बिना तलाक के तलाकशुदा – भाग 2

दोस्तों की इस बात से आसिफ ने खुद को काफी अपमानित महसूस किया. उसे लगा कि शबाना से निकाह कर के उस ने बहुत बड़ी गलती की थी. उस दिन के बाद से आसिफ शबाना से उखड़ाउखड़ा रहने लगा. उसे शबाना में हजार कमियां नजर आने लगीं. बातबात में वह उस की पिटाई करने लगा. उस की इस पिटाई से शबाना का 2 बार गर्भपात हो गया.

शबाना परेशान थी कि इस तरह पिटते हुए जिंदगी कैसे बीतेगी? पति का व्यवहार काफी तकलीफ देने वाला था. परेशान हो कर उस ने पिता को फोन कर दिया कि दिल्ली आ कर वह उसे ले चलें. समरुद्दीन दिल्ली पहुंचे और शबाना को एटा ले गए. घर पहुंच कर शबाना ने मांबाप को पति द्वारा प्रताडि़त करने की सारी बात बता दी.

अब तक समरुद्दीन को कहीं से पता चल चुका था कि शादी से पहले आसिफ किसी शादीशुदा औरत को भगा ले गया था. पुलिस ने उसे चंडीगढ़ में गिरफ्तार किया था. लेकिन आसिफ के नाना इसलाम ने किसी तरह से उसे जेल जाने से बचा लिया था. उस के बाद आननफानन में शबाना से उस का निकाह करा दिया गया था. इस से समरुद्दीन को लगा कि उस के साथ धोखा हुआ है.

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आसिफ मोटी बीवी शबाना से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. कुछ दिनों बाद वह शबाना को ले आया. शबाना एक बार फिर गर्भवती हो गई. घर वाले बेटा होने की उम्मीद कर रहे थे. शबाना को लगा कि अगर बेटा न हुआ तो उस पर होने वाले अत्याचार बढ़ जाएंगे. समय पर शबाना को बेटा ही हुआ, लेकिन वह दिव्यांग था. उस का नाम आतिश रखा गया.

दिव्यांग बेटा पैदा होने की वजह से शबाना पर होने वाले अत्याचार बढ़ गए थे. सास ने कह दिया था कि दिव्यांग बच्चे पैदा करने वाली बहू के साथ उस के बेटे का कोई भविष्य नहीं है. अब वह अपने बेटे के लिए चांद सी बहू लाएगी.

‘‘तो फिर मेरा क्या होगा अम्मी?’’ शबाना ने पूछा तो अफसरी ने कहा, ‘‘तुझे तलाक दे देगा और क्या होगा. मेरा बेटा मर्द है, जवान है, 4-4 शादियां कर सकता है.’’

‘‘नहीं, यह गलत है.’’ शबाना ने कहा तो अफसरी ने आसिफ से कहा, ‘‘तोड़ दे इस के हाथपैर. अब यह हमें बताएगी कि क्या गलत है और क्या सही है.’’

आसिफ जानवरों की तरह शबाना पर टूट पड़ा. इस के बाद बातबात पर उस की पिटाई होने लगी. शबाना समझ नहीं पा रही थी कि वह अब क्या करे? दिव्यांग बेटा पैदा होने के बाद आसिफ बेलगाम हो गया था. अलीदराज और अफसरी अकसर फैक्ट्री में रहते थे. ऐसे में आसिफ बाजारू लड़कियों को घर ला कर शबाना के सामने ही कमरे में बंद हो जाता था. विरोध करने पर उस की पिटाई करता और उसे घर से निकाल देने की धमकी देता.

आसिफ शबाना को इतना परेशान कर देना चाहता था कि वह खुद ही घर छोड़ कर चली जाए. क्योंकि उस के लिए दूसरी बीवी की तलाश शुरू हो गई थी.

आसिफ अपने दोस्तों को घर बुला कर उन के साथ शराब पीता. उस के दोस्तों ने नशे में एक दो बार शबाना से छेड़छाड़ भी की. शबाना ने इस बात की शिकायत आसिफ से की तो उस ने कहा, ‘‘अगर तू मेरे दोस्तों के साथ सो जाएगी तो तेरा क्या बिगड़ जाएगा.’’

पति इतना गिर सकता है, शबाना ने सोचा भी नहीं था. शौहर की हरकतें बरदाश्त से बाहर होती जा रही थीं. शबाना समझ गई कि आसिफ उस से छुटकारा पाना चाहता है. वह बुरी तरह फंसी हुई थी. वह कुछ कर भी नहीं सकती थी. संयोग से उसी बीच वह गर्भवती हो गई. इस की जानकारी होते ही आसिफ ने कहा, ‘‘तुझे यह बच्चा गिरवाना होगा, वरना तू फिर से दिव्यांग बच्चे को जन्म देगी. हमें तो स्वस्थ बेटा चाहिए.’’

शबाना ने पति को बहुत समझाया, पर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा. शबाना पिता को बुला कर उन के साथ मायके चली गई. वह ससुराल के बजाय मायके में ही बच्चे को जन्म देना चाहती थी. लेकिन अफसरी और आसिफ ने तय कर लिया था कि वह इस बच्चे को पैदा नहीं होने देंगे. उसी बीच आसिफ के लिए बरेली की एक लड़की तलाश कर ली गई थी. फरवरी, 2016 में आसिफ ससुराल पहुंचा और ससुर समरुद्दीन से कहा कि वह शबाना को ले जाना चाहता है.

लेकिन समरुद्दीन ने शबाना को विदा करने के बजाय कहा कि वह उन लोगों के खिलाफ अदालत में घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज कराएंगे. ससुर के तेवर से आसिफ डर गया. उस ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मुझ से जो गलती हुई, उसे माफ कर दें. अब मैं शबाना को कुछ नहीं कहूंगा.’’

आखिर समरुद्दीन ने कुछ लोगों को बुलाया तो उन के सामने आसिफ ने आश्वासन दिया कि अब वह शबाना को अच्छी तरह रखेगा. इस के बाद समरुद्दीन ने शबाना को विदा कर दिया.

प्यार और इंतकाम के लिए मौत की अनोखी साजिश – भाग 2

सुलझने के बजाय उलझने लगी पुलिस की जांच

एसएचओ उपेंद्र कुमार ने हेमा की गुमशुदगी का मामला दर्ज करवा कर एसआई उपेंद्र को जांच सौंप दी. एसआई उपेंद्र ने गुमशुदगी के मामले में की जाने वाली औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद उस शोरूम में जा कर पूछताछ की, जहां हेमा काम करती थी.

वहां पता चला कि शाम को वह निकल गई थी, उस के बाद उस ने कोई संपर्क नहीं किया. दिक्कत यह थी कि हेमा का फोन लगातार बंद आ रहा था.

हेमलता चौधरी मूलरूप से मथुरा जिले की रहने वाली थी. शादी हो चुकी थी, लेकिन एक बच्चा होने के बाद पति ने उसे गलत चालचलन का आरोप लगा कर बिना बच्चे के घर से निकाल दिया था.

पति से अलग होने के बाद बेसहारा हुई हेमलता सूरजपुर इलाके में सुनारों वाली गली में बड़ी बहन मुमतेश के पास आ गई, जो वहां अपने परिवार के साथ रहती थी. गुजरबसर के लिए हेमा कुछ महीना पहले ग्रेटर नोएडा के गौर सिटी मौल के वेन हुसैन शोरूम में सेल्सगर्ल की नौकरी करने लगी.

इधर, एसआई उपेंद्र ने जब गुमशुदगी की जांच को आगे बढ़ाते हुए हेमा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस के फोन की आखिरी लोकेशन बढपुरा गांव में रविंद्र भाटी के घर पर थी.

काल डिटेल्स की जांच से यह भी पता चला कि उस की आखिरी बातचीत जिस नंबर पर हुई थी, वह नंबर बुलंदशहर में रहने वाले किसी अजय ठाकुर का था. अजय ठाकुर की लोकेशन भी उस वक्त बढ़पुरा में वहीं पाई गई, जहां हेमलता के फोन की थी.

एसआई उपेंद्र सब से पहले बढ़पुरा में रविंद्र भाटी के घर पहुंचे. वहां पहुंचने के बाद पता चला कि 12 नवंबर की रात तो परिवार की बेटी पायल ने खुदकुशी कर ली थी.

एसआई उपेंद्र समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर हेमलता इतनी दूर वहां किस से मिलने आई थी. क्योंकि पायल के दोनों भाई भी इस बात से इंकार कर चुके थे कि वो हेमा को जानते हैं.

पायल के परिवार व गांव वालों के बयानों की तसदीक करने के लिए जब एसआई उपेंद्र दादरी थाने गए तो वहां यह बात साफ हो गई कि पायल ने वाकई खुदकुशी की थी.

दादरी पुलिस ने उन्हें पायल की लाश के फोटो भी दिखाए, जिस में उस का चेहरा व गरदन बुरी तरह जल कर वीभत्स हो गए थे. उसे देख कर कोई पहचान ही नहीं सकता था कि लाश किस लड़की की है.

एसआई उपेंद्र अजय ठाकुर की तलाश में बुलंदशहर पहुंचे. अजय ठाकुर मूलरूप से बुलंदशहर में सिकंदराबाद के महेपा जागीर गांव का रहने वाला था. अजय ठाकुर खेतीबाड़ी करता था. भरेपूरे संयुक्त परिवार के युवक अजय ठाकुर के परिवार में मातापिता और भाईबहनों के अलावा पत्नी सुमन और 5 व 3 साल के 2 बेटे थे.

