इंसाफ की ज्योति : बेकसूर को मिली सजा – भाग 3

पार्टियों में वह शैंपेन के नशे में हो जाती थी, जिस के बाद पीयूष ही उसे घर ले कर आता था. अब तक ड्राइवर अवधेश ने मनीषा की कार चलानी छोड़ दी थी. लेकिन वह पीयूष और मनीषा के संपर्क में बराबर रहता था. उसे जब भी पैसों की जरूरत होती थी, वह दोनों को ब्लैकमेल कर के पैसा ले लेता था.

दूसरी ओर ज्योति को पति पर शक होने लगा था. क्योंकि पीयूष उस से नजर बचा कर फोन पर बातें करता था. कभीकभी तो वह बाथरूम में घुस कर घंटों बातें करता रहता था. बात कर के वह फोन से नंबर डिलीट कर देता था. इसी तरह वह रात में मैसेज करता था और उन्हें डिलीट कर देता था.

ज्योति मोबाइल फोन उठाती तो वह उस से फोन छीन लेता और झगड़े पर उतारू हो जाता. ज्योति ने इस रहस्य का गुप्तरूप से पता लगाया तो उसे पता चला कि उस का पति रसिया स्वभाव का है. उस के पड़ोस में रहने वाली मनीषा से नाजायज संबंध हैं.

वह उसी से घंटों बातें करता है. ज्योति ने पति की इस हरकत की जानकारी मातापिता को दी तो मां कंचन ने उसे समझाया कि सब ठीक हो जाएगा. ज्योति ने अपनी सास पूनम से पति के नाजायज रिश्तों की बात बताई, लेकिन उन्होंने यह बात नहीं मानी.

एक रोज पीयूष मनीषा से मिला तो उस ने मनीषा को बताया कि ज्योति को उन दोनों के संबंधों के बारे में पता चल गया है और वह विरोध करने लगी है. इस पर मनीषा बोली, ‘‘पीयूष, एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. अगर तुम मुझ से प्यार करते हो और शादी करना चाहते हो तो ज्योति को रास्ते से हटाना ही होगा.’’

‘‘ज्योति को रास्ते से कैसे हटाया जा सकता है?’’ पीयूष ने पूछा.

‘‘ड्राइवर अवधेश की मार्फत. वह भरोसेमंद है, पैसों के लालच में आसानी से राजी हो जाएगा. वैसे भी उसे हम दोनों के संबंधों के बारे में सब कुछ पता है.’’ मनीषा बोली.

पीयूष ने अपनी फैक्ट्री की कैमिस्ट को भी फांस लिया

बात पीयूष की समझ में आ गई. उसी दिन से दोनों ने मिल कर ज्योति की हत्या का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया. इसी के बाद योजना को अंजाम देने के लिए पीयूष ने मोबाइल की 5 सिम खरीदीं. 2 सिम अपनी आईडी से और 3 सिम फरजी आईडी से.

फरजी आईडी वाली 2 सिम उस ने मनीषा को दे दीं. इन्हीं फरजी सिमों पर दोनों के बीच हर रोज बातचीत और मैसेजबाजी होती थी. बाद में वे दोनों नंबर और मैसेज डिलीट कर देते थे.

इसी बीच पीयूष एक अन्य लड़की अंजू के संपर्क में आया. अंजू गुड़गांव की रहने वाली थी और पीयूष की फैक्ट्री में बतौर कैमिस्ट तैनात थी. अंजू से भी पीयूष के संबंध हो गए.

2 जुलाई, 2014 को पीयूष ने अवधेश को देवकी टाकीज के पास बुलाया और उस से बात कर के 80 हजार रुपए में ज्योति की हत्या की सुपारी दे दी. उस ने अवधेश को 30 हजार रुपए की पेशगी दी और शेष पैसे काम हो जाने के बाद देने को कहा. हत्या की सुपारी देने की बात उस ने मनीषा को भी बता दी.

इस के बाद अवधेश, मनीषा और पीयूष के संपर्क में रहने लगा. अवधेश ने हत्या की सुपारी लेने के बाद अपनी योजना में सोनू, रेनू और आशीष को भी शामिल कर लिया. ये तीनों अवधेश के पड़ोस में रहते थे. सोनू परचून की दुकान चलाता था. जबकि रेनू कनौजिया ड्राइवर था. तीनों मुकर न जाएं, इसलिए अवधेश ने उन्हें 10-10 हजार रुपए एडवांस दे दिए.

सब कुछ तय हो जाने के बाद पीयूष, मनीषा और अवधेश ने मिल कर ज्योति के अपहरण और हत्या की योजना बनाई. योजना को अंजाम देने से पहले इन लोगों ने रिहर्सल भी किया. ज्योति की हत्या की पूरी स्क्रिप्ट तैयार करने के बाद अंजाम देने की तारीख तय हुई 27 जुलाई, 2014.

पत्नी को ठिकाने लगाने की बना ली पूरी योजना

योजना के तहत 27 जुलाई, 2014 को पीयूष ने ज्योति के साथ अच्छा बरताव कर के उसे घुमाने और होटल में खाना खाने के लिए राजी कर लिया. उसी रात साढ़े 9 बजे वह ज्योति के साथ रैना मार्केट स्थित होटल कार्निवाल पहुंच गया.

होटल में खाना खाते वक्त ज्योति तो सामान्य थी, लेकिन पीयूष बेचैन था. वह कभी किसी को मैसेज करता तो कभी किसी को. उस के हावभावों की सारी तसवीरें होटल में लगे सीसीटीवी कैमरों में कैद हो रही थीं. उस के मोबाइल पर कभी मनीषा का मैसेज आ रहा था तो कभी उस की दूसरी प्रेमिका का.

रात साढ़े 10 बजे पीयूष के मोबाइल पर एक काल आई. यह अवधेश की काल थी. वह बात करते हुए होटल के तीसरे माले से उतर कर नीचे आया. वहां अवधेश उस का इंतजार कर रहा था. उस ने छिप कर अवधेश से बात की और उसे 500 रुपए दिए.

इस के बाद वह वापस होटल में चला गया. अवधेश अपने साथियों के साथ रैना मार्केट गया, वहां सब ने बीयर पी तथा मैगी खाई, फिर तीनों रावतपुर जाने वाली रोड पर चल पड़े. योजना के तहत पीयूष रात सवा 11 बजे ज्योति को कार में बिठा कर रावतपुर जाने वाली रोड पर चल दिया. कुछ दूर आगे जा कर उसे अवधेश अपने साथियों सहित खड़ा दिखा.

पीयूष ने अवधेश के पास पहुंच कर गाड़ी रोक दी और खुद कार से नीचे उतर गया. उस वक्त ज्योति आगे की सीट पर बैठी हुई थी. उस के उतरते ही अवधेश ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और रेनू तथा सोनू पीछे वाली सीट पर. ज्योति खतरा भांप कर चिल्लाई, ‘‘पीयूष, ये तुम अच्छा नहीं कर रहे हो.’’

ज्योति की चीख सुन कर सोनू व रेनू ने उस के बाल पकड़ कर उसे पीछे की सीट पर खींच लिया, तब तक अवधेश ने कार आगे बढ़ा दी थी. ज्योति के चीखने की आवाज बाहर न जा पाए, इस के लिए सोनू ने ज्योति का सिर नीचे किया और रेनू ने उस पर चाकू से वार करने शुरू कर दिए. तेजधार वाले चाकू के ताबड़तोड़ वारों से कार के अंदर खून ही खून फैल गया और कुछ ही देर में ज्योति की चीखें बंद हो गईं.

योजना के अनुसार, अवधेश कार को पनकी के ई ब्लौक में ले गया और कार एक गली में खड़ी कर दी. इस बीच सोनू और रेनू ने ज्योति के गहने उतार लिए थे.

उन दोनों ने वे गहने वहीं लोहे के एंगलों के बीच छिपा दिए. अवधेश ने गाड़ी बंद कर के चाबी वहीं फेंक दी और फरार हो गया. जबकि रेनू व सोनू पैदलपैदल भाटिया होटल तक आए. वहां पर आशीष मोटरसाइकिल लिए खड़ा था. सोनू व रेनू उसी मोटरसाइकिल से घर लौट आए. उधर अवधेश ने मैसेज भेज कर काम हो जाने की जानकारी पीयूष को दे दी.

मैसेज मिलने के बाद पीयूष मनीषा से मिला. उस ने यह कह कर अपना सिम मनीषा को दे दिया कि वह उस का और अपना सिम तोड़ दे, ताकि किसी को कुछ पता न चल सके. इस के बाद वह अपने घर गया और शर्ट बदल कर घर वालों के साथ रात 12 बजे स्वरूप नगर थाने पहुंचा. तब तत्कालीन एसएचओ शिवकुमार राठौर थाने में ही मौजूद थे. पीयूष ने उन्हें बताया कि कुछ लोगों ने उस की पत्नी ज्योति का कार सहित अपहरण कर लिया है. इसलिए तुरंत रिपोर्ट दर्ज कर के उस की खोजबीन में मदद करें.

अपहरण का नाम सुनते ही एसएचओ शिवकुमार राठौर चौंके. पीयूष एक अमीर और सम्मानित परिवार का युवक था. उस के पिता ओमप्रकाश श्यामदासानी शहर के जानेमाने उद्योगपति थे. इस मामले में तत्काल एक्शन लेना जरूरी था, इसलिए शिवकुमार राठौर ने पीयूष से पूरी बात विस्तार से बताने को कहा.

इस पर पीयूष ने बताया कि रात करीब 9 बजे वह अपनी पत्नी ज्योति के साथ अपनी होंडा एकौर्ड कार से घर से निकला और सैरसपाटा करते हुए रैना मार्केट, नवाबगंज के होटल कार्निवाल पहुंचा. वहां दोनों ने साथ खाना खाया. वहां से वापसी के लिए दोनों सवा 11 बजे निकले.

जब वे कंपनी बाग चौराहे से रावतपुर की ओर जा रहे थे, तभी 4 मोटरसाइकिलों पर सवार 8 लड़कों ने उन की कार को ओवरटेक किया. इस बीच उन से हलकीफुलकी बहस हुई तो उन लोगों ने अपनी मोटरसाइकिलें कार के सामने रोक दीं और 3 लड़के उन की ओर लपके. उन में से एक ने कार का दरवाजा खोला और 2 ने उसे कार से नीचे खींच कर 3-4 तमाचे जड़ दिए. इस के बाद वह कार सहित ज्योति का अपहरण कर फरार हो गए.

पीयूष की पूरी बात सुन कर एसएचओ शिवकुमार राठौर ने इस सनसनीखेज अपहरण की जानकारी सीनियर पुलिस अधिकारियों को दे दी. चूंकि घटना एक बड़े परिवार की बहू से जुड़ी थी, इसलिए तत्कालीन आईजी आशुतोष पांडेय, डीआईजी आर.के. चतुर्वेदी, एसएसपी के.एस. इमैनुएल, एसपी (क्राइम) एम.पी. वर्मा तथा सीओ (स्वरूप नगर) राकेश नायक थाना स्वरूप नगर आ गए.

आईजी आशुतोष पांडेय के निर्देश पर कानपुर के सभी थानों को इस घटना की सूचना दे कर पूरे शहर में चैकिंग शुरू करा दी गई. पुलिस अधिकारी भी अलगअलग टीमों के साथ कार सहित ज्योति की खोज में जुट गए. आईजी आशुतोष पांडेय ने पीयूष को साथ ले कर खुद कार्नीवाल होटल से घटनास्थल तक का मुआयना किया. उन्होंने पीयूष से खुद भी पूछताछ की.

मामी का उफनता शबाब – भाग 3

कपड़े धोने के कारण उस वक्त उस ने अपनी चुन्नी भी उतार कर पास में ही रख दी थी. प्रीति कौर का चेहरामोहरा तो मनमोहक था ही साथ ही उस का रंग भी गोराचिट्टा था.

प्रीति के वक्ष बड़े होने के कारण बारबार बाहर निकलने को आतुर थे. भले ही सौरभ और प्रीति के बीच मामीभांजे का रिश्ता था, लेकिन उस दिन सौरभ बारबार अपनी मामी के उभारों को ही निहार रहा था.

उस दिन ही सौरभ समझ गया था कि उस की मामी की क्या परेशानी है. इस से पहले वह अपनी मामी के पास कभीकभार ही आता जाता था. लेकिन उस दिन के बाद उस का आनाजाना बढ़ गया था.

सौरभ अभी पढ़ाई कर रहा था. स्कूल से आने के बाद वह जल्दी से अपना काम निपटाता और शाम होते ही वह अपने मामा के घर गोपीपुरा चला जाता था. जिस वक्त वह शाम को मामा के घर पहुंचता तो उस के मामा बृजमोहन उसे शराब पीते मिलते थे. बृजमोहन कभीकभी सौरभ से ही गांव में लगे पंचायती वाटर कूलर से ही ठंडा पानी मंगाता था.

शराब पीने के कुछ समय बाद ही बृजमोहन नशे में झूमने लगता और फिर कुछ खापी कर जल्दी ही सो जाता था. उस के बाद सौरभ मामी के साथ बतियाने लगता था.

कुछ दिनों में सौरभ ने अपनी मामी के दिल में अपने लिए खास जगह बना ली थी. प्रीति कौर भी सौरभ को चाहने लगी थी. इस से पहले सौरभ शराब को हाथ तक नहीं लगाता था. लेकिन मामी की चाहत में उस ने अपने मामा के साथ शराब भी पीनी शुरू कर दी थी.

फिर वह अकसर ही अपने मामा के साथ बैठ कर शराब पीने लगा था. सौरभ को शराब का शौक लगने पर बृजमोहन हमेशा ही उसे बुला लेता था. यही सौरभ भी चाहता था.

29 मार्च, 2021 को होली का दिन था. जिस वक्त सौरभ अपने मामा के घर पहुंचा, उस की मामी घर पर अकेली ही थी. अपनी मामी को घर पर अकेले देख सौरभ का दिल बागबाग हो गया. फिर भी उस ने मामी से पूछा, ‘‘मामी, मामा कहां गए?’’

‘‘गए होंगे अपने दोस्तों के साथ घूमने. अब यह बताओ कि तुम्हें केवल मामा से ही काम है. क्या मामी के काम भी आओगे?’’

‘‘क्या बात कही आप ने मामी. पहले तो मामी ही है मामा तो बाद में हैं. मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताओ.’’ चापलूसी करता हुआ सौरभ बोला.

‘‘अरे बुद्धू, तुम्हें इतना भी नहीं पता कि आज होली मिलन का त्यौहार है. तुम मुझ से इतनी दूर खड़े हो. होली नहीं मिलोगे मामी से?’’

‘‘क्यों नहीं मामी, आप ने यह क्या बात कही.’’ इतना कहते ही प्रीति ने सामने खड़े सौरभ की कोली भर ली. मामी की आगोश में जाते ही सौरभ के नसों में खून का संचार बढ़ गया.

उस ने जिंदगी में पहली बार किसी औरत के तन से तन मिलाया था. मामी के बड़ेबड़े वक्षों का संपर्क पा कर उस की जवानी बेकाबू हो उठी. सौरभ पल भर के लिए दुनियादारी भूल गया.

सौरभ अपनी मामी को रंग लगाने के लिए रंग भी साथ ही लाया था. सौरभ अभी अपनी मामी की कोली भर के ही खड़ा हुआ था. तभी बाहर किसी के आने की आहट हुई. बाहर आहट सुन कर दोनों अलगअलग हो गए . तब तक बृजमोहन घर के अंदर आ पहुंचा था.

अचानक घर में मामा को आया देख कर सौरभ सकपका गया. उस की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे. उस ने फुरती दिखाई और अपनी जेब से वह रंग निकाल कर सामने खड़ी मामी के चेहरे पर लगा दिया.

बृजमोहन उस वक्त भी नशे में था. उस के घर में उस के पीछे कौन सा खेल चल रहा था, वह समझ नहीं पाया. बृजमोहन प्रीति पर बहुत ही विश्वास करता था. चेहरे पर रंग लगवाने के बाद प्रीति ने अपने बेटे को गोद में उठाया और बाहर घर के आंगन में आ कर बैठ गई.

बृजमोहन नशे में इतना धुत था कि उस ने घर में मामीभांजे को अकेला पा कर भी किसी तरह का शक नहीं किया. उस के बाद प्रीति कौर अपने घर के कामों में लग गई. बृजमोहन सौरभ को देख कर घर के अंदर रखी बोतल निकाल लाया था. फिर मामाभांजे एक साथ बैठे तो पीनेपिलाने का सिलसिला शुरू हुआ.

बृजमोहन पहले से ही नशे में धुत था.  सौरभ के साथ उस ने 1-2 पेग और पिए तो होशोहवास खो बैठा. देखते ही देखते वह चारपाई पर पसर गया. प्रीति बृजमोहन को अच्छी तरह से जानती थी.

बृजमोहन एक बार खापी कर सो जाता था तो सुबह ही उठ पाता था. उस वक्त तक प्रीति के दोनों ही बच्चे सो चुके थे. घर में अपने जवान भांजे को देखते ही प्रीति कौर के तनबदन में आग लग गई.

सौरभ काफी दिनों से ऐसे ही मौके की तलाश में था. मामा को बेहोशी की हालत में सोया देख उस का पौरुष जाग उठा. मामी को सामने देखते ही वह भूखे भेडि़ए की तरह टूट पड़ा. जवानी के आगोश में पल भर में मामी भांजे के रिश्ते तारतार हो गए.

सौरभ जिंदगी में पहली बार किसी औरत के संपर्क में आया था. प्रीति भी सौरभ जैसे हट्टेकट्टे भांजे से शारीरिक संबंध बना कर काफी खुश हुई थी. एक बार रिश्तों की मर्यादा खत्म हुई तो दोनों के बीच लुकाछिपी का खेल शुरू हो गया.

मामी के प्यार में सौरभ हर रोज ही मामा के साथ बैठ कर शराब पीनेपिलाने लगा था. फिर मौका पाते ही शराब के साथ शबाब का मजा लेने लगा था.

सौरभ पढ़ाई के साथसाथ मजदूरी भी करता था. वह जो भी कमाता उस पैसे को प्रीति मामी पर खर्च कर डालता था.

सौरभ ने ही मेहनतमजदूरी कर पैसे इकट्ठा कर एक स्मार्टफोन खरीद कर प्रीति को दे दिया था. ताकि वह उस से किसी भी समय बात कर सके. कई बार तो सौरभ अपने मामा की गैरमौजूदगी में सारीसारी रात उसी के घर पर पड़ा रहता था.

प्रीति कौर अपने बच्चों को जल्दी खाना खिलापिला कर सुला देती और फिर सौरभ के साथ मौजमस्ती में डूब जाती थी. प्रीति कौर और सौरभ के बारबार मिलने से उस के परिवार वालों को भी उन के बीच पक रही खिचड़ी हजम नहीं हो पा रही थी.

पहली बीवी का खेल – भाग 3

पानी सिर से ऊंचा होते देख यासीन पत्नी शहर बानो की बातें सुन कर बुरी तरह बौखला उठा था. उस ने कहा, ‘‘तुम लोग सोफिया के बारे में बुराभला कहने वाले कौन होते हो.’’

शहर बानो और उस की बहन रेशमा को तो उस दिन जैसे भूत सवार था. यासीन ने रेशमा को डांटते हुए खामोश रहने की हिदायत दी.

विवाद बढ़ता गया और यासीन ने गुस्से में सोफिया के सामने शहर बानो पर मिट्टी का तेल उड़ेल दिया और शहर बानो को जला कर मारने की धमकी दे डाली.

उस दिन कोई अनहोनी न हो, इसलिए मातापिता के द्वारा मामला रफादफा कर दिया गया और यासीन अगले दिन शहर बानो की बिना रुकसती कराए सोफिया को साथ ले कर बहराइच से लखनऊ वापस लौट आया और शहर बानो को धमकी दे डाली कि अगर तुम्हारी गर्ज हो तो तुम लखनऊ खुद चली आना.

लेकिन सोफिया के कारण शहर बानो लखनऊ वापस लौट कर नहीं आई. यासीन उसे ले कर परेशान रहने लगा था क्योंकि सोफिया के कारण शहर बानो से अब उस की तलाक की नौबत आ गई थी. कहावत है कि नारी नदिया की धार होती है और पुरुष एक किनारा होता है. दोनों विमुख भी नहीं रह सकते हैं.

शहर बानो भी यासीन से लगाव होने के कारण उसे दिल से निकाल नहीं पा रही थी. शहर बानो के मातापिता ने अपनी बेटी की जिंदगी में फिर से बहार लाने के लिए यासीन को रुखसत कराने के लिए खबर भेजी.

यासीन ने भी उत्तर में कहलवा दिया कि यदि वह अपनी बेटी को भेजने के लिए तैयार हैं तो वह उसे खुद पहुंचा दें. वह उसे अपने पास रखने को तैयार है.

शहर बानो के वालिद मुल्ला खान ने बेटी को समझाया कि तुम्हें अपने शौहर के यहां खुद चले जाना चाहिए. उस दिन 18 जनवरी, 2022 को एक लंबे अरसे के बाद लखनऊ स्थित कांशीराम कालोनी वह खुद आ गई थी.

शहर बानो जब कांशीराम कालोनी वाले आवास पर पहुंची तो यासीन बरामदे में बैठाबैठा दूसरी पत्नी शिवा उर्फ सोफिया से हंसहंस कर बातें कर रहा था.

शहर बानो को अचानक आया देख कर वह भड़क उठा और बोला कि आने से पहले तुम्हें फोन करना चाहिए था. शिवा उर्फ सोफिया ने भी यासीन का साथ दिया, ‘‘यासीन ठीक तो कह रहे हैं. कम से कम आने से पहले तुम्हें फोन तो करना चाहिए था. जब से यासीन ने मुझ से निकाह किया है तुम बातबात में रूठ कर चली जाती हो.’’

शहर बानो ने कहा कि तुम लोगों से मेरा यहां रहना देखा नहीं जाता है तो मैं बहराइच न जाऊं तो फिर क्या करूं.

लंबे अरसे बाद लखनऊ आने पर शहर बानो को यासीन खान से यह उम्मीद नहीं थी. वह उलाहना सुन कर मन मसोस कर रह गई थी.

पुलिस के पूछने पर यासीन खान ने बताया कि सोफिया ने अपने भाई शरद विश्वकर्मा के इलाज के लिए 30-40 हजार रुपया अलमारी में बचा कर रखे थे, गुरुवार को सोफिया को बिना बताए वह पैसे उस ने निकाल लिए.

इस पर पहले तो उस का शक शहर बानो पर गया था. जिस पर दोनों में काफी कहासुनी हुई थी. लेकिन सोफिया को उस ने बताया कि वह रुपए शहर ने नहीं बल्कि उस ने निकाले थे. इस पर उस का उस से भी काफी झगड़ा हुआ.

जब रात को सोफिया अपने अंदर के कमरे में जा कर सो गई, तभी शहर बानो ने यासीन खान को अपने बाहुपाश में लेते हुए सोफिया की हत्या करने और हमेशा के लिए रास्ते का कांटा हटाने के लिए उकसाया, ताकि वह बाकी जिंदगी चैन से जी सके.

यासीन उस की बात सुन कर राजी हो गया. शहर बानो जानती थी कि जब से शिवा उर्फ सोफिया खान उस के पति यासीन की जिंदगी में आई है, यासीन की महीने भर की कमाई अपने भाई शरद को भेज दिया करती है, जिस से यासीन मन मसोस कर रह जाता है.

20 जनवरी, 2022 को शिवा उर्फ सोफिया जब सो गई तो शहर बानो ने सोफिया की हत्या करने के लिए यासीन को अस्पताल में शरद विश्वकर्मा के पास न भेज कर घर पर ही रोक लिया.

सुबह होने पर जब सोफिया ने अस्पताल में भरती अपने भाई शरद के लिए खाना बना कर और उस के औपरेशन के लिए रुपए ले कर यासीन को साथ चलने को कहा तो यासीन ने रुपए न देने की बात कही.

जिस के कारण उस की सोफिया से कहासुनी हो गई. उसी दौरान यासीन के इशारे पर शहर बानो ने सोफिया के हाथ पकड़ लिए और यासीन ने गला दबा कर शिवा उर्फ सोफिया की हत्या कर दी. हत्या के बाद शव को पलंग पर गद्दे में लपेट कर छिपा दिया.

जब शिवा विश्वकर्मा उर्फ सोफिया खाना और रुपए ले कर अस्पताल नहीं पहुंची, तब शरद ने उसे कई बार फोन किया. जब उस की बहन से बात नहीं हो पाई तो शरद ने संदेह होने पर हंसखेड़ा पुलिस चौकीप्रभारी को फोन कर सूचना देते हुए बहन के घर पहुंचने को कहा था.

गिरफ्तारी के बाद थानाप्रभारी दधिबल तिवारी, एडिशनल सीपी राजेश श्रीवास्तव, डीसीपी गोपालकृष्ण चौधरी व एसीपी आशुतोष कुमार के समक्ष शहर बानो व यासीन खान को पेश किया गया. आरोपियों ने इन सभी अधिकारियों को भी हत्या की कहानी बताई.

इस के बाद यासीन खान और शहर बानो को 23 जनवरी, 2022 को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक विवेचना जारी थी.           द्

सिर कटी लाश का रहस्य – भाग 2

आसिफ मुंबई के अंधेरी इलाके में एक लौजिस्टिक कंपनी में काम करता था. 2 बैडरूम वाले फ्लैट में आसिफ के मातापिता और उस का भाई अपने परिवार के साथ रहते थे.

जावेद शेख ने बताया कि पिछले एक साल से वह सानिया से बात करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन दामाद आसिफ हर बार रौंग नंबर बता कर काट देता था. पुलिस ने जावेद से कहा कि वह अपने फोन में ससुराल वालों के अन्य नंबरों को तलाश कर उन पर फोन करें.

एक साल से नहीं हो पा रही थी बात

इत्तफाक से जावेद को फोन बुक में आसिफ की मां का मोबाइल नंबर मिल गया. उन्होंने उन्हें फोन लगाया. उस समय जावेद सानिया की सास से बात करने में कामयाब हो गए. बातचीत के दौरान आसिफ की मां ने धोखे में आ कर उन्हें ये बता दिया कि अब वे लोग नालासोपारा की प्रौपर्टी बेच कर मुंब्रा शिफ्ट हो गए हैं और मुंब्रा में मैरिज होम के पास रहते हैं.

इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने जावेद से मुंब्रा जा कर ससुराल वालों से मिलने की बात कही. इस पर जावेद परिचितों के साथ मुंब्रा स्थित आसिफ के घर जा पहुंचे. वहां उन्होंने सानिया और आसिफ की 4 साल की बेटी अमायरा को तो घर में देखा, लेकिन सानिया उन्हें कहीं नजर नहीं आई.

जब जावेद ने बेटी सानिया के बारे में उस के पति आसिफ से पूछा तो उस ने टका सा जवाब दे दिया. कहा, ‘‘शादी के बाद भी सानिया किसी से प्यार करती थी. उस के किसी से रिश्ते भी थे. एक साल पहले वह अपनी बेटी को छोड़ कर अपने प्रेमी के साथ भाग गई.

‘‘सानिया फरार होने से पहले एक पत्र लिख कर छोड़ गई थी. पत्र में लिखा था कि मैं अपनी मरजी से अपने प्रेमी के साथ जा रही हूं. मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना.’’

जावेद ने आसिफ से पूछा, ‘‘तब आप ने पुलिस में शिकायत तो की होगी?’’

इस पर आसिफ ने कहा कि बदनामी के डर से हम ने पुलिस में कोई शिकायत नहीं की और न आप लोगों को इस बारे में बताए. यहां तक कि बदनामी के डर से हमें अपना फ्लैट तक बेचने को मजबूर होना पड़ा.

उस की यह बात जावेद और अन्य के गले नहीं उतरी. उन्होंने पुलिस को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. पुलिस ने इस संबंध में सानिया की गुमशुदगी दर्ज कर नए सिरे से मामले की जांच शुरू कर दी.

फोटो से की शिनाख्त

अचोले पुलिस ने साल भर पहले वसई भुईगांव बीच से मिली सिर कटी युवती की लाश की फोटो सानिया के पति आसिफ और अन्य ससुराल वालों को दिखाई तो उन्होंने लाश को पहचानने से ही इंकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने वह फोटो बेलगाम से आए सानिया के घर वालों को दिखाए तो उन्होंने देखते ही पहचान लिया कि ये उन की बेटी की लाश है. घर वालों ने लाश के साथ मिले कपड़ों वगैरह की भी पहचान कर ली.

इस तरह पुलिस अब साल भर पहले सूटकेस में बंद मिली युवती की सिर कटी लाश की पहचान कर चुकी थी. लेकिन पुलिस को अब यह पता करना बाकी था कि आखिर सानिया की हत्या किस ने और क्यों की? क्या उस के प्रेमी ने सानिया के साथ यह हैवानियत की थी?

अब प्रश्न यह था कि क्या सानिया के प्रेमी को ससुराल वाले जानते थे? लिहाजा पुलिस ने मायके वालों की शिकायत पर सब से पहले सानिया के ससुराल वालों को ही पूछताछ के लिए बुला लिया.

ससुराल वालों ने पुलिस के सामने भी सानिया के अपने प्रेमी के साथ घर से भाग जाने की वही कहानी दोहराते हुए उस के कत्ल पर हैरानी जताई. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे सानिया के प्रेमी के बारे में कुछ नहीं जानते. जबकि मायके वालों ने किसी से सानिया के अफेयर की बात को सिरे से खारिज कर दिया.

ससुराल वालों के हावभाव देख कर व उन की बातों से सानिया के मायके वालों के अलावा पुलिस को भी लगने लगा था कि हो ना हो सानिया के कत्ल में ससुराल वालों का ही हाथ है. लेकिन पुलिस के पास कोई सबूत न होने के चलते उस ने किसी को भी गिरफ्तार करने से पहले पूरे मामले को समझ लेना ठीक समझा.

इस के लिए पुलिस ने मृतका के पति आसिफ शेख और उस की बेटी अमायरा के डीएनए सैंपल एकत्र कर लिए. जबकि सानिया की लाश का डीएनए सैंपल पहले ही लिया जा चुका था. पुलिस ने तीनों सैंपल को मैचिंग के लिए कलीना फोरैंसिक लैब भेजा. इसी लैब में सानिया का डीएनए सैंपल पिछले एक साल से सुरक्षित रखा था.

पति आसिफ, बेटी अमायरा तथा सानिया के डीएनए सैंपल का मिलान करने पर लैब ने अपनी जो रिपोर्ट दी, उस के अनुसार सिर कटी लाश किसी और की नहीं, आसिफ की पत्नी सानिया शेख की ही थी.

डीएनए से हुई लाश की शिनाख्त

इस पर बिना देर किए पुलिस ने 14 सितंबर, 2022 को सानिया की हत्या के आरोप में उस के 30 वर्षीय पति आसिफ शेख को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ की गई. आसिफ वही रटीरटाई कहानी फिर से दोहराने लगा. उस ने वह लैटर भी पुलिस को दिखाया, जो सानिया जाते समय छोड़ गई थी.

मृतका के चाचा ने बताया कि जो लैटर की लिखावट है वह सानिया की नहीं है. शक यकीन में तब्दील हो गया. तब पुलिस ने अपने तरीके से आसिफ से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के सामने आसिफ टूट गया और उस ने सच उगल दिया. आसिफ ने अपने घर वालों के साथ सानिया की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

पता चला कि आसिफ की सानिया के साथ दूसरी शादी थी. आसिफ ने अफेयर के शक के चलते पहली बीवी को तलाक दे दिया था. पुलिस ने आसिफ के साथ ही उस के बड़े भाई यासीन, पिता हनीफ तथा बहनोई यूसुफ को भी गिरफ्तार कर लिया. सवाल यह था कि एक परिवार ने अपने ही परिवार की बहू की हत्या आखिर क्यों की?

उस सिर कटी लाश का खौफनाक राज खुला तो सब के होश उड़ गए. आरोपियों ने सानिया के कत्ल की वजह के बारे में जो बताया, उसे सुन कर मृतका के घर वालों के साथ ही पुलिस भी हैरान रह गई.

सानिया शेख अपने पति और ससुराल वालों के निशाने पर उस वक्त आ गई, जब वे लोग सानिया की बेटी अमायरा को सानिया की निस्संतान ननद को सौंपना चाहते थे. सानिया अपने कलेजे के टुकड़े को किसी भी हाल में गोद देने को तैयार नहीं थी. उस ने साफ इंकार कर दिया. बेटी के लिए मां के दिल में उमड़ी ममता थी, जो उस की मौत का सबब बनी.

21 जुलाई, 2021 को बकरीद का दिन था. सुनियोजित तरीके से आरोपियों ने सानिया के हाथपैर बांध दिए. फिर उसे पानी से भरे एक बड़े टब में डुबो दिया. कुछ देर बाद ही पानी में डूबने से सानिया की मौत हो गई. इस के बाद उन के सामने लाश को ठिकाने लगाने की समस्या थी.

नफरत की आग में खाक हुए रिश्ते – भाग 2

एक शाम विनीता बाजार से घर वापस आई तो घर पर कोमल नहीं थी. विनीता को समझते देर नहीं लगी कि कोमल करन से मिलने गई होगी. परेशान विनीता घर में चहलकदमी कर ही रही थी कि उस का बेटा करन खटीक आ गया. उसे जब पता चला कि बहन घर पर नहीं है तो वह उसे ढूंढने निकल गया.

ढूंढतेढूंढते वह प्राइमरी स्कूल के पीछे पहुंचा. वहां उस ने कोमल को करन गोस्वामी से बातें करते देखा. बहन को दोस्त के साथ देख उस का खून खौल उठा. उस ने लपक कर करन गोस्वामी का गिरेबान पकड़ लिया और गालियां देते हुए बोला, ‘‘मादर… तेरी मां की… तेरी ये हिम्मत कि मेरी इज्जत पर हाथ डाले.’’

करन गोस्वामी बोला, ‘‘दोस्त, मैं कोमल से प्यार करता हूं और उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘दोस्त है, इसलिए आखिरी चेतावनी दे कर छोड़ रहा हूं. आइंदा फिर कभी इस से मिला तो मैं तुझे जिंदा ही जमीन में गाड़ दूंगा.’’ करन खटीक ने धमकाया.

इस के बाद वह बहन कोमल को घसीटता हुआ घर ले आया और मां से बोला, ‘‘संभालोे इसे, वरना ये जान से जाएगी.’’

भाई के इस व्यवहार से कोमल का मन बागी हो उठा. उस ने तय कर लिया कि वह करन के साथ ही ब्याह करेगी. उस की वजह से घर में तनाव रहने लगा. करन खटीक को लगा कि कहीं कोमल परिवार की बदनामी का कारण न बन जाए, इसलिए वह उस की शादी करने की सोचने लगा.

कोमल को जब पता चला कि उस के लिए रिश्ता तलाशा जा रहा है तो वह बागी हो गई.

अब कोमल की जिंदगी एकदम नीरस हो गई. कोमल की शादी के बारे में करन गोस्वामी को पता चला तो वह भी परेशान हो उठा. उस ने कोमल के भाई को फोन कर के कहा कि वह दोस्ती को रिश्ते में बदलना चाहता है.

तब करन खटीक ने उसे डांटते हुए कहा कि ऐसा हरगिज नहीं हो सकता. इस बारे में वह उसे आइंदा फोन न करे, वरना अच्छा नहीं होगा.

करन गोस्वामी ने अपने घर वालों को कोमल से शादी करने के लिए राजी कर लिया था, लेकिन कोमल के घर वाले नहीं मान रहे थे. कोमल का भाई व चाचा शादी का सख्त विरोध कर रहे थे. करन ने भी तय कर लिया था कि कुछ भी हो वह कोमल को नहीं भूल सकता.

इधर कोमल ने भी अपने घर वालों से साफ कह दिया था कि वह शादी करेगी तो करन से वरना कुंवारी ही रहेगी.

कोमल की इन बातों से विनीता सहम जाती. उसे डर सताने लगा कि कोमल ने यदि जान दे दी तो वह कहीं की नहीं रहेगी. अत: उस ने बेटी का विवाह उस के प्रेमी करन गोस्वामी के साथ करने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने अपने बेटे करन खटीक को भी राजी कर लिया.

इस के बाद विनीता ने कोमल को विश्वास में ले कर कहा, ‘‘हम तेरी शादी अपनी बिरादरी में करना चाहते थे, पर तू इस के लिए तैयार नहीं है. तू करन गोस्वामी से शादी करना चाहती है न, हम तेरी खुशी के लिए तैयार हैं. हम ने तेरे भाई को भी राजी कर लिया है.’’

‘‘सच मां,’’ कह कर कोमल खुशी से उछल पड़ी. उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे. उस ने घर वालों के राजी होने की जानकारी अपने प्रेमी करन को दी तो वह भी खुशी से झूम उठा. इस के बाद वह शादी की तैयारी में जुट गया.

इधर विनीता बेटी का विवाह गैरजाति के लड़के से करने को राजी तो हो गई थी, लेकिन उस के लिए यह आसान न था. कारण उस के देवर दिलीप, सनी व रविंद्र खटीक इस शादी का घोर विरोध कर रहे थे. उन्हें यह बरदाश्त ही न था कि उन की भतीजी कोमल की शादी गैरजाति के युवक से हो.

विनीता को डर था कि परिवार के लोग बेटी की शादी में बाधा पहुंचा सकते हैं, अत: उस ने कोमल की शादी उस की ननिहाल से करने का फैसला किया.

विनीता का मायका उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के अलीगंज गांव में था. उस ने अपने भाइयों को सारी बात बताई और मदद मांगी. तब उस के भाई परिस्थिति को समझ कर कोमल की शादी अपने घर से करने को राजी हो गए. शादी की तारीख 20 अप्रैल, 2022 तय हुई.

एक सप्ताह पहले ही विनीता अपनी बेटी कोमल व बेटे करन खटीक के साथ अलीगंज पहुंच गई और शादी की तैयारी में जुट गई. 20 अप्रैल को करन गोस्वामी भी अपने भाई रौकी व मां पिंकी के साथ अलीगंज पहुंच गया. यहां देर रात कोमल की शादी करन गोस्वामी के साथ हो गई.

21 अप्रैल, 2022 को कोमल, करन गोस्वामी की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. पुरोहिताना मोहल्ले में यह खबर जंगल में लगी आग की तरह फैल गई कि कोमल ने करन गोस्वामी से शादी कर ली है. इस से खटीक परिवार में गुस्सा फूट पड़ा. परिवार के लोग अपने को अपमानित महसूस करने लगे और वे करन खटीक व उस की मां विनीता को कोसने लगे.

करन खटीक भी अपने को लज्जित महसूस करने लगा था. मोहल्ले के लोग उस पर फब्तियां कसते तो वह तिलमिला उठता था. उस के चाचा सनी, दिलीप व रविंद्र भी उसे धिक्कार रहे थे और उकसा भी रहे थे. करन खटीक का अब घर से निकलना दूभर हो गया था. उस के मन में अब बहन व उस के प्रेमी पति के प्रति नफरत की आग सुलगने लगी थी.

इस नफरत की आग में घी डालने का काम किया करन गोस्वामी व उस के घर वालों ने. शाम होते ही करन कोमल के साथ छत पर पहुंच जाता और वहां बैठ कर कोल्डड्रिंक पीता, खूब हंसहंस कर बातें करता और करन खटीक को देख कर हंसीठिठोली करता. करन का भाई रौकी व मां पिंकी भी उस का साथ देते.

रूपा के रूप का जादू – भाग 2

बोरी में मिली रूपा की लाश

दरअसल, 16 सितंबर, 2022 को अचानक लखनऊ में कृष्णा नगर थाने के एसएचओ आलोक कुमार राय को विजय नगर पुलिस चौकी के इंचार्ज एसआई महेश कुमार ने एक सूचना दी. उन्होंने बताया कि रामदास खेड़ा के बाग में ट्यूबवैल के गहरे गड्ढे में संदिग्ध बोरे को तैरते हुए देखा है. उस से तेज बदबू आ रही है. उस में कोई लाश होने की आशंका है.

सूचना पाते ही एसएचओ आलोक कुमार राय अपने सहयोगी एसआई सुधा सिंह, अभय कुमार वाजपेई, सिपाही योगेंद्र सिंह यादव और प्रदीप कुमार को साथ ले कर घटनास्थल पर जा पहुंचे. उन्होंने विजय नगर पुलिस चौकी के इंचार्ज महेश कुमार को भी बुलवा लिया.

महेश कुमार ने आलोक कुमार राय को बताया कि इस की सूचना उन्हें विजय नगर निवासी विजय शंकर यादव ने दी थी. उन्होंने ही बताया था कि उन के बाग के ट्यूबवैल के गड्ढे के पानी में कुछ किसानों ने एक बोरे को तैरते हुए देखा था. उस में से तेज दुर्गंध आ रही थी.

घटनास्थल पर पहुंची पुलिस ने राहगीरों की मदद से उस बोरे को बाहर निकलवाया. बोरा खोला तो उस में एक युवती की लाश निकली, जो सड़ चुकी थी. स्थानीय लोगों और कुछ राहगीरों ने ही बताया कि वह गंगाखेड़ा के रामसिंह के गर्ल्स हौस्टल में रहती थी और पास के ही कालोनी से आतीजाती थी.

जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि युवती का शव काफी फूल चुका था. शव देखने से ही लग रहा था कि 2-3 दिनों का पुराना है.

पुलिस ने गर्ल्स हौस्टल का पता लगा लिया, जहां वह पढ़ाई के सिलसिले में रहती थी. वहीं मालूम हुआ कि वह पढ़ाई के साथसाथ नौकरी भी करती थी.

स्कूल प्रबंधन ने युवती के शव की शिनाख्त रूपा गुप्ता के रूप में की. स्कूल के हौस्टल में लिखे पते के अनुसार रूपा प्रयागराज की रहने वाली थी और वह लखनऊ के एक गर्ल्स हौस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही थी.

करीब 9 महीने पहले उस ने पंडितखेड़ा के निकट प्रेमचंद शुक्ला के मकान में किराए पर रहना शुरू किया था. हौस्टल के रिकौर्ड से उस के प्रयागराज स्थित घर की पूरी जानकारी मिल गई.

16 सितंबर, 2022 को ही अपराध शाखा के इंसपेक्टर राजदेव प्रजापति के साथ डीसीपी अपर्णा रजत कौशिक, एसीपी अरविंद कुमार वर्मा और एडिशनल सीपी राजेश कुमार श्रीवास्तव ने भी घटनास्थल का मुआयना किया. उस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस वारदात की सूचना कृष्णानगर पुलिस ने प्रयागराज के थाने मेजा को भी दे दी. वहां की पुलिस ने तुरंत गांव विसर्जन में रूपा के घर वालों से संपर्क किया. रूपा की मौत की खबर उस के भाई, पिता राजेंद्र प्रसाद गुप्ता और मां नंदिनी देवी को दे दी.

यह खबर सुनते ही सभी के होश उड़ गए. तब राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने कृष्णानगर पुलिस से संपर्क किया. उस थाने की पुलिस ने उन्हें लखनऊ आ कर शव की पहचान करने के लिए कहा.

नंदिनी देवी ने 17 सितंबर को मोर्चरी जा कर शव की पहचान रूपा के रूप में कर ली. फिर पोस्टमार्टम के बाद शव उन्हें सौंप दिया गया. नंदिनी देवी और उन के बेटे ने रूपा की हत्या की रिपोर्ट थाने में दर्ज करवा दी, जिस में हर्षित और उस के मातापिता को आरोपी बनाया गया.

पुलिस के सामने आया सच

इसी रिपोर्ट के बाद कृष्णानगर पुलिस ने 18 सितंबर को हर्षित के पिता प्रेमचंद्र शुक्ला, पत्नी माधुरी शुक्ला और उन के बेटे हर्षित शुक्ला के साथ कृष्णानगर थाने गए.

एसएचओ ने तीनों आरोपियों को हिरासत में ले लिया. उन से रूपा हत्याकांड के सिलसिले में अलगअलग पूछताछ की गई. तब उन्होंने अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

इसी दौरान रूपा गुप्ता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट के अनुसार रूपा की गला दबा कर हत्या एवं जबरन शारीरिक संबंध बनाए जाने की पुष्टि हुई. डाक्टरी रिपोर्ट और आरोपियों के बयानों के आधार पर एसएचओ आलोक कुमार राय ने भादंवि की धारा 302/ 201 के तहत आरोपियों को उसी रोज गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

आरोपियों से पूछताछ के बाद रूपा हत्याकांड के संबंध में जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज की मूल निवासी रूपा पढ़ाई में अव्वल और परिवार की लाडली थी. सो उसे पिता ने स्कूली शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई के लिए एक साल पहले लखनऊ भेज दिया था.

लखनऊ आ कर वह पढ़ाई के साथसाथ अपने खर्च के लिए छोटीमोटी नौकरी की तलाश में भी लग गई थी. संयोग से उसे लखनऊ के गंगानगर स्थित रामसिंह के गर्ल्स हौस्टल में नौकरी मिल गई थी.

गर्ल्स हौस्टल में ही उस के रहने की भी व्यवस्था थी, लेकिन उस ने पडिंतखेड़ा स्थित विजय नगर कालोनी में प्रेमचंद्र शुक्ला के मकान में एक कमरा किराए पर ले लिया था. वहां रहते हुए प्रेमचंद्र के बेटे हर्षित शुक्ला के संपर्क में आई. उन की लगातार मुलाकातें होने के चलते वे एकदूसरे से प्रेम करने लगे.

दोनों हाथों से लुटाने लगा पैसा

हर्षित रूपा के रूप पर मोहित हो गया था तो रूपा की नजर सुखीसंपन्न हर्षित पर थी. रूपा जो कुछ फरमाइश करती थी, उसे हर्षित तुरंत पूरी करता था. यह कहें कि हर्षित अपने मांबाप का पैसा दोनों हाथों से उस पर लुटाने लगा था.

हर्षित एक मनचला और रसिकमिजाज अविवाहित युवक था. उस की रूपा में बड़ी दिलचस्पी को देखते हुए प्रेमचंद्र शुक्ला ने ऐतराज जताया था और रूपा से कमरा भी खाली करने को कह दिया था. किंतु हर्षित ने अपने मांबाप को समझाबुझा कर उसे किराए पर रखने को राजी कर लिया था.

रूपा काफी सुंदर थी. बनसंवर कर रहती थी. आधुनिक रहनसहन उसे पसंद था. किसी के साथ भी छूटते ही हंसीमजाक करने लगती थी. उस की मनचली आदतों को देख कर कोई भी उस का दीवाना बन जाता था. हर्षित और रूपा एकदूसरे के प्रति काफी करीब आ गए.

हर्षित की नजर भले ही रूपा की देह और सौंदर्य पर थी, जबकि रूपा की नजर उस के मातापिता की धनदौलत पर थी. दोनों एकदूसरे की ललक और लालच से अनजान थे, लेकिन प्रेमातुर थे. एक दिन मौका पा कर दोनों ने अपने मन की बात एकदूसरे से कह दी. उन्होंने तय किया, उन्हें शादी करनी चाहिए. लेकिन समस्या थी कि दोनों अलगअलग जाति के थे.

इंसाफ की ज्योति : बेकसूर को मिली सजा – भाग 2

किस्मत के धनी ओमप्रकाश को फ्लोर मिल से भी जम कर मुनाफा हुआ. पैसा आया तो उन्हें पौलिटिक्स और पावर का भी चस्का लग गया. बिजनैसमैन तो संपर्क में थे ही, कुछ ही समय में उन्होंने नेताओं से ले कर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ भी उठनाबैठना शुरू कर दिया.

ऊंचे रसूखदार लोगों के संपर्क का भी उन्होंने खूब फायदा उठाया. देखते ही देखते श्यामदासानी परिवार की गिनती कानपुर शहर के अरबपति लोगों में होने लगी.

इसी अरबपति व्यवसाई ओमप्रकाश श्यामदासानी का बेटा था पीयूष श्यामदासानी. पीयूष बचपन से ही हठी था. वह जिस चीज की जिद करता, उसे हासिल कर के रहता था. पीयूष कानपुर के मशहूर ‘सर पदमपति सिंहानिया’ स्कूल में पढ़ा था.

पढ़ाई में वह भले ही कमजोर था, लेकिन उस के बचपन से शौक मंहगे थे. उसे लड़कियों से दोस्ती करना, उन्हें महंगे गिफ्ट देना तथा उन के साथ घूमनाफिरना अच्छा लगता था. बड़ी मुश्किल से पीयूष इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर पाया.

उस के बाद प्रोफैशनल डिप्लोमा कर के वह अपने परिवार के बिजनैस में हाथ बंटाने लगा. इसी दरम्यान उस ने बीयर, शराब पीना और हुक्का बारों में जाना शुरू कर दिया.

पीयूष के बंगले के पास ही एक जर्दा व्यापारी हरीश मखीजा का बंगला है. मनीषा मखीजा उन्हीं की बेटी है. यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही मनीषा की खूबसूरती में और ज्यादा निखार आ गया था. वह बहुत खूबसूरत थी. उस ने अंगरेजी माध्यम से शिक्षा ग्रहण की थी, इसलिए फर्राटेदार अंगरेजी बोलती थी.

बड़ी बेटी होने के नाते मातापिता उसे बहुत चाहते थे और उस की हर जिद, हर शौक पूरा करते थे. मांबाप के इसी लाड़प्यार ने उसे बिगाड़ दिया था. वह होटलों और क्लबों में जाने लगी थी. वह लेट नाइट पार्टियों से लौटती तो शैंपेन के नशे में होती थी.

एक रोज पीयूष और मनीषा की मुलाकात कानपुर क्लब में हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे के दिल में उतर गए. उस रोज दोनों एक ही पार्टी में आए थे. देर रात तक दोनों पार्टी में एंजौय करते हुए हंसतेबतियाते रहे. जाते समय पीयूष बोला, ‘‘मनीषा, आई लव यू.’’

जवाब में मनीषा खिलखिला कर हंसी और उस ने भी कह दिया, ‘‘आई लव यू टू.’’

इस के बाद मनीषा और पीयूष का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों कभी रेस्टोरेंट में तो कभी क्लब में मिलने लगे. मनीषा पीयूष से मिलने अपनी कार से जाती थी. उस का ड्राइवर अवधेश उन दोनों के प्यार से वाकिफ था. इसलिए दोनों उसे टिप दे कर खुश रखते थे.

अवधेश कभीकभी कार से दोनों को हाईवे पर ले जाता था, जहां वह कार से निकल कर बाहर चला जाता था और मनीषा और पीयूष कार में ही रोमांस करते थे. कुछ ही समय में दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. उन के बीच दिल और देह दोनों का नाता बन गया.

आंतरिक संबंध बने तो पीयूष चोरीछिपे मनीषा के बंगले पर भी जाने लगा. जरूरत पड़ने पर कभीकभी ड्राइवर अवधेश भी बंगले में घुसने के लिए पीयूष की मदद करता था. मनीषा तो पीयूष की दीवानी थी ही, उस के पहुंचते ही वह उस के गले का हार बन जाती थी.

कुंडली भले ही न मिली लेकिन जिस्म मिलते रहे

मनीषा और पीयूष के घर वालों को जब उन के प्यार की भनक लगी तो उन्होंने दोनों से बात की. इस पर दोनों ने घर वालों से कह दिया कि वे एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं. घर वालों ने उन की बात मान ली और वो उन की शादी करने को राजी हो गए.

लेकिन जब दोनों की कुंडली मिलवाई गई तो गुण आपस में नहीं मिले. फलस्वरूप पीयूष के घर वालों ने इस शादी से इंकार कर दिया. शादी की बात न बनने के बाद भी पीयूष और मनीषा का प्यार कम नहीं हुआ. उन के बीच संबंध पहले जैसे ही बने रहे.

नवंबर 2012 के दूसरे हफ्ते में मध्य प्रदेश के जबलपुर निवासी प्लास्टिक व्यापारी शंकर लाल अपनी बेटी ज्योति का रिश्ता ले कर ओमप्रकाश श्यामदासानी के पास आए. उन्होंने पीयूष और ज्योति की शादी की बात की तो ओमप्रकाश रिश्ता करने को राजी हो गए. लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि शादी कानपुर में ही होगी.

बेटी के लिए धनाढ्य और रसूखदार परिवार मिल रहा था, इसलिए शंकर लाल राजी हो गए. श्यामदासानी परिवार ज्योति को पसंद करने जबलपुर गया. खूबसूरत ज्योति को देख कर श्यामदासानी परिवार ने उसे बहू के रूप में पसंद कर लिया. इस के बाद जोरशोर से शादी की तैयारियां शुरू हो गईं.

शंकर लाल अपनी पत्नी कंचन के साथ शादी के एक सप्ताह पहले ही कानपुर आ गए. उन्हें पूरे परिवार सहित होटल रायल क्लिफ में ठहराया गया. उन्हें किसी चीज की कमी न हो, इस का खास खयाल रखा गया. अंतत: 28 नवंबर, 2012 को धूमधाम से स्टेटस क्लब में ज्योति और पीयूष का विवाह संपन्न हो गया.

इस विवाह समारोह में पौलिटिशियंस और ब्यूरोक्रेट्स से ले कर शहर के रसूखदार लोग शामिल हुए. शादी का समारोह इतना भव्य था कि जिस ने भी इस में शिरकत की, वह दंग रह गया. समारोह में जितने भी मेहमानों की फोटोग्राफ्स खींची गई थीं, समारोह के बाद उन्हें वह फोटोग्राफ्स बतौर उपहार दी गई थीं, जिन के पीछे पीयूष और ज्योति का नाम और विवाह समारोह की तारीख लिखी थी.

ज्योति दुलहन बन कर ससुराल आई तो सभी ने उस के रूपसौंदर्य की तारीफ की. चांद जैसी बहू पा कर पूनम तो अपने भाग्य को सराह रही थी. ज्योति भी अच्छा घर व पति पा कर खुश थी. लेकिन पीयूष इस शादी से खुश नहीं था. उस के मन में उथलपुथल मची हुई थी. शादी के बाद पीयूष और ज्योति हनीमून के लिए स्विटजरलैंड गए, जहां वे 12 दिन रहे.

कुछ महीने तक पीयूष नईनवेली दुलहन ज्योति के रूपजाल में उलझा रहा. फिर धीरेधीरे वह उस से कटने लगा. दरअसल, वह शादी के बाद भी अपने पहले प्यार को नहीं भुला पाया था और उस ने फिर से मनीषा से संबंध बना लिए थे. मनीषा बेलगाम थी, उसे घूमने और पार्टियों में जाने का शौक था.

मामी का उफनता शबाब – भाग 2

बृजमोहन कुंवारा था. वह अभी भी मातापिता के साथ ही रहता था. बृजमोहन एक फैक्ट्री में काम करता था. उसी दौरान उस की मुलाकात प्रीति से हो गई.

प्रीति कौर मुरादनगर, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश की रहने वाली थी. गऊशाला स्थित छावनी के पास ही उस के नाना सुरजीत सिंह रहते थे. प्रीति कौर समयसमय पर गऊशाला अपने नाना के घर आती रहती थी. उसी आनेजाने के दौरान वह बृजमोहन के संपर्क में आई.

प्रीति कौर बहुत ही खूबसूरत थी. एक अनौपचारिक मुलाकात के दौरान ही वह बृजमोहन के दिल में उतर गई. बृजमोहन देखने भालने में सीधासादा था.

फिर भी प्रीति की खूबसूरती पर इतना फिदा हो गया. दोनों के बीच लुकाछिपी का खेल शुरू हुआ फिर प्रेम डगर पर निकल गए.

हालांकि दोनों ही अलगअलग धर्म से ताल्लुक रखते थे, फिर भी दोनों के बीच प्रेम संबंध स्थापित होते ही दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसम भी खा ली थी. प्रीति कौर अपने नानानानी के पास ही रहने लगी.

उस के नाना सारा दिन खेतीबाड़ी में लगे रहते थे. उस की नानी ही घर पर रहती थीं. बृजमोहन के साथ आंखें लड़ाते ही वह किसी न किसी बहाने से उस से मिलने लगी थी. उसी दौरान दोनों के बीच शारीरिक सबंध स्थापित हो गए. अवैध संबंध स्थापित होते ही वह बृजमोहन के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

कुछ समय तक तो दोनों के बीच प्रेम प्रसंग चोरीछिपे से चलते रहे. लेकिन जल्दी ही एक दिन ऐसा भी आया कि दोनों का प्यार जग जाहिर हो गया. जब प्रीति कौर की हरकतों की जानकारी उस के नाना सुरजीत सिंह को हुई तो उन्होंने उसे उस के मम्मीपापा के पास भेज दिया.

मांबाप के घर जाने के बाद प्रीति कौर बृजमोहन के प्यार में तड़पने लगी. उस के पिता दिलप्रीत सिंह काम से बाहर निकल जाते थे. घर पर उस की मां बग्गा कौर ही रहती थीं. पापा के घर से निकलते ही उस की मां उस की पूरी निगरानी करती थीं.

प्रीति कौर बृजमोहन के प्यार में इस कदर पागल हो चुकी थी कि वह दिनरात उसी की यादों में खोई रहती थी. जब प्रीति कौर से बृजमोहन की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने एक दिन अपनी मम्मी को दिन में ही लस्सी में नींद की गोली डाल कर दे दी. जिस के बाद उस की मम्मी को जल्दी ही नींद आ गई.

मम्मी को गहरी नींद में सोते देख वह घर से काशीपुर के लिए निकल पड़ी. काशीपुर आते ही वह सीधे बृजमोहन के पास आ गई. प्रीति कौर के घर छोड़ने वाली बात सुनते ही बृजमोहन के घर वालों ने उसे काफी समझाया कि वह घर चली जाए, लेकिन उस ने अपने घर वापस जाने से साफ मना कर दिया था.

अब से लगभग 8 साल पहले दोनों ने पे्रम विवाह कर लिया. प्रेम विवाह करने के बाद वह बृजमोहन के साथ ही रहने लगी. प्रीति कौर के द्वारा दी गई नशे की दवा के कारण उस की मम्मी को पता नहीं क्या रिएक्शन हुआ कि वह बीमार रहने लगी थीं. जिस के कुछ दिनों के बाद उन की मौत हो गई. अपनी मम्मी की मौत हो जाने के बाद भी प्रीति अपने घर वापस नहीं गई.

प्रीति अपने पति बृजमोहन के साथ काफी खुश थी. प्रीति कौर शुरू से ही हंसमुख थी. उसकी चंचलता उस के चेहरे से ही झलकती थी. बृजमोहन भी पढ़ीलिखी प्रीति कौर को पा कर बेहद ही खुश था.

शादी के 4 साल बाद प्रीति कौर एक बच्ची की मां बनी. घर के आगंन में बच्ची की चीखपुकार के साथ हंसीठिठोली ने बृजमोहन और प्रीति कौर की जिंदगी में नया ही उत्साह भर दिया था.

घर में बच्ची के जन्म से बृजमोहन की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई थी. जिस के लिए उस ने पहले से ज्यादा कमाने पर ध्यान देना शुरू कर दिया. अब से लगभग डेढ़ साल पहले प्रीति कौर दूसरे बच्चे बेटे की मां बनी. घर में बेटे के जन्म से उस के परिवार में खुशियां ही खुशियां हो गई थीं.

घर में बेटे के जन्म के बाद से ही बृजमोहन बीमार रहने लगा था. उस के पैरों की अचानक ही कोई नस दब गई, जिस के कारण उसे चलनेफिरने में भी दिक्कत होने लगी थी. पैरों की दिक्कत के कारण वह काम पर भी नहीं जा पाता था. जिस के कारण उस का परिवार आर्थिक तंगी से गुजरने लगा था.

2 बच्चों के जन्म के बाद प्रीति कौर का शरीर पहले से भी ज्यादा खिल उठा था. लेकिन घर में आर्थिक तंगी के कारण वह परेशान रहने लगी थी. बृजमोहन बीमारी के चलते हर रोज काम पर नहीं जा पाता था. कभीकभार वह कोई काम करता तो वह थकहार कर रात को जल्दी ही सो जाता था. जिस के कारण प्रीति का उस के प्रति लगाव कम हो गया था.

बृजमोहन का भांजा था सौरभ, जो वहां से डेढ़ किलोमीटर दूर गऊशाला, छावनी में रहता था. वह पहले से ही अपने मामामामी के पास आताजाता रहता था. उसी आनेजाने के दौरान सौरभ को एक दिन अहसास हुआ कि उस की मामी मामा को पहला जैसा प्यार नहीं देती. बातबात पर उसे झिड़क देती थी.

एक दिन मौका पाते ही सौरभ ने अपनी मामी से सवाल किया, ‘‘मामी, आजकल तुम मामा से बहुत खफा चल रही हो. मामा के साथ तुम्हारा झगड़ा हो गया क्या?’’

‘‘जब भरी जवानी में आदमी घर में बूढ़ा बन कर बैठ जाए और शाम होते ही दारू के नशे में डूब जाए तो बीवी उसे क्या प्यार करेगी. सारा दिन घर में ही पड़ेपड़े मुफ्त की रोटी खाते हैं. न तो कमानेधमाने की चिंता है और न ही बीवी की.’’ प्रीति कौर ने जबाव दिया.

‘‘नहीं मामी, ऐसी बात तो नहीं. मामा तो तुम्हें बहुत ही प्यार करते हैं. रही बात कामधंधा करने की तो जैसे ही उन की परेशानी दूर हो जाएगी वह फिर से काम करने लगेंगे.’’ सौरभ ने कहा.

‘‘औरत को रोटी के अलावा कुछ और भी तो चाहिए. रात में पैर दर्द का बहाना कर के हर रोज जल्दी सो जाते हैं. फिर मैं बच्चों को ले कर रात में तारे गिनती रहती हूं.’’ प्रीति ने बड़े ही दुखी मन से कहा.

मामी की बात सुनते ही सौरभ के मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे थे. सौरभ जवानी के दौर से गुजर रहा था. उसे अपनी मामी की बात समझते देर नहीं लगी.

‘‘अरे मामी, तुम इतनी हसीन हो, यह मायूसी तुम्हारे चेहरे पर अच्छी नहीं लगती. खुश रहा करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’ सौरभ ने खुशमिजाज लहजे में मामी के दुखते जख्म पर मरहम लगाने का काम किया.

उस वक्त प्रीति कौर घर के आंगन में नल पर कपड़े धो रही थी. प्रीति कौर का गदराया बदन था. तन से वह हर तरह से मालामाल थी.

पहली बीवी का खेल – भाग 2

उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ और हरदोई मार्ग पर अवध हौस्पिटल बहुत चर्चित है. इसी अवध अस्पताल से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा कांशीराम कालोनी बनाई गई है.

पुरानी कांशीराम कालोनी में लगभग 5 हजार आबादी रहती है. प्राधिकरण द्वारा बनाई गई इस कालोनी में यासीन खान किराए के फ्लैट नंबर 2/6 में सोफिया व शहर बानो के साथ रहता था. उस के पिता का नाम ताहिर खान है और वह नेपाल के जिला बांके के कस्बा उधड़ापुर का मूल निवासी है.

उस की पहली शादी सन 2016 में उत्तर प्रदेश के जिला बहराइच के मोहल्ला घसियारिन टोला निवासी मुल्ला खान की बेटी शहर बानो से हुई थी.

वह लखनऊ में 2 साल पहले शहर बानो के साथ रोजीरोटी की तलाश में आ कर बस गया था. इन दिनों वह आयुर्वेदिक दवाओं का सप्लायर था.

यासीन खान की दूसरी पत्नी शिवा विश्वकर्मा उर्फ सोफिया शरद विश्वकर्मा की बहन थी. वह हिंदू थी. उस के पिता का नाम बंसबहादुर विश्वकर्मा था. वह नेपाल के कस्बा घोराई उपमहानगर पालिका वार्ड-14, जिला-दाड़ के मूल निवासी थे.

शरद विश्वकर्मा से यासीन खान के व्यवसाय के सिलसिले में आनेजाने के कारण नेपाल में ही दोस्ती हो गई थी. शरद ने यासीन को साथ मिल कर नेपाल में ही प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने की सलाह दी. यासीन खान शरद के कहने पर नेपाल के कस्बा घोराई में प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करने लगा था.

शरद के कहने पर उस ने उस की बहन शिवा विश्वकर्मा को अपने औफिस में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी पर रख लिया था.

शरद और यासीन खान ने घोराई में रह कर लगभग एक साल तक धंधा किया. लेकिन इन का वहां कोई खास फायदा नहीं हुआ और अधिक पूंजी न होने के कारण प्रौपर्टी डीलिंग के धंधे में कोई खास सफलता नहीं मिल सकी.

तब यासीन के कहने पर शरद नेपाल छोड़ कर लखनऊ आ कर रहने लगा. यहां भी इस धंधे में सफलता न मिलने पर शरद विश्वकर्मा का मन इस काम से उचट गया और वह शिवा को साथ ले कर नेपाल वापस लौट गया.

यहां उल्लेख कर दें कि नेपाल में ही प्रौपर्टी के धंधे के दौरान शिवा विश्वकर्मा यासीन खान के संपर्क में आई थी और उस के प्यार में रचबस गई थी. दोनों ने प्रेम विवाह करने की कसमें खाई थीं. उस ने यासीन खान से धर्म बदल कर जीवन भर साथ निभाने का भरोसा दिला कर 3 साल पहले प्रेम विवाह कर लिया था. यासीन से शादी के बाद शिवा विश्वकर्मा ने अपना नाम बदल कर सोफिया खान रख लिया था.

नेपाल में धंधा बंद होने पर यासीन के साथ वह लखनऊ आ कर शेष जीवन गुजारना चाहती थी. लेकिन शिवा मुसलिम रीतिरिवाजों के कारण यासीन के साथ खुल कर जीने का रास्ता नहीं खोज पा रही थी.

तब शिवा ने नेपाल में ही अपने पिता के यहां जा कर बसने का तानाबाना बुन कर यासीन के समक्ष प्रस्ताव रखा. लेकिन यासीन उस के साथ नेपाल में रहने के लिए हरगिज तैयार नहीं हुआ. तब यासीन ने शिवा उर्फ सोफिया खान उर्फ जारा को लखनऊ में अपने साथ रहने के लिए राजी कर लिया था.

वर्ष 2018 से यासीन खान शिवा उर्फ सोफिया को साथ ले कर लखनऊ रहने लगा था. शिवा उसे दिलोजान से प्यार करती थी. लेकिन यासीन खान की पहली बीवी शहर बानो को शिवा उर्फ सोफिया पसंद नहीं थी. वह नहीं चाहती थी कि उस का पति उस के अलावा किसी और को प्यार करे.

लखनऊ में ही रहने के दौरान शिवा ने एक बेटी को जन्म दिया और उस का नाम सारा रखा था. उस की बेटी सारा इस समय लगभग 3 साल को होने जा रही है. लखनऊ के कांशीराम कालोनी के मकान नंबर 2/6 में यासीन खान सोफिया के साथ रहने लगा था.

यहां उस ने कुछ समय तक इलैक्ट्रीशियन का धंधा किया लेकिन बाद में वह आयुर्वेदिक दवाओं की सप्लाई की कंपनी में नौकरी करने लगा.

लखनऊ में सोफिया उर्फ जारा के रहने के कारण पहली बीवी शहर बानो घसियारी टोला, नानपारा बहराइच में अपने पिता के घर पर रहा करती थी और यासीन साल छ: महीने में शहर बानो से मिलने बहराइच आताजाता था.

बहराइच पहुंचने पर शहर बानो यासीन खान को काफी भलाबुरा कहा करती थी और दोनों में सोफिया को ले कर कहासुनी होती थी. शहर बानो यासीन से सीधे मुंह बात तक नहीं करती थी और यह कह कर उलाहने दिया करती थी कि अब यहां क्या लेने आते हो. उस कलमुंही के साथ ही गुरछर्रे उड़ाओ.

यासीन 1-2 दिन ससुराल में रुकने के बाद शहर बानो को तसल्ली दे कर लखनऊ वापस लौट आता था. शहर बानो के साथ किए गए वादों को अमली जामा पहनाने के लिए वह दिनरात बेचैन रहने लगा था.

पहली पत्नी शहर बानो के बाद सोफिया यासीन की जिंदगी में जब से आई थी, उस के अमनचैन की जिंदगी में जहर घुल गया था.

एक बार की बात है. उस समय सोफिया और यासीन का निकाह नहीं हुआ था. मनमुटाव के कारण शहर बानो जब अपने मायके आई थी, तब यासीन शहर बानो की रुखसती कराने अपनी ससुराल आया हुआ था.

लखनऊ से यासीन के साथ शिवा विश्वकर्मा भी आई थी तो शहर बानो को ससुराल में न पा कर यासीन को काफी अचरज हुआ.

शहर बानो की बहन रेशमा ने पूछने पर यासीन को बताया कि आपा तो खालाजान के यहां गई हुई हैं. उन के यहां कुरान खुवानी की दावत है. आज ही वापस आने के लिए कह गई थीं.

यासीन को जान कर काफी तसल्ली हुई कि अब शहर बानो नाम का कांटा उस की आंखों से दिन भर के लिए दूर है. दोपहर के समय यासीन खान जब शिवा के साथ कमरे में सो रहा था तो शिवा के साथ अठखेलियां खेलने में मस्त हो गया. शिवा यासीन के साथ बातें करने मे मशगूल थी.

कुछ ही देर पहले शिवा और यासीन हमबिस्तर हो कर अलग हुए थे. तब शिवा ने उस के साथ निकाह नहीं किया था. शिवा यासीन को प्यार का वास्ता दे कर शीघ्र ही निकाह करने के लिए कुछ कहने ही जा रही थी कि अचानक घर में शहर बानो के आने की आहट सुनाई दी.

दरवाजे पर उस की ब्याहता बेगम शहर बानो खड़ी थी. शहर बानो उस के लिए कमरे में चाय ले कर आई थी कि यासीन शहर बानो को अच्छे कपड़ों में देख कर चहक उठा और बोला आज तुम काफी खूबसूरत लग रही हो.

शहर बानो ने उस दिन काफी सुंदर लिबास पहन रखा था, पति की बातें सुन कर वह मुसकरा उठी.

शहर बानो के पूछने पर उस ने शिवा विश्वकर्मा का परिचय कराया तो वह जलभुन कर राख हो गई. शहर बानो खिसियानी बिल्ली की तरह नफरत भरी नजरों से शिवा विश्वकर्मा को घूर कर रह गई. शहर बानो काफी देर तक उसे जलीकटी सुनाती रही.

यासीन खान के संपर्क में आने के बाद शहर बानो को शिवा की गतिविधियों पर शक होने लगा था. उसे यह आभास नहीं था कि उस का पति शिवा के चक्कर में फंस गया है और उस के सामने सौत के गुन गाया करता है.

यासीन के साथ वह कांशीराम कालोनी में आई हुई थी तो शिवा को पति के साथ एक बार आपत्तिजनक अवस्था में उसे देख लिया था तो उसे पूर्ण विश्वास हो गया था कि शिवा विश्वकर्मा उर्फ सोफिया उस के शौहर पर डोरे डाल चुकी है और यासीन भी उस के रंग में रचबस चुका है.

यहीं से शहर बानो के मन में कांटा पनप चुका था और खुशहाल जिंदगी में घर के अंदर कलह शुरू हो गई थी.

फलस्वरूप शहर बानो आए दिन अपनी ससुराल में रहा करती थी और यासीन खान ने पूर्णरूप से स्वतंत्र हो कर शिवा विश्वकर्मा के साथ निकाह कर लिया था. घर में शहर बानो पहले से जलीभुनी बैठी थी और उस ने घर में शिवा उर्फ सोफिया को देख कर कोहराम मचा दिया था.

रूपा के रूप का जादू – भाग 1

शाम का धुंधलका छाने लगा था. हर्षित शुक्ला की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह बरामदे में बैठा  कभी सामने मेन गेट को तो कभी स्कूटी की दूर से थोड़ी सी भी आवाज आने पर रास्ते की तरफ देखने लगता था.

उसे रूपा गुप्ता का बेसब्री से इंतजार था. बेचैन और चिंतित होने के साथसाथ वह गुस्से में भी था. सोच रहा था कि उस ने आने में इतनी देर क्यों कर दी. उस के बेचैन होने की वजह भी थी. दरअसल, उस की मां ने दिन में उसे ले कर खूब खरीखोटी सुनाई थी. पिता ने भी जबरदस्त डांट लगाई थी.

इस से पहले मांबाप ने उसे इस कदर कभी नहीं डांटा था. डांट खा कर वह एकदम से गुमसुम सा हो गया था. मन ही मन इस का सारा दोष वह रूपा पर ही मढ़े जा रहा था, जबकि वह उस से बेइंतहा मोहब्बत करता था. लेकिन उसी ने मोहब्बत की आड़ में जो पीड़ा पहुंचाई थी. उसे जितना भूलने की कोशिश करता, उतना ही उस के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी.

उस ने अपने मांबाप से बड़ी बात छिपा ली थी, उस बारे में कम से कम अपनी मां को तो बता दिया होता. खैर! वह यह भी जानता था कि अब उस में कुछ बदला नहीं जा सकता था, सिवाय रूपा के प्रति नाराजगी दिखाने और उसे कोसने के. उस के सीने पर सांप लोट रहा था. उस वक्त हर्षित के दिमाग में जो बातें उमड़घुमड़ रही थीं, वही उस की बेचैनी का मुख्य कारण थीं.

वह समझ नहीं पा रहा था कि उस की आंखें धोखा कैसे खा गईं? खुद को कोसे भी जा रहा था कि रूपा के काफी करीब रह कर भी उस के मन को कैसे नहीं समझ पाया? उस की गतिविधियों का जरा भी अंदाजा क्यों नहीं लगा पाया?

उस के दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था. कुछ अच्छा था तो कुछ बुरा और खतरनाक भी था. उन में फर्क नहीं कर पा रहा था. दुविधाओं से वह घिर चुका था. उलझनों से भर चुका था. इसी उधेड़बुन में उसे बरामदे में तेज कदमों की आहट सुनाई दी. आवाज की तरफ नजर उठा कर देखा तो रूपा तेजी से अपने कमरे में जाने के लिए सीढि़यों की ओर बढ़ी जा रही थी.

चोरीछिपे कर ली थी शादी

करीब 25 साल की रूपा गुप्ता हर्षित की प्रेमिका से पत्नी बनी थी, जिस से उस ने मंदिर में परिवार समाज से छिप कर शादी रचा ली थी. वह पिछले कुछ महीनों से हर्षित के घर में ही एक कमरा किराए पर ले कर रह रही थी. उस का कमरा ऊपरी मंजिल पर था.

हालांकि रूपा उस के अलावा गंगाखेड़ा स्थित रामसिंह गर्ल्स हौस्टल में भी रहती थी. जरूरत के मुताबिक वह वहां अकसर हौस्टल में ठहर जाती थी.

रूपा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के कस्बा विसर्जन खुर्द की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम राजेंद्र गुप्ता था और वह अपने परिवार में 3 भाईबहनों के बीच सब से छोटी थी. उस के पिता एक किसान थे.

बात 12 सितंबर, 2022 की है. उस रोज रूपा हर्षित की तरफ देखे बगैर तेजी से अपने कमरे में जा रही थी. जबकि उस ने हर्षित को देख लिया था. उसे देख कर रूपा ने मुसकराने की भी जरूरत नहीं समझी, जबकि पहले अकेले में होती थी, तब आतेजाते हर्षित से गले लग कर मिलती थी.

हर्षित ने पाया कि रूपा कुछ बुदबुदाती हुई सीढि़यां चढ़ रही थी. उस ने सिर्फ इतना ही सुना, ‘लगता है दाल में कुछ काला है. रोजाना जानेमन मुसकरा कर हैलो हाय करते थे. उसे देख कर मैं ही हायहैलो करूं. न जाने क्यों मुझे उस की घूरती नजरें खूंखार लग रही थीं.’

रूपा कुछ समय में ही अपने कमरे में पहुंच गई थी. कमरे की लाइट औन करने के बाद बैड पर एक तरफ अपना पर्स फेंका और कमरे में ही बनी छोटी सी रसोई की तरफ बढ़ गई.

तभी कमरे में थोड़ी हलचल सुनाई दी. अभी वह दरवाजे की तरफ पीछे मुड़ने ही वाली थी कि हर्षित ने दोनों हाथों से उस की कमर पकड़ ली. पकड़ मजबूत थी. रूपा उस का हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी. इस के बाद जो हुआ, उस की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती थी.

रूपा को ले कर पासपड़ोस के लोग भी चर्चा करते रहते थे. यहां तक कि उस पर गहरी नजर रखते थे. वह कब आई गई? कब घर से निकली? हर्षित के साथ कहां देखी गई? आदि आदि. रूपा की छोटीछोटी गतिविधियों पर हर्षित के मातापिता के अलावा कई लोगों की नजर बनी रहती थी.

बीते 2 दिनों से रूपा पड़ोसियों को नजर नहीं आई थी. एक पड़ोसन से रहा नहीं गया और वह 14 सितंबर की सुबहसुबह को हर्षित की मां माधुरी शुक्ला से पूछ बैठी, ‘‘दीदी, रूपा 2 दिनों से दिखाई नहीं दे रही है? प्रयागराज गई हुई है क्या?’’

‘‘हांहां…’’ जरा भी देर किए बगैर माधुरी बोली, ‘‘उस के घर से फोन आया था. पिताजी की तबियत अचानक बिगड़ गई थी.’’ं इतना कह कर माधुरी शुक्ला ने अपने घर का मेन गेट बंद किया और तेज कदमों से अपने कमरे में चली गई.

माधुरी शुक्ला का इस तरह से घर के अंदर जाना उस पड़ोसन को कुछ अटपटा लगा, लेकिन इस ओर उस ने ध्यान नहीं दिया.

पड़ोसियों को आश्चर्य तब हुआ, जब 17 सितंबर, 2022 को पुलिस टीम हर्षित और उस के पिता प्रेमचंद शुक्ला को ढूंढती हुई मोहल्ले में आई. मोहल्ले के लोगों ने उन के घर जा कर देखा तो पाया कि वहां ताला लगा था.

मोहल्ले वालों को पता चला कि रूपा की हत्या हो चुकी है. पुलिस उस की हत्या की तहकीकात के सिलसिले में आई है. पुलिस को पता चला था कि रूपा इस घर में किराए पर रहती थी. उस की लाश पुलिस ने इसी इलाके के एक पानी भरे गड्ढे से बरामद की गई थी.

एसआई महेश कुमार और अभय कुमार वाजपेई ने मोहल्ले वालों से प्रेमचंद शुक्ला, उन की पत्नी माधुरी शुक्ला और उन के बेटे हर्षित के बारे में जानकारी ली और उन के घर आते ही थाने आने को कहा.

रूपा की अचानक मौत और प्रेमचंद शुक्ला के परिवार के अचानक लापता होने से मोहल्ले के लोग हैरान हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक क्या हो गया जो रूपा की मौत हो गई और पूरा परिवार घर से लापता हो गया. दाल में जरूर काला है या फिर पूरी दाल ही काली है. मोहल्ले वाले उन सभी के बारे में तरहतरह की अटकलें लगाने लगे थे.