लिवइन में रहकर बेटी और बहू पर बुरी नजर – भाग 1

राजधानी दिल्ली के पूर्वी इलाके पांडव नगर में एक छोटा सा रामलीला मैदान है. साल 2022 की 5 जून को उसी मैदान में लाश के टुकड़े तब मिले थे, जब दिल्ली पुलिस उस इलाके में पैट्रोलिंग कर रही थी. इस दौरान झाडि़यों से बदबू आने पर पैट्रोलिंग टीम ने पांडव नगर थाने में जानकारी दी.

वे टुकड़े 2 सफेद पौलीथिन में थे. एक में पैर के घुटने का निचला हिस्सा, जबकि दूसरी में जांघ का हिस्सा था. पुलिस ने इन टुकड़ों को जांच के लिए फौरैंसिक टीम के हवाले कर दिया. अगले दिन फिर उसी रामलीला ग्राउंड और पास के जंगल में लाश के टुकड़े मिले. इस के बाद पुलिस चौकन्नी हो गई.

लगातार कई दिनों तक लाश के टुकड़े मिलते रहे, लेकिन उन्हें कौन फेंक रहा था? कोई उन्हें कब फेंका जाता था, पता नहीं चल पा रहा था. यहां तक कि पौलीथिन में बंद उन टुकड़ों की पहचान तक नहीं हो पा रही थी.

फोरैंसिक जांच में लाश के टुकड़ों से सिर्फ यही पता लग पाया कि यह 42-45 साल के व्यक्ति के हैं. फोरैंसिक टीम ने बताया कि ये इंसानी टुकड़े किसी पुरुष के हैं, लेकिन किस के, यह तो पता नहीं चला.

पुलिस ने उस की पहचान कराने के लिए आसपास के इलाके में लापता हुए लोगों की रिपोर्ट निकाली. उन्हें ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला, जो पांडव नगर या उस के आसपास के इलाके से लापता हो.

यहां तक कि पुलिस ने दूसरे थानों के अलावा एनसीआर के नोएडा, गाजियाबाद से ले कर गुड़गांव तक से जानकारी जुटाई. फिर भी उस की शिनाख्त नहीं हो पाई. उस के बाद पांडव नगर थाने की पुलिस ने हत्या और सबूत मिटाने की धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

यानी कि बरामद टुकड़ों में पैर, जांघ, एक हाथ मिलने के बाद पांडव नगर थाने में आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 201 (सबूत छिपाने तथा झूठी सूचना देने) के तहत एक मामला दर्ज कर लिया गया.

जब कई लोगों से पूछताछ के बाद भी कोई जानकारी नहीं मिल पाई, तब पुलिस ने अपनी जांच को आगे बढ़ाने के लिए रामलीला मैदान और आसपास में लगे सीसीटीवी फुटेज की जांच शुरू कर दी. इस में कई दिन लग गए. इसी बीच कटा हुआ एक सिर भी मिला. वह काफी सड़गल चुका था, जिस की पहचान नहीं हो सकी.

सीसीटीवी फुटेज में 31 मई और पहली जून की रात को 2 लोग संदिग्ध हालात में उस मैदान की तरफ आते हुए दिखे थे. धुंधली दिख रही उस फुटेज को काफी बड़ा कर देखने पर एक लड़का और दूसरी किसी महिला की गतिविधियों का पता चला.

वे दूरदूर थे. आगे की ओर लड़का चलता हुआ और कुछ फेंकता दिखा था, जबकि महिला पीछे से दूर चलती हुई और फिर खड़ी दिखी थी. उन के चेहरे साफ नहीं दिख रहे थे, लेकिन संदिग्ध लड़के के हाथ में कुछ बैग जैसा जरूर दिखा था.

इस आधार पर पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि लाश के टुकड़े फेंकने के मामले में जरूर 2 लोग शामिल हैं, जिन में एक महिला भी है. हो न हो, उन के संबंध हत्या से हों.

पुलिस के सामने बड़ा सवाल था कि ये दोनों कौन हो सकते हैं? उन्होंने किस की हत्या की गई होगी? क्यों उसे मारा होगा? इस का कुछ नहीं पता चल पाया. सिर्फ इतना ही पता था कि मरने वाला अधेड़ उम्र का पुरुष था.

पुलिस इस बात को ले कर भी हैरान थी कि आसपास के थानों में इस उम्र के व्यक्ति के लापता होने की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं थी. सवाल था कि आखिर एक इंसान हफ्तों तक गायब रहे और गुमशुदगी की कोई रिपोर्ट भी दर्ज न हो और न ही किसी थाने में कोई इस की शिकायत करे. यह कैसे हो सकता है.

फिर भी पांडव नगर थाने की पुलिस चुप नहीं बैठी. सीसीटीवी फुटेज के आधार पर घरघर जा कर यह पता लगाना शुरू किया कि कहीं कोई गायब तो नहीं है. खासतौर पर आसपास के इलाके में.

यह सब करने के लिए पुलिस की कई टीमों को लगा दिया गया था. पुलिस आसपास के इलाके के उन मोबाइल फोन नंबरों का पता लगाने में जुट गई, जो कुछ समय के लिए बंद रहा. पुलिस को संदेह था कि उन के डंप डाटा से कुछ सुराग मिल सकता है, जिस का इस्तेमाल कुछ दिन के लिए लाश के टुकड़े मिलने के दौरान नहीं किया गया हो.

पांडव नगर और पूर्वी दिल्ली की घनी आबादी वाले इलाके में इस तरीके से जांच करते हुए करीब 5 से 6 महीने निकल गए. हालांकि इस दौरान पुलिस को एक सफलता मिल गई, जिस में लापता व्यक्ति का पता चल गया.

पांडव नगर के ही अंजन दास नाम के एक शख्स को लोगों ने काफी समय से नहीं देखा था. जब पुलिस उस के मकान पर गई, तब वहां उन्हें मांबेटे के रहने के बारे में मालूम हुआ, लेकिन वे उस समय वहां नहीं मिले. पड़ोसियों ने बताया कि दीपक नाम का एक लड़का अपनी मां पूनम देवी के साथ रहता था, जो अब त्रिलोकपुरी में रहने लगे हैं.

पुलिस को यह सुराग काफी अहम लगा, क्योंकि सीसीटीवी में एक महिला और एक लड़का 2 लोग ही देखे गए थे. इस का पता लगाने के लिए पुलिस त्रिलोकपुरी पहुंची. वहां लड़का और महिला दोनों मिल गए.

जांच में पता चला कि महिला का नाम पूनम देवी और उस के लड़के का नाम दीपक है. पुलिस दोनों से पूछताछ करने लगी, लेकिन दोनों ने अंजन दास के बारे में कोई ठोस जवाब नहीं दिया.

इसी बीच महरौली में मुंबई की रहने वाली युवती श्रद्धा के 35 टुकड़े किए जाने की खबर से पांडव नगर थाने की पुलिस भी चौकन्नी हो गई. फिर क्या था, पुलिस ने दोनों मांबेटे से अंजन दास के बारे में कई सवाल पूछे. उन्हें सीसीटीवी फुटेज में पहचाने जाने का झांसा भी दिया. उस के बाद अंजन दास मर्डर का पूरा राज सामने आ गया.

अंजन मर्डर के मामले में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा दोनों मांबेटे पूनम देवी और दीपक 28 नवंबर, 2022 को गिरफ्तार कर लिए गए.

पूछताछ में पता चला कि अंजन दास के मर्डर की घटना त्रिलोकपुरी में हुई थी. वहां के ब्लौक नंबर 4 के एक मकान में पूनम देवी अपने 30 साल के बेटे दीपक, उस की बहू और शादीशुदा बेटी के साथ रहती थी.

पूनम मरने वाले व्यक्ति अंजन दास के साथ लिवइन रिलेशन में पांडव नगर के मकान में रहती थी. वह उस के साथ लिवइन में 2017 से रह रही थी.

अंजन दास लिफ्ट मैकेनिक था और उस की ड्यूटी नोएडा में थी. हालांकि उस से उस की पहली मुलाकात 2011 में ही हुई थी और उन के बीच प्रेम संबंध बन गए थे.

इस से पहले पूनम देवी कल्लू नाम के व्यक्ति के साथ पांडव नगर में ही रह रही थी. उस से उस का एक बेटा और एक बेटी थी. कल्लू के साथ भी उस ने शादी नहीं की थी. पूनम और उस के बेटे ने जांच के सिलसिले में अंजन दास मर्डर के बारे में जो बताया, वह अनैतिक संबंधों और लिवइन रिलेशन से बिगड़े पारिवारिक माहौल की कहानी निकली—

देवघर (झारखंड) के एक ब्राह्मण परिवार की 13 वर्षीय बेटी पूनम की शादी आरा के रहने वाले सुखदेव तिवारी से साल 1996 में हुई थी. तब देवघर बिहार राज्य में ही था.

अगले साल पूनम एक बेटी की मां भी बन गई. इसी बीच उस का पति रोजीरोटी कमाने के लिए दिल्ली चला आया. इस बीच पूनम अपने मायके में थी. वहीं उस ने बेटी को जन्म दिया था.

एक तो ब्याहता बेटी, वह भी मायके में नवजात बेटी के साथ रह रही थी. पति दूर परदेस में था. गरीब ब्राह्मण पिता और परिवार को पड़ोसी व रिश्तेदारों से ताने सुनने को मिलने लगे थे. पूनम ने पिता पर कसे गए ताने अपने कानों से सुने थे.

प्यासी दुल्हन : प्रेमी संग रची साजिश – भाग 1

रामसुशील के साथ रंजना पाल के दिन मजे में गुजर रहे थे. परिवार में पति के अलावा और कोई नहीं था. कहने को तो रिश्तेनाते में चचेरे सासससुर का भरापूरा परिवार था, जिस में 22-24 की उम्र के देवर और चेचेरे रिश्तेदारों के बच्चे भी थे, लेकिन अपने परिवार में केवल 40 वर्षीय पति रामसुशील पाल ही था, जिस के साथ उस की 3 साल पहले शादी हुई थी.

गरीब परिवार की रंजना जब ब्याह कर मध्य प्रदेश के रीवा जिले के उमरी श्रीपत गांव आई थी, तब ससुराल में अच्छीखासी खेती देख कर बहुत खुश हुई थी. पति रामसुशील पाल अकेले ही अपनी खेती को संभालता था. हालांकि उस की कुछ जमीन पर चाचा और उन के रिश्तेदारों ने कब्जा भी कर रखा था. इस कारण उन से उस की नहीं बनती थी.

