साधु के वेश में 23 साल बाद मिला कातिल प्रेमी

मौज मजा बन गया सजा – भाग 2

अगले दिन जब डा. अशोक कुमार के लापता होने की खबर अखबारों में छपी तो मऊ पुलिस को लगा कि बरामद कार डा. अशोक कुमार की है, क्योंकि कार का जो नंबर था, उसी नंबर की जेन कार ले कर वह निकले थे. मऊ पुलिस ने कार बरामद होने की सूचना गोरखपुर पुलिस को दी तो गोरखपुर पुलिस डा. अशोक कुमार के घर वालों को साथ ले कर मऊ के थाना दक्षिण टोला जा पहुंची.

घर वालों ने कार की शिनाख्त कर दी. कार डा. अशोक कुमार की ही थी. कार की स्थिति देख कर सभी को यही लगा कि डा. अशोक कुमार के साथ कोई अनहोनी घट चुकी है. अखबारों में छपी खबर पढ़ कर देवरिया पुलिस ने गोरखपुर पुलिस को अपने यहां से एक लाश बरामद होने की सूचना दी.

उसी सूचना के आधार पर महावीर प्रसाद के बड़े दामाद जयराम प्रसाद गोरखपुर पुलिस के साथ देवरिया के थाना खुखुंदू जा पहुंचे. लाश के फोटो और कपड़े आदि देख कर उन्होंने बता दिया कि फोटो और सामान डा. अशोक कुमार के हैं. संदेह तो पहले ही था, अब साफ हो गया कि डा. अशोक कुमार की हत्या हो चुकी है. इस के बाद परिवार में कोहराम मच गया.

मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए इस मामले के खुलासे के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक विजय कुमार ने इस मामले की जांच में चौराचौरी के क्षेत्राधिकारी, एसओजी प्रभारी और क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत के नेतृत्व में 3 टीमें बना कर लगा दीं. चूंकि मामला एससी/एसटी का था, इसलिए इस मामले की जांच क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत को सौंपी गई थी.

क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत ने जब अपने हिसाब से इस मामले की जांच की तो पता चला कि डा. अशोक कुमार काफी आशिकमिजाज आदमी थे. वह अपने कुछ खास मित्रों के साथ पनियारा स्थित वन विभाग के बांकी डाक बंगले में अकसर मौजमस्ती के लिए जाया करते थे. उन्होंने जब उन के खास दोस्तों के बारे में पता किया तो वे थे बीआरडी मैडिकल कालेज के प्रोफेसर डा. सुनील आर्या, कपड़ा व्यवसायी शरीफ अहमद, साइबर कैफे चलाने वाला अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव. इन में एक महिला भी थी, जिस का नाम था अराधना मिश्रा, जो नर्स थी.

इस जानकारी के बाद एस.के. भगत ने डा. सुनील आर्या, शरीफ अहमद, अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव की ही नहीं, डा. अशोक कुमार की भी घटना के दिन एवं उस से 3 दिन पहले की मोबाइल फोन एवं लैंडलाइन फोनों की काल डिटेल्स निकलवा ली. इस से पता चला कि डा. अशोक कुमार के मोबाइल फोन पर अंतिम फोन डा. सुनील आर्या का आया था. उसी के बाद डा. अशोक कुमार गायब हुए थे.

इस से मामले की जांच कर रहे क्षेत्राधिकारी एस.के. भगत को डा. सुनील आर्या पर ही नहीं, उन के अन्य साथियों पर शक हुआ.  इस के बाद शक के आधार पर ही उन्होंने डा. सुनील आर्या, अविनाश चौहान, बलदाऊ यादव और शरीफ अहमद को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. कई चक्रों में की गई पूछताछ में जब घटना का खुलासा हुआ तो जो बातें सामने आईं, वह हैरान करने वाली थीं. पता चला कि डा. अशोक कुमार की हत्या उन के इन्हीं दोस्तों ने की थी.

डा. अशोक कुमार, डा. सुनील आर्या, शरीफ अहमद, अविनाश चौहान और बलदाऊ यादव शराब और शबाब के यार थे. ये सभी एक साथ शराब पीते और एक साथ अय्याशी करते. डा. अशोक कुमार अपने यार डा. सुनील आर्या के घर बैठ कर शराब पीते तो उन की पत्नी रंजना को जरा भी ऐतराज न होता. इसी तरह डा. सुनील डा. अशोक के यहां बैठ कर शराब पीते तो निर्मला भी ऐतराज नहीं करती थी. इस तरह दोनों लगभग रोज ही पार्टी करते थे.

6 जुलाई, 2001 को अविनाश चौहान के भांजे के जन्मदिन की पार्टी थी. उस पार्टी में डा. अशोक कुमार और डा. सुनील आर्या भी आमंत्रित थे. डा. अशोक कुमार तो निर्मला के साथ पार्टी में पहुंच गए, लेकिन डा. सुनील आर्या उस दिन लखनऊ में थे, इसलिए पार्टी में नहीं आ पाए. केवल उन की पत्नी रंजना आर्या ही आई थीं.

पार्टी में पीने की भी व्यवस्था थी. डा. अशोक कुमार पीने के शौकीन थे ही. वह शराब पी रहे थे, तभी किसी ने उन से पूछा, ‘‘डा. साहब, आज अकेलेअकेले ही पार्टी का मजा ले रहे हैं. आप के मित्र नहीं आए हैं क्या?’’

‘‘यार नहीं आया तो क्या हुआ, उस की मैडम तो आई हैं. उस की कमी मैं पूरी कर दूंगा. हम दोनों के बीच सब चलता है.’’ डा. अशोक कुमार ने नशे में कहा.

डा. अशोक कुमार के पास ही अविनाश खड़ा था, इसलिए उस ने ये बातें सुन ली थीं. डा. अशोक कुमार की बात से उसे हैरानी हुई कि यह नया खेल कब से शुरू हो गया? जबकि उन की दोस्ती काफी पुरानी थी. उस ने तो ऐसा कभी नहीं सुना था.

डा. अशोक कुमार की यह बात अविनाश को बहुत बुरी लगी. बुरी लगने की एक वजह यह थी कि वह डा. सुनील आर्या का सगा साढू था. देर रात पार्टी खत्म हुई तो अविनाश को अशोक कुमार की बात उस के दिमाग में घूमने लगी. क्योंकि अशोक ने एक तरह से उस की साली को गाली दी थी. गाली भी ऐसी, जो सहन करने लायक नहीं थी. उस से नहीं रहा गया तो उस ने डा. सुनील को फोन कर के डा. अशोक द्वारा रंजना के बारे में कही गई बात बता दी.

अविनाश की बातें सुन कर डा. सुनील आर्या के तनबदन में आग लग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं अभी गोरखपुर के लिए निकल रहा हूं. उस कमीने ने जो उलटासीधा कहा है, उस की सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए.’’

सवेरा होते ही डा. सुनील आर्या गोरखपुर के लिए रवाना हो गए. उस समय उन के साथ उन की महिला मित्र आराधना मिश्रा के अलावा बलदाऊ यादव भी था. वहीं से उन्होंने शरीफ अहमद को फोन कर के गोरखपुर में मिलने के लिए कहा.

गोरखपुर पहुंच कर डा. सुनील आर्या ने अपने सभी साथियों यानी अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, बलदाऊ यादव और आराधना मिश्रा को विश्वास में ले कर डा. अशोक कुमार की हत्या की योजना बना डाली.

10 जुलाई की रात डा. सुनील आर्या पत्नी रंजना के साथ एक पार्टी में गए. पार्टी में खाना खा कर उन्होंने पत्नी को घर पहुंचाया और खुद कार से निकल पड़े. इस के बाद वह मैडिकल कालेज के उत्तरी गेट पर पहुंचे, जहां नर्स आराधना मिश्रा उन का इंतजार कर रही थी. आराधना को कार में बैठा कर उन्होंने डा. अशोक कुमार को फोन किया, ‘‘भई, आज रात का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘आज तो कोई प्रोग्राम नहीं है.’’

डा. अशोक कुमार ने कहा तो डा. सुनील आर्या ने कहा, ‘‘सोच रहा हूं, आज बढि़या सा प्रोग्राम रखा जाए, जिस में सब कुछ हो. तुम कहो तो आराधना मिश्रा को बुला लूं?’’

डा. अशोक कुमार भला क्यों मना करते. उन्होंने हामी भर दी. इस तरह डा. सुनील आर्या जो चाहते थे, वह हो गया.  डा. अशोक कुमार से बात करने के बाद डा. सुनील आर्या ने शरीफ और अविनाश को फोन कर के बुला लिया. शरीफ अपनी इंडिका कार से उस के यहां पहुंच गया.

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 2

राहुल के अनुसार उस युवक की उम्र 20-22 साल थी और वह आसमानी रंग की कमीज पहने हुए था. पुलिस ने डा. हर्षवर्धन से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उस युवक को उन्होंने 3 बजे देखा था. उस वक्त वह बेहोश जरूर था लेकिन जीवित था. इस का मतलब उस युवक की हत्या 3 बजे के बाद की गई थी. पुलिस ने वार्ड में भरती मरीजों के अलावा  उन के तीमारदारों से भी पूछताछ की.

तीमारदार रविंद्र ने ही सब से पहले उस युवक की गरदन से खून बहते देखा था और उसी ने दूसरों को यह बात बताई थी. इसलिए वह इस मामले की महत्त्वपूर्ण कड़ी था. उस के मुताबिक युवक के बिलकुल बराबर वाले बेड नंबर-11 पर उस की मरीज बेबी सो रही थी. बेड नंबर-9 खाली था इसलिए वह उस पर जा कर लेट गया था. बीचबीच में वह देखभाल के लिए बेबी के बेड के पास चक्कर लगाने चला जाता था.

पुलिस के पूछने पर रविंद्र ने बताया कि बीती शाम उस ने एक युवक को वहां घूमते देखा था. वह युवक आधे मुंह पर चादर लपेटे हुए था. चूंकि ठंड पड़ रही थी इसलिए उस ने उस पर कोई शक नहीं किया था. रविंद्र के पूछने पर उस ने बताया था कि उस का नाम सचिन है और वह घायल की देखभाल के लिए उस के साथ है. वह खुद को अलीगढ़ का रहने वाला बता रहा था.

एंबुलेंस चालक ने संदिग्ध युवक का जो हुलिया बताया था वह रविंद्र द्वारा बताए गए हुलिए से मैच नहीं कर रहा था. इमरजेंसी में घूमने वाला वह अज्ञात युवक ही शक के दायरे में था क्योंकि घटना के बाद से वह लापता था. मैडिकल कालेज 149.48 एकड़ में फैला था. वहां 24 घंटे लोगों की आवाजाही रहती थी. परिसर में छात्रछात्राओं के छात्रावास तो थे ही साथ ही विभिन्न वार्डों में हर वक्त सैकड़ों मरीज और उन के तीमारदार भी मौजूद रहते थे. परिसर के अंदर ही मेडीकल पुलिस थाना भी था. ऐसे में कौन कब आया और कत्ल कर के कैसे चुपचाप निकल गया यह पता लगाना आसान नहीं था.

न तो मृतक की शिनाख्त हो पा रही थी और न ही पुलिस को हत्या की वजह पता चल पा रही थी. कातिल के शातिराना तरीके को ले कर पुलिस हैरत में थी. उसे लग रहा था कि हत्यारे ने पहले उस युवक को ट्रेन से गिरा कर मारने की कोशिश की होगी ताकि यह हादसा लगे. जब वह बच गया, तो कातिल उस का पीछा करता रहा और मौका मिलते ही उस ने हत्या को अंजाम दे दिया.

उस का मकसद हर हाल में उस की हत्या करना था. पुलिस ने मृतक के शव का पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और हत्या का केस दर्ज कर लिया. डीआईजी के. सत्यनारायण से ले कर एसएसपी ओंकार सिंह और सीओ विकास त्रिपाठी तक इस मामले को ले कर परेशान थे.

वारदात की गंभीरता को देखते हुए सीओ विकास त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया गया ताकि जल्दी से जल्दी इस केस की तह तक पहुंचा जा सके.

जांच आगे बढ़ाने के लिए मृतक की शिनाख्त जरूरी थी. इस के लिए जिले के अन्य थानों से पता किया गया, लेकिन कहीं से किसी युवक के लापता होने की सूचना नहीं मिली. इसलिए पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद युवक के शव को शवगृह में सुरक्षित रखवा दिया.

इत्तफाक से अगले दिन ही मृतक की शिनाख्त हो गई. एक व्यक्ति ने कुछ लोगों के साथ अस्पताल आ कर बताया कि संभवत: मृतक उस का बेटा था. डा. सुभाष सिंह ने उसे पोस्टमार्टम हाउस ले जा कर शव दिखाया, तो वह फूटफूट कर रोने लगा. मृतक की पहचान हो गई है, यह सूचना मिलते ही पुलिस अस्पताल आ गई. पता चला मृतक जिला अमरोहा की तहसील मंडी धनौरा क्षेत्र के ग्राम जटपुरा निवासी रामबीर चौहान का बेटा नितिन चौहान था.

एसएसपी ओंकार सिंह और सीओ विकास त्रिपाठी ने मृतक के पिता रामबीर को सांत्वना दे कर उस से पूछताछ की. पुलिस के पूछने पर रामबीर सिंह ने बताया कि नितिन अपने रूम पार्टनर परमजीत के साथ मेरठ में ही रहता था. 24 अक्तूबर को वह कालेज गया था. जब वह शाम को वापस नहीं लौटा तो परमजीत ने फोन कर के यह बात उन्हें बताई. उन्होंने नितिन के नंबर पर फोन लगाया तो वह लगातार स्विच्ड औफ जाता रहा.

वह परेशान हो गए और मेरठ आ कर दिन भर उस की तलाश की. लेकिन कोई पता नहीं चला. आज जब यह खबर अखबार में छपी तो वह अस्पताल आए. अस्पताल में पता चला कि नितिन अब इस दुनिया में नहीं है. रामबीर चौहान ने इस बात से इनकार किया कि उन की या नितिन की किसी से कोई रंजिश थी. मृतक की शिनाख्त तो हो गई लेकिन पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने के लिए कोई सूत्र नहीं मिल रहा था. मामला काफी उलझा हुआ था.

नितिन के पिता गांव के सीधेसाधे किसान थे. उन के परिवार में पत्नी पुष्पा के अलावा 3 बच्चे थे. नितिन सब से बड़ा था, उस से छोटी 2 बेटियां थीं निशी और आशू. नितिन ने सन 2012 में गांव से इंटर करने के बाद अलीगढ़ जा कर शिवदान कालेज में बीफार्मा की पढ़ाई के लिए दाखिला ले लिया था. लेकिन अलीगढ़ में नितिन का पढ़ाई में मन नहीं लगा, तो इसी साल उस ने मेरठ के मवाना रोड स्थित ट्रांसलेम इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया था. रहने के लिए उस ने अपने एक सहपाठी परमजीत के साथ गंगापुरम कालोनी में किराए का एक कमरा ले लिया था.

नितिन की लगभग हर रोज अपने घर वालों से बात होती थी. 24 अक्तूबर को उस की कोई बातचीत नहीं हुई थी. इसी बीच सनसनीखेज ढंग से उस की हत्या हो गई थी. पुलिस ने नितिन के रूम पार्टनर परमजीत से पूछताछ की. उस ने बताया कि 24 तारीख को नितिन कालेज के लिए निकला तो था लेकिन अंदर न जा कर कालेज के गेट पर ही रुक गया था. जब वह क्लास में नहीं आया तो उस ने सोचा कि वह उसे बिना बताए कहीं घूमने चला गया होगा. जब वह शाम को कमरे पर नहीं लौटा तो उस ने फोन कर के यह बात उस के पिता को बता दी.

‘‘तुम ने उस का पता लगाने की कोशिश नहीं की?’’ विकास त्रिपाठी के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘की थी. लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था.’’

पुलिस ने कालेज में भी पूछताछ की. परमजीत सच बोल रहा था. वह उस दिन क्लास में मौजूद था जबकि नितिन गैरहाजिर था. पुलिस ने अन्य छात्रछात्राओं से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में पता चला कि नितिन कालेज के गेट से ही एक युवक के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर चला गया था. मोटरसाइकिल वाला कौन था, इस बारे में किसी को पता नहीं था. अस्पताल में जिस युवक को नितिन के पास देखा गया था उस से भी मोटरसाइकिल वाले का हुलिया नहीं मिल रहा था जो नितिन को मोटरसाइकिल पर ले कर गया था.

इस से पुलिस को लगा कि नितिन की हत्या में एक नहीं 2 युवक शामिल रहे होंगे. हत्यारे तक पहुंचने के लिए पुलिस ने नितिन के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, लेकिन इस से भी कोई नतीजा नहीं निकला. इस से यह साफ हो गया कि हत्यारा जो भी था बेहद चालाक था. उस ने अपने पीछे कोई सुबूत नहीं छोड़ा था.

इश्क के दरिया में जुर्म की नाव

मौज मजा बन गया सजा – भाग 1

गोरखपुर के अपर सत्र न्यायाधीश (विशेष) अनुसूचित जाति/जनजाति श्री सुरेंद्र कुमार यादव  की अदालत में एक बहुत ही चर्चित मामले का फैसला सुनाया जाने वाला था, इसलिए उस दिन अदालत में मीडिया वालों के साथसाथ आम लोगों की कुछ ज्यादा ही भीड़ थी.

दरअसल हत्या के जिस मामले का फैसला सुनाया जाना था, उस मामले में मृतक डा. अशोक कुमार कोई मामूली आदमी नहीं थे. वह कांगे्रस के जानेमाने नेता और हरियाणा के राज्यपाल रहे स्व. महावीर प्रसाद के दामाद थे. उस भीड़ में मृतक डा. अशोक कुमार के ही नहीं, उन की हत्या के आरोपी अविनाश चौहान, शरीफ अहमद, डा. सुनील आर्या और बलदाऊ यादव के घर वाले भी मौजूद थे.

सरकारी वकील इरफान मकबूल खान ने जहां चारों अभियुक्तों को हत्या का दोषी ठहरा कर कठोर से कठोर सजा देने की मांग की थी, वहीं बचाव पक्ष के वकील का कहना था कि उन के मुवक्किलों को गलत तरीके से फंसाया गया है. पुलिस ने जो सुबूत पेश किए हैं, वे घटना एवं घटनास्थल से मेल नहीं खाते, उन के मुवक्किल निर्दोष हैं, जिस से उन्हें बरी किया जाए.

इस हत्याकांड का फैसला जानने से पहले आइए इस हत्याकांड के बारे में जान लें, जिस से फैसला जानने में थोड़ी आसानी रहेगी.

जिन डा. अशोक कुमार की हत्या के मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था, वह उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर की कोतवाली शाहपुर की पौश कालोनी आवासविकास के मकान नंबर बी-88 में रहने वाले सबइंस्पेक्टर के पद से रिटायर हुए दूधनाथ के 3 बेटों में सब से बड़े बेटे थे.

दूधनाथ सरकारी नौकरी में थे, इसलिए उन्होंने अपने सभी बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर खास ध्यान दिया था. इसी का नतीजा था कि उन के बड़े बेटे अशोक कुमार का चयन सीपीएमटी में हो गया था. कानपुर के गणेशशंकर विद्यार्थी मैडिकल कालेज से एमबीबीएस करने के बाद नेत्र चिकित्सा में विशेष योग्यता हासिल करने के लिए वह दिल्ली स्थित आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मैडिकल साइंसेज चले गए थे.

एम्स से एमएस करने के बाद डा. अशोक कुमार ने दिल्ली के आई केयर सेंटर में नौकरी कर ली. वहां से ठीकठाक अनुभव प्राप्त कर के वह गोरखपुर आ गए और गोरखपुर के शाहपुर में नेहा आई केयर सेंटर के नाम से अपना खुद का अस्पताल खोल लिया.

जल्दी ही डा. अशोक कुमार की गिनती गोरखपुर के मशहूर नेत्र विशेषज्ञों में होने लगी, जिस से शोहरत भी मिली और पैसा भी आया. फिर दोस्तों की भी संख्या बढ़ने लगी. लेकिन उन की सब से ज्यादा घनिष्ठता थी डा. सुनील आर्या से. इस की एक वजह यह थी कि डा. सुनील आर्या उन के किशोरावस्था के दोस्त थे. इस के अलावा दोनों एक ही पेशे से जुड़े थे, फिर दोनों के स्वभाव भी एक जैसे थे. डा. सुनील आर्या मैडिकल कालेज में प्रोफेसर थे.

डा. अशोक कुमार डाक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे, तभी गोरखपुर की तहसील बांसगांव के गांव उज्जरपार के रहने वाले कांगे्रस के कद्दावर नेता महावीर प्रसाद ने अपनी छोटी बेटी निर्मला की शादी उन से कर दी थी. उन की सिर्फ 2 ही बेटियां थीं. बड़ी बेटी का ब्याह उन्होंने गोरखपुर के दाउदपुर के रहने वाले जयराम कुमार के साथ किया था. वह सिंचाई विभाग में अधिशाषी अभियंता थे.

शादी के बाद महावीर प्रसाद ने दोनों ही बेटियों को उपहार में एकएक गैस एजेंसी दी थी. विमला की गैस एजेंसी महाराजगंज में थी, जबकि निर्मला की गैस एजेंसी उन के बेटे हिमांशु के नाम से गोरखपुर के राप्तीनगर के मोहल्ला चकसा हुसैननगर में थी.

10 जुलाई, 2001 की रात साढ़े नौ बजे के करीब डा. अशोक कुमार गैस एजेंसी के काम से अकेले ही अपनी मारुति जेन कार यूपी 53 एल 2345 से इलाहाबाद के लिए निकले. उस समय उन के पास गैस एजेंसी के कागजतों के अलावा 1 लाख 10 हजार रुपए नकद थे.

11 जुलाई की सुबह 7 बजे के आसपास पति का हालचाल लेने के लिए निर्मला ने उन के मोबाइल पर फोन किया. फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई. उन्हें लगा, लंबे सफर की वजह से वह थक गए होंगे. कोई परेशान न करे, इसलिए फोन बंद कर दिया होगा.

11 बजे तक डा. अशोक कुमार का फोन नहीं आया तो निर्मला ने एक बार फिर फोन किया. इस बार भी फोन बंद था. इस के बाद निर्मला रहरह कर पति का फोन मिलाती रही, लेकिन हर बार उन का फोन स्विच औफ बताता रहा. जब पति से किसी भी तरह संपर्क नहीं हुआ तो उन का दिल घबराने लगा.

निर्मला ने बहनोई जयराम प्रसाद को फोन किया तो पता चला कि वह भी गैस एजेंसी के ही काम से इलाहाबाद गए हुए हैं. इस के बाद निर्मला ने इलाहाबाद में रहने वाले अपने परिचितों को फोन कर के पति के बारे में पूछा. उन में से कोई भी डा. अशोक कुमार के बारे में कुछ नहीं बता सका. इसी तरह 2 दिन बीत गए. जब डा. अशोक के बारे में कुछ पता नहीं चला तो परिवार में बेचैनी हुई. निर्मला ने दिल्ली में रह रहे अपने पिता महावीर प्रसाद को फोन कर के सारी बात बताई.

दामाद के इस तरह अचानक गायब हो जाने से महावीर प्रसाद परेशान हो उठे. उन्होंने निर्मला से थाने में गुमशुदगी दर्ज कराने को कह कर गोरखपुर के पुलिस अधिकारियों से बात की. पिता के कहने पर निर्मला ने तीसरे दिन थाना शाहपुर में तहरीर दे कर पति डा. अशोक कुमार की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

डा. अशोक कुमार कोई मामूली आदमी नहीं थे. वह दरोगा के बेटे होने के साथसाथ कांग्रेस के बड़े नेता के दामाद भी थे. महावीर प्रसाद ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को फोन कर ही दिया था, इसलिए गुमशुदगी दर्ज होते ही जिले के सभी थानों की पुलिस सक्रिय हो गई.

11 जुलाई, 2001 को गोरखपुर से जुड़े जिला देवरिया के थाना खुखुंदु पुलिस ने चौकीदार लालजी यादव की सूचना पर सलेमपुरदेवरिया रोड पर बनी वन विभाग की पौधशाला के पास से एक लाश बरामद की. लाश के पास एक तौलिया और एक तकिया का कवर मिला था. दोनों ही चीजें खून से सनी थीं. मृतक की उम्र 35-36 साल के करीब थी. देखने से ही लग रहा था कि यह हत्या का मामला है, इसलिए थानाप्रभारी श्यामलाल चौधरी ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करा दिया.

मृतक की तलाशी में ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती. इस से पुलिस को यही लगा कि मृतक की हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेकी गई थी. पुलिस ने लाश के फोटो करवा कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लाश की शिनाख्त न होने से थाना खुखुंदू पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद उसे लावारिस मान कर उसी दिन उस का अंतिम संस्कार करा दिया था.

अगले दिन यानी 12 जुलाई की देर रात आजमगढ़ के करीबी जिला मऊ के थाना दक्षिण टोला पुलिस ने जहांगीराबाद से सड़क के किनारे से एक मारुति जेन कार बरामद की. पुलिस ने कार की खिड़कियों के शीशे तुड़वा कर टार्च की रोशनी में चैक किया तो कार की पिछली सीट पर खून के कुछ निशान दिखाई दिए.

अगली सीट पर कनियार पुल के टोल टैक्स की रसीद के साथ 12 बोर की गोली का एक खोखा बरामद हुआ. कार के अंदर ही गाड़ी के कागजात मिल गए थे, जो गोरखपुर के शाहपुर की आवासविकास कालोनी, गीतावाटिका के रहने वाले डा. अशोक कुमार के नाम थे. इस के अलावा कार से एक जोड़ी चप्पलें और भोजपुरी गीतों के 6 औडियो कैसेट बरामद हुए थे. पुलिस ने कार को कब्जे में ले कर इस की सूचना जिला नियंत्रण कक्ष को दे दी थी.

लड़की के लिए दोस्त बना दुश्मन – भाग 1

सुबह के 4 बजे थे. बाहर रात का अंधेरा अभी तक दामन फैलाए हुए था, लेकिन मेरठ के लाला लाजपतराय मैडिकल कालेज स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल चिकित्सालय के इमरजेंसी वार्ड में जलती ट्यूब लाइटों की रोशनी फैली थी. हल्की रोशनी के बावजूद कई मरीज नींद में थे. तभी अचानक वहां अफरातफरी मच गई. दरअसल हुआ यह कि एक मरीज का तीमारदार रविंद्र  अपनी मरीज को देखने के लिए उठा तो उस ने बेड नंबर 12 के मरीज की गरदन से खून बहते देखा. वह तड़पते हुए हाथपैर पटक रहा था.

बीते दिन जब उस मरीज को लाया गया था तो वह बेहोश था. उसे काफी चोटें लगी थीं. बाद में पता चला कि उस के पैर में फै्रक्चर है. डाक्टरों ने उस की मरहमपट्टी कर के उस के पैर पर प्लास्टर चढ़ा दिया था. उस की गरदन से खून बहता देख रविंद्र चिल्लाया, ‘‘डाक्टर साहब… डाक्टर साहब…’’

‘‘क्या हुआ, क्यों चिल्ला रहे हो?’’ वहां से कुछ दूर बैठे वार्ड बौय दीपक ने चौंक कर पूछा, तो रविंद्र ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘जल्दी आइए, किसी ने इस की गरदन काट दी है.’’ यह सुन कर दीपक सन्न रह गया. उस ने यह बात ड्यूटी पर मौजूद स्टाफ को बताई. खबर मिलते ही डा. हर्षवर्धन व अन्य स्टाफ वहां आ गया. बेड पर खून से लथपथ पड़े उस युवक की हालत देख सभी सन्न रह गए. उस की गरदन को धारदार हथियार से रेता गया था. खून लगातार बह रहा था, बिस्तर खून से तरबतर हो चुका था. उस की हालत बहुत चिंताजनक थी.

डा. हर्षवर्धन ने उस की गरदन को देखने के बाद खून रोकने के लिए रुई रख कर पट्टी लपेट दी. उन्होंने कांपते हाथों से उसे कुछ इंजेक्शन भी दिए. निस्संदेह वह मौत के बेहद करीब था. उपचार के बावजूद उस ने कुछ ही देर में लंबीलंबी सांसें लेते हुए दम तोड़ दिया. तब तक वहां अन्य मरीजों के तीमारदार भी जमा हो गए थे. सभी सहमे हुए थे. जाहिर तौर पर यह हत्या का मामला था. इमरजेंसी वार्ड में एक मरीज की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी और किसी को पता तक नहीं चला था, यह हैरत की बात थी.

इमरजेंसी वार्ड में रात की ड्यूटी पर डा. हर्षवर्धन के अलावा स्टाफ नर्स महिमा सिंह और नर्सिंग छात्रा अंजलि सिंह सहित 8 लोगों का स्टाफ था. इन लोगों के अलावा वार्ड में दरजनों मरीज और उन के तीमारदार भी थे. वार्ड में एंट्री करते ही अल्युमिनियम के फ्रेम में जड़े शीशों वाला स्टाफ रूम था. जिस में आरपार दिखाई देता था. उस रूम से ही अटैच इमरजेंसी वार्ड था जिस में दोनों साइडों में 21 बेड लगे हुए थे.

यह चूंकि मेरठ का एकलौता बड़ा सरकारी अस्पताल था इसलिए वहां चौबीसों घंटे आनेजाने वालों का सिलसिला लगा रहता था. इस के अलावा स्टाफ भी ड्यूटी पर रहता था. बाहर से आने वाले सभी मरीजों को सब से पहले इमरजेंसी में ही लाया जाता था. तत्कालिक चिकित्सा के बाद में उन्हें अलगअलग वार्डों में शिफ्ट कर दिया जाता था.

जिस युवक का इमरजेंसी वार्ड में कत्ल किया गया था उसे पिछले दिन ही वहां भरती कराया गया था. हुआ यह था कि कैंट रेलवे स्टेशन के माल गोदाम के सामने लगभग साढ़े 11 बजे सफाईकर्मी रामफल व राजेंद्र ने उस युवक को 2 रेलवे ट्रैक के बीच बेहोश पड़े देखा था. उस वक्त वह बुरी तरह घायल था. कुछ ही देर पहले वहां से जालंधर एक्सप्रेस व एक अन्य टे्रन एकदूसरे को क्रौस करते हुए अलगअलग ट्रैक से गुजरी थीं.

राजेंद्र और रामफल ने घायल युवक को देखने के बाद इस की सूचना रेलवे पुलिस को दी. पुलिस ने उसे उठा कर प्यारे लाल शर्मा जिला चिकित्सालय में भरती करा दिया था. उस की हालत चूंकि गंभीर थी इसलिए प्राथमिक उपचार के बाद उसे सरकारी एंबुलेंस से मैडिकल कालेज स्थित अस्पताल में रेफर कर दिया गया था.  युवक के शरीर पर काफी चोटें थीं और उस का एक पैर रेल की चपेट में आ कर टूट चुका था. डाक्टरों का अनुमान था कि उस के साथ यह हादसा रेल से गिरने की वजह से हुआ होगा.

पुलिस ने भी उस युवक के रेल से गिरने की वजह जानने की कोशिश नहीं की थी क्योंकि प्रथम दृष्टया यह हादसा लग रहा था. इसीलिए पुलिस ने न तो इस बाबत कोई मामला दर्ज किया था और न यह जानने की कोशिश की थी कि हादसा कैसे हुआ? एक परेशानी यह भी थी कि घटना का प्रत्यक्षदर्शी कोई भी नहीं था. युवक चूंकि बेहोश था इसलिए यह भी पता नहीं लग सका था कि वह कौन है. पहचान के लिए पुलिस ने उस की तलाशी भी ली, लेकिन उस के पास कोई पहचान पत्र या मोबाइल नंबर वगैरह नहीं मिला था.

बहरहाल, डाक्टरों ने उस की मरहमपट्टी की और एक्सरे के बाद पैर पर प्लास्टर चढ़ा दिया. इस के बाद उसे इमरजेंसी वार्ड के बेड नंबर-12 पर शिफ्ट कर दिया गया. इस के बाद भी युवक की बेहोशी नहीं टूटी थी. डाक्टरों को उम्मीद थी कि उसे सुबह तक होश आ जाएगा. लेकिन वह होश में आ कर अपनी पहचान और हादसे के बारे में कुछ बता पाता इस से पहले ही अलसुबह उस की हत्या कर दी गई थी.

वार्ड में हत्या के मामले में स्टाफ के लोग फंस सकते थे इसलिए तुरंत अस्पताल अधीक्षक डा. सुभाष सिंह को इस मामले की जानकारी दी गई. खबर मिलते ही वह आ गए. जरूरी पूछताछ के बाद उन्होंने इस की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना पा कर थाना मैडिकल प्रभारी राकेश सिसौदिया घटनास्थल पर आ गए. दिन निकलते ही इस वारदात ने सनसनी फैला दी. चौंकाने वाली बात यह थी कि वारदात अस्पताल के अंदर हुई थी. अस्पताल में हत्या की खबर मिली तो डीआईजी के. सत्यनारायण, एसएसपी ओंकार सिंह, एसपी सिटी ओमप्रकाश सिंह और सीओ सिविल लाइंस विकास त्रिपाठी भी घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने इस मामले की हर नजरिए से जांचपड़ताल शुरू की. पूछताछ में पता चला कि वार्ड में मरीजों के नामपते की तो एंट्री होती थी, लेकिन उन से मिलने कौन आताजाता है इस का कोई ब्यौरा नहीं रखा जाता था. वार्ड में सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगे थे. पुलिस अधिकारी अस्पताल कर्मियों पर इसलिए नाराज थे क्योंकि हत्या जैसा गंभीर अपराध हो गया था और उन्हें पता तक नहीं चला था.

अधीक्षक डा. सुभाष सिंह ने मरीजों और उन्हें भरती कराने वालों की सूची पुलिस को उपलब्ध करा दी. सीओ विकास त्रिपाठी ने उस एंबुलेंस चालक राहुल से पूछताछ की जिस ने उस युवक को जिला अस्पताल ला कर भरती कराया था. उस से काम की एक बात यह पता चली कि जब उस युवक को अस्पताल लाया जा रहा था तो वहां एक युवक मौजूद था जो उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई प्राइवेट वाहन लाने की बात कर रहा था. लेकिन जब उस से प्राइवेट वाहन लाने की वजह पूछी गई तो वह टालमटोल करने लगा.

पंजाब की डाकू हसीना

सवा करोड़ के गहनों की लूट – भाग 4

प्रवीण ने एक औटो तय किया, जिस में दोनों बैठ गए. महेंद्र फुरती से उस जगह आ गया, जहां उस के साथी खड़े थे. महेंद्र ने उन्हें वह औटो दिखा दिया, जिस में भरत और प्रवीण बैठे थे. पल्सर को जसपाल उर्फ रिंकू चला रहा था और उस पर महेंद्र तथा मोहम्मद आरिफ बैठे थे. दूसरी मोटरसाइकिल अपाचे को अरुण नागर उर्फ बौबी चला रहा था, जिस पर मनीष शर्मा और रोशन गुप्ता बैठ गए. वे सभी उस औटो का पीछा करने लगे, जिस में भरतभाई और प्रवीण बैठे थे.

जैसे ही वह औटो तांगा स्टैंड के पास पहुंचा, जसपाल ने उसे ओवरटेक कर के रोक लिया. इस के बाद अरुण नागर ने अपाचे मोटर-साइकिल औटो के बराबर में खड़ी कर दी. औटोचालक सरोज पटेल समझ नहीं पाया कि उन लोगों ने ऐसा क्यों किया, क्योंकि उस से तो कोई गलती भी नहीं हुई थी.

औटो रुकते ही आरिफ चाकू ले कर और मनीष शर्मा पिस्तौल ले कर भरतभाई और प्रवीण के पास पहुंच गए. महेंद्र ने भरत के हाथ से बैग छीनना चाहा तो उस ने बैग नहीं छोड़ा. तभी डराने के लिए आरिफ ने प्रवीण के पैर पर चाकू मार दिया. इसी के साथ महेंद्र ने ड्राइवर सरोज पटेल के 2 थप्पड़ जड़ दिए.

थप्पड़ लगते ही औटोचालक वहां से भाग कर सडक़ के उस पार चला गया. प्रवीण और भरतभाई भी डर गए थे. महेंद्र ने भरतभाई के हाथ से बैग छीन कर रोशन को पकड़ाया तो वे फुरती से यूटर्न ले कर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की ओर चले गए. वहां से गलियों में होते हुए वे शीला सिनेमा के सामने फ्लाईओवर के पास पहुंचे.

जसपाल ने वहां पल्सर मोटरसाइकिल रोकी और एक औटोरिक्शा तय कर के उस में महेंद्र और आरिफ के साथ बैठ कर सीमापुरी बौर्डर चला गया. उन के पीछेपीछे अपाचे मोटरसाइकिल पर मनीष, अरुण और रोशन आ रहे थे. वहां से वे जनकपुरी, साहिबाबाद पहुंचे. जनकपुरी में मनीष का एक प्लौट था, जिस में एक कमरा बना हुआ था. वह जगह सुनसान थी. वहां उन्होंने बैग खोल कर देखा तो उस में अलगअलग डिब्बों में सोने के गहने भरे थे. कुछ अंगूठियां, टौप्स और पैंडेंट ऐसे थे, जिन में हीरे जड़े थे. हीरे जड़ी सारी ज्वैलरी उन्होंने आपस में बांट ली.

अब उन के सामने समस्या यह थी कि उन गहनों को कैसे और कहां बेचा जाए, क्योंकि गहने को बेचने पर पकड़े जाने की आशंका थी, इसलिए वे असमंजस में थे कि उसे कैसे ठिकाने लगाया जाए. तभी जसपाल ने कहा, “मेरे एक मौसा हैं किशनलाल, जो यहीं शालीमार गार्डन के रहने वाले हैं. अंडमान निकोबार में उन की गहनों की दुकान हैं. इस समय वह किसी परिचित की शादी में दिल्ली आए हुए हैं. गहनों को बेचने में वह मदद कर सकते हैं.”

इस बात पर सभी तैयार हो गए तो जसपाल उर्फ रिंकू ने किशनलाल से बात की. उसने बताया कि सारे गहनों को पिघला कर अगर छड़ें बना दी जाए तो उन छड़ों को बाजार में आसानी से बेचा जा सकता है. सभी को यह सुझाव पसंद आया तो अगले दिन किशनलाल ज्वैलरी पिघलाने के लिए गैस बर्नर और अन्य सामान ले कर जनकपुरी के उसी प्लौट पर बने कमरे में पहुंच गया.

किशनलाल ने पांच साढ़े पांच किलोग्राम सोने की ज्वैलरी को पिघला कर एक गोला बना दिया. वह गोला सोने की तरह चमकता हुआ न हो कर कुछ काले रंग का था. किशनलाल ने बताया कि इसे रिफाइंड कर के छड़ें बनानी पड़ेंगी. तब उन सभी ने किशनलाल से कह दिया कि इस गोले को वह अपने साथ ले जाएं और छड़ें बना दें.

किशनलाल उस गोले को ले गया. 3 दिन बाद आ कर उस ने कहा, “मैं ने उस गोले से अभी एक छड़ बनाई है, जो साढ़े 12 लाख रुपए की बाजार में बिकी है. जैसेजैसे छड़ें बनती जाएंगी, मैं उन्हें बेच कर तुम लोगों को पैसे देता रहूंगा.”

किशनलाल से मिले साढ़े 12 लाख रुपयों में से एक लाख रुपए महेंद्र ने सरजू पंडित को दे दिए, जिस की सूचना पर उन्होंने घटना को अंजाम दिया था. बाकी के पैसे उन्होंने आपस में बांट लिए.

महेंद्र से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 9 जनवरी को मनीष शर्मा, मोहम्मद आरिफ, अरुण नागर उर्फ बौबी, जसपाल उर्फ रिंकू, रोशन गुप्ता और सरजू पंडित को उन के ठिकानों से गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने 2 पिस्तौलें, 7 जीवित कारतूस, साढ़े 12 लाख रुपए नकद, 18 डायमंड रिंग्स, 2 जोड़ी डायमंड टौप्स और एक डायमंड पैंडेंट के अलावा अपाचे मोटरसाइकिल बरामद कर ली थी.

किशनलाल को जब पता चला कि पुलिस ने जसपाल व अन्य लोगों को पकड़ लिया है तो वह फरार हो गया. पुलिस ने उस के ठिकाने पर भी छापा मारा था, लेकिन वह नहीं मिला.

सभी अभियुक्तों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि 6 सितंबर, 2015 को दिल्ली के कमला मार्केट इलाके में भी उन्होंने एक कूरियर बौय से 39 लाख रुपए के गहने लूटे थे. इस के अलावा 2 जुलाई, 2015 को देशबंधु गुप्ता रोड पर ढाई लाख रुपए की नकदी लूटी थी.

इन 2 मामलों के खुलासे के बाद पुलिस को लगा कि इस गैंग ने राजधानी में और भी वारदातें की होंगी, इसलिए पुलिस ने 10 जनवरी, 2016 को इन सभी अभियुक्तों को तीसहजारी कोर्ट में ड्यूटी एमएम श्री आर.के. पांडेय के समक्ष पेश किया. उस समय उन्होंने सभी अभियुक्तों को एक दिन के लिए जेल भेज दिया. अगले दिन सभी अभियुक्तों को महानगर दंडाधिकारी अंबिका सिंह की कोर्ट में पेश किया, जहां से पुलिस ने उन्हें 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया था.

कथा लिखे जाने तक पुलिस सभी अभियुक्तों से पूछताछ कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दोस्त की इज्जत से खिलवाड़ – भाग 3

उस ने तपन से बदला लेने की ठान ली थी. एक बार तो उस के मन में आया कि वह रात में सोते समय तपन की हत्या कर दे. लेकिन दिल्ली में ऐसा करने पर वह फंस सकता था, इसलिए वह ऐसी योजना बनाने लगा, जिस में सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. इसी वजह से वह अपनी इस योजना में किसी को शामिल नहीं करना चाहता था. उस के मन में क्या चल रहा है, यह उस ने तपन को महसूस नहीं होने दिया. वह पहले की ही तरह रोजाना अपने काम पर जाता रहा.

उस ने तपन को सबक सिखाने की जो योजना बनाई थी, उस के दिसंबर, 2015 के पहले हफ्ते में वह मथुरा गया. वहां वह कोसी में रहने वाले अपने दोस्त पाल सिंह से मिला. उस के सहयोग से उस ने 2 हजार रुपए में एक देशी तमंचा और 2 कारतूस खरीदे, जिन्हें ले कर वह दिल्ली लौट आया. अपनी योजना के बारे में उस ने अपनी पत्नी तक को कुछ नहीं बताया था. अब वह अपनी योजना को सुरक्षित तरीके से अंजाम देने की सोचने लगा.

12 दिसंबर, 2015 की सुबह साढ़े 9 बजे वह नोएडा अपने काम पर पहुंचा. तमंचा और कारतूस वह साथ ले गया था. थोड़ी देर बाद तपन भी वहां पहुंचा. दिन भर दोनों वहीं रहे. शाम को तपन के साथ ही वह कमरे पर लौटा.

कमरे पर आते ही उस ने कहा, “भाईसाहब, मेरी सास की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है. मुझे उन से मिलने के लिए अभी जाना है. आप मोटरसाइकिल से मेरे साथ चले चलें, हम सुबह लौट आएंगे.”

रात को तपन मथुरा नहीं जाना चाहता था, लेकिन उमेश ने जिद की तो वह उस के साथ जाने को तैयार हो गया. इस के बाद उमेश ने पत्नी से कहा कि कुछ काम से वह तपन के साथ मथुरा जा रहा है, सुबह लौट आएगा. जाते समय उस ने पत्नी को अपना मोबाइल दे दिया.

तपन अपनी मोटरसाइकिल यूपी16ए एच3937 पर उमेश को बैठा कर राधाकुंड मथुरा के लिए चल पड़ा. रात करीब साढ़े 10 बजे मोटरसाइकिल अकबरपुर शेरपुर रोड पर नहर के पास पहुंची तो उमेश ने पेशाब करने के बहाने मोटरसाइकिल रुकवा ली. मोटरसाइकिल खड़ी कर के दोनों उतर गए. तपन एक ओर खड़े हो कर पेशाब करने लगा. सडक़ उस समय सुनसान थी. उमेश को ऐसे ही मौके का इंतजार था. उस ने तमंचे में कारतूस पहले से ही भर रखा था.

उमेश धीरेधीरे तपन के पीछे पहुंचा. पेशाब कर रहे तपन को उस के आने का अहसास नहीं हुआ. उस ने पीछे से तपन की गरदन से तमंचा सटा कर फायर कर दिया. गोली लगते ही तपन जमीन पर गिरा और बिना कोई आवाज किए मर गया. उमेश ने फटाफट उस की जेबों की तलाशी ली. एक जेब में पर्स और दूसरी में उस का मोबाइल मिला. उमेश ने उन्हें निकाल कर अपनी जेब में रख लिए. बचे हुए एक कारतूस और कट्टे को उस ने वहीं झाडिय़ों में फेंक दिया.

तपन को ठिकाने लगा कर वह अपने गांव दलोता चला गया. वहां उस ने तपन का पर्स देखा तो उस में ढाई हजार रुपए नकद के अलावा उस का वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड, मेट्रो कार्ड और एक भारतीय स्टेट बैंक का एटीएम कार्ड था. अगले दिन वह मोटरसाइकिल को गांव में ही खड़ी कर के दिल्ली लौट आया और पत्नी को ले कर गांव चला गया.

अगले दिन कुछ लोगों ने नहर के पास लाश देखी तो इस की सूचना थाना छाता पुलिस को दे दी. थानाप्रभारी यशकांत सिंह वहां पहुंचे. उन्होंने लाश की शिनाख्त करानी चाही, पर कोई उसे पहचान नहीं सका. तब लाश के फोटो करा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

मृतक के फोटो के पैंफलेट चिपकवाने के बाद भी जब शिनाख्त नहीं हुई तो छाता पुलिस ने लावारिस मान कर उस का अंतिम संस्कार करा दिया. जब छाता पुलिस तपन की लाश की शिनाख्त नहीं करा सकी तो उमेश को लगा कि जब पुलिस लाश की शिनाख्त ही नहीं करा सकी तो मामले का खुलासा कैसे होगा?

उमेश का कुछ सामान दिल्ली में तपन के कमरे पर था. कहीं दिल्ली पुलिस उस सामान के जरिए उस तक न पहुंच जाए, यह सोच कर 24 दिसंबर, 2015 की रात के अंधेरे में वह अपना सामान ले कर भागना चाहता था, लेकिन मुखबिर की सूचना ने उस की इस योजना पर पानी फेर दिया और वह क्राइम ब्रांच के हत्थे चढ़ गया.

उमेश कुमार से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अशोक कुमार ने मथुरा के थाना छाता के थानाप्रभारी यशकांत सिंह को पूरी बात बता कर उस के गिरफ्तार करने की सूचना दे दी. अगले दिन क्राइम ब्रांच ने उसे रोहिणी कोर्ट में ड्ïयूटी मजिस्ट्रेट विपुल डबास के समक्ष पेश किया.

उस समय तक यशकांत सिंह वहां पहुंच चुके थे. उसी समय उन्होंने कोर्ट में एक दरख्वास्त दे कर उमेश कुमार को 24 घंटे के ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया. थाना छाता पुलिस पूछताछ के लिए उमेश को अपने साथ ले गई. उस की निशानदेही पर पुलिस ने मृतक की मोटरसाइकिल, पर्स, एटीएम कार्ड, वोटर आई कार्ड, आधार कार्ड और हत्या में प्रयुक्त तमंचा व एक जीवित कारतूस बरामद कर लिया.

विस्तार से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मामले की जांच यशकांत सिंह कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सवा करोड़ के गहनों की लूट – भाग 3

महेंद्र को कहीं से पता चला कि चांदनी चौक में ऐसे तमाम लोग हैं, जो यहां से लाखों रुपए के गहने गुजरात ले जाते हैं और वहां से भी उसी तरह गहने दिल्ली आते हैं. उस ने सोचा कि अगर उन्हीं में से किसी को शिकार बना लिया जाए तो एक ही झटके में लाखों रुपए हाथ लग सकते हैं.

इस के बाद वह यह पता लगाने लगा कि यह काम कौनकौन करते हैं. किसी जानकार ने उसे बताया कि दिल्ली के कूचा घासीराम में कई आंगडि़ए हैं, जो दिल्ली से बाहर गहने भेजते हैं. वहीं एक सरजू पंडित नाम का आदमी है, जो उन आंगडिय़ों के बारे में अच्छी तरह से जानता है. क्योंकि वह उन्हें चायपानी पिलाता है. अगर सरजू पंडित को विश्वास में ले लिया जाए तो मोटा माल हाथ लग सकता है.

महेंद्र कूचा घासीराम के सरजू पंडित के पास पहुंच गया. उस ने पहले तो किसी जरिए उस से जानपहचान की. इस के बाद वह रोजाना उस से मिलने लगा. धीरेधीरे दोनों के बीच दोस्ती हो गई. जब दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई तो एक दिन महेंद्र ने सरजू को अपनी योजना के बारे में बता कर पैसों का लालच दे कर कि जो भी माल हाथ लगेगा, उस में से एक हिस्सा उसे दिया जाएगा, के बाद आंगडि़ए के बारे में पूछा.

सरजू पंडित लालच में आ गया. 60 वर्षीय सरजू पंडित ने महेंद्र को प्रवीण कुमार के बारे में बताया ही नहीं, उसे पहचनवा भी दिया. प्रवीण कूचा घासीराम स्थित राजेश कुमार अरविंद कुमार आंगडिय़ा की फर्म में काम करता था. यह फर्म गहनों की कूरियर का काम करती थी. दिल्ली के कुछ ज्वैलर्स इस फर्म द्वारा पुराने गहने अहमदाबाद भेज कर वहां से नए डिजाइन के तैयार गहने मंगाते थे. यह काम इस फर्म का कूरियर बौय भरतभाई करता था. वह हर 2 दिन बाद दिल्ली आता था.

सरजू पंडित ने महेंद्र को पूरी बात बता तो दी, लेकिन महेंद्र यह फैसला नहीं कर सका कि कूरियर बौय भरतभाई से माल कैसे झटका जाए. महेंद्र का एक दोस्त था रोशन गुप्ता, जो विवेक विहार की झिलमिल कालोनी में रहता था. वह पेशे से ड्राइवर था. उस के 2 बच्चे थे, जो बड़े हो चुके थे. उन की शादी को ले कर वह काफी परेशान था. कुछ दिनों पहले उस ने मकान बनवाया था, जिस से उस पर ढाई लाख रुपए का कर्ज हो गया था. उसे इस बात की भी चिंता रहती थी कि वह कर्ज कैसे चुकाएगा.

महेंद्र ने लूट की योजना रोशन को समझाई तो पैसों की सख्त जरूरत की वजह से वह भी उस के साथ यह काम करने को तैयार हो गया. इस के बाद दोनों ने एक महीने तक उस रूट की रेकी की, जिस रूट से भरतभाई और प्रवीण माल ले कर नई दिल्ली स्टेशन आतेजाते थे. रेकी में रोशन ने अपनी स्प्लेंडर मोटरसाइकिल का उपयोग किया था.

रूट को अच्छी तरह समझने के बाद बात हुई कि वारदात को कैसे अंजाम दिया जाए, क्योंकि इस में रिस्क था, इसलिए हथियारबंद लोगों का भी इस में शामिल होना जरूरी था. रोशन मनीष शर्मा और मोहम्मद आरिफ नाम के बदमाशों को जानता था. दोनों ही गाजियाबाद जिले के साहिबाबाद के रहने वाले थे.

मनीष शार्पशूटर था तो मोहम्मद आरिफ शातिर चाकूबाज. रोशन ने दोनों से बात की. वे राजी हो गए तो उन्हें भी योजना में शामिल कर लिया. दोनों बदमाशों को शामिल करने के बाद उन के दिमाग में बात आई कि ज्वैलरी लूटने के बाद मोटरसाइकिल से तुरंत भागना होगा. इस के लिए उन्हें भीड़भाड़ वाली जगह में भी तेजी से मोटरसाइकिल चलाने वाले 2 लोग चाहिए.

इस बारे में आपस में चर्चा हुई तो मनीष शर्मा ने बताया कि वह जसपालदास उर्फ रिंकू को जानता है. वह भी साहिबाबाद में रहता है. पहले वह दिल्ली में क्लस्टर बस चलाता था. कुछ दिनों पहले उस ने नौकरी छोड़ा है. वह एक अच्छा बाइक रेसर है. जसपाल को एक खतरनाक जानलेवा बीमारी थी, उसी के इलाज के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.  मनीष ने उसे लूट की योजना बताई तो वह भी तैयार हो गया. उस के पास चोरी की एक पल्सर मोटरसाइकिल भी थी.

उन्हें एक मोटरसाइकिल चलाने वाला मिल गया था, एक की अभी और जरूरत थी. इस के लिए जसपाल ने अरुण नागर उर्फ बौबी से बात कराई. अरुण नागर मोटरसाइकिल से स्टंट करता था. वह बेरोजगार था. पैसों के लालच में वह भी उन के साथ काम करने को तैयार हो गया. अरुण ने भी किसी की अपाचे मोटरसाइकिल चुरा रखी थी, जिस की नंबर प्लेट बदल कर वह उसे खुद ही चलाता था.

पूरी टीम तैयार हो गई तो सभी ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कूचा घासीराम बाजार तक का कई बार चक्कर लगाया. इस के बाद इस बात पर विचार किया जाने लगा कि घटना को किस जगह अंजाम दिया जाए, जहां से वे आसानी से भाग सकें.

काफी सोचनेविचारने के बाद कुतुब रोड पर तांगा स्टैंड के पास वारदात को अंजाम देना निश्चित किया गया. क्योंकि वहां जो दुकानें बनी थीं, वे सुबह के समय बंद रहती थीं और सामने की पार्किंग भी खाली रहती थी.  सुनसान रहने की वजह से वहां से यूटर्न ले कर भागना आसान था.  वारदात की जगह निश्चित करने के बाद इस बात का भी कई बार रिहर्सल किया गया कि बैग को छीन कर किस तरह वहां से भागना है.

महेंद्र और रोशन गुप्ता को इस बात की पुख्ता जानकारी मिल गई थी कि अहमदाबाद से माल ले कर भरतभाई अहमदाबाद- नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रैस से 2 जनवरी को नई दिल्ली स्टेशन पर उतरेगा. उसे पता ही था कि भरतभाई को लेने प्रवीण कुमार आता है. वहां से दोनों औटो से औफिस जाते हैं.

पूरा प्लान तैयार कर के महेंद्र, मनीष शर्मा, अरुण नागर उर्फ बौबी, रोशन गुप्ता, जसपाल उर्फ रिंकू और मोहम्मद आरिफ पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिलों से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गए. महेंद्र ने सब से पहले रेलवे स्टेशन की इनक्वायरी से यह पता लगाया कि अहमदाबाद से नई दिल्ली आने वाली राजधानी एक्सप्रैस कब आ रही है.

वहां से उसे पता चला कि ट्रेन स्टेशन पर 8 बजे पहुंचेगी. भरतभाई को लेने के लिए सुबह 7 बज कर 40 मिनट पर प्रवीण स्टेशन पहुंच गया था. महेंद्र प्रवीण को पहचानता था, इसलिए वह कुछ दूरी से उस पर नजर रखने लगा, क्योंकि भरतभाई को ट्रेन से उतर कर उसी के पास आना था.

कुछ देर बाद अहमदाबाद से चल कर नई दिल्ली आने वाली राजधानी एक्सप्रैस के दिल्ली पहुंचने की घोषणा हुई, महेंद्र सतर्क हो गया. स्टेशन से बाहर निकलने वाले यात्रियों को महेंद्र गौर से देख रहा था. जब उसे भरतभाई दिखा तो वह खुश हो गया. भरत के हाथ में एक बैग था. भरत को पहले से ही पता था कि प्रवीण कहां खड़ा हो कर उस का इंतजार करता है, इसलिए वह स्टेशन से बाहर सीधे उसी स्थान पर पहुंच गया, जहां प्रवीण खड़ा था.