परिवार वालों से एसआई उपेंद्र ने जब अजय के बारे में पूछा तो पता चला कि अजय भी 12 नवंबर, 2022 से ही लापता है. वह 12 नवंबर को घर से नोएडा जाने की बात कह कर बाइक से निकला था, उस के बाद से घर नहीं लौटा. इतना ही नहीं, उस के फोन जबजब काल की गई तो बंद मिला.

अजय के लापता होने पर घर वालों ने उस की हत्या की आशंका जताते हुए सिकंदराबाद थाने में 14 नवंबर, 2022 को उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

एसआई उपेंद्र ने जब सिकंदराबाद थाने जा कर इस बात की तसदीक की तो अजय ठाकुर के परिवार की बात सही पाई गई.

तकनीकी जांच से मिले कुछ सुराग

इस के बाद तो एसआई उपेंद्र के लिए हेमा चौधरी की गुमशुदगी एक रहस्य भरी फिल्म बन गई. क्योंकि हेमा तक पहुंचने के जिस संपर्क सूत्र तक पुलिस पहुंच रही थी, पता चलता कि या तो उस की मौत हो चुकी है या वो लापता है.

26 नवंबर को बिसरख थाने के एसएचओ का तबादला हो गया और नए एसएचओ के रूप में इंसपेक्टर अनिल राजपूत ने थाने का कार्यभार संभाला. उन्होंने जब थाने में लंबित विवेचनाओं की जानकारी ली तो एसआई उपेंद्र के पास हेमा चौधरी की गुमशुदगी के बारे में पता चला.

मामला बेहद दिलचस्प था. एसएचओ अनिल राजपूत ने एसआई उपेंद्र की मदद के लिए कांस्टेबल राजीव कुमार, अनिल कुमार, शिवांक ढालिया, सरविंद्र कुमार और महिला कांस्टेबल ज्योति की टीम बना दी.

साथ ही टीम को हेमा चौधरी के अलावा अजय ठाकुर और पायल भाटी के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाने और अजय ठाकुर के फोन को सर्विलांस पर लगवाने का आदेश दिया.

इस का सुखद परिणाम जल्द ही सामने आया. पायल, हेमा और अजय पाल की काल डिटेल्स खंगालने के बाद सामने आया कि अजय और पायल कई महीनों से एकदूसरे को जानते थे. दोनों के बीच कई बार लंबीलंबी बातचीत होती थी. पिछले कुछ दिनों से अजय हेमा से भी उस के फोन पर बातचीत कर रहा था.

इतना ही नहीं, 12 नवंबर की रात पायल, हेमा और अजय की लोकेशन एक साथ होना इस बात का साफ इशारा था कि एक मौत और 2 गुमशुदगी का आपस में कोई न कोई संबंध जरूर है. क्योंकि 3 लोग जिन में 2 महिलाएं थीं, एक रात को साथ थे.

इन में से एक महिला खुदकुशी कर लेती है. उस की भी पहचान नहीं होती, पहचान भी परिवार द्वारा कपड़ों से की जाती है. इस के बाद बाकी 2 लोग लापता पाए जाते हैं. ये सारे संयोग कई सवाल खड़े कर रहे थे.

काल डिटेल्स और सर्विलांस की मदद से पुलिस को जल्द ही इस बात का पता चल गया कि अजय का फोन कभी स्विच्ड औफ हो जाता है तो कभी काम करने लगता है.

12 नवंबर, 2022 के बाद जब भी अजय का मोबाइल फोन इस्तेमाल हुआ, उस से कुछ खास नंबरों पर ही बात हुई. उन में से एक नंबर ऐसा भी था जो अजय के नाम पर ही रजिस्टर्ड था, लेकिन उस की लोकेशन भी अजय के पुराने नंबर के साथ ही थी.

जांचपड़ताल के बाद एसआई उपेंद्र को यह भी पता चला कि अजय अपने बैंक एकाउंट से नेट बैंकिग के जरिए ट्रांजैक्शन कर रहा है. इस का मतलब साफ था कि वो सहीसलामत है. लेकिन हेमलता के बारे में जानने के लिए पुलिस का अजय तक पहुंचना जरूरी था.

प्यासी दुल्हन : प्रेमी संग रची साजिश – भाग 2

रंजना थोड़ी देर उन मैलेकुचैले कपड़ों को देखती रही, उस के बाद सिर हिलाते हुए बोली, ‘‘नहीं.’’

‘‘इसे पहचानो.’’ एक अंगूठी दिखाते हुए टीआई ने कहा.

‘‘हां साहब, यह तो मेरी ही अंगूठी है. मैं ने ही पति को ठीक करवाने के लिए दी थी. इस का घिसा हुआ नग ठीक वैसे ही है, आप को कहां मिली?’’ रंजना बोली.

‘‘तुम्हारे पति की अंगुली से.’’ टीआई ने कहा.

‘‘मतलब?’’

‘‘इधर आओ मेरे साथ, लेकिन इस कुरते को एक बार फिर से देखो.’’ यह कह कर टीआई श्वेता मौर्या ने उस के सामने कुरते को अब पूरी तरह फैला दिया था.

‘‘अरे यह तो मेरे पति का ही कुरता है. इस की एक जेब फटी हुई है.’’ रंजना बोली.

‘‘इस का मतलब मेरा अनुमान सही था कि हो न हो वह लाश रामसुशील पाल की ही है.’’ वह बोलीं.

‘‘कहां हैं मेरे पति?’’ रंजना ने पूछा.

‘‘तुम्हीं ने तो बताया था कि वह 2 दिन पहले रीवा गया है. तो फिर तुम ही बताओ न वह कहां होगा.’’

‘‘मुझे कुछ नहीं मालूम.’’ रंजना ने कहा.

‘‘उस की मौत हो चुकी है. उस की किसी ने हत्या कर दी है, वह भी डेढ़ साल पहले. उस की लाश अब मिली है, एकदम से सूखी हुई, कंकाल की तरह.’’

टीआई की यह बात सुन कर रंजना रोने लगी, तभी टीआई ने उस के गालों पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिए. डपटती हुई बोलीं, ‘‘बताओ, तुम ने अपने पति की हत्या क्यों की?’’

‘‘मैं ने? नहीं तो मैं ने कुछ नहीं किया. मैं भला क्यों..?’’ रंजना सुबकती हुई बोलने लगी.

‘‘तुम ने ही अपने पति की हत्या की है. देवर से तुम्हारे नाजायज संबंध हैं. इस बारे में गांव के कई लोग जानते हैं. तुम्हारा पति भी जानता था.’’

‘‘क्या कहती हो मैडमजी?’’ रंजना बोली.

‘‘तुम ने उस की बौडी को भूसे में छिपा कर भी रखा. यह देख कुरते की एक जेब में अभी भी कुछ भूसा है. गांव वालों से भी तुम्हारे भूसे वाले घर से मांस के सड़ने की गंध की शिकायत मिल चुकी है.’’ कहते हुए टीआई श्वेता मौर्या ने पास में खड़े पुलिसकर्मियों को निर्देश दिया, ‘‘यह ऐसे नहीं बताएगी, इस की ढंग से खातिरदारी करो, तभी सच बोलेगी.’’

सख्ती की बात सुनते ही रंजना डर गई. बोली, ‘‘बताती हूं, सब कुछ बताऊंगी, मुझे और मत पीटो.’’

इस के बाद रंजना पाल ने अपने पति रामसुशील की हत्या की जो कहानी बताई, वह अवैध संबंधों की चाशनी में तरबतर निकली—

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के थाना मऊगंज के गांव उमरी श्रीपत का रहने वाला रामसुशील पाल एक साधारण किसान था. उस के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. परिवार में वह अकेला था. उस की पत्नी की कुछ साल पहले बीमारी से मौत हो गई थी.

उस के 2 चाचा की नजर उस की जमीन पर थी. उन्होंने कुछ जमीन पहले से ही जबरदस्ती अपने कब्जे में कर ली थी. बाकी की जमीन पर भी वे नजर गड़ाए हुए थे. इस के चलते काफी विवाद चल रहा था. आए दिन उन के बीच लड़ाईझगड़े होते रहते थे.

उन के सामने रामसुशील अकेला पड़ जाता था. उस के अलावा कोई दूसरा घर संभालने वाला भी नहीं था. उम्र भी 40 पार करने वाली थी. इसलिए उसे अपने घर की चिंता सता रही थी. बिरादरी वाले उस के लिए कई बार रिश्ता ले कर आए, लेकिन उस की उम्र अधिक होने के चलते उस की दोबारा शादी नहीं हो रही थी.

एक दिन उस की शादी की मंशा पूरी हो गई. पास के गांव के गरीब परिवार की 20 वर्षीय रंजना पाल का रिश्ता आया तो उस ने तुरंत हां कर दी, रंजना उस से उम्र में काफी छोटी थी.

सुहागरात को मिली मायूसी

रामसुशील से रंजना की शादी तो हो गई, लेकिन नईनवेली पत्नी ने उस की मर्दानगी का परीक्षण सुहागरात को ही कर लिया था. उस ने अपनी सहेलियों से सुहागरात की जो रंगीन बातें सुनी थीं, वैसा उस ने कुछ भी नहीं पाया. इसलिए वह मायूस हो गई.

उसे संतुष्टि सिर्फ इस बात को ले कर थी कि घर में खानेपीने की मौज थी और पहननेओढ़ने की कोई कमी नहीं थी. पति भी उस का दिल रखने वाला मिला था. परिवार में न सास थी और ननद भाभी की कोई चिकचिक सुनने को मिलती थी.

रामसुशील सुंदर पत्नी पा कर बहुत खुश था, लेकिन इस चिंता में भी रहता था कि वह उसे चाचा के परिवार से दूर कैसे रखे. उसे खेती के काम से अकसर शहर जाना होता था, लेकिन जब भी लौटता था तब पत्नी रंजना के लिए कोई न कोई उपहार जरूर खरीद लाता था.

वह रंजना को खुश रखना चाहता था. उस की इच्छा होती थी कि वह जब घर आए तब रंजना सजीसंवरी मिले. मुसकराती रहे. जुबान पर कोई शिकायत न रहे. फिर भी वह रंजना की एक शिकायत दूर नहीं कर पाता था. वह शिकायत संतोषजनक यौन संबंध की थी. रंजना जी भर कर सैक्स का आनंद नहीं उठा पाती थी, जिस से कई बार वह खीझ तक जाती थी.

वह मन मसोस कर रह जाती थी. एक बार उस ने पति से शहर जा कर मर्दानगी बढ़ाने वाली दवाई लाने के लिए कहा. किंतु रामसुशील शर्म से इस के लिए दुकान पर नहीं जा सका. इस बारे में वह अपने दोस्तों से कुछ भी कहने से हिचकता था.

धधक रही थी जिस्म की आग

उस के दिमाग में हमेशा चाचा द्वारा जमीनजायदाद पर कब्जे की बात ही घूमती रहती थी. इस तनाव में वह रात को पत्नी से सिर दबाने को कहता, सिर में तेल की मालिश करवाता और उसे बाहों में ले कर सो जाता था.

रंजना पति की इस आदत से परेशान हो गई थी. उसे जल्द ही महसूस होने लगा था कि उस की जिंदगी नर्क बन चुकी है. एक तरफ देह की आग ठंडी नहीं हो पा रही थी, दूसरी तरफ गांव में किसी से भी हंसनेबोलने तक पर पति ने कई तरह की पाबंदियां लगा रखी थी. इस के लिए उस ने पासपड़ोस के बच्चे और बुजुर्ग महिलाओं को मुखबिरी के लिए लगा रखा था. वे उसे रंजना के दिनभर की गतिविधियों की खबर कर देते थे. और फिर रंजना से रामसुशील गुस्सा हो जाता था.

इस का नतीजा यह हुआ कि जल्द ही दोनों के बीच का प्यार परवान चढ़ने के बजाय तकरार में बदल गया. एक दिन की बात है. सुबहसुबह रामसुशील से भूसाघर में बिखरे भूसे को ठीक करने को ले कर बहस हो गई थी. पति गुस्से में बोलता हुआ चला गया था. वह उदास मन से अपने खेत की ओर जा रही थी, उसी वक्त बगल के खेत में काम कर रहा उस का चचेरा देवर गोपाल बोल पड़ा, ‘‘क्या बात है भाभी, भैया गुस्से में जा रहे थे. अगर मेरे लायक कोई काम हो तो मुझे बताओ.’’

रंजना ने पहली बार पति के छोटे चाचा के बेटे गोपाल से बात की थी. इस से पहले वह उसे देख कर सिर्फ मुसकरा देता था.

‘‘कुछ नहीं, भूसाघर में भूसे को ऊपर चढ़ाना था, उसी पर मुझे डांट दिया.’’ रंजना कुछ बात छिपाती हुई बोली.

‘‘कोई बात नहीं भाभी मैं कर देता हूं, आखिर मैं कोई गैर तो हूं नहीं.’’ गोपाल बोला.

‘‘नहीं…नहीं, रहने दो मैं खुद कर लूंगी. वैसे तुम्हारा नाम क्या है?’’ रंजना बोली.

‘‘जी भाभी गोपाल, वैसे आप गोपू कह कर बुला सकती हैं.’’

‘‘अभी तुम यहां से जाओ, बुढि़या हमें बतियाते हुए देख रही है,’’ रंजना बोली और अपने घर आने के लिए मुड़ गई.

गोपाल थोड़ी तेज आवाज में बोला, ‘‘भाभी, मैं आ रहा हूं भूसाघर के पास.’’

हनिट्रैप : अर्चना के चंगुल में कैसे फंसे विधायक – भाग 2

जैसे ही महिमा को यह पता चली कि फिल्म प्रमोटर अक्षय पारिजा ने अर्चना और उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया है तो अचानक से महिमा के अंदर तूफान जोश मार गया और सोचने लगी यही सही मौका है और लोहा भी गरम है चोट कर दो. क्योंकि वह भी 3 साल से अर्चना नाग से पीडि़त थी.

उस के बंद आस्तीन से निकल कर कई बार बाहर जाने की उस से कोशिश की थी, लेकिन उस के चंगुल से आजाद नहीं हो सकी थी. उसे आज वह सुनहरा मौका मिल गया था. घिनौनी जिंदगी से आजादी मिलने की.

3 सालों से उसे वेश्यावृत्ति के धंधे में झोंक दिया था. खुद तो कोठे की मौसी बन बैठी थी और कई जिंदगियों को नरक में धकेल दिया था.

हिम्मत जुटा कर महिमा खंडगिरी थाने जा पहुंची और एसएचओ संजय कुमार को आपबीती सुना कर एक लिखित नामजद तहरीर उन्हें सौंप दी. उस तहरीर में उस ने विस्तार से जिक्र किया था कि अर्चना नाग ने कैसे कोल्डड्रिंक और खाने में नशीला पदार्थ मिला कर उसे पिला दिया था.

उस के बाद अर्चना नाग, उस के पति जगबंधु चांद और उस का सहयोगी खगेश्वर नाथ तीनों मिल कर उस की नग्न फिल्म बना कर उसे मानसिक और शारीरिक रूप से नोचनोच खाने लगे थे.

उस की दर्दभरी कहानी सुन कर एकबारगी एसएचओ संजय कुमार के भी रोंगटे खड़े हो गए थे. फिलहाल उन्होंने विधिक काररवाई करते हुए मुकदमा आईपीसी की धरा 341, 328, 324, 354सी, 370, 386, 387, 388, 389, 416 के तहत अर्चना नाग, जगबंधु चांद और खगेश्वर नाथ के खिलाफ दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी थी. यह बात 2 अक्तूबर, 2022 की है.

4 साल में कमाए 30 करोड़

अर्चना नाग के खिलाफ 2 अलगअलग थानों में गंभीर घटनाओं के मुकदमे दर्ज किए गए थे, जिन में एक घटना 3 करोड़ रुपए की मांग करना तो दूसरी उसी के सिंडीकेट की सदस्य महिमा को धोखे से नशीला पदार्थ खिला कर उस की नग्न तसवीरें उतार लेने की. दोनों ही घटनाएं बड़ी और गंभीर थीं, इसलिए अर्चना को गिरफ्तार करना अब पुलिस की मजबूरी थी.

खैर, मामला सैक्स स्कैंडल से जुड़ा हुआ था. कानून के हिसाब से जब तक पुलिस का कोई बड़ा अधिकारी ऐक्शन लेने के लिए सामने नहीं आता, एसएचओ संजय कुमार अर्चना के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते थे.

उन्होंने इस घटना की जानकारी डीसीपी प्रतीक सिंह और पुलिस कमिश्नर सोमेंद्र प्रियदर्शी को दे दी थी. पुलिस अधिकारियों ने गुप्त तरीके से अर्चना नाग के खिलाफ सबूत जुटाने शुरू कर दिए थे, ताकि उस के खिलाफ कड़ी से कड़ी काररवाई की जा सके.

पुलिस कमिश्नर सोमेंद्र प्रियदर्शी ने घटना की जांच डीसीपी प्रतीक सिंह को सौंप दी थी. उन्होंने अर्चना की लाइफस्टाइल की पड़ताल की तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई थी. जांच में उन्होंने पाया कि अर्चना ने 4 सालों में 30 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति अर्जित की थी.

यही नहीं, विदेशी नस्ल के 4 कुत्ते, एक सफेद घोड़ा, महंगी कारें और भुवनेश्वर के मंचेश्वर और सत्य विहार में 3 आलीशान कोठियां हैं. ये सब कुछ महज 4 सालों में अर्जित की थीं.

पुलिस यह सोच कर हैरान थी कि आखिर उस के हाथ ऐसा कौन सा कुबेर का खजाना लग गया था, जो चंद सालों में धनपति बन गई थी.

इन सभी बातों का खुलासा अर्चना नाग के गिरफ्तार होने के बाद ही होता. उस के खिलाफ पुलिस ने काफी सबूत इकट्ठा कर लिए थे.

सबूत इकट्ठा करने के बाद पुलिस ने अर्चना नाग, उस के पति जगबंधु चांद और उस के सहयोगी खगेश्वर नाथ को 7 अक्तूबर, 2022 को उस के घर जगमारा न्यू रोड, खंडगिरी से गिरफ्तार कर लिया और उन्हें अदालत के सामने पेश कर झारपाड़ा जिला जेल भेज दिया.

अर्चना नाग के गिरफ्तार होने के बाद पुलिस जांच में जो आईने की तरह सच सामने आया, उस से ओडिशा राज्य के कूल्हे हिल गए थे. प्रदेश में भूचाल सा आ गया था. पता चला कि अर्चना ने सैक्स स्कैंडल के जरिए प्रदेश सरकार के करीब 25 मंत्रियों, 18 विधायकों, नौकरशाहों, फिल्मकारों और बड़ेबड़े उद्योगपतियों को हनीट्रैप का शिकार बनाया था.

प्रदेश में बीजू जनता दल की सरकार है. वे मंत्री और विधायक इसी दल के थे, जो अर्चना नाग के हनीट्रैप का शिकार बने थे. विपक्षी पार्टी भाजपा, उन मंत्रियों और विधायकों के नाम उजागर करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक पर दबाव बना रही थी.

प्रदेश सरकार ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि कानून सही तरीके से अपना काम कर रहा है. सही समय आने पर उन के नामों का खुलासा किया जाएगा. जो इस हनीट्रैप का शिकार बने हैं और उन की नजदीकियां नाग से हैं. सरकार की नीयत पर संदेह न करें, उस पर भरोसा रखें.

पुलिस जब तक जांच की काररवाई पूरी करती है, आइए तब तक हम पढ़ते हैं ये अर्चना नाग कौन है? उस का जन्म कहां हुआ था? उस की परवरिश किन हालात में हुई थी? उस की जगबंधु चांद से मुलाकात कैसे हुई? आदि.

27 वर्षीय खूबसूरत अर्चना नाग का जन्म ओडिशा के कालाहांडी जिले के छोटे से गांव केसिंगा में हुआ था. उस के मांबाप बहुत गरीब थे. वह 2 भाईबहन थी, जिन में वह सब से बड़ी थी. अर्चना के पिता की बरसों पहले स्वाभाविक मौत हो चुकी थी. पति की मौत के बाद घर की जिममेदारी का बोझ अर्चना की मां के कंधों पर आ गया था.

बच्चों की परवरिश के लिए मां ने नौकरी की. नौकरी की कमाई से ही वह अपने बच्चों की परवरिश करती रही. बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश की. उन की अच्छी शिक्षा पर पैसे खर्च किए, उन्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दी.

यह भी सच है कि खुद नीलम भूखी रह जाती थी मगर बच्चों को कभी भूखा नहीं सोने दिया. आखिरकार, दोनों बच्चे ही तो उस की आंखों के तारे थे.

जिस मुफलिसी और गरीबी के दौर से वह अपने बच्चों को ले कर जी रही थी, उस निर्धनता का बेटी अर्चना को दिल की गहराई से एहसास था.

पति ने दिखाया अमीर बनने का रास्ता

गरीबी का अक्स अर्चना के बाल दिमाग पर ऐसा उभरा था कि जैसेजैसे वह सयानी होती जा रही थी, बस यही सोचती थी कि कब वह दिन आएगा, जब वह गरीबी की मैली चादर फेंक कर दौलत के नरम बिस्तर का सुख भोगेगी.

मां के लिए बेटियां बनी अपराधी – भाग 1

‘अम्मा, यह बेटा है या बेटी?’’ एक युवती ने समीना से पूछा. अस्पताल के वार्ड में एक स्टूल पर बैठी समीना ने कहा, ‘‘अरी लाली, यह मेरा पोता है. आज सुबह ही पैदा हुआ है.’’

‘‘अम्मा, पोता होने से तेरी तो मौज हो गई,’’ उस युवती ने समीना को बातें में लगाते हुए कहा.

‘‘हां लाली, सब अल्लाह की मेहर है,’’ समीना आसमान की ओर हाथ उठा कर बोली.

‘‘अम्मा, तेरा पोता बड़ा खूबसूरत और गोलमटोल है,’’ युवती ने नवजात बच्चे को दुलारते हुए कहा, ‘‘अम्मा, तू कहे तो मैं इसे गोद में ले कर खिला लूं.’’

‘‘ले तेरा मन बालक को गोद में खिलाने की है तो खिला ले.’’ समीना ने अपने पोते को युवती की गोद में देते हुए कहा.

युवती नवजात को गोद में ले कर दुलारने, प्यार करने लगी. उसे अपने पोते पर इतना प्यार बरसाते देख कर समीना ने पूछा, ‘‘लाली, तू यहां क्या कर रही है?’’

‘‘अम्मा, मेरी चाची के औपरेशन से बच्चा हुआ है. वह इसी अस्पताल के बच्चा वार्ड में मशीन में रखा है.’’ युवती ने समीना को बताया, ‘‘मैं तो चाची की मदद के लिए आई थी, लेकिन बालक मशीन में रखा है, इसलिए इधर आ गई. मुझे बच्चा खिलाना अच्छा लगता है.’’

समीना ने उस युवती को आशीर्वाद दिया.

यह बीती 10 जनवरी की बात है. भरतपुर जिले की पहाड़ी तहसील के हैवतका गांव के निवासी तारीफ की पत्नी मनीषा ने तड़के 4 बज कर 20 मिनट पर पहाड़ी के राजकीय अस्पताल में बेटे को जन्म दिया था. प्रसव के दौरान मनीषा को चूंकि अधिक रक्तस्राव हुआ था और वह एनीमिक भी थी, इसलिए डाक्टरों ने उसे जिला मुख्यालय भरतपुर के जनाना अस्पताल रेफर कर दिया था.

मनीषा के परिवार वाले उसे पहाड़ी से भरतपुर के राजकीय जनाना अस्पताल ले आए. भरतपुर, राजस्थान का संभाग मुख्यालय है. वहां अच्छी चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हैं.

मनीषा दोपहर करीब 12 बज कर 28 मिनट पर अस्पताल पहुंची. कागजी खानापूर्ति के बाद उसे 12 बज कर 50 मिनट पर अस्पताल के पोस्ट नैटल केयर वार्ड नंबर-1 में बैड नंबर 7 पर भरती कर लिया गया.

अस्पताल में भरती होने पर प्रसूता मनीषा बैड पर लेट गई. मनीषा के साथ उस की सास समीना और समीना की सास जुम्मी सहित गांव के कई पुरुष भी भरतपुर आए थे. मनीषा का पति तारीफ साथ नहीं था. वह ट्रक चलाता था और ट्रक ले कर दिल्ली से मुंबई गया हुआ था. मनीषा की शादी करीब डेढ़ साल पहले हुई थी. पहली संतान के रूप में उसे बेटा हुआ था.

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मनीषा के नवजात बेटे को समीना गोद में ले कर खिला रही थी, तभी वह युवती वहां आ गई थी. उस ने समीना और मनीषा को बातों में लगा लिया. हंसहंस कर बात करते हुए उस ने समीना से उस का पोता अपनी गोद में ले लिया.

वह युवती जब नवजात को गोद में ले कर दुलार रही थी, तभी डाक्टर ने मनीषा को ब्लड चढ़ाने की जरूरत बताई. इस पर मनीषा का जेठ मुफीद और ताया ससुर सद्दीक भरतपुर के ही आरबीएम अस्पताल से ब्लड लेने चले गए. अस्पताल में भरती मनीषा, उस की सास समीना और दादी सास जुम्मी अस्पताल में रह गईं.

उस युवती को अपने पोते के साथ खेलता देख कर समीना ने उस से कहा, ‘‘लाली, हम ने सुबह से चाय तक नहीं पी है. तू हमारी बहू के पास बैठ कर बच्चे को खिला, हम अस्पताल के बाहर कैंटीन पर चायनाश्ता कर आते हैं.’’

इस के लिए वह युवती खुशीखुशी तैयार हो गई. दोपहर करीब 2 बजे युवती को वहां बैठा छोड़ कर समीना और उस की सास जुम्मी चाय पीने अस्पताल के बाहर चली गईं.

समीना और उस की सास के बाहर जाने के बाद उस युवती ने मनीषा से कहा कि तुम्हें शौचालय जाना हो तो मैं ले चलती हूं. मनीषा के हां कहने पर वह युवती उस का हाथ पकड़ कर उसे शौचालय ले गई. मनीषा का बेटा युवती की गोद में ही था. मनीषा शौचालय के अंदर चली गई.

कुछ देर बाद मनीषा शौचालय से बाहर निकली तो वहां वह युवती नहीं थी. मनीषा ने सोचा कि शायद वह बैड पर जा कर बैठ गई होगी.

मनीषा जैसेतैसे सहारा ले कर अपने बैड तक आई, लेकिन वह वहां भी नहीं थी. इस पर मनीषा ने शोर मचाया तो वार्ड में भरती अन्य प्रसूताओं के घर वाले एकत्र हो गए.

उधर अस्पताल के बाहर मनीषा की सास समीना जब चाय पी रही थी तो उस ने उस युवती को बच्चे को कंबल में लपेट कर ले जाते हुए देखा. समीना ने कंबल देख कर युवती को टोका भी लेकिन वह रुकी नहीं.

वह तेज कदमों से चली गई. इस से समीना को संदेह हुआ. वह वार्ड में बहू के पास आई तो वह रो रही थी. मनीषा ने बताया कि जो युवती बच्चे को गोद में ले कर खिला रही थी, वह उसे ले कर भाग गई है.

समीना तुरंत अस्पताल के बाहर आई, लेकिन युवती वहां कहीं नहीं थी. तब तक अस्पताल में भरती प्रसूताओं के घर वाले भी बाहर आ गए थे. लोगों ने पूछताछ की तो पता चला, कंबल में बच्चे को लपेटे हुए एक युवती सफेद रंग की स्कूटी पर गई है. उस स्कूटी के पास पहले से ही एक और युवती खड़ी थी. दोनों स्कूटी से गई हैं.

करीब 10 घंटे पहले कोख से जन्मा कलेजे का टुकड़ा चोरी हो जाने से मनीषा पीली पड़ गई. उस की तबीयत खराब होने लगी तो उसे डाक्टरों ने संभाला.

 

कभी-कभी ऐसा भी – भाग 1

शौपिंग कर के बाहर आई तो देखा मेरी गाड़ी गायब थी. मेरे तो होश ही उड़ गए कि यह क्या हो गया, गाड़ी कहां गई मेरी? अभी थोड़ी देर पहले यहीं तो पार्क कर के गई थी. आगेपीछे, इधरउधर बदहवास सी मैं ने सब जगह जा कर देखा कि शायद मैं ही जल्दी में सही जगह भूल गई हूं. मगर नहीं, मेरी गाड़ी का तो वहां नामोनिशान भी नहीं था. चूंकि वहां कई और गाडि़यां खड़ी थीं, इसलिए मैं ने भी वहीं एक जगह अपनी गाड़ी लगा दी थी और अंदर बाजार में चली गई थी. बेबसी में मेरी आंखों से आंसू निकल आए.

पिछले साल, जब से श्रेयस का ट्रांसफर गाजियाबाद से गोरखपुर हुआ है और मुझे बच्चों की पढ़ाई की वजह से यहां अकेले रहना पड़ रहा है, जिंदगी का जैसे रुख ही बदल गया है. जिंदगी बहुत बेरंग और मुश्किल लगने लगी है.

श्रेयस उत्तर प्रदेश सरकार की उच्च सरकारी सेवा में है, सो हमेशा नौकर- चाकर, गाड़ी सभी सुविधाएं मिलती रहीं. कभी कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ी. बैठेबिठाए ही एक हुक्म के साथ सब काम हो जाता था. पिछले साल प्रमोशन के साथ जब उन का तबादला हुआ तो उस समय बड़ी बेटी 10वीं कक्षा में थी, सो मैं उस के साथ जा ही नहीं सकती थी और इस साल अब छोटी बेटी 10वीं कक्षा में है. सही माने में तो अब अकेले रहने पर मुझे आटेदाल का भाव पता चल रहा था.

सही में कितना मुश्किल है अकेले रहना, वह भी एक औरत के लिए. जिंदगी की कितनी ही सचाइयां इस 1 साल के दौरान आईना जैसे बन कर मेरे सामने आई थीं.

औरों की तो मुझे पता नहीं, लेकिन मेरे संग तो ऐसा ही था. शादी से पहले भी कभी कुछ नहीं सीख पाई क्योंकि पापा भी उच्च सरकारी नौकरी में थे, सो जहां जाते थे, बस हर दम गार्ड, अर्दली आदि संग ही रहते थे. शादी के बाद श्रेयस के संग भी सब मजे से चलता रहा. मुश्किलें तो अब आ रही हैं अकेले रह के.

मोबाइल फोन से अपनी परेशानी श्रेयस के साथ शेयर करनी चाही तो वह भी एक मीटिंग में थे, सो जल्दी से बोले, ‘‘परेशान मत हो पूरबी. हो सकता है कि नौनपार्किंग की वजह से पुलिस वाले गाड़ी थाने खींच ले गए हों. मिल जाएगी…’’उन से बात कर के थोड़ी हिम्मत तो खैर मिली ही मगर मेरी गाड़ी…मरती क्या न करती. पता कर के जैसेतैसे रिकशा से पास ही के थाने पहुंची. वहां दूर से ही अपनी गाड़ी खड़ी देख कर जान में जान आई.

श्रेयस ने अभी फोन पर समझाया था कि पुलिस वालों से ज्यादा कुछ नहीं बोलना. वे जो जुर्माना, चालान भरने को कहें, चुपचाप भर के अपनी गाड़ी ले आना. मुझे पता है कि अगर उन्होंने जरा भी ऐसावैसा तुम से कह दिया तो तुम्हें सहन नहीं होगा. अपनी इज्जत अपने ही हाथ में है, पूरबी.

दूर रह कर के भी श्रेयस इसी तरह मेरा मनोबल बनाए रखते थे और आज भी उन के शब्दों से मुझ में बहुत हिम्मत आ गई और मैं लपकते हुए अंदर पहुंची. जो थानेदार सा वहां बैठा था उस से बोली, ‘‘मेरी गाड़ी, जो आप यहां ले आए हैं, मैं वापस लेने आई हूं.’’

उस ने पहले मुझे ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर बहुत अजीब ढंग से बोला, ‘‘अच्छा तो वह ‘वेगनार’ आप की है. अरे, मैडमजी, क्यों इधरउधर गाड़ी खड़ी कर देती हैं आप और परेशानी हम लोगों को होती है.’’

मैं तो चुपचाप श्रेयस के कहे मुताबिक शांति से जुर्माना भर कर अपनी गाड़ी ले जाती लेकिन जिस बुरे ढंग से उस ने मुझ से कहा, वह भला मुझे कहां सहन होने वाला था. श्रेयस कितना सही समझते हैं मुझे, क्योंकि बचपन से अब तक मैं जिस माहौल में रही थी ऐसी किसी परिस्थिति से कभी सामना हुआ ही नहीं था. गुस्से से बोली, ‘‘देखा था मैं ने, वहां कोई ‘नो पार्किंग’ का बोर्ड नहीं था. और भी कई गाडि़यां वहां खड़ी थीं तो उन्हें क्यों नहीं खींच लाए आप लोग. मेरी ही गाड़ी से क्या दुश्मनी है भैया,’’ कहतेकहते अपने गुस्से पर थोड़ा सा नियंत्रण हो गया था मेरा.

इतने में अंदर से एक और पुलिस वाला भी वहां आ पहुंचा. मेरी बात उस ने सुन ली थी. आते ही गुस्से से बोला, ‘‘नो पार्किंग का बोर्ड तो कई बार लगा चुके हैं हम लोग पर आप जैसे लोग ही उसे हटा कर इधरउधर रख देते हैं और फिर आप से भला हमारी क्या दुश्मनी होगी. बस, पुलिस के हाथों जब जो आ जाए. हो सकता है और गाडि़यों में उस वक्त ड्राइवर बैठे हों. खैर, यह तो बताइए कि पेपर्स, लाइसेंस, आर.सी. आदि सब हैं न आप की गाड़ी में. नहीं तो और मुश्किल हो जाएगी. जुर्माना भी ज्यादा भरना पड़ेगा और काररवाई भी लंबी होगी.’’

उस के शब्दों से मैं फिर डर गई मगर ऊपर से बोल्ड हो कर बोली, ‘‘वह सब है. चाहें तो चेक कर लें और जुर्माना बताएं, कितना भरना है.’’

मेरे बोलने के अंदाज से शायद वे दोनों पुलिस वाले समझ गए कि मैं कोई ऊंची चीज हूं. पहले वाला बोला, ‘‘परेशान मत होइए मैडम, ऐसा है कि अगर आप परची कटवाएंगी तो 500 रुपए देने पड़ेंगे और नहीं तो 300 रुपए में ही काम चल जाएगा. आप भी क्या करोगी परची कटा कर. आप 300 रुपए हमें दे जाएं और अपनी गाड़ी ले जाएं.’’

उस की बात सुन कर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, मगर मैं अकेली कर भी क्या सकती थी. हर जगह हर कोने में यही सब चल रहा है एक भयंकर बीमारी के रूप में, जिस का कोई इलाज कम से कम अकेले मेरे पास तो नहीं है. 300 रुपए ले कर चालान की परची नहीं काटने वाले ये लोग रुपए अपनीअपनी जेब में ही रख लेंगे.

घर से निकलते ही – भाग 1

रात के 10 बज चुके थे. रोजाना की तरह प्रदीप पत्नी ज्योति का इंतजार कर रहा था. बच्चे उस का इंतजार कर सो चुके थे. वैसे तो वह अकसर शाम का अंधेरा घिरते ही लखनऊ के धनवारा भसंडा गांव स्थित अपने घर आ जाती थी. हालांकि कई बार उसे थोड़ी देर भी हो जाती थी, किंतु उस रोज कुछ ज्यादा ही देर हो गई थी.

प्रदीप ने कई बार फोन किया था. लेकिन वह बारबार काल डिसकनेक्ट कर देती थी. फिर फोन पर ‘पहुंच से बाहर’ होने का संदेश मिलता था.

घर के दरवाजे पर नजर टिकाए गुमसुम प्रदीप ने अपनी 9 वर्षीया बेटी और 7 वर्षीय बेटे को खाना खिला कर सोने के लिए कमरे में भेज दिया था. सब से छोटा वाला बेटा तो काफी पहले ही सो गया था. जैसेजैसे रात गहराने लगी थी और गलियों में सन्नाटा पसरने लगा था, वैसेवैसे उस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

खैर! इंतजार खत्म हुआ. दरवाजे की कुंडी बजी. और बाहर से किवाड़ पर लात मारने की आवाज भी आई. वह तेज कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ा, तब तक किवाड़ एक झटके से खुल चुके थे.

दरअसल, दरवाजे की भीतरी चिटकनी नहीं लगी थी. लड़खड़ाती ज्योति 2-3 कदम ही बढ़ पाई थी कि प्रदीप ने उसे गिरने से पहले पकड़ लिया.

उस के पीछे जोगेंद्र सिंह चौहान भी खड़ा था. घर में घुसते ही जोगेंद्र ने ताना देते हुए प्रदीप से कहा, ‘‘ले भई, संभाल अपनी बीवी को. जब बीवी तुम से संभलती नहीं है, तुम्हारा कहना नहीं मानती है, तब तुम उस से पीछा क्यों नहीं छुड़ा लेते हो?’’

ज्योति को पकड़े हुए प्रदीप ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ उसे गुस्साई नजरों से देखता रहा.

‘हांहां, इस से नाता तोड़ कर अपना अलग ही घर बसा लो.’’ जोगेंद्र बोला.

‘‘अरे जोगेंद्र, ये मुझे क्या छोड़ेगा. देखना, एक दिन मैं ही इस से नाता तोड़ कर तुम्हारे साथ घर बसाऊंगी.’’ लड़खड़ाती आवाज में ज्योति बोली. प्रदीप चुप बना रहा. दोनों की उलटीसीधी बातें सुनता रहा.

ज्योति शराब के नशे में धुत थी. जोगेंद्र भी नशे में था. ज्योति प्रदीप का हाथ छुड़ाते हुए लड़खड़ाती आवाज में बोली, ‘‘तुम इतना फोन क्यों कर रहे थे? नाक में दम कर रखा था. तुम्हें कितनी बार मना किया है कि जब मैं कंपनी के काम से घर से बाहर रहूं तब बारबार फोन कर मुझे डिस्टर्ब मत किया करो. लेकिन तुम हो कि…’’

‘‘…अरे बच्चे खाने के लिए तुम्हारा इंतजार कर रहे थे.’’ धीमी आवाज में प्रदीप बोला.

‘‘तो क्या हुआ? उन्हें खाना पका कर खिलाया या यूं ही सो गए?’’ ज्योति नाराजगी दिखाती हुई बोली.

तभी जोगेंद्र बोला, ‘‘अच्छा ज्योति, मैं चलता हूं तुम आराम करो. तुम ने बहुत पी ली है.’’

‘‘अरे अकेले कहां जाएगा तू, मुझे भी तो तेरे साथ चलना है. थोड़ा दम तो लेने दे.’’ जोगेंद्र का हाथ खींचते हुए ज्योति बोली और उसे अपने साथ कमरे में पड़ी चारपाई पर बिठा लिया.

प्रदीप वहीं खड़ा रहा, जबकि ज्योति चारपाई पर पसर गई. लेटेलेटे प्रदीप से बोली,  ‘‘तुम ने तो मेरी पसंद का खाना पकाया नहीं होगा. मैं जोगेंद्र के साथ फिर वहीं दारोगा खेड़ा जा रही हूं. तुम्हारे और बच्चों के लिए खाना देने आई थी. हम ने कंपनी के काम की थकान उतारने के लिए वहीं दारू पी थी. अभी एक चौथाई बोतल बची है.’’

जोगेंद्र के कंधे का सहारा ले कर पसरी हुई ज्योति चारपाई पर बैठ गई. बोली, ‘‘चल जोगेंद्र, वहीं चलते हैं दारोगा खेड़ा के कमरे पर. फील्ड में जाने के लिए सुबह 7 बजे ही निकलना होगा. सामान भी तो वहीं पड़ा है. यहां से समय पर वहां पहुंचना मुश्किल है.’’

‘‘बच्चे पूछेंगे तब उन्हें क्या बोलूं?’’ प्रदीप बोला.

‘‘यह खाना तुम्हारे लिए है. रेस्टोरेंट का अच्छा खाना है. बच्चों को भी सुबह गर्म कर के खिला देना, खराब नहीं होगा. मैं वापस जा रही हूं. कल कंपनी की 9 बजे मीटिंग भी है. शाम तक वापस लौटूंगी. खाना बना कर रखना, जोगेंद्र के लिए भी.’’ ज्योति आदेश देने के अंदाज में बोली.

ज्योति प्रेमी के साथ छलकाने लगी जाम

ज्योति को जोगेंद्र के साथ जाने से प्रदीप रोक नहीं पाया. उस के सामने ही ज्योति जोगेंद्र के प्रति प्रेम दर्शाती रही. उस ने यहां तक कह दिया कि उस ने उस के साथ ही दारू पी है और रात भी उसी के साथ गुजारेगी.

दरअसल, ज्योति अब कहने भर को प्रदीप की ब्याहता थी. उस ने अपना प्रेमी तलाश लिया था. जब जी में आता था, उस के साथ कंपनी के काम के बहाने चली जाती थी. घर में शराब नहीं पीती थी, लेकिन बच्चों से छिपा कर सिगरेट जरूर पीने लगी थी.

कोरोना के बाद जब से ज्योति ने कंपनी का काम पकड़ा था, तब से ज्योति बहुत बदल गई थी. उस पर शहरी रंग चढ़ चुका था. फैशन भी करने लगी थी. उम्र 30-32 की हो चली थी, किंतु चालढाल और बनावशृंगार से वह 24-25 की ही दिखती थी. साड़ी जैसे पारंपरिक पहनावे के अलावा जींस टौप भी पहनने लगी थी.

जुबान कड़वी हो चुकी थी. छूटते ही मुंह से गाली निकलती थी. पति को तो कुछ समझती ही नहीं थी. जब भी वह गुस्से में होती, तब उसे मांबहन की गालियां बकनी शुरू कर देती थी.

और जब नशे में होती, तब प्रदीप को सैक्स के लिए परेशान कर देती थी. यौन संतुष्टि नहीं मिलने पर उसे पीट तक डालती थी. बातबात पर दबंगई दिखाती थी.

बिना तलाक के तलाकशुदा – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला एटा की शबाना का अलग ही मामला है. उस के पति ने उसे तलाक नहीं दिया है, फिर भी इद्दत के दौरान भरणपोषण की रकम दे कर उस से छुटकारा पा लिया है. जबकि इद्दत 2 स्थितियों में होता है. एक औरत विधवा हो जाए, दूसरा उस का तलाक हो जाए. लेकिन शबाना के साथ इन दोनों स्थितियों में एक भी नहीं है.

एटा शहर के किदवईनगर में समरुद्दीन पत्नी रजिया, 2 बेटियों शबाना, शमा तथा 2 बेटों सरताज और नूर आलम के साथ रहते थे. उन का खातापीता परिवार था. बेटियों में शबाना शादी लायक हुई तो वह उस के लिए लड़का ढूंढने लगे.

एटा में ही उन के एक रिश्तेदार अलीदराज रहते थे. बाद में वह काम की तलाश में दिल्ली चले गए और वहां दक्षिणपूर्वी दिल्ली जिले के संगम विहार में रहने लगे. उन्होंने वहीं स्टील फरनीचर का अपना कारखाना लगा लिया, जो ठीकठाक चल पड़ा.

अलीदराज के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और 1 बेटी थी. वह बेटी की शादी कर चुके थे. बड़े बेटे आसिफ की शादी के लिए उन्होंने समरुद्दीन के पास प्रस्ताव भेजा. क्योंकि शबाना उन्हें पसंद थी. आसिफ पिता के स्टील फरनीचर के धंधे में हाथ बंटा रहा था. लड़का ठीकठाक था, इसलिए समरुद्दीन ने हामी भर दी. इस के बाद आसिफ और शबाना का निकाह हो गया.

शादी के बाद शबाना दिल्ली आ गई. वह समझदार लड़की थी, इसलिए रजिया को पूरा विश्वास था कि बेटी अपने बातव्यवहार से ससुराल वालों का दिल जीत लेगी और खुशहाल जीवन जिएगी. हुआ भी ऐसा ही. शबाना के दांपत्य के शुरुआती दिन काफी खुशहाल थे. मांबाप ने शादी में 4-5 लाख रुपए खर्च किए थे.

आसिफ का भी काम ठीक चल रहा था. सासससुर, पति, देवर सभी उसे प्यार करते थे. इसलिए शबाना भविष्य को ले कर निश्ंिचत थी. शादी के साल भर बाद शबाना को एक बेटी पैदा हुई, जिस का नाम अलीशा रखा गया. अलीशा घर की पहली संतान थी, इसलिए उसे ले कर सभी खुश थे. सब कुछ बढि़या चल रहा था, लेकिन अचानक शबाना के सुख के दिन दुखों में बदल गए.

एक दिन आसिफ शराब पी कर घर आया तो शबाना को गुस्सा आ गया. उस ने कहा, ‘‘यह क्या कर के आए हो तुम? यह नया शौक कब से पाल लिया? पीने वाले मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं हैं. तुम्हें तो पता ही है कि मेरे मायके में शराब की छोड़ो, कोई बीड़ीसिगरेट तक नहीं पीता.’’

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पत्नी की नसीहत सुन कर उसे अमल में लाने के बजाय आसिफ ने शबाना के गाल पर तमाचा जड़ते हुए कहा, ‘‘क्या मैं तेरे बाप के पैसों से पी कर आया हूं, जो तू मुझे समझा रही है? तू कौन होती है मुझे रोकने वाली?’’

शौहर के इस व्यवहार से शबाना हैरान रह गई. उस ने कहा, ‘‘भले तुम मेरे बाप के पैसों की नहीं पी रहे हो, पर शराब पीना अच्छा तो नहीं है.’’

‘‘तू ठीक कह रही है. तू ही कौन सी अच्छी है. मेरे दोस्त मुझ पर हंसते हैं, वे कहते हैं कि कहां मोटी के चक्कर में फंस गया.’’

कह कर आसिफ कमरे में चला गया. उस की इस बात पर शबाना हैरान थी. उस ने तो उसे पसंद कर के निकाह किया था. अब यह क्या कह रहा है? शबाना डर गई. उस ने मन को समझाया कि आसिफ ने नशे में यह बात कह दी होगी.

लेकिन सुबह भी आसिफ का व्यवहार जस का तस रहा तो शबाना सहम उठी. क्योंकि इस से उस का दांपत्य सुखी नहीं हो सकता था. शबाना ने शौहर को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘देखो, अब मैं जैसी भी हूं, तुम्हारी बीवी हूं. अब पूरा जीवन तुम्हें मेरे साथ ही बिताना होगा.’’

आसिफ ने उस की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. वह खापी कर फैक्ट्री चला गया.  शबाना को परेशान देख कर सास अफसरी ने पूछा, ‘‘क्या बात है बहू, तुम कुछ परेशान लग रही हो?’’

‘‘अम्मी आप ही बताइए कि अगर मैं मोटी हूं, तो इस में मेरा क्या दोष है?’’ शबाना ने कहा.

‘‘नहीं, इस में तुम्हारा दोष नहीं, हमारा दोष है.’’ अफसरी बेगम ने व्यंग्य किया.

उसी बीच सामूहिक विवाह समारोह में शबाना के देवर असद की शादी दिल्ली की कमरुन्निसा के साथ हो गई थी. कमरुन्निसा छरहरे बदन की काफी खूबसूरत लड़की थी. भाई की दुलहन देख कर आसिफ को लगा कि मांबाप ने उस के निकाह में कुछ ज्यादा ही जल्दी कर दी थी, वरना उस का निकाह भी किसी खूबसूरत लड़की के साथ हुआ होता.

यह बात मन में आते ही आसिफ को भाई से ईर्ष्या होने लगी. पर मन की बात बाहर नहीं आने दी. बेटी के पहले जन्मदिन पर आसिफ के कुछ दोस्त घर आए तो उन्होंने कहा, ‘‘भाई आसिफ, असद की बीवी तो बहुत सुंदर है.’’

पहचान : मां की मौत के बाद क्या था अजीम का हाल – भाग 1

बाढ़ राहत शिविर के बाहर सांप सी लहराती लंबी लाइन के आखिरी छोर पर खड़ी वह बारबार लाइन से बाहर झांक कर पहले नंबर पर खड़े उस व्यक्ति को देख लेती थी कि कब वह जंग जीत कर लाइन से बाहर निकले और उसे एक कदम आगे आने का मौका मिले.

असम के गोलाघाट में धनसिरी नदी का उफान ताडंव करता सबकुछ लील गया है. तिनकातिनका जुटाए सामान के साथ पसीनों की लंबी फेहरिस्त बह गई है. बह गए हैं झोंपड़े और उन के साथ खड़ेभर होने तक की जमीन भी. ऐसे हालात में राबिया के भाई 8 साल के अजीम के टूटेफूटे मिट्टी के खिलौनों की क्या बिसात थी.

खिलौनों को झोंपड़ी में भर आए बाढ़ के पानी से बचाने के लिए अजीम ने न जाने क्याक्या जुगतें की, और जब झोंपड़ी ही जड़ से उखड़ गई तब उसे जिंदगी की असली लड़ाई का पता मालूम हुआ.

राबिया ने 20 साल की उम्र तक क्याक्या न देखा. वह शरणार्थी शिविर के बाहर लाइन में खड़ीखड़ी अपनी जिंदगी के पिछले सालों के ब्योरे में कहीं गुम सी हो गई थी.

राबिया अपनी मां और छोटे भाई अजीम को पास ही शरणार्थी शिविर में छोड़ यहां सरकारी राहत कैंप में खाना व कपड़ा लेने के लिए खड़ी है. परिवार के सदस्यों के हिसाब से कंबल, चादर, ब्रैड, बिस्कुट आदि दिए जा रहे थे.

2 साल का ही तो था अजीम जब उस के अब्बा की मौत हो गई थी. उन्होंने कितनी लड़ाइयां देखीं, लड़ीं, कब से वे भी शांति से दो वक्त की रोटी को दरबदर होते रहे. एक टुकड़ा जमीन में चार सांसें जैसे सब पर भारी थीं. कौन सी राजनीति, कैसेकैसे नेता, कितने छल, कितने ही झूठ, सूखी जमीन तो कभी बाढ़ में बहती जिंदगियां. कहां जाएं वे अब? कैसे जिएं? लाखों जानेअनजाने लोगों की भीड़ में तो बस वही चेहरा पहचाना लगता है जो जरा सी संवेदना और इंसानियत दिखा दे.

पैदा होने के बाद से ही देख रही थी राबिया एक अंतहीन जिहाद. क्यों? क्यों इतना फसाद था, इतनी बगावत और शोर था?

अब्बा के पास एक छोटी सी जमीन थी. धान की रोपाई, कटाई और फसल होने के बाद 2 मुट्ठी अनाज के दाने घर तक लाने के लिए उन्हें कितने ही पापड़ बेलने पड़ते. और फिर भूख और अनाज के बीच अम्मी की ढेरों जुगतें, ताकि नई फसल होने तक भूख का निवाला खुद ही न बन जाएं वे.

इस संघर्ष में भी अम्मी व अब्बा को कभी किसी से शिकायत नहीं रही. न तो सरकार से, न ग्राम पंचायती व्यवस्था से और न जमाने से. जैसा कि अकसर सोनेहीरों में खेलने वाले लोगों को रहती है. शिकायत भी क्या करें? मुसलिम होने की वजह से हर वक्त वे इस कैफियत में ही पड़े रहते कि कहीं वे बंगलादेशी घुसपैठिए न करार दे दिए जाएं. अब्बा न चाहते हुए भी इस खूनी आग की लपटों में घिर गए.

वह 2012 के जुलाई माह का एक दिन था. अब्बा अपने खेत गए हुए थे. खेत हो या घर, हमेशा कई मुद्दे सवाल बन कर उन के सिर पर सवार रहते. ‘कौन हो?’ ‘क्या हो?’ ‘कहां से हो?’ ‘क्यों हो?’ ‘कब से हो?’ ‘कब तक हो?’

इतने सारे सवालों के चक्रव्यूह में घिरे अब्बा तब भी अमन की दुआ मांगते रहते. बोडो, असमिया लोगों की आपत्ति थी कि असम में कोई बाहरी व्यक्ति न रहे. उन का आंतरिक मसला जो भी हो लेकिन आम लोग जिंदगी के लिए जिंदगी की जंग में झोंके जा चुके थे.अब्बा खेत से न लौटे. बस, तब से भूख ने मौत के खौफ की शक्ल ले ली थी. भूख, भय, जमीन से बेदखल हो जाने का संकट, रोजीरोटी की समस्या, बच्चों की बीमारी, देशनिकाला, अंतहीन अंधेरा. घर में ही अब्बा से या कभी किसी पहचान वाले से राबिया ने थोड़ाबहुत पढ़ा था.

पागलों की तरह अम्मी को कागज का एक टुकड़ा ढूंढ़ते देखती. कभी संदूकों में, कभी बिस्तर के नीचे, कभी अब्बा के सामान में. वह सुबूत जो सिद्ध कर दे कि उन के पूर्वज 1972 के पहले से ही असम में हैं. नहीं मिल पाया कोई सुबूत. बस, जो था वह वक्त के पंजर में दफन था. अब्बा के जाने के बाद अम्मी जैसे पथरा गईर् थीं. आखिरकार 14 साल की राबिया को मां और भाई के लिए काम की खोज में जाना ही पड़ा.

कभी कहीं मकान, कभी दुकान में जब जहां काम मिलता, वह करती. बेटी की तकलीफों ने अम्मी को फिर से जिंदा होने को मजबूर कर दिया. इधरउधर काम कर के किसी तरह वे बच्चों को संभालती रहीं.

जिंदगी जैसी भी हो, चलने लगी थी. लेकिन आएदिन असमिया और अन्य लोगों के बीच पहचान व स्थायित्व का विवाद बढ़ता ही रहा. प्राकृतिक आपदा असम जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए नई बात नहीं थी, तो बाढ़ भी जैसे उनकी जिंदगी की लड़ाई का एक जरूरी हिस्सा ही था. राबिया अब तक लाइन के पहले नंबर पर पहुंच गई थी.

सामने टेबल बिछा कर कुरसी पर जो बाबू बैठे थे, राबिया उन्हें ही देख रही थी.

‘‘कार्ड निकालो जो एनआरसी पहचान के लिए दिए गए हैं.’’

‘‘कौन सा?’’ राबिया घबरा गई थी.

बाबू ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा, ‘‘एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर औफ सिटिजन्स का पहचानपत्र, वह दिखाओ, वरना सामान अभी नहीं दिया जा सकेगा. जिन का नाम है, पहले उन्हें मिलेगा.’’

‘‘जी, दूसरी अर्जी दाखिल की हुई है, पर अभी बहुतों का नाम शामिल नहीं है. मेहरबानी कर के सामान दे दीजिए. मैं कई घंटे से लाइन में लगी हूं. उधर अम्मी और छोटा भाई इंतजार में होंगे.’’

मिलने, न मिलने की दुविधा में पड़ी लड़की को देख मुहरवाले कार्डधारी पीछे से चिल्लाने लगे और किसी डकैत पर टूट पड़ने जैसा राबिया पर पिल पड़ते हुए उसे धकिया कर निकालने की कोशिश में जुट गए. राबिया के लिए जैसे ‘करो या मरो’ की बात हो गई थी. 2 जिंदगियां उस की राह देख रही थीं. ऐसे में राबिया समझ चुकी थी कि कई कानूनी बातें लोगों के लिए होते हुए भी लोगों के लिए ही तकलीफदेह हो जाती हैं.

बाबू के पीछे खड़े 27-28 साल के हट्टेकट्टे असमिया नौजवान नीरद ने राबिया को मुश्किल में देख उस से कहा, ‘‘आप इधर अंदर आइए. आप बड़े बाबू से बात कर लीजिए, शायद कुछ हो सके.’’

राबिया भीड़ के पंजों से छूट कर अंदर आ गई थी. लोग खासे चिढ़े थे. कुछ तो अश्लील फब्तियां कसने से भी बाज नहीं आ रहे थे. राबिया दरवाजे के अंदर आ कर उसी कोने में दुबक कर खड़ी हो गई.

नीरद पास आया और एक मददगार की हैसियत से उस ने उस पर नजर डाली. दुबलीपतली, गोरी, सुंदर, कजरारी आंखों वाली राबिया मायूसी और चिंता से डूबी जा रही थी. उस ने हया छोड़ मिन्नतभरी नजरों से नीरद को देखा.

नीरद ने आहिस्ते से कहा, ‘‘सामान की जिम्मेदारी मेरी ही है, मैं राहत कार्य निबटा कर शाम को शिविर आ कर तुम्हें सामान दे जाऊंगा. तुम अपना नाम बता दो.’’

राबिया ने नाम तो बता दिया लेकिन खुद की इस जिल्लत के लिए खुद को ही मन ही मन कोसती रही.

नीरद भोलाभाला, धानी रंग का असमिया युवक था. वह गुवाहाटी में आपदा नियंत्रण और सहायता विभाग में सरकारी नौकर था. नौकरी, पैसा, नियम, रजिस्टर, सरकारी सुबूतों के बीच भी उस का अपना एक मानवीय तंत्र हमेशा काम करता था. और इसलिए ही वह मुश्किल में पड़े लोगों को अपनी तरफ से वह अतिरिक्त मदद कर देता जो कायदेकानूनों के आड़े आने से अटक जाते थे.

प्यार पर टूटा पंचायत का कहर – भाग 1

बिहार के जिला भागलपुर स्थित कजरैली इलाके का एक गांव है गौराचक्क. वैसे तो इस गांव में सभी जातियों के लोग रहते हैं. लेकिन यहां बहुतायत यादवों की है. यहां के यादव साधनसंपन्न हैं. उन में एकता भी है. उन की एकजुटता की वजह से पासपड़ोस के गांवों के लोग उन से टकराने से बचते हैं.

इसी गांव में परमानंद यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 1 बेटी और 2 बेटे थे. बेटी बड़ी थी, जिस का नाम सोनी था. साधारण शक्लसूरत और भरेपूरे बदन की सोनी काफी मिलनसार और महत्त्वाकांक्षी थी. उस के अंदर काफी कुछ कर गुजरने की जिजीविषा थी.

2 बेटों के बीच एकलौती बेटी होने की वजह से सोनी को घर में सभी प्यार करते थे. उस की हर एक फरमाइश वह पूरी करते थे. सोनी के पड़ोस में हिमांशु यादव रहता था. रिश्ते में सोनी उस की बुआ लगती थी. यानी दोनों में बुआभतीजे का रिश्ता था. दोनों हमउम्र थे और साथसाथ पलेबढे़ पढ़े भी थे.

वह बचपन से एकदूसरे के करीब रहतेरहते जवानी में पहुंच कर और ज्यादा करीब आ गए. यानी बचपन के रिश्ते जवानी में आ कर सभी मर्यादाओं को तोड़ते हुए प्यार के रिश्ते की माला में गुथ गए.

सोनी और हिमांशु एकदूसरे से प्यार करते थे. इतना प्यार कि एकदूसरे के बिना जीने की सोच भी नहीं सकते थे. वे जानते थे कि उन के बीच बुआभतीजे का रिश्ता है. इस के बावजूद अंजाम की परवाह किए बगैर प्यार की पींग बढ़ाने लगे. बुआभतीजे का रिश्ता होने की वजह से घर वालों ने भी उन की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया.

एक दिन दोपहर का वक्त था. सोनी से मिलने हिमांशु उस के घर गया. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. सोनी सोफे पर अकेली बैठी कुछ सोच रही थी. हिमांशु को देखते ही मारे खुशी के उस का चेहरा खिल उठा. हिमांशु के भी चेहरे पर रौनक आ गई. वह भी मुसकरा दिया. तभी सोनी ने उसे पास बैठने का इशारा किया तो वह उस के करीब बैठ गया.

‘‘क्या बात है सोनी, घर में इतना सन्नाटा क्यों है?’’ हिमांशु चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए बोला, ‘‘चाचाचाची कहीं बाहर गए हैं क्या?’’

‘‘हां, आज सुबह ही मम्मीपापा किसी काम से बाहर चले गए. वे शाम तक ही घर लौटेंगे और दोनों भाई भी स्कूल गए हैं.’’ वह बोली.

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‘‘इस एकांत में बैठी तुम क्या सोच रही थी?’’  हिमांशु ने पूछा.

‘‘यही कि सामाजिक मानमर्यादाओं को तोड़ कर जिस रास्ते पर हम ने कदम बढ़ाए हैं, क्या समाज हमारे इस रिश्ते को स्वीकार करेगा?’’ सोनी बोली.

‘‘शायद समाज हमारे इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगा.’’ हिमांशु ने तुरंत कहा.

‘‘फिर क्या होगा हमारे प्यार का? मुझे तो उस दिन की सोच कर डर लगता है, जिस दिन हमारे इस रिश्ते के बारे में मांबाप को पता चलेगा तो पता नहीं क्या होगा?’’ सोनी ने लंबी सांस लेते हुए कहा.

‘‘ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, वे हमें जुदा करने की कोशिश करेंगे.’’ सोनी की आंखों में आंखें डाले हिमांशु आगे बोला, ‘‘इस से भी जब उन का जी नहीं भरेगा तो हमें सूली पर चढ़ा देंगे. अरे हम ने प्यार किया है तो डरना क्या? सोनी, मेरे जीते जी तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘सच में इतना प्यार करते हो मुझ से?’’ वह बोली.

‘‘चाहो तो आजमा लो, पता चल जाएगा.’’ हिमांशु ने तैश में कहा.

‘‘ना बाबा ना. मैं ने तो ऐसे ही तुम्हें तंग करने के लिए पूछ लिया.’’

‘‘अच्छा, अभी बताता हूं, रुक.’’ कहते हुए हिमांशु ने सोनी को बांहों में भींच लिया. वह कसमसाती हुई उस में समाती चली गई. एकदूसरे के स्पर्श से उन के तनबदन की आग भड़क उठी. कुछ देर तक वे एकदूसरे में समाए रहे, जब होश आया तो वे नजरें मिला कर मुसकरा पड़े. फिर हिमांशु वहां से चला गया.

लेकिन उन का यह प्यार और ज्यादा दिनों तक घर वालों की आंखों से छिपा हुआ नहीं रह सका. सोनी के पिता को जब जानकारी मिली तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. परमानंद यादव बेटी को ले कर गंभीर हुए तो दूसरी ओर उन्होंने हिमांशु से साफतौर पर मना कर दिया कि आइंदा वह न तो सोनी से बातचीत करेगा और न ही उन के घर की ओर मुड़ कर देखने की कोशिश करेगा. अगर उस ने दोबारा ऐसी ओछी हरकत करने की कोशिश की तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा.

प्रेम प्रसंग की बातें गांवमोहल्ले में बहुत तेजी से फैलती  हैं. परमानंद ने बहुत कोशिश की कि यह बात वह किसी और के कानों तक न पहुंचे पर ऐसा हो नहीं सका. लाख छिपाने के बावजूद पूरे मोहल्ले में सोनी और हिमांशु की प्रेम कहानी के चर्चे होने लगे. इस से परमानंद का मोहल्ले में निकलना दूभर हो गया.

परमानंद ने सोनी पर कड़ा पहरा बिछा दिया. सोनी के घर से बाहर अकेला जाने पर पाबंदी लगा दी. पत्नी से भी उन्होंने कह दिया कि सेनी को अगर घर से बाहर जाना भी पड़ेगा तो उस के साथ घर का कोई एक सदस्य जरूर जाएगा.

पिता द्वारा पहरा बिठा देने से हिमांशु और सोनी की मुलाकात नहीं हो पा रही थी. सोनी की हालत जल बिन मछली की तरह हो गई थी. उसे न तो खानापीना अच्छा लगता था और न ही किसी से मिलनाजुलना. उस के लिए एकएक पल काटना पहाड़ जैसा लगता था.