वर्षीय मासूम पवनदीप सिंह के सिर के पीछे गहरे घाव पाए गए. तीनों लाशों का पंचनामा कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को बयान दर्ज करवाते समय हरमनजीत सिंह इस कदर सहमा हुआ था कि करीब से मौत को देखने के बाद उसे अपने व अपनी पत्नी बेबी के भविष्य की चिंता सता रही थी. वह बारबार सुरक्षा के लिए पुलिस अधिकारियों के समक्ष हाथपांव जोड़ रहा था.

हरमन और उस की पत्नी बेबी की सुरक्षा के लिए पुलिस ने उन्हें 2 गनमैन दिए. हरमन के बयानों पर थाना सराय अमानत खां में आरोपियों के खिलाफ 30 जुलाई को 11 आरोपियों बलबीर सिंह उर्फ बीरा, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह, गोविंदा, हैप्पी, मनी, बिक्रम सिंह, बिचित्र सिंह, जोगा सिंह व 3 अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज कर के गिरफ्तारी के लिए छापेमारी शुरू कर दी गई.

तीनों शवों का पोस्टमार्टम सिविल अस्पताल तरनतारन में 3 डाक्टरों के पैनल से करवाया गया. डीएसपी कमलजीत सिंह औलख की अगुवाई में बनाई गई विशेष टीम द्वारा दिनरात एक कर दिया गया. जिस के चलते 2 अगस्त, 2019 को इस हत्याकांड से जुड़े 3 आरोपी बीर सिंह, उस का दामाद जोबनजीत सिंह और बेटा वरदीप सिंह पुलिस के हाथ लग गए.

इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड बीर सिंह का दामाद जोबनजीत सिंह था. नाबालिग वरदीप सिंह को जुवेनाइल एक्ट के तहत अदालत में पेश कर के बाल सुधार गृह फरीदकोट भेज दिया गया. जबकि बीर सिंह व उस के दामाद को 2 दिन के रिमांड पर ले कर पूछताछ की गई.

गिरफ्तारी के बाद पूछताछ के दौरान बीर सिंह ने बताया कि उस का रिश्ता जोगिंदर सिंह के साथ भाइयों जैसा था. लेकिन जोगिंदर के बेटे ने हमारी इज्जत खराब कर दी. जिस की वजह से वह समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रह गया था. तब मजबूरी में उसे अपराध के लिए मजबूर होना पड़ा था.

बीर सिंह और उस के दामाद जोबन सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने वह तेजधार चाकू और हथियार बरामद कर लिए, जिन से जोगिंदर सिंह और उस के परिवार को मौत के घाट उतारा गया था. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद बीर सिंह और जोबन को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया था.

कथा लिखे जाने तक पुलिस बाकी फरार आरोपियों की तलाश में जुटी थी. इस मामले से जुड़े अभी 11 आरोपी अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह, गोविंदा, हैप्पी, मनी, बिक्रम सिंह, बिचित्र सिंह, जोगा सिंह व 3 अज्ञात लोगों का कथा लिखने तक सुराग नहीं लग पाया था.

दूसरी ओर हरमनजीत सिंह के साथ प्रेम विवाह करने वाली नवनीत कौर बेबी का कहना है कि अभी केवल मेरे पिता की ही गिरफ्तारी हुई है. पुलिस को चाहिए कि इस मामले से जुड़े सभी आरोपियों को पकड़ कर जेल में डाले.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

दूल्हे के हत्यारे : प्रेम के चढ़े नशे ने की हत्या

वह 12-13 मई, 2019 की रात थी. समय रात के डेढ़ बजे. गांवों में यह समय ऐसा होता है, जब लोग गहरी नींद सोए होते हैं. लेकिन उस रात गांव तिंदौली में काफी लोग जाग रहे थे. वजह थी, तिंदौली गांव के निवासी सीताराम कोरी की बेटी पिंकी और गांव महुलहरा के रहने वाले रामदुलार के बेटे सुरेंद्र की शादी. बीती शाम को ही सुरेंद्र की बारात तिंदौली आई थी, जिस का धूमधाम से स्वागत हुआ था.

शादी की रात दूल्हे दुलहन की आखों से नींद उड़ जाती है. दिलों में मिलन की चाह होती है, भविष्य के सपने बुने जाते हैं. लेकिन पिंकी और सुरेंद्र के पास उस वक्त सोचने, कल्पना करने या रोमांटिक होने का समय नहीं था. दोनों शादी की रस्मों में व्यस्त थे.

ज्यादातर रस्में हो चुकी थीं. उस वक्त लावा मांगने की रस्म की तैयारी चल रही थी. तभी मंडप के पास बैठे दूल्हे सुरेंद्र को लघुशंका आई तो उस ने पास बैठे एक दोस्त के कान में कुछ कहा और उस के साथ पास के खेत में चला गया. वह खेत गांव के भोला सिंह का था. उस का साथी खेत के बाहर खड़ा रहा.

सुरेंद्र ने खेत में 3 लोगों को बैठे देखा. लेकिन वह यह सोच कर आगे बढ़ गया कि घराती होंगे. उसी समय उन तीनों ने सुरेंद्र को दबोच लिया और एक युवक उस के पेट पर कैंची से वार करने लगा. दूल्हे सुरेंद्र के साथ आए उस के दोस्त ने उसे बचाने की कोशिश की तो शेष 2 युवकों ने उसे पकड़ लिया. उन्होंने उस का मुंह दबा लिया ताकि वह चीख न सके. सुरेंद्र को मरणासन्न स्थिति में पहुंचा कर तीनों लोग भाग गए. उन के जाने पर सुरेंद्र के दोस्त ने शोर मचाया.

शोर सुन कर लोग खेतों की ओर दौड़े. उन्होंने सुरेंद्र की हालत देखी तो सन्न रह गए. आननफानन में रक्तरंजित सुरेंद्र को खंडासा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, लेकिन डाक्टरों ने उसे देख कर मृत घोषित कर दिया. सुरेंद्र के पिता रामदुलार कोरी बेटे की लाश से लिपट कर रोने लगे.

वह बेटे को ब्याह कर बहू ले जाने के लिए आए थे, लेकिन अब उन्हें बेटे की रक्तरंजित लाश घर ले जानी थी. उस समय तक यह बात उन के गांव तिंदौली पहुंच गई थी और वहां गांव भर में मातम का माहौल छा गया था. बहू आने की आस लगाए बैठीं औरतों के चीत्कार से गांव के कणकण में उदासी छा गई थी.

उधर तिंदौली के ग्रामप्रधान कल्लू सिंह ने घटना की सूचना थाना कुमारगंज को दे दी थी. सूचना मिलते ही कुमारगंज के थानाध्यक्ष मनोज कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तिंदौली पहुंच गए. सूचना मिलने पर सीओ मिल्कीपुर रुचि गुप्ता, सीओ सदर वीरेंद्र विक्रम पुलिस टीमों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. दरअसल, कत्ल दूल्हे का हुआ था वह भी ससुराल में. ऐसे में स्थिति बिगड़ने की आशंका थी.

गांवों में अच्छी हो या बुरी, बातें ढकीछिपी नहीं रहतीं. इस मामले में भी सुरेंद्र का कत्ल करने वाले तीनों युवकों के नाम उजागर हो गए. इन में एक कामाख्या उर्फ लड्डू था, दूसरा पिंटू पासी था और तीसरा संदीप पासी. तीनों तिंदौली के ही रहने वाले थे. पुलिस ने मृतक के पिता रामदुलार की तहरीर पर तीनों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या का केस दर्ज कर लिया. पुलिस की टीमें उन तीनों की तलाश में लग गईं.

पुलिस की ताबड़तोड़ दबिश शुरू हुई तो कामाख्या उर्फ लड्डू कोरी और पिंटू पासी को तिंदौली गांव से ही गिरफ्तार कर लिया गया. घटना के बाद दोनों गांव में ही छिप गए थे. इन का इरादा था कि माहौल ठंडा होने पर दोनों कहीं भाग जाएंगे.

जब इन दोनों को पुलिस ने पकड़ा तब दोनों के कपड़े खून से लथपथ थे. कामाख्या की निशानदेही पर बांस के एक कोठ से हत्या में इस्तेमाल कैंची बरामद कर ली गई.

पुलिस ने जब कामाख्या उर्फ लड्डू कोरी से हत्या का कारण जानना चाहा तो उस ने पिंकी से प्रेम करने की बात स्वीकारते हुए बताया कि वह उस से प्रेम करता था, जिस के लिए वह अपनी जान दे भी सकता था और किसी की जान ले भी सकता था.

जब उस से पूछा गया कि क्या पिंकी भी उस से प्यार करती थी तो वह कोई जवाब देने के बजाए सिर झुका कर खड़ा हो गया. सुरेंद्र की हत्या की वजह उस ने यह बताई कि वह अपने प्यार को किसी और के हाथों में जाते नहीं देख सकता था. जबकि इस संदर्भ में सीओ मिल्कीपुर रुचि गुप्ता का कहना था कि कामाख्या युवती से प्रेम करता था, जिस की शादी को ले कर वह नाराज था.

पूछताछ में पिंकी ने कामाख्या से प्रेमसंबंध न होने की बात कही. पिंकी के अनुसार, कामाख्या आतेजाते समय उसे घूर कर देखा करता था. कई बार उस ने उस का रास्ता भी रोकने की कोशिश की थी, लेकिन किसी को आते देख वह रास्ते से हट जाता था.

लोकलाज से पिंकी ने यह बात किसी को नहीं बताई थी. उस ने खुद भी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे डर था कि इसे ले कर गांव में शोर मचा तो उस की और परिवार की बेवजह परेशानी बढ़ जाएगी और बदनामी भी होगी. उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि जिस बात को वह हलके में ले रही है, वही आगे जा कर उस के लिए इतनी घातक साबित होगी.

दूल्हे सुरेंद्र की हत्या के मामले में फरार चल रहे नामजद तीसरे अभियुक्त संदीप पासी उर्फ बिट्टू को पुलिस ने 16 मई को इलाके के संगम ढाबा हलियापुर से गिरफ्तार कर लिया. वह कहीं भागने की फिराक में था.

पकड़े गए अभियुक्तों ने पुलिस को बताया कि उन की सुरेंद्र से कोई रंजिश नहीं थी. उन्होंने जो भी किया, वह कामाख्या के कहने पर किया. उन्हें इस बात का आभास भी नहीं था कि कामाख्या सुरेंद्र की कैंची से गोद कर हत्या करने की तैयार से आया है. पूछताछ के बाद तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में अयोध्या जेल भेज दिया गया.

बहरहाल हत्या के पीछे जो भी सच्चाई रही हो, अभियुक्तों की जो भी स्वीकारोक्ति रही हो, लेकिन हकीकत पर गौर करें तो इस एकतरफा प्यार में एक सीधेसादे युवक की मौत ने तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं.

कहानी सौजन्यसत्यकथा,  जुलाई 2019

खून में डूबा प्यार का दामन

18वर्ष की वैष्णवी दरमियाने कद की सुंदर युवती थी. उस के पिता हरीराम गुप्ता अपने सब बच्चों से ज्यादा उसे प्यार करते थे. चूंकि वह जवान थी, इसलिए सतरंगी सपने उस के दिल में आकार लेने लगे थे. वह अपने भावी जीवनसाथी के बारे में सोचती रहती थी. कभी खयालों में तो कभी कल्पनाओं में वह उस के वजूद को आकार देने की कोशिश करती रहती.

वैष्णवी उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के संडीला कस्बे के मोहल्ला इमलिया बाग में रहने वाले हरीराम गुप्ता की बेटी थी. हरीराम के 3 बेटे थे, वेद प्रकाश उर्फ उत्तम, ज्ञानप्रकाश उर्फ ज्ञानू, सर्वेश उर्फ शक्कू और 2 बेटियां वैष्णवी और लक्ष्मी थीं.

वेदप्रकाश उर्फ उत्तम ने घर में ही बनी दुकान में किराने की दुकान खोल रखी थी. हरीराम और ज्ञानू उस की मदद करते थे. हरीराम ने तीसरे बेटे सर्वेश को एक पिकअप गाड़ी खरीद कर दे दी थी. वह उसी में सवारियां ढो कर अच्छेखासे पैसे कमा लेता था.

एक दिन वैष्णवी की मुलाकात गांव के ही रहने वाले गोविंदा से हुई तो वह उसे देखती रह गई. वह बिलकुल वैसा ही था, जैसा अक्स उस के ख्वाबोंखयालों में उभरता था. गोविंदा से निगाहें मिलते ही उस के शरीर में सनसनी सी फैल गई.

उधर गोविंदा का भी यही हाल था. वैष्णवी के मुसकराने का अंदाज देख कर उस का दिल भी जोरों से धड़क उठा. मन हुआ कि वह आगे बढ़ कर उसे अपनी बांहों में ले ले, मगर यह मुमकिन नहीं था, इसलिए वह मन मसोस कर रह गया. होंठों की मुसकराहट ने दोनों को एकदूसरे के आकर्षण में बांध दिया था. उस दिन के बाद उन के बीच आंखमिचौली का खेल शुरू हो गया.

गोविंदा भी संडीला के मोहल्ला अशरफ टोला में रहने वाले दिलीप सिंह का बेटा था. दिलीप सिंह के परिवार में पत्नी सुशीला के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे थे, जिस में गोविंदा तीसरे नंबर का था. दिलीप सिंह चाय का स्टाल लगाते थे.

सन 2002 में दिलीप बीमार हो कर बिस्तर से लग गए. उस समय उन के दोनों बेटे गोविंदा और आकाश पढ़ रहे थे. पिता के बीमार होने से घर की आर्थिक स्थिति खस्ता हो गई तो दोनों भाइयों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी.

घर की जिम्मेदारी संभालने के लिए दोनों भाई कस्बे की एक गारमेंट शौप पर नौकरी करने लगे. दिलीप सिंह की बड़ी बेटी का विवाह हो चुका था. 2 बेटे और एक बेटी अविवाहित थे.

नजरें चार होने के बाद गोविंदा रोजाना वैष्णवी के घर के कईकई चक्कर लगाने लगा. वैष्णवी को भी चैन नहीं था. वह भी उस का दीदार करने के लिए जबतब बाहरी दरवाजे की चौखट पर आ बैठती.

जब नजरें मिलतीं तो दोनों मुसकरा देते. इस से उन के दिल को सुकून मिल जाता था. यह उन की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गया था.

दिन यूं ही गुजरते जा रहे थे. दिलों ही दिलों में मोहब्बत जवान होती जा रही थी. लब खामोश थे, मगर निगाहें बातें करती थीं और दिल का हाल बयान कर देती थीं. लेकिन आखिर ऐसा कब तक चलता.

गोविंदा चाहता था कि वह वैष्णवी से बात कर के अपने दिल का हाल बता दे. पर यह बात सरेआम नहीं कही जा सकती थी. आखिर एक दिन गोविंदा को मौका मिल गया तो उस ने अपने दिल की बात उस से कह दी. चूंकि वैष्णवी भी उसे चाहती थी इसलिए मुसकरा कर उस ने नजरें झुका लीं.

प्यार स्वीकार हो जाने पर वह बहुत खुश हुआ. जैसे आजकल अधिकांश लड़के लड़कियों के पास स्मार्टफोन होता है तो वे दूसरों को दिखाने के लिए उसे हाथ में पकड़े रहते हैं. ऐसा करते हुए उस ने वैष्णवी को नहीं देखा था. फिर भी उस ने मौका मिलने पर एक दिन वैष्णवी से उस का मोबाइल नंबर मांगा. वैष्णवी ने उसे बता दिया कि उस के पास फोन नहीं है.

‘‘कोई बात नहीं, मैं जल्द ही एक फोन खरीद कर तुम्हें दे दूंगा.’’ गोविंदा ने कहा.

इतना सुन कर वैष्णवी मन ही मन खुश हुई. अगले ही दिन गोविंदा ने एक मोबाइल खरीद कर वैष्णवी को दे दिया. वैष्णवी ने उसे पहले ही बता दिया था कि मोबाइल इतना बड़ा ले कर आए, जिसे वह आसानी से छिपा कर रख सके, इसलिए गोविंदा उस के लिए बटन वाला फीचर मोबाइल ले कर आया था. उस मोबाइल को वैष्णवी ने छिपा कर रख लिया. जब उसे समय मिलता, वह गोविंदा से बात कर लेती.

दोनों ही फोन पर काफीकाफी देर तक प्यारमोहब्बत की बातें करते थे. उन की मोहब्बत दिनोंदिन बढ़ती गई. दोनों जब तक बात नहीं कर लेते, तसल्ली नहीं होती थी. उन्हें मोहब्बत के सिवाय कुछ और नजर नहीं आता था. दोनों शादी के फैसले के अलावा यह भी तय कर चुके थे कि वे साथ जिएंगे, साथ ही मरेंगे.

बात 2 जनवरी, 2019 की है. दोपहर के समय गोविंदा अपने घर आया. उस समय वह कुछ परेशान था. उस ने खाना भी नहीं खाया. गोविंदा ने अपनी छोटी बहन सोनम से सारी बातें बता देता था. उस ने वैष्णवी और अपने प्यार की बात सोनम को बता दी थी. उस दिन छोटी बहन ने गोविंदा से उस की परेशानी की वजह पूछी तो उस ने अपनी परेशानी बता दी. साथ ही उसे कसम दी कि इस बारे में घर वालों को कुछ न बताए.

इतना कह कर वह अपराह्न 3 बजे के करीब घर से चला गया. जब वह देर रात तक घर नहीं लौटा तो मां सुशीला और भाई आकाश ने उसे सारी जगह खोजा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

4 जनवरी, 2019 को सीतापुर के थाना संदना की पुलिस ने एक अज्ञात युवक की लाश बरामद की. चूंकि लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी, इसलिए इस की सूचना आसपास के जिलों की पुलिस को भी भेज दी गई.

गोविंदा के भाई आकाश के किसी दोस्त को वाट्सऐप पर एक लाश की फोटो मिली तो वह उस फोटो को पहचान गया. वह लाश गोविंदा की थी. उस ने वह फोटो आकाश को वाट्सऐप कर के फोन भी कर दिया. आकाश ने जैसे ही भाई गोविंदा की लाश देखी तो वह फफक कर रो पड़ा. घर के सदस्यों को पता चला तो वह भी गमगीन हो गए.

गोविंदा की छोटी बहन सोनम ने रोते हुए मां और भाई को बताया कि गोविंदा इमलिया बाग मोहल्ले में रहने वाले हरीराम की बेटी वैष्णवी से प्यार करता था. 2 जनवरी को वैष्णवी का मोबाइल उस के घर वालों ने छीन लिया था. यह बात गोविंदा को पता चली तो वह वैष्णवी के घर गया था. गोविंदा ने सोनम को कसम दी थी कि वह यह बात किसी को न बताए.

आकाश पता कर के किसी तरह वैष्णवी के घर पहुंचा तो हरीराम घर पर ही मिल गया. उस ने गोविंदा के घर पर आने की बात से साफ इनकार कर दिया.

तब गोविंदा की मां सुशीला कोतवाली संडीला पहुंच गई. उस ने इंसपेक्टर जगदीश यादव को पूरी बात बता दी. इंसपेक्टर यादव ने सुशीला से कहा कि पहले सीतापुर के संदना थाने जा कर बरामद की गई लाश देख लें. हो सकता है वह गोविंदा की न हो कर किसी और की लाश हो.

सुशीला अपने बेटे आकाश को ले कर थाना संदना, सीतापुर पहुंच गई. थानाप्रभारी ने मांबेटों को मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो उन्होंने उस की शिनाख्त गोविंदा के रूप में कर दी. पोस्टमार्टम के बाद गोविंदा की लाश उन्हें सौंप दी गई.

5 जनवरी की देर रात सुशीला ने संडीला कोतवाली के इंसपेक्टर जगदीश यादव को एक तहरीर दी. तहरीर के आधार पर पुलिस ने हरीराम गुप्ता और उस के बेटों वेदप्रकाश गुप्ता, ज्ञानप्रकाश गुप्ता, सर्वेश गुप्ता के अलावा दोनों बेटियों वैष्णवी और लक्ष्मी के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 148, 302, 201, 342 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए अगले ही दिन एएसपी ज्ञानंजय सिंह के निर्देश पर इंसपेक्टर यादव ने हरीराम गुप्ता, वेदप्रकाश गुप्ता और ज्ञानप्रकाश गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया. उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही गोविंदा की हत्या की थी. इस के बाद उन्होंने उस की हत्या के पीछे की सारी कहानी बता दी.