रामसुशील से उन के बीच खेती के लिए बुवाई, कटाई या सिंचाई के दरम्यान अकसर झगड़ा हो जाता था. चाचा और चचेरे भाइयों के साथ बहस हो जाती थी, कमजोर कदकाठी का रामसुशील अकेला था और वो लोग संख्या में ज्यादा थे, इसलिए वह उन के सामने कमजोर पड़ जाता था. सभी उसे दबा देते थे.

रामसुशील ने पत्नी रंजना पर भी इस बात की पाबंदी लगा रखी थी कि वह चाचा के परिवार से कोई बातचीत नहीं करे और न ही उन के घर जाए. इस कारण उस के घर में आसपास के लोगों का भी आनाजाना नहीं था.

लेकिन पति के घर से चले जाने के बाद रंजना घर में अकेली रह जाती थी, जिस से पति की हिदायतों के बावजूद रंजना का मन परिवार के लोगों से बातें करने को मचलता रहता था. हमउम्र सदस्यों में उन लड़कों को वह तिरछी निगाहों से देखती रहती थी, जिन से उस का देवर का रिश्ता था. उन से हंसीमजाक करने का दिल करता था, जबकि चचेरे ससुर को दूर से देख कर ही घूंघट का परदा कर लेती थी. या सिर पर आंचल संभालती हुई गरदन पीछे की ओर घुमा लेती थी

बात साल 2022 के अक्तूबर महीने की है. दशहरा और दीपावली का त्यौहार भी खत्म हो चुका था. रंजना ने भी 24 अक्तूबर को अपने घर में मिट्टी के दीए जलाए थे. इस से पहले उस ने घर की अच्छी तरह से साफसफाई की थी. इस में उस ने कुछ पड़ोसी लड़कों से मदद भी ली थी.

पुलिस के आने से शुरू हुई कानाफूसी

महीनों से बंद पड़े भूसा घर की भी सफाई की थी. उस की सफाई करने के दौरान कुछ लोगों ने उस में से आने वाली दुर्गंध की शिकायत की थी. इस पर रंजना ने कहा था कि शायद उस में चूहा वगैरह मर गया हो. इस तरह बात आई गई हो गई.

दुर्गंध की शिकायत पर रंजना ने दीपावली के दिन अच्छी सुगंध वाली धूप व अगरबत्तियां जलाई थीं. फिर भी कई दिनों तक धीमीधीमी दुर्गंध का असर बना हुआ था. बच्चे उधर से गुजरते थे, तब नाक बंद कर लिया करते थे.

दीपावली के 2 दिन बाद सुबहसुबह रंजना के घर के पास आई पुलिस को देख कर गांव वाले चौंक गए. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर पुलिस यहां क्यों आई है? किसे तलाश रही है? गांव में किस ने क्या गुनाह किया है?

पासपड़ोस के कई लोग वहां जुट गए. युवा, औरतों के अलावा बच्चे भी वहां आ गए थे. उन में रंजना और उस के दूसरे कुनबे वाले भी थे. कोई पुलिस से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.

एएसआई हुकुमलाल मिश्रा ने ही एक बुजुर्ग से पूछा, ‘‘क्या गांव का कोई आदमी लंबे समय से लापता है?’’

‘‘पता नहीं साहब,’’ बुजुर्ग बोला.

‘‘ठीक से ध्यान करो, शायद कोई हो जो दशहरा, दीवाली पर भी नजर नहीं आया हो?’’ एएसआई ने पूछा.

‘‘मुझे तो ध्यान नहीं आ रहा है साहब,’’ अपने दिमाग पर जोर डालते हुए बुजुर्ग बोला. तभी भीड़ से ही आवाज आई, ‘‘रामसुशील भैया.’’

‘‘कौन बोला, सामने आओ जरा…’’ एएसआई मिश्रा ने रौबदार आवाज में कहा.

गरदन में गमछा लपेटे और लुंगी पहने एक मजदूर किस्म का व्यक्ति सामने आया. उस ने बताया कि रामसुशील बहुत दिन से नहीं दिखा है. इसी दौरान एक युवक बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘अरे, क्या कहते हो, हम ने तो कल सुबह ही उसे अपने खेत पर जाते देखा था.’’

‘‘अरे, वह रामसुशील नहीं, उस के चाचा का लड़का था. एकदम उसी की तरह चलता है, इसलिए तुम्हें ऐसा लगा होगा.’’ तीसरा बोला.

‘‘क्या कहते हो, रामसुशील का चचेरा भाई उस के खेत पर क्यों जाएगा? उस की उस से बनती ही कहां है? वह रामसुशील ही था.’’

रामसुशील के नाम से बातें होती देख एएसआई मिश्रा ने पूछा, ‘‘रामसुशील का घर कौन सा है?’’

इस पर पास खड़े एक बच्चे ने उस के घर की ओर इशारा कर दिया, जहां दरवाजे पर रंजना आंचल संभाल रही थी.

गांव वालों से पता चली सच्चाई

पुलिस वाले को उस ओर आता देख रंजना घर के भीतर जाने को मुड़ी. तभी महिला सिपाही ने उसे आवाज दी, ‘‘अरे कहां जा रही हो, ठहरो!’’ सुन कर रंजना वहीं ठिठक गई.

‘‘रामसुशील का घर यही है? तुम कौन हो उस की?’’ पुलिस वाले ने पूछा.

‘‘पत्नी है…दूसरी पत्नी,’’ एक आदमी तपाक से बोल पड़ा.

‘‘यह कौन बोला? मैं ने तुम से पूछा क्या पहली या दूसरी पत्नी के बारे में?’’ पुलिस वाले की कड़क आवाज सुन कर बोलने वाला शख्स सहम गया और सामने नहीं आया.

इस बार कांस्टेबल चंद्रभान जाटव ने रंजना के पास जा कर सीधा सवाल किया, ‘‘रामसुशील का घर यही है?’’

रंजना ने ‘हां’ में सिर हिला दिया.

‘‘वह घर में है? बाहर बुलाओ?’’ कुछ जवाब दिए बगैर वह वहीं खड़ी रही.

फिर वही आवाज आई, ‘‘अरे घर में होगा तभी न उसे बुलाएगी. वह तो गांव में महीनों से नजर नहीं आया है.’’

‘‘कौन बोल रहा है भई, उस के बारे में जो कुछ जानते हो सामने आ कर बताओ.’’ कांस्टेबल चंद्रभान जाटव के प्यार से बोलने पर एक व्यक्ति सामने आया.

उस ने बताया कि रामसुशील को गांव से गए हुए साल भर से ज्यादा हो गया. यह हमेशा उस से झगड़ती रहती थी, लगता है इसी कारण ऊब कर कहीं चला गया है.

‘‘सचसच बता, क्या यह आदमी रामसुशील के बारे सही कह रहा है?’’ एएसआई मिश्रा ने रंजना से पूछा.

‘‘गलत बोल रहा है साहब,’’ रंजना बोली.

‘‘तो फिर वह कहां है, बुलाओ उसे.’’

‘‘साहब, वह दीवाली के बाद ही रीवा चला गया था. वहां तो वह कोरोना के बाद से ही मजदूरी कर रहा है. कुछ दिन के लिए आया था. दशहरे पर भी आया था साहब.’’ रंजना सहमती हुई बोली.

‘‘लेकिन वह लड़का तो बोल रहा है कि उसे कल सुबह अपने खेत की तरफ जाते

देखा था.’’ एएसआई मिश्रा ने संदेह भरा सवाल किया.

‘‘वह गलत बोला था साहब, जिस के बारे में बताया वह मेरा चचेरा देवर है. उसी की तरह चालढाल है उस की,’’ रंजना बोली.

‘‘अरे तो फिर यह बताओ कि जिसे तुम अपना चचेरा देवर बता रही हो, तुम्हारे घर से निकल कर तुम्हारे ही खेत की तरफ क्यों जा रहा था? तुम्हारी तो उस के बाप से दुश्मनी है.’’ एक अन्य आदमी बोला.

‘‘वह मेरे कहने पर खेत में पानी पटाने आया था.’’ रंजना ने कहा.

‘‘फिर झूठ बोल रही है. इस वक्त कौन सी फसल लगी है तुम्हारे खेत में… अभी तो जुताई ही हुई है.’’ उस व्यक्ति ने तर्क किया. पुलिस वाले रंजना और गांव वालों की बातें सुन कर उलझन में पड़ गए.

थाने पहुंचते ही रंजना ने स्वीकारा जुर्म

दरअसल, रीवा जिले के मऊगंज थाने के अंतर्गत 25 अक्तूबर, 2022 को एक नाले से लाश बरामद हुई थी, जिस की गरदन कटी थी. उस की शिनाख्त के सिलसिले में पुलिस पता लगा रही थी कि आसपास के गांव का कोई व्यक्ति महीनों से गायब तो नहीं है.

इसी सिलसिले में पुलिस उमरी श्रीपत गांव भी आई थी. यहीं पर पुलिस को पता चला था कि रामसुशील भी गायब है. पूछताछ के दौरान पुलिस को रामसुशील के बारे में संदिग्ध बातों की जानकारी से लाश की पहचान के संबंध में एक उम्मीद जाग गई. रंजना समेत जिन्होंने भी रामसुशील के बारे में जो कुछ बताया, उन्हें पुलिस मऊगंज थाने ले आई, ताकि उन से विस्तार से पूछताछ की जा सके.

थाने में टीआई श्वेता मौर्या ने सब से पहले बरामद लाश के कपडे़ ला कर रंजना के सामने रखते हुए पूछा, ‘‘इन्हें पहचानती हो?’’

हनिट्रैप : अर्चना के चंगुल में कैसे फंसे विधायक – भाग 1

वह बड़ा और भव्य महलनुमा आलीशान भवन था. भवन के बीचोबीच कई कीमती सोफे बिछे हुए थे और हाल की चारों दीवारों से सटे खूबसूरत गमले रखे हुए थे. उस में आर्टिफिशियल फूल के सुंदरसुंदर पौधे लगे हुए हाल ही खूबसूरती की शोभा बढ़ाए जा रहे थे. यही नहीं, आधुनिक साजसज्जा युक्त ये आलीशान भवन किसी रजवाड़े से कम नहीं था.

दिन के साढ़े 10 बज रहे थे. हाल में बिछे सोफे पर 27 वर्षीय अर्चना नाग चांद बैठी हुई थी तो दाहिनी ओर बिछे सोफे पर बेहद खूबसूरत और कमसिन युवती महिमा बैठी थी. उस की उम्र 20 साल के करीब रही होगी. अर्चना का पति जगबंधु चांद महिमा के ही बगल में सोफे पर बैठा था और उसे ही खा जाने वाली नजरों से देखे जा रहा था.

‘‘तो क्या सोचा महिमा?’’ अर्चना नाग ने सवाल किया.

‘‘फिलहाल इस बारे में मुझे कुछ सोचना भी नहीं है,’’ नफरत भरे स्वर में महिमा ने उत्तर दिया था.

‘‘अभी वक्त भी है और किस्मत भी तुम्हारे हाथों में. खूब ठंडे दिमाग से फैसला लेना ताकि आगे चल कर तुम्हें पछताना न पड़े.’’

‘‘मैडम, आप मुझे मजबूर नहीं कर सकतीं.’’ वह बोली.

‘‘कहां मजबूर कर रही हूं मैं तुम्हें. मैं तो बस अपना जान कर समझा रही हूं. तुम हो कि मेरी बात मानने को तैयार ही नहीं हो. लेकिन अगर बात समझने के लिए तैयार नहीं होगी तो मुझे अंगुली टेढ़ी करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘धमकी दे रही हो आप मुझे?’’ अचानक गुस्से से महिमा तमतमा उठी, ‘‘मैम! आप मुझे धमकी मत देना, कहे देती हूं. जिस दिन मैं अपनी पर उतर आई न…’’

‘‘शांत महिमा शांत. शांत हो जाओ.’’ इस बार महिमा की बात काट कर जगबंधु चांद बोला था, ‘‘घड़ीघड़ी नाक पर गुस्सा तुम जैसी खूबसूरत लड़कियों को शोभा नहीं देता है. रही बात मैम की तो मैं उन्हें समझाता हूं कि गुस्से या धमकी से नहीं, बल्कि प्यार से किसी के दिल में जगह बनाई जाती है.’’

थोड़ी देर पहले तक वह जिस महिमा को खा जाने वाली नजरों से घूरघूर कर देख रहा था, इस वक्त उस के सुर बदले हुए थे.

जगबंधु चांद जानता था कि महिमा अगर बिदक गई तो बनाबनाया खेल बिगड़ जाएगा और उस के बड़े मकसद पर पानी फिर जाएगा, इसलिए मौके की नजाकत को समझने में ही समझदारी थी. उस ने इशारों में पत्नी अर्चना नाग को समझाया कि टारगेट पूरा हो जाने दो, उस के बाद क्या करना है, सोचेंगे.

पति का इशारा पा कर अर्चना शांत तो गई थी मगर उस का बदन गुस्से से तप रहा था कि उस की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि वह मुझे धमकाए. अब बदले सुर में वह बोली, ‘‘माफ कर दो महिमा मुझे. कान पकड़ कर सौरी बोलती हूं. पता नहीं जरा सी देर में मुझे क्या हो जाता है कि आपा खो बैठती हूं. मुझे माफ कर दो, प्लीज.’’

अचानक अर्चना नाग के बदले तेवर देख कर महिमा चकित रह गई. वह सपने में भी कल्पना नहीं कर सकती थी कि उस का एक रूप यह भी देखने को मिलेगा. 3 सालों से वह उस के संपर्क में थी. इस दौरान उस ने उस का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था.

इस डील से मिलने थे 3 करोड़ रुपए

वक्त की नजाकत को समझते हुए महिमा वह टारगेट पूरा करने को तैयार हो गई, जिसे अर्चना नाग पूरा करने के लिए उसे धमका रही थी. उस का गुस्सा शांत हो चुका था, ‘‘सौरी मैम.’’

अर्चना नाग से माफी मांगते हुए वह बोली, ‘‘मैं भी आपा खो कर गुस्से में न जाने क्याक्या बोल गई. आइंदा कुछ भी बोलने से पहले हजार बार सोच कर ही बोलूंगी. फिलहाल मैं चलती हूं उस से मिलने का वक्त हो गया है. मेरे इंतजार में कहीं ऐसा न हो कि टारगेट हाथ से निकल जाए.’’

‘‘ठीक है, अब तुम जाओ.’’

‘‘बाय मैम,’’ हाल से बाहर निकलती हुई महिमा बोली.

‘‘बाय बाय, अपना ध्यान रखना. कहीं कोई मुश्किल आए तो मुझे फोन कर देना.’’

‘‘ओके मैम.’’

‘‘ओके.’’ हाथ हिलाते हुए अर्चना ने महिमा को विदाई दी और होंठों में बुदबुदाती हुई पति जगबंधु की ओर देखने लगी.

अर्चना को पूरी उम्मीद थी कि महिमा को जो जिम्मेदारी सौंपी गई है, उसे वह पूरा कर के ही लौटेगी. अब तो उसे मालामाल होने से कोई नहीं रोक सकता. एक बार यह टारगेट पूरा हो जाए तो वह नोटों के बिस्तर पर सोएगी.

दरअसल, वह काम ही ऐसा था जिस के पूरे हो जाने पर 3 करोड़ रुपए उसे एक झटके में मिल जाते. 3 करोड़ रुपए की डील हो रही थी, जिसे महिमा ने टारगेट बनाया था और उस की मास्टरमाइंड थी अर्चना नाग.

जिसे टारगेट बनाया गया था वह कोई मामूली इंसान नहीं था. वह भुवनेश्वर के फिल्म प्रमोटर अक्षय पारिजा थे, जो ओडिशा का जानामाना नाम था. महिमा के जरिए अर्चना 3 करोड़ की डील कर रही थी. दरअसल, उन की कुछ आपत्तिजनक तसवीरें अर्चना के हाथ लग गई थीं. उन्हीं तसवीरों के जरिए उस ने रुपयों की मांग की थी.

3 करोड़ रुपए कोई मामूली रकम नहीं होती. अर्चना की इस डिमांड से वह परेशान थे और कोई बीच का रास्ता निकालने की अर्चना से सिफारिश कर रहे थे. लेकिन अर्चना थी कि अड़ी हुई थी. उस ने अक्षय पारिजा को धमकाया था कि अगर वह रुपए जल्द से जल्द उसे नहीं दिए तो उन तसवीरों को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाएगा.

जिस बात का डर था आखिरकार वही हुआ. 29 सितंबर, 2022 को सोशल मीडिया फेसबुक पर अक्षय पारिजा की आपत्तिजनक तसवीरें वायरल हो गईं, जिन्हें देख कर उन्हें बड़ा दुख पहुंचा था. वायरल तसवीरों ने उन के सम्मान को काफी क्षति पहुंचाई.

फिल्म प्रमोटर अक्षय पारिजा चुप बैठने वालों में नहीं थे. दमदार छवि और रसूखदार फिल्मकार पारिजा नयापल्ली थाने पहुंचे. उन्होंने एसएचओ विश्वरंजन साहू को अपने साथ हुई घटना की लिखित तहरीर सौंप दी, जिस में उन्होंने ब्लैकमेलिंग के जरिए उन से 3 करोड़ रुपए की मांग का भी उल्लेख किया था. इस के लिए उन्होंने अर्चना नाग और महिमा को नामजद किया था.

जिस अर्चना नाग के खिलाफ पहली बार किसी ने ब्लैकमेलिंग की शिकायत की थी, वह मामूली हैसियत की औरत नहीं थी. उस की पहुंच सत्ता के गलियारों में बहुत ऊंचाई तक थी. कानून के बड़ेबड़े दिग्गज उस की चौखट चूमते थे. शाम होते ही नौकरशाहों और बड़ेबड़े उद्योगपतियों की उस के यहां कतारें लगी रहती थीं.

ऐसे में एसएचओ विश्वरंजन साहू उस पर हाथ डालने से कतरा रहे थे. फिर उन्होंने डीसीपी प्रतीक सिंह से बात की तो उन्होंने मामले की गंभीरता को समझते हुए कानूनी काररवाई करने की इजाजत दे दी.

फिर क्या था, अधिकारी की ओर से हरी झंडी मिलते ही एसएचओ ने आईपीसी की धारा 384, 385, 387, 506, 120बी और आईटी ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. यह 30 सितंबर, 2022 की बात है.

प्यार और इंतकाम के लिए मौत की अनोखी साजिश – भाग 1

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले की दादरी तहसील दादरी में एक गांव है बढ़पुरा. यहीं पर रहता है रविंद्र भाटी का परिवार. ब्रह्म सिंह भाटी के 3 बेटों में रविंद्र भाटी मंझले थे. उन के दोनों भाई भी इसी गांव में अपने परिवार के साथ आसपास ही रहते हैं.

रविंद्र के परिवार में पत्नी राकेश भाटी के अलावा 3 बच्चे थे, 2 बेटे व एक बेटी. सब से बड़ी बेटी है पायल भाटी (26), उस से छोटे 2 बेटे हैं, अरुण और अजय. पायल ने बीए तक की पढ़ाई की थी. बड़े बेटे अरुण (24) की शादी दादरी की रहने वाली स्वाति से हो चुकी है. छोटा बेटा अजय भाटी (22) अभी अविवाहित है.

रविंद्र भाटी खेतीबाड़ी कर के परिवार की गुजरबसर करते थे. दोनों बेटे भी खेती के काम में उन का हाथ बंटाते थे. बेटी अभी शादी नहीं करना चाहती थी, इसलिए कई अच्छे रिश्ते आने के बावजूद भी वह बेटी के हाथ पीले नहीं कर सके.

इस की एक वजह यह भी थी कि 2 साल पहले उन्होंने बड़े बेटे अरुण की शादी की थी. शादी के कुछ समय बाद से ही उस का अपनी पत्नी स्वाति से विवाद रहने लगा. उस के बाद स्वाति पति का घर छोड़ कर मायके चली गई.

बात इतनी बढ़ गई कि थानेचौकी में शिकायतों के बाद पत्नी से दहेज की मांग व उस के उत्पीड़न के आरोप में आए दिन रविंद्र भाटी, उन की पत्नी व बेटे, बेटियों को थाने के चक्कर लगाने पड़ गए. इसी परेशानी से आजिज हो कर जून, 2022 में एक दिन रविंद्र भाटी व उन की पत्नी राकेश भाटी ने जहर खा कर अपनी जान दे दी.

हंसतेखेलते परिवार में अचानक मातम छा गया. बड़ी बहन होने के कारण पायल के ऊपर ही दोनों भाइयों की देखभाल और उन के खानपान की जिम्मेदारी आ गई.

कुछ वक्त गुजरा तो दादा ब्रह्म सिंह और चाचाताऊ को जवान होती पायल की चिंता सताने लगी. सब ने सोचा कि कोई अच्छा लड़का देख कर उस की शादी कर देंगे तो बाद में भाइयों की जिदंगी किसी तरह पटरी पर आ जाएगी. इसीलिए पायल के लिए बिरादरी में अच्छे लड़के देखे जाने लगे.

रविंद्र और उन की पत्नी की मौत के बाद परिवार की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर लौट ही रही थी कि एक और हादसे ने परिवार को तोड़ कर रख दिया.

13 नवंबर, 2022 को सुबह दादरी पुलिस को सूचना मिली कि बढ़पुरा गांव में एक लड़की की लाश उस के घर के अंदर मिली है. पुलिस जब गांव में पहुंची तो पता चला कि लाश रविंद्र भाटी की इकलौती बेटी पायल भाटी की है.

हालांकि लाश का चेहरा इतनी बुरी तरह जल चुका था कि उसे पहचानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था. गरदन भी बुरी तरह जली हुई थी. जबकि हाथ की कलाई पर किसी धारदार हथियार से काटे जाने के बाद ज्यादा खून बहने के कारण उस की मौत हो गई थी. ऐसा लगता था कि किसी हादसे के कारण उस का चेहरा जलने से क्षतविक्षत हुआ था.

चूंकि लाश घर के अंदर ही मिली थी और शव के ऊपर कपड़े भी वही थे, जिन्हें पायल रात को पहन कर सोई थी. इसलिए परिवार को पुलिस से ये बताने में कोई संकोच नहीं हुआ कि मरने वाली पायल थी.

‘‘पायल की मौत कैसे हुई और जब वो खुदकुशी कर रही थी तो परिवार में किसी को पता क्यों नहीं चला?’’ परिवार वालों से जब पुलिस ने ये वाजिब सवाल किया तो इस का उत्तर भी पायल के भाइयों ने बड़े वाजिब तरीके से ही दिया.

उन्होंने बताया कि 12 नवंबर की रात को वे करीब 9 बजे खाना खा कर सोए तो जल्द ही गहरी नींद की आगोश में समा गए. उन्होंने बताया कि ऐसा लगा कि वे महीनों से सोए नहीं हैं.

घर वालों ने कर ली लाश की शिनाख्त

सुबह उठे तो देखा कि पायल अपने कमरे में बिस्तर के पास जमीन पर मृत पड़ी थी. उस का चेहरा बुरी तरह जला हुआ था और हाथ की नस धारदार हथियार से कटी थी, जिस से निकलने वाले खून का सैलाब आसपास फैल चुका था.

बिस्तर पर ही पायल की हैंड राइटिंग में लिखा हुआ एक पत्र पड़ा था, जो उस ने शायद मरने से पहले लिखा था.

पुलिस ने भाइयों से वह पत्र ले कर पढ़ा तो पायल के खुदकुशी करने की वजह भी साफ हो गई. सुसाइड नोट में पायल ने लिखा था, ‘आज पूड़ी बनाते समय मेरा चेहरा कड़ाही का गर्म तेल छलकने के कारण बुरी तरह झुलस गया. मेरा चेहरा इतना विकृत हो गया कि अब समाज में मुझे कोई पसंद नहीं करेगा.

‘मेरे मातापिता ने कर्ज के बोझ के कारण पहले ही अपनी जान दे दी थी. ऐसी हालत में मैं अपने भाइयों पर बोझ नहीं बनना चाहती.  इस वजह से मैं अपने हाथ की नस काट कर अपनी जान दे रही हूं. अपने परिवार के सभी लोगों से मैं इस के लिए माफी चाहती हूं.’

जला हुआ चेहरा, हाथ की कटी हुई नस और परिवार वालों का यह कहना कि जो शव मिला है वो पायल का ही है. इस से शक की गुजांइश नहीं थी.

लिहाजा दादरी पुलिस ने आत्महत्या का मामला दर्ज कर पायल के शव का पोस्टमार्टम कराया और उसे घर वालों को सौंप दिया. घर वालों ने उसी दिन पायल के शव का अंतिम संस्कार कर दिया. 21 नवंबर को तेरहवीं की रस्म भी कर दी गई.

इस दौरान पूरे गांव में एक ही बात की चर्चा होती रही कि ऐसी कौन सी बुरी दशा थी कि 6 महीने के भीतर ही भाटी परिवार में 3 लोगों ने मौत को गले लगा लिया. लेकिन कहते हैं कि वक्त का मरहम बड़े से बड़े जख्म को भर देता है. वक्त फिर तेजी से बीतने लगा.

जिस वक्त दादरी थाना क्षेत्र के बढ़पुरा गांव में ये हादसा हो रहा था, उसी दिन बिसरख थाना क्षेत्र के सूरजपुर से एक युवती हेमा चौधरी अचानक रहस्यमय ढंग से लापता हो गई थी.

दरअसल, 15 नवंबर की सुबह सूरजपुर के सुनारों वाली गली में रहने वाली मुमतेश चौधरी नाम की महिला ने बिसरख थाने में पहुंच कर एसएचओ उपेंद्र कुमार से मुलाकात की और उन्हें शिकायत दी कि उस की छोटी बहन हेमा (28), जो उस के पास रहती थी और गौर सिटी माल के वेन हुसैन मौल में काम करती थी, वह 12 नवंबर से लापता है.

मुमतेश ने बताया कि उस की बहन हेमा ने शाम को उसे फोन कर के बताया था कि वह एक सहेली के घर बर्थडे में जा रही है, रात को घर नहीं आएगी.

लेकिन अगले दिन जब मुमतेश ने हेमा को फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. कई बार प्रयास करने पर भी जब हेमा से संपर्क नहीं हो सका तो मुमतेश ने उस के शोरूम में फोन किया. वहां से पता चला कि वो तो उस रोज काम पर पहुंची ही नहीं.

12 नवंबर की शाम को जाने के बाद उस ने फोन करके भी ये नहीं बताया कि वह अगले दिन काम पर नहीं आएगी. मुमतेश को यह भी नहीं पता था कि हेमा किस सहेली के घर गई है. उस ने हेमा के सभी पहचान वालों को फोन कर के उस की खैरखबर जानने का प्रयास किए. लेकिन कहीं से कोई सुराग नहीं मिला.

थकहार कर मुमतेश ने 15 नवंबर को बिसरख थाने में हेमा की गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इंसाफ की ज्योति : बेकसूर को मिली सजा – भाग 5

रसूखदार लोगों को देख कर पुलिस पीयूष को गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और औपचारिकता पूरी कर के वापस लौट आई.

लगभग आधे घंटे बाद पुलिस फिर पीयूष के घर पहुंची. सीओ राकेश नायक ने ओमप्रकाश श्यामदासानी को अपने विश्वास में ले कर उन से कहा, ‘‘पीयूष, जैसे आप का बेटा है, वैसे ही हमारा भी है. उस से हमें कुछ पूछताछ करनी है. हम उसे जैसे ले जाएंगे वैसे ही घर छोड़ जाएंगे.’’

ओमप्रकाश ने उन की इन बातों पर विश्वास कर लिया. इस के बाद नायक पीयूष को जीप में बिठा कर अपने औफिस ले आए. उन्होंने पीयूष को अपने कमरे में बिठा कर कमरा बंद कर लिया ताकि कोई भी पूछताछ में व्यवधान न खड़ा कर सके.

तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक पहुंची बात

उधर पीयूष पुलिस के साथ सीओ औफिस गया तो चेयरमैन विजय कपूर कई रसूखदार लोगों के साथ वहां पहुंच गए. उन लोगों ने सीओ राकेश नायक के कमरे में जाने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें सख्ती से रोक दिया गया. इस से उन लोगों को शक हुआ कि पीयूष के साथ सख्ती की जाएगी.

फलस्वरूप उसे बचाने के लिए राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गईं. स्थिति यहां तक पहुंच गई कि यह मामला तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक जा पहुंचा. लेकिन पुलिस भी फूंकफूंक कर कदम रख रही थी, उस ने सबूतों के साथ पूरी जानकारी मुख्यमंत्री तक पहुंचा दी, जिस से नेताओं के हौसले पस्त हो गए.

इधर बंद कमरे में पुलिस ने पीयूष से पूछताछ शुरू की तो वह हर बात पर नहीं में गरदन हिलाता और रोने लगता. जब काफी देर तक यही क्रम चला तो पुलिस टीम ने उसे होटल की वीडियो क्लिप दिखाई और घटना वाले दिन की मोबाइल की काल डिटेल्स सामने रख कर उस से संबंधित सवाल पूछे.

इस पर उस की हिम्मत जवाब दे गई और वह टूट गया. उस ने बताया कि उस ने अपनी प्रेमिका मनीषा मखीजा के साथ मिल कर ज्योति की हत्या की योजना बनाई थी. इस के लिए उस ने मनीषा के ड्राइवर अवधेश को 80 हजार की सुपारी दी थी. अवधेश ने ही अपने साथियों के साथ ज्योति की हत्या की थी. हत्या का राज खुला तो पुलिस टीम ने ताबड़तोड़ छापा मार कर पीयूष की प्रेमिका मनीषा मखीजा और उस के ड्राइवर अवधेश के साथसाथ अवधेश के साथी सोनू, रेनू व आशीष को भी गोल चौराहे से गिरफ्तार कर लिया.

पकड़े गए आरोपियों ने षडयंत्र रचने, ज्योति का अपहरण करने और हत्या का जुर्म कुबूलते हुए लूटी गई ज्वैलरी, चाबी तथा खून से सने कपड़े तथा चाकू बरामद करा दिया.

पुलिस ने उस मौल से भी सीसीटीवी फुटेज और रसीद हासिल कर ली, जहां से इन लोगों ने एक कंपनी के 3 चाकू खरीदे थे. इस के बाद आईजी आशुतोष पांडेय ने प्रैसवार्ता बुला कर ज्योति की हत्या का खुलासा कर दिया.

इस के बाद एसएचओ शिवकुमार राठौर ने भादंवि की धारा 364/302/201/120बी के तहत पीयूष श्यामदासानी, अवधेश, सोनू, रेनू, आशीष तथा मनीषा मखीजा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की और उन्हें विधिवत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस ने बड़ी सतर्कता के साथ इस जघन्य हत्याकांड की विवेचना शुरू की. एक मुख्य विवेचक के साथ 6 सहविवेचक की बड़ी टीम लगाई गई. 3 माह तक विवेचना चली.

उस के बाद मुख्य विवेचक राजीव द्विवेदी ने 2,700 पेज की केस डायरी कोर्ट में दाखिल की. चार्जशीट दाखिल करने के बाद 20 जनवरी, 2015 को मुकदमा कोर्ट में दर्ज किया गया. 13 फरवरी, 2015 को मुकदमे में पहली सुनवाई हुई.

8 साल न्यायिक प्रक्रिया चली. 560 तारीखों पर सुनवाई हुई. ज्योति के वकील धर्मेंद्र पाल सिंह तथा शासकीय अधिवक्ता दामोदर मिश्र ने जम कर बहस की. कोर्ट में कुल 45 गवाहों की गवाही हुई. अभियोजन की ओर से 37, बचाव पक्ष की ओर से 5 तथा कोर्ट साक्षी के रूप में 3 गवाह पेश किए गए. पुलिस ने कोर्ट में मजबूत साक्ष्य रखे. मृतका ज्योति के पिता शंकरलाल नागदेव ने जान लगा कर केस की पैरवी की.

मामले की सुनवाई के दौरान पीयूष को हाईकोर्ट से जमानत मिली तो ज्योति के पिता शंकर नागदेव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर जमानत खारिज करने की गुहार लगाई. कोर्ट ने जमानत तो खारिज नहीं की, लेकिन 6 माह में मुकदमे के निस्तारण के निर्देश दिए. लेकिन फैसला नहीं आ सका.

अवधि खत्म होने पर अपर जिला जज ने समय मांगा तो 11 अगस्त, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने 3 माह का समय दिया. उस के बाद इस केस की सुनवाई 23 अगस्त, 2022 से 20 अक्तूबर, 2022 तक नियमित चली. 21 अक्टूबर, 2022 को अपर जिला जज (प्रथम) अजय कुमार त्रिपाठी ने सभी दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई तथा अर्थ दंड लगाया.

कथा संकलन तक मुजरिम पीयूष श्यामदासानी, मनीषा मखीजा, अवधेश चतुर्वेदी, रेनू कनौजिया, सोनू कश्यप तथा आशीष कश्यप कानपुर जेल में बंद थे और आजीवन कैद की सजा भुगत रहे थे. द्य

—कथा लेखक द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर आधारित

मामी का उफनता शबाब – भाग 4

मई 2021 में एक दिन सौरभ का मोबाइल घर पर ही रह गया. जिस के तुरंत बाद ही उस की मम्मी बाला देवी ने उस के मोबाइल की काल रिकौर्डिंग निकाल कर सुनी तो दोनों के बीच सबंधों का खुलासा हो गया.

प्रीति कौर और सौरभ के बीच प्रेम प्रसंग का मामला जल्दी ही घर वालों के सामने आ गया. जब यह सच्चाई बृजमोहन के सामने आई तो उस ने सौरभ के साथ शराब पी कर हाथापाई भी की.

इसी बात को ले कर कई बार बृजमोहन ने अपनी बीवी के साथ भी लड़ाई की थी. लेकिन प्रीति उस की मजबूरी का फायदा उठा कर उस के ऊपर ही राशनपानी ले कर चढ़ जाती थी.

बृजमोहन ने सौरभ के साथ लड़ाईझगड़ा कर उस के घर आने पर तो पाबंदी लगा दी थी. लेकिन प्रीति कौर और सौरभ अभी भी मोबाइल के माध्यम से संपर्क बनाए हुए थे. लेकिन दोनों एकदूसरे से न मिलने के कारण परेशान भी थे.

इसी दौरान एक दिन प्रीति ने सौरभ के सामने बोझिल मन से कहा कि इस तरह से कब तक चलेगा. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रहना चाहती.

बृजमोहन जब भी घर आता है तो उस का मुंह फूला होता है. वह तुम्हारे चक्कर में ठीक से बात भी नहीं करता. जिस के कारण हम दोनों के बीच हमेशा ही टेंशन बनी रहती है. मैं हमेशा ही खुश रहना चाहती हूं. यह खुशी मुझे तुम ही दे सकते हो.

अगर तुम मुझे इतना ही प्यार करते हो तो कुछ ऐसा करो कि जिंदगी की सारी टेंशन हमेशाहमेशा के लिए खत्म हो जाए. बृजमोहन तुम से बुरी तरह से खार खाए बैठा है. वह कभी भी तुम्हारी हत्या कर सकता है. इस से पहले कि वह तुम्हारे साथ कुछ अनहोनी कर पाए, तुम ही उस का इलाज कर डालो.

मामा को मामी के रास्ते से हटाने की हरी झंडी मिलते ही सौरभ का दिल शेर बन बैठा. सौरभ ने सोचा अगर वह किसी तरह से मामा को मौत की नींद सुला दे तो मामी पर उस का ही कब्जा हो जाएगा.

मन में यह विचार आते ही वह अपने मामा को मौत की नींद सुलाने के लिए हर रोज नईनई योजनाएं बनाने लगा. सौरभ ने कई बार बृजमोहन को मौत की नींद सुलाने की योजना बनाई, लेकिन वह किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था.

इस घटना से 10 दिन पहले ही सौरभ और प्रीति ने मिल कर बृजमोहन को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. योजना बनते ही एक दिन सौरभ ने अपने मामा को फोन कर अपनी गलती मानते हुए क्षमा

याचना की. जिस के बाद उस ने भविष्य में कभी भी ऐसी गलती न करने की कसम भी खाई.

बृजमोहन बहुत ही सीधा था. वह सौरभ की चाल को समझ नहीं पाया. वह उस की मीठीमीठी बातों में आ गया. फिर उस ने सौरभ को अपने घर आने के लिए भी कह दिया.

इस पर सौरभ ने कहा, ‘‘मामा, मैं ने आप के साथ जो किया है, उस से मुझे खुद से नफरत हो गई है. इसी कारण मैं आप के घर नहीं आऊंगा. अगर आप ने मुझे माफ कर दिया हो तो आज की पार्टी मेरी तरफ से है. आप मुझे गांव के बाहर आ कर मिलो.’’

सौरभ की बात सुनते ही बृजमोहन ने हामी भर ली. उस से गांव के बाहर मिलने के लिए तैयार भी हो गया.

उसी योजना के तहत ही 20 मई, 2022 शुक्रवार की देर शाम सौरभ ने अपने मामा को शराब पीने के लिए बुलाया. बृजमोहन हर शाम गांव में लगे वाटर कूलर से पानी लाता था.

उस ने सोचा उसे आने में देर हो जाएगी. इसी कारण वह पहले पानी ले कर घर रख देगा, उस के बाद सौरभ के साथ चला जाएगा.

यही सोच कर वह घर से खाली बोतलें ले कर पानी लाने गया था. सौरभ को पता था कि उस के मामा इसी वक्त पानी लाने जाते हैं. वह पहले ही रास्ते में खड़ा हो गया था.

बृजमोहन के आते ही सौरभ उसे बुला कर गांव के बाहर चला गया. वाटर कूलर से लगभग 500 मीटर दूसरी दिशा में ले जा कर सौरभ ने अपने मामा को शराब पिलाई.

जब बृजमोहन शराब के नशे में धुत हो गया तो मौका पाते ही पास में पड़े पत्थर से उस के सिर पर जोरदार प्रहार कर डाले. उस के बाद अपना लोअर निकाल कर उस से उस का गला घोट दिया.

गला दबने के कुछ क्षण में ही बृजमोहन की मौत हो गई. बृजमोहन की हत्या करने के बाद घटना में प्रयुक्त कपड़े नहर के किनारे कूड़े में छिपा दिए. उस के बाद वह अपने घर चला गया.

इस केस का खुलासा होते ही पुलिस ने हत्यारोपी की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल आलाकत्ल पत्थर, खून से सने कपड़े व शराब की खाली बोतल के साथ ही डिस्पोजल गिलास भी बरामद कर लिए थे.

बृजमोहन मर्डर केस के खुलते ही पुलिस ने आरोपी उसकी बीवी प्रीति कौर उस के भांजे सौरभ को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था.

इस मामले का जल्दी खुलासा करने के कारण एसएसपी डा. मंजूनाथ टी.सी. ने केस का खुलासा करने वाली टीम में शामिल काशीपुर कोतवाल मनोज रतूड़ी, एसएसआई प्रदीप मिश्रा, धीरेंद्र परिहार, नवीन बुधानी, रूबी मौर्या, एसओजी प्रभारी रविंद्र सिंह बिष्ट इत्यादि को 5000 रुपए का पुरस्कार दे कर सम्मानित किया.

उन के साथ ही एसएसपी ने मनोहर कहानियां के लिए अच्छी फोटोग्राफी के लिए लेखक के सहयोगी फोटोग्राफर प्रदीप बंटी को भी 1000 रुपए दे कर सम्मानित किया गया. द्य

इंसाफ की ज्योति : बेकसूर को मिली सजा – भाग 4

पीयूष के पिता ओमप्रकाश श्यामदासानी और चाचा मधुसूदन श्यामदासानी भी ज्योति के अपहरण से हतप्रभ थे. दोनों भाई पूरे परिवार के साथ ज्योति की खोज में जुट गए. श्यामदासानी परिवार के पास 12 लग्जरी गाडि़यां थीं, जो सब की सब ज्योति की खोज में कानपुर की सड़कों पर दौड़ने लगीं. इस बीच ओमप्रकाश श्यामदासानी ने ज्योति के मायके वालों को भी इस घटना की खबर दे दी थी.

अपहरण के समय ज्योति के पास मोबाइल फोन था, जो अभी तक औन था. उस के फोन की लोकेशन पता करने के लिए आईजी आशुतोष पांडेय तथा डीआईजी आर.के. चतुर्वेदी ने मैसेज भेजे, फोन की लोकेशन पनकी क्षेत्र में मिली. यह पता लगते ही पांडेय ने पनकी पुलिस को निर्देश दिया कि वह अपना सर्च औपरेशन तेज करे.

रात लगभग 2 बजे थाना पनकी की पुलिस ने आईजी आशुतोष पांडेय को बताया कि वांछित होंडा एकौर्ड पनकी के ई ब्लाक की एक गली में खड़ी है.

सूचना मिलते ही आईजी अपने अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों के साथ वहां पहुंच गए. गाड़ी हालांकि लौक्ड थी, लेकिन उस की चाबी पास ही पड़ी मिल गई. पुलिस ने गाड़ी का दरवाजा खोला तो सब सन्न रह गए. कार की पिछली सीट पर ज्योति की खून से लथपथ लाश पड़ी थी.

उस के शरीर को चाकू से बुरी तरह गोदा गया था. गौर से देखने पर यह बात साफ हो गई कि हत्यारों का इरादा सिर्फ ज्योति के साथ लूटपाट करना नहीं था, बल्कि हत्या करना था.

छानबीन में ज्योति के ब्लैकबेरी मोबाइल का कवर गियर बौक्स के पास पड़ा मिला, जबकि उसका मोबाइल डैशबोर्ड पर रखा हुआ था. कार के अंदर एक कंपनी के घरेलू इस्तेमाल के 3 चाकू भी बरामद हुए.

इन चाकुओं की धार बहुत तेज थी और तीनों पर खून के धब्बे थे. लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि हत्या के लिए इन चाकुओं का इस्तेमाल नहीं किया गया था. जिस चाकू या चाकुओं से ज्योति पर वार किए गए थे, बरामद नहीं हो सके. पुलिस ने फोरैंसिक टीम को मौके पर बुला लिया था. इस टीम ने कार और कार के शीशे से फिंगरप्रिंट लिए, साथ ही जांच के लिए खून का नमूना भी ले कर सुरक्षित रख लिया.

ज्योति की हत्या की खबर पा कर ओमप्रकाश श्यामदासानी और उन की पत्नी पूनम घटनास्थल पर आए और बहू की लाश देख कर फफकफफक कर रोने लगे. इस घटना की जानकारी मिलते ही पूरे श्यामदासानी परिवार में कोहराम मच गया. पत्नी की लाश देख कर पीयूष तो बच्चों की तरह रो रहा था.

पुलिस ने बड़ी मुश्किल से उसे लाश से अलग किया. मौके की प्राथमिक काररवाई निपटातेनिपटाते सुबह हो गई थी. अपना काम खत्म कर के पुलिस ने लाश का पंचनामा भरा और उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस ने अपहरण और हत्या का केस दर्ज कर लिया.

6 डाक्टरों के पैनल ने किया पोस्टमार्टम

उसी दिन 6 डाक्टरों के पैनल ने ज्योति के शव का पोस्टमार्टम किया, इस पैनल में डा. पुनीत महेश, डा. शंकर अवस्थी, डा. राजेश अग्रवाल, डा. अजीत ओझा, डा. दिव्या द्विवेदी तथा डिप्टी सीएमओ डा. आर.पी. तिवारी शामिल थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ज्योति के शरीर पर 17 घाव पाए गए, जिस में गरदन पर 10-12 सेंटीमीटर के 11 घाव थे, इस के अलावा 2 घाव पेट पर तथा 2 शरीर के पिछले हिस्से पर थे. जबकि एक घाव सिर के पीछे था और एक अंगुली पर था.

चूंकि हत्या का यह मामला एक ऐसे करोड़पति व्यवसायी की बहू से संबंधित था, जिस की पैठ सत्तापक्ष के राजनीतिक गलियारे तक थी, इसलिए इसे सुलझाने की जिम्मेदारी आईजी आशुतोष पांडेय ने स्वयं संभाली. इस के लिए उन्होंने एक सशक्त टीम बनाई.

इस टीम में एसएसपी के.एस. इमैनुएल, एसपी (क्राइम) एम.पी. वर्मा, सीओ (स्वरूप नगर) राकेश नायक, सीओ (नजीराबाद) अंकिता सिंह, इंसपेक्टर (स्वरूप नगर) शिवकुमार राठौर, एसएचओ (कोहना) पूनम अवस्थी, एसएचओ (काकादेव) शशिभूषण मिश्र, एसआई रीता सिंह, कपिल दुबे और अनिल दुबे को शामिल किया गया.

आईजी आशुतोष पांडेय ने इस टीम के साथ ज्योति मर्डर केस की जांच शुरू की तो ज्योति का पति पीयूष ही शक के दायरे में आया. इस की एक नहीं, कई वजहें थीं. मसलन, अपहरण के समय पीयूष ने ज्योति को बचाने का प्रयास क्यों नहीं किया.

अपहरण के बाद वह 100 नंबर पर काल कर सकता था जो उस ने नहीं की. उस ने रावतपुर चौराहे पर तैनात पुलिसकर्मियों को अपहरण की सूचना क्यों नहीं दी. वारदात के एक घंटे बाद वह खुद न आ कर घर वालों के साथ थाने क्यों पहुंचा?

पीयूष शक के दायरे में आया तो पुलिस टीम ने कार्निवाल होटल जा कर सीसीटीवी फुटेज खंगाली. फुटेज देख कर लगा जैसे पीयूष वहां शारीरिक रूप से तो मौजूद था, लेकिन उस का दिमाग कहीं और था.

वह काफी विचलित नजर आ रहा था. फुटेज में ज्योति तो खाना खाती नजर आ रही थी, लेकिन पीयूष खाना नहीं खा रहा था. इस के बजाय वह हुक्का गुड़गुड़ाने में लगा हुआ था.

पीयूष के खिलाफ  मिलते गए पुख्ता सबूत

इसी दौरान पीयूष के मोबाइल पर एक एसएमएस आया. फिर उस ने अपने मोबाइल से एक नंबर डायल किया और बात करते हुए होटल की तीसरी मंजिल से उतर कर सड़क पर जा पहुंचा. इस के बाद वह बातचीत करते हुए अपनी कार के आगे चला गया. फिर वह 15 मिनट बाद वापस होटल लौटा.

सीसीटीवी फुटेज में दिखी गतिविधियों से पुलिस टीम का शक पीयूष पर और गहरा गया. पुलिस टीम ने पीयूष के दोनों मोबाइल फोन कब्जे में ले कर उन की काल डिटेल्स और एसएमएस डिटेल्स निकलवाई. इस से काफी चौंकाने वाली जानकारी मिली.

डिटेल्स से पता चला कि पीयूष ने घटना के दिन यानी 27 जुलाई की शाम 6 बजे से रात एक बजे तक एक नंबर पर करीब डेढ़ सौ एसएमएस किए थे, साथ ही उसी नंबर पर उस की कई बार बात भी हुई थी.

पुलिस ने उस नंबर को ट्रेस किया तो पता चला कि वह अंजू युवती का नंबर है. पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाई तो जानकारी मिली कि अंजू से पीयूष के संबंध हैं. वह गुड़गांव की थी और 2 महीने से पीयूष की फैक्ट्री में बतौर कैमिस्ट के पद पर काम कर रही थी. वह बर्रा में रह रही थी. पीयूष ने ही उसे किराए का मकान दिलवाया था.

काल डिटेल्स से ही पुलिस टीम को एक अन्य युवती के बारे में पता चला. उस युवती से भी पीयूष की रोज बात होती थी और पिछले 2 महीने में दोनों ओर से 600 से भी ज्यादा एसएमएस किए गए थे.

पुलिस टीम ने उस युवती के संबंध में छानबीन की तो पता चला कि वह लड़की एक बड़े व्यवसायी हरीश मखीजा की बड़ी बेटी मनीषा मखीजा थी.

अलगअलग युवतियों से पीयूष के नाजायज संबंधों की बात सामने आई तो पुलिस टीम यह सोचने को मजबूर हो गई कि कहीं ज्योति के मर्डर में पीयूष की प्रेमिकाओं का हाथ तो नहीं है.

यह संभव था कि किसी प्रेमिका को अपना हमसफर बनाने के लिए पीयूष ने उसी की मदद से अपनी पत्नी की हत्या न कर दी हो और कानून से बचने के लिए अपहरण की कहानी गढ़ी हो.

चूंकि पीयूष हर तरफ से शक के दायरे में था, इसलिए पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर के उस से सख्ती से पूछताछ करने का फैसला कर लिया.

अब तक ज्योति के पिता शंकर लाल अपनी पत्नी कंचन के साथ जबलपुर (मध्य प्रदेश) से कानपुर आ गए थे. वह अपने दामाद पीयूष के घर न ठहर कर अपने एक रिश्तेदार बलराम के घर रुके. पुलिस टीम उन के बयान लेने पहुंची तो कंचन फफक कर रो पड़ी.

पुलिस के सांत्वना देने के बाद उन्होंने बताया कि उन की बेटी और दामाद के रिश्ते अच्छे नहीं थे. पीयूष 2-2 घंटे तक बाथरूम में बंद हो कर किसी से बात करता था. ज्योति ऐतराज करती तो दोनों में झगड़ा हो जाता था. ज्योति ने यह बात कई बार हम से बताई थी. पर हम ने उसे समझा कर धैर्य रखने को कह दिया था.

29 जुलाई को अपराह्न 3 बजे सीओ (स्वरूप नगर) राकेश नायक और एसएचओ शिवकुमार राठौर पुलिस टीम के साथ पीयूष के पांडवनगर स्थित बंगले पर पहुंचे. उस समय वहां तत्कालीन दरजाप्राप्त राज्यमंत्री सुखराम सिंह, सपा विधायक मुनींद्र शुक्ला, विधायक अजय कपूर, उन के भाई कारपोरेट चेयरमैन विजय कपूर तथा अन्य व्यापारी बैठे थे.

सिर कटी लाश का रहस्य – भाग 3

हनीफ ने किया सानिया का सर धड़ से अलग इस के लिए शुरुआत में पति आसिफ ने उस का गला काटना शुरू किया. लेकिन कुछ मिनटों के बाद ही उस के हाथ थम गए, उस ने हार मान ली. तब आसिफ के पिता हनीफ ने आगे का काम किया और सानिया का सिर धड़ से अलग कर दिया.

उस की पहचान छिपाने के लिए कातिल हैवानियत की हदों से आगे निकल गए. उन्होंने उस के सिर के लंबे बालों को काटने के लिए इलैक्ट्रिक ट्रिमर का इस्तेमाल किया और सिर से बालों का पूरी तरह से सफाया कर दिया.

इतना ही नहीं, हत्यारों ने सोचा कि अगर फिर भी सिर पुलिस को मिल गया तो कहीं वे पकड़े न जाएं, इसलिए मृतका के ऊपरी होंठ पर जो तिल था उसे चाकू से हटा दिया. ऐसी गिरी हुई हरकत ससुराल वालों ने सानिया की बच्ची को जबरन गोद लेने के लिए की.

अब हत्यारे पूरी तरह निश्चिंत थे कि यदि सिर पुलिस को मिल भी जाएगा तो वे 7 जन्मों तक इस की पहचान नहीं कर पाएंगे. आसिफ ने सिर को एक पौलीथिन की थैली में पैक कर दिया.

इस के बाद वह सिर को कपड़े में छिपा कर अपने बड़े भाई यासीन के साथ बाइक पर बैठ कर साथ ले गया और सिर को मुंबई अहमदाबाद हाईवे पर खानीवाडे क्रीक में फेंक कर घर लौट आए.

लाश ठिकाने लगा कर मनाई बकरीद

अब उन्हें सानिया के धड़ को निपटाना था. इस के लिए उस के धड़ को चादर में लपेट कर एक बड़े काले रंग के ट्रौली बैग में भर दिया. आसिफ ने मुंब्रा में ही रहने वाले कैब चलाने वाले अपने बहनोई यूसुफ को फोन किया कि वह अपनी गाड़ी ले कर घर आ जाए ताकि शव को आसानी से ठिकाने लगाया जा सके. इस पर यूसुफ कार ले कर कुछ ही देर में घर आ गया.

इस के बाद आसिफ ने कार में ट्रौली बैग रखा और यूसुफ के साथ जा कर उसे मुंबई के वसई के भुईगांव समुद्र तट पर फेंक आए.

आरोपियों ने खून से सने फर्श की सफाई करने के साथ ही अपनेअपने कपड़े बदले. सभी ने शाम को बकरीद का त्यौहार मनाया. क्योंकि विवाद की मुख्य वजह ही अब समाप्त हो गई थी.

यूसुफ भी खुश था कि अब उसे सानिया की बेटी अमायरा मिल जाएगी. इसलिए उस ने लाश को ठिकाने लगाने में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. सानिया की हत्या करने के 3 महीने बाद आसिफ और उस के परिवार ने वह घर बेच दिया और परिवार मुंब्रा इलाके में रहने लगा.

वसई थाने के सीनियर इंसपेक्टर कल्याणराव ए. कर्पे ने बताया कि यह एक सुनियोजित हत्या थी, क्योंकि जिस दिन सानिया की हत्या की गई, उस दिन ससुराल वालों ने मृतका की बेटी अमायरा को बकरीद का त्यौहार मनाने के बहाने यूसुफ की पत्नी के साथ उस के घर भेज दिया था.

जावेद शेख ने बताया, ‘‘अमायरा के जन्म के बाद सानिया के ससुराल वाले इस बात पर जोर देते थे कि सानिया अपनी ननद को अपनी बेटी अमायरा को गोद दे दे. वे हमेशा उस पर दबाव डालते थे और उस की बच्ची को छीनने की कोशिश करते थे.

‘‘कोविड के दौरान जब आसिफ दुबई में फंसा था तो ससुर हनीफ ने नालासोपारा में इस बात को ले कर सानिया के साथ मारपीट भी की थी. इस पर सानिया ने अचोल थाने में भी शिकायत की थी. लेकिन रिश्तेदारों की दखलअंदाजी के बाद कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था.’’

पुलिस को पति आसिफ ने सानिया के घर से जाते समय का जो लैटर दिया वह फरजी निकला. पुलिस ने पति आसिफ, उस के बड़े भाई यासीन, पिता हनीफ, बहनोई यूसुफ  को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

सानिया की हत्या के 6 दिन बाद ही उस की सिर कटी लाश पुलिस को मिल गई थी. लेकिन साल भर का वक्त सिर कटी लाश के रहस्य से परदा उठने में लग गया. पुलिस नहीं जानती थी कि सिर कटी लाश के कातिल घर में ही बैठे हुए हैं.

परदाफाश भी एक शख्स (चाचा) के प्रयासों से संभव हो सका, जो अपनी बेटी को तलाशते हुए एक साल बाद मुंबई पहुंचे थे.

वहीं वसई पुलिस की भी समझदारी भी काम आई, जो उस ने लाश के कपड़ों, बैग आदि के फोटो कराने के साथ ही डीएनए सैंपल सुरक्षित रखा.

इसी डीएनए सैंपल ने अनसुलझे हत्या का राज खोल दिया. सानिया के मायके वालों को 13 महीने के लंबे इंतजार के बाद सानिया के बारे में खबर तो जरूर मिली, लेकिन बेटी की मौत की.

यह बात साफ है कि जुर्म करने वाला अपराधी किसी भी क्राइम को अंजाम देने से पहले खुद के बच निकलने का हर रास्ता अपनी समझ से पूरी तरह तैयार रखता है. होशियारी बरतने के बाद भी जानेअनजाने या हड़बड़ी में ही सही, वह ऐसा कोई न कोई सबूत छोड़ जाता है जिस पर पहुंच कर जांच करने वाली एजेंसी की नजर पड़ ही जाती है.

लिहाजा शातिर से शातिर अपराधी भी अपने द्वारा भूल से भी छोड़े गए अपने मूक गवाह की चाल में फंस कर कानून के शिकंजे में अपनी गरदन खुद ही फंसा बैठता है.

सानिया के जीवन में दुख और गम के सिवाए कुछ नहीं था. बचपन में ही मांबाप के गुजरने के बाद वह अकेली रह गई थी. तब उस के चाचाचाची ने उसे अपनी बेटी की तरह पालपोस कर बड़ा किया और पढ़ाया.

कहते हैं कि जब किसी की किस्मत खराब होती है तो उसे कहीं भी सुकून नहीं मिलता. साल 2017 में जब सानिया 20 साल की थी, चाचा ने उस की शादी आसिफ के साथ कर दी थी.

बेटी पैदा होने के बाद ससुरालीजन उस की जान के प्यासे बन गए. मां की ममता सानिया की जिंदगी पर भारी पड़ गई. चाचा को सपने में भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि बच्ची के लिए ससुरालीजन सानिया की जान ले लेंगे.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रूपा के रूप का जादू – भाग 3

अलगअलग जाति के होने की बात पर रूपा ने कहा कि वह अपने मांबाप को मना लेगी. वह घर की लाडली है. इसलिए घर वाले उस के फैसले का जरा भी विरोध नहीं करेंगे. हर्षित ने भी रूपा को भरोसा दिया कि वह भी अपने मांबाप को शादी के लिए तैयार करने की कोशिश करेगा. ब्राह्मण परिवार होने के कारण इस में थोड़ा समय लगेगा.

प्रेम की आग दोनों तरफ लगी हुई थी. रूपा हर्षित को प्यार जरूर करती थी, लेकिन उसे अपनी देह छूने तक नहीं दे रही थी, जबकि हर्षित रूपा की देह की गंध को अपने कब्जे में करने को आतुर हुआ जा रहा था. उस ने ही रूपा से कहा कि क्यों न वे दोनों मंदिर में जा कर शादी कर लें. उस के बाद उन के मातापिता को मनाना आसान हो जाएगा.

सच तो यह था कि रूपा भी ऐसा ही चाहती थी, ताकि वह हर्षित की ब्याहता बन जाए और उस की संपत्ति पर अपना हक जता सके. उस ने हर्षित के प्रस्ताव को तुरंत मान लिया. आने वाले कुछ दिनों में ही दोनों ने एक मंदिर में जा कर गुपचुप तरीके से शादी रचा ली. यहां तक कि इस खुशी में उन्होंने अपने दोस्तों को एक होटल में पार्टी भी दे दी.

इस की भनक हर्षित के मांबाप को लगी तो उन्होंने हर्षित को डांट लगाई और रूपा से तुरंत संबंध तोड़ने का दबाव बनाया. तब तक रूपा भी पत्नी का अधिकार हासिल कर चुकी थी. उस ने हर्षित के मांबाप के विरोध का सामना किया और रात को हर्षित के साथ एक ही कमरे में रहने लगी.

थोड़े दिनों में ही हर्षित को रूपा की लालची नजर का अंदाज हो गया. इस का उसे सबूत तब मिल गया, जब रूपा ने उस से कहा कि वह कोई दूसरा बड़ा मकान बना ले, जिस में उस के मांबाप नहीं रहेंगे और उन का विरोध भी नहीं झेलना पड़ेगा.

हर्षित को यह बात कुछ अच्छी नहीं लगी, लेकिन वह चुप बना रहा. उसे इतना तो अंदाजा लग ही गया कि रूपा की नजर उस की पुश्तैनी संपत्ति पर है.

उसी संपत्ति की बदौलत उस ने अलग मकान खरीद कर हर्षित के साथ अपना अलग घर बसाने की बात कही थी. दिखाने के लिए रूपा हर्षित के मांबाप का मन जीतने की कोशिश में भी लगी रहती थी.

हर्षित के मातापिता बेहद सरल स्वभाव के थे. वे हर्षित की भावनाओं को समझते थे. फिर भी उन्हें गैरजातीय लड़की के साथ दांपत्य जीवन गुजारना पसंद नहीं था.

हर्षित और रूपा ने उन के विवाह को मानने से साफतौर पर मना कर दिया. साथ ही हर्षित को सख्त हिदायत दी कि वह रूपा के साथ अपना संबंध तोड़ ले. उन्होंने रूपा को डांटते हुए उसे कहीं और जा कर रहने का फरमान सुना दिया. लेकिन रूपा पर इन बातों का जरा भी असर नहीं हुआ.

घर वालों ने नहीं मानी यह शादी

एक रोज शाम के समय रूपा जब हर्षित के साथ सैरसपाटा कर अपने कमरे में आई, तब तब माधुरी शुक्ला नीचे आंगन से ही दोनों को डांट लगाई.

रूपा भागती हुई माधुरी शुक्ला के पास गई और पांव छूने का प्रयास किया. उन्होंने उसे झटक दिया और बोली, ‘‘चल भाग यहां से. हर्षित के पिता इस अंतरजातीय विवाह के लिए तैयार नहीं हैं. हमें अपने समाज में रहना है. तुम हमारी जातिबिरादरी की नहीं हो. जितनी जल्दी हो सके, तुम यहां से अपना सारा सामान ले कर भागो. उस के बाद यहां दिखाई मत देना.’’

माधुरी शुक्ला की बात सुन कर रूपा को जैसे सांप सूंघ गया. उस के बाद उस ने हर्षित से दूरी बनानी शुरू कर दी. रूपा ने साफ लफ्जों में हर्षित से कह दिया कि वह उस से संबंध तोड़ लेगी. वह भी हौस्टल में नहीं आया करे.

हर्षित को रूपा की बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन कई दिन तक उस के बगैर तन्हाई में रातें काटनी पड़ीं. उसे रूपा से मिलने नहीं दिया गया और मां के कहने पर उस ने दूरी बनानी शुरू कर दी.

किंतु एक दिन हर्षित ने हौस्टल में जा कर रूपा से कहा कि उस के द्वारा दी गई अंगूठी और स्कूटी वापस कर दे या फिर वह पहले की तरह उस के साथ हमबिस्तर होती रहे. इस के लिए रूपा राजी नहीं हुई और झिड़कते हुए हौस्टल से बेइज्जती कर भगा दिया.

हालांकि बाद में रूपा ने उस की अंगूठी और स्कूटी वापस करने के लिए कुछ समय इंतजार करने को कहा. हर्षित रूपा के कहे अनुसार इंतजार करता रहा. किंतु रूपा उस की अंगूठी और स्कूटी वापस देने नहीं आई. एक दिन हर्षित ने मोबाइल फोन पर उस से दबाब बनाते हुए कमरे पर आ कर मिलने के लिए कहा.

हर्षित मातापिता की बातों को ले कर भी परेशान हो गया था. काफी दबाव डालने के बाद रूपा 12 सितंबर को हर्षित सें मिलने उस के घर पर आई थी. उस दिन हर्षित ने रूपा के साथ जबरन सैक्स संबंध बनाए और इस पर नाराज होने पर उस की गला घोंट कर उसे मौत की नींद सुला दिया.

इस घटना से पहले भी कई दिनों से रूपा और हर्षित के बीच झगड़े होते रहते थे. इस बारे में रूपा ने कृष्णानगर पुलिस में शिकायत भी दर्ज कर रखी थी और अपनी जान को खतरा भी बताया था.

तब पुलिस ने शांति भंग करने के आरोप में हर्षित का चालान कर दिया था. तभी से हर्षित रूपा से और भी बौखलाया हुआ था. मोबाइल फोन पर हर्षित उसे अपने साथ जबरन रहने को कहता था. इनकार करने पर उसे जान से मारने की धमकी भी दे रहा था.

हर्षित ने पुलिस को बताया था कि शादी के नाम पर रूपा को उस ने 25 हजार रुपए नकद दिए थे. उस ने रूपा को स्कूटी खरीद कर दी थी. 18 सितंबर, 2022 जेल जाने से पहले माधुरी शुक्ला और प्रेमचंद्र शुक्ला ने बताया था कि 12 सितंबर को हर्षित  ने अपनी मां को बताया था कि उस ने रूपा की हत्या कर दी है.

उस के बाद माधुरी ने अपने पति के साथ मिल कर रूपा के शव को कंबल में लपेट कर तख्त के नीचे छिपा दिया था. हर्षित देर रात घर वापस लौटा था. तीनों ने रूपा के शव को ठिकाने लगाने की योजना बनाई, किंतु उन्हें मौका नहीं मिल पाया. उसी दौरान बरसात में शव फूलने लगा और उस से बदबू भी आने लगी. शव को घर में पड़े हुए 2 दिन निकल गए थे.

हर्षित ने 14 सितंबर की रात में तेज बारिश के दौरान कूड़ा गाड़ी लाया. शव को बोरे में ठूंस दिया. फिर उसे रामदास खेड़ा के बाग में बने उमाशंकर यादव के खेत के निकट एक ट्यूबवैल के गड्ढे में फेंक आया.

कथा लिखे जाने तक हर्षित शुक्ला, उस की मां माधुरी शुक्ला और पिता प्रेमचंद्र शुक्ला जेल में बंद थे.    द्य

नफरत की आग में खाक हुए रिश्ते – भाग 3

खतरा भांप कर विनीता ने करन गोस्वामी को आगाह किया कि वह कोमल को साथ ले कर कहीं दूर चला जाए. यहां उन की जान को खतरा हो सकता है. इस पर करन गोस्वामी सीना तान कर बोला कि वह खतरों का खिलाड़ी है. उसे खतरों से खेलना और खतरों से निपटना अच्छी तरह आता है. वह किसी से डरने वाला नहीं है.

फिर अपनी बहन व उस के पति करन गोस्वामी को सबक सिखाने का फैसला करन ने कर लिया. करन खटीक ने अपने दोस्त गौरव व धर्मवीर को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया.

ये दोनों पुरोहिताना मोहल्ले के ही रहने वाले थे और अपराधी प्रवृत्ति के थे. करन खटीक ने इन्हीं दोनों की मदद से तमंचा तथा कारतूसों का भी इंतजाम कर लिया.

कोमल की शादी को अभी 5 दिन ही हुए थे. वह ससुराल में खुश थी. उसे विश्वास था कि शादी के बाद सब कुछ सामान्य हो गया है. भाई और चाचा लोगों का गुस्सा भी ठंडा पड़ गया है. लेकिन यह उस की भूल थी. उसे क्या पता था कि नफरत की आग में रिश्ते खाक होने वाले हैं.

योेजना के तहत 26 अप्रैल, 2022 की शाम 4 बजे करन खटीक अपने चाचा दिलीप, सनी व रविंद्र के साथ छत के रास्ते अपनी बहन की ससुराल वाले घर में दाखिल हुआ.

कोमल उस समय कमरे में थी और पलंग पर लेटी थी. भाई व चाचा लोगों को देख कर वह समझ गई कि उन के इरादे नेक नहीं हैं. वह चीखती उस के पहले ही करन खटीक ने बहन कोमल के सीने में गोली दाग दी. कोमल पलंग पर ही लुढ़क गई.

गोली चलने की आवाज सुन कर करन गोस्वामी कमरे में आया तो करन खटीक ने उस पर भी गोली चला दी. वह भी फर्श पर गिर पड़ा और छटपटाने लगा. इसी समय करन गोस्वामी का भाई रौकी व मां पिंकी कमरे में आ गईं. करन खटीक व उस के चाचा सनी, रविंद्र व दिलीप उन दोनों पर टूट पड़े. उन्होंने तमंचे की बट से दोनों के सिर पर प्रहार किया फिर फायरिंग करते हुए भाग गए.

भागते हमलावरों को पड़ोसियों ने देखा, लेकिन उन्हें पकड़ने की हिम्मत कोई नहीं जुटा सका. तड़ातड़ गोलियों की आवाज सुन कर पड़ोसी इकट्ठा हो गए थे. उन्हीं में से किसी ने थाना कोतवाली पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही कोतवाल अनिल कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल आ गए. घटनास्थल देख कर कोतवाल भी सन्न रह गए. पलंग पर 20-22 वर्षीया नवविवाहिता मृत पड़ी थी. उस के सीने में गोली दागी गई थी. फर्श पर एक युवक मूर्छित पड़ा था. उस की कनपटी में गोली लगी थी. एक अन्य युवक व अधेड़ महिला के सिर से खून बह रहा था. लेकिन वे दोनों होश में थे.

थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने महिला से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम पिंकी बताया. उस ने कहा कि पलंग पर मृत पड़ी युवती उस की बहू कोमल है. फर्श पर मूर्छित पड़ा उस का बड़ा बेटा करन गोस्वामी है तथा घायल छोटा बेटा रौकी है.

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने घायलों को तत्काल मैनपुरी के जिला अस्पताल में भरती करा दिया. चूंकि करन गोस्वामी की हालत नाजुक थी, अत: डाक्टरों ने उसे सैफई के मैडिकल कालेज रेफर कर दिया.

थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने इस वीभत्स कांड की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी अशोक कुमार राय तथा सीओ (सिटी) अमर बहादुर सिंह घटनास्थल पर आ गए.

उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया फिर मृतका कोमल के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

पूछताछ के बाद एसपी अशोक कुमार राय ने कोतवाल अनिल कुमार सिंह को आदेश दिया कि वह मुकदमा दर्ज कर आरोपियों की तलाश शुरू करें. इसी के साथ उन्होंने सीओ (सिटी) अमर बहादुर सिंह की निगरानी में एक पुलिस टीम गठित कर दी. सहयोग के लिये सर्विलांस टीम को भी लगा दिया.

एसपी के आदेश पर थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने मृतका के देवर रौकी की तरफ से करन खटीक, दिलीप, सनी, रविंद्र, गौरव व धर्मवीर के खिलाफ भादंवि की धारा 302/307/452/147/308/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस टीम ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी.

28 अप्रैल, 2022 की सुबह 4 बजे पुलिस टीम को पता चला कि मुख्य आरोपी करन खटीक अपने सहयोगियों के साथ सिंधिया तिराहे पर मौजूद है. शायद वह फरार होने के उद्देश्य से किसी गाड़ी के आने का इंतजार कर रहा है.

यह पता चलते ही पुलिस टीम घेराबंदी के लिए वहां पहुंच गई. पुलिस टीम को देखते ही लगभग आधा दरजन लोग भागने लगे. लेकिन टीम ने घेराबंदी कर 4 लोगों को पकड़ लिया, जबकि 2 पुलिस को चकमा दे कर भाग गए.

पकड़े गए युवकोें को थाना कोतवाली लाया गया. इन में एक आरोपी करन खटीक था, जबकि दूसरा उस का चाचा सनी खटीक था.

2 अन्य आरोपी गौरव व धर्मवीर थे, जो करन खटीक के दोस्त थे. फरार आरोपी दिलीप व रविंद्र थे. उन की जामातलाशी ली गई तो करन व सनी खटीक के पास से .315 बोर के 2 तमंचे बरामद हुए. जबकि गौरव व धर्मवीर के पास से 2-2 जिंदा कारतूस मिले.

चूंकि आरोपियों के पास से तमंचा व कारतूस बरामद हुए थे, अत: पुलिस ने उन के खिलाफ 3/25/27 आर्म्स ऐक्ट के तहत एक अन्य मुकदमा भी दर्ज कर लिया. पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ की गई तो उन्होंने सहज ही जुर्म कुबूल कर लिया.

पुलिस ने दर्ज मुकदमे के तहत करन खटीक, सनी, गौरव व धर्मवीर को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

कोतवाल अनिल कुमार सिंह ने कोमल के हत्यारोपियों को पकड़ने और जुर्म कुबूल करने की जानकारी एसपी अशोक कुमार राय को दी, तो उन्होंने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता की और मीडिया के समक्ष हत्या का खुलासा किया.

29 अप्रैल, 2022 को पुलिस ने आरोपी करन खटीक, सनी खटीक, गौरव व धर्मवीर को मैनपुरी कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. दिलीप तथा रविंद्र खटीक फरार थे.

कथा संकलन तक पुलिस उन की तलाश में जुटी थी. मृतका कोमल का पति करन गोस्वामी सैफई अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित