आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य – भाग 3

अजरू को जीनत दिलोजान से चाहती थी, उस का घर और इस के बच्चों को संभालना जीनत अपना फर्ज समझती थी. उस ने इस फर्ज की अदायगी में नाइंसाफी नहीं की थी. अजरू इस बात को जानता था और उस पर वह अपना भरपूर प्यार लुटाता था. अपने शौहर के इसी प्यार की भूखी थी जीनत, लेकिन अब अजरू का दिल कहीं और कुलांचे भर रहा था.

वह महसूस कर रही थी कि उस का अजरू अब पहले वाला अजरू नहीं रह गया है. इस के पीछे की सच्चाई जान कर जीनत का दिल रो पड़ा था. जीनत की आंखें भर आईं. उस का मन काम में नहीं लगा.

पति पर क्यों फूटा जीनत का गुस्सा

रात को अजरू घर आया तो जीनत ने उस से सीधा सवाल कर डाला, ”यह जोया कौन है जिस के पीछे आप अपना घर, बच्चे और मुझे भूलते जा रहे हैं?’’

अजरू एक पल को हक्का बक्का रह गया. उस के प्रेम की भनक उस की बीवी को लग चुकी है, यह जान कर उस ने गहरी सांस भरी और बोला, ”जोया से मैं प्रेम करता हूं जीनत.’’

”क्या मेरे प्यार में कोई कमी रह गई थी जो आप को बाहर मुंह मारने की जरूरत आ पड़ी.’’

”तुम्हें मैं ने भरपूर प्यार किया है, अब मेरा दिल दूसरी जगह सुकून तलाश रहा है तो तुम्हें क्या आपत्ति है?’’

”आपत्ति है,’’ जीनत तड़प कर बोली, ”आप मेरे हैं, आप का प्यार मेरे लिए है. इसे कोई दूसरी बांट ले, मुझे यह हरगिज मंजूर नहीं है.’’

”मैं जोया को नहीं छोड़ सकता जीनत. तुम्हें मैं खाने पीने का पूरा खर्च दे रहा हूं, तुम अपने घर और बच्चों में खुश रहो. मैं बाहर क्या कर रहा हूं, इस से परेशान मत हो.’’

”अगर आप को बाहर सुकून मिलने लगा है तो मैं आप के साथ आगे नहीं रह पाऊंगी, मैं आप से अलग होना ज्यादा पसंद करूंगी. मैं घुटघुट कर जिंदगी नहीं जीना चाहती.’’

”तुम्हारी मरजी है जीनत, तुम यहां रहती तो मुझे अच्छा लगता.’’ अजरू ने गहरी सांस भर कर कहा.

”आप जोया को छोड़ देंगे तो मुझे भी अच्छा लगेगा.’’ जीनत ने दोटूक कहा और अंदर कमरे में चली गई.

उसी दिन जीनत अपने बच्चों को साथ ले कर अपने मायके चली गई. अजरू जोया के प्यार में इस कदर डूब गया था कि उस ने अपने बीवी बच्चों को रोकने की जरूरत नहीं समझी. जोया की मोहब्बत में अजरू-जीनत का घर और रिश्ता टूट गया.

जोया के इश्क का भूत अजरुद्दीन पर इस कदर सवार हुआ कि उस ने खेत बेचने के बाद अपना पैतृक घर भी बेच दिया. उस ने उन पैसों से जोया की फरमाइशें पूरी करनी शुरू कर दीं. कुछ ही दिनों में उस के मकान का पैसा भी खत्म हो गया.

अजरू मकान बेच देने के बाद किराए का घर ले कर रहने लगा. जोया को अजरू द्वारा दिए जा रहे गिफ्ट पा कर संतोष नहीं हो रहा था. उसे गिफ्ट लेने का चस्का सा लग गया था, वह रोज अजरू से किसी न किसी चीज की डिमांड कर देती और अजरू उस की फरमाइश पूरी करने के लिए दिल खोल कर रुपए खर्च करता.

मकान बेचने के बाद मिला पैसा आखिर कितने दिनों तक चलता. अजरू एक दिन खाली जेब रह गया. फिर भी जोया की फरमाइश नहीं थमी. अब अजरू ने बाइक चोरी करनी शुरू कर दी. वह सड़क पर पार्क की गई बाइकें चोरी करता और औने पौने दामों में बेच देता.

एक दिन बाइक चुराते हुए वह पकड़ा गया. उसे पुलिस थाने ले आई और जेल में बंद कर दिया.

जोया उर्फ शहजादी को पता लगा कि चोरी के आरोप में गाजियाबाद पुलिस ने अजरू को जेल पहुंचा दिया है तो वह अजरू से मिलने जेल पहुंच गई. अजरू से मिल कर वह खूब रोई.

अजरू ने उस के आंसू पोंछते हुए भावुक स्वर में कहा, ”मैं जल्दी जेल से बाहर आ जाऊंगा जोया. जेल से निकलने के बाद मैं कहीं काम तलाश कर लूंगा और तुम से निकाह कर लूंगा. जीनत नाम का कांटा हमारे बीच से निकल गया है, हम दोनों प्यार की नई दुनिया बसा लेंगे.’’

”हां अजरू, हमारा मिलन होगा, हमारा प्यारा सा घर भी होगा और उस घर के आंगन में प्यारे प्यारे बच्चे भी होंगे. बस, तुम जल्दी से अपनी सजा काट कर जेल से बाहर आ जाओ.’’

”मैं जल्द आऊंगा जोया.’’ प्यार से अजरू ने जोया का हाथ पकड़ कर दबाते हुए कहा, ”तुम मेरा इंतजार करना.’’

”करूंगी मेरे महबूब.’’ आंखों में आए आंसू पोंछते हुए जोया उठ कर खड़ी हो गई और थके कदमों से चलती हुई जेल के बाहर आ गई.

22 अक्तूबर, 2023 को सुबह का उजाला फैला भी नहीं था कि जोया के भाई दानिश के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. दानिश की आंखें खुल गईं. उस ने कंबल में से हाथ बाहर निकाल कर टेबल पर रखा मोबाइल फोन उठाया. स्क्रीन पर अजरू का नाम चमक रहा था. ‘इतनी सुबह अजरुद्दीन को मुझ से क्या काम पड़ गया?’

हैरत में डूबे दानिश ने बड़बड़ाते हुए काल रिसीव की, ”दानिश बोल रहा हूं, कैसे फोन किया?’’

”दानिश, तुम्हारी बहन जोया की लाश रोहन एनक्लेव (गाजियाबाद) के होटल अनंत में कमरा नंबर 209 में पड़ी है.’’ दूसरी ओर से अजरू ने गंभीर स्वर में कहा और काल डिसकनेक्ट कर दी.

दानिश हैलो…हैलो… करता रह गया. अजरू ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर दिया था.

दानिश जल्दी से बिस्तर से उतरा और अपने पिता को बताए बगैर वह अपनी बाइक से गाजियाबाद के लिए निकल गया. वह जब होटल अनंत पहुंचा तो धूप पूरी तरह निकल चुकी थी.

दानिश दौड़ता हुआ होटल के रिसैप्शन पर आया. वहां ड्यूटी पर मैनेजर मौजूद था.

”तुम्हारे होटल के कमरा नंबर 204 में मेरी बहन जोया की लाश है…’’ दानिश घबराए स्वर में बोला.

”लाश..!’’ मैनेजर बौखला गया, ”आप को किस ने कहा कि हमारे होटल में लाश है.’’

”आप पहले देखिए,’’ दानिश ऊंची आवाज में बोला.

मैनेजर अपनी जगह से हिला. वह कमरा नंबर 204 की तरफ दौड़ा. उस के पीछे दानिश भी था. कमरा खोल कर देखा तो उस में वास्तव में बैड पर जोया की लाश पड़ी थी.

इस की सूचना तुरंत थाना वेव सिटी में फोन कर के दे दी. सूचना मिलने पर थाना वेव सिटी के एसएचओ अंकित चौहान और एसीपी सलोनी भी मौके पर पहुंच गईं.

आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य – भाग 2

अजरू मौके की तलाश में था. उसे एक दिन यह मौका मिल गया. जोया ने उस दिन उस से एक होटल में कमरा बुक करने के लिए कहा था. कई दिनों से अजरू महसूस कर रहा था कि जोया उसे संपूर्ण रूप से पा लेने के लिए आतुर है. वह जब भी उस से मिलती थी, उस से कस कर लिपट जाती थी. अपने जिस्म का सारा बोझ वह उस के ऊपर डाल देती थी.

जोया को अपनी सच्चाई बताने का पक्का मन बना कर उस ने अलीगढ़ में एक होटल में कमरा बुक कर लिया. जोया को उस ने कमरा बुक होने की बात बताई तो वह बहुत खुश हो गई. वह शाम को ही धोलाना से अलीगढ़ पहुंच गई.

अजरू होटल के बाहर उस का इंतजार कर रहा था. वह जोया को ले कर होटल के बुक किए कमरे में आ गया. कमरे में आते ही जोया ने उस के गले में अपनी नाजुक बांहों का हार पहना दिया. वह अपनी नाक अजरू की नाक से रगड़ती हुई चहक पड़ी, ”मैं ने तुम्हें अपना सरताज मान लिया है अजरू. मेरे इस पाक जिस्म को तुम्हें छू लेने का मैं पूरा अधिकार दे रही हूं. आज तुम मुझे कली से फूल बना दो.’’

”तुम्हें संपूर्ण पा लेने की लालसा मेरे दिल में भी है जोया, लेकिन…’’

”लेकिन क्या…?’’ जोया उसे आश्चर्य से देखती हुई खोली.

”मैं तुम्हें अपनी एक सच्चाई बता देना चाहता हूं जोया, ताकि अपना पाक जिस्म मुझे सौंपने से पहले तुम ‘हां’ या ‘न’ कहने का फैसला ले सको.’’

”ऐसी क्या बात है अजरू?’’ जोया अलग हो कर उसे हैरानी से देखने लगी.

अजरुद्दीन गंभीर हो गया. उस ने जोया की ओर देखा, वह उसे ही एकटक देख रही थी. अजरू ने मन को पक्का कर लिया और धीरे से बोला, ”मैं पहले से शादीशुदा हूं जोया, मेरे 5 बच्चे भी हैं.’’

जोया उर्फ शहजादी कुछ पलों तक अजरू को ठगी सी खड़ी देखती रही फिर मुसकरा कर बोली, ”तुम शादीशुदा हो, इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. मैं तुम्हारी बेगम बन कर एक कोने में पड़ी रहूंगी’ मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए और कुछ नहीं.’’

”सोच लो जोया, प्यार के जोश में उठाया गया यह कदम तुम्हारे लिए आगे चल कर परेशानी का सबब न बन जाए? बाद में तुम पछताओ कि तुम ने नादानी में फैसला ले कर अपना सब कुछ खो दिया.’’

”अजरू, मैं ने तुम्हें दिल की गहराइयों से प्यार किया है. तुम यदि यह बात छिपा कर मुझे पाने की चेष्टा करते तो मुझे बहुत दुख पहुंचता, तुम ने एक अच्छे आदमी होने की मिसाल कायम की है.’’

”मैं तुम्हारे लिए अच्छा हूं जोया, लेकिन मैं अपनी पत्नी जीनत को धोखा दे कर उस के साथ नाइंसाफी कर रहा हूं, जानती हो क्यों?’’

”क्यों?’’

”क्योंकि तुम दुनिया की बेहद हसीन चीज हो, तुम मेरे दिल में बस गई हो. मैं अब तुम्हारे बगैर जिंदा नहीं रह पाऊंगा.’’

”ओह! मेरे अच्छे अजरू.’’ जोया ने लरजते स्वर में कहा और अजरू से लिपट गई.

अजरू ने उस के नाजुक जिस्म को अपनी बाहों में समेट लिया और झुक कर अपने तपते होंठ जोया के पतले पतले अधरों पर टिका दिए. कुछ पलों बाद उस कमरे में 2 जिस्मों की महकती सांसों और फुसफुसाते शब्दों से भर गए.

अजरू ने क्यों बेचीं बापदादा की जमीनें

जोया उर्फ शहजादी को संपूर्ण रूप से पा लेने के बाद अजरू प्रेमिका का दीवाना हो गया. जोया पर अब वह दिल खोल कर रुपया खर्च करने लगा. वह उस के लिए महंगे महंगे गिफ्ट देने लगा. जोया को उस ने ऊपर से नीचे तक गहनों से लाद दिया. उन की लव स्टोरी गहराती चली गई.

जोया ने अजरू के इस दीवानगी की कद्र की, वह अपने मादक जिस्म की तपिश से अजरू को गरमाने में जरा भी संकोच नहीं करती थी. जोया की जवानी में अजरू पूरी तरह डूब गया था. अब उसे ख्वाबों में भी जोया ही चाहिए थी.

इस पागलपन का परिणाम यह हुआ कि अजरू अपने बापदादा की जमीनें बेचने लगा. जमीन से मिले रुपयों को वह जोया पर खर्च कर देता. जोया अजरू के इन कीमती तोहफों को पा कर आसमान में उडऩे लगी थी.

जोया का बाप और भाई जोया के बहकते कदमों से अंजान नहीं थे. वह सब देख और समझ रहे थे, लेकिन खामोश थे, क्योंकि जोया के द्वारा घर में हर कीमती सामान आ रहा था. वह लोग अजरू से ही जोया का निकाह कर देना चाहते थे.

अजरू उन के घर आता तो वह उस का गर्मजोशी से आदरसत्कार करते थे. एक प्रकार से जोया का पूरा परिवार अजरू को जोया का भावी शौहर मानने लगे थे.

इधर अजरू की बीवी जीनत बेगम अपने शौहर के बदलते रंग से परेशान थी, वह देख रही थी उस का शौहर बापदादा की जमीनें बेच रहा है, लेकिन वह रुपया घर में खर्च नहीं कर रहा है, कहीं और खर्च कर रहा है. जीनत का अनुमान था अजरू ने कोई बड़ा बिजनैस शुरू कर दिया है.

एक दिन अजरू का जानकार दोस्त उस से मिलने उस के घर आया. अजरू घर पर नहीं था. उस दोस्त ने जीनत का हाल पूछा, ”कैसी हो भाभी?’’

”अच्छी हूं.’’ जीनत ने औपचारिकतावश कहा, ”तुम्हारे भाईजान तो घर पर नहीं हैं.’’

”आजकल अजरू मिलता ही नहीं है.’’ अजरू का दोस्त परेशान हो कर बोला, ”पहले अजरू मेरे से रोज मुलाकात कर लेता था.’’

”उन्होंने कोई बिजनैस शुरू कर दिया है, इसीलिए तुम से नहीं मिल पाते हैं.’’

वह दोस्त मुसकरा दिया, ”कैसा बिजनैस भाभी, वह तो जोया के प्यार में पागल हुआ पड़ा है.’’

यह सुन कर जीनत का दिल धड़क उठा, ”यह जोया कौन है भाईजान?’’

”जोया धौलाना (हापुड़) में रहती है, भाईजान उस के इश्क में पड़ गए हैं. क्या आप यह नहीं जानतीं.’’

”नहीं, मैं उन का घर और बच्चों की देखभाल में उलझी रहती हूं. मुझे क्या खबर कि वह बाहर क्या कर रहे हैं.’’

”आप नादान और भोली हैं, घर में ही रहेंगी तो अजरू आप के हाथ से निकल जाएगा. उस के पैरों में रस्सी बांध कर रखना जरूरी है. मैं अजरू का गहरा दोस्त हूं, उस का अच्छा बुरा सोचना मेरा फर्ज है. मैं ने आप को आगाह कर दिया है. आप यह बात अजरू से मत कहना, नहीं तो हमारी दोस्ती में दरार पड़ जाएगी…’’

”आप का नाम मैं नहीं लूंगी भाईजान. आप ने मुझे उन की प्रेम कहानी की सच्चाई बता कर बहुत बड़ा एहसान किया है.’’ जीनत ने गंभीर स्वर में कहा, ”मैं आज ही उन की खबर लूंगी.’’

अजरू का दोस्त चला गया. जीनत को अपने शौहर की करतूत का पता चल चुका था. बापदादा की जमीनें बेच कर अजरू जोया के ऊपर खर्च कर रहा है, यह बात उसे परेशान और चिंता में डाल देने वाली थी.

आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य – भाग 1

कमरा नंबर 204 बाहर से बंद था. होटल के मैनेजर ने उसे खोल कर देखा तो कमरे के पलंग पर एक  युवती की लाश पड़ी हुई थी. युवती की आंखें फैली हुई थीं और मुंह से झाग निकल रहे थे.

मैनेजर ने तुरंत होटल मालिक को फोन कर के इस लाश की सूचना दी और उस के कहने पर गाजियाबाद के थाना वेव सिटी को लाश के बारे में बता कर होटल अनंत में आने को कह दिया. वहां मौजूद दानिश अपनी 22 वर्षीय बहन जोया की लाश देख कर जोरजोर से रोने लगा था.

थोड़ी देर में होटल अनंत में थाना वेव सिटी के एसएचओ अंकित चौहान और एसीपी सलोनी अग्रवाल पहुंच गईं. अंकित चौहान ने थाने से चलते समय एसीपी को लाश की सूचना दे दी थी. एसीपी सलोनी अग्रवाल और एसएचओ ने लाश का निरीक्षण किया. दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि युवती को जहर दिया गया है तथा उस का मुंह दबा कर उसे मारा गया है.

गोरी, छरहरी, लंबी कदकाठी वाली जोया उर्फ शहजादी बेशक किसी राजा की राजकुमारी नहीं थी, लेकिन रहनसहन और अपनी खूबसूरत छवि की वजह से वह किसी राजकुमारी से कम नहीं लगती थी.

शहजादी को घर और बाहर जोया भी कहते थे, इसलिए शहजादी भी अपना यही नाम सब को बताती थी. इस शहजादी को पाने की ललक हर युवा दिल में थी, लेकिन शहजादी के दिल में कोई और बसा हुआ था. शहजादी जिसे दिलोजान से प्यार करती थी, उस का नाम अजरुद्दीन उर्फ अजरू था.

अजरुद्दीन शादीशुदा और 5 बच्चों का बाप था. उस की पत्नी जीनत बेगम थी, जो बेहद खूबसूरत थी. करीब 4 साल पहले अलीगढ़ की एक ज्वैलरी शाप में वह अपनी पत्नी जीनत के लिए सोने की अंगूठी खरीद रहा था, वहीं पर उस ने पहली बार जोया को देखा था. उस की खूबसूरती देख कर वह ठगा सा रह गया था.

कोई उसे देख कर अपने होश भी खो सकता है, यह जान कर जोया अचंभित रह गई थी. वह खुद को संभाल कर अजरुद्दीन के पास आ कर बैठ गई मुसकराते हुए बोली थी, ”होश में आइए जनाब, मैं इंसानी बुत हूं, कोई आसमान से उतरी हुई अप्सरा नहीं हूं.’’

”तुम अप्सराओं से भी बढ़ कर हो,’’ अजरू के मुंह से बरबस ही निकल गया. वह अपनी पूर्व स्थिति में लौट आया था.

”मेरे हुस्न की तारीफ के लिए शुक्रिया.’’ जोया मुसकरा कर बोली, ”क्या मैं आप का नाम जान सकती हूंï?’’

”मेरा नाम अजरुद्दीन है. प्यार से लोग मुझे अजरू कहते हैं. गाजियाबाद से थोड़ी दूरी पर कल्लूगढ़ी गांव है, वहीं रहता हूं.’’

”मैं धोलाना (हापुड़) की बसरा कालोनी में रहती हूं.’’ जोया ने हंस कर कहा, ”एक प्रकार से हम और आप पड़ोसी हुए.’’

”धोलाना मेरा आनाजाना रहता है. यहां क्या खरीदने आई हैं आप?’’

”मेरी हाथ की अंगुली सूनी है, एक रिंग थी वह पता नहीं नहाते वक्त कहां निकल कर गटर में चली गई…’’

”बदनसीब रही वह रिंग.’’ अजरू ने दर्शन बघारा, ”इस खूबसूरत अंगुली का साथ पाने को तो अंगूठियां तरसती होंगी.’’

अजरू जौहरी की तरफ घूमा. वह किसी अन्य कस्टमर को अटेंड कर रहा था.

अजरुद्दीन ने जोया की तरफ इशारा कर के कहा, ”सेठजी, आप इन के लिए बेहतरीन अंगूठी दिखाइए.’’ उस ने बेझिझक जोया की कलाई पकड़ कर जौहरी के सामने कर दी.

जोया उस की जिंदादिली पर अवाक रह गई. वह कुछ कहती, उस से पहले ही जौहरी ने खूबसूरत अंगूठियों का बौक्स उस के सामने रख कर कहा, ”आप पसंद कर लीजिए, एक से बढ़ कर एक डिजाइन हैं.’’

जोया ने नगीने की अंगूठी पसंद की और जौहरी से पूछा, ”कितनी कीमत  है इस अंगूठी की?’’

”15 हजार की है.’’ जौहरी ने अंगूठी का वजन करने के लिए कहा तो जोया अपना पर्स खोलने लगी.

”आप रहने दीजिए, इस की कीमत मैं अदा कर रहा हूं.’’ अजरू तुरंत बोला और उस ने अपनी जेब से 15 हजार रुपए निकाल कर तुरंत जौहरी को दे दिए.

जोया हैरान परेशान हो गई. एक अजनबी जिस से कुछ पलों पहले मुलाकात हुई थी, उस की पसंद वाली अंगूठी की कीमत चुका रहा है, वह भी 10-5 रुपए नहीं, पूरे 15 हजार. कुछ क्षण तो जोया की जुबान तालू से चिपक गई, फिर वह बोली, ”अजरू, यह अंगूठी मैं ने खरीदी है, फिर आप इस की कीमत क्यों अदा कर रहे हैं?’’

”यह मेरी तरफ से आप को गिफ्ट है.’’ अजरू मुसकरा कर बोला, ”वैसे आप ने अपना नाम नहीं बताया अभी तक?’’

”मेरा नाम जोया उर्फ शहजादी है.’’ जोया ने प्यार भरी नजरों से अजरू को देखते हुए अपने लब खोले, ”यदि आप मुझे यह गिफ्ट दे रहे हैं तो अपने हाथ से इसे मेरी अंगुली में पहना भी दीजिए.’’

अजरू ने जोया की कलाई पकड़ कर उस की अंगुली में अंगूठी पहना दी. जोया ने वह अंगुली चूम ली और भावुक स्वर में बोली, ”अजरू, आज से आप मेरे बहुत करीब आ गए हैं. मैं आप के इस अनमोल गिफ्ट को जीवन भर संभाल कर रखूंगी.’’

अजरू मुसकरा दिया. इस के बाद दोनों दुकान से बाहर आ कर अपनेअपने रास्ते चले गए. मगर जाने से पहले उन्होंने एकदूसरे को अपना मोबाइल नंबर दे दिया था.

अजरू क्यों बताना चाहता था शादीशुदा होने की बात

जोया उर्फ शहजादी और अजरू के बीच पहले मोबाइल पर प्यारभरी बातों का सिलसिला शुरू हुआ, फिर वह पिकनिक स्पौट, रेस्तरां और पार्कों में मुलाकातें करने लगे. उन दोनों के बीच प्यार गहराने लगा.

अजरू ने अभी तक जोया को अपने शादीशुदा होने की बात नहीं बताई थी. वह जोया को अपनी शादी की बात बता देना चाहता था, क्योंकि जोया उसे बहुत गहराई से चाहने लगी थी. उसे ले कर वह शादी के सपने देखने लगी थी. अजरू उस से सच्चाई छिपा कर उसे इस मोड़ तक नहीं ले जाना चाहता था, जहां पहुंचने के बाद जोया को वापस लौटने में तकलीफ हो.

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 4

एसएचओ मीणा और एसआई जयकिशन ने मौके पर जा कर जला हुआ ट्रक देखा. बालेश की कंकाल में परिवर्तित बौडी को पोस्टमार्टम हाउस में देखने के बाद वह भी इसी नतीजे पर पहुंचे कि बालेश कुमार की जल जाने की वजह से मौत हो गई है.

दोनों बुझे मन से दिल्ली लौट आए. राजेश वर्मा की हत्या का जिम्मेदार सुंदर लाल उन की गिरफ्त में था. अब उसी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए उन्हें चार्जशीट तैयार करनी थी.

पुलिस फाइल में बालेश मर चुका था और सुंदर लाल को राजेश वर्मा की हत्या का दोषी मान कर कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा भी मिल गई थी. एक प्रकार से यह हत्या का केस यहीं समाप्त हो गया था और इस केस की फाइल बंद कर दी गई थी.

लेकिन 19 साल बीत जाने के बाद यह केस अक्तूबर, 2023 में फिर से चौंका देने वाली स्थिति में खुल गया. 19 साल पहले जिस बालेश कुमार को थाना बवाना और डांडियावास पुलिस मरा हुआ मान चुकी थी, वह जिंदा था और सेंट्रल रेंज (अपराध शाखा) के एसआई महक सिंह की टीम ने उसे नजफगढ़ (दिल्ली) के एक मकान से गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल, सन 2000 में कोटा हाउस (दिल्ली) के औफिसर मेस में चोरी हुई थी. औफिसर मेस से कीमती मैडल व प्राचीन वस्तुएं रात को चोरी कर ली गई थीं. इस चोरी में बालेश कुमार, उस के पिता चंद्रभान और साला राजेश उर्फ खुशीराम पकड़े गए थे.

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पुलिस उपायुक्त अंकित कुमार

दिल्ली के थाना तिलक मार्ग में तीनों के खिलाफ एफआईआर 341/2000 पर धारा 457/380/411/34 आईपीसी के तहत केस दर्ज हुआ था. उन्हें इस मामले में जमानत मिल गई थी. पुलिस ने इन के पास से चोरी का सामान बरामद कर लिया था. इसी की फाइल अपराध शाखा के स्पैशल पुलिस आयुक्त रविंद्र सिंह यादव के पास आई थी.

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इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार

उन्होंने पुलिस उपायुक्त अंकित कुमार के सुपरविजन में इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार के नेतृत्व में एसआई महक सिंह, यशपाल सिंह, एएसआई दीपक कुमार त्यागी, सुदेश कुमार, अनिल कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप कुमार, करण सिंह, महिला सिपाही रानी की एक टीम बनाई.

हैडकांस्टेबल संदीप कुमार

इस टीम को कोटा हाउस के औफिसर मेस में बहुमूल्य सामान की चोरी करने वालों के अपराध रिकौर्ड चेक करने थे और देखना था कि इन्होंने भारतीय पुरातत्व संस्थान के किसी अन्य जगह पर भी ऐसी चोरी तो नहीं की है.

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महिला सिपाही रानी

एसआई महक सिंह इस मामले की जांच कर रहे थे कि 17 अक्तूबर को उन के खास मुखबिर ने उन्हें फोन पर सूचना दी कि 19 साल पहले जिस कातिल बालेश कुमार की ट्रक में जल जाने से मौत हो गई थी, वह जिंदा है. वह आरजेड-167, रोशन गार्डन, नजफगढ़ (दिल्ली) में अमन सिंह पुत्र जगत सिंह के नाम से रह रहा है. उस की पत्नी और बच्चे उसी के साथ में हैं. बालेश कुमार प्रौपर्टी खरीदने बेचने का धंधा कर रहा है.

मुखबिर की इसी सूचना पर सेंट्रल रेंज (अपराध शाखा) की टीम ने उसे उस के घर से दबोच लिया था. दिलचस्प कहानी को आगे बढ़ाने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि बालेश कौन है.

बालेश कुमार पुत्र चंद्रभान मूलरूप से पट्टी कल्याण, समालखा, पानीपत (हरियाणा) का निवासी है. वह कक्षा 8वीं तक पढ़ा है. 1981 में यह नौसेना में स्टीवर्ड (मैस सहायक) के रूप में भरती हुआ और 1996 तक सेवा में रहा.

सेवानिवृत्ति के बाद बालेश कुमार अपने परिवार के साथ दिल्ली में संतोष पार्क (उत्तम नगर) में रहने लगा और प्रौपर्टी का काम करने लगा. सन 2000 में इस ने अपने पिता चंद्रभान और साले राजेश के साथ कोटा हाउस (तिलक मार्ग) में चोरी की.

तीनों पकड़े गए, चोरी का सामान इन के पास से बरामद हो गया. जमानत पर आने के बाद 2003 में बालेश ने अपने भाई महेंद्र के नाम से एक ट्रक एचआर38 एफ4832 फाइनैंस करवाया, जिसे वह खुद चलाने लगा.

खुद को मरा दिखाने के लिए कर दिए 2 और कत्ल

बालेश की पत्नी संतोष सुंदर और गृहकार्य में निपुण थी, फिर भी बालेश दूर के रिश्ते में साला लगने वाले राजेश उर्फ खुशीराम की पत्नी निशा के साथ अवैध संबंध बना कर निशा पर अपनी कमाई लुटाता रहता था. राजेश इस बात से चिढ़ता था. वह बालेश से खुन्नस रखता था. शायद मौका मिलने पर वह बालेश की हत्या कर देता, लेकिन दांव उल्टा पड़ गया.

20 अप्रैल, 2004 को बालेश ने अपने भाई सुंदर लाल के साथ मिल कर राजेश की हत्या कर दी. सुंदर लाल पकड़ा गया, बालेश फरार हो गया. जब वह फरार हुआ था तो 52 साल का था. अब वह 63 साल का हो चुका है. उसे अपराध शाखा के औफिस में लाया गया. सूचना पा कर स्पैशल पुलिस आयुक्त रविंद्र सिंह यादव और डीसीपी अंकित सिंह वहां पहुंच गए. उन के सामने बालेश कुमार से पूछताछ की गई.

”तुम राजेश उर्फ खुशीराम की हत्या कर के राजस्थान भाग गए थे. जिस ट्रक को तुम चला रहे थे, उस में आग लग गई थी और तुम जिंदा जल गए थे. हमें बताओ, वह क्या नाटक था?’’ एसआई महक सिंह ने सामने बैठे बालेश से प्रश्न किया.

”ट्रक ले कर मैं जब भागा था, तब मैं ने एक फुलप्रूफ योजना अपने दिमाग में बिठा ली थी. मैं ने बाईपास से 2 मजदूरों को काम देने का वायदा कर के अपने ट्रक में बिठा लिया था. वे दोनों बिहार के थे. उन के नाम मनोज और मुकेश थे.

”मैं ट्रक ले कर जोधपुर के थाना डांडियावास इलाके में पिथावास बाईपास रोड पर पहुंचा तो एक सुनसान जगह पर मैं ने ट्रक रोक दिया. बाईपास के एक शराब के ठेके से मैं ने 2 बोतल शराब खरीद ली थी. मैं ने ट्रक में मुकेश और मनोज को शराब पिलाई.

”दोनों जब ज्यादा शराब पीने से नशे में लुढ़क गए तो मैं ने मुकेश को जो मेरी कदकाठी का था, उसे अपने कपड़े पहना दिए और ट्रक की ड्राइविंग सीट पर बिठा दिया. मैं ने दिल्ली से ही पेप्सी लेबल के खाली गत्ते ट्रक में भर लिए थे. उन पर पेट्रोल डाल कर मैं ने ट्रक में आग लगा दी. मेरी आईडी और अन्य कागजात सामने के हिस्से में थे.

”ट्रक में आग लगाने के बाद दूर जा कर एक झाड़ी में दुबक कर मैं बैठ गया. काफी देर बाद वहां से गुजर रहे एक कार चालक ने पुलिस को फोन किया. जब फायर बिग्रेड और पुलिस वहां आई, तब तक ट्रक आग से काफी हद तक जल गया था. मैं अब निश्चिंत था.

”मैं ने घर पर फोन कर के अपने पिता और पत्नी को अपनी योजना बता दी. डांडियावास थाने की पुलिस द्वारा छानबीन करने के बाद मेरे पिता चंद्रभान को थाने में बुलाया गया तो मेरी पत्नी संतोष और भाई बिशन, महेंद्र सिंह, भीम सिंह भी उन के साथ डांडियावास थाने में आ गए. उन्हें ट्रक में जले 2 मानव कंकाल दिखाए गए तो एक की पहचान उन्होंने मेरे (बालेश) के रूप में कर दी.’’

”अपनी मौत का नाटक तुम ने इसलिए रचा ताकि राजेश के कत्ल के इलजाम से बच सको, क्या मैं ठीक कह रहा हूं?’’ इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार ने पूछा.

योजना हुई फेल तो बालेश पहुंचा जेल

बालेश मुसकराया, ”बेशक यही कारण था साहब, मैं ने अपनी मौत हो जाने का नाटक कर के अपनी पत्नी को लाभ पहुंचाया था.’’

”वो कैसे?’’

”मेरी पत्नी और पिता ने डांडियावास से मेरी मौत का प्रमाणपत्र हासिल कर लिया था. मेरी पत्नी ने मेरा बीमा पालिसी की साढ़े 6 लाख रुपए की राशि, ट्रक इंश्योरेंस का 4 लाख रुपया हासिल कर लिया और मेरी पेंशन भी अपने नाम करवा ली.

”ओह!’’ सभी को इस खुलासे से हैरानी हुई. अपराध शाखा के पुलिस आयुक्त रविंद्र कुमार यादव ने बालेश को घूरा, ”तुम अपनी पत्नी के साथ मौत का नाटक करने के बाद कब से रह रहे हो?’’

”साहब, मौत का नाटक करने के बाद मैं 2-3 महीने इधर उधर रहा. पत्नी ने सारे रुपए हासिल कर लिए तो मैं ने नजफगढ़ में प्लौट ले लिया और अमन सिंह पुत्र जगत सिंह के नाम से बीवी बच्चों के साथ रहने लगा.

”मैं ने अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड, पहचान पत्र आदि अमन सिंह के नाम से बनवा लिए, ताकि सभी मुझे अमन सिंह ही समझें. मैं इत्मीनान से प्रौपर्टी का धंधा करने लगा. वक्त गुजरता गया. मैं निश्चिंत था कि अब पकड़ा नहीं जाऊंगा.’’

”हम ने पकड़ लिया.’’ इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार मुसकरा कर बोले, ”अब तुम जिंदगी भर जेल में सड़ोगे.’’

बालेश कुमार ने सिर झुका लिया.

उस के खिलाफ एफआईआर 232/2023 दर्ज करके आईपीसी की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 474 और 120बी लगा कर उसे कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया.

अपराध शाखा (सेंट्रल रेंज) ने यह केस बवाना थाने के वर्तमान एसएचओ राकेश कुमार को सौंप दिया. उन्होंने बालेश कुमार की पत्नी संतोष को पकडऩे के लिए नजफगढ़ वाले घर पर रेड डाली, लेकिन संतोष पति के पकड़े जाते ही भूमिगत हो गई थी.

डांडियावास थाना (जोधपुर) ने यह मामला सीआरपीसी की धारा 174 के तहत 2004 में दर्ज किया था, कोई आपराधिक केस नहीं बनाया था. उसे यह सूचित कर दिया गया कि ट्रक में मरने वाला बालेश कुमार नहीं, उस का मजदूर मुकेश था. दूसरी लाश मनोज की थी. बालेश ने 2 हत्याएं उन के थानाक्षेत्र में की थीं, उस पर काररवाई की जाए.

बालेश कुमार जेल में था. पुलिस उस की पत्नी संतोष की तलाश कर रही थी, जो कथा लिखने तक फरार थी.

नोट: कथा में निशा नाम परिवर्तित है.

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 3

मनदीप ने सुंदर लाल को कालर से पकड़ा तो वह घबरा कर बोला, ”मुझे टार्चर रूम में मत ले जाइए, मैं सब कुछ बताता हूं.’’

”बताओ, कल रात को राजेश उर्फ खुशीराम तुम्हारे साथ था या नहीं?’’ एसआई जयकिशन ने पूछा.

”था साहब, मैं ने और राजेश ने कल सुरेंद्र शर्मा के यहां जनकपुरी में शराब की पार्टी की थी. फिर हम तीनों मेरी मारुति वैन में बैठ कर पीरागढ़ी की ओर आ गए थे. यहां एक ठेके से मैं ने शराब की बोतल और जनरल स्टोर से नमकीन खरीदी. राजेश नशे में होने के बावजूद अभी और पीने के मूड में था, इसलिए घर नहीं जाना चाहता था.

”मेरा कई बार उस से झगड़ा हुआ था, आज उस से हिसाब किताब करने का सही मौका मिल गया था. मैं ने अपने भाई बालेश कुमार को फोन कर के कहा कि पीरागढ़ी आ जाओ, राजेश मेरे साथ है, उसे निपटा देते हैं. बालेश ने हामी भर दी. यह बात सुरेंद्र शर्मा ने सुनी तो वह बहाना बना कर वैन से उतर गया और अपने घर चला गया.’’

सुंदरलाल ने रुक कर सांसें दुरुस्त कीं फिर आगे बताने लगा, ”मेरा बड़ा भाई बालेश पीरागढ़ी आ गया तो मैं वैन को चला कर शाहबाद डेरी की ओर ले आया. रास्ते में फलवालों की रेहड़ी के पास से नायलोन की रस्सी मैं ने मांग ली थी. शाहबाद डेरी में खड़े ट्रकों की आड़ में मैं ने वैन रोक दी और 3 पैग बनाए. मैं ने राजेश के गिलास में ज्यादा शराब डाली ताकि वह नशे में और बेसुध हो जाए.

”2 पैग पीते ही राजेश पर गहरा नशा चढ़ा तो वह बालेश को अपनी बीवी निशा के साथ अवैध संबंध होने का आरोप लगा कर गालियां देने लगा. बालेश से यह सहन नहीं हुआ तो उस ने राजेश के चेहरे पर 3-4 घूंसे जड़ दिए. इस से राजेश अद्र्धबेहोशी में चला गया.

”मैं ने बालेश को राजेश के पैर पकडऩे का इशारा किया तो उस ने राजेश के पैर दबोच लिए. मैं ने नायलोन की रस्सी राजेश वर्मा के गले में डाल कर पूरी ताकत से कस दी, राजेश का शरीर फडफ़ड़ाया फिर शांत हो गया. बालेश और मैं उस की लाश को ले कर प्रह्लादपुर आए और सर्वोदय बाल विद्यालय के सामने उसे फेंक कर अपने घर चले गए.’’

”तुम्हारा बड़ा भाई बालेश इस समय कहां पर है?’’

”वह अपने घर में होगा साहब, उस का पता आरजेड-121, संतोष पार्क, उत्तम नगर है.’’

एसआई जयकिशन ने सुंदर लाल को हवालात में बंद कर दिया और 4-5 पुलिस वालों को साथ ले कर बालेश की गिरफ्तारी के लिए उत्तम नगर के लिए रवाना हो गए.

ट्रक में लगी आग से भस्म हो गया आरोपी?

एसआई जयकिशन पुलिस टीम के साथ संतोष पार्क, उत्तम नगर बालेश के घर पहुंचे तो मालूम हुआ वह घर पर नहीं है. उस की पत्नी संतोष से उस के उठने बैठने के ठिकाने मालूम कर के वहां पर दबिश डाली गई, लेकिन बालेश नहीं मिला.

परेशान हो कर एसआई जयकिशन टीम के साथ थाने में लौट आए. उन्होंने यह रिपोर्ट एसएचओ राम अवतार मीणा को दी तो उन्होंने बालेश की टोह पाने के लिए अपने खास मुखबिर लगा दिए.

एक हफ्ता निकल गया लेकिन बालेश कुमार का सुराग नहीं मिला. इस बीच राजेश की लाश का पोस्टमार्टम करवा कर लाश उस के घर वालों के हवाले कर दी गई और सुंदर लाल को न्यायालय में पेश कर के 2 दिन की रिमांड पर ले लिया गया.

राजेश की हत्या के लिए प्रयोग की गई नायलोन की रस्सी, शराब की खाली बोतल, गिलास आदि उस जगह से एकत्र कर लिए गए, जहां सुंदर और बालेश ने राजेश की हत्या की थी.

राजेश की हत्या का यह केस एफआईआर 146/2004 दफा 302/201 आईपीसी की धारा में दर्ज कर लिया गया. इस केस की मजबूती के लिए बी-2, बी/98 जनकपुरी से सुरेंद्र शर्मा को थाने बुलवा कर उस का बयान लिया गया.

उस ने अपने बयान में बताया कि पीरागढ़ी में सुंदर लाल ने भाई बालेश को फोन पर यह कहा था कि राजेश नशे में है, आ जाओ, आज उसे निपटा देते हैं. मैं सुंदर लाल का खतरनाक इरादा भांप कर वैन से उतर गया था. मुझे पक्का विश्वास है कि राजेश उर्फ खुशीराम की हत्या सुंदर लाल और बालेश कुमार ने ही की है.’’

2 दिन बाद रिमांड की अवधि समाप्त होने पर सुंदर लाल को फिर से न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

मर चुका बालेश 19 साल बाद कैसे हुआ जिंदा

बालेश कुमार की टोह में मुखबिर लगे हुए थे. उन्हें केवल इतना पता चला कि बालेश बाईपास पर खड़े अपने ट्रक नंबर एचआर 38एफ 4832 में सवार हो कर राजस्थान भाग गया है. थाना बवाना पुलिस को पहली मई, 2004 को शाम 5 बजे डांडियावास थाना, जोधपुर (राजस्थान) से बालेश के पिता चंद्रभान ने फोन कर के एक बुरी खबर दी.

चंद्रभान ने एसएचओ राम अवतार मीणा को बताया कि उन का बेटा बालेश दिल्ली पुलिस से बचने के लिए अपने ट्रक से राजस्थान भागा था, मगर पीथावास बाईपास, थाना डांडियावास (जोधपुर) पर उस के ट्रक में आग लग गई और अपने क्लीनर के साथ बालेश जिंदा जल कर मर गया है.

एसएचओ रामअवतार मीणा ने उच्चाधिकारियों को सारी बात बता कर राय मांगी तो उन से कहा गया, ”हत्या का केस है और बालेश वांछित आरोपी है. जा कर खुद इस बात कि जांच करें कि चंद्रभान की बात में कितनी सच्चाई है. अपने बेटे को बचाने के लिए चंद्रभान झूठ भी बोल सकता है.’’

एसएचओ मीणा, एसआई जयकिशन के साथ जोधपुर के थाना ट्रेन से डांडियावास रवाना हुए. दूसरे दिन वह डांडियावास थाने में थे. थाने में बालेश का पिता चंद्रभान, बालेश की पत्नी संतोष और बालेश के 2 भाई महेंद्र कुमार, भीमसिंह मौजूद थे. चारों के चेहरे मुरझाए हुए थे.

डांडियावास थाने के थानेदार ने इस बात की पुष्टि कर दी कि बालेश का ट्रक पीथावास बाईपास रोड पर जल गया है. ड्राइविंग सीट पर बालेश की बुरी तरह जल चुकी बौडी और उस के अधजले पहचान के कागज मिले हैं.

उस के पिता चंद्रभान और पत्नी संतोष का कहना था कि वह जली हुई डैडबौडी बालेश की है. मैं ने पूरी कागजी काररवाई कर के अपनी संतुष्टि कर ली है. आप जैसा उचित समझें, काररवाई करें.

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 2

पुलिस जब उत्तम नगर में स्थित वर्मा टेलर की दुकान पर पहुंच गई. जयकिशन ने मृतक की फोटो टेलर को दिखाई गई तो उस ने तुरंत बता दिया, ”यह तो राजेश वर्मा है. इसे खुशीराम के नाम से भी बुलाते हैं. अपनी बीवी बच्चों के साथ यह आरजेड ए-113 नंबर मकान में नंदराम पार्क में रहता है.’’

एसआई जयकिशन कांस्टेबल मनदीप के साथ टेलर वर्मा द्वारा बताए पते पर पहुंचे तो घर के अंदर राजेश वर्मा की पत्नी निशा वर्मा मिली. दरवाजे पर पुलिस को देख कर वह घबरा गई. एसआई जयकिशन ने उसे राजेश की फोटो दिखाते हुए पूछा, ”यह तुम्हारे पति हैं?’’

”हां…’’ निशा ने सिर हिलाया, ”यह कल दोपहर को घर से यह कर गए थे कि बाइक ठीक करा कर आ रहा हूं. कल से यह घर नहीं लौटे हैं.’’

”अब नहीं लौटेंगे, इन की हमें बवाना थानाक्षेत्र में डैडबौडी मिली है.’’ कांस्टेबल मनदीप ने गंभीर स्वर में बताया.

सुनते ही निशा दहाड़े मार कर रोने लगी. थोड़ी देर पति के लिए विलाप कर लेने के बाद उस ने सुबकते हुए पूछा, ”मेरे पति की मौत कैसे हो गई? वह तो घर से अच्छेभले गए थे.’’

”उन की किसी ने हत्या की है.’’ एसआई जयकिशन ने कहा, ”तुम्हारे पति की किसी से दुश्मनी थी क्या?’’

”जी, 2 साल पहले 2002 में उन के भाई सुरेश वर्मा की किसी ने हत्या कर दी थी. सुरेश की पत्नी सज्जन देवी पति की मौत के बाद हमारे साथ रही. फिर अपने मायके चली गई. अभी कुछ दिन पहले सज्जन देवी के भाई यहां आ कर सज्जन देवी का संपत्ति में हिस्सा मांगने लगे. तब मेरे पति ने उन्हें 4 लाख रुपए दे दिए थे, लेकिन वह इस से संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने धमकी दी थी कि संपत्ति में बराबर का हिस्सा उन की बहन सज्जन देवी को नहीं दिया तो परिणाम भयंकर होंगे. मुझे शक है मेरे पति की हत्या सज्जन देवी के भाइयों ने ही की है.’’

”उन का नाम, पता हमें नोट करवाओ.’’ एसआई जयकिशन ने कहा.

निशा वर्मा ने सज्जन देवी के दोनों भाइयों के नाम और पते एसआई जयकिशन को नोट करवा दिए.

”पोस्टमार्टम होने के बाद तुम्हारे पति राजेश की डैडबौडी तुम्हें अंतिम संस्कार करने के लिए सौंप दी जाएगी. तुम कल बवाना थाने में आ जाना.’’ कांस्टेबल मनदीप ने कहा.

”आ जाऊंगी साहब.’’ निशा अपने आंसू पोंछते हुए भर्राए गले से बोली.

एसआई जयकिशन कांस्टेबल मनदीप के साथ थाने के लिए लौट गए.

राजेश वर्मा उर्फ खुशी राम की हत्या में सज्जन देवी के भाई संजय व सतीश का हाथ है. यह बात हरियाणा के सलाना गांव जा कर पुलिस द्वारा तफ्तीश करने पर गलत साबित हुई. गांव के कई जिम्मेदार लोगों से संपर्क करने पर पुलिस को यह मालूम हुआ कि सज्जन देवी और उस के भाई एक महीने से गांव में ही हैं, वह दिल्ली नहीं गए हैं. उन का राजेश की हत्या में हाथ नहीं हो सकता.

पुलिस को सज्जन देवी ने एक चौंकाने वाली बात बताई, ”साहब, निशा मक्कार औरत है. उस का अपने ननदोई बालेश कुमार के साथ चक्कर चल रहा है. यह बात मेरे जेठ राजेश को भी मालूम थी, उन का बालेश को ले कर कई बार निशा से झगड़ा भी हुआ था.’’

निशा वर्मा ने बताया चौंकाने वाला सच

एसआई जयकिशन के लिए यह जानकारी अहम थी. वह दिल्ली लौटे तो उन्होंने 2 पुलिस वाले भेज कर निशा को बवाना थाने में बुलवा लिया.

निशा को अपने सामने बिठा कर एसआई जयकिशन ने बगैर कोई भूमिका बांधे सवाल दाग दिया, ”राजेश की हत्या तुम्हारे इशारे पर हुई है निशा, हमें यह बात तुम्हारे प्रेमी बालेश कुमार ने बता दी है.’’

”झूठ है साहब.’’ निशा बौखला कर बोली, ”भला मैं अपने पति की हत्या क्यों करवाऊंगी, वह तो मेरे सुहाग थे.’’

”अगर पति को सुहाग मानती थी तो बालेश से तुम ने अवैध संबंध क्यों बना रखे थे?’’

निशा वर्मा ने सिर झुका लिया. धीरे से बोली, ”बालेश से मेरा प्रेम संबंध शादी से पहले का रहा है. राजेश से शादी के बाद मैं ने बालेश से संबंध खत्म करने की कोशिश की, लेकिन बालेश ने ऐसा नहीं होने दिया. मैं इस के लिए दोषी ठहराई जा सकती हूं, किंतु मैं ने बालेश के द्वारा अपने पति की हत्या नहीं करवाई है. मैं अपने बच्चों की कसम खाती हूं, मुझे नहीं मालूम मेरे पति की हत्या किस ने की है.’’

”तुम्हारा पति 20 तारीख की दोपहर में घर से गया था. क्या उस के देर तक न लौटने पर तुम ने फोन कर के मालूम किया था कि वह कहां है?’’

”मैं पूरा दिन अपने पति का इंतजार करती रही थी, परेशान हो कर मैं ने रात को 8 बजे उन्हें फोन मिलाया तो सुंदर लाल ने उठाया. वह नशे में लग रहा था. उस ने कहा था कि राजेश मेरे साथ है. अभी घर लौट आएगा.’’

”यह सुंदर कौन है?’’ एसआई जयकिशन ने पूछा.

”बालेश का भाई है साहब.’’

एसआई जयकिशन की आंखों में तीखी चमक उभरी, ”सुंदर कहां रहता है?’’

”वह विकास विहार, मानस कुंज रोड, उत्तम नगर में ही रहता है. उस का मकान नंबर क्यू-7 है.’’

एसआई जयकिशन ने कांस्टेबल मनदीप के साथ 2 कांस्टेबल उत्तमनगर सुंदर लाल को बुलाने के लिए रवाना कर दिए. शाम तक वह सुंदर लाल को उस के घर से पकड़ कर थाने में ले आए. सुंदर लाल 31 साल का हृष्टपुष्ट युवक था. उस का चेहरा सामान्य था. किसी प्रकार की घबराहट चेहरे पर नजर नहीं आ रही थी. एसएचओ राम अवतार मीणा भी वहां आ गए थे. उन के सामने सुंदर लाल से पूछताछ शुरू हुई.

एसआई जयकिशन ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा, ”तुम कल रात को अपने साले राजेश के साथ थे. तुम घर पहुंच गए, लेकिन राजेश अभी तक अपने घर नहीं पहुंचा है. बताओ, राजेश कहां है?’’

”मैं ने तो उसे 7 बजे ही घर के लिए भेज दिया था साहब… वह घर क्यों नहीं पहुंचा, मैं क्या जानूं.’’

एसआई जयकिशन ने खींच कर एक करारा थप्पड़ उस के गाल पर रसीद कर दिया, ”झूठ बोलता है, रात 8 बजे तो तूने निशा का फोन रिसीव किया था और उस को बताया था कि राजेश तेरे साथ है.’’

”नहीं साहब, मुझे निशा का कोई फोन नहीं आया था.’’

एसआई जयकिशन ने पास में खड़े कांस्टेबल मनदीप को इशारा करते हुए कहा, ”यह बगैर डंडे खाए सच नहीं बोलेगा, टार्चर रूम में ले जा कर इस की खातिरदारी करो.’’

लिव इन पार्टनर की हत्या कर सूटकेस में डाली लाश

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 1

लाश जिस व्यक्ति की थी, उस की उम्र 35 साल के आसपास थी. वह खाकी रंग का पाजामा और सफेद रंग की हाफ बाजू की कमीज पहने हुए था. उस की बाईं आंख पर चोट के निशान थे. सूजन भी थी. लग रहा था जैसे उस की आंख पर घूंसे मारे गए हैं.

उस की गरदन पर रस्सी के दबाव से बने नीले निशान साफ दिखाई पड़ रहे थे, इस से जाहिर होता था कि रस्सी के द्वारा गला घोंट कर इस को मारा गया है. एसआई जयकिशन ने मृतक के पाजामा और कमीज की जेबें टटोलीं, लेकिन उन में थोड़े से रुपयों के अलावा ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से उस की पहचान हो सकती थी.

पश्चिमी दिल्ली के उत्तम नगर में रहने वाली निशा वर्मा सुबह जल्दी जाग गई थी, उस के पति राजेश को एक रिश्तेदारी में करनाल (हरियाणा) जाना था. निशा ने उठ कर पति के लिए चायपरांठे बनाए और उसे नाश्ता करवाने के बाद सफर के लिए रवाना कर दिया. फिर वह घर के दूसरे काम निपटाने में व्यस्त हो गई.

उस ने झाड़ूपोंछा करने के बाद बच्चों को उठाया और उन्हें तैयार कर के स्कूल भेज दिया. अब वह नहाने की तैयारी करने लगी थी. वह घर का बाहरी दरवाजा बंद कर के बाथरूम की ओर बढ़ी ही थी कि दरवाजे को किसी ने खटखटा दिया.

‘कौन आ गया सुबहसुबह?’ वह बड़बड़ाई और पलट कर दरवाजे के पास आ गई. दरवाजे को कोई अभी भी खटखटा रहा था.

”कौन है?’’ उस ने ऊंची आवाज में पूछा.

”मैं बालेश हूं निशा, दरवाजा खोलो.’’

बालेश का नाम सुनते ही निशा रोमांच से भर गई. उस के तनमन में वासना की तरंगें हिलोरें लेने लगीं. झट से उस ने दरवाजा खोल दिया. दरवाजे पर बालेश खड़ा था.

”आओ, अंदर आ जाओ.’’ वह आवाज में मिश्री घोलते हुए बोली.

बालेश कुमार अंदर आ गया तो निशा ने दरवाजा फिर से बंद कर लिया. बालेश ने जवानी के बोझ से लदी निशा को ऊपर से नीचे तक निहारा, फिर ड्राइंग रूम की तरफ कदम बढ़ाते हुए मुसकरा कर बोला, ”ऐसा क्या खाती हो निशा, तुम्हारा यौवन दिन पर दिन गुलाब की तरह खिलता जा रहा है.’’

”तुम्हारे प्यार का जादू है यह बालेश. शादी से पहले भी मैं तुम्हारे आगोश में कामना के हिंडोले पर झूलती रही हूं. शादी के बाद मेरी जवानी के तुम ही खेवैया हो. ऐसे में इस जवानी में निखार तो आएगा ही.’’

”इस में राजेश का भी तो योगदान है निशा… वह…’’

निशा ने बालेश के होंठों पर हाथ रख कर उस का वाक्य अधूरा कर दिया, ”वह मेरा नाम का पति है बालेश, उस में तुम्हारे जैसा दमखम नहीं है. वैसे भी मैं उसे अब ज्यादा मुंह नहीं लगाती.’’

बालेश हंस पड़ा, ”लगता है, मेरे प्यार में तुम पूरी तरह पागल हो चुकी हो.’’

निशा मुसकराते हुए बोली, ”ऐसा ही समझ लो, हमारी लव स्टोरी कुछ ऐसी ही है.’’ निशा ने बालेश के गले में अपनी बाहें डाल कर उस के होंठ चूमते हुए मदहोशी से कहा, ”मैं हमेशा तुम्हारी बाहों में रहना चाहती हूं बालेश, तुम्हारी रानी बन कर.’’

”यह संभव नहीं है निशा. तुम जानती हो मेरी बीवी है, बच्चे हैं.’’

”बीवी को तलाक दे दो. क्या मेरी खातिर तुम ऐसा नहीं कर सकते?’’

निशा की बांहों से अपनी गरदन निकालते हुए बालेश ने गहरी सांस ली, ”ऐसा हो सकता है, लेकिन मैं अपनी पत्नी को धोखा नहीं दूंगा. फिर ऐसा करना जरूरी भी नहीं है. मैं तुम्हें भी उतना ही प्यार करता हूं निशा, जितना अपनी पत्नी को करता हूं. तुम्हारी जरूरतें भी मैं पूरी करता रहता हूं. इसलिए जैसा चल रहा है, चलने दो.’’

निशा के चेहरे पर उदासी की परतें जम गईं, ”बालेश, हम चोरीछिपे अपने प्यार को जिंदा रखे हुए हैं, लेकिन मुझे राजेश की ओर से अब डर लगने लगा है. वह तुम्हें ले कर मुझ से 2-3 बार लड़ाई कर चुका है. उस का कहना है कि मेरा तुम से इश्क विश्क का चक्कर चल रहा है. मैं उसे विश्वास दिलाने के लिए झूठी कसमें खाती हूं, उस को यकीन दिलाती हूं कि तुम मेरे भाई जैसे हो. तुम्हीं बताओ, ऐसा लुकाछिपी का प्यार कब तक चलेगा. किसी दिन राजेश ने हमें रंगेहाथ पकड़ लिया तो वह मेरी चमड़ी उधेड़ देगा.’’

”उस ने तुम पर हाथ उठाया तो मैं उस के हाथ तोड़ डालूंगा. मैं यह भूल जाऊंगा कि दूर के रिश्ते में वह मेरा साला लगता है.’’ बालेश आवेश में बोला.

”ऐसा न हो, मैं यही चाहती हूं. तुम मुझ से मिलने आया करो तो सावधानी बरता करो और आने से पहले मुझे फोन कर लिया करो.’’

”ठीक है.’’ बालेश ने सिर हिलाया, ”अब बैड पर चलो, बहुत दिनों से तुम्हें अपनी आगोश में ले कर भरपूर प्यार नहीं किया है.’’

निशा ने कातिल अंगड़ाई ली और राजेश के गले में अपनी बाहें डाल दीं. बालेश ने निशा को अपनी गोद में उठा लिया और पलंग की ओर बढ़ गया.

20 अप्रैल, 2004 को सुबह 6.25 बजे कंट्रोलरूम द्वारा दिल्ली के थाना बवाना को वायरलैस से सूचना मिली कि प्रह्लादपुर, बांगर गांव के सामने सर्वोदय बाल विद्यालय के पास एक व्यक्ति की लाश पड़ी हुई है, जा कर देखें.

थाना बवाना के तत्कालीन एसएचओ राम अवतार मीणा उस वक्त थाने में मौजूद थे. वह तुरंत एसआई जयकिशन और कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

कैसे हुई मृतक की पहचान

मार्निंग वाक पर निकले कुछ लोग लाश देख कर रुक गए थे. पुलिस वैन जब घटनास्थल पर पहुंची तो वह लोग लाश से दूर हट गए. वह लाश किसी युवक की थी, जिस की शिनाख्त वहां मौजूद लोगों से नहीं हो सकी.

उस व्यक्ति की पहचान होना जरूरी थी. एसआई जयकिशन ने वहां मौजूद लोगों से मृतक की शिनाख्त करवाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली.

”सर, लगता है कि इस लाश को यहां पर कहीं और से ला कर फेंका गया है, इसे यहां कोई नहीं पहचानता है.’’ एसआई जयकिशन ने एसएचओ मीणा से कहा.

एसएचओ ने आसपास नजरें दौड़ाईं. वहां उन्हें कोई सीसीटीवी कैमरा भी नजर नहीं आया. कुछ सोच कर उन्होंने मृतक की कमीज पर लगे टेलर के लेबल को चैक किया, वह उत्तम नगर के नंदराम पार्क के वर्मा टेलर के नाम से था. उन्होंने वह पता डायरी में नोट करने के बाद लाश का पंचनामा बनाया और लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

लिव इन पार्टनर की हत्या कर सूटकेस में डाली लाश – भाग 3

हत्या की बताई चौंकाने वाली वजह

इस शिकायती और संदेह वाली बातों पर पुलिस ने पूछा, ”तुम ने इस बारे में कभी पता लगाने की कोशिश की कि उस के पास पैसे हैं या नहीं? हो सकता है उस के पास उस वक्त पैसे नहीं हों, जब तुम मांगते होगे.’’

”नहीं सर, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन नहीं देती थी.’’ मनोज बोला.

”चलो मान लिया, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन उसी ने तुम्हें काम पर भी रखवाया था. वहां से पैसे मिले होंगे…उस का तुम ने क्या किया?’’ पुलिस ने पूछा.

”एक माह के ही मिले थे, सारे पैसे मैं ने अपने घर भेज दिए थे.’’ मनोज बोला.

”प्रतिमा को कुछ भी नहीं दिया?’’

”उसे क्यों देता, उसे भी तो पैसे मिले थे?’’ मनोज बोला.

”तुम्हें उस ने साथ रखा था, पति की तरह रहते थे. तुम्हारी भी तो घर चलाने की जिम्मेदारी थी.’’ पुलिस ने समझाया.

”लेकिन सर, वह अपने पैसे दूसरों पर खर्च करती थी, मुझे मालूम था वह कोई रिश्तेदार नहीं था. उस का एक प्रेमी था.’’ मनोज फिर प्रेमिका के चरित्र पर शंका के लहजे में बोला.

”इस का तुम ने कुछ पता किया या फिर यूं ही संदेह करते रहे?’’

”मैं क्या उस के बारे में पूछता. एक बार कुछ बोलने वाला ही था कि वह चीखने लगी… ताने मारने लगी… मुझे ही भलाबुरा कहने लगी थी.’’

”मुझे तो मालूम हुआ है कि प्रतिमा की कुछ माह से नौकरी छूट गई थी.’’

”हां, इस की जिम्मेदार भी वही थी. झगड़ालू स्वाभाव था. अपने मालिक से बातबात पर झगड़ पड़ती थी. उसे नौकरी से निकाल दिया था.’’ मनोज ने बताया.

”हो सकता है, दूसरे काम की तलाश में लोगों से फोन पर बात करती हो और तुम उसी को ले कर शक करने लगे हो.’’

”मैं इतना बुद्धू नहीं हूं सर, जो किसी लड़की के फोन पर हंस हंस कर बात करने का मतलब नहीं समझ पाऊं.’’ मनोज बोला.

”खैर, छोड़ो इन बातों को, सचसच बताओ 18 नवंबर, 2023 को क्या हुआ था?’’ पुलिस अब असली मुद्दे पर आ गई थी.

”असल में 18 तारीख को उस ने मुझ से कमरे का किराया देने के लिए पैसे मांगे. मेरे पास पैसे नहीं थे. इस पर उस ने मुझे दुकान से एडवांस मांगने को कहा, जो मुझ से नहीं हो सकता था. कारण, वहां से पहले ही एडवांस ले चुका था.’’

”फिर तुम ने क्या किया?’’

”मैं क्या करता, पैसे मेरे पास नहीं थे. इस बात को ले कर काफी बहस होने लगी. मैं परेशान हो गया. उस ने मुझे गालियां देनी शुरू कर दीं. दोपहर से हमें झगड़ते हुए शाम घिर आई. मैंं गुस्से से घर से बाहर निकल पड़ा. कुछ समय में ही वापस लौट आया. आते ही वह बरस पड़ी, ”आ गए, आटा लाए?’’

इस पर मैं ने जैसे ही कहा कि मेरे पास पैसे नहीं है तो वह एक बार फिर बरस पड़ी. गालियां देती हुई बोली, ”नहीं है तो भूखे रहो… मरो यहीं, मैं चली.’’

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इत्मीनान से रखी सूटकेस में लाश

मनोज ने आगे बताया, ”तब तक रात के साढ़े 9 बज चुके थे. प्रतिमा ने अपना बैग उठाया और पैर पटकती हुई घर से जाने लगी. मैं ने तुरंत उस का हाथ खींच लिया, जिस से उस का संतुलन बिगड़ गया और गिरने को हो आई. उस के बाद प्रतिमा और भी गुस्से में आ गई. आंखें लाल करती हुई गालियां देने लगी. मेरे खानदान तक को कोसने लगी.’’

मनोज ने आगे बताया, ”असल में उस का हाथ खींचने से चुन्नी उस के गले में फंस गई थी. इस कारण उस ने समझा कि मैं ने उस का गला जानबूझ कर कसने की कोशिश की है. गालियां देती हुई  मुझ पर आरोप लगा दिया कि मैं उसे गला कस कर मारना चाहता हूं.

”यह बात मेरे दिमाग में बैठ गई और उस की हत्या की बात कीड़े की तरह पलक झपकते ही दिमाग में कुलबुलाने लगी. फिर क्या था, ऐसा हुआ कि मानो मैं ने अपना होश खो दिया हो…

”मेरा गुस्सा चरम पर पहुंच चुका था. मैं ने 2-3 जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. थप्पड़ खा कर वह जमीन पर गिर गई. तिलमलाती हुई वह उठने लगी, लेकिन जब तक वह उठ पाती, मैं ने दोनों हाथों से उस का गला दबा दिया. अपनी भाषा में गाली दी और हाथों की पकड़ मजबूत कर दी.

”कुछ सेकेंड बाद ही दुबलीपतली प्रतिमा बेजान हो चुकी थी. उस की चीख भी बंद हो चुकी थी. गुस्से में आ कर उस की हत्या तो हो गई, लेकिन उस के बाद मैं घबरा गया.’’

”और इस तरह तुम ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर डाली. उस के बाद तूने क्या किया?’’ जांच अधिकारी ने पूछा.

”रात के 10 बजने को हो आए थे. मैं अपने हाथों से प्रतिमा की हत्या से घबरा गया था. थोड़ी देर तक उस के पास बैठा सोचता रहा, उस की मौत का मातम मनाता रहा, लेकिन पकड़े जाने, कड़ी सजा होने…जैसे खयाल मन में आने लगे. इसी बीच मेरी नजर घर में रखे उसी के एक बड़े सूटकेस पर गई. मैं ने झट उसे खाली किया और कपड़ों की तह के बीच जैसेतैसे कर के उस की लाश को ठूंस दिया.

”उस सूटकेस को ले कर कमरे पर से निकल गया. उस वक्त रात के करीब पौने 12 हो चुके थे. सायन से आटोरिक्शा लिया और कुर्ला लोकमान्य तिलक टर्मिनस जा पहुंचा. मैं सूटकेस को रेलवे स्टेशन के किसी इलाके में छोडऩा चाहता था, लेकिन लोगों की भीड़ देख कर ऐसा नहीं कर पाया. वापस लौट आया…’’ मनोज बोलतेबोलते रुक गया.

”आगे बताओ,’’ जांच अधिकारी ने कहा.

”उस के बाद मैं और भी घबरा गया क्योंकि आटोरिक्शा वाला बारबार मुझ से कह रहा था कि साहब जल्दी उतरो स्टेशन आ गया है. मैं पशोपेश में था कि क्या करना है और क्या नहीं! आखिरकार मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया.

”वापस कमरे पर जाने के बारे में सोचते हुए दूसरा आटोरिक्शा लिया और सीएसटी पुल के नीचे सार्वजनिक शौचालय के सामने चेंबूर सांताक्रुज चैनल कुर्ला पश्चिम में एक जगह पर आया. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. रात का समय था. एकदम सुनसान. वह जगह मुझे उचित लगी.’’

मनोज ने आगे बताया, ”मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया. उस के जाने के बाद इधरउधर देखा. कहीं कोई नजर नहीं आ रहा था. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. आम लोगों को जाने से रोकने के लिए कई बैरिकेड्स लगे थे. मैं ने तुरंत एक बैरिकेड को थोड़ा खिसका कर सूटकेस को अंदर सरका दिया. कुछ देर वहां रुकने के बाद मैं आगे बढ़ गया और आटो ले कर सायन धारावी लौट आया.’’

आगे की जानकारी देता हुआ मनोज बारला बोला, ”मैं कमरे पर जा कर फिर गहरी नींद में सो गया. अगले रोज 19 नवंबर को देर से नींद खुली. फटाफट तैयार हुआ और सुबह 11 बजे के करीब ओडिशा जाने के लिए रेलवे स्टेशन चला आया, किंतु ट्रेन पकडऩे से पहले ही क्राइम ब्रांच द्वारा पकड़ लिया गया.’’

पुलिस ने मनोज बारला के इस बयान को दर्ज कर लिया गया. आगे की काररवाई के बाद उसे गिरफ्तार कर मजिस्ट्रैट के सामने हाजिर कर दिया गया. वहां से जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लिव इन पार्टनर की हत्या कर सूटकेस में डाली लाश – भाग 2

सूटकेस खुलते ही क्यों चौंकी पुलिस

बात बीते साल 2023 में नवंबर माह के 19 तारीख की है. मुंबई के कुर्ला इलाके में मेट्रो कंस्ट्रक्शन साइट पर गश्त करती पुलिस को एक लावारिस सूटकेस मिला. संदिग्ध सूटकेस में विस्फोटक होने की आशंका के साथ इस की सूचना निकट के थाने को दे दी गई.

सूचना पाते ही बम स्क्वायड पहुंच गया. सूटकेस के नंबर वाला लौक बड़ी मुश्किल से खुल पाया. उस की चेन भी भीतर पड़े कपड़े और महीन धागे से फंस गई थी. सूटकेस खुला तो उस के अंदर एक युवती की लाश निकली. क्राइम ब्रांच के सामने सब से पहला सवाल था कि लाश किस की है?

इस की तहकीकात के लिए क्राइम ब्रांच के डीसीपी राज तिलक रौशन ने अलगअलग टीमें बनाईं. लावारिस लाश भरा सूटकेस उस वक्त मिला था, जब पूरे देश की निगाहें क्रिकेट वल्र्ड कप के फाइनल मुकाबले पर टिकी थीं.

आरोपी तक कैसे पहुंची पुलिस

पुलिस की एक जांच टीम मौके पर लगे सीसीटीवी कैमरे और इंटेलीजेंस की मदद से तहकीकात में जुट गई, जबकि दूसरी टीम लाश की पहचान के लिए उस की शिनाख्त करने लगी.

मामला कुर्ला पुलिस स्टेशन में दर्ज कर लिया गया था. शव को राजावाड़ी अस्पताल ले जाया गया. वहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उस के बाद महिला के शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महिला की गला दबा कर हत्या की बात सामने आई. उस आधार पर कुर्ला पुलिस धारा 302, 201 आईपीसी के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई. इस दौरान मृत महिला के गले में क्रास और शरीर पर कपड़ों से पुलिस ने उस के ईसाई समाज के मध्यमवर्गीय परिवार से होने का अंदाजा लगाया.

पुलिस की टीम ने मौके पर लगे हुए सीसीटीवी कैमरों और इंटेलीजेंस की मदद से आरोपी के बारे में पता लगाना शुरू किया. सूचना के आधार पर पुलिस ने आरोपी की तलाश शुरू की.

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अपराध शाखा के संयुक्त आयुक्त लखमी गौतम, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) शशि कुमार मीना के आदेशानुसार एवं पुलिस उपायुक्त राज तिलक रौशन के मार्गदर्शन में गठित कुल 8 टीमें लावारिस लाश की गुत्थी सुलझाने में जुट गई थीं. सभी सीसीटीवी फुटेज की जांच करने लगीं. गुप्त खबरची के माध्यम से मृतका के पहचान की भी कोशिश होने लगी. उस की तसवीरें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी गईं. जल्द ही इस के नतीजे भी सामने आ गए. मृतका की बहन ने लाश की पहचान कर ली. मृतका की पहचान प्रतिमा पवल किस्पट्टा के रूप में हुई. उस की उम्र 25 साल के करीब थी.

उन से मिली जानकारी के अनुसार मृतका धारावी में किराए की एक खोली (कमरा) में रह रही थी. उस के साथ पति भी रहता था. पति मूलत: ओडिशा के एक गांव का रहने वाला था. उस के बारे में आसपास के लोगों से पूछताछ के बाद सिर्फ यही मालूम हो पाया कि वह गांव गया हुआ है. उस ने पड़ोसियों को बताया था कि उस की बहन बीमार है. लोगों ने पति का नाम मनोज बताया.

पड़ोसियों से मालूम हुआ कि पहले प्रतिमा अकेली ही थी, लेकिन वह बीते एक माह से मनोज उस के साथ रह रहा था. उस के बारे में पुलिस को यह भी मालूम हुआ कि वह 18 नवंबर, 2023 के बाद नहीं देखा गया था.

इस तहकीकात के साथसाथ सीसीटीवी खंगालने वाली दूसरी टीम को मनोज के कुछ सुराग हाथ लग गए थे. 18 नवंबर की रात को वह एक आटो धारावी से ले कर आसपास के कुछ इलाके में घूमता नजर आया था. आटो किसी रेलवे स्टेशन के रास्ते पर जाने के बजाए कुर्ला में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक गया था. उस के बाद उस का पता नहीं चल पाया था.

जांच की एक अन्य टीम मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर भी जा पहुंची थी, उन में मुंबई का लोकमान्य तिलक टर्मिनस खास था. वहां पुलिस टीम को एक घबराया हुआ युवक दिख गया, जिस का हुलिया दूसरी जांच टीम से मिली जानकारी से मेल खाने वाला था. उस के पास पुलिस तुरंत जा पहुंची. पास आई पुलिस को देख कर युवक भागने लगा, जिसे पुलिस ने दौड़ कर पकड़ लिया.

पकड़ा गया युवक मनोज बारला था. उसे ठाणे पुलिस ला कर पूछताछ की गई. जब सूटकेस वाली लावारिस महिला की लाश के बारे में उस से पूछा गया, तब वह खुद को रोक नहीं पाया. रोने लगा. एक पुलिसकर्मी ने उसे पीने के लिए पानी दिया. कुछ सेकेंड बाद पानी पी कर जब वह सामान्य हुआ, तब उस से दोबारा पूछताछ की जाने लगी. फिर उस ने लाश के साथ अपने संबंध के बारे में जो कुछ बताया, वह काफी दिल दहला देने वाला था.

दरअसल, यह अभावग्रस्त जिंदगी से तंग आ चुके प्रेमियों की कहानी थी, जो बीते एक माह से बिना शादी किए रह रहे थे. इसे पुलिस रिकौर्ड में लिवइन रिलेशन दर्ज कर लिया गया. उन का प्रेम खत्म हो चुका था और प्रेमी सलाखों के पीछे जाने के काफी करीब था. उस ने जो आगे की कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

मनोज ने पुलिस को बताया कि मुझे दुख है कि मैं ने अपने हाथों से अपनी प्रेमिका प्रतिमा पवल किस्पट्टा का गला घोंट दिया. उसी प्रेमिका को मार डाला, जिस ने मुझ से प्रेम किया और मुझे नौकरी दिलाने के लिए ओडिशा से यहां बुलाया था.

उस ने बताया कि प्रतिमा के कहने पर ही वह मुंबई में आया था. मुंबई में स्थित वड़ापाव की एक मशहूर दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था. वह एमजी नगर रोड, धारावी में प्रेमिका प्रतिमा के साथ ही रहने लगा था. उन्होंने शादी नहीं की थी, लेकिन प्रतिमा उसे अपना पति बना चुकी थी. इस तरह से उन के लिवइन रिलेशनशिप की शुरुआत हो गई थी.

उन्होंने साथ रहते हुए भविष्य के सुनहरे सपने देखे थे. किंतु वे आर्थिक तंगी से भी गुजर रहे थे. पैसे की कमी को ले कर उन के बीच कभीकभार बहस भी हो जाती थी.

मनोज शिकायती लहजे में बताने लगा, ”सर, प्रतिमा मेरी प्रेमिका जरूर थी, पैसा भी कमाती थी. मैं जब भी अपने खर्चे के लिए मांगता था, तब किचकिच करने लगती थी. इसी बात पर मेरी उस से लड़ाई हो जाती थी. वह बारबार कहती थी कि अपना खर्च कम करो, अपनी कमाई के पैसे लाओ, फिर मुझ से मांगना.’’

इसी के साथ मनोज ने प्रतिमा के चरित्र पर भी शंका के लहजे में बोला, ”सर, प्रतिमा का कोई यार भी था. उस से बहुत देर तक वह फोन पर बातें करती थी. मैं सब समझता हूं सर! एक समय में कभी वह मुझ से भी फोन पर देरदेर तक बातें करती थी…’’