गोविंदा और वैष्णवी एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उन्होंने अपनी मोहब्बत की कहानी को घर वालों और जमाने से छिपाने की बहुत कोशिश की थी, परंतु कामयाब नहीं हो सके. उन के प्रेम संबंधों की खबर किसी तरह वैष्णवी के घर वालों को लग गई. इस के बाद वे उस पर निगाह रखने लगे.

एक दिन वैष्णवी घर पर अकेली थी. गोविंदा ने वैष्णवी को मोबाइल दे ही रखा था. उस दिन वैष्णवी ने गोविंदा को फोन कर के घर आने को कह दिया. गोविंदा उस के दरवाजे पर पहुंच गया. जैसे ही गोविंदा ने दस्तक दी, वैष्णवी ने दरवाजा खोल दिया. गोविंदा को सामने देख वह खुशी से झूम उठी.

वह उसे घर के अंदर ले गई. गोविंदा के अंदर दाखिल होते ही वैष्णवी ने दरवाजा बंद कर दिया और उस से लिपट गई. वैष्णवी की आंखों में आंसू छलक आए. गोविंदा ने उस से पूछा, ‘‘क्या हुआ वैष्णवी?’’

‘‘गोविंदा, घर में सब को हमारे संबंधों का पता चल गया है. मेरे घर वाले हमें कभी एक नहीं होने देंगे.’’ वह बोली.

‘‘ऐसा नहीं होगा वैष्णवी. तुम मेरे ऊपर विश्वास रखो. मैं जल्द तुम्हें यहां से कहीं दूर ले जाऊंगा. वहां सिर्फ हम दोनों होंगे, हमारा प्यार होगा और हमारी खुशियां होंगी.’’ गोविंदा ने भरोसा दिया.

‘‘सच कह रहे हो?’’ आश्चर्यचकित होते हुए बोली.

‘‘एकदम सच.’’ गोविंदा ने कहा. इस के बाद दोनों ने एकदूसरे को बांहों में लिया तो तनहाई के आलम में उन्हें बहकते देर नहीं लगी.

उस दिन गोविंदा काफी देर तक वैष्णवी के घर में रहा. दोनों ने जी भर कर बातें कीं और भावी जिंदगी के सपने बुने. फिर गोविंदा अपने घर चला गया.

उन की इस मुलाकात की जानकारी किसी तरह हरीराम और उस के बेटों को हो गई. वे सभी गुस्से से भर उठे और अपने घर की इज्जत नीलाम करने वाले को सबक सिखाने की ठान ली.

2 जनवरी, 2019 को हरीराम ने वैष्णवी को मोबाइल पर बात करते पकड़ लिया. हरीराम को समझते देर नहीं लगी कि वह गोविंदा से बात कर रही है और मोबाइल भी उसी का दिया हुआ है. हरीराम ने उस से मोबाइल छीन कर तोड़ दिया और उसे कई तमाचे जड़ दिए.

दूसरी ओर गोविंदा को फोन पर वैष्णवी के पिता की गुस्से से भरी आवाज सुनाई दे गई थी, क्योंकि जिस समय वैष्णवी की गोविंदा से बात चल रही थी, उसी समय हरीराम कमरे में आया था. बेटी को फोन पर बात करते देख वह दरवाजे से ही दहाड़ा था.

पिता के दहाड़ने की आवाज सुन कर गोविंदा को समझते देर नहीं लगी कि वैष्णवी के पिता ने उसे बातें करते पकड़ लिया है. वह परेशान हो उठा.

वह घर पहुंचा तो काफी परेशान था. मां सुशीला ने गोविंदा से खाना खा लेने को कहा, लेकिन उस ने खाना नहीं खाया. छोटी बहन सोनम को समझते देर नहीं लगी कि जरूर कोई बात है.

उस ने पूछा तो गोविंदा ने वैष्णवी के मोबाइल पर बात करते पकड़े जाने की बात बता दी और कहा कि वह वैष्णवी के घर जा रहा है. जाते समय उस ने सोनम को कसम दी कि यह बात किसी को न बताए. इस के बाद वह घर से निकल गया.

गोविंदा सीधे वैष्णवी के घर पहुंचा. घर पर हरीराम मिला तो वह उस से लड़ने लगा. शोर सुन कर हरीराम के तीनों बेटे वेदप्रकाश, ज्ञानप्रकाश और सर्वेश बाहर निकल आए. उन्होंने उसे दबोच लिया और पिटाई शुरू कर दी. फिर उस के मुंह पर टेप चिपकाने के बाद उस के हाथपैर बांध कर जिंदा ही बोरे में बंद कर दिया. यह सब वैष्णवी और लक्ष्मी के सामने हुआ था.

देर रात साढ़े 10 बजे सभी ने बोरे में बंद गोविंदा को सर्वेश की पिकअप गाड़ी में रख लिया. फिर वे सीतापुर की तरफ रवाना हो गए. सीतापुर के संदना थाना क्षेत्र में एक सुनसान जगह पर उन्होंने हाथपैर बंधे गोविंदा को बोरे से निकाला और साथ लाए बांके से उस का गला रेत दिया. उस की हत्या करने के बाद उन लोगों ने उस का पर्स, आधार कार्ड और बोरे को जला दिया. लेकिन वह पूरी तरह नहीं जल पाए थे.

हरीराम, वेदप्रकाश व ज्ञानप्रकाश से पूछताछ करने के बाद इसंपेक्टर यादव ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त बांका और पिकअप गाड़ी भी बरामद कर ली. इस के बाद तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

फिर 23 जनवरी, 2019 को इंसपेक्टर यादव ने वैष्णवी और सर्वेश को भी गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक लक्ष्मी की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. बाकी अभियुक्त जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथामार्च 2018)

चाहत जब नफरत में बदली

जून, 2017 को अपने नए एलबम ‘सावन’ की शूटिंग कर के सोनी सिन्हा वाराणसी से उत्तर प्रदेश के जिला मऊ के थाना सरायलखंसी के मोहल्ला रस्तीपुर में रहने वाली अपनी बड़ी बहन पुष्पा के घर पहुंची तो रात के 9 बज रहे थे. उसे एक अन्य कार्यक्रम में जाना था, इसलिए वह जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. उस के तैयार होतेहोते पुष्पा ने उस के लिए नाश्ता ला कर रख दिया. सोनी ने नाश्ता करने से मना किया तो उन्होंने उसे डांटने वाले अंदाज में प्यार से कहा, ‘‘जो लाई हूं, चुपचाप खा ले. तू हमेशा घोड़े पर सवार रहती है.’’

नाश्ते की प्लेट उठाते हुए सोनी ने कहा, ‘‘दीदी, आप मेरी कितनी फिक्र करती हैं. सचमुच मैं बड़ी भाग्यशाली हूं, जो मुझे आप जैसी बड़ी बहन मिली. पर मैं क्या करूं, काम के लिए तो जाना ही पड़ेगा. काम की ही वजह से कभी हमें बैठ कर बातें करने का भी मौका नहीं मिलता.’’

बातें करतेकरते ही सोनी ने नाश्ता किया और घर से बाहर आ गई. बिजली न होने की वजह से उस समय गली में अंधेरा था. सोनी घर से थोड़ी दूर ही गई थी कि वह जोर से चीखी. उस की चीख सुन कर लोग टार्च ले कर बाहर आ गए. सोनी जमीन पर पड़ी कराह रही थी.

टार्च ले कर आए लोगों ने उस पर टार्च की रौशनी डाली तो देखा, उस के कपड़े खून से तर थे. एक लड़का हाथ में खून से सना चाकू लिए तेजी से भाग रहा था. पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि इसी लड़के ने सोनी पर चाकू से हमला किया है. उन्होंने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया.

शोर सुन कर पुष्पा और उस के पति मीरचंद भी वहां आ गए थे. पड़ोसियों ने हमला करने वाले लड़के की लातघूसों से पिटाई शुरू कर दी थी. लेकिन कसरती बदन वाला वह युवक मार खाते हुए उन के चंगुल से छूट कर अंधेरे का लाभ उठाते हुए भाग निकला था.

सोनी की गर्दन और शरीर पर कई जगह गहरे घाव हो गए थे. वहां से खून तेजी से बह रहा था. उस की हालत देख कर पुष्पा और मीरचंद घबरा गए. सोनी को जल्दी से जिला अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उस का प्राथमिक इलाज कर के उसे बीएचयू के ट्रामा सेंटर ले जाने को कहा.

मीरचंद सोनी को ले कर बीएचयू के ट्रामा सेंटर पहुंचे, जहां उसे भर्ती कर लिया गया. 2 सिपाही मऊ से उस के साथ आए थे, इसलिए सोनी का इलाज शुरू होने में कोई परेशानी नहीं हुई. दरअसल, सोनी को अस्पताल ले जाने से पहले मीरचंद ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी.

पुलिस कंट्रोल रूम से थाना सरायलखंसी के थानाप्रभारी सुनील तिवारी को घटना की सूचना मिली तो वह मऊ के जिला चिकित्सालय पहुंच गए थे. सोनी की बिगड़ती हालत की वजह से वह उस का बयान तो नहीं ले सके, लेकिन एसपी अभिषेक यादव के आदेश पर वाराणसी जाते समय उस की सुरक्षा के लिए 2 सिपाहियों को उस के साथ जरूर भेज दिया था.

किस ने किया था सोनी पर हमला सोनी के जाने के बाद थानाप्रभारी सुनील तिवारी ने सोनी की बड़ी बहन पुष्पा से हमलावर के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि सोनी पर हमला राहुल गुप्ता ने किया था. वह सोनी का दोस्त था और उस से एकतरफा प्यार करता था.

इस के बाद पुष्पा से तहरीर ले कर राहुल गुप्ता के खिलाफ हत्या की कोशिश एवं एससीएसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया था. मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना सरायलखंसी पुलिस ने राहुल गुप्ता की तलाश में कई जगहों पर छापे मारे, लेकिन वह मिला नहीं. सोनी कोई मामूली लड़की नहीं थी, इसलिए अगले दिन उस पर हुए हमले की खबर अखबारों में प्रमुखता से छपी.

दरअसल, सोनी भोजपुरी गीतों की लोकप्रिय गायिका थी. उस ने कई भोजपुरी फिल्मों में काम भी किया था. इसलिए पुलिस उस पर हमला करने वाले राहुल गुप्ता के पीछे हाथ धो कर पड़ गई थी. लेकिन पूरा सप्ताह बीत जाने के बाद भी राहुल गुप्ता पुलिस की पकड़ में नहीं आया था. इस बीच पुलिस के लिए सुकून देने वाली बात यह रही कि सही इलाज मिल जाने से सोनी बच गई थी.

सोनी बयान देने लायक हो गई है, यह पता चलने पर सुनील तिवारी उस का बयान लेने बीएचयू पहुंच गए. गले में गहरा जख्म था, इसलिए सोनी को बाचतीत करने में परेशानी हो रही थी. खुशी की बात यह थी कि उस की आवाज जातेजाते बच गई थी, जबकि राहुल ने गले पर इसीलिए चाकू से वार किए थे कि वह कभी बोल न सके.

पुलिस को दिए अपने बयान में सोनी ने बताया था कि राहुल गुप्ता ने ही उस पर जानलेवा हमला किया था. वह पिछले कई दिनों से फोन कर के उसे परेशान कर रहा था. वह उस से प्यार करता था और उस पर शादी के लिए दबाव डाल रहा था. जबकि वह न तो उस से प्यार करती थी और न ही उस से शादी करना चाहती थी. इसी बात से नाराज हो कर उस ने उसे जान से मारने की कोशिश की थी.

सोनी के इस बयान से साफ हो गया था कि यह मामला एकतरफा प्यार का था. राहुल सोनी से एकतरफा प्यार करता था. प्यार में असफल होने के बाद राहुल को सोनी से नफरत हो गई थी और उस ने उस की जान लेने की कोशिश की थी.

पुलिस से बचने के लिए राहुल अपने बहनोई के घर जा कर छिप गया था. अखबारों के माध्यम से जब राहुल के बहनोई को उस की करतूत का पता चला तो घबरा कर उन्होंने उस से आत्मसमर्पण करने के लिए कहा. आखिर बहनोई के कहने पर थानाप्रभारी 3 जुलाई, 2017 को शाम को राहुल गुप्ता ने थाना सरायलखंसी के थानाप्रभारी सुनील तिवारी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था.

पुलिस ने राहुल गुप्ता से पूछताछ शुरू की  तो बिना किसी हीलाहवाली के उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. यही नहीं, उसने वह चाकू और अपने खून सने कपड़े भी बरामद करा दिए. उस ने चाकू और कपड़े घर में ही छिपा कर रखे थे. इस के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. पूछताछ में राहुल ने सोनी पर हमला करने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थीं—

21 साल की सोनी सिन्हा उत्तर प्रदेश के जिला मऊ के थाना घोसी के गांव सेमरा जमालपुर की रहने वाली थी. कैलाश प्रसाद की 5 संतानों में वह सब से छोटी थी. छोटी होने के नाते वह घर में सब की दुलारी थी. मांबाप से ले कर भाईबहन तक उसे हाथोंहाथ लिए रहते थे. वह 6 साल की थी, तभी भजन गा कर उस ने सब को चौंका दिया था.

जैसेजैसे सोनी बड़ी होती गई, उस की इस प्रतिभा में निखार आता गया. उस के गले से निकलने वाली स्वर लहरियां बुलंदियों को छूती गईं. उस की प्रतिभा को निखारने में घर वालों ने उस का पूरा साथ दिया.

गांव में रह कर उसे सही मंजिल नहीं मिल सकती थी, इसलिए घर वालों ने उसे उस की बड़ी बहन पुष्पा की ससुराल रस्तीपुर भेज दिया. यहीं रह कर सोनी ने गायन सीखा और जहांतहां गाने जाने लगी.

सन 2013 में सोनी को महुआ चैनल के रियालिटी शो में गाने का मौका मिला. अपनी सुरीली आवाज से उस ने जजों का दिल जीत लिया. 4 प्रतिभागियों को कड़ी टक्कर दे कर सोनी ने बाजी मार ली.

इस के बाद मऊ में एक कार्यक्रम हुआ, इस में भी उस ने बाजी मार ली. इस के बाद भोजपुरी गायकी में उस का नाम चर्चा में आ गया. उस ने ‘पूरा मऊ बाजार’, ‘माई हो फूकब पाकिस्तान के’, ‘अंगरेजी पिचकारी’, ‘चढ़ल फगुनवा’, ‘धंधा वाली’, ‘जवानी चाकलेट भइल’ और ‘कांवर भजन’ एलबम बनाए, जिन्होंने धूम मचा दिए. सोनी सिन्हा का सितारा बुलंदियों पर पहुंच गया. वह स्टेज शोे के अलावा शादीविवाहों में भी गाने जाती थी.

भाई की शादी में पहली बार मिला था राहुल सोनी से बात 2017 के अप्रैल महीने की है. बलिया जिले के थाना भीमपुरा के गांव बेलौझा के रहने वाले राहुल के भाई की शादी थी. रंगीनमिजाज उस के पिता चाहते थे कि बेटे की शादी में कोई नामीगिरामी गाने वाली आए, जिस से पार्टी में चार चांद लग जाए. अब तक पूर्वांचल में सोनी का बड़ा नाम हो चुका था. राहुल के पिता ने बारातियों के मनोरंजन के लिए सोनी को बुलवाया. सोनी समय पर अपना प्रोग्राम देने पहुंच गई.

खूबसूरत सोनी को राहुल ने पहली बार भाई की शादी में देखा था. तभी उस ने उसे दिल में उतार लिया था. राहुल भी छोटामोटा गायक था. वह आर्केस्ट्रा पार्टियों में गाता था. इसलिए सोनी से उस का परिचय हो गया. सोनी से उस की बातचीत भी होने लगी. धीरधीरे बातचीत का सिलसिला बढ़ता गया.

एक समय ऐसा भी आ गया, जब सोनी से बात किए बिना राहुल को चैन नहीं मिलता था. उसे सोनी से प्यार हो गया था. इसलिए वह उसी के ख्यालों में खोया रहने लगा था. राहुल गुप्ता गायक तो था ही, एक प्रतिष्ठित अस्पताल में कंपाउंडर भी था. यह बात सोनी को पता थी. उसी बीच सोनी के पिता कैलाश प्रसाद की तबीयत खराब हुई तो उस ने सोचा कि क्यों न राहुल की मदद से वह पिता को किसी अच्छे डाक्टर को दिखा दे.

जिस अस्पताल में राहुल काम करता था, सोनी ने राहुल की मदद से उसी अस्पताल में पिता को भरती करा दिया. राहुल की वजह से अस्पताल में कैलाश प्रसाद का बढि़या इलाज हुआ. वह जल्दी ही स्वस्थ हो गए. राहुल की इस सेवा से सोनी ही नहीं, उस के घर के सभी लोग काफी प्रभावित हुए. उस दिन के बाद राहुल जब भी उन के घर आता, घर वाले उसे काफी सम्मान देते. इस बीच सोनी से भी उस की गहरी दोस्ती हो गई थी.

राहुल अकसर सोनी के साथ उस के कार्यक्रमों में जाने लगा. दोस्ती की वजह से घर वालों ने किसी तरह की रोकटोक भी नहीं की. साथ आनेजाने और उठनेबैठने से दोनों के बीच काफी नजदीकी हो गई. सोनी भी राहुल से खूब घुलमिल गई. बातें भी उस से खुल कर हंसहंस कर करने लगी. राहुल ने इस का गलत मतलब निकाल लिया.

राहुल तो सोनी को चाहने ही लगा था, सोनी के बातव्यवहार से उसे लगा कि वह भी उसे चाहती है. जबकि सोनी उसे बिलकुल नहीं चाहती थी. वह उसे सिर्फ अपना सच्चा दोस्त मानती थी. इस तरह देखा जाए तो राहुल के दिल में उस के प्रति एकतरफा प्यार था.

जून, 2017 की बात है. राहुल सेमरा जमालपुर स्थित सोनी के घर पहुंचा और सीधे सोनी के घर वालों से कहा कि वह सोनी से शादी करना चाहता है. उस की इस बात से सभी हैरान रह गए, क्योंकि उन लोगों ने सोचा भी नहीं था कि कभी इस तरह की भी बात हो सकती है. राहुल का यह व्यवहार और बात किसी को पसंद नहीं आई. लेकिन उन लोगों ने कुछ कहा नहीं, बाद में बताएंगे कह कर बात को टाल दिया.

कैलाश प्रसाद ने जब इस बारे में सोनी से बात की तो पिता की बात सुन कर सोनी भी दंग रह गई. उस ने कहा, ‘‘पापा, वह सिर्फ मेरा दोस्त है. मैं उसे बिलकुल प्यार नहीं करती. अगर वह कुछ इस तरह की बात सोचता है तो यह उस का भ्रम है. खैर, मैं उस से पूछूंगी कि उस के मन में ऐसा ख्याल आया कैसे?’’

राहुल मिला तो सोनी ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह उसे सिर्फ दोस्त मानती है, उसे बिलकुल प्यार नहीं करती. उस के लिए कभी उस के मन में ऐसी भावना आई भी नहीं. इसलिए उस के मन में जो गलतफहमी है, उसे वह निकाल दे. सम्मान देना या हंसहंस कर बातें करने का मतलब यह नहीं होता कि वह उस से प्यार करने लगी है.

सोनी ने राहुल से साफ कह दिया कि वह न उस से प्यार करती है और न उस से शादी करने का इरादा है. उस के मांबाप जहां कहेंगे, वह वहीं शादी करेगी. इसलिए अब वह कभी न उस से और न ही उस के घर वालों से इस तरह की बात करेगा.

प्यार करने वाले राहुल को कैसे हुई सोनी से नफरत सोनी का निर्णय सुन कर राहुल सन्न रह गया. उसे पैरों तले से जमीन खिसकती लग रही थी. पल भर तो उस की समझ में ही नहीं आया कि वह क्या करे. उसे गहरा सदमा लगा था, क्योंकि सोनी ने जो कहा था, वह दिल तोड़ने वाली बात थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सोनी उस के प्यार को इस तरह ठुकरा देगी. उस का सपना रेत के घरौंदे की तरह बिखर गया.

उस समय तो राहुल कुछ नहीं बोला, लेकिन उस ने हार नहीं मानी. क्योंकि उस का मानना था कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. 2 दिनों बाद उस ने सोनी को फोन किया, लेकिन राहुल का नंबर देख कर सोनी ने फोन रिसीव नहीं किया. उसी दिन ही नहीं, इस के बाद जब भी राहुल ने फोन किया, सोनी ने उस से बात नहीं की.

यह बात राहुल के लिए कष्ट देने वाली थी. इस की वजह यह थी कि वह सोनी के लिए तड़प रहा था. किसी तरह वह उस से बात कर के अपने दिल की बात कहना चाहता था. सोनी थी कि उस का फोन ही रिसीव नहीं कर रही थी. लेकिन राहुल ने सोनी को फोन करना बंद नहीं किया. परेशान हो कर सोनी ने एक दिन राहुल का फोन रिसीव कर लिया तो उस ने फोन रिसीव न करने की वजह पूछी. लेकिन सोनी ने बताने से मना कर दिया. इस पर राहुल, अपने किए की माफी मांग कर कहा, ‘‘सोनी, आजकल मैं काफी मुसीबत में हूं. मुझे कुछ पैसों की जरूरत है. अगर मेरी मदद कर दो तो बड़ी कृपा होगी. पैसे मिलते ही मैं तुम्हारे पैसे वापस कर दूंगा.’’

बिना कोई जवाब दिए सोनी ने फोन काट दिया. इस के बाद राहुल ने सोनी को न जाने कितने फोन किए, सोनी ने उस का फोन रिसीव नहीं किया. सोनी से एकतरफा प्यार करने वाला राहुल घायल सा हो गया.

जुनून की हद तक एकतरफा प्यार करने वाला राहुल दिनरात सोनी के ही ख्यालों में खोया रहता था. उसे लगता था कि वह उस के बिना जी नहीं पाएगा. किसी न किसी बहाने से वह सोनी के करीब जाना चाहता था, जबकि सोनी उस से दूर भाग रही थी. न जाने किसकिस से उस ने सोनी से बात कराने को कहा, लेकिन सोनी ने उस से बात नहीं की. इस तरह उस का प्यार नफरत में बदल गया. अब उस ने उसे सबक सिखाने का निश्चय कर लिया.

राहुल ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह सोनी का ऐसा हश्र करेगा कि वह जिंदा रहते हुए भी लाश जैसी जिंदगी जिएगी. उसे अपनी जिस सुरीली आवाज पर नाज है, वह उसे हमेशाहमेशा के लिए खत्म कर देगा. इस के बाद वह उस पर नजर रखने लगा. साथ रहतेरहते उसे सोनी की ज्यादातर गतिविधियों का पता था. वह कब उठती थी, कहां जाती थी, किस से मिलती थी, उसे सब पता था.

नफरत करने वाले राहुल ने कैसे सिखाया सबक उन दिनों सोनी वाराणसी में अपने एक भोजपुरी गाने के नए एलबम ‘सावन’ की शूटिंग में व्यस्त थी. राहुल को यह पता था. 27 जून, 2017 को वह रस्तीपुर स्थित बहन के घर आएगी, उसे यह भी पता था. इस के बाद उसे एक कार्यक्रम में जाना है, उसे यह भी पता था. इन्हीं जानकारियों के आधार पर वह सोनी के घर से थोड़ी दूरी पर गली में एक चाकू ले कर छिप कर बैठ गया.

संयोग से उसी बीच बिजली चली गई. इस से राहुल का काम और आसान हो गया. करीब साढ़े 9 बजे सोनी घर से निकल कर गली के मोड़ तक पहुंची थी कि घात लगाए बैठे राहुल ने सोनी पर हमला कर दिया. घायल होने पर सोनी चीखी, लेकिन राहुल बिना डरे अपना काम करता रहा.

सोनी की चीख सुन कर पड़ोसी बाहर आ गए. इस बीच राहुल सोनी के गले पर वार कर चुका था. मोहल्ले वालों ने टार्च की रोशनी में देखा कि एक लड़का सोनी पर चाकू से वार कर रहा है तो सब उस की ओर दौड़े. लोगों को आता देख कर राहुल भागा. लेकिन लोगों ने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया. मारपीट के दौरान वह उन के चंगुल से निकल भागा. अंधेरा था फिर भी सोनी ने उसे पहचान लिया था.

पूछताछ और सबूत जुटा कर पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. ताज्जुब की बात यह है कि उसे अपने किए पर जरा भी मलाल नहीं है. सोनी को अब राहुल से खतरा है, इसलिए वह होशियार रहती है. अस्पताल से छुट्टी पा कर वह घर आ चुकी है.   ?

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

6 महीने भी न चल सका 7 जन्मों का रिश्ता

अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. क्योंकि अब मेरा तुम्हारे बिना रहना संभव नहीं है. अगर तुम ने शादी में देर कर दी तो कहीं मेरे घर वाले किसी दूसरे से मेरी शादी न कर दें.’’

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के निशातगंज की रहने वाली स्मिता विशाल से प्यार करती थी और उस से शादी करना चाहती थी. जबकि विशाल और स्मिता की उम्र में करीब 8 साल का अंतर था. विशाल देखने में स्लिम था, इसलिए उस की उम्र का पता नहीं चलता था.

विशाल को स्मिता से शादी करने में कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन वह चाहता था कि स्मिता अपनी पढ़ाई पूरी कर ले और उस की उम्र शादी लायक हो जाए. क्योंकि दोनों की जातियां अलगअलग थीं. इसलिए दोनों के ही घर वाले इस शादी के लिए राजी नहीं थे. उन्हें कोर्ट में शादी करनी पड़ती, जिस के लिए स्मिता का बालिग होना जरूरी था.

स्मिता के घर वालों को जैसे ही विशाल और उस के प्यार के बारे में पता चला था, उन्होंने स्मिता के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी थी. वे उस की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते थे. इसी से स्मिता चिंतित थी और विशाल पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी.

विशाल उत्तर प्रदेश के जिला लखीमपुर के गोला गोकरणनाथ स्थित बताशे वाली गली के रहने वाले आशुतोष सोनी का बेटा था. आशुतोष सोनी की वहां ज्वैलरी की दुकान थी. विशाल का छोटा भाई विकास पिता के साथ दुकान संभालता था, जबकि बड़ा भाई गौरव लखनऊ में रहता था. वह वहां किसी स्कूल में अध्यापक था.

विशाल और स्मिता की दोस्ती, जो प्यार में बदल गई विशाल खुद अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था, इस के लिए उस ने गहने बनाने का काम सीखा और लखनऊ की एक ज्वैलरी शौप में नौकरी कर ली. निशातगंज की जिस दुकान में विशाल काम करता था, स्मिता वहां आतीजाती थी. इसी आनेजाने में दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो जल्दी ही उन में दोस्ती हुई और फिर यही दोस्ती प्यार में बदल गई.

स्मिता जब विशाल पर शादी के लिए कुछ ज्यादा ही दबाव डालने लगी तो उस ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘स्मिता हमें आज नहीं तो कल शादी करनी ही है. जबकि हमें पता है कि हमारी शादी का हमारे घर वाले विरोध कर रहे हैं. मैं अपने घर वालों की उतनी चिंता नहीं करता, जितनी तुम्हारे घर वालों की करता हूं. अगर हम ने घर वालों की इच्छा के विरुद्ध जा कर शादी कर ली तो मुझे तुम्हारे सहयोग की जरूरत पडे़गी. क्योंकि शादी के बाद तुम्हारे घर वाले पुलिस में शिकायत कर सकते हैं. तब तुम बदल तो नहीं जाओगी?’’

‘‘तुम्हारे घर वाले भले ही इस शादी का विरोध न करें, पर मेरे घर वाले इस शादी के लिए कतई तैयार नहीं हैं. रही बात बदल जाने की तो कान खोल कर सुन लो, मैं इस जन्म की ही बात नहीं कर रही, 7 जन्मों तक तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगी.’’ इतना कह कर स्मिता ने विशाल को गले लगा लिया.

स्मिता बालिग हो गई तो कुछ दिनों तक तैयारी कर के स्मिता और विशाल ने अप्रैल, 2017 में लवमैरिज कर ली. विशाल के घर वाले तो केवल उस से नाराज ही हुए, स्मिता के घर वालों ने तो उस से रिश्ता ही खत्म कर लिया, वे विशाल को धमकियां भी देने लगे. विशाल और स्मिता के एकजुट होने से धीरेधीरे उन का विरोध तो खत्म हो गया, पर उन दोनों का ही अपनेअपने घर वालों से कोई संबंध नहीं रह गया.

स्मिता और विशाल का प्यार जब कलह में बदल गया शादी के बाद विशाल और स्मिता अकेले पड़ गए थे. घर वालों से पूरी तरह से संबंध खत्म होने की वजह से गृहस्थी के खर्च का सारा बोझ विशाल के कंधों पर आ गया था. घर के किराए से ले कर खानेपहनने की पूरी व्यवस्था विशाल को अकेले करनी पड़ रही थी, जिस की वजह से उसे दुकान पर ज्यादा से ज्यादा काम करना पड़ रहा था.

विशाल मेहनती और व्यवहारकुशल तो था ही, गंभीर भी था. जबकि स्मिता उस के उलट चंचल स्वभाव की थी. वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, इसलिए विशाल को उस की पढ़ाई का भी खर्च उठाना पड़ रहा था. जबकि स्मिता ने कोई जिम्मेदारी नहीं उठा रही थी. वह खाना भी बाहर से ही मंगाती थी. शादी के बाद उस के शौक भी बढ़ गए थे.

नहीं बैठ सका विशाल और स्मिता में सामंजस्य विशाल को घर खर्च के अलावा स्मिता की पढ़ाई, उस के शौक और अन्य दूसरे खर्चे भी उठाने पड़ रहे थे. स्मिता को घर के कामकाज भी नहीं आते थे, जिस से विशाल को काफी परेशानी होती थी. परेशान हो कर एक दिन विशाल ने कहा, ‘‘स्मिता रोजरोज बाजार का खाना ठीक नहीं है. तुम कुछ भी बना लिया करो. मुझे दुकान पर जाना होता है. घर में खाना न बनने से बाजार से पूड़ीसब्जी मंगाता हूं. बाहर से खाना मंगाता हूं तो दोस्त कहते हैं कि घर में बीवी है, फिर भी बाजार का खाना खाते हो.’’

लेकिन स्मिता पर विशाल की इन बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह सुबह देर तक सोती रहती थी. अकसर वह विशाल के दुकान पर जाने के बाद ही सो कर उठती थी. रात में 9 बजे वह घर आता तो स्मिता उस से बाहर चल कर खाने को कहती.

उस के इस व्यवहार से विशाल को गुस्सा तो बहुत आता था, पर वह कुछ कह नहीं पाता था. कभी कुछ कहता तो स्मिता सीधे कहती, ‘‘शादी से पहले तो तुम रोज बाहर खाने के लिए कहते थे. अब मैं बाहर खाने के लिए कहती हूं तो नाराज हो जाते हो.’’

‘‘स्मिता, शादी से पहले हम कुछ देर साथ रहने के लिए खाना खाने के लिए बाहर जाते थे. अब हम साथसाथ रहते हैं तो हमें घर पर ही खाना बनाना चाहिए. घर में बना कर खाने से पैसे भी कम खर्च होेते हैं और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है.’’

‘‘विशाल, तुम तो जानते हो कि मुझे खाना बनाना नहीं आता. दाल खराब बन गई तो मैं खुद ही खाना नहीं खा पाऊंगी. इसलिए बाहर खा लेना ही ठीक रहेगा.’’ स्मिता कहती.

न चाहते हुए विशाल को स्मिता की बात माननी पड़ती. शादी से पहले स्मिता का जो व्यवहार विशाल को अच्छा लगता था, अब वही खराब लगने लगा था. वह स्मिता की बातों से तनाव में आ जाता, जिस की वजह से दोनों में झगड़ा होने लगता.

शादी के बाद धीरेधीरे पतिपत्नी के बीच जहां सामंजस्य बैठता है, वहीं विशाल और स्मिता के बीच तनाव और टकराव रहने लगा था. खर्च बढ़ने की वजह से विशाल को साथियों से कर्ज लेना पड़ा. वह परेशान रहता था कि अगर खर्च इसी तरह होता रहा तो वह कहां से पूरा करेगा.

खर्च को ले कर ही विशाल और स्मिता के बीच झगड़ा बढ़ता गया. खर्च पूरा होता न देख, स्मिता विशाल से वह नौकरी छोड़ कर कहीं ज्यादा वेतन वाली नौकरी करने को कहने लगी. एक दिन तो स्मिता ने विशाल के मालिक को फोन कर के कह भी दिया कि अब विशाल उन के यहां नौकरी नहीं करेगा.

विशाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. इस से वह काफी परेशान हो उठा. स्मिता की हरकतों से तंग आ कर उस ने अपने साथियों को अपने घर वालों के मोबाइल नंबर नोट करा दिए कि अगर कभी उसे कुछ हो जाता है तो वे उस के घर वालों को खबर कर देंगे.

इस तरह सब खत्म हो गया   26 सितंबर, 2017 की सुबह की बात है. विशाल दुकान पर जाने को तैयार हो रहा था, तभी स्मिता उस से लड़ने लगी. गुस्से में उस ने विशाल का फोन छीन कर उस की दुकान के मालिक को फोन कर दिया कि आज से विशाल उन की दुकान पर काम नहीं करेगा.

मालिक ने दूसरी ओर से कहा, ‘‘तुम विशाल से मेरी बात कराएं, क्योंकि तुम्हारी बात पर मुझ से यकीन नहीं है.’’

विशाल फोन मांगता रहा, पर स्मिता ने उसे फोन नहीं दिया. विशाल को यह बात काफी बुरी लगी. नाराज हो कर वह बाजार गया और वहां से नैप्थलीन की गोलियां खरीद लाया. उस ने स्मिता के सामने ही कई गोलियां निगल लीं. इस से स्मिता घबरा गई. उस की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे?

गोलियों ने अपना असर दिखाना शुरू किया. विशाल के मुंह से झाग निकलने लगा. घबराई स्मिता ने विशाल की दुकान के मालिक को फोन कर के बता दिया कि विशाल ने जहर खा लिया है.

इतना कह कर स्मिता ने तुरंत फोन काट दिया. इस के बाद दुकान के मालिक ने फोन किया तो उस ने फोन रिसीव नहीं किया, जिस से दुकान का मालिक भी घबरा गया. उस ने तुरंत दुकान पर काम करने वाले 2 लड़कों को स्मिता की मदद के लिए उस के घर भेज दिया. लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि विशाल रहता कहां है. जब तक पूछतेपूछते वे विशाल के घर पहुंचे, उस की हालत खराब हो चुकी थी.

स्मिता को कुछ समझ में नहीं आया तो डर कर उस ने भी बची हुई गोलियां खा लीं. विशाल के साथ काम करने वाले प्रदीप और नसीम जब उस के घर पहुंचे तो मकान मालिक को विशाल के जहर खाने वाली बात बताई. मकान मालिक दोनों को साथ ले कर पहली मंजिल पर स्थित विशाल के कमरे पर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद मिला.

किसी तरह उन्होंने दरवाजा खोला तो विशाल और स्मिता फर्श पर बेहोश पड़े मिले. स्मिता की चूडि़यां कमरे की फर्श पर बिखरी पड़ी थीं. दोनों के मोबाइल फोन और चप्पलें पड़ी थीं. एक मोबाइल फोन टूटा पड़ा था. नैप्थलीन की कुछ गोलियां फर्श पर बिखरी पड़ी थीं. प्रदीप और नसीम ने यह बात दुकान के मालिक अनुराज अग्रवाल को बताई तो उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया.

पूरा न हुआ 7 जन्मों तक साथ निभाने का वादा घटना की सूचना पा कर थाना गाजीपुर के एसएसआई ओ.पी. तिवारी, एसआई कमलेश राय अपनी टीम के साथ विशाल के कमरे पर पहुंचे तो दोनों को मरा समझ कर ले जाने लगे. लेकिन तभी उन्हें लगा कि विशाल की सांसे चल रही हैं. इस के बाद उन्हें रामनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. घटना की सूचना थानाप्रभारी गिरिजाशंकर त्रिपाठी को दी गई तो वह भी अस्पताल पहुंच गए.

शादी के 6 महीने के अंदर ही युवा दंपत्ति द्वारा इस तरह जान देने की बात पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था. पुलिस ने जांच शुरू की तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उन की मौत नेप्थलीन की गोलियां खाने से हुई थी. इस के बाद पुलिस ने मान लिया कि दोनों ने आत्महत्या ही की है. पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी.

विशाल के भाई का कहना था कि विशाल ने अपनी परेशानी कभी किसी से नहीं बताई. शादी के बाद वह तनाव में रहता था, यह बात उन्हें विशाल के दोस्तों से पता चली थी. जिस स्मिता के लिए विशाल ने अपना घरपरिवार छोड़ कर 7 जन्मों तक साथ निभाने का वादा किया था, वह उस के साथ 6 महीने भी नहीं बिता सका.

कई बार प्यार में अंधे हो कर लोग ऐसे बंधन मे बंध जाते हैं कि उस को निभाना मुश्किल हो जाता है. प्यार करने वाले अगर शादी करते हैं तो उन्हें स्थितियों से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए.

प्यार में एकदूसरे का साथ देने की कसमें खाना तो आसान है, लेकिन शादी के बाद जिम्मेदारियां पड़ती हैं तो पता चलता है कि प्यार के बाद शादी क्या चीज होती है. इसलिए काफी सोचसमझ कर ही प्यार के बाद शादी करनी चाहिए.   ?

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

पति और बच्चे नहीं, प्यार चाहिए था संतोष को

कविता को ज्यादा देर तक बिस्तर पर पड़ी रहना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वह उठी और चाय बनाने के लिए सीढि़यां उतर कर भूतल पर बनी रसोई में आ गई. रसोई से ही उस ने भूतल पर बने कमरे की ओर देखा तो उस का दरवाजा आधा खुला था. कविता के मन में आया कि वह कमरे का दरवाजा खोल कर देखे कि उस का दूसरा बेटा निक्की, जेठ बनवारीलाल और उन के तीनों बच्चे जाग गए हैं या नहीं?

कविता दरवाजे के पास पहुंची तो उसे कमरे के अंदर से बाहर की ओर खून बहता हुआ दिखाई दिया. खून देख कर कविता परेशान हो गई. उस ने कमरे में झांका तो अंदर जो दिखाई दिया, उस से उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. कमरे के अंदर बैड पर उस के जेठ बनवारीलाल और एक बच्चा तथा 3 बच्चे जमीन पर लहूलुहान पडे़ थे. उन के शरीर से अभी भी खून रिस रहा था.

कविता अपने बेटे और जेठ समेत उन के तीनों बच्चों को इस हालत में देख कर सन्न रह गई. उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकली. वह समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या हो गया है?

जेठ और बच्चों को लहूलुहान देख कर चेतनाशून्य हुई कविता पल भर वह चेतनाशून्य हो कर खड़ी यह सब देखती रही. उसे लगा कि वह जमीन पर गिर जाएगी तो उस ने दीवार का सहारा ले कर खुद को संभाला. दीवार का सहारा लेने से उस की चेतना लौटी तो वह जोरजोर से रोने और चिल्लाने लगी.

कविता के रोने और चिल्लाने की आवाज सुन कर ऊपर के कमरे में सो रही जेठानी संतोष भी नीचे आ गई. उस ने भी कमरे के अंदर का नजारा देखा तो फूटफूट कर रोने लगी. उस के पति और 3 बेटों के साथ देवर का भी एक बेटा मरणासन्न हालत में पड़ा था. देवरानी और जेठानी की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी भी आ गए. आने वाले लोग भी कमरे के अंदर का दृश्य देख कर रो पड़े.

यह घटना राजस्थान के अलवर शहर की शिवाजीपार्क कालोनी में घटी थी. आने वाले लोगों में से किसी ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. पुलिस के आने से पहले कुछ पड़ोसियों ने कमरे में लहूलुहान पड़े बनवारीलाल, उस के बच्चों और भतीजे की नब्ज टटोली तो उन में से 3 बच्चें में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए, लेकिन बनवारीलाल और एक बच्चे की सांस चलती महसूस हुई.

थोड़ी देर बाद थाना शिवाजी पार्क पुलिस मौके पर पहुंची तो कालोनी के लोगों की मदद से बनवारीलाल और उस बच्चे को राजीव गांधी सामान्य अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. इस के बाद अन्य 3 बच्चों की लाशों को भी एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया गया. वहीं से सारी काररवाई पूरी कर पांचों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

राजस्थान के शांत शहरों में गिने जाने वाले अलवर शहर में एक ही परिवार के 5 लोगों की हत्या से शहर में सनसनी फैल गई थी. इस घटना ने शहरवासियों को बेचैन कर दिया था. शिवाजी पार्क के जिस मकान में यह घटना घटी थी, उस के सामने आसपास के लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. घटना की जानकारी मिलने पर एसएसपी पारस जैन, एसपी राहुल प्रकाश सहित अन्य पुलिस अधिकारी और शहर के विधायक बनवारीलाल सिंघल, कांग्रेस जिलाध्यक्ष टीकाराम जूली तथा अन्य कई पक्षविपक्ष के नेता आ गए थे.

हत्यारे की तलाश में घटनास्थल से सबूत जुटाती पुलिस एक ही परिवार के 5 लोगों को गला रेत कर बेरहमी से मारा गया था. उन का खून कमरे में फैला हुआ था. कमरे में खून से सने पैरों के निशान भी मिले थे. शुरुआती जांच में पुलिस को लगा कि पांचों हत्याएं रंजिश की वजह से की गई हैं. मारने से पहले पांचों को कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था, जिस से वे अचेत हो गए थे. इस के बाद उन की हत्याएं की गई थीं. जिस तरह हत्याएं हुई थीं, उस से साफ लग रहा था कि हत्या करने वाले परिवार के परिचित थे. उन की संख्या 2 या 3 रही होगी.

पुलिस ने डौग स्क्वौयड एवं एफएसएल की टीम को बुला लिया था, डौग स्क्वौयड से पुलिस को कोई खास सुराग नहीं मिला. एफएसएल टीम ने अपना काम कर लिया तो पुलिस जांच में जुट गई. घर में घुसने के 2 दरवाजे थे. एक दरवाजा कमरे से बाहर खुलता था तो दूसरा गैलरी में खुलता था.

पुलिस ने मृतक बनवारीलाल के छोटे भाई मुकेश की पत्नी कविता से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में दरवाजों की कुंडी अंदर से बंद की गई थी. लेकिन सुबह जब वह नीचे आई तो गैलरी का दरवाजा खुला हुआ था.

पुलिस कविता से पूछताछ कर ही रही थी कि मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष बेहोश हो गई. उसे सामान्य अस्पताल ले जा कर भरती कराया गया. आगे की जांच में पुलिस अधिकारियों के सामने कुछ ऐसे सवाल खड़े हुए जिन के जवाब तुरंत नहीं मिले. 

शिवाजी पार्क में 40-42 गज के छोटेछोटे और एकदूसरे से सटे हुए मकान बने हैं. इन मकानों में अगर प्रेशर कुकर की सीटी भी बजती है तो पड़ोसी को सुनाई देती है. लेकिन 5 लोगों को एकएक कर के मारा गया होगा, इस के बावजूद मकान में ऊपर की मंजिल पर सो रही संतोष और कविता को उन की चीखें सुनाई नहीं दी?

पड़ोसियों की कौन कहे, मकान में रहने वालों तक को घटना की भनक नहीं लगी. जब दरवाजे की कुंडी अंदर से बंद थी तो कातिल मकान के अंदर कैसे आए? अगर दुश्मनी की वजह से पांचों लोगों की हत्या की गई तो ऊपर के कमरे में सो रही संतोष, कविता और उस के बेटे विनय को कातिलों ने क्यों जीवित छोड़ दिया?

मकान में लूटपाट या चोरी जैसी कोई बात नजर नहीं आई. वैसे भी बनवारीलाल छोटीमोटी नौकरी करता था. उस के पास कोई बड़ी पूंजी या धनदौलत नहीं थी, जिसे लूटने के लिए कोई आता. पूछताछ में यह जरूर पता चला था कि बनवारीलाल की स्कूटी गायब है.

पूछताछ में कविता ने पुलिस को यह भी बताया था कि उन का पैतृक गांव गारू है, जो अलवर जिले की कठूमर तहसील में पड़ता है. गांव में उन की 7-8 बीघा जमीन है, जिस के बंटवारे को ले कर चाचा व ताऊ ससुर से विवाद चल रहा है. इस के अलावा उन की किसी से कोई रंजिश नहीं है.

पूछताछ में यह भी पता चला था कि मृतक बनवारीलाल शर्मा अलवर के पास मत्स्य औद्योगिक क्षेत्र में स्थित हैवल्स कंपनी में इलेक्ट्रीशियन थे. शिवाजी पार्क के इस मकान में वह अपने छोटे भाई मुकेश के साथ करीब डेढ़ साल से किराए पर रह रहे थे. उन के परिवार में पत्नी संतोष के अलावा 3 बेटे, 17 साल का अमन उर्फ मोहित, 15 साल का हिमेश उर्फ हैप्पी और 12 साल का अज्जू उर्फ लोकेश था.

कैसे आया छोटा भाई मुकेश शक के दायरे में बनवारीलाल के छोटे भाई मुकेश के परिवार में पत्नी कविता के अलावा 2 बेटे, 11 साल का निक्की उर्फ अखिलेश और 8 साल का विनय था. मुकेश भजन व जागरण मंडलियों में गाताबजाता था. वह घटना से 2 दिन पहले 1 अक्तूबर, 2017 को पाली जिले के जैतारण कस्बे में जाने की बात कह कर घर से गया था.

जाते समय मुकेश अपना मोबाइल फोन अपने पिता मुरारीलाल को दे गया था. उन दिनों मुरारीलाल पत्नी के साथ बेटों और पोतों से मिलने अलवर आए हुए थे. संयोग से 2 अक्तूबर को ही वह पत्नी के साथ गांव चले गए थे. बनवारीलाल की पत्नी संतोष और मुकेश की पत्नी कविता सगी बहनें थीं.

मुकेश के बड़े भाई, 3 भतीजों और एक बेटे की हत्या की गई थी. उस का कुछ अतापता नहीं था. ना ही वह घर वालों को कोई मोबाइल नंबर भी नहीं बता गया था कि उस से संपर्क किया जा सकता. बनवारीलाल के परिवार में मर्द के नाम पर केवल मुकेश का 8 साल का बेटा विनय बचा था.

इन हत्याओं की सूचना गांव गारू गए मुरारीलाल को दी गई तो वह भाग कर अलवर आ गए. बेटे और पोतों की लाशें देख कर 80 साल के मुरारीलाल सुधबुध खो बैठे. वह एक ही बात की रट लगाए थे कि अपने इन बूढे़ कंधों पर अपने बेटे और पोतों की लाशें कैसे उठाएंगे? उन की तो किसी से ऐसी दुश्मनी भी नहीं थी, फिर किसी ने उन के परिवार को इस तरह क्यों उजाड़ दिया.

पुलिस ने 4 डाक्टरों के पैनल से पांचों लाशों का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम में पता चला कि हत्या से पहले सभी को जहर दिया गया था. पांचों के गले पर 8 से 10 सेंटीमीटर गहरे घाव थे. जिस से उन की भोजन व श्वांस नली कट गई थी. घर वाले पांचों लाशों को गांव ले गए, जहां गमगीन माहौल में पांचों का एक ही चिता पर अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस घटना से गांव का हर आदमी दुखी था.

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए पड़ोसियों से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई, जिस से 5 लोगों की जघन्य हत्या के कारणों का पता चलता. पुलिस ने शिवाजी पार्क और आसपास के इलाकों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाल कर खंगाली. इन में रात 12 बजे से डेढ़ बजे के बीच कालोनी की एक गली से एक मोटरसाइकिल निकलती दिखाई दी.

सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में कुछ नहीं मिला इस से पुलिस को कोई मदद नहीं मिल सकी. पुलिस को बनवारीलाल की उस स्कूटी की तलाश थी, जो वारदात के बाद से गायब थी. रात तक पुलिस को उस स्कूटी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला. इस के अलावा भी कोई ऐसा सुराग नहीं मिला था, जिस से पुलिस कातिलों तक पहुंच पाती. पुलिस ने आसपास के पार्क, मकान और नालेनालियों में उस हथियार की तलाश की, जिस से पांचों लोगों की हत्या की गई थी. लेकिन काफी प्रयास के बाद भी हथियार नहीं मिले.

जमीनी रंजिश की आशंका को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने गारू गांव जा कर मुरारीलाल के घर वालों तथा रिश्तेदारों से गहन पूछताछ की. मृतक बनवारीलाल और पत्नी संतोष के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवा कर चेक की गई. पहले दिन की जांच में इस जघन्य हत्याकांड की शक की सुई परिवार वालों के आसपास ही घूमती नजर आई.

इस में जमीनी रंजिश के अलावा छोटे भाई मुकेश पर भी पुलिस को शक था. इस की वजह यह थी कि वह 2 दिन पहले ही घर से बाहर जाने की बात कह कर गया तो अभी तक लौट कर नहीं आया था. वह अपना मोबाइल फोन भी पिता को दे गया था.

अस्पताल में भरती मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष को छुट्टी मिल गई तो वह पहले वह गांव गारू गई. वहां से वह भरतपुर जिले के नगर कस्बे में रह रहे अपने एक रिश्तेदार के यहां चली गई और उसी दिन रात में कस्बे के ही सरकारी अस्पताल में भरती हो गई. आधी रात के बाद उसे वहां से छुट्टी दे दी गई तो वह अपने उसी रिश्तेदार के यहां चली गई.

अगले दिन यानी 4 अक्तूबर को पुलिस को बनवारीलाल की गायब स्कूटी शहर की कृषि उपज मंडी मोड़ के पास मिल गई. पुलिस ने स्कूटी से फिंगरप्रिंट उठा कर जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भिजवा दिए.

जिस जगह स्कूटी मिली थी, उस के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई तो एक स्कूटी पर रात को 2 लोग जाते दिखाई दिए.

जहां स्कूटी मिली थी, वहां से अलवर रेलवे स्टेशन पास ही था. इस के अलावा दिल्ली, भरतपुर, मथुरा और आगरा के लिए बसें भी उधर से ही जाती थीं. इस से अंदाजा लगाया कि हत्यारे स्कूटी को वहां छोड़ कर ट्रेन या बस से चले गए होंगे.

इस जघन्य हत्याकांड की जानकारी मिलने पर जयपुर से आईजी हेमंत प्रियदर्शी भी अलवर आए. उन्होंने घटनास्थल का तो निरीक्षण किया ही, एसपी निवास पर पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग भी की, जिस में मामले की जांच के बारे में जानकारी ले कर खुलासे के लिए कुछ दिशानिर्देश भी दिए.

एसपी ने एक बार फिर किया घटनास्थल का निरीक्षण दूसरी ओर एसपी राहुल प्रकाश को मृतक की पत्नी संतोष के भरतपुर जिले के नगर कस्बे में पहुंचने की जानकारी मिली तो उन्होंने वहां जा कर उस से और उस की छोटी बहन कविता से पूछताछ की.

वहां से लौट कर उन्होंने उसी दिन रात साढ़े 10 बजे एक बार फिर शिवाजी पार्क जा कर घटनास्थल का निरीक्षण किया.

तीसरे दिन पुलिस ने गारू गांव जा कर बनवारीलाल की पत्नी संतोष, मातापिता, चाचाताऊ और घर के अन्य लोगों से अलगअलग पूछताछ की. संतोष और कविता उसी दिन नगर से गारू पहुंची थीं.

राहुल प्रकाश ने रेलवे स्टेशन जा कर रात की ड्यूटी वाले रेल कर्मचारियों, स्टाल वालों, कुलियों और अन्य लोगों से पूछताछ की. लेकिन इस पूछताछ में उन का कोई भला नहीं हुआ, इसलिए उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा.

उसी दिन राहुल प्रकाश ने एक बार फिर संतोष और उस की 2 बहनों को अलवर के पुलिस अन्वेषण भवन में बुला कर पूछताछ की. इस के अलावा पुलिस मुकेश के बारे में भी पता करती रही, क्योंकि 5 दिन बीत जाने के बाद भी उस का कुछ अतापता नहीं था.

काफी भागदौड़ और मुखबिरों से पुलिस को कुछ ऐसे सबूत मिले, जिन से इस जघन्य हत्याकांड की गुत्थी सुलझने की उम्मीद नजर आई. इस के बाद कडि़यां जोड़ते हुए पुलिस की कई टीमें बना कर विभिन्न जगहों पर भेजी गईं. एक पुलिस टीम संतोष को पूछताछ के लिए अलवर ले आई.

संतोष से गहन पूछताछ के बाद पुलिस को मंजिल मिलती नजर आई. 7 अक्तूबर, 2017 को पुलिस ने इस मामले का खुलासा करते हुए मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष शर्मा, उस के प्रेमी हनुमान प्रसाद जाट और भाड़े के 2 हत्यारों कपिल धोबी और दीपक धोबी को गिरफ्तार कर लिया.

इन से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई. वह छोटे से गांव की ऐसी महत्त्वाकांक्षी युवती की कहानी है, जिस ने परिवार के गुजरबसर और आत्मरक्षा के लिए ताइक्वांडो सीखा. इसी ताइक्वांडो की बदौलत कई देशों में घूमते हुए वह ऊंचे ख्वाब देखती रही.

सपने सच करने के लिए साड़ी और सलवार सूट पहनने वाली वह युवती शौर्ट शर्ट और पैंट पहन कर गले में टाई लगा कर सोसाइटी के एक वर्ग में उठनेबैठने लगी, जहां उस के दोस्त पर दोस्त बनते गए. पैसे भी आने लगे. लेकिन उस की यह आजादी पति और बेटे को पसंद नहीं आई. उन्होंने उसे रोकना चाहा तो उस ने परिवार को ही तबाह कर दिया.

अलवर जिले के रैणी के पास एक छोटे से गांव के रहने वाले ब्रजमोहन शर्मा की बेटी संतोष उर्फ संध्या शर्मा की शादी करीब 19 साल पहले गारू गांव के रहने वाले बनवारीलाल शर्मा से हुई थी. बनवारीलाल सीधासादा इंसान था. गांव में रह कर वह खेतीबाड़ी करता था, उसी से उस का गुजरबसर हो रहा था. जब संतोष की शादी हुई थी, वह मात्र 17 साल की थी. जबकि बनवारीलाल 27 साल का था.

इस तरह दोनों की उम्र में करीब 10 साल का अंतर था. संतोष ने भी अन्य लड़कियों की तरह हसीन ख्वाब देखे थे. संतोष पढ़ीलिखी थी, इसलिए उस के ख्वाब भी बड़े थे. वह सुंदर भी थी. शादी के बाद उस की सुंदरता में और निखार आ गया था.

गांव में पलीबढ़ी संतोष शर्मा की महत्त्वाकांक्षाएं संतोष को बनवारीलाल से कोई परेशानी नहीं थी. बस, परेशानी थी तो यह कि वह भोलाभाला था. उसे दुनियादारी से ज्यादा मतलब नहीं रहता था. वह अपने घरपरिवार में ही रमा रहता था, जबकि संतोष चाहती थी कि वह उसे घुमाएफिराए, सिनेमा दिखाए, होटल में खाना खिलाए और उस की फरमाइशें पूरी करे. लेकिन बनवारीलाल को इन बातों से कोई मतलब नहीं था.

संतोष जैसी खूबसूरत और पढ़ीलिखी पत्नी पा कर बनवारीलाल खुश था. उस के पिता मुरारीलाल और उन की पत्नी भी संतोष जैसी बहू पा कर खुश थीं. संतोष ने बूढे़ मुरारीलाल को जल्दी ही दूसरी खुशियां भी दे दी थीं. उसे लगातार 3 बेटे ही हुए थे. बच्चों के पैदा होने से मुरारीलाल खुशी से फूले नहीं समा रहे थे.

पति और ससुराल वाले भले ही खुश थे, लेकिन गांव में रहते हुए संतोष को अपनी इच्छाएं दम तोड़ती नजर आ रही थीं. हालांकि उस की छोटी बहन कविता भी उसी घर में ब्याही थी. संतोष कभीकभी अपने मन की बात कविता से कह भी देती थी.

अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए संतोष ने पति बनवारीलाल को गांव छोड़ कर अलवर में चल कर रहने के लिए राजी कर लिया. कई सालों पहले बनवारीलाल संतोष और तीनों बच्चों के साथ अलवर आ गया और छोटामोटा काम करने लगा. बाद में उसे हैवल्स कंपनी में इलैक्ट्रीशियन की नौकरी मिल गई. गांव से शहर आ कर रहने के बाद बनवारीलाल के परिवार के खर्चे बढ़ गए तो संतोष ने आगे बढ़ कर ताइक्वांडो सीख कर लड़केलड़कियों को इस की ट्रेनिंग दे कर पैसे कमाने का विचार किया.

बनवारीलाल क्या कहता, वह तो खुद बढ़ते खर्चे से परेशान था. संतोष की इच्छा पर उस ने उसे ताइक्वांडो सीखने की इजाजत दे दी. ताइक्वांडो सीखने के दौरान ही संतोष की दोस्ती हनुमानप्रसाद जाट से हो गई.

 25 साल का हनुमानप्रसाद अलवर जिले के बड़ौदामेव कस्बे के होलीचौक का रहने वाला था. वह ताइक्वांडो का अच्छा खिलाड़ी था. वह 2 बार नेशनल स्तर पर खेल चुका था. वह पढ़ाई में भी अच्छा था. संस्कृत से एमए करने के बाद वह उदयपुर की सुखाडि़या यूनिवर्सिटी से शारीरिक शिक्षक का कोर्स कर रहा था.

हनुमानप्रसाद से दोस्ती हुई तो वह संतोष को कई प्रतियोगिताओं में राजस्थान से बाहर भी खेलने के लिए ले गया. साथसाथ खेलने और दोस्ती होने से संतोष गठीले बदन के हनुमानप्रसाद की ओर आकर्षित होने लगी. उम्र में वह संतोष से 11 साल छोटा था, लेकिन जब प्यार होता है तो वह न जातिपांत देखता है और न ही उम्र या गरीबीअमीरी. यही संतोष के साथ भी हुआ. संतोष और हनुमानप्रसाद के बीच प्यार ही नहीं हुआ, बल्कि शारीरिक संबंध भी बन गए.

ताइक्वांडो सीख कर संतोष अलवर में लड़कियों को इस का प्रशिक्षण देने लगी. वह कई शिक्षण संस्थाओं में भी स्कूली बच्चों को ताइक्वांडो का प्रशिक्षण देती थी. 35-36 साल की संतोष शौर्ट शर्टपैंट व टाई पहन कर 20 साल की कालेज गर्ल से ज्यादा नहीं लगती थी. खूबसूरत वह थी ही, इसीलिए हनुमानप्रसाद उस पर जान छिड़कता था. करीब 5 महीने पहले संतोष ताइक्वांडो खेलने के लिए नेपाल और श्रीलंका भी गई थी.

 हनुमानप्रसाद अपनी पढ़ाई करने उदयपुर चला गया तो संतोष 2 बार उदयपुर भी गई. हनुमानप्रसाद उदयपुर के आजादनगर में किराए का कमरा ले कर रहता था. संतोष जब भी उदयपुर जाती, वह उसे होटल में ठहराता और खुद भी उस के साथ होटल में रहता.

संतोष ने संध्या शर्मा नाम से फेसबुक पर अपनी प्रोफाइल बना रखी थी. इस में उस ने खुद को इंगलिश मीडियम स्कूल व अलवर के राजर्षि कालेज में पढ़ा बताते हुए स्टेटस सिंगल यानी अविवाहित डाल रखी थी. संध्या वाले फेसबुक पेज पर विजेताओं को पुरस्कार वितरित करती संतोष की टाई वाली कई फोटो व ताइक्वांडो खेलते हुए कई फोटो लगी हुई थीं.

 जब घर वालों को पता चला संतोष के प्यार का कहते हैं, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही संतोष के साथ भी हुआ. हनुमानप्रसाद से उस के संबंधों की जानकारी बनवारीलाल और बड़े बेटे अमन उर्फ मोहित को हो गई. बापबेटों ने इस का विरोध किया, तो घर में लगभग रोज ही कलह होने लगी. संतोष ने यह बात अपने प्रेमी हनुमानप्रसाद को बताई तो उस ने रोजाना की इस कलह से छुटकारा दिलाने के लिए संतोष के साथ मिल कर उस के पति बनवारीलाल और बच्चों को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली.

उसी योजना के तहत हनुमानप्रसाद ने अलवर के पास गुजूकी गांव के रहने वाले कपिल धोबी से संपर्क किया. कपिल ने मदद के लिए अपने परिचित दीपक उर्फ बगुला धोबी को साथ मिला लिया. इन दोनों को हनुमानप्रसाद ने पैसे का लालच दे कर बनवारीलाल की हत्या के लिए राजी किया था. हत्या के लिए हनुमानप्रसाद ने 12 सौ रुपए में एक चाकू औनलाइन खरीदा जिसे उदयपुर के अपने पते पर मंगाया था.

एक चाकू उस ने बाजार से खरीदा. फिंगरप्रिंट न आ सकें, इस के लिए हनुमानप्रसाद ने हाथ में पहनने वाले ग्लव्स भी बाजार से खरीदे. योजनाबद्ध तरीके से हनुमानप्रसाद जाट, कपिल धोबी और दीपक धोबी 2 अक्तूबर, 2017 की रात करीब 10 बजे शिवाजी पार्क पहुंचे. वे बनवारीलाल के मकान के पास पहुंचे तो संतोष ने छत से उन्हें इशारे से थोड़ी देर बाद आने को कहा.

इस के बाद संतोष ने पति और बच्चों को रात के खाने में दही और नमकीन के रायते में जहरीला पदार्थ मिला कर खिला दिया. इस से बनवारीलाल और चारों बच्चे अचेत हो गए. रात करीब एक बजे हनुमानप्रसाद भाड़े के दोनों हत्यारों कपिल और दीपक के साथ शिवाजी पार्क पहुंचा तो संतोष ने नीचे आ कर दरवाजा खोल दिया.

हनुमानप्रसाद और उस के दोनों साथियों ने कमरे में जा कर अपने साथ लाए चाकुओं से पहले बनवारीलाल का गला रेत दिया. उस के बाद एकएक कर के चारों बच्चों के गले काट दिए. बेहोश होने की वजह से कोई भी चीखाचिल्लाया नहीं.

जब हनुमानप्रसाद और उस के साथी बनवारीलाल और बच्चों के गले रेत रहे थे तो संतोष सीढि़यों पर खड़ी हो कर यह सब देख रही थी. 5 लोगों की हत्या कर के जब तीनों जाने लगे तो संतोष ने बनवारीलाल की स्कूटी की चाबी और 3 हजार रुपए हनुमानप्रसाद को दिए.

स्कूटी से हनुमानप्रसाद, कपिल और दीपक कृषि उपज मंडी के पास पहुंचे और वहीं मोड़ के पास उसे खड़ी कर के अपने कपड़े बदले और औटो पकड़ कर राजगढ़ चले गए. वे राजगढ़ से ट्रेन पकड़ कर जयपुर जाना चाहते थे.

लेकिन उन्हें वहां से ट्रेन नहीं मिली तो वे दूसरे औटो से राजगढ़ से बांदीकुई चले गए, जहां से सभी जयपुर चले गए. जयपुर से हनुमानप्रसाद तो उदयपुर चला गया, जबकि दीपक और कपिल अलवर आ कर अपने गांव गुजूकी चले गए.

संतोष ने खुद को बताया बेकसूर  5 दिनों तक पथराई आंखों से हर आनेजाने वाले को देख रहे मुरारीलाल को जब पता चला कि पुलिस ने बहू सहित 4 लोगों को बेटे और पोतों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है तो उन्होंने भर्राई आवाज में कहा, बहू समेत सभी हत्यारों को फांसी पर लटका देना चाहिए, इस से कम सजा उन्हें नहीं मिलनी चाहिए. हम ने उन का क्या बिगाड़ा था, जो मेरा परिवार इस तरह उजाड़ दिया.

गिरफ्तारी के बाद संतोष खुद को बेकसूर बता रही थी. उस का कहना था कि वह निर्दोष है. उसे फंसाया जा रहा है. उस का हनुमानप्रसाद से कोई संबंध नहीं है. हनुमानप्रसाद और उस के साथियों ने ही उस के पति और बच्चों की हत्या की है. उन की हत्या उन्होंने क्यों की, यह तो वही बताएंगे.

पुलिस का मानना है कि अगर संतोष के सासससुर एक दिन पहले गांव नहीं चले गए होते तो शायद उन की भी हत्या हो जाती. संतोष ने उन्हें रोकने की काफी कोशिश की थी, लेकिन वे नहीं रुके थे. पुलिस ने 8 अक्तूबर को संतोष, हनुमानप्रसाद, कपिल और दीपक को अतिरिक्त सिविल जज एवं न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश कर रिमांड की मांग की. मजिस्ट्रैट ने चारों आरोपियों को 13 अक्तूबर तक के लिए पुलिस रिमांड पर दे दिया.

रिमांड अवधि के दौरान आईजी हेमंत प्रियदर्शी ने भी अलवर आ कर आरोपियों से पूछताछ की. पुलिस हनुमान को ले कर उदयपुर गई, जहां आजादनगर स्थित उस के किराए के कमरे से स्कूटी की चाबी, उदयपुर आने का टिकट, कपडे़जूते आदि बरामद कर लिए गए. कमरे में औनलाइन शापिंग द्वारा मंगवाए गए चाकू का बिल भी मिला.

पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर राजगढ़ के रेलवे स्टेशन के पास एक गड्ढे में छिपा कर रखे 2 चाकू व तीन जोड़ी गलव्स भी बरामद किए. बहरहाल, प्यार में अंधी संतोष ने अपने परिवार को पूरी तरह तबाह कर दिया. उस के ऊंचे सपनों ने उसे जेल के सीखचों के पीछे पहुंचा दिया.

प्रेमी और भाड़े के कातिलों के हाथों पूरे परिवार को मरवाने के बाद संतोष अब चैन से नहीं रह सकेगी. उस की छोटी बहन कविता अपना दुख किसी से नहीं कह पा रही है उस के बेटे निक्की ने ताई का क्या बिगाड़ा था, जो उसे भी मरवा दिया.

कविता का दुख यह भी है कि उस का पति मुकेश कथा लिखे जाने तक घर नहीं लौटा था. लगता है, इस बात का उसे पता ही नहीं चला है कि उस की भाभी ने उस की बगिया उजाड़ दी है.      ?

 —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

टूटा जाल शिकारी का : असफल योजना बनी कारावास की सजा

28अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 में काफी भीड़ थी. दोनों पक्षों के वकील, पुलिस और तीनों आरोपी चंद्रमोहन शर्मा, प्रीति नागर, विदेश अदालत में मौजूद थे. उस दिन फास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश निरंजन कुमार एक ऐसे केस में सजा सुनाने वाले थे, जिस में शातिराना ढंग से खुद को मृत साबित करने के लिए चंद्रमोहन शर्मा ने एक पागल व्यक्ति को अपनी कार में बैठा कर जिंदा जला दिया था.

दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी थी. पिछली तारीख पर अदालत चंद्रमोहन को भादंवि की धारा 302 के तहत दोषी भी ठहरा चुकी थी. उस दिन सिर्फ फैसला सुनाया जाना था. प्राथमिक काररवाई निपटाने के बाद न्यायाधीश निरंजन कुमार ने फैसला सुनाते हुए चंद्रमोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

दरअसल 28 अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 के न्यायाधीश निरंजन कुमार ने जो फैसला सुनाया, उस की शुरुआत 7 जून, 2014 की शाम को तब हुई थी, जब शाम करीब 7 बजे अचानक एक लड़की का अपहरण हो गया.

दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा में अल्फा- 2, सेक्टर के मकान नंबर आई-33 में रहने वाले संतराम नागर की बेटी प्रीति नागर (22) अपने घर के बाहर से रहस्यमय ढंग से गायब हो गई.

प्रीति नागर शाम के अंधेरे में घर के बाहर बिछी चारपाई उठाने आई थी और गायब हो गई. चूंकि उस वक्त इलाके में बिजली नहीं थी इसलिए किसी ने भी प्रीति को कहीं आतेजाते नहीं देखा था. प्रीति को इधरउधर तलाश करने के बाद उस के पिता संतराम ने पुलिस कंट्रोल रूम को 100 नंबर पर फोन कर के इत्तिला दे दी.

सूचना मिलने के बाद कासना थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई. संतराम नागर ने पुलिस को वे सारी बातें बता दीं, जो प्रीति के गायब होने से जुड़ी थीं. पुलिस ने संतराम नागर व आसपड़ोस के लोगों के बयान दर्ज किए. फिर अगली सुबह संतराम की शिकायत पर थाना कासना में धारा 364 के तहत प्रीति के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

8 जून को प्रीति के अपहरण की जांच का केस एसआई विनय शर्मा के सुपुर्द कर दिया गया. जांच का काम संभालते ही जांच अधिकारी शर्मा अपनी टीम के साथ संतराम के घर पहुंचे और विवेचना शुरू कर दी.

तमाम बिंदुओं पर पूछताछ और जांच करने के बाद विनय शर्मा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए. प्रीति का कहीं भी कोई सुराग नहीं मिला. अचानक 2 महीने बाद 9 अगस्त, 2014 को प्रीति के पिता संतराम के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से काल आई. काल करने वाले ने अपना नाम बताए बिना कहा कि वह तिरुपति बालाजी से बोल रहा है और उन की बेटी प्रीति उस के पास है.

फोन करने वाले ने बताया कि प्रीति कुछ गलत लोगों के चंगुल में फंस गई थी, लेकिन किसी तरह वह बच गई और अब उस के पास है. फोनकर्ता ने संतराम से आगे कहा कि वह तिरुपति बालाजी पहुंच जाएं, वह उन से बालाजी में मिलेगा और उन की बेटी उन के सुपुर्द कर देगा. काफी अनुरोध करने पर भी उस ने अपना नामपता नहीं बताया.

संतराम ने कासना थाने जा कर इस फोन के बारे में जांच अधिकारी विनय शर्मा को बताया.

शर्मा ने तुंरत उस फोन के बारे में साइबर सेल से जानकारी हासिल की तो पता चला कि जिस नंबर से संतराम को काल आई थी, उस की लोकेशन बंगलुरु के एक पीसीओ की थी.

विनय शर्मा ने थानाप्रभारी समरपाल सिंह और एसएसपी को इस जानकारी से अवगत कराया तो उन्होंने 13 अगस्त, 2014 को विनय शर्मा को कांस्टेबल धामा के साथ बंगलुरु रवाना कर दिया. उन के साथ संतराम भी अपने साले के साथ बंगलुरु पहुंच गए.

बंगलुरु पहुंच कर विनय शर्मा सब से पहले उस पीसीओ पर पहुंचे, जहां से संतराम के मोबाइल पर फोन किया था. लेकिन उस पीसीओ के संचालक से फोन करने वाले की पहचान के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी. संयोग से उसी दिन संतराम के मोबाइल पर लोकल नंबर से एक और काल आई.

फोन उसी व्यक्ति का था, जिस ने पहले फोन किया था. लेकिन इस बार फोन करने वाला काफी गुस्से में था उस ने पुलिस को साथ ले कर आने के लिए संतराम को खूब खरीखोटी सुनाई. संतराम ने उसे समझाने की कोशिश की कि उस का इरादा गलत नहीं था, लेकिन फोन करने वाला इतने गुस्से में था कि उस ने प्रीति का बुरा अंजाम करने की धमकी दे कर फोन काट दिया.

संतराम ने जब उसी नंबर पर काल बैक की तो फोन स्विच्ड औफ हो चुका था. जांच अधिकारी विनय शर्मा संतराम के साथ ही थे. वे समझ गए कि फोन करने वाला उन पर नजर रख रहा है. जिस नंबर से संतराम को फोन आया था, विनय शर्मा ने वह नंबर नोएडा में बैठी अपनी साइबर टीम को भेज दिया तो पता चला कि वह नंबर बंगलुरु के ही एक पीसीओ का है.

विनय शर्मा ने तत्काल पता नोट किया और बताए गए पते पर पहुंच गए. पीसीओ के मालिक से जब फोन करने वाले की बाबत जानकारी मांगी, तो वह उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका. क्योंकि पीसीओ पर तमाम लोग आते हैं और सब के बारे में जानकारी रखना पीसीओ वाले के लिए संभव नहीं होता.

निराश हो कर 1-2 दिन बाद संतराम बंगलुरु से नोएडा लौट आए. अब जांच के सारे दरवाजे बंद हो चुके थे. लेकिन उच्चाधिकारियों  के आदेश के कारण विनय शर्मा अपने कांस्टेबल धामा के साथ वहीं रुके रहे और अपनी जांचपड़ताल करते रहे.

इस बीच संतराम जब नोएडा पहुंच गए तो 15 अगस्त को उसी अज्ञात फोन करने वाले ने फिर फोन किया. उस ने संतराम से कहा कि उन की लड़की के गिड़गिड़ाने की वजह से वह उसे छोड़ देगा, लेकिन शर्त यह है कि वह इस बार अकेला आए और अगली सुबह तिरुपति बालाजी मंदिर के बाहर उस का इंतजार करे.

संतराम ने तुरंत फ्लाइट पकड़ी और तिरुपति बालाजी मंदिर पहुंच गए. इस दौरान उन्होंने फोन कर के विनय शर्मा को भी ये बात बता दी थी. फलस्वरूप 16 अगस्त की सुबह विनय शर्मा संतराम व उन के साले के साथ फोन करने वाले का इंतजार करने लगे.

लेकिन अज्ञात फोनकर्ता ने इस बार भी धोखा दे दिया . देर शाम तक इंतजार करने के बाद वे फिर निराश हो गए, क्योंकि न तो फोन करने वाला आया और न ही उस की कोई काल आई. हालांकि इस बार जांच अधिकारी ने सावधानी बरतते हुए खुद को संतराम के से दूर रखा था. निराश हो कर संतराम नोएडा लौट आए.

वह यह मान बैठे थे कि उन्हें कोई परेशान करने के लिए ऐसा कर रहा है. लेकिन विनय शर्मा इस बार भी वापस नहीं लौटे. और प्रीति के फोटो के आधार पर थानेथाने जा कर वह उस की तलाश करते रहे.

जिस वक्त पुलिस टीम प्रीति को बंगलुरु में तलाश कर रही थी, 22 अगस्त, 2014 को संतराम ने विनय शर्मा को फोन कर के बताया कि उन के पास फोन करने वाले का एक और धमकी भरा फोन आया है. इस बार उस ने प्रीति को जान से मारने की धमकी दी है.

संतराम ने बताया कि इस बार फोनकर्ता ने एक अन्य नंबर का इस्तेमाल किया था. विनय शर्मा के मांगने पर संतराम ने उन्हें वह नंबर नोट करा दिया.

एसआई विनय शर्मा ने वह नंबर साइबर टीम को भेज कर पता करा लिया कि वह नंबर बंगलुरु में हांसे कोटे इलाके के एक पीसीओ का है.

पता मिलते ही विनय शर्मा पीसीओ मालिक के पास पहुंच गए. यहां भी पीसीओ संचालक से उन्होंने फोनकर्ता की जानकारी जुटाने की कोशिश की, मगर कोई खास सफलता नहीं मिली. फिर भी इस बार उन्हें एक क्लू जरूर मिल गया.

विनय शर्मा की नजर पीसीओ के सामने स्थित एक ज्वैलरी शौप पर पड़ी. ज्वैलरी शौप के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. सीसीटीवी कैमरा देखते ही विनय शर्मा का चेहरा खिल उठा. उन्होंने पीसीओ के संचालक के साथ जा कर ज्वैलरी शौप संचालक को अपना परिचय दिया और सीसीटीवी फुटेज दिखाने का अनुरोध किया.

ज्वैलरी शौप के मालिक ने विनय शर्मा को सहयोग करते हुए उक्त समय की वीडियो फुटेज दिखा दी.

संयोग की बात थी कि पीसीओ ज्वैलरी शौप के सीसीटीवी कैमरे की रेंज में था. विनय शर्मा के साथ सीसीटीवी देख रहे पीसीओ संचालक ने सफेद पैंट, काली जैकेट और काले जूते पहने एक गंजे व्यक्ति को देख कर बताया कि उस के पीसीओ पर वही शख्स आया था. काल करने के बाद वह वापस चला गया था. वापस लौटते हुए उस शख्स का चेहरा पूरी तरह कैमरे की जद में आ गया था.

उस आदमी की वेशभूषा देख कर ज्वैलरी शौप के मालिक ने बताया कि यह व्यक्ति जो ड्रेस पहने है, वह कोलार में दुपहिया वाहन बनाने वाली होंडा फैक्ट्री के कर्मचारियों की ड्रेस है. यह सुराग डूबते को तिनके का सहारा मिलने जैसा था.

आगे की छानबीन के लिए विनय शर्मा ने ज्वैलरी शौप के संचालक से उस फुटेज की कौपी ले कर अपनी टीम के साथ कोलार के नस्सापुर स्थित टू व्हीलर बनाने वाली होंडा कंपनी के औफिस में पहुंच गए. जांच अधिकारी ने मैनेजर को पूरा मामला बताया. उस से पूछा गया कि क्या पिछले कुछ महीनों में उन के यहां किसी उत्तर भारतीय कर्मचारी ने नौकरी जौइन की है. इस के जवाब में मैनेजर ने उन्हें पिछले 3 महीनों में नौकरी जौइन करने वाले 3 कर्मचारियों का फोटो समेत बायोडाटा मिल गया.

तीनों बायोडाटा देखने के बाद विनय शर्मा की नजर एक शख्स पर अटक गई, क्योंकि वह उन का जानापहचाना था.

वह शख्स चंद्रमोहन शर्मा था, लेकिन बायोडाटा में उस का नाम नितिन लिखा था, जिस ने 6 मई, 2014 को फिटर कर्मचारी के रूप में उन के यहां नौकरी जौइन की थी. उस ने अपना मूल पता हरियाणा, हिसार लिखवाया था.

चंद्रमोहन को विनय अच्छी तरह जानते थे. क्योंकि वह नोएडा का एक आरटीआई एक्टिविस्ट था और वह उस से कई बार मिले भी थे. लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि चंद्रमोहन यहां क्या कर रहा है और उस ने अपना नाम नितिन क्यों लिखवाया है. साथ ही प्रीति की तलाश करतेकरते उन्हें चंद्रमोहन की बंगलुरु में उपस्थिति समझ नहीं आ रही थी.

विनय शर्मा ने अपने मोबाइल से बायोडाटा में लगी फोटो ले कर अपने एसएचओ समरजीत सिंह को भेजी और उन्हें पूरी बात बताई.

कुछ देर में इंसपेक्टर समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को जो कुछ बताया, उस से उन के दिमाग की नसें हिल गईं. समरजीत सिंह ने बताया कि नितिन नाम का शख्स चंद्रमोहन शर्मा ही है और वह उस के मर्डर केस की जांच कर रहे हैं. समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को बिना वक्त गंवाए नितिन को पकड़ने की हिदायत दी.

मामले की तसवीर अब काफी हद तक साफ हो चुकी थी. विनय शर्मा के कहने पर नितिन शर्मा उर्फ चंद्रमोहन को एचआर मैनेजर ने फैक्ट्री से बुलवा लिया. पुलिस को सादे लिबास में देख कर कथित नितिन शर्मा घबरा गया. विनय शर्मा को वह पहले से ही जानता था. विनय शर्मा ने उसे यह नहीं बताया कि उन्हें उस की मौत के ड्रामे के बारे में कोई जानकारी है.

उन्होंने उस से सब से पहले प्रीति के बारे पूछताछ शुरू की. चंद्रमोहन को पता नहीं था कि विनय शर्मा को उस के बारे में सब पता चल चुका है. उस ने बताया कि प्रीति से उस ने शादी कर ली है. वह अपनी इच्छा से अपना घर छोड़ कर उस के साथ आई है.

चंद्रमोहन विनय कुमार को काउंटी कट्टा इलाके में अपने किराए के घर पर भी ले गया, जहां वह प्रीति के साथ रहता था. विनय शर्मा ने घर में घुसते ही प्रीति को पहचान लिया, क्योंकि नोएडा से इतनी दूर वह उसी तलाश में आए थे.

विनय शर्मा ने 27 अगस्त, 2014 को स्थानीय पुलिस के सहयोग से प्रीति व चंद्रमोहन को हिरासत में ले लिया. दोनों को स्थानीय अदालत में पेश कर के उन्होंने उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर लिया और उन्हें ग्रेटर नोएडा के कासना थाने ले आए.

विनय शर्मा ग्रेटर नोएडा से बंगलुरु जिस प्रीति की तलाश में गए थे, वह मकसद पूरा हो चुका था. लेकिन इसी के साथ खुद को मुर्दा साबित कर के प्रीति के साथ मौज कर रहा वह चंद्रमोहन नाम का कथित मृतक भी उन के हाथ लग गया था.

29 अगस्त को पुलिस ने प्रीति नागर और चंद्रमोहन को अदालत में पेश कर के 3 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड की अवधि में चंद्रमोहन व प्रीति से अलगअलग पूछताछ की गई, तो उन की प्रेम कहानी तथा चंद्रमोहन द्वारा रची गई गहरी साजिश का भी परदाफाश हो गया.

चंद्रमोहन शर्मा आरटीआई कार्यकर्ता और आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य था. वह ग्रेटर नोएडा के अल्फा-2 में आई ब्लौक के मकान नंबर 480 में रहता था. चंद्रमोहन के परिवार में पत्नी सविता तथा 2 बच्चे थे, 12 वर्ष का बेटा तथा 7 वर्ष की बेटी.

हुआ यूं था कि 17 मई, 2014 को चंद्रमोहन की पत्नी सविता ने थाना कासना में आ कर एक लिखित तहरीर दी थी. तहरीर में सविता ने लिखा था कि उस का पति चंद्रमोहन 30 अप्रैल, 2014 से लापता था. 2 मई को उस की जली हुई लाश उसी की कार में मिली थी. तहरीर में सविता ने आरोप लगाया था कि उस के पति की मौत दुर्घटना में नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है.

सविता की तहरीर के मुताबिक कासना क्षेत्र के बृजेश, शानी, राजकुमार उर्फ राजू, बबलू उर्फ आनंद और प्रवीण ने गांव कासना के मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा था. उस का पति गांव की तरफ से मंदिर की जमीन के मुकदमे में पैरवी कर रहा था, इसलिए उपरोक्त सभी लोग चंद्रमोहन से दुश्मनी रखते थे.

इन सभी लोगों से चंद्रमोहन ने अपनी जान का खतरा भी बताया था, जिस के संबंध में 30 अप्रैल, 2014 को ही थाना कासना में तत्कालीन थानाप्रभारी वीरपाल सिंह को शिकायत दे कर प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी, जिस में चंद्रमोहन ने आरोप लगाया था कि 28 अप्रैल को ड्यूटी पर जाते समय उस से रंजिश मानने वाले बृजेश ने अपने साथियों के साथ परी चौक के पास उसे जान से मारने की धमकी दी थी.

सविता ने अपनी तहरीर में आरोप लगाया था कि उक्त सभी व्यक्तियों ने साजिश कर के उस के पति चंद्रमोहन की हत्या कर लाश को कार समेत जला दिया है, ताकि घटना को दुर्घटना का रूप दिया जा सके.

सविता की तहरीर के आधार पर कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर के नामजद आरोपियों से पूछताछ करने का प्रयास किया तो पता चला कि वे फरार हैं.

चंद्रमोहन शर्मा की मौत का प्रकरण कुछ इस तरह सामने आया था. 1/ 2 मई, 2014 की रात करीब 12 बजे ग्रेटर नोएडा के अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने जेपी ग्रीन के पास एक जली हुई कार मिली थी. कार की ड्राइविंग सीट पर जो शख्स बैठा था, वह भी बुरी तरह जल कर कोयला हो चुका था.

जली कार में लाश की सूचना पा कर कासना थाना पुलिस मौके पर पहुंची. प्रथमदृष्टया पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हादसा रहा होगा. गैस रिसने से कार आग का गोला बन गई होगी. कार ड्राइव करने वाले को इतनी भी मोहलत नहीं मिली कि दरवाजा खोल कर वह बाहर निकल पाता.

वह सीट पर बैठेबैठे ही जल कर मर गया. कार का रजिस्ट्रेशन नंबर और चेसिस नंबर सहीसलामत था. उसी के माध्यम से पुलिस ने अगले दिन आरटीओ से मालूमात की तो पता चला वह कार चंद्रमोहन की थी. पुलिस उस पते पर पहुंची, जिस पते पर कार पंजीकृत थी.

वहां पता चला कि वह घर चंद्रमोहन का है. चंद्रमोहन तो नहीं मिला, लेकिन उस की पत्नी जरूर पुलिस को मिल गई. पुलिस ने चंद्रमोहन की पत्नी सविता को बुला कर कार में लाश की शिनाख्त कराई. सविता ने लाश के साथ कार की भी शिनाख्त कर दी.

चंद्रमोहन के परिजनों ने उस की लाश की शिनाख्त 2 मई को ही कर दी थी. पहली नजर में पुलिस को ये मामला दुर्घटनावश आग लगने से हुई मौत का लग रहा था. लेकिन कुछ रोज बाद सविता ने इस मामले में हत्या की आशंका जताते हुए 5 लोगों को नामजद करा दिया.

जिस के बाद कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन सभी आरोपी फरार हो गए. इस केस के जांच अधिकारी कासना थाने के एसएचओ समरजीत सिंह थे.

होंडा टू व्हीलर कंपनी में मैकेनिक की हैसियत से काम करने वाला चंद्रमोहन सामाजिक कार्यों तथा राजनीति में गहरी रुचि रखता था. इसी कारण वह आरटीआई कार्यकर्ता होने के साथ अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य बन गया था.

चंद्रमोहन का जीवन सुख में बीत रहा था. 15 वर्ष पहले उस ने सविता से प्रेम विवाह किया था. उन के 2 बच्चे भी थे. निजी उपयोग के लिए चंद्रमोहन ने एक शेवरले कार भी खरीद ली थी.

चंद्रमोहन के सुखी जीवन में उथलपुथल तब हुई, जब प्रीति से उस की आंखें लड़ीं. आसपास रहने के कारण प्रीति और सविता की दोस्ती हो गई थी. सविता से मिलने के लिए प्रीति अकसर उस के घर पर आती थी. इसी दौरान चंद्रमोहन पत्नी की सहेली के आकर्षण में बंध गया. चंद्रमोहन उम्र में प्रीति से कई साल बड़ा था, वह विवाहित तथा 2 बच्चों का पिता भी, इस के बावजूद 22 साल की प्रीति उसे अपना बनाने का सपना देखने लगी.

पहले आंखोंआंखों में उन की रसीली बातें हुई, फिर कभी रूबरू तो कभी फोन पर बातें होने लगीं. चंद्रमोहन ने प्रेम निवेदन किया, तो प्रीति ने उसे सशर्त स्वीकार कर लिया. शर्त यह थी कि चंद्रमोहन उसे मौजमजे की चीज नहीं समझेगा. उस से विवाह कर के जीवन भर साथ निभाएगा.

15 साल पहले जब चंद्रमोहन ने सविता से प्रेम विवाह किया था, तब वह बेहद हसीन थी. लेकिन वक्त की धूप ने सविता के रंगरूप को झुलसाया, तो घरपरिवार की जिम्मेदारियां निभातेनिभाते वह निचुड़ सी गई. बनावसिंगार से भी वह दूर रहने लगी थी. इसी वजह से चंद्रमोहन को वह बासी और रूखीफीकी महसूस होने लगी थी.  वह खुद भी सविता से ऊबा हुआ था. यही कारण था कि उस ने प्रीति की विवाह वाली शर्त मंजूर कर ली.

बस इस के बाद दोनों की बेमेल प्रेम कहानी शुरू हो गई. प्रेम की पगडंडियां तय करतेकरते कुछ महीने बीत गए, तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर विवाह के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया.

एक बीवी के होते चंद्रमोहन दूसरा विवाह नहीं कर सकता था. उसे मालूम था कि यह कानूनन जुर्म है. सविता को तलाक वह दे नहीं सकता था, क्योंकि करीबी रिश्तेदारों पर सविता की अच्छीखासी पकड़ थी. तलाक देता, तो सभी एकजुट हो कर चंद्रमोहन का गला दबाने आ जाते.

चंद्रमोहन समझ नहीं पा रहा था, किस तरह सविता से पीछा छुड़ाए. एक तो चंद्रमोहन को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, दूसरी ओर प्रीति विवाह के लिए दबाव बनाए हुए थी. विवाह में अनावश्यक विलंब होता देख प्रीति उसे जेल भिजवाने और पत्नी से दोनों का रिश्ता बताने की धमकी भी देने लगी.

चंद्रमोहन ऐसा कुछ नहीं चाहता था, जिस से उस का जीना हराम हो जाए. जब उसे कोई राह नहीं सूझी, तब उस ने प्रीति से गुप्तरूप से विवाह करने का निश्चय कर लिया.

28 नवंबर, 2013 को चंद्रमोहन प्रीति को दादरी स्थित आर्यसमाज मंदिर में ले गया और वहां उस से प्रेम विवाह कर लिया.

प्रीति खुश थी. उस ने मान लिया कि आज चंद्रमोहन ने मांग में सिंदूर भरा है, तो कल घर भी ले जाएगा. चंद्रमोहन इसलिए खुश था कि वक्ती तौर पर ही सही, कुछ समय के लिए मुसीबत से निजात तो मिल गई.

चंद्रमोहन व प्रीति अलगअलग रहते रहे. प्रीति ने अपने परिवार में रहते हुए किसी को अपनी शादी की भनक नहीं लगने दी. दूसरी तरफ चंद्रमोहन भी अपने परिवार से प्रीति के साथ की गई दूसरी शादी का राज छिपाता रहा.

जब शादी को कुछ सप्ताह बीत गए और कोई सकारात्मक रास्ता निकलता नहीं दिखा तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर फिर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द अपने घर से सविता की छुट्टी करे और उसे घर ले जाए.

पहले प्रीति से प्रेम और फिर विवाह कर के चंद्रमोहन बुरी तरह फंस गया था. न वह सविता को घर से निकाल सकता था, न ही प्रीति के बगैर रह सकता था. प्रीति भी अब अपने मायके में रहने को राजी नहीं थी. प्रीति ने जब चंद्रमोहन पर लगातार दबाव बनाना शुरू किया तो बहुत सोचनेसमझने के बाद चंद्रमोहन ने एक खौफनाक योजना बना डाली.

चंद्रमोहन ने जो योजना बनाई थी, उसे अकेले अंजाम दे पाना संभव नहीं था. अत: योजना को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने अपने साले विदेश शर्मा को नकद रुपए देने का लालच दिया. साथ ही उस ने सविता को उस के बदले होंडा कंपनी में नौकरी मिलने का लालच दे कर साजिश में शामिल कर लिया.

दरअसल, अंसल प्लाजा के आसपास एक विक्षिप्त युवक घूमा करता था. उस की और चंद्रमोहन की कदकाठी में काफी समानता थी. उस विक्षिप्त युवक को देख कर चंद्रमोहन के दिमाग में एक आइडिया आया था कि क्यों न वह उस पागल को मार कर स्वयं को मुर्दा साबित कर दें.

परिजन व पुलिस उसे मुर्दा मान लेंगे, तो कोई उस की तलाश नहीं करेगा. प्रीति को ले कर वह कहीं दूर चला जाएगा और आगे का उस के संग जीवन गुजारेगा.

प्रीति भी चंद्रमोहन की इस योजना से सहमत हो गई. आपसी विचारविमर्श के बाद 30 अप्रैल, 2014 को योजना को अंतिम रूप दे दिया गया और अगले दिन यानी 1 मई की रात को उसे क्रियान्वित करने का निर्णय लिया गया. योजना को अंजाम देने के लिए चंद्रमोहन ने तुगलपुर स्थित पैट्रोल पंप से एक डिब्बे में 3 लीटर पैट्रोल भरवा कर कार में रख लिया.

1 मई की रात को 11 बजे सविता का भाई विदेश अंसल प्लाजा के आसपास घूमने वाले पागल युवक को बहलाफुसला कर मोटरसाइकिल पर बैठा लाया. चंद्रमोहन अपनी कार में बैठा पहले से उस का इंतजार कर रहा था.

चंद्रमोहन ने एक सुनसान जगह पर कार रोकी और विक्षिप्त युवक को पिछली सीट पर बैठा कर अपनी बेल्ट से उस का गला घोंट कर मार डाला.

इस के बाद चंद्रमोहन ने अपने कपडे़ उतार कर विदेश को दिए, जिन्हें विदेश ने पागल के पहने कपड़े उतार कर उसे चंद्रमोहन के कपड़े पहना दिए. अपना फोन व पर्स भी चंद्रमोहन ने उस की जेब में रख दिया.

चंद्रमोहन ने पहले से ही अपने लिए एक जोड़ी कपड़े गाड़ी में रख रखे थे, जो उस ने खुद पहन लिए. इस के बाद चंद्रमोहन और विदेश ने मृत पड़े विक्षिप्त युवक का शरीर उठा कर गाड़ी की पिछली सीट पर रखा और कार को ड्राइव करते हुए अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने वाली जेपी ग्रीन वाली रोड पर ले गए.

पागल युवक के मृत शरीर को उन्होंने पिछली सीट से हटा कर ड्राइविंग सीट पर बैठाया गया और फिर सीट बेल्ट से उसे कस दिया, ताकि वह जीवित भी हो तो कार से उतर कर भाग ना सके. तब तक आधी रात का वक्त हो चला था. चंद्रमोहन और विदेश ने प्लास्टिक की कैन में भरा पैट्रोल कार पर चारों तरफ और भीतर की सीटों के साथ विक्षिप्त युवक पर अच्छी तरह से छिड़का. इस के बाद उन्होंने कार में आग लगा दी.

चंद पलों में ही कार धूधू कर के जलने लगी. कार को धूधू जलता देख दोनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. आधी रात का वक्त था. वहां से गुजरती कुछ गाडि़यों ने जब कार जलती देखी तो रुक गए. लेकिन तब तक कार इतनी बुरी तरह जल चुकी थी कि उसे बुझाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई. किसी ने फायर ब्रिगेड को फोन कर दिया.

सूचना मिलने के 15-20 मिनट बाद दमकल की गाड़ी भी मौके पर पहुंच गई. कुछ देर में आग पर काबू तो पा लिया गया. लेकिन तब तक कार जल कर कोयला हो चुकी थी. दमकलकर्मियों ने देखा कि कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे एक व्यक्ति की भी जलने से मौत हो गई थी.

मौके से फरार होने के बाद विदेश तो अपने घर चला गया, जबकि चंद्रमोहन ने ट्रेन से बंगलुरु की राह पकड़ ली. बंगलुरु पहुंच कर चंद्रमोहन ने सब से पहले अपने सिर के बाल और मूंछ मुंडवाई. फिर अपने शातिरदिमाग का इस्तेमाल कर जोड़तोड़ से उस ने नितिन शर्मा के नाम की एक आईडी बनवा ली.

नई आईडी बनवाते समय उस ने अपना पता नलवा, हिसार, हरियाणा दर्ज कराया. उस के बाद चंद्रमोहन ने अपनी पहचान से जुड़े दूसरे नकली दस्तावेज भी तैयार करवा लिए. इतना सब होने के बाद चंद्रमोहन ने अगले 4 दिनों में इन तमाम दस्तावेजों के बल पर होंडा टू व्हीलर कंपनी में नौकरी भी पा ली.

बंगलुरु में अज्ञातवास के दौरान चंद्रमोहन सेलफोन के माध्यम से प्रीति के साथ निरंतर संपर्क में रहा. आईडी बन जाने के बाद 7 जून को चंद्रमोहन प्रीति को ले जाने के लिए दिल्ली आया.

फोन के माध्यम से योजना पहले ही बन चुकी थी. योजना के तहत 7 जून की रात 8 बजे प्रीति अपने घर से इस तरह का नाटक कर के लापता हुई ताकि सब को लगे उस का अपहरण हो गया है.

प्रीति अपने लापता होने की घटना को अपहरण का रंग देना चाहती थी, इसलिए घर से बाहर निकलते ही उस ने हलक से हल्की सी चीख भी निकाली. किस्मत ने भी उस वक्त उस का साथ दिया और बिजली गुल हो गई.

घर से कुछ दूर पर ही प्रीति को एक आटोरिक्शा मिल गया, जिसे पकड़ कर वह दिल्ली पहुंच गई, जहां तय स्थान पर वह चंद्रमोहन से मिली. चंद्रमोहन ने पहले ही नई दिल्ली से बंगलुरु जाने वाली कर्नाटक एक्सप्रेस में 2 बर्थ आरक्षित करा रखी थीं.

दोनों सीधे नई दिल्ली स्टेशन जा कर ट्रेन में सवार हो गए और अगले दिन बंगलुरु पहुंच गए. बंगलुरु पहुंचने के बाद चंद्रमोहन ने नकली आईडी से 2 सिम कार्ड खरीदे. वे जिन नंबरों को इस्तेमाल करते थे, वे नंबर दोनों ने किसी को नहीं दिए थे.

रिमांड अवधि में जब पुलिस ने चंद्रमोहन से संतराम को फोन करने का कारण पूछा, तो चंद्रमोहन ने बताया कि वह पुलिस को गुमराह करना चाहता था, इसीलिए उस ने पीसीओ पर जा कर संतराम को फोन कर के कहा था कि उन की बेटी उस के पास है.

लेकिन उस वक्त चंद्रमोहन ने यह कल्पना तक नहीं की थी कि उस की यही गलती उस की गिरफ्तारी का आधार बन जाएगी. क्योंकि इसी एक फोन काल का पीछा करतेकरते पुलिस प्रीति की तलाश में बंगलुरु पहुंच गई बंगलुरु में पुलिस जब प्रीति तक पहुंची तो पुलिस के हाथ चंद्रमोहन की गरदन तक पहुंच गए.

पुलिस रिमांड में हुई पूछताछ के दौरान इस मामले के जांच अधिकारी कासना थानाप्रभारी समरजीत सिंह ने 31 अगस्त, 2014 को चंद्रमोहन की निशानदेही पर जेपी ग्रीन की दीवार से 200 मीटर की दूरी पर फेंकी गई वह प्लास्टिक की कैन भी बरामद कर ली, जिस में पैट्रोल ला कर चंद्रमोहन ने पागल व्यक्ति के ऊपर डाल कर आग लगाई थी.

पुलिस ने अदालत में बतौर गवाह पैट्रोल पंप के उस सेल्समैन को भी पेश किया, जिस से चंद्रमोहन ने कैन में पैट्रोल खरीद कर भरवाया था.

पुलिस ने इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश को भी हत्या में सहयोग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. बाद में तीनों आरोपियों को आवश्यक पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया.

जांच अधिकारी समरजीत सिंह ने 23 नवंबर, 2014 को एक विक्षिप्त युवक को कार में जला कर हत्या करने के आरोप में और खुद की पहचान छिपा कर दूसरे राज्य में छिपने के मुकदमे में हत्या की धारा 302 के साथ भादंसं की धारा 201, 202, 120बी, 420, 467, 468 व 471 की धारा भी जोड़ दी और आरोपपत्र अदालत में पेश कर दिया.

आरोपपत्र पर सुनवाई के दौरान ही बचावपक्ष की दलीलों के आधार पर अभियुक्ता प्रीति और विदेश के खिलाफ लगाए गए कुछ आरोपों को अदालत ने खारिज कर दिया था. बाद में मार्च, 2016 में यह वाद सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय में भेज दिया गया.

इस मामले की जांच के दौरान पुलिस ने अदालत में चंद्रमोहन द्वारा कालोर की होंडा कंपनी में नौकरी पाने के लिए दी गई नकली आईडी व दूसरे दस्तावेज साक्ष्य के तौर पर पेश किए, जिस से उस के खिलाफ अपनी पहचान छिपाने के लिए जालसाजी करने और नकली दस्तावेज तैयार करने के आरोप सही पाए गए.

सरकारी वकील जिला सहायक शासकीय अधिवक्ता हरीश सिसोदिया ने अभियोजन की तरफ से ठोस सबूत दिए, लेकिन अभियोजन पक्ष इस बात को साबित नहीं कर पाया कि इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश की कोई भूमिका थी. इसलिए अदालत ने उसे दोषी न पा कर बरी कर दिया.

अभियोजन की तरफ से चंद्रमोहन और प्रीति की दादरी के आर्यसमाज मंदिर में हुई शादी के प्रमाण भी अदालत में पेश किए गए. इतना ही नहीं, अभियोजन पक्ष की तरफ से ऐसे कई ठोस साक्ष्य और गवाह अदालत में पेश गए, जिस से ये साबित हो गया कि चंद्रमोहन ने एक साजिश के तहत अपनी प्रेमिका के साथ रहने के लिए अपनी मृत्यु का झूठा नाटक रचा.

खुद को मरा साबित करने के लिए चंद्रमोहन ने एक विक्षिप्त व्यक्ति की हत्या कर उस के शव को अपनी कार में डाल कर कार समेत जला दिया. चूंकि प्रीति को चंद्रमोहन के अपराध की जानकारी थी और उस ने ये जानकारी छिपाई, इसलिए उसे 6 माह के कारावास की सजा मिली.

प्रीति जेल से जमानत मिलने के पूर्व पहले ही न्यायालय की तरफ से मिली सजा काट चुकी थी, इसलिए उसे जेल नहीं जाना पड़ा. जबकि विदेश को इस मामले में अदालत ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया.

—कथा पुलिस की जांच व न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के तथ्यों पर आधारित है

 

मां की भूमिका में चमेली : क्यों की दामाद की हत्या

छत्तीसगढ़ का शहर बिलासपुर हाईकोर्ट होने की वजह से न्यायधानी के नाम से जाना जाता है. दिनेश अपने परिवार के साथ बिलासपुर के जरहाभाटा के मंझवापारा में रहता था. वह अपने ही मोहल्ले की किशोरी वीना कौशिक को भगा ले गया था. यह भी कह सकते हैं कि वीना दिनेश के साथ जीनेमरने की कसम खा कर अपने घर की देहरी लांघ आई थी और उस के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी थी.

वीना के पिता जवाहर कौशिक अपनी पत्नी चमेली और बेटी वीना से अलग दूसरे मोहल्ले में रहते थे. सिर्फ मां चमेली ही वीना की एकमात्र गार्जियन थी. वीना अभी 18 वर्ष की हुई थी कि उसे दिनेश से प्रेम हो गया. फिर एक दिन वह घर से बिना बताए गायब हो गई.

दिनेश के पिता रविशंकर श्रीवास की हेयर कटिंग सैलून थी जिस से वे परिवार का भरण पोषण करते थे. दिनेश भी पिता की दुकान पर काम करता था. वह अल्पायु में ही पढ़ाई छोड़ चुका था. फिलहाल वह 21 वर्ष का था. दिनेश और वीना एकदूसरे का हाथ थाम कर घर से निकले तो कुछ दिन रायपुर में बिताने के बाद बिलासपुर आ गए. इस शहर में वह तिफरा में किराए का मकान ले कर रहने लगे.

दिनेश एक सैलून में नौकरी करने लगा, ताकि वीना की और अपनी जिंदगी को हसीन बना सके. लेकिन यह संभव न हो सका. दिनेश के पिता रविशंकर और मां नूतन को यह पता चला कि बेटा वीना के साथ सुखपूर्वक रह रहा है तो वे मौन रह गए. लेकिन वीना की मां चमेली मौन नहीं रह सकी.

एक दिन जब दिनेश काम पर गया हुआ था, तो वीना की मां आ धमकी. वीना ने मां को बैठाया, चायपानी को पूछा. दोनों की बातचीत हुई तो चमेली आंसू बहाते हुए कहने लगी, ‘‘बेटी, तुम ने यह क्या कर दिया, हमारी तो सारी इज्जत ही मिट्टी में मिल गई.’’

वीना मां की बातें सुनती रही. बातोंबातों में चमेली ने पूछा, ‘‘बेटा, तुम ने दिनेश से ब्याह कहां किया? गवाह कौनकौन थे?’’इस पर वीना का सिर झुक गया, वह बोली, ‘‘मां, हम ने अभी तक विवाह नहीं किया है.’’

इस पर चमेली स्तब्ध रह गई. बोली, ‘‘तुम बिना विवाह के दिनेश के साथ कैसे रह सकती हो? यह तो पाप है बेटी.’’

वीना चुपचाप मां की बातें सुनती रही. चमेली ने आगे कहा, ‘‘तुम खुश तो हो न? मैं तुम्हारी शादी दिनेश से ही करा दूंगी. ऊंचनीच तुम क्या जानो, औरत के लिए मंगलसूत्र और सिंदूर का बड़ा महत्त्व होता है. समाज में रह कर उसी के हिसाब से जीना पड़ता है और उस के नियमकायदे मानने होते हैं. तुम अगर मेरी बात नहीं मानोगी तो पछताओगी.’’

वीना कुछ दिन दिनेश के साथ रह कर समझ गई थी कि प्यार के शुरुआती आकर्षण वाले मीठे सपने जब हकीकत के कठोर धरातल पर टकराते हैं, तब टूट कर किरचाकिरचा बिखर जाते हैं. उसे मां का सहारा मिला तो वह फट पड़ी और आंखों में आंसू लिए मां की गोद में सिर रख कर रोने लगी.

मां ने उसे ढांढस बंधाया, फिर बोली, ‘‘बेटा, तुम ने गलती तो बहुत बड़ी की है. लेकिन मैं मां हूं. मैं तुम्हें माफ नहीं करूंगी तो कौन करेगा.’’

वीना मां की ओर आशा भरी निगाहों से देखने लगी. चमेली ने कहा, ‘‘अच्छा, अब तू दिनेश के साथ खुश है या नहीं, साफसाफ बता.’’

वीना ने बहुत सोचा, फिर कहा, ‘‘मां, मुझे लगता है कि मैं ने भूल की है. मुझे दिनेश के लिए घर नहीं छोड़ना चाहिए था. बताओ, अब मैं क्या करूं?’’

चमेली ने कहा, ‘‘अच्छा, अभी तुम मेरे साथ चलो, बाद में देखेंगे कि क्या करना है.’’ वीना तैयार हो गई. घर में ताला लगा कर उस ने चाबी पड़ोस की एक महिला को दे दी. इस के बाद वह मां चमेली के साथ घर मन्नाडोला चली गई.

रात में जब दिनेश काम से घर लौटा तो वहां ताला लगा था. पड़ोस से पता चला कि वीना की मां आई थी, वह उसे अपने साथ ले गई है. उस ने घर का ताला खोला और चुपचाप लेट गया. उस की आंखों के आगे अंधेरा फैला हुआ था, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने दरवाजा खोला तो 2 पुलिस वाले खड़े थे. उन्हें देख दिनेश डर गया. पुलिस वाले उसे थाना सिविल लाइंस ले गए.

एक पुलिस वाले ने उसे बताया कि उस पर वीना नाम की लड़की को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप है. केस दर्ज हो चुका है. यह सुन कर दिनेश घबरा गया. उस ने पुलिस को बताया कि वह और वीना अपनी मरजी से घर छोड़ कर नई जिंदगी बसर करने के लिए निकले थे और तिफरा में किराए का मकान ले कर खुशीखुशी रह रहे थे. आज उस की मां चमेली यहां आई और बिना बताए उसे अपने साथ ले गई.

लेकिन पुलिस ने दिनेश की एक नहीं सुनी. उस के खिलाफ थाने में भादंवि की धारा 363 के अंतर्गत वीना को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का मुकदमा दर्ज था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. दिनेश गम का घूंट पी कर रह गया.

वह यह भी साबित नहीं कर सका कि उस ने वीना के साथ विवाह किया था. वैसे भी वीना से अपने पक्ष की कोई उम्मीद रखना बेवकूफी थी, क्योंकि अब वह अपनी मां चमेली के प्रभाव में थी. वह वही कहती जो उस की मां चाहती.

दिनेश के जेल जाने की खबर जब उस के घर वालों को मिली तो उन्होंने एक वकील से इस मामले की पैरवी कराई. फलस्वरूव वह 2 महीने में जेल से बाहर आ गया. जो होना था, वह हो चुका था. दिनेश अब वीना को भुलाने की कोशिश करते हुए अपने परिवार के साथ रहने लगा. इसी बीच एक दिन गोल बाजार में उसे वीना मिल गई.

दिनेश उस से जानना चाहता था कि उस ने उसे किस बात की सजा दिलाई, इसलिए वह उसे एक कौफी हाउस में ले गया. बातचीत हुई तो दोनों के गिलेशिकवे शुरू हो गए. दिनेश ने वीना का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘वीना, जो भी हुआ, मैं उसे भूलने को तैयार हूं.’’

वीना ने आंखें नीची कर के कहा, ‘‘तुम ने मेरे साथ बहुत गलत किया है.’’

दिनेश ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या गलत किया मैं ने?’’

‘‘तुम ने मुझ से शादी नहीं की, मुझे प्यार के बहकावे में रख कर मेरा शोषण करते रहे. क्या यह तुम्हारा फर्ज नहीं था कि मुझ से विवाह कर के अपने घर ले जाते?’’

‘‘देखो वीना, मैं ने जो भी किया, तुम्हारी मरजी से किया. मैं ने कभी जबरदस्ती नहीं की, फिर भी तुम ने मेरे खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा कर मुझे जेल भिजवा दिया, क्या यह सही था?’’

‘‘तुम्हारी नीयत मुझे ठीक नहीं लगी, मां ने मुझे बताया कि शादी के बाद लड़की को सुरक्षा मिलनी चाहिए. तुम तो मुझे मंगलसूत्र और सिंदूर तक नहीं दे सके. अगर तुम मुझे छोड़ कर भाग जाते तो मैं तो बरबाद हो जाती. न इधर की रह जाती, न उधर की. तुम मुझ से प्यार करते थे तो शादी क्यों नहीं की?’’

दिनेश निरुत्तर रह गया. उसे अपनी भूल का अहसास हो रहा था. उसे वीना से ब्याह कर लेना चाहिए था. वह संभल गया, ‘‘अच्छा, मुझ से गलती हो गई. मैं अब तुम से शादी करूंगा, ठीक है.’’

वीना मौन बैठी थी. दिनेश ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘तुम मुझ पर अविश्वास कैसे कर सकती हो. क्या मैं बेवफा हूं? मैं तुम्हारे साथ सारी जिंदगी हंसीखुशी गुजारने को तैयार हूं.’’

इस पर वीना ने धीमे स्वर में कहा, ‘‘मैं सोच कर बताऊंगी. एक बार गलती कर चुकी हूं. इसलिए अब मैं दोबारा कोई गलती करना नहीं चाहती.’’

बहरहाल दिनेश और वीना में सहमति बनी कि दोनों एक बार फिर से एकदूसरे को समझेंगे, जानेंगे, तब कोई कदम उठाएंगे ताकि पहले की तरह कोई भूल न हो. अब जो भी कदम उठाएंगे, सोचसमझ कर उठाएंगे.

दोनों एक बार फिर घरपरिवार के बंधनों को भूल कर मिलने लगे, भविष्य के सपने बुनने लगे. वीना दिनेश के प्रभाव में आ गई थी. वह जब चाहता, उसे एकांत में ले जा कर संबंध बना लेता और फिर उसे उस के घर छोड़ जाता. लेकिन इस बार भी चमेली दिनेश और वीना के बीच आ कर खड़ी हो गई. इस बार कुछ ऐसा भयावह हो गया, जिस की कल्पना किसी ने नहीं की होगी.

19 जून, 2019 की सुबह दिनेश के मोबाइल की घंटी बजी. देखा वीना की काल थी. उस ने काल रिसीव की. उधर से वीना चहकी, ‘‘आज कोर्ट में तुम्हारी पेशी है न? मैं कोर्ट आऊंगी और मजिस्ट्रैट के सामने तुम्हारे ही पक्ष में बयान दे दूंगी.’’

वीना की बात सुन कर दिनेश श्रीवास खुश हो कर बोला, ‘‘मैं तुम से कब से बोल रहा था कि आ कर मजिस्ट्रैट के सामने बयान दे दो, लेकिन तुम टालती जा रही थी.’’

‘‘मैं मां के कितने प्रेशर में हूं, तुम नहीं जानते. मां ने मेरा जीना हराम कर रखा है. एक तरह से मैं घर में कैद सी हो गई हूं. मां मेरी हर गतिविधि पर निगाह रखती हैं. मैं ने बड़ी मुश्किल से काल की है और आऊंगी भी. मां आज बाहर जाने वाली हैं न…’’ वीना ने ऐसे कहा जैसे उत्साह से भरी हो.

‘‘चलो, कम से कम तुम को सद्बुद्धि तो आई.’’ दिनेश ने हंसते हुए कहा.

19 जून, 2019 को पूर्वाह्न लगभग 11 बजे दिनेश श्रीवास न्यायालय परिसर में पहुंच गया. अब उसे अपने वकील और वीना के आने का इंतजार था. लेकिन पता चला कि उस का वकील नहीं आएगा. पेशी की तारीख आगामी किसी दिन की ली जाएगी. इस से उसे बेचैनी होने लगी. थोड़ी देर में उसे वीना आती दिखाई दी, लेकिन वह अकेली नहीं थी. उस के साथ उस की मां चमेली भी थी.

दिनेश श्रीवास ने वीना को अगली पेशी की तारीख बता कर कहा, ‘‘हमारे वकील साहब बीमार हैं, इसलिए नहीं आए. तुम्हें अगली बार आना होगा, तभी बयान हो पाएगा.’’

वीना कुछ कहती, इस से पहले ही चमेली ने बातों का सिरा अपने हाथों में ले लिया. वह बोली, ‘‘दिनेश, बयान तो हो जाएगा. लेकिन तुम्हें क्या लगता है, वीना का जीवन बरबाद कर के तुम खुश रह पाओगे. मैं ने सुना है तुम कहीं और ब्याह करने की सोच रहे हो?’’

‘‘नहींनहीं, मैं नहीं मेरे पिताजी बात चला रहे हैं.’’ दिनेश ने बात घुमानी चाही.

‘‘और तुम..? तुम क्या करोगे?’’ चमेली ने दिनेश से पूछा.

‘‘मैं क्या करूंगा, मुझे भी नहीं मालूम. मैं पिताजी को नाराज नहीं कर पाऊंगा. उन्होंने मुझे जेल से निकलवाया, मुझे माफ किया. मुझे लगता है आप ने ठीक ही किया, जो वीना को उस दिन घर से ले आईं. बिना ब्याह हम लोगों का एक साथ रहना हमारे और हमारे परिवारों के लिए कलंक बन जाता.’’ दिनेश ने नजरें झुका कर कहा.

‘‘मगर बेटा,’’ चमेली ने प्यार से कहा, ‘‘फिर तो वीना का भविष्य बरबाद हो गया मानूं. अब उस के साथ कौन शादी करेगा?’’

यह सुन कर दिनेश कनखियों से वीना की ओर देखने लगा. बोला कुछ नहीं. चमेली बोली, ‘‘मैं और मेरी बेटी दोनों कोर्ट में तुम्हारे हक में बयान दे देंगे, मगर तुम्हें वीना को सम्मान के साथ ब्याह कर उसे स्वीकार करना होगा.’’

दिनेश चमेली की बात सुन अनसुनी कर के दूसरी तरफ देखने लगा. चमेली को उस का यह व्यवहार बुरा लगा. उस ने पुचकारते हुए कहा, ‘‘दिनेश, आज क्यों न हम पिकनिक पर चलें. एकदूसरे से बातें भी हो पाएंगी और समझनेसमझाने का मौका भी मिल जाएगा. नहीं तो हमारे रास्ते अलगअलग तो हैं ही.’’

चमेली की बात सुन दिनेश ने हामी भर दी. कोर्ट परिसर में से एक आटो ले कर तीनों पिकनिक मनाने और एकदूसरे को समझने के लिए चमेली के बताए उसलापुर सकरी की ओर निकल गए.

5 जुलाई, 2019 को बिलासपुर सिटी के थाना सिविल लाइंस के दरजनों बार चक्कर लगाने के बाद दिनेश श्रीवास के पिता रविशंकर व मां नूतन अंतत: आईजी कार्यालय में अपना प्रार्थना पत्र ले कर पहुंचे. प्रार्थना पत्र में उन्होंने लिखा था—

हमारा बेटा दिनेश श्रीवास विगत 19 जून, 2019 से लापता है. हमें शक है कि उस के साथ कुछ अनिष्ट हो गया है. हमें यह भी अंदेशा है कि उसे गायब करने में हमारी पड़ोसी वीना और चमेली का हाथ है. हम दरजनों बार सिविल लाइंस थानाप्रभारी से मिले और गुजारिश की कि हमारे बच्चे को ढूंढें, लेकिन वह हमें टाल कर घर भेज देते हैं.

आईजी प्रदीप गुप्ता अपने औफिस में बैठे थे. अर्दली ने अंदर जा कर रविशंकर और नूतन के नाम का पेपर दे दिया. उन्होंने दोनों को तत्काल बुलाया और सामने बैठा कर पूछा, ‘‘बताइए, क्या बात है?’’

इस पर दिनेश की मां ने लिखा हुआ प्रार्थना पत्र उन्हें दे कर निवेदन करते हुए कहा, ‘‘साहब, हमें न्याय दिलाएं, हमारा बेटा गायब है.’’

नूतन ने आंसू बहाते हुए जब आईजी से थाने आनेजाने की आपबीती बताई तो आईजी साहब नाराज हो गए. उन्होंने तत्काल थानाप्रभारी सिविललाइंस से फोन पर बात की. उन्होंने थानाप्रभारी कलीम खान को डांटते हुए कहा, ‘‘इस संवेदनशील मामले में 24 घंटे के अंदर एफआईआर दर्ज कर रिपोर्ट मेरे सामने पेश करें.’’

आईजी प्रदीप गुप्ता के आदेश पर थाना सिविल लाइंस में हड़कंप मच गया. थानाप्रभारी कलीम खान ने तत्काल 2 सिपाही भेज कर वीना और उस की मां को थाने बुला लिया. दोनों थाने आईं तो पुलिस ने सख्ती से पूछताछ करनी शुरू कर दी, लेकिन वीना ने स्पष्ट इनकार करते हुए कहा कि वह दिनेश श्रीवास से बहुत दिनों से नहीं मिली है.

मोबाइल फोन की काल डिटेल्स खंगालने पर इस बात का खुलासा हो गया कि 19 जून तक दिनेश और वीना के बीच मोबाइल पर बातें हो रही थीं. एक सूत्र ने पुलिस को बताया कि 19 तारीख को तीनों कोर्ट में एक साथ दिखाई दिए थे. इसी सूत्र के आधार पर कलीम खान ने कोर्ट में लगे सीसीटीवी की फुटेज खंगालनी शुरू कर दी. एक फुटेज में तीनों को आटो में बैठ कर जाते देखा गया.

पुलिस को बहुत बड़ा सूत्र मिल गया था. इस पर जांच आगे बढ़ाई गई तो वीना की मां चमेली ने 19 जून, 2019 को तीनों के पिकनिक जाने की बात स्वीकार करते हुए उस की हत्या की बात स्वीकार कर ली.

चमेली ने अपने बयान में बताया कि बेटी की जिंदगी बरबाद होते देख वह परेशान रहने लगी थी. उसलापुर सकरी में पिकनिक के दौरान दिनेश श्रीवास ने जब स्पष्ट रूप से हाथ खड़े कर लिए कि अब वह वीना का साथ नहीं निभा सकेगा, तब उस ने और वीना ने मिल कर उस की हत्या कर दी.

दिनेश जब दोपहर को आंखें बंद कर के लेटा था तो उन दोनों ने उस के सिर पर पत्थर दे मारा, जिस से वह बुरी तरह घायल हो गया. बाद में उन्होंने धारदार हंसिया से दिनेश का गला रेत दिया. साथ ही एक पत्थर मार कर उस का चेहरा विकृत कर दिया और उसे वहीं फेंक कर वापस आ गईं.

दिनेश को कोई पहचान न सके, इसलिए उस का मोबाइल वीना ने अपने पास रख लिया. पुलिस ने चमेली और वीना के बयान के आधार पर दिनेश की खोजबीन की तो उन्हें उसलापुर के कोकने नाला में दिनेश का क्षतविक्षत शव मिल गया.

पुलिस ने वीना और चमेली को गिरफ्तार कर लिया. उन के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302, 120बी के तहत केस दर्ज किया गया. पूछताछ के बाद दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें सेंट्रल जेल बिलासपुर भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. वीना परिवर्तित नाम है.

मौत की छाया : बाहरी सम्बन्ध ने उजाड़ा परिवार

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद का एक थाना है शिकोहाबाद. इस थाना क्षेत्र में एक गांव है भूड़ा, जो हाइवे के

किनारे बसा है. भोगनीपुर नहर इस गांव से हो कर गुजरती है. इसी वजह से अधिकतर लोग इस नहर को भूड़ा नहर के नाम से जानते हैं.

हर साल देश भर में ज्येष्ठ माह की 10वीं तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है, खासकर उन जगहों पर जहां गंगा या गंगनहर पास होती है. हर साल की तरह इस साल भी भूड़ा नहर पर गंगा दशहरे का भव्य मेला लगा था. इस मौके पर लोग स्नान के लिए सुबह से ही भूड़ा नहर पर आने लगे थे. मेले में धीरेधीरे भीड़ बढ़ने लगी थी.

सुबह लगभग 8 बजे शिकोहाबाद नगर के रहने वाले युवकों की एक टोली नहाने के लिए नहर पर पहुंची. नहर किनारे की पूर्वी पटरी से कुछ ही दूरी पर बालाजी मंदिर है. उन युवकों ने बालाजी मंदिर से थोड़ा पहले नहर की पटरी के किनारे एक मोटरसाइकिल खड़ी देखी.

मोटरसाइकिल पर कपड़ों के अलावा एक मोबाइल भी रखा था. युवकों ने सोचा कि मोटरसाइकिल वाला नहर में नहाने गया होगा. उस ने अपनी मोटरसाइकिल, कपड़े और मोबाइल यहां छोड़ दिया होगा.

युवकों की टोली नहर की पटरी पर कपड़े रख कर नहाने के लिए नहर में उतर गई. नहाते समय एक युवक के पैर में कुछ उलझा तो उस ने अपने साथियों से कहा कि नहर में कुछ है, जो उस के पैरों से टकराया है.

इस पर उस के साथी वहां आ गए. पास आने पर उन के पैरों में भी कुछ टकराया. उन्हें लगा कि वहां कोई डूबा है. संभव है बाइक वाला ही हो. युवकों में से मनोज ने अपने साथियों की मदद से उसे पानी से बाहर निकाला तो सभी के बदन में पांव से सिर तक शीतलहर सी दौड़ गई.

नहर के पानी से एक युवक की लाश निकली थी, जिस के बदन पर केवल अंडरवियर था. उन लोगों ने अनुमान लगाया कि मोटरसाइकिल डूबने वाले युवक की ही है. उन्हें लगा कि वह मोटरसाइकिल से आया होगा. कपड़े उतार कर नहर में उतर गया होगा, जहां डूबने से उस की मौत हो गई.

मनोज के साथी बंटू ने डायल 100 नंबर पर पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही पुलिस की गाड़ी घटनास्थल पर पहुंच गई. तत्कालीन थानाप्रभारी शिवकुमार शर्मा ने लाश का निरीक्षण किया तो उन्हें युवक की गरदन पर चोट के निशान दिखाई दिए.

साथ ही उस की नाक से खून भी बह रहा था. मनोज ने पुलिस को नहर की पटरी किनारे खड़ी मोटरसाइकिल व उस पर कपड़े व मोबाइल रखा होने की बात बताई.

पुलिस ने युवक की शिनाख्त कराने का प्रयास किया लेकिन कोई भी मृतक को पहचान नहीं सका. यह 12 जून, 2019 की सुबह की बात है. लाश देख कर पहली नजर में ही पुलिस को समझ में आ गया था कि मामला हत्या का है.

क्योंकि मृतक की गरदन पर चोट के निशान दिख रहे थे, जिस से यह समझने में देर नहीं लगी कि हत्या को हादसे का रूप देने के लिए ही मृतक की मोटरसाइकिल नहर की पटरी के किनारे सुनसान जगह पर खड़ी की गई थी.

बाइक पर मृतक के कपड़े और मोबाइल भी इसी उद्देश्य से रखे गए थे ताकि देखने पर लगे कि युवक नहाते समय डूब गया. जाहिर है, कोई भी अपनी मोटरसाइकिल और मोबाइल इस तरह लावारिस छोड़ कर नहाने नहीं जा सकता. थानाप्रभारी शिवकुमार शर्मा ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

शिनाख्त कराने की कोशिश मृतक कौन और कहां का रहने वाला था, यह बात वहां मौजूद लोगों से पता नहीं लग सकी. पुलिस ने अनुमान लगाया कि युवक की हत्या कर लाश को रात में नहर में फेंका गया था. जाहिर है यह काम अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता. सूचना मिलने पर सीओ अजय सिंह चौहान और एसडीएम डा. सुरेशचंद्र भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

मृतक की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मोबाइल फोन में मौजूद नंबरों पर काल करनी शुरू कर दी. इसी प्रयास में महेशचंद्र नाम के एक व्यक्ति से बात हुई. उस ने बताया कि यह नंबर उस के छोटे भाई पुष्पेंद्र कुमार का है, जो अपने दोनों बच्चों के साथ फिरोजाबाद के थाना उत्तर के कृष्णानगर में रहता है.

वह कल रात घर से मोटरसाइकिल ले कर अपनी ससुराल जाने के लिए निकला था, लेकिन अब तक वापस नहीं आया है. पुलिस ने भाई से घटनास्थल पर पहुंचने को कहा ताकि लाश की शिनाख्त हो सके.

महेशचंद्र की बातों से यह निश्चित हो गया कि लाश उस के भाई पुष्पेंद्र की ही है, साथ ही मोबाइल और बाइक भी. कुछ ही देर में महेशचंद्र ग्राम प्रधान सुनील बघेल व अन्य गांव वालों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया.

लाश देख कर महेशचंद्र ने रोतेरोते उस की शिनाख्त अपने छोटे भाई पुष्पेंद्र के रूप में कर दी. महेश ने पुलिस को बताया कि पुष्पेंद्र की पत्नी छाया का डेढ़ साल से एक युवक से अफेयर चल रहा है. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद होता रहता था.

बात बढ़ी तो मामला मारपीट तक पहुंच गया. छाया ने पुष्पेंद्र पर घरेलू हिंसा का केस कर दिया था. फिलहाल दोनों के बीच कोर्ट में मुकदमा चल रहा था. मुकदमे के बाद से छाया दोनों बच्चों को छोड़ कर फिरोजाबाद में कबीरनगर स्थित अपने मायके में रहने लगी थी. महेश ने पुष्पेंद्र की हत्या में उस की पत्नी छाया और उस के प्रेमी संतोष का हाथ होने की बात कही.

महेश ने इन दोनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की पुलिस को एक तहरीर भी दी, लेकिन पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद ही स्थिति स्पष्ट होने पर केस दर्ज करने को कहा. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने पुष्पेंद्र की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी.

मायके में रह रही पत्नी छाया को जब पति की हत्या की जानकारी मिली तो वह सुबह ही घर आए अपने दोनों बेटों आलोक व आकाश को साथ ले कर रोतेबिलखते जिला अस्पताल पहुंच गई. दोनों बच्चे भी पिता की मौत से सदमे में थे.

पति की मौत पर छाया का रोरो कर बुरा हाल था. इस हत्या की खबर सुन कर प्रिंट व इलैक्ट्रौनिक मीडिया के पत्रकार भी पोस्टमार्टम हाउस पर पहुंच गए थे. छाया ने उन्हें बताया कि 11 जून को मेरे पिता ने बच्चों को फोन कर के कह दिया था कि कल दशहरा है, घर आ जाना.

दशहरे के दिन यानी 12 जून को बच्चों के न आने पर उस ने सुबह फोन किया, लेकिन न तो पति पुष्पेंद्र ने फोन उठाया और न बच्चों ने. इस पर उस ने घर के पड़ोस में रहने वाली रिश्ते की बहन को फोन कर के पूछा कि कोई फोन नहीं उठा रहा है, आप बात करा दो. इस के बाद उस बहन ने छोटे बेटे आकाश को बुला कर बात कराई. उस ने छोटे बेटे से पूछा कि आकाश, पापा और तुम कोई भी फोन नहीं उठा रहे हो, क्या बात है?

आकाश ने कहा कि पापा रात को कहीं गए थे. कह रहे थे, सुबह आएंगे लेकिन अभी तक नहीं आए. छाया ने बताया कि उस ने आकाश से कहा कि तुम दोनों आ जाओ. पापा भी आ जाएंगे, बस इतनी ही बात हुई थी.

सुबह उसे खबर मिली कि पति का शव शिकोहाबाद भूड़ा नहर में मिला है. छाया ने खुद को बेकसूर बताते हुए कहा कि उस का पति से इसलिए विवाद था कि वह उस के चरित्र पर शक करते थे. पारिवारिक हिंसा की वजह से वह करीब डेढ़ साल से पति से अलग रह रही थी. पहले वह दिल्ली में अपने मामा के घर चली गई थी. लेकिन पिछले 6 महीने से मायके में रह रही थी.

दोनों में हो गया था राजीनामा पिछले 2 महीनों से मोबाइल पर पति से रात में बात होती थी. मंगलवार 11 जून को भी बात हुई थी. छाया ने बताया कि हम दोनों के बीच राजीनामा हो गया था. मंगलवार को कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई थी, लेकिन जज नहीं बैठे और अगली तारीख मिल गई.

वहां से हम दोनों शिकोहाबाद स्थित बालाजी मंदिर के दर्शन करने चले गए थे. मंगलवार की रात में भी दोनों की मोबाइल पर बातचीत हुई थी. पुष्पेंद्र ने पूछा था कि तुम डेढ़ साल बाद आ रही हो, खाने में क्या बनाओगी? जवाब में छाया ने पति से उस के मनपसंद व्यंजन बनाने की बात कही थी. छाया ने खुद को निर्दोष बताया.

घटना के 2 दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट में पुष्पेंद्र की हत्या का कारण गला घोंटना बताया गया. इस पर पुलिस ने नरेश की ओर से छाया व उस के प्रेमी संतोष शास्त्री, निवासी झलकारी नगर, थाना उत्तर, फिरोजाबाद के विरुद्ध पुष्पेंद्र की हत्या की रिपोर्ट भादंवि की धारा 302, 201 के अंतर्गत दर्ज कर ली.

इसी दौरान थानाप्रभारी शिव कुमार शर्मा का स्थानांतरण हो गया. इस चक्कर में पुष्पेंद्र की हत्या हुए एक महीने का समय बीत गया, लेकिन पुलिस नामजद हत्याभियुक्तों को गिरफ्तार नहीं कर सकी.

यह देख मृतक के भाई महेश ने अपने गांव रैमजा के प्रधान सुनील बघेल के साथ थाना शिकोहाबाद जा कर पुलिस अफसरों से बात कर के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग की. उस ने अफसरों के औफिसों के कई चक्कर काटे. साथ ही एसएसपी सचींद्र पटेल से भी गुहार लगाई. उन्होंने अधीनस्थ अफसरों को पुष्पेंद्र की हत्या के आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार करने के आदेश दिए.

एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार ने भी नए थानाप्रभारी अजय किशोर द्वारा थाने का चार्ज लेने के तुरंत बाद पुष्पेंद्र हत्याकांड के आरोपियों के विरुद्ध सबूत जुटा कर उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया. साथ ही सर्विलांस टीम की मदद लेने को भी कहा. एसपी के निर्देश पर तत्काल काररवाई शुरू हो गई.

पुलिस ने मृतक की पत्नी छाया के बयानों की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल को भी खंगाला. उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर शक के दायरे में आया, जिस पर सब से ज्यादा बातें होती थीं. जब पुलिस ने उस नंबर को ट्रैस किया तो वह संतोष शास्त्री का नंबर निकला. पुष्पेंद्र के मोबाइल की आखिरी लोकेशन कबीरनगर की थी. उस के फोन पर रात में जो अंतिम काल आई थी, वह छाया की थी.

छाया को संदेह के दायरे में लाने के लिए इतना ही काफी था. लेकिन अंदाजे के आधार पर किसी नतीजे पर पहुंचना ठीक नहीं था, इसलिए पुलिस टीम ने छाया के मायके जा कर उस से फिर से पूछताछ की.

छाया से की गई पूछताछ में पुलिस वालों को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी. सिवाय इस के कि पुष्पेंद्र पत्नी के चरित्र पर शक करता था. फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत पुष्पेंद्र जैसे तगड़े मर्द का न तो अकेले गला घोंट सकती थी और न अकेले घर से 20 किलोमीटर दूर ले जा कर शिकोहाबाद की भूड़ा नहर में फेंक सकती थी. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.

मृतक पुष्पेंद्र के दोनों बेटे आलोक व आकाश अपने पिता के साथ रहते थे. उन दोनों ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि जब पापा घर नहीं लौटे तो उन्होंने समझा कि वह मम्मी के पास कबीरनगर गए होंगे. 12 जून की सुबह 7 बजे मम्मी का फोन आया, जिस में उस ने कहा कि त्यौहार का दिन है, मेरे पास आ जाओ.

हम लोग मम्मी के पास कबीरनगर पहुंच गए. वहां पापा को न देख हम ने मम्मी से पूछा कि पापा कहां हैं, इस पर उस ने बताया कि वे रात में आए थे और कुछ देर रुक कर वापस चले गए थे. इस के थोड़ी देर बाद ही उन्हें पता चला कि पापा की मौत हो गई है.

मृतक के भाई महेश ने पुलिस को पूछताछ में बताया कि 11 जून को रात लगभग 11 बजे पुष्पेंद्र पत्नी के पास जा रहा था. रास्ते में पुष्पेंद्र का रिश्ते का साढ़ू मिल गया. उस ने पुष्पेंद्र को इतनी रात में छाया के पास जाने से मना भी किया, लेकिन पुष्पेंद्र नहीं माना. ससुराल में ही उस की हत्या कर लाश मोटरसाइकिल से ले जा कर नहर में फेंक दी गई.

पुलिस को मिला सुराग इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने इंसपेक्टर को बताया कि छाया चोरीछिपे अब भी अपने प्रेमी संतोष से मिलती है. दोनों के नाजायज संबंध का जो शक किया जा रहा था, वह सच निकला. जाहिर था, हत्या अगर छाया ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों की भनक लगते ही छाया और उस का प्रेमी संतोष फरार हो गए.

दोनों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के 2 महीने बाद 12 अगस्त को सीओ अजय सिंह चौहान और थानाप्रभारी अजय किशोर ने छाया व उस के प्रेमी संतोष शास्त्री को शिकोहाबाद स्टेशन रोड से हिरासत में ले लिया. दोनों फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.

थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. छाया पुलिस को दिए अपने बयानों में गड़बड़ा रही थी. जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने कहा कि पति ने उस का जीना हराम कर दिया था. वह उस के चालचलन पर शक करता और मारतापीटता था.

इस के साथ ही दोनों बच्चों को भी उस से छीन लिया था. ऐसे में उस के सामने यह कदम उठाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. उस ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, इस तरह थी—

पुष्पेंद्र 3 भाइयों महेश और नरेश के बाद तीसरे नंबर का था. ये लोग गांव रैमजा, थाना नारखी, जिला फिरोजाबाद के मूल निवासी थे. लगभग 14 साल पहले पुष्पेंद्र की शादी फिरोजाबाद के थाना उत्तर के कबीरनगर खेड़ा निवासी इश्लोकी राठौर की पुत्री छाया से हुई थी. इश्लोकी की 2 बेटियां और 2 बेटे थे. इन में छाया सब से बड़ी थी. उस के बाद वर्षा और 2 भाई सोनू व मोनू थे.

पुष्पेंद्र के पास अपनी मैक्स गाड़ी थी. वह वाहनों के टायर खरीदने व बेचने का व्यवसाय करता था. 3 साल पहले उस ने फिरोजाबाद के कृष्णानगर में एक मकान खरीद लिया था और परिवार सहित गांव से आ कर उसी मकान में रहने लगा था. शादी के बाद उस के 2 बेटे हुए, इन में 13 वर्षीय आलोक 8वीं में पढ़ रहा था, जबकि 11 वर्षीय आकाश 6ठीं में था.

पुष्पेंद्र की गृहस्थी हंसीखुशी चल रही थी. करीब डेढ़ साल पहले जैसे उस के परिवार को किसी की नजर लग गई. हुआ यह कि कृष्णानगर में भागवतकथा का आयोजन हुआ. भागवतकथा में भजन गायक संतोष शास्त्री का छोटा भाई राजकुमार कृष्ण बना और छाया रुक्मिणी. भजन गायक संतोष भी छाया का हमउम्र था.

भरेपूरे बदन की छाया को देख कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह 2 बच्चों की मां है. 35 की उम्र में भी वह खासी जवान दिखती थी. संतोष के गले से निकली उस की सुरीली आवाज पर छाया रीझ गई. वहीं संतोष भी उस की सुंदरता का दीवाना हो गया.

भागवतकथा में एक सप्ताह तक रुक्मिणी का अभिनय करने के दौरान ही छाया का संतोष शास्त्री से परिचय हुआ. दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. फिर दोनों मोबाइल पर बातें करने लगे. संतोष हंसीठिठोली के दौरान छाया से कहता, ‘‘रुक्मिणी तो अब संतोष की है.’’

आसपास जहां भी भागवतकथा के आयोजन में संतोष आता, फोन कर के छाया को भी बुला लेता था. धीरेधीरे दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता गया. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. इस बीच दोनों के अवैध संबंध भी बन गए थे. अब छाया फोन पर संतोष से लंबीलंबी बातें करने लगी. वह उस के खयालों में खोईखोई सी रहती थी.

घरेलू हिंसा का केस करा दिया पुष्पेंद्र को जब इस की जानकारी मिली तो इसे ले कर पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई. लेकिन छाया ने संतोष से बात करना या मिलना नहीं छोड़ा. इस से पुष्पेंद्र अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करने लगा. पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में पुष्पेंद्र छाया की पिटाई भी कर देता था. गृह क्लेश के चलते पिछले डेढ़ साल से छाया पति पुष्पेंद्र से अलग रहने लगी थी.

छाया 3 महीने दिल्ली में अपने मामा के पास रही. वहां वह फोन पर प्रेमी संतोष से बात करती रहती थी. इस बीच उस ने कोर्ट में पुष्पेंद्र पर घरेलू हिंसा का केस कर दिया था. यह मुकदमा जिला फिरोजाबाद के न्यायालय में चल रहा था.

पिछले 6 महीने से छाया अपने मायके कबीरनगर में रह रही थी. इस बीच उस के पास संतोष का आनाजाना लगा रहा. जब भी छाया का प्रेमी से मिलने का मन होता, वह उसे फोन कर देती. दोनों एकदूसरे से मिल कर संतुष्ट हो जाते थे. संतोष छाया के पति की कमी पूरी कर देता था. एक दिन छाया ने संतोष से कहा कि हम लोग इस तरह कब तक तड़पते रहेंगे, रास्ते का कांटा हटा दो.

साजिश को ऐसे दिया अंजाम इस के बाद छाया व उस के प्रेमी संतोष ने मिल कर एक षडयंत्र रचा. मुकदमे की तारीख पर पुष्पेंद्र और छाया की बातचीत हो जाती थी. जबतब दोनों मोबाइल पर भी बात कर लेते थे. छाया ने पुष्पेंद्र को मीठीमीठी बातों के झांसे में ले लिया था.

10 जून की रात को छाया ने फोन कर पुष्पेंद्र को अपने मायके बुलाया था. लेकिन उस दिन इन लोगों की योजना सफल नहीं हो सकी. इस पर छाया ने 11 जून की शाम को पुष्पेंद्र को फोन किया और कोल्डड्रिंक की बोतल ले कर रात में आने को कहा. पुष्पेंद्र पत्नी की चाल समझ नहीं सका और 11 बजे जब दोनों बच्चे सो रहे थे, उस ने छोटे बेटे आकाश को जगा कर कहा कि तुम्हारी मम्मी ने बुलाया है, मैं कुछ देर में आ जाऊंगा.

रात 11 बजे वह कोल्डड्रिंक ले कर छाया के पास पहुंच गया. छाया ने पुष्पेंद्र से बोतल ले ली. वह बोतल ले कर किचन में गई और 2 गिलासों में कोल्डड्रिंक ले कर आ गई. उस ने पुष्पेंद्र वाले कोल्डड्रिंक में नींद की गोलियां घोल दी थीं.

दोनों पलंग पर लेट कर प्यारमोहब्बत की बातें करने लगे. कोल्डड्रिंक पीने के बाद पुष्पेंद्र को नींद आ गई. जब वह गहरी नींद में सो गया तो छाया ने योजनानुसार अपने प्रेमी संतोष शास्त्री को फोन कर के घर बुला लिया.

संतोष छाया के फोन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. फोन आते ही वह छाया के घर पहुंच गया. दोनों ने मिल कर सो रहे पुष्पेंद्र को दबोच लिया और उस का गला दबा कर हत्या कर दी. गला घोंटने के दौरान छाया पुष्पेंद्र के दोनों हाथ पकड़े रही.

रात में ही शव को ठिकाने लगाना था, क्योंकि दूसरे दिन गंगा दशहरा था. संतोष ने पुष्पेंद्र की मोटरसाइकिल पर लाश इस तरह बैठी स्थिति में रखी, जिस से वह जिंदा लगे. छाया उस के पीछे बैठ गई.

रात में ही संतोष और छाया उसे बाइक से शिकोहाबाद भूड़ा नहर पर लाए और बालाजी मंदिर की ओर ले गए रात में वह जगह सुनसान रहती थी. दोनों ने पुष्पेंद्र के शरीर से कपड़े उतारने के बाद उस के कपड़े और मोबाइल बाइक पर रख दिए. फिर दोनों ने शव को नहर में फेंक दिया. जल्दबाजी में उन्होंने लाश नहर के किनारे पर ही डाल दी थी, जिस से वह पानी के तेज बहाव में नहीं बह सकी.

सुबह नहर पर मेला लगा और लोग नहर में नहाने के लिए पहुंचे. युवकों की एक टोली जब नहा रही थी, तभी एक युवक के पैर के नीचे पुष्पेंद्र का शव आ गया, जिसे नहर के बाहर निकाल कर पुलिस को सूचना दी गई.

पुलिस ने पुष्पेंद्र हत्याकांड में उस की पत्नी छाया, उस के प्रेमी संतोष शास्त्री को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. पुष्पेंद्र के दोनों बच्चे अपने ताऊ महेशचंद्र के पास रह रहे हैं.

छाया ने वासना में अंधी हो कर पति की हत्या कर अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं अपनी हंसतीखेलती गृहस्थी के साथ अबोध बच्चों से भी दूर हो गई.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित