कुछ इस तरह धरा गया दुर्गेश शर्मा

पिछले 15 सालों से दुर्गेश शर्मा और पटना पुलिस के बीच चूहे बिल्ली का खेल चल रहा था. पिछले दिनों उस की गिरफ्तारी के बाद पटना पुलिस ने जरूर चैन की सांस ली होगी.

22 जुलाई, 2017 को एसटीएफ ने दुर्गेश शर्मा को ‘राजेंद्रनगर न्यू तिनसुकिया ऐक्सप्रैस’ रेलगाड़ी में बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन के पास पकड़ा. उस समय उस की बीवी और बच्चे भी साथ थे. एसटीएफ ने जब नाम पूछा, तो दुर्गेश ने अपना नाम राजीव शर्मा बताया. उस ने रेलगाड़ी का टिकट भी राजीव शर्मा के नाम से रिजर्व करा रखा था. उस ने राजीव शर्मा के नाम का पैनकार्ड, आधारकार्ड और वोटर आईडी भी एसटीएफ को दिखाया. कुछ देर के लिए एसटीएफ की टीम भी चकरा गई.

टीम को लगा कि कहीं उस ने गलत आदमी पर तो हाथ नहीं डाल दिया, पर एसटीएफ के पास दुर्गेश शर्मा का फोटो था, जिस से उस की पहचान हो सकी. दुर्गेश शर्मा से पूछताछ के बाद पुलिस को कई सुराग और राज पता चले हैं. उस ने अपने तकरीबन 15 गुरगों के नाम पुलिस को बताए, जिन के दम पर वह रंगदारी वसूलता था.

16 जनवरी, 2016 में उस ने एसके पुरी थाने के राजापुर पुल के पास सोना कारोबारी रविकांत की हत्या कर दी थी.उस हत्या के बारे में दुर्गेश शर्मा ने कहा कि उस की हत्या गलती से हो गई थी. उस के गुरगे करमू राय ने शराब के नशे में रविकांत की हत्या कर दी थी. दुर्गेश शर्मा पटना के मैनपुरा, बोरिंग रोड, राजा बाजार, दीघा और पाटलीपुत्र कालौनी जैसे महल्लों के बड़े कारोबारियों से ले कर छोटे दुकानदारों तक से रंगदारी वसूलता था.

दुर्गेश शर्मा पटना हाईकोर्ट से फर्जी तरीके से जमानत भी ले चुका है. साल 2011 में फर्जी जमानत पर फरार होने के बाद दुर्गेश शर्मा ने सिलीगुड़ी को अपना ठिकाना बना लिया था. पटना में जीतू उपाध्याय दुर्गेश शर्मा का खासमखास गुरगा था और वही पटना में रंगदारी वसूली का काम किया करता था और नैट बैंकिंग के जरीए दुर्गेश शर्मा के खाते में रुपए ट्रांसफर कर देता था.

सिलीगुड़ी के अलावा दुर्गेश उर्फ राहुल उर्फ राजीव ने पुलिस से बचने के लिए पटना के बाहर कई शहरों में अपना ठिकाना बना रखा था. कोलकाता के साल्ट लेक इलाके में भी उस का ठिकाना था. झारखंड के धनबाद शहर में भी उस का मकान था. असम के तिनसुकिया शहर के सुबोचनी रोड पर सटू दास के मकान में वह किराएदार था. रांची, जमशेदपुर में भी उस के मकान होने का पता चला है.

पटना के बोरिंग रोड इलाके में बन रहे एक मौल में भी दुर्गेश शर्मा की हिस्सेदारी है. साथ ही, पटना के मैनपुरा इलाके और पश्चिमी पटना की कई कीमती जमीनों पर भी वह कब्जा करने की फिराक में था. दुर्गेश शर्मा शंकर राय की हत्या करने के लिए पटना आया था. उस के बाद उस ने समर्पण करने की सोची थी. दुर्गेश शर्मा और शंकर राय के बीच इलाके के दबदबे को ले कर टकराव चलता रहा है. इस में दोनों गुटों के कई लोग मारे जा चुके हैं.

पटना के कई थानों में उस के खिलाफ 32 मामले दर्ज हैं, जिन में से 20 संगीन हैं. साल 2015 में ठेकेदार संतोष की हत्या के मामले में पुलिस उसे ढूंढ़ रही थी. तकरीबन 10 साल पहले वह पटना के अपराधी सुलतान मियां का दायां हाथ हुआ करता था. वह सुलतान मियां गैंग का शार्प शूटर था. साल 2008 में उस ने सुलतान मियां से नाता तोड़ कर अपना अलग गैंग बना लिया.

साल 2015 में शंकर राय से सुपारी ले कर दुर्गेश शर्मा ने संतोष की हत्या की थी. काम हो जाने के बाद भी शंकर ने उसे रकम नहीं दी थी. उस हत्या के मामले में शंकर को जेल हो गई थी. उस रकम को ले कर दोनों के बीच तनाव काफी बढ़ चुका था.

पटना नगर निगम चुनाव के समय दुर्गेश शर्मा को पता चला कि शंकर की बीवी पटना नगर निगम के वार्ड नंबर-24 से चुनाव लड़ रही है. दुर्गेश को लगा कि अगर शंकर की बीवी चुनाव जीत गई, तो उस का राजनीतिक कद बढ़ जाएगा और वह उस पर भारी पड़ने लगेगा.शंकर की हत्या करने का उसे यही बेहतरीन मौका लगा. चुनाव प्रचार के दौरान वह शंकर को आसानी से मार सकता है. दुर्गेश पटना पहुंचा, पर शंकर की हत्या न कर सका.

दुर्गेश शर्मा पहली बार साल 2003 में पुलिस के चंगुल में फंसा था और साल 2006 में वह जमानत पर छूटा था. उस के बाद उस का खौफ इतना बढ़ गया था कि साल 2011 में राज्य सरकार ने उस की गिरफ्तारी पर 50 हजार रुपए का इनाम रखा. उस के बाद भी वह पिछले 6 सालों तक पुलिस को चकमा देने में कामयाब रहा.

दुर्गेश की बीवी कविता ने पुलिस को बताया कि वह कामाख्या पूजा के लिए जा रही थी कि रास्ते में उस के पति को गिरफ्तार कर लिया गया. पूजा से लौटने के बाद दुर्गेश कोर्ट या पुलिस के सामने सरैंडर करने का मन बना चुका था.

रविकांत की हत्या

16 फरवरी को 45 साला रविकांत पौने 10 बजे अपनी दुकान न्यू सोनाली ज्वैलर्स पहुंचे. दुकान का ताला खुलवाने के बाद साफसफाई की गई. उस के बाद 9 बज कर, 55 मिनट पर रविकांत काउंटर पर बैठ गए. काउंटर पर बैठ कर वे बहीखाता देख रहे थे कि 10 बजे 3 लड़के दुकान में घुसे.एक लड़के ने रविकांत से कहा कि वे सोने की चेन और 2 लाख रुपए तुरंत निकाल दें, नहीं तो जान से मार देंगे.

रविकांत ने कहा कि बारबार रंगदारी देने की उन की हैसियत नहीं है. लड़के ने फिर धमकाया कि रुपया निकालो, नहीं तो बुरा अंजाम होगा. इसी बात को ले कर दोनों के बीच बहस होने लगी. तमतमाए लड़के ने 315 बोर के देशी कट्टे से रविकांत के सीने में कई गोलियां दाग दीं. रविकांत वहीं ढेर हो गए. रविकांत के करीबियों ने बताया कि पिछले 3 महीने से रविकांत से 10 लाख रुपए की रंगदारी मांगी जा रही थी.

अपराधी दुर्गेश शर्मा और मुनचुन गोप कई दिनों से रंगदारी मांग रहे थे.जब रविकांत ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई, तो अपराधी सोने के गहनों की मांग करने लगे. एक बार रविकांत ने 36 ग्राम सोने की चेन का बना कर दी, पर इस के बाद भी रंगदारी की मांग जारी रही. रविकांत ने जब रंगदारी देने से मना किया, तो उन की हत्या कर दी गई. रविकांत की दिनदहाड़े हत्या में दुर्गेश शर्मा का नाम सामने आने के बाद भी पुलिस उसे दबोच न सकी. पुलिस उस के गुरगों को ही पकड़ सकी.

दुर्गेश शर्मा का करीबी पगला विक्रम उर्फ राजा समेत रंजीत उर्फ भोला, जितेंद्र कुमार और पप्पू कुमार को पकड़ लिया गया. ये लोग दुर्गेश शर्मा के इशारे पर बोरिंग रोड, राजापुर, मैनपुरा, मंदिरी और दानापुर इलाके में कारोबारियों और ठेकेदारों से रंगदारी वसूलते थे. रविकांत को गोली मारने वाले करमू राय तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच सके.

पगला विक्रम दुर्गेश शर्मा का दाहिना हाथ माना जाता है. मूल रूप से नालंदा का रहने वाला पगला विक्रम रामकृष्णा नगर इलाके में रहता है. राजापुर पुल के पास उस का अड्डा है. पिछले साल जब पगला विक्रम जेल गया, तो दुर्गेश शर्मा ही उस के घर का खर्च चलाता था.

जेल से बाहर आने के बाद पगला विक्रम उस के लिए खुल कर काम करने लगा. दुर्गेश शर्मा की गैरमौजूदगी में वही गिरोह को चलाता था. पिछले साल 12 फरवरी को मैनपुरा के राजकीय मध्य विद्यालय के पास पार्षद रह चुके रंतोष के भाई संतोष की हत्या में भी दुर्गेश शर्मा का नाम आया था. उस के कुछ दिन पहले ही राजापुर पुल के पास मधु सिंह की हत्या में भी उस का नाम उछला था.

छपरा जिले के गरखा थाने के फुलवरिया गांव के रहने वाले दुर्गेश शर्मा ने साल 2000 के आसपास पटना के मैनपुरा इलाके में अपना अड्डा बनाया था. उस के खिलाफ पहला केस 10 अक्तूबर, 2000 को बुद्धा कालोनी थाने में डकैती के लिए दर्ज किया गया था. शुरुआत में उस ने सुलतान मियां के शूटर के रूप में काम किया और सुलतान के गायब होने के बाद उस ने गिरोह की कमान थाम ली थी.

साल 2008 में उस ने आरा में बैंक डकैती की और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था. उसे बेऊर जेल में बंद किया गया था, पर वह हाईकोर्ट से फर्जी जमानत और्डर पर बाहर निकला था, उस के बाद वह पुलिस के लिए दूर की कौड़ी हो गया. दुर्गेश शर्मा पिछले कई सालों से आरा में रह कर अपना गैंग चला रहा था. वह अकसर अपने गिरोह के लोगों से मिलने पटना और आरा के बीच नेउरा स्टेशन पर आता था. आखिरी बार वह फरवरी, 2015 में पटना आया था.

दुर्गेश शर्मा ने कोलकाता में अपना कारोबार फैला रखा है और वह मोबाइल टावर लगाने का काम कर रहा है. राजापुर पुल के पास वह शौपिंग कौंप्लैक्स बना रहा है. उस में संतोष हत्याकांड में नामजद पप्पू, बबलू, गिरीश और गुड्डू सिंह पार्टनर हैं. एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि दुर्गेश शर्मा और उस के गिरोह के लोगों की जायदाद का पता कर उसे जब्त करने की कार्यवाही शुरू की गई है.

चंबल के बीहड़ों की आखिरी दस्यु जोड़ी

राजस्थान से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तक फैले चंबल नदी के बीहड़ों में डकैत केदार गुर्जर का काफी आतंक था. उस ने अपनी पत्नी दस्यु सुंदरी पूजा के साथ ऐसा आतंक मचा रखा था कि लोग उन के नाम से कांपते थे. उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में कभी उस की तूती बोलती थी. दोनों धनी लोगों का अपहरण कर मोटी रकम फिरौती में वसूलते थे. इस मामले में दोनों काफी होशियार थे.वे पकड़ (अपहृत) को जंजीर से बांध कर ताला लगा कर अपने साथ जंगल में रखते थे. फिरौती मिलने के बाद ही वे उसे छोड़ते थे. जब तक पैसा नहीं मिल जाता, तब तक वे पकड़ को मेहमान की तरह रखते थे.

हालांकि अब पहले जैसे खूंखार डकैत नहीं रहे, जो लोगों को कतार में खड़ा कर गोलियों से भून देते थे. एक जमाना था, जब चंबल के बीहड़ में डाकुओं का बोलबाला था. डाकुओं का ऐसा आतंक था कि लोग उन के नाम से कांपते थे. ऐसे तमाम डाकू हुए, जिन की कहानियां आज भी लोग सुनाते हैं. कई महिलाएं भी बीहड़ों में कूद कर डकैत बनीं. इन्हें बाद में दस्यु सुंदरी कहा गया.

लेकिन अब समय बदल गया है. अपराध भले ही पहले से ज्यादा बढ़ गए हैं, लेकिन अपराधों और अपराधियों का ट्रेंड बदल गया है. अब पहले की तरह बंदूकों की नोक पर डकैती की वारदात यदाकदा ही सुनने को मिलती है. डकैतों की पीढ़ी भी अब आखिरी पड़ाव पर है. बात राजस्थान, मध्य प्रदेश या उत्तर प्रदेश की करें तो यहां के ज्यादातर डकैत गिरोहों का सफाया हो चुका है. डकैत सरगना जेल पहुंच चुके हैं या मुठभेड़ में अपनी जान गंवा चुके हैं.

समय के साथ अब डकैतों की कार्यप्रणाली बदल चुकी है. पहले की तरह अब डकैत फिल्मी स्टाइल में घोड़ों पर नहीं चलते. चंबल के बीहड़ों में भी अब घोड़ों के टाप नहीं सुनाई देते. वे भी वारदात को अंजाम देने के लिए वाहनों का उपयोग करने लगे हैं. डकैतों में मुठभेड़ें भी कम होती हैं. डकैत गिरोह खूनखराबा करने के बजाय पैसे पर विश्वास करते हैं. गिरोह के सदस्यों के पास आधुनिक हथियार होते हैं. एक यही बदलाव नहीं आया है. वे रहते भी जंगलों और बीहड़ों में हैं.

राजस्थान से ले कर मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश तक पसरी चंबल की घाटी भी अब अवैध खनन की वजह से सिमटती जा रही है. अपनी ही तरह के सामाजिक भौगोलिक कारणों से क्षेत्र को कुख्यात बनाने वाली वजहों में से एक सब से महत्त्वपूर्ण वजह यहां से बहने वाली चंबल नदी है.

मध्य प्रदेश की विंध्य की पहाडि़यों से निकलने वाली यह नदी राजस्थान के कोटा, धौलपुर आदि इलाकों को पार करते हुए मध्य प्रदेश के भिंड मुरैना इलाकों से बहती हुई उत्तर प्रदेश के इटावा जिले की ओर चली जाती है. पानी के कटाव से चंबल नदी के किनारेकिनारे सैकड़ों मील तक ऊंचे घुमावदार बीहड़ों की संरचना हो गई है. चंबल के ये बीहड़ कई दशकों से डकैतों के अभेद्य ठिकाने रहे हैं.

चंबल से जुड़े इलाकों में अभी भी कुछ डकैतों का आतंक है. राजस्थान के धौलपुर में भी अभी कुछ दस्यु गिरोह सक्रिय हैं. धौलपुर के एसपी राजेश सिंह ने इन दस्युओं के खिलाफ मुहिम चला रखी है, जिस की वजह से अधिकांश दस्यु पकड़े जा चुके हैं. फिर भी डकैतों का खात्मा अभी पूरी तरह से नहीं हो सका है.

एसपी राजेश सिंह 16 अप्रैल को देर रात तक काम कर रहे थे. हालांकि उस दिन वह औफिस से जल्दी ही घर आ गए थे. लेकिन घर आने के बाद भी वह सरकारी कामकाज में उलझे थे. रात 11 बजे के करीब उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उन्होंने स्क्रीन पर नंबर देखा. नंबर खास मुखबिर का था, इसलिए उन्होंने फोन रिसीव कर बिना कोई भूमिका बनाए पूछा, ‘‘बताओ, क्या खबर है?’’

‘‘सर, आज की सूचना धमाकेदार है.’’ दूसरी ओर से मुखबिर ने कहा.

‘‘अच्छा, ऐसी क्या सूचना है?’’ एसपी साहब ने दिलचस्पी लेते हुए पूछा.

‘‘सर, आप चाहें तो आप की कई महीनों की भागदौड़ कामयाब हो सकती है.’’ मुखबिर बोला.

‘‘वो कैसे?’’ एसपी साहब ने पूछा.

‘‘सर, डकैत केदार गुर्जर आज आप के इलाके में ही घूम रहा है.’’ मुखबिर ने धीमी आवाज में कहा.

केदार का नाम सुन कर एसपी साहब के चेहरे पर चमक आ गई. उन्होंने पूछा, ‘‘कहां है वो?’’

‘‘सर, वह चंदीलपुरा के आसपास जंगल में है. उस की दोस्त पूजा डकैत भी उस के साथ है.’’ मुखबिर ने कहा.

‘‘अगर सूचना पक्की है तो आज वह हमारे हाथों से बच नहीं सकता.’’ एसपी साहब ने कहा.

‘‘सर, सूचना सौ फीसदी सही है. फिर भी आप चाहें तो उस के मोबाइल फोन से उस की लोकेशन पता करा लें.’’ मुखबिर ने एसपी साहब को आश्वस्त करते हुए कहा.

‘‘ओके मैं पता कराता हूं.’’ एसपी साहब ने कहा.

डकैत केदार गुर्जर और दस्यु सुंदरी पूजा के बारे में मिली सूचना महत्त्वपूर्ण थी. राजेश सिंह ने तुरंत एडीशनल एसपी जसवंत सिह बालोत को फोन कर के साइबर सेल द्वारा केदार गुर्जर के मोबाइल फोन की लोकेशन पता कराने को कहा.

एडीशनल एसपी जसवंत सिंह बालोत ने साइबर सेल के माध्यम से डकैत केदार गुर्जर के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगवाया तो पता चला कि वह चंदीलपुरा की घाटी के आसपास है. उन्होंने तुरंत यह सूचना एसपी राजेश सिंह को दे दी.

केदार गुर्जर की लोकेशन का पता चलते ही राजेश सिंह ने एडीशनल एसपी जसवंत सिंह बालोत को तुरंत पुलिस फोर्स के साथ जा कर डकैत केदार को घेरने को कहा. रात को ही अत्याधुनिक हथियारों से लैस एक पुलिस टीम गठित की गई और श्री बालोत के नेतृत्व में वह पुलिस टीम डकैत केदार गुर्जर और दस्यु सुंदरी पूजा की तलाश में निकल गई.

पुलिस टीम जैसे ही चंदीलपुरा की घाटी में बाबू महाराज के मंदिर के पास पहुंची तो डकैतों ने पुलिस की तरफ गोलियां चलानी शुरू कर दीं. पुलिस और डकैतों के बीच रुकरुक कर गोलियां चलती रहीं.

आखिर सवेरा होने से पहले पुलिस टीम डकैत केदार गुर्जर और दस्यु सुंदरी पूजा गुर्जर को जीवित पकड़ने में सफल रही. उन के बाकी साथी अंधेरे में वहां से भाग निकले थे. पुलिस टीम ने दिन चढ़ने पर उन की तलाश में जंगल का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला.

पुलिस टीम डकैत केदार और पूजा गुर्जर को कड़ी सुरक्षा में धौलपुर ले आई. केदार गुर्जर से एक वनचेस्टर 11, 44 बोर की राइफल, 315 बोर का एक कट्टा और 22 जिंदा कारतूस बरामद हुए थे. दस्यु सुंदरी पूजा गुर्जर के पास से 315 बोर की एक राइफल, 3 जिंदा कारतूस व 3 खाली कारतूस बरामद किए गए थे. धौलपुर जिले के बसई डांग थाने में केदार और पूजा के खिलाफ भादंवि की धारा 307, 323, 332, 353, 34 और 3/25 आर्म्स एक्ट एवं 11 आरडीए एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया.

डकैत केदार एवं पूजा गुर्जर की गिरफ्तारी से राजस्थान ही नहीं, उत्तर प्रदेश पुलिस का भी एक बड़ा सिरदर्द खत्म हो गया. केदार गुर्जर के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, डकैती, अपहरण, डकैती की योजना बनाने, बलात्कार आदि के 29 मामले दर्ज हैं.

वहीं दस्यु सुंदरी पूजा गुर्जर के खिलाफ हत्या के प्रयास एवं डकैती की योजना बनाने के 3 मुकदमे दर्ज हैं. केदार गुर्जर की गिरफ्तारी पर राजस्थान के भरतपुर रेंज के आईजी ने 10 हजार रुपए और उत्तर प्रदेश के आगरा के डीआईजी ने 5 हजार रुपए एवं आगरा के एसएसपी ने 5 हजार रुपए का इनाम घोषित कर रखा था. दस्यु केदार एवं पूजा गुर्जर से की गई पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

केदार धौलपुर जिले के बाड़ी थाना के गांव भोलापुरा का रहने वाला था. फेरन सिंह गुर्जर के बेटे केदार को लोग ठेकेदार के नाम से पुकारते थे. डकैतों के बीच भी वह केदार उर्फ ठेकेदार के नाम से ही जाना जाता था. वहीं पूजा मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के कैलारस थाने के गांव डोंगरपुर निवासी बहादुर सिंह गुर्जर की बेटी थी. अब वह केदार गुर्जर उर्फ ठेकेदार की पत्नी है.

माना जा रहा है कि चंबल के बीहड़ों में केदार एवं पूजा के बाद अब कोई ऐसा दस्यु जोड़ा नहीं बचा है, जो डकैती की वारदातों में लिप्त हो. जो डकैत बचे हैं, वे अकेले पुरुष हैं. अगर उन की शादी हुई तो पत्नी गांव में रहती है. चंबल के बीहड़ में अब किसी पुरुष डकैत के साथ कोई महिला दस्यु नहीं है.

यह विडंबना ही है कि केदार और पूजा की 2-2 बार शादी हुई है. केदार की पहली पत्नी से उसे कोई संतान नहीं हुई थी. वहीं पूजा की बचपन में उस समय शादी हो गई थी, जब वह 11-12 साल की थी. अक्तूबर, 2004 में रामबाबू गड़रिया ने भंवरपुरा गांव में कई लोगों को एक कतार में खड़ा कर गोलियों से भून दिया था. उन में पूजा का पति भी शामिल था.

पति की मौत के बाद पूजा ने ससुराल छोड़ दी और बीहड़ों में कूद गई. वह केदार गुर्जर के गिरोह में शामिल हो गई थी. कुछ दिनों बाद पूजा ने केदार से शादी कर ली थी. केदार ने ही पूजा को बंदूक चलाना सिखाया. शुरू में गिरोह में पूजा की भूमिका कोई खास नहीं थी, लेकिन सन 2007 के बाद से वह गिरोह के साथ पूरी तरह सक्रिय हो गई थी. वह अपहरण करने एवं वसूली से ले कर डकैती की योजना बनाने और पुलिस मुठभेड़ में केदार का कंधे से कंधा मिला कर साथ देने लगी थी.

करीब 2 साल पहले पुलिस ने पूजा को गिरफ्तार कर लिया था. तब वह लगभग 6 महीने तक धौलपुर की केंद्रीय जेल में बंद रही थी. बाद में जमानत मिलने पर वह वापस बीहड़ों में केदार के पास जा पहुंची थी. बीहड़ों में पूजा साड़ी बांध कर रहती थी, लेकिन जब वह गिरोह के साथ वारदात करने निकलती थी तो ब्रांडेड जींस, टीशर्ट या शर्ट तथा स्पोर्ट्स शूज पहनती थी.

केदार और पूजा ने राजस्थान के धौलपुर से ले कर उत्तर प्रदेश के आगरा एवं मध्य प्रदेश के मुरैना तक अपना कार्यक्षेत्र बना रखा था. केदार का गिरोह लंबे समय तक बीहड़ों में नहीं रहता था. लेकिन जब बीहड़ों में रहता था तो अपने विश्वस्त लोगों से राशन और सामान मंगवाता था. वह जंगल में ही खाना बनाते और खाते थे. बारिश के मौसम में तिरपाल लगा कर रहते थे. रात हो या दिन, बीहड़ में जहां भी गिरोह रुकता था, वहां 1-2 सदस्य बंदूक ले कर पहरा देते रहते थे.

बीचबीच में केदार एवं पूजा के साथ डकैत गिरोह के सदस्य तीर्थयात्रा पर भी जाते थे. ये लोग विश्वविख्यात पुष्कर मेले और अलवर जिले के भर्तृहरि मेले में कई बार जा चुके हैं. इस बीच ये अपनी वेशभूषा बदल लेते थे. केदार गुर्जर धोतीकुरता और पगड़ी बांध कर ठेठ देहाती बन जाता था तो पूजा जंफर और कुरती पहन कर ठेठ गूजरी बन जाती थी. लेकिन 1-2 हथियार ये अपने साथ रखते थे. बाकी हथियारों को अपने ठिकानों पर जंगल में छिपा देते थे. केदार और पूजा सामान्य ग्रामीण की तरह जयपुर और आगरा के ताजमहल आदि जगहों पर भी घूम चुके हैं.

डकैत केदार की आदत थी कि वह जंगल में जहां खाना खाता था, वहां से 1-2 किलोमीटर दूर जा कर पानी पीता था. रात में भी ये 1-2 बार अपना ठिकाना बदल लेते थे. इन की गिरफ्तारी से कुछ महीने पहले धौलपुर पुलिस की केदार और पूजा गिरोह से मुठभेड़ हुई थी. उस मुठभेड़ के बाद पुलिस ने इन के चंगुल से आगरा के एक ठेकेदार देवेंद्र ठाकुर को मुक्त कराया था. देवेंद्र का उत्तर प्रदेश के शमसाबाद से अपहरण किया गया था. वह शमसाबाद के पूर्व विधायक एवं व्यापारी डा. राजेंद्र सिंह का रिश्तेदार था.

देवेंद्र ठेकेदारी करता था.देवेंद्र के अपहरण के बाद केदार और पूजा के गिरोह ने उस के घर वालों से 50 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी. बाद में 20 लाख रुपए में सौदा तय हो गया था. देवेंद्र के घर वाले 20 लाख रुपए ले कर आने वाले थे, इसी बीच पुलिस को सूचना मिल गई थी. पुलिस ने डकैतों की घेराबंदी कर ली. दोनों तरफ से गोलियां चलीं. मुठभेड़ के दौरान डकैत देवेंद्र को छोड़ कर भाग निकले थे.

देवेंद्र ने तब पुलिस को बताया था कि शमसाबाद से उस का एक कार में अपहरण किया गया था. रास्ते में उसे इंजेक्शन लगा कर बेहोश कर दिया गया था. जब होश आया तो वह मध्य प्रदेश के जंगलों में था. बाद में डकैत गिरोह उसे साथ ले कर इधरउधर घूमता रहा. गिरोह ने देवेंद्र को जंजीरों से बांध कर रखा था. जंजीर में ताला लगा रहता था.

केदार एवं पूजा की गिरफ्तारी से चंबल के बीहड़ों में आतंक के 2 साए भले ही कम हो गए हैं, लेकिन उन की दहशत अभी भी 3 राज्यों के कई जिलों में है. केदार की उम्र लगभग 60 साल है तो पूजा भी 40-45 साल के आसपास की है. दोनों को इस बात का दुख है कि उन की कोई औलाद नहीं है. 2 बार शादी करने के बाद भी कोई संतान न होने से केदार अब टूट सा गया है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित