लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 5

सुनील की परेशानी वासिफ से भी छिपी नहीं थी. कुछ महीने नौकरी कर के वासिफ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए मेरठ चला आया और लालकुर्ती इलाके में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा. सुनील से उस का दोस्ताना भी बना रहा और संपर्क भी. उधर सुनील नितिन और पूजा के मुद्दे पर जितना सोचता उस की परेशानी उतनी ही बढ़ जाती. जिंदगी की राहों में मिलनाबिछड़ना कोई नई बात नहीं होती.

यूं भी इंसान की जिंदगी और रिश्ते ठीक वैसे नहीं होते जैसे वह खुद चाहता है. कुछ लोग विपरीत स्थितियों से भी संतुलन बैठा कर अपनी राह आसान कर लेते हैं, लेकिन कुछ ऐसा नहीं कर पाते. सुनील भी कुछ ऐसा ही था. वह नितिन को अपना सब से बड़ा दुश्मन मानता था. यह बात अलग थी कि नितिन को इस का अहसास भी नहीं था. यदाकदा वह सुनील से हालचाल पूछने के लिए फोन कर लिया करता था.

जिंदगी का एक सच यह भी है कि खूबसूरत यादें जल्दी नहीं भूली जातीं. सुनील ने पूजा की खूबसूरत यादों की नींव रख कर ख्वाबों का जो खूबसूरत आशियाना बनाया था वह उस की मुट्ठी से रेत की तरह फिसल गया था. यह अलग बात है कि यह उस का एकतरफा जुनून था. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए अब वह बुरी कल्पनाएं करने लगा था. एक दिन वह मेरठ आया, तो काफी परेशान था.

उस की परेशानी भांप कर वासिफ ने पूछा तो वह रोष में बोला, ‘‘मैं नितिन को रास्ते से हटाना चाहता हूं. चाहे जो भी हो, अब मैं पूजा को पा कर ही रहूंगा. नितिन मेरे रास्ते से हट जाए तो सब ठीक हो जाएगा. तू इस काम में मेरा साथ दे.’’

दोस्ती की वजह से वासिफ इनकार करने की स्थिति में नहीं था. फिर भी उस ने संदेह जाहिर करते हुए कहा, ‘‘हम पकड़े गए तो कैरियर चौपट हो जाएगा.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा, हम पूरी प्लानिंग के साथ काम करेंगे.’’ सुनील की यह बहुत ही घटिया सोच थी. लेकिन उस के सिर पर जुनून सवार था. वासिफ उस का साथ देने को तैयार हो गया. दोनों ने मिल कर नितिन की हत्या की योजना तैयार की. योजनाबद्ध ढंग से कुछ इस तरह योजना बनाई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. सुनील ने वासिफ से कहा कि वह नितिन से बात करता रहेगा ताकि उसे शक न हो. नितिन ने उन दोनों को अपना दूसरा नंबर दे रखा था. बात कर के सुनील वापस हिमाचल चला गया.

अक्तूबर के चौथे सप्ताह में वह मेरठ आया. योजना के अनुसार वह अपना मोबाइल हिमाचल में ही छोड़ आया था ताकि उस की लोकेशन वहीं मिले. 24 अक्तूबर की सुबह वासिफ व सुनील मोटरसाइकिल से नितिन के कालेज के गेट पर पहुंच कर उस के आने का इंतजार करने लगे. उस वक्त सुनील वहां से हट गया था. इस काम के लिए वासिफ अपने बहनोई की मोटरसाइकिल मांग कर लाया था. नितिन आया तो वासिफ को देख कर रुक गया.

औपचारिक बातचीत के बाद वासिफ बोला, ‘‘नितिन ट्रेन से मेरा कुछ सामान आ रहा है उसे लेने के लिए चलना है. सुनील भी आया हुआ है तीनों चलते हैं. इस बहाने थोड़ा घूमनाफिरना भी हो जाएगा.’’

नितिन उस की चाल को समझ नहीं पाया. वह चलने को तैयार हो गया. वासिफ उसे पीछे बैठा कर चल दिया. सुनील उन्हें थोड़ी दूर आगे मिल गया. सब से पहले तीनों नितिन के कमरे पर गए. वहां नितिन ने कपड़े बदले और जेब में पर्स डाल कर उन के साथ चल दिया. वहां से तीनों कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां पहुंच कर वासिफ ने कहा कि उन का सामान सिटी स्टेशन पर आएगा. इसलिए उन्हें वहीं चलना होगा.

वहां  ट्रेन से चलेंगे. दोनों स्टेशनों के बीच चंद मिनट का फासला था. वे तीनों मुजफ्फरनगर की तरफ से आने वाली ट्रेन में सवार हो गए. सुनील और वासिफ की योजना थी कि नितिन को चलती रेल से धक्का दे कर गिरा देंगे, इस से उस की मौत हो जाएगी और इस तरह उस की हत्या हादसा लगेगी.

जब ट्रेन चली तो तीनों दरवाजे पर खड़े हो गए. नितिन को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह मौत के दरवाजे पर खड़ा है. इसी बीच दूसरी पटरी पर विपरीत दिशा से जालंधर एक्सप्रेस आई, तो दोनों ने उस का मोबाइल और पर्स निकाल कर उसे धक्का दे दिया. नितिन डिब्बे से टकरा कर नीचे गिर गया. यह इत्तफाक ही था कि उन्हें ऐसा करते किसी ने नहीं देखा था. कुछ ही देर में अगले स्टेशन पर उतर कर वह दोनों यह जानने के लिए वापस आए कि नितिन मरा या नहीं.

जब वे वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि लोग नितिन के आसपास खड़े थे. वह बुरी तरह घायल और बेहोश था. स्टेशन चूंकि वहां से पास ही था इसलिए आननफानन में एंबुलेंस बुला ली गई थी. घायल नितिन को जिला अस्पताल ले जाया गया. पीछेपीछे सुनील और वासिफ भी मोटरसाइकिल से वहां पहुंच गए. जब नितिन को एंबुलेंस से मेडिकल ले जाया जा रहा था तो वासिफ ने उसे टैम्पों से ले जाने की बात कही थी. लेकिन वहां मौजूद लोगों ने मना कर दिया था.

दरअसल वे दोनों टैंपों से ले जाने के बहाने रास्ते में ही गला दबा कर उस की हत्या कर देना चाहते थे. बाद में दोनों अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंचे. वहां लोगों की आवाजाही देख कर उन्हें अपनी योजना विफल होती नजर आई. इसलिए थोड़ा घूम कर वह वापस आ गए.

अस्पताल से लौट कर सुनील ने एक उस्तरे का इंतजाम किया. फिर शाम को वह इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा. वासिफ मोटरसाइकिल लिए बाहर ही खड़ा रहा. सुनील को वहां के लोगों से यह बात पता चल गई थी कि सुबह तक नितिन को होश आ जाएगा. इस से वह परेशान हो उठा. वह जानता था कि अगर नितिन को होश आ गया तो दोनों फंस जाएंगे. इसलिए वह हर हाल में उसे खत्म कर देना चाहता था. इसलिए वह आसपास ही मंडराता रहा. तभी तीमारदार रविंद्र के पूछने पर उस ने अपना नाम सचिन बताया था.

रात साढ़े 3 बजे सुनील को मौका मिल गया. वहां भरती मरीज और उन के मरीज तीमारदार नींद के आगोश में थे. वह दबे पांव अंदर गया और उस्तरे से नितिन की गरदन काट कर बाहर आ गया. नितिन की हत्या कर के सुनील व वासिफ ने उस का मोबाइल पुलिस लाइन के नजदीक एक गंदे नाले में फेंक दिया और कमरे पर पहुंच कर आराम किया. उस्तरा व नितिन का पर्स वासिफ के कमरे पर ही छोड़ कर सुनील अगले दिन हिमाचल प्रदेश चला गया.

सुनील को उम्मीद थी कि पुलिस नितिन की हत्या का राज कभी नहीं खोल पाएगी. क्योंकि उन लोगों ने अपना काम बेहद चालाकी से किया था. लेकिन यह उन की गलतफहमी थी. देर से ही सही पर वह पुलिस की पकड़ में आ गए. विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर वासिफ के कमरे से हत्या में इस्तेमाल किया गया उस्तरा और नितिन का पर्स बरामद कर लिया.

नितिन के घर वालों को भी इस की खबर दे दी गई. वे भी मेरठ आ गए. अगले दिन पुलिस ने दोनों को अदालत पर पेश किया जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी और पुलिस आरोपपत्र अदालत में दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. सुनील के अविवेकपूर्ण रवैये ने न सिर्फ एक परिवार का चिराग बुझा दिया बल्कि अपना कैरियर भी चौपट कर लिया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित कहानी में पूजा नाम परिवर्तित है.)

बुझ गया आसमान का दीया

दिल मांगे मोर

सीमा हैदर : प्रेम दीवानी या पाकिस्तानी जासूस

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 4

विस्तृत पूछताछ में नितिन की हत्या का ऐसा चौंकाने वाला सच सामने आया जिस ने पुलिस को भी सोचने पर मजबूर कर दिया.

दरअसल एक ही गांव के रहने वाले नितिन व सुनील में दोस्ताना संबंध थे. सुनील उम्र में नितिन से थोड़ा बड़ा था. दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. सुनील अलीगढ़ में रह कर बीफार्मा कर रहा था. नितिन भी बीफार्मा करना चाहता था. 2012 में जब उस ने इंटरमीडिएट कर लिया तो सुनील ने उस का एडमिशन अलीगढ़ के शिवदान कालेज में करा दिया. दोनों साथसाथ ही रहने भी लगे. सुनील के साथ वासिफ भी बीफार्मा कर रहा था. इसी नाते नितिन के साथ भी उस के दोस्ताना संबंध बन गए.

सुनील और वासिफ का बीफार्मा का अंतिम वर्ष था जबकि नितिन का पहला. तीनों का समय आराम से बीतने लगा. सुनील अपने ही गांव की लड़की पूजा से अकसर बातें किया करता था. नितिन यह तो जानता था कि वह किसी लड़की के संपर्क में है लेकिन वह कौन है इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी. सुनील पूजा को दिल से चाहता था. उस ने उस के साथ दुनिया बसाने का ख्वाब संजो कर साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं. लेकिन उसे यह मालूम नहीं था कि जिस पूजा को वह दिलोजान से चाहता है, वही पूजा नितिन की भी गर्लफ्रेंड है.

कुछ दिन बाद सुनील ने महसूस किया कि पूजा उस से बात करने में पहले की तरह दिलचस्पी नहीं लेती.

एक दिन नितिन कमरे में अकेला था. वह मोबाइल का स्पीकर औन कर के पूजा से बात कर रहा था. जब वह प्यार भरी बातों में मशगूल था, तभी सुनील चुपचाप उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया और दोनों की बातें सुन ने लगा. उन की बातें उस के दिमाग में धमाका सा कर गईं. क्योंकि उस ने पूजा की आवाज पहचान ली थी.

अचानक नितिन ने सुनील को देखा तो वह सकपका गया. उस ने यह कह कर फोन बंद कर दिया कि बाद में बात करेगा. फिर उस ने सुनील से कहा, ‘‘भैया आप अचानक?’’

‘‘अचानक कहां, मैं तो काफी देर से तुम्हारी बातें सुन रहा था.’’ उस ने हंस कर मजाकिया लहजे में कहा तो नितिन ने सफाई देनी चाही, लेकिन सुनील उसे बीच में ही टोकते हुए बोला, ‘‘रहने दे, छुपा रूस्तम निकला तू तो.’’

सुनील के कानों में रहरह कर फोन पर दूसरी ओर से आने वाली आवाज गूंज रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह लड़की पूजा होगी. वह अपने मन को समझा रहा था कि पूजा जैसी आवाज वाली कोई दूसरी लड़की रही होगी. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूछ लिया, ‘‘वह कौन लड़की थी जिस से बात कर रहे थे?’’

नितिन को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि पूजा के साथ सुनील का भी कोई चक्कर है. इसलिए उस ने बता दिया कि जिस से वह बात कर रहा था वह गांव की ही पूजा थी. सुन कर सुनील पर बिजली सी गिरी. वह समझ गया कि पूजा अचानक उस में दिलचस्पी क्यों नहीं ले रही है. उस के लिए यह बड़ा आघात था. उस ने नितिन को यह नहीं बताया कि पूजा के साथ उस का पहले से ही चक्कर चल रहा है.

बहरहाल, बात वहीं खत्म हो गई. लेकिन उस दिन के बाद नितिन के प्रति उस की सोच बदल गई. वह उसे अपना दुश्मन समझने लगा. पूजा के प्रति भी उस के दिल में गुस्सा था. उस ने पूजा से तो कुछ नहीं कहा लेकिन इस के बाद वह थोड़ा परेशान जरूर रहने लगा. दिन बीतते गए. एक दिन सुनील को परेशान देख कर नितिन ने पूछा, ‘‘क्या बात है भैया, आजकल परेशान से रहते हो?’’

‘‘मेरी परेशानी की वजह तुम हो.’’ सुनील ने गंभीर हो कर कहा तो नितिन को उस की बात पर यकीन नहीं हुआ. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्यों कह रहा है. सुनील कुछ देर खामोश रहा फिर उस ने नितिन को समझाया, ‘‘नितिन, तुम अपने घर के इकलौते बेटे हो. इसलिए अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. रही बात पूजा की तो उसे मैं देख लूंगा.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि पूजा को मैं तुम से पहले से जानता हूं. वह मेरी गर्लफ्रेंड है. उस से ज्यादा बात मत किया करो.’’ सुनील ने कहा तो नितिन बुरी तरह चौंका. उसे यह पता नहीं था कि सुनील जिस लड़की से बातें किया करता था वह पूजा ही थी. इस मुद्दे पर दोनों में बहस हो गई. सुनील ने उसी वक्त पूजा को फोन कर के उसे खरीखोटी सुनाई. साथ ही कहा भी कि वह नितिन पर ज्यादा ध्यान न दे.

इस से नितिन और सुनील के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए. इस के बाद सुनील जब तब नितिन को समझाने लगा कि वह पूजा के चक्कर में न पड़े. लेकिन उस के लिए परेशानी की बात यह थी कि अब पूजा ने उसे और भी ज्यादा नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था. पूजा के मुद्दे को ले कर नितिन और सुनील में जब तब कहासुनी हो जाती थी. इसी को ले कर एक दिन सुनील ने नितिन पर हाथ छोड़ दिया. उस वक्त वासिफ वहीं मौजूद था. उस ने जैसेतैसे दोनों के बीच समझौता करा दिया. फलस्वरूप बात आई गई हो गई.

सन 2013 में सुनील और वासिफ की पढ़ाई पूरी हुई, तो दोनों को हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी में नौकरी मिल गई. अकेला होने की वजह से नितिन ने भी अलीगढ़ का कोर्स बीच में छोड़ कर मेरठ में दाखिला ले लिया और परमजीत के साथ गंगापुरम में रहने लगा.

आधुनिकता की चकाचौंध कई बार इंसान पर ज्यादा ही हावी हो जाती है. शहरों में लड़केलड़कियों के बीच दोस्ताना रिश्ते कोई नई बात नहीं होती. गांव से निकल कर आए नितिन के लिए यह रोमांच की बात थी. पूजा के अलावा भी अन्य कई लड़कियों से उस की दोस्ती थी. उन से बात करने के लिए वह एक मोबाइल पर 3 सिम कार्ड इस्तेमाल किया करता था.

उधर सुनील नौकरी पर चला तो गया था, लेकिन उस के दिमाग में हर वक्त पूजा व नितिन ही घूमते रहते थे. हालांकि नितिन को वह कई बार समझाबुझा चुका था, लेकिन उस के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि नितिन की वजह से पूजा ने उस से दूरी बना ली है. बाद में जब पूजा ने उस से बात करनी लगभग बंद कर दी तो वह परेशान रहने लगा. ऐसे में नितिन उसे अपना सब से बड़ा दुश्मन नजर आता था.

मौज मजा बन गया सजा – भाग 3

बलदाऊ यादव डा. सुनील के ही यहां था. थोड़ी देर में डा. अशोक कुमार भी मैडिकल कालेज परिसर स्थित डा. सुनील आर्या के आवास पर पहुंच गए. इस के बाद डा. अशोक कुमार अपनी गाड़ी से तो डा. सुनील आर्या ने अपनी गाड़ी में बलदाऊ को बैठा लिया. अविनाश चौहान शरीफ के साथ उस की गाड़ी में बैठ गया था.  सभी पनियरा डाक बंगले की ओर चल पड़े. सभी रात डेढ़ बजे के करीब वे लोग गेस्टहाऊस पहुंचे.

आराधना मिश्रा बाहर ही खड़ी रह गईं, जबकि डा. अशोक कुमार, डा. सुनील आर्या, शरीफ, अविनाश और बलदाऊ डाकबंगले के अंदर चले गए. अंदर पहुंच कर डा. अशोक कुमार ने अराधना के बारे में पूछा तो डा. आर्या ने कहा, ‘‘आराधना फ्रेश होने गई है. अभी आ जाएगी.’’

डा. अशोक कुमार वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गए. इस के बाद उसी के सामने कुर्सी रख कर डा. आर्या भी बैठ गए. उस ने डा. अशोक कुमार को बातों में उलझा लिया तो शरीफ ने देशी तमंचा निकाल कर उस की कनपटी से सटाया और ट्रिगर दबा दिया. गोली लगते ही डा. अशोक कुमार लुढ़क कर छटपटाने लगा.

थोड़ी देर में वह खत्म हो गया तो डा. आर्या ने बलदाऊ से अपनी कार से तौलिया मंगा कर उस के सिर में लपेट दिया. इस के बाद लाश उठा कर शरीफ अहमद की इंडिका में रख दी गई. गेस्टहाउस से तकिए का कवर निकाल कर बलदाऊ ने फर्श पर फैला खून साफ किया और उस तकिए के कवर को भी रख लिया.

एक बार फिर तीनों कारें चल पड़ीं. उस समय रात के ढाई बज रहे थे. डा. अशोक कुमार की कार अविनाश चला रहा था तो लाश वाली गाड़ी में शरीफ के साथ बलदाऊ बैठा था. आराधना मिश्रा डा. सुनील आर्या की कार में थी. गोरखपुर के भटहट पहुंच कर लाश को शरीफ की गाड़ी से निकाल कर मृतक डा. अशोक कुमार की कार में डाला जाने लगा तो आराधना को पता चला कि डा. अशोक कुमार की हत्या कर दी गई है. वह डर गई, लेकिन बोली कुछ नहीं.

वहीं डा. सुनील आर्या ने अपनी कार अविनाश को दे कर आराधना को उस के साथ गोरखपुर भेज दिया. जबकि खुद शरीफ और बलदाऊ के साथ लाश को ठिकाने लगाने के लिए देवरिया की ओर चल पड़ा. इस के बाद देवरिया-सलेमपुर रोड पर स्थित वन विभाग की पौधशाला के पास डा. अशोक की लाश को फेंक दिया.

उसी के साथ उन्होंने तौलिया और तकिया का कवर भी फेंक दिया था. लाश तो ठिकाने लग गई थी, अब कार को ठिकाने लगाना था. कार ले जा कर उन्होंने जिला मऊ के थाना दक्षिण टोला के जहांगीराबाद में सड़क किनारे खड़ी कर दी. उस के बाद सभी गोरखपुर वापस आ गए.

तीनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने बलदाऊ यादव को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद शरीफ की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का एक देशी पिस्तौल, 2 कारतूस, हत्या के समय पहने कपड़े बरामद कर लिए थे. कार में लगे खून के धब्बे के नमूने परीक्षण के लिए लखनऊ भेज दिए गए थे.

आराधना मिश्रा की डा. अशोक कुमार की हत्या में कोई भूमिका नहीं थी, इसलिए पुलिस ने उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया था. लेकिन गवाहों की सूची में उस का भी नाम था. पुलिस ने इस मामले में 34 लोगों को गवाह बनाया था.

अभियुक्तों के बयान और सभी गवाहों के गवाही होने में काफी अरसा लग गया. लगभग 13 सालों तक चले डा. अशोक कुमार की हत्या के मुकदमे का फैसला सुनाया गया 11 अप्रैल, 2014 को. न्यायमूर्ति श्री सुरेंद्र कुमार यादव ने डा. अशोक कुमार की हत्या का दोषी मानते हुए 52 पृष्ठों का अपना फैसला सुनाया था.

फैसले में अभियुक्त अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, डा. सुनील आर्या तथा बलदाऊ यादव को आजीवन कारावास के साथ 10-10 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी. जुर्माना अदा न करने पर एक साल की अतिरिक्त सजा भोगनी होगी. सजा सुनाते ही सभी अभियुक्तों को पुलिस ने अपनी कस्टडी में ले कर जेल भेज दिया. अब चारों अभियुक्त हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं.

—कथा अदालत द्वारा सुनाए फैसले पर आधारित

नरभक्षी हो गया फिल्म आर्टिस्ट

मुंबई से करीब 12 सौ किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के शाहपुर के लिए एक प्राइवेट बस चलती है. अमरकंटक एक्सप्रैस नाम की यह लग्जरी बस मुंबई से चलने के बाद पूरे 24 घंटे में शाहपुर पहुंच जाती है. इतनी लंबी यात्रा में ऊब गए यात्रियों के बीच छोटीमोटी कहासुनी तो होती ही रहती है. पर यह थोड़ी देर में शांत हो जाती है.

25 मई, 2023 को बस मुंबई से चल कर राजस्थान के कोटा शहर के नजदीक पहुंची तो 24 साल के युवक ने बस में हडक़ंप मचा दिया. किसी मामूली सी बात को ले कर उस की बगल की सीट पर बैठे यात्री से कहासुनी हो गई थी. इस मामूली सी बात में उस युवक को इतना गुस्सा आया कि बस को रोकवा कर अन्य यात्रियों को बीच में आना पड़ा.

परिस्थिति ऐसी बन गई कि एक ओर अकेला वह युवक था और दूसरी ओर बस के सभी पैसेंजर थे. 24 साल का वह युवक टीवी एक्टर की तरह सुंदर था. पर भयानक गुस्से में होने की वजह से उस का चेहरा विकृत हो गया था. उस की लाललाल आंखें और मुंह से टपकती लार देख कर सारे के सारे यात्री सहम गए थे. वह दांत भींच कर जोरजोर से कुछ बड़बड़ा रहा था. पर उस की ये बातें किसी की समझ में नहीं आ रही थीं.

जानवर की तरह हो गया हिंसक

उस के नजदीक जाने की किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी. क्योंकि जो भी उस के नजदीक जाने की हिम्मत करता था, वह उसे कुत्ते की तरह काटने को दौड़ता था. एक पैसेंजर ने उसे पकडऩे की हिम्मत दिखाई तो वह युवक एकाएक आक्रामक हो गया और उस ने उस पैसेंजर पह हमला बोल कर उस के हाथ में दांतों से काट लिया. उस पैसेंजर के हाथ से खून बहने लगा.

इस के बाद सभी पैसेंजरों ने ड्राइवर और कंडक्टर से कहा कि इस तरह आक्रामक हो चुके इस युवक को यहीं छोड़ो और बाकी लोगों को ले कर जल्दी निकलो. उस आदमी का विचित्र और आक्रामक व्यवहार ड्राइवर ने भी देखा था, इसलिए उस ने सभी को जल्दी बस में बैठने का इशारा किया.

वह युवक तो जुनून में आ कर गिर पड़ा था और न जाने क्याक्या बक रहा था. उसे उस समय जैसे दुनिया जहान का भान ही नहीं था. इसी का फायदा उठा कर बाकी पैसेंजर बस में चढ़ गए तो ड्राइवर ने बस चला दी. वह युवक चीखते हुए बस के पीछे दौड़ा, पर अंत में थक कर रोड पर ही गिर पड़ा.

25 मई, 2023 दिन शुक्रवार को राजस्थान के जिला पाली के गांव सरधाना की 64 साल की शांतिदेवी पहाड़ियों पर अपनी बकरियां चराने गई थीं. शांतिदेवी के पति नानुलाल खेती का काम कर रहे थे. शाम 4 बजे शांतिदेवी बकरियां ले कर घर आ रही थीं तो गांव के ही प्रताप बहादुर के खेत में सब्जी लेने चली गई. उन्होंने खेत से भिंडी तोड़ कर साड़ी के पल्लू में बांधी और घर की ओर चल पड़ीं.

नोचनोच कर खा गया बुजुर्ग महिला को

रास्ते में वह गुंदियावाड़ी पर पहुंचीं तो सामने से चले आ रहे एक युवक को देख कर उन्हें हैरानी हुई. उस युवक का चेहरा धूप में तप कर लाल हो गया था. वह केवल पैंट पहने था. उस के शरीर के ऊपरी हिस्से पर कोई कपड़ा नहीं था. उस के मुंह से लार टपक रही थी. उसे हैरानी से देखते हुए शांतिदेवी आगे बढ़ गईं. वह मुश्किल से 5 कदम बढ़ी होंगी कि वह युवक उन के पीछे आया और एक बड़ा सा पत्थर उठा कर उन के सिर पर दे मारा. यह प्रहार इतना तेज था कि शांतिदेवी जमीन पर गिर पड़ीं और उन की सांस अटक गई.

10 मिनट बाद उधर से जा रहे अमर सिंह ने एक अजीब नजारा देखा. नजदीक जा कर उन्होंने वह नजारा देखा तो उन का कलेजा कांप उठा. शांतिदेवी की लाश को एक युवक कंधे से पकड़ कर उन के चेहरे का मांस नोचनोच कर खा रहा था. शांतिदेवी के चेहरे की अब मात्र हड्डियां ही दिखाई दे रही थीं.

युवक का चेहरा खून से लाल था. उस के मुंह पर मांस के टुकड़े चिपके थे. कचरकचर मांस खाने में तल्लीन उस युवक को लगा कि कोई आया है तो उस ने सिर ऊंचा कर के अमर सिंह की ओर देखा. खून से लथपथ पूरा चेहरा और आंखों में हिंसक पशु जैसी चमक देख कर अमर सिंह डर गया. वह भाग कर प्रताप बहादुर के खेत पर गया और 10-12 लोगों को इकट्ठा कर के घटनास्थल पर पहुंचा.

अब तक शांतिदेवी की मात्र खोपड़ी बची थी. लाठीडंडा ले कर आए लोगों की भीड़ देख कर वह युवक लाश छोड़ कर भागा. उस युवक के भागने की गति इतनी तेज थी कि करीब डेढ़ किलोमीटर दूर जा कर उन लोगों ने उसे पकड़ा. लेकिन उसे जिस ने भी पकड़ा, उसे उस ने कुत्ते की तरह काटा. लोग उस की पिटाई करने लगे. पर मार खाने के बाद भी उस का जुनून कम नहीं हुआ.

हत्या करने वाले नरभक्षी की बात सुन कर थाना जैतरन के एसएचओ धोलाराम परिहार अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. उस युवक ने पकड़ने आए 3 पुलिस वालों को भी काट लिया. उसे पुलिस वालों ने किसी तरह बांधा. थाने ला कर शांतिदेवी के बेटे वीरम की ओर से उस के खिलाफ हत्या और मानव मांस खाने की रिपोर्ट दर्ज की गई.

पुलिस ने उस की तलाशी ली तो उस की पैंट की जेब से मुंबई से मध्य प्रदेश के शाहपुर की बस की एक टिकट, 22 रुपए, आल इंडिया फिल्म ऐंड टीवी एसोसिएशन, मुंबई का आईडी और उस का आधार कार्ड मिला. मुंबई के पवई में रहने वाले इस 24 वर्षीय युवक का नाम सुरेंद्र ठाकुर था. एसोसिएशन के आईडी कार्ड से पता चला कि सुरेंद्र कुमार फिल्म और टीवी आर्टिस्ट है.

सुरेंद्र को बड़ी मानसिक बीमारी है, यह खयाल आते ही पुलिस उसे तुरंत पाली के बांगर अस्पताल ले गई. पूरी बात जान कर मैडिसिन विभाग के इंचार्ज डा. प्रवीण गर्ग ने बताया कि अगर पेशेंट ने मानव मांस खाया है तो हाइड्रोफोबिया नामक मानसिक बीमारी का शायद अपने देश का यह पहला मामला होगा.

सुरेंद्र ने जिनजिन गांव वालों और पुलिस वालों को काटा था, उन सभी को एंटी रेबीज की वैक्सीन लगवाने के लिए कहा गया. इस के बाद बांगर अस्पताल में सुरेंद्र का इलाज शुरू हुआ. वह अभी भी आक्रामक था, इसलिए डाक्टर कोरोना काल में जो पीपीई किट पहन कर कोरोना रोगियों का इलाज करते थे, वही पीपीई किट पहन कर सुरेंद्र का इलाज कर रहे थे. फिर भी उस ने 2 डाक्टरों को काट लिया.

सुरेंद्र की बिगड़ती हालत देख कर उसे 27 मई, 2023 को पुलिस बंदोबस्त और डाक्टरों की देखभाल में जोधपुर के एम.जी. अस्पताल ले जाया गया, जहां मनोचिकित्सकों और न्यूरोलौजी की टीम ने सुरेंद्र का इलाज शुरू किया. डा. राजश्री बोहरा ने पत्रकारों को बताया कि सुरेंद्र का इलाज अंधेरे कमरे में करना पड़ता है.

पता चला कि सुरेंद्र को हाइड्रोफोबिया हुआ था. इस के रोगी को पानी और रोशनी से डर लगता है. यह बीमारी किसी रेबीज वाले जानवर यानी कि कुत्ता, भेडिय़ा, सियार, लोमड़ी, चमगादड़ आदि के काटने के बाद एंटी रेबीज की वैक्सीन न लेने से होती है. अगर इस का समय से इलाज हो गया यानी वैक्सीन लग गई तब तो ठीक है वरना बाद में बचना मुश्किल हो जाता है.

इस बीमारी वाला आदमी अगर किसी को काट लेता है तो उसे भी वैक्सीन लेनी पड़ती है. इस बीमारी वाला आदमी से डर से कांपता रहता है. इसे इंसेफेलाइटिस या जापानी बुखार भी कहा जाता है. इस में आदमी गुस्से पर काबू नहीं रख पाता.

23 मई, 2023 की सुबह इलाज के दौरान नरभक्षी सुरेंद्र की मौत हो गई थी. पुलिस उस के घर वालों के बारे में पता कर रही है. आधार कार्ड में जो पता लिखा था, वहां उस का कोई नहीं मिला है.

सूरज ने बुझाया जिंदगी का दीया

रामाश्रय यादव आ कर ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठे ही थे कि उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन उठा कर देखा, नंबर किसी खास का था, इसलिए फोन रिसीव करते हुए उन के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी थी.

दूसरी ओर से महिला की शहदघुली आवाज आई. ‘‘तुम कब तक मेरे यहां पहुंच रहे हो? मैं ने दोपहर को ही बता दिया था कि पैसों की व्यवस्था हो गई है. जानते ही हो, समय कितना खराब चल रहा है. कहीं से चोरउचक्कों को हवा लग गई तो अनर्थ हो जाएगा, इसीलिए एक बार फिर कह रही हूं कि आ कर अपने पैसे उठा ले जाओ.’’

‘‘ठीक है, मैं थोड़ी देर में तुम्हारे यहां पहुंच रहा हूं.’’ कह कर रामाश्रय ने फोन काट दिया.

फोन काट कर रामाश्रय उठा और अपने कमरे में जा कर अलमारी से एक डायरी निकाल कर पत्नी आशा से बोला, ‘‘गामा की पत्नी का फोन आया था, पैसे देने के लिए बुला रही है. मुझे लौटने में देर हो तो तुम लोग खाना खा लेना. मेरी राह मत देखना.’’

‘‘कभी आप को खिलाए बिना मैं ने अपना मुंह जूठा किया है कि आज ही खा लूंगी. लौट कर आओगे तो साथ बैठ कर खाना खाऊंगी.’’ आशा ने कहा.

‘‘ठीक है भई, साथ ही खाएंगे. लेकिन बच्चों और बहुओं को भूखा मत रखना, उन्हें खिला देना.’’ रामाश्रय ने कहा और डायरी ले कर बाहर आ गया. अब तक उस के छोटे बेटे राकेश ने उस की मोटरसाइकिल निकाल कर बाहर खड़ी कर दी थी. डायरी उस ने डिक्की में रखी और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के चल पड़ा. उस समय शाम के यही कोई 6 बज रहे थे और तारीख थी 12 नवंबर, 2013.

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर की थानाकोतवाली शाहपुर के मोहल्ला नंदानगर दरगहिया के रहने वाले रामाश्रय यादव ब्याज पर रुपए देने का काम करते थे. इसी की कमाई से उस ने अपना आलीशान मकान बनवा रखा था, जिस में वह पत्नी आशा, 2 बेटों दिनेश यादव उर्फ पहलवान और राकेश यादव के साथ रहते थे. उस ने करीब 40 लाख रुपए जरूरतमंदों को 10 से 15 प्रतिशत ब्याज पर दे रखा था.

इसी ब्याज की ही कमाई से रामाश्रय ने करोड़ों रुपए का प्लौट खरीद कर अपना यह आलीशान मकान तो बनाया ही था, एक फार्महाउस भी बनवा रखा था. उस का मकान और फार्महाउस आमनेसामने थे. फार्महाउस में उस ने भैंसें पाल रखी थीं, जिन का दूध बेच कर भी वह मोटी कमाई कर रहा था. यही नहीं, कुसुम्ही में 20 बीघे जमीन भी खरीद रखी थी, जिस पर खेती करवाता था. इन सब के अलावा वह प्रौपर्टी में भी पैसा लगाता था. एक तरह से वह बहुधंधी आदमी  था. उस के इन कारोबारों में उस का छोटा बेटा राकेश उस की मदद करता था.

रामाश्रय यादव को घर से गए 3 घंटे से ज्यादा हो गया और न ही उस का फोन आया और न ही वह आया तो आशा को चिंता हुई. उस ने राकेश से कहा, ‘‘अपने पापा को फोन कर के पूछो कि उन्हें आने में अभी कितनी देर और लगेगी. इस समय वह कहां हैं?’’

राकेश ने रामाश्रय को फोन किया तो पता चला कि उस का फोन बंद है. यह बात उसे अजीब लगी, क्योंकि ऐसा कभी नहीं होता था. राकेश की समझ में यह बात नहीं आई तो मां से कह कर वह अपनी मोटरसाइकिल से गामा यादव के घर के लिए निकल पड़ा. गामा के घर की दूरी 6 किलोमीटर के आसपास थी. वह अभिषेकनगर, शिवपुर, नहर कालोनी में रहता था. यह इलाका थाना कैंट के अंतर्गत आता था. गामा यादव तो नौकरी की वजह से बाहर रहता था, यहां उस की पत्नी मंजू बच्चों के साथ रहती थी. मंजू से रामाश्रय के अच्छे संबंध थे, जिस की वजह से वह अकसर उस के यहां आताजाता रहता था.

करीब 20 मिनट में राकेश मंजू के यहां पहुंच गया. उस ने घंटी बजाई तो मंजू ने ही दरवाजा खोला. उतनी रात को अपने यहां राकेश को देख कर वह चौंकी. उस ने कहा, ‘‘आओ, अंदर आओ. कहो, क्या बात है?’’

‘‘आप के यहां पापा आए थे, अभी तक लौटे नहीं. उन का फोन भी बंद है.’’

वह तो मेरे यहां दोपहर में आए थे. पैसों का हिसाबकिताब करना था, ले कर तुरंत चले गए थे.’’ मंजू ने कहा.

मंजू के इस जवाब से राकेश हैरान रह गया, क्योंकि घर से निकलते समय उस के पापा ने इन्हीं के यहां आने की बात कही थी. जबकि यह कह रही थी कि पापा इस के यहां दोपहर में आए थे और हिसाबकिताब कर के पैसे ले कर चले गए थे. वह क्या कहता, बिना कुछ कहेसुने ही बाहर से लौट आया. घर लौट कर उस ने सारी बात मां को बताई तो आशा का दिल घबराने लगा.

मां की हालत देख कर राकेश ने कहा, ‘‘आप परेशान मत होइए, फोन कर के अन्य परिचितों से पूछता हूं. हो सकता है किसी के घर जा कर बैठ गए हों. बातचीत में उन्हें समय का खयाल ही न हो.’’

राकेश ने लगभग सभी जानपहचान वालों को फोन कर के पिता के बारे में पूछ लिया. लेकिन कहीं से उसे कोई जानकारी नहीं मिली. अब तक काफी रात हो गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी रात गए वह कहां जा कर पिता को ढूंढे. किसी तरह रात बिता कर सुबह होते ही राकेश पिता को ढूंढ़ने के लिए निकल पड़ा.

सुबह भी वह सब से पहले मंजू के ही घर गया. इस बार भी मंजू ने वही जवाब दिया, जो रात में दिया था. इस के बाद वह पिता को जगहजगह ढूंढ़ने लगा. शाम होतेहोते उस के किसी परिचित ने बताया कि थाना झंगहा पुलिस ने नया बाजार स्थित मंदिर के पास से एक मोटरसाइकिल लावारिस स्थिति में खड़ी बरामद की है. जा कर देख लो, कहीं वह उस के पिता की तो नहीं है.

अब तक राकेश के कुछ दोस्त भी उस की मदद के लिए आ गए थे. वह अपने दोस्तों के साथ थाना झंगहा जा पहुंचा. राकेश ने मोटरसाइकिल देखी तो वह वही थी, जो पिछली शाम उस के पिता ले कर निकले थे. उस ने डिक्की देखी तो उस में वह डायरी नहीं थी, जो उस के पिता उस में रख कर ले गए थे. डायरी न पा कर उसे लगा कि उस के पापा के साथ अवश्य कोई अनहोनी हो चुकी है.

अगले दिन 14 नवंबर, 2013 की सुबह राकेश अपने दोस्तों के साथ थाना कोतवाली शाहपुर पहुंचा. कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव को पूरी बात बताई तो कोतवाली प्रभारी ने उस से एक तहरीर ले कर रामाश्रय यादव के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

मुकदमा दर्ज कराने के बाद कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव ने रामाश्रय यादव का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवाने के साथ उस की काल डिटेल्स निकलवा ली. काल डिटेल्स में अंतिम फोन अभिषेकनगर, शिवपुर, नहर कालोनी की रहने वाली मंजू यादव के मोबाइल से किया गया था.

मंजू यादव के यहां ही जाने की बात कह कर घर से निकले थे. उसी के बाद से उस का पता नहीं चल रहा था. मोबाइल भी बंद हो गया था. पुलिस को मंजू पर शक हुआ तो उस के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया. क्योंकि पुलिस को लग रहा था कि रामाश्रय के अपहरण में कहीं न कहीं से उस का हाथ जरूर है.

2 दिनों तक उस नंबर पर न तो किसी का फोन आया और न ही उसी ने किसी को फोन किया. 17 नवंबर, 2013 की सुबह मंजू ने अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के रामाश्रय यादव के बारे में कुछ इस तरह की बातें कीं कि जैसे उस के गायब होने के बारे में उसे जानकारी है.

मामला एक संभ्रांत औरत से जुड़ा था, इसलिए पुलिस ने सारे साक्ष्य जुटा कर ही उस पर हाथ डालने का विचार किया. पुलिस की एक टीम बनाई गई, जिस में सिपाही राम विनय सिंह, संजय पांडेय, रामकृपाल यादव, अजीत सिंह, महिला सिपाही पिंकी सिंह और इंदु बाला को शामिल किया गया. इस टीम का नेतृत्व कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव कर रहे थे.

गुप्त रूप से सारी जानकारियां जुटा कर उपेंद्र कुमार ने रात को अपनी टीम के साथ मंजू के घर छापा मारा. घर पर उस समय मंजू और उस का बेटा सौरभ था. उतनी पुलिस देख कर मंजू सकपका गई. दरवाजा खुलते ही पुलिस घर में घुस कर तलाशी लेने लगी. पीछे के कमरे की तलाशी लेते समय पुलिस ने देखा कि कमरे का आधा फर्श इस तरह है, जैसे गड्ढा खोद कर पाटा गया हो, जबकि बाकी का आधा हिस्सा लीपा हुआ था.

दरअसल मकान का फर्श अभी बना नहीं था. एक सिपाही ने उस पर पैर मारा तो वह जमीन में धंस गया. संदेह हुआ तो पुलिस ने लोहे की सरिया का टुकड़ा उठा कर उस में घुसेड़ा तो वह आसानी से घुसता चला गया. इस के बाद मंजू से पूछताछ की गई तो पहले वह इधरउधर की बातें करती रही. लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए पुलिस को बताया कि रामाश्रय यादव की हत्या कर के उसी की लाश यहां गाड़ी गई है.

कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव ने मंजू को हिरासत में ले कर इस बात की सूचना क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव को दे दी. इस के बाद नम्रता श्रीवास्तव, पुलिस अधीक्षक (नगर) परेश पांडेय, सिटी मजिस्ट्रेट रामकेवल तिवारी, इंसपेक्टर भंवरनाथ चौधरी और इंजीनियरिंग कालेज चौकी के चौकीप्रभारी भी वहां पहुंच गए.

सिटी मजिस्ट्रेट रामकेवल तिवारी की उपस्थिति में फर्श की खुदाई कर के लाश बरामद की गई. पुलिस ने मृतक रामाश्रय के बेटे राकेश को फोन कर के बुलवा लिया था. लाश देखते ही वह बिलखबिलख कर रोने लगा था. लाश की शिनाख्त हो ही गई थी. पुलिस ने अपनी औपचारिक काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

मंजू यादव को हिरासत में ले कर पुलिस थाने ले आई. थाने में एसपी (सिटी) परेश पांडेय और क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव की उपस्थिति में उस से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में मंजू ने रामाश्रय यादव की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस तरह थी.

40 वर्षीया मंजू यादव मूलरूप से गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला अभिषेकनगर, शिवपुर की नहर कालोनी की रहने वाली थी. उस के परिवार में पति गामा यादव और 2 बेटे, सूरज कुमार तथा सौरभ कुमार थे. करीब 5 साल पहले गामा यादव सेवानिवृत्ति हुए तो उन्हें झारखंड के बोकारो में नौकरी मिल गई. वह वहां अकेले ही रहते थे. उन की पत्नी मंजू गोरखपुर में रह कर दोनों बच्चों को पढ़ा रही थी.

अभिषेकनगर में रहने से पहले गामा यादव का परिवार नंदानगर दरगहिया में किराए के मकान में रहता था. वहीं रहते हुए उन की मुलाकात रामाश्रय यादव से हुई तो जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यह दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि दोनों परिवारों का एकदूसरे के यहां खूब आनाजाना हो गया. रामाश्रय यादव की शादी तो हो ही गई थी, वह 2 बेटों का बाप भी बन गया था. जबकि गामा यादव की नईनई शादी हुई थी. यह लगभग 20-25 साल पहले की बात है.

गामा यादव के ड्यूटी पर जाने के बाद घर में मंजू यादव ही रह जाती थी. ऐसे में कभीकभार घूमतेफिरते रामाश्रय उस के घर पहुंच जाता तो घंटों उस से बातें करता रहता था. बातें करतेकरते ही उस के मन में दोस्त की बीवी के प्रति आकर्षण पैदा होने लगा.

मंजू 2 बेटों सूरज और सौरभ की मां बन गई थी. 2 बेटों के जन्म के बाद उस के शरीर में जो निखार आया, वह रामाश्रय को और बेचैन करने लगा. मंजू के आकर्षण में बंधा वह जबतब उस के घर पहुंचने लगा. लेकिन अब वह उस के घर खाली हाथ नहीं जाता था. बच्चों के बहाने वह कुछ न कुछ ले कर जाता था. मंजू और उस के बीच हंसीठिठोली होती ही थी, इसी बहाने वह उस से अश्लील मजाक करते हुए शारीरिक छेड़छाड़ भी करने लगा. मंजू ने कभी विरोध नहीं किया, इसलिए उस की हिम्मत बढ़ती गई और फिर एक दिन उस ने उसे बांहों में भर लिया.

ऐसे में न तो रामाश्रय ने घरपरिवार की चिंता की न मंजू ने. उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि जब इस बारे में घर वालों को पता चलेगा तो इस का परिणाम क्या होगा. दोनों ही किसी तरह की परवाह किए बगैर एक हो गए. इस के बाद उन का यह लुकाछिपी का खेल लगातार चलने लगा. दोनों ही यह खेल इतनी सफाई से खेल रहे थे कि इस की भनक न तो गामा को लगी थी और न ही आशा को.

गामा नंदानगर में किराए के मकान में रहता था. बच्चे बड़े हुए तो जगह छोटी पड़ने लगी. रामाश्रय सूदखोरी के साथ प्रौपर्टी का भी काम करता था. इसी वजह से मंजू ने उस से प्लौट दिलाने की बात कही तो रामाश्रय ने उसे अभिषेकनगर का यह प्लौट दिला दिया. प्लौट खरीदने का पैसा भी रामाश्रय ने ही दिया. लेकिन गामा ने उस का यह पैसा धीरेधीरे अदा कर दिया था.

रामाश्रय ने मंजू को प्लौट ही नहीं दिलवाया, बल्कि उस का मकान भी बनवा दिया था. मकान बनने के बाद मंजू बच्चों को ले कर अपने मकान में आ गई. यह 18 साल पहले की बात है. उसी बीच गामा नौकरी से रिटायर हो गया तो उसे झारखंड के बोकारो में बढि़या नौकरी मिल गई, जहां वह अकेला ही रह कर नौकरी करने लगा.

गामा के आने से जहां मंजू और रामाश्रय को मिलने में दिक्कत होने लगी थी, वहीं उस के बोकारो चले जाने के बाद उन का रास्ता फिर साफ हो गया. सूरज और सौरभ बड़े हो गए थे. लेकिन वे स्कूल चले जाते थे तो मंजू घर में अकेली रह जाती थी. उसी बीच रामाश्रय उस से मिलने आता था. मंजू को पता ही था कि रामाश्रय ब्याज पर पैसे देता है. उस के मन में आया कि क्यों न वह भी अपने शारीरिक संबंधों को कैश कराए. वह रामाश्रय से रुपए ऐंठने लगी. उन पैसों को वह 12 प्रतिशत की दर से ब्याज पर उठाने लगी. इसी तरह उस ने रामाश्रय से करीब 15 लाख रुपए ऐंठ लिए.

15 लाख रुपए कोई छोटी रकम नहीं होती. रामाश्रय मंजू से अपने पैसे वापस मांगने लगा. जबकि मंजू देने में आनाकानी करती रही. रामाश्रय को लगा कि उस के पैसे डूबने वाले हैं तो उस ने थोड़ी सख्ती की. किसी तरह मंजू ने 10 लाख रुपए तो वापस कर दिए, लेकिन 5 लाख रुपए उस ने दबा लिए. उस ने कह भी दिया कि अब वह ये रुपए नहीं देगी. इस के बाद रामाश्रय ने उस से पैसे मांगने छोड़ दिए.

12 नवंबर, 2013 की शाम 6 बजे मंजू ने फोन कर के रामाश्रय को अपने घर बुलाया, क्योंकि उस समय वह घर में अकेली थी. उस के दोनों बेटे कहीं घूमने गए थे. घर से निकलते समय रामाश्रय ने पत्नी को बता दिया था कि वह मंजू के यहां हिसाबकिताब करने जा रहा है. उसे लौटने में देर हो सकती है, इसलिए वह उस का इंतजार नहीं करेगी.

जिस समय रामाश्रय मंजू के यहां पहुंचा, सौरभ आ चुका था. उसे देख कर दोनों अचकचा गए. तब रामाश्रय ने उसे बाहर भेजने के लिए कुछ रुपए दे कर कोई सामान लाने को कहा. उस के जाते ही दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. वह वासना की आग ठंडी कर ही रहे थे कि सूरज आ गया. दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजे की झिर्री से झांका तो उसे अंदर से खुसुरफुसुर की आवाज आती सुनाई दी.

सूरज दीवाल के सहारे छत पर चढ़ गया. सीढि़यों से उतर कर वह कमरे में पहुंचा तो मां को रामाश्रय के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर उसे गुस्सा आ गया. सूरज को देख कर मंजू हड़बड़ा कर उठी. वह कुछ करती, उस के पहले ही सूरज ने गुस्से में फावड़ा उठा कर रामाश्रय के सिर पर वार कर दिया.

एक ही वार में रामाश्रय का सिर फट गया और वह बिस्तर पर लुढ़क गया. मंजू डर गई. वह हड़बड़ा कर बिस्तर से नीचे कूद गई. तब तक सौरभ भी आ गया. वह भी छत के रास्ते नीचे आया था. रामाश्रय को खून में लथपथ देख कर वह बुरी तरह से डर कर रोने लगा. मंजू ने उसे डांट कर चुप कराया.

जो होना था, सो हो चुका था. तीनों डर गए कि अब उन्हें जेल जाना होगा. पुलिस से बचने के लिए मंजू ने बेटों के साथ मिल कर कमरे के अंदर गड्ढा खोदा और रामाश्रय की लाश को उसी में दबा दिया. इस के बाद अपने एक रिश्तेदार की मदद से सूरज उस की मोटरसाइकिल को थाना झंगहा के अंतर्गत आने वाले नया बाजार के मंदिर के पास खड़ी कर आया. वहां से लौट कर वह उसी दिन पिता के पास बोकारो चला गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने मंजू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. 21 नवंबर, 2013 को पुलिस ने सूरज को हिरासत में ले कर बच्चों की अदालत में पेश किया, जहां से उसे बालसुधार गृह भेज दिया गया.

इस मामले मे मृतक के बेटे राकेश का कहना है कि उस के पिता के मंजू से अवैध संबंध बिलकुल नहीं थे. पैसे लौटाने न पड़ें, इस के लिए उस ने उस के पिता की हत्या की है. यही नहीं, घटना वाले दिन उस के पिता के पास 2 लाख रुपए के चैक और 2 लाख रुपए नकद थे, वे भी गायब हैं. उन का मोबाइल भी नहीं मिला.

कथा लिखे जाने तक न तो मंजू की जमानत हुई थी, न सूरज की. गामा यादव ने उन की जमानत की कोशिश भी नहीं की थी. शायद उन्होंने बेटे और पत्नी को उन के किए की सजा भुगतने के लिए छोड़ दिया है.

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 3

पुलिस एक महीने तक इस मामले की जांचपड़ताल में उलझी रही. लेकन नतीजा शून्य ही रहा. नितिन ने अलीगढ़ से पढ़ाई की थी. हत्या वाली रात जो युवक उस के बेड के पास देखा गया था उस ने भी खुद को अलीगढ़ का ही रहने वाला बताया था. शायद अलीगढ़ से ही कोई क्लू मिल जाए यह सोच कर एसआई संजीव कुमार शर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम अलीगढ़ भेजी गई.

पुलिस ने वहां पूछताछ भी की. लेकिन नितिन की किसी रंजिश के बारे में पता नहीं चल सका. कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस टीम वापस लौट आई. नितिन की हत्या पुलिस के लिए पहेली बन गई थी. हत्या का खुलासा नहीं हो सका तो नितिन के घर वालों ने डीआईजी के. सत्यनारायण से मुलाकात कर के हत्यारे को पकड़ने की मांग की. इस मामले को ले कर पुलिस की किरकिरी हो रही थी. पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे थे. डीआईजी के. सत्यनारायण और एसएसपी ओंकार सिंह इस मामले को ले कर काफी परेशान थे.

अस्पताल में हुई हत्या का यह केस पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. उन्होंने एसपी (सिटी) ओमप्रकाश, सीओ विकास त्रिपाठी और सर्विलांस टीम के साथ मीटिंग कर के जांच की समीक्षा की और पूरे मामले की नए सिरे से जांच के निर्देश दिए. इस बीच थाना मैडिकल प्रभारी का स्थानांतरण कर के बचन सिंह सिरोही को इंचार्ज बना दिया गया था.

नए सिरे से जांच की कड़ी में पुलिस ने नितिन के मोबाइल के इंटरनेशनल मोबाइल इक्विपमेंट आईडेंटिटी (आईएमइआई) नंबर के जरिए पता करने की कोशिश की कि क्या उस मोबाइल में और भी सिमकार्ड इस्तेमाल किए गए थे. इस से पुलिस को 2 और नंबर मिल गए. उन नंबरों का इस्तेमाल हत्या से पहले किया जाता रहा था. ये दोनों नंबर भी नितिन के ही नाम पर थे. उन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई गई. पता चला कि उन में से एक नंबर ऐसा था जिस पर अकसर बातचीत और एसएमएस होते थे.

पुलिस ने उस नंबर की जानकारी जुटाई तो वह नंबर नितिन के गांव की एक लड़की पूजा (परिवर्तित नाम) का निकला. इस तरह कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पुलिस पूजा तक पहुंच गई. पुलिस ने पूजा के बारे में सब से पहले नितिन के पिता से पूछताछ की. उन्होंने यह तो बताया कि पूजा उन्हीं के गांव की है पर उस के नितिन से कैसे रिश्ते थे, इस बारे में रामबीर कुछ नहीं जानते थे. पुलिस ने पूजा से पूछताछ की तो पता चला उस से नितिन के गहरे दोस्ताना संबंध थे. नितिन की हत्या किस ने की, इस बारे में वह कुछ नहीं जानती थी.

नितिन के 2 नंबरों की डिटेल्स में 2 और नंबर भी मिले थे. उन नंबरों  की भी जांच की गई. उन में एक नंबर जिला मुजफ्फरनगर के थाना चरथावल क्षेत्र के गांव कुलहेड़ी निवासी अध्यापक मखदूम अली के बेटे मोहम्मद वासिफ का था और दूसरा नितिन के ही गांव के महेंद्र सिंह के बेटे सुनील कुमार का. महेंद्र कुमार सेवानिवृत्त अध्यापक थे.

यह पता चलने पर पुलिस ने एक बार फिर नितिन के पिता से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सुनील नितिन का दोस्त था. उस ने अलीगढ़ से बीफार्मा किया था. उसी की मदद से अलीगढ़ में नितिन का दाखिला कराया गया था. दोनों अलीगढ़ में 1 साल साथसाथ रहे थे, बाद में सुनील की नौकरी हिमाचल प्रदेश में लग गई थी और नितिन पढ़ाई के लिए मेरठ चला गया था.

रामबीर चौहान को सुनील पर कोई शक नहीं था. वह उसे नितिन का अच्छा दोस्त बता रहे थे. फिर भी पुलिस को लग रहा था कि हत्या के तार सुनील से जुड़े हो सकते हैं. इस की वजह यह थी कि अस्पताल में देखे गए संदिग्ध युवक का हुलिया सुनील से मिलताजुलता था. लेकिन पुलिस बिना किसी पुख्ता सुबूत के सुनील पर हाथ नहीं डालना चाहती थी. वैसे भी वह हिमाचल में था.

सुबूतों के चक्कर में पुलिस ने उस के मोबाइल की घटना वाले दिन की लोकेशन पता लगाई, तो उस के फोन की लोकेशन हिमाचल की ही मिली. लेकिन इस में एक पेंच यह था कि उस के मोबाइल से 24 और 25 अक्तूबर को कोई फोन नहीं किया गया था. जबकि इन 2 तारीखों के आगेपीछे मोबाइल का इस्तेमाल हुआ था.

उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर चेक की गई, तो पुलिस चौंकी. क्योंकि सुनील भी अपने गांव की लड़की पूजा के लगातार संपर्क में रहा था. नितिन की तरह वह भी पूजा से बात करता था और उसे एसएमएस भेजा करता था. इस जानकारी ने पुलिस को सोचने पर मजबूर कर दिया.

नितिन के मोबाइल से वासिफ का जो दूसरा नंबर मिला था पुलिस ने उस की भी काल डिटेल्स और लोकेशन हिस्ट्री हासिल की. इस से पुलिस को एक महत्त्वपूर्ण तथ्य मिल गया. 24 व 25 अक्तूबर को उस के नंबर की लोकेशन कैंट रेलवे स्टेशन, जहां हादसा हुआ था और मैडिकल कालेज की पाई गई. यह बात भी साफ हो गई कि इस बीच वासिफ और सुनील की लगातार बातें होती रही थीं. इस की गवाही दोनों की काल डिटेल्स दे रही थीं. इन तथ्यों के मद्देनजर पुलिस को नितिन की हत्या की कहानी सुनील, वासिफ और पूजा के इर्दगिर्द घूमती नजर आने लगी.

मेरठ पुलिस ने मुजफ्फरनगर पुलिस की मदद से वासिफ के बारे में खुफिया जानकारी जुटाई तो पता चला कि उस ने भी अलीगढ़ से बीफार्मा किया था. इतना ही नहीं उस ने कुछ महीने हिमाचल प्रदेश में नौकरी भी की थी, लेकिन फिलहाल वह मेरठ में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. इस से पुलिस को शक हुआ कि नितिन की हत्या में दोनों का हाथ है. पुलिस ने दोनों के नंबर सर्विलांस पर लगा दिए.

इस बीच नितिन की हत्या हुए एक महीना बीत गया. बहरहाल, पुलिस की मेहनत रंग लाई. दिसंबर के पहले सप्ताह में सुनील और वासिफ के फोन की लोकेशन मेरठ में मिलने लगी. इस पर सीओ विकास त्रिपाठी ने उन की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में थानाप्रभारी बचन सिंह सिरोही, एसआई संजीव कुमार शर्मा, श्रवण कुमार, कांस्टेबल नरेश कुमार, सौरभ कुमार, बंटी कुमार और तेजपाल सिंह को शामिल किया गया.

7 दिसंबर की दोपहर पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि दोनों वांछित शास्त्रीनगर इलाके में मौजूद हैं. इस सूचना के आधार पर पुलिस ने दोनों को एल ब्लाक तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद पुलिस दोनों को थाने ले आई. दोनों से पूछताछ की गई, तो उन्होंने नितिन की हत्या में अपना हाथ होने से इनकार कर दिया. लेकिन जब तथ्यों के आधार पर उन से सख्ती से पूछताछ की गई, तो दोनों ऐसे मास्टरमाइंड कातिल निकले जिन्होंने न सिर्फ पुलिस जांच को भटका दिया था बल्कि पूरे 1 महीना 12 दिन तक इस में सफल भी रहे थे.

प्रेम में दांव पर जिंदगी

15 साल की प्रिया लखनऊ के बंथरा कस्बे से कुछ दूर दरोगाखेड़ा के एक प्राइवेट स्कूल में 10वीं में पढ़ती थी. उस के पिता रमाशंकर गुप्ता की जुराबगंज में हार्डवेयर की दुकान थी. प्रिया के अलावा रमाशंकर गुप्ता के 2 और बच्चे थे, जो अलगअलग स्कूलों में पढ़ रहे थे.

प्रिया देखने में सुंदर और मासूम सी थी. घर में सब लोग उसे प्यार से मुन्नू कहते थे. घर के बच्चों में वह सब से बड़ी थी, इसलिए मातापिता उसे कुछ ज्यादा ही प्यार करते थे. घर वालों के इसी लाडप्यार में वह कुछ जिद्दी सी हो गई थी.

स्कूल में प्रिया की दोस्ती कुछ ऐसी लड़कियों से थी, जो खुद को ज्यादा मौडर्न समझने के चक्कर में प्यारमोहब्बत में पड़ गई थीं. उस की कई सहेलियों के बौयफ्रेंड थे, जिन से वे उस के सामने ही बातें करती थीं. प्रिया इन बातों से दूर रहती थी. वह अपना ज्यादा ध्यान पढ़ाई पर देती थी. लेकिन कहते हैं कि साथ रहने वाले पर थोड़ाबहुत संगत का असर पड़ ही जाता है.

सुप्रिया ने कहा, ‘‘प्रिया, तू हमारी बातें तो खूब सुनती है, कभी अपने बारे में नहीं बताती. तेरा कोई बौयफ्रेंड नहीं है क्या?’’

‘‘नहीं, मैं इन चक्करों में नहीं पड़ती.’’

‘‘अच्छा, और मोबाइल.’’ आरती ने चौंकते हुए सवाल किया.

‘‘नहीं, अभी तो मोबाइल भी नहीं है. मैं तो तुम लोगों से अपनी मां के मोबाइल से ही बातें करती हूं.’’

‘‘अरे, किस जमाने में जी रही है तू. यार, यहां लोगों के पास स्मार्टफोन हैं, जिस से वे फेसबुक और वाट्सअप का उपयोग कर रहे हैं और एक तू है कि तेरे पास मोबाइल भी नहीं है.’’ आरती ने उपेक्षा से कहा.

सहेली की बात प्रिया को भी चुभी. उसे लगा कि वह अपने स्कूल की सभी लड़कियों में सब से पीछे है. उस का न तो कोई बौयफ्रेंड है और न ही उस के पास कोई मोबाइल.

वह यह सब सोच ही रही थी कि उस की दूसरी सहेली बोली, ‘‘प्रिया यह बता कि कभी तूने खुद को आईने में गौर से देखा है? जानती है जितनी तू सुंदर और समझदार है, तुझे तमाम लड़के मिल जाएंगे. उन में जो सही लगे, उसे बौयफ्रैंड बना लेना. फिर देखना, मोबाइल वह खुद ही दिला देगा.’’

सहेलियों की बातों ने प्रिया पर असर डालना शुरू कर दिया. वैसे प्रिया महसूस करती थी कि जब वह स्कूल आतीजाती है तो कई लड़के उसे चाहत भरी नजरों से देखते हैं. लेकिन उस ने कभी उन की तरफ ध्यान नहीं दिया. अब उन मनचलों के चेहरे उस के दिमाग में घूमने लगे. वह यह सोचने लगी कि वह किस लड़के से दोस्ती करे.

प्रिया के स्कूल आनेजाने वाले रास्ते में एक लड़का हमेशा बनठन कर खड़ा रहता था. वह उम्र में उस से कुछ बड़ा था. प्रिया को और लड़कों के बजाए वह लड़का अच्छा लगा. अगले दिन प्रिया जब घर से स्कूल के लिए निकली तो रास्ते में उसे वही लड़का मिल गया. प्रिया उसे देख कर मुसकराई तो उस लड़के की जैसे बांछे खिल गईं. वह समझ गया कि लड़की की तरफ से उसे ग्रीन सिग्नल मिल गया है.

जल्दी ही वह लड़का स्कूल जाते समय मोटरसाइकिल से प्रिया के पीछेपीछे जाने लगा और उस से बातें करने का मौका तलाशने लगा. एक दिन मौका मिला तो उस ने प्रिया से बात की और उसे बताया कि उस का नाम रज्जनलाल है, वह हमीरपुर गांव का रहने वाला है. हमीरपुर बंथरा के पास ही था. इस के बाद दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई. कुछ दिनों बाद रज्जनलाल ने प्रिया के सामने प्यार का इजहार किया तो उस ने हंसी में जवाब दे कर सहमति जता दी. इस के बाद दोनों स्कूल आनेजाने के रास्ते में मिलनेजुलने लगे.

रज्जनलाल टैंपो चलाता था. प्रिया को जब उस के काम के बारे में पता चला तो उस ने रज्जनलाल को टैंपो चलाने के बजाए कोई दूसरा काम करने की सलाह दी. बात प्रेमिका की पसंदगी की थी, इसलिए उस ने अगले दिन से ही टैंपो चलाना बंद कर दिया और कोई दूसरा काम खोजने लगा. वह चूंकि ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, इसलिए काफी कोशिश के बाद भी उसे दूसरा काम नहीं मिला.

रज्जनलाल को पता था कि प्रिया के पिता रमाशंकर गुप्ता की हार्डवेयर की दुकान है. उन की दुकान पर उस का एक दोस्त काम करता था. उसी की मार्फत उसे जानकारी मिली कि रमाशंकर को अपनी दुकान के लिए एक और लड़के की जरूरत है. रज्जनलाल ने सोचा था कि अगर उन की दुकान पर उसे नौकरी मिल जाती है तो उसे प्रिया से मिलने में आसानी होगी. अपने उसी दोस्त की मार्फत रज्जनलाल ने रमाशंकर गुप्ता से नौकरी के बारे में बात की. फलस्वरूप उन के यहां उसे नौकरी मिल गई.

अगले कुछ दिनों में ही रज्जनलाल ने अपने कामकाज से रमाशंकर पर विश्वास जमा लिया. उन्हें यह पता नहीं था कि उस का उन की बेटी प्रिया के साथ कोई चक्कर चल रहा है. यही वजह थी कि कोई काम होने पर वह उसे अपने घर भी भेज देते थे. घर जाता तो वह प्रिया से भी मिल लेता था.

चूंकि घर पर वह प्रिया से ज्यादा बात नहीं कर पाता था, इसलिए उस ने एक चाइनीज फोन खरीद कर प्रिया को दे दिया. इस के बाद दोनों की रात में फोन पर लंबीलंबी बातें होने लगीं. दिन में वे एकदूसरे को एसएमएस भेज कर काम चलाते. बीतते वक्त के साथ उन के बीच प्यार गहराता जा रहा था. प्यार में फंस कर प्रिया को अपने कैरियर और मांबाप के प्यार की भी परवाह नहीं रह गई थी.

सब ठीक चल रहा था कि एक दिन प्रिया की मां सपना को पता चल गया कि प्रिया का दुकान पर काम करने वाले रज्जनलाल के साथ चक्कर चल रहा है. उन्होंने प्रिया से मोबाइल छीन लिया और पति को सारी बात बता कर रज्जनलाल की दुकान से छुट्टी करवा दी. इस के बाद दोनों का एकदूसरे से संपर्क नहीं हो सका. प्रिया रज्जनलाल को अपने दिल में बसा चुकी थी, इसलिए पाबंदी लगाने के बाद भी वह उसे भुला न सकी.

उधर रज्जनलाल गांव की प्रधान बिमला प्रसाद की कार चलाने लगा था. प्रिया और रज्जन एक बार फिर स्कूल आनेजाने के रास्ते में मिलने लगे. रज्जनलाल के प्यार में पड़ कर प्रिया ने न केवल अपने मातापिता का विश्वास खो दिया था, बल्कि वह अपनी पढ़ाई भी नहीं कर पा रही थी. स्कूल के टीचरों और छात्रों के बीच भी उस के और रज्जनलाल के संबंध के चरचे होने लगे थे.

बेटी की वजह से रमाशंकर की कस्बे में खासी बदनामी होने लगी तो उन्होंने प्रिया को डांटा और उस का स्कूल जाना बंद करा दिया. इस से रमाशंकर को लगा कि अब शायद प्रिया सुधर जाएगी और रज्जनलाल से दूरी बना लेगी. हालांकि वह चाहते थे कि प्रिया अपनी पढ़ाई पूरी कर ले. लेकिन उस के बदम बहक जाने की वजह से उन्हें यह कठोर फैसला लेना पड़ा था.

खुद के ऊपर पाबंदी लगाए जाने पर एक दिन प्रिया ने ज्यादा मात्रा में नींद की गोली खा कर जान देने की कोशिश की. यह बात रज्जनलाल को पता चली तो उसे इस बात का दुख हुआ. वह प्रिया से बात कर के उसे समझाना चाहता था. लेकिन उसे प्रिया से मिलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. ऐसे में उसे अपने उस दोस्त की याद आई, जो प्रिया के पिता की दुकान पर काम करता था.

उस ने एक मोबाइल और सिम कार्ड खरीद कर उस के हाथों प्रिया के पास भिजवा दिया. इस के बाद उन दोनों के बीच फिर से बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इस के साथ ही रज्जनलाल प्रिया का दीदार करने की कोशिश में उस के घर के आसपास मंडराने लगा. रमाशंकर ने जब यह देखा तो उन्होंने इस की शिकायत उस के घर वालों से की. रज्जनलाल की शिकायतें सुनसुन कर उस के घर वाले परेशान हो चुके थे. उन्होंने सोचा कि अगर रज्जनलाल की शादी कर दी जाए तो वह प्रिया को भूल जाएगा.

कुछ दिनों बाद रज्जनलाल के लिए उन्नाव जिले के गांव मटियारी में रहने वाले प्रहलाद की बेटी अलका से शादी का प्रस्ताव आया. लड़की ठीकठाक थी, इसलिए घर वालों ने फटाफट उस की शादी अलका से तय कर दी. चूंकि घर वालों को शादी की जल्दी थी, इसलिए 21 फरवरी, 2014 को शादी का दिन मुकर्रर कर दिया गया. दोनों ही तरफ से शादी की तैयारियां होने लगीं.

उधर घर वालों के दबाव में रज्जनलाल शादी के लिए इनकार तो नहीं कर सका, लेकिन वह मन से इस शादी के लिए तैयार नहीं था. उस के दिल में तो प्रिया ही बसी थी. जैसेजैसे 21 फरवरी नजदीक आ रही थी, उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. इसी चिंता में 19-20 फरवरी की रात उसे नींद नहीं आ रही थी. करीब 12 बजे उस ने प्रिया के मोबाइल पर एसएमएस किया. जिस में लिखा था, ‘हम तेरे बिन अब जी नहीं सकते. हम न खुद किसी के होंगे और तुम को किसी और का होने देंगे.’ दूसरी तरफ से प्रिया ने भी उस का साथ निभाने के वादे के साथ एसएमएस किया.

प्रिया का एसएमएस पाने के बाद रज्जनलाल ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. जिस के बारे में उस ने प्रिया को भी बता दिया.  उस रात प्रिया अपनी मां के पास लेटी थी. बेटी को देख कर मां यह अंदाजा नहीं लगा पाई कि वह उन के विश्वास को तोड़ने की साजिश रच चुकी थी. देर रात जब घर के सब लोग सो गए तो करीब 1 बजे प्रिया छत के रास्ते से निकल कर घर से बाहर आ गई.

योजना के अनुसार रज्जनलाल अपनी मोटरसाइकिल ले कर उस के घर से कुछ दूर आ कर खड़ा हो गया. प्रिया उस के पास पहुंच गई. वहां से दोनों मोटरसाइकिल से लालाखेड़ा चले गए. बंथरा के पास स्थित लालाखेड़ा के टुडियाबाग स्थित प्राथमिक विद्यालय में एनएसएस का शिविर लगा था. इस शिविर में छात्र अपने टीचरों के साथ रुके हुए थे.

20 फरवरी, 2014 की सुबह 7 बजे के वक्त शिविर के कुछ छात्र खाना बनाने के लिए लकड़ी लेने गांव से कुछ दूर एक खेत के नजदीक पहुंचे तो वहां एक लड़की की लाश देख कर उन की चीख निकल गई. लाश औंधे मुंह पड़ी थी.  छात्रों ने यह बात अपने टीचरों को बताई तो उन्होंने इस की सूचना थाना बंथरा पुलिस को दी. थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर  पहुंच गए. तब तक वहां गांव के तमाम लोग एकत्र हो गए थे.

पुलिस ने जब लड़की की लाश सीधी की तो उसे देखते ही लोग चौंक गए. क्योंकि वह बंथरा के ही रहने वाले रमाशंकर गुप्ता की बेटी प्रिया थी. जिस जगह लाश पड़ी थी, वहीं पर एक मोटरसाइकिल खड़ी थी और एक तमंचा भी पड़ा हुआ था. पुलिस लाश का अभी मुआयना कर ही रही थी कि कुछ लोगों ने बताया कि पास के ही एक पेड़ पर एक युवक ने फांसी लगा ली है. उस की लाश महुआ के पेड़ में लटक रही है.

थानाप्रभारी तुरंत उस महुआ के पेड़ के पास पहुंचे. वह पेड़ वहां से लगभग 50 मीटर दूर था. उन्होंने देखा पेड़ में बंधी लाल रंग की चुन्नी से एक युवक की लाश लटक रही है. पुलिस ने जब लाश को नीचे उतरवाया तो लोगों ने उस की शिनाख्त रज्जनलाल के रूप में की. पुलिस को लोगों से यह भी पता चला कि प्रिया और रज्जन का प्रेम संबंध चल रहा था.

2-2 लाशें मिलने की खबर आसपास के गांव वालों को चली तो सैकड़ों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए. प्रिया और रज्जनलाल के घर वाले भी वहां पहुंच चुके थे. थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव ने यह सूचना अपने अधिकारियों को दी तो लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार त्रिपाठी, एसपी (पूर्वी क्षेत्र) राजेश कुमार, एसपी (क्राइम) रविंद्र कुमार सिंह और सीओ (कृष्णानगर) हरेंद्र कुमार भी मौके पर  पहुंच गए.

सभी पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल और लाशों का मुआयना किया. प्रिया की कमर का घाव देख कर लग रहा था कि उस की हत्या वहां पड़े तमंचे से गोली मार कर की गई थी. अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि रज्जनलाल ने पहले प्रिया को गोली मारी होगी और बाद में उस ने खुद को फांसी लगाई होगी. प्रिया की लाश के पास जो मोटरसाइकिल बरामद हुई थी, पता चला कि वह रज्जनलाल की थी.

पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उधर रज्जनलाल के भाई राजकुमार ने आरोप लगाया कि उस के भाई और प्रिया एकदूसरे से प्यार करते थे, इसलिए प्रिया के पिता रमाशंकर ने कुछ लोगों के साथ मिल कर प्रिया और रज्जनलाल की हत्या की है. उस ने इसे औनर किलिंग का मामला बताते हुए आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की मांग की.

रज्जनलाल बंथरा की ग्राम प्रधान विमला कुमार की गाड़ी चलाता था. विमला के पति रिटायर पुलिस आफिसर थे. वह भी थाना पुलिस के ऊपर दबाव डालने लगे तो पुलिस ने राजकुमार की तहरीर पर रमाशंकर और उन के नौकर राजू आदि के खिलाफ भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

दूसरी ओर प्रिया के पिता रमाशंकर का आरोप था कि रज्जनलाल उन की बेटी को बहलाफुसला कर भगा ले गया और उस की गोली मार कर हत्या कर दी. रमाशंकर गुप्ता ने इस संबंध में थानाप्रभारी को एक तहरीर भी दी. इस मामले की जांच थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव खुद कर रहे थे.

20 फरवरी को जब दोनों लाशों का पोस्टमार्टम हुआ तो उस की पूरी वीडियोग्राफी कराई गई, जिस से काररवाई में पारदर्शिता बनी रहे और पुलिस के ऊपर अंगुली न उठे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रज्जनलाल के मरने की वजह फांसी के फंदे के कारण दम घुटना बताया गया. उस के शरीर पर किसी तरह की चोट का कोई निशान नहीं था. सारी हकीकत सामने आ सके इस के लिए एसएसपी प्रवीण कुमार ने एसपी रविंद्र कुमार सिंह को भी इस मामले की जांच में लगा दिया.

रज्जनलाल ने हताशा में यह कदम उठा तो लिया, लेकिन ऐसा करने से पहले उस ने यह नहीं सोचा कि जिस लड़की से अगले ही दिन उस की शादी होने वाली थी, उस पर और उस के घर वालों पर क्या गुजरेगी? अलका को जब पता चला कि उस के होने वाले पति रज्जनलाल ने खुदकुशी कर ली है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस के यहां शादी की जो तैयारियां चल रही थीं, वह मातम में बदल गईं.

पिता प्रहलाद की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे में करें तो क्या करें, ऐसे में लोगों ने उन्हें सलाह दी कि जब शादी की सारी तैयारियां हो ही चुकी हैं तो क्यों न अलका की शादी रज्जनलाल के छोटे भाई राजकुमार से कर दी जाए. प्रहलाद ने जब यह प्रस्ताव राजकुमार के सामने रखा तो उस ने सहमति जता दी. इस पर 20 फरवरी, 2014 को जिस समय रज्जनलाल के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, उसी समय राजकुमार 5 लोगों के साथ अलका से शादी रचाने चला गया.

जांच के बाद पुलिस ने इस मामले को आनर किलिंग की घटना मानने से इनकार कर दिया. कुछ लोगों ने पुलिस की इस बात को झुठलाते हुए पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और कानपुर लखनऊ हाईवे पर जाम लगा दिया. जाम लगाने वालों की पुलिस ने वीडियोग्राफी कराई और बड़ी मुश्किल से समझाबुझा कर जाम खुलवाया. इस के बाद पुलिस ने हाइवे जाम करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

(प्रिया परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)